हिन्दी भाषा की सोशल मीडिया पर संभावनाएं


               प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक नारा दिया कि डिजिटल इंड़िया । पल भर में  दुनिया की हर जानकारी, चाहे छोटी हो या बड़ी हो, कोई भी जानकारी यहाँ उपलब्ध है. प्रधानमंत्री जी का अमेरिका का भाषण बहुत प्रख्यात और चर्चित रहा, जिसमें इन्होंने कहा था कि “दुनिया हमे साप-सपेरे के देश के तौर पर जानती थी, पर आज दुनिया को यह एहसास हो गया हैं कि साप-सपेरे वाले लोग अभी उँगलियों से माउस को चलते हैं” लोग सोचते थे कि सोशियल मीडिया के आने से हिंदी का वर्चस्व कम हो जायेगा पर ये तो उलट ही हो गया. ट्विटर पर अब देवनागरी के अलावा तमिल और बंगाली लिपि का भी उपयोग हो सकता हैं । इसी प्रकार प्रतिलिपि एप पर हिन्दी सहित नौ भाषाओं का प्रयोग हो रहा है । यह प्रमुख रूप से साहित्यकारों का एप है  । जिसपर एक लाख से अधिक साहित्यकारों का प्लेटफार्म तैयार हो चुका है । जैमिनी अकादमी द्वारा हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा में बहुत से विचार आये हैं । उनमें से कुछ विचार पेश हैं  :-
     सोशल मीडिया बेशक संवाहक  का कार्य करता है  । भावनाओं  , विचारों , संदेशों  , प्रतिक्रियाओं और मुद्दों को  उठाने का सशक्त माध्यम  है  । लेकिन शब्द  " सोशल मीडिया " स्वयमेव  ही अंग्रेजी भाषा का शब्द  है  । ऐसे में  इसे  हिन्दी  भाषा  के लिए  हितकारी  होने का संशय रहता है  । चूँकि हर क्षेत्र में  अलग अलग  बोलियाँ  व  भाषाएं प्रचलित  होती है  ,  जिस वजह से वहाँ के स्थानीय  शब्दों  का समावेश अवश्य  देखने को मिलता है  । जिसके फलस्वरूप  हिन्दी भाषा  की शुद्धता पर प्रश्नचिन्ह होता है  । वैसे भी वर्तमान में  हिन्दी की दशा और दिशा चिंतनीय  है  । अंग्रेजी  भाषा  के शब्दों ने घुसपैठ  कर रखी है  । सोशल मीडिया  में  स्थानीय स्तर के शब्दों को समझने के लिए हार्डवेयर  या साॅफ्टवेयर तैयार  करना एक मुश्किल कार्य  है । निःसन्देह वर्णमाला  के वर्ण  कुंजीपटल पर विकसित  कर लिए गए हैं  लेकिन वर्णों के रूप - स्वरूप टंकन करने में परेशानियाँ आती है  । अधिकांशतया  यूजरज अंग्रेजी के अल्फाबेटस को हिन्दी में  टंकित कर काम चला लेते हैं  । इस प्रथा का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि  पाठक शब्दों का उचित भावार्थ नहीं  समझ पाते  । इसलिए  हिन्दी  भाषा  की सोशल मीडिया  पर संभावनाएं उज्जवल  नहीं  हैं । 
                                      - अनिल शर्मा नील 
                              जिला  बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
         सोशल मीडिया वर्तमान में संचार व अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम है ।हिन्दी जन-मानस की भाषा मानी जाती है । सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति के लिए हिन्दी से उपयुक्त कोई भाषा नही मानी जा सकती है । आज विश्व में हिन्दी प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । भारत में भी हिन्दी प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।त्वरित प्रतिक्रिया के इस युग में बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग होता है । परन्तु हमें हिन्दी शुद्धता का ध्यान रखना होगा ।साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया से बेहतर माध्यम कोई और नहीं हो सकता । नयी पीढी के लेखक इसका भरपूर प्रयोग कर रहे हैं । ई-पत्रिका, ब्लाग, तथा किताबों का भंडार आजकल इन्टरनेट पर उपलब्ध है। आज के युग में जहाँ नयी पीढी के लोग अपना अधिक समय मोबाइल और इन्टरनेट पर बिताते हैं और पढ़ने के लिए समय का अभाव है वहां प्रिंट साहित्य की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है ।जहाँ अधिकतर जनसंख्या मोबाइल पर निर्भर है और उसे अंग्रेजी में दिक्कत होती है इसलिए इन दिनो सोशल मीडिया पर हिन्दी की संभावनाएँ अधिक बड़ गई है ।अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हिन्दी भाषा की सोशल मीडिया पर संभावनाएं अधिक है ।
                                                  - जगदीप कौर
                                                  अजमेर - राजस्थान
          सोशल मीडिया से विश्व में अनेक भागों में हिन्दी का विस्तार हुआ है । साहित्य से लेकर लोक सम्पर्क तक में हिन्दी ने अपने झण्डे  लहराये हैं । अमरीका , कनाडा , जर्मन , और फ्रांस आदि में तो हिन्दी ने चार चाँद लगा दिये । हिन्दी की ई-पत्रिका भी बहुत से देशों से प्रसारित हो रही हैं ।
                                            - मदन मोहन ' मोहन '
                                           पानीपत - हरियाणा
      भाषा मनोभावों और विचारों की संवाहक है. वर्तमान हिन्दी भाषा का प्रादुर्भाव संस्कृत भाषा से हुआ है या यों कहे कि हिन्दी भाषा संस्कृत की"वंशज "है. भारत गण राज्य की राष्ट्रीय अधिकारिक भाषा है. एक समय था, जब केवल प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रिक मीडिया ही प्रचलन में थे लेकिन धीरे -धीरे जब इंटरनेट का प्रादुर्भाव हुआ तो सोशल मीडिया ने अपने तरीके से परिवार, समाज और राष्ट्र को प्रभावित करना आरम्भ कर दिया. हम कह सकते हैं कि इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन से आई सूचना क्रांति ने "सोशल मीडिया "को जन्म दिया है और वर्तमान स्थिति यह है कि सोशल मीडिया हर उम्र के व्यक्ति की दिनचर्या का अविभाज्य अंग बन गया है. 
    प्रचलित साइटों में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि सबसे लोकप्रिय हैं. इन सोशल मीडिया साइटों पर उपयोग की जाने वाली विभिन्न भाषाओं में हिन्दी भाषा ने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है. मेसेजिंग सेवा ने तो हिन्दी में धूम मचा रखी है. यूनिकाण्ड जैसे फ़ॉन्ट के आ जाने से इंटरनेट पर हिन्दी को उसके सही "देवनागरी "स्वरूप में लिखना -पढ़ना आसान हो गया है. आज सोशल मीडिया पर हिन्दी सरलीकरण के लिए अनेक कार्य हो रहे हैं जैसे -गूगल मानचित्र हिंदी में देखना, हिन्दी वाईस सर्च आदि आ जाने से सोशल मीडिया पर हिन्दी का प्रयोग काफी हद तक बढ़ गया है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समाज के हर वर्ग ने सोशल मीडिया को अपनी स्वीकृति प्रदान की है तदर्थ प्रबल संभावना बनती है कि आने वाले समय में हिन्दी भाषा को स्वीकार्यता और उपयोगिता अपना व्यापक वर्चस्व स्थापित करेगी. 
                                                - डॉ. छाया शर्मा
                                                 अजमेर - राजस्थान
         हिंदी वह भाषा है जो पूरे भारतदेश में ज्यादा से ज्यादा समझी जाती है और यही वजह है कि हिंदी जानने वाला बगैर किसी अत्यधिक परेशानी के भारत दर्शन कर सकता है | हिंदी शुध्द - सरल, सहज पढने - लिखने, समझने - बोलने वाली भारतवर्ष की राष्ट्रीय भाषा है | कहा जाता है कि किसी भी देश की आत्मा उसकी अपनी भाषा ही होती है | किसी से उधार ली गई या जबरन थोपी गई भाषा में न तो हृदय की विराट भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है और न ही सत् साहित्य की रचना | हिंदी ने अपनी सरलता के बल बूते पर अहिंदी राज्यों में भी अपना सम्मानित स्थान बना लिया है और अब धीरे - धीरे हिंदी देश ही नहीं विदेशों में भी नित उन्नति के शिखर छू रही है | हालांकि हिंदी आज जिस मुकाम पर है, उस पर पहुंचने के लिए हिंदी ने काफी संघर्ष किया है | अब भी मैकाले के पुत्र हिंदी के पीछे हाथ धोकर पडे हैं | इनकी संख्या पूरी पचास प्रतिशत भी नहीं है और ये अच्छी तरह से इंगलिश भी नहीं जानते सिर्फ हिंगलिश ही जानते हैं और इसी हिंगलिश के बल पर अपना कचरा युक्त ज्ञान झाडते रहते हैं |आज भारतीय महापुरुषों का तिरस्कार किया जा रहा है, जिन्होंने हिंदी की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया | उनके नाम पर स्कूल - कॉलेजों का नाम रखने पर उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है | मैकाले के मानस पुत्र बडे शौक से सेंट मार्क्स, सेंट जेवियर, सेंट थॉमस आदि नामों से नित नये - नये स्कूल - कॉलेज खोल रहे हैं | मोटी - मोटी फीस लेकर भी ये बच्चों को शिक्षा के नाम पर सिर्फ मशीन बना रहे हैं | अब संत कबीर, संत तुलसीदास, महर्षि पाणिनी, महर्षि स्वामी दयानन्द, संत कालीदास, सूरदास आदि नाम लोगों को अटपटे लगने लगे हैं | हम भारतीय न होकर सिर्फ इंडियन बनकर रह गये हैं | तमाम देशी - विदेशी षड्यंत्रों के महाजाल से निकलकर हिंदी ने आज अपनी एक अलग पहचान बनाली है | अलग - अलग भाषाओं के अलग - अलग शब्दों को अपने आप में मिलाकर क्षेत्रवाद का बंधन भी तोड दिया है | अब बस एक ही कमी रह गई है राष्ट्रभाषा हिंदी को राजनैतिक सहयोग और मिल जाये फिर हिंदी बगैर किसी विरोध के भारतवर्ष की रानी बनकर राज करेगी | माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शुध्द - सरल तेज तर्रार हिंदी भाषणों से भी हिंदी को बहुत अधिक पुष्टता प्रदान की है।
 '' हिंदी भारत के माथे की बिंदी ''
                                         - मुकेश कुमार 'ऋषि वर्मा'
                                  फतेहाबाद (आगरा )- उत्तर प्रदेश
       आज विज्ञान और तकनीकी प्रगति के आधार पर हिंदी बहुप्रयोजनी और बहुआयामी बनती जा रही है और इसी कारण इसमें ज्ञान गंगा का प्रवाह बहते जा रहा है !
वर्तमान समाज में मीडिया बहुत सशक्त माध्यम है !
आज हिंदी को विश्वपटल पर प्रतिष्ठित करने वाले जनसंचार सिनेमा ,रेडियो ,दूरदर्शन , कम्प्युटर ,इंटरनेट से पूर्ण योगदान मिला है ! सिनेमा ने हिंदी भाषा और साहित्य को भारत में तो घर घर पहुंचाया साथ साथ विदेशों में भी हिंदी फिल्म के कारण हिंदी पहुंच गई ! सिनेमा से युवाओं मे हिंदी के प्रति आकर्षण जागा !रेडियो का भी  हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान रहा ! टी.वी. दृक--श्राव्य होने के कारण सशक्त माध्यम बना है! दूरदर्शन हिंदी सीरियल ने तो हिंदी को देश-विदेश के घर घर में पहुंचाया है ! बाकि का काम इंटरनेट ने कर दिया ! आज सभी सोशल मीडिया से सक्रिय हो गए हैं!आधुनिक जनसंचार हिंदी को विश्वभाषा बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है !इंटरनेट में हिंदी भाषा में ब्लाॅग लेखन से सभी हिंदी प्रेमी अपनी रचनाओं एवं विचारों से सभी के संपर्क में रह हिंदी के प्रचार प्रसार में सहयोगी होते हैं !  फेसबुक ,व्हाटसेप ,ट्वीटर सभी से आज हम जुड़े हैं! हिंदी प्रेमी आज अपनी रचनाएं ,कहानियां  अपनी भावनाएं हिंदी में लिख  चंद समय में ही देश-विदेश में हिंदी  साहित्य का प्रचार प्रसार हो जाता है !आज सोशल मीडिया ने ही हिंदी को राजभाषा से विश्वभाषा बनाने का बीड़ा उठाया है ! बिना राष्ट्रभाषा के हर देश गूंगा है ! आज ही हमारे भारत में महाशब्दकोष मोबाइल एप का लोकार्पण हुआ है ! आज हिंदी भाषा का विस्तार विदेशों में इतने व्यापक रुप में हुआ है कि वे विज्ञापन भी हिंदी में देने लगे हैं !अंत में यही कहना चाहूंगी सोशल मीडिया का हिंदी के प्रचार-प्रसार में बहुत ही बड़ा योगदान है !
                                                   - चन्द्रिका व्यास
                                                    मुम्बई - महाराष्ट्र
  सोशल मीडिया पर हिन्दी के प्रभाव से हिन्दी का भविष्य उज्जवल है इसमें कोई सँदेह नहीं है।लेकिन हिन्दी का वास्तविक भाषाई स्वरूप की शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह है। जिस तरह रीयल मिक्सिंग हिन्दी  के साथ सोशल मीडिया परहो रही है उससे भाषाई स्वरूप को मूल रूप मे कायम रखने पर भी चिँतन होना चाहिए। सोशल मीडिया समय की माँग अवश्य है लेकिन  इसका अर्थ यह नहीं की आधुनिकता की चकाचौंध मे अशुद्ध हिन्दी का प्रयोग हो । सोशल मीडिया को यह भी ध्यान रखना होगा कि गलत स्वरूप भी घतक है। सोशल मीडिया पर प्रयुक्त की जाने वाली हिन्दी को शुद्ध रूप मे मे प्रस्तुत किया जाना चाहिए।  इसमेँ कोई सँदेह नहीं है कि सोशल मीडिया पर हिन्दी के विकास की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता । लेकिन शुद्धता का ध्यान रखना अनिवार्य होगा।
                                       - आचार्य मदन हिमाचली
                                         सोलन - हिमाचल प्रदेश
              हिंदी हिन्दुस्थान की आन बान और शान है । भाषाएं तो अनेक हैं , लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ खास भाषाओं का वर्चस्व है ,, जिसमें हिंदी ने अपनी खास जगह बना ली है । सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा  की संभावना निरन्तर बढ़ती जा रही है।‌ कारण ये भी हो सकता है कि  हिंदी में ‌ ब्यक्ति कि अभिव्यक्ति बहुत सरल होती है जो दूसरों तक पहुंचने में भी सुगम होती है । आजकल सोशल मिडिया का नेटवर्किंग साइट्स में काफी अहमियत है । कुछ भी  अच्छा या बुरा ‌लोग सोशल मिडिया पर डालते रहते हैं जो तुरंत ही आग की लपटो की तरह फ़ैल जाती है और  कोई भी संवाद कहीं से कहीं भी पहुंच जाती है । हमारे देश के लोगों में शिक्षा की दर में आज भी कमी है  । फलत: हिंदी चुकी हमारी बोल चाल की भाषा है ,,इसी कारण  कम पढ़े लिखे लोग भी आसानी से हिंदी भाषा का धड़ल्ले से सोशल मिडिया में उपयोग करतें हैं । निरन्तर सोशल मीडिया में  हिंदी भाषा का उपयोग  बढ़ता जा रहा है । बहुत बार लिखते लोग अंग्रेजी के शब्द है लेकिन हिंदी उसमें समाहित होता है । अतः हम  सारांश में यह कह सकते हैं कि  ,,, हिंदी भाषा की सोशल मीडिया पर संभावना  दिनों दिन बढ़ती हीं जा रही हैं । 
                                                     - डाँ.पूनम देवा
                                                        पटना - बिहार 
        सोशल मीडिया अर्थात् फेसबुक/व्हाट्सएप ने किसी न किसी रूप में हिंदी को आंशिक रूप से संवारा तो है,पर रोमन अंग्रजी के कारण हिंदी को परिपूर्णता नहीं मिल सकी है । विडम्बना का विषय तो यह है कि हिंदी के लेखक-कवि भी फेसबुक/व्हाट्सएप पर या तो अंग्रेजी या फिर रोमन अंग्रेजी को माध्यम बनाकर  सक्रिय हैं ।उनके खातों में भी उनके नाम , संदेश ,कमेंट अंग्रेजी में लिखे दृष्टिगोचर होते हैं । रोमन अंग्रेजी का धड़ाधड़ प्रयोग करने वाले सोशल मीडिया महावीरों से हिंदी के विकास की आशा करना बेमानी ही  है ।वर्तमान में हिंदी भाषा भाषी ही हिंदी की कब्र खोदने में संलग्न हैं । मुझ जैसे मुट्ठी भर हिंदीप्रेमी अवश्य ही सोशल मीडिया या दैनिक जीवन, हर जगह हिंदी केवल हिंदी का परचम लेकर चल रहे हैं ,मशाल जला रहे हैं।पर,सोशल मीडिया पर तब तक हिंदी के पक्ष में व्यापक संभावनाएं दृष्टिगत नहीं होती हैं,जब तक कि प्रत्येक हिंदीभाषी हिंदी के प्रति समग्र समर्पण व ईमानदारी न दिखाएं ।
                                           -प्रो.शरद नारायण खरे
                                           मंडला - मध्यप्रदेश
              आजकल जब लगभग हर चीज को सोशल मीडिया में उसकी उपस्थिति से नापा जा रहा है। हर संस्था, व्यक्ति, सरकार, कंपनी, साहित्यकर्मी से समाजकर्मी तक और नेता से अभिनेता तक को सोशल मीडिया में उसके वजन, प्रभाव और लोकप्रियता की कसौटी पर तौला जा रहा है। यह स्वाभाविक है कि इस नई तकनीकी-सामाजिक शक्ति और भाषा के संबंध को भी हम समझने की कोशिश करें। कुछ बुनियादी बातें शुरू में। यह सोशल मीडिया भी अंतत: एक तकनीकी चीज है। हर तकनीकी आविष्कार निरपेक्ष होता है। यानी हर तरह के काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। इसलिए हर तकनीकी आविष्कार की तरह इसके दुरुपयोग पर हमें ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हर वैज्ञानिक या तकनीकी आविष्कार, यदि वह एक व्यापक समाज के लिए रोचक या उपयोगी है, अपनी एक नई जगह बना लेता है। और जब यह नई तकनीक संवाद और संप्रेषण से जुड़ी हो तो स्वाभाविक है कि वह अपनी विशिष्टताओं के साथ संवाद और संप्रेषण के नए-पुराने तरीकों, उपकरणों और तकनीकों को कुछ विस्थापित करके ही अपनी जगह बनाती है।जब प्रिंट आया तो वाचिक संवाद की सर्वव्याप्तता घटी। जब रेडियो आया तो उसने लिखित और मुद्रित माध्यम को थोड़ा खिसका कर अपनी जगह बनाई। जब टेलीविजन आया तो बहुत से लोगों ने मुद्रित माध्यम के अवसान की घोषणा कर दी। उसका अवसान तो नहीं हुआ, लेकिन उसके विकास, प्रभाव और राजस्व पर सीधा प्रभाव पड़ा और आज भी पड़ता ही जा रहा है। अब सोशल मीडिया नाम के इस नए प्राणी ने संचार माध्यमों की दुनिया को फिर बड़े बुनियादी ढंग से बदल दिया है। यह प्रक्रिया जारी है और कहां जाकर स्थिर होगी, यह कोई नहीं जानता। लेकिन इन नए संप्रेषण मंचों और पुरानों में एक बुनियादी अंतर है। अखबार, पुस्तकों, पत्रिकाओं, रेडियो और टीवी से अलग इस माध्यम की संवाद क्षमता इसे शायद इन सबसे ज्यादा निजी, आकर्षक, अंतरंग और इसलिए शक्तिशाली बनाती है। दूसरे माध्यम एक दिशात्मक थे। यह नया माध्यम अंत:क्रियात्मक है, आपसी संवाद संभव बनाता है। अब जब यह डेस्कटॉप कंप्यूटरों, लैपटॉपों से निकल कर मोबाइल फोन पर आ गया है तो सर्वव्यापी, सर्वसमय, सर्वत्र और सर्वसुलभ हो गया है। इसने राजनीतिक रणनीतियों, विमर्श और चुनावी नतीजों में अपनी जगह बनाई है। कंपनियों और उनके उत्पादों, सेवाओं के प्रचार-प्रसार, उपभोग, मार्केटिंग और ग्राहकों तक पहुंचने, उन्हें छूने के तौर-तरीकों को बदला है। व्यापार, उद्योग, शासन, मनोरंजन, राजनीति और मीडिया जगत के लोगों के लिए तो ये मंच महत्वपूर्ण है 
आज संसार की लगभग हर भाषा पर सोशल मीडिया के प्रभाव को महसूस किया जा रहा है, उसे समझने की कोशिश हो रही है और विमर्श हो रहा है। इस नए माध्यम ने हर नए माध्यम की तरह हर भाषा के प्रयोग के तौर-तरीकों, शब्दकोश, शैली, शुद्धता, व्याकरण और वाक्य रचना को प्रभावित किया है। यह असर लिखित ही नहीं, बोलने वाली भाषा पर भी दिख रहा है। जब ईमेल आया तो कहा गया कि पत्र लिखना ही समाप्त हो जाएगा। वह तो नहीं हुआ, लेकिन हाथ या टाइपराइटर से पत्र लिखने का चलन जरूर खत्म हो गया। पर बात यहीं तक नहीं है। अब एसएमएस, ट्विटर, फेसबुक और वाट्सएप ने बहुत से लोगों के लिए ईमेल को भी अनावश्यक और अप्रासंगिक बना दिया है। सोशल मीडिया ने अपनी एक नई भाषा गढ़ ली है। भाषा और शब्दों के सौंदर्य, मर्यादा, गरिमा और स्वरूप की चिंता करने वाले सभी इस नई भाषा के प्रभाव और भविष्य पर तो चितिंत हैं ही, इस पर भी हैं कि इस खिचड़ी, विकृत, कई बार अटपटी भाषा की खुराक पर पल-बढ़ रही किशोर और युवा पीढ़ी वयस्क होने पर किसी भी एक भाषा में सशक्त और प्रभावी संप्रेषण के योग्य बचेगी या नहीं। यह खतरा इसलिए भी गंभीर होता जा रहा है कि नई पीढिय़ां पाठ्य-पुस्तकों के अलावा कुछ भी गंभीर, स्वस्थ, विचारपूर्ण लेखन, साहित्य, वैचारिक पठन से लगातार दूर जा रही हैं। अच्छी, असरदार भाषा अच्छा पढऩे से ही आती है। अच्छी भाषा के बिना गहरा, गंभीर विचार, विमर्श, चिंतन और ज्ञान-निर्माण संभव नहीं। वे पीढिय़ां जो विद्यालयों की मजबूरन पढ़ाई के बाहर केवल या अधिकांशत: यह खिचड़ी और भ्रष्ट भाषा ही पढ़ लिख रही हैं उसकी बौद्धिक क्षमताएं ठीक से विकसित होंगी कि नहीं? सोशल मीडिया का असर बस नकारात्मक ही नहीं है। ट्विटर जैसे मंचों की शब्दसीमा ने अपनी बात को चुस्त और कम से कम शब्दों में कहने के अभ्यास को संभव बनाया है। सोशल मीडिया ने सार्वजनिक अभिव्यक्ति और एक बड़े समुदाय तक निडर और बिना रोक-टोक और नियंत्रण के अपनी बात, अपनी सोच और अनुभव पहुंचाना संभव बनाकर करोड़ों लोगों को एक नई ताकत, छोटी बड़ी बहसों में भागीदारी का नया स्वाद और हिम्मत दी है। इस नई ताकत ने सरकारों और शासकों को ज्यादा पारदर्शी, संवादमुखी और जवाबदेह बनाया है, जनता के मन और नब्ज को जानने का नया माध्यम दिया है। सोशल मीडिया की ताकत ने सरकारों को अपने फैसलों, नीतियों और व्यवहारों को बदलने पर भी मजबूर किया है। पर क्या इस मीडिया ने लोक-विमर्श को ज्यादा गंभीर, गहरा, व्यापक, उदार बनाया है । 
इस पर गहन चिंतन की जरुरत है 
सोशल मीडिया आने से रिश्तों में दूरियाँ 
संवाद हिनता आपसी प्रेम में कमी 
अवसाद की स्थिति अधिक पैदा हो रही है कुछ लाभ है तो हानियाँ भी कम नही है 
                                                   - अलका पाण्डेय 
                                           मुम्बई - महाराष्ट्र
            आज परिवार, गली ,मोहल्ला, गांव, जिला, राज्य और राष्ट्र से वैश्विक स्तर तक अपनी भावात्मक , विचारात्मक  भाषायी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम सोशल मीडिया है।
         देवनागरी लिपि में आबद्ध मातृभाषा हिन्दी सहज,सरल,सर्वव्यापी राजकीय गौरव से मंडित है।
    सूचना क्रांति के बाद से तो हिंदी भाषा की व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, माय स्पेस फिल्कर, टि्वटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट पर  लोकप्रियता उजागर होती है।
   वर्तमान में यूनिकोड जैसे फॉन्ट के आने पर इंटरनेट पर हिंदी के लेखन और पठन का कार्य अल्प कालावधि में अल्प धनराशि द्वारा द्रुतगति से और भी सुलभ हो गया है।
   हिंदी वर्तनी की जांच ऐप का होना, जीमेल के द्वारा हिंदी में ही ई-मेल की सुविधा होना, गूगल पर ही हिंदी समाचार सेवा तथा बोलकर हिंदी टाइप करना व्यापार, उद्योग, मनोरंजन, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, शासकीय समस्त कार्य आज हिंदी भाषा में सोशल साइट पर सुगमता से प्रसारित और प्रचारित हो रहे हैं। साहित्यिक विचारों का आदान-प्रदान,शोध परक पुस्तकालय पुस्तकीय प्रकाशन और ब्लॉग द्वारा  बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक जीवन उपयोगी समस्त उपलब्धि सोशल मीडिया से संभव हो रही है।
जय हिंदी - जय सोशल मीडिया
                                                - डाँ. रेखा सक्सेना
                                                 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
           हिंदी राजभाषा भले न बन पाई हो, पर हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है।हमारी पहचान है।हमारा गौरव है।हमारा अभिमान है।यह हमारी रग-रग में बसी है। हमारी साँसों में घुली हुई है।हाँ, मगर ये सच है कि हिंदी की इतनी प्रबल विरासत के बावजूद हम हिंदी में उतने सशक्त और प्रभावशाली नहीं बन पाये हैं, जितना वस्तुतः होना चाहिए।हिंदी भाषी, हिंदी सेवी होने का दावा तो हम करते हैं, मगर ऐसे प्रबुद्ध लोग भी बहुतायत से मिलेंगे, जो न तो अच्छी हिंदी बोल पाते हैं, न लिख पाते हैं। फिर वे कितना समझ पाते हैं, ये भी समझने की बात है। इनमें पढ़े-लिखे लोग भी अच्छे-खासे हैं। आज हमारा पूरा जीवन और जीने का तरीका ही टेक्नोलॉजी पर आधारित हो गया है। ऐसा कोई भी पक्ष नहीं है, जो टेक्नोलॉजी से अछूता रह गया हो।सोशल मीडिया प्लेटफार्म की सुलभता से भावाभिव्यक्तियों की अभिव्यंजना सुगम हो गयी है, जो त्वरित रूप से अपने लक्ष्य तक पहुँच जाती है।यहीं पर भाषा की महत्ता बढ़ जाती है।यह आज की शिक्षा व्यवस्था का दोष है कि अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में पढ़ने वाले और हिंदी में बात करने वाले बच्चे हिंदी के शब्द, उनके हिज़्जे, मात्रा, लिंंग आदि नहीं जानते। वे अंग्रेजी भी उतनी सक्षमता से नहीं लिख पाते।बस, मोबाईल, लैपटॉप पर रोमन लिपि में हिंदी लिख देते हैं, क्योंकि वहाँ व्याकरणिक अशुद्धियों का कोई मतलब नहीं होता।आप राह चलते, बसों,ट्रेनों, मेट्रो में अगल-बगल नजर दौड़ाएँ, तो ह्वाट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर ऐसी विलक्षण लिपि में लिखने वाले तमाम युवा मिल जाएँगे।उस लिपि में भावनाएँ प्रकट तो हो जाती हैं, मगर वो मशीनी ही रह जाती हैं। उनमें वो स्वाभाविकता नहीं होती, वो प्रभाव नहीं होता, वो एहसास नहीं होता, अपनत्व नहीं होता, जो हमारे अंतर्मन को छू जाऐगे । ऐसे में, प्रबल भाव-संप्रेषण की भाषा के रूप में हिंदी की महत्ता और उपादेयता से इंकार नहीं किया जा सकता।अपने सरल, सुलभ, स्वाभाविक व सर्वग्राह्य रूप में हिंदी हमारी जुबान पर है।थोड़ा ध्यान देकर, थोड़ी कोशिश कर, धैर्य रखकर, सीखकर  हम अगर हिंदी को अपनाएँ, तो सोशल मीडिया ऐसा माध्यम है, जो योग्यता को सम्मान तो देता ही है, पढ़ने वालों को भी आपका मुरीद बना सकता है।यही हिंदी भाषा की ताकत और शक्ति है।हमें इसे समझना चाहिए।आज हिंदी में ब्लॉग लिखे जा रहे हैं।ई-पत्रिकाएँ और ई-बुक्स आ रही हैं और इनकी पठनीयता बढ़ रही है।हममें अगर क्षमता है, शब्द-भंडार है, हिंदी भाषा की शक्ति है, भाव-संप्रेषण की काबिलियत है, तो सोशल मीडिया पर प्रगति और उन्नति की अनंत संभावनाएँ हैं।पुरानी पीढ़ी को चाहिए कि इस दिशा में वह युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करे और उन्हें हिंदी की सेवा, हिंदी के विकास और संवर्द्धन की दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करें ताकि विश्व-पटल पर हम हिंदी की जय-पताका फहरा पायें।
                                                 - विजयानंद विजय
                                                    मुजफ्फरपुर  - बिहार 
           हिन्दी सोशल मीडिया के माध्यम से काफी प्रचारित-प्रसारित हो रही है। नहीं लिख-पढ़ पानेवाले व्यक्ति भी हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में हाथ आजमाने लगे हैं....छाने लगे हैं। अपरोक्ष रूप से हिंदी ही तो छा गई है। जितना साहित्य अभी सोशल मीडिया में पढ़ा-लिखा, सुना-गुना जा रहा है, आश्वस्त कर रहा कि हमारी हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। आज प्रचुर रूप से ई पत्रिका, ई बुक,पत्र-पत्रिका, लेखादि का प्रचार वास्तव में हिंदी की ताकत को बढ़ाने में सहायक। 
कुछेक सालों में देश-विदेश में छा जानेवाली है हिंदी। आगे और भी जगमगाएगी, इसमें दो राय नहीं। इसमें सोशल मीडिया ने एक बड़ी, सार्थक, उपयोगी, उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया ने हिंदी में सोचने, बोलने, लिखने की चाहत अनोखे ढंग से जगा दी है। आगे विश्व आकाश पर जगमगाहट से सबको आश्चर्यजनक रूप से चकित करेगी हिंदी। सोशल मीडिया में छा जाएगी यह। और वह दिन बस आने को है।
                                                   - अनिता रश्मि
                                                 रांची - झारखण्ड
         विषय पुराना भी हो चुका है, समसामयिक भी है और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भी। "सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा" छा चुकी थी; छायी हुई है; छायी रहेगी! हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के लिये सोशल मीडिया एक ऐसा 'महामीडिया' साबित हुआ था, हो रहा है और होता रहेगा, जिसने हिंदी प्रेमियों, साहित्य प्रेमियों और देश-विदेश के भाषा प्रेमियों के लिये हिंदीभाषा/हिंदी साहित्य /हिंदी साहित्यिक-विधायें सीखने-सिखाने-सिखवाने, समझने-समझाने-समझवाने, पढ़ने-पढ़ाने-पढ़वाने और साझा लेन-देन या क्रय-विक्रय हेतु अभूतपूर्व सेवायें कीं थीं, कर रहा है और करता रहेगा ।साहित्यिक समूह/पेज/ऑडियो-वीडियो पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन, प्रशिक्षण-प्रकाशन, सॉफ्ट कॉपी/हार्ड कॉपी अथवा दोनों तरह के प्रकाशन संबंधित सूत्र, सेवायें, व्यवसाय, शेअरिंग ... आदि सब कुछ अथाह सागर के रूप में मौजूद है सोशल मीडिया में और रहेगा। पाठक और लेखक वर्ग सोशल मीडिया सृजित साहित्य समुंदर में सैर कर रहे हैं या करवा रहे हैं, लुत्फ़ ले रहे हैं या दिलवा रहे हैं या गोते लगा रहे हैं या लगवा रहे हैं! यह सब थमेगा नहीं; बढ़ेगा! इसमें समुद्री जहाज़ भी हैं, पनडुब्बियाँ और आधुनिक तकनीकी यंत्र-तंत्र भी। अपने भी और दुश्मनों के भी! बात दुश्मनों की भी निकल पड़ी है, तो यहाँ यह कह देना भी उचित होगा कि :
हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के लिये सोशल मीडिया एक ऐसा 'तुच्छ-मीडिया' भी  साबित हुआ था, हो रहा है और होता रहेगा, जिसने हिंदी प्रेमियों, साहित्य प्रेमियों और देश-विदेश के भाषा प्रेमियों को ठग कर , प्रलोभन देकर या उन्हें ख़रीद कर या उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भटका कर  उनके लिये हिंदी भाषा/हिंदी साहित्य /हिंदी साहित्यिक-विधायें कुछ सीमा तक अशुद्ध या प्रदूषित या विकृत शैली में सीखने-सिखाने-सिखवाने, समझने-समझाने, पढ़ने-पढ़ाने-पढ़वाने हेतु अभूतपूर्व भूमिका निभायी थी, निभा रहा है और यदि नियंत्रण अभियान नहीं चलाया गया एक आचार संहिता के तहत, तो भविष्य में यूं ही अपनी ऐसी कुटिल भूमिका निभाता रहेगा कि एक अजीब से  'मनमाने नवीन स्वरूप'  में हिंदी और हिंदी साहित्य विश्व स्तर पर छा जायेंगे। साहित्यिक समूह/पेज/ऑडियो-वीडियो पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन, प्रशिक्षण-प्रकाशन, सॉफ्ट कॉपी/हार्ड कॉपी अथवा दोनों तरह के प्रकाशन संबंधित सूत्र, सेवायें, व्यवसाय ... आदि सब कुछ भयानक छलियों/ स्वार्थियों/व्यापारियों के रूप में मौजूद हैं सोशल मीडिया में और रहेंगे! पाठक और लेखक वर्ग सोशल मीडिया सृजित व्यावसायिक साहित्य समुंदर में छल-कपट कर रहे हैं या करवा रहे हैं, लूट रहे हैं या लुटवा रहे हैं या डूबा रहे हैं या डुबवा रहे हैं! यह सब थमेगा नहीं; बढ़ेगा! इसमें धूर्त, खोजी व व्यवसायी समुद्री जहाज़ भी हैं, पनडुब्बियाँ भी। अपनी भी और दूसरों की भी! कॉपी-पेस्ट, मोबाइल एप्लीकेशन्स (एप्स) चलन के  माध्यमों से चोरी, नकल और डिजिटल घपले-धांधलियों का आतंक था, है और बढ़ेगा ही, यदि उन पर नियंत्रण नहीं किया गया ।उपरोक्त सभी सकारात्मक व नकारात्मक अनुच्छेदों वाली बातें हिंदी के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों, उनके शिक्षकों व शिक्षार्थियों आदि के संदर्भ में भी कही जा सकती हैं।  उपरोक्त सभी संदर्भों में गहन अध्ययन/अवलोकन, सर्वेक्षण व शोधों की आवश्यकता थी, है और रहेगी! हम हिंदुस्तानी सभ्यता और संस्कृति के विकास में, राष्ट्रीय/क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में बहुत ही संवेदनशील, लचीले और उदार रहे थे, हैं और रहेंगे! यदि अब भी सजग, सचेत व सक्रिय न हुए तो दूसरी  विदेशी भाषाओं के शब्दों, व्याकरणों व साहित्य को अधिकाधिक अपनी भाषाओं में अपना कर हम हिंदी सहित क्षेत्रीय भाषाओं के मूल स्वरूप को खोते चले जायेंगे, जैसा कि फसलों, आयुर्वेद और योग सहित हमारे रीति-रिवाज़ों, परम्पराओं, तीज-त्योहारों , गुरु-शिष्य सहित सभी रिश्तों आदि के साथ कुछ दशकों से हो रहा था और  हो रहा है। ... होता रहेगा यदि हम समय पर न चेते तो! अंतरराष्ट्रीय तकनीकी, औद्योगिक, व्यावसायिक और अंतरिक्ष विज्ञान आदि के अभूतपूर्व विकास के चक्कर में, होड़-दौड़ की भूल-भूलैया में हम अपनी विरासत, संस्कृति सहित अपना बहुत कुछ बेच रहे थे, बिकवा रहे थे;  बेच रहे हैं, बिकवा रहे हैं और बेचते-बिकवाते रहेंगे यदि सही समय पर हम नहीं चेते, तो! स्वार्थी, आभासी रूपेण वैश्वीकरण मिशन वाले इंटरनेट और सोशल मीडिया के हावी युग में यही सब कुछ सत्य है  हिंदी भाषा और हमारी क्षेत्रीय भाषाओं के संदर्भ में भी! अति सर्वत्र वर्जयेत!
                                           - शेख़ शहज़ाद उस्मानी
                                            शिवपुरी - मध्यप्रदेश
        आज ये स्वीकार करने में किसी को कोई हिचक नही होगा कि, सोशल मीडिया की वजह से हिंदी की पहुँच में अतिसय विस्तार हो गया है। जहाँ प्रिंट मीडिया में अंग्रेजी का बोलबाला व महत्व कुछ ज्यादा था। हिंदी के लिए भी प्रिंट मीडिया में बड़े नाम वाले लेखकों को ही ज्यादा तजरिह मिलता था, और नए लेखकों को संघर्ष से गुजरना आम बात थी। कुछ बड़े नामो के लिए ही इनकी उदारता बरकरार थी। सोशल मीडिया एक जनक्रांति की तरह हिंदी के लिए संभावनाएं लेकर आयी है। इसके हर प्लेटफॉर्म पर हिंदी लिखने पढ़ने वालों की तादात बढ़ी है। वैश्विक पटल पर आज हिंदी, सोशल हिंदी सोशल मीडिया के मंच पर विराजमान है। सोशल मीडिया पर हिंदी भाषा के विस्तार की गति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, अंग्रेजी भाषा का अच्छा खासा ज्ञान रखने वाले युवा, हिंदी लेखन को लेकर उनका आकर्षण भविष्य की नई संभावनाओं का विस्तार है। आज के ये युवा, कल के परिपक्व हिंदी भाषा के मर्मज्ञ होंगे। अंग्रेजी के एकाधिकार को नकारते हुए हिंदी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहे है। सोशल मीडिया पर हिंदी को और भी विस्तार देने का श्रेय हिंदी ब्लॉगर्स को जाता है। हिंदी ब्लॉगर्स ने पिछले कुछ ही सालों में हिंदी को इस देश से निकलकर दूसरे देश की सीमाओं में बखूबी पहुँचाया ही नही, बल्कि अहिन्दी पाठकों में भी हिंदी की खूबसूरती से परिचय कराया। सोशल मीडिया की पहुँच हिंदी भाषा के लिए भविष्य में भी संभावनाओं का नया आयाम लेकर आएगा। आज हिंदी विश्व की तीसरी बोली जाने वाली भाषा बन गयी है। कल पढ़ने और लिखने वालों की तादात में भी बढ़ोतरी तय है। और इसका श्रेय बेहिचक सोशल मीडिया को जाता है। जिसने हिंदी के प्रति लोगों में अभिरुचि जगायी।
                                         - प्रतिमा त्रिपाठी
                                          राँची - झारखण्ड
            हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है और जन-जन की भाषा भी। हिन्दी हमारे राष्ट्र में विविध बोली जाने वाली भाषाओं में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह बेहद खुशी और गौरव की बात है कि वर्तमान में हिन्दी में इतना लेखन हो रहा है जो इसके पहले कभी नहीं लिखा गया। इसकी एक वजह यह भी प्रमुख है  कि हिन्दी में सम्पर्क के लिये अनेक माध्यम जैसे समाचारपत्र, दूरदर्शन, मोबाइल हमें सहजता से उपलब्ध हुये हैं । हम अपनी बात कम समय में या यूँ कहें कि तुरंत अपने संबंधितों के समक्ष रखने में सक्षम हुये हैं।अतः यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिन्दी के प्रचार और प्रसार में सोशल मीडिया से अनेक संभावनायें जागी हैं और हम हिन्दी को लेकर और आशान्वित हुये हैं। परंतु इसके साथ ही साथ हमें हिन्दी को सजाने और संवारने के लिये भी सदैव सजग रहना है। एक बात विशेष चिंतनीय है कि हमारे कहने और लिखने में हम हिन्दी शब्दों के बदले अंग्रेजी शब्द शामिल करते जा रहे हैं,यह हमारा हिन्दी को लेकर बेहद कमजोर पक्ष है।हमें इसे गंभीरता से लेना होगा, समझना होगा, बचना होगा। हमें अंग्रेजी से कोई परहेज़ नहीं है।हम जब अंग्रेजी में बात करें तो अंग्रेजी में ही करें लेकिन यदि हम जब हिन्दी में बोल रहे हों या हिन्दी में लिख रहे हों तो उसमें अंग्रेजी शब्द का उपयोग करने से बचें। यह बहुत ही खेद का विषय है इसे कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है। न हम,न मीडिया, न जिम्मेदार लोग।आशा है इस विषय पर सभी चिंतनशील होंगे।
                                                      - नरेन्द्र श्रीवास्तव
                                                    गाडरवारा - मध्यप्रदेश
                         
           आज सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। इसने लोगों तक तीव्र गति से पहुँचने के लिए सुविधा प्रदान की है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलने से भी हिंदी में लिखने के लोग तेजी से प्रवृत्त हुए हैं। आज ई प्लेटफार्म, संगणक आधारित सॉफ्टवेयर आने, बोल कर लिखने, हिंदी के अनेक एप, वेबसाइट, ई पत्रिकाएँ, ई पुस्तकें, सोशल मीडिया मंच, वाट्सएप समूहों, फेसबुक पर साहित्यिक पृष्ठों ने हिंदी को लोकप्रिय बनाने का जो महत्वपूर्ण कार्य किया है उसे नकारा नहीं जा सकता। आज जन मानस के अंदर गहराई तक पैठने की हिंदी की ताकत को विदेशियों ने भी पहचान लिया है तभी तो विदेशी व्यापारियों, अभिनेताओं, नेताओं में हिंदी सीखने की ललक होड़ में परिवर्तित हो गई है। हिंदी अब रोजगार दे सकने की दिशा की ओर भी तेजी से अपने कदम बढ़ा रही है। सोशल मीडिया के आने से हिंदी का वर्चस्व बढ़ा है। जन-जन तक उसकी पहुँच आसानी से होने लगी है। साहित्य से सम्पर्क तक हिंदी की यात्रा तेजी से हो रही है। आने वाले समय में सोशल मीडिया हिंदी को राष्ट्रभाषा तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा..यह निश्चित है।
                                              - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
                                                  देहरादून - उत्तराखण्ड
             अपने-अपने ज्ञान -अज्ञान का जितना भंडार सोशल मीडिया पर फैल रहा है उसे देखकर लगता है कि आने वाले समय में यह भंडार ऐतिहासिक होगा। हरेक व्यक्ति अपना ज्ञान इस में डालना चाहता है जिसे देख कर लगता है कि आने वाले समय में हिंदी का सबसे बड़ा भंडार सोशल सोशल मीडिया ही बनेगा । पहली बात- जनसंख्या जितनी बड़ी होती लाभ-हानि की संभावनाएं उतनी ही बड़ी हो जाती है। दूसरा बात-  हम लोग अनुसरण करने में अद्वितीय हैं। हमारी यही अद्वितीय सोशल मीडिया पर हिंदी की संभावनाएं बढ़ाने में काम आ सकती है । यह हमारे और हिंदी के लिए लाभदायक संभावना है। इस मंच पर जितना हिंदी में प्रचार-प्रसार होगा उतना ही हिंदी के लिए यह फायदेमंद होगा ।
                                         - ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
                                         रतनगढ़ ( नीमच ) - मध्यप्रदेश
                सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की आज़ादी दी हैं। साहित्यकार के लिए  सोशल मीडिया पर अपार संभावनाएं दिखाई दे रहा है। फ़ेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब के माध्यम से हम अपनी रचना ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुँचाने में कामयाब हो रहे है। लोगो की प्रतिक्रिया भी हमे जल्द मिलता है। जिससे खासकर नए रचनाकारों का लिखने का जोश और हौसला बढ़ता है। कुछ लोग ब्लॉग पर भी अपनी रचना प्रकाशित करते है। इसे पढकर बहुत लोगो को लाभ  मिल रहा है और अपनी रचना लिखने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर समय का भी कोई बाध्यता नही है । दिन हो या रात हो कभी भी अपनी रचना शेयर कर रहे है। बहुत लोगों की रचना पत्रिकता या अखबारों में नहीं छप पाते , उनके लिए सोशल मीडिया वरदान से कम नहीं।जो लोग पढ़ने लिखने से दूर रहते थे ,वो भी आज सोशल मीडिया पर सभी तरह की रचना आसानी से पढ़ पाते है। सोशल मीडिया की ही देन हैं कि लोग साहित्य समूह बनाकर बड़े शहरों से लेकर छोटे शहर के साहित्यकार आपस मे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं । साहित्य के विकसित करने में सोशल मीडिया अहम  भूमिका निभा रहा है। साथ मे इस प्लेटफॉर्म ने कुछ लोगों की छुपी प्रतिभा को निखारा हैं। आजकल एक बड़ा लेखक वर्ग और पाठक वर्ग को सोशल मीडिया तैयार किया है। साहित्य को सोशल मीडिया लोकप्रिय बना रहा है। ये बहुत बड़ी उपलब्धि हैं। सोशल मीडिया  का ही कमाल हैं कुछ अच्छे साहित्यकार भी  मौजूद हैं।इसके साथ -साथ  नए साहित्यकार को भी लेखन के प्रति जागरूक किया है। मेरी राय में सोशल मीडिया ने  बहुत लोगो को नई दिशा दिया है। नये साहित्यकार  में लेखन के प्रति जोश और जागरूकता भी फैला रहा है। इसको सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए। कुछ साहित्यकार सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी कर रहे है, जो कि सरासर गलत है।
                                                       - प्रेमलता सिंह
                                                           पटना - बिहार
            बहुत सामयिक विषय पर यह विचार मांगे गये है। पहले की बात अलग थी।तब हमें अपने विचारों के आदान प्रदान करने के लिये पुराने तरीके अपनाना पडते थे।
   पर,अब समय बदल गया है।हम सब नेट के माध्यम से एक दूसरे से जुड गये है। फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर.इन्फ्राग्राम एवम अन्य एप में.हिंदी का प्रचुर मात्रा में प्रयोग आसानी से किया जा रहा है। आज हिंदी में काम करने वालों की संख्या बढी है।पहले हम सिर्फ़ अंग्रेजी पर निर्भर थे।परंतु वह कठिन भाषा थी।सभी नहीं उपयोग कर पाते थे।पर हिंदी एक सुलभ और स्वस्फूर्त प्रचार प्रसार वाली भाषा है।सभी बहुत आसानी से इसका प्रयोग कर रहे है। समाचार हो या लेखन,पठन या अन्य विधा हिंदी एक सरल सहज भाषा है। डिजीटल ईंडिया के अंतर्गत भी हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग हेतू प्रयास किये गये है। हम सभी आज रोजमर्रा के जीवन इसी का उपयोग करते है।यह सहज ग्राह्य और दिल को छू लेने वाली प्रिय भाषा है। भविष्य में सोशल मीडिया पर सिर्फ हिंदी का ही वर्चस्व रहेगा।ऐसा मेरा विश्वास है।
                                               - महेश राजा
                                         महासमुंद - छत्तीसगढ़
किसी भी देश की राष्ट्रीय पहचान वहाँ की भाषा,भोजन,वेशभूषा और भवन और वहाँ के रहन-सहन से होती है। और इन सबमें सबसे सर्वोपरि सर्वप्रथम भाषा का ही स्थान है। जो वहाँ के भाव और चिंतन और वहाँ की संस्कृति की संवाहिका लिए होती है। हिंदी सहित भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा में महात्मा गाँधी का अद्वितीय योगदान रहा है आज मीडिया भी इसका बखूबी भूमिका निभा रही हैं। और आज आधुनिकीकरण के अंग्रेजी फैशन युग में हिंदी को जीवित रखने के लिए इसकी महती आवश्यकता है। ताकि अनायास,अकारण अंग्रेजी की गुलामी रूपी मानसिकता के जंजीरों से हिंदी को पूरी तरह से बचाया जा सके।
                                                - डाॅ.क्षमा सिसोदिया
                                                  उज्जैन - मध्यप्रदेश
            सोशल मीडिया के माध्यम से दूर दराज के लोग हिन्दी में किसी भी विषय वस्तु को लेकर टिप्पणी करते हैं इससे उन सभी में आपसी विचारों का आदान-प्रदान होता है। देश के अनेक नेता ट्विटर के जरिए भी हिंदी भाषा में सरकार के पक्ष विपक्ष में बात करते हैं इससे भी हिंदी को बढ़ावा मिल रहा है। अभी हाल ही में मन की बात कार्य क्रम के माध्यम से माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हिंदी का एक शब्द हर रोज सीखें । इस बात को सोशल मीडिया के माध्यम से जन जन तक पहुंचाया गया जो कि हिंदी भाषा के माध्यम से ही सम्भव हो सका। अतः संक्षेप में यह कहना पड़ेगा कि हिंदी और सोशल मीडिया नेटवर्क ने देश की विभिन्नता को एक करने का भरसक प्रयास किया है। अतः हिंदी के बढ़ते प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया की भूमिका को किसी भी कीमत पर नकारा नहीं जा सकता है।
                                                 - देवेन्द्र दत्त तूफान
                                                पानीपत - हरियाणा
निष्कर्ष :-                                                                
 जो सोशल मीडिया पर आ गया है । उसकीं तरक्की के रास्तें सामनें होतें है । हिन्दी भाषा के साथ भी यही हुआ है । जब से हिन्दी का की- बोर्ड इटरनेट पर आया है । तब से तो हिन्दी भाषा दुनियां में दिन- प्रतिदिन तरक्की कर रही है । जो काम इटरनेट पर हिन्दी में होता है । वह मिनटों में दुनियां में फैल जाता है । यहीं हिन्दी की ताकत दुनियां को अपनी मुठ्ठी में कर रही है ।
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी
                                             ( आलेख व सम्पादन )


Comments

  1. नमस्कार हिन्दी का अस्तित्व सरहद पार भी सर चढ कर बोलते देखा है मैंने
    हिंदी दिवस मनाने से ही कुछ नही होगा ।
    सारे लेखक लेखिका के अनुपम उत्कृष्ट विचार पढ़ने को मिले ।
    भारत मे आज भी अँग्रेजी माध्यम की पाठ शाला को कितना अधिक प्रोत्साहन दिया जा रहा है ये छिपी हुई बात नही है । हिन्दी का वचॆस्व ऐसे ही अनेकानेक कारणो से देश के अंदर ही दबाने सा लगता हैं ।
    हिन्दी का सँघषॆ बहुत है ।
    किसी अन्तॆराष्ट्रीय भाषा को सीखने में ज्ञान लेने में बुराई नही हैं पर उसका हिन्दी पर हावी हो जाना भविष्य के लिये अच्छा सँकेत नहीं है ।

    हिन्दी के अस्तित्व पर गहराते सँकट से बचाने के लिये लैखक वर्ग जितना सजग हैं उतना ही पाठक सह शासन प्रशासन जनता को भी होना पड़ेगा ।समाज के मनोविज्ञान पर सँचार माध्यम गहरा असर ड़ाल रहे हैं अतः इस मनोविज्ञान का असर भी भापायी विकास पर पडता हैं ।

    जयहिन्द जयभारत

    सुश्री शिखा दास
    अन्तॆराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार /कवियत्री /सामाजिक कार्यकर्ता /
    क्रांति निकेतन
    पिथौरा तहसील
    जिला महासमुन्द (छग)
    9009382692मोबाइल

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    Replies
    1. बहुत - बहुत धन्यवाद । काले अग्रेजों से हिन्दी भाषा को खतरा आज भी कायम है ।

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  2. बहुत ही उम्दा, हार्दिक बधाई
    डॉ गुलाब चंद पटेल
    कवि लेखक अनुवादक
    नशा मुक्ति अभियान प्रणेता
    ब्रेसट कैंसर अवेर्नेस प्रोग्राम आयोजक
    Mo 09904480753
    Email patelgulabchand19@gmail.com

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