बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा

आजकल बच्चों को स्कूल भेजना जोखिम भरा हो गया है। कभी बच्चे स्कूल बस या वैन की दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं कभी यौन उत्पीडन के शिकार हो जाते हैं। आखिर बच्चों का कसूर क्या है या अभिभावक का क्या कसूर है। बच्चे भी तो समाज यानी देश का हिस्सा है। देश में कानून भी सख्त हैं सरकार भी सख्त हैं। फिर कमी कहां है। लोगों की सोच में कमी है। जहां संस्करण नहीं होते हैं वहीं लोगों की सोच दूषित होती है। ये सब दूषित सोच का परिणाम है।     अभिभावक तो हर दिन बच्चों को लेकर परेशान ही परेशान नज़र आता है। अभिभावक के लिए स्कूल की फीस आये दिन बढ़ती रहती है। जब अभिभावक की आय इतनी नहीं बढ़ पाती है जब समस्या विराट रूप ले लेती है। ऐसे में अभिभावक क्या करें। बैंक से लोन आदि का प्रबंध करें। अगर बच्चों की शिक्षा में ही लोन का सहारा लेकर आगे बढ़ें तो आने वाले भविष्य की समस्या से कैसे लड़ ?   ट्यूशन भी बड़ी समस्याओं में से एक है। आज़ के समय में ट्यूशन के बिना बच्चों की शिक्षा भी असम्भव सी हो चली है। ट्यूशन की फीस भी स्कूल की फीस से कई गुना अधिक होती है। समस्या कोई छोटी नहीं है फिर भी अभिभावक को सब कुछ करना पड़ता है।    " मेरी दृष्टि में " बच्चों को लेकर अभिभावक बेबस रहता है। बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा  वर्तमान में टेढ़ी लकीर के समान है जिससे पूरी उम्र सीधी करने में गुज़ार देता है।

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