दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान - 2025
मेरी सोच मेरे प्राण आधार है जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक होना चाहिए !रचनात्मक जीवन का एक कोना है, जो घरेलू व व्यक्तिगत जीवनी से उपजा है., यह हमारे जीवन में पूर्वजों द्वारा दिए गए संस्कार संस्कृति रीति रिवाज कर्म क्षेत्र व्यवहार में ये सारी बाते बच्चों में दिखाई देती है जिससे उसे माता पिता की पहचान मिलती है सामने वाला अनुमान लगा लेता है अटाटूट कल्पनाशीलता जीवट जीवंत संवेदनाओं की सहज उपस्थिति रचनात्मक कर्म अपने कर्म क्षेत्र में नए अनोखे विचारों को जन्म देते हैं। कला, संस्कृति साहित्य, संगीत, अन्य रचनात्मक क्षेत्रों में अनोखे विचारों से जोड़ उन्हें वास्तविकता में बदल अपनी पहचान बताता है ।*प्रयोगशीलता के माध्यम से रचनात्मक लोग प्रयोग करने और नए तरीकों को आजमाने के लिए तैयार रहते हैं चाहिए नवाचार को बढ़ावा देते है कभी कर्म विनाशात्मक नहीं करना है समस्या का समाधान करते है !आपरेशन सिंदूर की तरह देश की समस्याओं का निराकरण भी रचनात्मक सोच के आधार स्तंभ होते हैं !व्यक्तिगत विकास में मदद करती है ! जैसे अपनी थाली की खीर मुझे खिलाओ और मैं अपनी थाली की खीर तुम्हें खिलाता हूँ ! हम दोनों को मिल बाँट कर जीवन के खट्टे मीठे अनुभव के साथ सामंजस्य बिठा कर उदर के रास्ते से मन जितना होगा ! रात के अंधेरे में गौरियाँ पक्षी अपने चूज़ों को बड़े प्यार से दाना खिलाती है ! घर के पिंजरे में तुम क़ैद नही हो, सभी मद मस्त आज़ाद ख़्याल के है ! किसी पर कोई पाबंदी नही है ! अपने निर्णय के लिए सभी स्वतंत्र है ! वृक्ष की तरह है ! गौरियाँ की तरह साहसिक कर्मों से सत्य अहिंसा शान्ति की सीख सीखा ,पिंजरे से मुक्त करा - प्रकृति की हरियाली में पर्यावरण को बचा लिया !यदि ऐसे ही घोंसले हर घर में होते ,परदेश नील गगन अट्टालिक़ाओ में बसेरा ना होता हैं! मन्नत जन्नत यात्राओं के सफ़र में होता ।और आत्म-विश्वास को बढ़ावा देती है।आने वाली पीढ़ियों की सोच सुधारना है कर्म बिन शक्ति नहीं ,विद्या बिन ज्ञान नहीं सोच बिन आधार नही है धर्म बिन आधार नहीं ! कभी कर्म विनाशात्मक नहीं करना है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक ही होना चाहिए. रचनात्मक कार्यों से अपना ही नहीं सबका भला होता है. खाना पीना सोना तो पशु-पक्षी, जानवर सभी करते हैं. मानव भी वहीँ करें तो फिर दोनों में अन्तर क्या रह जाएगा. हम यहां आए ही हैं रचनात्मक करने के लिए. विनाशकारी कार्य तो कोई भी कर सकता है. इससे समाज में नाम और दाम दोनों होता है. ये अच्छी बात है कि जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक होनी चाहिए. पर कभी-कभी होता नहीं है. चाहे भूलवश हो चाहे जान बूझकर आदमी विनाशात्मक कार्यक्रम कर ही देता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
जीवन में हम किसी भी कार्य को रचनात्मक रूप दे उसका सृजन करते हैं तो उसमें सभी का हित हो, खुशी मिले। उससे किसी प्रकार की क्षति ना पहुंचे इसका हम पहले विचार करते हैं। फिर चाहे वह विज्ञान के क्षेत्र में हो, अथवा कला, साहित्य या किसी समस्या के समाधान के लिए किया गया हो। लेखनकर, साहित्य के क्षेत्र में लेखक अपनी सुंदर रचनाओं द्वारा जीवन में घटित घटनाओं का , आने वाली खुशीयों का , ज्ञान-विज्ञान और जाने क्या क्या अपनी कल्पना रुपी पंखों से गागर में सागर भर साहित्य को नई उड़ान देता है। किंतु साहित्यकार जिस साहित्य का सृजन कर रहा है वह हमारे जीवन के लिए सकारात्मक हो। हमारे जीवन में प्रकाश पुंज बने। कला के क्षेत्र में भी अपनी कला का ऐसा प्रदर्शन करे के जीवन में उसकी कला सार्थक हो। विज्ञान के क्षेत्र में बहुत सी चीजों का आविष्कार होता है जो हमारे ज्ञान की ही उपज है। जिससे हमें लाभ -हानि दोनों होती है किंतु हमें यह ध्यान देना होगा कि जीवन में हम उनका अनुचित प्रयोग ना करें। जैसे ,हथियार, परमाणु बम बहुत सी चीजें हैं जो विनाश का कारण बन सकती हैं। हमें इसका उपयोग जीवन में करते समय ध्यान देना चाहिए कि यह विनाशात्मक ना हो। हमारे द्वारा किया गया सृजन सदा रचनात्मक हो।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
मानववादी का जन्म एक नश्वर है, पूर्व जन्मांतरानुसार पृथ्वी पर आता है, भले ही उसे पूर्व जन्म की बात याद न हो परंतु पुन: आने उपरान्त अपने शेष पूर्व कार्यों को क्रमबद्धानुसार सम्पादित करने का लक्ष्य बनाता है, और अग्रसर होता है, यह सत्य है इस जन्म में जिसने सुख भोगा जरुरी नहीं अगले जन्म में सुख भोगेगा। सुख में ही उसके कर्मों की पहचान होने लगती है, कहीं ना कहीं, कुछ न कुछ गलती जरुर करता है, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में समझ नहीं आता है, इसलिए जीवन का कार्यक्रम समानांतर वादी रचनात्मक होना चाहिए, कभी कर्म विनाशात्मक नहीं करना चाहिए। समय बताकर नहीं आता। आता है तो जो किया उसे धोकर भी रख देता है। इसलिए कर्म और अकर्म करने के पूर्व क्षणिक विचार कीजिए।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल भोगता है। आपने भी आदरणीय बिल्कुल सही कहा है। हम जीवन में शुभ कार्य करें, उनका फल शुभ हो और शुभ कार्यों की एक ऐसी लड़ी बनें जिसमें सबका भला और राष्ट्र का हित हो। यदि हमारे कर्म अच्छे नहीं होंगे तो वह परिवार और समाज को विनाश की और लेकर जाएंगे और निश्चित ही राष्ट्र का अमंगल होगा क्योंकि व्यक्ति- व्यक्ति से परिवार, समाज व राष्ट् बनता है। हमारे इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें बुरे कर्मों के कारण कई-कई कुलों का नाश हुआ है। इसी कारण हमें बुरे कर्मों से बचना चाहिए और यदि कोई अन्य व्यक्ति अच्छे कर्म नहीं कर रहा तो उसे अच्छाई की और जाने के लिए प्रेरित भी करना चाहिए।
- डॉ. संतोष गर्ग 'तोष'
पंचकूला - हरियाणा
कर्म एक ऐसा शब्द है जो हमारी जिंदगी के हर पहलू को गहराई से छूता है क्योंकि जीवन में जो भी घटनाएं और परिस्थितियां हमारे सामने आती हैं वो हमारे कर्मों का ही परिणाम होती हैं वास्तव में कर्म ही हमें सिद्धांत सिखाता है कि हमारी सोच और हर क्रिया का प्रणाम हमारे जीवन पर पड़ता है लेकिन आज की भागदौड़ में लोग अपने कर्मों की महता को भूल चुके हैं लेकिन सत्य यही है जैसा बीज हम बोते हैं वैसा ही फल हमें मिलता है तो आईये आज की चर्चा इसी बात पे करते हैं कि जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक होना चाहिए कभी कर्म विनाशत्मक नहीं करना चाहिए, मेरा मानना है कि जीवन में साकारात्मक और सृजनशील गति विधियों को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि विनाश और नाकारत्मकता को, अगर रचनात्मक की बात करें तो इसके अर्थ नई चीजों को बनाना, ऩई सोच होना साकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर अपने लक्ष्यों की और बढ़ना और जीवन के हर पल को सही तरीके से निभाना, और अगर विनाशत्मक की बात करें तो इसका अर्थ है नाकारात्मक सोच, भय निराशा तथा जीवन को नष्ट करने वाली सोच लेकिन देखा जाए हमारे जीवन का कार्यक्रम हमेशा रचनात्मक होना चाहिए न कि विनाशत्मक क्योंकि रचनात्मक ही हमारे निधारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मददगार साबित होता है, जिसके लिए हमें अपने स्वभाव, स्वास्थ्य, शारिरिक हो या मानसिक, खानपान, प्रयाप्त नींद तथा धैर्य इत्यादि की तरफ ध्यान रखते हुए कर्म करने चाहिए जिनसे हमारा सुखद वातावरण बन सके और ऐसे वातावरण में खुद व दुसरों को भी सुख दे सकें बशर्ते हमारा हर कार्य रचनात्मक हो न कि विनाशत्मक जिससे इंसान खुद तो डूबता है लेकिन दुसरों को भी डुबो देता है क्योंकि विनाश काले विपरीत बुद्धि, जब हम बिना सोचे समझे कोई भी कार्य करेंगे तो विनाश अवश्य आयेगा, जब कर्म ही विनाशत्मक होंगे तो सही गलत का अनुमान कैसे लगेगा, जब बुद्धि विपरीत चलती है तो गलत भी सही दिखने लगता है इसलिए जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक होगा तो हमारा हर कार्य हमारी सकारात्मक सोच के मुताबिक होगा और विनाशत्मक कार्य हमारी सोच का भी विनाश करके हमें उल्टा सोचने पर मजबूर कर देगा जिससे हमारा हर कार्य हमें व हमारे पर निर्भर साथियों को भी ले डूबेगा।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
जीवनकाल में हमें रचनात्मक , व सकारात्मक कर्म करने चाहिए !जैसे यथासंभव किसी की सहायता करना , जरूरत पर किसी की मदद करना ,अपने लक्ष्यप्राप्ति हेतु कार्य करना , किसी की मुस्कुराहट का कारण बनना , आदि !हमें विनाशात्मक कार्य या नकारात्मक कार्य कभी नहीं करने चाहिए जैसे किसी का दिल दुखाना, किसी को हानि पहुंचाना ,किसी का बुरा चाहना या बुरा करना , किसी के दुख का कारण बनना ,किसी का विनाश करना , किसी की निंदा करना आदि !!ऐसा हमें इसलिए करना चाहिए क्योंकि हमारे हर अच्छे बुरे कर्म का हिसाब होता है , इसलिए...
कर भला , हो भला
कर बुरा , हो बुरा !!
जब हर अच्छे बुरे कर्म का हिसाब होता ही है तो हमें अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि पुण्य बटोर सकें !!बुरे कर्म न ही करें क्योंकि उनका फल भी स्वयं ही भुगतना पड़ता है !मेरा अनुभव तो कहता है कि जो व्यक्ति भगवान को मानता है , व भगवान से डरता है , वो किसी का बुरा करना तो दूर , बुरा करने का सोच भी नहीं सकत !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जीवन का कार्यक्रम रचनात्मक होना चाहिए, इससे हमारे रिश्ते सौहार्दपूर्ण बने रहते हैं और आसपास का माहौल सुखद रहता है, कार्य गुणवत्तापूर्ण होता है और सफल भी होता है। यह समझदारी भी है और सम्मानजनक भी। इसके विपरीत विनाशात्मक कार्य अशोभनीय तो होते ही हैं, दंडनीय और क्षोभनीय भी होते हैं। रचनात्मक कार्य में समय के साथ-साथ पूँजी और श्रम भी लगता है। यही चीज जब विनाशात्मक का शिकार होती है केवल नुकसान ही करती हैं। सुविधा और लाभ से वंचित कर देती है। हमारा प्रयास, हमारा उद्देश्य सदैव रचनात्मक होना आवश्यक ही नहीं महत्वपूर्ण भी है। इसमें सामाजिकता का भाव निहित होता है। मानवता और इंसानियत का धर्म होता है। सकारात्मकता का अंश होता है। विनाशात्मक कर्म तो उद्दंडता होती है, कायरता होती है, असमाजिकता कहलायेगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हमारे जीवन का उद्देश्य कर्मों को रचनात्मक और अर्थपूर्ण बनाना है। जब हम अपने कर्मों को रचनात्मक और सकारात्मक दिशा में लगाते हैं, तो हम अपने जीवन को सार्थक और संतुष्ट बना सकते हैं। हम जो भी कार्य करें उसका दूसरा भी पहलू सोच ले कहीं ऐसा तो नहीं की जो क्षणिक कार्य हम रचनात्मक कर रहे हैं वह हमारे लिए ही विनाशात्मक हो । जैसे ही समसामयिक घटना अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की उसने सोचा था की टैरिफ लगाकर भारत के कारोबार की कमर तोड़ दूंगा। बिना सोचे-समझे और बिना योजना के कर्म करने से हमें नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को सोच-समझकर और योजना बनाकर करना चाहिए। रचनात्मक कर्म हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को रचनात्मक और सकारात्मक दिशा में लगाने की कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह से मोदी जी कर रहे हैं जय हो भारत माता की
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कर्म का परिणाम सिद्ध करता है। कि वास्तव में कर्म का जीवन में क्या महत्व है ? सभी कर्म एक जेसा परिणाम नहीं देते हैं। यही कर्म की परिभाषा है। जो विभिन्न आयाम स्थापित करते हुए जीवन में भूमिका निभाते हैं ।
हमारे जीवन का उद्देश्य कर्मों को रचनात्मक और अर्थपूर्ण बनाना है। जब हम अपने कर्मों को रचनात्मक और सकारात्मक दिशा में लगाते हैं, तो हम अपने जीवन को सार्थक और संतुष्ट बना सकते हैं। हम जो भी कार्य करें उसका दूसरा भी पहलू सोच ले कहीं ऐसा तो नहीं की जो क्षणिक कार्य हम रचनात्मक कर रहे हैं वह हमारे लिए ही विनाशात्मक हो ।
ReplyDeleteजैसे ही समसामयिक घटना अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की
उसने सोचा था की टैरिफ लगाकर भारत के कारोबार की कमर तोड़ दूंगा
बिना सोचे-समझे और बिना योजना के कर्म करने से हमें नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
इसलिए, हमें अपने कर्मों को सोच-समझकर और योजना बनाकर करना चाहिए।
रचनात्मक कर्म हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद करते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को रचनात्मक और सकारात्मक दिशा में लगाने की कोशिश करनी चाहिए। जिस तरह से मोदी जी कर रहे हैं जय हो भारत माता की
रंजना हरित बिजनौर
इंसान के जीवन का कार्यक्रम हमेशा रचनात्मक होना चाहिए।किसी भी क्षेत्र में किए प्रयास रचनात्मक होना चाहिए।मुझे जिस क्षेत्र में अभिरुचि होगी,उस क्षेत्र में हम सफ़ल होंगे और आगे बढ़ेंगे।रचनात्मक कार्य और प्रयत्न लाभकारी होते हैं।इसलिए हमें रचनात्मक कार्य करने चाहिए।हमें विनाशात्मक कार्य कभी नहीं करना चाहिए।यह सदैव हानिकारक होता है।
ReplyDeleteदुर्गेश मोहन
बिहटा, पटना (बिहार)
(WhatsApp से साभार)
यह वाक्य जीवन दर्शन को बहुत सहजता से प्रकट करता है। वास्तव में अकड़ और घमंड इंसान के व्यक्तित्व को खोखला बना देते हैं। ऐसे व्यक्ति को समय और अनुभव ही समझाते हैं कि स्थायी मूल्य विनम्रता और सादगी में ही छिपे हैं।
ReplyDelete“अकड़ क्षणिक है, विनम्रता शाश्वत है।
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
(WhatsApp से साभार)
डॉ सुदर्शन कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएं। धन्यवाद डॉक्टर बीजेंद्र जी आपने चर्चा के लिए बहुत अच्छा विषय चुना 🙏💐💐🙏😊
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