झारखंड के प्रमुख लघुकथाकार ( ई- लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा एक लेखक की ग्यारह लघुकथा श्रृंखला का आयोजन किया गया । जिससे मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार , महाराष्ट्र के प्रमुख लघुकथाकार , उत्तर प्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार , राजस्थान के प्रमुख लघुकथाकार , दिल्ली के प्रमुख लघुकथाकार , हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार , भोपाल के प्रमुख लघुकथाकार , मुम्बई की प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार , हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार के उपरांत झारखंड के प्रमुख लघुकथाकार के सफल ई - लघुकथा संकलन का सम्पादन किया गया है ।
    यह सब लघुकथा साहित्य की देन है । जो लघुकथा साहित्य को शिखर पर पहुचने के चरणबद्ध तरीकों का परिणाम है । सभी अपने - अपने ढंग से कार्य कर रहे हैं । बाकी का कार्य पाठकों व शोध कर्त्ताओं का है । शोध से भविष्य की नीव रखीं जाती है ।
    झारखंड का ई- लघुकथा संकलन की अपनी सफलता है । कृष्ण मनु का नाम अपने आप में परिपूर्ण है । लघुकथा साहित्य ने साबित कर दिया है कि कोई भी क्षेत्र पीछे नहीं है । वह अपने लिए जमीन तराशा ही लेता है । यही लघुकथा की पहचान है ।
क्रमांक - 01

जन्म तिथि- 6 अप्रैल
जन्म स्थान- पटना
पिता - स्व.उमेश्वर नारायण श्रीवास्तव
माता- श्रीमती प्रभा श्रीवास्तव
पति- दीपेन्द्र कुमार वर्मा
शिक्षा- स्नातकोत्तर (इतिहास) B.Ed ( बिहार )

रूचि- कविता, कहानी,नाटक,आलेख,  लघुकथा लेखन एवं संगीत 

प्रकाशित पुस्तक : -

कुछ कहती है जिन्दगी (लघुकथा एवं छोटी कहानियों का संग्रह )

सम्मान : -

श्री साहित्य विभूति,
साहित्योदय शक्ति सम्मान,
2020 रत्न सम्मान,
लघुकथा मैराथन सम्मान,
कोरोना योद्धा सम्मान,
वृक्ष सखा सम्मान,
अटल रत्न सम्मान,
हिन्द गौरव सम्मान ।

पता :  फ्लैट न.-C3F, ग्रीन गार्डेन अपार्टमेंट्स, हेसाग,हटिया,राँची,झारखंड -834003

1. गँवार
    *****

छवि बिस्तर पर लेटी लेटी सोच रही थी कि अब अम्मा का भजन से चालू होगा और पूजा की घंटी बजेगी, और वह उन पर नींद तोड़ने का इल्जाम लगाते हुए चीखेगी। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ।ना तो पूजा की घंटी बजी और न ही उनका भजन और न ही उनकी चहल कदमी की आहट। वह थोड़ी सी चिंतित हुई ।
  "अरे..... उसे तो आज जल्दी कॉलेज जाना था.... उफ, अम्मा ....मैंने तुम्हें जल्दी उठाने को कहा था ना ....तुम्हें कोई बात याद ही नहीं रहती।"
वह अम्मा पर गुस्सा हो होती हुई, बिस्तर छोड़ कर उठ खड़ी हुई ।अम्मा की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। वह उन्हें खोजती हुई रसोई घर में पहुंच गई ।अम्मा का कहीं अता पता ना था। रोज अभी तक तो वह टहल कर भी आ जाती थी।नहा धोकर उनका पूजा-पाठ भी खत्म हो जाता था। एक तरफ पिताजी के लिए चाय चढ़ा कर ,वह उसे उठाती रहती थी। वह गुस्सा होकर उन पर चीखती ,पर उन पर कोई असर नहीं होता ।जब तक वह उठ नहीं जाती, अम्मा उसे उठाती रहती। वह और उसके पिता उसे गँवार समझते थे। उनकी हर गतिविधि पर दोनों उनका मजाक उड़ाते । पिताजी तो उन्हें बात-बात पर जाहिल गँवार ही बोलते थे। उन दोनों की बातें सुनकर भी वह उनकी सेवा में लगी रहती थी ।आखिर अम्मा कहाँ जा सकती है ?छवि सोच रही थी ।उन्हें फोन करती हूं ....उसने सोचा ।उसने फोन लगाया ,अम्मा का मोबाइल ड्राइंग रूम में पड़ा मुँह चिढ़ा रहा था।
मोबाइल लेकर क्यों नहीं जाती.... अम्मा ।".... वह गुस्से से बोली। तभी उसे ध्यान आया। चार दिन पहले ही तो भाई ने अम्मा के लिए नया मोबाइल भेजा था ।अम्मा को मोबाइल इस्तेमाल करना नहीं आता था। वह कितनी बार उसके पास आई थी।...." जरा मोबाइल चलाना सिखा दो।".....वह उससे बोलती। वह हर बार उन्हें झिड़क देती थी।.... " अभी नहीं, बाद में .....अभी मुझे बहुत काम है ।"
   अभी वह पछता रही थी। काश मोबाइल चलाना सिखा दिया होता तो ,वह अपना मोबाइल लेकर गई होती ।
   "अरे, तुम्हारी अम्मा किधर है ?अभी तक मुझे बेड टी नहीं मिली।"....  उसके पिताजी उसे देखकर बोले ।
    "अम्मा घर पर नहीं है।"..... वह बोली।
" कहां चली गई? पिताजी बोले ।
  अब दोनों अम्मा के लिए चिंतित हो गए।
" अच्छा,तुम मेरे लिए चाय बनाओ। मैं देखता हूं वह किधर गई है।".... पिताजी बोले।
   छवि किचेन में खड़ी चाय बना रही थी। वह सोच रही थी, वह और उसके पिता कभी भी अम्मा से ठीक से बात नहीं करते। पिताजी तो उन्हें हमेशा ही गँवार कहा करते थे ।अम्मा घर को कितना अच्छा से सजाकर रखती हैं। किचन भी कितना साफ सुथरा और सब कुछ करीने से सजा हुआ है।वह गँवार कैसे हुई?  वह सोच रही थी बस अम्मा आ जाए, वह उनका खूब ख्याल रखेगी। सबसे पहले उन्हें मोबाइल चलाना सिखायेगी। तभी बाहर ऑटो रिक्शा रुकने की आवाज आई। वह दौड़कर बाहर आई। देखा.... अम्मा ऑटो से उतर रही हैं ।
"कहां चली गईं थीं, आप अम्मा?.... वह दौड़ कर अम्मा के गले लगते हुए पूछा ।
" अरे ,मालती की मम्मी बेहोश होकर गिर गई थी।उन्हे ही लेकर हॉस्पिटल गई थी ।"....वह बोली।
" फोन कर सकती थी ना।.... पिता जी बोले।
" मुझे नंबर याद नहीं था।" ....वह बोली।
" गँवार कहीं की।"..... पिताजी प्यार से बोलो।
तीनों हँस पड़े। ****

2. दादी माँ
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अचानक शोर से दादी माँ की आँखें खुल गई।उनकी तबीयत आज कुछ ठीक नहीं लग रही थी ।सर भी भारी सा लग रहा था। सुबह उठकर फिर वह सो गई थी ।आँखें खुली तो देखा ,बेटा ,बहू और पोता उनके बिस्तर के पास खड़े हैं और गुस्से से उन्हें घूर रहे हैं ,जैसे उनसे कोई बड़ा अपराध हो गया हो।
  " दादी माँ आपको पता है ना ,8:30 से मेरा ऑनलाइन क्लास होता है। फिर भी आप अभी तक बिस्तर पर सोयीं पड़ी हैं ।"......पोता गुस्से से बोला ।
  घर में तीन कमरे थे ।जब से लॉकडाउन हुआ था ,दोनों बच्चे दो कमरे में ऑनलाइन क्लास करते थे और बेटा तीसरे कमरे से ऑनलाइन अपने ऑफिस का काम करता था। रोज वह सवेरे उठकर ड्राइंग रूम के दीवान पर जाकर बैठ जाती थी ।टीवी नहीं खोल पाती थीं क्योंकि वह लोग डिस्टर्ब होते थे ।
  तबीयत खराब होने के कारण आज उन से उठा नहीं जा रहा था। किसी तरह यत्न पूर्वक उठकर वह ड्राइंग रूम के सोफे पर जाकर बैठ गयीं ।
  " दादी माँ पैर ऊपर उठाइए। मुझे पोछा करना है ।"......कामवाली उनसे कह रही थी ।
  दादी माँ पैर उठाकर सोफे पर बैठ गईं ।
  "यह क्या माँ जी.... इतने कीमती सोफे पर पैर चढ़ा कर बैठी हैं ।"......... उधर से गुजरते हुए बहू ने उन्हें टोका ।
  दादी माँ उठकर दीवान की ओर बढ़ी, लेकिन चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी। ****

3. भूख
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"एक आदमी की जरूरत है,बारात में  बैंड के साथ सर पर लाइट उठानी होगी ।तीन सौ रूपया मिलेगा ।"....झबरी की सहेली मालती ने कहा ।
    झबरी झट से तैयार हो गयी ।उसका पति एक झूठे केस में जेल के अन्दर बंद था।घर में सारे बच्चे भूख से तड़प रहे थे।चार दिनों से उसके पेट में अन्न का दाना नहीं गया था।
       "देख ले झबरी चार दिन की भूखी है तू।इतना भारी उठा पायेगी?"
     "मैं उठा लूंगी ।घर पर बच्चे भूखे हैं ।"....लेकिन उसके पैर कांप रहे थे।आँखो के आगे अंधेरा छा जाता था ।लेकिन उसने हिम्मत कर आगे बढ़ती गयी ।
      विवाह-स्थल पर पहुँचने पर उनलोगों को थोड़ी देर रूकने को कहा गया और बोला गया कि थोड़ी देर में उन्हें पैसा मिल जायेगा।अतः पैसा लेकर ही वे लोग जायें ।
     झबरी विवाह-स्थल को बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रही थी।विवाह में सम्मिलित लोग हाथों में तरह तरह के पकवानों से भरे प्लेट लेकर खाना खा रहे थे।
      "यहाँ कितना सारा खाना है,कुछ खाना हमलोगों को भी खिला देते।"...वह बोली ।
     "तुम्हे पता है,एक प्लेट का मूल्य एक हजार रूपया है ।वो हमें क्यों खिलायेंगे".....मालती बोली।
      "कितना खाना ये लोग अपने प्लेट में छोड़ दे रहे हैं ।" उसने अपने मन में सोचा ।उसकी आँखों के सामने उसके भूख से बिलखते बच्चों की तस्वीर तैर गयी।
      थोड़ी देर बाद उन सभी को पैसा दिया गया ।वे सभी घर जाने लगे।तभी दरबान दौड़ता हुआ आया और बोला कि सभी लोग जायें,इसको छोड़ कर ।उसका इशारा झबरी की ओर था।
  तभी घर का मालिक दो तीन लोगों के साथ आया और बोला,"क्या चुरा कर कमर में खोंसा है, दिखाओ...
झबरी ने कमर से एक गंदी सी कपड़े की थैली को निकाली।
    "दिखाओ....क्या है इसमें ???"
      झबरी ने थैली खोली.....उसमें लोगों का छोड़ा हुआ जूठा खाना ,पूरी,नान के टुकड़े ,पुलाव और सब्जियाँ थी।
     "मेरे बच्चे चार दिनों से भूखे हैं ......  मालिक।"....झबरी ने रोते हुए कहा । ****

4. हिम्मत
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अपनी पूरी तैयारी के साथ दादी माँ पोते की शादी में सम्मिलित होने के लिए पहुँच गयीं थीं । लेकिन यह क्या..... घर में मातमी सन्नाटा छाया हुआ था। खुशी के इस शुभ अवसर पर यह भयावह शांति क्यों ? दादी माँ के मस्तिष्क में सवाल बादल बन उमड़- घुमड़ करने लगे ।
  "दादी माँ ! मम्मी नहीं चाहती कि यह शादी हो।"..... बातूनी पोती दादी माँ के कानों में फुसफुसा गई ।
  "लेकिन.. क्यों ?".......दादी माँ ने धीरे से उससे पूछा ।
  "होने वाली भाभी की माँ कुक थीं । वह दूसरों के घरों में खाना पकाया करती थी। मम्मी की तो सोसाइटी और अपनी सहेलियों के बीच नाक ही कट जाएगी ।"....पोती ने दादी की माँ के कानों में धीरे से कहा ।
   दादी माँ को अब सारा माजरा समझ में आ गया। उन्हें अपना समय स्मरण हो आया ।पति की आकस्मिक मौत के पश्चात पति के ऑफिस से गुजर बसर करने के लिए सहायता हेतु अल्प शिक्षित दादी माँ को दफ्तर से चपरासी की नौकरी के लिए प्रस्ताव आया ।जिसे उनके परिवार वालों ने सख्ती के साथ ठुकरा दिया। भाइयों ने कहा ,उनके जीते जी उनकी बहन चपरासी की नौकरी नहीं करेगी। देवर ने कहा , भैया के जाने के बाद हम इतने सक्षम है कि उनकी पत्नी और उनके बच्चों की परवरिश कर सकें ।लेकिन उनके पति के दफ्तर के कर्मचारियों ने उन्हें समझाया आप बस नौकरी ज्वाइन कर लें। आपको चपरासी का काम नहीं करना होगा ।नौकरी का वेतन आपके और आपके बच्चों के लिए बहुत बड़ा सहारा बनेगा। रिटायर होने पर मिलने वाला पेंशन आपके बुढ़ापे की लाठी बन जाएगा। दादी माँ को उनकी बातें मुनासिब लगी थी ।लेकिन वह अपने भाइयों और देवर के मर्जी के खिलाफ नौकरी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। उनका सारा जीवन दूसरों पर आश्रित तथा उनके बच्चों का बचपन हर चीज के लिए तरसते हुए बिता था।
" अगर पोते की होने वाली बहू की माँ दूसरों के घर में खाना पकाने का काम करती थी तो इसमें बुराई क्या है ? उसकी हिम्मत और मेहनत की वजह से ही तो आज उसकी बेटी पढ़- लिखकर इतनी अच्छी नौकरी कर रही है ।"....दादी माँ ने जोर से सबको सुनाते हुए कहा ।
  "आप यह क्या कह रही हैं, माँ जी।".... बहू ने दादी माँ से आश्चर्य के साथ कहा ।
  "हां ! मैं बिल्कुल सही कह रही हूँ। इसमें लज्जित होने वाली कोई बात नहीं ।मुझ में तो यह हिम्मत भी ना थी।"...... दादी माँ की आंखों में आँसू भर आया। ****

5. भारत में हिन्दी
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मनोरमा जी के यहां हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई थी ।शहर के सारे छोटे बड़े कवि और कवयित्रियाँ वहाँ उपस्थित थें । हिंदी को भारतीयता से जोड़कर अधिकांश लोग भारतीय परिधान विशेषकर खादी वस्त्रों को धारण किए हुए थे। आपसी बातचीत में शुद्ध हिंदी का प्रयोग कर रहे थे। मेधा कुछ जरूरी काम से बाजार निकली हुई थी। समयाभाव के कारण वह वहीं से गोष्टी में जींस टॉप पहने ही पहुंच गई ।सबकी निगाहें उसी पर टिक गई। सब उसे ऐसे घूर रहे थे मानो उससे बहुत बड़ा अपराध हो गया हो ।
  'अरे हिंदी दिवस को मेरे परिधान से क्या संबंध है।'.... वह मन ही मन सोच रही थी ।
   काव्य पाठ आरंभ हुआ। हिंदी पर कविताएं, दोहे ,मुक्तक आदि पढ़े गये। कोई हिंदी को माथे की बिंदी कह रहा था, तो कोई उसे भारत की शान, भारत का अभिमान कह रहा था। पूरी काव्य गोष्ठी में हिंदी प्रेम मानो छलका जा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हिंदी में लिखने वाले ,हिंदी में बोलने वालों वालों से बढ़कर कोई दूसरा देश प्रेमी हो ही नहीं सकता। काव्य गोष्ठी के उपरांत चाय ,कॉफी और नास्ते का वहाँ इंतजाम था ।सभी स्वादिष्ट अल्पाहार का भरपूर आनंद उठा रहे थे ।
  'वाऊ,  समोसा कितना टेस्टी है ।'
  "रियली मजा आ गया।"
" अगले महीने रागिनी का ट्वेंटी फिफ्थ एनिवर्सरी है।"
' अरे वाह ,कांग्रेचुलेशन...
हमें तो पार्टी चाहिए भाई।"
   गोष्टी के बाद वहां का माहौल एकदम बदल चुका था ।अब बातचीत में हिंदी ,भारत में बोली जाने वाली हिंदी का स्वरूप ले चुकी थी ।तभी मनोरमा जी के कुत्ते की भौंकने की आवाज सुनाई । मनोरमा जी तेजी से बाहर गई। उन्होंने देखा उनका कुत्ता एक युवती पर भौंक रहा है ।
  "डाॅन्ट टाॅमी..... सीट डाउन ।".....उन्होंने कुत्ते को जोर से डांटा  अंदर उपस्थित सभी लोग चौंक उठे। कुत्ते को अंग्रेजी में डांटते सुन कर मेधा मुस्कुरा उठी।
   " अरे मुझे हिंदी मीडियम से शिक्षा प्राप्त टीचर को अपने बेटे के लिए नहीं रखना है ।"
  " यह सही है मैडम, मैंने हिंदी मीडियम से शिक्षा प्राप्त की है ।लेकिन मैं एक अच्छी विद्यार्थी रही हूं। मैं आपके बेटे को उसके सारे विषय पढ़ा सकती हूं ।"
  "लेकिन तुम्हारे पढ़ाने का टोन तो हिंदी मीडियम का ही रहेगा ।मुझे तो अपने बेटे के लिए कॉन्वेंट में बढ़ी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली टीचर चाहिए।".....मनोरमा जी उस युवती से कह रहीं थी।
    भारत में हिंदी की ऐसी स्थिति है ......मेधा गहरी सोच में पड़ गई। ****
   
6. आशा की एक किरण
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"कहाँ हो मीरा ?  इतनी आवाजें आ रही हैं।"..... नेहा ने अपनी सहेली मीरा से कहा ।
  "मैं इस वक्त ट्रेन में हूँ। मैं गोरखपुर जा रही हूँ। मेरे छोटे भाई की तबीयत बहुत खराब है ।उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही है।"
  " इस वक्त ट्रेन में सफर? तेरा दिमाग तो ठीक है ?"...नेहा ने चिल्लाते हुए कहा ।
  "मैं रह नहीं पायी। मेरा छोटा भाई, उसे मैं अपना बच्चा मानती हूँ। उसकी यह हालत सुनकर मैं अपने को रोक नहीं पायी।"
    "यह तो सरासर खुदकुशी है।"... नेहा ने मन में सोचा। लेकिन निर्भीक निस्वार्थ वात्सल्य तो अपनी औलाद की खातिर सारी दुनिया से लड़ सकता है। यह बीमारी उसके आगे अपनी क्या औकात रखती है? 'अपना ख्याल रखना।'... कह कर नेहा ने फोन काट दिया।
    नेहा मीरा के लिए बहुत चिंतित थी। वह भाई की देखभाल में लगी होगी सोचकर उसने फोन नहीं किया। चार दिनों बाद उसने फोन किया तो मीरा फोन लेकर छत पर आ गई ।
   "मेरा भाई खत्म ही था.... नेहा। डॉक्टर ने कहा कि लंग्स बुरी तरह से संक्रमित हो *गये हैं।* अब उसका आत्मबल और मजबूत इच्छाशक्ति ही उसे पुनः खड़ा कर सकती है। जानती हो नेहा, मुझे देख कर वह मुस्कुरा उठा। चार दिनों में ही उसके चेहरे की रंगत बदल गई है। वह मेरा हाथ पकड़ कर ही सोया रहता है ।"...मीरा के नैनों के कोरों से मोटी-मोटी अश्रु के बूँदें बेकाबू होकर टपक पड़ीं ।
  "तुम्हारा हाथ पकड़ कर ?"
  " हाँ नेहा ! इस बीमारी ने लोगों को उनके अपनो से ही दूर कर दिया है लेकिन अपनत्व के स्पर्श में बहुत शक्ति होती है। वह अकेला स्पर्श सौ दवा के बराबर होता है।"
   फोन पर एंबुलेंस के के सायरन की आवाज सुनाई दे रही थी ।
  "एंबुलेंस की आवाज ?"... उसने पूछा।
" हाँ ! यहाँ की हालत बहुत खराब है। बहुत लोग बीमार हो रहे हैं ।जब मैं यहाँ आई थी तो एंबुलेंस की आवाज से बहुत डर जाती थी ।"
   नेहा सोच रही थी... नेपथ्य में बज रहे एंबुलेंस के सायरन की आवाज ही सच्चाई है या उस पर वात्सल्य की आशा की किरण भारी है। ****

7. कुछ ऐसा भी सोचो
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निखिल ने सुबह ही ऐलान कर दिया था कि बहुत दिनों से सभी कहीं बाहर घूमने नहीं निकले हैं, इसलिए आज वह ऑफिस से जल्दी आ जाएगा। फिर सभी बाहर घूमने चलेंगे और उधर से ही रात का खाना खाकर घर आएँगे ।बच्चे घूमने के नाम पर बड़े उत्साहित थे। बूढ़ी अम्मा का उत्साह भी कुछ कम न था। लेकिन वह बच्चों की तरह अपनी संवेदनाओं को प्रकट नहीं कर सकती थी ।वह सबसे पहले अलमीरा से अपनी प्रिय साड़ी निकाल कर तैयार होकर बैठ गई थी। बार-बार बहाने से ही बाहर भी झांक आती थी।
     निखिल जब आया तो बाहर से ही गाड़ी का हार्न बजाकर सभी को गाड़ी में बैठने को कहा ।पत्नी आकर उसके बगल में बैठ गई ।अम्मा अपने पोते का हाथ पकड़े जल्दी चलने के प्रयास में डगमग करती हुई चली आ रही थी ।
  "सब जगह अम्मा को लेकर जाने की क्या जरूरत है ।हम लोग वापस आते तो उनके लिए कुछ पैक करवा कर ले आते । देखो कितना धीरे धीरे चल रही हैं ।"....पत्नी बोली ।
  "बहुत दिनों से अम्मा घर से बाहर नहीं निकली है। घूमने की इच्छा उनको भी होती होगी ।जहाँ तक धीरे चलने की बात है ,बचपन में मैं चल भी नहीं पाता था ।फिर भी अम्मा मुझे कभी छोड़कर कहीं नहीं जाती थी।"... निखिल ने हंसते हुए कहा।
  " निखिल !अम्मा के हाथ कांपते हैं ।वह खाना कपड़ों पर गिरा देती है। टेबल भी गंदा हो जाता है।"
  " मैं बचपन में इससे ज्यादा गंदा करता था।"... वह मुस्कुराते हुए बोला।
    अम्मा गाड़ी तक पहुँची तो निखिल अपनी पत्नी से कहा ,"तुम बच्चों के साथ पीछे की सीट पर बैठ जाओ ।अम्मा को आगे बैठने दो ।"
  "यह क्या कह रहे हो...निखिल ,अम्मा पीछे बच्चों के साथ बैठ जाएँगी।"..... पत्नी गुस्से से बोली ।
  "तुम तो हमेशा मेरे साथ बैठती हो। मेरा दिल रखने के लिए अभी तुम बच्चों के साथ पीछे बैठ जाओ।"..... निखिल ने बड़े प्यार से अपनी पत्नी को कहा ,"जानती हो बचपन में जब पिता जी जीवित थे तो मैं जिद करके आगे वाली सीट पर बैठ जाता था ।अम्मा हमेशा पिछली सीट पर ही बैठती थी। कभी कभी हमें कुछ ऐसा भी सोचना चाहिए न।"
  पत्नी विस्मय से अपने पति का मुख विहार रही थी। ****
 
8.छवि
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नवीन हैरान सा अपने बाबूजी को निहार रहा था ।सुबह की सारी बातें चलचित्र के समान उसकी आंखों के सामने आ गई। रीना ने चाय की प्याली उसे थमाई, तो वह जल्ला उठा आज का अखबार कहां है? तुम्हें पता है ना, मुझे चाय के साथ अखबार पढ़ने की आदत है।
" अखबार बाबूजी पढ़ रहे हैं।" ...... रीना बोली। वह तेजी से जाकर बाबूजी के हाथों से अखबार छिनते हुए ,जोर से चिल्ला कर बोला," बाबूजी आप को जरा भी समझ नहीं है, इस समय मैं चाय के साथ अखबार पढ़ता हूं ।आपको तो घर में ही रहना है ,आप बाद में भी तो अखबार पढ़ सकते हैं।"
पोते और बहू के सामने अपमानित महसूस करते हुए, बाबूजी चुपचाप अपने कमरे में चले गए।
     शाम में ऑफिस से आने के बाद नवीन ने चैनल बदलकर, जैसे ही न्यूज़ लगाया उसका 7 वर्षीय बेटा मंटू उसके हाथों से रिमोट छीन कर, पुनः अपने कार्टून शो को लगाते हुए गुस्से से चिल्लाया ,"आपको जरा भी समझ नहीं है, मैं अभी अपना कार्टून शो देखता हूं ।रात में जब मैं होमवर्क करता हूं ,आप उस समय भी तो न्यूज़ देख सकते हैं। नवीन इस तरह मोंटू को चिल्लाते हुए देखकर सकते में आ गया ।उसने अपने पिता की ओर देखा, पिता में उसे अपनी छवि नजर आ रही थी। ****
    
9. जेनरेशन गैप
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बेटी की शादी थी। अन्नपूर्णा शादी के इंतजाम करती घर में इधर-उधर दौड़ रही थी। बेटी का चेहरा खुशी से खिला हुआ था ।उसके मनपसंद लड़के के साथ उसकी शादी हो रही थी ।अन्नपूर्णा भी बहुत खुश थी लेकिन जैसे ही है उसकी निगाहें उसकी ननद शुभी के उदास बुझे बुझे चेहरे पर पड़ती, उसका मन ग्लानि  से भर उठता ।वह अपनी ननद से नजरें नहीं मिला पाती। उसके दिल में एक ही सवाल उठता,' क्यों नहीं बेटी जैसी खुशियाँ वह अपनी ननद की झोली में डाल पायी।' मन अपराध भावना से भर उठता ।
अनपूर्णा याद करने लगी। जब उसने शादी करके इस घर में कदम रखा ,उसकी नजर बिन मां-बाप की पतली दुबली निरीह सी अपनी ननद पर पड़ी ,उसे देखकर उसका वात्सल्य उमड़ पड़ा और उसने उसे बिना सोचे समझे अपने गले से लगा लिया ।उसी क्षण से दोनों में भाभी ननद की जगह मां बेटी जैसा रिश्ता बन गया ।यह प्यार बेटी के जन्म के बाद भी कम नहीं हुआ ।सशक्त आँचल की छांव में शुभी निर्भीक उन्मुक्त सी खिलने लगी। दिन पर दिन उसके चेहरे का लावण्य निखारने लगा और वह अत्यंत खूबसूरत दिखने लगी थी ।साया की तरह साथ रहने वाली अन्नपूर्णा अपनी ननद में हो रहे परिवर्तन से अनजान ना थी ।उसका सजना ,आईने में खुद को निहारते रहना ,उसे चिंतित कर रहा था ।घर में शुभी की शादी की चर्चा होने लगी थी ।एक दिन उसके पति ने उसके हाथों में कुछ लड़कों की तस्वीरें देकर, पसंद करने के लिए कहा ।अन्नपूर्णा तस्वीरों को लेकर शुभी के कमरे में आ गई और उसे दिखाने लगी ।शुभी ने भाभी के हाथ में एक तस्वीर रख दिया और बोली ,"भाभी मैं तो इसी से शादी करूंगी ।"
   अन्नपूर्णा ने तस्वीर देखी,अत्यंत सुदर्शन नवयुवक की तस्वीर थी। लेकिन वह उनकी जाति का नहीं था ।घर में पति का बड़ा दबदबा था ।उनकी मर्जी के खिलाफ घर में एक पत्ता तक नहीं हिलता था ।वह डर से कांप उठी।वह बोली ," तुमने ये क्या कर दिया लाडो "....
"भाभी मैं राहुल के बिना नहीं रह सकती । कुछ करो"... शुभी भाभी के आगे हाथ जोड़े खड़ी थी।
    अन्नपूर्णा ने हिम्मत करके पति को सारी बातें बताई ।आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी। घर में भूचाल सा आ गया। क्रोधित भाई का अंधाधुन प्रहार नाजुक बहन पर बरसने लगा ।शुभी को बचाने के लिए अन्नपूर्णा उस पर बीछ सी गई और सारे प्रहार को सहन करती रही। थक कर जब पति चले गए तो दोनों ननद भौजाई निःशब्द घंटों  रोती रहीं ।शुभी ने भाई के क्रोध के समक्ष समर्पण कर दिया और उनके पसंद के एक वकील लड़के के साथ चुपचाप शादी करके ससुराल चली गई।
  " मैं शुभी का सामना नहीं कर पा रही हूँ।".... अन्नपूर्णा ने एकांत पाकर अपने पति से कहा ,"हम लोगों ने अपने बच्चों के साथ भेदभाव किया है।"
  " ऐसा नहीं है अन्नपूर्णा, मैंने तो दोनों के साथ ही सख्त व्यवहार किया था। शुभी हार मान गई लेकिन हमारी बेटी ने नहीं मानी। वह खाना पीना छोड़ कर जान देने लगी थी। तभी तो हम उसके मनपसंद लड़के के साथ शादी करने को तैयार हुए थे।
  " लेकिन हमसे यह अपराध हुआ है ।"...अन्नपूर्णा बोल रही थी।तभी कुछ आहट सी हुई ।अन्नपूर्णा समझ गई कि कोई उनकी बातें सुन रहा है ।अन्नपूर्णा की कदम शुभी के कमरे की ओर बढ़ गए ।शुभी आँखें बंद करके लेटी हुई थी। अन्नपूर्णा ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा। वात्सल्य का स्पर्श पाकर उसके नैनो के कोर से अश्रु लुढ़क पड़े। अन्नपूर्णा ने अपने आँचल से उन्हें पोंछ डाला । शुभी ने अपने दोनों हाथ भाभी के गले में डाल दिया ,"भाभी आप से कोई अपराध नहीं हुआ है ।यह दो पीढी के सोच का अंतर है ।आज की लड़कियां अपना भला बुरा अच्छे से समझती है। अपनी खुशी के साथ समझौता नहीं करती हैं। भाभी आपने तो कोशिश की थी ।लेकिन मुझ में ही हिम्मत नहीं थी। मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है ।"
     दोनों के बीच का अदृश्य निःशब्द दीवार ढ़ह चुका था और एक बार फिर माँ बेटी का मिलन हो रहा था। ****
              

10. पुरस्कार

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"गार्ड भईया, थोड़ी सहायता कर दो।मेरे पति को बहुत देर तक बैठने के बाद खड़े होने में तकलीफ होती है।"....कार से उतर कर सुधा गार्ड से बोली।

 सुधा की आवाज सुनकर मीरा ने चौक कर उधर देखा ,सुधा ने भी उसकी तरफ देखा ....चेहरे पर वही चिर परिचित प्यारी सी मनमोहक मुस्कान थी। फिर वह अपने पति को गार्ड की सहायता से खड़े होने में मदद करने लगी ।कुछ ही दिनों पहले उसके पति को भयंकर पक्षाघात ने अपनी चपेट में ले लिया था ।जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष करता वह महीनों बिस्तर पर पड़ा रहा ।सुधा की अथक परिश्रम एवं पति सेवा की वजह से आज वह अपने पैरों से चल पा रहा था।

  छोटे शहर से आई ,साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की सुधा को अपने अत्याधुनिक एवं स्मार्ट पति द्वारा समय-समय पर अपमान का सामना करना पड़ता था ।स्धुलकाय शरीर, मासूम मगर अपरिपक्वता के कारण उसका पति उसे सबके सामने, मोटी, फूहड़ कहने से भी नहीं हिचकता था ।वह उससे अक्सर कहता कि उसे उसके साथ कहीं भी जाने में शर्म आती है ।पति की बातों से वह आहत होती और खूब रोती लेकिन घर परिवार और बच्चों के बीच फंसी वह अपने लिए समय नहीं निकाल पाती थी ।पति के पक्षाघात के अटैक के बाद जैसे वह अपनी उम्र से दुगनी बड़ी हो गई ।उसने बड़ी बखूबी के साथ बीमार पति ,घर, बच्चे सब कुछ संभाल लिया ।इस व्यस्तम दिनचर्या के बदौलत उसका स्धुलकाय शरीर कब छरहरा देहयष्टि में परिवर्तित हो गया उसे पता ही नहीं चला ।निरंतर कर्तव्य निष्ठा के सात्विक तप से उसका मुख मंडल कांति कर रहा था। मीरा  उसके अद्भुत सौन्दर्य देखकर आश्चर्य चकित थी। 

    ऑफिस के प्रांगण में वार्षिक समारोह मनाया जा रहा था ।समारोह का मुख्य आकर्षण केंद्र बिंदु था,' कपल कैटवॉक'। कार्यक्रम शुरू हुआ सभी उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे । फिर पुकारा गया सुधा और उसके पति का नाम... उसका पति थोड़ा हिचकिचाया ,लेकिन सुधा ने मजबूती के साथ पति का हाथ थामा और रैंप पर चल पड़ी। ताली की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा ।पति की आंखों में आंसू भर आए। वह दर्शकों के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और रुंधे गले से बोला," सुधा जैसी पत्नी पाकर मैं धन्य एवं गौरान्वित महसूस कर रहा हूं।

   सुधा हँस पड़ी, बोली," इस प्रतियोगिता का परिणाम क्या होगा मुझे नहीं पता ।लेकिन मुझे तो पुरस्कार अभी मिल गया।"

    वह हंस रही थी लेकिन आंखों से अश्रु धार बेकाबू हो बहे जा रहे थे। ****

11. इतनी सी बात

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पति और उनके दोस्तों के ठहाकों से घर गूंज रहा था। माला सोच रही थी कि कौन विश्वास करेगा, थोड़े दिन पहले जब वे अपने निवास स्थान पर पहुंचे थे तो कमजोर, बीमार और व्हीलचेयर के सहारे थे ।हृदय की प्रफुल्लता से बीमारी शिकस्त खाकर भाग चुकी थी और चेहरे पर मुस्कान आकर विराजमान हो गई थी ।

   पति जब रिटायर हुए तो बेटा जिद करके उन दोनों को अपने पास  ले आया। उसका कहना था कि दोनों अब आराम से उसके पास रहें ।ज्यादा उम्र हो जाने पर बच्चों के साथ ही रहना चाहिए। लेकिन पति बरसो बिताए अपने निवास स्थान को छोड़ना नहीं चाहते थे। बार-बार घर वापस जाने की जिद और बेचैनी ने उन्हें चिड़चिड़ा बना दिया। हमेशा खुश रहने वाले पतिदेव ,अब बात बात पर गुस्सा और चिल्लाने लगे थे ।ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर बढ़ने की वजह से तबीयत निरंतर खराब रहने लगी ।खराब तबीयत की वजह से बेटा वापस जाने नहीं देना चाहता था। खुश नहीं रहने के कारण दवाइयां भी काम नहीं कर रही थी ।बीमारी और कमजोरी की वजह से वे बिस्तर पर पड़ गए ।अब व्हीलचेयर की सहायता से ही चल पाते थे। पति की वापस अपने घर आने की तीव्र इच्छा को देख कर माला बेटे और पति के साथ अपने घर वापस आ गई ।घर में प्रवेश करते ही पति का चेहरा खिल उठा। कुछ ही दिनों में उनका पूरा ही कायाकल्प हो गया ।

  "माला जरा चाय बनाना.... चाय के साथ पकोड़े भी ले आना ।" .....वह माला से बोल रहे थे।

  " अभी लाती हूँ ।".... माला अपने पति की खुशी में शामिल हो गयी। ****

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क्रमांक - 02

जन्म तिथि : 10 जनवरी 1970
जन्म स्थान : पटना
पति का नाम : राजीव कुमार झा
शिक्षा : B.Sc.   Chemistry honours ,B.Ed.
M.A. Hindi
अभिरुचि: कविताएँ, लघुकथा और आलेख लेखन (हिन्दी एवं मैथिली)

प्रकाशित पुस्तकें : -
1. प्रथम रश्मि ( काव्य संकलन )
2. भाव प्रसून ( काव्य संकलन )

आनलाइन और आफलाइन सम्मान :-

1. आगमन काव्योत्सव सम्मान
2. आगमन स्थापना दिवस सम्मान
3. प्राइड आफ वीमेन अवार्ड - 2019
4. महादेवी वर्मा नारी रत्न सम्मान
5. माँ भारती सम्मान, साहित्योदय
6. हिन्दी दिवस सर्वश्रेष्ठ रचनाकार सम्मान
7. नारी रत्न सम्मान
8. सशक्त नारी सम्मान
              विभिन्न आनलाइन काव्य प्रतियोगिताओं में सक्रिय सहभागिता एवं श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में निरंतर सम्मानित

विशेष : -
- कई साहित्यिक समूहों की सक्रिय सदस्य
- कुछ समूहों में  समीक्षक का दायित्व निर्वहन

Address : Flat no. B. 6B
The Green Garden Apartments
Hesag, Hatia ,Ranchi , Jharkhand - 834003

1. नेकदिल
    *******

काम करके वापस घर जाते हुए मालती सोच रही है, कितनी अच्छी हैं हमारी मैडम जी, कितना ध्यान रखती हैं हम सबका। हमारी ये बेटी, इसका तो बहुत ही ज्यादा ध्यान रखती हैं। इसकी पढ़ाई के लिए भी कितनी चिंता करती हैं।
      लेकिन ये मेरी बेटी है कि समझती ही नहीं। कितना भी समझाओ मानने को तैयार ही नहीं होती है। पिछली बार भी ऐसे ही घर बैठ गई थी, तब मैडम जी ने कितना समझाया था और फिर जाना शुरू किया था इसने। अभी फिर तीन-चार दिन से बैठी है। रोज मैडम जी पूछती है उसके बारे में।
     ऐसी नेकदिल मैडम जी और कहाँ मिलेंगी, कौन इतनी परवाह करता है दूसरों की? गरीब के बच्चे हैं, पड़े रहें। लेकिन देखो इनको, कितना सोचती है हमारे लिए, रोज इसे पढ़ने के लिए आने बोलती हैं।
            इतना बड़ा ट्यूशन क्लास चलता है उनका, इतने बच्चे आते हैं, इतने पैसे मिलते हैं और मेरी बेटी को तो मुफ्त में पढ़ाने को तैयार हैं। फिर भी इस लड़की को कुछ समझ नहीं आ रहा है। आज जाती हूँ तो उसको अच्छी तरह समझाऊँगी।
        इतने में घर पहुंँच गई थी मालती। बेटी के पास जाकर उसे प्यार से समझाया और फिर नहीं मानने पर थोड़े से धमकाने वाले लहजे में भी बोलने लगी कि तुम्हें तो जाना ही पड़ेगा, कैसे नहीं जाओगी? अंत में झुँझलाकर उसकी बेटी ने कहा जो कहा सुनकर मालती हतप्रभ रह गई।
       अभी-अभी अपनी मैडम जी के प्रति आने वाले उसके मन के सभी उच्च विचार पलभर में ही धाराशायी हो गए जब उसकी बेटी ने बस इतना ही कहा था --
     "नहीं जाना मुझे मैडम जी के क्लास में, वहाँ टेबल कुर्सी साफ करने और सभी बच्चों से अलग एक कोने में बैठ कर चुपचाप पढ़ाई करने।" *****

2. बदलाव
    *******

--क्या बात है! ये मंद मंद मुसकान कैसी?
कक्षा से निकलकर स्टाफरूम में आती स्नेहलता से उसकी सहशिक्षिका ने पूछा।
स्नेहलता ने भी चमकती आँखों से कहा --
-- हाँ.... एक बात सोचकर बड़ी खुशी हो रही है।
सहशिक्षिका को भी उत्सुकता हुई --
-- पढ़ाते पढ़ाते ही ऐसी क्या बात हो गई? बताना जरा।
-- हाँ... हाँ, बताती हूँ, आज अचानक ध्यान गया कि मेरी कक्षा में पच्चीस बच्चों में से बीस छात्राएँ ही हैं और मात्र पाँच छात्र हैं।
मैं यही सोचकर खुश हो रही थी कि हमारे समाज में वास्तव में बदलाव आ गया है। गरीब लोग भी स्त्री शिक्षा का महत्व समझ गए हैं और अब अपनी बेटियों को भी विद्यालय भेजने लगे हैं।
सह शिक्षिका ने थोड़ी गंभीर मुद्रा में कहा--
-- एक बार तुम ये भी पता करना कि ये जो लड़कियाँ हमारे सरकारी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने आती हैं, इनके घर के लड़के, इनके भाई सब किस स्कूल में पढ़ने जाते हैं।
स्नेहलता के मुख से भी अब मुस्कान गायब थी। ****

3. नया परिवेश
     *********

तेज बुखार में बिस्तर पर पड़ी स्नेहा अपनी पुरानी यादों में खोई थी।
         पिछली बार जब उसे बुखार हुआ था, किस तरह माँ-पापा दोनों परेशान थे। पापा तो सिरहाने बैठे पट्टी लगाते ही रहे जब तक कि बुखार कम नहीं हो गया। माँ भी अपनी घरेलू व्यस्तता के बीच दौड़ दौड़ कर दवाइयाँ और अन्य सामग्रियाँ ला रही थीं। जब भी पास आतीं सर सहला कर कहती,
"घबराना मत बेटा! जल्दी ही ठीक हो जाओगी"
     तीन दिन लग गए थे उस बार तो बुखार छूटने में।
       और आज प्रतीक्षा करती रही कि कोई आकर प्यार से सिर सहलाए, तबीयत पूछे।
       तभी सासू माँ आती दिखीं। बहुत सुकून मिला उसे, घर के कामों में इतनी व्यस्त रह कर भी उन्होंने समय निकाल ही लिया।  बड़े ही लाड़ से स्नेहा ने उनकी तरफ देखा। सासू माँ ने भी बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। स्नेहा तृप्त हो गई पल भर पहले की पीड़ा है अब कम होने लगी थी कि तभी अचानक उसका ज्वर बहुत अधिक बढ़ गया, जब प्यार से सर सहलाते हुए सासू माँ ने बस इतना ही पूछा था --
         "बहू तुम्हें कोई पुरानी बीमारी तो नहीं है? शादी से पहले भी तुम बार बार बीमार पड़ती थी क्या?" ****

4. एम फार मार्बल
     ************

--"शर्मा जी! आपको मैडम ने बुलाया है"
     सुनते ही शर्मा जी घबरा गए और तेज कदमों से मैडम के केबिन की तरफ चल पड़े। कल से पहले ऐसी परिस्थिति नहीं थी। माधुरी मैडम के प्रति मन में वास्तव में बहुत सम्मान था।
            अभी दस दिन भी तो नहीं हुए हैं, माधुरी मैडम को हमारे आफिस में आए। नाम के अनुरूप ही मधुर छवि, मृदु मुस्कान, सभी को सुकून मिला था एक स्नेहिल अधिकारी को पाकर। किंतु दो-तीन दिनों में ही खुसुर-फुसुर शुरू हो गई आफिस में। कोई कहता --
-- "मैडम जैसी दिखती हैं, असलियत में वैसी नहीं हैं"
तो कोई --
-- "नहीं-नहीं ये तो अनुशासन की बात है और काम का दबाव है।"
कल तो शुक्ला जी बड़े नाराज हो गए थे।  मैडम के केबिन से निकलते हुए भुनभुना रहे थे--
"कोई माधुरी वाधुरी नहीं, ये तो "मैडम एम" हैं.... एम फार मार्बल, उससे भी कठोर......
शर्मा जी ने तब भी समझाया था --
-- "शुक्ला जी! नाराज मत होइए। शायद मैडम किसी अन्य परेशानी में होंगी और गुस्सा आप पर निकल गया...."
कल तो यही कहकर शुक्ला जी के साथ ही साथ शायद अपने मन को भी बहलाने का प्रयास किया था शर्मा जी ने।
किंतु आज ??
धड़कते हृदय के साथ शर्मा जी ने केबिन के अंदर प्रवेश किया। उन्हें देखते ही मैडम बिफर पड़ीं --
-- "ये क्या है शर्म जी! ध्यान कहाँ रहता है आपका ? एक काम ठीक से नहीं कर सकते? देखिए कितनी गलतियाँ की हैं आपने!"
-- मैडम जी! वो..
-- "क्या वो!!! उम्र हो गई है आपकी, काम नहीं सँभलता है तो रिटायरमेंट ले लीजिए। आपके जैसे मातहत नहीं चाहिए मुझे अपने आफिस में...."
शर्मा जी हतप्रभ, मैडम तो कुछ सुनने को ही नहीं तैयार थी। फाइल शर्मा जी की तरफ लगभग फेकते हुए बढ़ाया और अपने माधुर्य को भूलकर पूरी कर्कश आवाज में हुकुम सुनाया --
-- "जाइए और फौरन सब सुधारकर लाइए।"
आँखों में छलक आए अपमान के आँसुओं को रोकते हुए शर्मा जी बाहर निकल आए। निकलते ही शर्मा जी मिल गए और उनसे नजरें मिलते ही शर्मा जी के मुख से निकल पड़ा
-- "एम फार मार्बल।" ****

5. ऋणमुक्त
    ********

सुबह-सुबह आगंतुक के रूप में गोपाल के माता-पिता को देखकर शुक्ला जी हैरान हो गए।
-- "क्या बात है? अचानक आप लोग यहाँ, सब कुशल मंगल तो है?"
-- "हाँ-हाँ साहब!! सब कुशल है।"
"परसों गोपाल से बात हुई तो बताया उसका रिजल्ट आ गया है। उसके बारहवीं पास करने की खुशी में हम अपने आप को रोक नहीं सके और आप लोगों से मिलने चले आए।"
गोपाल की माँ की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए।
-- "साहब ये तो हमारे गोपाल का सौभाग्य है कि आपके साथ रहता है और पढ़लिख कर आगे बढ़ रहा है, वरना गाँव में तो आवारा बना घूमता रहता। आपका ये उपकार हम कभी भूल ही नहीं सकते। हम तो आपके भक्त हो गए हैं।"
शुक्ला जी भी हाथ जोड़कर खड़े हो गए --
-- "अरे नहीं-नहीं!! उपकार की तो कोई बात ही नहीं है। मुझ अकेले इंसान को एक सहारा देकर उपकार तो आप लोगों ने किया है मुझ पर और मुझे अपना ऋणी बना लिया है। मेरा तो संपूर्ण जीवन ही गोपाल पर आश्रित हो गया है। इसे एक  सफल इंसान बनाकर एक सुरक्षित भविष्य प्रदान कर दूँ तो शायद ऋणमुक्त हो सकूँ।" ****

6. दोषी
    ****

शादी की सारी रस्में अभी पूरी भी नहीं हुई थीं कि अचानक ही कंप्यूटर बंद कर दिया राहुल ने।
      स्नेहा ने हैरत में पलट कर देखा तो राहुल आँखों में छलक आए आँसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रहा था। स्नेहा उसकी मन:स्थिति समझ गई और बिना कुछ बोले शांति से उसका सिर सहलाकर दिलासा देने का प्रयास करने लगी।
           अब तो रुके हुए अश्रुधार पूर्ण प्रवाह से बहने लगे। राहुल अतीत की यादों में खोए हुए बोल रहा था और स्नेहा चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी --
"कितना बेबस महसूस कर रहा हूँ आज मैं अपने आपको!!!"
"शायद ऐसी ही आशंका से माँ मुझे यहाँ आने से रोक रही थी। कैसे मेरी बात सुनते ही उन्होंने प्रतिक्रिया दी थी?"
-- "अमेरिका!!!! क्यों? क्या कमी है यहाँ???"
"नहीं-नहीं बिल्कुल नहीं जाना है वहाँ सात समुंदर पार। सुना है एक बार जो गया, वहीं का होकर रह जाता है। वापस कभी नहीं आता है।"
-- "नहीं माँ!! मैं दो वर्षों के भीतर ही आप सभी के बीच वापस आ जाऊँगा।"
"कितने आश्वासनों के बाद मैंने उन्हें मनाया था!!"
"आज आखिर उनकी आशंका सही साबित हो ही गई।"
"अब तो उन्होंने पूछना भी छोड़ दिया है कि मैं कब स्वदेश वापस लौटूँगा।"
दिली चाहत और कितनी कोशिशों के बाद भी मैं नहीं जा सका अपने घर, अपनों के बीच।"
"क्या तुमने कभी सोचा था स्नेहा!! कि मैं अपनी इकलौती बहन की शादी इतनी दूर बैठकर इस तरह से देखूँगा?"
     स्नेहा के पास दिलासा के लिए कोई शब्द नहीं थे। शायद उसका अंतर्मन इन परिस्थितियों के लिए स्वयं को भी दोषी मान रहा था । ****

7. दृढ़ निश्चय
     ********

राकेश के लिए अत्यंत ही कठिन परीक्षा की घड़ी थी जब उसकी पत्नी स्नेहा का कोरोना पाजिटिव रिपोर्ट आया था। एक तरफ ऑफिस के इतने बड़े प्रोजेक्ट का रिपोर्ट तैयार करने का अंतिम वक्त, और दूसरी तरफ इस विचित्र बीमारी की इतनी बड़ी समस्या।
          स्नेहा ने तो बहुत समझाया कि
"मैं अस्पताल में भर्ती हो जाती हूँ, सारी समस्या का समाधान हो जाएगा।"
         लेकिन राकेश को भी अपनी पत्नी भक्ति साबित करने का यह अवसर गँवाना नहीं था। बड़ा सा घर था उनका, इसलिए कोरोन्टाइन  वाली बात कोई बड़ी समस्या थी नहीं। स्नेहा के प्यार और समर्पण के बदले उसे भी अपना प्यार दिखाने का ये इकलौता अवसर मिला था। आखिर उसने दृढ़ निश्चय के साथ स्नेहा को घर में ही एक कमरे में रखा। उसका पूरा ख्याल रखते हुए अपनी रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी को भी  परस्पर निभाया।
         अति व्यस्तता के साथ ये परेशानी वाले दिन कैसे बीत गए पता भी नहीं चला।
         आखिर स्नेहा की निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद आज दोनों साथ बैठकर चाय पी रहे हैं और स्नेहा राकेश के इस अनोखे अनुभव के किस्से बहुत ही  स्नेहपूर्वक सुन रही है। ****

8. गतिरोध
   *******

"....... इस पद के लिए आपका चयन सुनिश्चित किया जाता है। कृपया सोमवार से अपना कार्यभार सँभालें।....."
ये पंक्तियाँ पढ़ते-पढ़ते स्नेहा की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए। एक उज्जवल भविष्य की चमक आँखों में लिए पास में खेल रही अपनी पाँच वर्षीया बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए बीते दो वर्षों की सारी घटनाएँ चलचित्र की भाँति मस्तिष्क से गुजर रही थीं।
       अचानक ही रोहित का दुर्घटनाग्रस्त होकर सबको छोड़ जाने की असह्य पीड़ा अपनी इस नन्ही सी गुड़िया के साथ सहनी पड़ी था। कहने को तो भरा पूरा परिवार था। सबने खूब हमदर्दी दिखाई और आश्वासन भी भरपूर मिला।
किंतु मात्र बातों से जीवनयापन तो संभव नहीं हो सकता था। उस पर से ससुर जी का फरमान कि हमारी बहू कहीं बाहर नौकरी नहीं करेगी।
       अपनी हर छोटी बड़ी जरूरत के लिए घर के सदस्यों की तरफ ताकते रहना स्नेहा को बिल्कुल पसंद नहीं आता था। उसके जीवन की रफ्तार तो थम ही गई थी, अब उसे अपनी नन्ही गुड़िया के भविष्य की चिंता सताने लगी थी। बड़ी मुश्किल से उसने पापा जी को समझाया था और अपनी नौकरी के लिए सहमति माँगी थी।
       कितने ही आवेदनों और साक्षात्कारों के पश्चात अंततः उसे आज ये खबर मिल ही गई जिसके लिए व्यग्रता अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी।
      ये खुशखबरी उसने सबसे पहले पापाजी को सुनाई, उनसे आशीर्वाद लिया और अपने जीवन में आए इस विशाल गतिरोध को पार  करते हुए एक आत्मनिर्भर भविष्य की ओर अग्रसर होने की तैयारी में जुट गई। ****

9. किस्मत
    ******

"बेटी! इस बार तो बहुत दिन लगा दिए तुमने मायके आने में। मन तरसता रहता है तुमसे मिलने को।"
"हाँ माँ! क्या करूँ? जिम्मेदारियाँ ही इतनी बढ़ गई हैं कि घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। मन मसोसकर ही रहना पड़ता है।"
"बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूँ इस बार घर से।"
"अच्छा माँ! अपने मुहल्ले का हालचाल सब बताओ।  वो कमला चाची अब कैसी हैं? सुना है बहुत बीमार हैं, बिस्तर से उठ भी नहीं पाती हैं।"
"हाँ बेटा! सही सुना है तुमने, कुछ भी नहीं कर पाती हैं अब। सबकुछ बहू ही सँभालती है।"
"लेकिन रौब तो आभी भी वैसा ही है। इतनी सेवा करती है बहू, फिर भी चार बातें सुनाती ही रहती हैं।"
"और बहू इतनी सुशील कि एक बार भी पलटकर जवाब नहीं देती है।"
"बड़ी किस्मत वाली हैं कमला दीदी।"
"हाँ माँ! ये तो सही कहा आपने...."
"लेकिन माँ! भाभी की किस्मत?? कभी सोचा आपने?"
"बेचारी....."
माँ निरुत्तर हो गई......! ****

10. बचपन बचाओ
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छुट्टी के दिन सुबह इतनी जल्दी काम वाली को आया देखते ही शालिनी ने पूछा--
-- अरे इतनी जल्दी कैसे आ गई? आज तो रविवार है।  आज तो मैं तुम्हें देर से बुलाती हूँ।
-- अरे मैडम जी!! किसी तरह आ गई हूँ, आज आधा काम करके जल्दी ही निकल जाऊँगी।
-- क्यों, क्या हो गया?  कोई परेशानी है क्या?
-- नहीं नहीं आज वो बड़े वाले मैदान में नेताजी का बचपन बचाओ रैली है ना!! उसी में हमको अपना बेटा को पहुँचाना है। बस्ती का सब बच्चा को वहाँ जमा होना है, जुलूस के लिए। दिन भर का ₹100/ भी मिलेगा और खाना भी। हमारे घर के पास जो ठेकेदार रहता है ना! वही बताया है।
      -- इतना ही नहीं ठेकेदार तो वादा भी किया है कि जो बच्चा सब आज वहाँ समय पर पहुँच जाएगा सबको नौकरी भी दे देगा।
       शालिनी हतप्रभ सी सारी बातें सुन रही थी। उधर टीवी में न्यूज़ हैडलाइन आ रहा था
--"आज देश में बढ़ते बाल मजदूरी को रोकने के लिए महान नेता जी......  की बचपन बचाओ रैली है।" ****

11. करवा चौथ
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आज करवा चौथ है। सोसाइटी की सभी महिलाओं की तरह शिखा भी तैयारियों में लगी हुई है। बस उसके मन में उनकी तरह किसी प्रकार का उमंग या उत्साह नहीं है। सभी कार्य यंत्रवत कर रही है।
        पिछले वर्ष की करवा चौथ की घटना  को याद करते ही कितनी सारी बातें चलचित्र की भाँति  उसके मन मस्तिष्क पर उभरने लगीं।
        इतने समझदार और प्यार करने वाले   इंसान राकेश को अपने जीवन साथी के रूप में पाकर शिखा धन्य हो गई थी। लेकिन उसकी ये खुशी कुछ वर्षों की ही रही। नियति का फेर कहें या गलत संगति  का प्रभाव, राकेश को शराब पीने की लत लग गई।  कभी-कभार कुछ खास मौकों पर मात्र साथ निभाने के लिए पीने वाला राकेश अब अक्सर पीकर देर रात  घर आने लगा। उसे सही रास्ते पर लाने के शिखा के सारे यत्न विफल हो गए थे। शनै: शनै: शिखा ने नियति के इस स्वरूप को स्वीकार कर लिया और जी जान से बच्चों की परवरिश में लग गई। पूरे जतन से उनकी देख रेख करते हुए उन्हें एक सफल इंसान बनाया और पिता की बुरी आदतों से से दूर रखने में सफल रही थी।
         बेटा विक्की के विवाह के पश्चात पिछले वर्ष बहू के पहले करवा चौथ के अवसर पर भी राकेश ने देर रात घर आकर बहुत हंगामा किया था। बहू  पापा जी के इस रूप को देखकर हतप्रभ थी। करवा चौथ की सारी तैयारियाँ फीकी हो गई थीं। सारी पूजन विधियाँ बस औपचारिक तौर पर ही संपन्न हुई थीं। सभी का उत्साह धाराशायी हो चुका था। सभी अपने अपने कमरे में सिमट गए। बेटा बहू तो एक दिन बाद चले गए लेकिन शिखा और राकेश के मध्य महीनों तक संवादहीनता का माहौल बना रहा। यद्यपि राकेश ने माफी भी माँगी और सुधरने का वादा भी किया।
       एक वर्ष में सुधार के कुछ लक्षण दिख भी रहे थे किंतु शिखा को कोई भरोसा नहीं था।  रस्मी तौर पर उसने सब कुछ किया। पूजन विधि पूर्ण कर चाँद को देखकर छन्नी रखने ही वाली थी कि सामने हाथों में मिठाई का पैकेट लिए राकेश दिखा।  इस समय राकेश के यहाँ होने की उम्मीद तो शिखा  बरसों से छोड़ चुकी थी। सुखद आश्चर्य से देखते हुए पूछा -
-- आप इतनी जल्दी कैसे आ गए?
राकेश ने भी शिखा को मिठाई खिलाते हुए कहा -
-- तुम्हारा राकेश वापस आ गया है शिखा। अब तुम्हें मेरी तरफ से कभी भी कोई भी शिकायत नहीं होगी।  इस एक वर्ष में मुझे भी अत्यधिक शर्मिंदगी महसूस हुई है। अब तो बेटा बहू के साथ धूमधाम से अगला करवा चौथ मनाएँगे तभी पिछले वर्ष की तुम्हारी शर्मिंदगी की कसर दूर होगी। ****
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क्रमांक - 03

      जन्म : 15 अप्रैल 1976

शिक्षा : विज्ञान स्नातक
पति : जस्टिस दीपक रौशन न्यायाधीश , झारखंड उच्च न्यायालय, राँची

प्रकाशित पुस्तकें -
एक स्पेस  (लघुकथा संग्रह) - 2021
माँ और अन्य कविताएँ ( काव्य संग्रह ) - 2015

सम्मान : -
- नव सृजन साहित्य सम्मान - 2017
- शिक्षा साहित्य सेवा सम्मान - 2017
- मगसम , दिल्ली द्वारा रचना शतकवीर सम्मान - 2018
साहित्य संगम संस्थान , दिल्ली द्वारा वीणापाणि सम्मान  - 2018
- सोसायटी फ़ॉर यूथ डेवलपमेंट , नई दिल्ली द्वारा त्रिलोचन सम्मान - 2019
- अखिल भारतीय प्रसंग , जबलपुर , म.प्र. द्वारा कथा शिल्पी सम्मान - 2020
- विश्व हिंदी रचनाकार मंच द्वारा अटल हिंदी सम्मान -  2020
- जैमिनी अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता  में तृतीय पुरस्कार प्राप्त
- श्री सुदार्शनिका पत्रिका द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ऑनलाइन हिंदी लेखन प्रतियोगिता 2019  में लघुकथा श्रेणी में द्वितीय स्थान प्राप्त ।
- कलमकार पुरस्कार प्रतियोगिता 2019 - 2020 ” में  लघुकथा श्रेणी में तृतीय पुरस्कार प्राप्त

विशेष : -
- 12 वर्ष की उम्र से निरंतर लेखन में सक्रिय
-  आकाशवाणी एवं दूरदर्शन राँची से समय - समय पर प्रसारित होती कविताएँ , कहानियाँ व नाटक ।
-  महिला काव्य मंच ( रजि. )  अंतरराष्ट्रीय काव्य मंच की महासचिव एवं झारखंड , बिहार , पश्चिम बंगाल राज्यों की प्रभारी
- आगमन समूह , नई दिल्ली  की राष्ट्रीय महासचिव
- झारखंड हिंदी साहित्य संस्कृति मंच की साहित्यिक गतिविधियों  में निरंतर सक्रियता

पता : सारिका भूषण W / O जस्टिस दीपक रौशन
बंगला नम्बर - 4 , न्यू जज कॉलोनी , डोरंडा , राँची - 834002 झारखंड

1. आस
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आज ठीक दस दिन पूरे हो गए । दिन भर मजदूरों का आना जाना ... पूरे घर में सीमेंट , पत्थर की धूल और ऊपर से त्योहारों का समय । पता नहीं बाथरूम की मरम्मत का काम कब खत्म होगा । बेला परेशान हो चली थी ।
दो कमरों का छोटा सा घर , एक बाथरूम  घर के अंदर था और एक बहुत छोटा चार बाई चार का टॉयलेट बाहर वाली सीढ़ी के पास था और वहाँ हाथ फैलाने की भी जगह नहीं थी । मजबूरन बेला , पति और बच्चे सभी को रसोईघर में नहाना पड़ता था ।
" मुझे लगता है मकानमालिक पैसे देने में कंजूसी कर रहा है । तभी तो मजदूर इतने धीरे - धीरे काम कर रहे हैं । " बेला की भी परेशानी कभी - कभी मुखरित हो जाती थी ।
" अरे बाबा ! ऐसे मरम्मतों में वक़्त तो लग ही जाता है । बाथरूम में सारे पाइप और समान नए तरीके से लग रहे हैं । पूरा दीवार भी तो तोड़ना पड़ा है । घर भी तो काफी पुराना है । कुछ दिनों की बात है बस ...." पंकज सारी परेशानियों को समझते हुए भी मकानमालिक की तरफदारी करते हुए बेला को समझाने की कोशिश कर रहा था ।
बच्चे तो घर बदलने की ज़िद करने लगे थे । मगर बेला हमेशा की तरह मुस्कुराकर उनकी बातों को ठीक वैसे ही टाल दे रही थी जैसे आज तक उनकी फरमाइशों को टालती आई थी । पर वह अपने बटुए का वजन और पंकज की सैलरी बढ़ने की उम्मीद कभी खोने वाली नहीं थी ।
ठीक ही तो है जब उम्मीद नहीं होगी तो विश्वास कैसा और विश्वास नहीं रहा तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा । बेला रोकर जीने वालों में से नहीं थी ।
बेला रात के खाने की तैयारी में जुट गई थी । तभी दरवाज़े की घंटी बजी । बच्चों को आवाज़ लगाई मगर टी वी की आवाज़ शायद ज़्यादा थी। आटे लगे हाथ से ही बेला ने दरवाज़ा खोला और कुछ सेकेंड के लिए बिल्कुल शांत हो गई । वह समझ नहीं पा रही थी कि खुशी ज़ाहिर करे या चिंता ।
" कैसी हो ..... बच्चे नहीं दिख रहे ... पंकज अभी नहीं लौटा क्या ? "
" हां ... हां ... बाबूजी सभी यहीं हैं । " बेला ने खुद को संभाला और झट से गाँव से आए सास - ससुर के पाँव छुए ।
" सब ठीक है न बहुरिया ? "
" हां अम्मा जी .. सब ठीक है । " बेला बाथरूम के दरवाज़े को बंद करते हुए खिलखिला उठी । बेला ने खिड़की से झांका तुलसी चौरा पर रखा संझा दीया अब भी पूरी रौ में जल रहा था । ****

2. मुस्कुराहट
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दुनिया को दिखाने वाले सारे रस्म- रिवाज़ पूरे हो चुके थे । रोना - धोना भी बंद हो चुका था । तीन दिनों का हवन पूरा होते ही अब सभी को लौटने की हड़बड़ी थी ।
पूरे दस दिन मिसेज़ परमार अस्पताल में भर्ती थी । तीनों बेटे सपरिवार माँ के पास दौड़े भागे आ गए थे । यही काफ़ी था मिस्टर परमार के लिए । तभी तो बारह दिनों के काम की चाहत रखते हुए भी उन्होंने बेटों के द्वारा तीन दिनों के हवन रखने के अनुरोध को  टाल नहीं सके । वैसे भी जब सबसे करीबी ही नहीं तो क्या मतलब है इतनी दुनियादारी और दिखावे का ?
मिस्टर परमार बिलकुल टूट चुके थे । अंदर का ख़ालीपन उन्हें खाए जा रहा था ।मगर वह बच्चों के सामने खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहते थे । वह अपने इस छोटे से घर में रागिनी की यादों के साथ बाक़ी का जीवन बिताना चाह रहे थे । मगर बच्चे उन्हें अपने साथ ले जाने को अड़े थे ।
अपने उसूलों के पक्के , ज़िद्दी स्वभाव वाले मिस्टर परमार इतनी आसानी से बच्चों के साथ चलने को राज़ी हो जाएँगे यह किसी ने नहीं सोचा था ।
सभी के जाने की तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं । मिस्टर परमार की भी ..... बस उन्हें यह अभी तक नहीं पता था कि अपने तीन बेटों में से किसके पास जाना है । कल तक जो बेटे एक साथ उनको ले जाने की रट कर रहे थें , आज सुबह से अचानक किसी के बच्चे की दसवीं के बोर्डस तो किसी के बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ गई थीं ।
मिस्टर परमार ने अपने बेटों और बहुओं को बुलाया और कहा कि “ सोचो मैं कितना ख़ुशक़िस्मत हूँ कि मेरे बच्चे अपने पिता को अपने पास ले जाने के लिए लड़ रहे हैं । लेकिन तुमलोग अभी अकेले ही जाओ । मैं कुछ महीनों बाद ऋचा और अमित की परीक्षाओं के बाद आ जाऊँगा । तब तक रागिनी के बिना रहने की आदत भी हो जाएगी ।”
बच्चों के जाने के बाद मिस्टर परमार रागिनी की तस्वीर देखकर ठीक वैसे ही मुस्कुराए जब बच्चों ने उनकी फार्म हाउस वाली  ज़मीन को बिल्डर को देने के लिए अग्रिमेंट पर साइन करवाया था । उस समय तो रागिनी नहीं मुस्कुराई थी पर आज उसकी मुस्कुराहट मिस्टर परमार के दिल में घर कर गई । ****

3. एक स्पेस
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ठंड की दस्तक तेज थी । हवाएं बदन सिहराने के लिए काफी थीं । नवंबर माह में सुबह पांच बजे उठकर तैयार होकर पार्क जाना कोई मामूली बात नहीं थी । मैं बिना नहाए घर से बाहर नहीं निकल सकती और शायद इसलिए मुझे प्रतिदिन नहाते वक्त नानी का ' कार्तिक स्नान ' याद आता था , जो नानी की दिनचर्या में शामिल था गंगा नदी जाने के लिए ।
अब यहाँ छोटानागपुर में न तो गंगा नदी है और न अब दिखता कोई नदी में कार्तिक -  स्नान । हां ! बिजली नहीं रहने पर बाथरूम में ठंडे पानी से स्नान करने में ज़रूर कार्तिक - स्नान की याद आ जाती है । पौने छह में मैं अपने ट्रैक - शूट में पार्क में पहुँच जाती । न चाहते हुए भी निगाहें मिस्टर वर्मा को ढूंढने लगती । जैसे ही मिस्टर वर्मा दिख जाते तो मेरी नज़रें दूसरी और देखने लगती , मानो मैंने किसी को न देखा ।
" हेलो मिसेज फ्रेश "
मिस्टर वर्मा के मुख से आज तीन शब्द सुनकर न जाने कौन सी नज़दीकियों का आभास होने लगा । आज थोड़ा और जोश से वाकिंग ट्रैक पर पांव बढ़ने लगे । कुछ मीठी मीठी सी लगने लगी थी पार्क की हवा । पेड़ों से छन कर आती धूप भी गुदगुदाने लगी थी । एक घंटा टहलते हुए कैसे बीत गया पता ही न चला ।
पिछले एक महीने से हमारे बीच सिर्फ 'हेलो ' ही होता था । पर ' हेलो ' भी बहुत अच्छा लगता था ।और आज तो .....दिल बहुत खुश था ।
आज नींद देर से खुली ।
"चलो आज मैं भी वाक पर चलता हूँ । अब तो खुश हो ! " घर से निकलते वक़्त पति की अचानक आवाज़ आयी । पता नहीं क्यों थोड़ी आज़ादी छिनती हुई लगी ।
मैंने मुस्कुराकर कहा " हाँ ! हाँ ! चलो न !! "  पर शायद थोड़ा ऊपरी मन से ।
हम पार्क में पहुँच चुके थे । मेरी निगाहें आज किसी को नहीं ढूंढ रही थी । आज हवाएं भारी लग रही थी । धूप भी तीखी लग रही थी । पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था मानो मेरी आँखें खुद से आँखें चुरा रही हों।
शायद हर किसी को चाहे स्त्री हो या पुरुष अपने रिश्तों के बीच एक स्पेस चाहिए । रिश्ते बोझ न बने , उनके दायरों में घुटन न लगे , इसके लिए शायद एक मर्यादित स्पेस चाहिए ।
" देखो , देखो वह मिस्टर हैंडसम तुम्हें कैसे घूर रहा है । " पति ने चुहलबाजी करते हुए कहा ।
" पता नहीं , मैं इधर - उधर नहीं देखती । " बड़ी सहजता से मैंने अपनी सफाई दे दी और पार्क में अपने चक्कर गिनने लगी । ****

4. गृहप्रवेश
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शर्मा दंपति के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे । मुम्बई जैसी महानगरी में उनके इकलौते बेटे ने तीन रूम का अपना फ्लैट  ले लिया था ।
" माँ - पापा आपलोग अपनी पैकिंग कर लिए न । परसों सुबह की ही फ्लाइट है । अब आपलोग हमारे साथ ही रहेंगे । पहले छोटा घर होने की वजह से आपलोगों को बुला नहीं पाता था । खैर अब हम साथ रहेंगे । " मोबाइल के स्पीकर पर बेटे की बात सुन कर शर्मा जी का सीना चौड़ा हो गया था ।और मिसेज़ शर्मा तो माँ भगवती को धन्यवाद और बेटे को आशीष देते नहीं थक रही थी ।
दोनों की तैयारियां ज़ोर शोर से हो रही थी । और करे भी न क्यों न ....आखिर शर्मा जी ने अपने रिटायरमेंट के सारे पैसे भी बेटे को फ्लैट खरीदने के लिए दे दिए थे । सोसाईटी में भी शर्मा जी के बेटे के गृहप्रवेश की चर्चा खूब हो रही थी । बाकी सभी के बच्चों ने फ्लैट ले लिए थे । सिर्फ़ शर्मा जी ही बचे थे ।
ख़ुशी तो ख़ुशी होती है मगर कभी - कभी दूसरों को दिखाने में दुगुनी प्रतीत होती है ।गृहप्रवेश पूरा हो चूका था । रिश्तेदार , मित्र भी जा चुके थे । नए फ्लैट , नई और आधुनिकता से लैस सोसाईटी में शर्मा जी सपत्नीक काफी खुश थे ।
पर कुछ ही दिनों में उनकी खुशी अकेलेपन में तब्दील होती गई । मल्टीनेशनल में कमाने वाला बेटा अक्सर देर रात लौटता और फिर बहू के साथ क्लब चला जाता । दिन के समय में बहू कभी सहेलियों के किटी में चली जाती तो कभी शॉपिंग करने ।कभीकभार देर होने पर पूछने पर बड़े प्यार से बोलती " माँ , आप तो जानती है बड़े शहरों में कितना समय ट्रैफिक में लग जाता है । हाँ , आपने बाई से सारे काम तो करवा लिए थे न । मैं बहुत थक गई हूँ ।अपने कमरे में जाती हूँ ।"
दिन गुज़र रहे थे । एक घर में रहकर बेटे - बहू से बात करने को शर्मा जी तरसते थे । एक दिन अपनी पत्नी की हाथों में एक लिफ़ाफा देते हुए बोले " नीरा इस लिफ़ाफे में कल शहर लौटने के टिकट है और कुछ बचे पैसे हैं । बच्चों से फ़ोन पर अभी से ज़्यादा बातें हुआ करेंगी । चलो हम फ़िर से गृहप्रवेश करते हैं । " ****

5. आत्मग्लानि
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" आज मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा  .......प्लीज़ नितिन चलो न कहीं घूमने चलते हैं । "
" हम्म "
" नितिन चलो न मूवी ही देखकर आते हैं । "
"  हम्म "
" सुन रहे हो ......"
" उफ्फ शैली ! अब बस भी करो । मुझे कल तक यह रिपोर्ट बना कर जमा करना है । मेरे पास फालतू का टाइम नहीं है । "
" ठीक है नितिन । तुम रिपोर्ट बनाओ .......मैं ही पागल हूँ जो दोस्तों के साथ न तो शॉपिंग पर जाती हूँ , न मूवी देखने जाती हूँ और न ही किटी पार्टी में ........ महीने में बीस दिन टूर पर रहते हो । कभी सोचा है मैं किस तरह अपना मन बहलाती हूँ । "
" तो क्यों नहीं जाती ? मैंने मना किया है क्या ? घर में गाड़ी है , ड्राइवर है तुम्हारा अपना क्रेडिट कार्ड है । जहाँ मन वहाँ जाओ   ......." नितिन गुस्से में अपना लैपटॉप उठाकर दूसरे कमरे की ओर जाने लगा ।
" मैडम ! मैडम ! आपको पता है सामने चार नम्बर फ्लैट वाली मैडम अपने बेटे के ट्यूटर के साथ भाग गई । "
" क्या बोल रही है बानो ? यह क्या हो रहा है । अभी पिछले ही हफ़्ते मिसेज़ परमार अपने ड्राइवर के साथ ......." बोलते - बोलते अचानक शैली के चेहरे के भाव बिल्कुल बदल गए ।
" चलो ठीक ही है ....जिसके साथ मन मिले उसी के साथ रहना चाहिए । " नितिन की ओर देखते हुए शैली ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा ।
पता नहीं क्यों इस बार आत्मग्लानि नितिन को होने लगी थी । ****

6. विश्वास की गांठ
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" अम्मा , और कितनी देर लगाएगी ? चल न घर  ..."
" अरे चलती हूँ न । क्यों माथा खाए जा रहा है । थोड़े ही बरतन बचे हैं । अभी बीबी जी भी पूजा कर के आ ही रही होंगी । पगार लेकर चलती हूँ ।"
" तू बाहर बाड़ी में जाकर खेल न । " काम में परेशान करते हुए  अपने सात साल के बेटे मंटू पर इटकी ने झल्लाहट उतारी ।
मंटू बड़बड़ाते हुए बाहर की ओर चला गया ।
" इटकी ! अरी ओ इटकी ! कब से आवाज़ दे रही हूँ । कहाँ ध्यान रहता है तुम्हारा । जा पूजा घर के बाहर प्रसाद रखा हुआ है ।जाते वक़्त ले लेना । " बीबी जी अपने हाथ में अनंत पूजा के धागे को बांधते हुए थोड़ी उदारता दिखाना चाही।
मगर भूखे को जैसे रोटी दिखती है वैसे ही इटकी को सिर्फ़ अपनी पगार चाहिए थी ताकि बिस्तर पर पड़े लकवा के मरीज़ अपने मरद के लिए मालिश की तेल खरीद सके ।
मगर एक सप्ताह पहले पगार मांगने के लिए हिम्मत जुटाना भी इटकी के लिए आसान नहीं था ।
" अम्मा अब चलो भी .....बाबा खोज रहे होंगे ...." मंटू की आवाज़ ने फिर एकबार इटकी को झकझोर दिया ।
" बीबी जी ! .....वो....वो मुझे इस महीने की पगार चाहिए थी ...."
" अरे ! पैसे क्या पेड़ में उगते हैं ? अभी तो साहब को भी पगार नहीं मिली है । और इस महीने तो तू पूरे पांच दिन नागा की है । " बीबी जी ने फलों से भरी थाली में से एक सेब लेकर काटते हुए इटकी की बातों को बीच में ही काटा ।
इटकी को इससे आगे बोलने की हिम्मत नहीं हुई । पूरे पांच दिन इटकी अपने मरद के लिए किस तरह परेशान थी इसको बीबी जी को बताने का भी कोई फायदा नहीं था ।
मंटू का हाथ पकड़ते हुए इटकी भारी दिल से बाहर की ओर निकल गई ।
" अरे मंटुआ ई मुट्ठी में क्या पकड़े हुए है ? " पल्लू से आंखों की कोर को पोंछते हुए इटकी ने पूछा ।
" अरे ! बोलता काहे नहीं है ? "
" अम्मा ई धागा है ....बीबी जी की बांह में जो बंधा था .....मुझे गिरा मिला ......"
" पगला गया है क्या .....इसी धागा का तो उनलोगों ने आज पूजा किया है ......और तू इसको चुरा लाया ....." इटकी ने मंटू के गाल पर तमाचा जड़ते हुए अपना गुस्सा उतारा ।
" अम्मा ! बाबा की बांह पर हमको इस धागे को बांधना है । देखना बाबा ठीक हो जाएंगे । बीबी जी रुनु दीदी को यह धागा बांधते हुए बोल रही थी कि इससे सब ठीक हो जाएगा । "
अपने सात साल के जिगर के टुकड़े को इटकी ने गला लगा लिया । उसकी चोरी में छिपे प्यार को शायद वह शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी । इटकी की सारी कड़वाहट और परेशानियां उस चोरी के धागे पर विश्वास की गांठ बनते हुए लिपटी जा रही थी । ****

7. तीज की साड़ी
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पूरा पलंग साड़ियों और सृंगार के सामान से ढक चुका था । सारी चीजें तो थी कांजीवरम सिल्क , मणिपुरी सिल्क , जरी बॉर्डर की साड़ियां , लाल - लाल चूड़ियां , रंगबिरंगी लाह की चूड़ियां , नग वाली बिंदियाँ , नक्काशी वाले सिंदूर की डिबिया .....जिससे एक स्त्री का मन नाचने लगे । लेकिन इतने तोहफ़े किसी को मिले और ढिंढोरा न पीटा जाए तो किटी पार्टियों में शान कैसे बढ़ेगी ।
मिसेज़ माथुर अपनी सारी किटी फ्रेंड्स को बुला चुकी थी । पहनावे की ढेर हो और दिखावा न हो , भला ऐसा हो सकता है क्या ?
" मान गए मिसेज़ माथुर क्या समधियाना पाई हैं आप । तीज में अब मिस्टर माथुर आपको क्या तोहफ़ा देंगे । आपकी बहुओं के घर से ही जब सब के लिए इतना कुछ आ गया ।"
सहेलियों की बातें मिसेज़ माथुर की कानों में मिसरी की तरह घुल रही थी । अब साड़ियों को और दुगुनी उत्साह फैला कर दिखाने लगी थीं मिसेज़ माथुर ।
" मम्मी जी चाय ! " तभी दरवाजे पर ट्रे लेकर निशा खड़ी थी ।
" हां ..हां और समोसे ? " मिसेज माथुर खातिरदारी में कोई कसर छोड़ना नहीं चाह रही थी ।
" जी समोसे भी लाई हूँ । बिल्कुल गरम हैं । आंटी आपलोग लीजिए न ।" निशा ने बड़े प्यार से ट्रे आगे बढ़ाया।
" मिसेज़ माथुर यह आपकी सबसे छोटी वाली बहू निशा है न , जो शादी के समय किसी गांव में स्कूल टीचर थी ? " मिसेज़ शर्मा ने सब जानते हुए चुटकी ली ।
" अरे हां !  इसके मायके से क्या आया ? आपने तो दिखाया ही नहीं । " मिसेज़ वर्मा भला कैसे चुप रह सकती थीं ।
" हां ..हां ..यह छींट वाली साड़ी है न मेरे और मम्मी जी के लिए जिसमें अम्मा ने अपने हाथों से लेस और सितारे लगाए है और पापा जी के लिए यह धोती है । " अपनी मम्मी जी का अचानक से उतरा चेहरा देखकर निशा ने कोने में रखे एक थैले से कपड़े निकालकर सबको दिखाया ।
" आंटी मेरे मायके से हरी सब्जियां भी आई है , आप देखेंगी ? " निशा के स्वाभिमान की दखलंदाज़ी से हंसी - मजाक का माहौल एकदम से अचानक शांत हो गया ।
थोड़ी कानाफूसी हुई और फिर कमरे में ठहाके गूंजने लगे ।मिसेज़ माथुर के चेहरे का रंग बिल्कुल उस कांजीवरम साड़ी की तरह लाल हो गया जिसके ऊपर निशा ने प्यारी सी मलमल की साड़ी रख दी थी ।
निशा को सबसे प्यारी मां के हाथों से बनी वह चटख रंग की तीज की साड़ी ही लग रही थी और जिसकी चमक के आगे सारी साड़ियां उसे फीकी लग रही थी । ****

8. चरघरवा
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           " अरे ! सुगनवा काहे बात नहीं सुनता है ? जब देख तब पोटलिया बाँध लेता है । अबकी कस के लथाड़ेंगे ....... बता देते हैं । "
"जा! जल्दी से भीतरे से औरो दियरा और खिलौनवा ले आओ । अरे ! सुनता नहीं है का ? हम मरल जा रहे है धूपवा में बेच - बेच कर और ई है कि कनवा में ठेपिया लगाकर बईठा है ।" अबकी बार फुलवा कुम्हार अपने 10 वर्षीय बेटा , सुगना को चिल्लाते हुए बोला ।
रांची के हरमू बाज़ार में सभी फुलवा कुम्हार को जानते थे । शादी- ब्याह में और दीपावली के समय उसे ख़ास करके याद किया जाता था ।
फुलवा एक गरीब कुम्हार था । मगर बारीक काम के कारण लोग उसके बनाए मिट्टी के दीए और खिलौनों को काफी पसंद करते थे। जो भी थोड़े बहुत अपने गांव से बनाकर शहर में बेचने आता सभी हाथों - हाथ बिक जाते थे ।
सुगना दौड़ कर अंदर वाले बोरे से मिट्टी के खिलौने ... छोटा चुक्का , चूल्हा, सूप, गुल्लक सभी ले आया.......सिर्फ एक छोड़कर .....एक चरघरवा , जिसमे चार छोटे - छोटे चुक्के जुड़े रहते हैं एक टांगने की हैंडिल के साथ । क्योंकि दीपावली के दिन मालकिन से उन चारों चुक्के में लावा , भूंजा और चीनी की मिठाई मिलेगी .....जो कि उसकी छोटी हथेलियों से बड़े होंगे । ****

9. मृग - मरीचिका
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" आह ! ....कौन है.....!!!!"
" उफ्फ ...अरे ....अरे ....कौन है ???? "
" कोई .....बचाओ !!..."
नैना चीखती ही चली जा रही थी । जितनी बार उस पर प्रहार हो रहा था , दर्द बढ़ता ही जा रहा था ।
अचानक इस खुले मैदान में आख़िर कौन उस पर वार किए जा रहा था और क्यों ?
नैना के जिस्म पर ज़ख्म बढ़ते जा रहे थे । उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था ।
तीखी धूप में मारने वाले का चेहरा भी साफ़ नहीं था । आस पास कहीं छांव नहीं दिख रही थी और न ही कोई बचाने वाला ।
दर्द से कराहते हुए नैना भागने की कोशिश कर रही थी । मगर वह असमर्थ थी । पूरा बदन लहूलुहान हो चुका था ।
थोड़ी ही देर में वह बीच रेगिस्तान में थी । मगर कैसे ....उसे पता ही नहीं चल रहा था । प्यास से उसका कंठ सुख रहा था । मगर मृग मरीचिका सी वह पागलों की तरह अपनी जान बचाने के लिए दौड़ी जा रही थी ।
उसकी धड़कनें काफ़ी तेज थी । तेज धूप से उसकी आँखें नहीं खुल रही थी ।
तभी मानो किसी ने उसे जोर से हिलाया । अचानक आंखें खुली और नैना बुरी तरह हांफ रही थी । पसीने से लथपथ उसकी नज़रें खिड़की की तरफ़ गई ......" हे भगवान ! ....मैं यहाँ ......तो क्या वह स्वप्न था ....कैसा भयानक था ....."
खिड़की के बाहर के हरे - भरे खेत , पेड़ - पौधे , सभी जगह धूप पसर चुकी थी और मानो उसे झकझोर कर नींद से जगाना चाह रहे थे ।
" हैलो ! चड्डा साहब , मुझे क्षमा करेंगे । मुझे अपनी ज़मीन पर अपार्टमेंट नहीं बनाना और न ही तालाब भरना है । मैंने अपना इरादा बदल लिया है । मानती हूं राज्य के विकास की जिम्मेदारी प्रशासन की भी होती है मगर मुझे अपने झारखंड को रेगिस्तान नहीं बनाना ।  " कलेक्टर नैना की सांस अब काबू में थी । वह खुश थी  । मृग मरीचिका की गिरफ्त में आने से पहले ही शायद वह कुछ हद तक पहल कर चुकी थी । ****

10. गति
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रिया दांत दर्द से बेचैन थी । सभी सो रहे थे । घड़ी की सुईयों की आवाज़ भी अच्छी नहीं लग रही थी । कभी बायां करवट कभी दायां , कभी उठकर बैठ जा रही थी । मगर दर्द बढ़ता ही जा रहा था । धीरे - धीरे बायां जबड़ा , बायीं कान सब दुखने लगी थी ।
“ उफ्फ ! क्या करूँ …..पापा लौंग का तेल लगाया करते थे ...कहाँ से लाऊँ ...रसोईघर से लौंग ही लेकर आती हूँ “ रिया की बेचैनी बढ़ रही थी ।
धीरे - धीरे सीढ़ियों से उतरकर रिया रसोईघर में लौंग खोजने लगी । डाइनिंग हॉल की घड़ी वहां भी रात के सन्नाटे को चीर रही थी ।
“ अब चुप भी हो जाओ ! …. तुम्हारी आवाज़ मेरे सर पर हथौड़े की तरह लग रही है । “ रिया ने उन सुईयों पर अपनी खीझ उतारी ।
घड़ी चुपचाप मुस्कुराते रही ।
“ अभी मेरा वक़्त बुरा चल रहा है इसलिए तुम भाव खा रही हो । जल्दी - जल्दी अपनी सुईयों को आगे बढ़ाओ । नहीं तो सुबह होते ही तुम्हें मैं उठा कर पटक दूँगी । “ रिया ने लौंग की कलियों को दांतों में दबाते हुए बोला ।
घड़ी अब भी मुस्कुरा रही थी ।
“ पता नहीं मनुष्य खुद को कब समझेगा । अभी कल ही अपने दोस्तों के साथ पार्टी में डांस करते हुए मुझसे आंखें मार - मार कर आग्रह कर रही थी कि प्लीज़ अपनी सुईयों को धीरे - धीरे बढ़ाओ और आज ….” घड़ी ने एक लंबी ठंढी सांस ली ।
“ कम से कम समय की गति पर इंसान हावी न हो । इतनी सी बात इन्हें समझ आए तब तो । “ घड़ी ने हमेशा की तरह फिर से माहौल से बेखबर हो अपनी गति बरकरार रखी । ***

11. चिड़ियाघर की चिड़िया
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बाहर मौसम बहुत खराब था । जो सड़कें हमेशा भरी - भरी और अशांत दिखा करती थीं आज सुनसान दिख रही थी । एक तो रविवार का दिन , भयंकर ठंढ और ऊपर से हल्की बारिश । हालांकि निहारिका के लिए बूंदों का यह नर्तन अत्यंत मनोहारी और दिल को सुकून देने वाला था । इन बूंदों को तो मानो उन्हें आज न सूरज के तीखे तेवर का डर था और न अपने रास्ते में छतरियों का अवरोध ।
निहारिका बालकनी में खड़ी बस निहार रही थी । ठंढी हवाएं उसके बदन को बहुत अच्छी लग रही थी । ज़िन्दगी में परहेज और हिदायतों से थक चुकी थी । ठंढ में बाहर नहीं निकलना , कपड़ों से ढके रहना , डाइट फ़ूड लेना वगैरह - वगैरह ।
आज सुबह ही निहारिका के पति सूरज टूर पर निकले थे । पता नहीं क्यों पर उसे यह खराब मौसम और खाली घर बहुत भा रहा था ।
सब कुछ हल्का और आज़ाद लग रहा था । मानो चिड़ियाघर में रहने वाले किसी जीव को थोड़ी देर के लिए निकालकर खुली हवा में ला दिया गया हो ।
" हलो , रतन ! गराज़ से गाड़ी निकाल देना । मुझे कुछ काम से बाहर निकलना है । तुम्हें ड्राइव करने की जरूरत नहीं है । मैं खुद ड्राइव करुँगी । " निहारिका अपने ड्राइवर से बात करने के बाद तैयार होने चली गई ।
अलमारी खुली थी और निहारिका खोई सी । उसने चटख लाल रंग की पतली शिफॉन साड़ी और काले रंग का वेलवेट का कोट निकाला । जो सूरज को बिल्कुल  पसंद न था । सिल्क की भारी - भारी साड़ियों , सोने के गहनों और छोटे - बड़े ब्रांडेड पर्स में उसे घुटन होने लगती थी ।
खुले बालों में एक छोटा सा लाल हेयर क्लिप और लाल रंग की स्टोन ज्वेलरी जिसे सूरज की आंखों से बचते हुए उसने फुटपाथ से खरीदा था उस पर बहुत फैब रहा था । माथे पर छोटी काली बिंदी और होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक .......उफ़्फ़ ! आज निहारिका खुद को आईने में देखकर निहाल हो गई । बहुत दिनों बाद उसे आईने के सामने खड़ा होना अच्छा लग रहा था ।
आज निहारिका ने खुद के लिए श्रृंगार किया था ......अपनी स्त्रीत्व के लिए .....किसी और की नहीं बल्कि खुद की तारीफ़ पाने के लिए । आज उसे पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि वह बाहर बोर्ड पर लिखी हुई और किसी चिड़ियाघर में बंद कोई चिड़िया नहीं है । ****
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क्रमांक - 04

जन्मतिथि : 04 जून 1953
जन्मतिथि : गया - बिहार
शिक्षा : यान्त्रिक अभियन्त्रण में डिप्लोमा
लेखन विधा: लघुकथा, कहानी,व्यंग्य, कविता

प्रकाशित पुस्तकें:
1.पांचवां सत्यवादी(प्रकाशन-1997, प्रकाशक- राज पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, लघुकथा संग्रह)
2. मुट्ठी में आक्रोश (लघुकथा संग्रह प्रकाशन- 2020, प्रकाशक- विश्व साहित्य परिषद, दिल्ली)
3.कोहरा छंटने के बाद(प्रकाशन-1997, प्रकाशक- पूनम प्रकाशन दिल्ली , कहानी संग्रह)
4. आसपास के लोग(कहानी संग्रह, प्रकाशन-2019, प्रकाशक-विश्व साहित्य परिषद, दिल्ली),
5.बीरू की बीरता, प्रीति की वापसी और बीसवीं सदी का गदहा तीन बाल कहानियों का संग्रह, प्रकाशन-2004, प्रकाशक-बाल साहित्य प्रकाशन, दिल्ली
6. कृष्ण मनु: व्यक्तित्व एवं कृतित्व आशीष कंधवे के संपादन में ,प्रकाशक- विश्व हिंदी साहित्य परिषद, दिल्ली, प्रकाशन-2013
               कई साझा संकलनों में शामिल

सम्पादन : -
संपादन: स्वतिपथ लघु पत्रिका और लघुकथा संकलन हम हैं यहाँ हैं का मेरे द्वारा संपादन। मेरे अतिथि सम्पादन में परिंदे पत्रिका, दिल्ली का लघुकथा विशेषांक प्रकाशित।

सम्मान: -
विभिन्न साहित्यिक संस्थानों द्वारा 7 बार सम्मानित।

पता: शिवधाम, पोद्दार हार्डवेयर स्टोर के पीछे , कतरास रोड, मटकुरिया , धनबाद-826001 (झारखंड)

1. तीसरा आदमी
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दिल्ली दंगे का ताप इस छोटे शहर के सिर पर भी चढ़ चुका था।
वे तीन थे जो रोज शाम को मिलते थे, हंसते- बतियाते थे। चाय -साय चलता था। टाटा बाई करते हुए वे अपने घर की राह पकड़ते थे।
आज भी तीनो मिले। बात पर बात चली। बात का रुख न जाने कब सम्प्रदाय, धर्म, अधिकार, नागरिकता आदि विषयों की ओर मुड़ गया। उनके बीच आवाज का वॉल्यूम तेज होता चला गया। वे जोर-जोर से चीखने लगे।
बीच का तीसरा आदमी उन्हें रोकता रह गया। लेकिन वे कहाँ रुकने वाले थे!
कल तक वे इंसान थे। आज हिन्दू मुसलमान बन चुके थे।
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2. सहानुभूति
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- आज बहुत उदास दिख रहे हो ,मित्र।
उद्यान में सुबह की गुनगुने धूप का आनंद ले रहे शर्मा जी  बगल में बैठे  वर्मा जी के  चेहरे को गौर से देखते हुए कहा।
- उदासी तो मेरे जीवन से चिपक कर बैठ गई, शर्मा जी। जब से एकलौती संतान बेटी की शादी की तब से उदासी की छांव में ही तो हमारा समय कट रहा है।
- वर्मा भाई, इधर भी वैसा ही हाल है। खामोश घर में मायूसी के सिवा और क्या मिलेगा!
- क्यों मजाक करते हो शर्मा जी, दो -दो बेटे, दो -दो बहुएं, चार -चार पोते , पोतियां। घर तो गुंजायमान रहता होगा। वर्मा जी ने अविश्वास की नजर शर्मा जी पर डाली।
शर्मा जी की नजर दूर क्षितिज पर टंगी मानो पोते-पोतियों
की किलकारी ढूढने की कोशिश कर रही थी। बोले- वही किलकारी तो  तलाशता रहता हूँ, मेरे भाई। लेकिन मिलती कहाँ है! बेटे छीन कर ले गए अपने साथ।
वर्मा जी ने चौक कर शर्मा जी पर नजर डाली। उनकी आँखों में सहानुभूति थी। *****

3. अजनबी
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निम्न आय वाले समाज में  वैसे भी  फ़ोर्थ ग्रेड की नौकरी  मिल जाना किसी करिश्मा से कम नहीं  होता। समाज में प्रतिष्ठा का  कद देखते-देखते बढ़ जाता है। लेकिन मनोज बाबू की  बात ही कुछ और है।  देश के प्रथम स्तर के प्रशासनिक सेवा के तहत उनका चयन हुआ  था।
मनोज बाबू के इतने बड़े पोस्ट पर आरूढ़  होते ही अभावों में किसी तरह सांस ले रहे परिजन, हितैषी, शुभचिंतक  के दिलों में रोज़ी- रोजगार, नौकरी मिलने की आशा के अंकुर फूट पड़े।
उम्मीद के बादलों से बधाई की  मानो बारिश ही होने लगी। मनोज बाबू भीगते चले गए । लेकिन आशा की लता अधिक दिनों तक लहलहा नहीं सकी।
उधर मनोज बाबू ने अशिक्षा और अभावों के  कीचड़ से सने परिवार से मुक्त होकर राहत की सांस ली। वे आभिजात्य वर्ग की  त्रिवेणी में डूबते गये और इधर भाई-बंधु की आशा -लता सूखती चली  गयी। वे दूर होते चले गये।
सेवा निवृत्ति के पश्चात्  मनोज साहब मनोज बाबू  भी नहीं रह सके। एक अजनबी बनकर रह गये। अडोस -पड़ोस की तो छोडिए  बीवी- बच्चे  तक साथ छोड़ गये।
बीवी तो पहले ही स्वर्ग की राह पकड़ ली थी। बेटे-बेटी ने भी विदेशों का रूख़ कर लिया।
अब अपने उजड़े 'स्वप्न  महल' में दिन-दिन भर वे पड़े रहते हैं।  लोग उधर से गुजरना भी पसंद नहीं  करते। ****

4. सामना
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खनिकों के  लिए बने क्वार्टरो में से सबसे पीछे वाले एक किनारे के क्वार्टर , जहाँ कूड़ा-कर्कट का ढेर जमा होता  है ,  अधेड़ और विधुर रामबरन रहता है। बस तीन ही बरस नौकरी शेष है उसकी।
आज उसके दरवाजे को धड़ाधड़ पीटा जा रहा था। पैतीस वर्षों तक निधड़क काम करनेवाले रामबरन का सीना जोर जोर से धड़क रहा था। वह सुध-बुध खो चुका था लेकिन बुधनी की बुद्धि जेट बनी हुई थी।
उधर लगातार दरवाजा पीटे जाने के साथ साथ भीड़ के आक्रोश की तेज आवाज दरवाज़े को चीर कर बुधनी के कानों में जैसे गर्म तेल उड़ेल रही थी। उसने एक नजर लुंज-पुंज से बैठे रामबरन को देखा।
सब उसके कारण हो रहा है।  उस दिन कूड़ा-कर्कट से लोहा लक्कड़ चुनने के दौरान पीछे पड़े गुंडों से इज्ज़त बचाने के लिए भाग कर इसी घर के दरवाजे को खटखटाई थी। फिर अक्सर प्यास लगने पर आने लगी थी। बाबू अकेला रहता था। बड़ी गंदगी रहती थी घर में।  कपड़े-बर्तन जहाँ-तहाँ पड़े रहते थे। वह  झाड़ू-बुहारू कर दिया करती थी। बदले में बाबू बासी रोटी दे दिया करता था। बाबू के घर आने-जाने के कारण गुंडों से भी पीछा छुट गया था। आज भी आयी थी। आंगन बुहार ही रही थी कि पिछला दरवाजा भड़ाक् से बंद हो गया था। बाहर शोर होने लगा था तब बाबू ने अगला दरवाजा भी बंद कर दिया था और माथा पकड़कर बैठ गए थे। बुधनी को काठ मार गया था।
अचानक जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तब उसकी तंद्रा भंग हुई -' नहीं, अब मुझे ही कुछ करना होगा।एक दिन बाबू ने मेरी इज्ज़त बचाई थी आज मुझे बाबू की इज्ज़त बचानी होगी।'
वह इधर उधर देखने लगी। अचानक उसकी निगाह एक कोने पर चली गई जहाँ काली जी की तस्वीर के सामने पूजा का सामान रखा था। ढूँढने के क्रम में  उसे सिंदूर की पुड़िया मिल गयी।  अब अधिक सोचने का समय नहीं था। दरवाजा अब किसी भी समय टूट सकता था। वह झट सिंदूर मांग में  भर ली और बाहर खड़ी भीड़ का सामना करने के लिए तैयार हो गई।  रामबरन जबतक कुछ समझता कि तबतक बुधनी दरवाजा खोलकर खड़ी हो गई। 
बाहर चिल्ला रहे लोग अचानक रूक गए। फिर चार - पांच लोग बढ़ आए-' कहाँ है रामबरना?'
 वह दरवाज़े पर चट्टान सी खड़ी हो गई-' क्या बात है?'
-' तुम कौन होती हो बात करनेवाली? हमें रामबरना से पूछना है।  क्या रंडीबाजी कर रहा है कालोनी में।  हमारा परिवार है, बच्चे हैं। हम इज्जतदार हैं। और वो हमारे बीच में रहकर वैश्यावृति करेगा? हम निकाल बाहर करेंगे उसको।'
-' देखिए, आपलोग एक भले आदमी पर झूठा इल्जाम लगा रहे हैं। बाबू भगवान हैं, भगवान।'
-' भगवान है तो तुम्हारे साथ दरवाजा बंद करके क्या कर रहा था? बोलो। कबाड़ बिननेवाली, तुम उसका रखैल बनी हो।'
-' आपलोग अपने औरत के साथ दरवाजा खोल के रहते हैं क्या? दरवाजा खोलके सोते हैं? और खबरदार कबाड़ बीनने वाली कहा तो। दिखता नहीं। आंख फूट गयी है क्या? मैं उसकी बीवी हूँ। '
अचानक  सांप सूंघ गया हो जैसे। बोलती बंद हो गई सब की।  उसके मांग में सिंदूर देखकर सब की आँखें फैल गयीं। एक उम्र दराज औरत आगे बढ़ आयी-' यही बूढ़ा मिला था तुमको। बाप की उमर का है। कुछ तो शरम करती।'
बुधनी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया। उनसे भीड़ के आगे खड़े उन गुंडों की ओर अंगुली उठाते हुए बोली-' माना कि बाबू बाप की उमर का है और उन भाई जैसे गुंडे जब मेरी इज्ज़त लूटने जा रहे थे तो शरम नहीं आई  थी आप लोगों को।  इज्ज़त बचाने वाले की बीवी बन जाने पर कैसी शर्म?
बोलो।' ****

5. विश्वास की हत्या
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हैरान-परेशान से अस्त व्यस्त हालत में दरवाजे पर आ कर खड़े हो गए  लाल बाबू। उखड़ती सांसों को थोड़ा संयमित किया, मुँह पर चुहचुहा आए पसीना को गमछे से पोंछा फिर आवाज दी बहू को।
- लो बहू, यह कागज पकड़ो। उन्होंने जेब से तह किए कागज को हिफाजत से निकाला और सामने खड़ी बहू को थमा दिया- तुम्हारे हिस्से की जमीन तुम्हारे नाम उसी समय कर दी थी बहू जब तुम्हारे साथ अन्याय हुआ था। मेरा बेटा तुम्हें छोड़कर दूसरी स्त्री  ले आया था। लेकिन तुमने कोर्ट कचहरी के चक्कर में मुझे नाहक फंसवा दिया। मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस बहू को मैंने बेटी से भी बढ़कर माना वही मुझ बूढ़े को कोर्ट में घसीटने का इंतजाम कर के बैठ गई है।
तुमने मेरा विश्वास तोड़ दिया, बहू। न्याय की अर्जी में पति के साथ मेरा भी नाम डाल दिया।
बहू को काटो तो खून नहीं। अवाक् खड़ी रही ।  बह रहे आंसू से हाथ में पकड़ा वसीयत भीगता रहा और वह दूर जाते हुए बाबू जी की धुंधली आकृति को देखती रही।***

6. चने फाँको, भीखू
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बकरियाँ चराता भीखू अचानक मेरे रास्ते में आकर खड़ा हो गया।
- भइया, वो क्या कहते हैं ? याद करने के लिए माथा खुजलाने लगा।
आशय समझकर मैंने कहा- नया वर्ष।
- हाँ हाँ, वही। अंगरेजी वाला नया बरस। नया बरस मंगलमय हो भइया।
- ले चने खा।
मैं चना का भूंजा फाँकते हुए हॉस्पिटल में भर्ती एक निकट संबंधी को देखने जा रहा था। थोड़ी हड़बड़ी थी। परेशानी भी। पता ही नही चला आज नया वर्ष का पहला दिन है। अगर भीखू नहीं टोकता तो जान भी नहीं पाता।
- मंगल - अमंगल कुछ नहीं होता, रे भीखू। दुआ करो कि सालों भर पेट भरता रहे।  लो और चने फाँको और बकरी  चराओ। ****

7.  तालीम
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पुलिस इन्स्पेक्टर जरूरी काम निपटाकर उठने ही वाला था कि एक आदमी सहमा-सकुचाया उसके टेबल के पास आकर खड़ा हो गया।
-' क्या बात है?' पुलिस इंस्पेक्टर ने सामने की कुर्सी की ओर इशारा किया। उस आदमी के बैठने के बाद उसने फिर पूछा- क्या बात है? तफ्सील से बताइये। '
-' इंपेक्टर साहब, मैं तो बुरी तरह लूट गया। पांच लाख रुपये साइबर अपराधियों ने ठग लिए ।'  धीरे- धीरे उस आदमी ने सारा वृतांत कह सुनाया।
सुनकर इंस्पेक्टर सकते में आ गया। नाराजगी उसके चेहरे से झांकने लगी-' तो तीसरी बार भी आपने ओ टी पी उस फोन करनेवाले को बता दिया। आप तो पढ़े लिखे लगते हैं। क्या करते हैं आप?'
-' मैं इनकम टैक्स इंस्पेक्टर हूँ।' कहकर उसने सिर झुका लिया।  पुलिस इंस्पेक्टर कुछ कहने ही जा रहा था कि उसका मोबाइल बज उठा।
-' आप आवेदन में सारा कुछ डिटेल में लिखकर टेबल पर रख जाइए। मुझे अभी जरूरी काम से एस पी आफिस जाना है।'
उसने लिखना शुरू किया था कि ड्यूटी पर उपस्थित सिपाही ने नजदीक आकर पहले ताल देकर खैनी होठ में दबाया फिर बोला-' का साहब ? बैंक में, ए टी एम में सगरो ( सब जगह) चेतावनी लिखा होता है। फोनो में चेतवानी आता है। फिर भी आप ठगा गए। एक बार नहीं, तीन - तीन बार ओटीपी बता दिए। अरे महाराज, कोदो दे के पढ़े थे का?' ***

8. धर्मांध
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किसी साधु द्वारा दान दिए हुए गेरुआ वस्त्र में लिपटा हुआ कई दिनों से भूखा वह भिखारी मंदिर के सामने त्यौरा कर पेट के बल गिर पड़ा। उसके सूखे हाथ स्वतः मंदिर के द्वार की ओर हो गए।
कुछ लोग उसकी तरफ दौड़ पड़े।
-" रुक जाओ। देखते नहीं, यह कोई  औघढ़ बाबा हैं। भगवान को साष्टांग दण्डवत कर रहे हैं।"
श्रद्धालुओं ने थोड़ी दूरी बनाकर तथाकथित  औघढ बाबा को प्रणाम किया और वापस लौट गए।
दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं ने यथावस्था में औघढ़ बाबा को पाया। वे पुनः आगे बढ़ने को उद्यत हुए। उन्हें रोकते हुए एक बार फिर पुजारी ने मना किया-" बाबा हठयोग में समाधिस्थ हैं। इनकी तपस्या में विघ्न न डाला जाए।"
तीसरे दिन मन्दिर परिसर में दुर्गंध फैलने के बाद एक ने थाने में खबर कर दी। पुलिस आई। पुलिस कुछ कार्रवाई करती कि पुजारी की अगुआई में श्रद्धालुओं ने विरोध किया- " हम बाबा की तपस्या भंग नहीं होने देंगे। महान हठयोगी का योग किसी भी हाल में पूरा होगा। नहीं तो हम अपनी जान दे देंगे।"
पुलिस मूक दर्शक बनी ताकती रही। उनका  मुखिया कैप हाथ में लेकर नतमस्तक था। ****

9. नौकरानी नहीं मिली क्या
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रिसीवर कान से लगाते ही बेटे की कोमल आवाज़ कानो से टकरायी। वह किंचित् आश्चर्य चकित हुई।
उधर से आवाज़ आ रही थी- माँ, कब आ रही हो? जल्दी आ जाओ माँ । तुम्हारी बहू प्रिग्नेन्ट  है।
वर्षों बाद इकलौते बेटे की आवाज  पानी पानी बनकर माँ की आँखों से बहने लगा। लेकिन चेहरे की कठोरता धोने में नाकाम  रहा।
-" क्यों बेटा, नौकरानी नहीं मिल रही क्या?"
फोन डिस्कनेक्ट हो जाने के बवजूद माँ रिसीवर देर तक पकड़े खड़ी  रही। कमरे में खामोशी पसरी थी। ****

10. बुद्धू
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वहाँ सड़क अर्द्ध वृताकार हो गई थी। इसलिए पैदल चलने वाले शार्टकट लेकर फिर सड़क पर आ जाते थे। लोगों  के आने-जाने के कारण पगडंडी बन गयी थी। लेकिन पगडंडी के दोनो तरफ कचरा का ढेर लगा रहता था। गंदगी के कारण बदबू उठती रहती थी। फिर भी लोग नाक बंद करके उस पगडंडी से आते-जाते ही थे।
उस पगडंडी से रोज गुजरने वाले एक  सफेद धोती कुर्ता धारक भी थे। रोज की तरह आज भी उन्होंने  धोती समेटी, नाक बंद की और राम राम कहते हुए तेज कदमों से पगडंडी पार करने लगे। उन्हें धोती उठाकर राम-राम कचहते हुए बदहवास से भागते देख एक मंदबुद्धि किशोर हंसने लगा -" खी..खी...खी..। अरे मास्साब गंदा देख के राम-राम नहीं, रमेश रमेश कहिए।"
-" अरे बुधुआ, मुझे देखकर खिखिलाता क्यों है ?  और यह क्या बोल रहा है-रमेश रमेश कहिए। सच में तुम्हारा दिमाग घूमा हुआ है।"
साथ खड़े हम उम्र दूसरे लड़के ने क्रोध से बिफरे मास्टर साहब से कहा-" ठीक कह रहा है बुधुआ। राम-राम कहने से अच्छा है। वार्ड पार्षद के पास जाइए, शिकायत कीजिए,  कूड़ा -कचरा हटवाइए।"
मास्टर साहब समझ गये। वार्ड पार्षद का नाम रमेश था। उन्होंने  एक नजर बुधुआ पर डाली। वे समझ नहीं पा रहे थे, बुद्धू  कौन है। ****

11. जाल
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कोर्ट के कई चक्कर लगाने,आर्थिक क्षति झेलने और काफी थुक्कम फजीहत के बाद जब केस रफा-दफा हुआ तो उसकी जान में जान आई। वह इस कदर वहां से भागा जैसे जाल से छुटा पंछी।
बदहवासी की हालत में वह मुझसे टकरा गया। मैंने उसे सम्भाला। उससे जान पहचान थी। उसकी हालत देख मैं  आश्चर्य और कौतूहल से भर उठा। उसे लगभग ढठेलते हुए सामने की चाय दुकान पर ले आया। एक प्याली चाय पकड़ाने के बाद उससे पूछा-' क्या बात है हरि भाई, दुकान दौरी बंद कर इस वक्त कहां से भागे आ रहे हो?'
जवाब में उसने राम कहानी सुनाई कि, कैसे उसकी दुकान के सामने दुर्घटना घटी, कैसे पूछताछ करती पुलिस उसके पास पहुँची और गवाह बनाकर चलती बनी। फिर तो ऐसा चक्कर चला कि गाहे ब गाहे कोर्ट से सम्मन आ जाता और उसे हाजिरी लगाने दुकान बंदकर दिन दिन भर कोर्ट परिसर की धूल फाकनी पड़ती। उस दिन दुकान बंद रहने और बिक्री बट्टा नहीं होने पर घर में भी फाकामस्ती की नौबत आ जाती सो अलग।
-' ओह,तो हरि भाई जागरूक नागरिक का फर्ज निबाह कर आ रहे हैं।' मेरे मुँह से निकली बात उसे गोली की तरह लगी-' ऊह! जागरूक नागरिक ।' उसने एक एक शब्द जैसे चबाकर कहा और मुझे देखने लगा। ****
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क्रमांक - 05

जन्म तिथि : 28.अगस्त 1972
जन्म स्थली,शिक्षा दीक्षा,मायका ससुराल राँची
पति का नाम:श्री रामजी
पिता : दिवंगत सुरेंद्र प्रसाद सिंह
माता : अरुणलता
पति की कार्यस्थली -एच.ई.सी. राँची
शिक्षा: राँची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक

रुचि : हिंदी साहित्य में बचपन से रुचि रही। सामाजिक विसंगतियों पर छंदमुक्त कविताएँ ,लघुकथा और कहानियाँ का लेखन

पुस्तकें :-
कल आज और कल (काव्य संग्रह)
पंख अरमानों के (कथा संग्रह)

सम्मान: -
साहित्योदय शक्ति सम्मान,
साहित्योदय श्रमवीर सम्मान,
लघुकथा प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार
शेयर योर ह्यूमैनिटी अंतरराष्ट्रीय पटल द्वारा काव्यपाठ हेतु विशेष सम्मान

विशेष : -
- कुछ एक सामाजिक सरोकार के कार्यों में भी संलग्न हूँ आंशिक रूप से
- दो साझा काव्यसंग्रह  और एक साझा कथासंग्रह में  रचनाएँ प्रकाशित।

पता: एफ -2, सेक्टर-3 , एचईसी कॉलोनी, पो.धुर्वा, जिला: राँची , झारखंड - 834004

1. गृहप्रवेश
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गजब की रौनक लगी थी।सोनल भारी बनारसी साड़ी और लकदक मेकअप में दुल्हन सी लग रही थी ,ये बात और है कि लीपापोती के बाद भी उम्र तो चुगली कर ही दे रही थी।शर्मा जी(सोनल के पति) को भी उसने शेरवानी पहना कर ही दम लिया था।आखिर उसकी स्टेटस ,उसके क्लास का सवाल था।बेटे बेटी भी आधुनिक परिधानों में लैस......यानि कुल मिलाकर एक हाई प्रोफाइल पार्टी दी थी सोनल ने अपने गृहप्रवेश में। शानदार ड्यूप्लेक्स जगमगा रहा था।एक एक सामान कीमती लगवाया था स्वयं सोनल ने अपनी पसंद का।अब उसे लगने लगा था कि अपने मायके और हाई क्लास दोस्तों को वह कॉम्पिटिशन दे सकती है।
             खैर पूरे विधि-विधान से गृहप्रवेश की पूजा सम्पन्न हुई।सबने उसकी और उसके घर की खूब तारीफ की।शर्मा जी को भी सब बधाई दे रहे थे,जिसका जवाब वह मुस्कराकर दे रहे थे पर मन बहुत बेचैन था। पिता की छवि बार बार आंखों में आती , जिन्होंने मरते हुए इकलौते बेटे से वचन लिया था...."बेटा अपनी मां का और मां समान इस पुरखों की हवेली का हरदम माश बनाए रखना।इसकी हर ईंट में हमारे खानदान के संघर्ष की कहानी है।बेटा तेरी मां की जान बसती है इसमें ,इसी में गृहप्रवेश किया था तब से इसकी जान इसी में बसती है।बेशक इसकी रौनक न रही,पर ये मान है हमारी। यहां हमें और तेरी माँ को सुकून मिलता है बेटा।इसे सम्भालना।हम दोनों के जाने के बाद इसे गांववालों के लिए स्कूल बना दिया जाय ,यही मेरी इच्छा है।"
        शर्माजी ने चुपके से अपनी नम आंखें पोंछ ली।खुद से ही वितृष्णा हो रही थी उन्हें।पत्नी की मनमानी पूरी करते करते कितना गिर गये वह।पिता को दिया वचन मां के जीते जी तोड़ दिया ।अपनी पत्नी संग गृहप्रवेश तो किया पर बूढ़ी मां को बेघर करके।उसका घर उसके जीते जी उसे बताए बिना बेचकर......
       मां सामने कुरसी पर बैठे गर्व से बेटे को निहार रही थी ,उसकी उपलब्धि पर रश्क कर रही थी। ****

2. कन्या पूजन
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सुबह से सुमन घर की सफाई में लगी थी।
साथ ही गूड्डी को भी हिदायतें देती जा रही थी।"तुम एक काम भी ध्यान से नहीं कर सकती।हद है कामचोरी की।देख लो एक एक प्लेट सावधानी से रखना ,एक भी टूटा तो पैसे काटुंगी....."
      गुड्डी चुपचाप सर झुकाए एक एक प्लेट पोंछकर रखती जा रही थी। डरी सहमी...... कहीं एक भी प्लेट टूटी तो पिछले महिने की तरह ही बाबा को मैडम कम पैसे न भेज दें। फिर बाबा भी उसे खरी-खोटी सुनाएगा।
दरअसल आज कन्या-पूजन जो है।इस दिन छोटी कन्याओं को बुलाकर उनके पांव धोकर आसन लगाकर भोजन कराती है सुमन भी। उसी की तैयारी में हैरान परेशान है वह।
थोड़ी ही देरी में मुहल्ले की छोटी छोटी बच्चियां आ गयीं।घर में खूब रौनक हो गयी‌।सुमन खूब मनुहार कर करके उन सब देवी रूपों को खीर पूड़ी खिला रही थी।परदे की ओट से गुड्डी उन्हें निहार रही थी। ****

3.नया जन्म
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नंदिनी जी को आज अस्पताल से छुट्टी मिल रही थी। सभी नर्स डॉक्टर उन्हें शुभकामनाएं दे रहे थे। नंदिनी जी की आंखों में आंसू थे।नया जन्म मिला था उन्हें।कोरोना की जंग जीतकर लौट रही थीं वो।नया जन्म हुआ था उनका।हाँ,नया जन्म नंदिनी जी के तन को ही नहीं मिला था, बल्कि उनकी दकियानूसी सोच को भी नया जन्म मिला था।
         इस महीने भर की बीमारी में उनके जीवन में कुछ ऐसा घटा कि अपनी  पारंपरिक  सोच पर उन्हें ही शर्मिंदगी होने लगी।अति धर्म भीरु,पूजा पाठ , कर्म-कांड में डूबी रहने वाली नंदिनी जी को अपने सामने वाले फ्लैट में रह रहे पड़ोसियों से बेहद चिढ़ थी‌।उनकी आधुनिक जीवन-शैली के आधार पर वह उन लड़कों को बेसंस्कारी, आवारा , नाकारा सब मानती थीं।कितनी बार सोसायटी में उनके खिलाफ कम्प्लेन कर चुकी थीं। जाने क्या खुन्नस थी। बस एक अवधारणा बना रखी थी उन्होंने कि ऐसे आधुनिक युवक यूवतियाँ भारतीय परंपरा के लिए घातक हैं।उनकी पार्टियों से ,लड़के लड़कियों का साथ घुलना मिलना,सब कुछ उनके चरित्र से जोड़ लेतीं वह।और जलती कुढती रहतीं।
       वो दिन और आज का दिन उनकी बीमारी में वो सारे उनसे कट गये , जिन्हें वह दुख सुख का साथी समझती थीं।उनके तो साये से भी वही लोग कन्नी काटने लगे।उनके सत्संगी साथी तो ,फोन पर भी हाल पूछना भी जिन्हें उचित न लगा। उनके संस्कारी बच्चों की भी अपनी मजबूरियाँ थीं,ऐसे में मोर्चा संभाला उन्हीं गैरसंस्कारी मॉडर्न पड़ोसियों ने।कब कैसे अस्पताल गयीं,कैसे बिल भरा गया उन्हें कुछ नहीं पता चला। सबकुछ उन चारों ने सम्भाल लिया।
      " चलिए आंटी आ गया आपका घर।पूरा घर सैनिटाईज हो गया है। टिफिन सर्विस आज से चालू।एक दम ,हेल्दी वेज खाना ,नाश्ता सब।वैसे चिकन खाएंगी तो वो मैं अपने हाथ का बना खिला सकता हूँ,पर ......"
    उन्हीं मॉडर्न नमूनों में से एक विकी ने चुटकी ली तो वे मुस्करा उठीं ,पर नयन कोर गीले हो चुके थे। ****

4. पगली
   *****

आज फिर दौरा पड़ा उसे। चिल्लाती हुई एकाएक बाहर निकल आई वह।पीछे से हांफती हुई मां भी दौड़ी ।तब तक जाने कहां से एक ईंट उठाकर सामने स्कूटर से जा रहे एक सज्जन को लगते लगते बचा।गनीमत है उसका संतुलन नहीं बिगड़ा वर्ना जाने क्या होता।वो तो रत्ना जी ने आगे बढ़कर उसे पकड़ लिया वर्ना जाने क्या कर जाती।
मां का स्पर्श पा कर ही सहसा वह शांत हो गयी।पर आसपास लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी।लोग तरह तरह की बातें करने लगे।पागल पगली जैसे शब्द माँ के कानों में पिघले शीशे से उतर रहे थे और वह अभागी शांत मां के कंवों पर निश्चेष्ट पड़ गयी।सबकी बातें अनसुनी कर धीरे-धीरे माँ उसे लेकर अंदर चली गयीं।
बैठक में पापा और  भाई अलग सर पीट रहे थे। उनकी इज्जत पर बदनुमा दाग जो थी वह।
      ऐसा दो चार महीने में हो जाता था।बाकी वक्त चुपचाप रहती।जिंदा लाश सी। मनोचिकित्सकों का इलाज भी चला पर सब व्यर्थ।
      उसके कमरे में जाकर माँ उसे लिटाने लगी तभी उनकी नजर एलबम पर पड़ी। सब जस के तस ।पर ये क्या एक तस्वीर दो टुकड़े में फटी थी।जोड़कर देखा रत्ना जी ने तो आँखें फटी की फटी रह गयी ।कोई और नहीं उनके चश्म-ओ-चराग राजन की तस्वीर थी वह,जो अब दूसरे शहर में नौकरी करता था। धम्म से बैठ गयीं वहीं जमीन पर वह। मनोचिकित्सक की बातें कान में गूंजने लगी- "इनका गुनहगार अवश्य कोई ऐसा है जिसका वह नाम नहीं ले पा रहीं ,शायद कोई नजदीकी......"।
         रत्ना जी ने कस के भींच लिया उसे और रोती रहीं रोती रहीं। ****
        
5. मानवाधिकार दिवस
    ****************

रमोला जी नियत समय पर कार्यक्रम स्थल पहूँच गयी। वैसे भी वे समय की काफी पाबंद हैं। खासकर ऐसे मौकों पर जहाँ वह सम्मानित होने वाली हों। गाड़ी से उतरने के पहले चेहरे का मुआयना कर फटाफट टचअप किया ,एक सेल्फी ली और उतर कर चल दीं स्टेज की ओर।
       बाहर ही बुके देकर उनका स्वागत कर विशिष्ट जनों के बीच बिठाया गया।
दरअसल आज मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में शहर के नामचीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समाजसेवियों को राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जाना था और उनमें से रमोला जी भी एक थीं।
            शहर में एक कर्मठ एवं समर्पित समाजसेवी के रूप में उनकी बेहद ख्याति थी। जाने कितनी पीड़ित लड़कियों और महिलाओं का उनकी संस्था ने जीवन संवारा था। बाल मजदूरी के खिलाफ उन्होंने कई आंदोलन चलाया और काफी बच्चों को से मुक्त भी कराया। ऐसे कितने ही नेक काम थे जो रमोला जी के नाम थे।
            राज्यपाल महोदया के आते ही नियत समय पर कार्यक्रम की शुरुआत हो गई । कार्यक्रम के संचालक ने मानवाधिकार आयोग की जरूरत और उसके द्वारा समाज हित में होने वाले कामों की व्याख्या की। वहां उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों जिन्हें सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया गया था इन सब के कार्य का भी बखान किया गया। फिर एक-एक कर सभी को राज्यपाल द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
सबकी तरह रमोला जी ने भी कृतज्ञता प्रकट करते हुए अपने उद्गार व्यक्त किए।
कैमरा की फ्लैश लाइट लाइटें लगातार चमक रही थी। राज्यपाल महोदय के भाषण के बाद कार्यक्रम की समाप्ति हो गयी ।
       घर जाते हुए रमोला जी बेहद उत्साहित थीं। रास्ते से ही लगातार फोन पर बधाई संदेश आ रहे थे जिसके जवाब में बड़ी कृतज्ञता से रमोला जी बातें कर रही थी एक सहज सामान्य मधुर व्यक्तित्व जिसे इस रूप में देख कोई भी उनका कायल हो सकता था।
          उनके आलिशान बंगले के आगे
गाड़ी रुकते ही वे तेजी से घर की ओर चल पड़ीं।ड्राईवर उनका सारा सामान उठा कर भागता हुआ उनके पीछे लपका। ड्राइंगरुम में कदम रखते ही रमोला जी के चेहरे के रंग बदल चुके थे ।
शहद टपकाती छवि बदलकर एक कड़क रूप ले चुकी थी।
         "जानकी ओ जानकी,"चिल्लाती हुई वो सोफे पर धंस गयीं। अंदर से लगभग भागती हुई जानकी पानी का गिलास लिए आई। जानकी तेरह चौदह साल की अनाथ बच्ची थी ,जो उनके घर
काम काज के लिए उनके ड्राइवर ने ही रखवाया था। ग्लास ट्रे से उठाकर जैसे मुंह में लगाने को हुईं कि पानी में सूक्ष्म सा कण तैरता हुआ दिखा, फिर क्या था
झनाक की आवाज के साद ग्लास सीधा जानकी के पैर पे जा गिरा।कांच की कीरचें नन्हे नन्हे पांव को छलनी कर गयीं।दर्द से कराहती छटपटाती जानकी कांच बीनने लगी ,जिधर जाती लाल निशान पैरों के पड़ जाते।घबराहट में उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह पहले अपने आंसू पोछे कि लहु ...... पर सबसे पहले तो कांच साफ करना था जो क्रोध में रमोला जी उसपर दे मारा था वर्ना जाने क्या हो.......
पैर पटकती रमोला जी बेडरुम में जाकर फोन में तल्लीन हो गयीं। कार्यक्रम स्थल की तस्वीरें फेसबुक पर आनी शुरू हो गयी थी। ****

6. कोरोना गाइडलाइन
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हाँ हाँ,कुछ नहीं होगा आप चिंता न करें। बेफिक्र होकर आएँ।अरे भई आपके बगैर रौनक लगेगी भला।......... बिलकुल सारा इंतजाम है निश्चिंत त रहें।अपने घर का उत्सव हो और नाच गाना न हो ये कैसे होगा।......."अरे नहीं कोई चिंता की बात नहीं,किसकी मजाल हम पे उंगली उठाए भला.........."
        सुंदरलाल जी फोन पर अपने खास दोस्तों और रिश्तेदारों को बेटे की शादी का न्यौता दे रहे थे।कोरोना काल में शादी ब्याह के लिए अधिकतम पचास मेहमानों की संख्या तय कर दी गयी थी।पर यहाँ तो पांच सौ मेहमान तो उंगलियों पर थे।
आखिर स्वास्थ्य मंत्री के बेटे की शादी थी। खूब जश्न हुआ। शानदार शादी , रिसेप्शन।नामचीनों का भी आगमन हुआ।यानी वो सब हुआ जिस पर कोरोना काल में प्रतिबंध था।
         कुछ दिन बीते अखबार में खबर आई, "स्वास्थ्य मंत्री कोरोना पॉजिटिव। उन्होंने खुद को क्वारंटीन किया और लोगों से अपील की कि बेवजह बाहर न निकलें,मास्क लगाएँ , गाइडलाइन का पूरी सख्ती से पालन करें। "
इसी के साथ वैवाहिक कार्यक्रम में मेहमानों की संख्या पचास से घटाकर बीस कर दी गयी ।
   दूसरी खबर "शहर में एकाएक कोरोना मरीजों की संख्या में भारी इज़ाफा।बेड और ऑक्सीजन की भारी किल्लत से कई मरीजों की जान गयी।" ****

7. मन्नतें
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दमयंयी जी बार बार बहू के कमरे में आकर झांक जातीं। पूजा पर बैठने के लिए बार बार पंडित जी आवाज़ लगा रहे थे।भव्य पूजा रखी थी उन्होंने । आखिर इतनी बड़ी मन्नत पूरी हुई थी।कुल का वारिस पाने के लिए जाने कितने दान,पूजा,यज्ञ, मन्नतें करने के बाद यह दिन उनके जीवन में आया था, दादी बनने की खुशखबरी मिली थी उन्हें।
रमा निर्लिप्त भाव से शादी से आबतक के घटनाचक्र मे उलझी थी। पहली रात ही उसके पति केशव ने उसे साफ साफ अपने विषय में बता दिया था कि वह उसके साथ पति धर्म निभाने में असमर्थ है। इतने बड़े घर से रिश्ता आने का राज अब समझ आया उसे।सुबह सास की चोर निगाहें भी बहुत कुछ कह गयीं।घर लौटना व्यर्थ था, बहनों की शादी के द्वार भी बंद हो जाते।हर रात बगावत की आंधी उठती थमती और अंतत: अपने जीने का जरिया ढूंढ लिया उसने। खानदानी ठसक कायम रही। कुल का चिराग अब आने वाला था।किस कुल का,यह तो वही जानती थी। ****

8. हरितालिका तीज
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तनु का उत्साह देखते ही बन रहा था।तीज जो सामने है।कितनी सारी तैयारियां करनी हैं उसे.......पार्लर की बुकिंग भी बाकी है , साड़ी की शॉपिंग भी जल्दी करे तब तो ब्लाउज तैयार हो सकेगा।
,फिर चूड़ियों का सेट भी तैयार करना......बाप रे कितना काम है ,बड़बड़ाती जा रही थी कि डोरबेल बजी तो उसकी तंद्रा टूटी।
            हे भगवान डेढ़ बज गये......न खाना बना है न नहाई है इन्ही कल्पनाओं में।उधर बेल लगातार बज रही थी।जतिन लंच के लिए आ चुका था ,पर यहाँ खाना तो दूर सब्जी भी नहीं कटी थी।
          चुंकि ऐसा अकसर होता था ,कभी दोस्त का फोन आ जाए ,तो कभी कोई मूवी का प्लान, इसलिए जतिन को कोई हैरानी नहीं हुई। चुपचाप पानी पीकर वह सुस्ताने लगा।उधर तनु ने आज फिर दो मिनट वाली मैगी हाजिर कर दी,क्योंकि आधे पौने घंटे में खिचड़ी भी तैयार करना मुश्किल था।जतिन जैसे तैसे गटक गया ,उसे ऐसे भी सामान्य भोजन पसंद था फिर मैगी खाकर शाम सात बजे तक काटना........
            तनु अपना प्लेट भी वहीं ले आई और सामान की लिस्ट बनाने लगी।उधर जतिन को झपकी आ रही थी ।उसकी कोई प्रतिक्रिया न देख तनु का माथा गरम हो गया।........अपनी सहेलियों के पतियों का उदाहरण दे देकर अपने भाग्य को कोसने लगी।अब जतिन की वह सुने तो वह बताए न कि इस महिने भी सैलरी आने की उम्मीद नहीं।ऊपर से काम पूरा न होनै की वजह से बॉस ने जलील किया था सो अलग। पर सामने वाले को सरोकार हो तब न।
          तनु ने साफ फरमान सुना दिया कि मेरे अकाउंट में कम से कम पच्चीस हजार तो झट से ट्रांसफर कर दो ।कल ही शॉपिंग का प्लान है।आखिर तुम्हारे लिए ही तो इतना कठिन व्रत कर रही हूँ।
इतने ऊँचे पद पे हो तो उस हिसाब से ही तो कपड़े गहने होने चाहिए।और हाँ संजना इसबार कंगन खरीद कर इठलाती फिर रही है तो मैं कम से कम मोतियों का सेट तो लूंगी ही.......वह अपने रौ में कहे जा रही थी कि जतिन ने टोका....."अरे यार मेरी भी तो सुनो दो महिने से सैलरी बंद है ऊपर से इतना एक्स्ट्रा खर्च कहाँ से उठा सकुंगा,इस बार कुछ सिंपल सा ले लो जब सैलरी मिलेगी तब खरीद लेना जो चाहो।"
          अब तो तनु पर जाने क्या सवार हो गया......जाने क्या क्या बक गयी वह उसे और उसके पूरे खानदान के लिए और अंतिम फरमान भी जारी कर दिया ,"चाहे जहाँ से लाओ पर मुझे ये सारी शॉपिंग करनी ही है वर्ना मैं कल ही
मम्मी के यहाँ चली जाउंगी बस,क्या इज्जत रह जाएगी मेरी ,सब मेरा मजाक उड़ाएंगी तुम्हारी वजह से"।
           जतिन का सर दर्द बढ़ता जा रहा था।वह पंद्रह मिनट पहले ही निकल पड़ा ऑफिस के लिए।अब तो तनु और आपे से बाहर हो गयी।जब भी उसके मन का न होता उसका यही व्यवहार होता।
         जतिन गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया ,पर विचारों के झंझावातों ने उसे घेर रखा था।कहाँ से लाए वह इतने पैसे ,पापा भी बीमार हैं ,उनके लिये भी कुछ नहीं कर पा रहा ,यह अपराधबोध भी उसे साल रहा था।तनू के सजने संवरने के शौक से वह वाकिफ था पर इतना पागलपन वो भी व्रत की आड़ लेकर।अब उसे कौन समझाए कि जिस पति की सलामती के लिए तथाकथित उपवास कर रही है ,पर दूसरी ओर इतना मानसिक क्लेश उसी की आड़ में दे रही है वह कहाँ फलीभूत होगा।
          इन्हीं दुश्चिंताओं में डूबता उतराता वह निकल पड़ा ऑफिस की ओर।
         उधर तनु बड़बड़ करती बिखरे घर को समेटने लडी तभी उसके फोन की घंटी बजी।जतिन के एक कलिग का फोन था......
"भाभीजी जल्दी मेडिका हॉस्पिटल पहुंचिये ,जतिन को सीवियर हार्ट अटैक आया है ,हम उसे वहीं लेकर पहुंच रहे हैं,हालत अच्छी नहीं है"
           तनु के हाथ से फोन छूट कर गिर गया.....। ****
          
9. डर
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कमली बदहवास भागी जा रही थी।तब तक भागती रही जबतक वह घर नहीं पहूंच गयी।उसकी हालत देख उसकी माँ घबरा गयी।पर अब कमली शांत थी।वो महीनों के डर ,दहशत का उसने स्वयं अंत कर दिया था।जब डर की इंतहा हो जाती है तब निर्भीकता का जन्म होता है।आज भी वही हुआ था। नहीं जानती वह आगे क्या होगा,पर अभी सब सुलझ गया मानो। ठाकुर के बेटे की वासनापूर्ण छवि आंखों के आगे तैर गयी ,साथ ही तैर गया वो सारा घिनौना मंजर जो कुछ ही दिनों में कितनी बार वह झेल गयी थी।डर , मजबूरी,लाचारी के कारण घुटने टेकती खुद पर भी चिढ़ होती उसे,मन धिक्कार उठता,पर दूसरे ही पल दुर्बल हो जाती ,मां,बाबा की निरीह छवि तैर जाती।पर कब तक? उसका मनोबल तो बढ़ता ही जाता था और आज तो हर हद पार हो गयी, फिर क्या था ,उसका डर भी भी अपनी हदें पार कर निर्भीक हो गया। नतीजा सामने था। जिस्म के भूखे छोटे ठाकुर की बेजान जिस्म पर गिद्ध कौवे मंडरा रहे थे।
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10. चुप्पी
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शांत बिलकुल शांत .......आज सदा के लिए शांत हो गयीं ,चिरशांति पा गयीं कांता जी।भाई ने रूंधे गले से यह खबर सुनाई तो श्रद्धा मानो पागल सी हो गयी।आनन फानन वह और सौरभ निकल पड़े अंतिम दर्शन करने,भाई भाभी के घर जहां कुछ महिनों से कांता जी रह रही थीं।पर अब वहाँ घुल रही थीं वह भीतर ही भीतर ।हर पल,उस घर की अवांछित सदस्य होने का अहसास,मारता था उन्हें।बेटी से मन हल्का करती तो वह भी चुप करा देती कि कहीं कोई सुन न ले।और अंततः चुप ही हो गयीं वे।
       वहां पहूंचते ही उसका गुबार फूट पड़ा.....निश्चेष्ट पड़ी कांता जी , सचमुच शांत दिख रही थीं।सब लोग आपस में बातें कर रहे थे.... बहुत भाग्यशाली थीं,चलती फिरती इज्जत के साथ चली गयीं,कितना सुकून है चेहरे पे.....ये सुनते ही श्रद्धा के भीतर जज़्ब भावनाएँ बह निकलीं ,आंखों से ।मन उसका चित्कार कर उठा..."मां मैंने मार दिया तुझे ,तेरी तड़प ,तेरी बेचैनी तू जब भी कहती मैं शांति का वास्ता दे तुझे चुप करा देती थी न ,और तू सचमुच चुप हो गयी।गूंगी हो गयी।हर वेदना तेरे भीतर नासूर बनता रहा ,तू चुप रही,तेरी बेटी होकर तेरा मन हल्का करने की बजाय तुझे चुप करती रही। क्यों न सुनी तेरी। रिश्तों की मर्यादा क्या जान से , इंसान से बड़ी होती है , नहीं नहीं मैं ने तेरी नहीं सुनी ,तुझे बस चुप कराती रही और तू सदा के लिए चुप हो गयी।काश तू मन का कह लेती,काश तेरी बेचैनी हर लेती अपने संग ले आती ,या खुद मिल आती।
तुझे खोकर कौन से रिश्ते निभाऊंगी मैं।सब रिश्तों के तार तो तुझ से जुड़े थे ,तू ही नहीं रही तो हर कड़ी बिखर गयी न।
उठ न माँ ,कभी चुप होने नहीं कहुंगी,कभी नहीं ,बोल दे मन की......"
       श्रद्धा यही बोलते बोलते अचेत हो गयी,पर आज माँ न बोली ,न उठकर कलेजे से लगा सकी।वह तो चुप हो गयी थी हमेशा के लिए....... । ****
      
11. आग
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राजलक्ष्मी नहीं रही, आत्महत्या कर ली अभागी ने.......जंगल के आग की तरह ये खबर पूरे गांव में फैल गयी।जो सुनता सन्न रह जाता। "राजलक्ष्मी और आत्महत्या , वो तो सचमुच की लक्ष्मी थी ,ऐसा नहीं कर सकती......"
जितने मुँह उतनी बातें,कोई कहता मार दिया होगा किसी ने ,कोई जासूस की तरह अटकलें लगाता,तो कोई उसके चाल चलन पर बातें बनाता।बातों का क्या है ,बनती रहती हैं ऐसी घटना, दुर्घटना होने पर।खासकर जब आग दूसरे घर की हो तो उसे तापना, उसमें अपनी रोटी सेंकना खूब भाता है लोगों को।वही हो रहा था।उनके घर लोगों की भीड़ बढ़ती जा थही थी। चौधराईन का विलाप सधे अंदाज में जारी था। दाह-संस्कार की तैयारी चल रही थी।एक बार फिर आग में झोंकने की तैयारी।जले को जलाना हास्यास्पद भी है और कारुणिक भी।
    राजन चौधरी राजलक्ष्मी का पति  शून्य में निहारता बैठा था।उसी कमरे के द्वार पर जहाँ उसके कितने सपने हकीकत हुए थे ,और आज सब आग के हवाले था, सबकुछ...... दिल मानने को तैयार ही न था कि राजलक्ष्मी ऐसा कर सकती है......सच क्या था , कुछ सोचने समझने की स्थिति में नहीं था वह।
       अर्थी उठने लगी, चौधराईन का विलाप और तेज हो गया।गांव के रसूखदार चौधरी के घर कोई पुलिस नहीं ,कोई पोस्टमार्टम नहीं।खुसर फुसर होती रही बस।छोटे चौधरी,राजन के भाई की आवारागर्दी सबको पता थी,पर हवेली पर उंगली उठाने की हिमाकत कौन करता।आज भी ये आग न लगती ,मगर राजलक्ष्मी तो राजलक्ष्मी थी। बगावत चौधरियों को कहाँ रास आती।एक और आग दहक गयी हवेली में।किसी की हवस की आग,हवेली वालों दर्प की आग , विद्रोह की आग ,सारी लपटों ने लील लिया राजलक्ष्मी को।और अब अंतत: चिता की आग......। ****
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क्रमांक - 06

पति- अरुण कु गुप्ता 
माता का नाम-सरस्वती गुप्ता 
जन्मतिथि-१६ सितंबर 
शिक्षा-स्नातक (दर्शनशास्त्र)ऑनर्स -राँची विश्वविद्यालय 
बी एड -प्रयाग राज विधा पीठ

संप्रति- गृहिणी व लेखन

प्रकाशित पुस्तकें-

  लघुकथा संकलन-घरौंदा।
साहित्यनामा साँझा संग्रह,
भोर पत्रिका ,संझावत भोजपुरी पत्रिका,
अविरल प्रवाह पत्रिका आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएँ ।

सम्मान-
१)जैमिनी अकादमी (पानीपत)द्वारा झारखंड रत्न सम्मान ।
२)स्टोरी मिरर द्वारा प्राप्त सम्मान।
३)नवीन कदम द्वारा प्राप्त सम्मान।
४)साहित्योदय मंच से प्राप्त सम्मान।

कई पत्र ,पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएँ व ब्लॉग लेखन

पता : -
 श्री ए.के.गुप्ता 
न्यू ए जी कोऑपरेटिव काॅलोनी
एच.नं. 72 / कडरु ,रांची - झारखंड

1. पानी रे पानी 
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कल स्कूलों और कार्यालयों (झारखंड)में आदिवासियों का पर्व ‘सरहुल ‘की छुट्टी है।मंगरी बेहद उत्साहित है क्योंकि साल में एक बार ही तो मइया, गइया का दूध नहीं बेचती है।सब के लिए खीर बनती है।रात भर मांदर के थाप पर नाच गाना होता है।वैसे आजकल मांदर पर बाबू ,चाचा,दादू ही नाचते और बजाते हैं।जवान और बच्चे तो बड़े -बड़े साउंड बॉक्स लगा कर रात भर नाचते गाते हैं।गाँव तक बिजली जो आ गई थी।
 दो साल से  टूटे चापाकल की मरम्मत को तरसते गाँव के लोग ,जो दो सौ लोगों के बीच पानी लेने का एकमात्र साधन था।जिसमें से पानी  कभी नहीं निकला था...सब कहते हैं गाँव की धरती की छाती सूखी हुई है ...कभी पानी नहीं उतरेगा।महज़ सरकारी ख़ाना पूर्ति... पाँच फ़ीट गड्डा खोदकर चापाकल गाड़ कर ,तस्वीर खींच कर सरकारी बाबू चले गए थे।उस दिन सभी गाँव वाले कितने खुश थे ...अब गाँव के पानी की समस्या दूर हो जाएगी।...लेकिन...बाबू कहते हैं कि अब अगले चुनाव के समय ही कुछ हो पाएगा।मंगरी इन्हीं बातों में खोई ...रिनिया ,टेंगरा के साथ खाली तसला,गगरी (पानी भरने के पात्र)लिए जल्दी -जल्दी कदम बढ़ा रही थी।पानी लेने के लिए गाँव से दो किलोमीटर दूर झरने के पास आ गई...
अरे!ये क्या !”झरने में पानी क्यों नहीं ?”
“अब आगे डेढ़ किलोमीटर पर एक छोटा तालाब है ...वहाँ पानी मिलेगा रिनिया बोली...”
तीनों बच्चे रुआंसे हो गए।
त्योहार में ख़लल पड़ने का अंदेशा सताने लगा।हफ़्ता हो गया नहाए ...कल सरहुल पूजा में नहा कर नए कपड़े पहनना था।
इधर- उधर नज़र दौड़ाया...
टेंगरा चिल्लाया ,”मिल गया...!”
एक गड्ढे के तरफ़ इशारा किया। नीचे तलहटी में कुछ जल दिखे।
तीनों बच्चे कड़ी मशक़्क़त से गमछा भिगोकर उसे निचोड़ कर अपने -अपने तसले में पानी इकट्ठा करने में कामयाब हो गए।
घर लौटते वक्त तीनों के चेहरे पर त्योहार मनाने की ख़ुशी साफ़ -साफ़ झलक रही थी। ****


2. उपकार 
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“इंगलिश पढ़ने आता है?”होने वाले ससुर जी कि कड़कती आवाज से काँप गई थी ,”साँवली और साधारण रूप रंग की ,कांता।”
पापा का हकलाना और ससुर जी की बातों का गोल मोल जवाब देना।देख कर रोने का मन हो रहा था।ठीक है ,ठीक है!उसकी ज़रूरत नहीं,”जतिन ने परिस्थिति को सँभाल लिया था।”
विधी विधान ,रस्मों और सात वचनों को पल्लू में बांध कांता जतिन की हो गई।
मुँह दिखाई के वक्त बुआ सास के कहे शब्द -हे !भगवान “हमार हीरे जैसे भतीजा को कोयला मिल गया! “पिघलते शीशे की तरह कानों को चीर गए थे।जतिन ने पहली बार जेठ की तपती धूप की तरह आग बरसाया था और सभी चुप।जतिन का चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहना ठंडी फुहार की  तरह मेरे अंतर्मन को भिगो दिया था।
वक्त के साथ ही साथ ,बदलते मौसम की तरह मेरे जीवन में भी बदलाव आने लगे।
जतिन ने ना सिर्फ़ मुझे पढ़ाया,लिखाया बल्कि एक कामयाब डॉक्टर बना दिया।
बीमार बुआ सास ,पंद्रह दिनों से मेरे घर पर आकर इलाज करवा रही थी।बढ़े हुए डायबिटीज़ के कारण उन्हें खीरा ,ककड़ी खाने को देती तो कहती अरे! “सेब ,अंगूर खाओ इतना कमाती हो!”तब उन्हें मैंने मौसमी फलों और सब्ज़ियों के गुण बताए।बुआ जी ने कहा-बताओ तो !”हमको तो ज़रा भी नहीं सोहाता है ।हम समझते थे इ सब गरीबन सब का फल है।”
कांता ने,बुआ जी के इलाज में जी जान लगा दिया था।ठीक होकर वापस अपने घर जाते वक्त बुआ जी ने कहा -मेरी बहू को हीरा बना दिया मेरे भतीजे ने ...”तेरा यह उपकार मैं कैसे उतारूँगी?”
बुआ जी के गालों पर लुढ़कते आँसुओं के सैलाब को पोंछने के लिए जब कांता ने रूमाल बढ़ाया तो बुआ जी ने कहा “बेटा बहने दो यह शर्मिंदगी के आँसू है...।” ****
                    
                     
3. मैं हूँ ना
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“ये क्या हो रहा है?”अपनी बेटी मान्या को काम वाली (बुधनी)के साथ नाचते हुए देख कर रीना ने ज़ोर से चीख कर डाँटा “तुझे शर्म नहीं आती काम करने का पैसा लेती है या डांस करने का?”
अरे!”मम्मा क्या डांस करती है बुधनी...ग़ज़ब का टैलेंट है बुधनी में क्या नाचती है...वो भी बिना कहीं से सीखे।”
मान्या ने बिना बुधनी से पूछे ‘डाँस टैलेंट एक खोज ‘में फ़ॉर्म भर दिया।इसके लिए मम्मी से ख़ूब लड़ी ,पापा को भी अपने इस प्रयास में शामिल कर लिया और तो और इस अभियान में अपने भाई मोहित जो मुंबई में इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था ,को भी शामिल कर लिया।
आज ऑडिशन देने बुधनी को लेकर मान्या के साथ रीना भी गई थी क्योंकि मान्या भी एक प्रतिभागी थी।बुधनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था ये सब ताम -झाम देखकर वह आश्चर्यचकित थी पर मान्या के पेट में गुड़ गड़ हो रहा था वह बहुत घबराई हुई थी।
जैसा कि होना था वह ही हुआ बुधनी चुन ली गईं।रीना का पारा चढ़ा हुआ था..”काम कौन करेगा ?”,अपने बदले किसी को लगा जा समझी और “हाँ जितने दिन काम नहीं करोगी मैं पैसे नहीं देने वाली...”बड़ा नाचने का शौक़ चढ़ा है...लगातार रीना अपना भड़ास निकाल रही थी।
मोहित कॉलेज से घर आया हुआ था।सब सुन रहा था और देख रहा था सहमी हुई सोलह साल की बुधनी को चुपचाप बर्तन धोते हुए ...।आख़िर मोहित से रहा नहीं गया बोला “क्या मम्मी दूसरी रख लो “,इसे मैं ले जाऊँगा मुंबई में ही प्रतियोगिता हो रहा है तो कॉलेज से आते जाते इसे देखता रहूँगा।
क्या?रीना,ज़ोर से चीखी।”चूप कर बहुत मुँह चलाने लगा है...।”
लेकिन रीना की एक न चली।बुधनी अपने नृत्य के जलवे से एक के बाद एक पड़ाव जीत कर श्रेष्ठ तीन तक पहुँच गई।मोहित हर परफ़ॉर्मेंस के वक्त कॉलेज छोड़ कर ज़रूर जाता बुधनी का हौसलाअफ़जाई करने।हर बार बुधनी मोहित का पैर छूती तो मोहित झिड़क देता और बुधनी के माथे पर प्यार का स्पर्श अंकित कर देता।बुधनी इस प्यार से ऊर्जावान होती और हर बार जजों को चकित कर देती।
स्टेज पर सिन्दूरी आभा देदीप्यमान प्रभाकर का शनैः शनैः आगमन का दृश्य दर्शाया जा रहा था और अंत में डांस प्रतियोगिता का परिणाम घोषित होते ही जीत की ट्रॉफ़ी उठाते हुए बुधनी ने समस्त देशवासियों के समक्ष अपनी सफलता का श्रेय मोहित और मान्या को दिया और उन दोनों को स्टेज पर आमंत्रित किया।
मोहित ने भी यह कहते हुए सबको चौंका दिया...क्या तुम रियलिटी शो के मंच से मेरी रियल लाइफ़ पार्टनर बनना स्वीकार करोगी? ****

4. विवाह बंधन
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माँ!”ये गुलाब के फूलों वाली साड़ी तुझे पहननी ही पड़ेगी...”मेरी क़सम  जो इसे रखा तो...।
“मेरी पहली कमाई का तोहफ़ा है “...समझ गई ना...।”

नेहा,बचपन से माँ को देख रही थी।जो भी अच्छी साड़ी या अच्छी चीज़ कोई देता या ख़रीदती।उसे जतन से सहेजकर बड़े वाले अलमुनियम के बक्से में रख देती थी ।कहती ये बक्सा तेरा सुहाग पिटारा है।बाबूजी ने मेरी शादी पर यह बक्सा अपनी साइकिल बेच कर ख़रीदा था।
“हाँ!और क्या मिला नाना जी को और तुम्हें इसके बदले?”
दिवाकर द्वारा तिरस्कार!अपमान और ज़िन्दगी भर की सजा...मुझे पेट में भरकर ...नाना जी,मामा जी से न जाने क्या बिकवाए...
चुप कर!माँ ने डाट कर चुप कराना चाहा।
...क्यों चुप रहूँ ...
नेहा ने जबसे होश सँभाला 
मामीजी के ताने से उसे समझ में आने लगा था कि कैसे माँ को दिवाकर ने दो महीने रखकर घर से निकाल दिया था क्योंकि माँ को पता चल गया था कि दिवाकर की एक रखैल है जिसके गिरफ़्त से निकालना माँ के बस में नहीं।उल्टे माँ पर बदचलन का ठप्पा लगाकर घर से निकाल दिया था।तब से नेहा अपने पिता को दिवाकर के नाम से ही संबोधित करती।
नेहा ,शादी के नाम से ही चिढ़ जाती थी लेकिन माँ के जिद के आगे उसे झुकना पड़ा।मामा जी के दोस्त का लड़का था इसलिए माँ और मामा जी आश्वस्त थे।नेहा ने भी अनमने ढंग से हामी भर दी।
शादी के दूसरे ही दिन संजय ने नेहा को दो टूक शब्दों में बता दिया था “हमारी शादी को बस एक समझौता समझना।”माँ,बाबूजी की ख़ुशी के लिए ये सब करना पड़ा।
अनु ,”मेरी पहली प्यार थी और रहेगी...”उसे मैं धोखा नहीं दे सकता।”
नेहा ने भी जानना चाहा -“और तुमने मुझे जो धोखा दिया,उसका क्या?उन सात वचनों का क्या?मैं तो अब कहीं की नहीं रही,ग़रीबों की क्या इज़्ज़त नहीं होतीं ?”
नेहा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जज के सामने नेहा ने जब कहा,जज साहब -“अगर आपकी बेटी के साथ ये होता तो आप क्या करते?”ऐसी दलील की शायद जज साहब को भी उम्मीद नहीं थी...
कई तरह की अग्निपरीक्षा को पार करके नेहा को,दो महीने में ही संजय को ऑफिस से नोटिस दिलवाने में कामयाबी मिल गई।नौकरी पर मंडराते ख़तरे और जेल जाने के डर के सामने वासना का अंधा प्यार खोखला साबित हुआ।
सात फेरों का पवित्र बंधन ,धैर्य और मज़बूत इरादों से ,नेहा ने अपने हक़ को न सिर्फ़ छीना बल्कि समाज के वैसी महिलाओं लिए मार्ग प्रशस्त किया जो ऐसी परिस्थिति में टूट जाती हैं,अंधेरे में गुम हो जाती है या हार मान जाती हैं।
नेहा ने अपने प्रेम के मंगलसूत्र से ससुराल में ऐसा पौधा लगाया जिसका शीतल छाँव संजय को धीरे- धीरे भाने लगा। ****

5. ख़ुशी के रंग
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सरिता देवी, पैर के दर्द को अनदेखी कर दो दिनों से होली की तैयारी में जुटी हैं।
इस बार बाज़ार नहीं जा पाने का कसक तो था लेकिन मन मसोस कर पुरानी साड़ी ही पहनने का मन बना  लिया है।
कोरोना के डर से कोई किसी के घर पर  नहीं जा रहा...फिर भी पर्व मनाने के उत्साह में कोई कमी नहीं है।
“सुनो ,बाज़ार जाना तो ये सामान ला देना सामानों की लिस्ट पकड़ाते हुए सरिता ने पति से कहा।साल भर का त्योहार है इसी  बहाने पकवान बन जाते हैं।
फ़ोन पकड़ाते हुए जितेंद्र से सरिता ने कहा “ध्यान कहाँ है आपका ?कब से बज रहा है...”
फ़ोन रखते हुए जितेंद्र ने कहा-
“चलो चलो तैयारी कर लो गाँव चलते हैं...”
क्या गाँव?
क्या हुआ?
 कैसे ?कब ?क्यों ?कई प्रश्न कर डाले सरिता ने।
हाँ !”अपनी गाड़ी से चलेंगे ड्राइवर मिल गया है।”कल सुबह -सुबह छ: बजे निकल चलेंगे।
“कुछ बताएँगे भी क्या हुआ ?”
इस बार होली वहीं मनाएँगे।जितेंद्र ने कहा तो सरिता का ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
अच्छा सुनो अम्मा,बाबूजी के लिए कुछ कपड़े खरीद लेते हैं पिछले साल भी नहीं जा पाए थे।पूरे दो साल हो जाएँगे गए हुए ।
“दो साल नहीं पूरे बीस साल हो जाएँगे “
“पहली होली के बाद हम अब बीस साल बाद तुम्हारे ससुराल नहीं मैं अपने ससुराल जाऊँगा।”
सरिता अवाक होकर जितेन्द्र का चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
“क्या देख रही हो ऐसे?”
आजतक तुमने कभी कहा ही नहीं...”मेरे परिवार और बच्चों के इर्द-गिर्द ही सारे ख़ुशी के रंग बाँटती रही।”
सरिता पति के इस रंग से वाक़िफ़ नहीं थी।अप्रत्याशित प्रेम के तोहफ़े से सराबोर सरिता मायके में आकर बिलकुल बचपन के रंग में रंग गई थी। ****

6. कौआ मामा
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काँव ,काँव ...क्या बात है?कौन आ रहा है?दादी को कौए से बातें करते सुन सात साल की काव्या पूछ बैठी -“क्या हुआ दादी किससे बात कर रही हो?”
देख न पोतियाँ कौआ मामा आ गए संदेशा लेकर ...”ये जब आँगन में आकर काँव काँव करते हैं न तो ज़रूर कोई घर में मेहमान आते हैं...”
अच्छा!इसे कैसे पता चलता है?काव्या ने प्रश्न किया।
अरे !”ये अंतर्यामी होते हैं।इनकी छठी इंद्रियाँ बहुत जागृत होती है।”पहले के जमाने में तो कबूतर डाकिया का काम करता था।
अब तो चिट्ठी पत्री लिखना ,भेजना सब मुँआ मोबाइल और इंटरनेट ने निगल लिया...
डाकिया?ये क्या होता है?काव्या ने दादी से फिर प्रश्न किया।
वो ,”अब तो मोबाइल से बात चीत हो जाती हैं न “
आज से दस बारह साल पहले तो किसी को कुछ जानना ,पूछना या हाल -चाल लेना होता था तो चिट्ठी लिखी जाती थी और उसे एक लाल से डब्बे में डाल दिया जाता था ।एक सरकारी आदमी जिसे डाकिया कहा जाता है वह उस चिट्ठी को अपने गंतव्य पर पहुँचाता था।
बाप रे!”बहुत समय लगता होगा न ,दादी?”
पोती के मासूम प्रश्न पर दादी ने आह!भर कर कहा ,हाँ!”बेटा लगता तो था...”लेकिन चिट्ठी लिखना फिर जवाब का इंतज़ार करना और फिर कई -कई बार उन चिट्ठियों को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था।तेरे पापा की,दादा जी की चिट्ठियों को तो मैंने अब तक संजो कर रखा है।
अच्छा?”मुझे दिखाओ कैसी होती थी चिट्ठी ?”
पोती के ज़िद पर जब दादी ने, दादा जी की चिट्ठी पढ़ने को दी तो नन्ही काव्या बोल पड़ी “ओ दादी !दादाजी की हैंडराइटिंग कितनी सुंदर थी “
सो स्वीट ,”इसे मैं अपने पास रखूँगी मेरे दादाजी की स्पेशल मेमोरी...।”कहकर काव्या ने चिट्ठी को सीने से लगा लिया लिया मानो वह अपने दादाजी को गले से लगा रही हो...। ****


7. पिता का दिल
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फ़ोन लगातार बज रहा था...अजनबी नंबर देख विकास उठा नहीं रहा था।
घर में महज़ चार दिन का राशन ही बचा है..”आगे कैसे चलेगा चार लोगों का पेट?”सोच सोच कर चिंता में घुला जा रहा था।
शायद ,सेठ फिर से बुला रहा हो ?नए नंबर से फ़ोन कर रहा हो?अचानक यह बात दिमाग़ में कौंधीं और विकास फ़ोन लगा दिया -उस अनजान नंबर पर-“आपका एकांउट समाप्त हो चुका है कृपया रीचार्ज करने के लिए ...दबाए।”उस ओर से यह आवाज़ सुन कर विकास,मन मसोस कर रह गया।
रात के ग्यारह बजे एक बार फिर उसी नंबर से फ़ोन आते ही लपक कर विकास ने फ़ोन उठाया...क क कौन?
प्रणाम-बाबूजी!
मेरा नंबर कैसे मिला?
“आँखों से अश्रु धार बह कर पुराने गिले शिकवे को धो रहे थे।”
“लॉकडाउन में मेरी भी नौकरी चली गई है”-पिताजी!
हाँ-“मगर किस मुँह से आएँ।”मैं तो आपसे लड़ झगड़कर अपना हिस्सा का पैसा लेकर शहर आकर बस गया हूँ।आपसे ,भइया -भाभी ,सबसे नाता तोड़कर पाँच साल हो गए ,एक बार भी आप लोगों की सुध नहीं ली।
दूसरे तरफ़ से पिताजी ने कहा भइया से बोल कर तुम्हारा फ़ोन रीचार्ज करवा देंगे और बस का भाड़ा भी  पे :टी :एम करवा देंगे।कल हम सब तुमलोगों का इंतज़ार करेंगे “सबको लेकर यहाँ आ जाओ परिस्थिति ठीक होने के बाद में चले जाना,”तुम्हें मेरी क़सम।” ****


8. वसंत 
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कला,”देखो मोटर चला दो पानी आ गया होगा...।”
“आज चाय नहीं मिलेगी क्या?”
विमल जी,प्रतिदिन पत्नी को यह कह कर उठाते।
कला,झल्लाते हुए कहती।अरे!”कभी ख़ुद भी तो कुछ कर लिया करो!”
सुबह की शुरुआत नोक झोंक से ही होती।
पूरा घर ,नाते -रिश्तेदारों की चहेती थी।सभी कला के इर्द-गिर्द और कहे का अनुसरण आँख मूँद कर करते...।
घर में उल्लास का वातावरण था।कोई मेहंदी लगा रहा था तो कोई पार्लर जाने की तैयारी...शादी की पचासवीं वर्षगाँठ का उत्सव मनाने के लिए कला ने सभी रिश्तेदारों को बुला लिया था।वसंत पंचमी के दिन ही पाणिग्रहण हुआ था।कैसे पचास वर्ष गुज़र गए।उबड़ खाबड़ राह भरे रहे जीवन के पचास वसंत।लेकिन कला और विमल जी दोनों एक दूजे के पूरक थे।
विमल जी ने जब सामने सजी धजी वासंती साड़ी में कला को देखा तो सहसा उनका मन वासंती हो गया”इस उम्र में भी सुंदर लग रही हो” कहने पर लजा गई कला।
कला,उठो !”आज कितना सो रही हो?”जाओ देखो तो विहान क्यों रो रहा है?दो साल का पोता जो ऑस्ट्रेलिया से कल ही चार साल बाद बेटा बहू के साथ आया था।मगर कला तो अपनी कला दिखा कर पचास वसंत का साथ निभा,सबको बुला कर ख़ुद अंतिम सफ़र पर निकल गई थी...। ****

9. बातों-बातों में
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प्रत्येक वर्ष  हम चंद दिनों की छुट्टी लेकर बच्चों सहित गर्मी की छुट्टी में गाँव जाते थे|आम के बगीचे, खेत,ताल -तलैया ,गाँव की मीठी बोली की मिठास और अपनों का निश्छल प्रेम भरा अपनापन |हमें बरबस खींच लाता|
बच्चे भी बुजुर्गों का संस्कार और रिश्तेदारों को पहचानते और उनका महत्व समझते |
उस साल भी हर साल की तरह हम सपरिवार गाँव गए थे|अब अम्मा-बाबूजी नही रहे पर बड़े भइया -भाभी और उनके स्नेह में ज़रा भी कमी नहीं |भरपूर प्यार मिलता |
दलान में बैठक लगती |उस दिन भी वैसा ही मजलिस लगा था |पड़ोस के चाचा जी का बेटा रघुवर “यूँ तो कभी आता नहीं था “|उस दिन आया और बातों -बातों में “आग लगा कर चला गया|”
मेरी भी मति मारी गई थी|रात में खाना खाते समय बातों -बातों में ही भइया से पूछ बैठा “भइया आपने खेत बेच दिया ?बताया नहीं “पड़ोस के चाचा का बिटवा रघुवर बता रहा था|कितने में बिकी?
पिता समान भइया ने बात को झूठा कहा |पर शक ने घेरे में ले लिया और मुझसे ज़्यादा पत्नी ने ख़ूब बखेड़ा किया फिर क्या था मनमुटाव  |जो आज दस साल बीत गए पर दो भाइयों के बीच के दरार को पाट नहीं सका| ****


10.गुडबाय 
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...जल्दी करो किरण...
आ रही हूँ ...आ रही हूँ...
जतिन ,मोटर साइकिल स्टार्ट कर किरण के आने का इंतज़ार कर रहा था ।आजकल पंद्रह दिनों से रोज़ जतिन ,किरण को इंग्लिश स्पीकिंग क्लास छोड़ने जाता था।
किरण ,जब से नए सोसायटी में आई है,सोसायटी की महिलाओं को अंग्रेज़ी बोलते सुन उसे ग्लानि होती।हीन भावना से ग्रसित सोसायटी के कार्यक्रमों में भी नहीं जाती।तब जतिन ने समझाया ।क्या हुआ ?”अपनी मातृभाषा में ही संवाद करो  और गर्व करो”देखो सरकार ने कार्यालयों में भी हिंदी अपनाने पर ज़ोर दिया है।लेकिन चंचल ,शोख किरण अंतर्मुखी होती जा रही थी।बच्चे घर पर कोशिश करते किरण से अंग्रेज़ी बोलना पर वो संकोच करती ।तब बच्चों के कहने पर जतिन ने किरण को इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स में दाख़िला करा दिया।
आज सोसायटी में दिवाली मिलन समारोह में किरण भी आई थी उसका आत्मविश्वास कुछ कुछ लौट आया था।
सकुचाई सी किरण महिलाओं से टूटी फूटी इंग्लिश बोल पा रही थी।
पार्टी ख़त्म हुई सभी एक-दूसरे को हैप्पी दिवाली,गुड नाइट बोल रहे थे।किरण भी सभी को बदले में हैप्पी दिवाली और गुडबाय बोल रही थी-मैंने धीरे से किरण को चिकोटी काटी।किरण समझ गई कुछ गड़बड़ हो रहा है।
घर आकर बच्चों का हँसते हँसते बुरा हाल था।
किरण के चेहरे पर प्रश्न चिन्ह देख जतिन ने समझाया,”गुडबाय किसी को विदाई देते वक़्त कहते हैं ।जैसे मान लो हमें किसी वर्ष को अलविदा कहना हो तो अंग्रेज़ी में गुडबाय कहेंगे...”।
अरे!“नहीं ,मैं तो बैड बॉय कहूँगी इस कोरोना साल को ।बाप रे जीना मुहाल कर रखा है।“और किरण खिलखिला पड़ी।****

11.टाई
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प्रकाश, को पहली बार टाई पहन कर ऐसा लग रहा था मानों वह कितनी बड़ी जीत को हासिल कर लिया हो।इस दिन का सपना उसने खुले आँखों से तो हरगिज़ नहीं देखा था।
 कहाँ था वह,आज कहाँ पहुँच गया ?शायद ,आज वह इस मुक़ाम तक नहीं पहुँच पाता अगर वहाँ नहीं होता।यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा उसे उसी पराए घर से मिली थी। जहाँ उसे कई भाई बहनों का साथ मिला जिनके साथ वह लड़ते झगड़ते बड़ा हुआ।कुछ बड़ा हुआ तो बहनों का साथ छूट गया।रात रात भर बहनों की याद में रोता रहता था क्योंकि उनसे जो स्नेह मिलता था उससे वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करता।जगत चाचा हैं तो अच्छे पर उनमें वैसी ममत्व नहीं...क्या करे बेचारे के ऊपर इतने सारे बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी जो थी।लेकिन वो नही होते तो शायद आज वह इस मंच पर नहीं होता।
सभागार में मंच पर आसीन गणमान्य लोगों के मध्य वह बैठा था।सभी विद्वत्जन बारी -बारी से अपना वक्तव्य रख कर बैठ चूके थे।अंत में प्रकाश जो आज का मुख्य अतिथि भी था।बिरला महाविद्यालय के वार्षिक महोत्सव में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि “सपना देखना कभी मत छोड़ना।”कामयाबी अवश्य मिलेगी।फिर इशारे से प्रकाश ने नीचे एक कोने में बैठे कुछ बच्चों को ऊपर बुलाया और कहा ये सभी हमारे रिश्तेदार हैं ;’’पालना घर ‘’के अनाथ बच्चे। मैंने भी बीस साल इस घर में बिताया है।
मुझे जब संस्था के लोग आकर कपड़े ,खाद्य सामग्री देते थे तो लगता था ज़मीन फट जाए और मैं समा जाऊँ। मैं सोचता कब मैं किसी को देने लायक़ बनूँगा। आज मैं दान में मिले पुस्तकों को पढ़कर आपके समक्ष खड़ा हूँ और ये टाई जो मैंने पहन रखा है,इसे बचपन में किसी ने पुराने कपड़ों के साथ दान किया था।जिसे मैंने संजों कर रखा था...।
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क्रमांक - 07

जन्म - 25 अप्रैल, 1958 राँची में
शिक्षा - विज्ञान स्नातिका, राँची महिला महाविद्यालय से।

पुस्तकें :-
पहला लघुकथा संग्रह 'कचोट'
विविध विधा की दस पुस्तकें

विशेष -

- पहली लघुकथा - 1977 में।
नवतारा के ( संपादक-भारत यायावर)  लघुकथांक 1979 में प्रकाशित।
- 1991 में अखिल भारतीय लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनी आकार ( मधुबनी, बिहार ) में एक लघुकथा पोस्टर प्रदर्शित ।
- 1981 में भोपाल सूद जी द्वारा दिल्ली दूरदर्शन के लिए लघुकथा संबंधी साक्षात्कार। जो स्टिल फोटो के साथ बाद में प्रसारित किया गया था। ( राज की बात कि भूपाल जी के आने के तीन-चार दिन बाद ही मेरा विवाह... )
- लघुकथाओं का  - तारिका, लघु आघात, लघुकथा. काम, लघुकथा कलश, कथाक्रम, जनसत्ता सबरंग, राष्ट्रीय सहारा, पायोनियर, दै. हिंदुस्तान, प्रभात खबर, विश्व गाथा, सर्व भाषा, राँची एक्सप्रेस, जागरण आदि में प्रकाशन

प्रमुख पुरस्कार / सम्मान :-
- उपन्यास '  पुकारती जमीं ' को 1990 में नवलेखन पुरस्कार, राजभाषा विभाग, बिहार सरकार से।
-  प्रथम स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान ।
-  तृतीय शैलप्रिया स्मृति सम्मान।
-  रामकृष्ण त्यागी स्मृति कथा सम्मान

पता : -
1 - सी, डी ब्लाॅक, सत्यभामा ग्रैंड, डोरंडा, राँची -834002  झारखण्ड

1. हार
    ***

   वह खत्म होते जंगल और पास के अपने खेतों के बारे में सोच रहा था। बाबा ने मना किया था, फिर भी उसने मेड़ों पर पुरखों द्वारा लगाए गए पेड़ काट डाले थे। फसलों के साथ उसे भी बेच आया था। जंगलों के गाछ भी चुपके-चुपके काटता रहा था अपने लालची मित्रों संग। 
   जंगल के किनारे रात ढले लाॅरी लगती और गाछों को लाद कर आगे बढ़ जाती। वे मित्र भी व्यापारियों संग बढ़ रहे थे। उनकी मर्जी के बिना पत्ता हिलता भी नहीं, व्यापारी समझते थे। अतः उन सबको खूब खुश रखते।
   इधर कुछेक वर्षों से वर्षा दगा दे गई, तो खेती का मुख्य पेशा अब धोखा दे रहा था। सूखे की मार से फेंके गए बीजों को कई एकड़ जमीन खा जाती और डकार भी नहीं लेती।
   जानता है, पर मानता कहाँ है वह। पेड़ों को बेरहमी से काटते वक्त उसको रोकनेवाले अंतर्मन ने पूछा अब उससे,
   " प्रकृति पर विजय तुम सबकी जीत है कि... ? "
   उसका सर तत्काल घुटनों पर झुक आया। ****

2. तुलना
     *****

  वह अपने टैरेस पर गमलों में लगे फूलों की तुलना अनायास अमर के गमलोंवाले फूलों से करने लगा।
क्या बात है आखिर? हम दोनों ने एक साथ, एक तरह के  एक साइज के पौधे खरीदे थे। फिर उसके फूल इतने भरे-भरे, इतने बड़े-बड़े और इतने खूबसूरत कैसे?
  वह अपने घर के नन्हें, बेतरतीब बिखरे से पुष्पों को गौर से देखते हुए सोच रहा था। छोटी-नन्हीं कलियाँ, छाटे-छोटे फूल, पीले पत्ते।
  आखिर उससे रहा नहीं गया। धमक पड़ा उसी दम अमर के घर। टैरेस में ही चाय-नाश्ता लिया।
  " तुम्हारे घर खिले फूलों को देखता हूँ, तो एक ईर्ष्या सी होती है। आखिर ये इतने बड़े, खूबसूरत कैसे ? क्या डालते हो इसमें यार? "
  " कुछ भी तो नहीं। बस, थोड़ी सी मेहनत और ढेर सारा प्यार-दुलार! "
बताते हुए फूलों सी मुस्कराहट अमर के होठों पर आ बिराजी।  ****

3.चंदन
    ****

" बाबा रे! इतनी गंदगी। गीली मिट्टी से मेरे पैर गंदे हो 
  जाएँगे। कीचड़ में फिसलकर पाँव भी मुचक सकता है। "
" अब इतनी नाजुक भी नहीं बनो। "
"  तुम्हारे कहने से मैं इन पगडंडियों पर चल रही हूँ। नहीं, 
तो... मैं घर में भली। तुम्हारी जिद ना...! "
तब तक वे दोनों उस खेत के पास पहुँच गए थे। बादलों की छाँव तले, धरती की धूसर गोद में अनेक किसान जमे हुए थे। वह फिर बोल उठी -" कैसे इतने कीचड़ में...? "
"... कीचड़ नहीं मेमसाब, चंदन बोलो... धरती मइया का चंदन। "
एक किसान ने प्रतिवाद किया। फिर वह अपने हल के साथ खेत में उतर गया। थोड़ी ही देर में वह पिंडली तक मिट्टी में धँसकर अपने बैलों को टिटकारी मारते हुए मगन हो, हल चला रहा था और उसका वाक्य हवा में तैर रहा था
" इसी चंदन से अन्न देवता मिलते हैं मेमसाब! " ***

4. आज की दुनिया
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   मुश्ताक फिल्म देखकर निकल रहा था। उसके आगे भाई-बहन निकले। उसने लड़के को देखा। लड़कियों को देखने का शौक उसे नहीं था।
   एक गुंडा बहन से छेड़छाड़ करने लगा। भाई आपे से बाहर होकर झगड़े के लिए उतारू हो गया। गुंडे ने चाकू से उसका काम तमाम कर दिया। वह लड़की को खींचकर ले जाने लगा।
   मुश्ताक ने लड़की को बचाने के लिए सबको साथ देने के लिए कहा। अंत में अकेले ही कूद पड़ा। लोग भाग खड़े हुए। तमाशबीनों की तादाद बढ़ती गई। लोग आते गए, जाते गए। मुश्ताक लड़की को बचाता रहा।
भागते इंसानों से दूसरों ने पूछा,
   " क्या बात है भाई ? कैसा हंगामा है ? "
   " अरे! क्या बताएँ भाई। दो गुंडे एक लड़की की खातिर लड़ पड़े हैं।... क्या जमाना आ गया है। "
   " हाँ, सच! क्या जमाना आ गया है। " ****

5. सेल्फी
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वे नामी पशु प्रेमी! अनेक पुरस्कारों से सज्जित, अनेक संस्थाओं से सम्मानित! घर में सम्मान पत्रों से दीवारें अटीं पड़ीं। समाचार पत्रों की कतरनों से कबर्ड भरा-पूरा।
  उस दिन रास्ते में कई लोग मिलकर एक व्यक्ति की मरम्मत कर रहे थे। वह चिल्ला रहा था। रिरियाहट, गिड़गिड़ाहट उसकी आवाज़ में -
" छोड़ दो।.... हमको छोड़ दो। अब ऐसा नहीं करेंगे।....मेरा बच्चा भूखा था, इसलिए ब्रेड लिया था। मत मारो। "
सामने ब्रेड कुचला पड़ा था। और भी कुचलनेवाले पाँव उस पर पड़ रहे थे। उन्होंने देखा, आगे बढ़ गए।
बढ़ते गए, आवाजों को अनसुना कर। थोड़ी ही दूर पर बिल्ली का एक बच्चा नाली में गिरा नजर आया। कुछेक क्षणों बाद वे उसे नाली से बाहर निकालते हुए सेल्फी पर सेल्फी ले रहे थे।  ***

6.भक्ति
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बात उन दिनों की, जब चारों ओर खबर फैली - " गणेश जी दूध पी रहे हैं। "
कैलेन्डर हो या मूर्ति, लोगों ने चम्मच से गणेश जी के मुँह में दूध उड़ेलना शुरू कर दिया।
अपार भक्ति में डूबे देश के परम भक्तों के श्रद्धावनत सर उधर नहीं  देख पा रहे थे, जहाँ चिथड़ों में लिपटा छः महीने का बच्चा पिता की गोद में भूख से बिलख रहा था।
" कोई थोड़ा दूध इधर भी दे दो। इसकी माँ जिन्दा नहीं है। यह मर जाएगा। "
" किसे सुध थी। सब अपार भक्ति में बेसुध। "
गणेश बाबा उनके हाथ से दूध पीने से वंचित न रह जाएँ, सोचकर कोई पंक्ति से बाहर निकलना नहीं चाहता था।
  मंदिर के बाहर खड़े एक नास्तिक को एक तरकीब सूझी।
गणेश बाबा को पिलाए गए दूध की बहती नदी से उसने चिथड़े के कोने से थोड़ा दूध समेटा और बच्चे के मुँह में दे, चिल्लाने लगा-
"  गणेश जी का अवतार यह शिशु दूध मांग रहा है। यह अवसर मत गंँवाइए। गणेश जी नाराज हो जाएँगे। "
लोगबाग उस अज्ञात व्यक्ति की भक्ति से प्रभावित होकर कटोरियाँ, गिलास थामे उस ओर लपक लिये। *****

7. मिस करता हूँ
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डॉक्टर अनुराग ने दिनभर से पहने भारी पीपीई किट, मास्क
और कैप को उतारकर अपने केबिन के टेबल पर रखा। पसीने से लथपथ डाॅ. हाथ धोकर सेनिटाइज करने के बाद चेयर पर ढह गए।
उनकी आँखों में नमी थी। आँखों की कोरों पर एक-एक बूँद अटकी। असिस्टेंट ने चाय ढालते हुए गौर से उन्हें देखा। दिन भर के भूखे डाॅ. अनुराग ने चाय, बिस्किट लेने से इंकार कर दिया।
-  क्या बात है सर? 
- नहीं... नहीं! कुछ नहीं।.... वह नंदन नहीं बचेगा।
- कोई बात तो है सर, इस बच्चे से पहले किसी के लिए मैंने आपको इतना विचलित होते नहीं देखा। परिचित ? 
- नहीं। पेशेंट की एज का ही मेरा बेटा है, जिससे मैं दस दिनों से नहीं मिला हूँ।
उन्होंने आँखों पर रूमाल रख लिया।
- और उसकी माँ डाॅ. सुधा अभी-अभी आइसोलेशन से घर लौटी है। तो....।  *****

8.दिल की बात
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बंशी लाल लाॅकडाउन में फँसे कामगारों के लिए बेहद उदार हो उठे थे। उन्होंने भोजनादि का प्रबंध सहर्ष करना शुरू कर दिया था। उनकी टीम के लोगों का समर्पण भी देखने के काबिल।
इस बार जैसे ही वे भोजन की व्यवस्था देखने पहुँचे, उनकी भौंहें चढ़ गईं। मुखाकृति कठोर। अंततः उन्होंने एक साथी पर चिढ़ निकाली,
" तुम्हें और कोई नहीं मिला? बस यही अकेला बचा था दुनिया में? "
उनके होंठ घृणा से टेढ़े हो गए। उनकी जुबां ने आगे भी जोड़ी,
  " ये बना पाएगा? इस छक्के को तो हाथ नचाकर नाचना आता है, बस। कैसे बनाएगा, बोलो? "
  " मैं कहा था, सबका खाना मैं अपने हाथों से बनाएगा। मैं शरीर से अधूरा हय, मन से नहीं। मेरे पास भी दिल हय साब। सबके दर्द पर वह भी रोता हय। दूसरे के लिए कुछ करके मेरा आतमा को भी शांति मिलेगा। आखिर मैं भी तो इंसान हय ना साब। "
  उसकी बातों में दम था, बंशी लाल के दिल तक पहुँची।
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9.अंतिम संस्कार
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चारों तरफ खबर फैल गई कि पेशेंट के साथ निरंतर सेवारत नर्स शैलजा कोरोना पाॅजिटिव पाई गई है। खबरों के साथ अफवाहों की बन आई।
सिस्टर शैलजा अन्य डाॅक्टरों, चिकित्साकर्मियों संग मुस्कुराहट के साथ पेशेंट का मनोबल बढ़ाने के लिए मशहूर थी। पिछले तीन महीने से और भी हँस-हँसकर आइसोलेशन वार्ड में पेशेंट को सँभाल रही थी।
मेटरनिटी लीव मिली थी। पर उसके जमीर ने इजाजत नहीं दी और वह एक महीने के बाद से नवजात बच्ची को दादी के भरोसे छोड़कर अस्पताल में ही रह रही थी।
शैलजा बच्ची को देखने की लालसा लिये हुए दिवंगत हो गई। कब्रिस्तान में दूर से किट में लिपटी उसकी लाश को जमींदोज़ होते देखता एक श्वान मात्र था, जिसे वह अक्सर अस्पताल के बाहर भोजन देती थी।
थोड़ी देर बाद लाश ठिकाने लगानेवाले भी चले गए। कुत्ता बैठा रहा, कोई आदमजात ना था पास।  ***

10. शर्मिंदा     
       *****
                            
        वह सदा की तरह अपने छोटे से डाॅग को घुमाने निकला। वह भी उन लोगों में से था, जो कुत्तों को बहुत प्यार करते हैं। पेट्स के लिए जान भी दे सकते हैं। दरवाजा खोलते ही उनका शेरू, टफी, बडी साधिकार कार की बगलवाली सीट पर जा बैठता है और वे उसके घने बालों में उँगलियाँ फिराकर, स्नेह से निहारकर अपना ममत्व जाहिर करते हैं। पालक की गोद में बैठना उन सबका जन्मसिद्ध अधिकार!
और तो और वे उन सबको अपने बगल में सोने से भी नहीं रोकते। डाॅग द्वारा मुँह चाटना उन्हें अतिरिक्त खुशी से भर देता है। जगह-जगह रोएँ का बिखरे रहना खूब भाता है उन्हें। उसे लैट्रिन कराने के लिए खुद लेकर बाहर जाना कभी नहीं अखरता, भले मुन्ने की नैप्पी बदलना गुस्से का सबब बन जाए।
हाँ, तो वह अपने डाॅग बडी को पार्क ले गया।
कई दिनों से हसरत से देखता एक गरीब बच्चा आगे बढ़ आया। उसके बडी को छूने के लिए प्यार से हाथ बढ़ाया।
उसने तत्काल उसका हाथ झटका, चिल्लाया,
" क्यों छू रहे हो बडी को?  इसे इंफेक्शन हो जाएगा। "
बालक अपने फटे, गंदे कपड़े और मैले हाथ पर बेहद शर्मिंदा हो उठा।
  " और आपको इनफिकसन नय हो...? " ****

11. वादा
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विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी को हेल्पेज इंडिया के लिए अपने घर तथा आस-पड़ोस से पैसे इकट्ठे करने की आज्ञा मिली थी। उन पैसों को बुजुर्गों की संस्था को भेंट किया जाना था।
मोहित भी पापा, मम्मी से पैसे ले चुका था। पड़ोस के लोगों ने भी मदद की थी। काफी रुपये जमा हो गए थे। पर जितना उसने सोचा था, उतने नहीं। वह हौले से उनके कमरे में जा पहुँचा।
" आप भी मदद कर दें। पाँच सौ रुपये दे दें, तो पूरा हो जाएगा। "
" अरे! मैं क्यूँ? मैं भी तो बूढ़ा ही हूँ ना? एक बूढ़े से बूढ़ों के लिए लोगे? "
" हाँ, सच है कि आप भी बुजुर्ग हो। लेकिन आप अंदर हो। वे अपने ही घर के बाहर। वे कभी अपने घर के अंदर नहीं जा पाएँगे दादा जी। "
वह अपने दादा के कँधे से झूल गया। दोनों गालों पर पप्पी ली। आगे जोड़ा,
  "...और हमलोग कभी, कभी भी आपको बाहर रहने नहीं देंगे। " ****
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क्रमांक - 08


जन्मदिन - 11 अक्टूबर 
शिक्षा :  स्नातकोत्तर 

विधा : -
कविता, लघुकथा, आलेख, यात्रा-वृतांत आदि 

पुस्तक : -

एकल कविता-संग्रह : क्यारी भावनाओं की

साझा -संकलन : 
1 नीलाम्बरा
2 काव्य-शिखा
3 बज़्में हिंद
4 साहित्य सागर
5. लफ्ज़ मुसाफिर 
 
ब्लॉग : - 
मन के उद्गार

सम्मान : -
कई मंचों द्वारा सम्मान एवं प्रशस्तिपत्र

पता :
जी 4 ए , द ग्रीन गार्डन अपार्टमेंट
हेसाग, हटिया, राँची - झारखंड
1. फिजूलखर्ची 
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             तीन भाइयों में इन्द्रजीत सबसे छोटा था। दोनों बड़े भाइयों का परिवार, माँ-बाप और दादी कुल मिलाकर एक बड़ा परिवार और कमाने वाला इंद्रजीत अकेला। घर की थोड़ी-बहुत खेती-बाड़ी थी पर वह भी ऊँट के मुँह में जीरा समान थी। शादी के बाद इंद्रजीत का भी परिवार बढ़ा। मुश्किल से गुजारा चलता। 
इंद्रजीत की माँ को तीर्थ यात्रा की बड़ी इच्छा थी जिसे पूरा करने के लिए इंद्रजीत ने कई बार ओवरटाइम करके, कुछ अपने खर्चों में कटौती करके तीर्थ यात्रा पर जाने लायक पैसे जमा कर लिए थे और पिछली बार जब वह गाँव गया था तभी दे भी आया था। उसने तो टिकटें भी बुक करवानी चाही, पर पिताजी ने कहा कि वे स्वयं कर लेंगे। 
आज छः महीने बाद वह गाँव आया था और बड़े उत्साह के साथ तीर्थ यात्रा की इच्छा पूरी होने की खुशी माँ के चेहरे पर तलाश रहा था लेकिन असफल रहा। अंत में पूछ ही बैठा—
" माँ कैसी रही तुम्हारी तीर्थ यात्रा? तुम्हारी चिर संचित अभिलाषा पूरी हुई। तुम बहुत खुश हुई होगी। है न?" 
"निर्धनता की चौखट पर एक ढिबरी कितनी देर रोशनी देगी बेटा?" 
"पर माँ! नजदीक के कुछ तीर्थ पर तो आप जा ही सकती थीं जिसके लिए मैंने अतिरिक्त परिश्रम से जुटाकर पैसे भी दिए ही थे।" 
" बेटा तुम्हारे भाइयों ने तीर्थ-यात्रा को फिजूलखर्ची बताकर वो पैसे सूद पर चढ़ा दिए ।" ****
             
         
2. हड़िया - गुमटी
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          दिल्ली से वापस आनेवाले मजदूरों में झारखंड की सोमारी भी थी। किसी तरह वह अपने गाँव पहुँची। गाँव की सीमा में घुसते ही उसकी नजर एक पक्के मकान के आगे लिखे बोर्ड पर गयी जिसपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था - "अंग्रेजी शराब की दुकान"।
सोमारी टूटी-फूटी हिन्दी पढ़ लेती थी। 
'अरे! यह तो मेरी हड़िया-गुमटी वाली जगह है'! 
सोमारी के कानों में ठेकेदार वाली बात गूँजने लगी... 
  " एई! चलो हटाओ अपना दुकान हिंया से...तुमको पता नहीं कि  स्मार्ट गाँव के लिस्ट में इस गाँव का नाम भी शामिल है। गाँव में घुसते ही तोहार ई हड़िया-गुमटी देख के का इज्जत रह जाएगा...?" 
   उस दिन गाँव के मुखिया से भी कितनी चिरौरी की थी सोमारी ने गुमटी बचाने के लिए... —
" बाबू! ई गुमटी से ही त हमर घर में चूल्हा जलत है, अउर ई हड़िया त अपना झारखंडी रिवाज है। खुसी के कवनो मोका हड़िया के बिना सून लगता है। हाड़-तोड़ मेहनत करे के बाद हड़िया ही दवा का काम करता है आउर बिहने शरीर को फिर से काम पर जाने लायक बनाता है।" 
लेकिन गाँव के मुखिया ने भी तब उसकी एक न सुनी थी।
     स्मार्ट गाँव बनाने और नशा की गिरफ्त से गाँव को बचाने के नाम पर गुमटी तोड़ दी गयी थी। आज उसकी जगह विदेशी शराब की दुकान सोमारी को मुँह चिढ़ा रही थी। ****
     
 3. तलाश 
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         सुजीत चारों तरफ से निराश होकर मुम्बई के मरीन ड्राइव के एक  बेंच पर बैठा बहुत  उदास था। इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिल पा रही थी। काफी प्रयासरत था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वह अपने परिवार का पालन-पोषण करेगा। पढ़ाई के अलावा उसने और कोई काम करना सीखना चाहा भी नहीं। उसे भूख भी लगी थी पर जेब में एक फूटी कौड़ी तक न थी। 
    तभी वहाँ चाट का एक ठेलावाला आया। ग्राहक की तलाश में उसकी नजर सुजीत पर पड़ी। वह बोल उठा, "अरे !सुजीत भाई आप ! यहाँ घुमने आए हैं? "
  "अरे रामू !तुम? चाट का ठेला लगाने लगे हो..., वैसे भी तुम पढ़ाई में इतने कमजोर थे कि इसके अलावा तुम औऱ कुछ कर भी नहीं सकते थे। "
  "हाँ भाई !जहाँ आप हमेशा पूरे स्कूल में अव्वल आते थे, वहाँ मैं किसी तरह पास होता था। मैं हाई स्कूल से  आगे नहीं बढ़ पाया और मैंने बिना समय बर्बाद किये  चाट का ठेला लगाना शुरू कर दिया। भगवान की कृपा से अच्छी आमदनी हो जाती है और अब एक छोटी -सी दुकान खोलने की योजना है जिसके लिए एक विश्वासपात्र सहायक की तलाश कर रहा हूँ। "
"रामू, समझो तुम्हारी तलाश पूरी हो गयी, जब तक कोई नौकरी नहीं मिलती, मैं तुम्हारा हाथ बँटाऊँगा… यदि तुम मुझ पर विश्वास कर सको तो। "
"अरे सुजीत भाई आप ! आप यह काम..."अपनी बात अधूरी ही छोड़ रामू उर्फ़ राम प्रसाद अविश्वास पूर्ण नजरों से सुजीत को देखने लगा। ****
        
4 बदलाव 
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"मम्मी! आज मुझे एक प्रतियोगिता में शीत ऋतु पर लेख लिखने को दिया गया था। मैं हार गया वह प्रतियोगिता, क्योंकि मैं कुछ लिख ही नहीं पाया। मुझे तो सिर्फ वसंत ऋतु ही पसंद है। न स्वेटर पहनने की झंझट, न भीषण गर्मी की चुभती गम्हौरियाँ और न ही सुंदर कपड़ों के ऊपर रेनकोट पहनने की मजबूरी! आई हेट अदर मौसम! 
  ये गाॅड भी न, अजीब हैं। क्या जरूरत थी उन्हें समर, विंटर और रेनी सीजन बनाने की? मेरा वश चलता तो मैं गाॅड को वसंत के अलावा कोई और मौसम बनाने ही नहीं देता… " रौनक धारा प्रवाह बोलता ही जा रहा था। 
 " ऐसा नहीं कहते बेटे! ईश्वर का हर कार्य अर्थपूर्ण होता है। अच्छा हाथ-पैर धो लिया न,चलो अब खाना खाओ, फिर बातें करेंगे।"
" ये क्या? फिर आलू के पराठे? 
"क्यों? तुम्हें तो बहुत पसंद हैं आलू के पराठे।" 
"  तो क्या… लगातार एक ही खाना? ब्रेकफास्ट में भी यही दिए थे आपने, लंच में भी यही और अब डिनर में भी आलू के पराँठे? कितना भी पसंद हो, पर हर मील में एक ही खाना… नहीं खाऊँगा मैं। बोर हो गया एक ही तरह का खाना खाते-खाते। स्वाद में चेंज न हो तो खाने का मजा नहीं आता", तुनकते हुए रौनक ने कहा। 

" सिर्फ दिन भर का भोजन एक जैसा मिलने से तुम बोर हो रहे हो और अभी तो भगवान जी को कोस रहे थे कि उन्होंने सालों भर वसंत का ही मौसम क्यों नहीं बनाया…। 
     भोजन के समान मौसम में भी बदलाव होना  क्या जरूरी नहीं ? "
    मम्मी की तर्कसंगत बातों से हतप्रभ रह गया रौनक। ****

5. भूख 
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            आज तीन दिन हो गए बसंती को... काम पर नहीं जा पायी थी, बुखार छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था। घर में अन्न का एक भी दाना नहीं बचा था । आज तो उसे किसी तरह जाना ही होगा। बच्चों को भूख से बिलखते नहीं देख सकती।
   बहुत कमजोरी लग रही थी उसे पर किसी तरह हिम्मत कर वह मालकिन के घर जा पहुंची जहाँ वह खाना बनाने का काम करती थी। वहां देखा कि किसी बात को लेकर मालकिन और उसकी बेटी के बीच गरमा गरम बहस चल रही थी। किसी तरह उसने खाना बनाया और रोज की तरह मालकिन और उसकी बेटी को थाली परोस कर ले गयी। 
'भूख नहीं है', ले जाओ... 'बेटी ने कहा। 
' बिटिया थोड़ा सा खा लो...' बेटी बहुत गुस्से में थीं और उसने बसंती के हाथ से थाली छीन कर जमीन पर फेंक दिया और बोली, "तुम्हें सुनाई नहीं देता... जाओ यहाँ से।" 
   बसंती कातर नज़रों से जमीन पर गिरे हुए खाने को देख रही थी... उसे अपने बच्चों के भूख से बिलखते चेहरे याद आ रहे थे। ****
                  
 
6. मिनी का गुल्लक 
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              स्कूल से मिनी जब घर आयी तो देखा कि उसकी माँ सर पर हाथ रखे बैठी थी। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। 
  "क्या हुआ माँ? रो क्यों रही हो?" 
  "तुम्हारे पापा का एक्सीडेंट हो गया है। आपरेशन के लिए रुपयों का इंतजाम करना है। सांत्वना तो सभी देते हैं, पर मदद को कोई आगे नहीं आता। घर की सारी जमापूंजी मिलाने पर भी दस हजार रुपये कम पड़ रहे हैं। समझ नहीं आ रहा, कहाँ से लाऊँ? "
      मिनी को अपनी गुल्लक याद आयी जो पिछले साल पापा ने खादी मेले में दिलाया था। 
मिट्टी का पिग की आकृति का गुल्लक मिनी को भा गया था जिसे उसने पापा से खरीदवाया था। उसके बाद मिनी को जो भी पैसे मिलते गुल्लक में डालती जाती। कभी नानी-मौसी कपड़ों के बदले हजार-दो हजार रुपये दे देतीं थीं, उसे भी मोड़ कर गुल्लक में डालती जाती। एक साल में गुल्लक इतना भर गया था कि उसमें और डालने की जगह नहीं थी, पर गुल्लक फोड़ना नहीं चाहती थी। मिनी ने उस गुल्लक को अपनी आलमारी में रख दिया था। 
    'छन्नाक!!!! '
    आवाज सुनकर मिनी की माँ ने सर उठाया तो देखा मिनी का गुल्लक फर्श पर बिखरा था और मिनी सारे पैसों को को चुन रही थी जिनमें ढेर सारे लाल हरे नोट भी थे। ****

7. रिश्तों के फूल 
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             "चल बेटा! अब तू भी बैठकर खा ले, मैं तुझे परोसती हूँ... परांठे गरम ही अच्छे लगते हैं ", गिन्नी की सास ने गिन्नी को बड़े प्यार से उठाते हुए कहा।
किसी काम से आयी पड़ोसन ने यह सुन लिया और गिन्नी की सास को एक किनारे ले जाकर फुसफुसाते हुए कहा, "अरे बहनजी, क्या कर रही हो? ऐसा करोगी तो यह सर पे चढ़ जाएगी और जीवन भर बैठकर खाएगी। मेरी मानो तो अभी से नकेल डाल के रखो। "
"ये कैसी बातें कर रही हैं आप? भले ही यह मेरी बहू बनकर आयी है, पर यह भी तो किसी की बेटी है। अपने माँ-बाप का घर छोड़कर एक नए घर-परिवेश में आयी है। उचित देखभाल के साथ इसे भी खिलने का अवसर मिलना चाहिए, तभी तो हमारे चमन में आपसी रिश्तों के फूल अपनी खुशबू बिखेर सकेंगे। अरे, अपनी बेटियों के साथ साथ बहुओं(कलिका) को भी खिलने दो फिर देखो उसकी सुरभि से आस-पास का वातावरण भी सुवासित हो उठेगा। "
   दरवाजे के पीछे से यह सब सुनकर गिन्नी एक सुखद आश्चर्य से भर उठी, क्योंकि बचपन से ही ललिता पवार जैसी सासों को देखकर वह अपने मन में ससुराल और सास के प्रति एक पूर्वाग्रह पाले बैठी थी। ****
                 

8. किट्टी पार्टी
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'' क्या बढ़िया कचौरियां बनायी थी मिसेज शर्मा ने कल की किट्टी पार्टी में.. ! '' रोमा बड़ी चहकते हुए प्रिया को बता रही थी। 
   '' हां.. कितना अच्छा लगता है न.. हम सभी इक्ट्ठा हो एक - दूसरे का हाल लेती हैं, गप्पें लड़ाती हैं.. टाइम कितना अच्छे से बीत जाता है और एकरसता भी दूर हो जाती है हमारी... है न? '' सीमा ने भी उत्साह बढ़ाते हुए कहा।
  तभी मिसेज दास ने दोनों की बातें सुन के बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा,.. '' क्या खाक अच्छी बनी थीं, मोयन तो डाला ही नहीं था.. मुझे तो एकदम बेस्वाद लगीं। ''
   '' क्या मिसेज दास, आप तो हर चीज़ में कमी निकलती हैं, '' पीछे से आती हुई पिंकी तपाक से बोल पड़ी।
   '' और नहीं तो क्या! पिछली किट्टी मेरे घर पर थी तब मैंने कितने पकवान बनाए थे.. याद है कि भूल गयी? ''
'' छोड़िए न मिसेज दास.. आप भी क्या बातें लेकर बैठ गयीं, '' रोमा ने फौरन बात संभाल ली। उसे डर था कि पिछली बार की तरह कहीं फिर से वाकयुद्ध न शुरू हो जाए जो उस किट्टी पार्टी में कड़वाहट भर गया था। ।
    रोमा सोचने लगी कि किट्टी पार्टी गृहिणियों के लिए कितनी उपयोगी है। दिनभर की थकान और एकरसता को दूर करने के लिए एक स्वस्थ किट्टी पार्टी किसी शक्तिवर्धक पेय की तरह होती है ; पर मिसेज दास जैसी औरतों का क्या किया जाय जो एक उपयोगी किट्टी पार्टी का मज़ा किरकिरा कर देती हैं।
     हर समाज में मिसेज दास जैसी महिला होती ही हैं।  उनकी उपेक्षा तो नहीं की जा सकती है, पर समझदारी से उनके साथ निभाने में ही भलाई है। ****
                           
9. बहरी भीड़ 
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       '' पकड़ो-पकड़ो, जाने न पाए... वो मेरा पर्स ले कर भाग रहा '' किसी औरत की आवाज़ सुन माधव जो अपनी बीमार माँ के लिए दवाई खरीदने जा रहा था मुड़ कर देखा तो एक बदमाश हाथ में एक पर्स लिए भाग रहा था। माधव ने आव देखा न ताव दौड़ पड़ा उस बदमाश के पीछे। थोड़ी ही देर में  उसने बदमाश को पकड़ लिया और उससे पर्स छीन वापस औरत को लौटाने आ रहा था।
  तबतक उस औरत के शोर मचाने पर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गयी। जैसे ही भीड़ ने माधव के हाथ में पर्स देखा उस पर टूट पड़ी। माधव ने कुछ कहने की कोशिश की पर भीड़ सुनती कहाँ है... उसके  कान जो नहीं होते। माधव को कुछ भी कहने का मौका दिए बिना भीड़ ने पीट पीट कर उसे मार डाला ।
   भीड़ में से किसी ने महिला को पर्स देते हुए कहा, '' मर गया साला! भीड़ की ताकत से कैसे बच सकता है... ''
     महिला माधव के मृत शरीर को देख सन्न रह गई और उसके मुँह से निकल पड़ा, '' हे भगवान्! पर्स छीनने वाला तो कोई और था, इसे बचाने की सजा मिल गयी ''! ****
                
               
10. गरीब की भावनाएँ 
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        "मैडम! सब ठीक तो है न!" 
मैंने चौंककर देखा तो पास ही ठेले पर एक भूंजावाला मेरी तरफ मुखातिब था। 
"क्यों? ठीक क्यों नहीं होगा? ऐसा क्यों बोल रहे हो?" मेरी त्योरियाँ चढ़ गयीं।
वो क्या है न मैडम कि पिछले पंद्रह दिनों से आप भूंजा लेने नहीं आ रही थीं। मुझे लगा कहीं आप परेशानी में तो नहीं हैं…। "
उसके इस कथन को सुनकर मुझे ख्याल आया कि यह तो वही भूंजावाला है जहाँ मैं वर्षों से दो-तीन दिन के अंतराल पर भूंजा लिया करती थी। इधर पंद्रह दिनों से मैंने दूसरी जगह से भूंजा लेना शुरू कर दिया था।
 " मैंने भूंजा खरीदना बंद कर दिया, इसलिए हाल-चाल पूछकर हमदर्दी का रिश्ता बनाना चाहते हो? जबर्दस्त मार्केटिंग है!" 
"ऐसा न बोलिए मैडम। अक्सर हमारा जिससे मिलना हैता रहता है, उससे एक आत्मीयता हो जाती है, जिस नाते मैंने आपका हाल-चाल पूछा। पर, कोई बात नहीं मैडम! आप बड़े लोगों को यह सब देखने की फुर्सत कहाँ है? आपको अबतक सिर्फ भूंजा और मेरा ठेला दिखा होगा। उसके पीछे का इंसान नहीं। "
      उसकी बातें सुनकर मैं स्वयं से शर्मिंदा हो उठी। सचमुच! आज तक मैंने कभी गौर भी नहीं किया था कि ठेले के पीछे का इंसान बूढ़ा है या नौजवान! 
   आज गौर से देखा तो पाया कि वह एक पैर से अपाहिज था और एक ऊँचे स्टूल पर बैठकर सबको प्यार से संबोधित करता हुआ भूंजा बेच रहा था।  पिछले दो वर्षों से उससे भूंजा ले रही थी, परंतु उसके प्रति कोई भावना महसूस नहीं कर पायी थी। आज ठेलेवाले की समृद्ध भावनाओं ने मुझे मेरी संवेदनहीनता का आइना दिखा दिया। ****

11. जीवन-रक्षक मास्क 
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       "अम्मा! जल्दी से खा लो, फिर हमको रात तक फुर्सत नहीं मिलेगी।" 
   "अरे, इ का बोल रही है? भगवान जी छप्पर फाड़ के खाना भेजे हैं का? तीन दिन से रसोई की हाड़ी सब सूखल है... इहां कमजोरी से आँख नहीं खुल रही और तुमको ठिठोली सूझ रही है?
  " नहीं अम्मा, सच्ची बोल रहे हैं । सुगनी के बापू के साथ बगल के कस्बे में गए थे कि कुछो तो  मिल जाए इ पेट की अगिन को शांत करने के लिए। उहाँ एक जगह थोड़ा-थोड़ा दूरी पर कुछ लोग खड़े थे। पुलिस के जैसा एक आदमी बोल रहा था कि सरकार चाहती है कि हर गाँव में मुँह ढकने वाला मास्क गाँव वाले खुदै बनाएँ। और इसके लिए सामान के साथ कुछ रुपइया भी दे रहा था। हमको भी कपड़ा और सूई-धागा के साथ कुछ रुपिया मिला। उसी पइसा से रासन खरीद के लेते आए और आके हम सबसे पहिले खाना बनाए। "
  " अब चलो जल्दी से खा लो फिर हम मास्क बनाने बइठेंगे। "
"हुम्म...इ भगवान हमर जिनगी के कुछ दिन आउर जोड़ दिए। पर कब तक...? " ***
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क्रमांक - 09

जन्म तिथि - 07 जुलाई  ,राँची, झारखंड
पति का नाम - सुभाष चन्द्र  मिश्र
शिक्षा - एम. ए. हिन्दी (इग्नू)
व्यवसाय - शिक्षिका

लेखन : कहानी, कविता, लघुकथा, संस्मरण, लेख, समीक्षा

प्रकाशित पुस्तक - "और भी है राहें" कथा संग्रह

प्रकाशित साझा संकलन : -

नीलाम्बरा,
विचार विथिका,  
कथादीप, 
लघुकथा संकलन - 2019
चित्रगंधा
साहित्य प्रसंग
साहित्योदय

विशेष : -

- महिला काव्य मंच राँची की सक्रिय सदस्य।
-  प्रेरणा दर्पण साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच झारखंड इकाई अध्यक्ष।

प्राप्त सम्मान : -

- भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा विभिन्न सम्मान से सम्मानित
- आदिशक्ति फाउंडेशन द्वारा सशक्त नारी सम्मान
- बाल नारी जागृति युवा मंडल द्वारा नारी रत्न सम्मान
- अखिल भारतीय प्रसंग मंच द्वारा कथा शिल्पी सम्मान
-  साहित्य संवेद मंच से पाठक पुरस्कार
                                    
पता : -  फ्लैट नं बी 304, ईश्वरी इन्कलेव , विद्यापति नगर,
  काॅके रोड ,राँची - 834008 झारखंड 

 
 1. हम हिन्दुस्तानी
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           आज अर्चना वर्मा को अमेरिका के एक शहर में हिन्दी दिवस पर सम्मानित किया जा रहा था।
संस्था "हम हिन्दुस्तानी" के संरक्षक ने अपने उद्बोधन में कहा कि "हम हिन्दुस्तानी संस्था की  नींव नौ साल पहले अर्चना जी ने रखी थी। वे हम प्रवासी भारतीयों के बच्चों को हिन्दी की महत्ता बड़े ही लगन से बताया करती थी। कई लेखकों की किताबों को लेकर उन्होंने एक लाइब्रेरी बनायी थी। जहाँ हफ्ते में एक बार बच्चों को लेखक के परिचय के साथ किताबें पढ़ने को देती थी।वे रामायण के पात्रों का परिचय, गीता के उपदेश और अपने देश भारत की गौरव गाथा भी बच्चों को बताया और समझाया करती थी।
                     सभी बच्चों के माता-पिता भी उनके इस कार्य की खूब सराहना करते थे। उन्हें इस बात की खुशी होती थी कि विदेश में रहकर भी हमारे बच्चे अपनी संस्कृति और मिट्टी की खुश्बू से जुड़े हुए हैं।"
अर्चना वर्मा जी ने बताया कि उनके पति को कंपनी ने दस साल के लिए यहाँ  भेजा था। समय पूरा होने पर अब मैं  अपने पति के साथ वापस भारत जा रही हूँ । अब "हम हिन्दुस्तानी" की बागडोर  शिखा गुप्ता को सौंप दी है।
उन्होंने उपस्थित सभी सुधिजनों को सम्बोधित करते हुए कहा - " मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि मेरे द्वारा रखे गए " हम हिन्दुस्तानी "की लौ अब मशाल बन कर सभी बच्चों का मार्गदर्शन करेगी।"
पूरे हाॅल में तालियों की गड़गड़ाहट के साथ नई कमेटी ने उन्हें सम्मानित किया।
अंत में उन्होंने कहा "मैं यहाँ रहते हुये भी भारत में जीती थी और वहां की खुशबू बिखेरती थी जिससे यहाँ पैदा हुए बच्चे उस सौंधी खुशबू से वंचित न रहें।" ****

2.स्कूल बस
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        स्कूल बस अचानक चौराहे से पहले ही रुक गयी। एक शिक्षिका ने उत्सुकतावश पूछा - " क्या हुआ ड्राइवर भइया?" ड्राइवर ने चिंतित होते हुए कहा - " मैडम जी, लगता है कि चौराहे पर दुर्घटना हो गयी है। अब बच्चे शाम तक भूखे - प्यासे, थके हारे बैठे रहेंगे।"
बस में दो ही शिक्षिका थी। रूपाली और मीना, दोनों आस - पास ही रहती थी। भीड़ अब बेकाबू होकर बस की तरफ आ रही थी। दोनों शिक्षिकाओं ने सबसे पहले स्कूल के आफिस में खबर कर दी कि  नौ नं की बस हंगामें में फंस गई है। जिससे  सभी अभिभावकों को खबर मिल गई। उसके बाद इंटरनेट की मदद से पास के थाने में फोन किया। फिर  तुरंत ही  एंबुलेंस को आकस्मिक सेवा के लिए फोन किया।
                     बच्चों को बस में बंद करके निडरता के साथ भीड़ के सामने खड़ी हो गई। भीड़ को धिक्कारते हुए कहा - "आप सभी हंगामा करने से पहले थाना और पुलिस को फोन करते तो दुर्घटनाग्रस्त इंसान की जान बच सकती है। फिर विडियो लेते हुए एक लड़के को देखकर कहा कि -" ऐसे ही किसी दिन चौराहे पर आपके घर के बच्चे भी स्कूल बस में हो सकते है।" सामने से आती एंबुलेंस की आवाज़ से भीड़ छंटने लगी। घायल को एंबुलेंस में बिठा कर ले गई। पुलिस ने भी आकर स्थिति को सम्हाल लिया।
उन्होंने वीडियो बनाने बालों से कहा, "वीडियो पर लाइक और कमेन्ट ही मिलते हैं। अगर इस मोबाइल का सही उपयोग करते तो लोगों की जान बच सकती है।" ****
                    
3. मासूम
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      साकेत हाइटेक सोसाइटी में रहता है। स्कूल से आने के बाद वो अपनी आया दीदी के साथ था।  उसने आज ठीक से खाना  नहीं खाया और खेलने भी नहीं गया। आठ बजे पापा- मम्मी के आते ही, साकेत दौड़ कर अपनी मम्मी के
पास जाकर कहने लगा -   " मम्मी मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है। सर में दर्द है, और सर्दी भी हो गई है।"
"अरे बेटा! मेरी कल मीटिंग है। मुझे पेपर तैयार करना है।" आया को आवाज़ लगाते हुए कहा,"पुष्पा ऽऽऽऽ... देख, साकेत क्या बोल रहा है।
साकेत वहाँ से दौड़कर अपने पापा के पास दूसरे कमरे में गया, उसके पापा महँगी मशीनों के साथ कसरत कर रहे थे, और जोर का संगीत बज रहा था।
साकेत वहाँ से भागते हुए वापस अपनी मम्मी के पास आकर बोला - "मम्मी दादी को बुला दो ना, वो बहुत प्यार करती है। बाल में तेल की मालिश भी कर देती है।"  इतना सुनते ही रीमा तुनकते हुए
संदीप के पास आयी, और जोर - जोर से बोलने लगी - "तुमने ही इसे सिखाया होगा। तभी साकेत मुझसे कह रहा है कि दादी को बुलाओ। मुझे नहीं सुनना उनका लेक्चर -
" तुम लोग साकेत को प्यार नहीं करते हो। समय नहीं देते हो।  तुम लोग का सोने और उठने का कोई समय नहीं है।
उन्हें तो हमारी लाइफस्टाइल पसंद ही नहीं आती है। "
             रीमा को इतना नाराज देखकर साकेत डर गया और अपने कमरे में जाकर कीमती खिलौनों के बीच रोते-रोते सो गया। रीमा ने अपना गुस्सा उतारने के लिए साकेत के लिए छोटी कार जो हाॅल में चला सकता था। आर्डर कर दिया और स्वयं से कहा,"कार पच्चीस हजार की है तो क्या हुआ?मैं अपने बेटे को बहुत प्यार करती हूँ।" ****

4. सहारा
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            कामिनी आज सुबह से ही उस कमरे में बैठी थी। जहाँ उनके पति घंटों समय बिताया करते थे। रिटायर होने के बाद उनका ज्यादा समय पढ़ने-लिखने में ही व्यतीत होता था। पूरा कमरा सतीश की मनपसंद किताबों से सजा हुआ था। सतीश हमेशा उनसे कहते - "आओ मेरे साथ इस कमरे में बैठो। बहुत सुकून मिलेगा।"... "आपने गाजर लाकर रख दिया है। हलवा कौन बनाएगा। शाम को घर पर साहित्यिक चर्चा भी रख ली है, फिर चाय - नाश्ता का इंतजाम करना। ये सब क्या इतना आसान है। कल महिला मंडल की मीटिंग है। मुझे उसकी भी तैयारी करनी है।". सतीश मुस्कुराते हुए कहते-    "अच्छा ठीक है, कामिनी सहाय जी, आप मुझे गाजर का हलवा ही खिला दीजिए।"
            यह सब सोचते हुए कामिनी बाहर निकलकर सोफे पर बैठ गई। सोचने लगी, जब तक सतीश का साथ था। कितना व्यस्त रहती थी। उनके जाने के बाद जिंदगी जैसे रूक सी गयी है । चारों तरफ एक खालीपन पसर गया है । बेटी ब्याह के बाद विदेश में ही बस गयी। अभी दो महीना बेटा के पास रह कर आयी थी। इससे ज्यादा दखलअंदाजी बहू को पसंद नहीं था।
           तभी सुखिया (खुशी की दादी) हाँफते हुए आयी - " मालकिन, आज खुशी काम करने नहीं आएगी। मुन्ना का एक्सीडेंट हो गया है। फटफटिया चला रहा था। आज सुबह उठते ही मुन्ना ने उस मनहूस का मुँह देख लिया था। हो गया सत्यानाश। हे भगवान! न जाने क्या होगा, इस बिन माँ - बाप की बच्ची का"। कहते हुए चली गई।
          शाम हो चली थी कामिनी दरवाजा बंद करने गयी, तो देखा कि खुशी सीढ़ी पर बैठकर रो रही थी। उसके हाथ - पैर और चेहरे पर कई जगह चोट के निशान थे। कामिनी ने पूछा - "क्या हुआ।"... " मुन्ना फटफटिया से गिर गया। बहुत तेज चला रहा था। छोटी माँ ने बहुत मारा, और घर से निकाल दिया। बोली कि तू मनहूस है। घर में रहती है। इसलिए ये सब हुआ।"
           कामिनी उसे अंदर लेकर आयी। जख्मों को गरम पानी से पोंछकर दवाई लगायी, और पट्टी बाँध दी। फिर कामिनी ने खुशी का चेहरा अपने हाथ में लेते हुए कहा - " मेरी बेटी बनोगी। मैं बहुत अकेली हूँ। मुझे सहारा चाहिए।"  इतना सुनते ही खुशी फफफ कर रोने लगी। कामिनी के अश्रू भी अविरल बह रहे थे। ऐसा लग रहा था, जैसे नियति ने स्वयं ही दोनों को मिला दिया था। ****                         
                
5. सुबह की चाय
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         कामिनी सुबह छ:बजे चाय लेकर बरामदे में आकर बैठ गई। कामिनी जब भी अहमदाबाद आती थी, तो उसका ज्यादा समय इसी बरामदे में बीतता था। बरामदे के सामने एक छोटे से बगीचे में आम के चार पेड़ और फूलों की क्यारियाँ थी । बीच में लगे घास पर मिट्टी के दो पात्र में पानी भरा रहता और दो पात्र में अनाज रखा रहता था । गिलहरी पेड़ से उतरती और कभी पात्र से अनाज खाती तो कभी पानी पीती और तुरंत पेड़ पर चढ़ जाती। चिड़ियों की चहचहाहट से पूरा वातावरण खुशनुमा बना रहता। वो सभी एक डाल से दूसरे डाल पर फुदकती रहती । कभी पानी में अपना चोंच डुबाती तो कभी अपने चोंच में अनाज उठाती, फिर फुर्र से उड़ जाती। पार्क के एक कोने में बुजुर्गो के बैठने की व्यवस्था की गई थी, जहाँ पाँच से छ: बुजुर्ग मास्क पहने हुए दूरी बनाकर बैठे थे।
                ऊपर टीन के शेड पर लगे पंखे नहीं चल रहे थे। कामिनी भी बिना पंखे के ही बैठी थी। पेड़ों के पत्ते जोर- जोर से हिल रहे थे। शीतल मंद सुगंध पवन बह रही थी। सुबह चाय की चुस्कियों के साथ एक ताजगी का अनुभव हो रहा था। जो दिल और दिमाग दोनों को तरोताजा कर रहा था। दो साल पहले कामिनी यहाँ आई थी तो अहमदाबाद की भीषण गर्मी में सुबह  दस से ग्यारह बजे तक बिना पंखे के बैठना असंभव था। कामिनी अब सोचने पर मजबूर हो गई कि यह बदलाव रात के आठ बजे से सुबह के आठ बजे तक लगे कर्फ्यू के कारण तो नहीं है? शायद यही सच है कि अब प्रकृति भी अब हमसे कुछ कहना चाहती है। ****
              
6. प्रथम पाठशाला
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           सतीश अपने पिता (मुखिया) के साथ खड़े होकर रावण दहन की तैयारी देख रहा था। गगन ने सतीश को अपने पास बुलाकर कहा - " तुम्हें याद है न, हमारे मास्टर जी, अगर हम नहा कर नहीं जाते थे। तो कक्षा में बैठने नहीं देते थे। रोज हमसे पहाड़ा सुनते थे। जिसकी लिखावट खराब होती थी। उसकी काॅपी में हस्ताक्षर नहीं करते थे।..." हाँ, कैसे भूल सकता हूँ। उनकी प्रथम पाठशाला ने हमारी जड़ों को इतना मजबूत बनाया है।"... "इस बार की दशहरा में हम सब उनके द्वारा रावण दहन करवाना चाहते है।"...  "ये तो अच्छी बात है, पर लोगों की चाकरी ने मेरे पिता में दंभ भर दिया है। फिर भी मैं कोशिश करता हूँ। "
                  आज मुखिया जी ने स्वयं मास्टर साहब को सम्मान के साथ बुलाते हुए रावण के पुतला दहन के लिए पहला तीर चलाने का आग्रह किया। मास्टर जी ने जैसे ही हाथ में तीर - धनुष उठाया। तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गूंज उठा। इधर रावण का पुतला धूँ - धूँ कर जल रहा था। उधर गगन, पवन, सतीश और उनके सभी मित्र खुशी-खुशी एक - दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। ****
          
7. रपट
    *****

         आज रविवार का दिन था । बारिश का महीना होने के कारण पाँच दिन बाद धूप निकली थी । पुरुष वर्ग खेत का जायजा लेने निकले थे । बच्चे बाहर निकल कर खेल रहे थे। बच्चों में आज होड़ लगी थी, कि कौन कितना ऊँचा कूद सकता है। मुन्नू, गुड्डू, पप्पू, सोमू, चेतू, और उनके साथ सोमू की छोटी बहन मुनिया भी खेल रही थी । मुनिया गेंद से खेल रही थी। इस बार उसकी गेंद दूर चली गई, तो मुनिया भी गेंद के पीछे- पीछे भागी।
              सांझ होते ही सभी बच्चे घर की तरफ जाने लगे। पर उन्हें मुनिया कहीं दिखाई नहीं दी। मुनिया घर पर भी नहीं थी। सभी परेशान हो उसे ढूँढने लगे। पूरे गाँव में शोर मच गया। धीरे-धीरे रात हो चली थी। अभी तक मुनिया की कोई खबर नहीं थी। तभी एक झाड़ी के पास मुनिया के कराहने की आवाज सुनाई दी। वहाँ जाकर देखा तो मुनिया बेसुध पड़ी थी। पूरा शरीर लहू - लूहान था। माँ ने चीखते हुए उसे गोद में ले लिया, और अस्पताल की तरफ भागी। नर्स ने बताया किसी शंकर का नाम ले रही है।
                  पूरा गाँव शंकर के घर के बाहर खड़ा था। शंकर की माँ शीला भीड़ को चीरती हुई सीधे थाने पहुँची। वहाँ पहले से ही शंकर के पिता एक वकील के साथ बैठे थे।
                  शीला ने थानेदार की तरफ देखते हुए कहा - "साहब मेरे बेटा ने जघन्य अपराध किया है। उसकी रपट लिखिए।"  फिर अपने पति को धिक्कारते हुए बोली - "हमारी बेटी और मुनिया एक ही कक्षा में पढ़ते है। तुम्हें मुनिया में, अपनी बेटी नजर नहीं आयी?"  उसके बाद वकील को निशाना बनाते हुए - "वकील बाबू,क्या इन दरिंदों को बचाने के लिए ही आपने वकालत की डिग्री ली थी? इससे तो अच्छा होता आप अनपढ़ ही रह जाते।"
                  थाने से वापस आकर शीला ने मुनिया की माँ से इतना ही कहा - "मैं तुम्हारा घाव तो नहीं भर सकती। पर मुनिया को इंसाफ जरूर मिलेगा।" ****
                
8. मासूम
    *****

साकेत हाइटेक सोसाइटी में रहता है। स्कूल से आने के बाद वो अपनी आया दीदी के साथ था।  उसने आज ठीक से खाना  नहीं खाया और खेलने भी नहीं गया। आठ बजे पापा- मम्मी के आते ही, साकेत दौड़ कर अपनी मम्मी के
पास जाकर कहने लगा -   " मम्मी मेरी तबीयत ठीक नहीं
लग रही है। सर में दर्द है, और सर्दी भी हो गई है।" ... अरे!
बेटा, मेरी कल मीटिंग है। मुझे पेपर तैयार करना है। "
" पुष्पा ऽऽऽऽ... देख, साकेत क्या बोल रहा है। " साकेत
वहाँ से दौड़कर अपने पापा के पास दूसरे कमरे में गया।
उसके पापा महँगी मशीनों के साथ कसरत कर रहे थे, और
जोर का संगीत बज रहा था।  साकेत वहाँ से भागते हुए वापस अपनी मम्मी के पास आकर बोला - " मम्मी दादी को बुला दो ना, वो बहुत प्यार करती है। बाल में तेल की मालिश भी कर देती है।"  इतना सुनते ही रीमा तुनकते हुए
संदीप के पास आयी, और जोर - जोर से बोलने लगी - "तुमने ही इसे सिखाया होगा। तभी साकेत मुझसे कह रहा है कि दादी को बुलाओ। मुझे नहीं सुनना उनका लेक्चर -
" तुम लोग साकेत को प्यार नहीं करते हो। समय नहीं देते हो।  तुम लोग का सोने और उठने का कोई समय नहीं है।
उन्हें तो हमारी लाइफस्टाइल पसंद ही नहीं आती है। "
             रीमा को इतना नाराज देखकर साकेत डर गया और अपने कमरे में जाकर कीमती खिलौनों के बीच रोते-रोते सो गया। रीमा ने अपना गुस्सा उतारने के लिए साकेत के लिए छोटी कार पच्चीस हजार जो हाॅल में चला सकता था। आर्डर कर दिया। ****
                            
9. ससुराल
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         पंजाब के एक छोटे से गाँव में परमिंदर दुल्हन बन कर आयी थी। शादी में आए सारे मेहमान अब जा चुके थे। पति सुखविंदर सिंह भी आज काम पर चला गया था। परमिंदर की सासु माँ ने उसे रात के खाने के लिए मक्के की रोटी, सरसों का साग और बड़े से पीतल के गिलास में भर कर छाछ बनाने को कहा था।
              सबसे पहले उसने रसोईघर को साफ - सुथरा कर के सभी सामानों को व्यवस्थित किया। सासु माँ के घुटने में दर्द होने के कारण किसी तरह से खाना बना लिया करती थी। इसलिए पूरा कमरा अस्त - व्यस्त था। उसके बाद उसने सबसे पहले छाछ  बना कर रख दिया। अब एक चूल्हे पर साग पक रहा था। दूसरे चूल्हे पर मक्के की रोटी बना रही थी। नए रेशमी परिधान और सिर पर करीने से चुन्नी रख कर सजी संवरी परमिंदर हर आहट पर चौखट की तरफ देखती कि कहीं उसका सुखी ( सुखविंदर) तो नहीं आया। आज से ही तो उसने गृहस्थी सम्हाली थी। इसके साथ ही नयी जिंदगी बाँहें फैलाए उसका इंतजार कर रही थी। ****
            
10. धूप और छाँव
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                सुमित्रा देवी अपने पति की फोटो के सामने खड़ी होकर बातें कर रही थी। उन्होंने अपने सफेद और काले बार्डर वाली साड़ी के तह को ठीक करते हुए इधर-उधर देखा।  उसने पति की ओर देखते हुए कहा _ "तुम ठीक ही कहते थे कि सुख और दुःख दोनों साथ चलते है। मालूम है? आज आकाश ने जब बहू से चाय माँगी ,तो बहू ने बड़े प्यार से चाय बना कर दिया। मुझे वह दिन याद आ गऐ ,जब तुम मुझे आवाज लगा कर कहते थे  _ ‘सुमित्रा ssss एक प्याली चाय पिलाना। मैं रसोईघर में कई कामों के बीच भी तुम्हें चाय बना कर देती थी। आज वही भाव मैंने शगुन के चेहरे पर महसूस किया।
                   "अब अपनी लाड़ली श्रुति का चिड़चिड़ापन भी कम हो गया है। माँ के कामों में हाथ बटाती है ,और खूब मन लगाकर पढ़ाई भी करती है। आकाश भी दिन में एक -दो बार मुझसे हाल -चाल पूछ लेता है।" आज उनके चेहरे पर उदासी की जगह एक चमक थी ,और पहले से ज्यादा खुश नज़र आ रही थी। मुझे तो लगता है ,बच्चों की कोई गलती नहीं थी। भाग दौड़ में जीवन शैली ही बदल गई थी। आकाश और बहू का ऑफिस में बेहतर प्रदर्शन के लिए परेशान रहना। श्रुति का स्कूल के बाद कोचिंग और ट्युशन में लगे रहना। आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागते - भागते सब की मासूमियत जैसे छूट गई थी।  अचानक कोरोना वायरस ने आकर सबको रोक दिया। अब रुक जाओ! बहुत दौड़ लिए! थोड़ा सुस्ता लो!आजकल   दूरदर्शन पर रामायण की गंगा बहती है। जिसे हम साथ बैठकर देखते है।"
         " मैंने सौ के करीब मास्क बनाये हैं। संस्था वाले अभी लेने आ रहे है,गरीबों को बांटने के लिए सुनिये! हमारे मजदूर बहुत दुखी और बेहाल है। उनकी बातें कल करुँगी,पहले उनके लिए कुछ कर तो लूँ।" ****                           

11. क्राफ्ट
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     सुमन आज स्कूल से आने के बाद उदास बैठी थी। दो दिन की छुट्टी के बाद क्राफ्ट जमा करना था ।नीतू उसे क्राफ्ट का सामान लेने के लिए बुलाने आयी। उसने बहाना बनाते हुए कहा कि - "मैं कल जाऊँगी ।" फिर बैठकर सोचने लगी कि कल भी उसके पास पैसे कहाँ से आयेंगे । उसके पिता रिक्शा चलाते थे। लू लग जाने के कारण महीने भर से घर में आराम कर रहे थे। उसकी माँ दो घरों में खाना बनाती थी। उसी से घर का खर्चा किसी तरह से चल रहा था। शाम को घर में आते ही माँ ने पूछा -" तू इतनी उदास क्यों है? क्या बात है?"...  "स्कूल में क्राफ्ट जमा करना है। डिब्बे में सिर्फ 60 रू है। आपकी तनख्वाह आने में सात दिन बाकी है। मैं क्या करूं, यही सोच रही हूँ।"...  "ठीक है। चिंता मत कर। कल सोचते है।"
      दूसरे दिन कमला ने कपड़े की एक गठरी निकाली। जो उसे मालती मेमसाहब ने दिया था। जिसमें पुराने और टिकाऊ शर्ट - पैंट थे। फिर सुमन को समझाते हुए कहा -" क्राफ्ट घर में पड़े पुराने और बेकार वस्तुओं से भी बनायी जाती है। तू इस शर्ट से थैला बना ले। बीच में एक छोटा सा फूल टांक देना। अच्छा क्राफ्ट बन जाएगा।"।
    सुमन ने माँ के कहने के अनुसार ही किया। स्कूल में शिक्षिका ने उसके क्राफ्ट की खूब तारीफ की। उसके द्वारा बनाए गए थैला को दस सर्वश्रेष्ट क्राफ्ट में स्थान मिला। ****
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क्रमांक - 10

जन्म तिथि : 09 अप्रैल 1973
जन्मस्थान : बोकारो - झारखंड
माता :  श्रीमती वेदनामयी देवी
पिता :  श्री मगाराम गोप
शिक्षा : एम.ए.( हिन्दी , इतिहास )
पेशा : अध्यापन
रूचि : साहित्य-लेखन व पठन तथा संगीत श्रवण

विशेष : -

- लघुकथा विधा का प्रथम स्तंभकार  [प्रखर गूंज प्रकाशन नई दिल्ली की मासिक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्यनामा' में लघुकथा का नियमित स्तंभ-- लिये लुकाठी हाथ]
- देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
- आकाशवाणी रांची से कई बार रचनाओं का प्रसारण
- बांग्ला, उड़िया, पंजाबी आदि विभिन्न भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद

सम्मान : -
- भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा " कोरोना योद्धा रत्न सम्मान - 2020 "
- भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा माधवराव सप्रे जंयती के अवसर पर " लघुकथा दिवस रत्न सम्मान - 2020 "
- जैमिनी अकादमी द्वारा " 2020 के एक सौ एक साहित्यकार " पर " 2020 रत्न सम्मान "
- जैमिनी अकादमी द्वारा गणतंत्र दिवस पर " भारत गौरव सम्मान - 2021 "
      आदि अनेक सम्मान

पता : सेंट्रल पुल कॉलोनी (बेलचढ़ी) , पो.--निरसा ,
जिला-- धनबाद (झारखडं)

1. अकाल जन्म
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"अरे, यह कहानी सुनने-सुनाने का समय है क्या?"
"हां दादा जी, सुबह का समय शुभ होता है। सुनाइए न !"
बच्चों की जिद को दादाजी नकार न सके। महाभारत की कहानी सुनाने लगे। कद्रु और विनता की कहानी।
        कद्रु के सारे अंडों से बच्चे निकल आए थे। परंतु उसकी सौत विनता के दोनों अंडे ज्यों-के-त्यों पड़े थे। ईर्ष्या की चिंगारी भड़क उठी। वह ज्योतिषी के पास गई और शुभ दिन देखकर एक अंडा फोड़ डाला।
"मां, मां, तूने यह क्या किया?" चिल्लाता हुआ बच्चा अंडे से बाहर निकल आया। वह ठंड से कांप रहा था।
"मां, मैं दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिमान होता।  पर हाय ! तेरी वजह से अधूरा रह गया ! मां, मुझे ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही है। मैं जा रहा हूं।" और वह उड़ता हुआ सूर्य देवता के पास चला गया। उनके आगे बैठ गया और उनका सारथी बन गया।
"आगे क्या हुआ दादा जी?"
जाते-जाते वह बच्चा एक बात कह गया। "मां, दूसरे अंडे को मत..."
फट से दादा जी के माथे पर अखबार पड़ा।उनकी कहानी छिन्न-भिन्न हो गई।
"दादाजी, दूसरे अंडे का क्या हुआ?"
"अभी नहीं, बाद में।"
"बाद में कब?"
"कहानी सुनाने के उचित समय पर।" कहते हुए दादाजी ने अखबार उठा लिया। अखबार के मुखपृष्ठ पर मुख्य समाचार था-- 11.11.11 के शुभ काल में बहुत सी माताओं ने अकाल जन्म दिया अपने बच्चों को। ऑपरेशन के द्वारा जन्मे ये बच्चे। *****

2. नाम में क्या रखा है?
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अखबार में मेरा नाम छपने के कारण आज मेरे मन में खुशी की लहरें दौड़ रही थीं। दिमाग में दिवास्वप्न चल रहा था, नामी होने का। उधर जनगणना का काम भी करता जा रहा था। मन कभी-कभी खिन्न हो उठता था जब आदिवासी लोग अपने बाल-बच्चों का नाम नहीं बता पाते थे। बोने लाल मरांडी काफी उद्विग्न था। वह मेरे इर्द-गिर्द घूम रहा था। वह चाहता था कि जल्द-से-जल्द उसके घर जाकर उसके परिवार का नाम लिख लूं। सरकार जब नाम लिखवा रही है तो कुछ-न-कुछ जरूर मिलेगा। बोनेलाल के पहले एक बुढ़िया का मकान पड़ता है। विधवा सास-पुतोहू साथ रहती है। पुतोहू मजदूरी करने गई थी और बुढ़िया भेड़ चराने। मैंने मकान का हुलिया देखा। बूढ़ा मकान आगामी जनशून्यता को प्राप्त होने के पहले ही अपने को ढाह देना चाहता था। अपना नामोनिशान मिटा देना चाहता था।
        बोनेलाल दौड़कर बुढ़िया को बुला लाया। एक हाथ में लाठी थामे वह मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। उसके बदन पर नाम मात्र का कपड़ा था। मैंने पूछा, "दादी जी, आपका नाम क्या है?"
मेरा प्रश्न सुनते ही उसके चेहरे की मायूसी गहरी हो गई। वह कुछ देर तक सोचने लगी। फिर अपने माथे पर हाथ रखते हुए बोली, "नाम? ... नाम तो भूल गया हूं बेटा !"
"क्या कहती हो दादी, अपना नाम भूल गई?"
बुढ़िया के हां शब्द के साथ हा करके उसका मुंह खुल गया था। मुंह में हिलते हुए केवल दो दांत बचे थे। बोली, "कुछ भी लिख दो न बेटा, नाम में क्या रखा है?"
       बुढ़िया का उत्तर सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। मुझे शेक्सपियर की उक्ति याद आ गई-- व्हाट इज इन द नेम?
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3. एक ठेला स्वप्न
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आज खूब ठूंस-ठूंसकर खाना खा लिया था। पेट भारी हो गया था। इसलिए पलंग पर लेट गया। लेटे-लेटे खिड़की से बाहर का नजारा देखने लगा।
     एक फेरीवाला आया था। वह एक बड़े ठेले पर एक ठेला स्वप्न लाया था। उसका साथी माइक पर घोषणा कर रहा था-- ले लो, ले लो ! अच्छे-अच्छे स्वप्न ले लो। चौबीस घंटे पानी-बिजली का स्वप्न। हर घर में ए.सी. का स्वप्न। घर-घर मोटर कार का स्वप्न। ...ले लो भाई, ले लो !
       देखते-देखते कॉलोनी वालों की भीड़ लग गई। औरत-मर्द, जवान-बूढ़े सब ठेले के चारों तरफ जमा हो गए। माइक पर घोषणा जारी थी-- ले लो भाइयों, ले लो ! बेटे-बेटियों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने का स्वप्न। उन्हें डॉक्टर-इंजीनियर बनाने का स्वप्न। आई.ए.एस.-आई.पी.एस. बनाने का स्वप्न। हजारों तरह के स्वप्न हैं। अच्छे-अच्छे स्वप्न हैं। ले लो भाइयों, ले लो !
        माइक की आवाज बगल के आदिवासी गांव चोड़ईनाला तक पहुंच रही थी। आदिवासी महिला-पुरुषों का एक झुंड दौड़ा-दौड़ा आया। वे ठेले से कुछ दूरी पर खड़े हो गए। एक बूढ़ा जो लाठी के सहारे चल रहा था, सामने आया। उसने फेरीवाले से पूछा, " भूखल लोकेकेर खातिर किछु स्वप्न होय कि बाबू? (भूखे लोगों के लिए कोई स्वप्न है?)"
"नहीं।" फेरीवाले ने कहा, "भूखे लोगों के लिए भोजन के दो-चार स्वप्न हैं जो काफी नीचे दबे पड़े हैं। अगली बार जब आऊंगा, ऊपर करके लाऊंगा। तब तक इंतजार कीजिए।"
" इंतजार करैत-करैत त आज उनसत्तइर बछर  (69 वर्ष) उमर भैय गेले। आर कते...?" कहते-कहते बूढ़े को खांसी आ गई और खांसते-खांसते वह अपने झुंड के पास चला गया। कॉलोनी वाले अपनी-अपनी पसंद के स्वप्न खरीद रहे थे। हो-हुल्लड़, हंसी-ठहाका भी चल रहा था। आदिवासियों ने कुछ देर तक इस नजारे को खड़े-खड़े देखा और अपने गांव की ओर चल दिए। इसी बीच मेरी नींद टूट गई। ****
            
4. टी वी के किसान
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हल-बैल खोलकर, बरामदे की चारपाई पर बैठा भूखला सुस्ता रहा था। कीचड़ से लथपथ... पसीने से नहाया हुआ... कृशकाय... कृष्णवर्ण... कांतिहीन चेहरा। उसकी बेटी ने आवाज दी, "बापू, अंदर बैठिए न।" वह उठकर टीवी के सामने जाकर बैठा। तभी टीवी पर एक विज्ञापन आया। एक किसान अपनी पत्नी के साथ खेत में काम कर रहा था और कृषकों की एक योजना के बारे में बता रहा था। उनके दमकते चेहरे और खूबसूरत पहनावे को देखकर भूखला मुस्कुरा उठा। उसकी बेटी ने पूछा, "बापू, आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?"
"टीवी के किसानों को देख कर।" कहते हुए भूखला हंस पड़ा।
"क्यों, ऐसी क्या बात है?" बेटी ने पूछा।
"बेटी, ऐसी कौन-सी योजना है जो किसानों के चेहरे पर इस तरह की...?"
  तभी उसकी पत्नी ने एक गिलास पानी और एक शीशी में थोड़ा तेल लाकर दिया। वह गटगटाकर पानी पी गया। बेटी बोली-- बापू, वे किसान नहीं है। फिल्म के हीरो-हीरोइन हैं। उनका नाम...
     भूखला हाथ में तेल की शीशी लिए उठ चुका था। वह तालाब की ओर चल दिया, नहाने के लिए। ****

5. हरामखोर
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दो बैल कुल्ही (गली) में दो अलग-अलग खूंटे से बंधे थे। बैठे-बैठे जुगाली कर रहे थे। एक ने कहा, "पूंछ में दर्द हो रहा है। कल मालिक ने जोर-जोर से मरोड़ी है।"
"हूं... मेरा भी।" दूसरे ने कहा, "और चाबुक की मार खा-खाकर पीठ तो सुन्न होने लगी है।"
"सबसे ज्यादा चोट तो तब लगती है भाई, जब मालिक हमें गाली देते हैं 'हरामखोर' की। दिल टूट जाता है।" कहते हुए पहले बैल ने लंबी सांस ली। उसने पुनः कहा, "क्या मिलता है हमें? पीठ पर मोटा चाबुक और पेट में मोटा पुआल। बस, खटते रहो जीवन भर दूसरों के लिए। हल जोतो, गाड़ी खींचो, खेती... मजदूरी..."
"और यही हल जोतते-जोतते और गाड़ी खींचते-खींचते एक दिन दम तोड़ दो। न नाम... न निशानी..."
      दोनों का दिल बैठ गया। कुछ देर मौन रहने के बाद, पहले ने कहा, "क्या लगता है भाई, यह सिलसिला कभी थमेगा भी?"
" हां-हां, जल्द ही। देखो न ट्रैक्टर आदि मशीनों का प्रयोग खूब होने लगा है।" दूसरे ने आश्वस्त किया।
"मगर उस समय हमारी उपयोगिता..."
"चुप...! चुप हो जाओ। देखो साला ..... आ रहा है। माथा झुका लो। नजर नीचे।"
       एक सांड़ आ रहा था। मोटा-ताजा। थुल-थुल... बलिष्ठ शरीर। मदमस्त... उन्मत्त...। वह सामने आया। कुछ देर तक उन दोनों को घूरने लगा और अपनी घमंडी चाल से झूमते हुए आगे बढ़ गया। ****
                
6. अपना गांव
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अरसे बाद... जी हां, कई वर्षों बाद... अपने गांव में... अपनी जन्मभूमि में... अंतिम समय बिताने... अंतिम सांस छोड़ने... अपने पुरखों की माटी में अपने को मिटाने-मिलाने के लिए आए थे-- एक चिड़िया और एक चिड़ी।
       "आह... ! अपना गांव ! जननी जन्मभूमिश्च... ! अपनी माटी की कैसी खुशबू है।" चिड़ा ने लंबी सांस ली और कहा, "चलो मथा टेकाओ,  इस माटी पर।"
" नहीं, यह हमारा गांव नहीं हैं।" चिड़ी ने संदेह व्यक्त किया।
"धत् पगली ! अपने गांव को नहीं पहचान रही हो?"
" ये ऊंची-ऊंची इमारतें...। कहां है माटी के घर? फूस की छत... छत के छाजों पर पक्षी के घोंसले?"
" अरी पगली, गांव का विकास हुआ है।"
"पर घोंसला कहां बनाओगे? बड़े-बड़े वृक्ष कहां हैं? यहां तो कलम किए हुए छोटे-छोटे वृक्ष हैं।"
"हूं... ।" चिड़ा को थोड़ी निराशा हुई। दोनों उड़-उड़कर पूरा गांव देखने लगे। चिड़ी बोली, "देखते हो शाम की बैठकी भी नहीं होती यहां। सब अपने-अपने घर में घुसे हुए हैं।"
"हां, शहरीकरण का प्रभाव है।"
"और ये छोटे-छोटे परिवार... भाई-भाई में बातचीत नहीं... कैसा तनावपूर्ण परिवेश है।"
"हूं...।"
शाम को पक्षियों का चहचहाना एकदम नहीं। कैसा दमघोंटू वातावरण है। लगता है कोई श्मशान...।"
        चिड़े ने चुप रहने का इशारा किया। कोई व्यक्ति उनकी बातचीत को सुनकर उन पर लक्ष्य साथ रहा था। वे डर गए। मन निराशा से भर गया। दोनों झट से नीचे उतरे। जमीन पर माथा टिकाये। और फुर्र से उड़ गये। दूर... बहुत दूर...! ***
       
7. ग्रह के फेर में यम
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"जानती हो संजू, यम अब नहीं है।"
खेलते-खेलते पाप-पुण्य की बात निकली तो बबलू ने संजू से कहा। संजू को बात अविश्वसनिय लगी-- धत् क्या कहते हो, यम मर गया?
" नहीं, मरा नहीं है। वैज्ञानिक लोगों ने उसे आउट कर दिया।"
"आउट कर दिया मतलब?"
"मतलब, हमारे एरिया से बाहर कर दिया।"
बगल में बैठी शांति मौसी सब सुन रही थी। बातचीत में शरीक होते हुए बोली-- तुम्हें किसने बताया बबलू?
"पापा बता रहे थे।" बबलू ने जवाब दिया।
"तब तो बात सही होगी। वाह ! मैं बहुत खुश हूं। वैज्ञानिक लोगों ने आज एक बहुत अच्छा काम किया है।" मौसी खुशी से झूम उठी।
"क्यों मौसी?" बबलू ने पूछा।
"निरबंसिया थोड़े से पाप के चलते कड़ी सजा देता था। अच्छा किया भगा दिया निरबंसिया को।" मौसी के मुंह से गाली छूट रही थी।
"उसे निरबंसिया मत कहो मौसी। उसका एक बच्चा भी है।"
"उ मुंहजरा कहां है?"
"अपने बाप के साथ ही बाहर भटक रहा है।"
"ठीक है, भटकने दो। इधर न आवे। उधर ही भटक-भटक के मरे।"
        तभी सरपतिया चाची कमर पर हाथ रखे चली आयी-- "का कहा तड़ू शांति, यमराज ना रहियन त पाप-पुण्य के विचार के करी? इ विज्ञानिकवा लोग एक-एक करके सभे देवतवन के भगा देलसन। बाप रे बाप। अब त पाप से दुनिया डूब जायी। गिरह के इ कौन-सा फेरा लागल कि यमराजवो के इ खराब दिन के पड़ गइल।" ****

8. हजार साल बाद
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"बेटा भागीरथ ! आ गया बेटा?"
"यस मम्म ! सारा कचड़ा गड्ढे में डाल दिया।"
"ओके बेटा।"
मम्म काम में व्यस्त थीं। भगीरथ उनके पास गया।
"मम्म, एक बात पूछनी है।"
"कौन-सी बात बेटा?"
"मम्म, ये लंबे-लंबे गड्ढे... भगवान ने इतने लंबे-लंबे कूड़ेदान क्यों बनाए हैं? नानी के गांव में भी है।"
"नहीं बेटा, ये कूड़ेदान नहीं हैं। एक समय इन लंबे-लंबे गड्ढों में पानी बहता था।"
"पानी?" भगीरथ चौंक उठा।
"हां, और इनका कोई छोटा-सा नाम भी था... दो अक्षरों का। अभी मुझे याद नहीं आ रहा है। रात को मैं इन गड्ढों के बारे में तुम्हें कहानी सुनाऊंगी।शायद तब तक मुझे नाम भी याद आ जाए।"
"ओके मम्म !" कहते हुए भगीरथ हाथ-पैर धोने के लिए बाथरूम में चला गया। उसने नल खोला और मम्म को आवाज दी, "मम्म नल से पानी नहीं गिर रहा है।"
"पानी का कार्ड खत्म हो गया है बेटा। तुम्हारे डैड रिचार्ज कराने गए हैं।" मम्म ने बाहर से आवाज दी।
      रात हुई भगीरथ कहानी सुनना चाहता था। मम्म को उन गड्ढों का नाम भी याद आ गया था। वह प्रेम से अपने बेटे को कहानी सुनाने लगीं-- बेटा भगीरथ ! एक थी 'नदी'। उसका नाम था...। ****
                      
9. सरस्वती पूजा
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बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। बारह बजे तक भूखा रहना कोई मामूली बात तो नहीं। उधर पंडितजी का कोई अता-पता नहीं था।किसी दूसरे पंडितजी को पकड़ लाने के लिए महादेव इधर-उधर घूम-घामकर वापस आ चुका था। आज के दिन तो हरेक पंडित दस-दस बारह-बारह मूर्तियों की पूजा का ठेका पहले से लिए रखते हैं।
      सभी लोग परेशान थे। अब क्या होगा? पूजा कैसे होगी?
मैंने कहा, "एक बात कहूं?"
"हां, कहिए न सर।" सबने स्वीकृति दी।
"महादेव, तुम तो स्कूल का सबसे होशियार लड़का हो। पूजा तुम करो।"
यह सुनकर सब चुप हो गए। लड़खड़ाती आवाज में महादेव ने कहा, "म-म-मैं? मैं तो आदिवासी...?"
"उससे क्या? आज के लिए पंडित बन जाओ।"
"पर मुझे तो मंत्र-तंत्र कुछ नहीं आता।"
"मंत्र नहीं आता, मन तो है न तुम्हारे पास। अपने मन से मां का आह्वान और पूजा करो। अपनी भाषा में मन की बात बोलो। बस।"
        महादेव मूर्ति के नजदीक बैठ गया। उसके पीछे सारे छोटे-छोटे बच्चे बैठ गए। उसने धूप-दीप जलाया और पूजा शुरू हो गई--
'जोहार गो सरस्वती !
आले मंत्र-तंत्ररा कथा वाले बुझ एदा...
ओनाते आलेरेन गो आ कथारे...
मनेरेणक कथारे, अंतर मनेते...
देवा सेवा एह ले...
आतांग में !
ऐ गो, आतांग में !!
( नमो माता सरस्वती। हम मंत्र-तंत्र की भाषा नहीं समझते। इसलिए अपनी मां की भाषा में... हृदय की भाषा में...हृदय से तुम्हारी पूजा कर रहे हैं। स्वीकार करना... हे मां, स्वीकार करना !) ****
                          
10.  फूटा कपाल
        *********
                    
आज एक भी बच्चा स्कूल नहीं आया था। मैं अकेला बरामदे में टेबल-कुर्सी लगाकर बैठा था। बस्ती से एक बुढ़िया आ रही थी। उसकी कांख में एक खाली बोरा दबा हुआ था। दाहिने हाथ में लाठी का सहारा था। अचानक वह रुक गई। हथेली से कपाल को तीन बार ठोका और फिर चलने लगी।
        जब वह मेरे नजदीक पहुंची तो मैंने आवाज दी, "ओ मासी, एदिके आसुन।" वह आई और मेरे सामने जमीन पर बैठ गई। मैंने पूछा, "मासी, इस बोरे में क्या लाती है?"
"मूढ़ी लाती हूं मास्टर बाबू। गांव-गांव भेजती हूं।"
"क्या आपका लड़का-बच्चा नहीं है?"
"हैं न, तीन-तीन बेटे हैं। ससुराल में रहते हैं।"
"और आप अकेली रहती हैं?"
"हां बाबू। क्या करूं, फूटा कपाल है मेरा।" कहते हुए उसने दोनों हाथों से कपाल को पकड़ लिया। आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे।
तभी जीवलाल मुर्मु, जिसे गांव के लोग चट्टान सिंह कहते हैं, झूमता हुआ आया। हल्का पिया हुआ था। उसने बुढ़िया को डांटते हुए कहा, "ऐ बुढ़िया, भाग यहां से। रोती है। रोना-धोना मुझको बर्दाश्त नहीं होता। जब तक जियो, मस्त रहो।"
"तुम मां-बाप का दर्द क्या समझोगे चट्टान? बाल-बच्चा होता तो समझता। तुम तो अपत्यहीन हो।" कहते हुए बुढ़िया उठने लगी।
       अकस्मात मेरी नजर चट्टान के कपाल पर पड़ी तो पूछ बैठा, "चट्टान जी आपके कपाल पर दाग?"
"हां सर, गिरने से कपाल फूट गया था। लेकिन दाग अच्छा है, तिलक जैसा।" कहते हुए वह 'हा:- हा:' करके हंसने लगा। ****

11. सहज प्रवृत्ति
       *********

जागरण की ऊर्जा के साथ स्वर्णिम आलोक रश्मि क्षितिज को आलोकित कर रही थी। सन-सन की मधुर धुन के साथ मंद-मंद उन्मुक्त वायु बंधन-मुक्ति का संगीत सुना रही थी। किचिर-मिचिर की चहचहाहट के साथ पक्षियों की वार्ता चारों तरफ प्रेम-सुधा का वर्षण कर रही थी। परंतु कांव-कांव की कर्कश ध्वनि वातावरण को बोझिल बना रही थी। शांति में खलल डाल रही थी।
         मैंने खिड़की से झांककर देखा। मैदान के एक कोने में मेरी दृष्टि गई। कौए के एक बच्चे को उसकी मां उड़ना सिखा रही थी।बच्चे को खदेड़ रही थी। चोंच से आघात कर रही थी। बच्चा दौड़ रहा था... भाग रहा था। परंतु वह पंख नहीं फैला रहा था।
मैंने मैदान की दूसरी तरफ देखा। चिंटू की मां उसे मॉर्निंग वॉक के लिए लेकर आई थी। वह चिंटू को दौड़ने के लिए प्रेरित कर रही थी। पर चिंटू नहीं दौड़ रहा था। वह मां का आंचल पकड़कर खड़ा था।
        तभी उधर से दौड़ते हुए कौए का बच्चा चिंटू के सामने आ गया। उसे देखते ही चिंटू एक साथ प्रफुल्लित और उत्तेजित हो उठा। वह तत्क्षण उसके पीछे दौड़ पड़ा...एक आक्रामक दौड़। कौए के बच्चे ने भी आतंकित होकर दौड़ते-दौड़ते पंख फैला दिया। और वह हवा में उड़ने लगा... एक सुरक्षात्मक उड़ान।
      उधर काक-शिशु आसमान में था और मानव-शिशु मैदान के दूसरे छोर पर ! इधर प्रसन्नता के साथ मानव-माता खिलखिला रही थी और काक-माता कांव-कांव कर रही थी ! ****
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क्रमांक - 11

पति : श्री मोहन मिश्रा वन अधिकारी
सुपुत्र : अनुज -आदित्य दो बेटे
शिक्षा- वनस्पति विज्ञान से bsc (hons)

स्वतंत्र लेखन : - गज़ल लघुकथा , कविता ,कहानी

प्रकाशित पुस्तक : -
भावों का संगम ( काव्य-संग्रह )
बर्नाली एक साझा उपन्यास  भी लिखा

सम्मान : -

- बिहार - गौरव से सम्मानित।
- प्रकाशवती रचनाकार सम्मान से बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन से सम्मानित
- राष्ट्रिय- कवि -संगम  द्वारा धनबाद में आयोजित
काव्य-सम्मेलन में  "सारस्वत -सम्मान " से सम्मानित
- जिज्ञासा मंच पंजीकृत से गजल गौरव सम्मान

विशेष : -

- हिन्दी साहित्य सम्मेलन पटना बिहार की संरक्षिका
- 30 साझा संग्रह में कविताएं छपी
- हिन्दी के साथ भोजपुरी में भी लेखन
- साहित्य-सरोवर संस्था की संचालन
- विश्व-हिंदी परिषद की सदस्य
- लघुकथा प्रगतिशील मंच की सदस्य
- कई किताबो का साझा संपादन  किया
- मातृ-भाषा .कॉम, काव्य-सागर , कई वेबसाइट से जुडी हुई

पता : विमला श्री अपार्टमेंट ,104 अटल चौक ,
हजारीबाग 825301- झारखण्ड

                       1. तू ही मेरा शगुन
                            ************

"रीना जल्दी तैयार हो जाओ ,आज डॉ से तुम्हारा चेकअप करा दूँ ।ऐसी स्थिति में देर नहीं करते ?"! रमेश ने कहा ।
" जी आती हूँ" ।
दोनों अपने कार से उतरकर बड़े से नर्सिंग होम में दाखिल हुए ।
"आओ -आओ रीना डॉ नंदनी ने मुस्कुराते हुए  स्वागत किया ,कैसी हो "!
आप ही देखकर बतायें कैसी हूँ? ।
डॉ नंदिनी ने चेकअप कर कहा
जल्दी से आ जाओ आपको एडमिट करती हूँ , प्रसव-पीड़ा की शुरुआत हो गयी है ।
डॉ नंदनी ने रीना के पति को कहा "आप घर जाकर कुछ समान ले आये, कुछ ही देर में आपको खुशखबरी देती हूँ "।
रमेश माँ से बोला माँ कुछ समान और रीना के कपड़े दे दो ,तुम जल्दी ही दादी बनने वाली हो ।"अरे मैं भी चलती हूँ ,दोनों हॉस्पिटल चल दिए ,रीना प्रसव -घर में चली गयी थी ।
दो घंटे तक प्रसव-वेदना झेलने के बाद रीना ने बच्चे को जन्म -दिया ।दर्द के कारण अर्ध-मूर्छित सी हो गयी थी ।
जैसे ही डॉ नंदनी ने बच्चे को देखा -----उसके होश उड़ गए हे भगवान! ये क्या ये तो थर्ड-जेंडर "किन्नर" हैं ।रमेश और माँ के चेहरे और आँखों में अनगिनत खुशियां हिलोरें ले रही थी कब बच्चे को देखे ।
नर्स ने आकर कहा आप रीना जी और बच्चे से मिल सकते हैं ।
रमेश ने पुछा क्या हुआ है लड़का या लड़की ।
आप अंदर देख सकते हो, डॉ नंदनी के मानो हाथ काँप रहे थे बच्चे को जब उसके दादी के गोद में दिया । दादी ने कुछ सिक्के निकालकर "निछावर किया बोली इसे "किन्नरों में बांट देना बेटा बधाई के तौर पर , हमारे "बच्चे को किसी की नजर नहीं लगेगी"।
जैसे ही रमेश ने बच्चे का पूरा मुआयना किया ,उसकी आँखों से अविरल आंसू बह निकले, क्यों ये सजा हमे मिली क्या?रीना जानती है उसे क्या हुआ है । कोमल-गुलाबी हाथ छोटे-छोटे पैर दो आँखे-टुकुर-टुकुर देख रही थी रमेश को ।
रमेश ने प्यार से चिपटा लिया कलेजे में बच्चे को ,बोला मेरे जीवन का बधाई और शगुन भी तू ही है ---?। ****

                       2.कैसे समझाये
                          ***********

जय हो महाराज जी की ,जय हो बाबा सत्यानन्द जी की काफी आवाज जोर-शोर से लोगो की आ रही थी सड़क से ।
नेहा अपने कमरे में बैठ कुछ समाचार पत्रों के लिए आलेख और न्यूज लिख रही थी । आज ही सारे आलेख संपादक को देने थे ।
शोर से उसका लेखन बाधित हो रहा था। मन ही मन बड़बड़ाने लगी " न जाने लोगों को क्या मिलता है , बेकार की चापलूसी करने में बाबाओ की "।
अरे नेहा चल "बाबाजी के दर्शन कर ले ,ये लिखा -पढ़ी छोड़ जन्म सुधर जायेंगे " माँ बोली ।"हमे नहीं जाना आप जाओ "।
वैसे भी नेहा को धर्म के नाम पर ढकोसला नहीँ पसंद था उसके लिए काम ही पुजा था ।
जल्दी से तैयार हो नेहा अपनी स्कूटी निकाली  और बैग को काँधे पर लटका चल पड़ी संपादकजी के दफ्तर ।
आओ नेहा सब चीजें तैयार हैं आज ही दे दूँगा प्रेस में कल तक छप जायेंगे ।
"जी" नेहा बोली ।
सारे आलेख और न्यूज उसने टेबल पर रख दिए
"आप देख ले सर "।
"नेहा तुमने तो "सत्यानंद बाबाजी का न्यूज ही नहीं लिखा " । आज तो भव्य धार्मिक-यात्रा उनकी निकली थी। कल ही उनके भक्तजन आये थे ऑफिस मेरे । न्यूज छापने के लिए उन्होंने हमारे अखबार को बड़ी रकम दिया है ।
" जी सर " ।
अब क्या कहे नेहा माँ की तो बात नहीं मानी ,?पर ये पढ़े-लिखे कलमकार "हर भगवा धारी को अवतार मान धर्म को पैसे से खरीदते नजर आ रहे , इसे कैसे समझाये "? ****

                         3.पगार
                             ****

"आ गयी महारानी , छुट्टियाँ मनाकर " रीता ने काम वाली बाई के देखते ही कहा ।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रही है , जा  जल्दी से बर्तन- कपड़े और पोछा कर मुझे "किटी-पार्टी" में शाम को जाना है ।
कामवाली बाई चुचाप सारे काम निबटा कर वहीँ नीचे फर्श पर बैठ गयी।
रीता पास वाले कमरे से तैयार हो निकली ।
कामवाली बाई बोली " मालकिन मेरे पगार मिल जाते तो अच्छा होता घर में---- अभी आगे कुछ बोलती रीता कड़क आवाज में बोली " एक तो 15 दिन नागा करके आयी हो आते ही पैसे की जरूरत पड़ गयी ।
कामचोर  हो गयी हो तुमतो? उसने महीने के हिसाब से आधा पैसा काट लिया और पकड़ा दिए पैसे बोली लो ये पगार ।
पैसे लेकर कामवाली बाई ने सिसकते हुए बोला " मालकिन आपने पूछा तक नहीं ?और आधे पैसे काट लिए मैंने क्यों इतने दिन काम पर नहीं आयी " ।
" लो कर लो बात अब ये ही बाकी रह ना , तुम लोगों से बात करती फिरूँ " । जरूरत नहीँ जानने की ?।
कामवाली बाई चली गयी ।फिर वापस नहीँ आयी ? ****

                       4. सोच बदलो
                           *********

बहुत दिनों बाद बड़ी बुआ गाँव से आई ।
जब से मोहित ने दिल्ली में अपना फ्लैट ले लिया था । गाँव कम ही जाना होता ।
बच्चों की पढ़ाई भी आड़े आती । मोहित ने उनके आते ही ताकीद की,
"सुनो नेहा जीजी आ रही है , उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए बहुत दिनों बाद आ रही हैं"।
" जी नहीं होगी हुजूर "
नेहा बोली।
दोनों बच्चे भी खुश थे ,खासकर नेहा की बेटी बुआ से गाँव की बाते और गीत सुनेगी।
सुबह ही मोहित कार से जीजी को ले आया।
"मम्मा आज मैं ये स्लीव लैस टॉप  -और जिंस पहनकर कॉलेज जा रही देखो न कैसी लग रहीं हूँ "- निम्मी बोली ।
अच्छी लग रही हो  नेहा ने कहा।
बुआ पास ही बैठी घूर रही थी मानो निम्मी ने
कोई अपराध किया हो , निम्मी ने बुआ की आँखे पढ़ ली ।
"अजब जमाना आ गया है --हें लड़के जैसे कपड़े छोरिया पहनने लगी है ,?तभी तो वो आजकल क्या बलात्कार हो रहा शहरों में "।
कमरे में बैठा सोनू सब कुछ सुन रहा था बाहर निकला और बोला "बुआजी गाँव में तो लड़कियाँ साड़ी और अच्छे कपड़े ही पहनती है और घर में ही कैद रहती है पिजरें में ।  घर के रिश्तेदार ही उनकी इज्जत लूट लेते है वो तो बलात्कार  से भी बदतर स्थिति हुयी , जिसे वो नादान बच्चियाँ किसी से कह भी नहीँ पाती "।
सोच बदलो बुआजी कपड़े नहीँ । ****

                      5. सूखी फसल
                          **********

ऊब गया था मन शहर की चकाचौंध और दफ़तर के कृत्रित वातानुकूल कमरे से।कब से छटपटा रहा था राजेश खुली हवा में साँस लेने के लिए।
माँ की तबियत खराब है पत्नी ने बताया और छुट्टी की अर्ज़ी दे गाँव निकल गया।
राजेश के पहुंचते ही माँ खुश हो गयी ।
थोड़ी देर घर में बिता राजेश बाबा के साथ खेत की ओर घूमने निकल पड़ा , खेत पहुंचते ही फसल को देख चिंतित हो गया ,  "बाबा ये क्या हमारे खेत ऐसे क्यों ? सूखे से फसल भी मुरझा गयी है "।
"हाँ बेटा अब धरती पर इतने अत्याचार होंगे तो , वो भी कितना सहेगी।"
राजेश गंभीर हो सुन रहा था।
" आसपास के जंगल कट गए , एक बिल्डर ने काफी जमीन खरीद ली ,किसानों से फ्लैट बनाने के लिए।"
राजेश को गाँव भी शहर में बदलता दिखाई देने लगा।
"समय पर पानी भी नहीं होता , फसल हरे कैसे हों ? कुछ दिनों में अनाज के बदले लोग पैसे ही खाएँगे ?"
अब गाँव में भी राजेश को अपना दम घुटता हुआ लगा। ****

                        6. गलती
                            *****

" थोड़ी देर आराम कर ले बेटी ,  सुबह से ही ना जाने क्या कान में लगाकर बैठ जाती है ,
डब्बे जैसी संदूक को लेकर  । दिन भर उलझी रहती है इसमें "।
"  दादी बोले जा रही थी " ।
रीमा का एक बड़े मल्टी नेशनल दवा की  कंपनी में कार्य करती थी ।
रीमा का 
" जॉब-प्रोफ़ाइल "  रिलेशन शिप मैनेजर का था। वो बाहर के कंपनियों के लोगों से भी बातें करती थीं अपनी नई दवाइयों के बारे में भी  बताती थी ।
इस बीमारी की वजह से सारे कार्य उसे घर से ही करने पड़ते थे ।
" दादी  पुराने विचारों की थी , उन्हें कंप्यूटर और नेट की भी जानकारी कम थी "।
" सारी जानकारी आज ही इकट्ठी कर लें आप , हम एक नए प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू करने जा रहें हैं "।
" जी सर "।
फोन पर ही सारी बातें हो रही थीं।
" हमारे कई शोध कर रहे डॉक्टर और छात्र मिलकर एक नई "  दवा"  ईजाद करने की सोच रहें हैं । जब हम इस दवा को बना लेंगे तो  विश्व में हमारा नाम दवा के बडीं कंपनियों में शुमार हो जायेगा "।
" एक -एक टेबलेट से हम हजारों की कमाई करेंगें । "
" जी -जान से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में आप हमें सहयोग करें"।
" जी सर मैं ये कार्य पूरी करने की कोशिस करती हूँ "।
मिस्टर चोपड़ा में आँखों में चमक आ गई ।
रीमा सोच रही थी  , इस महामारी में भी लोग अपने स्वार्थ में उलझें हैं---- कब मौत? ।
कुछ घंटों बाद अचानक रीमा का फ़ोन लगातर बज रहा था , थोड़ी देर के लिए वह वहीँ  कुर्सी पर आराम की मुद्रा में
" हेलो --क्या बात है , बताये सर?  उसके मैनेजिंग डायरेक्टर का फोन था । रीमा---- आप जल्दी से अपने भाई को लेकर हमारे चपोड़ा साहब के बंगले आएं "।
" क्या बात है सर अभी तो चोपड़ा सर से बात हुई"।
" उन्हें साँस लेने में कठिनाई हो रही है , काम और पैसे के चक्कर में इन्होंने अपना ध्यान नही रखा । अचानक गिर पड़े"।
" इस समय ऑक्सीजन सिलेंडर की भी किल्लत है , हॉस्पिटल में भी बेड खाली नहीं । आपके भाई कार्डिओलिजिस्ट हैं , शायद कुछ हल निकल जाए "।
" जी सरजी "।
"रीमा मुस्कुरा उठी , अब
भी चोपड़ा साहब अपनी पिछली गलती को सुधार लें ,और "दवा"  लोगों के हित के लिए बनाए । कौन जानता है ये दवा कब किसके काम आ जाए "।
"साँस तो हजारों या करोड़ो देने से भी वापस नहीं आ सकती "। ****

                        7. उल्टी चाल
                              ********
" जल्दी करो , बिजली भी चली गई है , अभी जेनरेटर का फेज बदलने तक काम हो जायेगा " l  किसी को पता भी नहीं चलेगा वार्ड बॉय ने धीरे से कहा । "  मगर अभी जब उसके घर वाले आएंगे तो क्या जवाब देंगे, ये सब मुझपर छोड़ दो , मैं सब सँभाल लूँगी नर्स बोली ।
शहर का बड़ा ही नाम था इस हॉस्पिटल का । ज्यादातर अमीर लोग ही यहां इलाज कराने आते थे । कोरोना को लेकर सरकारी आदेश के कारण इस हॉस्पिटल में भी संक्रमित मरीजों की व्यवस्था कर दी गई थी । समय के चाल को देखते हुए ,हॉस्पिटल के संस्थापक डॉ दीपक पटेल कुछ नहीं बोले क्योकि उन्हें अगले साल ---- चुनाव में भी खड़ा होना था। लगातार मरीजो की संख्या बढ़ती जा रही थी , निःशुल्क इलाज के चक्कर में हॉस्पिटल की अर्थ व्यवस्था  भी हखराब हो चली थी ।  वहां तो सभी को लत लग चुकी थी , मरीजों के घर वालों से पैसे एठने की ।  वहां के नर्स और वार्डबॉय कुछ अधिक ही लालची किस्म के थे । " चलो अब इसे देकर हम आपस में पैसे बाँट लेंगे तीन महीने तो आराम से गुजर जायेंगे , फिर कोई - कोई ना मुल्ला फँसेगा ही !, "ये कोरोना काल " के शतरंज  का खेल अभी खत्म होने वाला नहीं है "।
" जल्दी करो खबर आई है एक घंटे बाद , सभी मरीजो की गिनती की जायेगी , सरकार ने रिपोर्ट मांगी है , आकलन के लिए , सभी नर्स जिनकी ड्यूटी है , अपनी रिपोर्ट अपने डॉक्टर को दे "। " क्योकिं कुछ हॉस्पिटल से मरीजों के शव ------ गायब होने की खबर आ रही है "।
अब पुलिस भी सारे सी-सी कैमरे की फुटेज को  देखेगी "।  वहां के मैनेजर जैसे ही ये खबर सुनाई , नर्स और वार्ड बॉय के मोहरे मानो कह रहे हों   उल्टी चाल मुबारक हो । ****

                           8. भोग
                                ***

"ये क्या हुआ यार अचानक लॉक-डाउन l हमने तो कुछ सामान भी तैयार नहीं रखा और ना ही हम दोस्तों को ठीक से खाना बनाना आता है "। अपने फ्लैट के कमरे में चार दोस्तों के बीच राजा बैठा बोल रहा था।
'" अरे सबसे बूरा -हाल  तो अमन है , क्यों क्या हुआ ,?अपनी माँ को लेकर इस शहर में आया था , कुछ दिन साथ रखेगा और थोड़ा माँ को घुमा -फिरा कर भेज देगा"!
"अब ये लॉक-डाउन"l
इस कोरोना ने तो तबाही मचा दी , बस घर में रहना है सभी को इक्कीस दिन।
अमन भी कमरे में आ चुका था, क्या हाल है माँ  कैसी हैं , राजा ने पूछा अमन से।
चेहरा पे साफ मायूसी झलक रही थी । उदास मत हो यार कुछ ना कुछ तो हल निकलेगा ।
अमन और माँ अलग एक कमरे के फ्लैट में रहते थे। खाना मेस में साझा ही बनता था , सभी आपस में पैसे मिलाकर कुक को दे देते थे।बर्तनसाफ करने वाली बाई को भी।
अब सभी छुट्टी पर अपने घर चले गए।  कुछ ही  पल में शहर मरघट के समान हो गया  था , सूनी सड़कें बस सड़को के किनारे बत्तियां जल कर कुछ राहत दे रहीं थीं। अमन की माँ सभी कुछ देख और सुन  रही थीं ,वो पूरी शाकाहारी थीं , यहां तक की मांसाहारी चूल्हे का बना भी खाना गंवारा नहीं।
"अमन मुझे ले चल कहाँ तेरा किचन है , अमन के पसीने छूटने लगे । क्यों माँ क्या करना है ।"
आप पूजा करो हम सब मिलकर कर लेंगे । " बेटे मैं माँ हूँ और देवी माँ का
त्यौहार चल रहा , तुम सबों को बनाकर खिलाऊँगी , यही मेरी पूजा होगी ।"
अमन खुश होकर दोस्तों को बताया , सभी बोले आंटी आज पूड़ी-खीर बनाओ ।
"  देवी माँ को पूड़ी खीर की भोग लग चुकी 'आज की पूजा सफल हुई मेरी।" ****

                         9. शौक
                             *****

कई दिनों के बाद गुनगुनी धूप निकली देखकर रेखा आज अपने फ्लैट से बाहर निकल कर नीचे छोटे से पार्क-नुमा लान में बैठ गई।
नई शादी के कारण कम ही लोगों से घुल-मिल पाई थी।
वहीँ ढेर सारे लड़के -लड़कियां  आपस में बैठकर हँसी-ठिठोली कर रहे थे।
एक दम उन्मुक्त सारे गमों से दूर ।
रेखा सोचने लगी ,शाम होते ही फिर वही नाटक शुरू?
"कैसे समय बिताऊँ "।
नेट चलाकर मन लगता था ,कुछ लिख-पढ़ लेती थी । रेखा को लिखने का काफी शौक था पर विवाह के बाद सब----ग्रहण लग गया।
फ्लैट में आकर अपने कमरें में राहुल केआने का इंतजार करने लगी।
चाह कर भी वो अपने मोबाइल से दूर ना रह सकी। काफी मैसेज आये थे। कई संपादकों
के भी थे । घंटी बजी रेखा का हृदय इतने जोर से धड़का मानो कोई भुत आ रहा हो घर में।
" देर क्यों हुआ ---दरवाजा खोलने में !ओह आप तो लेखिका हैं ना किसी शायर के साथ ग़ज़ल या किसी कवि के साथ छन्द गुनगुना रहीं होगीं । हमारी फ़िक्र ही नहीँ"।?
रुआँसी होकर रेखा बोली नहीँ आज नेट चलाया ही नहीँ।
"जाओ गरम काफी लेकर आओ"।
सोफे पर पसर कर  मोबाईल पर मैसेज चेक करने लगा । वाह आज तो मेरे दोस्तों ने मजेदार वीडियो भेजें हैं ।
थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदलकर कार की चाभी ले जाने लगा । "आप तो दोस्तों के साथ मौज उड़ायेंगे और मैं --"।
पूरी बात सुने बिना ही राहुल सीढियां उतरने लगा, तभी अचानक पैर फिसला और  दस सीढ़ियों से  लुढ़कर नीचे जमीन पर आ गिरा।
नीचे दरबान ने देखा ,झट रेखा को बुलाया।
" रेखा  भागकर आई राहुल को उठाया ,वो चल नहीं पा रहा था "।
पैरों में मोच आ गई थी।
दरबान की सहायता से रेखा ने उसे कार की सीट पर लिटाया और चाभी लेकर कार स्टार्ट कर दी ,"चलो तुम्हे डॉक्टर को दिखा लाऊँ"।
राहुल अचंभित था ।
दर्द से कराहते हुए बोला " आज से आप सब करेंगी , जो आपको पसंद हो "।
" जी जनाब पहले आप ठीक हो जाएँ ,फिर मेरा शौक "।***

                     10.खुशखबरी
                           ********

घर में कदम रखते ही सोमेश ने बड़े जोर से चिल्लाकर पूछा "तुम्हारा लाड़ला कहाँ है , रीता सहम गयी इतनी ऊंची आवाज में सोमेश ने कभी बात नहीं की थी । स्कूल से आने के बाद ट्यूशन गया होगा "।
"अच्छा आज आने दो उसे" खबर लेता हूँ उसकी।
पास ही बैठी मिन्नी अपनी फाइल तैयार कर रही थी ,अभी दोपहर में 2 बजे से उसे एक साक्षात्कार में  शामिल होना था।  माँ-पिताजी के पाँव छुए और चल दी ।" सफल होकर आओ सोमेश ने कहा।
सोमेश आज बहुत ही उदास और खिन्न दिखाई दे रहे थे ।ऑफिस से भी जल्दी चले आये क्या बात है? रीता समझ नहीं पा रही थी। खाना लगा दूँ आपने टिफिन भी नहीं खाया क्या बात है बताये तो ।
"तुम्हीं ने उसे बिगाड़ा है,हर जिद पूरी करके ।बाइक दिलवा दिया वो कोचिंग जायेगा ।सायकिल से थक जाता है ,पर पता है वह---कहाँ  जाता है? नहीँ ना"।
तभी बगल वाले पड़ोसी ने आकर बताया सोमेशजी चलें आपका लड़का पास वाले पार्क में बेहोश पड़ा है । सुनते ही रीता काँप उठी सोमेश की सारी बातें समझ में आ गयी । जल्दी से सोमेश और रीता चल पड़े पार्क की ओर अचेत अवस्था में बेटा पड़ा हुआ था ।
झुककर जल्दी से दोनों ने बेटे को उठाया , मुँह से दुर्गन्ध आ रही थी ।बाइक के झोले में किताबें कम एक बोतल और कुछ पैकेट थे ।
उधर मिन्नी का साक्षात्कार दे कर घर लौट रही थी , खुशखबरी सुनाने के लिये। इधर बेटे को लेकर दोनों हॉस्पिटल की ओर निकल पड़े थे ।रीता मन ही मन सोच रही थी अब उसे आगे क्या करना है?
****

                  11. प्यास शीर्षक
                         ***********

सुबह से ही सुहागिने वट-वृक्ष को सिंचित कर धागा लपेट ,अपने-अपने स्वामी की लंबी आयु के लिए कामना कर पूजन कर रहीं थी।
बूढ़े बरगद के चेहरे पे दर्द की रेखाएँ साफ झलक रहीं थी ,इतने
दिनों से मैं प्यासा गर्मी में झुलस रहा हूँ किसी ने कभी इधर ध्यान भी नहीं दिया?
मेरे सारे शरीर में दरारें पड़ गयी , किसी ने मरहम भी लगाया दो बूंद सींच कर ।
आज मुझे तर कर रहें है ,कैसे आशीर्वाद दूँ जबकि मैं खूद ही अतृप्त और प्यासा हूँ । ***
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     जन्म : 03 जून 1965

शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार (ई - लघुकथा संकलन ) -
2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार (ई लघुकथा संकलन ) - 2021
दिल्ली के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021
- महाराष्ट्र के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
- उत्तर प्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021
- राजस्थान के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021
- भोपाल के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021
- हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से लघुकथा मैराथन - 2020 का आयोजन
10. #SixWorldStories की एक सौ एक किस्तों के रचनाकार ( फेसबुक व blog पर आज भी सुरक्षित )
11. स्तभ : इनसे मिलिए ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकाशित )
     स्तभ : मेरी दृष्टि में ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकशित )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609
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पढने के लिए क्लिक करें : -

https://bijendergemini.blogspot.com/2021/06/blog-post_9.html


Comments

  1. हार्दिक बधाई बिजेंद्र जी 🌹🌹🌹🌹🌹सभी प्रदेशों के रचनाकारों को प्रोत्साहन देना एवं अपनी कार्य कुशलता से रचनाओं को सबके सम्मुख प्रेषित कर उन्हें बढ़ावा देना एक कुशल साहित्य प्रेमी ही कर सकता है!
    हम सभी की तरफ से आपको साधुवाद 🙏
    - चन्द्रिका व्यास
    मुम्बई - महाराष्ट्र
    ( फेसबुक से साभार )

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  2. आप ईबुक निकालते है प्रशंसस्नीय है . इसमें डाउनलोड का लिंक भी होना चाहिए ताकि आराम से पढ़ा जा सके और जरुरत पड़ने पर रेफर भी किया जा सके.

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    1. इस को कापी कर के कहीँ पर भी save कर सकते हैं ।

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