क्या ज्ञान पर अहंकार करना सब से बड़ी मूर्खता है ?

ज्ञान पर अहंकार अक्सर होते देखा गया है । इसी को सबसे बड़ी  मूर्खता भी कहते हैं । यह ज्ञान का भारी नुकसान है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
"अंहकार में तीनो गए
बल , बुद्धि और वंश
नहीं यकीन तो देख लो, 
कौरव, रावण और कंस"। 
जिस तरह बिमारी के रोगाणु दिनों दिन शरीर को क्षीण कर एक दिन समाप्त कर देते हैं, 
अंहकार भी उसी तरह से व्यक्ति को ऐसे नशे में मदहोश कर देता है कि उससे सचाई कोसों दूर भाग जाती है, व्यक्ति अपने ही अंहकार मे डूब कर दुसरे के ज्ञान, सलाह, अनुभव को कुछ नहीं समझता सिर्फ अपने आप को ही सबसे ज्यादा ज्ञानी मानने लगता है, उसको अपने ज्ञान पर ही अंहकार होता है कि मैं ही सबसे बड़ा ज्ञानी हुं  जबकि यह उसकी मूर्खता की निशानी होती है, 
तो आईये बात करते हैं कि क्या ज्ञान  पर अंहकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है? 
यह अटूट सत्य है कि  ज्ञान पर अंहकार करना बहुत बडी मूर्खता है, वैसे तो अंहकार किसी बात पर भी खरा नहीं उतरता लेकिन ज्ञानी का अंहकार उसे ले डूवता है,  
देखा जाए अंहकार शब्द अंह से बना है जिसका अर्थ मैं होता है, 
जब इंसान मैं की भावना से ग्रस्त हो जाता है तो उसे अंहकार कहते हैं और अंहकार ही विनाश का कारण व अज्ञानता का सूचक है, 
यहां अंहकार का वाश होता है वहां से नम्रता, बुद्धि, विवेक, चतुराई जैसे गुण  सदा के लिए चले जाते हैं, 
यह सत्य है कि अंहकार मानव जाति का सबसे बड़ा तुच्छ प्राणी है, इसके कारण ही इंसान पाप  करता है और अपने सभी अच्छे कर्म मिट्टी में मिला देता है।
अन्त में यही कहुंगा की अंहकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है जिससे ज्ञान का नाश हो जाता है, जैसे रावण को अपने बल बुद्धि पर बडा अंहकार था, उसी अंहकार ने उसका सबकुछ नष्ट कर डाला, 
सच कहा है, 
"सब कुछ जीता जा सकता है 
संस्कार से, 
जीता हुआ भी हारा  जा सकता है अंहकार से"। 
इसलिए जीवन में अंहकार को त्यागना जरूरी है नहीं तो यह मनुष्य को गर्त में ले जाता है इसके त्यागने से इंसान उंचाईयों को पार कर जाता है और यहां पर इसका वाश होता है, वहां से क्षमा, दया, प्रेम धैर्य, नम्रता इत्यादी चले जाते हैं, 
सच कहा है, 
" जलती लकड़ी देखकर मन में आया विचार, 
तन की होगी यही गति
फिर कैसा अंहकार "। 
इसलिए अंहकार मनुष्य की सबसे बड़ी मुर्खता  और अज्ञानता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निश्चित रूप से, ज्ञान का सही प्रयोग करना चाहिए, न कि उस पर अहंकार किया जाए। ज्ञान स्वयं में ही सकारात्मक होता है और उसका अधिक से अधिक उपयोग मानव कल्याण हेतु किया जाना चाहिए। अहंकार तो विष की गगरी की तरह है जो सदैव ही हानिकारक होता है एवं पतन का कारक बनता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
किसी भी व्यक्ति को अपने ज्ञान बुद्धि बल पर अहंकार नहीं करना चाहिए। ज्ञान पर अहंकार करना व्यक्ति की सबसे बड़ी मूर्खता है।जो लोग ज्ञान के अभिमान करते हैं दूसरों के सामने अपने को घमंड करना नहीं चाहिए। ज्ञान के जो व्यक्ति अभिमान करता है तो बिल्कुल सही बात है उसकी सबसे बड़ी मूर्खता है। ज्ञान का अंधकार करना सबसे बड़ी अज्ञानता मानी जाती है। धन रूप और गुण की सामान्य लोगों में अधिकता होने पर मनुष्य में उनका आ ही जाता है। कहा जाता है कि प्रगति में मनुष्य का अधिकार बहुत बड़ा बाधक होता है। इसके वशीभूत होकर चलने वाला मनुष्य प्रायः पतन की ओर जाता है। श्रीपद की यात्रा उसके लिए गुरु एवं दुर्गम हो जाती है। अहंकार में भेद उत्पन्न होती है जो मनुष्य को मनुष्य से ही दूर नहीं कर देती अपितु अपने मूल स्रोत परमात्मा से भी मिल कर देती है। परमात्मा से भी होते ही मनुष्य में पाप प्रवेश प्रबल होती है। वैसे अहंकारी व्यक्ति कभी भी उदार अथवा पुण्य परमार्थी हुआ नही करते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए पहले पाप का परित्याग करना होगा। स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए रोगी को पहले रोग से मुक्त होना होगा। लोक परलोक का कोई भी श्रेय प्राप्त करने में अहंकार मनुष्य का सबसे विरोधी तत्व माना जाता है। कहा जाता है कि अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा जबकि वह सबसे बड़ा विद्वान और बलशाली था। लेकिन अपने अहंकार के कारण मारा गया। व्यक्ति को प्रगति के पथ पर चलने के लिए हमेशा ही अहंकार का परित्याग कर आगे बढ़ना चाहिए। अहंकार से विकास नहीं बल्कि विनाश होता है। दुनिया में किसी का भी अधिकार से उसका लाभ नहीं हुआ है बल्कि हानि ही हुई है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
     एक कहावत चरित्रार्थ हैं, ज्ञान की गंगा में नहाते रहे, जब निकले तो ज्ञान बह गया। उसी प्रकार से अगर कोई ज्ञानचंद, जरुरत से ज्यादा अपने ज्ञानों का बखान करता हैं, तो समझिए उसमें अंहकार का समावेश हो चुका हैं, जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक नहीं हो पाते और दूसरा संकुचित सोच में बदलाव की जगह नकारात्मकता की ओर ध्यानाकर्षण हो जाता हैं।  आज जो भी घटित हो रहा हैं, अंहकार के कारण ही विचारधारा में परिवर्तित की लहर दौड़ गई हैं, जिसके कारण जनजीवन प्रभावित हो रहा हैं। कभी-कभी तो  अकारण ही टकराव ज्ञानचंदों से हो जाता हैं और न चाहते हुए भी झुकना ही पड़ता हैं, फिर अपने आपको महाज्ञानी समझने लगता हैं और यही से अंहकार का बोध होना प्रारंभ हो जाता हैं, वास्तविक जीवन में जो ज्ञानवर्धक जानकारी वृहद रुप में प्रस्तुत करता हैं, वही ही यथार्थवादी की झलक दिखाई देती हैं और सफलता की पूंजी का सहायक होता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज के विषय के संदर्भ में ज्ञान जहा किताबी डिग्री की पढ़ाई है वही नैतिकता का धारा प्रवाह हमारे मन मस्तिष्क में होता हैं उसे ही हम ज्ञान कहते हैं, ज्ञान डिग्री का पुलिंदा नही है ज्ञान अनुभव आचरण और अध्ययन और अनुकरण का भी पर्याय है, ज्ञानी व्यक्ति यदि मानसिक रूप से शांत है और अपने ज्ञान के अलावा दूसरे की बात को ध्यान से सुनता है और अच्छी बातों को स्वीकार कर अनुसरण करता है वो भी ज्ञानी है, ज्ञान जीवन को अध्यात्म से जोड़ता है और जो ज्ञानी अच्छे बुरे की पहचान कर जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को विस्तार देता है वह अहंकार से कोसो दूर होता हैं, ज्ञानी वही है जो अहंकार और मद से दूर है,ज्ञानी व्यक्ति यदि ज्ञान और विद्या को अपने जीवन में अपनाता है उसको अपने व्यवहार में बनाए रखता है तो वो अहंकारी नही हो सकता।
अतः ज्ञानी वही जो अहंकार को न अपनाए।
मूर्ख वही जो ज्ञान के साथ अहंकारी बन जाए।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्य्प्रदेश
यह सत्य है अज्ञानता से घमंड आता है। लेकिन यह भी सत्य है कि हर अज्ञानता घमंड के परिचायक नहीं होती है। अज्ञानता का परिचायक इस कहावत से पता चलता है:--- *अधजल गगरी छलकत जाए*।थोड़ी सी ज्ञान हो जाने के बाद समझते हैं हम अब ज्ञानी हो गए हैं।अहंकार का प्रवेश हो जाता है तो व्यक्ति पतन की ओर जाने लगता है।
*रावण संसार में बहुत बड़े ज्ञानी महापुरुष थे।* लेकिन अपने ऊपर घमंड होने के कारण उनका नहीं बल्कि कुल एवं श्रीलंका का विनाश हो गया।
लेखक का विचार:-- ज्ञान का जो व्यक्ति अभिमान करता है तो बिल्कुल सही बात है उसकी सबसे बड़ी अज्ञानता है।ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है एवं अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है। इंसान को ज्ञान तक शोभा देता है जब वह घमंड रहित हो।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
ज्ञान, सीखने की ललक......परिश्रम.......सूझबूझ और मां सरस्वती की देन है । 
        ज्ञान एक दिन में हासिल नहीं किया जा सकता और ना ही इसकी कोई सीमा है । यह असीमित और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । 
        छोटे से छोटे बच्चे से, प्रकृति से, पशु-पक्षी से, व नन्ही सी चींटी से भी प्रतिफल कुछ न कुछ सीखते हैं .......ज्ञान हासिल करते हैं । 
      जीवन में व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है । 
      जो लोग यह कहते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है या वे ज्ञान से परिपूर्ण हो गए हैं । देखा जाए तो यह उनका अहंकार बोलता है, जिस प्रकार पूर्ण भरे हुए बर्तन में कुछ और नहीं डाला जा सकता उसी प्रकार जो अपने को पूर्ण ज्ञानी मानते हैं, वे फिर कुछ नहीं सीख पाते और आधे अधूरे रह जाते हैं तथा अधजल गगरी की तरह छलकने लगते हैं । 
      ज्ञान पर अहंकार करना सबसे बड़ी भूल और मूर्खता है क्योंकि ऐसी सोच, ज्ञानार्जन के सभी रास्ते बंद कर देती है  तथा साथ ही जो भी थोड़ा बहुत ज्ञान होता है,वह भी अहंकार की भेंट चढ़ जाता है ।
                 -  बसन्ती पंवार 
            जोधपुर  - राजस्थान 
ज्ञान की ख़ुशबू से जग महकाना चाहिये न की अंहकार , करना चाहिये अंहकार तो बडे बडे शूरमाओ का विनाश करता है । 
रावण को अपने ज्ञान पर अंहकार आ गया था । अंत हम सब जानते है , पर वहाँ पर भी उसने अपने ज्ञान का  सदुपयोग कर मोक्ष पाया । 
कहावत है की विघा विनम्रता सिखाती है , अंहकार नही ..
ज्ञान अर्जित करने की कोई सीमा नहीं , ज्ञान तो हम कभी पूर्णतः पा ही नहीं सकते कहीं न कहीं कुछ रह ही जाता है 
अंहकार तरक़्क़ी के सारे रास्ते अवरुद्ध कर देता है ।
फिर अंहकार  क्यों .....
अंहकार से विनाश व नफ़रत ही मिलती है कम ज्ञानवान भी यदि विनम्रता से पेश आता है तो जग में समाज में सब उसकी गुणगान करते हैं सम्मान करते है । 
अज्ञानी व्यक्ति ही ज्ञान पाकर अंकहारी होता है जो बहुत बड़ी मूर्खता है ।
ज्ञान तो हम सुबह से शाम अर्जित करते रहते है यह सदा सिखने रहने की प्रवृत्ति को जन्म देती है । 
जो लोग ज्ञान पर अंहकार करते हैं, दूसरों के सामने अपने को ज्ञानी बताते है । वे व्यक्ति उपहास का पात्र बनते है । यही उसकी अज्ञानता साबित होती है ज्ञान पर अंहकार सबसे बड़ी अज्ञानता है एवं अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है. इंसान का ज्ञान तभी शोभा देता है जब वह अंहकार रहित हो, विनम्रता पूर्वक आचरण करें । 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
         मात्र ज्ञान पर अहंकार करना ही मूर्खता नहीं बल्कि किसी पर भी अहंकार करना मूर्खता है। चाहे वह स्वस्थ शरीर हो या अत्याधिक शारीरिक बल, धन-सम्पत्ति हो या राजपाट एवं अन्य मूल्यवान सांसारिक वस्तुओं पर अहंकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है। चूंकि आत्मा और कर्मों के अलावा सब कुछ नाशवान हैं।
         जबकि ऐसे असंख्य मूर्खों की टोली आपको हर घर, मोहल्ले, गांव में और शहर के चौराहों पर खड़ी मिल जाएगी। जिन्हें अपने उच्च अधिकारी, ठेकेदार, विद्वान, लेखक, प्रकाशित पुस्तकों की संख्या, साहित्य अकादमी के अनन्य पुरस्कारों, डाॅक्टर, विशेषज्ञ, अधिवक्ता, न्यायाधीश होने और उन पर शोध इत्यादि करने पर अहंकार होगा।
         परंतु उनके उपरोक्त अंहकार उस समय छूमंतर हो जाते हैं जब कोई व्यक्ति विभिन्न चुनौतियों के माध्यम से उनकी सार्थकता का उन्हें अनुभव करवाए। तब उनके ज्ञान की बैंड बज जाती है और वह इधर-उधर बगलें झांकने लगते हैं। जैसे वर्तमान कोरोना विषाणु ने सबको उनकी औकात दिखा रखी है और चारों ओर त्राहिमाम-त्राहिमाम हो रहा है।
         अतः समस्त प्रकार की प्राप्तियों को ईश्वरीय वरदान मानते हुए कदापि अहंकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि ज्ञान की गंगा तो ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ उपहार है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अहंकार करना ही सबसे बड़ी मूर्खता है फिर चाहे वह ज्ञान हो, सौंदर्य हो दौलत कुछ भी हो जहां मैं आ गया उसका पतन शुरु हो जाता है! 
अहंकार तो प्रभु को भी पसंद नहीं हैं .... वो कहते हैं ना ...!
तब तक ही हरिवास है, 
 जब तक दूर गरुर
आवत पास गरूर के
प्रभु हो जावे दूर !
अहंकार, घमंड, क्रोध ये सभी दुर्गुण ही मनुष्य को निर्बल बनाते हैं! इसीलिए तो शिव के परम भक्त और अपार ज्ञानी होकर भी राजा रावण का अहंकार टिक न सका! अहंकार की चादर इतनी मोटी होती है उसमे हमारे सारे सदगुण छुप जाते हैं! जो व्यक्ति अपने ज्ञान पर अहंकार करता है वही उसकी सबसे बड़ी अज्ञानता है! गीता में प्रभु कृष्ण ने भी अर्जुन को उनके अहंकार से अवगत कराया था! 
ज्ञान तभी सही मायने में दीप्त होता है जब उसका प्रकाश दूसरों को भी रौशनी देता हुआ देदीप्यमान होता है! मतलब साफ है ज्ञान बांटने से बढ़ता है! 
ज्ञान तभी शोभा देता है जिसमें अहंकार न हो! 
ज्ञान से तो व्यक्ति विनयशील होता है! ज्ञान प्राप्त करने की भुभुक्षा कभी पूर्ण नहीं होती! यह सच है ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती! कोई परिपूर्ण  नहीं है! सभी का अपने अपने क्षेत्र में अपना  ज्ञान होता है! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
मैं अक्सर सोचता हूँ कि जब मनुष्य को इस बात का ज्ञान होता है कि मानव जीवन सहित प्रकृति में सब कुछ परिवर्तनशील है तो फिर सत्ता, शक्ति, धन, बुद्धि/ज्ञान अथवा अन्य किसी भी चीज के कारण उत्पन्न अहंकार मनुष्य को अपनी जकड़ में करता ही क्यों है? 
अहंकार तो है ही मूर्खता का परिचायक। अहंकारी का सदैव विनाश ही होता है। परन्तु जब ज्ञानी अपने ज्ञान पर अहंकार करता है तो इसे मूर्खता की पराकाष्ठा ही कहूंगा। 
क्योंकि..... 
"प्रदर्शित होता है सुनहरे अनुभव और ज्ञान का पीलापन,
अंहकार की बेड़ी जब मन - मस्तिष्क से बंध जाती है। 
प्रतीत होता है तब ज्ञानी के ज्ञान में छिपा मटमैलापन,
सम्मान के समय झुकी ग्रीवा जब घमंड से तन जाती है।।" 
यह सबको ज्ञात है कि गर्व और अहंकार में जमीन-आसमान का अंतर होता है। जो भी मनुष्य अपनी अथक मेहनत से ज्ञान प्राप्ति करता है, नि:सन्देह उसे अपने ज्ञान पर गर्व करने का पूरा अधिकार है और उसे करना भी चाहिए। क्योंकि गर्व का भाव सदैव सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहते हुए पूजनीय कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।
परन्तु यदि ज्ञानी, अहंकार में डूबकर, दूसरों को तुच्छ समझने और मानव कल्याण के विरुद्ध कार्यों में लिप्त रहता है तो वह ज्ञान का अपमान करता है। 
मैं समझता हूँ कि यदि मनुष्य के पास कोई भी ऐसी शक्ति है, जो अहंकार की उत्पत्ति का कारण बन सकती है तो इसके साथ ही मनुष्य के मस्तिष्क में बसा हुआ ज्ञान उसे सजग करते हुए अहंकार का त्याग करने में सक्षम भी बनाता है। 
यदि यही ज्ञान अहंकार की उत्पत्ति का कारण बनता है तो ऐसे ज्ञान का न होना ही अच्छा है। 
इसीलिए कहता हूँ कि......      
"रूप, रुतबा, और इल्म वाहवाही का हकदार होता है। 
अंहकार की उत्पत्ति का भी लेकिन जिम्मेदार होता है।। 
जीवन के इस क्रत्रिम आकर्षण से मुग्ध होता नहीं जो, 
मानव वही धरा पर स्थितप्रज्ञ और वजनदार होता है।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अहंकार या घमण्ड तो किसी भी उपलब्धि पर करना गलत है । चाहे वह ज्ञान हो या कोई अन्य गन ।
शिक्षा से ज्ञान प्राप्त होता है अहंकार नहीं ।
 कुछ लोग शिक्षा के बल से प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को अपनी उपलब्धि समझ लेते उन्हें घमण्ड हो जाता है।
 ज्ञान का घमंड कभी नहीं करना चाहिए और दूसरे के ज्ञान को कभी कम नहीं समझना चाहिए।
 सच तो यह है कि घमंड से ज्ञान का नाश हो जाता है ,मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है । अहंकार से सारे काम बिगड़ने लगते हैं ।
मेरी एक रचना है  इसी विषय मे
 किसी को घमंड है जरा से ही ज्ञान का।
किसी को अभिमान है मान औ सम्मान का ।
कोई प्रफुल्लित रूप गर्वित प्राप्त प्रभु से चाम का ।
कोई अहम में भृमित देखो सम्पदा की शान का ।
पर न उनको ज्ञान है परमात्मा के काम का ।
मूर्ख खुद को श्रेय देते जो कृत्य है प्रभु राम का । 
अतः अहँकार करना अपने पतन को निमन्त्रण देना है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी हां! यदि ज्ञान का अहंकार है तो फिर वह ज्ञान कैसा? व्यक्ति को अहंकार का ज्ञान तो हो जाता है लेकिन उसे उस बात का पता नहीं चलता कि उसको जो ज्ञान मिला है उसका उसे अहंकार हो गया है उसका ध्यान होना बहुत जरूरी है। जो ज्ञान का अहंकार करते हैं उससे बड़ी गलत बात तो कोई हो ही नहीं सकती।
जिसे गलत ठीक का पता हो, जिसे अच्छे बुरे का पता हो, जो अद्वैत भाव में जीता हो, जो सबके हित की बात करता हो, जिसे बोलने से पहले उचित- अनुचित का पता हो, जो सब कुछ होते हुए भी- जानते हुए भी झुक कर रहता हो, क्षमा भाव में रहता हो, सबके मन की समझता हो, जो बड़ा बोल ना बोले, किसी का मन न दुखाए उसी को तो ज्ञानी कहेंगे ...। ज्ञान की, अहंकार करने की अनेक बातें हैं यदि ज्ञान से अहंकार हो जाता है फिर वह ज्ञानी काहे का.. वह कहते हैं ना... 'मैंने पाया क्या  खाक पाया' .. जिसने पाया यदि वह कहे कि मैंने उसे पा लिया... फिर क्या खाक पाया..।
 - संतोष गर्ग, 
मोहाली - चंडीगढ़
अहंकार एक मनोवृति है। और यह मनोवृति की उत्पत्ति गलत धारणा के फल स्वरुप हो जाती है बचपन के परवरिश में इन धारणाओं का निर्माण हो जाता है अहंकार मतलब अपने ऊपर घमंड करना यह मूर्खता से भी खराब है मूर्खता तो अनजाने में होती है।
अहंकार की प्रवृत्ति में अज्ञानता छिपी रहती है किसी को धन का अहंकार है किसी को खूबसूरती का आकार है किसी को शक्ति का हंकार है किसी को अपने पढ़ाई पर अहंकार है दिन प्रतिदिन के व्यवहार में बोलचाल की भाषा से इसकी स्पष्ट जानकारी मिलती रहती है जैसे किसी समस्या के समाधान है एक इंसान जब यह कहने लगे की मैं इस समस्या का समाधान कर सकता हूं दूसरा कोई नहीं कर सकता तो यह अहंकारी भाषा है मेरे जैसा दुनिया में दूसरा धनी कोई नहीं है यह भी एक अहंकारी भाषा है मेरे जैसा शक्तिशाली कोई नहीं है जैसे रावण को अपने शक्ति पर अहंकार था तो अहंकार का कहीं ना कहीं ना सोता है इसलिए अहंकार बिल्कुल ही मूर्खता पूर्ण व्यवहार है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
  ज्ञान पर अहंकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है। जिस व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त है। वह व्यक्ति ज्ञान का उपयोग  आवेश गति में नहीं करेगा, बल्कि आवेश गति को स्वभाव गति में परिणत कर देने की  क्षमता रखता है। ऐसे स्वभाव के मानव को ज्ञानी कहा जाता है। ज्ञानी व्यक्ति अहंकार नहीं करता, बल्कि अहंकार आवेश गति है ,जो समस्या पैदा करता है। जबकि ज्ञान समाधान के अर्थ में है ।जो व्यक्ति ज्ञानी है, वह समस्या को समाधान में परिवर्तन करने की क्षमता रखता है, न कि अहंकार करने की। अगर जिसके पास ज्ञान है और उस ज्ञान का सदुपयोग न कर ,दुरुपयोग करता है ।ऐसे व्यक्ति को अहंकारी या घमंडी कहा जाता है ।जो उसकी मूर्खता को व्यक्त करता है। अतः यही कहा जा सकता है,कि ज्ञान पर अहंकार करना मूर्खता है। दुष्टता है। अतः ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए, बल्की उपकार करना चाहिए। ताकि समस्या से समाधान पाकर सभी मानव जाति प्रेम भाव से संसार मे आज्ञ के प्रकाश में जी पाएं। अज्ञानता ही संसार की सबसे बड़ी कमजोरी है। जिसके कारण संसार में समस्या व्याप्त है ।ज्ञानी को अहंकार नहीं ,बल्कि ज्ञान को अंतरित करने की समीचीन  आवश्यकता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या ज्ञान पर अहंकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है तो मैं कहना चाहूंगा हां ज्ञान पर अहंकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है वास्तव में ऐसा ज्ञानी व्यक्ति किसी काम का नहीं है जो अहं कारी हो उसका यह अहंकार न केवल उसके लिए बल्कि घर परिवार समाज के लिए भी हानिकारक होता है वह अपने झूठे अहंकार के वश दूसरे सभी व्यक्तियों को तुच्छ समझने लगता है जिससे वह वैमनष्यता बढ़ती है भाईचारा खराब होता है और समाज में ईर्ष्या का भाव जन्म लेता है ऐसा व्यक्ति हमेशा दूसरों से श्रेष्ठ दिखने की चेष्टा करता रहता है और जाने अनजाने में दूसरे व्यक्तियों का अपमान करता है जो किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है और ऐसा करके वह न केवल अपनी प्रतिष्ठा गंवाता है बल्कि विद्वान होने के बावजूद भी उसे किसी प्रकार का सम्मान भी नहीं मिलता यदि कुछ लोग उसका सम्मान करते भी हैं तो वह केवल उसकी उम्र देखकर या उसकी लिहाज करके करते हैं वह वास्तव में उससे कहीं अधिक अच्छे होते हैं इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि ज्ञानी होने के साथ-साथ अपने ज्ञान का प्रयोग समाज के हित में करें और अहंकार से दूर रहें क्योंकि अहंकार ले डूबता है अहंकार ने रावण जैसे लोगों को नहीं छोड़ा तो एक आम इंसान की क्या औकात है 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
ज्ञान का अर्थ है विनम्रता। किताबों को पढ़कर या डिग्रियाँ चुराकर हम खुद को ज्ञानी नहीं कह सकते। ज्ञान तो अथाह सागर है, जिसमें गोते लगाने वाले को भी बस एक चुल्लू भर पानी ही नसीब होता है। 
ज्ञान पर अहंकार तो उसी को हो सकता है जिसने सही अर्थ में उसे हासिल नहीं किया है। क्योंकि ज्ञान पर अहंकार विनाश को बुलावा देना है। ए पी जे अब्दुल कलाम इतने ज्ञानी और विशिष्टता प्राप्त व्यक्तित्व, परन्तु अहंकार छू तक नहीं गया था। अहंकार उन्हें ही होता है जो अल्पबुद्धि होते हैं। थोड़ा ज्ञान उन्हें अहंकारी बना देता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जिसे अहंकार हो उसे ज्ञान कैसा और जिसे वास्तव में ज्ञान हो जाए उसे अहंकार कैसा! जीवन भर इंसान सीखता रहता है, अनुभवों से ज्ञान प्राप्त करता रहता है। यदि किसी को दुनिया का सबसे अधिक ज्ञान हो भी जाए और उसे इसी बात का दंभ हो कि वह सबसे बड़ा ज्ञानी है तो यही अहंकार उसे ले डूबता है। इस संदर्भ में ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और ऋषि विश्वामित्र की कथा बहुत ही सटीक बैठती है। एक घटनाक्रम में जब ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ऋषि विश्वामित्र की अनुपस्थिति में उनकी प्रशंसा कर रहे थे और उनकी तुलना सकल जगत को अपनी चांदनी से रोशन करने वाले चांद से कर रहे थे तो ऋषि विश्वामित्र छुप कर सुन रहे थे। यह सुनते ही वह ब्रह्मर्षि के पैरों पर गिर पड़े और क्षमा मांगी। तब ब्रह्मर्षि ने कहा कि यही अहं और लालसा ही तुम्हारे ब्रह्मर्षि कहलाने में बाधक थे जिसे आपने आज तोड़ दिया है। उठो ब्रह्मर्षि विश्वामित्र। तो ज्ञान पर अहंकार करना वास्तव में सबसे बड़ी मूर्खता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
ज्ञान किसी विद्या के पूरी जानकारी को कहते हैं । इस ब्रह्माण में विद्या की इतनी निधियाँ फैली हैं किसी एक के बारे में भी पूर्ण रुप से जान लेना ,आज के युग में दुष्कर लगता है । पहले के युग में व्यक्ति में  चारित्रिक शक्तियाँ होती  थीं । उन शक्तियों के जरिए इंद्रियों को वश में कर ,ज्ञान की खोज में लग जाता था ।आज किसी - किसी के पास एक  विषय पर विशेषता की डिग्री है । उस डिग्री के बल पर ज्ञानी बन जाना ,कोरी मूर्खता लगती है । सीखने की प्रक्रिया तो जिदंगी की आखरी साँस तक रहती है । हम अपने को ज्ञानी कभी नहीं  मान सकते ,जो लोग थोड़ा सा शिक्षित हो बौड़ाते हैं वह छिछली नदी के समान है , जिसने जल देखा ही नहीं । ज्ञानी भी यदि अंहकार करता है तो वह समाप्त हो जाता है ।रावण को पुराणों में ज्ञानी कहा गया लेकिन घमंड करके वो विनाश को प्राप्त हुआ ।थोड़ी सी जानकारी पर अंहकार करना बड़ी मूर्खता है । मैं तो यही  पढूँगी ...
 विद्या ददाति विनयम् ,विनयम् ददाति पात्रताम्
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " ज्ञान पर अहंकार , मूर्खता की निशानी है । यही जीवन का सत्य है । बाकी ज्ञान का विस्तार ही ज्ञान का भण्डार है
- बीजेन्द्र जैमिनी

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