भारतीय सस्कृति में वैलेंटाइन डे की सीमाएं व उपयोगिता

जैमिनी अकादमी द्वारा परिचर्चा " भारतीय सस्कृति में वैलेंटाइन डे की सीमाएं व उपयोगिता " विषय ही अपने आप में बहुत कुछ बोलता है ।इससे पहले कुछ जानकारी देना उचित समझता हूँ ।
1260 में  'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नामक पुस्तक में सेंट वेलेंटाइन का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था। सम्राट क्लॉडियस के अनुसार विवाह करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है। सम्राट क्लॉडियस ने आज्ञाजारी की कि उसका कोई सैनिक या अधिकारी विवाह नहीं करेगा। संत वेलेंटाइन ने इस क्रूर आदेश का विरोध किया था । जिस के कारण से  अनेक सैनिकों और अधिकारियों ने विवाह किए। आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी को संत वेलेंटाइन को फांसी पर चढ़वा दिया गया।  अतः सीधे परिचर्चा पर आये तो अधिक उचित रहेगा ।

सिवाना से लक्ष्मण कुमार लिखते है कि वैलेंटाइन एक अवकाश दिवस है, जिसे 14 फ़रवरी को अनेकों लोगों द्वारा दुनिया भर में मनाया जाता है। अंग्रेजी बोलने वाले देशों में, ये एक पारंपरिक दिवस है, जिसमें प्रेमी एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वैलेंटाइन कार्ड भेजकर, फूल देकर, या मिठाई आदि देकर करते हैं। ये छुट्टी शुरुआत के कई क्रिश्चियन शहीदों में से दो, जिनके नाम वैलेंटाइन थे, के नाम पर रखी गयी हैउच्च मध्य युग में, जब सभ्य प्रेम की परंपरा पनप रही थी, जेफ्री चौसर के आस पास इस दिवस का सम्बन्ध रूमानी प्रेम के साथ हो गया।
रतलाम - मध्यप्रदेश से इन्दु सिन्हा लिखती है कि अगर सही अर्थों में देखा जाए तो हम लोग मानसिक रूप से अपरिपक्व है या बीमार है ! जो वेलेंटाइन डे आते ही भारतीय संस्कृति की दुहाई देने लगते है, गहराई से समझा जाये तो हम सब बंसन्त पंचमी से ही वेलेन्टाइन डे मनाना शुरू कर देते है, मौसम पर यौवन इसी मौसम में आता है,सरसों पर सोने सी चमक,हवाओ में मदहोशी, आवारा सा मौसम,! धरती की ऐसी सुंदरता को निहारने के लिये, कामदेव धरती पर उतरते है,कामदेव की पूजा जिस देश मे होती है,सौन्दर्य की पूजा हो रही है,मतलब हम प्रेम की पूजा कर रहे है, फिर वेलेन्टाइन डे से परहेज क्यो ?

रतनगढ़ - मध्यप्रदेश से ओमप्रकाश क्षत्रिय " प्रकाश " लिखते है कि प्रेम का इजहार वहां मौखिक किया जाता है. इसी कारण वेलेंटाइन डे का प्रचलन हुआ है. उन का मानना होता है कि जो कार्य करो उस का प्रदर्शन करों. हमारी संस्कृति में कार्य का प्रदर्शन नहीं किया जाता है. यहां कार्य करने पर दूसरा उसे महसूस कर लेता है.
मुझे एक उदाहरण याद आता है. मेरे एक मित्र थे. विदेश रहते थे. एक बार वे गांव आए. जहां उन के बीमार पिता की सेवा उन का छोटा भाई करता था. वह दिनरात उन की सेवासुश्रूषा करता रहता था. वे आए. पिताजी के पास बैठे. पैर दबाते हुए फोटो लिया. फेसबुक पर डाल दिया.
एक बेटे ने सेवा की और दूसरे ने प्रेम का इजहार किया. यही फर्क है भारतीय संस्कृति और विदेशी संस्कृति में. एक में इजहार किया जाता है दूसरे में कार्य किया जाता है. 
मगर, यह भी पूरा सच नहीं है. विदेशों में भी कार्य किया जाता है और उसे प्रदर्शित भी किया जाता है. यह सच भी अपनेआप में अच्छा है. इसी सच की तारिफ की जानी चाहिए तभी वेलेंटाइन डे की सार्थकता है. 
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश से सुशीला जोशी लिखती है कि हमारी भारतीय संस्कृति में आज का *वैलेंटाइन डे* सर्वसम्मेलन दिवस के रूप में मनाये जाने की परंपरा  आज भी जीवित है । होली मिलन ,दशहरा मिलन , आम सभाएं जैसे वैलेंटाइन आज भी   जीवित है ।
लेकिन आज का वैलेंटाइन केवल लड़को और लड़कियों  की प्रेम भावना प्रदर्शन का दिवस है  जो इतना विकृत हो चुका है कि आज अगर कोई 70 वर्ष की महिला अपने किसी पड़ोसी , पुरुष मित्र या पुरुष रिश्तेदार को वैलेंटाइन डे की शुभकामना दे दे तो उसके विषय मे दुर्भावना बनाना निश्चित है । 
       आज के परिवेश में वेलेंटाइन डे बिना सोचे समझे नई उम्र के लड़के लड़कियों के आकर्षण में बंधे एक दूसरे को पाने की कामना का दिवस है जिसका परिणाम भविष्य को विकृत बनाना ही सिद्ध होता है ।
    हमारी संस्कृति में भी नल-दमयंती, शकुंतला -शांतनु , खिलजी- पद्मनी , जैसे प्रेम भावना को अपने अपने समय के वैलेंटाइन डे पर  प्रदर्शित  किया । परिणाम आज तक लोग पढ़ते है । 
    अगर वैलेंटाइन डे प्रेम प्रदर्शन का ही दिन है तो फिर प्रेम का प्रदर्शन तो उसी समय हो जाता है जिस समय प्रेम का एहसास होता है फिर उसे एक दिन में क्यो बांधा जाए । प्रेमी हृदयो का प्रतिदिन वैलेंटाइन डे होता है ।
     आज के आधुनिक परिवेश  संस्कृतियो का मिश्रण काल है । परिधान , वास्तुकला , जीवन शैली , वेश भूषा  और शैक्षिक पाठ्यक्रम जो व्यक्ति का भविष्य निर्धारित करता है ,सभी मे तो अनेक संस्कृतियों का सम्मिश्रण दिखाई देता है । या फिर यों कह लीजिए कि भारतीय संस्कृति का शकुंतला , मेघदूत का यक्ष , पद्मावती का प्रेम फिर से लौट आया है । 
     भरतीय संस्कृति प्रेम प्रदर्शन  या अपने पसन्द का जीवन साथी चुनने के विरुद्ध नही है लेकिन  विवाह से पूर्व एक दूसरे की अच्छी तरह जानने के नाम पर बरसों एक छत के नीचे रहने की आज्ञा नही देता । वैलेंटाइन डे पर प्रेम प्रदर्शन के पश्चात लिविंग- रिलेशन का  अंकुरण और स्फुरण की शुरुआत है जो भविष्य को विकृत करता है ,जीवन को कठिन बनाता है ।।
दिल्ली से सुदर्शन खन्ना लिखते है कि भारतीय संस्कृति का हृदय विशाल है ।  न जाने कितनी संस्कृतियों को इसने आश्रय दिया है ।  सम्पूर्ण विश्व में सबसे धनी भारतीय संस्कृति के प्रति अन्य देशों की छुटपुट संस्कृतियाँ आकर्षित हुई हैं और जुड़ने को लालायित हुई हैं ।  हमारे देश ने सभी संस्कृतियों पर स्नेहिल वर्षण किया है ।  हमारे देश भारत की संस्कृति उच्चतम कोटि की है जिसने मानवता के सभी आयामों को परिभाषित किया है ।  यह आध्यात्म से जुड़ी है, अजेय है, दीर्घजीवी और सदाबहार है ।  हमारी भारतीय संस्कृति के अनेक रूपों में रोज़ ही दर्शन होते हैं ।  माँ-बाप की सेवा में, विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, आर्यसमाजों में, शिवालयों में, मन्दिरों में, गुरुद्वारों में, और अन्य सभी धार्मिक स्थलों पर ।  कितना विस्तृत रूप है, अद्भुत है ।  वैलेंटाइन डे को भी हमारी भारतीय संस्कृति ने पनाह दी है ।  लोगों ने इसे अपनाया है ।  वर्तमान में वैलेंटाइन डे लघुजीवी है, एक-दिवसीय है, क्षणिक है, केवल ऊपरी दिखावा भर रह गया है, कुंठित सोच को व्यक्त करने का अवसर मात्र है ।  संभवतः मूल उद्देश्य से भटक गया है क्योंकि इसकी जड़ें समृद्ध नहीं हैं ।  स्नेह प्रदर्शन का कोई दिवस नहीं होता ।  हमारा देश सार्वभौम स्नेह, भाईचारे और आतिथ्य के लिये जाना गया है ।   वैलेंटाइन  डे पश्चिमी देशों में स्नेह के प्रति सीमित भाव रखने वाले पादरी  वैलेंटाइन  को मृत्यु दण्ड देने के बाद वर्तमान रूप में मनाया जाने लगा है ।  

महेश गुप्ता जौनपुरी ने वैलेंटाइन डे की सभ्यता के परिणाम इस प्रकार बताये हैं :-

1. इस सभ्यता का आज के दौर में गलत प्रयोग कर रहें हैं युवा

2. इस सभ्यता को बढ़ावा देने में मिडिया का भी भरपुर साथ हैं |

3. इस सभ्यता को प्रेम का नाम देकर इसके आड़ में किसी लड़की के जीवन का सौदेबाजी होता हैं |

4. इस सभ्यता को युवा पीढ़ी बहुत तेजी से अपना रहें हैं कारण यह हैं कि माँ बाप इस पर ध्यान नहीं दे रहें हैं |

5. हिन्दू संस्कृति में इस सभ्यता को घरो में भी लोग मनाने लगे हैं जिससे आने वाली पीढ़ी इसका गलत इस्तेमाल करेंगी |
 जबलपुर - मध्यप्रदेश से अनन्तराम चौबे " अनन्त " लिखतें है कि यह दिवस मुझे ब्यक्तिगत पसंद नही है ये हमारी सस्कृति  हमारी सभ्यता के खिलाफ है हमारे घर परिवार समाज देश के खिलाफ है । हाँ नये युवा युवती जो एक दूसरे से प्यार करते है ।इस दिन ये खुलेआम एक दूसरे गले मिलते है अपने प्यार का इजहार करते हैं । खुलेआम  समाज परिवार बच्चो के सामने यह बेहूदा हरकत करते है छोटे बच्चो के सामने शर्मिन्दा होना पड़ता है । बच्चो पर इसका गलत संकेत जाता है । पति पत्नी का तो प्यार करने हक बनता है फिर भी वो यह काम परदे के अन्दर करते है ।घर परिवार की मर्यादा में रहकर करते है । हर काम मर्यादा में हो अच्छे लगते है । 
     वैलेन्टाइन डे  के बहाने ये गन्दी गन्दी हरकतें करना छिछोरा पन करना ठीक नही है । हमारे देश में इस दिन को मनाने की इजाजत नही होना चाहिये विदेशों में होता उसकी नकल हमें नही करना चाहिये घर में अपने बच्चो को इससे दूर रखना चाहिये । वैलेन्टाइन डे के हम तो ब्यक्तिगत खिलाफ हूँ और भविष्य में भी खिलाफ ही रहूगा ।
सुशील अग्रवाल नाथूसरी लिखते है  कि वैलेंटाइन डे पश्चिमी जमीन से जुङे लोगों का एक त्यौहार है और इस दिन प्रेमी प्रेमिका अपने प्यार का इजहार करते हैं ऐसा सुना गया है। मुझे लगता है कि यह पर्व भी दीवाली होली और ईद के जैसा ही है परतुं उन देशों ने अपनी जरूरत व चलन के हिसाब से इसको मनाने का काम किया है। अब जब उनके माता पिता वृद्धाश्रम में है या उनको मालूम ही नहीं कि कौन है तो वे किसको बधाई दें। ईद व होली दीवाली पर हम अपने चाहनः वालों से उनके प्रति प्रेम जताते हैं लेकिन जिस जमीं का यह पर्व हैं वहां समाज और रिश्ते नहीं है इसलिए सिर्फ प्रेमियों ने अपने तक सीमित रख लिया। मुझे लगता है कि हमें इसे सभी धर्मों का समान करते हुए होली दीवाली की तरह ही मनाना चाहिए और फूहङता से बचना चाहिए।क्योंकि अश्लीलता हमारी संस्कृति का अंग नहीं है।
नवादा - बिहार से डाँ. राशि सिन्हा लिखती है कि  ऐसा बिल्कुल भी नहीं कि मैं वेलेंटाइन डे के खिलाफ हूं.सच है प्रेम और अनुराग से रत स्नेह की संस्क्रति में पला बढ़ा कोई भी भारतीय ह्रदय क्या  प्रेम के खिलाफ हो सकता है भला! किंतु, राधा और मीरा जैसी सात्विक प्रेमिकाओं के देश में जहां कि प्रेम की परिभाषा अलौकिक अनुभूतियों ,समर्पण ,भक्ति और श्रद्धा के रुप में न सिर्फ जानी जाती है बल्कि महसूस की जाती है.वहां वेलेंटाइन डे के नाम पर प्रेम के इस फुहड़ स्वरुप से इन्कार है मुझे.संपूर्ण विश्व में जहां,हर भारतीय अलौकिक आत्मिक प्रेम का प्रणेता जाना जाता है वहां दैहिक संबंधों पर आधारित, खोखले लिबास में लिपटे प्रेम के हास्यास्पद,घिनौने और विक्रत स्वरुप से इन्कार है मुझे.अपनी भारतीय संस्क्रति की पहचान को , मूल्यों को बचाते हुए भी तो हम,हमारी युवापीढ़ी प्रेमदिवस (वेलेंटाइन डे) की उपयोगिता का सही रुप समझ सकते हैं.इस अवसर का उपयोग हम अपने धर्म निरपेक्छ राज्य में भाईचारे के संदेश को प्रचारित कर भी तो कर सकते हैं.हमें अपनी संस्क्रति को केंद्र में रखकर आध्यात्मिक और आत्मिक प्रेम को अपनाकर,भारतीय सनातन व्यव्स्था के तहत बंधुत्व आधारित प्रेम बांटकर इसे मनाना होगा.अपने बच्चे,घर के बूढ़ों में स्नेह लुटाकर भी इस अवसर को उपयोगी बनाया जा सकता है.बात जब युगल प्रेम की होती है,तो नि:संदेह यह दिवस एक अच्छा अवसर है किंतु निजीस्तर पर अलौकिक प्रेम की अनुभूतियों को महसूस कर पूरी निष्ठा से अपने प्रेम को व्यावहारिक स्वरुप देने के लिए न कि सार्जनिक फुहड़ रुप में रुपायित होने के लिए.
      निश्चित रुप से वेलेंटाइन डे एक प्यारा बहुत प्यारा अवसर है ,हमारी म्रत होती संवेदनाओं को जाग्रत करने का किंतु देश समाज और अपने रिश्तों परिवारों में स्नेह के पुन:संचार का.हमें इसकी उपयोगिता के वास्तविक स्वरुप को समझ इसके पाश्चात्य अंधानुकरण को सीमित करना होगा तभी हमारी संस्क्रति भी अपने वास्तविक रुप को प्राप्त कर सकेगी.
मंडला - मध्यप्रदेश से प्रो. शरद नारायण खरे लिखते है कि 'वैलेंटाइन डे ' अर्थात् प्रेम दिवस। वैसे तो प्रेम का विस्तार असीमित है,क्योंकि प्रेम तो ईश्वर का ही दूसरा नाम है ।पर वर्तमान में इसे मात्र स्त्री-पुरुष के प्रणय संबंध के रूप में ही देखा जा रहा है,तथा इसका स्वरूप विपरीतलिंगी/दैहिक आकर्षण के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है। 
       पाश्चात्यीकरण के आधार पर यह दिवस मात्र शारीरिक संबंधों के रूप में सिमटा हुआ दृष्टिगोचर हो रहा है,जिसके मूल में वासनापूर्ति व फ्लर्टिंग की नीयत विद्यमान है। हक़ीक़त तो यह है कि यह दिवस उन्मुक्तता से परिपूर्ण हो संस्कारों से रहित होकर उच्छृंखलता का अशोभनीय पर्व बन गया है,जो अशोभनीय व निंदनीय है, जबकि भारतीय संस्कृति प्रेम की पावनता,अंतर की निष्कलुषता, मन की सुंदरता, मर्यादा, गरिमा, इंद्रिय नियंत्रण, आत्मिक अनुराग व जन्म-जन्मांतर के नाते की मान्यता को मानती है। भारतीय मान्यताओं में विवाहपूर्व के संबंधों, खुलेपन व स्वच्छंदता को कदापि भी  स्वीकार नहीं किया गया है। वैसे तो प्रेम का महत्व हर दिवस के लिए है, इसलिए मात्र एक दिवस के लिए प्रेमिल होना कदापि भी उचित व उपयोगी प्रतीत नहीं होता है ।तो भी यदि इस दिवस को मान्यता दी भी जाए, तो भी इस दिवस पर प्रेम के सकारात्मक व गरिमापूर्ण इज़हार को ही स्वीकार किया जा सकता है।प्रेमी युगल के बाग़ों, झुरमुटों, कोनों व एकांत में जाने को कदापि भी भारतीय संस्कृति स्वीकार नहीं कर सकती है।विवाहित युगल घूमें-फिरें-कोई समस्या नहीं,पर अविवाहितों की मटरगश्ती व गरिमाहीनता भारतीय आदर्शों के विपरीत ही मानी जाएगी। 

        
नयी मुम्बई से चन्द्रिका व्यास लिखती है कि भारतीय संस्कृति में प्यार के लिए तो पूरा मौसम ही बसंत है!
बसंत तो पूरे प्रकृति का यौवन है! पश्चिमी लोग भी इस मादकता से भरी श्रृतु में प्यार की खुमारी लेते हैं! और प्रेमी युगल अपने प्रेम का इजहार करते हैं! उन्होंने इसे वेलेन्टाइन का नाम दे दिया! 

प्रेम पहले से ही आकर्षण का बिंदु रहा है! प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है! जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखते हैं सोच के देखें कि भारतीय प्रेम और पश्चिमी प्रेम में फर्क क्या है? 

प्रेम सिर्फ दैहिक नहीं होता, तात्कालीन नहीं होता! उसमें एक समर्पण होता है! प्रेम सिर्फ लौकिक ही नहीं अलौकिक और अप्रतिम है! 

हमारे यहां इस सुंदर मौसम की मादकता को लोग तभी जानते हैं जब वह वेलेंटाइन के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी न फैलाये! 

जो प्रेम कभी भीनी खुशबु बिखेरता था आज वह वेलेंटाइन डे के रुप में व्यापार बन गया है! 

पहले प्रेमी युगल अपनी संवेदनाओं को व्यक्त कर अपने प्रेम का इज़हार कार्ड देकर करते थे! आज स्मार्ट फोन, मोबाइल, और व्हाटसेप में कार्ड का महत्व ही कहां रह गया है! अब तो महंगे महंगे उपहार दिये जाते हैं! 

प्रेम दो दिलों की धड़कन सुनता था पर आज बाजार वाद की अंधी दौड ने इन दिलों में अहसास की जगह चॉकलेट महंगे गिफ्ट, ग्रीटिंग कार्ड  फूलों का गुलदस्ता प्रेम की मासुमियत की जगह हैसियत नापने की मशीन बन गया है! 
बल्लबगढ़ - फरीदाबाद ( हरियाणा ) से लज्जा राम राघव " तरुण " से लिखते है कि भारतीय संस्कृति में वैलेंटाइन डे, केवल पाश्चात्य संस्कृति का भोंड़ा रूप ही दिखाता है, जो भारतीय परम्परागत शाश्वत प्रेम के सामने कहीं दूर तक भी टिकता नजर नहीं आता ।भारतीय संस्कृति में प्रेम आत्मा से आत्मा का मिलन हैअर्थात आत्मिक है जबकि "वैलेंटाइन डे" वाला प्रेम मात्र दैहिक सुखानुभूति का साधन मात्र है जो भारतीय परम्परागत संस्कृति के नितान्त प्रतिकूल है ,अर्थात दैहिक तथा भारतीय युवा पीढी को पथ-भृष्ट करने का एक कुत्सित प्रयोजन है जो भारतीय युवा-पीढी  को आत्मिक प्रेम से विमुख कर दैहिक प्रेम की ओर आकर्षित करता है ।सात्विक प्रेम, प्रेम की मर्यादाओं में बाधित है, जबकि "वैलेंटाइन डे" वाला प्रेम उद्दण्ड व मर्यादा विहीन है ।भारतीय संस्कृति में ऐसे प्रेम का कोई स्थान नहीं है ।
मुम्बई - महाराष्ट्र से डाँ. अर्चना दुबे लिखती है कि भारतीय संस्कृति मर्यादा से परिपूर्ण रही है । हम अपनी परम्पराओ को लंबे अरसे से त्योहारो के रूप में पारिवारिक माहौल में मनाते आये है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से युवाओं ने वेलेंटाइन डे के नाम से एक नया त्योहार मनाना शुरू कर दिये , जो अब युवा पीढ़ी को आकर्षित कर रहा है ।
   भारत जैसे देश को प्यार जताने के लिए विदेश से किसी दिन को आयात करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह तो त्योहारो का वो देश है जो मानवीय सम्बन्धों को नहीं बल्कि प्रकृति के साथ भी अपने प्रेम व कृतज्ञता को अनेक त्यौहारो के माध्यम से प्रकट करता है ।

    
         परिचर्चा में अनेकों के विचारों को पेश किया गया है। यह सब भारतीय सस्कृति के साथ - साथ वैलेंटाइन डे का भी किसी ना किसी रूप में समर्थन करते हैं । परन्तु शर्तें एक ही है कि भारतीय सभ्यता के अनुरूप होना चाहिए ।
                   14 फरवरी को  यह दिन विभिन्न देशों में अलग-अलग तरह से  मनाया जाता है।   चीन में यह दिन 'नाइट्स ऑफ सेवेन्स' प्यार में डूबे दिलों के लिए खास होता है, वहीं जापान व कोरिया में इस पर्व को 'वाइट डे' का नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं, इन देशों में इस दिन से पूरे एक महीने तक लोग अपने प्यार का इजहार करते हैं वहीं पश्चिमी देशों में पारंपरिक रूप से इस पर्व को मनाने के लिए 'वेलेंटाइन-डे' नाम से जाना जाता है । प्रेम-पत्रों का आदान प्रदान , साथ में दिल, क्यूपिड, फूलों आदि  उपहार स्वरूप देकर अपनी भावनाओं को भी इजहार किया जाता है। 19वीं सदीं में अमेरिका ने इस दिन पर अधिकारिक तौर पर अवकाश घोषित कर दिया है ।
                                          - बीजेन्द्र जैमिनी
                                         (आलेख व सम्पादन)

Comments

  1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मेरे इस लेख को प्रकाशन करने के लिए मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ कि आप सदैव इसी तरह साहित्य के प्रति समर्पित रहें और साहित्य में अतुल्य योगदान देते रहें

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  2. बहुत सुंदर व उपादेयता से युक्त परिचर्चा बधाई सभी सम्मिलित मित्रों को
    शशांक मिश्र भारती शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश

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  3. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय महाशय जी हमारे लेख को प्रकाशित किया और हमें उत्साहित किया और आप साहित्य के नायक के रूप में योगदान देते रहे

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  4. हार्दिक आभार आपका, ज्वलंत ओर समाज, देश को दिशा देने वाले विषय को आप प्रस्तुत करते रहेंगे,हम लेखकों को प्रोत्साहित करते रहेंगे! पुनः धन्यवाद आपको

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  5. सभी के विचार पढ़े और सभी अपनी -अपनी जगह सही है । प्यार अपने आप में एक बहुत सुंदर अनुभूति है । आज के समय में लोगों ने प्यार के रुप को कुरुप कर दिया है । प्यार समर्पण का नाम है पर आज के नवयुवक प्यार को जबरदस्ती पाना चाहते हैं और उसके लिए ग़लत दिशा भी अपना लेते । प्यार को जबरदस्ती हासिल नहीं किया जाता बल्कि यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो उसकी खुशी की कामना कीजिए न की तेजाब फेंक कर किसी की जिंदगी को बर्बाद कीजिए । प्यार का रुप बहुत व्यापक है उसमें समग्र धरती समाई हुई है । ईश्वर का एहसास भी हमें प्यार ही कराता है । प्रेम और भक्ति किसी से जबरदस्ती नहीं कराए जाते ।
    वेलेंटाइन डे खुशी से मनाइए और अपने निस्वार्थ प्रेम से दुनिया का दिल जीतिए ।



    आभा दवे

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