" हमारे साथ कभी अच्छा नहीं हुआ। हमें हर कदम पर धोखे मिलते रहे" रोती हुई रीना ने अपनी सहेली सीमा से कहा ।
सीमा सिगरेट का कश खींचते हुए बोली "क्या करूं, मेरी तो किस्मत ही खराब है। मां-बाप ने पढ़ाई के लिए शहर भेजा था लेकिन मैं यहां आकर बर्बाद हो गई"
रीना "कॉलेज की हवा ही कुछ ऐसी है। यहां का ग्लैमर और चकाचौंध देखकर हम लड़कियां दिन में सपने देखने लगती हैं"।
सीमा "अचानक जैसे सपनों को पंख लग गए । चारों तरफ रंगीन नजारे नजर आने लगे। ऊंचे पूरे अमीर रोबिले लड़के देखकर मन बल्लियों उछलने लगता"।
रानी "चकाचौंध में अंधी हमें अपने अच्छे बुरे का भी ध्यान नहीं रहा । हम नशे के कारोबार में फंसते चले गए"।
सीमा "हमेशा पापा मम्मी से झूठ बोलते रहे। पार्ट टाइम जॉब के बहाने हमने रंगरेलियां मनाई"।
रानी "मेरे पापा ने अपनी दो बीघा जमीन बेचकर मुझे डॉक्टर बनाने का सपना देखा लेकिन मैं कहीं की भी नहीं रही"।
सीमा "मेरी मम्मी हमेशा कहती रही मेरी बेटी मेरा अभिमान है। उन्होंने आज भी सोशल मीडिया पर यही स्टेटस डाला हुआ है"।
रानी "अब तो मुझे अपने से ही घिन आने लगी है ।बॉयफ्रेंड हमने कपड़ों की तरफ बदले। फिगर ठीक करने के लिए एबॉर्शन करवा लिए"।
सीमा "तुम सच कह रही हो। नशे और दौलत की चाह ने हमसे हमारे अंदर की लड़की को छीन लिया"।
रानी "हमने अपने हाथों से माता-पिता के दरवाजे बंद कर लिए । पहले हम रिश्ते ठुकराते रहे। अब हमसे कोई रिश्ता करने को तैयार नहीं"।
विमला "अरे,तुम दोनों ने अपना क्या हाल बना रखा है ? तुम्हारी शादी, तुम्हारे हस्बैंड, तुम्हारे बाल बच्चे, सब कैसे हैं"?
सीमा "अच्छी खासी तो तुम्हारे सामने खड़ी हुई हैं। क्या हम दोनों सहेलियां तुम्हें खालिस औरत नजर आ रही हैं"?
रंजना अपने ससुर से बोल रही थी-"पापाजी मैं देखती हूँ कि जब कभी मेरे और राहूल में किसी बात पर बहस होती हैं । आप मम्मी को लेकर बाहर निकल जाते हैं। जबकि आपको राहुल को समझाना चाहिए। लेकिन आप हमारी बातों को नजरअंदाज कर जाते हैं"।
पापा बोले-"नहीं बेटी ऐसी कोई बात नहीं हैं। जब तुमदोनों में बहस होती हैं या किसी बात को लेकर तकरार होने लगती हैं, तब मैं और तुम्हारी सास बीच में पड़कर किसी तरह का कोई पक्षपात नहीं करना चाहते हैं"।
वे बोले-"बेटी एक तरफ मेरा बेटा हैं तो दूसरी तरफ मेरी बहू भी बेटी के समान हैं। तुम दोनों में जब कोई विवाद होता हैं तो मैं और तुम्हारी सास धीरे से निकलकर मंदिर चले जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते कि यह तकरार तुम दोनों का वर्षों तक चलता रहे ताकि तुमदोनों के अलावे...तुम्हारी जिंदगी में तीसरा का कोई चक्कर न रहे अन्यथा जिंदगी अधूरी और खालीपन से भर जायेगा।
मैं सोच रही थी कि यथार्थ मेंं पापाजी का सोच सही था, क्योंकि उनदोनों का हस्तक्षेप नहीं होने के कारण रोहित के प्रति मेरा विचार हमेशा ही सकारात्मक रहा था और मेरे भैया रोशन मम्मी-पापा के हस्तक्षेप के कारण शनै- शनै नकारात्मक सोच की स्थिति में पहूंच गये थे और तलाक की नौबत आ गयी....।।
पापा के इस सोच को अगर मेरे मम्मी-पापा समझ जाते तो ....आज भैया का भी घर टूटने से बच जाता।
आक्रोशित स्वर में क्रोध थाली से एक निवाला निकालता है और ग़ुस्साए तेवर लिए थाली से उठ जाता है।
समाज की पीड़ित हवा के साथ, पीड़ा से लहूँ लहूलुहान कफ़न में लिपटी स्त्री जब दहलीज़ के बाहर पैर रखती है तभी उलाहना से सामना होता है।
” पुरुषों के समाज में नारी हो, तूने नारीत्व छोड़ पुरुषत्व धारण किया ? उसी का दंड है यह ! "
श्यामेश्वरी और वनवारी की शादी को लगभग दस वर्ष बीत चुके थे मगर अभि तक उनके घर बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी थी, दोनों को अपना आँगन बहुत ही सूना सूना लगता था। सरकारी, प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर काट काट कर थक चुके थे। श्यामेश्वरी एक दिन बड़ी ही उदास मुखमुद्रा लिए अपनी बालकनी में बैठी सोच में डूबी, आँखों में आँसू भरे हुऐ थे,तभी पड़ोस की आँटी, जो समाज सेविका है, श्यामेश्वरी की उदासी का कारण जानते हुए उसे बच्चा गोद लेने की सलाह देती है। श्यामेश्वरी और वनवारी इस सलाह को मान कर, एक बच्चा गोद लेकर उसका पालन पोषण अच्छी प्रकार से करते है,उसे किसी व्यवसाय में डाल देते है। वह जो कमाता था उसे स्वयं पर ही खर्च करता क्योंकि माँ बाप उससे कोई हिसाब किताब नहीं लेते थे। किसी ने सच ही कहा है कि जरूरत से अधिक लाड़ प्यार और गलत फरमाईशों को मानना घातक सिद्ध होता है। बेटे की जरूरतें बढ़ती गई, परिणाम स्वरूप वह जिद्दी और हिंसक प्रवृत्ति का हो गया। आखिर में दोनों ने घर उसके हवाले करते हुए एक दिन चुपचाप घर से कहीं निकल गए ।अपना व्यवसाय (दुकान) बन्द करके जब बेटा घर आता है तो घर में माँ बाप को अनुपस्थित पाकर इधर उधर आवाजे लगाता है, फिर देखता है बैठक के कमरे में मेज पर एक कागज पर कुछ यह लिखा होता है -'बेटा हम दोनों तुम्हारे दूसरे घर में रह रहे है, यदि आपने आना होगा तो इस पते पर आ जाना।' लड़के ने झट से पता पढ़ा और चल दिया। रास्ते भर वह सोचता गया, कि इस घर को जल्दी से बेच दूंगा फिर दूसरे घर में रहूंगा। दिये गये पते के मुताबिक वह वहाँ पहुंच जाता है। आगे बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था "बृद्धाआश्रम " लड़का हक्का बक्का रह गया।
सामने माँ बाप पर नजर पड़ी तो हैरान होकर पूछता है 'आपने तो कहा कि मेरा दूसरा घर कहीं है।
माँ बाप दोनों भर्राये गले से कहते है --'बेटा यही तुम्हारा घर है, जहाँ से हम दोनों तुम्हें लेकर गये थे ' बेटे को अपनी गलतियों का एहसास हो गया था ।वह सोचने पर विवश हो जाता है कि सब कुछ सहने के वावजूद यह रहस्य अपने हृदय में छिपाये हूये मेरे पुण्यदायी माँ बाप आज इस रहस्य से पर्दा उठाने पर कितने मजबूर हुये होंगें। उसमें आत्मग्लानी का भाव भर जाता है, चरणों में गिर जाता है और अपनी गलतियों का पश्चाताप करने हेतु।
शिक्षा-'ईश्वर द्वारा प्रदत्त जीवन सदैव सुखकर मानों'
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 082
लो मैं अब बैठ गई
लक्ष्मी मां की फोटो पर फूलों का हार चढ़ाने के बाद अमृत और उसकी पत्नी राधा ने माता जी की धूप आरती की । दीप आरती और फिर नैवेद्य अर्पण करने के बाद दोनों मां की तस्वीर के समक्ष खड़े होकर प्रार्थना में लीन हो गए । धन धान्य और सुख समृद्धि किसको नहीं चाहिए । मां लक्ष्मी के पास तो इसका अनंत भंडार है । प्रार्थना पूरी करने के बाद फूलों की कुछ पंखुड़ियां टोकरी में से उठाकर अमृत राधा के चरणों पर डालने लगा । उसके चेहरे पर राधा के प्रति आदर और सम्मान के भाव थे ।
" ये क्या ! "- राधा ने पूजा ।
" मेरे घर की तुम लक्ष्मी हो । "
सामने मंदिर में फोटो फ्रेम के अंदर कमल के फूल पर खड़ी हुई मां लक्ष्मी हंस पड़ी ।
" भक्त , आज तुमने मुझे अपने वश में कर लिया । मैं वहीं तो टिकती हूं जहां नारी का सम्मान होता है । तुम्हारे इस फ्रेम में मैं सदियों से कमल के फूल पर खड़ी थी । मैं अब तुम्हारे घर की इस चौकी पर विराजमान होती हूं । "
- मीरा जगनानी
अहमदाबाद - गुजरात
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तीनों भाई अपनी इकलौती बहन ममता की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। आज घर का बंटवारा जो होना था। इन सभी की पत्नियां पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर अपनी ननद ममता के प्रति आशंकित थीं की पता नहीं वह भी न अपना हिस्सा मांग ले। तीनों भाइयों की मां जान्हवी देवी गंभीर किंतु शाँत मुद्रा में बैठी सभी के चेहरों को पढ़ रही थीं।
घर के सामने कार आकर रुकी। ममता का आगमन हो चुका था। ममता काफी खुश दिखाई दे रही थी। सभी ने ममता का स्वागत किया, भले ही दिखावे के लिए ही सही। छोटी बहू अपनी दोनों जेठानियों के कान में धीरे से फुसफुसाया... "देखा दीदी... ननद जी कितनी खुश हैं।" जेठानी नजरें घुमाते हुए व्यंगात्मक लहज़े में बोल पड़ती है... "क्यों नही खुश होंगी... आज जो मन की मुराद पूरी होने वाली है।"
"ठीक कह रही हो भाभी... सच में मेरी वर्षों की इक्षा पूरी होने वाली है"
"हम लोगों को पहले ही मालूम था ननद जी...इतनी आसानी से हमें सुख - चैन थोड़ी न मिलने वाला है"
"लेकिन छोटी तुम्हे किस चीज की कमी है जो हम लोगों की घर - गृहस्ती को..." कहते - कहते छोटा भाई रुक गया।
"भैया...मैं आज रुकने वाली नहीं हूं... आज अपना अधिकार लेकर ही रहूंगी" इतना कहकर ममता भावुक हो गई। ममता की बात सुनकर सभी भाई मायूस हो गए। "छोटे भैया...याद करो...मैं सबसे छोटी होने के बावजूद, मां के साथ नहीं सो सकती थी...तुमने सदा मां पर अपना ज्यादा अधिकार जताया... मां न चाहते हुए भी तुम्हारी बात रखी... मां से तुम्ही कहते थे ना कि अगर अपनी लड़की को अपने पास सुलाया तो मैं तुम्हारी लड़की को घर से भगा दूंगा...याद करो भैया...मुझे मां के सामीप्य की कमी आज भी महसूस हो रही है"
"आप लोग चिंता मत करो...मैं संपत्ति में कोई भी हिस्सा लेने नहीं आई हूं... मैं तो अपने उस हिस्से का प्यार और दुलार लेने आई हूं...जो मुझे बचपन में न मिल सका...मैं मां को लेने आई हूं।"
- सुधाकर मिश्र "सरस"
महू - मध्यप्रदेश
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"चल शहर चलते हैं?" शेर शेरनी से बोला।
"शहर? शहर में तो आदमी रहता है।"
"रहता तो है, लेकिन अब वो हमारी तरह बाहर नहीं घूमता घर में रहता है।"
"घर में क्यों?"
"क्योंकि बाहर कोरोना खड़ा है।"
"कोरोना क्या है?"
"राक्षस। जो इंसानों की कहानियों से बाहर निकल आया।"
"और अगर कोरोना ने हमें मार दिया तो?"
"तूने पहाड़ खोखले किए हैं?"
"न।"
"नदी गंदी की है?"
"बिल्कुल नहीं।"
"पेड़ काटे हैं।"
"कैसी बात करते हो।"
"तो फिर कोरोना तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा।"
"शहर जाकर तुम आदमियों पर मूँगफलियाँ फेंकना। मूँगफली न मिले तो छोटे-छोटे कंकर। जैसे चिड़याघर में आदमी हम पर फेंकता है।"
"मज़ा आएगा। लेकिन वो...वो कुछ नहीं कहेगा?"
"मैडम, चिड़याघर में हम उसे कुछ कहते हैं?"
"नहीं तो।"
"तो फिर आदमीघर में वह हमें क्या कहेगा?"
- शिवचरण सरोहा
शकूर पुर - दिल्ली
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क्रमांक - 085
पुण्य की कमाई
ज्वर में तपती मांँ को दवाई देने के बाद, रात भर उसके सिरहाने बैठ ठंडी पट्टी कर, प्रार्थना करते, जाने कब दोनों बेटा - बहू की आँख लग गई। भोर के उजाले के साथ ही सुगुनी देवी की कमज़ोर सी आवाज़ सुनाई दी - " पानी...।" अधनींद की खुमारी से निकल, आँखें मलते हुए, भैरूं, प्रभुकृपा का प्रत्यक्ष गवाह बन, माँ को घड़े में से पानी लेकर पिलाने लगा। अगले दो - तीन दिन में ही माँ की तबीयत में सुधार आ गया और वह फ़िर से प्याऊ पर बैठने का मन बनाने लगी।
"अभी कहाँ हिम्मत है तुझमें, माँ, थोड़ा आराम तो कर ले।" चिंतित भैरूं ने सुगुनी देवी को प्यार भरा उलाहना दिया।
" बेटा, मेरा आराम तो वहीं तेरे बापू की बनाई प्याऊ पर ही है। झुलसाती गर्मी से बेहाल, प्यासे कंठ लिए, आते - जाते राहगीरों को अपने रामझरे से जब तक पानी न पिला दूँ, तब तक कहाँ मुझे चैन पड़ता है? दो घड़ी सुस्ता लेते हैं वो भी, पीपल की छाँव में। सारे पंछी भी प्यासे होंगे, राह देखते होंगे मेरी। उनके परिंडे भी भरने हैं। मेरे नियत काम तो मुझे ही करने होंगे, बेटा। और फ़िर अब तो मेरी तबियत में भी सुधार है, है ना?"
सुबह प्याऊ पर बैठी अपनी माँ के चेहरे पर खेलती पुण्य की कमाई से भरी, तृप्त मुस्कान देख , भैरूं इस उम्र में भी माँ के सेवाभाव को देख, नतमस्तक हो उठा।
- डाॅ. विनीता अशित जैन
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 086
मुक्कमल ज़िंदगी
शहर के व्यस्त चौराहे पर हुई भयंकर दुर्घटना में पति की मौत की खबर ने भोलवी को अंदर - बाहर से झिंझोड़ कर रख दिया। आई इस विपत्ति पर स्तब्ध वह अपने दो मासूम बच्चों को सीने से लिपटा कर आँसुओं का समंदर बहाने लगी। सास - ससुर पर जैसे बज्रपात हो गया। और वे चेतना शून्य हो गए। ई - रिक्शा चलाकर पूरे परिवार का भरण - पोषण करने वाला उसका पति उसे ता जिंदगी अकेला छोड़ कर बेशुमार मुसीबतों की फेहरिस्त थमा गया। जिसमे दर्ज थे दो जून की रोटियों की जुगाड़। पहाड़ जैसी वैधव्य ज़िंदगी, बीमार सास - ससुर की तीमारदारी, बच्चों की तालीम वगैरह-वगैरह.... समझ नहीं पा रही थी की आखिर घर को कैसे संभाले।
बेवक्त पतझड़ के इस क्रूर मौसम में अपनो ने सहायता के हाथ बढ़ाने की बजाय मशवरों की झड़ी लगा दी।
दूसरी शादी कर लेने, सास - ससुर को आश्रम भेज देने, बच्चों को लेकर गाँव चले जाने, घर - घर जाकर साफ - सफाई के काम करने इत्यादि...। सारे मशवरों ने उसके दुखों के सागर को और गहरा कर दिया। इसके पहले कि वह दुखों के सागर में डूब जाए उससे उबरने के लिए उसने फैसला लिया कि खुद तैरना सीखना होगा।
बुलंद हौसले की ज़मीन पर उसने अपना फैसला दर्ज किया। घर की थोड़ी बहुत जमा - पूंजी से उसने ई-रिक्शा का इंतजाम किया और अपनी रुकी हुई जिंदगी को सड़क पर उतारकर उसे मुकम्मल रफ्तार देने में जुट गई। तानों , उलाहनों, फिकरों से भरी कंटीली, पथरीली उबड़ - खाबड़ रास्तों को तय करते हुए वह खुश थी कि जिस मोड़ पर उसके पति का साथ छूटा था वहीं से नई जिंदगी की शुरुआत की थी और जहां से एक नई सुबह की दस्तक उसे साफ सुनाई दे रही थी।
- पूनम सिंह
रोहिणी - दिल्ली
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मोहना कनाडा से आई शमशेर की चिठ्ठी पढ़ कर गुरदित को सुना रहा था | गुरदित की आँखों में ख़ुशी और दुःख के आंसू एक साथ बह रहे थे | चिठ्ठी के शब्द कम अतीत की बातें ज्यादा याद आ रही थी |
“शमशेर ओ शमशेर कहाँ है , यार तेरा दसवी का रिजल्ट आ गया ,ओ तू ताँ कमाल कारता 90 परसेंट नंबर आए है तेरे ,ओ कहाँ है तू ?” मोहना चिल्लाता चिल्लाता बेबे के पास रसोई में पहुँच गया | बेबे लाओ मुहँ मीठा कराओ शमशेर ने तो पुरे गाँव में वाह वाही करा दी | बेबे भी एक गोंद का लडू मोहने को देते हुए दूसरा शमशेर को खिलाने के लिए बाहर पशुओं के बाड़े की ओर चल दी |
शमशेर ने दिन रात मेहनत इसलिए की थी कि अगर उसके अच्छे नंबर आ गए तो वो चंडीगढ़ जाएगा पढ़ने |लेकिन पिता गुरदित की बात सुनकर उसे लगा उसके तो सपने हो गए स्वाहा | शमशेर को साफ साफ़ समझा दिया गया दो साल तो यहीं पास के गॉव में साइकिल पर जाकर ही पढ़ना पड़ेगा | इतने सीमित साधनों में तुम्हेँ पढ़ाया जा रहा है ये क्या कोई छोटी बात है |
शमशेर ने साथ वाले गॉंव में दाखिला तो ले लिया पसंद के विषय ना मिलने पर पढ़ने में वो रूचि ना रही जो पहले थी | एक साल पूरा होते होते शमशेर की आदतें , सिद्दांत ,दोस्ती सब कुछ बदल गया | गुरदित भी इन बातों से अनभिज्ञ नहीं था पर सोच नहीं पा रहा था कि वो कहाँ गलत हो गया था और सब कुछ ठीक कैसे करे |पैसे की कमी के कारण उसने अपनी सुंदर फूल सी बेटी बसंतो को भी गॉंव वालों के कहने में आकर जल्द ही डोली में बिठा दिया था | यही सब सोचकर उसका दिल बैठा जा रहा है और रास्ता सूझ नहीं रहा |
इन्हीं सब परेशानियों के बीच बसंतो आई अपने जेठ गगनदीप के साथ जो कनाडा से आया हुआ था | बाप का उतरा चेहरा देखकर और भाई की सपनीली बातें सुनकर उससे कुछ छुपा ना रह सका | गगनदीप ने सलाह दी , “ बापू पंद्रह लाख तक का इंतजाम कर दो तो मैं शमशेर को अपने साथ ले जाऊंगा वहां काम में खप जाएगा तो नशा पता भी छोड़ देगा , बंदा बन जाएगा बंदा |” यही दो किले जमीन ही तो है मेरे पास बेच दूंगा तो मुझे तो दिहाड़ी ही करनी पड़ जाएगी |
“ बापू आज बच्चे के लिए जमीन नहीं बेचोगे तो वो कल नशे के लिए बेच देगा | जमीन बचा कर भी क्या करोगे जब रोज बच्चे को तिल तिल कर मरता देखोगे | जमीन तो बिकनी ही है बच्चे की ख़ुशी के लिए आज ही बेच दो | आपने भी काम ही करना है दूसरे के खेत में कर लेना और बापू कभी तो बच्चे की हँसते की आवाज सुनोगे |” गुरदित हैरान हो कर बसंतो को देख रहा था कि ये बेटियाँ भी ना जाने कैसे कब इतनी बड़ी हो जाती हैं कि माँ बाप को सलाह देने लग जाती हैं |
- नीलम नारंग
मोहाली - पंजाब
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"ओ सब्ज़ी वाले -- सारी सब्जियाँ एक ही पॉलिथिन में डाल कर मत दिया करो!" जैसा पिछली बार दे दिया था।
"काहे-- मैडम जी? "
"अरे! घर जाकर फिर सब को छाँट कर अलग- अलग करने का काम बढ़ जाता है ना। "
"हाँ ! सो तो है।" लेकिन का करें - सरकार तो पॉलिथिन पर रोक लगा रही है।बड़ी मुश्किल से चोरी -छिपे आप जइसन ग्राहकों को ये देते हैं।
"अरे हाँ! मैं भी तो रोज तुम से ही सारी सब्जियाँ खरीदती हूँ ना।" फिर हम ग्राहक तो अपनी सहूलियत का अधिकार भी चाहेंगे ना। माना पॉलीथिन पर्यावरण के लिए दीर्घ काल में नुक़सानदेह है पर आज इससे कितनी सहूलियत होती है।
उसी ठेले से गाजर चुनती नीरा देर से दोनों का वार्तालाप सुन रही थी। अंत में नीरा से रहा ना गया। उसने महिला को घूरते हुए देखा, और तीखे स्वर में पूछा--- और आपका अधिकार के साथ कर्तव्य क्या है ?
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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"मैं नहीं रह सकती तेरे बगैर! तुम से ही मेरा संसार है!"
अंजु जब भी समर्पित भाव से अपने पति से ये बात कहती तो पति का पुरुषत्व अपनी मूंछें ऐंठता हुआ पत्नी को एक दीन - हीन, लाचार, अस्तित्व हीन नारी समझा करता। अंजु की यह आस मन में रह जाती कि कभी पति भी पलट कर यही बात कहे...
इसी आशापूर्ति के लिए एक दिन अंजु ने कहा "सुनिए जी ! मैं कुछ दिनों के लिए यदि मायके चली जाऊँ तो आप रह लोगे न..?"
"हाँ जाओ! मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। घर से अच्छा खाना तो बाहर मिल जाता है।बाई घर के सारे काम कर ही देगी।बाहर से थका -हारा आऊँगा तो लेटते ही नींद आ जाएगी। तुम्हारी जरूरत ही क्या है?"
अपने अस्तित्व के हजारों टुकड़े गीले आँचल में दबाकर घर से निकल पड़ी अंजु!
पति के शब्दों से घायल गिरती -सँभलती सड़क पार कर रही थी कि एक वाहन ने आकर कुचल दिया।जमीन पर जड़ पड़ा था अंजु का शरीर और पिघल रहा था पति का दंभ...
एक मौन चीख गूँज रही थी वातावरण में..
" लौट आओ अंजु। मुझे बहुत जरूरत है तुम्हारी। मैं नहीं रह सकता तुम्हारे बगैर..."
बोल उठी अंजु की आत्मा.
"अब बहुत देर हो चुकी है"
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
राँची - झारखंड
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सुशील अपने शालीन व्यवहार के लिए घर परिवार व समाज के साथ साथ विद्यालय में भी जाना जाता था। विद्यालय में उद्घाटन समारोह होना था। उसके लिए सुशील को मंच संचालन के लिए कहा सुशील ने कहा "ठीक है"। मैं मंच संचालन कर लूंगा।इलाका विधायक के साथ सांसद ने मुख्यातिथि रूप में शिरकत करनी थी। विधायक के गुर्गों को पता चला कि सुशील विद्यालय में मंच संचालित करेगा। उन्होंने एक योजना पर काम किया
इसकी भनक स्थानीय विधायक को भी नहीं थी। जैसे मुख्यातिथि मंच में विराजमान हुए तो सांसद के पी. ए को लेकर विधायक का गुर्गा पंहुच गया और सुशील को अपने तरीके से मंच चलाने के लिए कहने लगे। सुशील ने समझबूझ से काम लिया सीधे ही मुख्यातिथि सांसद से कहा कि आप क्या जल्दी में जाने वाले है। तो आपका भाषण करवा दूं। सांसद मुख्यातिथि ने कहा कि अगर इलाका विधायक चाहते हैं! तो मैं जल्दी चला जाऊंगा। विधायक साथ बैठे थे। आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? विधायक ने सुशील से कहा।
क्योंकि आपके महामंत्री खड़े है! कह रहे हैं सांसद को जल्दी जाना है। सुशील ने कहा।
विधायक ने महामंत्री को बुलाया और कहा कि सुशील को अपनी तरह से मंच का संचालन करने दो वहां मंच के पास क्यों मजहबा लगाया है? विधायक ने महामंत्री को फटकार लगायी।वहां से महामंत्री तत्काल हट गया। एक महीने के अंतराल महामंत्री को उसके पद से हटा दिया गया। समय का चक्र चला। सुशील को मंत्री का विशेष अधिकारी नियुक्त कर दिया गया । महामंत्री मुंह ताकता रह गया।
- हीरा सिंह कौशल
मंडी - हिमाचल प्रदेश
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आज श्रुति मन कहीं लग नहीं रहा था । वह पार्क में बैठने के लिए चली आई । आकर एक बेंच पर बैठ गई और सामने बच्चे खेल रहे थे, कुछ बुजुर्ग धीरे-धीरे टहल रहे थे, कुछ युगल घास पर बैठे बतिया रहे थे ।
बैठे-बैठे कुछ दिन पहले की बातें श्रुति के मन में चलने लगा 'अवि को कितने प्यार से समझाई थी कि देखो काम अपनी जगह और रिश्ते अपनी जगह काम के लिए रिश्ते को भूला नहीं जाता । लेकिन मेरी बातों का उस पर कोई असर ही नहीं होता । दो दिन से न तो फोन करता है और न ही कोई मैसेज। मैं फोन करती हूँ तो नोट रिचेबल आता है । अब क्या करूँ , कैसे समझाऊँ उसे कि वह बहुत-बहुत दिनों के लिए जब बाहर जाता है तो मुझे अकेले मन तो नहीं ही लगता है , बल्कि बात नहीं होने से चिंता भी होने लगती है । जाने कैसे-कैसे ख्याल आने लगते हैं । कहीं मुझे झूठ तो नहीं कहता । मेरे अलावा कहीं कोई और भी तो नहीं उसकी जिंदगी में ?'
"ना बाबा ना .. " सहसा उसके मुंह से निकला और एकदम से सिहर सी गई वह ।
तभी उसका मोबाइल बज उठा । रिंगटोन से ही समझ गई अवि का ही फोन है । ये रिंगटोन अवि ने ही मेरे मोबाइल में सेट कर दिया था । 'क्या मालूम यहाँ से दूर रहने की उसकी मजबूरी मेरे लिए भी क्या सोच रहा हो ?'
आंखें पनीली हो गई और बुदबुदाई 'धत् मैं भी ना जाने क्या क्या सोचने लगी थी । पर भूला नहीं है वो..' इधर मोबाइल में रिंगटोन बज रहा था "भुला नहीं देना जी, भुला नहीं देना, जमाना खराब है ... "
- पूनम झा 'प्रथमा '
कोटा - राजस्थान
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दिल्ली में रहने वाले श्याम सुंदर जी के पास गांव से फोन आया।
" नमस्ते श्याम सुंदर जी, मैं आपके गांव से आपका पड़ौसी शर्मा बोल रहा हूं... पंडित सेवाराम शर्मा... पहचाना...! कैसे हो बेटा...? सुनों, आपके पिताजी बाथरूम में गिर पड़े हैं... हमने उन्हें तुरंत गांव में डॉक्टर को दिखाया...डॉक्टर साहब ने फर्स्ट एड के बाद उन्हें पास ही के शहर के एक बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया है... आपकी वृद्ध माता जी अकेली हैं... आप तत्काल यहां आइए... उन्हें संभालिए... और हां... अस्पताल का हिसाब भी करना है...।" सेवाराम पंडित ने एक ही सांस में अपनी बात खत्म कर डाली। फोन का बिल जो बढ़ रहा था।
" अंकल जी नमस्ते... आपकी बड़ी मेहरबानी... आप लोगों के भरोसे ही तो मम्मी- पिताजी गांव में हैं और हम बेफिक्र हैं...।" कहकर श्यामसुंदर ने एक लंबी सी सांस ली।
" मेहरबानी काहे की बेटा... इंसान, इंसान के ही काम आता है...।"
इसी बीच श्यामसुंदर ने अपनी अगली भूमिका तैयार कर ली।
" अंकल जी, क्षमा चाहता हूं...कल सुबह ही मुझे बिजनेस समिट में अमेरिका जाना है... कृपया आप देख लीजिए... जो भी खर्च होगा भिजवा दूंगा...।" इतना कहकर श्याम सुंदर ने फोन ऑफ कर दिया। उसके पास कुछ और कहने- सुनने का समय ही कहां था?
सेवाराम जी को इस संपन्न बेटे से ऐसी तो उम्मीद नहीं थी। वे काफी देर तक फोन को अपलक देखते ही रह गए।
- रशीद ग़ौरी
सोजत सिटी - राजस्थान
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क्रमांक -093
खोया हुआ आदमी
रवि के दादाजी काफ़ी उम्र के थे ।उन्हें अपने स्वास्थ्य के लिए टहलना भी ज़रूरी था ।नहीं तो शुगर बढ़ जाता है ।
दादा जी कहते हैं आज के समय ऐसा होगा कोई नहीं जानता था ।मनुष्य एक दूसरे से मिलता नहीं ।अपने दिल की बातें नहीं कर सकता है ।सभी अपने अपने पिंजरे /घोंसले में बंद रहते हैं ।
दादाजी की उम्र हो चुकी थी ।उनकी याददाश्त कभी कभी काम नहीं करती थी ,किंतु दिल से इस बात को स्वीकार नहीं करते थे ।अपने आत्मविश्वास से जी रहे थे ।एक दिन शाम के सैर करने में अपने सड़क छोड़ किसी दूसरे रास्ते को पकड़ कर चले जा रहे थे ।क्योंकि उस गली में पुराने थे ।तो सभी एक दूसरे को पहचानते थे ।रवि का मित्र उन्हें देख रहा था ।दादाजी !दादाजी !आप अपने गली से भटक गए हैं ।किंतु अपने ज़िद्दी स्वभाव के कारण मानने को तैयार नहीं थे ।खोया हुआ आदमी (दादाजी)को रवि के दोस्त ने रवि के घर पहुँचा दिया।
- सुधा पाण्डेय
पटना - बिहार
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" देव! यह तुम्हारे साथ कौन आया है?" पंडित शशि शर्मा ने पुत्र से घर में प्रवेश करते ही सवाल किया।
" पिताजी! यह मेरे बचपन के दोस्त सतीश है।" युवा ने मुस्कान चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा।
"पर बेटा..." पिताजी कुछ कहते- कहते रुक गए ।
"पिता जी! हम दसवीं तक गांव के स्कूल में पढ़े थे, अब यह अपने शहर में इंजीनियरिंग कर रहा है।" "अच्छी बात है।" पिताजी ने बात में बात मिलाई।
" पिताजी, इसका शहर में कोई नहीं है... हमारे पास एक कमरा खाली है ..तो उसे इसको दे देते हैं।" देव ने पिता की स्वीकृति लेने की अपेक्षा की।
" पर यह तो शायद... उस जाति... से.." पिताजी का अधूरा वाक्य बहुत कुछ कह रहा था। "पिताजी,आप तो अध्यापक हो... फिर भी..."
"बेटा, देखो जाति- धर्म तो निभाना ही पड़ता है ।"
बीच में टोकते हुए पिताजी ने कहा।
"अच्छा पिताजी, जब आप बीमार होकर 5 दिन मेडिकल में एडमिट रहे तो आपके कपड़े.. चारों तरफ की सफाई... यहां तक कि भोजन परोसना... सब काम स्पेशल वार्ड में कौन करता था?" देव ने पिता से आपत्तिजनक ढंग से उत्तर दिया।
"मगर बेटा, बीमारी में तो..."
" नहीं पिताजी, हम विद्यार्थी एक ही जाति के हैं इसलिए दोनों भाई हुए । याद करो.... आपने एक दिन हमारे स्कूल की प्रार्थना सभा में क्या कहा था... बच्चों तुम सब भाई -भाई हो ,छात्र ही तुम्हारी जाति है और विद्या तुम्हारी माता है।" बेटे ने बीते समय को पल में ही स्मृतिपटल पर प्रस्तुत करा दिया।
पंडित शशि शर्मा ने दोनों के पुराने भाईचारे को देखते हुए सतीश को घर में रहने की अनुमति दे दी ।
- डॉ चंद्रदत्त शर्मा चन्द्र
रोहतक - हरियाणा
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क्रमांक -095
राजनीति और शिक्षक
सीता नौकरी और घर में अपने बोधि उत्तरदायित्व का निर्वहन करते हुए निरन्तर उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रही थी l अपने क्षेत्र में उसका काफी सम्मान था l प्रधानाचार्य पदोन्नति के बाद भी पूर्ण निष्ठा और लगन से उसने कितनी ही मिसालें कायम की और उसे राज्य स्तर पर सम्मानित किया गया l राजस्थान में इतने सारे जिले और उसमें भी एक छोटा सा गाँव जहाँ वह प्रधानाचार्य पद पर आसीन l
अचानक तीन साल बाद उसका तबादला शिक्षा मंत्री ने घर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूसरे जिले में कर दिया l घर में बूढ़ी सासू माँ और स्वयं दिल की मरीज़ l अनेक प्रार्थना- पत्र
देकर, स्वयं उपस्थित होकर कितनी ही बार गुहार लगाई, लेकिन गुहार कौन सुने l कहा-आप मिलने नहीं आईं l शिक्षा निदेशक के अधिकारों से तो हाथ ही काट दिए गए l सीता ने तीन महिने तक जॉइन नहीं किया, इस आशा में कि कुछ घर के नजदीक आ जाए l अब गुहार कहाँ लगे, सुनवाई नहीं हुई l हिम्मत कर उसने घर से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जाना-आना स्वीकार्य किया l प्रतिदिन तीन घण्टे आना-जाना, सासू माँ की सेवा और घर संभालना तय कर लिया लेकिन देखिए, यह कैसी राजनीति जो शिक्षक की जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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मालकिन - मीरा कल से तुम्हें खाना बनाने नहीं आना है । दो माह के पश्चात हम तुम्हें फिर से बुला लेंगे ।
मीरा - मालकिन ,पिछले दो माह से मैं खाना बना रही थी और सभी को मेरा बनाया खाना पसंद भी आ रहा था । साहब ,बच्चे और विशेष कर आपकी माँ यानि बच्चों की नानी को मेरे द्वारा बनाया खाना उनके गाँव के जैसा ही स्वादिष्ट लगता था फिर भी मुझे मना क्यों किया जा रहा है ? मेरे घर की आर्थिक दशा तो आपको पता ही है । दो माह में तो मेरा बजट ही बिगड़ जायेगा ।
मालकिन - मेरी माँ वापस जा रही हैं । उनके जाने के बाद तुम्हारे साहब की माँ यानि मेरी सासू माँ दो माह के लिए यहांँ आ रही हैं ।
मीरा - मालकिन आपकी सासू माँ की उम्र तो आपकी माँ से
दस वर्ष अधिक है । फिर कैसे ?
मालकिन - चुप रह । बकवास मतकर ।
- निहाल चन्द्र शिवहरे
झाँसी - उत्तर प्रदेश
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प्रदीप को बधाई देने वालों का तांता लगा था।मकान व उसी में नए ऑफिस का उद्घाटन,सोचा भी नहीं था आज उसकी शान निराली थी । बधाइयां लेते धन्यवाद करते हाथ व मुंह दुखने लगा था।
रात हो गई सब चले गए,अजीब सी खुशी भरी थकान, थकान भी नहीं उल्लसित उत्साहित मन पलकें मूंदने तैयार ही नहीं थे , खुशियां आज उसके चारों ओर नृत्य कर रही थी।
पैसों की तंगी के चलते बारहवीं तक ही पढ़ पाया था और पिता की अचानक मृत्यु के बाद घर की जिम्मेदारी। बहुत आहत था । मामूली सी अकाउंटस की 4000रू.की नौकरी करते पसीना बहाते दस साल गुजर गए और आज,आज उसने अपने ऑफिस में चार सी.ए को नौकरी दी है, बाकी स्टाफ अलग।यह उन्नति कम तो नहीं।
आज उद्घाटन में सारे रिश्तेदार ताऊ की लड़कियां, चचेरी बहनें,चाचीयां,ताई,ताऊ, सभी के खुशी से दांत बाहर गिर रहे थे । तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे।
तभी एक बहन आई व कहने लगी भैया , मुझे भी सिखाना और नौकरी दिलाना इन दिनों परेशान हूं और उसने हामी भरी।
याद आया उसे वह दिन जब वह चचेरी बहन की शादी में गया था,सबने उसे हिकारत भरी नजरों से देखा था खाने तक को नहीं कहा । उसने काम बताने कहा तो मना कर दिया ,डर गए कही कुछ पैसों में हेर-फेर न कर दे। दादी ने जरूर लाड़ किया और खाने को कहा, वह भरी आंखों से घर आया था।
दस साल बाद यह वही लोग हैं जो उसकी तारीफ करते गले लगाते नहीं थक रहे थे।
आज फिर आंखें भर आई ।आज आंखों में दुख के आंसू न थे ,मिश्रित आंसू खार व मिठास लिए गालों पर ढुलकते हुए उससे पूछ रहे थे तुम्हारा समय बदल गया है या ये लोग , फिर आंसुओं नें हंसकर कहा - तुम तो वही हो ,यह तुम्हारा नहीं, तुम्हारे बदले समय , तुम्हारी धन दौलत और तुम्हारी प्रतिष्ठा का सम्मान है ।
आंसूओं ने हौले से कानों में कहा अब सो जाओ समय बहुत हो गया है, बहुत रात बीत गई तुम्हें कल समय से उठना है और कड़ी मेहनत करते हुए धन दौलत और मान प्रतिष्ठा को कायम रखना है। अगर ऐसा नहीं किया तो समय फिर बदल सकता है।समय की कद्र करो।
- डॉ.संगीता शर्मा
हैदराबाद - तेलंगाना
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क्रमांक - 098
चिराग
उबासी लेते हुए अर्षदीप ने आपनी दादी मां की गोद में सिर टिका दिया ।
अरे ना ,मेरे बच्चे को तंग ना करो।
अर्षदीप ने सिर खुज़लाते हुए दादी मां के पास शिकायत करते हुये कहा,' मुझे मारा है इसने ।
--कोई बात नहीं मैं मांरुगी इसे ।
'आ हा ! दादी मारेगी ,दादी मारेगी।'
'सिर पर चढ़ा रखा है , कोई सीख ना लेने देना।'
'तेरे को किसने सीख दी है ? आया बड़ा सीख देने वाला।'
'मुझे सीख दी है, मेरे बापू ने ।'
'अच्छा ! मैंने कुछ नहीं दिया. . . ?'
' आप ने तो सिर्फ मारा है,झिड़की दी है ,कान खींचे हैं ।'
'मैंने . . .मारा है .?'
'नहीं मां , सिरियस मत हो ,आपकी नसीहत को कैसे भूल सकता हूँ । तुम तो मेरा खुदा हो।'
' वाह ! मेरे लाल . . .।' आपने पोते के साथ ही मां ने (बुक्कल) बाहों में लेते हुये माथा चूम लिया।
'अब जाओ बेटा , पापा के साथ ऊँगली पकड़ कर जाओ।'
' ऊँगली पकड़ कर , आह. . .हा.ऊँगली पकड़ कर ।'अर्षदीप ने आपने पापा की ऊँगली जोर से पकड़ ली।
- डॉ नैब सिंह मंडेर
रतिया -हरियाणा
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वह चार बहनों में सबसे छोटी थी!
जो भी घर में आता पिता से सहानुभूति जताता...
चार बेटियां!!
अरे रे!
दहेज देते देते ही बूढ़ा हो जाएगा बेचारा... चिता को आग देने वाला भी कोई नहीं!
उस क्षण बेटियों को बेटा कहने वाले पिता का चेहरा भी मायूसी से भर उठता!
बड़ी बहन रुऑसी हो उठती!
मंझली बहनें गुस्से में बड़बड़ाती और उसकी आंखों में निश्चय की लाली उतर आती!
समय ने करवट ली! बड़ी दोनों बहनें विश्वविधालय मे प्रवक्ता चयनित हुईं और मंझली डॉक्टर बनी, और वो बनी- जिला कलेक्टर..
माता-पिता अब 'कलेक्टर भवन' में रहते हैं!
अब जो भी घर मे आता है, कहता है- 'काश हमारी भी होतीं ऐसी बेटियां'!
- अंजू अग्रवाल 'लखनवी'
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 100
बेटा नहीं बेटी
"दादाजी दादाजी आप भी मुझे पावनी पोता कहकर बुलाइए ना सिमरन के दादाजी उसको सिमरन पोता कह कर बुलाते हैं सिमरन को बहुत अच्छा लगता है, वह कहती है कि लड़के और लड़की में उसके घर में कोई फर्क नहीं होता है ।"
पावनी कि बातें सुनकर लता मुस्कुरा दी।
पावनी की बातों को सुन दादा जी बोले,"देखो बुआ आई है उससे पूछो उसको हम कभी बेटा बोले हैं?"
पावनी लता से पूछने आई और लता के ना कहने पर ठूनकते हुए बोली दादा जी "बुआ तो बहुत बड़ी है आप हमें पोता कहिए ना।" उसको ठूनकते देख लता को बचपन याद आ गया। आज तक पापा ने अपने जीवन में कभी भूल कर भी बेटा नहीं कहा। हमेशा बेटी और बेटी की तारीफ । उस वक्त मन में एक मलाल था। खैर पापा के मना करने पर पावनी रूठ गई मुँह फुलाकर दादाजी के कमरे में बैठ गई।
दादाजी पावनी को समझाने लगे "तुम्हारा भाई कभी नहीं कहता कि हमें पोती कह कर बुलाओ फिर तुम क्यों कहती हो कि हमें पोता कहकर बुलाइये ?"
इस पर पावनी कहती है कि "पवन तो लड़का है ।
दादाजी उससे कहते हैं "तो क्या हुआ तुम भी तो लड़की हो तुम्हें क्यों दूसरे कि पहचान चाहिए। तुम जो हो खुद में पूर्ण हो। तुम कह रही थी कि सिमरन के दादाजी कहते हैं कि बेटा बेटी में फर्क नहीं फिर अपने पोते को पोती क्यों नहीं बोलते जब पोते को पोती बोलने में शर्म आती है तो पोती को पोता बोलने में कैसा गर्व ? जिस दिन सिमरन के दादा जी अपने पोते को पोती बोलने लगेंगे मैं भी तुम्हें पोता बोलूंगा।" पावनी को शायद ही दादाजी की गूढ़ बातें समझ में आई होंगी पर वह इस इंतजार में खुश हो गए कि कभी तो सिमरन के दादाजी अपने पोते को पोती कहेंगे।
- मिनाक्षी कुमारी
पटना - बिहार
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भीषण गर्मी।बस में भीड़ और लंबा जाम।यात्री पसीना पसीना हो रहे थे। छोटे बच्चे तो बहुत परेशान थे।
एक प्यासा बालक बहुत रो रहा था। मां पानी की तलाश में इधर उधर नजर दौड़ा रही थी।
उसकी बोतल का पानी समाप्त हो गया था।ऐसी स्थिति लगभग सभी यात्रियों के साथ थी।
जंगल का इलाका।दूर दूर तक पानी की कोई व्यवस्था नहीं। सब बेहाल। मां बेचारी क्या करें?
ड्राइवर ने शीशे से उस महिला और बच्चे की
स्थिति देख ली।वह अपनी सीट से उठा और
आगे खड़ी बस के ड्राइवर के पास जाकर एक गिलास पानी लाकर उस महिला को थमा दिया।
अब बालक पानी पी रहा था,उसकी मां के चेहरे से बेचैनी गायब हो गयी थी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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बहुत बहुत बधाई! आदरणीय बीजेन्द्र जैमिनी जी! (लघुकथा- 2022 - संपादक) संकलन पठनीय एवं संग्रहणीय भी | यदि पुस्तक रूप में संकलन आती है तो स्थायित्व भी प्रदान |
ReplyDeleteपुनः सादर वंदे!
-- डॉ. सतीश चन्द्र भगत
बनौली, दरभंगा, बिहार
( फेसबुक से साभार )
बहुत बहुत बधाई जी आदरणीय बीजेन्द्र जैमिनि जी (लघुकथा-2022- सम्पादक) पुस्तक रूप में संकलन हेतु अनन्त शुभकामनायें जी
ReplyDeleteमेरी लघुकथा शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteतहेदिल से आभारी हूं आदरणीय
ReplyDeleteमेरी लघुकथा को भी स्थान मिला ।
समय समय पर आयोजित लघुकथा सफर में मुझे भी अवसर मिलता रहा हैं ।
आगे भी ये सफर अनवरत चलता रहें । कुछ लघुकथा पढ़ी हैं, सभी बहुत सुंदर लघुकथाएं हैं ।जो कसौटी पर खरी उतरती हैं ।
इस के लिए सभी लघुकथाकारों को बधाई ,शुभकामनाएं।
आदरणीय सर का तहेदिल से आभार !
- बबिता कंसल
शकरपुर - दिल्ली
( WhatsApp से साभार )
नमस्कार बीजेन्द्र जी 🙏
ReplyDeleteआपको पहले तो 2022 की लघुकथा संग्रह के लिए अनेकानेक बधाई 🌹🌹
आपके इस सफर की ऋंखला अनवरत बिना किसी अवरोध के अनंत तक अपना परचम फहराये यही ईश्वर से कामना और आशीर्वाद है!
आपने मेरी लघुकथा को स्थान दिया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद 🙏
- चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
( WhatsApp से साभार )
आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी,
ReplyDeleteआपने मेरी लघुकथा 'औकात ' को लघुकथा 2022 में स्थान दिया, ह्रदय से आभार।
आपका पूरा बायोडाटा पढ़ा, सचमुच आप बहुत ही अच्छा काम कर रहे है। आप बधाई के पात्र हैं।
- डॉ. उषालाल
कुरुक्षेत्र - हरियाणा
( WhatsApp से साभार )
2018, 19 ,20 और 21 के साथ इस वर्ष भी इस 2022 के बृहत्तर लघुकथा संकलन से शोधार्थियों के लिए आपने शोध का एक अध्याय और तैयार कर दिया।
ReplyDeleteकथ्य और शिल्प की विभिन्नताओं से अंगीकृत संकलन के 100 कथाकारों की गर्वानुभूति के मूल में आपका लघुकथाओं से लगाव और अथक कार्य के लिए बहुत-बहुत हार्दिक बधाई और अनन्त शुभकामनाएं
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
( WhatsApp से साभार )