जीवन में पुस्तकों का महत्व

    विश्व पुस्तक मेला ( दिल्ली ) के अवसर पर जैमिनी अकादमी ने परिचर्चा का आयोजन किया है । परिचर्चा का शीर्षक - जीवन में पुस्तकों का महत्व 
परिचर्चा में अनेक विचार आये हैं । सभी एक से बढें कर एक हैं । कुछ विचार बहुत ही रोचक व श्रेष्ठ हैं । जिन्हें यहां पेश किया जा रहा है :- 

गंगापुर सिटी ( राजस्थान ) से विश्वम्भर पाण्डेय ' व्येग्र ' ने कविता के रूप में अपने विचार पेश किये हैं। उसी कविता का कुछ अंश पेश है :- 

इन्हें पाने के लिए

गूगल पर सर्च करना होगा

बार-2 नेट खर्च करना होगा

जिस दिन भूल से

या जानबूझकर 

बटन दब जायेगा

ये सम्पूर्ण-धन

हमारे हाथ से निकल जायेगा

ये विज्ञान और ये इंसान

देखता रह जायेगा...

इसलिए

इन्हें सहेज के रखिए

ये किताब नहीं

ये मित्र हैं

हम सब की...

रांची ( झारखंड ) से श्रीमती सारिका भूषण लिखती है कि बड़े - बड़े लेखक , कवि , साहित्यकार , विचारक , सुधारक , राजनीतिज्ञ , चिकित्सक , वैज्ञानिक अपने ज्ञान और अनुभव को अपनी लिखी पुस्तकों के माध्यम से  ही अच्छे समाज एवं उज्जवल भविष्य के लिए हमारे सामने लाए हैं । विभिन्न रुचियों की पुस्तकें हमें आकर्षित करती हैं और यही आकर्षण व्यापक आकाश में विचारों के गृह नक्षत्रों से हमारा परिचय कराती हैं । ज्ञान प्राप्त करने की विचारों की मान्यताओं को समझने के लिए पुस्तक ही सहायक होती है ।पुस्तकों से समृद्ध समाज और उनसे प्रभावित विचारधारा राष्ट्र के  विकास का मापदंड है । 

सुशील अग्रवाल नाथूसरी लिखते है कि आधुनिकता के इस युग में हम फेसबुक व्टसएप या सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर उस वास्तविक जीवन से कहीं दूर होते जा रहे हैं। आज सोशल मीडिया हमारी युवा पीढ़ी को भटका रहा है और यह कहना भी गलत नहीं होगा कि भटका चुका है। ऐसे में हमें फिर से पुनः उसी राह पर आने की आवश्यकता है। पुस्तक ही मनुष्य की सच्ची साथी है। भगत सिंह जैसे योद्धा ने पुस्तकों को पढ़ कर ही देश में क्रातिं लाने का काम किया था। 
दिल्ली से श्रीमती सविता चड्ढा लिखती है कि मेरे जीवन का प्रकाशित द्वार मेरे बचपन में ही एक पुस्तक के एक  पेज ने कर  दिया था। वह  पेज मेरे घर में ही गिरा हुआ था।  मैं तब नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। नानी जी की रामायण के साथ रखा कई कागज  रहते थे जिन्हें वे संभाल कर रखती थी।
उस पेज पर बहुत सारी अच्छी बात लिखी थी। एक बात जिसने मुझे शाबाशी दिलाई वह थी "जिस घर में स्वच्छता रहती है वहीं लक्ष्मी निवास करती है।" मैने बिनक कहे अपने घर को स्वच्छता दी और मेरे माता-पिता, मेरे रिश्तेदारों में मुझे सराहना मिलनी शुरू हो गई।।।
नवादा ( बिहार ) सेे डाँ. राशि सिन्हा लिखती है कि बात जब पुस्तकों की होती है तो इक बात जो अनुभूतियों के दरवाजे पर सबसे पहले दस्तक देती हैं वो यह कि पुस्तक से बढ़कर कोई मित्र नहीं होता.इसमें कोई संदेह नहीं कि पुस्तक ऐसे मित्र होते हैं जो खुले हाथों व खुले ह्रदय से मनुष्यों या अपने पाठकों के एकांत को साझा कर उसमें मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धि-विवेक की संबलता भर कर उन्हें पूरे अपनेपन से अपनाती हैं.मनुष्य के संस्कारों या भावनाओं का प्रचार कर नवीनतम् विचारधाराओं का आदान-प्रदान कर उसके एकांतमय जीवन को महफिल सा रोशन कर देतीे हैं ।

 साहिबाबाद ( उत्तर प्रदेश ) से सुरेन्द्र कुमार अरोरा जी कहते है कि 

पुस्तकें व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ती हैं , मानवीय संवेनाओं को कुरेदकर उनके मानव से मानव के बीच के सम्बन्ध को आत्मीय बनाती हैं । 

पुस्तकें घर बैठे अनदेखे सम्बंन्धो से साक्षात्कार करवाती हैं । ये पुस्तकें ही हैं जो हमारे अंतस्तल को उन दुखती रगों में दौड़वाकर , जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए उकसाती हैं ।

पुस्तकें हमारी भ्रंतियों से हमें पार पाने का सबल साधन बनाती हैं ।

गुरुग्राम ( हरियाणा ) से डाँँ बीना राघव लिखती है कि  ज्ञान की प्राप्ति के मुख्यत: दो मार्ग है- सत्संगति और ‘स्वाध्याय’ । और स्वाध्याय के लिए पुस्तकों से बढ़कर क्या साधन हो सकता है!
 आजकल विभिन्न सामाजिक आंदोलन तथा विविध विचारधाराएँ अपने प्रचार-प्रसार के लिए पुस्तकों को उपयोगी अस्त्र के रूप में अपनाती हैं। अपने अनुभवों और संस्मरणों को पुस्तकें ही बखूबी संजोती हैं।
2018 में भी हिंदी साहित्य जगत में भीड़तंत्र, चीन डायरी, गई झूलनी टूट, कथा विराट, टेबल लैंप, स्त्री शतक, अंधेरे का मध्य बिंदु, मदारीपुर जंक्शन, कश्मीरनामा, मिस काउ:ए लव स्टोरी आदि अनेक पुस्तकों ने धूम मचाकर यह सिद्ध कर दिया कि सोशल मीडिया की आँधी भी छापेखाने से निकली नई कागज़ी पुस्तकिया महक विलुप्त नहीं कर सकती अपितु प्रिंटिग प्रैस की तेज होती घरघराहट हमारे जीवन में पुस्तकों के महत्व को प्रतिपादित करती ही रहेगी।
मुंबई ( महाराष्ट्र ) से श्रीमती आभा दवे लिखती है कि  दिनचर्या में यदि कोई सकून दे सकता है तो वह है पुस्तकें । लोगों का रुझान अलग- अलग विषयों पर हो सकता है  यह बात सच है । पर सही मित्र होती है पुस्तकें ही । पुस्तकें ज्ञानवर्धन के साथ-साथ समय व्यतीत करने का सबसे अच्छा साधन है । जो लोग पुस्तक प्रेमी है वह एकांत में बैठकर पुस्तकें पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं और उस में पसंद आई बातें अपने जीवन में उतारते हैं । अच्छी पुस्तकें हमेशा से ही लोगों की मित्र रहीं हैं । कई  लोगों के जीवन में पुस्तकों को पढ़ कर  बदलाव आए हैं । पुस्तकें हमें मानसिक ऊर्जा प्रदान करती हैं और जीने की नई राह दिखाती है  । 

सोलन ( हिमाचल प्रदेश ) से आचार्य मदन हिमाचली कहते है कि पुस्तकें ज्ञान का आपार भण्डार है। जन्म से मृत्यु तक हमें ज्ञान प्रदान करती हैं। वैदिक काल से लेकर आज तक गुरु शिष्य  परम्परा और पुस्तकों के माध्यम से  हम  विश्व का ज्ञान अर्जित करते रहे हैं । चार वेद ,  चार धर्म शास्त्र , छ शास्त्र । ये  १४ विद्या हैं । विश्व का ज्ञान हैं इसके इलावा १८ पुराणोक्त मे दिव्य ज्ञान तक हमें प्राप्त होता रहा है। जो मानव कल्याण का  भण्डार है 

मुजफ्फरनगर ( उत्तर प्रदेश ) से श्रीमती सुशीला जोशी लिखती है कि पुस्तकें जीवन को  जीने की शैली प्रदान करती है । नगण्य को स्फूर्तिवान और उर्जावान बनाती है और स्फूर्तिवान जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है । 
   पुस्तकें बुद्धि का विकास और नवीन धारा प्रदान प्रदान करती है साथ ही दृष्टिकोण को विशाल बनाती है ।
    पुस्तकें अतीत के ज्ञान कराती है , इतिहास बताती है और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक स्थितयों से परिचित कराती है। 
     पुस्तकें लेखक की विशिष्टता से अवगत कराती है और विश्व के लेखन शैली से परिचय कराती है ।
    पुस्तकें हमें विलुप्त संस्कृतियों से परिचित कराती है साथ ही विभिन्न  जीवन शैलियों में जीने का ज्ञान कराती है ।
     पुस्तकें विश्व से जोड़ती है साथ ही भारत की उक्ति ---"वसुधैवकुटुम्भकम" को सार्थक करती है । 
   पुस्तकें हमें स्वस्थ रहने के गुर सिखाती है। नई तकनीकों से अवगत कराती है। 
       पुस्तकें धर्म को जीवित और सुचारू रूप से निर्वहन करना सिखाती है ।


सीकर ( राजस्थान ) से आचार्य अवस्थी के अनुसार :- 

पुस्तकानि में अग्रतः सन्तु, पुस्तकानि में सन्तु पृष्ठतः,।पुस्तकानि में सवॅतः सन्तु, पुस्तकानि मध्ये वसाम्यहम्। ।   

                पुस्तकें  मनुष्य की मानवजाति की वास्तविक मित्र है,,जिन घरों में मठों में मन्दिरों में विद्यालयों,महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में गुरूकुलों में पुस्तकें,और छोटे बङे पुस्तकालय नही होते,,,वहां नकारात्मक ऊजाॅ भरती है,,,दूषित आत्माओं का निवास होने लगता है,,,।                                       
                 कितना ही आधुनिक डिजिटल तकनिकी युग आ जाय,,पुस्तकों की अपनी महत्ता और अहमियत सदैव से रहती आयी,,,रहेगी ही,,,                       

मनोज भारत लिखतें है :- 

कोई औषधि पथ्य से, कभी नहीं है श्रेष्ठ।
वैसे ही पुस्तक सदा, है 'गूगल' से ज्येष्ठ।।
दिल्ली से विरेंदर ' वीर ' मैहता लिखते है कि श्री ज्ञान  की प्राप्ति केवल सत्संगति और पुस्तकों के अध्ययन से ही है। आज जब इंटरनेट के जमाने में हमें संसार की सभी भाषाओं की पुस्तकें सहज ही उपलब्ध है तो व्यक्ति को अध्ययन से पीछे नहीं रहना चाहिए क्योंकि प्रत्येक मनुष्य अपनी क्षमता के अनुसार अध्ययन करके अपने ज्ञान क्षेत्र का विस्तार कर सकता है। पुस्तकें ही हैं जो मनुष्य को, मन की तृप्ति के साथ साहस,धैर्य और संशय मुक्त करती हैं। सही कहा जाए तो पुस्तकों के बिना चिन्तन परिष्कृत नहीं होता और चिन्तन के बिना मनुष्य संपूर्ण नहीं होता।
मनोरम जैन पाखी लिखती है कि पुस्तकें मानव का सबसे अच्छा दोस्त ,हमराज ,साथी होती हैं ।हमारे  प्रत्येक सबाल का जबाब पुस्तकों के पास होता है ।फिर चाहे आध्यात्मिक हों ,धार्मिक हों,सामाजिक हों ।हर उलझन की सुलझी राह यहाँ से मिलती है ।ज्ञान का अक्षुण्ण भंडार ,देशकाल ,इतिहास ,अतीत से लेकर वर्तमान तक का आँकलन करने की क्षमता है पुस्तकों में ।
रायगढ़ ( छत्तीसगढ़ ) से आर के पटेल ने पुस्तकों का महत्व इस प्रकार स्पष्ट किया है :-
पुस्तक ही है जीवन दाता,
पुस्तक ही है भाग्य विधाता।
पुस्तक ही तो ग्यान कराता,
पुस्तक ही तो ध्यान कराता ।
पुस्तक ही तो तंत्र बताता,
पुस्तक ही तो मंत्र बताता ।
पुस्तक ही तो मेल कराता,
पुस्तक ही तो मन बहलाता।
पुस्तक ही है सिद्धि दाता,
पुस्तक ही है बुद्धि दाता ।
पुस्तक ही तो आस जगाता,
पुस्तक ही तो प्यास बुझाता ।
पुस्तक से ही सब कुछ आता,
पुस्तक ही तो मन को भाता ।।
   
हरिनारायण सिंह ' हरि ' लिखते है कि पुस्तक जीवन की दशा और दिशा बदल देने की शक्ति रखती है ।पुस्तकों के स्वाध्याय से ज्ञान का तो विस्तार होता ही है, इससे जीवन को सही रास्ते पर लाने की प्रेरणा भी मिलती है ।पुस्तक आदमी को सही मायने में आदमी बनाती है ।
हांंसी ( हरियाणा ) से पंजाब नैशनल बैंक की सीनियर मैनेजर कुमारी  खुशबू जैन लिखती है कि अच्छी पुस्तकें हमारा मार्गदर्शन करती हैं। यह मेरे जीवन का अपना अनुभव है कि सही राह और सच्चा सुकून आपको पुस्तकों से मिलता है। न जाने कितनी बार आपको ज़िन्दगी दोराहों पर खड़ा कर देती है और कई बार आप बेचैन और मायूस होते हैं। ऐसे में पुस्तकें ही आपकी सच्ची दोस्त हैं।आपके माता पिता के बाद अच्छी पुस्तकें ही आपका सहारा हैं। अपने मार्ग पर दृढ़ता से कैसे चलें यह पुस्तकों से ही आप सीख पातें हैं। मेरे इन विचारों को पढ़ रहे सभी दोस्तों से मेरा निवेदन पुस्तक अध्धयन की एक बार आदत लगाएं शुरू करें फिर देखें आपको कितना आनंद महसूस होगा।

       परिचर्चा के अन्त में स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मानव के जीवन का उत्थान पुस्तकों से हुआ है । देश - विदेश का ज्ञान पुस्तकों के अन्दर लिखा होता है । जिन से बहुत छोटी उम्र से ही पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करते - करते बड़े होते हैं और इन्हीं पुस्तकों के बल पर जीवन में बड़ी - बड़ी सफलता प्राप्त करते हैं । 
       हरियाणा , उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश, बिहार ,झारखंड ,छत्तीसगढ़ ,राजस्थान , महाराष्ट्र , दिल्ली आदि के विचारों को शमिल किया गया है । यही परिचर्चा की विशेष सफलता है । 
                               - बीजेन्द्र जैमिनी
                                आलेख व सम्पादन



Comments

  1. सुंदर चर्चा। सटीक विचार और लोगों की राय से पुस्तको की महत्ता सहज ही और प्रखर हो रही है। हार्दिक सादुवाद जेमिनी अकादमी का,
    इस आयोजन के लिये।

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    1. धन्यवाद ! मैहता जी ।

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  2. बहुत ही सार्थक परिचर्चा

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  3. पुस्तकीय ज्ञान को व्यवहार मे लाना सोने पर सुहागा है जैसे सविता जी ने स्वच्छता अभियान चलाया ।

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