स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे स्मृति सम्मान - 2025

              जैमिनी अकादमी द्वारा चर्चा परिचर्चा की श्रृंखला में विषय रखा गया है कि गिराते - गिराते खुद गिर गये हैं । फिर भी उस को होश नहीं आया है। ऐसे इंसान को क्या समझाया जा सकता है? इसी विषय को लेकर चर्चा रखीं गई है। आप सब एक से बढ़कर एक विद्वान हैं। आपके द्वारा दिये गए विचारों को पेश करते हैं : -

     क्योंकि जब हम किसी को गिराने की सोचते हैं तो हमारे मन में वैसी बातें, और विचार भी आते हैं जो हमारे शरीर के हारमोंस को प्रभावित करते हैं और इस तरह से निम्न और धूर्त  हरकत करते-करते कब हमारी सोच भी वैसी ही हो जाती है भले ही हम यह देख कर खुश होते हैं कि उसको सबक सिखा कर  हमारी जीत हो गई. लेकिन अलौकिक दृष्टि से देखें तो कहीं ना कहीं हमारी मानसिकता गिरती जाती है जो हमारे जीवन के अंत में,या अगले जीवन में लौट कर जरूर आती है तो कहीं ना कहीं हम भी तो गिरते ही हैं।  जितने लोग हमें जानते हैं उनकी भी धारणा हमारे प्रति बदल जाती है। जिसका हमें आभास भी नहीं होता कि पीछे से लोग क्या कहते हैं हमारे बारे में। सामने से तो सभी,  मीठा व अच्छा-अच्छा बोलते हैं। उसे समय हम नहीं सोचते लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है तो हम स्वयं की दृष्टि मे गिर जाते हैं। वक्त बदलने के साथ-साथ हमारी मानसिक सोच बदलने लगती है यह बात तब समझ आती है तब  तक बहुत देर हो चुकी होती है। कुछ लोगों को तो अंत तक एहसास नहीं होता उन्होंने कुछ गलत किया है जिंदगी में। इसका खामियाजा भी तो उन्हें उठाना ही पड़ता है।

    - अर्चना मिश्र

   भोपाल - मध्यप्रदेश 

     अपना काम छोड़ कर दूसरों की आलोचना-प्रत्यालोचना को अपनी प्रिय आदत बना कर व्यक्ति इतने मनोयोग से अपने संपर्क में आने वालों की बखिया उधेड़ने में तल्लीन रहता है और उसे यह आभास तक नहीं हो पाता कि ऐसा करके वह अपने ही व्यक्तित्व के खोखले पन को उजागर करते-करते अप्रिय बनता जा रहा है। ऐसों से कोई बात तक करना पसंद नहीं करता। यहाँ तक ही नहीं उसे देखते ही लोग कन्नी काट लेते हैं। ही कहते हैं दूसरों को गिराने के लिए खोदे गये गड्ढे में स्वयं ही गिर जाना।

    - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

       देहरादून -  उत्तराखंड

     भौतिक जगत में तो आज यही हो रहा है कि लोग अपने ही हितकर मित्र या अपनों को ही धक्का मारकर आगे बढ़ जाते हैं पर यदि थोड़ा चिंतन आध्यात्मिक दृष्टि से करें तो पाएंगे कि देर सबेर ही सही ,धक्का मारने वाला खुद धक्का पाता है और ज्यादा जोरदार धक्का पाता है लेकिन लोग इस बात को समझते नहीं है और वे वहीं किए जाते है जो गलत हैं पर अंतिम बात यह है कि किसी को गिरा कर कोई आगे नहीं बढ़ सकता।अतः स्वयं के प्रयास से आगे बढ़ें और दूसरों को भी बढ़ने का मौका दें और यदि संभव हो तो किसी के रहबर बने न कि राहजनी करें

       - ममता श्रवण अग्रवाल

           सतना - मध्य प्रदेश

         कहावत है कि जी दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वह खुद उसमें गिर जाता है। गलत सोच का गलत नतीजा होता है। ऐसे नकारात्मक वृत्ति वाले लोग  कुकृत्य करते हैं ।  ईश्वर गन्दी सोच वालों को ऐसी लाठी मारता है कि उसे तब पता चलता है। भारत गुलाम इन्हीं सोच वालों से हुआ । सच वे समझ नहीं पाता है। अभी भी देश के गद्दार यही काम कर रहे हैं । 

        - डॉ मंजु गुप्ता

         मुम्बई - महाराष्ट्र 

    कहते हैं न - जैसे करम करेगा प्राणी वैसे फल देगा भगवान।किसी का बुरा करना, उसके बारे में हमेशा बुरा सोचना, उसे वह सलाह देना जिसमें उसका अहित हो, किसी की सफलता से खुश न होना, हमेशा किसी में खोट निकालते रहना।यह किसी समझदार, प्रबुद्ध व्यक्ति के लक्षण नहीं है न ही किसी भले मानस के। एक न एक दिन उसे अपनी करनी का फल भुगतना ही पड़ता है। धीरे-धीरे समाज में वह तिरस्कृत होता है, लोग उससे दूरी बना लेते है, मौके पर कोई उसकी सहायता नहीं करता।हर इनसान को  चाहिए कि इस फ़ानी दुनियाँ में  सबसे प्रेम-भाव के साथ दूसरों की खुशी में सहभागी बने। यही जीवन का सार है।

          - सुनीता मिश्रा 

          भोपाल - मध्यप्रदेश 

    हम बेहद आसानी से दूसरे पर दोषारोपण कर लेते हैं : आईना सामने रखकर अपने कृतित्व का आकलन करें तो अपनी हिस्सेदारी का पता चल जाता है। इसलिए मेरी इसमें सहमति नहीं हो पा रही है कि किसी के गिरने में किसी दूसरे का सहयोग होता है। हम गिरते हैं अपनी लालसा, लिप्सा, तृष्णा के अतिरेक होने के कारण से-किसी को उँगली पकड़ने देते हैं तब न वह केहुनी तक पहुँचता है। हम सजग रहें तो किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि वह हमें गिरा दे- उसे हूँ मुँह की खानी पड़ेगी

     - विभा रानी श्रीवास्तव 

            पटना - बिहार 

कुछ लोग ऐसे ही होते हैं जो सदैव दूसरों को गिराने में लगे रहते हैं।सामान्यत: ऐसे वे लोग होते हैं जो कुछ करना तो चाहते हैं परंतु उनसे वह हो नहीं पाता और उन्हीं का कोई परिचित, वह कार्य बखूबी करते हुए नजर आता है। तब  इस स्थिति में वे, उससे ईर्ष्या करने लगते हैं और    फिर उसे असफल करने का प्रयास शुरू कर देते हैं। क्योंकि वे, यह भली-भाँति समझते हैं कि वे सीधे तौर पर उनका मुकाबला नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में वे उन्हें कमजोर और असफल करने के उद्देश्य से भिन्न-भिन्न तरीकों के हथकंडे अपनाने लगते हैं और फिर इसी में लग जाते हैं। जिसमें वे कभी सफल भी नहीं हो पाते और अपनी रही-सही योग्यता से भी पिछड़ जाते हैं, क्योंकि वे अपना बहुमूल्य समय संबंधित व्यक्ति को गिराने के लिए ही गंवा देते हैं और खुद की योग्यता को संवारने में समय ही नहीं दे पाते। इस तरह वे खुद का ही बहुत बड़ा नुकसान कर लेते हैं। इसके अलावा उनकी यह ईर्ष्या और चालबाजी भी प्रगट हो ही जाती है। जिससे उनकी छबि भी धूमिल होती है। इसके बावजूद वे यह समझने का प्रयास ही नहीं करते कि वे जो कर रहे हैं, गलत कर रहे हैं।  खुद के साथ अन्याय कर रहे हैं और फिर उनके पास जो योग्यता थी , उसे भी कमजोर कर,उसे शनै:-शनै: गंवा देते हैं। यानी दूसरों को गिराते-गिराते खुद ही गिर जाते हैं।

        - नरेन्द्र श्रीवास्तव

      गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       यदि हम किसी की सहायता करते हैं और किसी गिरे हुए व्यक्ति को उठाते हैं तो जब हमें आवश्यकता होती है  , कोई हमारी सहायता के लिए आगे आ जाता है और आवश्यकता पड़ने पर हमें उठाता है !!यदि कोई किसी को गिराता है या किसी व्यक्ति का बुरा करना चाहता है या करता है , ये निश्चित है कि उसका बुरा होता है !! ये प्रकृति का नियम है कि कर्म लौटकर आता है...

कर भला , हो भला 

        और

कर बुरा , हो बुरा !!

जहां तक संभव हो , किसी का बुरा न चाहो , कर सको तो सहायता करो और न कर सको सहायता ,तो बुरा भी मत करो या बुरा भी न सोचो !!

             - नंदिता बाली 

        सोलन - हिमाचल प्रदेश

     यह मानव प्रवृति है कि लोग किसी को ऊपर उठता हुआ नहीं देख सकते। कुछ अपवादों को छोड़ कर लोग जान बूझ कर कुछ ऐसा कर देते हैं जो दूसरे की राह में रोड़ा बन जाए। ईर्ष्या और जलन के चलते ऐसे लोग दूसरों की राह में कांटे बोने से बाज नहीं आते। वे यह नहीं समझते कि ऐसा करना स्वयं के लिए घातक सिद्ध होता है। ईश्वर कभी दूसरों के लिए गड्ढा खोदने वालों का साथ नहीं देता। गलत नियत वालों का मुंह काला करता है। दूसरों को नुकसान पहुंचाने वालों का साथ ये ब्रह्मांड भी नहीं देता।

    - रेणु गुप्ता 

     जयपुर - राजस्थान 

     आज की रंग बदलती दुनियां में किसी ने सबसे ज्यादा रंग बदला है तो वो है मानव!रही बात दूसरों को नीचा दिखाने की तो इंसानों ने इस क्षेत्र में तेजी से तरक्की कर ली है ,इनकी वजह से मानवता भी नित शर्मसार होती है लेकिन किसी को कहां फर्क पड़ता है! दशकों पहले कोई इंसान दुर्घनाग्रस्त हो जाता तो लोग उसे उठाने, इलाज कराने दौड़ पड़ते! लेकिन आजकल दौड़ने की बात तो छोड़िए,अगर इंसान किसी भी दुर्घटना का शिकार हो जाय तो वहां खड़े लोग तड़पते इंसान को हाथ भी नहीं लगाते!हां सेल्फी लेते हैं, विडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर भेजते हैं यानी सामने मरते इंसान की कीमत उसके नजर में एक विडियो है।कभी ये नहीं सोचते की अगर उनके साथ अगर ऐसा होता तो उन्हें कैसा लगता!किसी भी सच्चे इंसान का मजाक उड़ाना उन्हें बेवकूफ बनाना या उनकी भावनाओं की धज्जियां उड़ाने में ये जरा भी नहीं हिचकिचाते! "मैं तो समझती हूं इंसान दूसरे को गिराने की कोशिश में वो खुद कितना गिरा है इसका परिचय देता है।"अगर वो समझ जाय की वो कितनी बड़ी गलतियां कर रहा है तो फिर वो ऐसी हरकतें करेगा ही नहीं! जबकि हम सभी को मालूम है कि हमारे अपने कर्मों का हिसाब यहीं होना है।वो ऊपर नीली छतरी वाला बैठा है ना! सभी के गिरने -गिराने का हिसाब रखने के लिए। दूसरों को गिराने वाले का हिसाब वक्त तय करता है।

    - रेणु झा रेणुका

     रांची - झारखंड 

"दोष पराये  देखि करी चलत हसन्त हसन्त, अपने याद न  आवईए जिनका आदि न अंत" अक्सर देखने को मिलता है कि कुछ लोग दुसरों के दोष ढूंढने में लगे रहते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि उनके अन्दर कितने दोष हैं, इस प्रकार के लोग दुसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, यह वोही लोग होते हैं  जिनको खुद  की गलतीयां दिखती नहीं और दुसरों की गलतीयां निकालते रहते हैं जिससे दुसरा तो सावधान हो कर अपने में सुधार लाता रहता है और गलतीयां निकालने वाला गलती पे गलती करता जाता है  और एक दिन ऐसा आता है खुद ही अपने कर्मों से गिर कर डूब जाता है यानि गलतीयों के जंजाल में फंस कर बर्बाद हो जाता है, यह सत्य है जो दुसरों के लिए गड्डा खोदते हैं वो खुद उसमें गिर जाते हैं क्योंकि कर्म तो लोटता है, कभी लाठी बनकर कभी आसूं बनकर, पाप छुपता नहीं है, पुण्य हारता नहीं है किसी की शराफत का नयजाज फायदा लेने वाला कभी  सही नहीं हो सकता, कुछ लोग दुसरो को गिराने में अपनी धौंस समझते हैं कि हम ताकतवर हैं लेकिन वो अक्सर नकारात्मक मानसिकता और ईर्ष्या से प्रेरित होते हैं, दुसरों को नीचा दिखाना उनकी आदत बन गई होती है लेकिन वो यह नहीं जानते की उनके नाकारात्मक विचार उनको उनके अपनों से दूर करते जा रहे हैं और एक दिन ऐसा आयेगा उनके साथ चलने वाला कोई नहीं होगा और वो खुद ही समाज से बिछड़ जाएँगे और उनको अपनी गलतीयों का एहसास होने लगेगा कि दुसरों को गलत कहने का नतीजा क्या होता है, देखा गया है कि अक्सर नाकारात्मक मानसिकता और ईर्ष्या  से प्रेरित लोग अपनी असफलताओं से परेशान होते हैं और दुसरों की प्रगति जब उनसे सहन नहीं होती तो   दुसरों की  प्रगति को रोकने में उन्हें सन्तुष्टि मिलती है, लेकिन अपनी गलती का सुधार नहीं करते जिससे उनकी प्रगति रूक जाती है और अपने साथ साथ अपने परिवार को भी ले डूबते हैं अगर उनको अपनी गलतियों का एहसास हो जाए तो  वो भी  कामयाब हो सकते हैं लेकिन स्वार्थी और मतलबी लोग दुसरों को  गिराने की कोशिश करते हैं ताकि वो अपने स्वार्थ, सता, या व्यकितत्व का मतलब पूरा कर सकें, अन्त में यही कहुंगा कि दुसरों को गिराने की कोशिश करना नैतिक मुल्यों का विरोध है, जिससे संबधों में खराबी, बदनामी, नाकारात्मक उर्जा पैदा होती है, लेकिन यह लोग, समाजिक दबाव, समाजिक स्थिति और झूठी प्रतिष्ठा की चाहत रखने वाले होते हैं और दुसरों को गिराने में  अपनी शान समझते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनका खुद पतन  हो रहा है, उनमे गुस्से का भाव, आक्रोश, नाराज़गी  अशांति पनपने लगती है जिससे वो खुद परेशान रहकर अपने आप को नुकसान पहुंचा लेते हैं, इन कारणों से स्पष्ट होता है कि दुसरों को गिराने वाले अक्सर खुद भी डूब जाते हैं, तभी तो कहा है, "भलाई कर भला होगा, बुराई कर बुरा होगा, कोई देखे या न देखे खुदा तो देखता होगा। 

  - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

   जम्मू - जम्मू व कश्मीर

     दूसरों को गिराते-गिराते ख़ुद भी  गिर जाते हो ऐसा तब होता है जब इंसान दम दंभ के आवेश होता है फिर भी ये नहीं समझता मैं क्या कर रहा हूँ दुसराओ का बुरा करते ख़ुद का बुरा कर लेते हो और ये नहीं समझ पाते खुद के लिए क्या कर रहे हो अपनी सोच सकारात्मक बनाइए किसी की कहीं सुनी बातों में मत जाइए आँख कान नाक खुला रख समझ को बढ़ाइए ! कहते है होम करत हाथ जलत शुभ शुभ बोलिए कभी कभी मजाक भी बहुत भारी पड़ती है ! वाणी में सरस्वती बैठ होनी को अनहोनी का देती है! इश्क़ बदरंग बेवफ़ा बदनाम ना होता  कैसी नादानियाँ करते साथ साथ रह ज़िन्दगी जीना आया होता ।रोज़ मुलाक़ात इश्क़ इक बहाना ना तो था काश सितमग़र ऐसा भी होता ,जवानी की नदानियाँ समझ सही राह दिखाई होती।उठते हुए तुफ़ानो को सहारा दिया होता ये भुल ना होती दिल में उठते हुए तुफ़ानो को रोकना आया होता ।अजनबी बन जीवन में ख़ुशियाँ ढूंढ़ते आये थे नज़र अन्दाज़ की अदा से वाक़िफ़ हो कर,मनाना आया होता ज़िंदगी की हर मंज़िलो को सँवारना आया होता । ज़िंदगी की रोशनी में ख़्वाबों का रंगीन उजाला होता । दिल में उठते जज़्बातों को देख दबाना आया होता ।झूठ की बनती इश्क़ की दीवारों को गिराना आया होता।ज़िन्दगी एक हसीन मुलाक़ात हक़ीक़त होती समय की रफ़्तार में हौसलों को बुलंद रख जीना सिखा होता, सही ग़लत की पहचान बता ज़िंदगी हसीन होती ! 

        - अनिता शरद झा 

       रायपुर -  छत्तीसगढ़ 

      दूसरों को गिराना कोई अच्छी बात नहीं है हम सभी जानते हैं, किंतु प्रतिस्पर्धा के इस युग में हर आदमी अपने प्रतिस्पर्धी से आगे निकलने की सोचता है, प्रयास करता है कुछ को सफलता मिलती है कुछ को नहीं मिलती है। जिन्हें सफलता नहीं मिलती है वह फितरती विचारों के अधीन होकर या किसी और के बहकावे में आकर प्रतिस्पर्धी सेआगे निकलने के प्रयास में ऐसे कदम उठाथा है। किंतु देखा यही गया है की जो गड्ढा खोदता है वही गिरता है इसलिए हमेशा अपनी लाइन बड़ी करने का प्रयास करना चाहिए ना कि दूसरों की लाइन को छोटे करने में हम लगे। हमारे बढ़ते कदम निश्चित सफलता की ओर ले जाएंगे। 

       - रविंद्र जैन रूपम

        धार -  मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " जो इंसान दूसरों का भला कभी करता नहीं है। वह इंसान अपने फायदा की जगह अपना नुकसान खुद कर बैठता है। इसे कहते है कि यह परमात्मा का इंसाफ। बाकी तो सब अपने आप को बहुत अधिक अक्लमंद समझते हैं।               

      - बीजेन्द्र जैमिनी 

    ( संचालन व संपादन)         


Comments

  1. हमेशा अपनी सोच परहित की रखिए. किसी को गिराने की नहीं.किसी को गिराने का भाव मन में ही नहीं लाना चाहिए..सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार ही उचित है.
    - अतुल त्रिपाठी
    (WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  2. दूसरे के लिए जो इंसान कुआं खोदता है, वो खुद उसमें गिरता है। इसलिए बोला जाता है कि दूसरे के लिए अच्छा सोचिए या किजिए तो आपका भी भला होगा। किसी न किसी रूप में ईश्वर आपको मदद करेंगे।
    - प्रेम लता सिंह
    पटना - बिहार
    (WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  3. व्यक्ति दूसरे के प्रति इतना द्वेष मन में भर लेता है कि उसे अपनी राह में आने वाली खाई का पता ही नहीं चलता। इस भावातिरेक में उसे अपना गिरने में भी दूसरा व्यक्ति ही कारण दिखता है। तब उसके द्वेष की तीव्रता बढ़ कर नफ़रत बन जाती है और वह ज्यादा आक्रामक बन जाता है। जैसे रावण।
    - संगीता गोविल
    पटना - बिहार
    (WhatsApp ग्रुप से साभार)

    ReplyDelete
  4. किसी को नीचा गिरने से खुद ऊंँचे नहीं होते। नकारात्मकता का दायरा अंत में उन्हें भी घेर लेता है। सच्ची सफलता दूसरों को उठाने में और साथ चलने में है। दूसरों को गिराने वाला कभी स्वयं स्थाई रूप से ऊपर नहीं उठ पाता। दूसरों को उठाने वाला खुद की ऊंँचाई को भी दर्शाता है। वही सच्चे अर्थों में समझदार कहलाता है।
    - रमा बहेड
    हैदराबाद - तेलंगाना
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार)

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी