सिर्फ डिग्री धारी भ्रष्टाचारी नहीं

हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा है कि आज समाज में यदि भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी है तो वह डिग्री धारी की बदौलत है। सुबह से शाम तक रोड़ी कूटने वाला एक मज़दूर , धूम में धरती पर खोद कर फ़सल उगाने वाला किसान और गांव का कोई अनपढ़ व्यक्ति भ्रष्टाचार और रिश्वतखोर नहीं है।
      राज्यपाल जी भ्रष्टाचार कहां होता है ? सरकारी काम को लेकर कर ही भ्रष्टाचार होता है । रिश्वत नहीं दी है तो आप का नहीं होगा । वह काम कितना भी सही हो,वह बिना रिश्वत के नहीं होता है। फिर भ्रष्टाचार कहां होता है ? सरकारी काम के लिए होता है।  " मेरी दृष्टि में "  सरकारी कर्मचारी ही भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है। आचार्य देवव्रत जी डिग्री धारी सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही नहीं होता है वह डिग्री धारी तो आज चायवाला, जुते ठीक करने वाला, धूप में मजदूरी करने वाला आदि कोई भी डिग्री धारी हो सकता है। क्या ये डिग्री धारी भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार है?
      " मेरी दृष्टि में " सिर्फ डिग्री धारी ही भ्रष्टाचारी नहीं है । किसी बड़े अधिकारी का अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा चपड़ासी या जूनियर कर्मचारी भी हो सकता है जो डिग्री धारी नहीं है। लगभग अब स्पष्ट हो रहा है कि भ्रष्टाचार क्या है और कैसे होता है। भ्रष्टाचारी की जिंदगी कैसी होती है यह भी देखना चाहिए। इस को स्पष्ट करने के लिए अपनी पुस्तक " मुस्करानं " काव्य संग्रह ( प्रथम संस्करण : जून 1989 ) में से एक कविता यहां पेश करता हूं। जिस का शीर्षक " मैं भ्रष्टाचारी हूं "  :-
      देखो-
      मैं भ्रष्टाचारी हूं
      रिश्वत लेकर मैं जीता हूं।
      ना जाने कौन कब किस वक्त मुझे रिश्वत दे जाये
      शायद इस देश में मेरे जैसों की कमी होगी नहीं।
      सिर्फ-
      हस्ताक्षर तक ही कार्य मेरा
      छोटे से बड़े काम तक के
      मैं असीमित घूंस लेता हूं।
      ऊपर मंत्रियों तक पहुंचता हूं।
      ये भी सुनों -
      भ्रष्टाचारी के हदय में भी कांटे चुभते हैं
      क्या छोड़ दूं ?
      कैसे छोड़ दूं ?
      क्या करूंगा​ ?
      इसलिए मैं भ्रष्टाचारी हूं
      रिश्वत लेकर मैं जीता हूं।
                                          - बीजेन्द्र जैमिनी
                                           ( अशेष फीचर )

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