बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती : कारण और निवारण

            जैमिनी अकादमी द्वारा  " बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती : कारण और निवारण " विषय पर चर्चा - परिचर्चा रखीं गई है । बदलते परिवेश में सब कुछ प्रभावित हुआ है । ऐसे में पत्रकारिता प्रभावित हुए , बिना कैसे हो सकता है । पत्रकारिता हर युग में अपनी छाप अवश्य छोड़ती है ।  प्रिंट मीडिया से डिजिटल में प्रवेश होना , कोई छोटी घटना नहीं है । जिससे पत्रकारिता को मीडिया जैसे शब्द ने विशाल रूप प्रदान किया है । जिसके अनेक कारण है। उन का निवारण होना भी सम्भव है । यही सब कुछ आज की परिचर्या का विषय है । जिसमें कुछ विद्वानों ने अपने विचार , यहां पर रखें हैं : -
सदियों से पत्रकारिता का विशेष महत्व रहा है ।   तीनों लोकों के आदि पत्रकार श्री नारदजी रहें हैं। जिन्होंने धर्म ‌को स्थापित करने तथा अधर्म ‌के विनाश के लिए  तथा मानव कल्याण के लिए निर्भय होकर कार्य किया।  कालांतर भी स्वयं नारायण ‌ने  आकाशवाणी के माध्यम से मानव को सजग करते रहें तथा अवतार लेकर सम्पूर्ण महा‌शक्तियो  सहित दुष्टों के विनाश का कारण बने । कालांतर इस अखऺड भारत को अनेक झऺझावातो से जूझना पड़ा। मुगलों के शासन काल में भले ही जान गऺवानी पड़ी लेकिन   लिखने में सक्षम लेखकों तथा बोलने में सक्षम वक्ताओं ने  सही को सही तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलन्द करने में कसर नहीं छोड़ी।  1550  पुर्तगाली ने समाचार पत्र ज सिक्किम गजट निकाला था जिसका सम्पादक  अऺग्रेज था। जिसने स्पष्ट शब्दों में   अऺग्रेजो का विरोध किया था  जिसमें उसे सज़ा भी हुई थी। वर्तमान के सफ़र तक आते-आते   पत्रकारिता दो भागों में बऺट ग ई  प्रिऺट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया।  आज़ भी लोगों को पूर्ण विश्वास हैं  कि  सामाजिक परिवेश की आवाज  उठाने के लिए पत्रकारिता ही सशक्त माध्यम है। जिसे पत्रकारिता ने ‌निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।  इसके अनेकों समाचार पत्र-पत्रिकाऐऺ  उदहारण है।   लेकिन आधुनिकता की होड़ में   पत्रकारिता धन्ना बनती जा  रही है। पत्रकार आपनी जान पर खेलकर कोई स्टोरी बनाता है यह सोचकर कि  समाज की दशा एवं दिशा में सुधार होगा।  छपने से पहले ही वहां विज्ञापन पहुंच जाते हैं। जिससे श्रेष्ठतम पत्रकारिता  पर कुठाराघात हो रहें हैं।
‌आज आवश्यकता है निर्भय पत्रकारिता की और ऐसे समाचार पत्रों की जो  चाटूकिरिता से हटकर   यथार्थ को सामने लाए । और जो देश में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के‌लिऐ  लिखें।  इसमें में  मैं विशेष कर युवा एवं झूझारू  पत्रकारों का  आह्वान करता हूं की  भारत की एकता और अखंडता के लिए तथा देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए   लेखनी चलाऐ। आप चौथा स्तम्भ हैं आपकों निर्भय पत्रकारिता करनी होगी।  तथा विश्व के मानचित्र पर श्रेष्ठ पत्रकारिता की छाप छोडनी होगी।
  - मदन हिमाचली
 वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार एवं प्रधान नौणी पऺचायत जिला सोलन -  हिमाचल प्रदेश
बदलते परिवेश में पत्रकारिता वाकई चुनौती पूर्ण कार्य हो गया है ।अक्सर ऐसा कहा जाने लगा है कि भारतीय मीडिया में खबरों के तथ्य बताने के बजाय इन्हें एक विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाता है ।समाचारों की दुनिया मे भारत के मूल्यों एवम सम्पादक तत्वों को शामिल करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।पत्रकारों को अक्सर सरकारी अधिकारियों,आपराधिक तत्वों ,या निहित स्वार्थ वाले व्यक्तियों से  मिली धमकियों व उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है ।ये कृत्य  मौलिक अधिकारों से लेकर निगरानी और हस्तक्षेप करते हैं ।प्रतिकूल माहौल में अपना काम करना एक पत्रकार व रिपोर्टर के लिए काफी चुनौतियां पेश करता है ,ये सब उनकी भलाई ,सुरक्षा व प्रभावशीलता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते है।
आजकल तमाम प्रतिकूलताएँ स्वतंत्र पत्रकारिता को बाधित कर रही हैं ,जैसे शारीरिक उत्पीड़न ,धमकियां व हिंसा, कानूनी व नियामक प्रतिबंध ,डिजिटल सुरक्षा व निगरानी आघात एवम मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव  आदि नकारात्मकता व प्रतिकूलताएँ बहुत बड़ा चैलेंज बन गए हैं ।
परंतु मेरे विचार से इस प्रतिकूल वातावरण में भी पत्रकार इन चुनौतियों को पहचानकर  ,उन्हें सम्बोधित करने के लिए रणनीतियों को लागू करके अपनी अखण्डता बनाये रखते हुए तमाम जटिलताओं से निपट सकते हैं।
जैसे कि शारीरिक  खतरों पर काबू पाना ,डराने धमकाने से लड़ना ,कानूनी प्रतिबन्धों को समझना ,डिजिटल सुरक्षा को प्राथमिकता देना, आघात को सम्बोधित करना एवम सूचना के लिए वैकल्पिक रास्ते खोजना ,चुनौतीपूर्ण  वातावरण में भी प्रभावी पत्रकारिता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा ।
पत्रकारों को समर्पित मेरा एक  गीत प्रस्तुत है 

मैं एक पत्रकार हूँ,
 मैं एक पत्रकार हूँ ।
समाज का हूँ आईना ,
अवाम का गुबार हूँ । 

कहाँ पे क्या सही हुआ,
 कहाँ पे क्या गलत हुआ।
कहाँ पे क्या सृजित हुआ ,
कहाँ पे क्या घटित हुआ ।

समाज के वजूद का,
 मैं ही तो चित्रकार हूँ ।
मैं एक पत्रकार हूँ 
मैं एक पत्रकार हूँ।
समाज का हूँ आईना ,
अवाम का गुबार हूँ । 

कर्मपथ पे मौत हो ,
मैं मगर डरूं नही ।
अमीर क्या गरीब क्या ,
भेद मैं करूँ नही ।

खुशी की बात हो या ग़म ,
,अवाम की पुकार हूँ ।
मैं एक पत्रकार हूँ 
मैं एक पत्रकार हूँ।
समाज का हूँ आईना ,
 अवाम का गुबार हूँ ।

- सुषमा दीक्षित शुक्ला 
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
           पत्रकारिता की चुनौतियों को दर्शाने से पूर्व आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम परिवेश का मूल अर्थ और परिभाषा जान लें। क्योंकि शाब्दिक अर्थ और परिभाषा आलेख को समझने और समझाने में परम सहायक सिद्ध होते हैं। जिसके फलस्वरूप वर्णनीय है कि परिवेश शब्द का स्रोत संस्कृत है और इसे परिधि, आभा, घेरा, मंडल, वातावरण अथवा माहौल इत्यादि नामों से जाना जाता है। जिसमें प्राणी के कार्य बिंदुओं के चारों ओर की सूक्ष्म से सूक्ष्म वास्तविक अर्थात तर्कसंगत अवस्था के चित्रचित्रण को परिभाषित किया जाता है। जैसा कि उपरोक्त आलेख के संदर्भ में बदलते परिवेश की मात्र चुनौतियों पर ही नहीं बल्कि राष्ट्रहित में उसके कारण और निवारण के उपलक्ष्य में भी गंभीर मूल्यवान प्रश्न उठाए गए हैं। 
           चूंकि वर्तमान परिवेश में अधिकांश पत्रकार और उनकी पत्रकारिता अपने मूल लक्ष्यों से भटक कर "गंगा गए गंगा दास और जमुना गए जमुना दास" की लोकोक्ति को चरितार्थ करने पर व्यस्त हैं। जिसका कड़वा सच यह है कि पत्रकारिता के पतंग की डोर व्यवसासियों के हाथ में आ चुकी है। जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ में पत्रकारिता का मूल दृष्टिकोण ही बदल दिया है। क्योंकि उनका लक्ष्य ही धन अर्जित करना है। जिसकी उद्देश्यपूर्ति हेतु वह अपने मौलिक कर्तव्यों को भूल कर भ्रष्टाचारियों के हाथों मिल कर ही नहीं बल्कि स्पष्ट बिक कर सत्य का गला घोंटने में अपनी अग्रज भूमिका निभा रहे हैं। जिससे सम्पूर्ण देश एवं देशवासियों का अहित ही नहीं बल्कि उनके मौलिक अधिकारों का हनन भी हो रहा है और यही मूल कारण हैं कि सवा करोड़ की जनसंख्या वाला देश अभी तक विश्वगुरू नहीं बन पाया। चूंकि भ्रष्टाचार वह दीमक है जो राष्ट्र को लकड़ी की भांति अंदर ही अंदर निगल जाती है। 
           इसीलिए पत्रकारों को "राष्ट्र सर्वोपरि है" के सिद्धांत पर राष्ट्रहित में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए कि वह विकास की कौन सी सीढ़ी पर चढ़ रहे हैं और देश को किन बुलंदियों पर लेकर जा रहे हैं? जिसके दूरगामी परिणाम क्या निकलने वाले हैं? जिसके आधार पर उन्हें अपने उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूक होना होगा और मंथन करना होगा कि भ्रष्टाचार के बारूदी ढेर पर उनके बच्चों का भविष्य भी खड़ा है। जिस पर उन्हें प्रत्येक दृष्टिकोण से मूल्यांकन करना ही होगा। ताकि भारत का भविष्य उज्ज्वल हो सके। 
           उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भ्रष्टाचार से पीड़ित हम जैसे पत्रकारों ने व्यष्टि से समष्टि की ओर बढ़ते हुए "प्रेस कोर कौंसिल" नामक संस्था को पंजीकृत करवाया था जो धन के अत्यधिक आभाव के कारण धीमी गति से गतिमान भी है। जिसे तीव्र गति से दौड़ने के लिए विद्वान और सशक्त व्यक्तित्वों की परम आवश्यकता है। संभवतः भविष्य में "प्रेस कोर कौंसिल" बदलते परिवेश में पत्रकारिता की चुनौती के कारण और निवारण को आधारभूत चुनौती देगी और राष्ट्रहित में भव्य योगदान भी देगी। उस समय की प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि कोई नहीं जानता है कि भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है? 
          जिन्हें तलाशने एवं तराशने हेतु उल्लेखनीय है कि उपरोक्त उद्देश्यपूर्ति हेतु सरकार को भी भारत को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने में दृढ़संकल्पित होकर आगे बढ़ना होगा और सुयोग्य प्रशिक्षित पत्रकारों को विशेष सहायता पहुॅंचानी चाहिए, ताकि धन के अभाव में "प्रेस कोर कौंसिल" सहित अन्य अनेक निष्पक्ष एवं सत्यमेव जयते पर आधारित सत्यनिष्ठ पत्रकारों और उनकी पत्रकारिता भ्रष्टाचार के विस्फोटक बारूद की भेंट न चढ़ जाए। सम्माननीयों जय हिन्द 
- इंदु भूषण बाली   
 जम्मू -  जम्मू और कश्मीर
    पूर्व इतिहास में अगर हम झांके तो पहले पत्रकारिता एकता के सूत्र में पूरे समाज को पिरोने के अतिरिक्त, वह ऐसे सच को भी उजागर करती थी जो आम जनता को पता नहीं होता था। सभी घटनाओं का विस्तार से वर्णन केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में  अख़बार के माध्यम से  होता था। चाहे डायना की मौत हो,2 जी स्पेक्टम घोटाला, बोफोर्स कांड , ताबूत घोटाला हो या चारा घोटाला वगैरह - वगैरह।
 वर्तमान में पत्रकारिता का क्षेत्र विस्तृत हो गया है। जैसे अखबार,पत्रिकाएं दूरदर्शन वेब पत्रिका  इत्यादि। इसमें पत्रकार की लेखनी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। उसे बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता था।
   लेकिन आज के दौर में पत्रकारिता मात्र नोटिफिकेशन या पेपर बनकर रह गई है। सभी मीडिया और संस्थान सारे समय सरकार का गुणगान करते रहते हैं। पहले के पत्रकार सच दिखाने के लिए प्रतिबद्ध होते थे। आज तो हर चैनल हर पेपर किस राजनेता का है, यह सबको ज्ञात है। और राजनीतिक नेताओं की महत्वाकांक्षाओं  को ध्यान में रखते हुए पत्रकारों को लिखने पर  बाध्य किया जाता है। नेता जो चाहता है अगर पत्रकार नें वह नहीं लिखा,  उसने सच कहने का दुस्साहस किया तो उसे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है।
        जब 21वीं  सदी में दुनिया विज्ञान या टेक्नोलॉजी पर बात कर रही है, भारतीय अखबार मंदिर मस्जिद, धर्म,राजनीति और जातिवाद पर अटक कर रह गया है। जिससे सामाजिक विघटन पैदा हुआ है। दूसरे शब्दों में कहे तो अंधविश्वास  दकियानूसी सोच, धार्मिक उन्माद, बलात्कार जैसी बातें आज अखबार की मुख्य खबर बनकर रह गई है।
    बदलते समय में पत्रकारों के समक्ष बहुत सी चुनौतियां हैं। जैसी कोई घटना, समाचार का विश्लेषण,  उसकी जानकारी आम जनता को मिलनी ही चाहिए। पत्रकार का उद्देश्य लोकतांत्रिक मूल्यों  की रक्षा करना होना  चाहिए।  उसे अपनी विषय वस्तु और उसके  प्रस्तुतीकरण में व्यापक और पैनी दृष्टि  रखना चाहिए। उन्हें एकजुट होकर नेताओं की सत्ता तले दबकर, अपने स्वार्थ से परे हटकर केवल पत्रकारिता पर ध्यान देना होगा।
     हम जानते हैं कि पत्रकार के जीवन में बहुत चुनौतियां हैं उन सब का सामना करके ही उसे पत्रकारिता करनी होगी। अन्यथा लोगों में अखबार पढ़ने की आदत  धीरे-धीरे कमतर होती जाएगी। जिससे इनका भविष्य  अंधकारमय हो जाएगा।
 - अर्चना मिश्र
 भोपाल -  मध्य प्रदेश
     बिटिश काल में भारतीय पत्रकारों को अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ता था, क्योंकि एक व्याकांश विपरीत लिखा तो सीधे जेल? आजादी पश्चात शनै:-शनै: पत्रकारिता का विकास होते गया और दो भागों में बट गया। शासकीय और अर्द्ध शासकीय? अधिकांश समाचार पत्रों के पत्रकार शासकीय विज्ञापनों और समाचारों पर निर्भर हो गये। कुछ पत्रकार अनावश्यक रूप से  समाचार बनाकर विशिष्ट जनों को  अवैध रूप परेशान कर रुपए कमाने लगे। वर्तमान परिदृश्य में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस तरह चैनलों, बहुरंगीन पृष्ठ भूमि में योगदान सराहनीय प्रयास तो है, समाचार पत्रों की संख्यात्मक वृद्धि तो हुई है। जहाँ दुर्गम स्थलों पर जाकर समाचारों का संकलन करना, कभी-कभी परेशानी का सामना करना पड़ता था, यहां तक मरणासन्न अवस्था और पत्रकारिता परिवार के भरण-पोषण  चिन्तन-चिन्ता की समस्या जटिलता का विषय बनता जा रहा था इसी विषमता के परिवेश में पत्रकारिता ही बंद करनी पड़ी। लेकिन पत्रकारों का संगठन बनने के परिप्रेक्ष्य में शासन पर दबाव पड़ता गया और पत्रकारों के हित में परिवार बीमों के साथ ही कारगार कदम उठाए गए तो हैं। पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं का भी पादुर्भाव हुआ है। प्रतिष्ठित चैनलों -समाचार पत्रों के मालिकों द्वारा वेतनों का निर्धारण तो किया है। भविष्य इनके विस्तारीकरण की आवश्यकता प्रतीत होती है, क्योंकि पत्रकारिता का भी डिप्लोमा होता है? कुछ तो डिप्लोमा धारी तो होते है, कुछ नहीं मात्र आजीविका के लिए करते हैं। पत्रकारिता डिप्लोमा भी अनिवार्य होना चाहिए,  ताकि अपनी बात बेझिझक प्रस्तुत कर सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
          देश विदेश में घटने वाली घटनाओं को इकट्ठा करके उन्हें संपादित कर छापने वाली सभी जानकारियां, पत्रकारिता के अंतर्गत आती है ।  
          इसका उद्देश्य संसार के व्यक्तियों को देश-विदेश की जानकारी करवाना, उन्हें सोचने- समझने के अवसर प्रदान करना, मनोरंजन करना आदि होता है । 
          पत्रकारिता के माध्यम से जो सूचनाएं प्राप्त होती है, वह हमारे दैनिक जीवन के साथ-साथ पूरे समाज को प्रभावित करती है ।
          भारत में पहला समाचार पत्र 1819 में बंगाली में प्रकाशित हुआ जिसका नाम 'संवाद कॉमुदी' (बुद्धि का चांद) था, इसके प्रकाशक राजा राममोहन राय थे ।
          वर्तमान समय में लोगों का भरोसा पत्रकारिता पर से उठता जा रहा है । व्यावसायीकरण, सोशल साइट्स, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट आदि के कारण प्रिंट मीडिया कमजोर होता जा रहा है क्योंकि इन पर समाचार बहुत तेजी से हवा की तरह फैल जाते हैं । लोगों में इंतजार करने की प्रवृत्ति समाप्त हो रही है, उन्हें सभी कुछ तुरंत चाहिए ।
         न्यूज़ चैनलों की भी बाढ़ आ रही है । टीआरपी बढ़ाने की होड़ लगी है, उन्हें देश और समाज की चिंता कम और विज्ञापनों से कमाई की ज्यादा है । 
         हम बदलाव तो चाहते हैं मगर पहल कोई नहीं करना चाहता । अगर हम सब एकजुट होकर संभल जाएं, धैर्य रखें, चकाचौंध की मायावी दुनिया, टीआरपी की दौड़ और धन-माया के पीछे भागना छोड़कर, निष्पक्ष पत्रकारिता पर ध्यान दें तो लोकतंत्र का जो यह मजबूत स्तंभ है, इसे और अधिक मजबूती मिल सकती है ।
                  - बसन्ती पंवार 
                 जोधपुर - राजस्थान
यह सत्य है कि पत्रकारिता एक चुनौतीपूर्ण पेशा है, जिसमें कड़ी मेहनत समपर्क और सच्चाई के प्रति ठोस प्रतिबद्धता की जरूरत होती है, 
देखा जाए पत्रकार कई महत्वपूर्ण घटनाओं और मुद्दों के बारे में जनता को सुचित करने में लाभदायक कार्य करते हैं, और उनका कार्य अक्सर समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, फिर भी एक पत्रकार का कार्य चुनौतियों से रहित नहीं है, उनके सामने कई चुनौतियां आती जाती रहती हैं जिनमें से एक सामग्री की जलदवाजी और कुशलता से तैयार करने का जबाब जिसके लिए पत्रकारों को किसी भी कहानी पर गहन शोध करना और जल्दी रिपोर्ट तैयार करना मुश्किल हो जाता है जिससे कईं त्रुटियां और अशुद्धियाँ हो सकती हैं तथा कईवार जल्दबाजी में सोच की कमी और कम जानकारी होने पर तथ्य जांच   में विफलता हो सकती है, 
इसके अलावा कई देशों में पत्रकारों को अपनी रिपोटिंग के लिए उत्पीडन होना पड़ता है या धमकी भी मिल जाती है तथा हिंसा का सामना भी करना पड़ता है जिससे कार्य करनो में मुश्किल आती है तथा कईवार पत्रकारों को अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और ऐसी सामग्री तैयार करना पड़ती है जो पढ़ने वालों को ज्यादा आकर्षित कर सके, इसके  अलावा स्रोतों की कमी भी आँकी जाती है क्योंकि अलग अलग दृष्टिकोण वाले अलग अलग लोगों से किसी मुद्दे पर पहुँचा जा सकता है जिसके लिए कई लोगों की पहचान को  भी  सुरक्षित रखना पड़ता है तथा कईवार न्यूज़ रोम मोम नकारात्मक संस्कृतियां भी हो सकती हैं जो पत्रकारों के काम में हानि पहुंचा सकती हैं, 
यही नहीं प्रतिकूल वातावरण में काम करने को लिए पत्रकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो सुरक्षित और स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने की  क्षमता में बाधा बन सकती हैं, 
इनके निवारण के लिए इन चुनोतियों को पहचान कर उन्हें संबोधित करने के लिए रणनीतियों को लागू  करके मिडिया कर्मियों को अपनी पत्रकारिता की अखंडता को बनाये रखते हुए अपने काम की जटिलताओं से निपट सकते हैं, इसके अतिरिक्त शारिरिक खतरों पर काबू पाना, धमकी से लड़ना कानूनी प्रतिबंधों को समझना और सूचना के लिए वैकल्पिक रास्ते खोजना सबसे चुनौतीपूर्ण वातावरण में महत्वपूर्ण कदम है, 
इसलिए उपराष्ट्रपति जी ने मीडिया से समाधान का हिस्सा बनने और समस्या का हिस्सा न बनने का आग्रह किया, उन्होंने पत्रकारिता और मिडिया कर्मियों के लिए कार्य योग्य माहौल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया यही नहीं संयुक्त राष्ट्र योजना की दसवीं वर्षगांठ पर पत्रकारों और मिडिया कर्मियों के लिए एक सुरक्षित वातावरण को वढावा देने के लिए कई नेटवर्कों को लाँच किया गया है, इसके अतिरिक्त पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के महत्व को क्षेत्रिय और राष्ट्रीय स्तर पर वढ़ती मान्यता को एक  सामान्य ढांचे दवारा सुनिश्चित करने की जरूरत है, क्योंकि की पत्रकारिता दूनिया का अनूठा उदाहरण है, क्योंकि मर्यादित भाषा में सत्य कहने का साहस भारतीय पत्रकारिता का गुण रहा है, इसलिए वर्तमान में सत्य के साथ साहसी पत्रकारिता की जरूरत है क्योंकि यह एक ऐसा पेशा है जो समाज को अन्याय, दुराचार, भ्रष्टाचार जैसे तमाम दुर्गुणों से मुक्त करने की ताकत रखता है, 
वास्तव में पत्रकारिता भी सहित्य की भांति समाज में चलने वाली गतिविधियों एंव हलचलों का दर्पण है। 
 - सुदर्शन कुमार शर्मा
  जम्मू - जम्मू व कश्मीर
स्वाधीनता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वाधीनता और राष्ट्र प्रेम की ज्योति जलाई। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों काव्यार्चनों ने आमजनों के हाथों में स्वाधीनता की मशाल थमायी। बहुत ही बेहतरीन थे वे दिन सच्चे अच्छे समाचार पत्र और सच्ची सच्चाईयों से भरी खबरें। लेकिन आज के युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो हो रहा है उस पर सामाजिक राजनीतिक आक्रोश पत्रकारिता के लिये चुनौती बन रहा है। राजनीतिक पार्टियों का दबाव इतना कि जान पर बन आती है। नाम नहीं लेना चाहती मगर जानते हैं आप सब कि बिकने को तैयार और ना बिकने को तैयार दोनों ओर से बढता दबाव पत्रकारों के लिए चुनौती बनता जा रहा है। बदलती समाज व्यवस्था में जहाँ पहले माफिया, गैंगस्टर और गुंडा तत्वों से ही पत्रकारों के पाले पड़ते थे वहीं आज के बदलते परिवेश में विदेशों से आयातित पत्रकारिता के साथ देश की अभिमंत्रित, अविचारी, अनीतिपरक , दुराग्रही, पूर्वाग्रह ग्रसित,, बनावटी, नाट्यरचित पत्रकारिता की दुनिया पत्रकारों के लिए नित नयी चुनौती बन कर उभरती है
सबसे अच्छा उदाहरण है "पूछता है भारत" के प्रस्तोता पर हमला और बाद में कानूनी कार्रवाई। बदलते परिवेश में एक "रिस्की जाॅब"बन गई है पत्रकारिता। "गोदी मीडिया" जुमला मीडिया जैसे शब्द रूढ़ हो कर विध्वंसक रूप ले रहे हैं। कुछ समय पहले पीत पत्रकारिता के नाम का शोर उठा था--और उसके बाद तो पत्रकार जमात पर दबाव की घटनाएं बहुत आम हो गई। तात्पर्य यही कि निःस्पृह निष्पक्ष पत्रकारिता तो सपनों की बातें हो गयी हैं।
     ऐसा लगता है कि सिर्फ अपराध, हादसे और राजनीति ही खबरें बन कर प्रिंट-मीडिया और तकनीकी डिजिटल मीडिया का काम बन गयी हैं। शेष खबरें मात्र औपचारिकता बन कर हाशिये पर और कोने में स्थान पाती हैं
        इन सब का कारण है दुनिया का एकत्व में विलय। एक क्षण में देश-विदेश का हर प्रभाव दूसरे देशों को प्रभावित कर देता है। एक जगह पर हुआ दंगा क्षण मात्र में दूसरे स्थान को चपेट में ले लेता है। जातिय दंगों की आँच में पत्रकारों की चाँदी या फजीहत परिस्थितियों पर निर्भर करता है लेकिन चुनौतियां परिवेश के अनुसार बदलती रहती हैं।
         निवारण - - क्या कहें। "मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना" करोड़ों करोड़ों इंसानों की इस दुनिया में दिमाग को नियंत्रित करने और दिमाग को पढने के लिए कोई एप नहीं बना है। ऐसी स्थिति में "एकमत"दूसरी  दुनिया की बात है जब मानव एलियन होगा।
दुनिया में दंगे फसाद स्वार्थी राजनीति डिप्लोमेसी चलती रहेगी और हर दौर में बदलते परिवेश में देश का चौथा स्तंभ भुगतान करेगा ही अपने फर्ज की राहों पर चलते रहने का। अवश्यंभावी है और अनिवार्य भी। बहुमत को एकमत बनाने की कवायद तो पत्रकारिता का अहम कार्य था-- है और रहेगा हमेशा हमेशा हमेशा। 

- हेमलता मिश्र "मानवी" 
    नागपुर - महाराष्ट्र
वरिष्ठ पत्रकार वैद्यराज गंगाधर द्विवेदी जी पत्रकार को परिभाषित करते हुए कहते हैं
 -"पतनात् तारयति इति पत्रकार।" 
अर्थात् जो पतन से तारता है, वहीं पत्रकार हैं।
यह परिभाषा एकादमिक रुप से भले ही मान्य न हो, लेकिन वास्तविकता यही है।
वर्तमान में चुनौतियां 
जब पारंपरिक मीडिया के साथ साथ, समाज में सोशल मीडिया सक्रिय हुआ  अब मुख्य मीडिया 
को एक पक्षीय होता हुआ सबने देखा और तब सकारात्मक पत्रकारिता पर नकारात्मक पत्रकारिता हावी होने लगी। मीडिया हाउस तय करने लगे कि क्या दिखाया जाएं,क्या छापा जाए?
बड़े बड़े जन आन्दोलनों और प्रदर्शनों के प्रति सौतेला व्यवहार अपनाकर  उनकी अनदेखी करना कथित मीडिया करने लगा। हर घटना  को किसी एक विशेष कोण से देखना और उसी नजरिए से प्रस्तुत किया जाने लगा,तो मीडिया की विश्वस्नीयता प्रभावित होने लगी। कट काफी पेस्ट करके उसे ही
एडिटिंग मान लेना और तोड़-मरोड़ कर खबरें पेश करने की संस्कृति मीडिया मे इतनी बढ़ी है कि कि संदर्भों को ही बदलते हुआ सब देखते हैं।अब मीडिया के समक्ष चुनौती  है अपनी विश्वसनीयता 
को बचाए रखना।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जिस तरह से अन्य स्तंभों की तरह व्यवसाय बन गया और मालिकों के व्यावासिक हित सर्वोपरि हो गये।पतन से बचाने वाले अपने व्यवसायिक हितों के लिए इससे विमुख होकर स्वयं पतन की ओर बढ़ चले तब ऐसे में पत्रकारिता के समक्ष एक ही चुनौती है - निष्पक्षता को बचाए रखना, मानवीय मूल्यों और मानवता को बचाए रखना।
  चुनौतियां होने के कारण : -
देश की आजादी में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका यूं ही नही रही।इसको एक हथियार के 
रुप में प्रयोग किया गया। समाज और राष्ट्र को सही दिशा देना और लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषण संरक्षण ही पत्रकारिता का उद्देश्य होता है।
वर्तमान में पत्रकारिता इस पर से भटकने लगी है। इसके अनेक कारण हैं जैसे व्यवसायिक हित,किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा के प्रति लगाव होना,
त्वरित लाभ उठाना और अति महत्वाकांक्षी होना आदि आदि।
 चुनौतियों के निवारण हेतु सुझाव :-
इन तमाम चुनौतियों के बीच अपने अस्तित्व को बचाते हुए व्यवसाय और मिशन में संतुलन बनाएं
रखते हुए पत्रकारिता के मूल्यों को बिना हानि पहुंचाए कार्य करके से ही पत्रकारिता इन सबसे पार  सकती है। अपने छोटे छोटे स्वार्थों से परे हटकर राष्ट्र और समाज हित में अपनी विश्वसनीयता और निष्पक्षता को प्रभावित न होने दिया जाए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
    धामपुर - उत्तर प्रदेश
बदलते परिवेश में पत्रकारिता की गुणवत्ता में गिरावट आई है। पत्रकारिता आदर्शवादी एवं सांस्कृतिक मूल्यों की जगह व्यावसायिकता प्रमुख हो गई है।  पीत पत्रकारिता अपना अस्तित्व खोती जा रही है। पत्रकारिता का व्यावसायिक होना गलत नहीं है लेकिन लोग फायदा पाने की होड़ में नैतिक मूल्यों और दायित्वों को भुलाकर स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए हैं। निजी समाचार चैनलों में एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में  खबरों पर झूठ का मुलम्मा चढ़ाने में लगे रहते हैं। 
बदलते परिवेश में प्रिंट मीडिया पीछे छूट गया है। सूचना प्रसार की अंधी दौड़ में कंप्यूटर, मोबाइल तथा मल्टीमीडिया तकनीक आगे बढ़ गई हैं जिससे एक आम आदमी भी पत्रकार बन गया है। पत्रकारिता पर बाजार और व्यवसाय का दबाव काफी बढ़ गया है जिसके कारण लोगों को जागरूक करने की आधारशिला से मीडिया भटक चुकी है। पेड न्यूज़ का रूप भव्यता से उभर कर आया है जो कि देश और समाज के लिए एक घातक है। पत्रकारिता पर पूंजीपतियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे कई  चैनल हैं जो गलत पत्रकारिता करके अपनी टीआरपी बढ़ाना चाहते हैं।
निवारण-
1- बदलते परिवेश में पत्रकारिता की गुणवत्ता में सुधार के लिए वरिष्ठ पत्रकारों को आगे आना पड़ेगा।
2- मीडिया की भूमिका यथार्थ सूचना प्रदायक एजेंसी के रूप में होनी चाहिए।
3- गलत पत्रकारिता करने वालों के खिलाफ कानून बनाकर दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
4- प्रेस की आजादी के नियमों में सुधार की आवश्यकता है 
5-  गलत सूचना के विरुद्ध जनता को जागरूक होना पड़ेगा 
6- पत्रकारिता से संबंधित संस्थायें जो निष्क्रिय पड़ी हैं उन्हें सक्रिय करना होगा एवं उनके नियमों को कड़ा करना पड़ेगा ।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
    जहाँ कहीं  पर कोई कार्यक्रम या कोई अच्छी या बुरी घटना घटती है तो पत्रकारिता के द्वारा उस घटना को संक्षिप्त में उजागर किया जाता है  कहीं लोग नहीं चाहते कि ये पता चले तो विरोध करते हैं पर पत्रकारों का अपना काम है यही कारण जब तक पता नहीं रहता पत्रकारिता को यही सब शान्ति से निवारण हो जाता है
- राजकुमारी रैकवार राज
    जबलपुर - मध्यप्रदेश
सच्ची पत्रकरिता वो होती है जो समस्त परिवेश की घटनाओं को समेटकर आम जनता तक यथार्थ रूप में पहुंचती है . पहले पत्रकारिता का साधन केवल प्रिंट मीडिया ही था और आज भी है पर समय के बदलने के साथ पत्रकारिता के आयाम भी बदल गए हैं . आज पत्रकारिता के कारण चुस्त दुरुस्त वा तेज तर्रार हो गई है , और क्षणों में खबर जनता तक पहुंच जाती है . इन समस्त फायदों के साथ एक कमी ये है कि आज खबरें पहुंच तो जाती हैं तुरंत पर कुछ फरेबी पत्रकारों के कारण छल फरेब के साथ तोड़ मरोड़ कर पेश की जाती हैं . पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती राजनीति है . सच्ची खबर किसे की पोल खोलती है वा सच्चा पत्रकार सच्ची खबर के कारण भ्रष्ट नेताओं का शिकार बन जाता है . पत्रकारिता पाखंड की पीठ पर वो चाबुक है जो पाखंडी सहन नहीं कर पाटे . यदि ये चाबुक चलता रहे तो लोग सच्चाई से अवगत होते रहें . 

चुनौतियों के कारण और निवारण :-

पत्रकारों के निजी जीवन को सुरक्षित करने का मकसद भी सच्ची पत्रकारिता को प्रभावित करता है . मूलभूत सुविधाओं का अभाव भी सच्चे पत्रकार की पत्रकारिता को प्रभावित करता है . पत्रकारिता राजनीति की भेंट न चढ़े, इसके लिए ठोस कदम उठाने पड़ेंगे . यदि पत्रकार की इन समस्त समस्याओं का निवारण हो , वह सुरक्षित महसूस कराए, औरसुविधाओं का भी अभाव न हो तो निष्पक्ष, निर्भीक , और यथार्थपरक पत्रकारिता होगी वा सच्ची खबरें आम जनता तक पहुंच पाएंगी,,,,,,जो वक्त की पुकार भी है .
- नंदिता बाली
जिला सोलन - हिमाचल प्रदेश
      समय सचमुच तेज़ी से बदल गया है। तकनीकी ने हर क्षेत्र में दस्तक दी है। इससे कई लाभ भी हुए हैं। लेकिन कुछ मानवीय मूल्यों पर ये विपरीत असर वाली भी सिद्ध हुई है। इनमें प्रमुख है- सबको सब काम में समर्थ बना देने से व्यक्तिगत  विशेषताओं का अंत हो जाना। आज किसी भी बात पर आप ये सोच कर खुश नहीं हो सकते कि किसी कार्य को सिर्फ़ आप ही दक्षता से कर सकते हैं। तकनीकी की मदद से आपकी किसी नैसर्गिक योग्यता को कोई ऐसा व्यक्ति भी चुनौती दे सकता है जो उस कार्य में बिल्कुल भी प्रवीण न हो। पत्रकारिता भी इस चुनौती से घिरी है। किसी समय कहा जाता था कि पत्रकारिता एक जुनून है और ये ज़ज़्बा किसी- किसी में ही होता है किंतु आज की पत्रकारिता पूरी तरह व्यावसायिक है जो सुविधाओं के दुरूपयोग से भी परहेज़ नहीं करती। आज रोटी पानी की चिंता छोड़ कर जान के जोखिम के साथ मौक़े पर डटे पत्रकार को मूल्यरहित पत्रकारिता करता हुआ कोई ऐसा रिपोर्टर भी मात दे सकता है जो तकनीकी, व्यावसायिकता और संपर्क के सहारे घटनाक्रम के दौरान बंद कमरे में बैठा रहा हो। नियंत्रित मीडिया भी आज की समस्या है। पूंजी का जोखिम जान के जोखिम से बड़ी बात हो चली है। 
इन समस्याओं के निवारण के लिए यही कहा जा सकता है कि लोग किसी एक स्रोत पर अवलंबित न रहें। मीडिया हाउसेज़ की स्वायत्तता की मांग लगातार उठाई जाए। राजनीति प्रेरित पत्रकारिता की अवहेलना की जाए। विश्वसनीयता को विज्ञापन की तुलना में अधिक महत्व दिया जाए। 

- प्रबोध कुमार गोविल
  जयपुर-  राजस्थान
            समय बदला है, परिवेश बदला है तो हर क्षेत्र में काम करने की चुनौतियों का रूप भी बदला है।
पहले पत्रकारिता को एक धर्म की तरह माना जाता था इसीलिए उसे पूरी निष्ठा, आस्था और समर्पण से उसे किया और निभाया जाता था। समाचारपत्रों में समाचार की विश्वसनीयता होती थी। टेलीविजन आने पर दूरदर्शन के समाचारों को लोग सुनना बहुत पसंद करते थे। घटनाओं की तह तक पहुँचने के लिए रिपोर्टर जोखिम उठाते थे।
         समय बदला, परिवेश बदला, लोग बदले, विचारधाराएँ बदलीं, लक्ष्य बदले, उन्हें पूरा करने के लिए काम करने के तरीके बदली, चुनौतियाँ लेने और उन्हें पूरा करने के तरीके भी पूरी तरह बदल गए। अब पत्रकारिता केवल एक धर्म नहीं रह गया उसका पूरी तरह व्यावसायिकरण हो गया है। अब कुछ घराने हैं जिनके न्यूज चैनल हैं, समाचारपत्र हैं, आकर्षक सुविधाओं के साथ आकर्षक वेतन हैं जिन्हें ये सब इसलिए मुहैया करवाया जाता है कि वे उनके अनुसार टी आर पी को बढ़ाने के लिए काम करें। आज किसी भी न्यूज चैनल पर जब समाचार दिए जाते हैं तो हर न्यूज चैनल के रिपोर्टर बार-बार यह दोहराते रहते हैं कि जो दिखाया जा रहा है वह उनके ही न्यूज चैनल पर सबसे पहले दिखाया गया। प्रिंट मीडिया भी अब डिजिटल मीडिया के सामने छोटा हो गया है, गोदी मीडिया का रिमोट कंट्रोल सब कुछ कंट्रोल करता है। पीत पत्रकारिता…पैसे देकर किसी के लिए भी कुछ भी अच्छा-बुरा लिखवा लो, किसी को प्रसिद्ध करवा दो, किसी को बदनाम करवा दे।
         ऐसे बदले समय में, बदले परिवेश में जहाँ सब कुछ पैसों के बल पर चल रहा हो… सच्ची पत्रकारिता करना वास्तव में चुनौती से भरा कार्य है। जिन्हें इस कार्य में लगना है उन्हें धन के लोभ से अपने को निकाल कर पत्रकारिता को धर्म की तरह अपनाना और कार्य करना होगा। उन्हें स्वयं अपने से अपने लिए यह संकल्प करना होगा कि वे किसी भी लालच में नहीं आएँगे और अपने कार्य को पूरी ईमानदारी, पूरी निष्ठा, आस्था-विश्वास और समर्पण से निभाएँगे तभी वे अपने कार्य के साथ पूरा न्याय कर पाएँगे और पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे में अपना उत्तम दे पाएँगे।
- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड

           " मेरी दृष्टि में " बदलते परिवेश में डिजिटल का बहुत विकास हुआ है । हर इंसान के हाथ में मोबाइल आ गया है ।   इस में अमीरी - गरीबी का कोई प्रभाव नहीं है । हर हाथ में मोबाइल होने से , हर इंसान पत्रकार बन गया है । यही पत्रकारिता का बहुत बड़ा विकास हुआ है ।

                - बीजेन्द्र जैमिनी

      ( लेखक , पत्रकार व संपादक )

                           

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