प्रो ( डॉ.) दिवाकर ' दिनेश ' गौड़ की पुस्तक " कदंब की छांव " ( लघुकथा संग्रह )

भूमिका
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हिन्दी साहित्य की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली विधा है लघुकथा 

   कथा साहित्य के विभिन्न रूप हैं । जिसमें से एक है लघुकथा । जो वर्तमान में अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन गया है । जिसमें शिक्षक से लेकर डाक्टर , इंजीनियर , वकील , पत्रकार ,मजिस्ट्रेट , अन्य सरकारी - गैर सरकारी अधिकारी लघुकथाकार हैं । वैसे लघुकथा के नाम पर चुटकले , समाचार आदि भी लिखें जा रहें हैं । चुटकले एक पत्थर फेकने के बराबर होता है । जबकि समाचार अपूर्ण कथा होती है । यह सब सोशल मीडिया पर ज्यादा होता है ।जबकि प्रिटिंग मीडिया में बहुत कम होता है । ऐसा मैंने अक्सर देखा है । 
   लघुकथा का अपना स्वरूप है । कोई छोटा है कोई बड़ा है । परन्तु लघुकथा कम से कम शब्दों में , भूमिका से दूर , कालखंड से दूर , कथा में एकात्मता ,  सरल भाषा का आधार , संवाद से परिपूर्ण , समाज को संदेश देती कथा का अस्तित्व होना चाहिए । फिर भी आजकल लम्बी - लम्बी लघुकथा लिखी जा रही है और उन को मान - सम्मान परिपूर्ण रूप से मिल रहा है । लगता है कि छोटी - छोटी लघुकथा का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है । मुकेश जैन पारस ( दिल्ली ) का नाम आजकल के लघुकथाकार नहीं जानते हैं । मुकेश जैन पारस जैसे लघुकथाकार सभी जगह हैं । परन्तु मान - सम्मान ..........? मैं पानीपत से हूँ । पानीपत के राजेन्द्र शर्मा निष्पक्ष श्रेष्ठ लघुकथाकार है । क्या आप मे से कोई जानता है ? स्थिति शून्य के बराबर है । इसके लिए दोषी कौन है ? जो अपने आपको लघुकथा का गुरु मानते हैं ।
  प्रो ( डॉ.) दिवाकर ' दिनेश ' गौड़ की पुस्तक " कदंब की छांव " ( लघुकथा संग्रह ) में 66 लघुकथाएं है । लेखक स्वयं इंग्लिश के प्रोफेसर है । साहित्य लेखन हिन्दी में करते है । यह अदभूत सहयोग है । जो हिन्दी साहित्य में अक्सर देखने को मिल जाता है ।
  पुस्तक की प्रथम लघुकथा " दहेज " ऐसी रचना है । जिस को हर किसी लेखक ने लिखा है । परन्तु यहां पर दहेज के रूप में सुन्दर बहू , अच्छी शिक्षा , सरकारी नौकरी , और साहित्यिक पुस्तकें  को स्वीकार किया है । ये बहुत अच्छा सदेंश है । जिससे , हर किसी को स्वीकार करना चाहिए । यह समाज में परिवर्तन की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा ।
  " मजबूर मानवता " लघुकथा में साबित होता है कि मानव एक - दूसरे के कैसे पूरक हैं ! यह दृश्य रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन का है । यहीं दृश्य समाज के हर कोने में नज़र आना चाहिए । परन्तु लघुकथा में मजबूरी भी दिखाई है । यही समाज का कड़वा सत्य है ।
  " इच्छाओं के गुलाम " में ऐसा सदेंश पेश किया है । जिस में  कल्पवृक्ष को माध्यम बनाया है । जो समस्याओं का समाधान ढूढता नज़र आता है और अन्त में फेल हो जाता है । अतः सभी की समस्याओं यानि इच्छाओं की पूति सम्भव नहीं है । यहीं हर किसी के लिए सदेंश है। 
  " नशे का अन्तर " नशा करने वाले को अवश्य पढनी चाहिए । नशे वाले की आय कितनी भी अच्छी क्यों ना हो । फिर भी फेल हो जाता है । बिना नशा वाले की आय कम होने के बाद भी कामयाब हो जाता है । यही लेखक का उद्देश्य है । परन्तु इतना सब कुछ जानते हुए भी नशा के पीछे दोड़ते रहते हैं । परन्तु लेखक अपने उद्देश्य में कामयाब है ।
  " प्रेम का संबंध " में लेखक ने बहुत कुछ दिखाने का प्रयास किया । प्रेम तो  सभी जीव जन्तु के जीवन का आधार है । लघुकथा वास्तव में बच्चे व अकंल के बीच का संबंध दिखाया है । जन्मदिन इस संबंध को और स्पष्ट करता है । बिना स्वार्थ के ऐसे संबंध समाज में देखें जाते हैं । 
  " इज्ज़त का पैमाना " अच्छा व्यंग्य है । शिक्षक समाज में अपनी भूमिका के कारण सर्वप्रिय है। ऐसे में शिक्षक पर उंगली उठाना मूर्खता की निशानी है । ऐसे में जमीन का दलाल मूर्ख साबित हुआ है । लेखक द्वारा लघुकथा में दोनों की तुलना काबिले तारीफ है ।
  " होनी - अनहोनी " लघुकथा में परीक्षा का वातावरण दिखाया गया है । प्रोफेसर साहब नैतिकता का पाठ पढतें है । परन्तु विधार्थी तो सिर्फ पास होने के अतिरिक्त कुछ समझने को तैयार नहीं है और ऊपर से शिक्षा नीति का बोझ  ..। लेखक खुद प्रोफेसर है जिस की अपनी कुछ जिम्मेदारी होती है । लघुकथा में उद्देश्य एक दम स्पष्ट है ।
  " गरीब के बच्चें " ऐसी लघुकथा है जिसें हर कोई सार्थक लघुकथा कहेगा । मुंशी प्रेमचंद का प्रमुख विषय रहा है ।और हिन्दी साहित्य सभी ने पढा़ है । ऐसे में लेखक का विषय सार्थक होना स्वभाविक है । लेखक ने स्पष्ट किया है कि गरीब के बच्चें शरीर तौर पर मजबूत होते हैं । यही गरीब की पूजीं है ।
  " विश्वासघात " ऐसी लघुकथा है जो आप सब ने अपने आसपास ऐसी घटना देखीं होगी । परन्तु फिर भी हम सब धोखा खां जातें हैं । लेखक का सबको सावधान करना मुख्य उद्देश्य है । समाज बहुत आगे निकल चुका है । किसी पर विश्वास करने का समय नहीं रहा है ।
  " उपकार " लघुकथा से सभी अपराधियों को सबक सीखना चाहिए । वकील जैसा उपकार भी सभी को करना चाहिए । परन्तु वास्तविकता कुछ और ही होती है । लेखक की सोच सकारात्मक है । यही लेखक का दृष्टिकोण होना भी चाहिए ।
  इन सब के अतिरिक्त अपने - अपने नाम , सच्ची शिक्षा ,भगिनी प्रेम , कथनी और करनी , अनिर्णीत , बर्थडे , शब्द और पुरुषार्थ , जिम्मेदारी की भावना ,विचित्र न्याय , परम्परा , एक सौ आठ , वास्तविकता , गर्दभ पंचायत , न्याय , नियम , आधुनिक वेद , भोलापन , नौसेना दिवस , रेत , मजदूर , उदाहरण , बुजुर्ग जीवन , आग आदि लघुकथा को पढा़ । जिन में लेखक की सार्थकता स्पष्ट नज़र आती है । लघुकथा पर पकड़ भी अच्छी है ।
  जैमिनी अकादमी द्वारा प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़ को प्रो . उत्तम चन्द शरर स्मृति सम्मान - 2020 , गोधरा - रत्न सम्मान - 2020 , 2020 - रत्न सम्मान , गुजरात - रत्न सम्मान - 2021 , 2021 - रत्न सम्मान , हिन्दी रत्न सम्मान - 2022 , मातृभाषा हस्ताक्षर रत्न सम्मान - 2022 आदि सम्मान दिये जा चुके हैं । हिन्दी लघुकथा साहित्य  का सबसे ( ग्यारह सौ ग्यारह लघुकथाओं का संकलन ) बड़ा संकलन " हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार "  ( सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी ) में प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गोड शामिल है । इसी प्रकार से " इनसे मिलिए " साक्षात्कार संकलन ( सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी ) शामिल है । इससे स्पष्ट होता है कि " दिवाकर जी "योगदान हिन्दी साहित्य में बहुत बड़ा है ।
  हिन्दी लघुकथा साहित्य बहुत विशाल है । कोई दैनिक समाचार पत्र ऐसा नहीं है । जिसमें लघुकथा ना प्रकाशित होती हो...। पाठक भी बहुत विशाल हैं । जो प्रतिदिन लघुकथाओं को पढते हैं । ये लघुकथा साहित्य की प्रमुख सफलता है । जो हिन्दी साहित्य में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुई है ।
  प्रो. डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़ का यह प्रथम लघुकथा संग्रह है । इस संग्रह में खुले दिल और दिमाग का प्रयोग किया है । कथ्य व शिल्प का बहुत उचित उपयोग हुआ है । जहां पाठक की दृष्टि से संवदेना ने गहरी छाप छोड़ी है । यही इस संग्रह की सफलता है । अतः इस संग्रह का लघुकथा के क्षेत्र में अच्छा स्थान पाने की पूरी - पूरी उम्मीद है । लेखक साधुवाद के पात्र है ।
                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
                          भारतीय लघुकथा विकास मंच 
                          जैमिनी अकादमी    हिन्दी भवन
                                   पानीपत - हरियाणा
                                    26 सितम्बर 2022
  

Comments

  1. आदरणीय मेरे पहले लघुकथा संग्रह की इतनी श्रेष्ठ और सकारात्मक भूमिका लिखने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏। मुझे पता है कि आपकी दिनचर्या अति व्यस्त रहती है और मेरे एक आग्रह पर आपने अपने व्यस्त समय में से भी समय निकाल कर यह भूमिका लिखने को प्राथमिकता दी है। यह आपका मेरे प्रति प्यार, स्नेह और विश्वास जताया है और इस हेतु मैं सदा आपका ऋणी रहूंगा 🙏
    संग्रह के प्रकाशन उपरांत इसकी एक प्रति मैं आपको शीघ्र ही प्रेषित करूंगा।🎉
    एक बार फिर से आभार 🙏🙏

    - प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
    गोधरा (गुजरात)- 389001
    ( WhatsApp से साभार )

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