क्या भारतीय प्रधानमन्त्री का चुनाव जनता द्वारा होना चाहिए और क्यों

           भारत में प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा नहीं होता है बल्कि जनता द्वारा चुने सासंंद द्वारा होता है । जनता कभी भी प्रधानमंत्री को नहीं चुनती है । इसी विषय को लेकर आज " जैमिनी अकादमी " ने परिचर्चा  का आयोजन किया है । जो विचार आये है उन्हें पेश करते हैं :-
जबलपुर - मध्यप्रदेश से विवेक रंजन श्रीवास्तव लिखते है कि भारतीय संविधान दुनिया के श्रेष्ठ संविधान में से एक  है क्योंकि हमने अनेक देशों की राज्य व्यवस्थाओं के अध्ययन के बाद इसे तैयार किया है । जहां अमेरिका में राष्ट्रपति में ही सारी वैधानिक ताकत सन्नहित होती है वही हमारे देश मे यह ताकत प्रधानमंत्री के पास है किंतु वह राष्ट्रपति के नाम पर कार्य करता है । वर्तमान में हमारे यहां प्रधानमंत्री सीधे नही चुना जाता , सबसे बड़े संसदीय दल का नेता जनता के अप्रत्यक्ष वोट  से  प्रधानमंत्री चुना जाता है ।अनेक बार व्यक्ति की व्यक्तिगत क्षमता  उसे पद से अधिक महत्वपूर्ण बना देती है । इन्दिरा गांधी ,और नरेंद्र मोदी हमारे ऐसे ही प्रधानमंत्री हुए हैं। इन्हें उनकी पार्टियों ने चुनाव से पहले ही अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया था । इस तरह उनके नाम पर उनकी पार्टी के अन्य सांसदों की जीत भी तय होती रही है । 
          देहरादून - उत्तराखंड से डाँ. भारती वर्मा बौड़ाई लिखती है कि भारतीय प्रधानमंत्री का चुनाव जनता के द्वारा होना चाहिए क्योंकि रजनैतिक दल चुनाव जीतने के लिए गठबंधन, समझौते,जाति, धर्म... किसी भी प्रकार से चुनाव जीतने का प्रयास करते हैं। स्वयं को पूर्ण बहुमत नहीं मिल रहा होता है तो दूसरे के आते हुए पूर्ण बहुमत में किसी न किसी प्रकार से रोड़ा अटकाने का प्रयास करते हैं। परिणाम स्वरूप हंग संसद, खरीद-फ़रोख़्त, राजनैतिक दलों द्वारा सरकार को ब्लैकमेल करना । एक आम बात हो जाती है। अच्छे से अच्छा प्रधानमंत्री भी कमजोर हो जाता है। यदि जनता के द्वारा प्रधानमंत्री चुन लिया जाए तो उपरलिखित समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। कम से कम सरकार गिरने-गिराने के संकटों से बचा जा सकता है।
             समस्तीपुर - बिहार से हरिनारायण सिंह ' हरि ' लिखते है कि यह बहुत ही मौजू विषय है ।विश्व में लोकतंत्र की दो प्रणाली प्रचलित है -संसदीय और अध्यक्षात्मक ।संसदीय प्रणाली ब्रिटेन में और अध्यक्षात्मक प्रणाली अमरीका में प्रचलित है ।भारत में अध्यक्षात्मक प्रणाली  (इसमें  प्रकारांतर से राष्ट्रपति के बदले प्रधानमंत्री का सीधे देश की संपूर्ण जनता के द्वारा चुना जाना भी हो सकता है।) इसलिए अच्छा रहेगा कि इससे -
1- देश की संपूर्ण जनता सीधे -सीधे अपने प्रधानमंत्री को चुनेगा ।
2- इससे  जातीयता की भावना का शमन होगा, क्योंकि कोई एक जाति या जाति समूहों का इस विविधता भरे देश में एकाधिपत्य होने की बहुत क्षीण संभावना रहेगी ।
3- स्थायी और बिना दवाब की सरकार होगी ।प्रधानमन्त्री अपने मंत्रियों को चुनने और अपने एजेंडे को चलाने में सहूलियत और स्वतंत्रता महसूस करेंगे ।
4- सबसे बड़ी बात राजनीति से क्षेत्रीयता जैसी संकुचित भावना  तिरोहित हो जायेगी ।
इन कारणों से अगर प्रधानमंत्री का सीधे जनता के द्वारा चुनाव होगा, तो वह सभी तरह देश के हित में होगा ।
5- इतने अधिक  सांसदों पर होनेवाले खर्च बच जायेंगे और उससे देश का और अधिक विकास हो सकता है ।
             पानीपत - हरियाणा से मुरारी लाल शर्मा लिखते है कि  भारत के प्रधान मंत्री को जनता दुआरा ही चुना जाना चाहिये हमारी चुनाव प्रणाली ठीक लेकिन कुछ वोटर बिकने वाले है कुछ अपना हित सोचते है जबकि हमें राष्ट्र का हित सोचना चाहिये ।
           शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश से शशांक मिश्र भारती लिखते है कि भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है ।इस पर मैंने कई बार विचार किया ।वर्तमान समय में बहुमत दल का नेता या गठबन्धन की सहमति से प्रधानमंत्री का चुनाव होता है ।जिससे कई बार बहुमत या आमसहमति के अभाव में योग्य अनुभवी राजनेता देश के लिए कुछ नहीं करपाता ।ऐसा कई बार हो भी चुका है ।यदि सीधे जनता के पास अधिकार होगा तो विकल्प तो होंगे ही योग्यतम राजनेता मिलेंगे ।वर्तमान में गिरते राजनीति के स्तर में रोक लगेगी ।कुछ परिवारों के स्थान पर कोई भी किसी दल का आगे बढेगा ।राजनीति में कुण्ठित मानसिकता के कारण चुनाव के समय अनाप-शनाप बयानवीरों पर लगाम लगेगी ।भारत के लोकतंत्र के लिए एक नये अध्याय का आरम्भ होगा ।
             सोलन - हिमाचल से आचार्य मदन हिमाँचली लिखते है कि भारत देश की लोक ताँत्रिक प्रणाली मे  प्रधानमंत्री के पद को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । और देशकी सर्वोच्च महापँचायत की  चुनावी व्यवस्था अभी तक भी पुरानी है।  चुने हुए साँसद ही  प्रधानमंत्री का चयन करते हैं। यदि   जनता द्वारा प्रधानमंत्री का चयन किया जाने वाली प्रणाली को लागू किया जाता है तो लोगों को   बहुमत से चुना जाने वाला प्रधानमंत्री मिल सकता है। लेकिन वर्तमान प्रणाली मे यह जरुरी हैं कि जन अँकाशाँओ पर खरा उतरने वाला ही  प्रधानमंत्री मिले इस प्रणाली के अनुसार तो वहीं मिलेगा जो अपने पक्ष मे अधिकाँश साँसदो को  जोड सकता है। लेकिन यदि प्रधानमंत्री का चयन जनता के द्वारा किया जाता है तो  देश की जन शक्ति की  कसौटी पर खरा उतरने वाला ही देश का प्रधानमंत्री होगा।
          रतनगढ़ - मध्यप्रदेश से ओमप्रकाश क्षत्रिय ' प्रकाश ' लिखते है कि प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा होना चाहिए. इस से प्रधानमंत्री सीधी और बिना दबाव के कारर्रवाई कर सकें. इस से उसे निष्पक्ष निर्णय लेने की सुविधा होगी. मगर, प्रधानमंत्री तानाशाह न हो जाए, इसलिए उस पर लोकसभा का कुछ नियंत्रण होना चाहिए. देशहित के मामले को वह स्वयं निर्णय ले सकें और लोकसभा के सदस्यों को अपने निर्णय से सहमत कर सकें. ऐसा कोई प्रावधान हो ताकि प्रधानमंत्री स्वतंत्र हो कर कार्य कर सकें. इस वजह से प्रधानमंत्री का चुनाव सीधा जनता द्वारा होना चाहिए. ताकि जनता निडर एवं सच्चे व्यक्ति का अपना प्रधानमंत्री चुन सकें।
       सोनीपत - हरियाणा से डाँ. अशोक बैरागी लिखते है कि भारत में लोकसभा के चुनाव या प्रधानमंत्री का चयन लोकतंत्र का विशाल महोत्सव है | यह जनमानस की भावनाओं, इच्छाओं और अपेक्षाओं का प्रस्फुटन है |यह अलग बात है कि वर्तमान राजनैतिक दल इस महोत्सव की शुचिता को कायम ऱख पाएंगे या नहीं |खैर.... | भारत जनसंख्या की दृष्टि से विशाल देश है |दूसरा अपने यहां गरीबी है और शिक्षा की कमी है |इसी कारण जनता में  तकनीकी समझ और जानकारियों का अभाव भी है |लोगों में आधुनिक तकनीकी के प्रति मोह तो है परंतु इसके परिणाम और कार्य प्रणाली से भय की स्थिति बनी हुई हैं |साथ ही सूचना तकनीकी की पहुँच हाशिए पर पड़े अंतिम छोर के मानस तक अभी नहीं है |
ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा किया जाना उचित ही लगता है |अगर हमारे राजनैतिक मूल्य और सिद्धांत राजतंत्रात्मक होते तो बात अलग होती |पर चूंकि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रात्मक गणराज्य है और यहां जनता को प्रत्येक पाँच साल बाद अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है | एक गम्भीर प्रश्न यह भी है कि जनता किसे अपना प्रधानमंत्री चुने उसे चहुँ ओर काला और कालिमा ही नजर आ रही है |हमें बचपन में बताया गया था कि कूड़ा कबाड़ी उठाने वाला भी मलबे से अच्छे को उठाता है |दूसरा, ताश के पत्तों की तरह अब तो इन्हीं से खेलना पड़ेगा |जब तक इनका विकल्प नहीं मिल जाता |अब हम सब की जिम्मेदारी है कि 'वोट' की उपयोगिता समझें और बिना किसी दबाव, लोभ-लालच और जाति-धर्म के भेदभाव से दूर पूर्ण विवेक से अपने मत का प्रयोग करें |तभी हम सब लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं |
        दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि स्वतंत्रता के 70 दशकों के बाद भी देश संघर्ष कर रहा है।  इन वर्षों में जितना विकास हुआ है उससे कई गुना अपेक्षित था।  गुलामी से तो स्वतंत्र हुआ परन्तु अनुशासन के अभाव में बिखर कर रह गया।  देश को अनेक नेतृत्वों ने संभाला।  जितने नेतृत्व उतनी दिशाएं बनीं। एकलक्ष्य होकर नहीं चल सके।  देश-हित से दूर अनेक मुद्दों ने विकास के पथ पर रोड़े अटकाए और यह क्रम आज भी जारी है।  विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को सम्भालना कठिन कार्य है।  भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव भारतीय संविधान के अनुसार होता है और वह देश का शक्तिशाली शासनप्रमुख है।  विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों, भाषाओं से युक्त विशाल भारतीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा हो सके यह मात्र कल्पना है, वर्तमान स्वरूप में कोरा स्वप्न है।
मीरा जैन. उज्जैन - मध्यप्रदेश से मीरा जैन लिखती है कि 
विश्व के सबसे बड़े  लोकतांत्रिक देश मे वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह अति आवश्यक हो गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्यक्ष जनता द्वारा ही हो. पिछले कई वर्षों से गठबंधन सरकार का बोलबाला रहा है ऐसे मे यदि -किसी एक पार्टी को बहुमत ना हो तो हमेशा प्रधानमंत्री को अन्य पार्टियों के दबाव मे काम करना पड़ता ऐसे मे सर्वश्रेष्ठ की संभावना कम हो जाती है. सरकार गिरने का भय बना हमेशा बना रहता है यदि सरकार गिरा दी गई तो असमय ही देश को करोड़ों रुपयों का भार वहन करना पड़ता है.सांसदों की होने वाली खरीद फरोख्त बिल्कुल बंद हो जायेगी .प्रधानमंत्री की जवाबदेही सिर्फ और सिर्फ देश तथा जनता के प्रति होगी.उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार पर अंकुश तो लगेगा ही साथ देश का सबसे काबिल और योग्य व्यक्ति ही प्रधानमंत्री बनेगा. यदि इस व्यवस्था का प्रावधान संविधान मे प्रारम्भ से ही होता तो सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे सशक्त क्षमतावान नेता को प्रधानमंत्री बनने काअवसर निश्चित ही प्राप्त होता. ऐसे कई उदाहरण और भी हमारे सामने है.अतः प्रधानमंत्री का प्रत्यक्ष जनता द्वारा चुनाव देश के सर्वोत्तम हित मे है.
रांची - झारखंड से सत्या शर्मा ' कीर्ति ' लिखती है कि 
जनतंत्र के तहत किसी व्यक्ति विशेष नहीं वरन एक पार्टी का चुनाव होता है । पार्टी एक इकाई मानी जाती है जो जनतंत्र की रीढ़ होती है। इस रीढ़ को जितना मजबूत बनाया जाएगा उतना ही जनतंत्र मजबूत होगा ।आजादी के समय से ही पॉलिटिकल पार्टी के गठन की परिकल्पना रही जिसके लिए चुनाव आयोग का गठन किया गया। जिसके तहत वर्षों से देश में चुनाव हो रहे हैं ।अगर चुनाव जनतांत्रिक नहीं होगा तो सत्ता व्यक्तिवादी हो जाएगी। जनतंत्र की रीढ़ समाप्त जो जाएगी। ऐसी स्थिति में देश में व्यक्तिवादी तंत्र / राजतंत्र की स्थापना हो जाएगी। सत्ता का विकेंद्रीकरण न होकर एकीकरण हो जाएगा । जो जनतांत्रिक सोच की हत्या होगी ।



नवीमुंबई - महाराष्ट्र से चन्द्रिका व्यास लिखते है कि आपको उसी उम्मीदवार को वोट देना चाहिए जिसके माइनस प्वाइंट और प्लस प्वाइंट की आपको जानकारी है! जो उम्मीदवार कार्यदक्ष दिखा उसे आप वोट दें चाहे फिर वह आपके पक्ष का हो या विपक्ष का! आप केवल उसकी योग्यता के अनुसार चुनें! सांसद को भी देशहित में आने वाले निर्णयों को देख अपना मत दे..लोकसभा में अपनी भूमिका अदा करनी चाहिये! इसके अलावा उसकी एक महत्व की जिम्मेदारी भी होती है वह यह है की प्रत्येक सांसद को अपने मत विस्तार के विकास के लिये 5 करोड सालाना मिलते हैं और उसे उसका पूरा पूरा सदुपयोग अपने विस्तार के विकास के लिए करना चाहिये तभी जनता का विश्वास इसपर होता है तभी वह पुन: उसी विस्तार से चुनाव जीतता  है! यदि अपने विस्तार (एरिया) से 15 उम्मीदवार खड़े हैं तो हमे योग्य उम्मीदवार चुनने के लिए उसकी शिक्षा कितनी है, उसका क्रिमिनल रिकार्ड तो नहीं  है, जनता के लिए खड़े पैर सेवा देता हो हमे उसे चुनना चाहिये! यह नहीं  सोचना चाहिए की यह मुझे अच्छा नहीं लगता है और दूसरा जो अच्छा लगता है अयोग्य उम्मीदवार को वोट दे दो फिर पछताना पडे! सोच समझकर उसकी योग्यता के अनुसार वोट देकर उम्मीदवार चुनना चाहिये! 15 मे से श्रेष्ठ उम्मीदवार हम सांसद में भेजते हैं और यही प्रक्रिया देश के महत्तम क्षेत्र में हो तो अच्छे से अच्छे नेता सांसद में पहूंचते हैं ! यदि सांसद में देश के योग्य नेता पहूंचते  हैं तो श्रेष्ठ प्रधानमंत्री अपने आप बाहर आ जाता है यानिकी मिल जाता है! हम अपने योग्य सांसद को चुने और सांसद योग्य प्रधानमंत्री चुने यही लोकतंत्र की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है! 
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़ से उर्मिला सिदार लिखती है कि प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा होना चाहिए। क्योंकि पूरे देश का संचालक प्रधानमंत्री होता है और पूरे देश में मानव समाज होता है । देश की शक्ति जनता में निहित होती है ,अतः जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव पूरे देश की विकास के लिए होनी चाहिए ,जनता और प्रधानमंत्री एक दूसरे के पूरक है अर्थात प्रधानमंत्री देश के विकास के अंतर्गत जनता की पोषण संरक्षण की जिम्मेदारी लेता है। साथ-साथ जनता से संबंधित प्रकृति की भी संरक्षण सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वीकारते हुए प्रकृति की आवर्तनशीलता  को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध होता है। और जनता उनके द्वारा बनाए गए नीति नियमों का निर्वहन करती है । इसीलिए भारतीय प्रधानमंत्री का चुनाव जनता द्वारा होना चाहिए । जनता अपने नेता को कैसा चाहते हैं। उसी के आधार पर वह नेता का चुनाव करेंगे चुनाव में स्वार्थी नहीं समाजवादी व्यक्ति की आवश्यकता होती है ,क्योंकि समाजवादी विचारधारा में चलने वाला व्यक्ति समाज को समाधान दे सकता है स्वार्थी नहीं ?स्वार्थी व्यक्ति से पूंजीवाद पनपता है और समाजवादी व्यक्ति से समाज में व्यवस्था बनाने की भरपूर प्रयास किया जाता है । अतः जनता को प्रधानमंत्री का चुनाव समझदारी के साथ करनी चाहिए और अपने ही में होना चाहिए ताकि देश में विकास और व्यवस्था बनी रहे ।
गाडरवारा - मध्यप्रदेश से नरेन्द्र श्रीवास्तव लिखते है कि 
'भारतीय लोकतंत्र '  या यूँ कहें कि हमारे देश लोकतांत्रिक व्यस्था और संरचना की प्रशंसा विश्वभर में की जाती है।हमारे विद्वानों और कानून के जानकारों ने इस व्यवस्था के लिये जो मूलभूत आधार मानकर नेतृत्व के चयन के मापदंड और संहिता का निर्धारण किया है,वह अद्वितीय है,श्रेष्ठ है और निर्विवाद है।ऐसे में मेरा मानना है,इस चयन के लिये नयी परिकल्पना करना विमर्श नहीं विवाद ही होगा।
     अभी तक समस्यायें जो भी आईं हों उनके निराकरण के पहल और परिणाम के लिये या सीधे-सीधे यह कहें कि सफलता या असफलता के लिये व्यक्ति को ही श्रेय या दोषी बताया गया है। कभी भी प्रधान मंत्री पद को लेकर किसी भी प्रकार की भ्रांति नहीं हुई। फिर एक बात और है,हमारे यहाँ प्रधानमंत्री का चयन प्रत्यक्ष रूप से भले ही चुने गये सांसदों द्वारा किया जाता है मगर अप्रत्यक्ष रूप से वह जिस दल का बहुमत या जिन दलों का समर्थन अधिक हो उनमें से बनता है,ऐसे में जनता द्वारा सीधे प्रधान मंत्री पद के चयन में जीते गये सांसदों का विश्वास अर्जित करना कठिन होगा और ऐसे में उसे अन्य सांसदों /दलों से समझौता करके ही चलना पड़ेगा तब मतलब तो वही हुआ जैसा अभी की प्रक्रिया में है। एक बात और संभावित है, यह पद इतना बड़ा पद है कि कुछ लोग इसीलिये भी उम्मीदवारी करेंगे ताकि चर्चा में रहें। इसीलिये जैसा अभी निर्धारित है वह उचित भी है,श्रेष्ठ भी और निर्विवाद भी।
बल्लभगढ़ - हरियाणा से लज्जा राम राधव ' तरुण ' लिखते है कि मेरा मानना है कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि ही सर्वमान्य है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में  किसी व्यक्ति विशेष को नहीं  वरन किसी दल का चुनाव किया जाता है, और वह दल  एक इकाई माना जाता है।  जो भी दल  बहुमत का प्रतिनिधित्व करता है,  वहीं दल अपने किसी वरिष्ठ, योग्य तथा कुशल क्षमतावान व्यक्ति को ही प्रधानमंत्री चुनता है। हालांकि कई लोगों का विचार है की भारत के प्रधानमंत्री का चुनाव भी जनता द्वारा ही प्रत्यक्ष रूप में कराया जाना उचित रहेगा। परंतु मेरा मानना है, कि उसे भी अपने किसी विचार, नियम, कानून को क्रिया रूप देने के लिए बहुमत की आवश्यकता पड़ेगी। यदि प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे जनता से कराया जाए तो वहां पर बहुमत होना जरूरी नहीं रह जाएगा। ऐसी सूरत में वह भी अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं चला पाएगा। माना कि प्रधानमंत्री का जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव कराए जाने से बहुत हद तक ऊपरी भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा परंतु इसके साथ-साथ लोकतांत्रिक प्रणाली की रीढ कहे जाने वाले जनता के प्रतिनिधि महत्व हीन हो जाएंगे और अपना अपना कोई कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाएंगे तथा जनता की इच्छाओं पर खरे नहीं उतर पाएंगे। दूसरे जनता से प्रत्यक्ष चुनाव के बाद व्यवस्था व्यक्तिवादी हो सकती है और व्यक्तिवादी व्यवस्था, निरंकुशता को भी जन्म दे सकती जो  राज तांत्रिक प्रणाली की ओर ले जाती है। अतः मेरा मानना है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में जनता अपना प्रतिनिधि चुन कर भेजती है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही प्रधानमंत्री का चुनाव करते हैं यही प्रणाली लोकतंत्र के लिए उचित भी है और सुखद भी ।
भिण्ड - मध्यप्रदेश से मनोरमा जैन पाखी लिखती है कि भारतीय प्रधानमन्त्री का चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत जनता ही करती है ।क्यों कि यहाँ जनता का शासन ,जनता के द्वारा और जनता के लिए ही है यह व्यवस्था है। दूसरा कोई विकल्प भारत के पास नहीं ।तो निश्चय व्यवस्था के द्वारा तय  की गयी नियमरेखाओं के मद्देनज़र प्रधानमंत्री का चुनाव जनता के द्वारा ही किया जाता है अन्य विकल्प के अभाव में ।
         मुम्बई - महाराष्ट्र से अलका पाण्डेय लिखती है कि प्रधान मंत्री का चुनाव तो जनता ही करती है ! जनता जिस पार्टी का प्रधान मंत्री चाहती है, नेतृत्व चाहती है । उसे ही जिताती है।

परिचर्चा में अधिकतर वर्तमान चुनाव प्रणाली से
सतुंष्ट नज़र आते है । क्यों कि इस में परिवर्तन होने की सभावना नहीं के बराबर है । अगर सम्भव हो तो प्रधानमंत्री का चुनाव सीधे जनता द्वारा होना चाहिए । इसके अनेंक लाभ है  जैसे :- सासंद द्वारा सरकार को नहीं गिराया जा सकेगा । भ्रष्टाचार में बहुत अधिक कमी आ सकती है । प्रधानमंत्री पूरे आत्मविश्वास के साथ कार्य कर सकेगा । यह सब सीधे जनता द्वारा चुनाव से ही सम्भव है । वर्तमान चुनाव से सम्भव नहीं है । परन्तु उम्मीद पर दुनिया कायम है । कई जगह सरपंच / मेयर के चुनाव सीधे जनता द्वारा होने शुरू हो गये है और इसके लाभ भी नज़र आने लगे हैं ।
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी
                                                   (आलेख व सम्पादन)


Comments

  1. सही समय पर सही विषयों को उठाती परिचर्चा बधाई

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  2. मैं आदरणीया सत्य शर्मा 'कीर्ति' जी की टिप्पणी से सहमत हूं।

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