मजबूर इंसान की हाय कभी नहीं लेनी चाहिए। कहते तों यहीं हैं। बाकि दोगले इंसान से जितना बच कर चलोगे। उतना ही जीवन आगे बढ़ता चला जाता है। जैमिनी अकादमी द्वारा रखी गई परिचर्चा का विषय भी यही है। कुछ आयें विचारों को देखते हैं कि किस - किस विषय को किस प्रकार से लिया है : - मजबूर इंसान यानी बेबस इंसान, यानी व्यथित इंसान, दुख और संताप से भरा हुआ। ऐसे में कोई यदि उसके साथ इंसाफ नहीं करता, इसके विपरीत उसका शोषण करता है तो उस बेबस इंसान के रोम-रोम से निकलने वाली कसक, दिल से निकलने वाली हूक,' हाय ' बनकर शोषित और उसके साथ अन्याय करने वाले के लिए भयंकर घातक सिद्ध होती है और परिणाम में उस व्यक्ति के साथ किस प्रकार का बुरा होगा, कहा नहीं जा सकता। इस हाय को बद्दुआ भी कहते हैं। इसलिए कहा गया है कि हमें कभी भी किसी का बुरा, किसी के प्रति अन्याय, अहित,विश्वासघात,उपहास नहीं करना चाहिए। वरना इसके परिणाम बुरे भी होते हैं और भुगतने भी पड़ते हैं। समझदार और जानकार लोग ऐसी हाय के परिणाम समझते हैं, इसलिए बचते भी है। संत ...