शहीद उधम सिंह का जन्मदिन

बीजेन्द्र जैमिनी द्वारा शहीद उधम सिंह के जन्मदिन के अवसर पर कोटि कोटि नमन
 सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को एक सिख परिवार में पंजाब राज्य के संगरूर जिले के सुनम गाँव में हुआ था | सरदार उधम सिंह की माँ का उनके जन्म के दो वर्ष बाद 1901 में देहांत हो गया था और पिताजी सरदार तेजपाल सिंह रेलवे में कर्मचारी थे जिनका उधम सिंह के जन्म के 8 साल बाद 1907 में देहांत हो गया था | अब उनके माता पिता की मृत्यु के बाद उनके बड़े भाई मुक्ता सिंह उधम सिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में दाखिला कराया | शहीद उधम सिंह का बचपन में नाम शेर सिंह था लेकिन अनाथालय में सिख दीक्षा संस्कार देकर उनको उधम सिंह नाम दिया गया | 1918 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया |
    13 अप्रैल 1919 को स्थानीय नेताओ ने अंग्रेजो के रोलेट एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग़ में एक विशाल सभा का आयोजन किया था | इस रोलेट एक्ट के कारण भारतीयों के मूल अधिकारों का हनन हो रहा था | अमृतसर के जलियावाला बाग़ में उस समय लगभग 20000 निहत्थे प्रदर्शनकारी जमा हुए थे | उस समय उधम सिंह उस विशाल सभा के लिए पानी की व्यवस्था में लगे हुए थे |
     जब अंग्रेज जनरल डायर को जलियावाला बाग़ में विद्रोह का पता चला तो उसने विद्रोह का दमन करने के लिए अपनी सेना को बिना किसी पूर्व सुचना के निहत्थे प्रदर्शनकारीयो पर अंधाधुंध गोलिया चलाने का आदेश दिया | अब डायर के आदेश पर डायर की सेना ने 15 मिनट में 1650 राउंड गोलिया चलाई थी |

जब गोलिया चली तब जलियावाला बाग़ में प्रवेश करने और बाहर निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था  | उस छोटे से दरवाजे पर भी जनरल डायर ने तोप लगवा दी थी और जो भी बाहर निकलने का प्रयास करता उसे तोप से उड़ा दिया जाता था | लगभग तीन हजार निहत्थे लोग  नरसंहार में मारे गये थे | उस जलियावाला बाग़ में एक कुंआ था लोग अपनी जान बचाने के लिए उस कुंआ में कूद गये  | इसके बाद भी जब जनरल डायर वहा से निकलते वक़्त अमृतसर की गलियों में भारतीयों को गोलिया मारते हुए गया |

उस नरसंहार में शहीद उधम सिंह जीवित बच गये थे और उन्होंने अपनी आँखों से ये नरसंहार देखा था  | उधम सिंह उस समय लगभग 11-12 वर्ष के थे और इतनी कम उम्र में उन्होंने संकल्प लिया कि “जिस डायर ने क्रूरता के साथ मेरे देश के नागरिको की हत्या की है इस डायर को मै जीवित नही छोडूंगा और यही मेरे जीवन का आखिरी संकल्प है ” | अब उधम सिंह अपने संकल्प को पूरा करने के लिए 1924 में क्रांतिकारी दलों में शामिल हो गये और भगत सिंह के पद चिन्हों पर चलने लगे |

अब उन्होंने विदेश जाने का विचार किया । क्योंकि उनको वहा से असला गोला बारूद लाना था | उन्होंने धन इकट्ठा करने के लिए बढई का काम करना शुरू कर दिया था |लकड़ी का काम करते करते उन्होंने इतना पैसा कमा लिया कि वो विदेश चले  गये|  भगत सिंह के कहने पर वो विदेश से हथियार लेकर आये लेकिन बिना लाइसेंस हथियार रखने के जुर्म में उनको पांच वर्ष की सजा हो गयी | 1931 में उनकी रिहाई हो गयी और अब उन्होंने फिर विदेश जाकर हथियर लाने की योजना बनाई।

इस बार वो पुलिस को चकमा देकर पहले कश्मीर पहुचे और फिर जर्मनी । वहा से 1934 में लन्दन पहुच गये ।वहा पर उन्होंने एक होटल में वेटर का काम किया  ताकि कुछ ओर पैसे इकट्ठे कर बन्दुक खरीदी जा सके | उनको ये सब काम करने में पुरे 21 साल लग गये फिर भी उनके मन में प्रतिशोध की ज्वाला कम नही हुयी थी । 13 मार्च 1940 को लन्दन के एक शहर किंग्स्टन में जनरल डायर का रक बड़ा कार्यक्रम चल रहा था | उस सामरोह में जनरल डायर का सम्मान किया जा रहा था | उस कार्यक्रम में उधम सिंह  पहुचे और अपनी जेब में रिवोल्वर छुपाकर एक सीट पर बैठ गये | समारोह के अंत में उधम सिंह  अपनी सीट से उठे और तुरंत जनरल डायर पर तड़ातड़ तीन गोलिया चलाई और तीन गोलिया चलाकर  डायर को मार दिया | डायर को मारने के बाद भागने के बजाय उन्होंने एक ही वाक्य कहा था “आज मैंने मेरे 21 साल पुराना संकल्प पूरा किया है और मै इसके बाद एक मिनट जिन्दा नही रहना चाहता हु ” | उन्होंने तुंरत समर्पण कर दिया क्योंकि जिस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने जीवन लगा दिया था वो पूरा हो गया था | अब उनको मरने का भी कोई गम नही था और उधम सिंह  को तुरंत गिरफ्तार कर अगले आदेश तक जेल में डाल दिया | डायर की मौत की चाज के दौरान उधम सिंह ने जेल में 42 दिन तक भूख हड़ताल की थी । उन्हें जबरदस्ती भोजन दिया जाता था |
जब डायर की मौत की जांच शुरु हुई तो उनको अंग्रेज अफसरों ने डायर को मारने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया “जनरल डायर ने मेरे देश के तीन हजार निर्दोष भारतवासियों की अकारण हत्या करा दी थी । तभी मैंने जनरल डायर को मारने का संकल्प ले लिया था । जिसे पूरा करने में मुझे पुरे 21 साल लगे | लेकिन मै अब खुश हु क्योंकि मेरा संकल्प पूरा हो गया , मुझे मौत से कोई डर नही है और अपने देश के लिए मै हसते हसते जान दे दूंगा  ,मैंने मेरे देशवासियों को अंग्रेज राज में तडपते देखा है और उनके दर्द का विरोध करना मेरा कर्तव्य था , मुझे गर्व है कि मुझे अपनी मातृभूमि के लिय न्योछावर होने का अवसर मिलेगा ” | इस तरह उधम सिंह के बयानों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी और 31 जुलाई 1940 को उन्हें लन्दन की जेल में फांसी पर लटका दिया और फिर वही जेल में उनके शव को दफन कर दिया गया |
     भारत के लोगो को जब उधम सिंह के फांसी की खबर लगी तो भारत के क्रांतिकारियों के मन में अंग्रेजो के प्रति विद्रोह ओर बढ़ गया और ज्वाला की तरह फ़ैल गया | इन्ही शहीदों के बलिदान के  सात वर्ष बाद भारत अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हो गया |
        1974 में पंजाब के MLA संधू सिंह के कहने पर उनकी अस्थियो को जमीन खोदकर भारत लाया गया | बाद में उधम सिंह के अवशेषों  को अपने जन्म स्थान पर दाह संस्कार किया गया और उनकी अस्थियो को सतलूज नदी में बहा दिया गया | उधम सिंह के जीवनी पर 1977 और 2000 में फिल्मे भी बनी और उनके नाम पर उत्तराखंड में एक जिले का नाम उधमसिंह नगर रखा गया।
           ऐसे वीर सपूत को शत शत नमन



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