क्या संकट में सिर्फ ईश्वर साथी होता है ?

संकट में तो अपने भी साथ छोड़ देते हैं । कई बार तो अपने ही सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं । ऐसे में सिर्फ ईश्वर याद आते हैं और संकट में ईश्वर अवश्य साथ देते हैं । ऐसा कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
हमारा शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है। और हमें इसी में विलीन होना है।
यह सत्य है लेकिन हमारे जीवन में जिस तरह के उतार-चढ़ाव या संकट आते हैं तो हमें हमारे कर्म के अनुरूप ही कम या ज्यादा संकटों का सामना करना पड़ता है यही सत्य है।संकट काल सभी के जीवन में आता है और कोई ना कोई किसी ना किसी रूप में देवदूत बनकर हमारी सहायता के लिए तत्पर हो जाता है लेकिन हमारा मानव रूपी शरीर उसे समझ नहीं पाता।
 सिर्फ यह कहता है की ऐन वक्त पर वह आ गया और हम बाल-बाल बच गए।
 यह कथन न जाने कितनों के मुंह से संकट की घड़ी में सुनने को मिलता है।
तो मुझे ऐसा लगता है की ईश्वर ही हमारा साथी होता है और हमारे कर्मो के अनुसार वह हमेशा किसी न किसी रूप में हमारे साथ रहता है। इसीलिए सदैव सत्य मार्ग पर चलें और सत् कर्म करें तो अंधियारी जगह पर भी प्रकाश रूपी ईश्वर सदैव आपका साथी होता है।
   -  वंदना पुणतांबेकर 
            इंदौर - मध्यप्रदेश
     भारतीय संस्कृति में ईश्वर पर अत्यधिक महत्व हैं, जिनकी संरचना की वजह से प्रबल रुप में मानव तंत्र, प्राकृतिक और भौगोलिक संसाधनों के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में पहुँचानें सफलता मिलती जाती हैं। जब किसी भी तरह का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संकट, घटना घटित हो जाती हैं तो ईश्वर ही सर्वोपरि होता हैं, जिसके आगे नतमस्तक हो जाता हैं, जो आस्था और विश्वास स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। जब विपरित परिस्थितियों में हर पल, ईश्वर से प्रार्थना करने कहा जाता हैं। पूर्व कालीन राजाओं-महाराजाओं ने वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं के मंदिरों को बनाकर, जन समूहों का ध्यानाकर्षण करवाया था, आज वही परिनिष्ठित चली आ रही हैं। ईश्वर वह श्रद्धा, शक्ति हैं, जिसे हम किसी भी तरह से झूठला नहीं सकते हैं और दूसरों को कष्टदायक बनने से रोकने में सार्थक पहल नि:स्वार्थ भाव से दिखाई देती हैं
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
इसमें कोई दो राय नहीं है कि संकट के समय हम ईश्वर को याद  करते हैं किंतु हमारा कर्म ही है जो  संकट के समय साथी बन हमारे साथ खड़ा होता है! जैसे बीज हमने बोये होंगे वैसा ही प्रतिफल स्वरूप बन आता है! यदि धर्म का साथ ले चलते हैं तो संकट के समय ईश्वर हमारा साथ देते हैं! 
कई योनियों के बाद हमारे कर्म के आधार पर हमे मनुष्य जन्म प्राप्त होता है... मतलब साफ है हमारे कर्म अच्छे दिनों में और संकट के समय भी हमारे साथ होते हैं! अपने कर्म का फल तो हमें ही भोगना है उसमे कोई साथ नहीं देता ईश्वर भी नहीं! 
हां! ईश्वर से हमारी आस्था अटूट जूड़ी  हैं! जिस तरह हमारे जन्म के साथी माता-पिता है चोट लगने  पर हमारी जबान पर पहला शब्द ओह मां....निकलता है ठीक उसी तरह संकट के समय हर द्वार से मायूसी  मिलने पर वह आस्था के साथ ईश्वर से गुहार लगाता है ! 
ईश्वर तो कहते हैं तुम सद्कर्म करते रहो मैं सदा तुम्हारे साथ हूं !
मैथलीशरण गुप्त जी की दो पंक्तियां याद करुंगी ----
संभलो की सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझ जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर हैं अवलंबन को
नर हो न निराश करो मन को! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
किसी भी संकट में जब हमें कोई सहारा नहीं मिलता है तो हम ईश्वर को ही पुकारते हैं। हे ईश्वर हमें मदद करो।इस संकट से उबारो। हर तरफ से जब हम हार जाते हैं , मनुष्यों से कहते कहते जब थक जाते हैं तो ईश्वर को ही पुकारते हैं। उस संकट की घड़ी में एकमात्र ईश्वर ही साथी दिखाई पड़ता है। बाकी तो सभी मतलबी होतें हैं और संकट की घड़ी में भी अपना स्वार्थ ढूंढते हैं। एक ईश्वर को छोड़ कोई साथी नहीं होता है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
जब मानव हर तरफ़ से निराश हो जाता है कोई राह नहीं सूझती तब सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर का ही सहारा होता है ।
कैसे भी संकट की घड़ी हो विपत्ति में भी ईश्वर के नाम का सहारा नहीं छोड़ना चाहिए। ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को मजबूती देनी हैं वहीं हर कष्ट और दुखों का निवारण करते है ।
हम ईश्वरीय सत्ता को झुठला नहीं सकते । जब चारो ओर भयानक त्रासदी हो कोई  सुनने वाला न हो तो एक ईश्वर ही है जो उस त्रासदी से हमें बहार निकालता है । 
वह सामने नहीं आता पर हमारी सहायता को किसी न किसी को भेजता है । 
श्री कृष्ण गीता में कहते हैं में हर जगह हूँ , अपने भक्तों के आसपास ही रहता हूँ । 
भक्त भगवान को अपनी संतान की तरह प्रिय होता है। जिस तरह माता-पिता अपनी संतान की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं, उसी तरह भगवान भक्त की चिंता उससे भी पहले करते हैं। बस, आपके मन में विश्वास होना चाहिए और भगवान सदा आपकी रक्षा करेंगे।
हमारे हर संकट में हमारे साथ ईश्वर रहते हैं बस जरुरत है विश्वास और श्रद्धा की तथा मन की आँखों से देखने की 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
ईश्वर की सच्ची भक्ति से ही भगवान की कृपा मिलती है।
मैं एक छोटा सा उदाहरण पेश कर रहा हूं
:----!
ध्रुव और प्रह्लाद जैसे भक्तों ने घोर कष्टों के सामना करते हुए भगवत भक्ति नहीं छोड़ी। कठिन दौर में भी भगवत नाम जपते रहें। उनकी इसी सेवा भक्ति के प्रसाद के रूप में उन्हें भगवान की विशेष कृपा मिली और भक्तों मैं श्रेष्ठ भक्त कहलाए। विपत्ति काल में ईश्वर के नाम का सहारा नहीं छोड़ना चाहिए। वही हर कष्ट और दुखों को निवारण करते हैं। ध्रुव और प्रह्लाद ने भी कठिन परिस्थिति में विश्वास को डिगने नहीं दिया था।
लेखक का विचार:-- ईश्वर दिखाई नहीं देते सिर्फ अनुभूति की जाती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
ईश्वर तो हर समय साथ देता है केवल संकट में ही नहीं। बात केवल श्रद्धा और विश्वास की होती है। अपने मानसिक संबल को बनाए रखते हुए ईश्वर के कर्म और न्याय पर भरोसा करते हुए कर्तव्य पथ पर चलते रहने से ही संकट का सामना किया जा सकता है। कहावत ही है कि जब संकट के समय कोई सहारा नहीं होता तब ईश्वर ही मददगार होते हैं। पर किसी भी स्थिति में मानसिक संतुलन बनाए रखते हुए विश्वास डिगना नहीं चाहिए। तभी ईश्वर सहायक बनते हैं। अविश्वास इंसान को ईश्वर से दूर कर देता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर -मध्य प्रदेश
यह सत्य है कि संकटकाल में क्षति होना अवश्यंभावी है, क्योंकि संकट भी अपनी पूरी शक्ति से प्रहार करता है। परन्तु इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि जब भी मनुष्य पर संकट आता है तो वह ईश्वर को याद करता है। मनुष्य को ईश्वरीय शक्ति पर पूरा विश्वास होता है। मन-वचन-कर्म से ईश्वर से प्रार्थना करने पर, निश्चित रूप से परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं। 
कहते हैं कि "ईश्वर भी उन्हीं के साथ होता है जो स्वयं के साथ होते हैं, अर्थात् अपनी पूरी शक्ति से संकट का सामना करते हैं। मेरी दृष्टि में 'ईश्वर के साथ होने' का अर्थ है....मनुष्य को ऐसी शक्तियाँ प्राप्त होना जिनसे वह विचलित हुए बिना प्रत्येक संकट का सामना कर सके, उससे लड़ सके। 
मनुष्य जीवन में सुख-दुख, हानि-लाभ, उतार-चढ़ाव तथा व्याधियों से सामना जीवन का अंग हैं। ईश्वर का साथी होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि जीवन में संकट न आयें। परन्तु सांसारिक विषमताओं, बाधाओं और प्रतिकूल परिस्थितियों से वे मनुष्य ही जूझते हैं जो ईश्वर में विश्वास रखते हैं। 
कोरोना के कहर में जो "कोरोना योद्धा" मानव जाति के हितार्थ कार्य कर रहे हैं, उनके मन-मस्तिष्क को प्रेरणा और शक्ति देने वाला ईश्वर ही तो है। 
इसलिए कहता हूँ कि...... 
रोग शोक का यह समय, हर मानव भयभीत।
संबल बस प्रभु नाम का, जप   मेरे  मनमीत।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखंड
हमारे शरीर के अंदर रहने वाली चेतन-सत्ता आत्मा तथा विश्व शरीर के अंदर रहने वाली चेतना को परमात्मा या ईश्वर कहते हैं और आत्मा +परमात्मा का योग ही हमें संकट के समय संबल देता है, साथ देता है l
रोग,अभाव, राग-द्वेष, चिंता, भय और शोक-संताप से हमारे जीवन में संकट आते हैं l ऐसे में अध्यात्म और भक्ति मार्ग ही हमें संकट से मुक्ति देता है क्योंकि हमारी मान्यता है और वास्तविकता भी है l
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु
जो कुछ संकट होय हमारो l 
कौन सौ संकट मोर गरीब को
जो तुमसो नहिं जात है टारो ll
  हमारी आत्मा, चेतना ने स्वीकार किया तो परमात्मा ही हमें संकट से उबारता है l
लेकिन ईश्वर की अनुकम्पा और सहायता प्राप्त करने के लिए परमात्मा का अज्ञानुवर्ती और धर्म परायण होना होगा l
सियाराम मय सब जग जानि,
करहु प्रणाम जोरि जुग पानि l
   प्रत्येक आत्मा में परमात्मा का दार्शनिक तत्व आपको संकट से उबार देगा, चाहें वह पुत्र, सखा, माता-पिता के रूप में या अन्य परिजनों के रूप में आपका साथी होगा l
हमें ध्यान रखना होगा कर्म फल ईश्वरीय विधान का अविच्छीन्न अंग है l "बोये पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाये l "
हमें आस्तिकता एवं उपासना का वास्तविक उद्देश्य "भगवान सर्वव्यापक, न्यायकारी है l वह दुःख /संकट देगा ही नहीं l "परन्तु हमें सावधान होना होगा कि ईश्वर भक्त वत्सल ही नहीं अपितु भयानक रूद्र रूप भी है l उसके दण्ड से डरते हुए स्व-परकल्याण के भावों से मानव जीवन का आनंद लें l उपनिषद के अनुसार "रसो वै स:"अर्थात प्रेम ही परमेश्वर है l
            चलते चलते ------
ज्योति से ज्योति जलाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो l
राह में आये जो दीन दुःखी
सब को गले से लगाते चलो ll
      संकट के समय ईश्वर केवल साथ देता है l
कर्म भूमि पर फल के लिए
श्रम सबको करना पड़ता है l
रब सिर्फ लकीरें देता है
रंग तो हमको ही भरना पड़ता हैll
 - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
जब जब भी किसी जीव को संकट आता है वो बेचैन हो कर छटपटाता है और यथा सम्भव उससे छुटने का प्रयास भी करता है ।
जीवों में सर्वोपरि मनुष्य है इसलिये मनुष्य में विवेक और बुधि और प्राणियों से अधिक और तेज होती है ।
इसलिये जब जब भी मनुष्य पर कोई संकट आता है तो वो बुधि, विवेक और सूझ बूझ से वो उन समस्याओं और संकट से बाहर भी निकल आता है ।
परन्तु यदि अथक प्रयास के वावजूद संकट का हल ना हो पाए तो फिर मनुष्य डोर ईश्वर पर छोड कर प्रयास करता है ।  
 -  सुरेन्द्र मिन्हास 
  बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
यह बिल्कुल ही सच है कि संकट के समय में सिर्फ ईश्वर ही साथी होता है ।अगर हम सार्थकता से और सच्चे हृदय से ईश्वर की आराधना करते हैं तो विपरीत परिस्थितियां भी टलकर अनुकूल परिस्थितियों में बदल जाती है। आज के परिवेश में जिंदगी बहुत ही खतरनाक पलों से गुजर रहा है इसलिए हमें सिर्फ ईश्वर को ही अपना साथी समझना चाहिए। जिस प्रकार हमारे माता-पिता हमारे जीवन में हमारे लिए कृतज्ञता के साबित होते हैं और हमें हम परोपकार करते हैं। उसी प्रकार हमारे ईश्वर भी हमपर परोपकार करते हैं और हमेशा संकट के समय में वह हमारे लिए सार्थक सिद्ध होते हैं। संकट के समय में सिर्फ ईश्वर ही एक ऐसा साथी होता है जिससे हम अपनी मनोदशा का व्याकरण कर सकते हैं ।और आप जिस प्रकार हम अपने माता-पिता से अपने कष्टों का वर्णन करके अपने आप को शांतिपूर्ण महसूस करते हैं ।और हमारी समस्याओं का समाधान हो जाता है उसी प्रकार इस संकट के समय में ईश्वर ही हमारा साथी होता है ईश्वर  हमारे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करता है। इस संकट के समय में ईश्वर को ही अपना साथी समझना चाहिए पूरी सृष्टि ईश्वर की देन है ईश्वर की इच्छा के अनुसार कुछ भी नहीं होता है अगर हम प्रकृति और ईश्वर के साथ खिलवाड़ करते हैं ।तो उसकी सजा भी हमें अपने कर्मों के अनुसार ही प्राप्त होता है इसी प्रकार इस संकट के समय में हमारे लिए तत्पर होते हैं। उसी प्रकार हमें आराधना और उपासना सच्चे हृदय से करनी चाहिए। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड
ईश्वर तो हमेशा ही साथ होता है,बस बात इतनी सी है कि हम याद संकट में ही करते हैं। जब कोई और लौकिक सहारा नजर  नहीं आता,तब अलौकिक सहारा ईश्वर ही याद आता है।जो हमेशा जीव के साथ रहता है,स्मरण रहे ईश्वर अंश जीव अविनाशी। 
ईशोपनिषद का मंत्र है ”ईशावास्यम इदं सर्वं यद्किंचित जगत्याम जगत
तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध कस्यविद्धनम" इसके अनुसार भी इस जगत में जो कुछ भी है, सबमें ईश्वर का वास है। 
कण कण में भगवान का दर्शन, उपस्थिति का अहसास भारतीय दर्शन का अभिन्न अंग है। इससे इंकार नहीं किया जा। 
ईश्वर विभिन्न रुपों में हमारे साथ होते हैं।बस हम पहचान नहीं पाते। वहीं तो हर संकट को काटते हैं। 
 कोरोना संकटकाल में ही देखिए जब सगे रक्त संबंधी भी एक दूसरे के पास नहीं जा पाते,तब ऐसे समय में जो चिकित्सक,नर्स और सेवा में लगे लोग हैं,वह सब ईश्वर का ही रुप है। 
वैसे भी ईश्वर ही सच्चा साथी होता है क्योंकि वह जन्म से पूर्व भी साथ था और मृत्यु के बाद भी साथ रहेगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
संकट जब आता है, एक व्यक्ति मानसिक तौर पर परेशान और दिग्भ्रमित हो जाता है। ज्यादा परेशानी होने पर उसे अपने आप पर से भी विश्वास उठ जाता है। यही स्थिति उसे ईश्वर के शरण में ले जाती है।
        ईश्वर अंतरात्मा की शक्ति है। इंसान उसे ही पाने की कोशिश करता है और ईश्वर को साथी मान लेता है। जबकि सारे अवसर उसकी सूझ-बूझ या प्रयासों का फल होता है। 
     संकट में सच्चे दोस्त भी साथ निभाते हैं। उनका साथ हर मुसीबत में मिलता है। जिनके साथ मित्र होते हैं उनको बड़े-से-बड़े संकट में भी आसानी से रास्ता मिल जाता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
बेशक संकट के समय ईश्वर से बड़ा साथी कोई नहीं होता।
कभी कभी ईश्वर अपना प्रतिनिधि किसी न किसी रूप में मदद करने भेज देते हैं , या दीन जन के अंदर य सद्बुद्धि के रूप स्थापित महोकर सकारात्मक कार्य की प्रेरणा देते हैं दयालु प्रभु ।
 जब जीवात्मा संकट में निष्कपट भाव से सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है और इस अवस्था में आर्त भक्तों की श्रेणी में आ जाता है, तब उस जीवात्मा  अर्थात मनुष्य को उसके अंतः करण भीतर विराजमान सर्व व्यापक पूर्ण ब्रह्म परमात्मा से सहायता अवश्य मिलती है ।
बड़े-बड़े संकट के समय हम ईश्वर को याद करने से उस संकट से लड़ने की शक्ति पाते ह,ैं या यूं कि संकट में सिर्फ ईश्वर ही साथी होता है ।
ईश्वर को स्मरण करने से हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है और इस तरह ईश्वर को याद करने से हर संकट से उबर पाते हैं।
 वैसे तो ईश्वर का स्मरण हर पल करना चाहिए ,उनकी सत्ता को कभी नहीं भूलना चाहिए, दुख हो या सुख ,संकट हो या खुशी ।
ईश्वर को याद करने से असीम शांति प्राप्त होती है।
प्रार्थना का सरल अर्थ है भगवान और मनुष्य के बीच विश्वास भरी बातचीत।
 प्रार्थना द्वारा हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं ।प्रार्थना में बहुत शक्ति है अगर आप इस में विश्वास करते हैं ।प्रार्थना अंतर्मन की ईश्वरीय पुकार है। भावपूर्ण ह्रदय से निकली हुई है ऐसी पुकार है जिसका व्यक्ति के अपने तन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रार्थना ईश्वरी शक्ति की कृपा के लिए भक्तों के व्याकुल हृदय से निकली एक ऐसी करुण पुकार है जो उसको सब प्रकार के संताप ओं से मुक्त कर देती है ।सुरक्षा कवच प्रदान करती है ।यह मन की पुकार है ।
 प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता कि सिर्फ बैठ कर कुछ मंत्रों का जाप करें या उच्चारण करें ।इसके लिए आप निर्मल शांत और ध्यान अवस्था में  हों ।पहले ध्यान फिर प्रार्थना ,,,तभी प्रार्थना प्रभावी होगी ।
जब आप प्रार्थना करते हैं तो आपको पूर्ण रूप से निमग्न होना चाहिए ।यदि मन पहले से कहीं भटक रहा है तो वह प्रार्थना नहीं हुई ।
जब आपको कोई दुख होता है तो आप एकाग्र चित्र हो जाते हैं। इसलिए दुख में लोग अधिक सुमिरन करते हैं,,, यह प्राकृतिक सत्य है।
 प्रार्थना तब होती है जब आप ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हैं या आप अत्यंत निराशा या निर्बल महसूस करते हैं, इन दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाती है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य स्वीकार होती है। ईश्वर अवश्य साथ देता है संकट में ,मेरा ऐसा विश्वास है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
        इतिहास साक्षी है कि जब-जब संकट आए मानव ने ईश्वर के सहयोग और समर्थन से अपना आत्मबल जागृत किया और संकट पर विजय प्राप्त की। भागवत गीता भी इसका समर्थन करते हुए कर्म करने का संदेश देती है और विश्वास दिलाती है कि कर्म करने वाले की कभी हार नहीं होती। चूंकि जिसका साथी ईश्वर हो उसका अहित कोई कर ही नहीं सकता।
        सर्वविदित है कि सुख व दुःख स्थाई नहीं होते और संकट भी परिवर्तनशील होता है। जिसमें धैर्य एवं विश्वास की अत्यंत आवश्यकता होती है और विश्वास ईश्वर का दूसरा नाम है जो कभी अहंकार नहीं होने देता‌।
        उल्लेखनीय है कि अहंकार मानव के पतन का प्रमुख कारण बनता है और बड़े-बड़े अहंकारियों का नाश स्वयं ईश्वर ने किया है। उदाहरणार्थ विष्णु अवतार में द्वापर युग में श्रीकृष्ण जी ने कंस वध और त्रेता युग में श्रीराम जी ने महापंडित राजा रावण का वध कर अपनी उपस्थिति का आभास दिलाया है। यही नहीं द्रोपदी चीरहरण के संकट में द्रोपदी द्रारा श्रीकृष्ण जी ने उसका सहयोग करने का प्रमाण भी दिया है जो सिद्ध करता है कि संकट में सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही साथी होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हां! प्रसन्नता के पलों में व्यक्ति अपने साथ होता है या फिर अपनों के साथ। आमतौर पर उसे कभी ईश्वर का ध्यान नहीं आता। दिन रात परिवार के पालन- पोषण में लगा रहता है। उसे ईश्वर का ध्यान सिर्फ नित्तनेम के समय ही नज़र आता है। बल्कि उस समय भी वह बैठा कहीं होता है और ध्यान कहीं और होता है। लेकिन जब संकट की घड़ी आती है, उसके अपने सब साथ छोड़ जाते हैं तब जीवन का सत्य उसके सामने आ खड़ा होता है कि सच में कोई अपना नहीं है सभी रिश्ते- नाते स्वार्थ के हैं।
उदाहरण के तौर पर कोरोना नामक महामारी ने इस सच के प्रत्यक्ष रूप में दर्शन करवा दिए कि इस दुनिया में अपना शरीर भी अपना नहीं है। चंद साँसों का खेल व्यक्ति समझने लगा है। ऐसे में वह कहता है कि कोठी, कार बंगला, रिश्ते- नाते कोई साथ नहीं देने वाला। सिर्फ और सिर्फ उसका साथी ईश्वर है। उसके सिवाय कोई अपना नहीं है। संकट की घड़ी में व्यक्ति का ध्यान ईश्वर की ओर जाता है जो निराकार है और साकार रूप में उसे दिखने लगता है। उसकी सत्ता से बड़ी कोई सत्ता नहीं। उससे नाता है तो सब कुछ धूल सामान। उसका साथ है तो किसी की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं ही सब अपने पास चले आएंगे। हाँ! ऐसा तभी होता है यदि उसे संसारी सुख में भी सबसे निकट समझकर सच्चा प्रेम किया हो। तब वह संकट में भी साथ देता है नहीं तो बेटा- बेटी, बैंक बैलेंस.. वही साथ देते नजर आएँगे।
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
क्या संकट में सिर्फ ईश्वर साथी होता है
यह बात सर्वविदित है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, सर्वव्यापी है,अदृश्य है और अतुलनीय है किंतु यह बात भी उतनी ही सत्य है ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते हैं ।इसलिए हमें जिंदगी में हिम्मत और साहस से काम लेना चाहिए। संकट में यही हिम्मत और साहस ही हमारा साथी होता है। जबकि भाग्य पर भरोसे रहने वाला व्यक्ति ना स्वयं की सहायता कर सकता है ना दूसरों की सहायता कर सकता है। कहा भी है - दैव दैव आलसी पुकारा ।अतः हमें निरा ईश्वर पर निर्भर न रहकर हिम्मत से काम लेना चाहिए तो हम किसी भी मुसीबत का सामना कर सकते हैं।
- डॉ .सुनील बहल 
नवांशहर - पंजाब
 हर मनुष्य के  अंर्तआत्मा  मे ईश्वर  ज्ञान  स्वरूप में विद्यमान है । हर संकट काल मे  ईश्वर  ज्ञान के  रुप  में समझ के माध्यम से  सहयोग  करता है अतः   कोई भी व्यक्ति समझकर कार्य करने से ही संकट से समाधान  पाता  है। संकट के  समय ईश्वर ज्ञान के रुप में  साथ रहता  है। 
- उर्मिला सिदार
 रायगढ - छत्तीसगढ़
संकट में ईश्वर सदैव साथी होता है इसमें संदेह नहीं। प्राणियों में ईश्वर ने मनुष्यों को अथाह बुद्धि दी है। इस बुद्धि के चलते मनुष्य भिन्न भिन्न विधाओं में पारंगत हो जाता है जिसमें एक चिकित्सक भी है। स्वास्थ्य से जुड़े किसी मामले पर चिकित्सक ही हमारा साथी होता है। वर्तमान आपदा में चिकित्सक अपनी भूमिका निभा रहे हैं किन्तु इसकी भयावहता को देखते हुए इस संकट में ईश्वर से बड़ा कोई साथी नहीं नजर आता।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
जब भी मनुष्य के अस्तित्व के मूल की खोज  होती है , तो समझ के परे हो जाता है ।एक छोटी सी वस्तु का रचइता कोई -न -कोई है ,तो ब्रह्माण का निर्माता ईश्वर है । अभी जब हम लोग कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे हैं तो ईश्वर से मांगते हैं  ' हे ईश्वर !  रक्षा करना '  । डा० भी लोगों को बचाने में नाकाम हैं । रुप बहुत भयानक है ।वैक्सीन के साथ प्रभु पर विश्वास जरुरी है । संकट के घड़ी में वही रास्ता दिखाते हैं उनको याद करने से मन में मजबूती आती है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
"वो तैराक भी डूब जाते हैं
जिनको खुद पर गुमान होता है, 
और वो गंवार भी डूबते डूबते पार हो जाते हैं जिन पर भगवान मेहरबान होता है"
ईश्वर सर्वशक्तिमान  और सर्वव्यापक है, सब कुछ उसके वश में है, हमें हरवक्त उस प्रभु पर विश्वास रखना चाहिए तथा निष्कपटभाव से प्रथाना करनी चाहिए कि हे भगवान हमारे दुखों का निवारण सिर्फ आपके पास है तो भगवान हमारी प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करेंगेे किन्तु हमें प्रभु पर अटल विश्वास होना चाहिए, 
तो आईये आज इसी बात  पर चर्चा करते हैं कि क्या संकट में सिर्फ ईश्वर साथी होता है? 
यह अटूट सत्य है  कि जब कोई भी हमारा सहारा नहीं होता सभी सगे सबन्धी व  सभी नाते नातियां यहां तक की हमारा अपना शरीर भी  हमारा साथ नहीं देता तब हमारे पास सिर्फ और सिर्फ परम पिता भगवान का ही सहारा होता है  वोही  हमारा संकट में साथी होता है और हम भी उसी क्षण उस परन परमात्मा को याद करते हैं, 
सच कहा है, 
"उसके होते हुए तू क्यों परेशान है, 
भगवान के चरणों में तो हर समस्या का समाधान है"
 इसलिए ईश्वर का स्मरण तो हमें हर क्षण हर पल में करना चाहिए दुख हो या सुख  संकट हो या मुसीबत लेकिन हम ऐसा नहीं करते हम तो केवल दुख में ही उसे पुकारते हैं अगर हम सुख में भी उसे याद करें तो दुख कभी  भी हमारे पर हावी न होगा, 
यह सत्य है कि  ईश्वर को याद करने से असीम शांति मिलती है व उच्च शक्ति का एहसास होता है जो हमें दुख झेलने में मदद करती है व संकट  में सामना करने का हौंसला देती है तथा हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है जिससे हम हर संकट से पार उतर जाते हैं, 
सच कहा है, 
"वो तो सदा सबका है, 
कभी तू भी उसका बन कर देख, 
बनेंगे तेरे बिगड़े काम
राम नाम तू जप कर तो देख"। 
कहने का भाव जब हम निष्काम भाव से व सच्चे मन से ईश्वर को याद करते हैं तो वो अवश्य हमारी सहायता के लिए  प्रकट होते हैं जैसे द्रौपदी के वस्त्र हरण में प्रकट हुए थे, 
परमात्मा की शक्ति  असीम व अतुल्य है,  इसलिए क्यों न हम सब उस  परम पिता भगवान कि शक्ति को पहचानें व हर कार्य को उसको याद करके ही करें ताकि हमारा हर कार्य शुभ हो
क्योंकी ईश्वर की शरण में जाने से  हम अपनी वुद्दी और विवेक का सही इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारा हर कार्य सफल होता हुआ दिखाई देता है, 
अन्त में यही कहुंगा कि ईश्वर के लिए हम सभी एक समान हैं यह दुख दर्द हम अपने कर्मों के अनुसार पाते हैं,  अगर हम  सच्चे प्रभु की शरण मे रहकर सभी कार्यों को सही ढंग से करेंगे तो हम काफी हद तक सुखी जीवन पा सकते हैं तथा ईश्वर भी हमारे हर सुख दुख में हमेशा साथ देगा, इसमें कोई शक की बात नहीं कि घोर से घोर संकट में सिर्फ ईश्वर ही हमारा साथी होता है बाकि तो सब फर्जी  रिश्ते नाते हैं जो अपना अपना रोल निभा रहे हैं, 
याद रखें, 
"यदि आपके पास सिर्फ भगवान हैं तो आपके पास वह सब है जो आपको चाहिए"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर


" मेरी दृष्टि में " जीवन में संकट हर किसी पर आता है । कोई टूट जाता है । कोई रास्ता निकाल लेता है । जिससे ईश्वर का साथ मिल जाता है । वह बड़े से बड़े संकट से भी पार हो जाता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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