प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव के हिसाब से ही काम करता है, और प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्वाभिमान होता है। कोई किसी की दया पर नहीं जीना नहीं चाहता फिर भी , जीवन में ऐसे क्षण जरूर आते हैं जब उसे दूसरे की सहानुभूति की अपेक्षा होती है। ऐसे समय जो व्यक्ति सहानुभूति दर्शाता है और बिना किसी स्वार्थ के उसके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहता है वहीं अपना है फिर चाहे पड़ोसी हो मित्र हो अथवा भाई या और कोई अंजान भी हो सकता है। आजकी जिंदगी में पराये भी अपने बन जाते हैं। हाँ समय आने पर आप भी उसकी मुसीबत में कंधे से कंधा मिलाकर उसके साथ अपनापन दिखाते हुए खड़े रहें।आप यदि किसी के प्रति कृतज्ञ हैं तो समय आने पर कृतध्न ना बने। यही जिंदगी सिखाती है। अपना समझोगे तो अपनापन मिलेगा।यही दुनियां का दस्तूर है। 'एक हाथ ले तो दूसरे हाथ ले। ' प्यार से प्यार बढ़ता है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन एक बहता पानी है, जिस तरह नदी में तैराकी वाले प्रतियोगिताएं, पुरुस्कारों, सम्मानों श्रृंखलाओं का भंडार बहुत मिलेगा। जब नदी में बाढ़ आयेगी, अगर उसमें कोई फस गया, तैराकी वाले बचानें नहीं आयेगें, वही बचाने आयेगा, जो कुशल प्रशिक्षित है, जो सम्मानों से हमेशा वंचित ही रहता है। इसी तरह जिंदगीभर अपनापन हर कोई दिखाता है, परंतु अपना कौन वह समय ही बताता है। जीवन का परिदृश्य भी अजीब ही है, सड़क जब होती है, बचाने वाले राहगीर ही होते है। घर संसार में संयुक्त जरुर रहते है, कभी कोई परदेश चला गया। परिस्थितियां बताकर नहीं आती, पड़ोसी अगर दुश्मन भी हो, वह मानवताधारी बन कर साथ जरुर देता है। कभी-कभी पड़ोसी के साथ मधुर संबंध रहने उपरान्त भी समय पर साथ नहीं देता। हमनें कोविंड में सब कुछ देखा है, चाह कर भी आंखे नम्र थी....? चल और अचल सम्पत्ति का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप रसास्वादन भी किया है, सुख में सुमिरण सब करे, दुख काहे को हो....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट- मध्यप्रदेश
अपने पन की चाह किसे नहीं होती ? हर व्यक्ति अपनापन चाहता है , ढूंढता है , अपना दर्द बांटने के लिए ,हिम्मत व हौसला रखने के लिए , उतार चढ़ाव जिंदगी के सहने की लिए ,खुश होने के लिए !! जब व्यक्ति को ऐसा कोई मिल जाता है , तो कठिन राह जीवन की आसान लगने लगती है !!जीवन की विडंबना देखिए , की जब व्यक्ति को पता चलता है कि जिसे वह अपना समझता था , वो दगाबाज निकला !! व्यक्ति तब टूट जाता है !! अपना तब तक अपना लगता है जब तक विपत्ति या कठिन समय नहीं आता !! जो विपत्ति मैं भी अपना है , वो ही अपना है !! अपना बनाने का उपक्रम तो बहुत लोग कर लेते हैं !! समय बलवान ... समय ही अपनापन की कसौटी है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
वैसे तो हम कहते हैं वसुधैव कुटुंबकम यानी संसार अपना परिवार है. परिवार है तो अपनापन है. कहीं विदेश में अपने देश का मिले तो कह्ते अपने देश का है. वसे ही देश के अन्य राज्यों में अपने राज्य का मिले तो अपना कहते हैं. ऐसे ही ये घूमते-घूमते अपने गाँव परिवार तक आ जाता है जिससे अपनापन होता है. लेकिन अपना कौन है यह समय ही बतलाता हैं. हम किसी संकट में फंस जाएं और उस वक़्त जो काम में आए वही अपना होता है. बाहर हम किसी संकट में फंस जाते हैं तब हमें पता चलता है कौन अपना है कौन पराया है. जो हमारी मदद करे वही अपना है. उसी तरह घर मे जो हमारी देखभाल करे. हमारा ख्याल रखे वही अपना है. लेकिन जब हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं तो इस संसार में कुछ भी अपना नहीं है. ये शरीर भी अपना नहीं है. इसलिए हम कह सकते हैं कि जो समय पर काम दे वही अपना है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
सबसे पहला प्रश्न ये है कि अपना या अपनापन की परिभाषा क्या होती है। मनोजकुमार की फिल्म में एक गीत था - - -" तेरा अपना खून ही तेरे घर को आग लगायेगा" सच हो रही हैं ये पंक्तियाँ जो बताती हैं कि सिर्फ खून के रिश्ते सदैव अपने नहीं होते हैं---निःस्वार्थ दिल के रिश्ते ज्यादा अपने हो जाते हैं। अपना कौन है यह समय बताता है। अच्छे बुरे वक़्त में ही अपनों की पहचान होती है। समय की धारा में बहता इंसान हर एक की आशाओं पर खरा नहीं उतर सकता लेकिन सच्चाई हो ह्दय में तो संवेदनशील प्रयास सफल होते हैं। आज के भौतिक वादी जगत में दोहरे चरित्र और दोहरे मापदंड वाले इंसानों की कमी नहीं है। उनमें से सच्चा अपनापन खोज लेना टेढ़ी खीर है। वक्त किसी के प्रति कभी अपनेपन का एहसास देता है तो कभी अपनेपन के पीछे छिपी दोगली मानसिकता का परिचय। आज आभासी दुनिया के इस दौर में अपनेपन की सौगात भाग्य वालों को ही मिलती है। स्वार्थ दीवाने जगत में अपनों से ही अपनत्व मिल जाये - - काफी है। परायों का अपनापन अधिकतर स्वारथ और स्वार्थ लिप्त होता है - - खैर सबसे बड़ी सच्चाई यही है कि हर इंसान अपने भीतर के अपनेपन को बचा ले तो दुनियाँ स्वर्ग हो जायेगी।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
अपनापन का एहसास वह मानवीय भावना है जिसमें व्यक्ति खुद को किसी समूह, स्थान या रिश्ते का हिस्सा महसूस करता है जिससे उसे जुड़ाव और सुरक्षा का अनुभव होता है। यह एक मजबूत आवश्यकता है जो लोगों को सामूहिक गतिविधियां करने, रिश्तो को बनाए रखने और जीवन में खुशी और शांति का अनुभव करने के लिए प्रेरितकरती है। संक्षेप में कहें अपनेपन का एहसास ऐसी सकारात्मक भावना है जो हमें जीवन में जुड़ाव उद्देश्य और खुशी प्रदान करती है। अपनापन, परवाह, आदर और समय यह वह दौलत है जो हमें हमारे अपने हमसे चाहते हैं, हमसे अपेक्षा रखते हैं।लेकिन अपना कौन है यह समय बताता है। यह बात निश्चित है समय आने पर कई बार अपने ही पराये नजर आने लगते हैं। इतना आसान नहीं है अपने अंदाज में जिंदगी जीना। अपनों को भी खटकने लगते हैं जब, हम अपने लिए जीने लगते हैं। अंत में यही लिखूंगा कि हमें अपना रिश्ता अपनेपन के साथ निस्वार्थ भाव से निभाना है।
- रविंद्र जैन रूपम
धार - मध्य प्रदेश
ज़िन्दगी में लोग अक्सर मीठे बोल, साथ निभाने का वादा और अपनापन दिखाते हैं। उस समय लगता है कि सब अपने हैं। लेकिन असली पहचान तब होती है जब कठिन समय आता है—जब दुख, परेशानी या संघर्ष सामने खड़ा होता है। तभी पता चलता है कि वास्तव में कौन हमारे साथ खड़ा है और किसका अपनापन केवल दिखावा था। “खुशियों में तो सब साथ दिखते हैं, पर मुश्किल घड़ी में जो साथ रह जाए वही सच्चा अपना है।” अंधेरों में ही पता चलता है, कौन हमारा है, कौन दिखावा करता है। खुशियों के सूरज में सब चमकते हैं, पर सच्चा अपनापन वही जो समय की परछाई में साथ खड़ा हो।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कौन अपना कौन पराया वक्त ने सब सच बतलाया, जिसको जैसी पड़ी जरूरत रिश्ता वैसा उसने निभाया, आज की चर्चा के विषय की बात करें कि जिंदगी में अपनापन हर कोई देखता है लेकिन अपना कौन है समय बताता है सत्य पर आधारित है क्योंकि अपनापन वह भावना है जब हम दुसरों द्वारा देखे जाने, सुने जाने ओर परवाह किये जाने जैसा महसूस करते हैं तथा हम खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं और दुसरों से जुड़ा हुआ पाते हैं जबकि करीबी रिश्तों में अपनापन स्वाभाविक होता है यहाँ हम खुद को पूरी तरह से व्यक्त कर सकते हैं इसके साथ साथ अपने आस पड़ोस, धार्मिक समूहों या सहायता समूहों के लोगों के साथ जुड़ कर अपनेपन को महसूस करते हैं इसके अतिरिक्त अपने देश की संस्कृति हो या किसी जगह का गहरा लगाव अपनापन महसूस करवाता है, यह भी सत्य है कि जब हमें अपनापन दिखता है तो हम अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हुए अपनी पूरी पहचान उनके आगे रख देते हैं क्योंकि उनको हम अपना मान चुके होते हैं लेकिन अपना कौन है यह समय ही सही बता सकता है क्योंकि वक्त खराब होने पर और समय विपरीत होने पर सब की पहचान करने के लिए वह समय और वक्त आता है कि सच में कौन अपना है और कौन पराया है कहने का भाव पता चलता है कि कौन हमारा सच्चा हितैषी है और कौन केवल स्वार्थी है क्योंकि मुश्किल के समय में जो आपका साथ देते हैं वोही आपके असली अपने होते हैं, और खुदगर्ज लोग मुश्किल के समय में हमेशा दूर हो जाते हैं कहने का मतलब असली रिश्ते ही समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं, अटूट सत्य है कि समय दिखाई नहीं देता मगर बहुत कुछ दिखा देता है, अपनापन तो हर कोई दिखाता है लेकिन वक्त बताता है अपना कौन है, क्योंकि अच्छे समय में सभी अपने दिखते हैं लेकिन बुरे समय में अपने पराये अलग अलग दिख ही जाते हैं अन्त में यही कहुँगा कि रिश्तों का असली रंग बुरे वक्त पर ही पता चलता है चाहे परिवार हो या दोस्त कुछ लोग अच्छे वक्त में ही पास रहते हैं लेकिन मुश्किल के समय साथ छोड़ देते हैं लेकिन जो हमें पराये लगते थे वो बुरे वक्त में सहारा बनते हुए दिखाई देते हैं इस तरह समय ही बताता है कौन अपना और कौन पराया क्योंकि अपनेपन की भावना एक मजबूत भावना है जो मानव स्वभाव मैं मौजूद होती है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
जिनके पास इरादे होते है उनके पास बहाने नही होते है सच कहा - अपनापन एक एहसास भाव है ! जिस तरह इंसान का जब किसी से मन मिलता है तभी वह अपनेपन से परिपूर्ण हो अपना मित्र साथी हमसफ़र बनाता है उसके प्रति समर्पण भाव कड़वाहट को मिठास में बदल देता हैं ! इसकी पहचान समय ही बताता है अपना कौन और पराया कौन जिसके पास नेक इरादे होते है वही उसके अच्छे बुरे समय के साथी जो निः स्वार्थ निः संदेह भावना से जुड़े होते वही लक्ष्य तक पहुँचने में कामयाब होते है ! एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते है ! संकट के दिनों में सहायक होते है श्रीकृष्ण की तरह! देश की गंभीर समस्याओं के बीच वल्लभ भाई पटेल जी महात्मा गांधी जी का साथ दिया, अटल बिहारी बचपाई जी बुरे वक्त में इंदिरा जी का साथ दिया वर्तमान से आप सभी परिचित है !व्यक्ति स्वभावगत जिस विधा में कामयाबी हासिल करना चाहता है ,उसी विधा में आगे बढ़ाता है ! फिर उसे किसी भी तरह की नाकामियों का सामना करना पड़े लक्ष्य मान गुरु,शिक्षा हो ,रोजगार हो ,प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनेपन से सफलता की और अग्रसर होता है ! इनके पास कोई बहाने बाजी नहीं होती है! इनकी नाकामियों को नजर अंदाज नहीं करते ! इन्हें पूरे उत्साह के साथ गुरु ,मित्र बन नेक सलाह ,उचित मार्ग दर्शन दे , राहे सुगम बना ,निरन्तर प्रयास सफलता की ओर रूख करते! अपनेपन पूर्ण गुरु और शिष्य कृष्ण और अर्जुन जैसा संबंध हो जो उसकी कार्यक्षमता का विश्लेषण कर उचित सलाह दे सन्मार्ग की और प्रेरित करे ! निराशा दुविधा की स्थिति में ग़लत राह की ओर अग्रसर ना,हो ,ग़लत कदम उठा अपनी जान ना गवानी पड़े ! स्वभाव ज्ञान के अनुकूल उचित मार्ग दर्शन देते है ! आज के युग में जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर चाँद ,स्पेस पर पहुँचने की ललक बना कामयाबी हासिल कर सकता है ! उसे समय की ज़रूरत नहीं होती है! बहुत सामान्य शब्दों में विचार रखें है ।
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
हर किसी के अनेक परिचित एवं सगे-संबंधी होते हैं, जिनसे काफी जुड़ाव होता है। उनमें अपनापन भी बहुत नजर आता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि जब हम पर कोई मुश्किल, होनी-अनहोनी अचानक आ पड़ती है तब इनमें से बहुत कम ही होते हैं जिनका हमें अपेक्षित साथ मिलता है वरना अनेक लोग ऐसे भी होते हैं जिन पर हम उम्मीद और भरोसा करते थे, वे वैसे नहीं निकलते और उनका जरूरत पर साथ नहीं मिलता अर्थात अपना कौन है, कौन नहीं है। यह समय ही बताता है। इसके लिए कहा भी गया है,
रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय।
हित,अहित का जगत में जानि परत सब कोय
लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि इनमें से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि जो खुद मुश्किल मैं होते हैं, इसलिए वे चाहकर भी हमें साथ नहीं दे पाते। अत: हमें धारणा बनाने के पहले इस बात को भी समझ लेना उचित होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सन् १९८२-८३ में आई भोजपुरी सिनेमा (गंगा किनारे मोरा गाँव) का एक गीत है "कहे के त सब केहू आपन, आपन कहावे वाला के बा -सुखवा त सब केहू बाँटे, दुखवा बटावे वाला के बा...!" जी! समय पड़ने पर जो दुःख बाँट ले वही तो अपना होता है। जीवन है तो मुश्किलें आना स्वाभाविक है और समय आने पर उदास होना एक सामान्य प्रतिक्रिया है। आजकल देखा जा रहा है कि दुःख बढ़ाने वालों की संख्या अधिक हो गई है। अकेलापन/तन्हाई बढ़ने से तनाव/अवसाद झेलने की क्षमता घटी है। आत्महत्या कर लेने वालों की संख्या बढ़ी है। अपनापन कम हुआ है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
जिन्दगी में अपनापन सभी कोई देखना चाहता है।अपना परिवार,अपना रिश्ता सबको पसंद रहता है।सिर्फ रिश्ता बनाने से नहीं होता,उसे निभाना पड़ता है।अपना वह होता है,जो बुरे वक्त पर काम दे।मेरी मदद करे।अपना कौन है,वह समय बताता है।समय बलवान होता है।समय पर अर्थात् विपत्ति के समय जो साथ दे।वह अपना खास रिश्तेदार होता है।अपनापन की पहचान समय करता है।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
जिंदगी बड़ी अजीब है हर व्यक्ति अपनेपन के लिए तरसता है किसी को अपना अपना मानता है और इस अपनेपन के भरोसे वह बहुत काम कर जाता है लेकिन जब वक्त आता है तब वह अपना व्यक्ति जो रंग दिखता है उसे आदमी हद प्रद रह जाता है यह क्या जिसे मैं अपना समझ रहा था वह तो अलग ही तेवर दिखता है, दुश्मन से भी ज्यादा दगा दे जाता है, इसीलिए कहावत है कि वक्त ही बताया कि अपना कौन है, पराया कौन यह समय हर व्यक्ति को दिखाता है, बहुत सोच समझकर किसी को अपना बनाना चाहिए और हमेशा सतर्क रहने की जिंदगी में जरूरत है। ऐसा मेरा मानना है। आज हम देख रहे हैं कि दुनिया बहुत स्वार्थी हो गई है सब स्वार्थ के अंधे हैं ,और अपना मतलब निकालते हैं आज खून का रिश्ता भी अपना नहीं रहा तो पराइयों से क्या ही उम्मीद करना, इसलिए अपने भरोसे काम करें किसी को अपना न मानकर सिर्फ रिश्ता निभाना ही आज की जिंदगी में सही है
- अलका पांडेय
मुंबई - महाराष्ट्र
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