हिन्दी दिवस - 2023

             प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इण्डिया की जगह भारत को प्राथमिकता देना शुरु किया है । इण्डिया गुलामी का प्रतीक है । देश कई सौ साल गुलाम रहा है । अग्रेंजों ने इण्डिया के रूप में देश में अपनी छाप को छोड़ रखा है । जो आज भी इण्डिया के रूप में हमारे बीच कायम है । सरकार के अघिकतर विभागों के नाम के साथ इण्डिया लगा हुआ है । 
            आज गुलामी का प्रतीक इण्डिया से मुक्ति पाने का समय आ गया है । फिलहाल इस कार्य में आदरणीय नरेन्द्र मोदी का साथ देना चाहिए । अतः किसी तरह की राजनीति , इसमें नहीं होनी चाहिये । देश की बहुत सी संस्थाऐं ,इस कार्य में वर्षों से जुटी हुई हैं । जिसमें जैमिनी अकादमी का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है । जो परिचर्चा , हिन्दी दिवस कार्यक्रम , विश्व हिन्दी दिवस कार्यक्रम प्रमुख रूप से देख जाते हैं । फिर भी प्रयास तो प्रयास होते हैं । परन्तु सरकार का प्रयास सार्थक होता है । इस उद्देश्य से इस परिचर्चा का आयोजन रखा गया है : -

हमें अपने देश के प्रति जो गम्भीरता रखनी चाहिए आजादी के बाद भी हम अपनी पहचान को वापस नहीं लाये।
          अंग्रेजों ने इंडिया बनाया था और फिर दस्तावेजों में वही चल रहा है । संविधान में लिखे वाक्य को क्यों भूल रहे है? इंडिया के माने भारत। 
           जब विश्व में परिवर्तन की हवा चल रही है । देश के नाम बदल सकते हैं शहरों के नाम बदल सकते हैं तो फिर हम अपने भारत देश को उसके पुरातन के नाम पर क्यों नहीं ला सकते हैं। हमने बचपन से पढ़ा है कि शकुंतला पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत रखा गया था और अंग्रेजों ने आकर हमारे देश के नाम को बदल दिया । जब हम गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो चुके हैं तो फिर अंग्रेजी की गुलामी क्यों करते रहे ? हम वापस अपने देश के पुराने नाम को क्यों नहीं ले सकते हैं और भारत की विश्व में अपनी एक अलग पहचान जो बनती जा रही है उसके लिए उसका नाम भारत होना ही सही है और हमारी अपनी पहचान भारत से है ना की इंडिया से इसीलिए भारत रखना बहुत आवश्यक है
- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश

         मुझे लगता है कि यह कोई विवाद नहीं बल्कि केवल कुछ लोगों की अनभिज्ञता का मामला है। इंडिया और भारत दोनों ही नाम हमारे संविधान में सम्मान सहित दर्ज हैं। सभी सरकारी प्रतिष्ठानों पर वर्षों से द्विभाषिक/ त्रैभाषिक बोर्ड लगाए गए हैं और सभी स्थानों पर लिखा गया है। अंग्रेज़ी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी/मैनेजमेंट और हिंदी में "भारतीय" प्रबंधन संस्थान/ बैंक आदि लिखा है। केवल कुछ अंग्रेजीदाँ लोग अपनी अंध दृष्टि से अंग्रेज़ी को ही पढ़ते रहे और हिंदी पर उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया। एक सतर्क बौद्धिक राष्ट्रपति ने अपने निमंत्रण पर हिंदी नाम का प्रयोग किया तो इन्हें लग रहा है कि जैसे उन्होंने इनकी कायनात उजाड़ दी है। संविधान में लिखा है कि दोनों भाषाओं में लिखिए, पर इन्हें केवल अंग्रेज़ी में लिखने की आदत रही। वो इन्हें स्वीकार भी रहा। पर अब इन्हीं की तरह किसी ने सिर्फ़ हिंदी में लिखा तो इन्हें लगता है कि ऐसा कैसे हो सकता है। इनके अनुसार ये गलत है। दिल्ली के मुख्य मंत्री कहते हैं कि तब तो आईआईएम और आईआईटी का नाम भी बदलना पड़ेगा। उन्हें ये नहीं मालूम कि इन संस्थानों के नाम में पहले से "भारतीय" है।केवल "भारत" नाम की जरूरत इसलिए है ताकि ये अनंत काल तक अंग्रेज़ी से ही चिपके न रहें।
                     - प्रबोध कुमार गोविल
                        जयपुर - राजस्थान
“मनु के हम संतान मानवी
भरत के वंशज कहलाते
शेरों के जो दाँत है गिनता
शक्ति से दुश्मन थर्राते
भरत के भारतवंशी हैं हम
हिन्द देश हिन्दुस्तानी
हैं सनातनी धर्म के रक्षक
परम्पराएँ अपनाते ।।”

  भारत देश के गौरवपूर्ण इतिहास को, हम सब भली-भाँति जानते और मानते हैं।हमारी विरासत, धरोहर,सभ्यता-संस्कृति व परम्पराएँ प्रमाण हैं, साक्षी हैं उस गरिमामय इतिहास की।
यह कपोल-कल्पित कल्पना नहीं है। 
प्राचीनतम सभ्यता के हम संवाहक हैं।राजा दुष्यन्त व उनकी पत्नी वीरांगना शकुन्तला के होनहार सुपुत्र भरत का चरित्र 
एक अनुकरणीय उदाहरण है। हम उन्हीं के वंशज हैं। 
   मेरा  प्रश्न तो यह है कि भारत को इंडिया क्यों कहा जाने लगा ?
ज़ाहिर है सत्ताधीशों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए देश का नाम इंडिया रख दिया ।शिक्षा का प्रसार तो किया किन्तु शिक्षा पद्धति बदली। वर्षों की ग़ुलामी झेली है हमने। आज़ाद हिन्दुस्तान भी आज़ादी की खुली हवा में आज तक खुल कर साँस नहीं ले पाया है। अब यदि हम अपने अस्तित्व,अपने स्वमान,
अपने स्वाभिमान को पुनः प्रतिष्ठापित करना चाह रहे हैं ,तो ग़लत क्या है?  क्यों हम अब भी गुलाम रहें ?
मुझे तो हर दृष्टि से अपने देश का नाम भारत करना उचित लगता है। 
*भारत को भारत ही बोलें *, कोई और नाम न दें। हम भारतीय है।
हमारी सभ्यता -संस्कृति में भारतीयता है, तो हमारे देश का नाम भारत ही तो होगा। हमारे दिल के क़रीब,हमारी भाषा का शब्द भारत ही है , जो उचित भी है।
  पहली बार देश के इतिहास में सही कदम उठाया जा रहा है।हम सभी का कर्त्तव्य है कि हम अपने देश के हित में आगे आएँ । भारत नाम का समर्थन करे।अपनी एक अलग पहचान बनाएँ । देश के लिए विचार करने वाला नेता हमें मिला है। साथ दें, सहयोग दें, सही निर्णय का स्वागत करें। हमें,हमारे नाम से दुनिया जाने-पहचाने ,यह ज़रूरी है। 
स्वयं को भारतीय कहलाने वाले तो देश का नाम भारत हो ,अवश्य समर्थन करेंगे । 
*मैं सम्पूर्ण समर्थन देती हूँ*
शुभ काम में देरी नहीं। 
जय भारत !!
जय भारती !!!!
                  - डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
                   कैलीफोर्निया - अमेरिका
        देखा जाए तो इंडिया हमारा है ही नहीं। प्राचीन काल से भारत भूमि के अलग-अलग कई नाम रहे हैं जम्बूद्वीप, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, हिन्द, हिन्दुस्तान, भारतखण्ड, भारतवर्ष…पर इनमें सबसे अधिक जो प्रचलित और लोकमान्य रहा वह भारत है। हमारी चेतना, हमारी परम्पराएँ, हमारा इतिहास, हमारी आस्था, हमारे विश्वास…सब भारत नाम से ही जुड़े हुए हैं। हमारी संवेदनशीलता भारत से जुड़ी हुई है। भारत कहने-सुनने में जो गर्व अनुभव होता है वह इंडिया कहने-सुनने में अनुभव नहीं होता। भारत का अर्थ ही है प्रकाश का वाहक। हमारी विरासत, अनमोल संस्कृति इसमें दिखाई देती है। सिंधु घाटी सभ्यता को इंडस वैली  करके इंडस को इंडिया बना कर संविधान में इंडिया लिख दिया गया और सब कुछ इंडियन इंडिया होता चला गया। जो काम पहले हो जाना चाहिए था वह अब हो रहा है। हमारे देश का नाम भारत था, भारत है और भारत ही रहेगा। सब जगह से इंडिया हटा कर भारत ही किया जाना चाहिए।
                     - डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
                         देहरादून - उत्तराखंड
भारत भाग्य विधाता कहे  राष्ट्र गान 
भारत लोकतांत्रिक देश  है। भारत के राष्ट्रगान जन -गण -मन में  भी भारत भाग्य विधाता लिखा है।  इसलिए हमारे देश का नाम भारत होना आश्यक है।
भारत का नाम भारत होना चाहिए के लिये
पूरे देश में चर्चा -परिचर्चा , सर्वे हो रहे हैं । हमारी वर्तमान सरकार इंडिया को  आधिकारिक रूप से  कागज पर भारत का नाम  दे रही  है । जिसका साक्ष्य है कि जी-20 के निमंत्रण पत्र पर भी भारत नाम लिखा है।
संविधान में भी लिखा है -इंडिया डेट इज भारत ।
इसलिए भारत ही भारत है। इस देश में रहनेवाला हर नागरिक  भारतवासी है। कोई भी इडियावासी नहीं  कहता  है 
हाल ही में कनाडा भ्रमण - पर्यटन के लिये गयी थी ।  मैं वहाँ प्रवासी  भारतीय  थी। वहाँ के कनेडियन परिवार , लोग भारत का नाम सुनकर प्रभावित, खुश होते थे। 
    हाल ही में भारत में ऑल इंडिया सर्वे में 91 प्रतिशत जनता ने कहा कि भारत का नाम भारत होना चाहिए।बस 9 प्रतिशत लोग ही  इंडिया नाम चाहते  हैं । युवा शक्ति जो देश का भविष्य है वे भी कह रहे हैं कि कागजी फ्रेम में  नाम  भारत ही होना चाहिए । 
     देव भूमि भारत में ऋषिकेश मेरी  जन्मभूमि  है भारत कहने में  मुझे अपनापन , आत्मीयता लगती है । भारत नाम में  भारतीय सभ्यता , संस्कृति  उजागर करती है । बचपन में हम  विद्यार्थी जीवन में  सांस्कृतिक गतिविधियों में भारतमाता की जय बोलते थे।
अब भी मैं गर्व से भारत माता की जय बोलती हूँ।
  भारत की आजादी के 75 साल पूर्ण हो गए हैं । अमृतकाल में  कोलोनियल सिस्टम खत्म होना चाहिए।
इसलिए हमारे देश का नाम भारत होना चाहिए।  
हिंदी में  भारत को भारत कहते हैं । इंडिया तो ब्रिटिश सरकार  के द्वारा दिया नाम है । जो गुलामी ,  दासता ,अंग्रेजों की मानसिकता का प्रतीक मुझे लगता  है। अब हमें इंडिया नाम से मुक्ति मिलनी चाहिए।
 जब भी मैं शुभ काम जैसे कथा , मकान मुहूर्त , बेटियों की शादी , पूजा , तर्पण में  पंडित  जी को बुलाती थी,  उन आध्यात्मिक कार्यक्रमों में पंडित जी ने संस्कृत भाषा में इस श्लोक को बोल के हमसे संकल्प करवाते थे -
जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, आर्यावर्ते.... (जम्बूद्वीप के भारतखण्ड के आर्यवर्त में --- अमुक गोत्र बोलकर  हमसे गोत्र का नाम बुलवाते थे कहने का मतलब है कि 
 प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में  विशाल  भारत भूमि को जम्बूद्वीप नाम से पुकारा  गया है। 
 जम्बूद्वीप को  वर्तमान एशिया के रूप में  माना जाता है।  ब्रह्माण्डशास्त्र में 'द्वीप' का अर्थ वर्तमान समय के द्वीप या महाद्वीप  ही है।
    सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में अपने राज्य सारे इलाको  को 'जम्बूद्वीप' नाम दिया ।
महाभारत के आदिपर्व में देश का नाम भारत पर्व के रूप में  इस कथा को माना गया है। महर्षि विश्‍वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुन्तला  थी ।
जिसका लालन -पालन धर्म पिता कण्डव ऋषि ने किया । और शकुंतला ने  पुरुवंशी राजा दुष्यन्त से  गांधर्व विवाह किया था। इन्होंने  बेटे का नाम भरत रखा। ऋषि कण्व ने  पोते को आशीर्वाद दिया  था कि भरत भविष्‍य में चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे. फिर उनके नाम पर ही इस भूभाग का नाम भारत रखा। 
भारत  का संधि विच्छेद करें तो  भारत  यानि भा और रत । भा अर्थात् ज्ञान रूपी प्रकाश और रत अर्थात् लगा हुआ । भारत का शब्दिक अर्थ है कि
वह भूमि जिसके रहनेवाले लोग ज्ञान की खोज में  लगे रहते हैं।  प्रत्यक्ष प्रमाण इसकी मिसाल है कि इसरो ने चन्द्रयान 3को चाँद पर भेजा और आदित्य L-1को सूरज के रहस्य जानने के लिये लैंगरेज प्वांइट पर भेजा।
 अतः भारत नाम हमारे पूर्वजों ने दिया है । विष्णु पुराण, गीता के श्लोक में भी भारत शब्द का आया है ।  
हमारी मूल ,जड़ भारत है जो इंसान से इंसान को जोड़ने की बात कहती है। प्रेम तत्व भारतीय संस्कृति की आत्मा है।  
                            - डॉ मंजु गुप्ता
                            मुम्बई - महाराष्ट्र
      इंडिया शब्द ईस्ट इंडिया कम्पनी को बोधित करता है। हिंदुस्तान शब्द एक ही समाज को  संकेत करता प्रतीत होता है। हिंद भी उसी अर्थ को बोधित कर रहा है।
पुराने समय में हमारे देश का नाम राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम से भारत पड़ा।
        भरत एक चक्करवृति सम्राट हुए हैं। अपने देश का नाम एक आर्यवृत भी है, जिससे लगता है कि याद आर्य लोग होते थे। लेकिन कुछ विद्वान आर्यों को पश्चिम एशिया की ओर से आने वाले बताते है। दूसरा आर्यावृत शब्द सरल नहीं है। इस कारण हमे भारत शब्द ही सबसे उपयुक्त लगता है। भारत नाम की सार्थकता इस बात में भी है कि भा का अर्थ हैं - ज्ञान
और रात का अर्थ है,,, लगा हुआ या तल्लीन।
अर्थात वह देश जो युगो से ज्ञान और विज्ञान का प्रकाश युगों से देने में लगा हुआ है। इस कारण विश्वगुरु की झलक भी भारत शब्द में दिखाई देती है। इसलिए मैं भारत शब्द जो धर्मनिरपेक्षता का द्योतक है, वही सही है।
                       - डॉ. चंद्रदत्त शर्मा 
                       रोहतक - हरियाणा
भारत सिर्फ एक नाम नहीं है यह अपनेआप में एक संस्कृति और गोर्वमयी इतिहास का प्रतीक है। राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रतापी संतान उनका पुत्र राजा भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा यह हमारे लिए बहुत गर्व  की बात है। हमारी पथभ्रष्ट हुई पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से अपनी संस्कृति को असभ्य मानने वाले विचारों वाली अधीनता से स्वाधीनता की ओर वापसी है भारत, वेदों की ओर मुड़ना है भारत, सनातन का उद्दीपन है भारत, उच्च कोटी की सभ्यता का प्रमाण है भारत, चरित्र की पवित्रता है भारत, रिश्तों की मर्यादा है भारत, मेरा देश महान है भारत ना कि India, India मतलब  असभ्य लोगों का देश ना ना, सभ्यता, संस्कार, शिक्षा है भारत, नाम ही पहचान है भारत, मेरा भारत, हमारा भारत। 
                      - मोनिका सिंह 
                डलहौजी - हिमाचल प्रदेश 

     भारत को स्वतन्त्र हुए ७६ वर्ष हो गये। भारत शनै:-शनै: इक्कीस वीं सदी की अग्रसर हो रहा है। आज भी भारत को हिन्दुस्तान, इंडिया कहा जाता है। दिल्ली में इंडिया गेट नाम से प्रसिद्ध है, जबकि *भारत द्वार* कहना चाहिए।  दूसरी यहाँ भी ध्यानाकर्षण होना चाहिए अंग्रेजी शब्दों को वृहद रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है-कमिश्नर, कलेक्टर, पोस्ट आफिस, इंजीनियर, डाक्टर, फॉरेस्ट आफिस, पार्लियामेंट मेंबर, प्रेसीडेंट पी.डब्ल्यू.डी.आफिस, हास्पिटल, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, पिक्चर, डेम, विलायत, पापा-मम्मी, डैडी, अंकल-आंटी, मिसेस, हस्बेंड, सारी आदि? अच्छा हुआ हिन्दी के कुछ शब्द बच गये, नहीं तो वह भी अंग्रेजी में परिवर्तित हो जातें। वर्तमान परिदृश्य में अंग्रेजी अंको और शब्दों  इतने तेजी से फैल चुका है। जितना आंधी-तूफान भी नहीं फैलता होगा। दोषी अंग्रेज नहीं? दोषी हम है? जो गुण गान करने में अपने को सर्वश्रेष्ठ समझता है।  अगर देश का नाम भारत करना है, तो नवजात शिशु को जन्म से ही अपनी मात्र भाषा हिन्दी के बारे में बताना पड़ेगा, लेकिन यहाँ भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा अगर महिला अंग्रेजी शिक्षित रही तो नवजात शिशु गर्भ में ही प्रशिक्षित हो धरती पर आयेगा। समस्त पूर्व नामांकित नामों को हिन्दी में परिवर्तित करना नितांत आवश्यक प्रतीत होता, तब जाकर सोने की चिढ़िया कहलायेगा!
            -आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर '
                      बालाघाट - मध्य प्रदेश
     हमारे देश का नाम 'भारत' होने के पीछे कई कारण हैं  । जिनमें पहला यह है कि महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुंतला और पुरुवंशी राजा दुष्यंत का गंधर्व विवाह हुआ था, इन दोनों के पुत्र का नाम भरत था । ऋषि कण्व ने आशीर्वाद दिया कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती बनेगा । यह ऋषियों द्वारा दिया गया नाम है । 
      सूर्यवंशी राजा ओड सगरवंशी थे, इसी वंश में राजा सगर के वंशजों के उद्धार हेतु भागीरथ द्वारा गंगा मां को धरती पर लाया गया था । भागीरथ अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा थे । 
      यदि हम भारत शब्द का विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि यह शब्द दो शब्दों के मेल से बना है- भा+रत । 'भा' अर्थात ज्ञान रुपी प्रकाश और 'रत' अर्थात लगा हुआ ।
      अतः भारत का अर्थ हुआ वह भूमि जिसके निवासी ज्ञान की खोज में लगे हुए हैं । ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं ।
       प्राचीन काल से आज तक हम देखते आ रहे हैं कि दुनिया में भौतिक और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में भारत अपना परचम लहरा रहा है ।
       भारत की परंपराएं, संस्कार  आदि सीखने के लिए विदेशी भी लालयित रहते हैं । 
      उपरोक्त संक्षिप्त विवेचन से  भारत का नाम 'भारत' पूर्ण रूप से प्रासंगिक लगता है ।
                         - बसन्ती पंवार
                     जोधपुर - राजस्थान
देश का नाम भारत इसलिए आवश्यक है कि इसमें ही भारत की महान परम्पराओं संस्कृति धर्म व आदर्शों का इतिहास निहित है ।चरम पहुंचकर भी अक्षुण्य रहने वाली भारतीय संस्कृति की पहचान है ।जिसकी मर्यादा राजा हरिश्चन्द्र बलि रामचन्द्र कृष्ण योगॠषि महर्षि पतंजलि दया महात्मा बुद्ध अहिंसा महावीर स्वामी कूटनीति चाणक्य ज्ञान दयानंद सरस्वती हिन्दुत्व दर्शन स्वामी विवेकानन्द समर्पण नेताजी सुभाष कला रवीन्द्रनाथ टैगोर भक्ति चैतन्य महाप्रभु प्रतिशोध उधम सिंह स्वाधीनता चन्द्रशेखर आजाद और बलिदान भगत सिंह के रूप में स्मरणीय हो जाता है ।
वंदेमातरम् भारत माता है ।
                  - शशांक मिश्र भारती 
            शाहजहांपुर -  उत्तर प्रदेश
             पौराणिक काल महाभारत का राजतंत्र भरत नाम से संस्कृति साहित्य समाज  हिंदुत्व की गरिमा सर्वोच्च सिद्ध कर दिया है खगोलशास्त्री ,गणितज्ञ ,राज़नीतिज्ञ प्रबुद्ध रचनाकारों ने भारत नाम स्वीकार किया नर और नारी को समान माना है ! भारतमाता ने भारत नाम दिया है । जी बीस की कृति भारत की अनुपम उपलब्धियों हासिल कर  ! मोदी सरकार ने कर दिखाया आज़ाद बापू का भारत अपने नाम के साथ भारत सोने की चिड़िया है रहेगी कहलाएगी ! भा याने डर भय से मुक्त आगे बढ़ाना र रत्न मणि स्वर्ण चमत्कृत त याने तस्वीर भारत माता को नमन है जय भारत जय भारती 
                       - अनिता शरद झा
                       रायपुर - छत्तीसगढ़
भारत ! जी हाँ  मैं भारत देश की जिम्मेदार नागरिक हूँ। भारतीय होने में एवं भारत बोलने में मुझे गर्व की अनुभूति होती है। आजकल विवाद का विषय भी यही भारत शब्द है कि इंडिया को बदल कर भारत क्यों बोला जाए। क्यों नहीं बोला जाए भाई। भारत हमारा पौराणिक नाम है जो एहसास कराता है कि हम उस देश के वासी जिसके बालक भी शैशवावस्था में सिंह के दाँत गिना करते थे। जी हाँ मैं बात कर रही महाराज दुष्यंत और शकुन्तला के वीर पुत्र भरत की जिसके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा। इंडिया शब्द अंग्रेजों का यानी फिरंगियों का दिया हुआ है जिसके बोलने में आज भी गुलामी एवं अपमान की बू आती है। इंडियन का आशय अंग्रेज जंगली, गंवार लिया करते थे इसलिए उन्होंने अपने राजमहल के बाहर लिखवा दिया था कि इंडियन एंड डॉग नॉट अलाऊड।
  स्वयं गौरवान्वित होने के लिए, अपनी संस्कृति की ओर  अग्रसर हो रहें हैं तो  उसका विरोध नहीं स्वागत होना चाहिए। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री माननीय ऋषि सुनक भी अपने को भारत का मानते हैं और हिंदू संस्कृति का आदर करते हैं। 
                         - डॉ कृष्णा जैमिनी
                          गुरुग्राम - हरियाणा
 जब से हमने होश संभाला है , हम भारत का नाम जानते आए हैं , सुनते आए हैं , व मानते आए हैं ।
भारत का नाम भारत क्यों पड़ा ___इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों की सहायता लेनी पड़ेगी .
अनेकों जानकारियों के मध्य जो मुझे जानकारी मान्य लगी , वो सांझा करने जा रही हूं .
भारत के नामकरण का जिक्र विष्णुपूराण व भगवतपुराण में मिलता है .
सतयुग की बात है__कि ऋषि ऋषभदेव ने राज पाट त्यागकर तपस्या करने का निर्णय लिया . तब उन्होंने अपना राजपाट अपने पुत्र भारत को सौंप दिया .
राजा भारत का शासन हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक फैला हुआ था . भरत के कुशल शासनकाल को अंजना भवर्ष भी कहा जाता था . धीरे धीरे जैसे समय बीता , इस कुशल शासनकाल के कुशल शासक के कारण , और भरत नाम होने के कारण , समस्त राज्य का नाम भारत जाना जाने लगा .
एक अन्य धारणा के अनुसार भारत के नामकरण की कहानी थोड़ी अलग है .
हिंदू धर्म के अनुसार महाभारत काल में राजा दुष्यंत और अप्सरा मेनका की पुत्री रानी शकुंतला के पुत्र का नाम भरत था . 
ऋषि कणव ने ये आशीर्वाद दिया था कि भरत भविष्य में कुशल शासक होंगे .
राजा भरत को भारत का प्रथम शासक माना गया है .
हो सकता है मेरी जानकारी से आगे भी अन्य धारणाएं हों , हम किसे मानें , ये हमारा निजी दृष्टिकोण है , पर हम सबको भारत नाम पर नाज है,  और गर्व है कि हम भारतीय हैं .
अंत में मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि हमारे देश की एक समृद्ध परंपरा रही है और प्राचीन काल की हम एक कहानी को मानें अथवा दूसरी को , भारत नाम ही उचित लगता है क्योंकि ये हमें हमारी संस्कृति से जोड़ता है _____शायद इसीलिए सर्वमान्य है .
                      - नंदिता बाली
                सोलन - हिमाचल प्रदेश
             कहते हैं, किसी ज़माने में अमरीका के लोग अफ़्रीकी गुलामों को बंधक बना कर लाते, तो जलपोत से नीचे उतरते ही सबसे पहले उनका नाम बदल देते थे। अर्थात नाम परिवर्तन अक्सर किसी आक्रान्ता द्वारा ही किया जाता था और परिवर्तित नाम दासता का द्योतक हुआ करता था। पौराणिक कथाओं के उदाहरण लें, तो महाभारत में जब पाण्डवों को अज्ञातवास काटना था, तो उन्होंने अपने नाम बदले, परन्तु अज्ञातवास पूर्ण होते ही वे अपने मौलिक नामों से ही जाने गए।
हमारे देश का नाम मूल रूप से भारत ही था। यूनानी आक्रमणकारियों ने इसे इंडिका, इंडस अथवा सिन्धुदेश कहा। मुगलों ने इसे हिन्दुस्तान कहा तो अंग्रेजों ने इसे इंडिया कहना उचित समझा। समय तथा इतिहास के किसी भी कालखण्ड में मूल नाम की ओर लौटना उचित ही है। देश के भीतर भी हम बॉम्बे को मुम्बई, मद्रास को चेन्नई, मैसूर को मयसुरु, बैंगलोर को बेंगलुरु तथा कलकत्ता को कोलकाता कर चुके हैं। फेहरिस्त लम्बी है।
अतः देश को उसके उसके मूल नाम से पुकारे जाने में कुछ भी अनुचित नहीं है। 
मैं इतना अवश्य जोड़ना चाहूँगा कि इस परिवर्तन को अंजाम देने में देशवासियों को न्यूनतम असुविधा हो, इस बात का सरकार को अवश्य ध्यान रखना चाहिए। 
                         - राजेंद्र पुरोहित
                       जोधपुर - राजस्थान

         भारत शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। भा +रत अर्थात भारत यानी भा (ज्ञान का घोतक है) और रत (खोज या लगन) अर्थात वह भूमि जिसके निवासी ज्ञान रुपी प्रकाश की खोज में हमेशा लगे रहते हैं।
        राजा दुश्यंत और शकुंतला का पुत्र जब चार या पांच वर्ष की अवस्था का था तो वह शेर के संग खेल रहा था उसके मुख के दांत गिन रहा था तभी दुश्यंत ने अपने वीर पुत्र का नाम भरत रख दिया इसी लिये हमारे देश का नाम भारत पड़ा। भारत वर्ष में ऐसी अनेकों सत्य और ऐतिहासिक कथायें है जो वीर राजा महाराजाओं से भरी है। 
         हमारा भारत वर्ष सभी देशों से अलग है जहाँ प्रेम की गंगा बहती है। जिसमें विभिन्न जाति, धर्म, भाषा वेषभूषा और बोलीं के इंसान रहते हैं। जहां अनेकता में एकता का वास है। जिनकी नदियां, झरने निर्मल, कल - कल बह कर आगे बढने का संदेश देती है। जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। यहां के ऊंचे ऊंचे पर्वत सीना ताने शीष ऊठाये खड़े हैं। कभी न झुकने का संदेश देते हैं। जहां भगवान कृष्ण की जन्म भूमि, लीला भूमि हैं जो गीता के ज्ञान का संदेश देती है और इंसान से इंसान को प्रेम करना सिखाती है। जहां श्री राम की जन्म भूमि है अयोध्या जो माता पिता के वचनों का मान, भातृ प्रेम, पत्नी प्रेम नारी का सम्मान, ऋषि मुनियों का आदर अपने समाज, राज्य की सुरक्षा, मित्रता आदि का सुंदर संदेश देती है। जहां वाराणसी काशी नगरी है जहां जाने पर जीवन में मोक्ष प्राप्त होता है। ये शिव पार्वती की निवास स्थली है जो प्रलह होने पर भी समाप्त नहीं होती। इस भारत वर्ष में अनेक तीर्थ स्थल है। जहां जाने मात्र से ही आपके सारे पाप धुल जाते हैं। आपको सद्गति प्राप्त होती है ये भारत वर्ष वीर शहीदों का देश है जिन वीरों ने भारत की रक्षा हेतु अपने प्राणों को खुशी-खुशी देश पर न्यौछावर कर दिया ये भारत वर्ष कृषि प्रधान देश है। ये भारत वर्ष वैज्ञानिक देश हैं। जो नई नई खोज कर रहा है। चांद पर पहुंच गया है ये भारत सोने की चिड़िया कहलाने वाला देश है। भारत में वेद पुराण, प्राचीन महाकाव्य (रामायण, महाभारत) जैसे गरंथ  हुये हैं जो इंसान को श्र ज्ञान देते है अध्यात्मिक बनाते है ये भारत वीर नारियो का देश है जहां नारियां पूजी जाती है हमारे भारत की सभ्यता और संस्कृति प्राचीन और महत्पूरण है ।
                    -  डाॅ चन्द्रकला भागीरथी
                        धामपुर - उत्तर प्रदेश
      भारतीय संविधान के आर्टिकल 1 के प्रारंभ में देश के दोनों नाम इंडिया एवं भारत का उल्लेख किया गया है । इंडिया इंडस नदी, सिंधु के लिए प्रयुक्त संस्कृत शब्द का अंग्रेजीकृत रुप है। सन अट्ठारह सौ अट्ठावन से सन उन्नीस सौ सैंतालीस के मध्य इस शब्द का सूत्रपात हुआ।
भारत शब्द की जड़ें भी संस्कृत में है एवं इसका उल्लेख हिंदू धर्म ग्रंथों यथा पुराणों मैं पाया गया है। पुराणों के अनुसार मनुष्य का निवास स्थल एक विशाल भूखंड है और इसके एक हिस्से का उल्लेख भारतवर्ष के तौर पर किया गया है।
मेरे मत से इसका नाम इंडिया से भारत में परिवर्तित करने का विचार हम भारतीयों के लिए आवश्यक तो है ही, साथ ही साथ एक स्वागत योग्य कदम होना चाहिए, क्योंकि यह साम्राज्यवाद विरोधी है और भारतीय इतिहास के तथ्यों के अनुरूप प्रामाणिक है ।
हमारे राष्ट्र का नाम ऐसा होना चाहिए जो इसकी मौलिक पहचान हो। भारतीयता की पहचान हो, जिस पर हम गर्व कर सकें, जो इसकी जड़ों से जुड़ा हो, जिसका उच्चारण करते ही जन जन के मन में राष्ट्रीयता की लहरें उमड़ने घुमड़ने लगें।
आखिर आजादी के छिहत्तर वर्ष बीत जाने के बाद भी हम अपने देश को ऐसे नाम से क्यों पुकारें, जो विदेशी दासता का प्रतीक हो ?
                         - रेणु गुप्ता
                    जयपुर - राजस्थान 
        हमारे देश का नाम *भारत* ही होना चाहिए। क्योंकि : -
1. हमारा राष्ट्रीय गान तभी relevant है यदि देश का नाम भारत है :
*भारत भाग्य विधाता*
क्या हमने कभी इंडियन भाग्य विधाता  कहा है? नही न!
2. जब भी हम गणराज्य की बात करते हैं तो कहते हैं कि हम भारत गणराज्य के सदस्य हैं। कभी इंडियन गणराज्य नहीं कहते।
3. Indian republic ka meaning totally different hai
इंडियन रिपब्लिक का अर्थ हुआ "इंडिया का रिपब्लिक"
जबकि "भारत गणराज्य" का अर्थ हुआ वह भारत जो गणतंत्र है।
इंडियन रिपब्लिक की कोई सेंस ही नही बनती।
4. हमारी राष्ट भाषा हिंदी है तो हम कहते हैं कि भारत माता।
5. जब हम अपनी संस्कृति की बात करते है तो कहते हैं "भारतीय वेद शास्त्र", "भारतीय ऋषि मुनि", "भारतीय योग", इंडियन योग तो हो ही नही सकता क्योंकि योग तो सदियों पुराना है, भारत का योग है। इन सब का नाम हम कैसे बदल दें। इस लिए हमारे देश का नाम "भारत" ही होना चाहिए  या भारतवर्ष
                         - कृष्णा गोयल
                       पंचकुला - हरियाणा
         कुछ दिन पहले जब भाजपा नीत केंद्र सरकार के विरोध में विपक्षी राजनीतिक दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा तब सत्ता पक्ष की ओर से इंडिया शब्द के नामकरण को लेकर जोरदार विरोध किया गया और फिर अभी महामहिम राष्ट्रपति द्वारा आयोजित रात्रि भोज के निमंत्रण पत्र पर भारत शब्द के अंकन को लेकर विपक्षी दलों की हाय तौबा जबरदस्त देखने को मिली। एक पल को ऐसा लगा कि राष्ट्रपति द्वारा भारत शब्द का प्रयोग करने से कोई घोर अनर्थ हो गया है। देश का नाम बदला जा रहा है...संविधान से छेड़छाड़ की जा रही है...जैसे बचकाने कुतर्क गढ़े जाने लगे।यहां यह उल्लेखनीय है कि संविधान की प्रस्तावना में भी यही लिखा है कि इंडिया टैट इज भारत   अर्थात इंडिया जो भारत है ...संविधान का मुखपृष्ठ भी भारत का संविधान उल्लिखित करता है।ऐसी स्थिति में यह कहना कि इंडिया के स्थान पर भारत का प्रयोग कोई अकल्पनीय संकट का कारण बन जायेगा तुच्छ विचारधारा का संवाहक ही माना जाएगा।
   प्राचीन काल में हमारे देश को आर्यावर्त, भारतवर्ष अथवा ब्रह्मावर्त के नाम से जाना जाता था जो कालांतर में हिंदुस्तान भी हुआ और ब्रिटिश काल में इंडिया शब्द से इसकी पहचान होने लगी।क्या सदियों पुरानी सभ्यता भारत आज भी अंग्रेजों की दो सौ वर्ष पुरानी गुलामी से वास्तव में आजाद हो गई है या हम मानसिक रूप से आज भी अंग्रेजियत का शिकार बने बैठे हैं जो इंडिया के स्थान पर भारत शब्द से अपने अस्तित्व को ही संकटग्रस्त समझने में अपने ही इतिहास और गौरव दोनो से मुंह मोड़ कर खुद को आधुनिक कहने का दंभ भरते हैं।
    हमें नहीं भूलना चाहिए कि हमारे देश का नाम भारत उस वीर बालक भरत के नाम पर रखा गया है जो बचपन में ही शेर के बच्चे के दांत उसके जबड़े में हाथ डाल कर गिना करता था। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि आज जिस विरोधी टोले का नेतृत्व अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी कर  रही है और इंडिया बनाम भारत का व्यर्थ का विवाद उत्पन्न कर रही है उसी कांग्रेस के झंडे तले  महात्मा गांधी की अगुवाई में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया था।किसी विदेशी आक्रांता ने इंडिया पर कभी आक्रमण नहीं किया हूण से लेकर अंग्रेज तक सभी भारत की पावन धरती से उसके ऐश्वर्य को चुराने ही यहां आए और यहां की धरती से उसके संस्कार की जड़ों को भी खोखला करने का भरपूर कुत्सित प्रयास किया।लेकिन हमारी भारतीयता को लेकर कभी भी हमारे पूर्वजों में कोई संदेह नहीं रहा जिस कारण कोई आक्रांता हमारी भारतीयता को क्षति नहीं पहुंचा सका।
   चाणक्य ने उचित ही कहा था कि किसी विदेशी अथवा संकर नस्ल के व्यक्ति को राजसत्ता नही सौंपनी चाहिए। स्वाधीन गणतंत्र राज्य भारत में चाणक्य की इस नीति को अनदेखा करने का परिणाम हम सभी देख रहे हैं।
   एक प्रश्न उन लोगों से भी है जो इंडिया और भारत का विवाद उत्पन्न कर रहे हैं क्या अंग्रेजों ने इंडिया को अपनी सत्ता से मुक्त किया था अथवा भारत को किया था?क्या प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में भारत देश को ब्रिटिश गुलामी से स्वतंत्र होने की घोषणा नहीं की थी?यदि यह तथ्य सत्य है तब हमें अपने देश का नाम भारत लिखने और कहने में संकोच क्यों होना चाहिए?क्या मात्र राष्ट्रपति द्वारा निमंत्रण पत्र पर भारत लिखने से अथवा कुछ राजनीतिक दलों द्वारा अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखने से हमारे गौरवशाली इतिहास और उसके नाम पर कोई संकट उत्पन्न हो सकता है?कदापि नहीं! 
   क्या सिर्फ अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने की कोशिश में लगे हुए पिछलग्गू नेताओं को यह तथ्य नहीं पता है कि किसी भी देश का नाम उसके संविधान में संशोधन किए बिना नहीं बदला जा सकता है।निश्चित रूप से पता होगा लेकिन हमारी जनता की मासूमियत और भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली राजनीतिक टोलियों को तो इसमें ही मजा आता है जब एक ही घर में इंडिया और भारत शब्द को लेकर जोरदार धक्का मुक्की हो और देश के नीति निर्धारकों को अपनी ऊर्जा इस विवाद को हल करने में ही खर्च करनी पड़ जाए।
   किसी का नाम ही उसकी पहचान होती है चाहे वह कोई राष्ट्र हो,व्यक्ति हो अथवा संस्था हो।हमे किसी का नाम बदलने अथवा बिगाड़ने से पहले उसकी पृष्ठभूमि को भी ध्यान रखना चाहिए।विदेशी सभ्यता के आगे नतमस्तक होने से पहले यदि हमें अपने देश के विश्वगुरु पद को वापस प्राप्त करने की आकांक्षा है तो हमें अपने देश के मूल नाम भारत का घोष करने में भी कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
  ध्यान रहे अनुचर कभी स्वामी नही हो सकता और स्वामी को किसी आश्रय की आवश्यकता नहीं होती है।विश्वगुरु भारत वसुधैव कुटुंबकम् की परिकल्पना पर विश्वास करता है तो हमें अपने राष्ट्र को भारत कहने में शर्म नहीं आनी चाहिए क्योंकि हम फादर नहीं हैं जो पाश्चात्य सभ्यता के बिंब हैं हम भारतवासी गर्व से कह सकते हैं कि हम सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश विश्वगुरु भारत के नागरिक हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि इंडिया बनाम भारत के विवाद से आगे बढ़ कर हमे अपने देश भारत की शान को और अधिक मजबूत करने के प्रयास करने चाहिए।
                     - प्रवेश स्वरूप खरे ' आकाश '
                         पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
       कुछ राजनीतिक पार्टियों ने एकजुट होकर संगठन का नाम इंडिया रख लिया है। मेरी समझ से तो यही भ्रांति का कारण बनता है। भारत वर्ष को पहले आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था। बाद में भारत नाम चक्रवर्ती सम्राट राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के वीर पुत्र भरत के नाम पर रखा गया था जो कि बचपन से ही अत्यंत साहसी था। ऐसा कहा जाता है कि बचपन से ही वह खेल-खेल में शेर को पकड़कर उसके दांत गिन लेता था। इंडिया शब्द अंग्रेजों के द्वारा रखा गया था। तभी से भारतवर्ष को इंडिया भी कहने लगे। आज कोई भी जब शब्द "इंडिया" को पढ़ेगा तो एक नजर में उसके मनोमस्तिष्क पर भारत का ही अक्स दिखेगा। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा जो भी कहा जाएगा या किया जाएगा, वह भारत का ही समझ जाएगा। ऐसा मुझे लगता है। इसीलिए भारत नाम आवश्यक है।
                    - गायत्री ठाकुर ' सक्षम ' 
                     नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
         महाभारत के आदिपर्व में ऋषि मारीज ने सम्राट दुष्यंत और रानी शकुंतला के बेटे भरत की भविष्यवाणी की थी कि तुम्हारा पुत्र भरत महान शासक बनेगा और आगे चलकर इस भूमि का नाम भारत होगा।  उसके अनुरूप ही भरत के पराक्रम से इस भूमि का नाम भारत हो गया है।  क्योंकि राजा भरत के वंशजों को भारत वंश कहा जाता था।
आर्यावर्त, सप्तसिंधु, जंबूद्वीप, भरतखंड, हिंद,  हिंदुस्तान आदि कई नाम हमारे देश के लिए प्रयुक्त है और इन सभी नामों के पीछे ऐतिहासिक घटनाएं या पारंपारिक कथाएं प्रचलित है। परंतु इस देश का नाम भारत प्राचीन काल से ही मान्य है, कथापि कश्मीर से कन्याकुमारी तक के भूभाग को भारत कहते हैं इस संबंधित विष्णु पुराण में कहा गया है -
“उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ।।”
यानि समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उनकी संतानों को भारती कहते हैं।
प्राचीन जैन धर्म ग्रंथों में जो चक्रवर्ती सम्राट भरत का संदर्भ मिलता है उससे भी अंदाजा लगा सकता है कि चक्रवर्ती भरत बहुत ही पराक्रमी थे उनके साम्राज्य विस्तार से इस भूभाग का भारत नाम प्रसिद्ध हुआ होगा । यहाँ पर भगवान श्रीरामचंद्र जी के भाई भरत को कौन भूल सकते हैं, जिन्होंने अपने बड़े भाई के लिए राजसिंहासन का परित्याग कर सिंहासन पर खड़ाऊ रखकर सदैव पूजा करके अपने भ्रातृत्व धर्म का पालन किया ऐसे महान भाई भरत के नाम से यह पवित्र भूमि भारत कहलाया होगा ।
अगर भारतीय संविधान में India that is Bharat इस तरह लिखा गया है तो इस विशाल देश को भारत कहने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इंडिया यह शब्द आज भी पराधीनता को दर्शाता है। आज भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र न रहकर एक विकसित राष्ट्र बन गया है तो भारतीय जनता में इस देश के नामकरण में कोई द्वंद्व भाव न हो।  आइए हम सब भारत के संतान हैं, हम सब भारतीय हैं, हम सब सदैव एक हैं, बस एक राष्ट्र एक ह्रदय हो।
                   - डॉ. सुनील परीट
                      बेलगांव - कर्नाटक
         19वीं शताब्दी के बाद आर्यों का एक वर्ग भारतीय उपमहाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व पहुँचा और पंजाब में बस गया । यहीं पर ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना हुई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में वैदिक सभ्यता का निर्माण हुआ। यह भारतीय इतिहास में सबसे प्राचीन, प्रारम्भिक सभ्यता है ।यहीं से वैदिक धर्म या सनातन धर्म का आविर्भाव हुआ। सन् 1947 के बाद भारत में गणतांत्रिक शासन लागू हुआ ।आजादी के साथ ही भारत का विभाजन हुआ, जिससे पाकिस्तान का जन्म हुआ। हमारे मन,मस्तिष्क एवं हृदय में तनाव का प्रादुर्भाव हुआ, परिणाम हमारे सामने है कि देश का नाम भारत होने की आवश्यकता ?
      भागवत महापुराण के अनुसार भारत नाम मनु के वंशज तथा ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भरत के नाम से लिया गया । एक अन्य किवदंती के अनुसार भारत (भा+रत) शब्द का अर्थ हुआ आंतरिक प्रकाश में लीन ।
एक अन्य नाम हिन्दुस्तान, जिसका अर्थ है हिन्द की भूमि । विशेषतः यह नाम अरब तथा ईरान से प्रचलित हुआ। अन्य नाम भारतवर्ष,जम्बूद्वीप ,आर्यावर्त के नाम से जाना जाता है ।पाश्चात्य अंधानुकरण करते हुए इंडिया भी कहा जाता है ।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य के अनुसार यह देश भारतवर्ष ही है । तीन हैं भरत ।प्रथम-ऋषभदेव के पुत्र, द्वितीय-शकुंतला दुष्यंत के पुत्र, तृतीय- राजा दशरथ के पुत्र। 
"भरतानाम् निवासः भारतम्" जहाँ तीनों भरत का निवास है,वही भारत है। जहाँ ऋषभदेव के पुत्र का त्याग है,जहाँ दुष्यंत पुत्र भरत का वैराग्य है तथा दशरथ पुत्र का अनुराग है वही तिरंगा के प्रतिरूप निरूपित करते हैं । तीनों का सम्यक रूप भारत है,फिर
इंडिया V/S भारत विवाद क्यों  ?
      भारत का दूसरा अर्थ है- भ=भगवान, आ=आदर,रत=अनुराग।
"तस्य भगवतः आदरः रतम् अनुरागः
यस्मिन स भरतः तद् भारतम् ।"
जहाँ भगवान का आदर भी है,अनुराग भी है,उस देश का नाम है भारत। 
तीसरा अर्थ है-" भायाम्  रतम् भारतम्"जो ज्ञान और विज्ञान के अन्वेषण में रत रहता है,उस देश का नाम है "भारत "। इसी दम पर चंद्रयान-3 का प्रेक्षण सफलतापूर्वक किया । आदित्ययान का भी प्रक्षेपण कर लिया है । आज भारत ब्रह्माण्ड से एकात्म स्थापित कर चुका है ,यह तो  INDIA नहीं,भारतवर्ष ही हो सकता है । मेरे विचारों में यदि  INDIA को आध्यात्मिक स्वतंत्रता दिलानी है तो भारतवर्ष ही इस नेक कार्य को पूर्ण कर सकता है ।
यूरोपीय लोगों ने "इंडिया" नाम दिया और ब्रिटिश शासन के बाद इंडिया देश का अधिकारिक नाम बना ।
इतना ही नहीं,जबलपुर के सेठ गोविन्द दास ने "भारत " को इंडिया से ऊपर रखने की वकालत की है ।
उन्होंने कहा कि इंडिया ब्रिटिश उत्पीड़न की याद  दिलाता है ।
                      - डॉ. छाया शर्मा
                     अजमेर - राजस्थान             
         इस विषय पर पहली बार विवाद नहीं है । भारत को भारत कहा जाए या हिंदुस्तान या इंडिया? इस पर बहस छिड़ गई है।विपक्षी दलों के पेट में दर्द हो गया।दरअसल 5 सितंबर 2023 को जी-20 के कार्ड पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया, बस हवा की तरह यह बात क्या फैली। नाम पर विरोध भी शुरू हो गया और देश की राजनीति को एक मुद्दा मिल गया।
हिंदुस्तान इंडिया यह तो मुस्लिम और अंग्रेजों के दिए हुए नाम है इस नाम से गुलामी की दुर्गंध आती है। भारत एक स्वदेशी शब्द है जो हमारा इतिहास बताता है ।भारत नाम हमारे भारतीय संस्कृति की विरासत है। जो इसके विरोध में है उन मूर्खों को कौन समझाए कि अब हम स्वतंत्र हैं । इंडिया नाम के तलुवे चाटना बंद करे। वह दिन भूल गए जब हमारा देश खंड खंड में बंटा था ।हमारे लोह पुरुष( वल्लभभाई पटेल) ने अखंड भारत स्थापित कर हमें अखंड भारत कहने का गौरव प्रदान किया था भारत वसुदेव कुटुंबकम में विश्वास करता है।
हमें मुगल आक्रांताओं और अंग्रेज आततायीयों के नाम पर दिल्ली और देश के अन्य शहरों के सड़कों और भवनों के नामकरण के खिलाफ अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अभियान का हृदय से स्वागत करना चाहिए।परिषद की यह मांग सर्वथा उचित है। इन सड़कों और भवनों को अयोध्या में श्री राम मंदिर के लिए बलिदान होने वाले कार सेवकों,  ऋषि मुनियों, सिख धर्मगुरुओ व बौद्धों के आराध्याओं सहित क्रांतिकारियों के नाम से याद रखा जाना चाहिए । कपटी लुटोरों का महिमामंडन नहीं करना है।
हम सनातनी हैं। इस देश के संत जो संकल्प लेते हैं पूरा करके रहते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अयोध्या में प्रभु श्री राम मंदिर का निर्माण है। आज सभी चाहते हैं कि हमारे संविधान में बदलाव हो। आज पूरा देश मांग कर रहा है कि इंडिया की जगह भारत शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए।
आज जी-20 विश्व संगम जहाँ हुआ उसका नाम भी भारत मंडपम रखा गया है। यह हमारी संस्कृति के आधार पर रखा है। भारत बहुत ही प्राचीन नाम है।इसलिए भी भारत नाम रखना आवश्यक है। सभी देशों के एक ही नाम है।
मेरा मत यही है कि एक देश, एक विधान, एक संविधान है तो नाम भी एक होना चाहिए । हमारे संविधान में भी भारत नाम है। इंडिया नाम गुलामी का प्रतीक है। भारत एक स्वदेशी नाम है जो हमारी संस्कृति और इतिहास को बताता है। बचपन से आज भी , तिरंगा फहराते समय भारत माता की जय कहते हैं। आज बच्चे बच्चे की जुबान पर भारत का नाम अंकित है। भारत हर मन में, वाणी में , हर लेख में, हर बात में भारत, भारत, भारत ही है ।आज भारत ने जो अपना स्थान विश्व में बनाया है वह जी-20 से ही पता चलता है। भारत  अर्थ-व्यवस्था में आज पाँचवा स्थान रखता है, सैन्य -शक्ति की दृष्टि से भी सशक्त है। विज्ञान के क्षेत्र में तो विश्वगुरु कहलाता है। 
आज गर्व से भारत कह सकता है दुनिया को हमारी जरूरत है बिना दुनिया के हम चल सकते हैं किंतु दुनिया भारत के बिना नहीं चल सकती। चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान ने चंद्रमा पर भी भारत के झंडे गाड़कर यह साबित कर दिया है। क्या अब भी प्रश्न है कि देश का नाम भारत रखना आश्यक है ?
 नाम तो भारत ही होगा।
 भारत माता की जय।

                           - चंद्रिका व्यास
                          मुंबई - महाराष्ट्र

             आज देश में इस विषय पर चर्चा गरम है।
  यह समय की आवश्यकता बन गई  है।आज यह ज्वलंत प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि सरकार देश का नाम भारत हो,इस बात की आवश्यकता महसुस कर रही है।
  यह अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है।चुनावी परिप्रेक्ष्य में प्रतिपक्ष.महागठबंधन ने अपने दल का नाम INDIA रखा,जो वास्तव में ऊनके नाम का संक्षिप्तिकरण है ।इस प्रकार दो INDIA बन गये है ।देश का नाम पहले से ब्रिटिश सरकार ने रख रखा था और दूसरे महागठबंधन के हाथों बटेर लग गई ।
. प्रयोजन चुनाव प्रचार के लिए एक हथियार के रूप में हथियार के  इस्तेमाल किया जा सकता है,जो वोट बैंक को मजबूत बना सकता है। जनता में विभ्रम पैदा किया जा सकता है।इस नाम से मतदताओं की मति बिगाड़़ी जा सकती है।
 ये सब कारण है कि सरकार को प्रतिपक्ष की चाल को पहचानते हुए नया मोर्चा खोलना पड़ा कि देश का नाम भारत होना चाहिए।
                         - डॉ. चन्द्रा साथता 
                            इंदौर - मध्यप्रदेश
            "मेरा भारत महान" - - - - है क्योंकि वह वसुधैव कुटुम्बकम का प्रणेता है और वह महान विचार धारा - - 
 सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः 
सर्वे भद्राणि पश्यंतु माः कश्चिद दुःख भाग भवेतः
               का प्रसारक है।
वेदों पुराणों और उपनिषदों ने इस अंचल को भरतखंड कहा है ।महान चक्रवर्ती सम्राट दुष्यंत की संतान भरत का भरतखंड है ये भारत। इसलिये इसका नाम भारत ही होना चाहिए।
"उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दाक्षणेम
वर्षम् तद् भारतम् नाम भारती यत्र संततिः
       विष्णु पुराण के उपरोक्त श्लोक के अनुसार समुद्र के उत्तर में (हिमालय के) दक्षिण में जो वर्ष (भूमि) है, उसका नाम भारत है। यहां की प्रजा को भारतीय प्रजा कहते हैं---
इसलिये मेरे देश का नाम भारत ही होना चाहिए। 
        पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भों की बात करें तो उपरोक्त प्रणाम पर्याप्त हैं तथापि मैं उल्लेख करना चाहती हूँ हमारे देश के संविधान का
संविधान के अनुच्छेद 1के अनुसार "इंडिया दैट इज भारत"इस तरह उल्लेखित है" - - - और भारत का संविधान हमारे देश का आधिकारिक ग्रंथ है जिसका हर शब्द अनुकरणीय और अनुपालनीय है इसलिये भी मेरे देश का नाम भारत ही होना चाहिए! चंद्र क्रांति विक्रम का पराक्रम और प्रज्ञान की प्रज्ञा के साथ हमारा सूर्य नमस्कार सूर्य यान, जी ट्वेंटी समिट और तद्नुसार आगे  वैश्विक स्तर पर विजय पताकाएं फहराना है तो हमारे देश का नाम भारत ही होना चाहिये।
        अँग्रेज  सरकार ने देश में नये युग का आगाज किया। लेकिन अँग्रेज़ी सियासत की गुलामी का प्रतीक "इंडिया" या यूनानी मुगल आक्रांताओं का कालखण्ड याद दिलाता "हिन्दुस्तान" - - ये नाम विदेशों के संदर्भों में कुछ विशेष बाह्य परिस्थितियों में स्वीकार्य है निःसंदेह - - लेकिन मेरे देश की अस्मिता, स्वाभिमान और स्वयंभू अस्तित्व के संदर्भों में मेरे देश का नाम भारत ही होना चाहिये!!
       देवभाषा संस्कृत का जनक भरतखंड देवनागरी लिपि की कसौटी पर भी भारत ही होना चाहिये।
          एक देश एक नाम की अनुशासनिक प्रामाणिकता का प्रायोजक है मेरा देश--अतः भारत नाम ही उपयुक्त है।।
       आज दुनिया देख रही है जी  20 के शानदार आयोजन के साथ "बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर।".     
         इंडिया नाम भारत की किसी भाषा में कभी नहीं रहा। जब संविधान सभा में भारत के नाम का मामला आया तो 299 में से केवल 56 उपस्थित थे - - और केवल 35 ने ही भारत के अलावा इंडिया नाम के लिए सहमति दी।
       (इन आँकड़ों पर या मेरे विचारों पर किसी भी तरह की बहस की गुंजाइश अपेक्षित नहीं है क्योंकि ये आंकड़े संकलित हैं प्रमाणित नहीं और मेरे विचार मेरे अपने हैं किसी की सहमति के आधार पर नहीं। )
                 - हेमलता मिश्र मानवी 
                     नागपुर  - महाराष्ट्र 
             16वीं शताब्दी तक 'भारत' को 'भारत' नाम से ही जाना जाता था 'भारत' शब्द किसी जाति-समूह या क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं के आधार पर प्रचलित हुआ। भारत में जब यूनान से यूनानी लोग आए और उन्होंने 'भारत' को अपनी भाषा के अनुसार 'इंडिया' कहना शुरू कर दिया। उसके बाद ब्रिटिश शासकों की गुलामी और फिर दासता से आजादी के बाद से आज तक 'भारत' का नाम 'इंडिया' इस्तेमाल किया जाता रहा है। किसी भी राष्ट्र का नाम वहां के नागरिकों और उसके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की याद दिलाता है। 'इंडिया' नाम हमारे इतिहास संस्कृति और सभ्यता से मेल नहीं खाता है। 'भारत' नाम हमारे प्राचीन इतिहास, संस्कृति और सभ्यता से मेल खाता है। 'भारत' में कई राजा, ऋषि, संत और भगवान  भरत नाम से काफी प्रसिद्ध हुए हैं एवं 'भारत' नाम में अपनत्व की भावना छिपी हुई प्रतीत होती है। 'इंडिया' नाम सुनकर ऐसा लगता है कि 'भारत' अभी भी गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ है।  इससे छुटकारा प्राप्त करने के लिए हमारे देश का नाम 'भारत' रखना अत्यंत आवश्यक है।
                         - प्रज्ञा गुप्ता
                   बॉसवाडा - राजस्थान
           क्योंकि हिमालय के दक्षिण और महासमुद्र के उत्तर अवस्थित यह भू भाग भारत है |यह प्रथम 'स्वयंभू' मनु के वंशज 'योगीराज ऋषभदेव' के पुत्र राजा भरत के नाम पर है अथवा सप्तम 'वैवश्वत' मनु के वंशज दुष्यंत-शकुंतला पुत्र 'भरत' के नाम पर भारत है |ऋग्वेद के महत्वपूर्ण पुरुष "पुरू"और उनके वंशज भरत की आराध्य देवी 'भारती' के नाम पर यह भारत है | महाभारत भी भारतयुद्ध की ही बात करता है |
प्राचीन काल से ही हमलोग अपने देश को भारत के नाम से जानते हैं |मध्यकाल में जो हिंदुस्तान नाम प्रचलित हुआ वह भी भारत की अवधारणा पर आधारित है |इंडिया नाम तो प्राचीन काल में विदेशियों ने भारत के लिए प्रयोग किया करते थे |आधुनिक काल में भी स्वतन्त्रता संग्राम में ...भारत माता ,वंदे मातरम यही हमें सर्वाधिक अनुप्राणित करता रहा है | रवीन्द्रनाथटैगोर ने भी राष्ट्रीय गान में 'भारत ,भाग्य ,विधाता' कहा है | संविधान में भी भारत ही उल्लखित है | वास्तव में भारत हमें सर्वाधिक अनुप्राणित करता है|
                      - मिन्नी मिश्रा
                       पटना - बिहार

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