डॉ. सतीशराज पुष्करणा की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा डॉ. सतीशराज पुष्करणा  की स्मृति में " लघुकथा उत्सव " का आयोजन फेसबुक पर रखा गया है । अभी तक जगदीश कश्यप , उर्मिला कौल , पारस दासोत , डॉ. सुरेन्द्र मंथन , सुगनचंद मुक्तेश , रावी , कालीचरण प्रेमी , विष्णु प्रभाकर , हरिशंकर परसाई , रामधारी सिंह दिनकर , आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री , युगल जी , विक्रम सोनी , डॉ. सतीश दुबे , पृथ्वीराज अरोड़ा , योगेन्द्र मौदगिल , सुरेश शर्मा , लोकनायक जयप्रकाश नारायण , डॉ स्वर्ण किरण , मधुदीप गुप्ता,  सुदर्शन ' प. बद्रीनाथ भट्ट '  आदि की स्मृति पर ऑनलाइन " लघुकथा उत्सव " का आयोजन कर चुके हैं ।

               डॉ. सतीशराज पुष्करणा

डॉ. सतीशराज पुष्करणा का जन्म 05 अक्टूबर 1946 को लाहौर - पाकिस्तान में हुआ । इन की शिक्षा बीएससी , विशारद , एम.डी.एच ( होम्योपैथिक ) है । इन की निजी लेखन की तीस से अधिक प्रकाशित  पुस्तकें हैं । लगभग 22 पुस्तकों का सम्पादन भी किया है ।  इन में से वर्तमान के झरोखे में , प्रसंगवश , उजाले की ओर , बदलती हवा के साथ , जहर के खिलाफ , आग की नदी लघुकथा संग्रह है । जो लघुकथा साहित्य की आत्मा कहा जाता है । लघुकथा साहित्य पर सात के लगभग पुस्तकें प्रकाशित हैं । जिन के आधार पर , वर्तमान में लघुकथा लेखन किया जा रहा है । इन का जीवन अधिकतर रूप से पटना - बिहार में गुजर है । परन्तु अन्तिम समय दिल्ली में गुजारा है । इन का देहांत 28 जून 2021 को दिल्ली में हुआ ।

       कुछ लघुकथा के साथ डिजिटल सम्मान

                    आखिर क्यों


कैप्टन विजयन्त के सेना में शामिल होने के बाद प्रथम गृह आगमन के अवसर पर सारे गांववासी उत्सुकता वस एकत्रित होकर विजयंत के स्वागत के लिए भव्य मंच तैय्यार कर रखा था। विजयंत के आते ही सभी गांववासियों का गर्वित  मन हिलोरें लेने लगा। विजयंत और भारत माता की जय - जयकार से पूरा आसमान गुंजायमान हो उठा।
         माइक पर सर्वप्रथम बुजुर्ग शिक्षक राम दयाल जी का उद्बोधन शुरू हुआ... "प्यारे गांववासियो, आज हम सभी को बहुत गर्व का अनुभव हो रहा है कि अपने गांव का बेटा, हमारे देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हमारे गांव का नेतृत्व कर रहा है। अब मैं अपना अनुभव बांटने के लिए बेटा विजयंत को आमंत्रित कर रहा हूं जिसको हम सभी सुनने के लिए उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
         विजयंत के उठते ही तालियों की गड़गड़ाहट के साथ भारत माता की जय जयकार से पूरा माहौल उल्लासित हो उठता है। सर्वप्रथम विजयंत रामदयाल जी को दंडवत प्रणाम करता है तत्पश्चात माइक संभालता है।
         "प्यारे गांववासियो...आप लोगों का प्यार और सम्मान देखकर मुझमें अपने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज़्बा और भर गया है...आप जैसे लोगों का समर्थन ही सेना को देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए प्रेरित करता है".. साथ ही मेरे जैसे बहुत से लोगों को ये मलाल के साथ सवाल भी है की..."देश को चलाने वाले तथा देश के सर्वेसर्वा बनने वाले राजनेताओं के पुत्र सेना में क्यों नहीं जाते?"... "उनकी सेवा की प्राथमिकता में देश की सेना क्यों नहीं होती?"..."उनके पुत्र और पारिवारिक सदस्य हमेशा नेतागिरी या ठेकेदारी का ही व्यवसाय क्यों चुनते हैं?"...आखिर क्यों?...वहां पर उपस्थित अब सभी लोगों को यह प्रश्न अपना सवाल लगने लगा...आखिर क्यों?...

                          - सुधाकर मिश्र "सरस"
                              महू - मध्यप्रदेश
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              राजनीतिक कार्यकर्ता



"मां खाना लगा दो!नीतिन ने बाहर से आते हुए लोटे में पानी ले हाथ धोते हुए मां से कहा ....
मां जल्दी लगाओ ना" !
"मां ने कहा....अभी तो आया है कहीं जाना है क्या "?
"तभी नीतिन के पिता सुरेश ने कहा हां ....! चुनाव का समय है एक्सट्रा क्लास चल रही है अत: उसे जल्दी जाने दे" !
"गायत्री ने आश्चर्य से  कहा कैसी क्लास " ?
"सुरेश ने कहा उसे सभी विभागों का ज्ञान होना चाहिये" !
"कैसा विभाग " ?  
"सुरेश ने अब नाराजगी दिखाई अरे बुडबक चुनाव में सभी पार्टी के लोगों की अंदर की खबर रखना " !
"इससे क्या होगा " ?
"जिस पार्टी का पलडा भारी हो वहीं फिट हो जाओ ! अब बकबक करना छोड और मुझे भी जल्दी खाना दे दो ! आज नेताजी के साक्षात्कार के लिए प्रेस वाले आनेवाले हैं ! हम सभी कार्यकर्ताओं को भी अपने उम्मीदवार नेता के साथ रहना है ! हमारे रहने से उन्हें मोरल सपोर्ट मिलता है " !
सभी कार्यकर्ता अपने उम्मीदवार नेता शंकर के साथ जनपद भवन के दशमे माले में बैठ रिपोर्टर का इंतजार करते हैं तभी..."अपना इक्यूपमेंट लिए रिपोर्टर आकर सीधा हटिये हटिये भीड ना करें...प्लीज़ हमे सुरेश जी का इन्टरव्यू लेने दीजिये " !
सभी कार्यकर्ता नेताजी को चारों तरफ से घेरे हुए थे....पुन: रिपोर्टर ने अपनी नेताजी के सानिध्य में आने की महत्ता दिखाई ! नेता जी का क्लोज़प लिया !
चुनाव के समय जगह जगह बडे बडे पोस्टर लगाये गये....उपर नेताजी की तस्वीर और नीचे सभी कार्यकर्ताओं की तस्वीर ! किसी भी पोस्टर में नेताजी अकेले नहीं थे !
कार्यकर्ता का साक्षात्कार लेते हुए प्रेस रिपोर्टर ने प्रश्नवाचक दृष्टी दौडाते हुए कहा ..." पोस्टर में उपर नेताजी की तस्वीर और नीचे कार्यकर्ताओं की तस्वीर.".....
"कार्यकर्ता ने कहा तुम अभी यहां किससे आये" ?
"रिपोर्टर ने कहा लिफ्ट से " ! 
"कार्यकर्ता ने कहा मैं सीढी से चढकर यहां तक पहुँचा हूं !
"किंतु नेताजी की फोटो के नीचे कार्यकर्ता के फोटो का क्या मतलब"...? 
"उपर नेताजी की तस्वीर आज का नेता और नीचे कार्यकर्ताओं की तस्वीर कल के भावी नेता को उजागर करती है" !
- चंद्रिका व्यास
    मुंबई - महाराष्ट्र
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लेखनी की आत्महत्या

           बिहार दिवस का उल्लास चहुँ ओर बिखरा पड़ा नजर आ रहा... मैं किसी कार्य से गाँधी मैदान से गुजरते हुए कहीं जा रही थी कि मेरी दृष्टि तरुण वर्मा पर पड़ी जो एक राजनीतिक दल की सभा में भाषण सा दे रहा था। पार्टी का पट्टा भी गले में डाल रखा... तरुण वर्मा को देखकर मैं चौंक उठी... और सोचने लगी यह तो उच्चकोटी का साहित्यकार बनने का सपने सजाता... लेखनी से समाज का दिशा दशा बदल देने का डंका पीटने वाला आज और लगभग हाल के दिनों में ज्यादा राजनीतिक दल की सभा में...
स्तब्ध-आश्चर्य में डूबी मैंने यह निर्णय लिया कि इससे इस परिवर्त्तन के विषय में जानना चाहिए... मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी... मुझे देखकर वह स्वत: ही मेरी ओर बढ़ आया।
     औपचारिक दुआ-सलाम के बाद मैंने पूछ लिया , "तुम तो साहित्य-सेवी हो फिर यह यह राजनीति?"
   उसने हँसते हुए कहा, "दीदी माँ! बिना राजनीति में पैठ रखे मेरी पुस्तक को पुरस्कार और मुझे सम्मान कैसे मिलेगा ?"
        मैंने पूछा "तो तुम पुरस्कार हेतु ये सब...?
   बन्धु! राजनीति में जरूरत और ख्वाहिश पासिंग बॉल है...
पढ़ा लिखा इंसान राजनीति करें तो देश के हालात के स्वरूप में बदलाव निश्चित है...
दवा बनाने वाला इलाज़ करने वाला नहीं होता... कानून बनाने वाला वकालत नहीं करता...
    तो साहित्य और राजनीति दो अलग अलग क्षेत्र हैं तो उनके दायित्व और अधिकार भी अलग अलग है..."
मेरी बातों को अधूरी छोड़कर वह पुनः राजनीतिज्ञों की भीड़ में खो गया... साँझ में डूबता रवि ना जाने कहीं उदय हो रहा होगा भी या नहीं...
   अगर स्वार्थ हित साधने हेतु साहित्यकार राजनीतिक बनेगा तो समाज देश का दिशा दशा क्या बदल पायेगा... मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चिंतनमग्न थी...
   - विभा रानी श्रीवास्तव
      पटना - बिहार
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   भेड़ चाल

    चुनाव का मौसम यानि अनेक लोगों के लिए बिन बादल बरसात। दिहाड़ी मजदूर रामलाल और रामदीन दोनों ही इन दिनों धर्मनिरपेक्ष बन जाते हैं। जिस दल के नेता को  भाषण, मोर्चा ,पोस्टर , नारेबाजी के लिए भीड़ की जरूरत होती वो.अपने छुटभैया नेताओं को अपनी जातिय आवश्यकता बता देता और वो  सारी व्यवस्थाएं संभाल लेते।तब दोंनों अपने नाम के पिछले हिस्से को हटा देते। सभी पार्टियों में अपनी हाजरी लगाते और 
भरे पेट और भरे हाथ घर लौटते। नेतागण भाषणबाजी में दलबदलू नेताओं को धिकारते ,सत्य और देश के भविष्य की बातें करते और वोटों की राजनीति का खेल खेलते।
शातिर नेतागण जानते थे कि अनपढ़, मजदूर ,मजबूर लोगों को आसानी से बोतल में उतारा जा सकता है। दबंगई से इन भेडों को हाँक कर मतदान स्थान पर लाना और आगे का काम तो सिखाया हुआ है। पर इस बार भेड़ों ने चाल बदल ली और  पासा पलट दिया।

  - ड़ा.नीना छिब्बर
     जोधपुर - राजस्थान
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  राजनीति 

इस बार के चुनाव ने समाज में रिश्तों का एक नया चेहरा दिखाया था।चुनाव हुए तो सोहन के चाचा विधायक का चुनाव लड़ रहे थे।उनके अपने ही परिवार ने आपसी रंजिश के कारण उनके विरोध में प्रचार प्रसार शुरू कर दिया।नतीजा ये हुआ कि चुनाव तो जीत गए पर सोहन का परिवार आपस में ही बिखर गया।एक दूसरे से मानो जंगी दुश्मनी हो।
            कोशिश तो की विधायक(मुकेश) जी ने कि परिवार को अब एक कर दें परन्तु कुछ खास हुआ नहीं उनके प्रयास का।अर्थात पारिवारिक रिश्तों पर राजनीति का खेल भारी पड़ गया।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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दाँव 

“मैडम हम कल नहीं आएँगे।”
“क्यों! …”आशा ने अपनी काम वाली कुसुम से पूछा।
“वो कल बड़ा मैदान में भोज भात है।धोती साड़ी भी मिलेगा।”कुसुम ने कहा।
“ठीक है।”
“लेकिन कल हमारे यहाँ मेहमान आ रहे हैं।तुम रहती तो तुम्हें भी सब बख़्शीश देते पाँच सौ तो मिल ही जाता।”
“अच्छा ,कोई बात नहीं।मैं आउट हाउस में रह रहे ड्राइवर की पत्नी से बोल दूँगी वो मेरी मदद कर देगी।”
सुबह दरवाज़े पर कुसुम को देख आशा के चेहरे पर विजयी मुस्कान खिल गया।
“मानना पड़ेगा तुम्हें…तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था क्या दाँव फेंका…”राजेश ने अपनी पत्नी आशा से कहा।

   - सविता गुप्ता
    राँची - झारखंड
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जागरूकता

चुनाव का मौसम चल रहा है। हर तरफ भाषणों रैलियो का दौर। एक से एक नेता प्रचार-प्रसार  में लगे हैं।
कोई गरीबी दूर करने की बात कर रहा है तो कोई स्वच्छता का राग अलाप रहा है। कहीं भ्रष्टाचार तो कहीं आतंकवाद मुद्दा बना हुआ है। सभी अपनी रोटियाँ सेंकने में लगे हैं।
लेकिन जो सबसे बड़ा मुद्दा है वह है हमारे देश का युवावर्ग।
हर पार्टी के,हर नेता की जुबाँ पर यही बात है कि हमारा युवा ही देश का कर्णधार है। उसकी उन्नति ही देश की उन्नति है। हमारा युवावर्ग जागरूक है हर बात समझता है।
 उचित शिक्षा से लेकर नौकरी, अपना रोजगार सब मुहैया करवाने का वादा किया जा रहा है। यानी सुखमय ज़िंदगी का प्रलोभन।
और इन्हीं भाषणों से वशीभूत युवा खुशी-खुशी खून से लतपथ भी होता है और आगजनी का शिकार भी।
कभी धर्म के नाम पर सोसल मीडिया से लेकर रास्तों पर देश का जागरूक युवा खुद का ही नाश कर रहा है। शिक्षा के नाम पर व्यापार का शिकार हो रहा है। नैकरी के नाम पर बरसों झूठ के झूले में झूलता रहता है।  
एक आम युवा कल जहाँ खड़ा था आज भी लगभग वहीं खड़ा है। 
 वाह,इसे कहते हैं जागरूकता।

- मधुलिका सिन्हा
  कोलकाता - पं. बंगाल
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राजनीति से दूर 

एक और एक होकर ग्यारह बनने की चाह लिए दोनों सहेलियाँ कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ती जा रही थीं । दोनों के बीच सकारात्मक भाव ही कड़ी बनकर उन्हें जोड़े हुए थे । कहते हैं जब एक विचारधारा के लोग मिलते हैं तो वे कुछ नया कर गुजरते हैं ।
यहाँ भी उम्मीद की किरण लगातार कह रही थी कि आगे बढ़ो, वैचारिक राजनीति से दूर हो, ईर्ष्या और द्वेष से रहित होकर कुछ नया करो । देखते ही देखते यू ट्यूब चैनल बनाकर दोनों आगे बढ़ चलीं।
ये सोच कि दोनों महिलाएँ कुछ दिनों बाद झगड़ पड़ेंगी गलत साबित हुई क्योंकि वे जीतना चाहतीं हैं एक साथ जुड़कर ।

- छाया सक्सेना प्रभु
   जबलपुर - मध्यप्रदेश
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राजनीति और शिक्षक 

सीता नौकरी और घर में अपने बोधि उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए निरन्तर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रही थी l अपने क्षेत्र में उसका काफी सम्मान था l प्रधानाचार्य पदोन्नति के बाद भी पूर्ण निष्ठा और लगन से उसने कितनी ही मिसालें कायम की और उसे राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया l राजस्थान में इतने सारे जिले और उसमें भी एक छोटा सा गाँव जहाँ वह प्रधानाचार्य पद पर आसीन l
           अचानक तीन साल बाद उसका तबादला शिक्षा मंत्री ने घर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूसरे जिले में कर दिया l घर में बूढ़ी सासू माँ और स्वयं दिल की मरीज़ l अनेक प्रार्थना- पत्र
देकर, स्वयं उपस्थित होकर कितनी ही बार गुहार लगाई, लेकिन गुहार कौन सुने l कहा-आप मिलने नहीं आईं l शिक्षा निदेशक के अधिकारों से तो हाथ ही काट दिए गए l सीता ने तीन महिने तक जॉइन नहीं किया, इस आशा में कि कुछ घर के नजदीक आ जाए l अब गुहार कहाँ लगे, सुनवाई नहीं हुई l   हिम्मत कर उसने घर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जाना-आना स्वीकार्य किया l प्रतिदिन तीन घण्टे आना और तीन घण्टे जाना, सासू माँ की सेवा और घर संभालना तय कर लिया लेकिन देखिए, यह कैसी राजनीति जो शिक्षक की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है l 

   - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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बड़ा आदमी

तालियों की गड़गड़ाहट और बड़े आदमी की मुस्कान जारी थी। तभी बड़े आदमी के कानों में पी ए ने कुछ कहा और बडे आदमी ने आश्वस्त हो सिर हिलाया। भीड़ की फुसफुसाहट कानों-कान बढ़ रही थी और भीड़ की नजरें बड़े आदमी को घूर  रही थीं। ये तो वही है न जो सड़क पर सोये लोगों को कुचलता है......जंगल के मासूम जानवरों का शिकार करता है। 
बड़े लोग के समर्थक और विरोधी आपस में भिड़ गए। फिर कुछ लोगों को भीड़ रौंद गई। 
समर्थक –“बड़ा आदमी है, सो रास्ते में जो आएगा ऐसे ही कुचला ही जाएगा। गलती  उनकी है।“
विरोधी-“आखिर उन लाशों का क्या होगा...मुआवजा तो देना होगा।“
“ये लो मिठाई के डिब्बे और ऐश करो.....लाशें कभी बोलती नहीं हैं। विरोध से प्रचार मिलता है। बड़े साहब की टी आर पी बढ़ेगी.... अगली बार कुछ ज्यादा लोग लाना।“
 
- सपना चन्द्रा
 भागलपुर - बिहार
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  जीवन की दिशा राजनीति 

     राजेंद्र बचपन से राजनीति के बारे में उत्साहित था, वह हर राजनीतिक दलों के साथ सम्पर्कता मेल मिलाप का सिलसिला जारी रख, कुछ बनकर दिखाने का प्रयास कर रहा था, वह दिन भी आया, जब स्कूल में कक्षा नायक बना, फिर क्या था, वह इतना उत्साहित हुआ कि, उसे कुछ बनने की तमन्ना जागृत हुई। शिक्षा अध्ययन के साथ ही साथ अपने स्तर पर राजनीति में हिस्सा लेने लगा, देखते ही देखते राजेंद्र राजनीति में परिपक्व हो गया और वह स्वयं चुनाव में भाग नहीं लेते हुए,  मात्र सलाहकार ही बन गया,  हर कोई उसके पास सलाह ही लेने आते, ऐसा प्रतीत होता है कि राजेंद्र राजनीति का विद्या हो, उसके सम्पर्क से कोई किसी भी तरह का चुनाव हारा हो? उसके शिष्यों ने हमेशा ही कहा कि आप तैयार हो जाईये,  हम आपको उच्च पदों पर पदस्थ कर देयेगें,  उन्होंने हमेशा ही पदों को ठुकरातें रहें, उनका संदेश था, मुझे खुशी होती है मेरे शिष्य उच्च पदों पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित कर रहे हैं, यही मेरा पद है। मेरे जीवन की दिशा ही राजनीति है?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
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राजनीति

जंगल के जानवरों ने सोचा कि उन्हें अपना राजा चुन लेना चाहिये।
सियार ने कहा-"मैं रात भर चिल्ला चिल्ला कर लोगो को सावधान रखता हूँ।इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।"
गिद्ध ने कहा,-"मैं दूरदृष्टि वाला हूँ।इसलिए राजा के पद पर सबसे योग्य उम्मीदवार मैं ही हूँ।
चूहा बोला,-"मैं हर वस्तु को कुतरने मे माहिर हूँ।मुझे अपने पैने दाँतों पर भरोसा है।मुझसे अच्छा राजा कोई नहीं हो सकता।"
भेडिया बोला -"मुझे अपने पंजो पर पूरा भरोसा है।इन पंजो से कोई नहीं बच सकता,इसलिये राजा मुझे ही बनाओ।"
तभी उनकी नजर एक मिमियाती हुई बकरी पर पडी।सभी की ईच्छा थी कि आज बकरी के स्वादिष्ट मांस का आनंद लिया जाये।
भेडिये ने बकरी की ओर ललचाई नजरों से देखा।
सियार चालक था,बोला-"ठहरो!इतने उतावले मत बनो।पहले चुनाव हो जाने दो।बकरी को इसी जंगल में रहना है।हमसे बच कर कहांँ जायेगी?

- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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 अहमियत

            कुछ बच्चे गर्मी की छुट्टियों में हाथों में तीर कमान लिए तालाब की ओर जा रहे थे वहां पहुंचकर सबने देखा - एक सुंदर सा कमल का फूल खिला हुआ है। बच्चे उसे निशाने पर लेने की सोचने लगे । 8-10 बच्चे कह रहे थे ,ऐसा मत करो क्योंकि देखो यह कितना सुंदर है । पूजा में माता लक्ष्मी को भी चढ़ाया जाता है पर कुछ शरारती बच्चे झगड़ा करने लगे। तभी मोनू उधर से साइकिल पर गुजर रहा था यह माजरा देखने के लिए वह भी रुक गया। तभी उसने  देखा कि बच्चे दो गुटों में बॅट गए हैं।उनमें से एक बड़ा बच्चा गुस्से में अपना पंजा सबको दिखा कर बोला-- जानते  नहीं हो, मैं कौन हूँ 
  सब पर भारी पडूॅगा ।अभी तुम सबको मारपीट कर यहां से भगा दूंगा।
 तभी यह बात फैलते - फैलते गांव के प्रधान तक पहुंची । प्रधान का मुख्य माली तालाब की साफ सफाई और देखरेख करता था वहां भेजा गया। उसने वहाॅ बच्चों को डांटा और कहा कि यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें दंड मिलेगा। प्रधान जी सबको कमरों में बंद कर देंगे। यह सुन करके साइकिल पर सवार रमेश जो पंजा दिखा रहा था, बात बिगड़ती देख भाग खड़ा हुआ । 
हाथों में तीर कमान लिए बच्चे माली की बात को कुछ समझने लगे। माली बराबर कह रहा था। तुम्हें पता नहीं है ,हम दिन प्रतिदिन तालाब की सफाई और रखवाली करते हैं क्योंकि इसमें खिलने वाला कमल ही हम सबकी पहचान है।बच्चे --वह कैसे ??? वह बोला -मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो । बताओ तो, फिर आज कल किसकी सरकार है?  बच्चों ने हंसकर कहा- फूल की। तो फिर माली बोला- फिर क्यों तुम इस कमल के फूल को उजाड़ रहे हो। क्यों तुम इस तालाब को बेरौनक करना चाहते हो।

 - डॉ रेखा सक्सेना
   मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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आश्वासन 

"विनय बाबू,यह राजनीति का फितूर कैसे आपके दिमाग में आ गया और आपने पार्टी टिकट के लिए आवेदन दे दिया।"मैंने पूछा 
"भाई,इस बार उन्होंने घोषणा कर दी थी कि क्षेत्र से किसी निष्कलंक,साफ-सुथरे, निर्विवादित और पाक-साफ छवि वाले व्यक्ति को ही टिकट देंगे तो मैंने सोचा मैं भी टिकट के लिए आवेदन कर दूं।"
"फिर क्या हुआ! बात कुछ बनी।"
"हां, उन्होंने कहा है कि वे चाहते तो हैं कि पाक-साफ छवि के लोग ही सक्रिय राजनीति में आएं और इसीलिए उन्होंने आश्वस्त किया है कि इस बार तो नहीं,अगली बार अवश्य ही मुझे टिकट देंगे।इस बार सामने वाली पार्टी ने बहुत दमदार प्रत्याशी खड़ा किया है जिसका आपराधिक रिकॉर्ड है और जो धनबल और बाहुबल में भारी पड़ रहा है। इसीलिए पार्टी ने पिछले वाले प्रत्याशी को ही रिपीट करने का मन बना लिया है। क्योंकि उसका रिकॉर्ड हर मामले में सामने वाले से बीसा ही है और फिर पार्टी फण्ड में भी तो वह भरपूर राशि दे रहा है।"
"हां, मुझे भी पिछली बार यही आश्वासन मिला था!"मैं यह बात कहना चाह रहा था लेकिन बुदबुदाकर रह गया।

- डॉ प्रदीप उपाध्याय
   देवास - मध्यप्रदेश

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               फोटो
               
        सरकार की तरफ से समय-समय पर कई अभियान चलाए जाते हैं, ऐसे अभियानों में रजनी की सहेली,  सरोज की पति की फोटो आए दिन अखबारों की शोभा बनती । सभी जान-पहचान वाले वाह-वाह करते.....बधाई देते तो सरोज फूली नहीं समाती । 
       यह सब देख कर रजनी का भी मन होता कि वह भी अपने पति की ऐसी ही फोटो अखबारों में देखें । 
        एक बार रजनी के दिमाग में एक आइडिया आया उसने तुरंत अपने पति के लिए चोला- पायजामा, गांधी टोपी खरीदी और अपने पति से कहा कि इसे पहन कर सड़क पर झाड़ू लगाना है और बगीचे में पौधा भी लगाना है । वह बड़े सीधे- साधे, मगर पत्नी का हुक्म सर आंखों पर । 
        पत्नी ने पत्रकारों को फोन किया कि अमुक स्थान पर अमुक तारीख को फोटो और न्यूज़ लेने आना है लेकिन जब वे नहीं आए तो उसने खुद अपने मोबाइल से फोटो लेकर उन्हें भेज दी ।
         दो दिन इंतजार के बाद भी जब फोटो नहीं छपी तो उसने अखबार के संपादक को फोन कर शिकायत कर दी । लेकिन संपादक ने जो उससे पूछा, उसे सुनकर रजनी का मुंह खुला का खुला ही रह गया ।
       संपादक ने पूछा-"आपके पति, किस मंत्री के रिश्तेदार हैं ? अगर रिश्तेदार नहीं हैं तो क्या आपने दूसरा रास्ता अपनाया है ?"
                              - बसंती पवार 
                         जोधपुर - राजस्थान
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राजनीति

सज्जनसिंह मार्बल की दुकान के मालिक थे पर राजनीति का भी बड़ा शौक था । यदाकदा राजनैतिक लोगों का जमावड़ा उनके ऑफिस में देखने को मिलता था।बडी बल्डींग के मालिक किराएदारों से भी वे जिस सत्ताधारी पार्टी के लिए अगली बार इलेक्शन में खड़े होना चाहते ,उसी को वोट देने को कहते ।
उसमें कुछ पढ़ें लिखे लोग थे जो उनकी नहीं सुनते , उन्हें जो सही हैं लगता उसे ही वोट देते।
          उनके किराएदार राजेश की पत्नी सविता जो बहुत पढ़ी लिखी थी , बहुत बड़ी स्कूल में अध्यापक थी,उसे अचानक स्कूल से लेने  सज्जन जी का लड़का पहुंचा । वह काफी डर गई पूछने पर उसने कुछ नहीं बताया।वह जैसे ही घर पहुंची देखा काफी लोगों का वहां जमावड़ा था।
वहां आंगन में कुर्सी पर दूसरी पार्टी का विधायक पद के लिए खड़ा व्यक्ति बैठा था और सभी उसकी जय-जयकार कर रहे थे।वह वहां खड़ी देखने लगी सारे लोग उस व्यक्ति को हार पहना उसके पैर पड़ रहे थे। जो उसे बहुत बुरा लगा उसे और उसके पति को स्वागत के लिए बुलाने पर दोनों ने हाथ जोड़कर नमस्ते की और एक ओर हट गए न तो हार पहनाया न पैर पड़े,भला हम इनके पैर क्यों पड़े यह तो  प्रजा के सेवक हैं।
    उन्हें आश्चर्य हो रहा था की कल तक सज्जनसिंह जी दूसरी पार्टी की तरफदारी कर रहे थे।
        पूछने पर सज्जनलाल जी ने बताया इस बार वह पार्टी नहीं, यह पार्टी जीतने वाली हैं । क्योंकि उन्होंने इन्हें टिकट नहीं दिया था। मैं इसमें शामिल हो गया और इसी को सपोर्ट कर रहा हूं ताकि अगली बार मुझे भी टिकट मिले ।तुम इन्हें ही वोट देना यही जीतेगी ।
        राजेश व सविता सकते में आ गए राजनीति वाले तो राजनीति करते ही हैं पर सत्ता के लालची भी सत्ता पाने कुछ भी करेंगे।यह भी तो बिना इलेक्शन में खड़े दल बदल राजनीति ही तो है।
          दोनों नें निश्चय किया कि, हम यह नहीं करेंगे जो सही होगा प्रजा का हितकर होगा उसे ही वोट देंगे।

- डॉ.संगीता शर्मा
हैदराबाद - तेलंगाना
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फैसला    ‌

गाड़ियों का काफिला गाँव में घुसा तो धूल का गुबार आसमान पर छा गया । खट-खट गाड़ियों के दरवाजे खुले भका भक सफेदी की चमकार लिए कुरता  पायजामा धारी बहुत से लोग उतरे और किसना के घर की और मुड़ गए । माटी को पैरों से गूंथता किसना अपनी तरफ आती भीड़ को देखने लगा पैर अपनी गति से चल रहे थे । 
सरपंच जी आगे आगे भागते हुए   किसना के पास आकर ही दम लिया । फूली हुई सांसों पर काबू करते हुए बोले ।
किसना ! नेताजी के लिए है चल  जल्दी से झोपड़ी में से  खटिया लाकर बिछा अपनी महरारु को बोल बाजरे की रोटी बनाले नेता जी खायेंगे ।
किसना ने माटी से निकल कर पैर धो आया ।
 किसना जे ले आटा  और हरी मिर्च , चूल्हे में बैंगन भूंज के बन जाएगा बूँद भर तेल में , तू चार दिन सिर में मत डालियों कड़वा तेल । 
किसना  ने अंदर जा कर पत्नी को सारा सामान पकड़ा दिया रनिया साबुत सी थाली में खाना देना टेड़ी भेड़ी में मत देना । 
तुम दारु पी कर थाली फैंकना बंद करदो सब थाली दारु की भेंट चढ़ गई एक बची है। 
ठीक है ! ज्यादा मत बोल काम कर ।
किसना का मन तो ना कर रहा था पर संस्कार आड़े आ गए । बड़ों ने घर आए मेहमान की इज्जत करना जो सिखाया है । 
  झोंपड़ी से खटिया निकाला लाया और अदब से नेताजी को बैठा दिया उनके चारों तरफ लोगों का हुजूम उमड पड़ा था  ।केमरे लिए लोगों में फोटू खींचने की होड़ लगी थी । किसना को किसी की बात पल्ले  नहीं पड़ रही थी बस इतना पता था चुनाव आ गया है । 
 सरपंच ने सुत संन्न खड़े किसना को झकझोर कर कहा किसना नेताजी के लिए खाना तैयार हो तो ले आ जल्दी ।
किसना भीतर जाकर खाना ले आया और नेताजी को दे दिया और खुद हाथ जोड़कर खड़ा हो गया ।
नेताजी ने केमरे में देखकर खाना खाया सभी ने नेताजी की तारीफ की कितने महान हैं हमारे नेता जी  मिट्टी के बर्तन बनाने वाले के घर खाना खा रहे हैं। नेता जी ने चलते हुए किसना से कहा वोट हमें ही देना ।
साहब छोटा मुँह बड़ी बात कुछ फैसले हम पर ही छोड़ दें तो अच्छा है । 

- अर्विना गहलोत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश

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मैं तो हूं ही..

संस्था के नए प्रधान की घोषणा हेतु आज कार्यक्रम रखा गया था। सर्वसम्मति से नया प्रधान कपिल जी को चुन लिया गया था। पुराने प्रधान सतीश जी ने कपिल जी को नए प्रधान पद की शपथ दिलाई। शपथ के बाद कपिल जी ने कहा, "मैं अपना कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करूंगा।" सारा कार्यक्रम गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के बाद सतीश जी नए प्रधान के पास गए और हाथ जोड़कर बड़े विनम्र भाव से बोले, "बहुत-बहुत बधाई कपिल जी, कभी भी किसी भी कार्य के लिए आपको मेरी आवश्यकता हो तो मैं हमेशा आपके सहयोग के लिए तैयार रहूंगा।"
कपिल जी बोले, "हां हां, क्यों नहीं। यदि मुझे किसी भी चीज की आवश्यकता होगी तो मैं सबसे पहले आपसे ही बात करूंगा। आखिर आप मुझसे वरिष्ठ हैं आपको इस पद का अनुभव भी है।"
थोड़ी देर बाद ही सतीश जी संस्था के अन्य दो तीन सदस्यों से मिलकर बात कर रहे थे, "यह जो नया प्रधान आया है ना, इसके हर काम में कोई ना कोई मीन-मेख निकालते रहना। कोई ना कोई मांग करते रहना इसे चैन से नहीं बैठने देना है। और अगर इसने हमारी मांगें ना मानीं तो हम इसे इस पद से हटा देंगे और इसे पद से हटाने के बाद मैं तो हूं ही...।"

- विजय कुमार
अंबाला छावनी - हरियाणा
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Comments

  1. लघुकथा पुरोधा गुरु डॉ सतीशराज पुष्करणा जी को बारम्बार नमन

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  2. भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा डॉ. सतीशराज पुष्करणा जी की स्मृति में आयोजित 'लघुकथा उत्सव' में मेरी लघुकथा को ' डॉ. सतीशराज पुष्करणा स्मृति लघुकथा उत्सव सम्मान-2022' प्रदान करने के लिए श्री बीजेंद्र जैमिनी जी का धन्यवाद।
    - विजय कुमार
    सह सम्पादक : शुभ तारिका पत्रिका
    अम्बाला छावनी - हरियाणा
    ( WhatsApp से साभार )

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