पृथ्वीराज अरोड़ा की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच ने इस बार लघुकथाकार पृथ्वीराज अरोड़ा की स्मृति में " लघुकथा उत्सव " का   आयोजन  फेसबुक पर रखा है । विषय भी अरोड़ा जी प्रसिद्ध लघुकथा " पढाई " पर रखा है ।यह लघुकथा सारिका पत्रिका में 1980 में प्रकाशित हुई है । वैसे सारिका पत्रिका में अरोड़ा जी की बहुत सी लघुकथाएं प्रकाशित हुई हैं । जैमिनी अकादमी को भी यह सौभाग्य प्राप्त है कि इन की लघुकथाओं को प्रकशित करने का है ।
पृथ्वीराज अरोड़ा का जन्म 10 अक्टूबर 1939 को बुचेकी , ननकाना साहिब ( अब पाकिस्तान में ) में हुआ ।  इन की शिक्षा एम.ए. , बी.एड है । इन का लघुकथा संग्रह " तीन न तेरह " में 1997 में अयन प्रकाशन ( दिल्ली ) से प्रकाशित हुआ है ।  इसी प्रकार " आओ इन्सान बनाएं " लघुकथा संग्रह 2007 में सुकीर्ति प्रकाशन ( कैथल - हरियाणा ) से प्रकशित हुआ है । इन के अतिरिक्त कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है । इन का देहावसान 20 दिसंबर 2015 को हुआ है ।

सम्मान के साथ लघुकथा भी : -
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आम के बागीचे
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बचपन में हम नानी के घर जाने के लिए बहुत खुश होते थे | बस इंतज़ार रहता था तो आम के मौसम का कि कब आम के बगीचों में जाएंगे और ताज़ा- ताज़ा आम खुद तोड़ के खाएंगे | वहाँ बगीचे के माली के बच्चे भी हमारे साथ खेलने आया करते थे , सुमन और जीतू, दोनों पड़ने में बहुत होशियार थे लेकिन माली ठहरा पुरानी सोच का कि पढ़ाई लिखाई में क्या रखा है? 
सरकार तो सब सहुलियत दे रही थी परंतु उसका लाभ उठाना तो अब जनता का काम है ना | 
नानी ने माली को बोल-बोल कर जैसे-तेसै सुमन और जीतू को पांचवी तो करवा दी पर फिर आगे स्कूल दूर होने के कारण पढ़ाई रुक गई | माली को तो घर के पास स्कूल गवारा नहीं था तो दूर की तो बात ही छोड़ दो | और किसी की सोच के साथ लड़ना सबसे मुश्किल काम होता है | 
आज सुमन और जीतू के साथ खेलने वाले बच्चे अपनी मंज़िलों और ख्वाबों को पा चुके हैं और सुमन और जीतू भी खुशी-खुशी अपने पिता के साथ आम के बगीचों की देख-रेख में व्यस्त हैं लेकिन उनके मन में एक दबी सी ख्वाईश आज भी कहती है कि काश............... !

मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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अंत 
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      विवाह-विच्छेद हो जाने के बाद भी पंक्ति के मन से उस विवाह की भयावहता समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी। हर समय के ताने, मारपीट के दृश्य उसकी आँखों के सामने रह -रह कर आते रहते थे और उसकी घृणा इतनी बढ़ गई थी कि उसने उस नर पिशाच को सबक सिखाने का दृढ़ संकल्प कर लिया था।
                 “क्या मोल है तेरी पढ़ाई का? है तो पहली-दूसरी के बच्चों को पढ़ाने वाली!”.... ये कटु बोल हर समय उसके कानों में गूँजते रहते थे।
          दिन-रात एक कर उसने नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी नर पिशाच के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक बनी।
              आज आत्मनिर्भर बन जाने के बाद उसकी पीड़ा का अंत हो गया था। ****
 - डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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ऋणमुक्ति:पढ़ाई
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    सुशीला देवी  का नगर में बड़ा नाम था।वे हर तरह की सामाजिक गतिविधियों में जुझारू रूप से संलग्न रहती।
    बेटा अमरकांत नगर में उच्च पद पर आसीन था।बहु मालती एक घरेलू किंतु ऊर्जा वान व्यक्ति त्व की धनी थी,जो कि सुशीला देवी के हर कार्य में पूर्ण योगदान देती।साथ ही एक प्यारी पोती अनुमेहा।कुल मिलाकर बहुत सुंदर सुखी परिवार था।
    नगर के मुख्य मार्ग पर एक बड़ी सी कोठी में वे रहते थे।एक आउट हाउस भी था,जहाँ बैठकर सुशीला देवी अपने कार्य करती।साथ ही सुंदर बगीचा।वे स्वयं उसकी देखभाल करती।
    पीछे की बस्ती में नौकरों के रहने के आवास बने हुए थे।
    सुबह चार बजे उठकर सुशीला देवी दैनिक कार्य निपटा कर योगा,ध्यान और पूजापाठ करती।फिर स्वाध्याय।एक बहुत बड़ा वाचनालय था ,जिसमें अध्यात्म, साहित्य और ज्ञान विज्ञान की पुस्तकें संकलित थी।
    हल्का स्वल्पाहार और फलों का रस पीकर वे सुबह दस बजे से दोपहर एक बजे तक आस पड़ोस के बच्चों को पढ़ाती।उन्हें नैतिक शिक्षा,अनुशासन अच्छे बुरे स्पर्श की पहचान आदि विषयों की शिक्षा प्रदान करती।
    भोजन उपरांत वे थोडी़ देर आराम करती फिर बिटिया अनुमेहा के साथ समय व्यतीत करती।
    शाम की पूजा के बाद वे छह बजे से आठ बजे तक आस पडोस की महिलाओं से मिलती।उनसे स्वास्थ्य और अन्य विषयों पर बातें करती।उनकी समस्या ऐं सुनती।महिलाओं  को मासिकधर्म के दौरान साफसुथरे ढंग से रहने की शिक्षा देती।साथ ही बच्चों का पालनपोषण कैसे किया जाये,इस बारे में बाते करती।बहु मालती इन कामों में उनकी सहायक रहती।
    पुराने शहर से रिश्ते की बहन सरस्वती आकर  तीन दिन उनके साथ रही।
    जाते समय सरस्वती जी बोली-"दीदी,ईश्वर का दिया सब कुछर आपके पास है।फिर इस उम्र में यह सब क्यों?आपके तो  आराम करने के दिन है।"
    सुशीलाजी हँसी-"देखो सरस्वती ,इन कार्यों में मुझे भरपूर संतोष मिलता है।समाज ने मुझे सब कुछ दिया है।मैं अब उस ऋण से मुक्त हो ना चाहती हूं।****

- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 
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शरद रिटायर हो अपने गाँव महानगर से आये । गाँव के आधुनिक परिवर्तन साज़ सज्जा देख बड़े ख़ुश हुए। रोज़ सुबह शाम स्टेशन घूमने जाते । मैगज़ीन ले शान्ति से ट्रेन जाने के बाद पढ़ने बैठते । 
शरद ने देखा - कुछ वयः उम्र की लड़कियाँ स्कूल ड्रेस में बैग रख ट्रेन से मिडिल स्कूल एक स्टेशन आगे पढ़ने आती जाती हैं । पर उनमें से एक सामान्य ड्रेस में होती थी ! लक्ष्मी उम्र में कुछ बड़ी भी , रुक जाती वाशरूम जा ,स्कूल ड्रेस पहन बाहर आती ।किसी प्रकार कोई ख़ौफ़ नही था ।अदम्य साहस उत्साह के साथ पढ़ाई में लग जाती ।
जैसे ही उसकी सहपाठी लड़कियाँ ट्रेन से वापस आती । उनसे लक्ष्मी पुस्तकें कापी लेती वापस देती  । लक्ष्मी स्कूल ड्रेस बदल अपने स्वाभाविक ड्रेस में साथ वापस गाँव की ओर हँसी ठिठोलि करती झुंड मे बढ़ जाती ।
शरद जी - उन सभी छात्राओं को रोज़ देखते वेटिंग हाल में रुक मैगजिन पढ़ने लगते छात्रोंओ के सवाल जवाब हल करते ।
शरद जी का आज मन नही माना सदा गुमसम रहने वाली लक्ष्मी ,उत्सुकता पास पहुँचे ।वेटिंगहाल में कोई नही था ।छात्रायें लक्ष्मी को कापी पुस्तकें दे जा चुकी थी । लक्ष्मी पढ़ाई में लगी  । 
पास आते देख भयभीत चेहरे पर फिर भी साहस बटोरते पुछा - अंकल कुछ चाहिये । शरद ने कहा - मैं तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ । तभी किसी अनजान की शिकायत पर 
गाँव वालों की भीड़ ताबड़तोड़ हमला कर कहने लगे - आप शहरी लोग क्या सहायता करेंगे ? 
बदनियति के अलावा। 
इस ग़रीब असहाय लक्ष्मी की सहेलियाँ इसे स्कूल लायब्रेरी से बुक लाकर देती हैं ।इसकी गरीबीन माँ ने  
अपाहिज से मँगनी कर दी है  । मेट्रिक प्राईवेट परीक्षा पास कर गाँव स्कूल में टीचर बनना चाहती है लक्ष्मी “
तभी ट्रेन से उतर छात्रायें लक्ष्मी के पास पहुँच गाँव वालों से कहा - आप अंकल पर झूठा इल्ज़ाम क्यों लगा रहे हो । ये पढ़े लिखे इंसान हैं ! मुफ़्त में ग़रीब बच्चों को शिक्षा देना चाहते है । प्रयमरी से मिडिल क्लास आगे की पढ़ाई के लिये प्रयासरत हैं । 
गाँव वालों ने माफ़ी माँगी । और कहा- शरद जी आप गाँव आ बस कर हम सबका आत्म -सम्मान बढ़ाया । 
आज शरद जी शाला समिति के सदस्य बन मुफ़्त शिक्षा दे । अपने साथ और लोगों जोड़ा गाँव में बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ के तहत  अनुकरणीय कार्यकर्म की योजना बनाई । ****

-  अनिता शरद झा 
रायपुर -छत्तीसगढ़
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पढ़ाई 
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जीवन चलता ही जाता है पर कैसे चलता है और चलेगा इसका काफी हद तक निर्धारण हमारी पढ़ाई से होता है।ऐसा अक्सर श्याम अपने मित्र रोहन से कहा करता था।रोहन सुन तो लेता था पर उसे लगता था ये सब पढ़ाई की बातें या जीवन में पढ़ाई करना ज्यादा मायने नहीं रखती।समय बीतता गया और दोनों दोस्त बढ़े होते चले गए।श्याम होशियार होता चला गया और रोहन काम रुचि के कारण बस उत्तीर्ण होता चला गया।
         अब दोनों अपनी कॉलेज को पढ़ाई के लिए शहर चले गए। दोनों साथ ही रहते थे।इधर रोहन ने काम भी करना शुरू कर दिया।पर श्याम केवल पढ़ाई में मन लगाता रहा।रोहन कुछ पैसे कमाकर घर भी भेजता रहा पर श्याम ने अपनी मेहनत जारी रखी। दोनों कॉलेज में साथ साथ पढ़ते रहे।
      स्नातक के बाद श्याम कॉलेज का गोल्ड मैडलिस्ट बना और रोहन केवल आगे बढ़ा।श्याम को आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका के एक कॉलेज में प्रवेश और साथ में स्कॉलरशिप भी मिल गई।जब जाने का वक्त आया तो रोहन अपने दोस्त से गले मिलते हुए नम आंखों से इतना जरूर कह पाया कि जा मेरे दोस्त जीवन में अच्छा करना यार और साथ तो तेरी पढ़ाई है।ऐसा कहकर उसने मानो पढ़ाई का जीवन में महत्व बता दिया हो। दोनों दोस्त एक दूसरे से अब पढ़ाई के कारण और भी गहन तरीके से जुड़ गए। ****

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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पढ़ाई 
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“सॉरी पापा! इस साल भी मैं मेडिकल की परीक्षा में रैंक हासिल नहीं कर पाया।” मोहित ने भावुक होते हुए कहा।
“अब आप जिस कॉलेज में कहेंगे, मैं एडमिशन ले लूँगा।” कहते-कहते उसकी आँखों में आँसू छलक आए। 
गंभीर मुद्रा में महेंद्रनाथ जी बोले, “बेटा! पहले भी एक साल के लिए ड्राप लेने का निर्णय तुम्हारा ही था। आगे भी जो निर्णय होगा वो भी तुम्हारा ही होगा और हम सब उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। 
परंतु एक बात मैं तुम्हें कहना चाहता हूँ कि जीवन में कोई भी व्यक्ति या तो किसी काम में सफल होता या असफल। यदि असफल होता है तो इसका अर्थ है कि उसकी मेहनत में कहीं कोई कमी रह गई है। जो लोग सफल हुए हैं, उन्होंने जीवन में बहुत संघर्ष किया है, तभी आज वे सफल हैं। अपने सपनों को पाने के लिए उनके पीछे दौड़ते रहना ही संघर्ष है। जब तक उन्हें न पा लो, संघर्ष करते रहो।” 
महेंद्रनाथ जी बातें सुनकर मोहित उनके गले से लिपट गया और बोला, “पापा! यदि एक और साल घर में रहकर लगन और मेहनत करके पढ़ाई करूँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी ना?” 
बेटे को फिर से संघर्ष के पथ पर अग्रसर होते देखकर महेंद्रनाथ जी की आँखों से ख़ुशी के आँसू बह निकले और उसे आशीर्वाद देते हुए बोले, "खूब मेहनत करके पढ़ाई करो| इस बार सफलता जरूर मिलेगी।" ****

- अनिता तोमर ‘अनुपमा’
बेंगलुरु - कर्नाटक 
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पढ़ाई 
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रामू मृत्यु शैय्या पर अंतिम सांसें गिन रहा था।  लगता था कि उसकी आंखें किसी को ढूंढ रही थी। अचानक उनके पुत्र राजू दौड़ते हुए अपने पिता के बिस्तर के समक्ष आए। अभी उनकी उम्र महज 15 वर्ष थी। राजू ने जब रामू की ओर देखा तो ऐसा लगा जैसे उनकी खोई हुई वस्तु उन्हें मिल गई हो। जब राजू ,रामू के पास पहुंचा तो रामू ने उनके सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि पुत्र, अब मेरा अंतिम समय आ गया है। 80 वर्ष इस धरती पर खूब हंसते, गाते, मुस्कुराते जीवन बिताया है। अब स्वर्गलोक जाना निश्चित है। जाने से पहले मेरी एक इच्छा है कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखना क्योंकि मैं अनपढ़ रहा तो मुझे पढ़ाई की कदर मालूम हो गई है। ऐसे में बस एक ही अंतिम इच्छा है कि तुम पढ़ लिख कर उन ऊंचाइयों को छूना जहां तक मैं नहीं पहुंच पायाञ इतना कहकर रामू के प्राण पखेरू उड़ गए। राजू सोचता ही रह गया कि प्रभु ने उनके साथ क्या किया। आज उसकी आंखों से अश्रुधार बह निकली। ****

- होशियार सिंह यादव
कनीना- हरियाणा
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संकल्प 
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कहां से हम इस गरीबी में इसे आगे पढ़ाई करा सकते हैं--मास्टर साहब‐- कहते हुए लाचार गरीब सब्जी का ठेला लगाने वाले मोहन ने अपनी बेबसी जाहिर की।
लेकिन-- तुम्हारी बिटिया बहुत कुशाग्र बुद्धि वाली है, मैं इसकी लगन और मेहनत जानता हूं।
हाॅ -जानता हूं ।
मगर अब उतनी दूर  पढ़ाई हेतु भेजने की मेरी औकात कहाँ? इसने प्राथमिक शिक्षा यहां पा  हीं ली है,  बस इतना हीं मेरी हैसियत की बात थी।
नहीं-- ऐसा बोल अपने तरह अपनी बेटी का भविष्य ना बिगाड़ो।
कुछ तुम करो कुछ मैं भी अपनी ओर से इसको आगे पढ़ने में सहयोग कर दूंगा। बेटी पढ़ाओ के तहत कुछ  कोशिश कर प्रधान मंत्री योजना का भी लाभ ले सकते हैं।
तभी अंदर से रमिया अपने मात्र दो  सोने के कड़े और एक जोड़ी पायल लाकर सामने रख दिया। हाँ--
 मैं भी अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती हूं ताकि ये इस गांव का नाम रौशन करे और हमारी तरह जिन्दगी ना बिताए।
पत्नी, मास्टर सभी  के विचार के सामने पिता भी नतमस्तक हो गया और अपनी इकलौती बिटिया शिवानी को बड़े प्यार से पुकारते हुए बोला-- चलो अब तुम्हारा नाम गांव के आगे खुले महाविद्यालय में लिखवा दूॅ।
दरवाजे की ओट से चुपचाप सुन रही शिवानी झट से बाहर आ गई और एक अदम्य साहस के साथ पिता और मास्टर जी  के पैर छू कर मन हीं मन पढ़ाई कर कुछ बनने का संकल्प कर लिया। ***

- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
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झुमकी माई
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विनय एक बड़े उद्योगपति का बेटा था, अभावों में जीना क्या होता है, उसने कभी जाना ही नहीं था । पढ़ाई से सदा दूर रहने वाला विनय पैसों की ताकत के बल पर स्कूल की हर कक्षा में  पास होता जा रहा था । समय बीतता गया इसी बीच कब वो अहंकार की गिरफ्त में आ गया उसे पता ही नहीं चला ।
उसके घर में काम करने वाली झुमकी माई का बेटा रौनक भी लगभग उसी के बराबर का था वो पास ही साधारण स्कूल में पढ़ता था उसे शुरू से ही स्कॉलरशिप मिलती जिससे उसका खर्च चल जाता था । रौनक इंटर में प्रदेश की मेरिट में प्रथम स्थान में आया ,अब तो मीडिया का जमावड़ा सेठ जी की कोठी में बने छोटे से घर जो काम करने वालों के लिए था ।
विनय अपनी बालकनी से सब कुछ देख रहा था अब तो उसका  गुस्सा  सातवें आसमान तक पहुँच गया था उसने नीचे आकर कहा आप लोग जल्दी यहाँ से दफा हो जाइए, बहुत  शोर गुल हो चुका । 
रौनक ने कहा प्रणाम छोटे मालिक उसने कोई जबाब न  देते हुए वो आगे बढ़ गया  ।
कहते हैं समय बदलते देर नहीं लगती सेठ जी को व्यवसाय में घाटा हुआ  और वो दर - दर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए ।
तब तक रौनक एक सफ़ल डॉक्टर बन चुका था और झुमकी माई अब वहाँ काम भी नहीं करती थी ।
हमेशा  अहंकार में रहने वाले विनय के पास केवल नाम की डिग्री थी, उसे कोई काम आता ही नहीं था । सेठ और सेठानी तो ये सदमा नहीं सह पाये और असमय मृत्यु के गाल।में समा गये । अब  वो अकेला बचा बेचारा भिखारी सा जीवन व्यतीत कर रहा था ।
एक दिन झुमकी माई मंदिर से लौट रही थी कि उनकी नज़र सामने बैठे विनय पर पड़ी वो सहसा चौंक गयी उनके मुँह से निकल पड़ा छोटे मालिक आप   कहाँ है बड़े मालिक, विनय को आज पहली बार अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि वो क्या था क्या है ।
उसने हाथ जोड़ते हुए अपनी सारी स्थिति बतायी । झुमकी माई ने कहा बेटा मैंने मालिक का नमक खाया है आप चलिए मेरे साथ आज से मेरे दो बेटे हैं ये कहते हुई माई ने विनय को गले से लगा लिया ।

छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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पढ़ाई
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आज बडे से बँगले में अकेली सुरेखा असहाय थी.
कभी इसी बँगले में मेले सी रौनक हुआ करती थी. महंगे स्कूल में बच्चे पढ़ाई किया करते. पति का रुतवा और नौकारों का हुजूम हुआ करता. प्रतिष्ठा पैसा रुतवा और
होशियार बच्चे की माँ होना एक परिपूर्ण होने का आभास देता. फिर बेटा अमित की पोस्टिंग अमेरिका में और नीरू
ऑस्ट्रेलिया में... पढ़े लिखे बच्चों को समय नहीं दो चार महीने में फोन आता. समय के साथ शरीर ढला लेकिन
पति को इस महामारी ने घेर लिया समय के दौर ने बताया
बच्चे सच मुच खूब पढ़ेलिखे समझदार हैं बार बार बीमारी की गंभीरता बता कर उसे भी आगाह कर रहे हैं.. पिता की मौत को वीडियो में देख सांत्वना दे रहे हैं.. आज सुरेखा की साँसे भी फूल रही हैं किसे कहे मीलों तक सन्नाटा है
फोन किसे लगाए अस्पताल की हालात तो उसने पति के समय देख लिये..... पढ़े लिखे बच्चे बहुत से प्रिसक्रिपशन
भेजगें..... लेकिन उसे अपनी लड़ाई अकेले लड़नी है
जाने क्या हो....
डाक्टर फोन नहीं उताएंगे लेकिन बकील उठा लेंगे....
उसने रमिया को फोन लगाया वही तो बस साहब के लिये आया था कितनी बार...
उसके बच्चों को पढ़ाई का खर्चा वो उठाएगी और रमिया को सर्वेट क्वाटर देकर जायेगी.... जानती थी उसकी अन्तेष्ठी भी रमिया के बेटे की मदद से ही हो सकती है.
साँसो का क्या भरोसा...... इस बार विडिओ कॉलिंग नहीं होगी ये भी अंतिम इच्छा... लिख दी.
साँसे अभी भी फूल रही है किन्तु मन शांत है...
बहुत शांत.... !

- पूजा नबीरा काटोल
नागपुर - महाराष्ट्र
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मंगलवार का प्रसाद
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मंगलवार है ...एक बहुत बड़ा सेठ मन्दिर में आता है और खूब सारी चीजें बाँट कर जाता है ‘चलो भागो ...’ कहते हुए दोनों दौड़ पड़े।  गंजू और संजू को इन्तज़ार है सेठ जी के आने का।  ‘सेठ जी की गाड़ी अभी तक नहीं आई।  संजू तू ऐसा कर वहाँ दूर जाकर खड़ा हो जा।  जैसे ही तुझे सेठ जी की गाड़ी नज़र आये तू मुझे इशारा कर दियो और फिर भाग कर आ जाइय संजू भाग कर एक जगह जाकर ऐसे खड़ा हो गया जहाँ गंजू भी नजर आता रहे और आती हुई सेठ जी की गाड़ी भी।  संजू को सेठ जी की गाड़ी नज़र आई और वह हाथ उठाता हुआ गंजू की तरफ भाग पड़ा।  ‘आज मजा आयेगा’।  सेठ जी की तथाकथित गाड़ी फर्राटे से उनके पास से निकल गई।  ‘यह क्या, आज सेठ जी ने प्रसाद नहीं बाँटा’।  ‘अबे तुझे पक्का पता है वह सेठ जी की गाड़ी थी’ ।  ‘हाँ, सेठ जी की गाड़ी ऐसी ही है’।  ‘ऐसी ही है का क्या मतलब, ऐसी तो कई गाड़ियां हो सकती हैं, तुझे गाड़ी का नम्बर नहीं मालूम’ ।  ‘तू तो ऐसे कह रहा है जैसे तुझे नम्बर पढ़ना आता हो, तू पढ़ सकता है गाड़ी का नम्बर, बता सामने वाली गाड़ी का नम्बर क्या है?’ ।  ‘यार कह तो तू ठीक रहा है, हम पढ़े लिखे तो बिल्कुल भी नहीं हैं।  अभी से हमारा यह हाल है तो बड़े होकर क्या होगा?  हमसे कौन शादी करेगा?  अगर हो भी गई तो हमारे बच्चे भी क्या यहीं लाइनों में लगेंगे?’ गंजू ने भविष्य की कल्पना संजू से साझा की थी।  ‘कह तो तू ठीक रहा है गंजू, कुछ सोचना पड़ेगा’ ।  सेठ जी की गाड़ी आ गई और प्रसाद बाँटा जाने लगा था।  वे सेठ जी के पास गये और उन्हें नमस्ते की।  ‘अरे बेटा, प्रसाद बँट रहा है, जाकर ले लो’ ।   ‘सेठ जी, प्रसाद तो लेना है मगर वह नहीं जो आप बाँटते हैं, हमें कुछ और चाहिए’।  ‘बेटा, अगर तुम सोच रहे हो कि मैं प्रसाद में तुम्हें पैसे दूँ तो यह न हो सकेगा, मेरे असूल के खिलाफ है’ ।  ‘ हमें पैसे भी नहीं चाहियें’। ‘तो बच्चो, फिर क्या चाहिए?’ ‘सेठ जी, हम दोनों पढ़ना चाहते हैं, आप हमारे पढ़ाने की व्यवस्था कीजिए’ ‘क्या ... क्या बात है’ कहते हुए सेठ जी गाड़ी से उतर आये।  उन्होंने कहा कि उनकी उम्र के जो भी बच्चे हैं उन्हें इकट्ठा करो।  10-12 बच्चे इकट्ठे हो गयेे।  सेठ जी ने उन सभी के बारे में जानकारी ली और पूछा ‘तुम में से कौन-कौन पढ़ना चाहता है?’ सभी के हाथ एकसाथ उठ गये।  ‘यह मैं क्या प्रसाद बाँटता रहा आज तक, इन दोनों बच्चों ने मेरी आँखें खोल दी हैं, इस प्रसाद के साथ साथ मैं प्रण करता हूँ कि अब मैं शिक्षा का प्रसाद भी बाँटूंगा’।  ‘बच्चो, तुम्हारे घरों के पास जो स्कूल है, वहाँ कल सुबह तुम मुझे मिलो, मैं तुम्हारा स्कूल में प्रवेश कराऊँगा और पढ़ाई का पूरा इन्तज़ाम करूँगा।  तुम खूब मन लगाकर पढ़ना।  ‘वाह, चलो भई चलो, हम सब कल सुबह स्कूल में मिलेंगे’ कहते हुए बच्चे वहाँ से चले गये।  ‘अरे, प्रसाद तो लेते जाओ’ ‘नहीं सेठ जी, आज जो आपने प्रसाद बाँटा है उस प्रसाद को तो हम भी कुछ समय बाद बाँटेंगे और आपको हमेशा याद करेंगे’। ‘बच्चो, आज मैंने नहीं तुमने मुझे प्रसाद बाँटा है, अगर तुम न कहते तो मेरे चक्षु नहीं खुलते।  आज तुमने मुझे जीवन में मंगलवार का बहुत बड़ा प्रसाद दिया है कहते हुए सेठ जी अपनी आँखें पोंछने लगे थे।  ***
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
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व्यवहारिक पढ़ाई
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लाकडाउन के चलते स्कूल बंद। सारे दिन घर में रहकर कब तक पढ़े,टी.वी.देखे,गेम खेले?
रोज एक जैसी दिनचर्या के कारण गुड़िया कुछ अनमनी सी हो गयी। दादी ने उसके मनोभाव पढ़ लिए।
गुड़िया को पास बुलाकर,सिर पर हाथ फिराने हुए,दादी ने कहा," स्कूली पढ़ाई तो बंद ही चल रही है। गुड़िया बेटा,तू ऐसा कर कुछ व्यवहारिक पढ़ाई कर लें इन दिनों। कुछ देर मेरे पास बैठा कर, तुझको अचार मुरब्बा बनाना, बुनाई,कढ़ाई सिखा दूंगी।"
गुड़िया चहक उठी,"सच दादी,आपकी क्लास आज से ही शुरू कर दीजिए।"

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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  शिक्षा एक पूँजी 
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माँ मंगला गौरी का मंदिर ,मंदिर तक पहुँचने के लिए सत्तर सीढ़ियाँ  थीं । करीब पच्चीस सिढ़ियों  पर दोनों तरह भीखारी कुछ मिलने की आस में बैठे होते । पिछले वर्ष बेटे की मृत्यु के बाद से टीचर रीमा हर शनिवार उन सब को खाना खिलाने जाया करती ।उनमें से एक भिखारी जो एक हाथ से अपाहिज था और शरीर पर जगह -जगह कुष्ट रोग 
के चिन्ह थे ,बराबर रीमा से खाने की जगह पैसे 
मांँगता ।उसके पैसे माँगने पर सारे भिखारी चिल्ला उठते "दारु पियेगा -दारु पियेगा " ।रीमा भी ऐसा ही सोचती थी ।इसलिए वह उसे पैसे नहीं देती ।
एक शनिवार कुष्टरोगी भिखारी रीमा के पीछे -पीछे मन्दिर के द्वार  तक पहुँच गया  ।छलछलाई  हुई आँखों से उसने आवाजदी " माँजी ! दया कर मेरी बात सुन लीजिए ,मैं दारु बाज नही हूँ ।पिछले साल मेरी पत्नी का देहान्त हो गया ।मेरा आठ साल का एक बेटा है ।वह कहता है कि वह मेरी तरह भीख नहीं माँगेगा बल्कि पढ़कर अपनी तकदीर सवाँरेगा ।उसीके काॅपी किताब के लिए मैं खाना नहीं रुपया माँगता हूँ ।"
रीमा उसके विचार से बहुत प्रभावित हुई एवं अपने स्कूल का पता बताते हुए अगले दिन बच्चे को लेकर स्कूल आने को कहा । ****

                    -   कमला अग्रवाल
                       गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
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आभासी पढ़ाई 
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     चिन्मय का जन्म वर्ष 2015 में हुआ था। वह बहुत मेधावी बालक था। उसके माता-पिता ने तीन साल की आयु के पश्चात उसको विद्यालय में प्रवेश दिला दिया था। अन्य बच्चों के साथ पढ़ना -  खेलना चिन्मय को बहुत अच्छा लगता था। 
मेधावी चिन्मय पढ़ाई करने के लिए वह सदैव उत्साहित रहता। 
परन्तु एक दिन जब उसकी आंख खुली तो उसकी मम्मी ने कहा "बेटा! आज पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं जाना है।" 
क्यों माँ? 
प्रत्युत्तर में जो शब्द....."लाॅकडाउन".... उसे माँ के मुख से सुनने को मिला, उसको चिन्मय का बालमन नहीं समझ पाया। 
कुछ दिन बाद माँ ने कहा कि "चिन्मय! आज तुमने कक्षा में पढ़ाई करनी है"। 
सुनते ही वह खुशी के कारण उछल पड़ा। 
माँ ने उसको विद्यालय की वेशभूषा पहनाई। 
चिन्मय ने अपने पिता से कहा "पापा! चलो, मुझे स्कूल छोड़कर आइये। 
परन्तु माँ ने उसका हाथ पकड़ा और लैपटॉप के सामने बैठा दिया और कहा कि "यही है तुम्हारा स्कूल और यहीं पर तुम्हें पढ़ाई करनी है, चिन्मय!" 
उस दिन चिन्मय ने जिज्ञासावश नयी तकनीक के विद्यालय में पढ़ाई की। 
परन्तु दो-तीन के बाद वह इस आभासी विद्यालय से ऊब गया और माँ से बोला.... "माँ! यह "मेरा स्कूल" नहीं है। 
मेरे स्कूल में बच्चों के साथ-साथ शिक्षक-शिक्षिका, पुस्तकें, मेज-कुर्सी, दीवारें, फूल-पौधे सब मुस्कराते, खिलखिलाते रहते थे जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती थी।
माँ! मुझे "अपना स्कूल" चाहिए।
माँ! इस स्कूल में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता। 
माँ निरुत्तर हो गयीं। उन्हें प्रतीत हुआ कि इस तकनीकी आभासी पढ़ाई से चिन्मय जैसे बच्चों की भावनायें और मानवीय संवेदनायें कैसे साकार रूप लेंगी। 
कोरोना काल में तकनीक के विद्यालय में पढ़ाई कर रहे बच्चे जीवन के यथार्थ को कितना समझ पायेंगे? 
उत्तर में बस......... मौन था। 
मां के अन्तर्मन में एक सन्नाटा सा बिखर गया। 
इस सन्नाटे में उन्हें केवल चिन्मय की आवाज सुनाई दे रही थी..... 
मां! मुझे "अपना स्कूल" चाहिए। 
माँ! इस स्कूल में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता। 

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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दर्द
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विद्या बहुत ही चंचल और खुशमिजाज लड़की थी छोटी सी उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी उसने बस 12वीं तक की ही पढ़ाई की थी सास ससुर की सेवा करना बच्चे और पति का ध्यान देना।
बस उसकी यही दुनिया थी।
  कल अचानक उसके  भाई भाभी का फोन आया । 
सावन में तो दीदी घर आ जाओ । पति के  अशोक ने मना कर दिया। करोना महामारी में कहां जाओगी ।
विद्या ने रोते हुए कहा -
मेरी मां तो इसी शहर में रहती है, एक घंटे को भी नहीं जा सकती?
अशोक ने कहा जाओ बच्चों को मत ले जाना शाम को जल्दी घर आ जाना देर बिलकुल मत करना ।
अपने मायके में भाभी की इज्जत देखकर उसे लगा की भाभी   बैंक में नौकरी करती हैं इसीलिए मां और भाई उसको मान और इज्जत देते हैं घर के काम में मदद करते हैं और नौकर  भी है उसे एक काम नहीं करना पड़ता। काश मैंने पढ़ाई कर ली होती और मैं नौकरी करती आज मेरे घर में भी मेरी इज्जत होती ।बार-बार मुझे अपमानित नहीं होना पड़ता, नहीं सबके ताने सुनने पड़ते कि तुम रसोई के लिए बनी हो । जल्दी खाना बना ओ शाम को भाई से बोले कि मुझे मेरे घर छोड़ दो। घर आई बेचारी की आंखों में आंसू थे रात का खाना बनाने लगी । और सोच रही थी, हर किसी की किस्मत मैं सुख नहीं होता? आंखों में आंसू थे चेहरे पर मुस्कुराते हुए  अपने  अपने दर्द को दिल में ही छुपा कर ।
अपनी अधूरी शिक्षा का अफसोस कर रही थी और मुस्कुराते हुए खाना परोस रही थी।

- उमा मिश्रा ' प्रीति '
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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पढाई
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  अमन और सुमित सहपाठी थे अमन के पिता पढ़े-लिखे नहीं थे उसने बचपन में अपने पिता की परेशानियों को देखा था यह बात उसकी समझ में बहुत अच्छी तरह आ गई थी कि पढ़ाई लिखाई करके ही परिवार के जीवन स्तर को बदला जा सकता है  अमन पढ़ाने मे सुमित से भी अधिक तेज था परंतु उसके पिता की बीमारी के कारण मृत्यु हो गई और घर की जिम्मेदारियों का बोझ उसी पर आ गया था दसवीं पास करने के बाद अमन ने कक्षा 12 और ग्रेजुएशन व्यक्तिगत रूप से किया था उसने गांव में ही एक ही स्कूल खोल लिया बीटीसी करने के बाद ...
उसका दोस्त सुमित तहसीलदार हो गया था अमन का स्कूल बहुत अच्छा चल रहा था और दूर-दूर से बच्चे उसके स्कूल में पढ़ने आने लगे थे क्योंकि उसका परीक्षा परिणाम बहुत अच्छा रहता था और बच्चे भी पढ़ने में बहुत मेहनत करते थे परंतु अमन के मन में यह बात हमेशा रहती थी कि यदि उसके पिता कुछ और समय तक उसके साथ रहते तो मैं जीवन में पढ़ लिखकर कुछ और अच्छा कर सकता था परंतु वह खुश था कि वह समाज के हित मे कुछ अच्छा कर पा रहा है आजीविका कमाने के साथ साथ
समाज व गाँव मे यह एक सम्मानित व्यक्ति बन गया था अच्छा  अध्यापक होने के कारण
यह सब उसके पढाई के प्रति लगाव का सुखद फल था.. .... !

- डा0 प्रमोद शर्मा प्रेम
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
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पढ़ाई

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उत्तर बिहार के एक गांव में जमींदार साहब के यहां शादी का माहौल था जमींदार साहब खुश होकर कह रहे थे मेरे बेटे की शादी है जीतू की जीतू तो पढ़ा लिखा है ही है उसकी एक ही शर्त थी एक पढ़ी-लिखी लड़की आनी चाहिए और जमींदार साहब ने एक पढ़ी-लिखी लड़की से ही अपने बेटे की शादी तय की।
शादी हो गई नई नवेली दुल्हन को सभी ने बहुत पसंद किया उसकी शालीनता सरल सहज स्वभाव को देखकर आपस में लोग चर्चा करने लगे पढ़ी लिखी है मुझे डर लगता था कि कहीं हम लोगों को नीचा दिखाने लगे क्योंकि हम लोग तो भाई पढ़े लिखे हैं नहीं लेकिन बहुत बड़ी समझदार निकली वह तो इतनी सरल है ऐसा लगता है कि उसने कभी पढ़ाई नहीं की।
थोड़े दिनों के बाद बहू ने अपनी इच्छा जाहिर की कि मैं चाहती हूं कि इस घर में भी इस गांव में भी जो लोग पढ़ना चाहते हैं उन्हें मैं पढ़ाऊं।
जमींदार साहब को यह बात भाग गई लेकिन घर की महिलाओं को यह विचार कुछ अच्छा नहीं लगा सब ने कहना शुरू किया हां अब यही रह गया है कि घर की बहुरिया गांव-गांव में पढ़ाई की और उसका पैसा हम लोग खाएंगे लेकिन जमींदार साहब का विचार बहुत ही नेक था उन्होंने कहा गांव में क्यों जाएगी घर घर क्यों जाएगी मैं इसके लिए यहीं पर एक जगह बना देता हूं जहां पर वह पढ़ाया करेगी लोगों का मन भी लगा रहेगा और बहुत फायदा भी होगा फायदा इस सेंस में होगा कि गांव का लोग धीरे-धीरे पढ़ाई की ओर ध्यान जाएगा।
जमींदार की दुल्हनिया 2 घंटे बच्चों को पढ़ाया करती थी और शाम को उन महिलाओं को पढ़ाती थी जिन्हें की अपना सिग्नेचर अपना नाम लिखने भी नहीं आता था और इस प्रकार से धीरे-धीरे वह एक छोटा सा पाठशाला बना ली और महिलाओं को प्रेरित करने लगे अपने हस्ताक्षर से काम करें बैंक में खाता खुलवाएं और आपके हाथ जो भी पैसे आते हैं उन्हें जमा करें देखिए आपको कितना अच्छा लगेगा इस प्रकार से सकारात्मक विचारों से प्रेरित करते हुए उसने एक गांव को शिक्षा का आलय बना लिया।***

- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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पढ़ाई

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अपने रसोईघर से बड़े प्रेम से सुमति ने अपने पति से कहा । ऐ जी सुनते हो । सुबुद्धि ने प्रति उत्तर दिया । कहिए भाग्यवान क्या कहना चाहती हो ।
मैं जो कहा चाहती हूँ वह तो बाद मैं कहूंगी । लेकिन आप पहले यह बताये कि आप का भाग्यवान कहना क्या उचित है ।
क्यों इसमें क्या गलत है?

आप पढ़े लिखे हमसे ज्यादा है और आज पढ़ाई पर ही चर्चा के लिए मैं आपसे कुछ कहने वाली थी । लेकिन पहले इस भाग्यवान पर ही बात करना चाहती हूँ । क्या भाग्यवान की जगह भाग्यवती हो सकता है । क्यों की हमें स्त्री लिंग व पुं . लिंग पर भी विचार करना चाहिए । वान और वती में से कौन सा प्रत्यय सही है ।आप भली भांति जानते है । मैं तो आपसे कम पढ़ पाई हूँ । खैर मुख्य बात यह कह रही थी । मैं कि आप कहते रहते है कि अपना पप्पू जिसका नाम पप्पू आपने रखा था । पढ़ाई में कमजोर है तो मेरे विचार से जब तक यह लाकडाउन चल रहा है तब तक हम सब मिलकर उसके विषयों पर ध्यान दें तो अच्छा होगा । मैं गणित विषय की पढ़ाई देखूंगी । आप हिन्दी संस्कृत समझाना और इसकी बहिन व भाई सामाजिक विज्ञान व विज्ञान पढ़ायेगे । तो आपका पप्पू जो आप पर गया है शीघ्र होशियार हो जायेगा । बोला स्वीकार है । आज से पप्पू की  पढ़ाई पर सब ध्यान देंगे ।

राजेश तिवारी 'मक्खन'
झांसी - उत्तर प्रदेश
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गतिशील पल

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ट्रेन में दो-तीन किन्नरों ने प्रवेश किया और यात्रियों से पैसे वसूलने लगे। माँगते-माँगते वो एक बर्थ के पास आकर सब रुक गये अपने-अपने भाव मुद्राओं में ताली बजाने लगे। उस बर्थ पर पति-पत्नी और लगभग बारह/तेरह वर्ष का बच्चा भी बैठा हुआ था। किन्नरों को ताली बजाते देखकर बच्चे में भी हलचल होने लगी मानों वह भी किन्नरों की तरह ताली पीटना और लटके-झटके दिखलाना चाह रहा हो ,लेकिन किसी दबाव में (मानों उसकी माँ द्वारा बराबर दी जाने वाली हिदायतें याद हो रही हो) वह खुद पर नियंत्रण रखकर शांत रखने की कोशिश भी कर रहा हो.., लेकिन एक किन्नर को संदेह हो गया कि वह बच्चा हमारे जेंडर का है। उसने अपने अन्य साथियों से भी कहा और वो सब ताली बजा-बजा कमर लचकाने लगे। एक किन्नर जो उनके दल का मुखिया था ने उस दम्पति से कहा, "ये बच्चा हमारे बिरादरी का हमारी नई पीढ़ी है , इसे हमें दे दो।"
"माँ ने कहा,"इसे जन्म मैंने दिया है, लालन-पालन मैं कर रही हूँ, तुमलोगों को क्यों दे दूँ?"
"यही परम्परा है.. इसलिए...।"
"मैं नहीं मानती ऐसी किसी परम्परा को.. अपनी जान दे-दूँगी ,मगर अपना बच्चा किसी भी कीमत पर नहीं दूँगी.. नहीं की नहीं दूँगी...।"
सब नोक-झोंक सुनकर बच्चा घबराकर रोने लगा और अपनी माँ के पीठ से चिपक गया,"मैं अपनी माँ को छोड़कर किसी के साथ भी नहीं जाऊंगा...।"
किन्नर का दिल बच्चे एवं माँ के मध्य वात्सल्य भाव देखकर पिघल गया। माँ उन्हें सौ रुपये का नोट देना चाहा मगर वेलोग नहीं लिया.. और जाते-जाते कहते गए,"माँ इसे खूब पढ़ाना.. अब तो सरकार हमलोगों को भी नौकरी देने लगी है...।"
"हाँ! हाँ! इसे पढ़ा रही हूँ । कुशाग्र है पढ़ाई में... मेरे परिचित में कई ऐसे हैं जो बड़े ऑफिसर बन चुके हैं...।"
वे खुश होते हुए बोले,"जुग-जुग जिए तेरा लाल... काश ऐसे जन्मे सभी मानव जीव के माँ-बाप तुमलोगों जैसे पढ़े-लिखे होते...।"

-- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
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मूलभूत शिक्षा

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      प्रखर के माता-पिता ने प्रखर को उच्च शिक्षा देकर योग्य इंसान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। प्रखर पढ़ाई खत्म कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसीन हो गया था।
       अच्छा वेतन, अच्छी सुविधाएं पाते हीं प्रखर के व्यक्तित्व में परिवर्तन आना शुरू हो गया। माता- पिता ने पढ़ाई के साथ-साथ दैनिक दिनचर्या के जो स्वास्थ्यवर्धक मूलभूत दैनिक शिक्षा प्रदान की थी वह प्रखर की अमीरी ने उसके जीवन से धीरे-धीरे विलुप्त कर दिए।
      किताबी पढ़ाई के माध्यम से वह अच्छी नौकरी तो पा चुका था पर माता-पिता के द्वारा दिए गए ज्ञानवर्धक शिक्षा को नजरअंदाज कर दिया था। नौकर-चाकर रईसी ठाठ ने मन को स्वच्छंद बना दिया---जिसका नतीजा यह हुआ कि वह धीरे-धीरे अस्वस्थ होने लगा जिसका प्रभाव उसके दफ्तर के कार्यों पर भी पड़ने लगा।
      जिस कंपनी के अधिकारी उसके कार्य की प्रशंसा करते नहींं अघाते थे उन्हीं अधिकारियों से अब हर कार्य पर डांट खानी पड़ रही थी। नौकरी छूटने की नौबत आ गई।
      अब प्रखर को अपनी गलतियों का आभास होने लगा था। किताबी पढ़ाई के साथ-साथ अनुभवी बड़े बुजुर्गों द्वारा दी गई स्वास्थ्यवर्धक मूलभूत दैनिक शिक्षा जीवन के लिए कितना अहम है--यह गूढ़ मंत्र अच्छी तरह उसके पल्ले पड़ गई थी। ****
              
                  - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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अहसास

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     श्याम लाल का एक पुत्र होनहार था, किंतु मित्रों की संगति के कारण खेलकूद, टाकिजों में फिल्में देखना, असाहित्य पढ़ने में समय,व्यतीत करने के कारण स्कूलों में हमेशा ही अनुपस्थिति रहती, परीक्षा परिणाम भी प्रति वर्ष  असंतोषजनक रहने के परिप्रेक्ष्य में माता-पिता को अपमानजनक स्थितियों से गुजरना पड़ रहा था। एक ही पुत्र और भविष्य में क्या होगा, सोचते-सोचते माता-पिता का निधन हो गया। परिवार में कोई नहीं, पुत्र को अपनी गलतियों का अहसास हुआ और फिर क्या था, अपने गुरुदेव से क्षमायाचना कर तन-मन से पढ़ाई-लिखाई करने लगा, देखते-देखते कक्षा में विशेष योग्यता अंक अर्जित कर, सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। शनैः-शनैः उच्च शिक्षा प्राप्त कर, नौकरी हेतु आवेदित किया, यहाँ भी उसने प्रतियोगी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर, नौकरी प्राप्त कर ली, देखते-देखते वह प्रशासनिक पदों पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो गया। विवाहोपरांत, संतानों को शिक्षा के महत्व के बारे में भलीभाँति परिचित कराया तथा उससे जो भूल हुई थी, अवगत कराया, माता-पिता के क्या संस्कार होते हैं, अगर ईमानदारी से माता-पिता के सामने पढ़ाई-लिखाई करता तो, उन्हें भी आत्मसम्मान मिलता और किसी भी तरह से उनके आत्मविश्वास को ठेस भी नहीं पहुँचती।

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
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पढ़ाई

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यह सच्ची कहानी है। मेरे पिताश्री वरीय अधिवक्ता गया जिला में थे ।अचानक  ३/१०/१९६३ को हृदय गति रुक जाने से  मृत्यु हो गई। पूरे घर परिवार में मातम छा गए। भाई बहन छोटे-छोटे थे। घर की आर्थिक स्थिति डामाडोल होने लगी। मेरी दुखी मां अपने इरादा को मजबूत करते हुए घर में ही स्कूल खोलें। जहां हमारे मोहल्ले के बच्चे पढ़ने लगे। मां हर बच्चे पर ध्यान देकर
पढ़ाने लगी। जिस कारण बच्चे का बेसिक काफी मजबूत हो गया और अच्छे स्कूल में नाम लिखाने लगा। इसी बीच में एक बच्चे के अभिभावक मेरी मां से मिलने आए बोले की मैं शिक्षा विभाग में हूं, क्या आप अपने विद्यालय को सरकारी संस्थान बनाएंगे। मां बोली नेकी और पूछ पूछ। मै उसके लिए कुछ जरूरी कागजात लेकर आता हूं आप पढ़ ले और जहां जहां हस्ताक्षर करनी है करके हमें लौटा दे। मैं कोशिश करूंगा आपका काम जल्द से जल्द हो जाए। 1 महीने के बाद वह सज्जन फिर आये बोले कि आपके विद्यालय का निरीक्षण होगा उसके बाद स्वीकृति मिल जाएगी।हां प्रधान अध्यापिका का पद पर ट्रेड टीचर चाहिए। अगर आप 1 साल के ट्रेनिंग लेगें और  पास करेंगे तो यह पद आपको ही दिया जाएगा। तब तक यह पद खाली रहेगा।
मां के मजबूती इरादा के  चलते अपनी सहमति लिख कर भेज दी और 1 साल ट्रेनिंग करने के बाद प्रधाना अध्यापिका  के पद पर नियुक्ति पत्र मिलेगा। । मां के मजबूत इरादा के चलते हम भाई-बहन अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब हो गए । मैं तो सदा मां के विचार से प्रेरणा लेता हूं। मां संघर्ष के साथ परिवार को उन्नति की राह पर ले गई ।
उन्हें मेरा शत-शत नमन।

मां का विचार:-पढ़ाई कभी बेकार नहीं जाता इसलिए हर व्यक्ति को यह मूलभूत अधिकार है।

- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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जिम्मेदारी का बस्ता

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ठंड के मौसम में रविवार की सुबह जलेबी भण्डार पर दूध का कढाव और गरमागरम जलेबी पोहे की खुशबू की महक ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी।
10-11 वर्ष का सौमा ग्राहकों की झूठी प्लेट व गिलास को मांजते-मांजते अपने नथूनों को चौड़ा कर दूध-जलेबी की खुशबू की श्वास लेते हुए ऐसा महसूस कर रहा था मानों दूध-जलेबी मुंह से नहीं नथूनों के द्वारा उसके पेट को भर रही हो ।
उसकी इस हरकत को देख रहे एक सज्जन ने उससे पूछा-"क्या हो गया तबीयत तो ठीक है न ?"
सकपकाया सा सौमा बर्तन मांजने में तल्लीन हो गया।
सज्जन ने पुनः प्रश्न किया -"स्कूल जाते हो ?"
'हां, जाता था, पर अब नहीं जाऊंगा ।"
"क्या ?"
उसने पलटकर प्रश्न दागा-"क्या आप स्कूल में पढ़ाने वाले सर हो, जो पूछ रहे हो ?"
"हां, यदि तुम स्कूल पढ़ने रोज जाओगे तो तुम्हें स्कूल से मुफ्त किताबें, खाना और अगर तुम पिछड़ी जाति के हो तो छात्रवृत्ति भी मिलेगी ।"
"सर, आपके स्कूल में रोज पढ़ने आने पर मुझे ज्यादा रूपए मिलेंगे क्या ?"
"नहीं"
"तो मैं स्कूल पढ़ने नहीं आ सकता ।"
"आखिर क्यों ?"
"क्योंकि मां नहीं है तो बीमार बापू व छोटी बहन का पेट जो भरना पड़ता है।"
सौमा का जवाब सुन सज्जन ने महसूस किया कि इस मासूम के कन्धे पर अब किताबों के बस्ते का नहीं जिम्मेदारी के बस्ते का बोझ अधिक है ।
उन्होंने सौमा की ओर अपने लिए लिया दूध-जलेबी का गिलास बढ़ाते हुए कहा-"ले, दूध-जलेबी नाक से नहीं मुंह से खाई जाती है ?"
सौमा ने सकुचाते शर्माते गिलास हाथ में लिया और दुकानदार की नजरों से छुपकर दूध-जलेबी का गिलास गटकने लगा । *****

- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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होनहार बिरवान के होत चिकने पात

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सेठ करोड़ी मल का बेटा (वरुण ) १५ साल का ही हुआ था । १० वी में स्कूल में प्रथम आया सब उसकी तारीफ़ करते शालीन सौम्य बच्चा और
परन्तु हर काम में बहुत होशियार
स्कूल में भीअध्यापक के  सारे उत्तर फटाफट देता था ।
सब कहते " होनहार बिरवान के होत चिकने पात "
यह बहुत बड़ा नाम करेगा  प्रतिभा का धनी है । हर काम पढ़ाई के साथ कर लेता है ।
घंमड भी नहीं है दोस्तों को भी पढ़ने में सहायता करता है

सेठ करोड़ी मल के आंफिस जाता तो वहाँ भी चुप नहीं बैठता , सब हिसाब किताब मिनटों में सही कर देता
आज वह बही खाता चेक रहा था उसे गड़बड़ी लगी ,
उसने अपने पिता से ( किरोड़ीमल ) से कहाँ पिता जी कुछ गड़बड़ है , पैसों की हेरा फेरी हो रही है ।
आप की आज्ञा हो तो में जड़ तक जाऊँ  पिता ने कहाँ बेटा यह कारोबार आपको सम्भालना है ।
देखो आफिस में सब , कहने लगे यह बच्चा क्या करेगा सेठ पगला गये है । बेटे के मोह में अंधे हो रहे है ।
वरुण ने अपना काम शुरु किया पिछले साल के बहीखाते  चेक कर ने को मँगवायें तो मेनेजर बोला उसकी क्य जरुरत है वह ठीक है । वरुण ने कहाँ पिता जी मुझे कारोबार सौंपना चाहते है मैं इस लिये पिछला सब देखू समझू ताकी आगे गलती न हो मैं पिता  जी के विश्वास पर खरा उतरना चाहता हूँ  , सब चुप वरुण ने सब बही खाते चेक किया तो पता लगा २५ लाख का घपला किया है बैंक स्टेटमेंट मंगाकर सब चेक करने के बाद पिता जी के सामने रख कर बताया पिता जी पिछले साल २५ लाख की चपत बहुत होशियारी से लगाई ,
मैनेजर सर नीचे कर खडा हुआ और माफी माँग रहा था मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर ने मिल कर चपत लगाई थी ,
सेठ करोड़ी मल ने वरुण की बहुत पीठ ठोक कर कहाँ , बेटा पता नहीं कब से यह चपत लगा रहे होंगे ...तुमने सही काम कीया ..
"होनहार बिरवान के होत चिकने पात " तुम्हारे जन्म पर पंडित ने कहाँ था बालक बहुत नाम करेगा । तेजस्वी बालक है ,
आज तुम्हारे कारण चोर पकड़े गये । में अब चैन से रहूँगा तुम पढ़ाई के साथ साथ काम भी सम्भाल लोगे ।
मैनेजर सर माफ कर दो पुलिस में शिकायत न करे, हम धीरे धीरे पैसे चुका देगे ,
वरुण पैसे दो या न दो पुलिस नही बुलायेंगे पर अब तुम्हे हम काम पर भी नही रख सकते  ......
इस्तीफ़ा दो और जाऔ हम निकालेंगे तो  तुम्हारा कैरियर पर असर होगा ,
दोनो माफी माँगते हुये बहार निकल गये ,
वरुण ने एक पुराने वर्कर को मैनेजर बना पाँव छूते हुये कहाँ काका बहुत दिन आपने ईमानदारी से काम किया पर इन दोनो ने आप को आगे नही आने दिया अब आप इस कम्पनी के मैनेजर है ।
सेँठ किरोड़ीमल बेटे की दूरदर्शीता  व बुद्धि के क़ायल हो गये । और बोले बेटा पढ़ाई कर के तुमने ज्ञान ही अर्जित नहीं किया दूर दृष्टि व नेक आचरण भी पाया ।
मैं तुम जैसा पुत्र पाकर धन्य हुआ ।

- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
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पढ़ाई
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कार्यालय पहुँची तो वहां वर्मा जी पार्टी दे रहे थे। पता चला कि उनके बेटे के स्नातक के दूसरे वर्ष में 80 प्रतिशत अंक आए हैं । अब पार्टी तो बनती ही थी। मैं भी उनकी टेबल पर बधाई देने पहुँची, तो  वे बोले , "हाँ मैडम ! अंक तो अच्छे ले गया, वास्तव में सच बताऊँ तो पहले वर्ष में तो मुश्किल से पास ही हो पाया था ।इस वर्ष कोरोना के चलते ज़्यादा पढ़ाई तो करनी नहीं पड़ी। बस घर बैठकर पीडीएफ फाइल बनाकर ही भेज दी ।चलो! ऐसे ही स्नातक हो जायेगा तो कहीं नौकरी लग जायेगी। लेकिन यह बात मेरे मन मे प्रश्न चिह्न छोड़ गयी। आखिर इस पढ़ाई का क्या लाभ ?क्या ऐसी पढ़ाई से हमारा देश कभी विकसित हो पायेगा?

- अंजु बहल
   चंडीगढ़
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पढाई का महत्व

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अरे इतने दिन से सेठ को पैसे दिए जा रही हूं पर हमेशा वह कहता है अभी छ: सात महीने और देने पड़ेंगें...लता अंगुलीयों पर थोड़ी बहुत जोड़ जाड़ कर अनुमान लगा रही थी पर ठीक ठीक समझ नही पा रही थी..!
सेठ हमेशा पैसों को बढ़ा दिया करता..सेठ का बेटा और लता का बेटा आपस मे दोस्त तो थे पर वो उतना होशियार नही था जितना लता का बेटा,कारण सेठ के बेटे को पैसे की लत लगी थी ..!
एक दिन जब  लता ने अपने बेटे को हिसाब दिखाया तो पता चला  वो  रकम तो कब का पूरा हो चुका है ,जब लता को समझ मे आया तो वह बेटे के साथ सेठ की दुकान पहुंची फिर सारा मामला साफ हो गया..सेठ अपनी गलती पर शर्मिन्दगी महसुस कर रहा था वही उसका बेटा रुपयों को उछाल रहा था..सेठ को अपना कल साफ दिखाई पड़ रहा था..!

- सपना चन्द्रा
भागलपुर - बिहार
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पढ़ाई की चिंता

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कोरोना काल के चलते सभी विद्यालय बंद पड़े थे। विद्यार्थियों की पढ़ाई की चिंता बढ़ती ही जा रही थी ।विद्यालय का प्रिंसिपल होने के नाते मुझे यह चिंता सताने लगी कि नए सत्र में एडमिशन कैसे होगी ?अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए तैयार न थे। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा सत्र आरंभ करने की घोषणा हुई। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह भी समस्या थी  कि जो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से कर पा रहे हैं, भला वे मोबाइल, लैपटॉप से बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे ? मेरी तरह बहुत से लोग पढ़ाई को लेकर चिंतित थे। इसी बीच हमने गांव-गांव जाकर सरकार द्वारा  प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधाओं का ऐलान करवाया कि बच्चों को पढ़ाई की अतिरिक्त  सुविधाएँ भी प्रदान की जाएँगी। घर पर नोट्स दिए जायेंगे, टेलिविज़न पर भी क्लासेज़ का आयोजन किया जाएगा।  विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन क्विज़ का भी आयोजन किया जाएगा और समय-समय पर अभ्यास टेस्ट भी करवाए जाएंगे और बारहवीं कक्षा के बच्चों के लिए तो सरकार मोबाइल भी प्रदान करेगी ।बस फिर क्या था? रातों रात देखते ही देखते स्कूल में दाखिला बढ़ने लगा ।आज स्थिति यह है कि लोग पढ़ाई के प्रति जागरूक हो गए हैं ।पढ़ाई के लिए वे नए-नए तरीकॆ अपनाने लगे हैं  जिसके फलस्वरूप इस सत्र में विद्यालय में पिछले सत्र से भी अधिक दाखिला हो चुका है और उत्तरोत्तर दाखिला बढ़ता ही जा रहा है। ****

- डॉ० सुनील बहल,
चंडीगढ़
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भविष्य की नींव

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रमा अपने  नाती पोतों के साथ ही दिन बिता रही थी। अध्यापन कार्य से निवृत होने के बाद वह घर और समाज की सेवा में योगदान दे रही थी। आज भी सुबह सबके ऑफिस और स्कूल कॉलेज जाने के बाद वह भी फुर्सत से बैठी ही थी कि  दरवाज़े की घंटी बजी। वह उठकर गयी दरवज़ा खोलते ही  देखा ,पोर्च पर एक गाड़ी खड़ी थी। एक व्यक्ति फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा था ,उसने रमा के पैर  छुए  और गुलदस्ता भेंट किया। रमा  उसे न पहचान पाने के कारणअसमंजस में पड़ गयी। वह व्यक्ति रमा की दशा समझ गया।
''मैम !आप मुझे नहीं पहचान पाई इतने वर्षों के बाद मिलने आ पाया।मैं राजू हूँ.
आज मैं आपके सामने खड़ा हूँ तो आपके ही कारण। आपने तो मेरा जीवन संवार दिया। स्कूल के दिनों में गरीबी के कारन फीस देने में असमर्थ होने से मुझे स्कूल से निकाला जाने लगा ,तब आपने मेरी पढ़ाई  का जिम्मा ले लिया। लोग कहते रहे
''अरे किस किस को मदद करोगी ?ये पढाई छोड़ मज़दूर ही बनेगा। तब आपने कहा था  शिक्षक होने के नाते सिर्फ कक्षा में पढ़ाना  ही मेरा काम नहीं है। किसी की मदद करना नैतिक शिक्षा है जिसे हमें अपने जीवन में उतरना चाहिए और जिसे अगली पीढ़ी भी सीखेगी ''
'' आपने मुझ पर जो विश्वास रखा उससे मेरा विद्यार्थी जीवन सुचारु हो गया था। और आज में इंजीनियर  बन कर आपके सामने उपस्थित हूँ। ''''
''अब मैं भी गरीब विद्यार्थियों  की मदद करना चाहता हूँ  जैसा की आपने कहा था
बेटा ! अमित  जो मदद  मैं कर रही हूँ  उसे  लौटाने की चिंता न करना ,बस पढाई में ध्यान दो। जब समर्थ हो जाओ तो औरों की मदद करना  मुझे ख़ुशी होगी। ''
रमा को बीती बातें चलचित्र की तरह  याद  आ गयी किस तरह एक  बच्चा पढाई में दक्ष होते हुए भी  गरीबी के  कारण  निराश हो रहा था।  
उनको यकीन हो गया   विद्यार्थी जीवन  बच्चों के भविष्य की नींव है। ****

ज्योतिर्मयी पंत
गुरुग्राम - हरियाणा
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बिसात

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दो विपरीत ध्रुव की तरह हैं  हमारी बेटिया  " अनु और परी " अनु बगैर किसी बनाव सिंगार के वही परी हेयर कट से लेकर ड्रेस डिजाईर ही चाहिए" 

 " परी से  काम की ना कहे , पढ़ने में भी एवरेज है ।  अपनी दी को नीचा दिखाने मौका नहीं छोड़ती है। 

" परी  ने  मां के गले में बाहै डालकर झूलते हुए 

परी‌ आज क्या बात है?   

 मोम  ! दी कहाँ है " अनु अपने कमरे में पढाई कर रही उसे परेशान मत करना  ।

मेरे दोस्त मेरे घर पढ़ने आये हैं। 

 परी मन ही मन अनु को परेशान करने की ठान चुकी थी।वह  दी के कमरे में पहुँच कर "दी मेरे दोस्त आए है चाय नाश्ता बना दो ना कहकर परी अपनें दोस्तो के साथ अपने कमरे में एक इंग्लिश धुन पर थिरकने लगी।

कुछ ही देर मैं अनु नाश्ता लेकर कमरे में नाश्ता रख कर जेसे ही मुड़ी एक दोस्त बोली परी तुम्हारी दी तो एकदम बहनजी टाईप है" कहाँ तुम कहाँ तुम्हारी बहन परी विद्रुप सी विजयी मुस्कान बिखेरते हुए चलो तुम लोग नाश्ता कर लो" लीना बोली  परी जो भी हो तुम्हारी बहन ने नाश्ता बड़ा यमी बनाया है।" अरे आज बन गया होगा वर्ना कहाँ ? 

माँ  के कानो में जब ये आवाज आई लेकिन वह कुछ न बोल कर चुप रही "

" जैसे ही परी के सब दोस्त चले  गये "परी यहाँ आओ ये तुम्हारा व्यवहार बहन के प्रति ठीक नही है । जब देखो तब उसे पढ़ाई से उठा कर अपने काम कराती रहती हो ।

आज दो हद ही कर दी बाहर के लोगों के मुँह तभी खुलते हैं जब घर के लोग की बड़ों की इज्जत नहीं करते 

एक साथ जन्मलिया लेकिन दी आधा घंटा बड़ी है तुम से समझी ।

 पता नहीं मैनें तो तुम दोनों को  एक जैसे संस्कार देने के बावजूद तुम इतनी विपरीत कैसे ?

" परी अपने दिल की चाहत को पूरा करने के लिए चाले क्यों  चलती हो मानो हर समय शतरंज की बिसात पर रहती हो कभी तो दिमाग से काम लिया करो ।

माँ  ! मुझे माफ कर दो अब दी का अपमान नहीं करुंगी ।

- अर्विना गहलोत

ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश

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पढ़ाई

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           मालती के घर के आगे एक शानदार कार आकर रुकी उसमें से एक शानदार सूट बूट धारी लड़का उतरा और सीधा उसके सामने आकर उसके कदमों में झुक गया । 

        मालती को कुछ समझ में नहीं आया तो बोली- 

"कौन हो बेटा, पहचाना नहीं ।" 

"मैम, मुझे पहचानो मैं.......मैं आपका दीनूं हूं ।" 

         दीनूं का नाम सुनते ही वह कई वर्षों पीछे  चली गई।  दीनूं, उसके विद्यालय में चाय लेकर आता था । पढ़ने वाले बच्चों को वह बड़ी हसरत से देखता तो एक दिन मालती ने पूछ लिया- 

"बेटा, तुम पढ़ना चाहते हो ?"

          हां कहने के साथ ही उसकी आंखें भर आई मगर मालती ने ठान लिया कि वह उसे जरूर पढ़ाएगी ।  

           उसे पता चला कि दीनूं को उसके पिता ने चाय वाले को बेच दिया था । मालती ने चाय वाले को उसकी सारी राशि चुकाई और दीनू को उसके घर भेज दिया जहां से वह प्रतिदिन पढ़ने आने लगा । देखते ही देखते उसने सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर ली । 

         मालती रिटायर होकर अपने गृह जिले में आ गई । कभी-कभी वह दीनूं के विषय में सोचती भी थी । 

"मैम, क्या हुआ ? नहीं पहचाना ? मैं आपका  दीनूं, आपको लेने आया हूं । आपके आशीर्वाद से अब मैं डॉक्टर हूं । अगर आपने उस समय पढ़ाई में मेरा साथ ना दिया होता तो........।"

         मालती ने उसे गले से लगा लिया ।

                     - बसन्ती पंवार 

                जोधपुर - राजस्थान 

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कलई खुलना 

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 राम किशोर किसी प्रायवेट कंपनी में मेनेजर थे ! छोटा सा परिवार ..पति पत्नी और एक बेटा  संजय ! अच्छी पगार थी ..लड़का 11 वी में इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ रहा है ! पडो़स में सज्जनता  की मूरत थे ! बेटे ने भी स्कूल में स्पोर्ट्स में अपनी धाक जमा रखी थी ! कीमती जूते ,कपड़े पहन पार्टी में जाना ,पार्टी देना यह सब तो उसकी शान थी ! पिता भी अपने बढ़ते हुए हैंडसम जवान बेटे को देख दो इंच और छाती चौडी़ कर चलते थे और क्यों न चले अपने सपनों को करीब आते जो देख रहे थे ! बेटे के मोह में उन्होंने उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करने में एडी़ चोटी का दम लगा दिया ! कब आमदनी से अधिक खर्च बढ़ने लगे उन्हें पता ही नहीं चला ! संजय की रुचि धीरे धीरे पढ़ने में कम होती गई ! स्पोर्टस में सभी हाइफाई घर के बच्चों की संगत में उसने भी अपनी शान में कोई कमी न आने दी ! पिता के पूछने पर पढा़ई कैसी चल रही है हमेशा कहता पापा टेंशन ना लें ....हमेशा की तरह प्रथम आऊंगा !

बेटे के प्रति अंधा प्यार और विश्वास लिए रामकिशोर आमदनी बढा़ने के चक्कर में कंपनी में गबन करने लगे ! संजय के  पार्टीयों में खर्चे बढ़ते गये ! 

परीक्षा का समय आ गया ! पढा़ई न करने की वजह से संजय फेल हो गया !उसके बाकी दोस्त पास हो गये ! इधर गबन करने के जुर्म में रामकिशोर को पुलिस पकड़ गई ! पडो़सियों में कानाफूसी होने लगी ...कितने सज्जन और नेक लगते थे ... !  कितने धोखे में थे हम ......आज "कलई खुल गई"

संजय को काफी शर्मिंदगी के साथ पछतावा हुआ..... काश झूठी शान दिखाने की जगह मैंने पढ़ाई का महत्व समझा होता ! उसकी आंखों में आंसू देख मां ने कहा ...!  बेटा अब भी समय है ..... 

"जब जागो तब सवेरा"  

संजय की आंखें अनोखी चमक लिए किताबों में खो पढ़ाई कर अपने भविष्य को संजोने लगी !

             --चंद्रिका व्यास

           मुंबई - महाराष्ट्र

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 बदलाव

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आज हमें वापस पीछे की तरफ झांकने की महती आवश्यकता है,कि ऐसा कौन सा कारण है, जिसकी वजह से छोटे-छोटे बच्चे

आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं..!!?,

       "सोचो जरा,सुरेश का बेटा अभी आठवीं कक्षा में ही तो था, परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के भय से आत्महत्या कर लिया ?"

       "सही कह रहे हो।"

"बाल्यकाल में जो संस्कार मिलते हैं, वही तो जीवनपर्यंत काम आते हैं।"

" क्या आज कल हम सब अपने बच्चों को थोड़ा सा भी गुणवत्ता भरा (क्वालिटी) समय दे पाते हैं...?, तो करीब-करीब सभी का यही जबाब होगा नहीं।"

                         यह सच है,कि परीक्षा जब नजदीक होती है, तब अभिभावकों और छात्रों को तनावग्रस्त होना स्वाभाविक हो जाता है,लेकिन हम अपने बच्चों को यह क्यों नहीं सिखा पाते हैं,कि उन्हें अंकों की संख्या बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि ज्ञान बढ़ाने के लिए पढ़ने की आवश्यकता है।

         पढ़ने की मशीन नहीं, बल्कि पहले एक इंसान बने।आज हर बच्चा किताबों का बोझ ढोते-ढोते हम्माल बनता जा रहा है।

"अब उन्हें हम्माल नहीं,किताबों का बादशाह बनाना है,ऐसी बातों को आज की काम-काजी माँए नहीं सीखा पाती हैं।ऐसी बातों के लिए घर में बुजुर्गों का होना ही लाजिमी है,क्योंकि उन्हें ही यह अच्छे से पता होता है कि-"एक श्रेष्ठ नागरिक का निर्माण,करोड़ों की सम्पत्ति से बेहतर होता है।"              

- डाॅ.क्षमा सिसोदिया 

उज्जैन - मध्यप्रदेश

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पढ़ाई

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दशरथ नवमी कक्षा में पढ़ता था। वह पढ़ाई में ठीक ठाक विद्यार्थी था। उसके पिता की एक जूते सिलने की छोटी सी दुकान थी जहां स्कूल पूरी करने के बाद दशरथ भी जाता और अपने पिता की उनके काम में मदद करता। एक बार किसी दूसरे विद्यार्थी ने दशरथ को उसके पिता के साथ काम करते देख लिया तो उसने ताना मारते हुए दशरथ से कहा कि अगर श्रेष्ठ विद्यार्थी बनना है तो सिर्फ पढ़ाई में मन लगा। दशरथ ने धीरे से जवाब दिया कि अच्छी पढ़ाई का अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान नही बल्कि जीवन को सही अर्थ में जानना ओर अपने से बड़ो एवम् सभी की मदद करना भी है। यह सुनकर उसका मित्र चुप हो गया। ****

प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़

गोधरा  - गुजरात

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पढाई 

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'' मम्मी मम्मी  ! अब मुझे दो बजे तक कोई भी डिस्टर्ब ना करे, मैं अपने कमरे में जा रही हूं । अब लंच की टेबल पर मिलेंगे ।'' सत्रह वर्षीय श्रुति का यह प्रतिदिन का ही वाक्य हो गया था जबसे कोरोना महामारी के कारण स्कूली बच्चे अपने अपने घरों से ही स्मार्ट फोन्स पर ही आन लाईन पढाई करने लगे थे । श्रुति के मम्मी पापा मिडिल क्लास परिवार में आते थे घर की आमदनी का एकमात्र जरिया क्लर्क  पापा की पगार थी ।उसकी तनखाह भी कोरोना कटौती के कारण सरकार चौदह हजार से कम कर मात्र सात हजार ही खाते में पड रही थी ।

घर में एक ही स्मार्ट फोन था जिस पर श्रुति और उसके भाई रघु का पढाई के लिये अक्सर झगड़ा होता था क्यूंकि दोनों की आन लाईन क्लासें लग्भग एक ही समय लगती थी । जिद करने वा बाहरवीं +2 की बडी क्लास होने पर पापा ने दस हजार रूपये खर्च कर श्रुति को नया स्मार्ट फ़ोन ले कर दे दिया ।ऐसे ही आन लाईन पेपर हुए और एक दिन परिणाम भी आ गया ।

     रघु तो जैसे तैसे बी ग्रेड में आठवीं पास कर गया किन्तु श्रुति बाहरवीं में सभी विषयों में फेल हो चुकी थी और बेतहाशा रोए जा रही थी ।

रघु और श्रुति के मम्मी पापा  अपने बच्चों को प्रश्नवाचक नजरों से देखे जा रहे थे --------------?

   - सुरेन्द्र मिन्हास 

बिलासपुर - हिमाचल  प्रदेश

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जन्म : 03 जून 1965

शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
====

लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) -
2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार (ई लघुकथा संकलन ) - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से लघुकथा मैराथन - 2020 का आयोजन
10. #SixWorldStories की एक सौ एक किस्तों के रचनाकार ( फेसबुक व blog पर आज भी सुरक्षित )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609





Comments

  1. 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    🌺🙏जय माँ शारदे🙏🌺
    🌺🙏नमन समृद्ध एवं सम्मानित पटल #भारतीय लघुकथा विकास मंच, जैमिनी अकादमी, पानीपत।
    #"लघुकथाकार पृथ्वीराज अरोड़ा" की स्मृति में "लघुकथा उत्सव" - (एपिसोड - 15)
    दिनाँक : 15.05.2021
    विषय : "पढ़ाई"
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
    ** आभासी पढ़ाई **
    चिन्मय का जन्म वर्ष 2015 में हुआ था। वह बहुत मेधावी बालक था। उसके माता-पिता ने तीन साल की आयु के पश्चात उसको विद्यालय में प्रवेश दिला दिया था। अन्य बच्चों के साथ पढ़ना - खेलना चिन्मय को बहुत अच्छा लगता था।
    मेधावी चिन्मय पढ़ाई करने के लिए वह सदैव उत्साहित रहता।
    परन्तु एक दिन जब उसकी आंख खुली तो उसकी मम्मी ने कहा "बेटा! आज पढ़ाई के लिए विद्यालय नहीं जाना है।"
    क्यों माँ?
    प्रत्युत्तर में जो शब्द....."लाॅकडाउन".... उसे माँ के मुख से सुनने को मिला, उसको चिन्मय का बालमन नहीं समझ पाया।
    कुछ दिन बाद माँ ने कहा कि "चिन्मय! आज तुमने कक्षा में पढ़ाई करनी है"।
    सुनते ही वह खुशी के कारण उछल पड़ा।
    माँ ने उसको विद्यालय की वेशभूषा पहनाई।
    चिन्मय ने अपने पिता से कहा "पापा! चलो, मुझे स्कूल छोड़कर आइये।
    परन्तु माँ ने उसका हाथ पकड़ा और लैपटॉप के सामने बैठा दिया और कहा कि "यही है तुम्हारा स्कूल और यहीं पर तुम्हें पढ़ाई करनी है, चिन्मय!"
    उस दिन चिन्मय ने जिज्ञासावश नयी तकनीक के विद्यालय में पढ़ाई की।
    परन्तु दो-तीन के बाद वह इस आभासी विद्यालय से ऊब गया और माँ से बोला.... "माँ! यह "मेरा स्कूल" नहीं है।
    मेरे स्कूल में बच्चों के साथ-साथ शिक्षक-शिक्षिका, पुस्तकें, मेज-कुर्सी, दीवारें, फूल-पौधे सब मुस्कराते, खिलखिलाते रहते थे जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती थी।
    माँ! मुझे "अपना स्कूल" चाहिए।
    माँ! इस स्कूल में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता।
    माँ निरुत्तर हो गयीं। उन्हें प्रतीत हुआ कि इस तकनीकी आभासी पढ़ाई से चिन्मय जैसे बच्चों की भावनायें और मानवीय संवेदनायें कैसे साकार रूप लेंगी।
    कोरोना काल में तकनीक के विद्यालय में पढ़ाई कर रहे बच्चे जीवन के यथार्थ को कितना समझ पायेंगे?
    उत्तर में बस......... मौन था।
    मां के अन्तर्मन में एक सन्नाटा सा बिखर गया।
    इस सन्नाटे में उन्हें केवल चिन्मय की आवाज सुनाई दे रही थी.....
    मां! मुझे "अपना स्कूल" चाहिए।
    माँ! इस स्कूल में मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता।

    **सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
    देहरादून - उत्तराखण्ड।
    🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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