बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा का स्वरूप ?
जैमिनी अकादमी द्वारा " बदलते परिवेश में हिन्दी का स्वरूप ? " चर्चा - परिचर्चा का विषय भारतीयता की पहचान है । जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की भाषा बन गई । परन्तु भारत के अन्दर लोगों की ओछी मानसिकता के कारण हिन्दी बोलने पर हीन दृष्टि से रखते हैं । यहीं कुछ चर्चा - परिचर्चा पर आये विचारों को देखते हैं : - यह बात सुखद है कि आज के परिवेश में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार निरंतर विस्तार की ओर अग्रसर है। हिन्दी भाषा में पहले की अपेक्षा दिनोंदिन बहुत लिखा जा रहा है, बहुत कहा जा रहा है और बहुत पढ़ा भी जा रहा है। यह पक्ष हम हिन्दी भाषियों के लिए उपलब्धियों से भरा तो है ही, गौरवपूर्ण भी है। लेकिन दूसरा पक्ष यह भी है कि हमारा सृजन जितना चिंतनशील और सार्थक है, उतना प्रस्तुतीकरण विशुद्ध नहीं है। भावातिरेक की जल्दबाजी में हम अपने सृजन की अभिव्यक्ति में शिल्प और कसावट पर ध्यान नहीं दे पाते और त्वरित प्रस्तुतीकरण कर देते हैं। कभी भाव दोष, कभी शब्द दोष तो कभी व्याकरण दोष की कमी और खामी हमारे उद्...