अमृतसरी समोसे


         अमृतसरी समोसें 

      अपने शहर पानीपत में लगभग चालीस साल पहले की बात है।पंजाब से आए एक हलवाई ने समोसे की दुकान खोली थी। बेशक समोसे की यह पहली दुकान नहीं थी पर इसका समोसा दूसरों से बेहतर और स्वादिष्ट था और उसके साथ एक अलग तरह की इमली और आलू से बनी खट्टी-मीठी चटनी होती थी। दोपहर से शाम तक हजारों समोसे बनते और बिकतें थे। जिन्हें लोग भी खूब चटकारे से खाते थे। इस पर इस हलवाई की एकाधिकार ही था। अब उसके सामने ही एक और हलवाई ने क़ीमत कम कर समोसे बेचने का काम  शुरू किए और नारा दिया "छोरा जाट का, समोसा आठ का", जबकि अमृतसरी का समोसा 12 रुपये का था ।‌इस मुकाबले में ग्राहको को चीज़ तो सस्ती मिलने लगी । परन्तु समोसे का स्तर बिल्कुल नीचे गिर गया। 

   वैसे यह पूरा शहर हलवाइयों के नाम पर है। यहां के मुख्य चौकों के नाम भी हलवाइयों के नाम पर  हैं। रामलाल चौक, जटू राम हलवाई चौंक, बोसाराम चौक, चांदना स्वीट्स चौक आदि आदि है। एक तो पूरा का पूरा हलवाई हट्टा भी है। इस मुकाबले में अमृतसरी समोसे की विदाई  हो गई है। किसी समय में बच्चों व गरीब आदमियों को समोसे बचने का काम भी दिया था। जो गली - गली में जाकर अमृतसरी समोसे बेचते थे। 

                                  - बीजेन्द्र जैमिनी

                  पूर्व महासचिव : मीडिया क्लब पानीपत





 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

इंसान अपनी परछाईं से क्यों डरता है ?