जगदीशचंद्र माथुर स्मृति सम्मान - 2025
बचपन में हमारे पालकों, शालेय जीवन में शिक्षकों और व्यवहारिक जीवन में हमारे परिजनों, पड़ोसियों, मित्रों एवं संबंधित कौशल के जानकारों का यह दायित्व बनता है कि वे व्यक्ति में निहित उस कौशल को पहचानें और फिर उसे प्रोत्साहित भी करें। उसे प्रस्तुति और अभ्यास के लिए अवसर दें। संसाधन जुटायें। योग्य प्रशिक्षित से प्रशिक्षित कराने में सहयोग प्रदान करें।
कौशल रखने वाले संबंधित व्यक्ति का भी विशेष दायित्व है कि वह अपने कौशल को पहचानें और अध्यन, प्रशिक्षण एवं अभ्यास से, स्वयं में निहित इस कौशल को निखारें। समय-समय पर प्रस्तुति देकर अपने कौशल की समीक्षा करें। असफलता से निराश न हों, बल्कि कमियों को दूर करें। क्योंकि यही कौशल आपकी श्रेष्ठता बनकर आपकी जिंदगी का आईना होने वाली है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
चूँकि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की उत्तम कृति है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में श्रेष्ठ अवश्य होता है। उसमें हर समय कमियाँ ढूँढना, हर समय उसकी कमियों की ही चर्चा करना, ईश्वर की कमियाँ निकालना अथवा ईश्वर की ही बुराइयां करने के समान है। उसकी अच्छाइयों पर ध्यान देना अर्थात् अपनी श्रेष्ठता व बड़प्पन से दूसरे को देखना है। यही श्रेष्ठता आपकी ज़िन्दगी का आईना है कि आप किस मानसिक स्थिति में खड़े हो कर लोगों का आंकलन कर रहे हैं।
- रेनू चौहान
दिल्ली
प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशेष गुण या क्षमता अवश्य होती है जो उसे दूसरों से अलग बनाती है। यह श्रेष्ठता व्यक्ति की पहचान बनती है और जीवन की दिशा निर्धारित करती है। कोई संगीत में निपुण होता है, तो कोई लेखन में, कोई तकनीकी क्षेत्र में दक्ष होता है, तो कोई सामाजिक सेवा में अग्रणी। यह विशेषता ही व्यक्ति को आत्मविश्वास देती है और उसे अपने जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु प्रेरित करती है। जीवन में अनेक बार कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन अपनी श्रेष्ठता को पहचान कर यदि हम उस पर कार्य करें, तो हर चुनौती अवसर में बदल सकती है। यह श्रेष्ठता ही हमारे जीवन का आईना होती है, जो हमारे विचारों, व्यवहार और उपलब्धियों में प्रतिबिंबित होती है। अतः हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचाने, उसे निखारे और जीवन को सार्थक बनाए। यही आत्मविकास की सच्ची राह है।
- विनोद चतुर्वेदी
भोपाल - मध्यप्रदेश
यह एकदम सही है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में श्रेष्ठ होता है और वह उसी के लिए घर-समाज और बाहर पहचाना जाता है। कभी-कभी जब व्यक्ति अपनी तुलना दूसरों से करने लगता है तब वह हीन भावना का शिकार होकर अपनी श्रेष्ठता खो बैठता है। इसीलिए अपने श्रेष्ठ को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए व्यक्ति को तुलनाओं में न उलझ कर अपने को निरंतर निखारने का प्रयास करते रहना चाहिए ताकि अपने सर्वश्रेष्ठ से दूर-दूर तक अपनी पहचान बना कर अपना ही नहीं देश का नाम कर प्रेरणा देने वाला व्यक्तित्व बने।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
अनुभव के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति समय ,स्थान एवं मानवसंसाधन के अनुसार श्रेष्ठ होता है। उन्हें कदम - कदम पर सम्मान की आवश्यकता है। मनोवैज्ञानिक ढंग से श्रेष्ठ व्यक्ति को और श्रेष्ठ कार्य के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। कोई भी व्यक्ति श्रेष्ठ एक दो दिन में नहीं बन जाता है ,उसके पीछे उस व्यक्ति का लंबा संघर्ष ,त्याग का इतिहास होता है। कृषि , शिक्षा ,साहित्य ,संस्कृति , न्याय विभाग ,प्रशासनिक विभाग या व्यवसायिक क्षेत्र में जो व्यक्ति समयबद्धता , कार्य के प्रति इश्क और त्याग की भावना रखता है ,वह व्यक्ति लंबे वक्त के बाद श्रेष्ठ हो जाता है।
श्रेष्ठ व्यक्ति ही इतिहास के पन्नों में प्रत्येक व्यक्ति के लिए ईश्वर बन जाता है। प्रत्येक मनुष्य को श्रेष्ठ व्यक्ति को सम्मान करते हुए जीने की कला सीखना चाहिए।
- डॉ. सुधांशु कुमार चक्रवर्ती
वैशाली -बिहार
प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है....ये कथन सत्य है !!प्रत्येक व्यक्ति विधाता की रचना होता है व अपने आप मैं विशिष्ट होता है !! केवल आवश्यकता है उस विशिष्टता को तलाशकर उसे तराशने की !! जो यह कार्य कर गया , वो स्वयं ही महान बन जाता है व जीवन में सफल भी !! उसी श्रेष्ठता या विशेषता से वह पहचाना जाता है , व वही श्रेष्ठता उसकी जिंदगी का आईना भी बन जाती है !!
-नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
यह अटूट सत्य है कि, इस सृष्टि में चाहे कोई मनुष्य या प्राणी है हरेक को प्रभु ने कोई न कोई गुण अवश्य देकर भेजा है, लेकिन यह भी सत्य है कि सभी उस व्यक्ति या प्राणी के गुण को पहचान नहीं पाते, जिससे वो गुणवान नहीं बन पाता, अगर जन्म से देखा जाए हर प्राणी में तीन गुण अवश्य होते हैं जिन्हें हम सतगुण, तमोगुण, रजोगुण के नाम से जानते हैं लेकिन ज्यों ज्यों व्यक्ति बड़ा होने लगता है उसमें कुछ गुण व अवगुण भी पनपने लगते हैं, जिनका मुख्य कारण आस पड़ोस के माहौल या वातावरण का असर देखने को मिलता है या ज्यों कह लें कि बच्चों के माता पिता का महौल उन्हें उभरने नहीं देता, उसके बाद गुरु की शिक्षा भी सही मायने रखती है, अगर बचपन से माता पिता बच्चों को अच्छा माहौल दें तो प्राणी हर गुण में उभर सकता है, बैसे भी माँ को सबसे बड़ा स्कूल कहा गया है, क्योंकि पहली सीख माँ से लेकर ही बच्चा निकलता है इसके साथ साथ घर का माहौल व बातचीत उसी बच्चे को कहीं से कहीं पहुँचा देती है, इन्सान में इतने गुण हैं कि वो हैवान को भी सही दिशा दिखा सकता है, इंसान अगर शेर को पिंजरे में डाल सकता है, बन्दर को नचा सकता है, तो मानो कौन से गुण इंसान में नहीं हैं, लेकिन लोभ, मोह ने इंसान के गुणों को धो डाला है, जिससे इंसान खुद ही अपने गुणों को पहचान नहीं पाया सिर्फ दुसरों के दोषों को देखता है लेकिन उनके गुणों को नहीं ग्रहण करता तभी तो कहा है,
"दोष पराये देखि कर चलत हसंत हसंत, आपना याद न आविये जिनका आदि न अन्त"। हमें दुसरों के गुणों को ग्रहण करना चाहिए दोषों को नहीं तभी हमारे गुण उभर सकते हैं,अगर हम दया, सहानुभूति, करूणा, विचार शीलता, धैर्य, उदारता, दान इत्यादि को अपनायें तो सोने पे सुहागै का काम होगा लेकिन हमारे पास जो गुण विराजमान हैं हम उन्हें भी खोते जा रहे हैं, यह तभी संभव हो सकता है जब हर प्राणी अपना कार्य सही दशा में करे व हर इंसान को इंसान समझे और उसके गुणों को पहचानने का संभव प्रयास करे और अच्छे गुणों को अपना कर हर प्राणी की सहायता करे तथा पशु पक्षीयों से भी सीखने का प्रयास करे क्योंकि प्रभु ने हर प्राणी को कुछ न कुछ गुण देकर ही इस संसार में भेजा है हमें उन्हें ग्रहण करना चाहिए।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू -जम्मू व कश्मीर
इस सृष्टि में प्रभु ने सभी को कोई न कोई गुण देकर अवश्य भेजा है चाहे वो मानव हो या कोई अन्य प्राणी ।हां,मानव के गुण ज्यादा दृश्य होते है और अन्य प्राणियों के कम और अब बात आती है कि क्या सभी के अंदर एक गुणवत्ता है..?तो है ।निश्चित ही है बस कमी होती है उस गुण को निखारने और न निखारने की ।जिस व्यक्ति ने या जिस बच्चे के माता पिता या गुरु ने उन गुणों को पहचान लिया और उन से सम्बन्धित क्षेत्र में प्रयास कर लिया तब वो गुण वैसे ही निखर जाते है जैसे एक बीज से पौधा और जिस प्रकार एक सशक्त बीज सफल माली और खाद आदि के अभाव में पूर्ण पल्लवित नहीं हो पाता ठीक वैसे ही व्यक्ति के गुण..भी दब जाते हैं।अन्यथा मालिक ने तो एक चींटी को भी ज्ञान दिया है.
- ममता श्रवण अग्रवाल
सतना - मध्य प्रदेश
ये ब्लैक होल पर अपने काम के साथ-साथ विज्ञान पर अपनी पुस्तकों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। हॉकिंग को अपने वैज्ञानिक करियर के शुरुआती दौर में, 21 साल की उम्र में, एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) हो गया था। इस अपक्षयी बीमारी के कारण वे चलने, हिलने-डुलने और बोलने की क्षमता खो बैठे थे। वे श्रेष्ठता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
हर व्यक्ति प्रभु की सुंदर रचना है , हर आत्मा को प्रभु धरती पर किसी ख़ास कारण से भेजता है इसलिए सब में कुछ विशेष गुण अवश्य होते है, कुछ कमियाँ भी व्यक्ति में होती है, कोई सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता लेकिन व्यक्ति के गुणों को ही देखना ज़रूरी है तभी हम गुण ग्राहक बन सकते है, सकारात्मकता इसी में है, किसी की कमियाँ देखना केवल नकारात्मकता है, हर व्यक्ति अपनी विशेषता से पहचाना जाता है, वही उसकी ज़िंदगी का आइना भी बन जाती है
कोई भी व्यक्ति सर्वगुण संपन्न नहीं होता है
ReplyDeleteलेकिन प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ना कुछ विशेषता होती है जो उसे औरों से अलग करती है।
- संजीव दीपक
धामपुर - उत्तर प्रदेश
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ अनोखा अवश्य होता है,
ReplyDeleteवही विशेषता उसे भीड़ में अलग पहचान देता है।हर व्यक्ति मे यह क्षमता होनी चाहिए कि वह अपनी श्रेष्ठता को पहचाने और यही उसके जीवन का असली आईना होता है।
सीमा रानी
पटना - बिहार
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
आप बिलकुल सही कह रहे हैं। बहुत बार व्यक्ति को स्वयं इसका कोई अन्दाज़ नहीं होता। इसका आंकलन तो परिवार के अन्य सदस्यों और समाज को करना चाहिए। कई लोगों को उचित मार्गदर्शन और मंच न मिल पाने के कारण उनकी प्रतिभा दबी रह जाती है- सादर। - अरविंद मिश्र
ReplyDeleteभोपाल - मध्यप्रदेश
(WhatsApp से साभार)