क्या कभी लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व हो सकता है ?

    वर्तमान में लघुकथा के नाम पर लंबी - लंबी कथा लिखी जा रही हैं । ये कार्य , अपने आप को श्रेष्ठ लघुकथाकार माने वाले , सबसे अधिक कर रहे हैं । कभी आदरणीय मुकेश जैन पारस की लघुकथाओं का उदाहरण दिया जाता था कि लघुकथा का स्वरूप क्या है । परन्तु अब लंबी - लंबी लघुकथाओं से किसी को कोई परहेज़ नज़र नहीं आता है । आदरणीय जगदीश कश्यप जी के समय ऐसी लघुकथाओं को स्वीकार नहीं किया जाता था । परन्तु उसी समय के कुछ लघुकथाकारों ने लंबी - लंबी लघुकथाएं लिखना व समर्थन देना , वर्तमान में भी जारी हैं । जिससे वर्तमान में लंबी - लंबी लघुकथाओं के लिखने वालों की बाढ़ आई है । इस से  लघुकथा के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है कि क्या लघुकथा भटक गई है ?
    ऐसा कुछ अभी कहना जल्दी बाजी होगी । परन्तु सोचने के लिए अवश्य मजबूर करता है । यह सब लघुकथाकारों पर ही निर्भर करता है । क्या लंबी लघुकथा पाठकों को चाहिए । शायद नहीं ........ । लंबी लघुकथा का स्थान कहानी के पास पहलें से सुरक्षित है । क्या लघुकथा लेखन के नियम कहानी पर लागू हो रहे हैं । जिससे लंबी लघुकथा में कामयाबी हासिल हो रही है । शायद ऐसा ही कुछ है । बाकी भविष्य .........? 
क्रमांक - 001
           भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह कोई नहीं जानता। लघुकथा कम से कम शब्दों में कही और लिखी जानी चाहिए यह सही है। पर कभी-कभी कोई कथा लघु से थोड़ा अधिक आकार भी माँगती है वहाँ रचनाकार लघु आकार में समेटने की विवशता में कथा के साथ अन्याय कर डालता है। लघुकथा तो लिखी जाती है पर कथ्य के साथ अन्याय हो जाता है। लघु के चक्कर में कई बार लघुकथा अधूरेपन का अनुभव कराती है और पाठक अतृप्त सा रह जाता है। रचनाकार लघुकथा लिखते समय लघु आकार का ध्यान रख कर तो लिखे पर कथ्य/कथा के साथ अन्याय न करे।थोड़ी सी लम्बी लघुकथा हो जाए तो कोई नुकसान होने वाला नहीं।रचनाकार लिख कर संतुष्ट होगा तो पाठक भी संतुष्ट होगा। मेरे पिताजी ने भी कुछ लघुकथाएँ लिखी थी। कुछ लघु के आकार से थोड़ी बड़ी थीं पर कहानी नहीं थी। उन्होंने कहा कि आकार की दृष्टि से मैं लघु आकार वाली कथाओं को मध्यम कथा कहना चाहूँगा। कहानी तो कहानी ही रहेगी ।पर लघुकथा लम्बी भी हो जाए तब भी वह कहानी नहीं कहलाएगी। लम्बी और लघु कैसी लिखी जा रही है कथा….यह कथा पर ही निर्भर होगा कि वह लिखे जाते समय कैसा आकार लेगी।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई 
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 002
        लघुकथा, बस लघुकथा है - इसे कोई और नाम न दीजिए! जैसा कि विधा के नामकरण से ही अभिलक्षित है अव्वल तो लघुकथा लघु रहे, यही उचित है। या फिर 'लघुकथा' को बस लघुकथा ही रहने दीजिए। इसे..लम्बी, छोटी, टेढ़ी, नीची, ऊंची आदि निरूपित करना नितांत अवांछनीय है। जाने-अनजाने अथवा..मठाधीश कहलाने की मंशा से यदि कोई शख़्स 'लम्बी लघुकथा'  या ऐसी कोई स्थापना देता है तो उसके प्रति सावधान हो जाना चाहिए। ऐसे ही हास्य लघुकथा, करुण लघुकथा, गम्भीर लघुकथा आदि सरीखी कोई अवधारणा भी केवल भ्रम ही पैदा कर सकती है। इनसे विधा का कोई भला होने वाला नहीं है।
        - अनिल शूर आज़ाद
           विकासपुरी - दिल्ली 
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क्रमांक - 003
          मेरे विचार से लंबी लघुकथा का अस्तित्व नहीं हो सकता है, क्योंकि लघुकथा का मतलब है कम लिखना और ज्यादा समझना। आजकल की युवा पीढ़ी एवं अन्य सभी की जिंदगी बहुत व्यस्त भरी हो गई है ।समयाभाव के कारण उनके कंधों पर प्रत्येक काम समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी रहती है। ऐसे में यदि लेखक लंबी-लंबी लघुकथा लिखेंगे तो पाठक में पढ़ने से रूचि, दिलचस्पी घटेगी।क्योंकि लंबी लघुकथा और कहानी में फिर फर्क ही क्या रह जाएगा? लघुकथा का मतलब ही है कि जितने कम शब्दों में पूरी कहानी बयां कर दें। कहानी उपन्यास इत्यादि तो लंबी होती ही है, ऐसे में लघुकथा को लघु ही रहने देना चाहिए।
 - मीरा प्रकाश 
  पटना - बिहार
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क्रमांक - 004
          नाम से ही स्पष्ट होता है कि लघुकथा संक्षिप्त ही होनी चाहिए । लम्बी होगी तो वह विस्तृत कहानी बन जायेगी जिसमें क ई बिन्दु समाहित होते हैं । लघुकथा एक बिन्दु विशेष पर लिखी जाती है । अति संक्षेप में तथा संकेतों में अपनी बात कही  जाती है।  किसी भी प्रसंग पर व्यंग्य अथवा कटाक्ष या और किसी भी रूप में लघुकथा के माध्यम से पाठकों तक सकारात्मक संदेश पहुंचे । लघुकथा के समापन में पंच होना चाहिए ताकि पाठक आसानी से आशय समझ सके । मेरे अनुसार तो लम्बी लघुकथा का सार्थक अस्तित्व नहीं होता है ।
                 - देवदत्त शर्मा
             अजमेर - राजस्थान 
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क्रमांक - 005
        सामान्य रूप से अस्तित्व के संदर्भ में सर्वप्रथम विचारणीय है - प्राण तत्व या प्राणत्व ।अंतस् और बाह्य अर्थात् तन और मन से सर्वविध सौंदर्य पूर्ण होने के बावजूद प्राण तत्व से हीन होते ही मनुष्य अस्तित्व शून्य हो जाता है।  द्वितीयत: ,  लंबी अर्थात् आकारगत विस्तृति किसी के अस्तित्व को शून्य नहीं कर सकती - यदि वह उसके प्राण तत्त्व एवं विधागत तत्त्वों  से संरक्षित है । अस्तु ,जो मूल तत्व हैं उन्हें सुरक्षित रखने का प्रयास अवश्य होना चाहिए फिर चाहे लघुकथा लंबी हो या छोटी ,बहुत मायने नहीं रखती । लघुकथा को लघु  कथा से भिन्न करने वाले बिंदु उक्त संरक्षण के क्रम में अवश्य विचारणीय होने चाहिए । लघुकथा को अपना जीवन सर्वस्व अर्पित करने वाले आदरणीय सतीशराज पुष्करणा जी की यह उक्ति इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है -" यदि किसी व्यक्ति की लंबाई औसत से कम या अधिक हो तो क्या उसे इंसान नहीं कहेंगे ? " जी हां ! मनुष्य की कसौटी पर यदि कोई व्यक्ति मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से सही उतरता है तो वह निश्चय ही एक इंसान है , मनुष्य है ।पुष्करणा जी के वक्तव्य में प्रदत्त प्रश्न का उत्तर भी समाहित है ।  प्रारंभ से अब तक के विमर्शों ने यह सिद्ध किया है कि लघुकथा एक घटना अथवा एक क्षण या और भी अधिक सूक्ष्म स्तर पर देखा जाए तो क्षण विशेष की प्रस्तुति है और यही उसका प्राण तत्व है ।उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाते कथानक निश्चय ही लघुकथा की परिधि से बाहर जाएंगे ।उक्त घटना विशेष ,क्षण अथवा क्षणांश विशेष की प्रस्तुति की शैली एवं कलाकारिता ही  लघुकथाओं को कालजयी , आकर्षक एवं दिलो-दिमाग में पैठ बनाने वाली शक्ति प्रदान करती है।  पुनः  लघुकथा के लंबी होने में भी एक अनिश्चितता है। कितनी लंबी ?कितनी छोटी ? इसका न तो निश्चित प्रारूप है और न निश्चित पैमाना और यह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्यावहारिक भी नहीं लगता ।4 पंक्तियों में रची गई लघुकथा ' घास वाली 'भी अत्यंत मारक है । अंततः , यही कहा जा सकता है कि लघुकथा लघुकथा ही रहे ।  यदि संक्षेपण अथवा समास शैली द्वारा विस्तृति  नियंत्रित की जा सकती है तो वह अवश्य होनी  चाहिए ।प्राण तत्व एवं विधागत तत्वों की सुरक्षा के साथ अपरिहार्य विस्तृति स्वीकार्य है। शेष के लिए  काल सर्वोपरि निर्णायक है।
 - डॉ. अनिता राकेश
हापुड़ - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 006
      लंबी लघुकथा का अस्तित्व भविष्य में ना के बराबर होगा। वर्तमान समय के भौतिकता  के युग में साहित्यिक विधाओं पर  संकट देखने को मिल रहा है।  आज की आधुनिक जीवनशैली में वक्त की कमी होने के वजह लंबी कहानियों को पढ़ने के लिए वक्त नहीं होता है ।ऐसे में शॉर्टकट के जमाने में लगभग सात -आठ  दशक के साहित्यिक संघर्ष के बाद लघुकथा ने अपना  अस्तित्व प्राप्त किया। लघुकथा अब नई विधा के रूप में  हिंदी साहित्य का प्रतिनिधत्व कर रही है क्योंकि लिखने में ये कम समय लेती है। अखबारों , पत्रिकाओं में यह कम जगह घेरती है। मूल्यों पर आधारित होने पर शिक्षाप्रद संदेश के साथ चारित्रिक उत्थान करती है, आज की इस आप-धापी भरी जिंदगी में आज समय का बेहद अभाव हैं इसलिए लघुकथा  प्रचलन में  तेजी  आयी है । लोग हर चीज में तत्काल परिणाम के पक्षधर हैं । अतः लोग पढ़ना तो चाहते है, लेकिन गागर में सागर की तरह जैसा कि आज की लघुकथा उनके कसौटी पर खरी उतर रही है। 250-300 शब्दों की लघुकथाएं आज की पीढ़ी को बेहद पसंद आ रही है।अब कैसे फैसला किया जाय कि लंबी लघुकथाएं की उम्र भी लंबी हो सकती है। वैसे तो पूर्व में 700 से 1000 शब्दों में मनमोहक लघुकथाएं लिखी गईं थी,जिसमे एक शब्द भी इधर का उधर होने की गुंजाइश ना के बराबर थी।और वो उस समय बेहद लोकप्रियता के चरम पर थीं। प्रायः देखा गया है कि किसी भी साहित्यकार एवं आलोचकों ने लघुकथा विधा की शत- प्रतिशत आलोचना नहीं की है । लघुकथा को सोशल मीडिया पर हाथों हाथ लिया जा रहा है।
  इस विधा को आगे बढ़ाने में सर्वश्री कमलेश्वर जी,राजेन्द्र यादव, डॉ.बलराम जी,श्रीमती कांता रॉय जी,श्रीमती मीरा जैन जी, श्री उमेश महादोषी जी,श्री योगराज प्रभाकर जी,श्री संतोष श्रीवास्तव जी आदि  ने अपना योगदान दिया। ई-लघुपत्रिकाओं के संपादकों का भी इसे स्थापित करने में हाथ रहा है। बीजेन्द्र जैमिनी जी के ब्लॉग ने एवं आपकी ई - लघुकथा संकलन ने तो लघुकथा विधा के विकास में बड़ा योगदान दिया है। मुख्य बात लंबी लघुकथा का भविष्य इसलिये भी अनिश्चित है। क्योंकि मेरी दृष्टि में हिन्दी कथा साहित्य के सबसे अधिक लेखक लघुकथा साहित्य में हैं । बड़े , वृद्ध ,  युवा पीढ़ी भी इसे बढ़ावा दे रही है । अतः लंबी लघुकथा आज के समय वैसे भी नदारद हो गई है।कहीं छपती भी है तो पाठक नही मिलते,कहानी प्रतियोगिताओ ने अपने आप को लघुकथा प्रतियोगिताओं में परिवर्तित कर लिया है।
- अजय वर्मा
इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 007
        लघु का अर्थ ही है छोटा। लघुकथा अपने आप में भूमिका विहीन विधा है । लघुकथा में शब्दों की मितव्ययिता होती है । किसी भी बात को संक्षिप्त में इस तरह से कह देना कि वो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर दे यही लघुकथा का उद्देश्य होता है। इस लिए लंबी लघुकथा का अस्तित्व अपनी पहचान खो देता है। यदि कहा जाय कि सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर, देखन में छोटे लगत घाव करे गंभीर, बिहारी सतसई का यह दोहा लघुकथा के बारे में कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
- आभा दवे
  मुंबई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 008
        लघुकथा की परिभाषा इस आधार पर व्यक्त की गई है कि यह न तो छोटी होती है न लंबी होती है । यह आकार में लघु होती है जिसका आकार , अस्तित्व अधिकतम दो पृष्ठों में मापा जा सकता है । इससे ज्यादा यदि लघुकथा का परिमाप आप करेंगे तो यह लघुकथा न होकर एक छोटी कहानी या कहानी का रूप ले लेगी । लघुकथा का कथानक स्पष्ट होता है , यह रहस्यमयी नहीं हो सकता । इसका समापन एक कथानक के अंतर्गत बहुत सीमित दायरे में होता है । लघुकथा को खींचकर न तो आप लंबा कर सकते हैं न लंबे कथानक को आप छोटे रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं । ऐसी रचनाएं लघुकथा हो ही नहीं सकती । लघुकथा स्वयं में एक संपूर्ण रचना होती है । इसे न तो लंबे आकार के रूप में देखा जा सकता है न इसका आकार किसी भी दृष्टि से लघु हो सकता है ।
- राजकुमार निजात 
 सिरसा - हरियाणा
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क्रमांक - 009
       जैसा कि लघुकथा शीर्षक से विदित है कि छोटी कथा या कहानी। लघुकथा में शीर्षक जुड़े कथा के तथ्य ,बिम्ब और स्पष्टता का  समागम हो कि कम शब्दों में शीर्षक को बंया करें। लघुकथा जितनी छोटी हो उतनी बेहतरीन मानी जाती है। जहां तक लम्बी कहानी या कथा की बात है तो वो मेरे विचार से लघुकथा का अस्तित्व नहीं हो सकता!लम्बी कहानी लघुकथा में अस्तित्वहीन हो जाएगा, लघुकथा पाठकों के लिए उबाऊ हो जाएगा।
                  - रेणु झा रेणुका
                    रांची - झारखंड 
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क्रमांक - 010
       यह तो वही बात हो गई कि लम्बी उसांसों  का भी कोई अर्थ हो सकता है क्या? लम्बी उसांसें यानी वेदना की गहराई  को इंगित करती एक सशक्त सत्य जो   स्वयं से संबधित  प्रत्यक्षदर्शी को उसके फैसले बदलने को  मजबूर कर दे, ठीक इसी तरह लम्बी लघुकथा में  यदि  शब्दों  का सामंजस्य   विषय की  गंभीरता को तथ्य की गहराई को  धाराप्रवाह   कल कल सरिता सी या  भयावाह बाढ़ की विभीषिका सी  अपनी पूरी कथा में मजबूती के साथ विद्दमान रहती है तो लम्बी लघुकथा का  अस्तित्व भविष्य में अवश्य ही  स्थापित होगा।
- डॉ वासु देव यादव
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 011
        लघुकथा लिखते समय शब्द सीमा को ध्यान में नहीं रखा जा सकता मगर अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए। वैसे यह कथानक के ऊपर भी निर्भर करता है कि लघुकथा कितने शब्दों की होगी। शब्द सीमा में बांधना उसके स्वाभिक विकास को रोकने जैसा है। लघुकथा कम से कम शब्दों में व्यक्त करने की कला है मतलब 'कम शब्दों में गहरी बात'। 
- सीमा वर्मा
लुधियाना - पंजाब
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क्रमांक - 012
रहमिन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डारी, 
यहां काम आबे सुई क्या करे तरवारी। 
    लघुकथा की बात करें तो लधुकथा हिन्दी साहित्य की नबीनतम विद्या है, हिन्दी में जब भी  कहानी एक स्वतंत्र विद्या के रूप में आई अस्तित्व में  वह शार्ट स्टोरी  यानि छोटी कहानी कहलाई, अक्सर देखा गया है  छोटी  कहानी लम्बी कहानी से अलग होती है जिसे लघु  कथा से पुकारा जाता है, लम्बी व लघुकथा नाम कहानी के तीन प्रमुख मोड़ हैं जिनका अलग अलग अस्तित्व  व सांचा  ढांचा है  जिनसे विद्या का क्रमिक विकास  स्पष्ट  होता है। हिन्दी लघुकथाएं विशेष तौर पर वेद , पुराण, रामायण महाभारत कथाओं से प्राप्त होती हैं, लेकिन  कुछ विद्वानों का कहना है कि लघुकथा बीसबीं सदी की देन है । अक्सर   देखा गया है लघुकथा आकार में छोटी होती है लेकिन वैचारिक तौर पर बहुत ही असरदायक  होती है यही नहीं लघु कथा विस्फोटक के साथ साथ प्रस्फुटित हुई विधा है, यह एक शोषण और शोषक के  खिलाफ एक क्रांतीकारी होती  है, मन को आदोंलित करने वाली अनूभूति को डाइल्यूट किये बिना कहने को लघु कथा कहते हैं क्योंकी तल्खी, तीखापन, चुभन इत्यादि को लघुकथा के जरिए उजागर किया जा सकता है, लघुकथा लघु भी होती है और कथा भी इसमें लघुता व कथा दोंनों आ जाती हैं, थोड़े में अधिक कहने की कला इसमें कूट कूट के  भरी होती है, इसमें एक ही प्रसंग को  पांच सात पंक्तियों से चरम सीमा तक पहुंचाया जा सकता है तथा यह स्तिथी  की विडम्बना का एक झटके से पर्दाफाश करती है तथा इसमें पात्रों की इतनी जरूरत नहीं पड़ती। लघुकथा एक प्रिय विधा है और इसकी लोकप्रियता शनै शनै बढ़ती जा रही है। लघुकथा  में  मनुष्य का बाहरी संसार ही उजागर नहीं होता किन्तु भीतरी संसार भी प्रत्यक्ष हो जाता है तथा इसकी अपनी सीमाएं होती हैं जिनको अनदेखा नही़ किया जा सकता मगर अगर लेखक कौशल हो तो वो  कथा से लघुकथा निकाल सकता है, लघुकथा जिस उदेश्य से लिखी गई हो अपना असर पाठकों पर छोड़  जाती है जैसे प्रेमचन्द की  लघुकथाएं । अन्त में यही कहुंगा लघुकथा की गरिमा उसकी लघुता मैं ही है तथा लेखक वोही कौशल है जो अपने विचार कम शब्दों मैं प्रकट करता है व प्रस्तुत करता है, लघुकथा का उदेश्य यथार्थ की राह चलकर आदर्श की स्थापना करना होता है क्योंकी इसमें अगर यथार्थ जुड़ा रहे तो कथा जीवित रहती है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू- जम्मू कश्मीर
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क्रमांक - 013 
           लंबी और लघुकथा ये दोनों शब्द ही विरोधाभाषी है। लघुकथा अपने नाम से ही अपनी लम्बाई को दर्शा देती है। लघुकथा का एक निश्चित प्रारूप है। यदि लघुकथाएँ उस प्रारूप के अनुसार लिखी जाए तो कभी-कभी लम्बी लघुकथा भी पसन्द की जाती है। वैसे यह भी सच है कि लघुकथा जितनी संक्षिप्त और कथ्य से परिपूर्ण हो उतनी ही धारदार होती है। साथ ही उसका अंत जितना संकेतात्मक हो पाठक की उत्सुकता उतनी ही बढ़ती है। यानी लघुकथा वो दवा है जो एक बन्द खोल में रहता है जिसका अनुमान लगाया जा सकता है। उसका असर लेने के बाद ही होता है। लंबी लघुकथा प्रतीकात्मक या संकेतात्मक न हो कर विवरणात्मक हो जाती है जो लघुकथा के गागर में सागर के भाव को समाप्त कर देता है। लम्बी लघुकथा को कहानी के प्रारूप से बचना होगा तभी वह भविष्य में अपना अस्तित्व सुनिश्चित कर पाएगी। कठिन है पर असम्भव नहीं।
- मधुलिका सिन्हा
कोलकाता - पश्चिम बंगाल
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क्रमांक - 014
            यह सही है कि लघु कथा को कहानी का छोटा स्वरूप माना जाता है, जिसमें शब्द संख्या का भी नियम रखा होता है लेकिन सब से मुख्य बात है इस प्रश्न पर कि क्या किसी लेखक की लेखन शक्ति को किसी सीमित घेरे में बांधा जा सकता है? लेखकीय गुणों से भरपूर लेखक की कल्पना शक्ति यथार्थता से संयोग बैठाती हुई तथ्यों को मजबूती प्रदान करने की पहल करके विस्तार देती हुई आगे बढ़ती है। फिर उसका सीमित दायरा कैसे हो सकता है? लेखक जब कोई भी रचना रचता है, वह उसमें पूरी तरह से डूब जाता है। किसी कथा की वास्तविक तस्वीर कथा के सभी गुणों को समेटती हुईं, आकर की, शब्द संख्या की परवाह न करते हुए आगे बढ़ती है। वह भले ही लघुकथा/ कहानी का रूप न लें मगर लघु कहानी तो बन ही जाती है। अतः कथाकार की उन चेष्टाओं, प्रयासों, प्रयोगों का गला घोट कर किसी कथा के आकार का, स्वरूप का मजाक नहीं उड़ाया जा सकता। आज का लेखक लम्बी लघु कथा का आस्तित्व बनाने का प्रयास कर रहा है क्योंकि लघु कथानक में उसकी कथात्मक भावनाओं को संक्षिप्तता देना मुश्किल हो सकता है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 015
       'लंबी लघुकथा' यह कोई वर्गीकरण हो, ऐसा सम्भव नहीं है। ना ही यह प्रासंगिक मालूम होता है। लघुकथा का अर्थ ही उसके छोटे होने और एकांगी होने से है।ऐसे में बड़ी/लंबी लघुकथा, छोटी लघुकथा  लिखा जाना उचित नहीं है। हालांकि पारम्परिक रूप से लिखे जाने वाली लघुकथा के आकार में बदलाव आया और स्वीकारा गया। पहले दो पंक्तियों की लघुकथा भी लिखी और स्वीकारी गयी। कहीं कहीं 300 शब्दों की लघुकथा को मानक कहा गया। लेकिन बढ़ते कथानक और कहानीकारों के लघुकथा में प्रवेश से लघुकथा का 300 शब्दों में समाना कम होता गया। अब कुछ लघुकथाएँ पूरे पेज या एक से अधिक पेज की भी हो जाती हैं। लेकिन इसके लिए वर्गीकरण की आवयश्कता बिल्कुल नहीं है।
- चित्रा राणा राघव
  कैलगरी - कनाडा
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क्रमांक - 016
       आज लघुकथाएं बहुत बड़ी संख्या में लिखी जा रही हैं। लेकिन सच यह है कि लघुकथा को बहुत से ऐसे रचनाकार भी अब तक समझ नहीं पाए हैं जो लगातार लिख रहे हैं। लघुकथा के जो सर्वमान्य तथ्य हैं वो प्रायः छोटी रचना में भी संभव हो जाते हैं। रचना को लंबा करने की अपेक्षा प्रायः अपवाद स्वरूप कभी - कभी ही रहती है। अतः लंबी रचना के स्वरूप को लघुकथा के रूप में स्वीकार करने का कोई विशेष औचित्य प्रतीत नहीं होता। "कहानी" का दायरा बहुत व्यापक है। यह छोटी कहानी से लेकर लंबी कहानी तक अपने कलेवर में समाहित कर लेती है। इसी तरह उपन्यास में भी उपन्यासिका से लेकर वृहदाकार उपन्यास शामिल हैं। शब्द संख्या की यह रेंज लघुकथा में भी निर्धारित की जाती ही रही है। ऐसे में अलग से उपविधा की तरह "लंबी लघुकथा" को रेखांकित करना विधा के लिए ख़ास उपयोगी नहीं हो सकता। कुछ दशक पहले छोटी कहानी पर पर्याप्त विमर्श भी हो चुके हैं। हां, आज बड़ी संख्या में ऐसे लघुकथाकार भी हैं जो लघुकथा के तत्व- बिंदुओं को नहीं समझ पाए हैं और परिणाम स्वरूप उपन्यास या कहानी के सारांश को ही लघुकथा कह कर पेश कर रहे हैं। यदि उनकी रचनाओं को स्वीकार मिलता है तो यह एक अगंभीर बात ही होगी। ऐसा प्रायः उन पत्र- पत्रिकाओं में हो रहा है जहां जन इच्छा के सम्मान के रूप में लघुकथाओं को छापना तो शुरू कर दिया गया है किंतु उनके संपादकीय समुदाय में लघुकथा की समझ रखने वाले लोग नहीं हैं।
- प्रबोध कुमार गोविल
जयपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 017
           जब मैं छोटी थी तो हमारे घर के एक किरायेदार के पिता जिन्हें मैं  *काका* कहती थी , वह रात को  बहुत अच्छी कहानी सुनाया करते थे । जो चार पांच दिनों तक चलती रहती थी । अगले दिन  कहानी वहीं से शुरू होती थी जहाँ पर पहले दिन छोड़ी जाती थी । कहनी सुनाने पहले वह हमसे पहले दिन सुनाई गई कहानी का अंत पूछा करते थे । अब वैसी कहानियाँ न सुनने में आती है और न ही पढ़ने में । उन्हें आज सुनाने वाला भी कोई नही । समय परिवर्तन ने उपन्यासो को कहानी में समेटा और कहानियों को लघुकथाओं में समेट दिया । दीर्घ कहानियों का तो अस्तित्व ही खत्म हो गया उसका कारण उनके कथ्य में परिवर्तन है । जबसे कहानियों में कल्पनाशीलता गायब हुई तब से कहानी में यथार्थ का वर्चस्व छा गया । लघुकथा का जन्म चौपाल में बैठे लोगों की गपशप से शुरू हुआ होगा । जैसे किसी को कोई बात कहनी हो और जल्दी में कह कर भाग जाए । किसी कहानी का कथ्य छोटा हो सकता है लेकिन उसके तत्वों में कोई परिवर्तन नही किया जा सकता । 
 जितने शब्दो में आपकी बात पूरी हो जाये वही लघुकथा है किसी ने लघुकथा की यही परिभाषा दी थी । अगर बात ही पूर्ण करनी है तो वह तो दो पंक्तियों में भी पूरी की जा सकती है या चलते चलते भी जो मेरे विचार से कहानी या कथा नही हो सकती । साहित्य में जिन तत्वों के कारण कोई घटना  कहानी कहलाती है उनका निर्वहन तो बहुत महत्व रखता है । जिनका निर्वहन लघुकथा में कभी कभी नही दिखाई देता । हम किसी घटना का वर्णन कर सकते है जो बात या एक लघु- रपट हो सकती है लेकिन कहानी या कथा कदापि नही । संतोषी माता की कथा , सत्यनारायण की कथा या किसी भी पर्व की कथा में भी वही तत्व निहित हैं जो किसी साहित्यक कहानी में । लेकिन वह अपने कथ्य में पूर्ण दिखाई देती है जबकि आज की लघुकथा कथा स्त्रियों के समूह में या चौपाल पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ाते हुए गपशप जैसी ही अनुभूत होती है । लघुकथा का प्रारूप कहानी और कथा के बीच का होना आवश्यक है जिससे यथार्थ दर्शन के साथ कहानी के अन्य आवश्यक तत्वों का भी अनुभव हो सके । कह सकते है कि कथा कहानी का पर्याय  नही । इसीलिए उसे *लघुकहानी* नाम न दे कर *लघुकथा*  दिया गया जो साहित्य में एक नई विधा कर रूप में अवतरित हुई ।
     भविष्य में यदि *लम्बी लघुकथा*  जैसी कोई विधा जन्मी तो वह कहानी और लघुकथा के बीच की कोई नई विधा ही होगी ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 018
        मैं अपने पूर्ण साहित्यिक अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि लम्बी लघुकथा का कभी कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है ।कथा के पहले लघु शब्द होने का अर्थ है-छोटा रूप ।'लम्बी' और 'लघु' शब्द एक साथ नहीं हो सकते हैं ।लम्बी लघुकथा करने पर उसका स्वरूप कहानी का बन जाएगा ।
 - डाॅ.अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 019
     आप सभी के समक्ष "लघुकथा" विधा पर अपने विचार रखते हुए, बहुत प्रसन्नता का अनुभव कर रहीं हूँ। 
लघु+कथा=लघुकथा , आकार में लघु, परंतु संयोजन, बुनावट कथा की। लघुकथा के आकार, शब्दों की संख्या पर हमेशा बातचीत की जाती है। एक लघुकथाकार होने के नाते मैंने यह महसूस किया कि लघुकथा को शब्दों की गणना में समेटना, कहीं ना कहीं विधा की आत्मा को घायल करता है।कलम चलाते समय, हर लेखक इस बात को जानता है कि वह लघुकथा लिखने जा रहा है। लघुकथा के आकार, शब्दों की संख्या, कहीं ना कहीं लेखक के मस्तिष्क में विद्यमान होती ही है और वह अपनी बात सीमाओं में रहकर लिखना चाहता है। कभी कभी कुछ कथ्य को लिखते हुए, लेखक इस बाध्यता से परे होकर उस कथ्य को सही, प्रभावी ढंग से लिखने की हिम्मत कर लेता है तब लघुकथा का आकार लम्बा तो जाता है। हर लंबी लघुकथा, प्रभावहीन होती है ऐसा कदापि नहीं होता या आकार में छोटी हर लघुकथा प्रभाव पैदा करती है ऐसा भी कोई नियम नहीं है। मैंने लघुकथा को जितना समझा, जाना और पढ़ा मेरा अनुभव यह है कि लंबी लघुकथा, यदि किसी विसंगति, किसी कथ्य को दर्शाकर उसका सशक्त समाधान प्रस्तुत करती है तो वह समाज के लिए उपयोगी,  सार्थक लघुकथा होती है। शब्दों की संख्या में कुछ वृद्धि हो जाने से लघुकथा के अस्तित्व पर कोई खतरा मुझे नज़र आता है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि लेखक लघुकथा के आकार की मूल विशेषता को भूलकर कथा का सृजन करें। 
- शर्मिला चौहान
ठाणे - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 020
अंग्रेजी में शार्ट स्टोरी की कई उपविधाएँ हैं। उनमें से एक Mini Saga है जो 50 शब्दों की रचना होती है, उसी प्रकार Drabble 100 शब्दों की रचना होती है। वहीं फ़्लैश फिक्शन 300 से 1000 शब्दों के मध्य कही जाती है। इसी प्रकार मेरा यह मानना है कि लघुकथाओं का भी शब्द संख्या से कुछ-न-कुछ सहसम्बन्ध होना चाहिए ही। यह बंध कितना मज़बूत या कमज़ोर है वह एक अन्य विषय है। बहरहाल, लघुकथाओं में कम ही सही, लेकिन प्रयोग हो रहे हैं, जिनमें से कुछ आलोचकों की नज़र में भी होंगे। आज लघुकथा एक स्वतंत्र विधा के रूप में विकसित हो चुकी है, तब भविष्य में इसकी कोई उपविधा लंबी अथवा सीमित शब्द संख्याओं की रचना हो जाए, इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वैसे, आज भी कई सशक्त लघुकथाओं की शब्द संख्या अधिक मिल सकती है। 
- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी
उदयपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 021
"लम्बी कथा मेरी दृष्टि में लघुकथा ही नहीं" मेरी दृष्टि में यह वाक्य ही अपने आप में विरोधाभासी है, " क्या कभी लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व हो सकता है?"  जी हां लघुकथा शब्द अपने में संपूर्ण है, इसके आगे या पीछे किसी उपसर्ग या प्रत्यय की आवश्यकता नहीं। और इस लघुकथा का आशय ही है, कम से कम शब्दों में कथातत्व के साथ कोई सौद्देश्य बात कहना। इसके साथ लम्बा शब्द जोड़ा जाना इसके अस्तित्व में विसंगति उत्पन्न करना है। लघुकथा विधा के गंभीर चिंतक इस बात को बेहतर समझ सकते हैं। दुःखद स्थिति यह है कि आज लघुकथा को लघुकहानी के रूप में प्रस्तुत कर इसकी मौलिकता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इस दृष्टि वे लघुकथा के नाम पर लघु कहानी कह और लिखकर आत्म संतुष्टि भले ही कर लें किंतु इससे लघुकथा के अस्तित्व को हम चोट ही पहुंचाएंगे। कई साहित्यकार का कहना है लघुकथा अपने कथ्य अनुरूप शब्द सीमा तय करती है। किंतु मैं इस कथन से इत्तफाक नहीं रखती। कारण किसी भी कथ्य को कम से कम शब्दों (लघु से लघु आकार ) में कहने की कला ही तो लघुकथा है।
- डा. लता अग्रवाल
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 022
        मेरे विचार से लंबी लघुकथा में लंबी शब्द का प्रयोग ही अपने आप में तर्कसंगत नहीं है। लघुकथा विधा के लिए केवल लघुकथा ही पर्याप्त व तर्कसंगत है और जब यह लघुकथा है तो यह लंबी लघुकथा नहीं हो सकती फिर वह कहानी है। अगर हम लंबी कहानी कहेंगे तो वह लंबी कहानी नहीं लघु उपन्यास है। अगर हम लंबा लघु उपन्यास कहेंगे तो वह लंबा लघु उपन्यास नहीं बल्कि उपन्यास है। अतः इसका कोई औचित्य नहीं है कि हम लघुकथा के साथ लंबी शब्द का प्रयोग करें।  यह मेरी व्यक्तिगत राय है। इससे अन्य लोगों की असहमति हो सकती है। 
- डॉ० प्रद्युम्न भल्ला 
कैथल - हरियाणा
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क्रमांक - 023
         जैसे नाम से ही विदित है- लघु यानी छोटी और लघुकथा की सार्थकता सार्थक कथ्य के साथ साथ सशक्त संदेश और अंत तीक्ष्ण मारक क्षमता है।लघुकथा के विधा पर तने इसके नपे तुले शब्द पाठकों के मस्तिष्क पर अपना व्यापक प्रभाव छोड़ने में समर्थ होते हैं ।लघुकथा लम्बी होने से उसके पैनापन में  निःसंदेह कमी आयेगी।आज लोगों के समय की कमी है और लघुकथा की लघुता ही आज लघुकथा की अपार लोकप्रियता की वजह है।
            - रंजना वर्मा उन्मुक्त
             रांची - झारखंड
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क्रमांक - 024
      लघुकथा नियमानुसार संक्षेप में लिखी जानी चाहिए।इसमें जीवन के अनुभवों की संक्षिप्त सुगठित एवं तीक्ष्ण अभिव्यक्ति होनी चाहिए।  कभी-कभी लंबी लघुकथा भी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हो सकती है, पर वह छोटी कहानी कहलाएगी। लघुकथा नहीं कहा जा सकता है।
- डॉक्टर अंजुल कंसल "कनुप्रिया"
इन्द्रौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 025
     लंबी लघुकथा का अस्तित्व कुछ नकारात्मक सा प्रतीत होता है।क्योंकि लघुकथा में यदि लंबा लेखन होने लगा तो उसका मूल अस्तित्व खत्म हो जाएगा।ऐसा लगेगा जैसे कि बस नाम मात्र की लघुकथा है बल्कि इसको तो कथा की श्रेणी में ही रखना चाहिए अर्थात लहुकथा का मूल उसके शब्दों और उनकी गिनती में ही छुपा हुआ है वरना तो वह व्यर्थ ही है।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 026
   लम्बी और लघुकथा दो शब्द असामंजस्य उत्पन्न करने वाले लगते हैं। लम्बी लघुकथा का अर्थ में विस्तार आवश्यक होगा,जबकि लघुकथा कथ्य के साथ साथ कम शब्दों में कोई महत्वपूर्ण संदेश देना एक विशेष लक्षण होता है।वर्तमान में इस विधा के पुरोधाओं द्वारा लघुकथा की स्थापित परिभाषा तथा उसके लक्षणों के आधार पर  उसके  साथ उसका विशेषण लग जाने पर परिदृश्य ही बदल जाता है, तो ऐसी स्थिति में उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग जाता है। दूसरी बात यह है कि  किसी नव लघुकथाकार के दृष्टिकोण को विस्थापित कर देता है। लम्बी लघुकथा न कहानी के दायरे में आती है और न ही लघुकथा की फ्रेम में। इसमें से लघुकथा के लक्षण विलुप्त होते लगने लगते हैं अर्थात अस्तित्व खतरे में आ  जाता है।
- डॉ. चंद्रा सायता
   इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 027
       विषय पर यही कहना है कि समय  परिवर्तनशील  है  जिसके कारण समय समय पर साहित्य में नये-नये प्रयोग होते रहते हैं । यदि परिवर्तन  पाठकों एवं आलोचकों द्वारा आत्मसात कर लिये जाते हैं तो उनका चलन नियमित होने लगता है अन्यथा उनका अस्तित्व स्वत:ही समाप्त हो जाता है । लघुकथाओं के  वृहद रुप में थोड़ी सी बड़ी कहानी जो लम्बी  कहानीयों के सापेक्ष  छोटी हों के चलन को पाठकों द्वारा आत्मसात किये जाने पर इसके चलन को मान्यता दी जा सकती है ।लघुकथाओं में जहाँ संकेतों में कथा समाप्त की जाती है वहीं लम्बी कहानियों में विस्तार से लिखना होता है ।ऐसे में मध्यम मार्ग के रुप मे लघुकथा से थोड़ी बड़ी कहानी को मान्यता दिये जाने में कोई समस्या नहीं होना चाहिए ।
              -  निहाल चन्द्र शिवहरे
                 झाँसी - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 028
        वर्तमान में लघुकथाएं बहुत लिखी जा रही है ,यह बहुत ही  हर्ष का विषय है, लेखको के लिये स्वयं को अच्छे रूप में प्रस्तुत  करने का समय है| लघुकथा जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करती हैं,कही कही लघुकथाओं पर कल्पना की चाशनी चढ़ी होती है ,वह उनके रूप को आकार नहीं देती,वरन रुकावट पैदा करती है | लघु कथाओं पर शोध भी हो रहे हैं,ज्यादातर पत्रिकाओं ओर अखबारों में लघु कथाएं स्थान पा रही है|  लघु कथाओं के आकार को लेकर इन दिनों चर्चाओं का दौर जारी है, बहस जारी है समीक्षक और लेखक  अपने अपने विचारों के साथ हैं,कहीं कहीं  शब्द संख्या निर्धारित कर दी जाती है ,कहीं उसके कथ्य का चुनाव आकार को बढ़ा देता है, कहीं कम कर देता है, कहीं लघु कथा पूरी तरीके से संदेश नहीं पहुँचा पाती, तो लघुकथाएं लंबी हो सकती हैं,लेकिन कहानी नहीं बने,कथ्य का चुनाव बेहतर हो, लघु कथा को शब्द सीमा को नहीं बांधते  हुए उसे थोड़ा लंबा किया जा सकता है | इससे लघुकथा का उद्देश्य अधिक स्पष्ट हो सकेगा | और भाषा में कसावट होनी चाहिए ,अगर कथानक की मांग है तो लघुकथा को लंबा किया जा सकता है |
- इन्दु सिन्हा"इन्दु"
रतलाम - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 029
         परिवर्तन प्रकृति का नियम है उसी प्रकार जीवन में, साहित्य में भी बदलाव होते रहते हैं । कहानी विधा का इतिहास सदियों पुराना है । प्राचीन काल से ही कहानियां सुनी सुनाई और लिखी जा रही है । पहले उम्र के अनुसार कहानी छोटी बड़ी हुआ करती थी । समय के अनुसार इसमें भी बदलाव होते रहे  हैं  । वर्तमान समय भागम-भाग का युग है, लोगों के पास समय की कमी है और वे लंबी कहानियां पढ़ने से बचते हैं इसलिए लघुकथा को अधिक पसंद किया जाने लगा है । छोटी कहानियों का परिष्कृत रूप वर्तमान लघु कथा है जो एक घटना विशेष के आधार पर आधारित होती है । वैसे तो लघुकथा थोड़े शब्दों में अपनी महत्वपूर्ण बात कह देती है अथवा सोचने को विवश कर देती है फिर भी लघुकथा को शब्दों की सीमाओं में बांधना उचित नहीं है क्योंकि कई बार अगर घटना बड़ी होती है तो उसे लंबा करना  लघुकथा की मांग होती है । लेकिन ऐसी स्थिति में लघुकथा के जो मूल तत्व हैं अथवा नियम हैं उन्हीं को ध्यान में रखते हुए उसको बढ़ाया जाना चाहिए  । हो सकता है आने वाले समय में लंबी लघुकथाएं लिखी-पढ़ी अथवा पसंद की जाए और अपना अस्तित्व कायम करने में कामयाबी हासिल कर ले । 
                        - बसन्ती पंवार 
                           जोधपुर - राजस्थान 
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क्रमांक - 030
           लघुकथा लघु ही होती है और होनी चाहिए। लघुकथा को 'अतिलघु लघुकथा' या 'लम्बी लघुकथा' में वर्गीकृत करना इस विधा के साथ अन्याय होगा। मेरे विचार में, कथ्य और शिल्प की एकाग्रता के कारण ही एक अलग विधा के रूप में स्थापित हुई है। इसे कहानी की तर्ज पर लम्बी कहानी और लघु कहानी जैसे वर्गों में विभाजित नहीं किया जा सकता।                
-  लाजपत राय गर्ग
पंचकूला - हरियाणा
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क्रमांक - 031
            मुझे नहीं लगता कि लम्बी लघुकथा का कोई अस्तित्व होगा या होना चाहिए। क्योंकि लघुकथा अपने नाम के अनुरूप लघु ही होनी चाहिए। कभी-कभी मुझे ऐसी कोई बड़ी लघुकथा पढ़ने में आई है, जिसे हम कथा तो कह सकते हैं, पर वह लघुकथा की श्रेणी में नहीं आती। और ना ही वह लघुकथा जैसा प्रभाव दे पाती है। इसलिए जब हम लघुकथा शब्द का प्रयोग कर रहे हैं तो वह लम्बी नहीं होना चाहिए। लम्बी  कथा लघुकथा का पंच नहीं दे पाती। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लघुकथा, बल्कि लघुत्तम कथा कम शब्दों में बहुत प्रभावी तरीके से अपनी बात कहती है।क्योंकि फलक भले ही संक्षिप्त है.. लेकिन सारा ताना-बाना शब्दों का है कि कम शब्दों में आप किस तरह भावों को विस्तार दे पाते हैं।
- ज्योति जैन
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 032
        लघुकथा के विकास में लघुकथा गोष्ठियों और लघुकथा सम्मेलनों की अहम भूमिका रही है l  इन सम्मेलनों के द्वारा ही यह बात सर्वमान्य हुई है कि लघुकथा एक पृष्ठ की सीमा को न लांघे, तो वह अधिक प्रासंगिक होगी ! यानी अपने लघु कलेवर, लघु आकार में लघुकथा अधिक प्रासंगिक होती है ! यह सच है कि कहानी हो या लघुकथा, उसकी विषय वस्तु ही  उसके आकार को घटाती या बढ़ाती है। किंतु एक सच यह भी है कि जो जितना सधा  हुआ और निपुण कथाकार  या लघुकथाकार होता है, वह निपुण कवियों की तरह,  शब्दों का अपव्यय नहीं करता और कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बातें कहने की क्षमता रखता है l  समय के साथ-साथ लघुकथा फिर अपना आकार बदलने लगी है  ! कई समर्थ लघुकथाकार भी  दो-तीन  पेजों की  बड़ी बड़ी यानी लंबी लघुकथाएं  लिखने लगे हैं! ऐसी लंबी लघुकथाएं प्रकाशित भी हो रही हैं, लेकिन अधिक पढ़ी नहीं जा रहीं ! मैं स्वयं लंबी लघुकथाओं को पढ़ने से कतराता रहा हूं, तो आम पाठकों के बारे में क्या कहूं ?  जिस तरह बड़े -बड़े बम  की अपेक्षा,परमाणु या अणु बम अधिक मारक क्षमता रखती है, ठीक उसी प्रकार मेरा मानना है कि लघुकथा जितनी छोटी होगी,  उतनी अधिक मारक क्षमता वाली,  हृदय को बेधने वाली प्रासंगिक रचना होगी ! ...  और सच यह भी है कि लंबी लघुकथाओं की अपेक्षा, "लघु " लघुकथा लिखना ज्यादा कठिन है ! कई बार बड़ी लघुकथा को काट -छांट कर, मुझे छोटी करनी पड़ी है !  मेरा मानना है कि लघुकथा अपने छोटे कलेवर में ही अधिक प्रासंगिक है और सर्वाधिक पठनीय होती है l 
-  सिद्धेश्वर
   पटना - बिहार
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क्रमांक - 033
         लघु +कथा दो शब्दों का जोड़।जैसा कि सर्वविदित है लघु यानि छोटा,तो यहाँ लम्बी शब्द का कोई औचित्य नहीं। लघुकथा में कथानक और पात्रों का तानाबाना कम शब्दों में बुना जाए और अनर्थक दृश्यों और वार्तालाप के खर पतवार को हटा कर यदि कथा की बुनावट को समेट कर कस सकें तभी लघुकथा की सार्थकता पूर्ण होगी।
- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 034
समय समय पर विधाएं अपना स्वरूप बदलती रहती हैं,,,,,,,,,साहित्य की कोई भी विधा हो समय के अनुसार उसकी बनावट और बनावट तथा तेवर में बदलाव होते रहे है। केवल छंदबद्ध  रचनाएं ही अपनी तकनीक को अपनाए रही हैं। हां, उनमें भी समाज मे हो रहे बदलाव  के अनुरूप विषयो का वैविध्य उन्हें अलग नज़रिए से देखने सोचने पर बाध्य करता है। पिछले अनेक वर्षों से लघुकथा ने भी अपने मिज़ाज को बदला है।   तीन चार  पंक्तियों के सूक्ष्म से परिधान की अपेक्षा लघुकथा आज लफ़्ज़ों का बड़ा सा परिधान समेटे भी चलती दिखाई देती है।  प्रारंभिक  दौर से ही इसके आकार  को लेकर शब्दों और पृष्ठों  की संख्या का उल्लेख दृष्टिगत होता रहा है। अपनी अपनी परिभाषाएं भी लेखक/आलोचक प्रस्तुत करते रहें हैं। मेरा मानना है कि कोई भी विधा विकास की ओर तभी उन्मुख होती है जब वह अपने दायरे से निकल नए  प्रयोगों को अपनाती हैं । इन प्रयोगों के चलते   आकारगत लम्बी लघुकथाओं का सामने आना स्वाभाविक है। मुझे इसमें कोई बुराई नज़र आती।  यदि कथ्य की मांग है तो  अतिरिक्त शब्दो अथवा पंक्तियों से परहेज नहीं किया जाना चाहिए। हां इस बदलाव या बड़े आकार के कारण लघुकथा की प्रभावोत्पादकता या पठनीयता प्रभावित न हो , लेखक सृजन कर्म के दौरान यह ज़रूर ध्यान रखे।
- अशोक वर्मा
  लाजवन्ती गार्डन - दिल्ली 
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क्रमांक - 035
      लघुकथा अपने-आप में एक पूर्ण विधा है।जब वह कम शब्दों में ही अपना वर्चस्व स्थापित करने में 'सक्षम-विधा' है,फिर उसके आकार को बढ़ाने का औचित्य क्या है?   "मेरी समझ से 'लम्बी लघुकथा' (छोटी कहानी के रुप में) अपना मूल अस्तित्व को खो देगी।"  "लघुकथा का तो शीर्षक ही एक चुम्बक की तरह काम करता है, इसलिए ही वह कहानी की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है।"  "कम शब्दों में बड़ी सीख, संदेश देना ही लघुकथा का स्वरूप होता है, अगर उसे बड़े ( कहानी के रूप में) परिवर्तित कर दिया गया, तो उसका स्वरूप ही खो जाएगा।लघुकथा-विधा ही एक ऐसी विधा है, जिसमें में शब्दों की 'मितव्ययिता' बहुत आवश्यक होता है।"
"कम से कम शब्दों में बड़ी(कहानी जैसी) बात कह देने का नाम ही लघुकथा है।अगर इसका रूप विस्तृत कर दिया गया तो न 'कथ्य' अपना प्रभाव छोड़ेगा और न ही 'पंच लाइन' का प्रभाव पड़ेगा। अंत में मैं यही कहना चाहूँगी,कि लघुकथा के वास्तविक स्वरूप से छेड़छाड़ न करके उसे उसी रूप में मांजते रहना ही 'लघुकथा-विधा' के प्रति समर्पण है। "परिवर्तन उतना ही हो, जितना जरूरी है। मूल रूप ही हटा देंगे, तो फिर बचेगा ही क्या ? साहित्य के हर विधा की अपनी एक अलग ही पहचान और गरिमा है,हम रचनाकारों का यह 'प्रथम कर्तव्य' बनता है,कि हर विधा के गरिमा को बरकरार रखें।
उदाहरणार्थ-न तो शेर को बिल्ला बनाया जा सकता है और न बिल्ला को शेर, जबकि बनावट में दोनों बहुत हद तक मिलते-जुलते हैं,लेकिन दोनों का व्यक्तित्व और प्रभाव भिन्न-भिन्न है।
- डाॅ.क्षमा सिसोदिया
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 036
       सबसे पहली बात दोनों में से एक शब्द होना चाहिए.. लंबाई या लघुता। यदि हम लघुकथा की बात कर रहे हैं और शब्द लंबी लघुकथा ले रहे हैं। वह यदि लघु है तो लंबी कैसे होगी? यह बात तो त्रुटिपूर्ण हुई न..? लघुकथा में सिर्फ लघुता की बात होगी। यदि रचनाकार लघुकथा लिख रहा है तो उसे अपनी बात को आवश्यक और सार्थक शब्दों में कहना होगा। उसे रबड़ की भांति खींच- खींच कर बढ़ाएगा तो वह पाठकों की दृष्टि से परे हट जाएगी। यदि पाठक लघु कथा पढ़ने के विचार में है तो वह लघु कथा ही पढ़ेगा। उसके आगे लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व नहीं। 
- संतोष गर्ग
मोहाली - पंजाब
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क्रमांक - 037
           यदि वह लंबी होगी तो उसको लघुकथा कहना ही बेमानी है। इसको तो यह  लघुकथा संज्ञा ही इसके लघु स्वरुप के कारण मिली है। अब बात अस्तित्व की तो अस्तित्व रहेगा लेकिन लघुकथा के नाम से नहीं,वह कहानी ही होगी। लघुकथा है तो लघुकथा ही है। इससे इतर उसमें लंबी लघुकथा कहकर कहानी, कथा को नहीं शामिल किया जा सकता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 038
          कहानी को आधार बहुत समय पहले मिल चुका था । पहली कहानी कही जाने वाली 'मिट्टी भर टोकरी
जो छत्तीसगढ मित्र में प्रकाशित हुई। तब हर लेखक कहानी की और आकर्षक होने लगा।  धीरे-धीरे लघुकथा आई जिसके आने से कहानी का अस्तित्व थोड़ा-बहुत हल्का पड़ गया पर यह बिल्कुल नहीं कि कहानियां समाप्त हो गई या लिखना बन्द हो गई। कारण था समय की कमी या कम शब्दों में बड़ी बात। लघुकथा के लिए कुछ नियम थे जैसे कहानी के थे। अब लेखक यदि कहानी से छोटे व लघुकथा से कुछ विस्तार देना चाहे तो क्या करे ? तब जन्म हुआ लम्बी लघुकथा । जिससे कहानी व लघुकथा के स्वरूप में कहीं कोई बदलाव ना आए। अत: मैं यही कहूंगी कि लम्बी लघुकथा, लम्बी कविता 'असाध्य वीणा ' की तरह बोलेगी।
- ज्योति वधवा 'रंजना'
राजस्थान - बीकानेर
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क्रमांक - 039
        सर्वप्रथम तो लघु और लंबी यह दोनों ही विरोधाभासी हैं लघु का तात्पर्य ही छोटेपन से है यदि लघुकथा को बेवजह विस्तार दिया जाए तो यह प्रभावहीन और नीरस हो जाएगी लघुकथा का एक-एक शब्द अति महत्वपूर्ण होता है साथ ही लघुकथा किसी भी विषय के एक पहलू को केंद्रित कर लिखी जाती है इसीलिए इसका सीमित आकार ही इसकी प्रभावोत्पादकता को अति व्यापक बनाने में सक्षम है बशर्ते लेखन शैली सुगठित एवं मारक क्षमता तीव्र हो । दो या तीन पात्रों से अधिक की उपस्थिति भी लघुकथा को छोटी कहानी की श्रेणी में ला खड़ा करती है वही लघुकथा जन-जन में लोकप्रिय हो रही है है जो गागर में सागर भरती है। कम से कम शब्दों में जनहितकारी संदेश  को उद्धृत करना ही लघुकथा का मुख्य ध्येय है । लघुकथा की परिभाषा ही न्यूनता मे समाहित है तो फिर लंबाई स्वयं में ही अस्तित्वहीन है और भविष्य में भी रहेगी।
-  मीरा जैन
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 040 
            लघुकथा एक सशक्त साहित्यिक विधा है जिसका सबसे अनिवार्य तत्व है-- लघुता। यद्यपि लघुता का कोई निश्चित मापदंड या सीमा रेखा नहीं है तथापि कथा के सारे तत्वों को शीघ्रातिशीघ्र समेकित करना ही इसकी प्रमुख मांग है। किंचित  मात्र का अनावश्यक फैलाव भी इस विधा को बेढब बना देता है। हां, इस बात का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाना चाहिए कि संक्षिपतता ऐसी हो कि रचना की स्वाभाविक पूर्णता पर खरोंच भी न आवे।
अतः लंबी लघुकथा का अस्तित्व नामुमकिन है।
- चित्तरंजन गोप ' लुकाठी '
  धनबाद - झारखंड
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क्रमांक - 041
        जब लघुकथाओं का संक्षिप्त रूप इतना लोकप्रिय हो रहा है यह सोचना भी उचित नहीं लगता ,तो फिर…लम्बी लघुकथा के अस्तित्व का और उसके स्वीकार का तो  प्रश्न ही नहीं उठता है। ज़ितना अधिक ,और ,छोटा हो सके उतना ही श्रेयस्कर ।आजकल उपन्यास भी संक्षिप्त हो रहे हैं। समयाभाव के कारण लम्बे लेख पढ़े ही नहीं जा रहे ।आजकल लिखने का शौक़ ज्यादा पढ़ने का शौक़ कम हो रहा है।जब गागर में सागर भरा जा सकता है तो लम्बा खींचने की जरुर ही नहीं है। लम्बी लघुकथाएँ भी लिखी जा रही हैं। अपनी बात संक्षेप में रख कर ज़्यादा प्रभावशाली प्रस्तुति दी जा सकती है। लम्बी लघुकथा धीरे-धीरे संक्षिप्त रूप लेती जा रही है। लम्बी लघुकथा के अस्तित्व की कोई सम्भावना तो नहीं दिखती है ।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा’ उदार’
फरीदाबाद - हरियाणा
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क्रमांक - 042
        लघुकथा एक गागर में सागर होती है लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व नहीं है। लघुकथा यदि लंबी हो गयी तो फिर वह कहानी हो जायेगी। जैसा कि लथुकथा नाम से ही स्पष्ट है कि इसका आकार लघु होना चाहिए । कम से कम शब्दों में होना चाहिए। लघुकथा एक गागर में सागर होती है। एक कथ्य के माध्यम से रची बुनी होती है। इसमें शब्दों की मारक क्षमता होती है तो एक संदेश भी देती है दिशा प्रदान करती।
- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 043
         आज के  दौर में   दो मिनट में मैगी वाले इस युग में हम सब रह रहें हैं। समयाभाव सभी के पास है,  और सभी इन्टरनेट की तरह सुपरफास्ट हो गये हैं। फलतः "लघुकथा" अपने नाम के अनुरूप लघु आकार में हीं रहे तो ज्यादा पठनीय और सुरुचिपूर्ण होती है। लोगों को छोटे स्वरूप में वृहत्तर और संदेशातमक देने  में सक्षम है, तो फिर और क्या चाहिए। छोटा पाकेट बड़ा धमाल, यही तो विशेषता है लघुकथा की। इसलिए  लघु  कथा , या कहानी वृहत्तर स्वरूप में परोसा जा सकता है, लेकिन लघुकथा लघु रूप में हीं सुन्दर और सार्थक होती है।  सटीक शब्दों का कसाव लघुरूप में प्रस्तुती हीं "लघुकथा" की अपनी पहचान है। इसलिए फिलहाल तो लघुकथा का आस्तित्व  लघुता में हीं बेहतर है। वर्तमान हीं भविष्य दिखाता है मेरे विचार से।                        - - - डाॅ पूनम देवा 
पटना - बिहार
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क्रमांक - 044
          वर्तमान समय जिस भागमभाग है,हर व्यक्ति व्यस्त सा है।घर,परिवार, समाज की परिस्थितियों को देखकर नहीं लगता कि कभी लम्बी लघुकथा का कोई अस्तित्व भविष्य में हो सकता है। फिर लघुता ही लघुकथा  का प्राण है।ऐसे ही चलकर लोकप्रिय हो अधिकाधिक पाठकों को जोड़े, साहित्य जगत में गरिमा बढे,उपलब्धि ही हो।इसमें आनलाइन प्लेटफार्मों का समय क्षेत्र की सीमाओं को तोड़कर विश्व परिदृश्य उपलब्ध हो जाना अतिरिक्त लाभ है।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 045
          मुझे लगता है नहीं हो सकता.अपनी लघुकथा लेखन-पठन-यात्रा के दौरान अब तक मेरे समक्ष' लघुकथा' के जो उदाहरण सामने आये उनसे  निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लघुकथा का आकार प्राय: 150 शब्दों से 300 शब्दों के बीच होना चाहिये. कदाचित 500 शब्दों तक भी इसकी शब्द सीमा जा सकती है. मेरी सदा यह कोशिश रहती है कि लघुकथा लिखते समय नियमों का पालन करते हुए विषय के सभी महत्वपूर्ण मुद्दों कों कम से कम शब्दों में लिखते हुए कथा को समेट दूँ.अंत में पंच लाइन डाल कर कथा को मुकम्मल कर दूँ.
- शील निगम
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 046
          यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। लंबी लघुकथा जैसा कि इसके नाम से ही विदित होता है यह आकार में लंबी लघुकथा होती है। जबकि इसका नाम लघुकथा यानी छोटी कथा है। तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व है या नहीं? कथा का अस्तित्व सदा रहा है। सदा रहेगा। इसमें कोई दो राय नहीं है। यदि कथा लंबी है उस में लघुकथा के तत्व विद्यमान हैं, वह एक क्षण या एक प्रतिबिंब को अभिव्यक्त करने में सक्षम है तो वह लघुकथा है। और सदा लघुकथा रहेगी। इसके आकार से इसके अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हो सकता है समयाभाव में पाठक इसे पढ़ना बंद कर दें। मगर इससे लघुकथा के अस्तित्व पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वैसे भी समय के साथ कथा पढ़ने का रूचिगत स्वभाव बदलता रहता है। आज उपन्यास का अस्तित्व बना हुआ है। लंबी कथाएं भी पढ़ी जा रही है। कहानी का अस्तित्व भी बना हुआ है। इसलिए लंबी लघुकथाओं का अस्तित्व बना रहेगा। यह बात दूसरी है कि मैं स्वयं लंबी लघुकथा नहीं लिखता हूं। मगर इसके अस्तित्व को स्वीकार करता हूं। इसलिए मेरी राय है की लंबी लघुकथाओं का अस्तित्व कभी संकट में नहीं आ सकता है।
- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
 रतनगढ़ - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 047
    लघुकथा विधा में लघुकथा की सबसे बड़ी खूबी यही होती है कि कम शब्दों में लघुकथाकार अपनी भाषा, संवेदना और विषतगत कथा को कलमबद्ध करता है। लघुकथा कभी भी छोटी कहानी का रूप लेकर स्थापित होगी  यह सोचना ठीक नहीं लगता है।  लंबी लघुकथा में कथा का विस्तार, पात्रों और संवादों की कसावट भी प्रभावित होगी।इसीलिए लघुकथा का यह वर्तमान स्वरूप ही प्रभावी है।  लघुकथा अपने आरंभिक स्वरूप से लेकर वर्तमान तक भाषा, संवाद, शैली सूक्षम में विराट को दिखाने की कला रही है ।यही इस विधा की विशालता है कि कम में अधिक की खूबी।
- डॉ.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 048
      सवाल उचित और समीचीन भी है।लघुकथा  कथ्य के आकार और शब्द सीमा के आधार पर लघुकथा मानी जाती है। इसमें भी भेद है किसी को 200शब्दों के भीतर ही लघुकथा का अस्तित्व लगता है तो कोई 500 तक की शब्द सीमा के तहत लघुकथा का अस्तित्व मानता है।मेरे विचार से कथानक और विषय मुख्य होना चाहिये आकार नहीं ।लंबी कथायें अगर उद्देश्य पूरा कर रहीं हैं तो अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न नहीं होना चाहिये। भविष्य के गर्त में क्या छिपा है यह तो ईश्वर जाने लेकिन लंबी लघुकथायें भी अपनी समग्रता से अपनी पहिचान बखूबी बनायेंगी यह पक्का है।
 - मनोरमा जैन पाखी 
 भिंड - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 049
          इस संदर्भ में निवेदन है कि मैंने लगभग 1983से लेखन शुरु किया था।तब लघुकथा संबंधित नियमावली नहीं थी।हम सब लंबी लघुकथा लिखते थे।आजकल छोटी लघुकथाओं का चलन है। तो हम मानते थे जो कहानी से छोटी हो वह लघुकथा।धीरे-धीरे मापदंड़ बदलते गये,परिभाषा ऐं बदलती रही। एक लाईन की लघुकथा भी आयी और लंबी भी।लघुकथा की सीमा 400/500 शब्दों से होकर 1000/1200 तक पहुंच गयी। सवाल आकार का नहीं।उसमें लघुकथा के गुण हो,कालखंड दोष न हो।सम्प्रेषणीयता हो,मानवीय संवेदना हो।कथा ज्यों की त्यों विवरणात्मक न हो।पाठक के लिये सवाल छोड़ जाये।यही काफी है। लघुकथा अपने उद्देश्य के निर्वाह में खरी उतरे तो आकार की दुविधा नहीं रहेगी।
- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 050
        लघुकथा में लघुता भी है और कथा भी । यह व्यास शैली में लिखी गयी कोई कहानी नहीं ।बल्कि आकार के अनुरूप  ही कथ्य,शिल्प आदिके आधार पर एक ऐसा केंद्रीय बल उत्पन्न करना होता है जिसके आस -पास इस कथा के सभी गुण चुम्बकीय शक्ति के प्रभा वित दिखाई पढ़ें । इसलिए लंबी कहानी लघुकथा नहीं हो सकती ।ऐसी कथा जिसमें शब्दों का अधिक उपयोग करना पड़े।लघुकथा कार को कम शब्दों में अपनी बात कहनी होती है। इसलिए लंबी कथा को लघुकथा का नाम कदापि नहीं दे सकते ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
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क्रमांक - 051 
          किसी रचनाकार के संवेदनशील हृदय में जब अनुभूतियां उसके अंतर्मन को छूती हुई गुजरतीं हैं तब वे दो दृश्यों का क्रमशः आकार लेती हैं। एक जो है और दूसरा जो होना चाहिए था। यह दूसरा दृश्य रचनाकार का स्वनिर्मित और परिकल्पना निहित होता है। यही  रचना का रूप लेकर अभिव्यक्त होता है। अतः रचनाकार की यह अभिव्यक्ति उसकी स्वयं की है, जिसके लिए वह जितना स्वतंत्र है उतना उत्तरदायी भी है। इस अभिव्यक्ति को जब  साहित्यिक विधाओं की श्रेणी में रखकर चयनित करेंगे तो फिर विधा के अनुसार मूल्यांकन आवश्यक भी है और महत्वपूर्ण भी।  इस दृष्टि से लघुकथा में रचना के चयन के लिए उस रचना का इस विधानुसार सीमा एवं स्वरूप निर्धारित करना ही चाहिए और जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है लघुकथा की लंबाई लघु अर्थात छोटी होना आवश्यक है। लघुकथा जब हम सार्वजनिक करते हैं तो पाठक उसे उस विधा के अनुसार  अपनी रुचि तय कर पढ़ता है और ऐसे में यदि लघुकथा की लंबाई अधिक होगी तो वह पढ़ने में झिझकेगा या हो सकता है सरसरी नजरों से वह देखे या पढ़े भी न।  लघुकथा का उद्देश्य ही पाठकों को कम समय की सुविधा देना है। लघुकथा की लम्बाई निश्चित ही अनावश्यक विस्तार लिए होगी। यदि रचनाकार को विस्तार देना ही है तब फिर उसे कहानी के रूप में गढ़ना उचित होगा। अतः यह कहना और मानना अनुचित ही होगा कि लम्बी लघुकथा का अस्तित्व हो सकता है। लघुकथा के लिए लम्बाई कतई उपयुक्त नहीं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 052
         हिंदी में क‌ई विधाएं समाहित हैं। उनमें से एक विधा लघुकथा भी है जो विद्वानों के अनुसार बीसवीं शताब्दी की देन‌ मानी जा रही है। लघुकथा अधिक लघुआकार होने के कारण ही समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब हो चली है और सिर्फ़ इतना ही नहीं यह अपनी विधागत सरोकार की दृष्टि से भी एक पूर्ण विधा के रूप में हिदीं जगत् में समादृत हो रही है। जिस प्रकार लंबी कहानी को संक्षिप्त करके कहानी की रचना नहीं की जा सकती और न कहानी को बढ़ाकर लम्बी बनायी जा सकती है, उसी प्रकार छोटी कहानी का आकार कम करके लघुकथा और लघुकथा का आकार बढ़ाकर कहानी का सृजन नहीं किया जा सकता है। लघुकथा जैसा कि नाम से भी समझ सकते हैं कि यह लघु भी है और कथा भी। यह न अपनी लघुता को छोड़ सकती है और न कथा को। लघुकथा में कथानक की लघुता के माध्यम से कथ्य को धारदार रुप में पाठक तक पहुंचाना होता है। लघुकथाकार को थोड़े में अधिक कहने की कलाकार क्षमता अर्जित करनी होती है। लघुकथा की आकारगत लघुता ही इस विधा की ऊपरी पहचान है और भीतरी शक्ति भी। अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि जो लघुकथा कसाव, लघुता लिए होती है वह बात लम्बी लघुकथा में हम समाहित नहीं कर सकते और न ही पाठकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं, इसलिए नाम के अनुरूप ही कोई कार्य किया जाय तो वह अपने चर्मोत्कर्ष को प्राप्त करता है वर्ना नहीं। 
- नूतन गर्ग 
   आई . पी. एक्सटैशन  - दिल्ली
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क्रमांक - 053
       सादर अभिवादन के साथ मैं अपना अभिमत प्रस्तुत करती हूँ।लघुकथा के नाम से ही स्पष्ट है कि यह लघु होती है। किन्तु अपनी लघुता में एक विसंगति दर्शाते हुए एक संदेश भी छोड़ती है। लघुकथा दो चार पंक्तियों की भी हो सकती है। सामान्यतः यह  एक सौ पचास से तीन सौ शब्दों तक की होती ही। मेरे विचार से यही आदर्श लघुकथा कहलाती है। कथानक के अनुसार पाँच सौ से छः शब्दों की भी हो सकती है। इसकी लम्बाई लेखक पर भी निर्भर करती है। किंतु पाठक एक छोटी किन्तु सारगर्भित लघुकथा ही पसन्द करता है। यदि लेखक कम से कम शब्दों में अपनी बात रख सकता है तो लम्बाई मायने नहीं रखती। अतः लघुकथा लघु ही रहना चाहिए। 
- सरला मेहता
इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 054 
         कभी भी लंबी लघुकथा का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता। लघुकथा छोटी कहानी के अति संक्षिप्त रूप है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से लघु कथा और छोटी कहानी एक ही साहित्य रूप का बोध कराती है। जिससे दोनों के आकार -भेद का ज्ञान भले ही होता हो लेकिन तात्विक भेद पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। कहानी में जीवन के किसी खंड विशेष को महत्व देकर लिखा जाता है। जिसमें घटनाएं और चरित्र आदि होते हैं। लेकिन लघुकथा के लिए यह सब आवश्यक नहीं है। लघुकथा का जड़ आधुनिक कहानियों की अपेक्षा अधिक प्राचीन है। लघुकथाओं मैं बहुत कुछ राह सुझाने का भाव होता है। जबकि छोटी कहानियां पाठकों के सामने जीवन का एक संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत करती है। कहानी चित्रण के माध्यम से जीवन के किसी सत्य को संकेतित करती है, लेकिन इसके लिए वह एक विश्वसनीय वातावरण तैयार करती है। जब की लघुकथाएं वातावरण निर्माण के लिए बहुत सचेष्ट नहीं होती है। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं यदि कहानियों गांव -घर से होकर गुजरने वाली गली है तो लघुकथाएं निर्जन- सुनसान से होकर गुजरने वाली पगडंडी है दोनों का लक्ष्य एक है लेकिन वातावरण की  भिन्नता  ही उनके रूप को अलग करती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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क्रमांक - 055
         समय के साथ लघुकथा के स्वरूप में बदलाव होते रहे है और इसमें शब्द सीमा को लेकर विभिन्न मत समांतर चल रहे है। लघुकथा और लघु कथा के बीच अतंर क्रमशः सिकुड़ गया है। आजकल लघुकथा का आकार बढ़ने लगा है और अक्सर यह लघुकथा के दायरे से बाहर निकल लघु कहानी का रुप ले लेता है। जानकारों के अनुसार यदि भाव, संप्रेषण अच्छा है और कथा में काल खंड दोष, लेखकीय प्रवेश का अभाव है और कथा एक सुदंर संदेश देने में सफल हुई हो तो शब्द सीमा में समझौता किया जा सकता है। अतः मेरे विचार से अब लम्बी लघुकथा का अपना स्थान बनाने लगी है।
- अंजू निगम
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 056 
         साहित्य की जितनी भी विधाएं हैं उनके लेखन के अपने नियम हैं। लघुकथा के भी नियम है लेकिन लघुकथा 4 वाक्यों की हो या एक पेज की हो अगर सभी तरह के नियमों को समाहित कर के चलती है तो वह लघुकथा है और उसका अस्तित्व रहेगा ही रहेगा। कोई भी रचना लंबाई के कारण न तो अस्तित्वहीन होती है और न तीन चार शब्दों या एक पैराग्राफ के लेखन में अपना अस्तित्व खोती है।  आवश्यक है उसमें कथा का होना ।शिल्प,संप्रेषण, असरदार शुरुआत और अंत तथा आकर्षक शीर्षक जो पूरी कथा को समेट ले। ये तत्व ही लघुकथा  के अस्तित्व को बचाए रखते हैं।
- संतोष श्रीवास्तव
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 057 
          प्रश्न जब अस्तित्व का हो तो प्रश्न का महत्व और बढ़ जाता है। वह चाहे मौलिक कर्तव्यों का हो, मौलिक अधिकारों का हो, सीमा पर शत्रु का उल्लंघन हो, न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक प्रक्रियाओं को उज्जवल या कलंकित करने का हो, जीने-मरने का हो या "लम्बी लघुकथा का हो उसमें 'जिंदादिली' का होना महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि अति आवश्यक है। चूंकि भंवरे प्रायः फूलों पर ही मंडराते हैं।  सर्वविदित है कि रसहीन प्रत्येक लम्बाई से प्रत्येक व्यक्ति शीघ्र उब जाता है। वह लम्बाई चाहे कथा की हो या पटकथा की हो, चलचित्र की हो या न्यायिक युद्ध की हो और चाहे जीवनकाल पर आधारित लम्बी लघुकथा ही क्यों न हो यदि उसमें कलियों जैसी रंगीनता नहीं हो तो वह अर्थहीन होती है अर्थात वह अस्तित्वविहीन होती है। जबकि यदि उसमें सम्पूर्ण रसों का ध्यान रखा गया हो तो उसे लम्बी या छोटी का भेद त्यागते हुए पाठक पढ़ने पर विवश हो जाते हैं और एक बार पढ़ना आरम्भ करने के उपरांत समाप्त करने पर ही समाप्त करते हैं। इसलिए लेखक को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी लेखनी की धार कितनी पैनी है? उसके लिखने का मूल उद्देश्य क्या है? उसकी कथा के कथानक में श्रृंगारों का रस कितना है और वे कितने आकर्षक एवं ज्वलंत हैं? क्योंकि वही रस लम्बी या छोटी लघुकथा के अस्तित्व का आधार बनकर उभरेंगे।
- इन्दु भूषण बाली
ज्यौड़ियां - जम्मू कश्मीर
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क्रमांक - 058
         परिचर्चा का विषयअच्छा है। हंस जैसी पत्रिका में लंबी-लंबी लघु कथाएं छपती रहती हैं। स्वयं लघुकथा के जाने-माने हस्ताक्षर भी लंबी लघु कथाओं को लेकर उपस्थित रहते हैं। मेरा मानना है कि थोड़ी लंबी लघुकथा स्वीकार्य होनी चाहिए ।क्योंकि, आप अपनी बात थोड़ा खुल कर कह सकते हैं ।1-2 जरूरी वाक्यों का समावेश भी कर सकते हैं। जिस तरह किसी कहानी को लंबी कहानी कहा जा सकता है उसी प्रकार किसी लघुकथा को लंबी लघुकथा भी कहा जा सकता है। कभी-कभी किसी लघुकथा को पढ़कर लगता है यह अधूरी है तो उसकी सीमा की पाबंदियां ही हमें रोक देती हैं, कि हमें इससे ज्यादा नहीं लिखना चाहिए। अगर पाबंदी हटाई तो लघुकथाओं का परिदृश्य बदलेगा और उसकी अपनी रोचकता बनी रहेगी।
- डॉ. प्रमिला वर्मा
सोलापुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 059 
          लम्बी लघुकथा भी लघुकथा ही है ,कहानी नही क्योंकि इसमें भी जीवन के किसी एक ही पक्ष का ही उल्लेख रहता है ।लम्बी लघुकथा की उपादेयता ,प्रासंगिकता के लिए हमे लघुकथा में जुड़े शब्द'कथा'पर ध्यान देना होगा ।लघुकथा में 'लघुता' के साथ-साथ 'कथा' भी अपना महत्व रखती है।लम्बी लघुकथा की आवश्यकता तभी है जब लेखक का कथन पूर्ण न हो पा रहा हो।जब कम शब्दों में अपनी बात वह  पाठक तक पहुँचा पाने में असमर्थ हो,जब रचना में अधूरापन लगे, कोई लघुकथा जब  मनोवैज्ञानिक तथ्य पर आधारित हो ,जिसमे पात्रों की मनःस्थिति का वर्णन लघुकथा की आत्मा हो तो ऐसी लघुकथा विस्तारित होने पर ही पाठक पर पूर्ण प्रभाव डालती है। अतः कथ्य की माँग हो,लघुकथा के शिल्प में निखार की आवश्यकता हो,लेखक आवश्यक समझे तो लघुकथा हज़ार -पन्द्रह सौ शब्दों की भी हो सकती है।
    - सन्तोष सुपेकर
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 060 
      यथा नाम तथा गुण के मानकों  (150 से 300 शब्दों की संख्या, लाजवाब प्रभाव की क्षमता, अंतर्मन को छू लेने से युक्त सरल, सहज संवादों से सुसम्बध्द कथ्य) को अपने कलेवर में समेटे लघु कथा ने अपने अस्तित्व को आज के क्षणवादी जीवन की महत्ता के संदर्भ में स्वयंसिद्ध एवं प्रभावशाली बना लिया है। फिर भी कोई लघुकथा विशेषतया सर्वप्रकारेण प्रभावकारी होने के बाद यदि मात्र सौ- डेढ़ सौ शब्दों तक का अतिरिक्त अतिक्रमण कर भी जाती है तो वह अपने अस्तित्व को मिटा नहीं सकती ; लघुकथा ही रहनी चाहिए ना की कहानी। 'देखन में छोटे लगे घाव करें गंभीर' की उक्ति लघुकथा के लिए महत्वपूर्ण है।
- डॉ. रेखा सक्सेना
 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 061
       लघुकथा का लघु होना बहुत ज़रूरी है । लम्बी कथा को लघुकथा कैसे कहेंगे , अगर लघुकथा लम्बी होगी तो उसका कोई अस्तित्व नही है । पढ़ने वाले की रूचि लघुकथा में ज़्यादा होती है क्योंकि आजकल की भागमभाग की ज़िंदगी में लम्बी कथा पढ़ने के लिए समय ही नही मिलता, वैसे भी लघुकथा का आनन्द यह होता है कि थोड़े से शब्दों की कथा में बडे बडे उपदेश छुपे होते हैं जिन्हे पढ कर इंसान अपने आप में बहुत से बदलाव ला सकता है और जीवन की कुछ उलझनों से पार उतर सकता है
- सुदेश मोदगिल नूर
पंचकूला - हरियाणा
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क्रमांक - 062
         पहली बात जो मुझे समझ नहीं आई कि हम लंबी और लघु दोनों शब्दों का इस्तेमाल किसी कथा के साथ क्यों करें यदि लघुकथा है तो उसकी पहली शर्त यही है कि वह लघु होनी चाहिए क्योंकि यह शब्द उसके नाम में ही निहित है यदि हम लंबी कथा लिख रहे हैं तो हम उसे लघुकथा कहें ही क्यों? यदि कथा लंबी है तो  कहानी हो सकती है  कथा हो सकती है लेकिन वह लघुकथा नहीं हो सकती! लघुकथा का तात्पर्य ही यही है कि वह कम शब्दों में सटीक बात कहें और अंतर्मन को छू जाए! बहुत सी बातें उसमें निहित हो जो बिना कहे ही समझी जा सके! लघुकथा का सौंदर्य उसके लघु होने में ही है ऐसा मेरा मानना है!                        
- अंजू अग्रवाल ' लखनवी '
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 063
       लघुकथा यदि लम्बी हुई तब उसकी सुंदरता ही ख़त्म हो जाएगी । यह विधा अपनी कसावट और बुनावट के कारण ही इतना लोकप्रिय है । लघुकथा का अस्तित्व तभी तक है जब तक वह लघु रूप में है और अपने अंदर कथा के तमाम गुणों को समेटे हुए है । 
- सारिका भूषण 
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 064
         लम्बी लघुकथाएँ अक्सर पढ़ने में आती हैं।इनमें से कई लघुकथाओं को पढ़ते हुए यह लगता रहता है मानो  किसी कहानी का संक्षेप पढ़ रहे हों।  लम्बी लघुकथा, मेरे विचार में, लघुकथा की परिभाषा पर पूरी तरह खरी नहीं उतरती। लघुकथा को आकार में  लघु ही होना चाहिए । लघुकथा में एक या दो  घटनाएँ होना ही अभीष्ट है । अनेक घटनाओं को अपने  कलेवर में समेटने वाली लम्बी   रचना को लघुकथा कहना ठीक नहीं।   
-  हरीश कुमार 'अमित '
गुरुग्राम - हरियाणा
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क्रमांक - 065
         लघुकथा शब्द ही अपने आप में पूर्णता स्पष्ट है कि लघु होना चाहिए।  लंबी लघुकथा कैसे हो सकती है यह बात तो त्रुटिपूर्ण है? आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग आसानी से कम शब्दों में अपनी बात को लिख सके और पाठक के हृदय पर चोट कर सके । उस कथा में लेखक क्या कहना चाह रहा है वह उस तत्व को वह समझ सके लघु कथा का उद्देश्य समाज में जनचेतना जागृत करना होता है और वह एक विषय को लेकर चलती है और पाठक के दिमाग पर चोट करती है यदि वह लंबी हो जाएगी तो पाठक उसे पड़ेगा नहीं वह उबाऊ हो जाएगी। लंबी लघुकथा पाठक के हृदय से नहीं जुड़ पाएंगे और ना ही वह जो संदेश देना चाहती हैं वह दे पाएंगी। वर्तमान समय की यही मांग है। भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह लंबी कहानी को पढ़ सके। छोटी लघुकथा  मुहावरे की तरह चोट करती है जैसे सौ सुनार की एक लोहार की। मेरे मतानुसार लघुकथा में ही मिठास है इसे लंबा नहीं होना चाहिए।
- उमा मिश्रा प्रीति 
जबलपुर - मध्य प्रदेश 
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क्रमांक - 066
        लघुकथा किसी घटना का आंशिक स्वरूप में छिपी भाव को, कम शब्दों में व्यक्त करना लघु कथा कहा गया है। लघु कथा की शब्द सीमा छोटी रखी गई है। इस छोटी सी सीमा में ऐसे भाव को व्यक्त करना होता है, जो अंतर्मन को उसका अर्थ का बोध हो जाए ।कम शब्दों में कोई ना कोई भाव समझ में आ जाए और उसे अपनी जिंदगी में प्रमाणित कर खुश होकर जिए ।यही साहित्य का संदेश है। भागदौड़ की दुनिया में लंबी कहानी या लघुकथा पढ़ने के लिए समय ना होने के कारण कुछ ऐसे भी कथा हो ,जो सार्थक रूप में छोटे शब्दों में लिखा गया हो और उसका अर्थ आत्मा को प्रेरित कर दे सुखमय बना दे।यही कथा का महत्व है। लंबी लघु कथा में समय की अधिकता  और अनेक भाव जुड़े होते हैं जो समय के अभाव में पढ़ने में थोड़ी समस्या आती है। इस स्वरूप मे देखा जाय तो लम्बी लघुकथा का अस्तित्व होना ठीक नही लग रहा है।मेरे विचार मे कथा छोटा हो या बडा हो,भाव महत्वपूर्ण होता है, जो हमे प्रेरित कर संस्कारित बनाता है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ - छत्तीसगढ़
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क्रमांक - 067 
       लघुकथा में एक ही बैठक में पाठक  पढ़ लेता है क्योंकि वह कम शब्दों में कसावट लिए होती है और विचारणीय बिंदू की ओर इंगित करती है l कम शब्दों में भाव समझ आ जाते हैं l इस भागती दौड़ती जिंदगी में लघुकथा आत्मिक आनंद प्रदान करती है l सरल और सहज शब्दों के प्रयोग से अंतर्मन को झंकृत कर देती है l लघुकथा का अस्तित्व नहीं मिट सकता l यह अत्यंत प्रभावशाली विधा है l लम्बी लघुकथा का अस्तित्व.... और कहानी में फिर क्या अन्तर होगा साथ ही यह भी विचारणीय रहेगा l उसे हम क्या कहेंगे l कथा तो इनमें है ही... l अस्तित्व की बात करें तो हर विधा का अस्तित्व है l
- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 068
          लघु कथा का मुख्य उद्देश्य कम शब्दों में कथा के मुख्य बिंदु को स्पष्ट कर दिया जाए। शब्दों का कसावट स्पष्ट और सही हो। पाठक कम समय में कथा को पढ़कर आनंद लें। लंबी लघु कथा कहने से तो यह समझ में आता है यह कहानी है।लंबी और लघु दोनों का समन्वय एक साथ ना हो। समय समय की बात है हो सकता है एक ऐसा समय आए जब लघु कथा के जगह पर लंबी लघु कथा की मांग पाठ को द्वारा होने लगे। वह समय भी आने में देर नहीं है। कुछ ऐसे पाठक हैं जिन्हें पढ़ने में रुचि अधिक है और उम्र के उस कगार पर हैं जब समय की बाहुलता हो।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 069
      लम्बी लघुकथा के आस्तित्व के सन्दर्भ में विचार करने से पहले लघुकथा की प्रासंगिकता पर विचार करें तो यह स्पष्ट है कि लघुकथा का प्रासंगिक होना अति आवश्यक है। लघुकथा में सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक विसंगतियों पर सूक्ष्मता से ठोस कटाक्ष करते हुए अंत में उस विसंगति का प्रत्युत्तर भी होता है। शब्दों की मितव्ययिता लघुकथा का प्रमुख गुण है। परन्तु इस बिन्दु पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि सोशल मीडिया से अत्यंत प्रभावित आज के साहित्यिक परिवेश में लम्बी लघुकथा के प्रति पाठक की रुचि कम होती जा रही है। और लघुकथा कथानक का पूर्ण सार व्यक्त करने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में लघुकथा और कहानी के मध्य लम्बी लघुकथा का आस्तित्व प्रभावपूर्ण रूप से स्थापित हो सकता है, ऐसा मेरा मत है। और वर्तमान समय में लघुकथा को लम्बी लघुकथा के रूप में परिवर्तित होने के लिए कुछ लचीलापन होना आवश्यक है। साथ ही मैं यह भी कहूँगा कि एक ही कथा में विभिन्न कथ्यों को प्रस्तुत करते हुए लम्बी लघुकथा कथानक की सम्पूर्णता, शिल्प और चरमोत्कर्ष की उत्कृष्टता के साथ सीमित पात्रों की अनिवार्यता का ध्यान रखते हुए अपने कथ्य अर्थात एक संदेश देने की भूमिका का सफल निर्वहन करते हुए अपने आस्तित्व को प्रमाणित करने में सक्षम है। 
- सतेन्द्र शर्मा ' तरंग '
देहरादून - उत्तराखंड
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क्रमांक - 70 
         साहित्य की हर विधा का अपना एक वैशिष्ट्य होता है। उपन्यास को कहानी में नहीं समेटा जा सकता और कहानी को विस्तार देने से उसकी रोचकता व अस्तित्व ही खो जाता है। इसी तरह क्षण विशेष की बात कहने वाली लघुकथा की विशेषता है उसका पैनापन, संक्षिप्त रूप व कसाव जिसमें एक भी अतिरिक्त शब्द अथवा पँक्ति का न होना ही उसकी सफलता है। काव्य में जो स्थान क्षणिका का है वही स्थान गद्य में लघुकथा का है। विस्तार देने से वह लघुकथा के स्थान पर लघु-कथा हो जाएगी। लघुकथा को उसके मूल व वास्तविक अस्तित्व में बनाए रखने के लिए उसका यही संक्षिप्त रूप ही स्वाभाविक है। मेरे हिसाब से लंबी लघुकथा लघुकथा न होकर छोटी कहानी के कलेवर में चली जाएगी।
- विनीता राहुरीकर
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 071
         लघुता में ही लघुकथा की प्रभुता है । आधुनिक लघुकथा के पुरोधा लघुकथा को अति संक्षेप में कुछ यूँ परिभाषित करते हैं ‘ जो आकार में लघु हो और जिसमें कथा के सब तत्व हों…वह है लघुकथा ।’ गागर में सागर अर्थात् लघुत्व में गुरुत्व भरना ही लघुकथा की प्रथा है। अल्प शब्दों में अधिकाधिक कहना लघुकथाकार के लेखन-चातुर्य को दर्शाता है बल्कि एक दक्ष लघुकथाकार वह है, जिसकी अनकही बात को भी पाठक भलीभाँति समझ लेते हैं । लंबी लघुकथा लिखने से तो बेहतर है कि कहानी लिख ली जाए या फिर उपन्यास । तीन सदस्यों वाले कथा-परिवार की इस सबसे छोटी सदस्या के साथ छेड़खानी अथवा खींचातानी करना सर्वथा अनुचित है । अब समय आ गया है कि गागर में सागर नहीं, बूँद में सागर भरने की कोशिश करने का। इस क्षेत्र में नित नूतन प्रयोग भी हो रहे हैं ।अंततः इसका रूप,आकार और विस्तार कैसा और कितना हो , यह तो अग्रिम पंक्ति में खड़े हमारे वे गुणी सुविज्ञ लघुकथा-पुरोधा ही तय करेंगे,जिनकी अथक सतत साधना और श्रम से लघुकथा आज उपेक्षित हाशिये से विकलकर मुख्य धारा के साथ मुक्त रूप से बह रही है ।
- कमल कपूर 
फ़रीदाबाद - हरियाणा
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क्रमांक - 072
        श्रेष्ठ साहित्य सदैव पाठक गण का मार्गदर्शन करता है। सकारात्मक भाव से लिखा कथा साहित्य लेखन पाठकों का मनोरंजन करते हैं। दूसरी ओर उनके सोचने-समझने का नजरिया भी बदल देते हैं। आधुनिक युग की व्यस्तता में समयाभाव के कारण लघुकथा ने साहित्य जगत में विस्तृत पैठ बना ली है। क्षणिक घटित घटना को कम शब्दों में रोचकता के साथ गहन चिंतन द्वारा अभिव्यक्ति देना लघुकथा लेखन है।आजकल तो अधिकांश कहानी अथवा लघुकथा इन दोनों का ही विस्तृत क्षेत्र अधिक नजर आता है।कुछ साहित्य कार लंबी लघुकथा आज भी लिखते हैं। लेकिन पाठक लघुकथा पढ़ने के प्रति अधिक रूचि रखते हैं।
- सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 073
      मेरे विचार से लघुकथा का अर्थ,उद्देश्य ही कम से कम शब्दों में गहरी बात रखकर,अपनी उपस्तिथि दर्शाना है।लघुकथा का कथातत्व परिवार,समाज,देश,काल की विसंगतियों पर आधारित होता है।इसका उद्देश्य जन-चेतना को झकझोरना है।यह अपने लघु-रूप में ही बड़ी कहन का संयोजन कर लोकप्रिय हो रही है। यद्यपि लघुकथा, कहानी, उपन्यास,वर्णनात्क शैली में होते है।मानसिक,बौद्धिक, साहित्यिक  भोजन भी मिलता है। पर समय की कृपणता के कारण ये पाठकों से दूर होती जा रही है।(ये बात सभी पाठकों पर लागू नहीं हैं) ऐसी स्तिथि में, जब लघुकथा अपनी  लघुता के रूप मे पाठकों के लिये गागर में सागर सिद्ध हो रही हो,लोकप्रियता के शिखर पर जा रही है,तब इसके बड़े(लम्बे)अस्तित्व की कल्पना करना भी निराधार है।
- सुनीता मिश्रा
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 074
           वर्तमान लोकप्रिय एवं प्रभावी साहित्यिक परिवेश की निर्मिति में आज "लघुकथा"विधा का महत्वपूर्ण योगदान परिलक्षित होता है। "लघुकथा" की पहचान यही है, कि कम शब्दों में लघुकथाकार अपनी श्रमसाध्य रचना लिखकर गहरी बात कह सके। वह अपने मनोमस्तिष्क में चयनित विषय पर आधारित कथ्य,घटना अथवा प्रभावी प्रसंग को ही लघुकाय कथारूप में शब्दबद्ध करता है।मेरा मानना है,कि-"लघुकथा"को ज़बरदस्ती छोटा आकार देना भी न्यायोचित नहीं है।हां,लेखकीय आग्रह अवश्य ही चुनिंदा शब्दों की मंजूषा में सुगढ़ तरीके से, सुगठित रूप से, शब्दबद्ध अवश्य होना चाहिये। लघुकथा का छोटा और सटीक सामयिक स्वरूप ही पाठकों में अब खासा लोकप्रिय एवं प्रभावी दिखाई दे रहा है। लघुकथा हेतु लिये गए घटनाक्रम को कालखंड के एक ही पहलू में वर्णित कर देना लघुकथाकार की कलम का कमाल है। अपने सटीक और प्रभावी संदेश को उजागर कर देने में महारत हासिल करने वाला कलमकार ही सही मायनों में लघुकथाकार है।
अंततः मेरी राय से,"लघुकथा लंबी न होकर लघुकाय और सार्थक ही होनी चाहिये।" अनेक छिटपुट पटलों पर दस लाइनों,बीस शब्दों,सौ शब्दों एवं पांच पंक्तियों की लघुकथा लेखन का मैं दृढ़तापूर्वक विरोध करती हूँ। 
- डॉ. अंजु लता सिंह ' प्रियम ' 
 सैदुलाजाब - नई दिल्ली
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क्रमांक - 075
       लघुकथा अपने आप में ही लघु होती है।यहां लघु शब्द का अर्थ "छोटा" होना दर्शाता है। ऐसे में लघुकथा का लघु होना ही आवश्यक है। लंबी लघु कथा ना तो कहानियों में गिनी जाती है ना ही लघुकथा में। मेरे विचार से शब्दों के दायरे में लिखी गई लघु कथा ही लघुकथा की श्रेणी में आती है। यही लंबाई की बात करें तो फिर उसकी सीमा का आकलन नहीं किया जा सकता। लंबी लघु कथा का कोई विशेष अस्तित्व नहीं होता।
                  -  वंदना पुणतांबेकर 
                        इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 076
     लघुकथा एक स्वतंत्र विधा है और कहानी की तरह है इसमें तत्वों को योजना अनुसार नहीं पूछा जाता है फिर भी आजकल ढाई सौ से 300 शब्दों तक की भी लघुकथा मान्य है ! छोटे आकार से ही लघुकथा नहीं बनते और कहलाते ! आकार से लघु और कथा तत्वों से सुसज्जित रचना को ही लघुकथा कहा जाता है ! कथा यदि लघु होकर भी कम समय में ही पूर्णता लेती है तो शब्दों की संख्या बढ़ाना निरर्थक है वैसे भी लघुकथा के लिए गागर में सागर भरने वाली बात कहते हैं किंतु सूर्यकांत नागर जी के अनुसार लघुकथा है तो उसमें कथा तो होनी चाहिए अति बौद्धिकता से ग्रस्त कथा सच्चाई से दूर हो जाती है ,साथ ही रचित और घटित में पर्याप्त अंतर होना चाहिए ! लघुकथा का अंत सशक्त और प्रभावशाली होना चाहिए ! सशक्त अंत लघु कथा की कमजोरी को ढँक देता है ! लघुकथा में कथा पाठकों को बांधे रखती है ! लघुकथा में कथा शीर्षक के अनुसार चलते हुए जोरदार समापन करती है तो वह दीर्घ जीवी बन जाती है यूं कहें अपनी छाप छोड़ जाती है ! लघुकथा में शैली, शब्दों की बुनावट, संवाद का होना जरूरी है ! इसमें कथा विस्तार के लिए कोई स्पेस नहीं होता संकेतात्मकता ही लघु कथा की महत्वपूर्ण शैली है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 077
     पूर्व काल में साहित्यविदों द्वारा लम्बी-लम्बी लेख, कहानियाँ, उपन्यास आदि लिख कर अपने-अपने विचारधारा को लेखनीय के माध्यम से व्यक्त करते थे, अधिकांशतः परिवार जनों तथा अपराधित्व प्रवृत्तियों के आधारिक तो होती तो थी साथ ही शिक्षापद्र भी, किन्तु वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः लघुकथाओं में संक्षिप्त में सम्पूर्णानन्द को व्यक्त करते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे हैं और सुधीपाठक पूर्ण आलेख का कम समय में आनंद उठा रहे हैं, अब समयानुसार उन्नत अन्वेषण पहला पन्ना ही पठनीय सामग्री बनकर रह गयी हैं। कोई भी लम्बे-लम्बे आलेखों को पढ़ना प्रसंद नहीं करते हैं, इसलिए भावी विषयानुसार लम्बी लघुकथा का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 078
            लघुकथा साहित्य का वह रूप है जिसमें किसी घटना या कथा को सीमित शब्दों में संदेश परक ढंग से लिखा जाता है  और लंबी लघु कथा कहानी का संक्षिप्त रूप होता है। वर्तमान समय सोशल मीडिया का है जिसमें पत्र - पत्रिकाओं के पाठक कम जबकि सोशल मीडिया का प्रयोग करने वाले अधिक होते हैं। इसके पाठक हर विधा को सीमित शब्दों में पढ़ना पसंद करते हैं । यही कारण है कि लघुकथा वर्तमान समय में पसंदीदा विधा बन गई है । लघुकथा के ज्ञाता तो इसे सीमित शब्दों में पसंद करते ही रहे हैं। आम पाठक भी इसे सीमित शब्दों में ही पसंद करता है। कहानी जिस तरह से अपना अस्तित्व खो रही है, लंबी लघुकथा भी अपना अस्तित्व नहीं बना सकती। 
         -  नीरू तनेजा 
      समालखा - हरियाणा
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क्रमांक - 079
      लघुकथा जैसा नाम से परिलक्षित होता हैं लघु ,तो लघुकथा जितनी छोटी पर अपने उद्वेश्य को पूण करे।लघुकथा लघु अवश्य होती हैं किन्तु नावक के तीर की भातिं गम्भीर घाव करने में सक्षम होती हैं दूसरे शब्दों में कहा जा सकता हैं कि लघुकथा आज के युग की नब्ज हैं जिससे पता चलता है  कि आज का युग कितना गतिशील हैं  ।अतः लघुकथा  लम्बी न हो कर अपनी बात कहने में सफल हो। लम्बी लघुकथा का सफर ज्यादा लम्बा  नजर नहीं आता ।
- शालिनी खरे
 भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 080 
          लघुकथा का के मांग और विस्तार को देखते हुए अत्यंत सार्थक और विचारणीय "प्रश्न" आपने हम सभी के समक्ष रखा है। "लघुकथा" का अर्थ ही हुआ " छोटी कथा" "। मेरे विचार और कई वरिष्ठ लघुकथाकारों के विचारों को पढ़ा मैंने ,तब यह निष्कर्ष सामने आया । अगर "लघुकथा" हम लिख रहें हैं और उस पात्र या कथा के कथानक के परिपेक्ष में विस्तार की जरूरत हो तो अवश्य कर सकतें हैं , जो की लघुकथा के क्षितिज को एक " नया -आयाम " दे सके। तो "लम्बी लघुकथा" का अस्तित्व भी सार्थक है और आगे भी बनी रहेगी "।
दूसरे शब्दों में केवल  शब्दो को बेवज़ह भरने से और कथा को लंबा करना यह "लघुकथा" के साथ अन्याय होगा। फिर कहानी और "लघुकथा" में कोई अंतर ही नहीं रहेगा।।
- अनीता मिश्रा "सिद्धि"
पटना - बिहार
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क्रमांक - 081
     लम्बी लघुकथा का अस्तित्व संदेहास्पद स्थिति में है। वर्तमान समय में भागमभाग जिंदगी में प्रबुद्ध जनों के पास इतना समय नहीं कि वे लंबी लघुकथा को पढ़ने में रुचि रखें।  लघुकथा की गरिमा उसकी लघुता में हैं अगर भावों में संवेदना है तो लघुकथा प्रभावोत्पादक होगी। आज लघुकथा अपने सूक्ष्मता,लघुता,संक्षिप्तता और सांकेतिकता के मद्देनजर समय की एक खास जरूरत है। संक्षेप में सारगर्भित बात कह के कथाकार कहानी को लघुकथा में समेटता है। प्रतीकात्मक कथ्य के माध्यम से जीवन की जटिलताओं को अत्यंत सहज प्रभावशाली ढंग से सुलझाने का प्रयास करता है। लघुकथा वही कहलाता है जो पाठक के मन पर अमिट प्रभाव छोड़ने में सफल हो। संदेशात्मक उद्देश्य सार्थक हो-- तभी लेखकीय कर्तव्य का निर्वाह भी पूर्ण होता है।आज साहित्य अनेकों तरीकों से अपने लक्ष्य तक पहुंच रहा है। लघुकथा अंतर्मन को आंदोलित कर देने वाली जीवन की विसंगतियों को उजागर करती साहित्य जगत की प्रमुख विधा है जो सूक्ष्म, सार्थक होकर जीवन के क्षण विशेष को चित्रित करता है। लघुकथा में शब्दों की मारकता यानी प्रहार करने की क्षमता होनी चाहिए ताकि पाठक के अंतर्मन तक पहुंच सके। कालदोष से बचें , लघुकथा आकार में छोटी होते हुए भी कथावस्तु से लेकर शिल्प,भाषा, संवाद, पात्र,पंच शीर्षक सभी को मापदंड पर रखना होता है। लघुकथा जितनी संक्षिप्त सार्थक प्रभावोत्पादक होगी उतना ही उसका अस्तित्व कालजयी बनेगा जबकि लंबी लघुकथा का अस्तित्व अंधकारमय हो सकता है।
- सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 082
       लम्बी लघुकथा का अस्तित्व हो सकता है बशर्ते वो एक क्षण, कला पक्ष,भाव पक्ष के प्रवाह को जकड़े रखे।कई बार लम्बी लघुकथा, लघुकथा ना होकर छोटी कहानी बन जाती है।वैसे जिसका नाम ही लघुकथा है वो आकार में लघु ही होनी चाहिए। बहुत समय पहले की कुछेक लम्बी लघुकथाएं सराहनीय हैं लेकिन आज कल लम्बी लघुकथा का चलन नहीं।आम पाठक लघुकथा को पढ़ने से पहलेआकार पर ध्यान देता है।लम्बी लघुकथा को फिर पढ़ लूँगा,कह कर छोड़ देता है।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल  - पंजाब
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क्रमांक -083
       जो कथा लम्बी होती है,वह लघुकथा कैसे हो सकती है? जैसा कि शब्द से ही स्पस्ट होता है।कारण यह है कि कोई भी कथा, लघुकथा तब बनती है ,जब उसमें लघु पात्र हों,उन पात्रों में युक्तियुक्त संवाद हों,उन संवादों में लघुकथा का शीर्षक केन्द्र में हो। कथा उद्देश्यपूर्ण हो और लघुकथा का अंत सकारात्मक हो। लम्बी लघुकथा का अस्तित्व कभी नहीं हो सकता तथा वह कथा लघुकथा न होकर कहानी कहलायेगी। 
डाॅ . मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 084
       लघुकथा का स्वरूप नाम के अनुरूप वैसे तो लघु होना चाहिये। कथाकार को अनावश्यक विस्तार, पात्र एवं वर्णनात्मक शैली से बचना चाहिये। लेकिन फिर भी लघुकथा को प्रभावी बनाने व उसका उद्देश्य पूर्ण करने हेतु आवश्यक विस्तार करना पड़े तो भी इससे लघुकथा का अस्तित्व तो बना ही रहेगा। कहा जाता है कि छोटी होने के कारण लोग इसे पढ़ना पसंद करते हैं। ठीक है, परंतु जिन्हें पढ़ने में रूचि है वे तो समय निकालकर बाद में भी पढ़ सकते हैं। 
- सरोज जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 85
         कम शब्दों में लघुकथा को बांधना ही उसकी वास्तविक खूबसूरती है | कथाकार द्वारा चुने गए विषयवस्तु को संक्षिप्त मगर सुगठित व  सलीकेदार ढंग से कुछ इस तरह  संप्रेषित करना चाहिए  जिससे पाठक कथा के मर्म को आसानी से समझ जाए और उसके विचार तंत्र जागृत हो जाएं | लघुकथा की लघुता ही उसकी विशालता है जो वर्तमान समय में उसकी लोकप्रियता के लिए  उत्प्रेरक का कार्य कर रही है | ये माना की विचारों को शब्दों में नहीं बांधा जाना चाहिए परन्तु लघुकथा के संदर्भ में इस कथ्य को सही नहीं ठहराया जा सकता |अनावश्यक रूप से कथानक खींचने से लघुकथा का मूल रूप ही नष्ट हो जाने का भय होता है जो मेरे विचार से बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है |
-  संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
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क्रमांक - 086
        "क्या हो सकता है, और क्या होना चाहिए" में जवाब देना चाहूँगी। मेरी निगाह में लघुकथा वह सुई, जो तलवार के काम आ सकती है। अतः लघुकथा सुई ही रहे, यही इच्छा सदा, सर्वदा। वैसे अधिकांश लोग इसके लघु रुप को ही तरजीह देते हैं। पर बहुत सारे सुप्रसिद्ध लघुकथाकार भी आज अनावश्यक विस्तार में उलझ जाते हैं। प्रशंसा भी पाती है ऐसी  लंबी लघुकथाएँ। तो एक भ्रम की स्थिति बनती जा रही है। इसके प्रति सजग रहने की जरुरत है। लघुकथा लघु रुप में ही भाती है, घाव करने में सक्षम है..."का करै तरवारि" वाली सोच जरूरी है, ऐसा मुझे लगता है।
- अनिता रश्मि
   रांची - झारखंड
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क्रमांक - 087
          लंबी लघुकथा की रचना तो पूर्व में भी कई की गईं हैं। उनके आकर्षण में कोई कमी नहीं है। परन्तु शब्दों का कसाव उस के लघु रूप को ज्यादा मान्यता दे रहा है। लघुकथा में उसके रूप के लिए कोई बंदिश नहीं है इसलिये रचयिता को पूरी स्वतंत्रता है कि वह रचना की लंबाई अपने अनुसार कर सकता है। लघुकथा में बाह्य आकर से ज्यादा महत्व उसके विषय, निर्वाह, कश्य और शिल्प  का है। अगर इन सभी तथ्यों को समेट कर रचना की जाती है तो लम्बाई के आधार पर उसे श्रेणी से अलग नहीं किया जा सकता है।जैसे -रविन्द्र वर्मा की 'घर का छठा सदस्य' , सर्गी पैमिस की 'आखिरी स्टेशन' लगभग700 शब्दों की रचना है और श्रेष्ठ रचनाएं हैं। भविष्य में इस तरह की उम्दा रचनाएँ अवश्य आयेंगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
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क्रमांक - 088
       असंभव कुछ भी नहीं है। जब एक-दो पंक्तियों की भी लघुकथा हो सकती है, तो लंबी लघुकथा भी हो सकती है। साधारणतया यदि कोई लघुकथा लंबी अर्थात अधिक पृष्ठों की हो, तो उसे लघुकथा की बजाए लघु-कहानी का ही नाम दिया जाता है, और यह सही भी है। परंतु अपवाद स्वरूप यदि कोई लंबी कहानी लघुकथा के मापदंडों पर पूरी उतरती है, जैसे कि वह केवल एक ही विषय, विचार, संवेदना इत्यादि पर केंद्रित हो, तो उसे लंबी लघुकथा के रूप में प्रचलित किया जा सकता है। 
परंतु यह भी एक प्रयोग मात्र होगा, जिसमें नाममात्र की ही लघुकथाएं खरी उतर सकती हैं, जो स्वत् या सप्रयास दोनों हो सकता है, बिलकुल वैसे ही जैसा एक प्रयोग अभी हाल ही में 'हास्य लघुकथाओं' को लेकर हो रहा है।
सफलता मिलती है या नहीं, भविष्य बताएगा।
- पंकज शर्मा
 अम्बाला शहर - हरियाणा
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क्रमांक - 089
        आजकल लम्बी लघुकथायें ही ज्यादातर देखने में आ रही हैं। छोटी लघु कथाएं बहुत कम देखने को मिल रही हैं। इसका मतलब लंबी लघुकथायें अस्तित्व में आ चुकी हैं और उनका भविष्य सुनिश्चित है।
- गायत्री ठाकुर 'सक्षम'
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 090
      लम्बी लघुकथा का अस्तित्व विचारणीय है। जहाँ छोटी लघुकथा अपनी जमीन तलाश रही है वहाँ लम्बी लघुकथा की चर्चा निशेधमयी  पर यह बात संघर्षमयी जरूर होगी। लघुकथा विधा में जीवन की क्षणिक घटनाओं और विचारों को व्यक्त किया जा सकता है। इसकी रचनात्मक प्रक्रिया में खास घटना का तीव्र प्रभाव होता है। कथावस्तु की गम्भीरता, सामाजिक सत्यता लंबी लघुकथा में भटक सकती है।  हालांकि विषय अनुसार विस्तार दिया जा सकता है।लघुकथा में एक कथात्मक विचार आदि से अंत तक बना रहना चाहिए जो लम्बी लघुकथा में अस्पष्ट हो सकता है। 'लघु' विशेषण शब्द जुड़ जाने से इसकी लक्षणा, व्यंजना और सांकेतिक भाव विशेष है। लघुकथा में लम्बाई का तत्व नयी दृष्टि का सूचक है।
- पम्मी सिंह 'तृप्ति'
द्वारका - दिल्ली
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क्रमांक - 091
       लघुकथा का अर्थ ही है 'लघु' से ।यदि लम्बी होगी तो उसे लघुकथा नहीं 'कथा' ही कहा जाएगा। हालांकि कहानी विधा लोकप्रिय है ,ये हर रूप,हर वर्ग और हर काल में प्रासंगिक रही है और रहेगी। इन्टरनेट और आभासी दुनिया के प्रभाव से लघुकथा तेजी से लोकप्रिय हुई है एवं इसकी लोकप्रियता का बड़ा कारण इसका लघु होना है।छपी हुई सामग्री के रूप में लम्बी लघुकथा भा सकती है किंतु आभासी दुनिया में छोटी लघुकथा अभी आने वाले समय में भी छाई रहने वाली है।
- भावना शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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क्रमांक - 092
        जी बिल्कुल हो सकता है  थोड़ी लम्बी लघुकथा का अस्तित्व लेकिन वह ज्यादा लम्बी हुई तो लघुकथा की श्रेणी में ही नही रहेगी ।लेकिन लघुकथा तो लोग छोटी से छोटी लिखने को ही बेहतर मानते हैं जिसका मानक प्रायः लघु कथ्य ही होता है । परन्तु मेरे विचार से  थोड़ी लम्बी लघुकथा  भी  उचित है जैसे कि शार्ट फिल्मो में भी आजकल हो रहा है कोई बहुत ही  लघु समय की फिल्में रहती हैं तो कोई थोड़ी लम्बी भी रहती हैं मगर वह रहती तो लघुफिल्मे ही हैं ।ऐसा ही लघुकथा का सिद्धांत भी होना चाहिए।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 093
      लम्बी लघुकथा , वस्तुत: अपने आप में ही विरोधाभास  है । लम्बी और लघु ? लघुकथा का प्रचलन हुआ ही इस तर्क पर था कि कम से कम शब्दों के प्रयोग करते हुए सार्थक व सटीक कथा पाठक तक ऐसे पहुँचाई जाए कि वह कम समय व्यय कर भी पूर्णत: संवेदित हो सके ।इसी लिए इसमें भूमिका , वातावरण , फ़ालतू के कथोपकथन , और प्रकृति चित्रण से परहेज़ बरता गया । इतना सब होते हुए भी मैं यह मानता हूँ कि कुछ कथाएं ऐसी फिर भी हमारे भीतर से या समाज में घटित होने से , जो विस्तार अपेक्षित होती हैं । बिना उन्हें लम्बी रखे , पूरी अपनी बात उतारना सम्भव हो ही नहीं पाता । मैंने कुछ लम्बी लघुकथाएं लिखी है अपनी कथा से पूर्ण न्याय की माँग के कारण । कुछ मनोवैज्ञानिक कथाएं बिना विस्तार सम्पूर्ण हो ही नहीं पातीं । लघु रूप देने की फ़िराक़ में कथा की हत्या होने का भय रहता है और हत्यारा कोई लघुकथा लेखक बनना नहीं चाहेगा । वैसे भी लघुकथा लेखन के नियम इंचीटेप वाले नहीं हैं । लघुकथा आलोचकों व समीक्षकों ने सदा उस विषय में लचीला रुख़ ही अपनाए रखा है । जितना कुछ इस विषय में समीक्षकों द्वारा कहा गया है वह सब जड़ता से दूर , विषय आधारित माँग को स्वीकारते हुए , लेखक के कथन को महत्वपूर्ण मानते हुए , स्वीकारा गया है। अत: यह कहा जा सकता है संक्षेप में कि लघुकथा अधिकतर लघु ही हो लेकिन यदि विषयानुसार लम्बाई  दरकार भी हो तो उसे स्वीकारा जाए । 
- डॉ आदर्श प्रकाश
उधमपुर -  जम्मू कश्मीर 
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क्रमांक - 094
         जी हाँ! आज लम्बी लघुकथाऐ लिखी जा रही है कई बार सम्पादक जी के कहने के उपरान्त भी कई लघुकथाऐ 1000 शब्दो से ज्यादा लम्बी लघुकथाऐ पढ़ने मे आती है तर्क यह होता है की हम जो कहना चाहते है या संदेश देना चाहते है वह कम शब्दो मे स्पष्ट नजर नही आता था समझाया जा सकता है कोई भी लघुकथा संकलन आप देखिऐ उस मे 10% लघुकथाऐ 500से 1000 शब्दो तक मिल जाती है अतः लम्बी लघुकथा का भी अपना एक अस्थित्व है मुझे तो एसा लगता है ।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्य प्रदेश
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क्रमांक - 095
         हम सब जानते हैं कि लघुकथा का मतलब ही है छोटी कथा यानि कम से कम शब्दों में उत्तम शिल्प और कथानक के द्वारा बड़ी से बड़ी कहानी कह देना। मेरे ख्याल से लम्बी लघुकथा एक छोटी कहानी के अंतर्गत आनी चाहिए। हालांकि कि लघुकथा में शब्दों का कोई मापदंड नहीं होता फिर भी लघुकथा तो"लघु"ही होनी चाहिए। रही बात अस्तित्व की, तो अस्तित्व तो हर एक शब्द का होता है। लघुकथा का अपना अस्तित्व है और लम्बी कथा का अपना।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखंड
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क्रमांक -096
          हमारे विचार से लम्बी लघुकथा का अस्तित्व हो सकता है. अभी हाल ही में हमने एक पुस्तक लघुकथा संग्रह ''लघुकथाएं'' पढ़ी थी, उसमें बहुत-से लेखकों की बहुत-सी लम्बी लघुकथाएं भी थीं. उनमें लघुकथा के सभी अनिवार्य घटक / तत्व थे, इसलिए वे लम्बी लघुकथाएं भी पठनीय, अविस्मरणीय और ग्राह्य थीं. इसलिए यह कहना ही समीचीन होगा, कि लम्बी लघुकथा का अस्तित्व हो सकता है. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
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क्रमांक - 097
    लघुकथा अर्थात् वह कथा जो कम शब्दों में समेटा गया हो, उसे लघुकथा कहते हैं । यानी लघुकथा की मुख्य विशेषता ही उसका लघुरूप होता है । इसलिए सबसे पहले तो लम्बी लघुकथा कह ही नहीं सकते । दूसरी बात यदि कोई कथा लघुकथा के प्रारूप में नहीं ढाला जाए तो वह लघुकथा न होकर कहानी का रूप धारण करेगी । ऐसी कथा कहानी की श्रेणी में आएगी और कहानी छोटी या बड़ी हो सकती है ।  हाँ, जहाँ तक शब्दों की बात है, तो शब्द कुछ कम या अधिक हो सकते हैं । ये विषय वस्तु पर निर्भर करता है , जो आज भी है । लम्बी लघुकथा के अस्तित्व की यदि बात की जाए तो फिर लघुकथा का अस्तित्व खतरे में आ सकती है । मेरे विचार से लघुकथा का अस्तित्व लघु प्रधान ही है और रहेगा या रहना चाहिए ।
- पूनम झा
कोटा - राजस्थान 
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क्रमांक - 098
        लघुकथा काफी लम्बी होने पर उबाऊ हो सकती है।पाठक पढ़ने में रूचि नहीं ले सकते हैं। लघुकथा गागर में सागर भरने जैसा होता है।तीन सौ शब्दों में अद्भुत सीख समाज को देता है।काफी लम्बी होने पर उसकी खुशबू समाप्त हो जाएगी। लघुकथा अपने लक्ष्य से भटक सकती है।एक बेहतरीन लघुकथा के लिए काफी लम्बी होनी ठीक नहीं है।मेरे विचार से लघुकथा कम से कम शब्दों में विचारणीय एवं संदेशपरक होने से अधिक से अधिक पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
         -  रीतु देवी " प्रज्ञा "
            दरभंगा - बिहार
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क्रमांक - 099
    लंबी लघुकथा का अस्तित्व कभी नहीं। इक्कीसवीं सदी  के भौतिकता  के युग में साहित्यिक विधाओं पर  संकट देखने को मिलता है ।  लोगों की दौड़ - भाग की जिंदगी में  वक्त की कमी होने के वजह   लंबी कहानियों को पढ़ने के लिए  वक्त नहीं होता है ।ऐसे में शॉर्टकट के जमाने में लगभग सात -आठ  दशक के साहित्यिक संघर्ष के बाद लघुकथा ने अपना  अस्तित्व प्राप्त किया। लघुकथा अब नयी विधा के रूप में  हिंदी साहित्य का प्रतिनिधत्व कर रही है क्योंकि लिखने में ये कम समय लेती है। अखबारों , पत्रिकाओं में यह कम जगह घेरती है। मूल्यों पर आधारित होने पर शिक्षाप्रद संदेश के साथ चारित्रिक उत्थान करती है । मस्तिष्क के लिए ऊर्जा , मनोरंजन का मानसिक बुस्टर होती है इसलिए लघुकथा  प्रचलन में  तेजी  आयी है । किसी भी साहित्यकार , आलोचकों ने लघुकथा विधा की आलोचना नहीं की है । लघुकथा वेबसाइट  पर जैसे लघुकथा डॉट कॉम , परिंदे आदि  ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी , फेसबुक , व्हाट्सएप समूह जैसे कथा दर्पण साहित्य मंच आदि पर खूब फल फूल रही है। लघुकथा का अर्थ करें तो लघु  विशेषण है जो कथा की विशेषता को दर्शाता है। लघु का अर्थ छोटा और कथा का अर्थ  कल्पित कहानी है ।  कहने का मतलब यह है कि यह हिंदी की साहित्यिक गद्य विधा अपने नाम को सार्थक कर रही है । यथा नाम तथा दर्शन है । यह विधा  गागर में सागर भरने की कला है । कोई घटना को देख के  तीव्रता के साथ उन क्षणों को जैसे  कैमरे से फोटो खींचते हुए उस लम्हें की तस्वीर खूबसूरती से कैद कर लेते हैं । उसी तरह उस अनुभव क्षण को तीव्र अनुभूति के साथ  फैंटेसी के साथ यथार्थ को  चरम अनुभूति के साथ गढ़ देते हैं । इस विधा को आगे बढ़ाने में कमलेश्वर जी , राजेन्द्र यादव ,  डॉ बलराम जी , श्रीमती कांता राय , बीजेन्द्र जैमिनी , मीरा जैन, उमेश महादोषी, योगराज प्रभाकर , संतोष श्रीवास्तव आदि  ने अपना योगदान दिया।  यू ट्यूब , लघुपत्रिकाओं के संपादकों का भी इसे स्थापित करने में हाथ रहा है। बीजेन्द्र जैमिनी जी के ब्लॉग का  लघुकथा विधा को स्थापित करने में बड़ा योगदान है।।   लघुकथाकार उमेश महादोषी जी  के संग पूरी टीम ने  समकालीन लघुकथा स्वर्णजयंती प्रतियोगिता कराके देश -विदेश के लघुकथाकारों  को अविराम साहित्यिकी त्रैमासिक पत्रिका से जोड़ कर  एक मंच मिला।  इसमें  लघुकथा की कसौटी पर खरे लघुकथाकारों को स्थान मिला,  इस  स्वर्ण जयंती  का विशेष अंक  जिसे 1 जनवरी 2021 से दिसम्बर 2021   तक ये पत्रिका प्रकाशित हुयी चार अंको में चरणबद्ध तरीके से।   मेरी लघुकथा को भी स्थान मिला। साहित्य जगत में लघुकथाओं की इस पत्रिका  प्रसिद्धि के साथ विरासत भी दी । अब तो लघुकथा दिन दूनी  रात चौगनी प्रगति कर रही है । लघुकथा - संग्रह की किताबों  का खूब प्रकाशन हो रहा है। आ योगराज प्रभाकर जी का लघुकथा कलश विशेषांक भी कई प्रकाशित हुए हैं । नए -नए रचनात्मक प्रयोग किए।  साहित्य का लघुकथाओं का प्रकाश स्तम्भ है। लघुकथा तो जीवन की संवेदनाओं की यह धड़कन है।इसमें कलमकार को पूर्व की भूमिका को गढ़ने की जरूरत नहीं होती है।  यह यथार्थ  वास्तविकता पर आधारित होती है । कथानक में कसावट , स्पष्टता लघुकथा में कम से कम शब्दों में विषय की गहराई में कहीं गई कथा को ही सशक्त लघुकथा कहीं जाती है।
 वर्तमान समय में एक मात्र लघुकथा ही साहित्य का प्रतिनिधि कर रही है ।  साहित्य पढ़ने में पाठकों की सख्या नहीं के बराबर होती जा रही थी , परन्तु लघुकथा के पाठकों की सख्या में दिन - प्रतिदिन बढोतरी हो रही हैं । ऐसे में लेखकों की सख्या लघुकथा साहित्य की सबसे अधिक है । मेरी दृष्टि में हिन्दी कथा साहित्य के सबसे अधिक लेखक लघुकथा साहित्य में हैं । बड़े , वृद्ध ,  युवा पीढ़ी भी इसे बढ़ावा दे रही है । मैं अपने दृष्टिकोण  , तर्कों के आधार पर कह सकती हूँ कि इक्कीसवीं सदी लघुकथा की सदी है। लंबी लघुकथा का अस्तित्व वर्तमान ,  भविष्य में नहीं हो सकता है। लघुकथा का भविष्य कोहिनूर हीरे की तरह कीमती , अनमोल ,  चमचमाता और उज्ज्वल है।
- डॉ मंजु गुप्ता 
मुम्बई - महाराष्ट्र
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क्रमांक - 100
       लघुकथा को दीर्घ कथा बनाना प्रथम दृष्टव्य ही उचित नजर नहीं आता है। वास्तव में लघु कथा में लघुता होनी चाहिए साथ में सार को संक्षेप में कहना ही लघु कथा के औचित्य की ओर इंगित करती है। ऐसे में लघु कथा को विस्तार देने से उसका महत्व कम हो जाएगा वहीं पाठक को पढ़कर महसूस होने लग जाएगा कि कहीं कोई कमी है। ऐसे में वो बोर होगा और लघु कथा को पढऩे से हिचकिचाएगा। लघु कथा के तत्वों से कुछ लघुकथा को विस्तार देने का प्रयास किया जाएगा जो उचित नहीं लगता। वैसे भी भागदौड़ की जिंदगी में इंसान शार्ट तरीके अपनाता है। छोटी कथा एवं कम शब्दों में अपनी बात को कहने से मार्मिक बन सकती है और पाठक जल्द से पढ़कर अपना निष्कर्ष निकाल सकता है। यही कारण है कि लघु कथा को दीर्घ कथा बनाना कहने एवं सुनने में भी ठीक नहीं लगता। ऐसे में बेहतर हो कि लघु कथा का नाम के अनुरूप ही स्वरूप हो तो ज्यादा बेहतर होगा। 
        - डॉ. होशियार सिंह यादव
          महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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क्रमांक - 101
         लम्बी कहानी की तर्ज़ पर लम्बी लघुकथा की भी चर्चा होने लगी है । मेरी दृष्टि से तो लघुकथा का लघु स्वरूप ही होना चाहिए तभी उसका नाम सार्थक होगा । लम्बी लघुकथा से तो सामान्य पाठक भ्रमित होगा , वह उसे कहानी ही समझेगा । लम्बी लघुकथा के नाम पर लघुकथा का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है ।
- डॉ. मालती बसंत
भोपाल - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 102
           भविष्य में लंबी लघुकथाओं का भी अस्तित्व बरकरार  है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हालाकि ज्यादातर पाठक छोटी लघु कथा को ही पढ़ने में रुचि रखते है। हिन्दी में लघुकथा की केन्द्रीयता उसके प्रसार के साथ कथ्य की बुनावट में लक्षित हो रही है। अनुभव को दृष्टि के साथ कलात्मक स्थापत्य देने के प्रयास भी हो रहे हैं। भले ही मुद्रा स्फीति की तरह लघुकथाओं का अनियंत्रित प्रकाशन धड़ल्ले से हो रहा है। अपने-अपने क्षितिज लघुकथा संकलन इस मायने में विशिष्ट है कि लघुकथा के धरातल के साथ उसकी बुनावट पर विशेष ध्यान रखकर चयन किया गया है। कथा और वर्णनात्मक गद्य कथा के एक केंद्रित, संक्षिप्त रूप रूप में लघु कहानी को संरचना के पारंपरिक तत्वों के माध्यम से कथा और वर्णनात्मक गद्य कथा के एक केंद्रित, संक्षिप्त रूप के रूप में, लघु कहानी को नाटकीय संरचना के पारंपरिक तत्वों के माध्यम से सिद्धांतित किया गया है। प्रदर्शनी, जटिलता, बढ़ती कार्रवाई , संकट, चरमोत्कर्ष एवम संकल्प। उनकी लंबाई के कारण, लघुकथाएँ इस पैटर्न का अनुसरण कर सकती हैं या नहीं भी कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, आधुनिक लघुकथाओं में कभी-कभार ही एक प्रदर्शनी होती है, जो आमतौर पर कार्रवाई के बीच में शुरू होती है । लंबी कहानियों की तरह, लघु कथाओं के कथानकों में भी चरमोत्कर्ष, संकट या मोड़ होता है। सामान्य तौर पर, लघु कथाओं में अंत होते हैं जो या तो निर्णायक होते हैं या खुले अंत होते हैं। लघुकथाओं में अस्पष्टता एक आवर्तक ट्रॉप है। अंत, लक्षण वर्णन या लंबाई के माध्यम से। किसी भी कला रूप की तरह, एक छोटी कहानी की सटीक विशेषताएं निर्माता द्वारा अलग-अलग होंगी।
- अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर - झारखंड
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क्रमांक - 103
       लघुकथा अपने आप में ही लघुता को समाए हुए हैं और जैसा कि नाम से ही यह ज्ञात हो जाता है कि यहां संक्षिप्तता का उल्लेख किया जा रहा है, और लंबी लघुकथा एक कहानी के रूप में हमारे समक्ष हो जाती है लेकिन उसे लघुलथा का नाम देना मेरे विचार में उचित नहीं है हां जहां पर किसी विचार को थोड़े ज्यादा शब्दों में या फिर उदाहरण प्रस्तुत करके पाठक के सामने रखा जाए तो वहां पर लघु कथा का लंबा होना किसी भी प्रकार से अनुचित नहीं है । लेकिन यहां पर बात लंबी लघुकथा के अस्तित्व की हो रही है तो लंबी लघुकथा  फिर अपने आप में ही लघुकथा नाम से अन्याय होगा।
- मोनिका सिंह 
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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क्रमांक - 104
          लघुकथा अपने लघु रूप की वजह से जानी जाती है। कथा में महीन बुनावट के साथ कथ्य में कसावट की वजह से लोगों के दिलों पर राज कर रही है अगर इसकी  लम्बाई अगर बढ़ा दी जाए तो यह कहानी सी प्रतीत होती है।  लघुकथा   अपने वास्तविक स्वरूप  में नहीं रहती है । लघुकथा का असली स्वरूप उसके लघु होने में ही है।
- अर्विना गहलोत
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 105
    लघुकथा में लघुता के लिए तो स्थान हो सकता है फिर वो दो से चार वाक्य की भी हो सकती है पर आजकल कुछ रचनाकार लघुकथा के नाम पर दो से ढाई पृष्ठ की गद्य लेखन को लघुकथा कहने लगे हैं और छपते भी है पर एक मायने में ये लघुकथा विधा के साथ अन्याय ही समझो । मेरी समझ के अनुसार लघुकथा में अधिक से अधिक दो या तीन गद्यांश (पेरा) ही ठीक होते हैं ।         
   - विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
    गंगापुर सिटी - राजस्थान
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क्रमांक - 106
        लघुकथा नाम से ही परिलक्षित है कि  एक ऐसी कथा जो लघुता लिए हुए पूर्णता को प्राप्त हो, यह लघुता लघुकथा के मानदंडों म एक आवश्यक तत्व माना गया है किंतु इसके पैमाने के निर्धारण में मतैक्य नहीं है। मेरा भी मानना है कि यदि कथानक की माँग है तो इस लघुता की सीमा बढ़ायी जा सकती है। कुछ आवश्यक तत्व जिसे विश्लेषित करना आवश्यक हो तो लघुकथा की लंबाई बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते कालखंड का तारतम्य बना रहे और कथा अपनी पूर्णता पर पहुँच सके। अतः भविष्य में कसी हुए लंबी लघुकथा के अस्तित्व से इंकार नहीं किया जा सकता ।
          - गीता चौबे गूँज
                राँची - झारखंड
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क्रमांक - 107
            मेरे मतानुसार लघुकथा की सार्थकता उसके लघु होनू में है जैसा कि उसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि जिसमें लघुता भी हो और कहानी भी। इसलिए भविष्य में लघुकथा विराट रूप में आने लगी तो वह लघुकथा तो कदापि नहीं होगी, वह कथा अथवा कहानी ही होगी। अभी लघुकथा पर किसी ने उसके विस्तीर्ण रूप पर बात नहीं ऊठाई है, परंतु कभी कभी पत्र और पत्रिकाओं में कुछ ऐसी लघुकथाएं प्रकाशित होती है  जो कहानी की तरह लगती है। यह अपना अपना दृष्टिकोण हो सकता है, परंतु जहां तक मेरी बात है मैं लघुकथा के लघु होने और लघु ही रहने देने के पक्ष में हूं। लघुकथा  का प्राण तत्व उसके लघु होने और उसके कथा होने में ही है, ऐसा मैरा मत है। 
                - डाॅ. रमेशचंद्र 
                  इंदौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 108
       लम्बी लघु ये दोनों विरोधाभास वाले शब्द है । दोनों का अलग अस्तित्व है । लघुकथा में तार्किक , स्पष्ट , मन को मथने वाली बात को कम से कम शब्दों में बड़ी सहजता से कहा जाता है जिसमें गहरी बात छुपी हुई होती है । लम्बी कहानी में भूमिका बनाते हुए कई बार उद्देश्य से विषय भटक जाता है ।  लम्बी कथा तभी अच्छी लगती है जब वो पाठक को बाँधे रखती है । 
- नीलम नारंग 
मोहाली - पंजाब
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क्रमांक - 109
         जब लघुकथा की लंबाई ही बढ़ानी हो तो फिर कहानी क्या बुरी है। मत भूलिए कि लघुकथा दो शब्दों से बनी है। लघु और कथा। लघुता ही समाप्त हो गई तो फिर बची क्या? कथा। कथा अर्थात कहनी। इसलिए लघुकथा को लघुकथा रहना चाहिए। बड़ा या छोटा का पुछल्ला लगाने की जरूरत क्या है।
- कृष्ण मनु
धनबाद - झारखंड
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क्रमांक - 110
         लंबी लघुकथा का अस्तित्व कुछ वैसा ही हो सकता है जैसे कभी ’गंभीर/दुखद - व्यंग्य’ या ’संवादहीन नाटक’ होगा। लघुकथा क्या है और कैसे लिखी जानी है जैसे प्रश्नों पर विमर्श, चर्चा, सत्र, समीक्षा इत्यादि की बहुतायत के स्थान पर, स्तरीय लघुकथा लेखन पर अधिक श्रम लगाया जाना सार्थक है। एक विधा कभी भी उसके लिये, वास्तव में साधना किये जाने से ही स्थापित, पोषित होगी न कि साधना कब और कैसे की जाए, उस दौरान क्या सावधानी रखी जाए, किसने कैसे साधना की, किसकी साधना बड़ी, किसकी छोटी जैसे प्रश्न करने से। ये प्रश्न हमें एक सुनिश्चित परिधि में घूमते हुए प्रगति का आभास करवाते हैं, वास्तव में तो हम कहीं भी नही पहुंच रहे होते हैं। लघुकथा विधा अनेक प्रकार के संक्रमणों का इन दिनों सामना कर रही है। कुछ बेहतर हैं और कुछ नही। प्रयोग, नवाचार, अलग विषय, समान संवेदनाओं पर विविध लेखकों के विचार इत्यादि जैसे प्रकल्प समय समय पर इसके सर्वांगीण विकास में योगदान दे रहे हैं। अपने परिवेश से अलग अलग मात्रा में रचनाकर्म को ग्रहण कर यह विधा समय के साथ किस स्थान पर पहुंचेगी, इसकी कल्पना करना बहुत सरल नही है। आज हमारे हाथ में यह है कि इसे अपने श्रम से बेहतर रचनाकर्म से समृद्ध करें। मेरे विचार में, एक बेहतर लघुकथा वह है जिसे लिखकर लेखक संतुष्ट हो और पढ़कर पाठक। फिर उसे साथी लेखक, आलोचक, समीक्षक किस दृष्टि से लेते हैं यह उसके बाद आता है। 
- अंतरा करवड़े
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 111
        लघुकथा अपेक्षाकृत नई विधा है जिसके प्रारूप पर लगातार चर्चा हो रही है। यदि कथ्य लघुकथा की बाकी शर्तों पर पूरा उतरता है तो विशेष परिस्थितियों में लघुकथा को थोड़ा लंबा हो जाने की इजाजत दी जा सकती है। फिर भी लघुकथा में शब्दों की कृपणता तो करनी ही पड़ेगी  कि पाठक उसे एक बार में ही पढ़ें और महसूस करें। किसी कहानी की तरह उसे किश्तों में पढ़े जाने की इजाजत लघुकथा का फार्मेट नहीं देता।
- श्रुत कीर्ति अग्रवाल 
पटना - बिहार
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क्रमांक - 112
      लघुकथा, जैसा कि नाम से ही विदित है, लघु अर्थात छोटे से छोटे सूक्ष्म रूप का होना। कम से कम सटीक शब्दों में अपनी बातों को पूर्णतया समेटना ही लघुकथा का पर्याय है। जो परिवार या समाज की विसंगतियों पर करारा चोट देते हुए एक पंच के साथ पूरा होता है। जिस तरह लंबी कहानी और छोटी कहानी लिखी जाती है। उसी प्रकार कथा का स्वरूप अगर थोड़ा बड़ा हो रहा है। अपनी बात को प्रकट करने के लिए उसका विस्तार करना जरूरी है, तो छोटी कहानी का रूप ले सकता है। मेरी व्यक्तिगत धारणा है कि लघुकथा को छोटा, बड़ा इस झमेले से दूर ही रखा जाए, और इसे लघुकथा ही रहने दिया जाए।
        -  कल्याणी झा 'कनक'
           राँची - झारखंड
==================================  क्रमांक - 113         
      साहित्य की अनेक विधाओं में लघुकथा ही एक ऐसी विधा है,जो लघु रूप में अपनी बात कहती है । यहाँ मैं लघुकथा को परिभाषित नहीं कर रही । वह सभी जानते हैं । लेकिन लघुकथा बहुत छोटी करने की वज़ह से अधूरी भी नहीं होनी चाहिये । पूरी करने के लिये उसे एक सीमा के अन्दर लम्बी कर सकते है । परन्तु अधिक विस्तार इसका रूप बिगाड़ सकती है । यदि विस्तार देकर लम्बी लिखनी है तो लघु कहानी या कहानी ही क्यों ना लिख ली जाये? लघुकथा अपने लघु रूप के कारण ही आज इतनी लोकप्रिय हो रही है । आजकल ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथा प्रकाशित हो रही है क्योंकि इस भागती-दौड़ती जिन्दगी में पाठक समयाभाव के कारण लम्बी देख कर कहानी या उपन्यास नहीं पढ़ पाते हैं । वे कम समय में लघुकथा पढ़ कर अपने मन को तृप्त कर लेते हैं । अत: मेरे विचार में लम्बी लघुकथा का कोई औचित्य दिखायी नहीं देता । 
 - रेणु चन्द्रा माथुर 
जयपुर - राजस्थान
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क्रमांक - 114
     अपनी लधुता के कारण लघुकथा आज सबसे ज़्यादा लिखी व पढ़ी जा रही है । इसकी लोकप्रियता का कारण ही इसका लधु होना है । भागदौड़ भरी ज़िंदगी में पाठक इसे पढकर अपनी साहित्यिक क्षुधा शांत कर  लेते हैं । लघुकथा की सार्थकता इसे छोटा रहने देने में है  ।  मुझे लगता है लंबी लघुकथा का अस्तित्व नहीं हो सकता है ।
 -  प्रतिभा सिंह 
राँची - झारखंड
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क्रमांक - 115
       लघुकथा को छोटी बड़ी या शब्दों और आकार की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लघुकथा का संप्रेषण लघुकथा के रूप में होना जरूरी है और पढ़ने में वह लघुकथा, लघुकथा के फार्म में महसूस होना चाहिए। यह जरूरी है। कई बार लघुकथा कहानी का प्रारूप बन जाती है और ऐसी रचनाएं लंबी भी होती हैं तो उन्हें हम लघुकथा नहीं कह सकते। आकार पर चर्चा निरर्थक है क्योंकि कई बार एक पेज से अधिक लंबी लघुकथा भी लघुकथा हो जाती है जबकि कई बार लघुकथा का छोटा आकार यदि कहानी का प्रारूप होता है तो वह लघुकथा नहीं होती। इसलिए उसके आकार से अधिक उसके स्वरूप पर चर्चा होना चाहिए। लघुकथा का शिल्प ही किसी रचना का लघुकथा होना तय करता है।
- सतीश राठी
इन्द्रौर - मध्यप्रदेश
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क्रमांक - 116
          लघुकथा लंबी होगी तो मेरी समझ से लघुकथा शब्द के कोई मायने ही नहीं होंगे। लघुकथा की खूबसूरती ही इस बात में है कि चंद चुनिंदा शब्दों को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाय कि सोचने के लिए मजबूर करती एक सधी कसी कथा पाठकों के समक्ष आए।आज की इस भाग दौड़ वाली जीवनशैली में लंबी कहानियाँ पढ़ने का वक्त ही कहाँ है? फिर कहानियों में कभी कभी विषय को बेवजह बहुत खींचा जाता है,जिससे वे उबाऊ हो जाते हैं। लघुकथा मेरी नजर में इसी का खूबसूरत विकल्प है।कम शब्द,कसी हुई पटकथा और सोचने को मजबूर करता उसका अंत।यही उत्कृष्ट लघुकथा की पहचान है। इसलिए मेरी समझसे तो लघुकथा छोटी ही होनी चाहिए।
- रश्मि सिंह
रांची - झारखंड
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क्रमांक - 117
        लघुकथा अगर लिखी जाये तो वो किसी एक घटना को लेकर चलती है। लघुकथा लिखने के पांच तत्व है। 1-कथानक 2-पात्रों के चरित्र चित्रण 3-देशकाल वातावरण 4-संवाद 5-भाषा - शैली इन तत्वों के आधार पर लघुकथा की रुपरेखा तैयार की जाती है इस तरह कथा का ही छोटा रुप लघुकथा कहलाता है। इसमें भी किसी घटना को लेकर एक दो पात्र, वातावरण, उनका संवाद और किस भाषा का प्रयोग किया गया है किस शैली को ध्यान में रखा गया है ये सब देखा जाता है अगर घटना छोटी है लघुकथा एक पेज या आधे पेज पर आ जाती है अगर घटना को थोड़ा बड़ा करते हैं तो लघुकथा थोड़ा सा और विस्तार ले लेती है पर कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिस घटना पर कथा चल रही हो उसको संपूर्ण तब करना चाहिए जब उस कथा में सुखद संदेश हो या ज्ञान वर्धक संदेश पूर्ण न हो कथा जारी रखी जा सकती है।
- चन्द्रकला भागीरथी
धामपुर ( बिजनौर ) - उतर प्रदेश
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क्रमांक - 118
         जैसा कि लघुकथा शब्द ही अपने आप में परिपूर्ण और अर्थपूर्ण है।फिर भी आज कल लघुकथा की तात्विक रचना को लेकर प्रायः लेखकों और पाठकों दोनों के मध्य एक भ्रमपूर्ण स्थिति दिखाई देती है। जो लघुकथा के अस्तित्व के लिए हानिकारक ही सिद्ध होगी। वास्तव में लघुकथा में एक घटना का संक्षिप्त विवरण होता है और उसके कथानक में एक ही कालक्रम भी होता है। एक अच्छी लघुकथा अत्यंत सीमित शब्दों में बड़ी बात कहना चाहती है। कुछ लघुकथाएं आजकल एक विस्तृत रूप में दिखाई देती हैं।शायद कथाकार एक घटनाक्रम के तत्व के अतिरिक्त अन्य तत्वों को अति उत्साह में उपेक्षित कर देते  हैं और लघुकथा को प्रभावित बनाए रखने के उद्देश्य में लघुकथा और कथा के भेद को भुला देते हैं।  हमे याद रखना चाहिए कि आज के अति व्यस्त और तकनीकी युग में जबकि साहित्य के पाठक सीमित हो रहे हैं तब लंबी कहानी और कथा को लघुकथा ने ही प्रतिस्थापित किया है। एक सामान्य पाठक की दृष्टि से हमे लिखने से पहले सोचना चाहिए और खुद से पूछना चाहिए कि क्या यह लघुकथा मेरे अपने मन मस्तिष्क को पहली बार में प्रभावित कर सकती है?यदि जवाब हां में आता है तो निसंदेह वह एक अच्छी लघुकथा हो सकती है। एक लंबी लघुकथा को दीर्घकालीन स्मृति में सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है।अपने नाम के साथ ही अन्याय करने वाली लंबी लघुकथा का कोई स्थाई अस्तित्व नहीं हो सकता है। लघुकथा को निश्चित शब्दों के बंधन में भी नहीं बांधा जा सकता है।किंतु एक सीमित शब्दों में पिरोई गई लघुकथा के दीर्घकालीन अस्तित्व की तुलना में लंबी लघुकथा का अस्तित्व स्थिर नहीं माना जा सकता है। एक छोटी लघुकथा किसी इमारत के गलियारे में लगे खूबसूरत झूमर की तरह होती है जबकि लम्बी लघुकथा उसी इमारत की उस फुलवारी की तरह होती है जो देखने में तो मन मोह लेती है लेकिन उसकी खुशबू हमे अधिक समय तक याद नही रह पाती है।
- प्रवेश स्वरूप खरे "आकाश"
 पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
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क्रमांक - 119
         अपनी लघुता  में ही पूरा विस्तार लिए होती है लघुकथा। कम शब्दों में बड़ी-बड़ी बातों और गूढ़ संकेतों की अभिव्यक्ति की अनुपम कला है लघुकथा। इसमें न तो पात्रों की अधिकता होती है, न घटनाक्रमों की, न ही कथानक के बहुत अधिक विस्तार की l क्षण या क्षणांश में किसी छोटी घटना या दृश्य से मन में उत्पन्न होने वाले भावों को सटीक और प्रभावशाली ढंग से उकेरने की कला है लघुकथा l लघुकथा, जो हमारे मन को झिंझोड़ दे, हमारी चेतना को झकझोर दे और हमें सोचने पर मजबूर कर दे। जब कथानक ठोस और स्पष्ट होता है, शिल्प सधे हुए होते हैं, कथ्य  प्रवाहमयी होता है, संवाद  सरल होते हैं और संवादों बहुलता नहीं होती, तब लघुकथा में अभिव्यक्ति के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता नहीं होती l  शब्दों, वाक्यों के सीमित दायरे में सधी और रची गयी लघुकथाएं ही  ज्यादा मारक, ग्राह्य और पठनीय रही हैं,  बनिस्पत लंबी लघुकथाओं के l  मेरा मानना है कि लघुकथा अपने लघु आकार के कारण ही  लघुकथा कही जाती है l  इसलिए इसे  लघु ही रहने दिया जाए, तो बेहतर है l  लघुकथा की लंबाई बढ़ाकर और इसे विस्तार देकर इसे  कहानी के नजदीक ले जाने से  जहां तक हो सके, हमें बचना चाहिए l 
- विजयानंद विजय
   बक्सर - बिहार
       जो लेखक कहानी के क्षेत्र से लघुकथा लेखन में आये हैं । वहीं लंबी - लंबी लघुकथा लेखन व समर्थन में विश्वास रखते हैं । वास्तविक यही है । लघुकथा लेखन हर किसी की सोच का परिणाम नहीं है । जहाँ एक भी शब्द फालतू स्वीकार नहीं होता है । वहीं उद्देश्य पूर्ण कथा होना ।
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बीजेन्द्र जैमिनी
जन्म : 03 जून 1965

शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
           
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
महाराष्ट्र के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
- दिल्ली के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
- बुजुर्ग ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. स्तभ : इनसे मिलिए ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकाशित )
     स्तभ : मेरी दृष्टि में ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकशित )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609
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https://bijendergemini.blogspot.com/2021/03/blog-post_39.html






Comments

  1. अंकल सर ,
    आपको सर्वप्रथम चरण स्पर्श।
    एस्प इतना सब कैसे कर लेते है। मैं अचंभे में हूँ।
    अब समझ आया बाबूजी आपकी तारीफ करते नही थकते थे।आपके कार्यक्रमो में पानीपत जाने को हमेशा तत्पर रहते थे। आपने बाबूजी को बहुत सम्मान किया। मेरा पूरा परिवार आपका ऋणी है।
    मैं भी बाऊजी के सपने को पूरा करने के लिये आपके सहयोग का आकांक्षी रहूँगा।
    मुझें कुछ भी नही आता।बस आपके सानिध्य में विधा के लिए कुछ करना चाहता हूँ।
    बस आपकी कृपा दृष्टि बनी रहे।
    आपका अपना
    अजय वर्मा
    अध्यक्ष : कथा - दर्पण साहित्य मंच
    इन्दौर - मध्यप्रदेश
    ( WhatsApp से साभार )

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  2. ऐतिहासिक परिचर्चा संकलन की आपको बहुत बहुत बधाई।
    संक्षिप्त शव्दों में एक बिन्दुपर लिखी गयी रोचक कथा जिसका अंत अद्वितीय मोड़ पर हो जो पाठक को अतृप्ति का आभास करवा कर यह कहने सोचने पर मज़बूर करदे कि इससे आगे कुछ एसा कुछ वैसा होना चाहिए था, वास्तव में वही लघुकथा है।
    - सुरेश भारद्वाज निराश
    धर्मशाला - हिमाचल प्रदेश
    ( फेसबुक से साभार )

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  3. आदरणीय बीजेन्द्र जी आप बहुत सुंदर कार्य कर रहे हैं सभी साहित्यकारो के विचार भिन्न हैं पर उद्देश्य एक ही होना चाहिए कि कथा में रोचकता, जिग्यासा, पात्रों का चरित्र सुंदर अंत उद्देश्य लिये शिक्षाप्रद होना चाहिए आप को बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं 🙏 🙏 🙏 🙏
    - चन्द्रकला भागीरथी
    धामपुर - उत्तर प्रदेश
    ( WhatsApp से साभार )

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  4. आदरणीय
    साहित्य के क्षेत्र में आपकी संकल्प यात्रा निश्चित रूप से आपको एक दिन शीर्षस्थ करेगी, इसी कामना के साथ आपका ही ...........डॉ वासु देव यादव

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