लोकसभा चुनाव - 2019 से जनता की उम्मीदें

देंश में चुनाव का वातावरण तैयार है । सभी की अपनी उम्मीदें है । उम्मीदें को ध्यान में रखा कर जैमिनी अकादमी ने इस परिचर्चा का आयोजन रखा है । बिजली , पानी , सड़कें , शिक्षा , स्वास्थ्य , युवा रोजगार आदि उम्मीदें हैंं फिर भी जनता की आवाज के आगे  कुछ भी हो सकता है । आये जनता की उम्मीदें भी देखें :-  

        इंदौर - मध्यप्रदेश से सतीश राठी लिखते है कि जनता जनार्दन की सेवा के लिए यदि सरकार आती है तो उसे सारे जन के लिए काम करना है, किसी जाति विशेष, किसी धर्म विशेष या किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं ।अब हम किसानों की ही बात कर ले । किसान की फसल कितनी भी अच्छी लग जाए ,रोने की उसकी आदत है और चुप कराने की सरकार की । इसमें गरीब किसान को नहीं मिलता है ,अमीर किसान ने इस तरह की व्यवस्थाएं जमा रखी हैं कि उसी का फायदा होता है। इसको एक बार पुनः देखा जाना चाहिए, और किसान के लिए अच्छी खेती के संसाधनों की व्यवस्था, उसकी फसल के लिए उचित दाम पर विक्रय के लिए व्यवस्था होना चाहिए। इसी प्रकार आरक्षण एक मुद्दा है।  अब समय आ गया है कि आर्थिक आधार पर उसे किया जाए। किसी भी सरकार में इतनी ताकत नहीं है कि वह इसे आर्थिक आधार पर कर दे क्योंकि यहां पर भी वोटों की राजनीति है और इसी वोटों की राजनीति के चलते आरक्षण 50% से बढ़कर 63 और 70% तक चला गया है। यह भी गलत है। संविधान में तो यह व्यवस्था थी कि एक समय के बाद आरक्षण को समाप्त कर दिया जाए ,और आर्थिक आधार पर लोगों की उन्नति के अवसर पैदा किए जाए। वही काम अब होना चाहिए। यह एक जनसामान्य की उम्मीद सरकार से है। इसके अतिरिक्त सरकार को वरिष्ठ नागरिकों के लिए, सेवानिवृत्त नौकरीपेशा लोगों के लिए कुछ योजनाएं लेकर आना चाहिए। पेंशन का पुनः निरीक्षण करना चाहिए। शिक्षा सस्ती करना चाहिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बहुत महंगी है ।इसके अतिरिक्त बीमे की सुविधाएं सस्ती हो, और मेडिकल सुविधाएं मुफ्त दी जाए ।अमीरों से इसका सरचार्ज लेकर गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मेडिकल की सुविधा पूर्णता निशुल्क होना चाहिए 
जालंधर - पंजाब से डाँ. नीलम अरुण मित्तु लिखतीं है कि हर तबके की अपनी अपनी आकांक्षाएँ और अपेक्षाएँ होती हैं पर इसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है कि हम बढ़चढ़ कर इस प्रक्रिया का हिस्सा बने और वोट डालने के अपने अधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग करें। जाति , धर्म की संकीर्ण हदबंदियों से ऊपर उठकर देशहित में सोच समझकर अपना वोट डालें।
मेरे विचार में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा इस वक़्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके लिए आवश्यक है कि हम एक मज़बूत सरकार और सशक्त प्रधानमंत्री का चयन करें । सेना के सशक्तिकरण पर भी तेज़ रफ़्तार से काम होना चाहिए।
आर्थिक विकास कि गति भी बनी रहनी चाहिए क्यूँकि समर्थ राष्ट्र ही सशक्त राष्ट्र हो सकता है।
देश की बुनियादी तरक़्क़ी के लिए कृषि क्षेत्र पर भी विशेष बल देने की आवश्यकता है।
शिक्षा स्तरीय हो और रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर युवकों को प्राप्त हों इस पर भी ध्यान देना होगा।
व्यक्ति हो चाहे राष्ट्र स्वावलंबन भी अनिर्वार्य है अतः इस और भी सार्थक प्रयास जारी रहने चाहिए।
स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं में सुधार भी अपेक्षित है।
आने वाले चुनाव देशहित में सुखद परिणाम लेकर आयें ।
          गनापुर -उत्तर प्रदेश से महेश गुप्ता जौनपुरी लिखते है कि सरकार किसी का भी बने अपने वादे पर खरा उतरे |चुनावी माहौल हैं इस समय गली मौहल्ले चौराहे पर बस चुनाव कि चर्चा जोरो पर हैं | अभी तक जनता कि राय देखे तो भारती जनता पार्टी अपने कार्य से जनता के दिल में जगह बना ली हैं लोगों का कहना हैं कि भारतीय जनता पार्टी अपने छोटी मोटी खामियों को दुर कर ले तो जनता के बीच काफी समय तक राज कर सकती हैं | लोगों का कहना हैं कि भारतीय जनता पार्टी में जो निर्णय लेने की क्षमता पाँच सालो में देखा गया ऐंसा देखने को बहुत कम पार्टी में मिलता हैं | इस बार की लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा हैं जो कट्टरवादी कांग्रेसी थे वो भी भारतीय जनता पार्टी के कार्यो का सराहना कर रहें हैं | जनता पार्टी का मिजाज समझ चुकि हैं अब जनता उसी को वोट करेंगी जो देशहित में  कार्य  करेगा | जुमलेबाज नेताओ को जनता सबक सिखाने के लिए तैयार हैं जनता चाहती हैं हमारे बीच ऐसा नेता आये जो जनता की धार्मिक आस्था, आर्थिक ब्यवस्था पर विशेष ध्यान थे और निर्णय लेने में पूर्ण रुप से सक्षम हो |
            अजेमर - राजस्थान से विमला नागला लिखती है कि जनता की सरकार से बहुत उम्मीदें है,सर्वप्रथम तो देश के वर्तमान हालात में आतंकवाद का खात्मा करना।दूसरा सरकार आम जनता की हितैषी. हो,युवा वर्ग को रोजगार ,भ्रष्टाचार मुक्त, समाज के सभी वर्गों में समभाव ,सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम हो,   बालिकाओ व महिलाओं की सम्पूर्ण सुरक्षा प्रदान करे,रिश्वतखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, तथा समस्त उन कृत्यों की घोर विरोधी हो जो देश के मानवीय मूल्यों व सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास करते हो।देश को पुनः विश्व में गुरू का दर्जा प्रदान करने वाली सरकार जनता द्वारा अपेक्षित है।
               I am a lawyer i know BJP is doing well for the indian citizen and i am not far from them . But i will talk about lawyers. They are doing nothing for them . Last month protest has taken place for fulfilling the demands of lawyer's community but by far no response given by ministers and also by over hon'ble P.M of india on that. I know today the government is in big deal of getting up with terrorist after the attack done by them. But on other hand we are also their fighting with over starting career days. We junior Advocate want that government provide us STIPEND upto 5 year in over initial stage of life. But as far the ellection are comming near by the political parties they are creating this as an issue. We advocates want action on this or details why it is not comming in action.
The government of kerala passes order on 19 march 2018 of giving STIPEND to junior advocates and it has also implement in 
Kerala
Karnataka
Pondicherry
Telangana
Andra Pardesh
In above given state the government has passed their resolution of giving STIPEND in previous year i.e 2018. 
 Advocate's in District court panipat. We want that government take step in giving STIPEND to young  advocates upto 5 years in amount of Rs 8000/- per month.
This is the request to Hon'ble P.M from all junior lawyers community for taking a step forward on above sited demand.
                               -ADV SAHIL KUMAR
           DISTRICT COURT PANIPAT - HARYANA 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से उर्मिला सिदार लिखती है कि 
 गांव से लेकर शहर तक देश में भौतिक एवं बौद्धिक विकास हो ऐसा सभी जनता चाहते हैं समाज में नेताओं के लिए दो ही कार्य हैं पहला भौतिक विकास का कार्य जो आर्थिक विकास से संबंधित है दूसरा बौद्धिक विकास का कार्य जो समाधान से संबंधित है लेकिन वर्तमान परिवेश में समाज में भ्रष्टाचार और अत्याचार का बोलबाला है इसके फलन में समाज में 3 तरह के लोग अनियंत्रित रूप से देखे जा रहे हैं पहला लाभो उन्माद विचार वाले मनुष्य दूसरा भोगोउन्माद विचार वाले मनुष्य तीसरा कामो उन्माद विचार वाले मनुष्य जो समाज के  विकास के लिए अवरोधक  है इन समस्याओं से कैसे निजात पाया जाए इसी उम्मीद के आधार पर जनता अपने नेताओं का चुनाव करता है लेकिन ऐसा होता नहीं सरकार कुछ भौतिक विकास कर लकीर के फकीर बना हुआ है जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जो भी कार्य व्यवहार करता है सुख की चाहत में करता है और समाज और सरकार से भी सुख की अपेक्षा रखता है सरकार की जो भी व्यवस्था का ढांचा ढांचा हो मनुष्य की सुख शांति पूर्वक जीने के लिए हो, ऐसा हर जनता चाहता है। लेकिन सरकार को पता नहीं कि उसकी व्यवस्था और लक्ष्य क्या होनी चाहिए ।पार्टी से कुछ होता नहीं । समाधानात्मक विचार वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व से उसकी कार्य व्यवहार का मूल्यांकन होता है ,अतः योग्य व्यक्ति का चुनाव हो, ऐसा सभी उम्मीद करते हैं। 
दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि अब सियासी हलचल गति पकड़ने लगेगी इसमें कोई संदेह नहीं।  सत्तारूढ़ पक्ष जहां अपनी पकड़ को और मज़बूत करना चाहेगा वहीं विपक्ष अपने दावे पेश करेगा।  राजनीति का बाज़ार लगेगा जिसमें जनता रूपी ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने की जबर्दस्त होड़ लगी होगी।  जनता नेताओं की चिकनी चुपड़ी चालों पर कितना संभल कर चल पायेगी यह कहना मुश्किल है।  चुनाव रूपी कुंभ में राजनीति के महंत अपने अपने अखाड़ो का रुतबा बनाये रखने के पूरे प्रयास करेंगे।  इन अखाड़ों में आपस में दंगल भी देखने को मिलेंगे।  राजनीति के बाजार से जनता बहुत उम्मीद लगाती है और ऐसा हमेशा से होता आया है।  जनता यानि आम जनता को अपनी जिंदगी में सिर्फ सुकून चाहिए।  आजादी के बाद जो लोग पाकिस्तान से विस्थापित होकर आये हैं और जो स्वतंत्र भारत की जनता का हिस्सा बने हैं उनके दर्द उनकी पीढ़ियों में रक्त बन कर बह रहे हैं।  जैसे तैसे जीने का जुगाड़ लगाकर जनता अपना समय काटती है।  पर राजनीतिक हथकंडे ऐसे हैं कि जनता को पहले दुःख दो फिर उन पर राजनीतिक मलहम लगा कर वाहवाही बटोरो ताकि जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठा ले।  जनता की उम्मीदों की फहरिस्त में नौकरियां, रहने को मकान, सुरक्षा, कानून और व्यवस्था का बना रहना, रिश्वत व भ्रष्टाचार की समाप्ति, सस्ती चिकित्सा सुविधाएं, शिक्षा सुविधाएं, अस्थायी शिक्षकों को स्थायी पद, आयकर कानून में छूट, मैट्रो, ऑटो, किरायों में बढ़ती वृद्धि पर लगाम, सीलिंग के नाम पर जनता को पल भर में बेघर करने पर रोक, सीलिंग करने वाले इन्सानियत से कोसों दूर, चाहे जनता के घर में मातम हो जाये या रोजी रोटी छिन जाये, ऐसा करने से पहले उन्हें रोजी रोटी के साधन मुहैया कराना अत्यधिक जरूरी है, सरकारी कार्य में विलम्ब हो तो उसके लिए किसी अधिकारी को दोषी ठहराने के लिए बरसों लड़ना पर यदि आम आदमी सरकारी बिल भरने में एक दिन का विलम्ब कर दे तो उस पर जुर्माना ठोक देना, जितने अधिक कानून हैं उतना अधिक जनता परेशान है। यातायात सिपाही छुप कर वार करता है, उसे सिर्फ चालान करने से मतलब है, आम आदमी यातायात नियमों का पालन न करे तो हाथों हाथ चालान पर यदि यातायात बत्तियां न चलें तो किसी पर जिम्मेदारी नहीं, रेप के दोषी पर सालों मुकदमे चलते हैं, पैरवी करने वाले न जाने क्यों उनका साथ देते हैं, लूट में कत्ल कर देने वालों के रंगे हाथ पकड़ जाने पर उन्हें क्यों नहीं सरेआम फांसी दे दी जाती, क्यों मानव अधिकार जाग उठते हैं, जनता चाहती है कि उन्हें उसी समय दण्ड दे दिया जाये, एम.आर.पी. के नाम पर जनता से ठगी, अस्पतालों में खुली लूट, मरीज को डराकर पैसे ऐंठने वालों की जमात, बैंकों व पोस्ट आफिसों में अधिकारियों की मनमानी, सरकारी बैंकां, कार्यालयों, विश्वविद्यालयों को ई-मेल करने पर जवाब न मिलना डिजिटल युग को धत्ता दिखाना, वैबसाइट अपडेट के नाम पर लाखों बहा देना, रिहाइशी कालोनियों में शराब के ठेके खुलना, स्कूलों से मात्र 60 मीटर के दायरे में पनपते ये ठेके मासूमों का जीवन बरबाद करती दुकाने हैं, स्कूलों के आसपास सिगरेट बेचने पर प्रतिबंध की खिल्ली उड़ना, सड़क किनारे पर कटता बिकता मांस शाकाहारियों के अधिकारों का हनन, अपराध होता देखकर तथाकथित अधिकारियों का अनदेखा करते हुए निकल जाना पर यदि तंग गलियों में किसी बिल्डिंग में कोई काम कानूनी ढंग से भी हो रहा हो तो तथाकथित अधिकारियों का सूंघते सूंघते पहुंच जाना, क्या क्या गिनाये जनता और क्या क्या उम्मीदें रखे।  जनता जब तक परेशान नहीं होगी तब तक वह कैसे नेताओं के चरणों में विराजमान होगी आखिर चुनाव से पहले नेता भी तो जनता के चरणों में विराजमान होते हैं।  हमारे देश में जनता के लिए कानून नहीं है, कानून के लिए जनता है। 
       सोलन - हिमाचल प्रदेश से आचार्य मदन हिमाँचली लिखते है कि आजादी के इन 72 वर्षों में भी अनेक विषमताएं एसी हैं जिन्हें अभी तक सुलझ जाना चाहिए था। हम 21 वीँ सदी मे प्रवेश कर चुके हैं अब युवा पीढ़ी को अधिकाँश मात्रा मे साँसद होनाचाहिए ताकि वे सौ साल आगे की सोच लेकर आगे बढे। गत वर्षों का यदि आकलन करें तो अनेक समस्याएं ऐसी हैं जो यथा वत हैं ;जिनका निराकरण हो जाना चाहिए था। अपने  ही देश मे हिन्दी भाषा का वर्चस्व होना चाहिए था । पूरा देश एक सँविधान के अनुसार चलना चाहिए। समानता समरसता समभाव के दिशा मे देश आगे बढना चाहिए था ।फूट डालो और राजनीति करो प्रणाली समाप्त होनी चाहिये। मानवता युक्त और जाति मुक्त भारत होना चाहिए। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें पढे लिखे युवा ही सुलझा सकते हैं। इस लिए चुनाव 2019 मे पढे लिखे युवाओं की भागीदारी लोकसभा साँसद के रूप मे सुनिश्चित की जानी चाहिए।
समस्तीपुर - बिहार से हरिनारायण सिंह ' हरि ' लिखते है कि लोकसभा चुनाव देश की दिशा और दशा तय करेगा ।भारत की जनता अब धीरे -धीरे परिपक्वता की ओर बढ़ रही है, हालांकि साम्प्रदायिकता और जातीयता का बोलबाला अभी भी कायम में । फिर भी, धीरे-धीरे ही सही आम मतदाताओं में यह धारणा घर कर रही है कि हमें जातीयता और साम्प्रदायिकता से ऊपर उठना ही होगा, अगर हम देश की तरक्की, विश्व में ग्रीवा उठाकर चलना और आतंकवाद को मिटाना है तो ।हां, सबल विपक्ष की भी दरकार है, किन्तु सकारात्मक विपक्ष की भूमिका नहीं निभायी जा रही ।लेकिन जनता सबकुछ समझ रही ।जनता को इस चुनाव से यह अपेक्षा है किन्तु केन्द्र में सबल सरकार बने जो अपने विकास, स्वाभिमान, रोजगार और शिक्षा के एजेंडे को सही तरीके से लागू कर सके ।
देहरादून - उत्तराखंड से डाँ. भारती वर्मा लिखती है कि जनता हर चुनाव से सुधार, विकास, अच्छी कानूनी व्यवस्था, सुधरती अर्थ व्यवस्था, सीमाओं की सुरक्षा, आतंकवाद का अंत, न्याय प्रक्रिया में सुधार, गरीबीका अंत, उत्तम सार्वजनिक सुविधाएँ, ईमन्दार शासक एवं प्रामाणिक शासन आदि अनेक उम्मीदें लगाती है, मत देने जाती है। ऐसा होते-होते सत्रहवीं लोकसभा चुनाव आ गया है। समय के साथ मतदाता के महत्व को समझते हुए सरकारें, राजनैतिक दल कुछ न कुछ करने के लिए विवश होते हैं तो सभी क्षेत्रों में कुछ न कुछ विकास होता ही है।
बोकारो - झारखंड से भोला नाथ सिंह लिखते है कि लोकसभा चुनाव से लोगों की बड़ी अपेक्षाएँ हैं। यह दौर कठिन स्थितियों का दौर है। एक ओर आतंकवाद मुँह फाड़े खड़ा है तो दूसरी ओर विदेश व्यापार नित नई समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है। देश के भीतर अशांत वातावरण तैयार करने का प्रयास किया जाता है। बयानबाज़ी में कोई किसी से कम नहीं पर बयानों में कोई दम नहीं‚ सिवाए अराजक एवं असंतोष का वातावरण निर्मित करने के। 
आरक्षण एवं उदारवादी शिक्षा व्यवस्था हमारी मज़बूती को खोखला कर रही हैं। जनता को मुफ़्तखोरी की लत लगाई जा रही है जिसे वह अपना अधिकार समझने लगी है। एक दूसरे पर दोषारोपण ही लोगों का एकमात्र उद्देश्य बना हुआ है।
घोटालों पर सख्ती बरती नहीं जा रही है। कई देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि न होने के कारण घोटालेबाज़ भागकर उन देशों में पनाह ले रहे हैं। देश में अधिकारी वर्ग स्वार्थी एवं कामचोर होते जा रहे हैं।
आज़ एक ऐसे सरकार की आवश्यकता है जो संपूर्ण भारत में एकरूपता लाए। भ्रष्टाचार समाप्त हो। सभी वर्गों को समान अधिकार मिले। भारत की स्थिति पूरी दुनिया में मज़बूत हो। लोग अपना कार्य पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से करें। किसी राज्य‚ धर्म या वर्ग को विशेष दर्जा देकर वैमनस्यता को न फैलाया जाए। आज़ ऐसी ही एक सरकार की ज़रूरत है।
  इन्दौर - मध्यप्रदेश से सिंघई सुभाष जैन लिखते है कि हिन्दुस्तान की प्रजा मात्र पाँच चीज़े चाहती है भरा हुआ पेट, वर्षा - धुप से बचने के लिये छत, तन के लिये आवरण, शहर -कस्बे में शांति और स्वाभिमानी जीवन यापन।
जिस राजनैतिक दल ने देश के हित की बात की हो, लाभ के लिये देश को प्राथमिकता दी हो और झूठ नहीं बोला हो। उसे लोक सेवा का अवसर मिलना चाहिये।
कुरुक्षेत्र - हरियाणा से ममता बब्बर लिखती है कि राजनितिक दल,  कार्यवाहक सरकार,  निर्वाचन आयोग व जनता सभी ने अपना - अपना मोर्चा संभाल लिया है | सभी दल व राजनेता जहाँ खुद को बेहतर दिखाने में व्यस्त  है तो जनता सभी को बड़े गौर से सुन रही है समझ रही है और फिर से सपने सजों रही है की आने वाली सरकार रोजगार देगी शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देगी व उम्मीद कर रही है की चुनाव बड़े ही पारदर्शी माध्यम से शान्ति पूर्वक आयोजित हो जहाँ पर आचार सहिंता, आदर्श आचार संहिता को परिभाषित करे | जनता की उम्मीदों की बात करे तो वो नई नहीं है वो सब हर सावन में बहार के जैसी है लेकिन जनता की उम्मीदों की बहार अब तक कही विलम्बित है ज़ब हम 17वीं  बार चुनाव पर्व को मना रहे है | ज़ब 1951 में पहली बार  चुनाव हुए तो बहुत सी आशाए जागृत हुइ की जनता की समस्याएं  जैसे गरीबी, रोजगार, शिक्षा, समानता,  शान्ति आदि का निवारण होगा  जो आज भी ज्यो की त्यों  बनी हुई  हैं और एक बार फिर जनता अपेक्षा कर रही है की आने वाली सरकार इन अब उम्मीदों को पूरा करेगी | इन सब के अलावा कुछ नई आशाए भी है जैसे भारत पाकिस्तान के बढ़ते विवाद को निपटाया जाएगा , तथ्यों को उनके शुद्ध रुप में सामने लाया जाएगा , मिडिया की स्वतंत्रता पर जोर दिया जाएगा ,  शिक्षा व स्वास्थ्य पर अधिक खर्च का प्रावधान होगा इत्यादि | अब ये समय ही तय करेगा की आने वाली सरकार लोकसभा 2019 के बाद जनता की उम्मीदों को पूरा कर पायेगी या ये अपेक्षाएं अगले चुनाव की फिर से प्रतीक्षा करेंगी ।               
जबलपुर - मध्यप्रदेश से अनन्तराम चौबे अनन्त लिखते है कि जनता से हमारी गुजारिश यही है मोदी जी को फिर से एक बार प्रधानमंत्री बनना चाहिये  मोदी जी ने विश्व में भारत की हिन्दुस्तान की जो इज्जत बढाई है  स्वातंत्रता के बाद ऐसा कारनामा कोई नही कर पाया है इस बार मोदी जी जीतकर आयेगें और जो करके दिखायेंगे हमारे देश की शाख और भी बढ़ जायेगी आतंकवाद का नामो निशान मिट जायेगा काश्मीर से धारा 370 व 35ए समाप्त हो जायेगी । इस समय देश में ऐसा और कोई दमदार ईमानदार नेता नहीं है ।
समालखा - हरियाणा से नीरू तनेजा लिखती है कि उम्मीद ये भी है कि बेटियाँ शिक्षित व स्वावलंबी होने के बावजूद सुरक्षित नहीं हैं, यही कारण है कि आज भी बहुत से माता-पिता बेटियों में काबलियत होने के बावजूद उन्हें बाहर भेजने से घबराते हैं! जबकि सच्चाई ये है कि बेटियाँ तो क्या विवाहित महिलाएं भी घर व बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं  ! इसके लिए पूर्णतः सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि उनके सुरक्षा कर्मचारी हर गली-कूचे में तो हो नही सकते ! जबकि महिलाएं अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं ! 
                        आगामी सरकार से हम यही चाहेंगे कि ऐसे विकार उत्पन्न करने वाली जड़ को ही दूर किया जाए! पिछले कई वर्षों से सिनेमा ही नहीं बल्कि सीरियल व टीवी शो ने भी असभ्यता की सारी हदें पार कर दी हैं जिन्हें कोई सभ्य परिवार एक साथ नहीं देख सकता ! यही कार्यक्रम गलत प्रवृत्ति को भड़काते हैं व खामियाजा बच्चियों को भुगतना पड़ता है ! यदि ऐसे शो व सिनेमा इत्यादि पर कठोरता से अंकुश लगाया जाए व कठोर सजा का भी  प्रावधान हो तो महिलाओं व बच्चियों पर होने वाली हैवानियत पर काफी कमी आ सकती है और यहीं से घरों में सहमी हुई जबकि स्वावलंबी बनने की इच्छुक बेटियाँ स्वछंद विचरण कर सकती हैं ! 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश से शशांक मिश्र भारती लिखते है कि जब जब लोकतंत्र का महापर्व आता है जनता बहुत सारी उम्मीद पालती है ।बहुत सारी उम्मीदें बंधायी भी जाती हैं ।या कहूं मुंगेरी लाल से सपने पालते हैं ।पर  आजादी के सात दशक बाद भी उम्मीद के तराजू पर कोई दल खरा नहीं उतर पा रहा ऊपर से राजनीति का स्तर लगातार गिर रहा ।जाति वर्ग धर्म के मुद्दे हावी हैं मतदान से प्रत्याशी चयन तक ।यह सबसे बड़ी बाधा है ।यदि यह टूटे तो कुछ सच हो सकता है ।
इन्दौर - मध्यप्रदेश से डाँ. चन्द्रा सायता लिखती है कि शहरी जनता के लिये   चौड़ी सड़कें, स्वास्थ्य सुविधाएं, रोजगार उपलब्धता, आई टी के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास,नये नये उपग्रहों  का निर्माण  कर उनका सफल प्रयोग कर देश के सामरिक क्षेत्र में अभूत पूर्व  वृधि    आदि  कार्य हुए।
    इसी प्रकार70 से75 प्रतिशत   गावों  मे बसने वाली  जनता के लिए घरों में  शौचालय  वनाने,बिजली  पहूचाने, जीरो बैलेंस से बैंक  खाते खुलवाना, किसानों की कर्जा माफी,बचों के शिक्षा, स्वास्थ्य  आदि  सबंधी  योजनाओं  को बनाकर  उनका कार्यान्व्यन करवाना आदि कार्य किये  गये।
   अधिकांश  लोग इस विकास को स्वीकार करतें हैं
      इन सभी कार्यों को अभी पूर्ण  करना  तथा  नये मुद्दों पर योजना  बनाकर सुनिश्चित करना अभी बाकी है ।श्रेष्ठ   कार्यो का  सिलसिला  अनवरत होता है।
गुरुग्राम - हरियाणा से भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश" लिखते है कि देश में सबसे बड़ी आवश्यकता है शिक्षा, स्वास्थ्य, एवं रोजगार वर्तमान में सरकार इन तीनों ही क्षेत्र में असफल प्रतीत होती दिख रही है। इधर कुछ दिनों से इन सभी क्षेत्रों में सरकार ने बजट में कटौती की है। जनता लोकसभा चुनाव दो हजार उन्नीस में सबसे पहले रोजगार फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति ही उम्मीद लगाए बैठी है सेवाएं बेहतर हो, ताकि लोगों को बेहतर सुविधाएं एवं युवाओं को रोजगार मिले। बेरोजगारी सुरसा की तरह बाहें पसारे फैल रही है। दुनिया में न मंदिर काम आता है न मस्जिद काम आता है मिल जाए किसी ग़रीब को मजदूरी तो गरीब के घर खुशियां तमाम आता है। रक्षा और हथियार खरीदना जरूरी है लेकिन किसी गरीब का घर उजार कर नहीं गरीब के घर खुशहाली तभी आएगी जब उन्हें काम धंधे मिलेगा। आजतक एक भी बंदूक ऐसा नहीं बना जो रोटी उगलती हो।सच कहिए तो देश को वर्तमान में आवश्यकता बुलेट ट्रेन की नहीं बल्कि जो हैं, उन्हें ही ठीक तरीके से चलाने की है। कुछ लोगों को शायद मेरे शब्दों से ठेंस पहुंच सकती है। मैं उनसे पहले ही माफी चाहूंगा। एक बात जो छूट गईं वह ये कि सरकार किसानों के प्रति कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गई है। जिसे आर्थिक मदद के रूप में साल के छः हजार रुपए देगी लेकिन उनके भी कुछ टर्म एंड कंडीशन ड हैं ; जिससे यह सुविधा सभी किसानों तक नहीं पहुंचेगी। इससे अलग कुछ राज्य सरकारें साधुओं को दो हजार रुपए महीने पेंशन या मदद देगी तब किसानों को मिलने वाली मदद बेइमानी लगती है। जबकि कृषि से पर्याप्त आय नहीं होने से बहुत से किसान आत्महत्या तक कर लेते हैं। लिखने बैठें तो शायद शब्द कम पड़ जाएं लेकिन मेरे विचार से मतदाताओं की लोक सभा चुनाव दो हजार उन्नीस में पहली प्राथमिकता रोजगार ही होगी।कम समय में मैं शायद इससे बेहतर नहीं सोच सकता सरकार किसी की भी बने पर रोजगार वर्तमान समय में सबसे बड़ी आवश्यकता है ।
गाडरवारा - मध्यप्रदेश से नरेन्द्र श्रीवास्तव लिखते है कि भारतीय लोकतंत्र की परम्परा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके  अनुसार जनता अपनी व्यक्तिगत राय देकर आगामी निर्धारित समय- सत्र के लिये किसी व्यक्ति एवं दल विशेष के प्रति सहमति देकर,उसके विजयी होने की अभिलाषी होती है।
राजनीति में व्यक्ति और व्यक्ति से बड़ा दल माना जाता है। इन दोनों ही रूप में
जनता का किसी एक के प्रति लगाव और रुझान होता है।
इस सबके बावज़ूद वह अप्रत्यक्ष रूप से यह भी चाहता है कि जो सरकार जीतकर आये वह राष्ट्रीय और सामाजिक क्षेत्र में ऐसी जनसुविधा के कार्य करे जिससे समाज विकसित भी हो, खुशहाल भी। और राष्ट्र सुरक्षित।
इस संदर्भ में वह वर्तमान सरकार के इन पाँच सालों में हुये विकास,जन-सुविधा के लिये किये गये कार्यों की समीक्षा करता है।सामाजिक विषयों पर चिंतन करता है और तदनानुसार वह अगली अवधि के लिये अपने मताधिकार से स्वप्निल सरकार का मन बनाता है। 
    वह चाहता है कि उसके मत से एक ऐसी सरकार बने जो उसके और उसके परिवार के बल्कि जनता के जीवन संघर्ष को खत्म भले ही न कर पाये परंतु कम तो कर सके। महंगाई,सुरक्षा,लूट-खसोट से उसका बचाव हो। रोजगार के अवसर मिलें। आने-जाने में सुरक्षित भी महसूस करे और साधन व सामग्री भी सहज और सस्ते में उपलब्ध हो।महिलाओं के साथ कोई असम्मानजनक घटनाऐं न हों।दोषियों को सजा मिले। ऐसा न लगे कि अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा हो।उन्हें बचाया जा रहा हो।
सच पूछा जाये तो जनता के सपने रोजी-रोटी और सुरक्षा तक ही सीमित होते हैं ।
गुरूग्राम - हरियाणा से डाँ . बीना राघव लिखती है कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और वादों-संवादों की झड़ी लगी है। कुछ नये हैं,  कुछ पुराने हैं ठीक वैसे ही जैसे कुछ नये प्रतियोगी हैं तो कुछ पुराने।  दौड़ रहे हैं... खूब दम लगाकर दौड़ रहे हैं पर रेस का घोड़ा कौन साबित होगा,  यह तो वक्त ही बताएगा जो ज्यादा दूर नहीं है। धुरंधर ऐड़ भी लगा रहे हैं,  और तंगड़ी भी लगाकर दूसरे को गिराने की फिराक में हैं,  उठ रहे हैं....गिर रहे हैं फिर धाव रहे हैं , धावक जो हैं। धावो, खूब धावो मगर एक बात सुनते जाओ,  "मुँह के बल न गिर जाना। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की साख है तुम्हारे हाथों में।  ये जो चुनाव चिह्न का परचम लहरा रहे हो न चमन में वो दर असल अमन के प्रजातंत्र का गौरव ध्वज है। उसे गिरा न देना करकमलों से....।  करोड़ों नहीं,  अरबों जन की निगाहें तुम पर हैं।  देखो, अपने पद चापों की खुर-ताल से ज़मीन खंड-खंड न कर देना वरना तुम्हारी 🌱जड़ें हिल जाएँगी। यह ज़मीन ही है जो तुम्हे खाद-पानी देती है।  इस काबिल भी बनाती है कि आसमान में उड़ सको।  उड़ लो हवा में मगर रहे ध्यान रहे  इतना, पतंग नहीं हो तुम....., जो कटी तो कहाँ गिरी पता ही नहीं,  🌳 के परींदे की तरह वापस आ जाना।  उसकी शाखें ही आश्रय दे सकेंगी तुम्हें क्यों 👉कि उसकी जड़ें गहरे पैठी हैं। देश रूपी वटवृक्ष की शाखें परींदा नौंच ले,  लहूलुहान कर दे तो कोई ठिकाना है उसका?? 
सब देखना ये आसमाँ के सितारे,  मगर ऐ चुनने वाले! उस सितारे को चुनना जो  🔥 न उगले और न ही निष्क्रियता की बर्फ जमा ही हो। चुँधियाई होंगी तुम्हारी आँखें उसकी तीश्गी से मगर थोड़ा ठहरना और पलक झपकाए विचारना कि कौन खुद को चमका रहा और कौन चमन को.....। बस उसी को तुम चमका देना क्योंकि यह सितारा ऐसा होगा कि जो तुमसे ही 💡लेगा और परावर्तन से कई गुना कर उससे जग चमका देगा। 
शिवपुरी - मध्यप्रदेश से शेख़ शहज़ाद उस्मानी लिखते है कि  भारत और भारत का लोकतंत्र क़ायम है। भारत की सांस्कृतिक जड़ें क़ायम हैं! उम्मीदों पर ही इस बार के लोकसभा चुनावों और कुछ स्थानों पर विधानसभा चुनावों के पारम्परिक आयोजन होने हैं। सवाल यह है कि कुसंस्कारों से बचाव करते हुए हमें स्वच्छ इंटरनेट, स्वच्छ व सुरक्षित सेल-फोन नेटवर्क, सुरक्षित व सर्वधर्म समभाव युक्त वसुधैव कुटुम्बकम् सार्थक करती राजनीतिक और सामाजिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक व्यवस्था, सभ्य नागरिक आचार-संहिता युक्त भारतीय नागरिकता, ज़मीनी आवश्यकतायें पूरी करते हुए ज़मीन से जुड़े देसी, लघु व निजी या देसी औद्योगिक स्थायी सौ फ़ीसदी रोज़गार व्यवस्था, शिक्षिकों को उच्च स्तरीय प्रशिक्षण व वेतनमान व्यवस्था आदि ... चुनी जाने वाली सरकार क्या हमें दे पायेगी? क्या ऐसी इच्छा शक्ति वाला कोई दल है? अथवा केवल विकसित देशों के साथ डील्स के ज़रिए होड़बाज़ी में छद्म विकास का चोला पहने भारत को, उसके निर्धन, अशिक्षित-बेरोज़गार, शिक्षित-बेरोज़गार समाज को धोखे में रखने मात्र की राजनीतिक चाल?
हम जागरूक निष्पक्ष मतदाता व नागरिक हैं। हम किसी भी बड़े  दल के कारनामों की बातों में नहीं आ सकते। मीडियाई दावों, उपलब्धियों व शिक़ायतों से सम्मोहित या प्रतिकर्षित नहीं हो सकते।
लोकतंत्र मज़बूत है, तो मज़बूत विकल्प उभरेगा इस चुनाव में; उभरना ही चाहिए लोकतंत्र क़ायम रखने व परिमार्जित करने हेतु। 
हम भारतीयों से हज़ारों सालों के  बहुत से सही तथ्य छिपाये गये हैं, ऐसा लग रहा है पूर्वाग्रह ग्रसित या षड़यंत्र पूर्वक योजनाबद्ध भ्रामक/भड़काऊ मीडियाई जानकारियों को पढ़कर, सुनकर व देखकर। हम इतिहासकार  व इतिहास के विश्लेषणकर्ता तो हो नहीं हो सकते! हम मीडिया पर निर्भर हैं और मीडिया सूचनाओं, संसाधनों पर (जो कि प्राय: बिके हुए हैं या हो सकते हैं)! एक-दूसरे के धर्म पर कीचड़ उछाल कर माहौल बिगाड़ने से ही हम सही विकास नहीं कर पा रहे हैं।
सभ्यता और संस्कृति की विकास यात्रा में तत्कालीन हालात व प्रवृत्तियों के चलते अमानवीय कृत्य करने वालों की सज़ा इस सदी की निर्दोष पीढ़ी को नहीं दी जानी चाहिए।
आम मतदाता की, देश की ज़मीनी समस्या से जूझ रहे नागरिकों की तरफ़ से यही तो कहा जा सकता है!   इस बार विज्ञापनों, लहरों, लालच-धमकियों, प्रलोभन वाली योजनाओं के बजाय पांच सालों में उनकी व हमारी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने या न करने के आधार पर ही समझदार मतदाता मतदान करेगा न!!
 इन दिनों वोट-बैंक वाले गिने-चुने मुद्दों पर ही राजनीति हो रही है, न कि देश व जनतंत्र हितार्थ।
सच तो यही है कि देशवासियों के साथ छल की व भावात्मक शोषण की अति हो गई है। यह महत्वपूर्ण अवसर है अपनी अपनी आंखों को खोल कर विवेकपूर्ण फैसले लेने का। 
रतनगढ़ - मध्यप्रदेश से ओमप्रकाश क्षत्रिय " प्रकाश " लिखते है कि सब से पहली उम्मीद यह है कि साफसुथरे और अच्छे व्यक्ति राजनीति में आए. दूसरा, वे व्यक्तिगत स्तर से ऊंचा उठ कर देशहित की बात करें. तीसरा, वे रोजगार के अवसर पैदा करें. चौथा, मुफ्त में देने की योजना से दूर रहे. चौथा, कश्मीर की समस्या का समाधान करे. पांचवा, भेदभावपूर्ण कानून समाप्त करें. छठा, एक देश और एक कानून लागू हो.कश्मीर देश का अंग हो. अलग से स्वायत्ता आदि समाप्त की जाए. सातवां, देश में अंवेषण और खोजपरक कार्यों को प्रोत्साहित किया जाए, ताकि देश की प्रतिभा बाहर न जा पाए. 
ऐसे वादें करें. ऐसी उम्मीद जनता की है. ऐसी विचारधारा विकसित की जाए. ऐसी उम्मीद जनता चुनाव से लगाए हुए है. देखते हैं यह चुनाव हमें क्या देता है. 
पटना - बिहार से श्रुत कीर्ति अग्रवाल लिखती है कि किसी     विज्ञापन, किसी भाषण या किसी के कहने में आकर अपना बहुमूल्य वोट बर्बाद करने के बजाय मतदाता स्वयं सोंचे कि वह अपनी सरकार से क्या चाहता है और कौन वह प्रत्याशी है जो उसकी आशाओं आकांक्षाओं पर खरा उतरेगा।

मेरे विचार से स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद अब सरकारें अनुदान बाँटने के स्थान पर लोगों को मेहनतकश बनाने पर जोर दें। मेहनत का उचित मूल्य मिलना चाहिए पर आलस्य पर, विभागों में ठीक से काम नहीं करने वालों पर अंकुश भी कसा जाना चाहिए। काले धन जमा करने वाले लोगों पर, भ्रष्टाचारियों और स्त्रियों के साथ गलत व्यवहार करने वालों में डर का माहौल होना चाहिए।

राजनीति लोगों को बाँटने वाली नहीं, सबको साथ लेकर चलने वाली हो। 

विदेशों की तरफ देखने की बजाय अगर हम समस्याओं का समाधान अपनी संस्कृति, अपने इतिहास में खोजें तो? क्योंकि मेरे विचार से विकास का अर्थ शायद केवल पुल और माॅल बनाना नहीं है बल्कि सुदूर गांव गँवईं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और यातायात की सुविधाएं इत्यादि को विकास कहा जाना चाहिए। चकाचौंध से आकर्षित शहरों की तरफ खींचे चले आते ग्रामीणों के अपने गाँव में वो प्रदूषण रहित हवा, शांति और स्वच्छता हो कि बड़े बड़े शहरों वाले अपनी हर छुट्टी में वहीं खिंच आए  
इन्दौर - मध्यप्रदेश से वन्दना पुणतांबेकर लिखती है कि जब भी चुनाव का दौर आता है, तब पार्टी नए-नए दावे करती है, किसानों के कर्ज माफी जैसे प्रलोभन देकर वोट हथियाने की राजनीति से कैसे देश चल सकता है। यहां की जनता हमेशा माफी का कटोरा लिए बैठी रहती है। कर्ज माफ हो जाने से हमें आतंक आरक्षण जैसे मुद्दों से छुटकारा मिल सकता है,क्या..? नहीं, यहां  चुनावी राजनीति में परिवारवाद और गठबंधन का जोड़ कितने दिनों तक सत्ता में रह सकते है। और क्या वह देश का भला कर सकता है। यह हम सभी भली-भांति जानते हैं अब जनता को जागरूक होने का समय आ गया है हमें किसी के प्रलोभन में सत्ता का चुनाव नहीं करना है।हम स्वालम्बी भी हैं, हमें अपने स्वालंबन से खुद को खड़ा करना है ना कि किसी कर्ज माफी जैसे छोटे मोटे प्रलोभन से देश के 4 किसानों का कर्ज माफी से देश के सभी किसानों की समस्या हल नहीं हो सकती।  युवा बेरोजगारों से गाँव भरे पड़े हैं। हमें उन युवाओं को साक्षर तथा स्वालंबन की मार्ग पर उन्हें लघु उद्योग कुटीर उद्योग के साधन अर्जित कर उनको सक्षम बनाने की जरूरत है। ना कि कर्ज माफ कर उन्हें निकम्मा बनाने की, हर व्यक्ति को अपने ऊपर आत्मनिर्भर होना चाहिए ना कि सरकार के ऊपर चुनावी दौर आते ही  राम जन्मभूमि  आरक्षण  जैसे मुद्दों को  उठाकर  समाज में जातिवाद पैदा करना  और अपनी अपनी झोली भरने के लिए परिवार  एकत्र करना  कहां की राजनीति है।
हमारे देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक अच्छे पंतप्रधान जो वर्तमान में कार्यरत हैं और उन्होंने एक उज्जवल भविष्य का सपना साकार करने की कोशिश में कई कदम आगे बढ़ाए हैं। हमें प्रगति के राह पर अपनी भविष्य की बागडोर उन्हीं के हाथों में सौंपने का फैसला करना चाहिए ।जिससे देश समृद्धि और विकासशील और आतंकवाद से मुक्त हो सकेगा। 
महाराष्ट्र - नवीमुम्बई से चन्द्रिका व्यास लिखती है कि पहली बात यह है कि हमारे यहाँ सरकार का चुनाव नागरिक नहीं  करती ,हम सांसद को चुनते हैं और सभी सांसद मिलकर प्रधान चुनती है यानिकी गठबंधन और कहो मिली जुली सरकार.... इसमें सभी अपना अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं! 
यदि जनता जनार्दन सरकार आती है तो उसे जनता के मांग जो उनके हित में है पूरी करने की कोशीश करनी चाहिये चूंकि जनता की , सरकार सेअपेक्षायें तो सदा चलती रहेंगी! 
आज मोदी सरकार ने अपने शासन काल में क्या किया यह यदि विरोधी पक्ष वाले पूछते हैं तो उनके कार्यकाल में न्याय संगता को देखते हुए हमारे हित में जो कार्य उन्होनें किये हैं उसे हमें जग जाहिर करना होगा! 
(1) सरकार एैसी होनी चाहिए जो देश के हित के लिए  सोचती है !
(2) जो अपनी राष्ट्रभाषा(जो अभी नहीं  है) हिंदी को महत्वता प्रदान करे! विदेशों में किसी भी मुद्दे को हल करने का प्राविधान (हिंदी) अपनी भाषा में करें! जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कर वहां भी अपना सिक्का जमाया !
(3) देश के किसानों की मेहनत का सही मूल्यांकन होना चाहिए! प्रकृति विपदा आने पर उन्हें सरकार से पूर्ण मदद मिलनी चाहिए! नई टेक्नालॉजी से अवगत करा एवं गरीबी रेखा से नीचे के किसान की योग्य रुप से मदद कर उन्हें  बढावा देना चाहिए ! देश की उन्नति और रक्षा में काम आने वाला प्रथम हथियार किसान है !
(4) जो देश की सेना को सियासत से दूर रख सशक्त बनाये! युद्ध में परिस्थिति -नुसार निर्णय लेने का अधिकार दे! उनके परिवार की जिम्मेदारी लें! 
हमारी और देश की रक्षा का भार सेना पर ही है! 
(5) नया भारत है अत: भ्रष्टाचार को जो उखाड़ फैंके एैसी सरकार होनी चाहिए! 
(6) अन्तर्राष्ट्रीय  ,विदेशी दौरे, देश के हित के लिये करे! 
(7) जातिवाद , साम्प्रदायिकता को दूर कर सके! 
(8) भारतीय संस्कृति और संस्कार में अपने आने वाली पीढी  को बांध सके! इसके लिए हमे शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना होगा! उच्च शिक्षा अपने देश में ही प्राप्त हो एैसी व्यवस्था  होनी चाहिए !
(9) आरक्षण का मुद्दा केवल जातीय नहीं आर्थिक आधार पर होना चाहिए! 
(10) वृद्धों के लिए रेनिन और इन्श्योरेन्स की व्यवस्था होनी चाहिए! 
(11) पर्यावरण  और स्वच्छ भारत अभियान पर ध्यान दे (जो अभी अमल में जोर शोर से हो रहा है) 

जनता की मांगे तो अनंत हैं! 


परिचर्चा से स्पष्ट हुआ है कि आने वाली सरकार से 
बहुत अधिक उम्मीदें हैं। क्या सरकार पूरी कर सकती है ? आने वाली सरकार कुछ तो अवश्य पुरी करेगी । कुछ का पूरा करना असम्भव होता है । जनता को ऐसी उम्मीदें रखनी चाहिए । जो सरकार पूरी करने में सक्षम हो सके ।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
                                                ( आलेख व सम्पादन )


Comments

  1. जय हिन्दी जय भारत


    जैमिनी अकादमी
    द्वारा

    परिचर्चा

    " लोकसभा चुनाव -2019 से जनता की उम्मीदें "

    सक्षेंप में परिचर्चा पर अपने विचार तथा अपना एक फोटों शीध्र ही नीचें दिये गये WhatsApp पर भेजने का कष्ट करें ।
    परिचर्चा को ब्लॉग bijendergemini.blogspot.com पर प्रसारित किया जाऐगा ।

    निवेदन
    बीजेन्द्र जैमिनी
    पानीपत
    WhatsApp Mobile No.
    9355003609

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सुंदर व समसामयिक बधाई

      Delete
  2. परिचर्चा पढ़ कर नईनई जानकारी मिली ।वाकई एसी परिचर्चा अखबार व पत्रिकाओं मे भी आने चाहिए ।ताकि जागरुकता बढ़ सकें ।हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको इस परिचर्चा के लिए

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  3. आदाब। इस परिचर्चा के माध्यम से 'अन्य माध्यमों से प्रसारित' विचारों से हटकर मौलिक व सार्थक जानकारी हासिल हो रही है। समयानुकूल बहुत ही उपयुक्त परिचर्चा हेतु हार्दिक बधाई और आभार।‌ मेरी टिप्पणी को यहां स्थापित करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया।

    शेख़ शहज़ाद उस्मानी
    (14-03-2019)

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