हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिलाएं लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता क्या है ?

महिला दिवस पर जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " रखीं गई है । जिस की प्रस्तुति " भारतीय लघुकथा विकास मंच " की है । आज लघुकथा साहित्य में महिलाएं लघुकथाकारों को बोलबाला है । जो महिलाओं के अस्तित्व से लेकर आधुनिक भूमिका की विवेचना करता है । जो विभिन्न क्षेत्रों की पारदर्शिता को दिखाता है । यही कुछ " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
वर्तमान इक्कीसवीं सदी में महिलाएँ लघुकथाकार संवेदनहीनता से भरे समाज को लघुकथाएँ रचकर 
बाजारवाद, उपनिवेशवाद, परिवारवाद आदि  में सामाजिक , पारिवारिक बुराइयों  , शोषण , अन्याय आदि के यथार्थ को  लघुकथा में गढ़कर पारिवारिक, आंचलिक  पाठकों मे आत्मीयता का सृजन करती हैं।
पाठक अपने खुद को , परिवार , समाज के यथार्थ को उन लघुकथाओं में महसूस करता है। 
  आज इन सभी संवेदनाओं को नारी लघुकथाकार
इन्हीं संवेदनाओं प्रेम , क्रोध , दुख , नफरत,  सुख आदि को अपने जीवन ,  अमीर -गरीब , भेदवाद समाज में देखती हैं।उन विषयों पर  कलम चलाके मानवीयता , साकारात्मकता के सन्देश से जोड़ कर टूटे हुए मनोबल को प्रोत्साहित करती हैं । नारी इन मनोवेगों , संवेदनाओं से अभिमंत्रित होती हैं । पाठकों को लघुकथाएँ  प्रेरणा , ऊर्जा देती हैं । 
 मानव का व्यक्तिव में गिरावट आने से व्यक्ति और समाज में खाई पैदा हो गयी है ।  महिला लघुकथाकार कुशलता से  अपनी कलम चलाके खाई पटाने की सोच समाज को दे रही हैं । इन संवेदनाओं के करीब नारी अंतर्मन होता है , इसलिए साहित्य , समाज में आज महिलाएँ लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता बढ़ती जा रही है।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
सबसे पहले मैं यह बताना चाहूंगा लघुकथा क्या है ?:--छोटी कहानी जिसमें लघु और कथा के बीच एक  खाली स्थान होता है। लघुकथा -कारो, महिलाएं बखूबी भूमिका निभाई है।
सामाजिक जीवन की विसंगतियों को अपने वैचारिक संस्पर्श देती है। जिसमें जातिवाद, अंधविश्वासों और रूढ़ियों से विद्रोह ,धार्मिक कट्टरवाद  पर तंज, दंगों और संप्रदायिक विद्वेशी की सामाजिक मनोभूमि, बच्चियो के साथ कुत्सित हरकतें, गरीबी का अर्थशास्त्र विषयों के रूप में पेश करती है।
लेखक का विचार:--नारी विमर्श आमतौर पर साहित्य की हर विद्या के केंद्रीय बनी हुई है। पुरुषवादी वर्चस्व को चुनौती देती लघु कथाओं द्वारा विरोध परदर्शित करती है।  साथ अपनी शक्ति की ताकत प्रदर्शन करती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
हिंदी लघुकथा साहित्य में महिला लघु कथाकार बहुत ही अहम भूमिका अदा कर रही हैं। महिलाओं की पीड़ा, अंतर् वेदना, मनोस्थिति, सामाजिक भेदभाव और कुरीतियों के दंश का यथार्थ चित्रण करते हुए लेखन के द्वारा आवाज उठा कर अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करते हुए उनका मनोबल बढ़ाकर आत्म सम्मान दिलाने का अथक प्रयास कर रही हैं।
     महादेवी वर्मा, कृष्णा सोबती, सरोजनी नायडू, मन्नू भंडारी, सुभद्रा कुमारी चौहान, मृणाल पाण्डे जैसी महान लेखिकाओं ने देशकालिक परिस्थितियों पर समयानुसार अभिव्यक्ति देकर समाज को नई दिशा प्रदान की।
   महिला रचनाकार की कृतियां संवेदनशील, तार्किक युक्त होते हुए रूढ़िवादी सामाजिक परंपराओं को तोड़ने में अहम भूमिका अदा कर रही है।
    नई युवा पीढ़ी में भी लेखिकाओं का योगदान विस्मयकारी है। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा के खिलाफ जनाक्रोश को लेखनी द्वारा चिंगारी देकर पीड़िता को न्याय दिलाने में सहयोग प्रदान करने में सक्रिय भूमिका अदा कर रही हैं।
    महिलाओं में बढ़ती चेतना और जागरूकता ने उनकी पारंपरिक छवि को तोड़ा है। उनके सशक्त लेखन का योगदान आज हिन्दी साहित्य को समृद्ध और समाज को सशक्त बनाने में कारगर साबित हो रहा है।
           -  सुनीता रानी राठौर
              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
     भारतीय संस्कृति में साहित्य, इतिहास के अमूल्य पन्नों में महिलाओं के ओजस्वी वीर गाथाओं से भरा हुआ हैं। आज भी वर्तमान परिदृश्य में भी यह क्रम यथावत बना हुआ और नारी सशक्तिकरण  ने अपनी अमूल्य पहचान बनाकर गद्य और पद्य विधा में  वैचारिक आधार पर, घर संसार के कार्यों को सम्पादित करने उपरान्त जो समय दे रही हैं, यह अनौखी बात हैं। 
एक ओर कम शब्दों में सारी बातों को क्रमबद्धता प्रदान कर लघुकथाओं में अपने विचारों से अवगत कराना, यही सार्थक शब्दावली हैं, यही इनकी उपयोगिता को चरितार्थ करता हैं।
वर्तमान समय में दिनों प्रति दिन लघुकथाओं का महत्वपूर्ण योगदान होते जा रहा हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है।शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से लघुकथा और छोटी कहानी दोनों एक ही साहित्य रूप का बोध कराती है। अंग्रेजी में कहानी को स्टोरी और लघु था को शार्ट शार्ट स्टोरी कहा जाता है जिससे दोनों के आकार वेद का ज्ञान भले ही होता हो लेकिन तत्व के भेद पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। हिंदी लघुकथा साहित्य में महिलाएं लघुकथा कारों की भूमिका की उपयोगिता धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं। इसका कारण लघुकथाओं में महिलाओं का रुचि का ना होना बताया जाता है। लघु कथा की बात कही जाए तो जीवन के किसी खंड विशेष को प्रकाशित करने की चेष्टा की जाती ह। कहानी में जिसके लिए संक्षिप्त कथा का निर्माण करना होता है जिसमें घटनाएं और चरित्र आदि होते हैं लेकिन लघुकथा के लिए यह सब आवश्यक नहीं है उसका लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुत इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली को लेती हो लघु कथाओं में घटनाएं और सरिता दी कहानी की तरह सुनिधि ढंग से हो ही यह आवश्यक नहीं वहां तो अत्यल्प साधनों द्वारा ही जीवन के चरण सत्य को उजागर करने की चेष्टा की जाती है। लघु कथा का प्रारंभ कब से हुआ या इस पर विचार किया जाए तो मानना होगा कि इसकी जड़ आधुनिक कहानियों की अपेक्षा अधिक प्राचीन है।जिस प्रकार कहानियों का एक अत्याधुनिक रूप है जो उनके प्राचीन रूप में नितांत भिन्न है और आधुनिक जो की उपज है उस प्रकार लघुकथाओं का कोई अत्याधुनिक रूप नहीं है जिसके बारे में दावा किया जाए कि यह वर्तमान युग की देन है और प्राचीन साहित्य में उल्लिखित लघु कथाओं में भिन्न है इस बात को ध्यान में रखकर यह भी कहा जा सकता है कि जिस प्रकार छोटी कहानियों में विकास एक लंबा पत्थर अपने को प्राचीन अंखियों से एकदम भिन्न प्रमाणित करता है वैसा लघुकथा नहीं कर सकती इसका कारण संभवत यह है की कहानियों में जीवन का यथार्थ जिसकी जितनी सफलता से व्यक्त हो सकता है उतनी सफलता से नहीं रंजीत होता है एक तो इसका आकार छोटा है जिसके कारण वर्णन और विशेष की गुंजाइश कम होती है और अधिक ध्यान देती है। हिंदी साहित्य में लघु कथा करने की परंपरा आदि काल से ही किसी न किसी रूप में रही है विश्व में प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ ऋग्वेद में यम यमी पुरुरवा उर्वशी आदि संवादात्मक आख्यानों में कथा के होने की पुष्टि होती है इससे आगे विविध ब्राह्मण ग्रंथों अपने को महाकाव्य पुराणों जैन बौद्ध साहित्य में भी कथाओं का डर भंडार मिलता है।
- अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर - झारखंड
हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथा साहित्यकारों की भूमिका की असीमित उपयोगिताएं हैं। जब एक महिला लघुकथा साहित्यकार किसी लघुकथा का सृजन करती है तो उसमें यथार्थ का अधिक समावेश होता है। महिला लघुकथा साहित्यकार की रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ सकारात्मकता और हौसले का प्रदर्शन होता है। महिला लघुकथा साहित्यकारों की लघुकथाओं के किरदार ईमानदारी और सत्य का प्रदर्शन तो करते ही हैं साथ ही जीवन की मुश्किल घड़ियों को निपटने का भूमिका बहुत महत्वपूर्ण तरीके से आत्मसात कराते हैं।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
     लघुकथा संसार में महिला लघुकथाकारों का सहयोग और उपयोगिता अतुल्य है। संवेदनशीलता और लघु में विराट भावनाओं का प्रस्फुटन तो नारी हदय की विशेषता है। नारी के भीतर एक अंर्तमन की आवाज होती है जो किसी भी सामान्य घटना के असामान्य पहलू को भाँप लेती है। ऐसे ही खुल जा  सिम-सिम से भाव-विभाव-अनुभाव में बडे़ बडे़ राग-विराग-अनुरागों को रचती लघुकथाएं नारी के लिए ही संभव है।
           नारी के भीतर की दुनिया बड़ी ही अभेद्य होती है लेकिन नारी की अंतश्चेतना पुरुष के एक स्पर्श या एक निगाह में बसी नजर को क्षण मात्र में भाँप लेती है और वे ही अनुभव साहित्य में गूढ़ के अनावरण और सच्चाई के अवतरण में सहायक बन कर साहित्य को अधिक ईमानदार और सार्थक बनाती है। लघुकथा जैसी सूक्ष्म भावोंन्भेदी विधा में नारी लघुकथाकारों  की उपयोगिता पर प्रश्न  समाज के  मानसिक असंतुलन की ओर इंगित करते हैं । दया क्षमा शांति करुणा धैर्य सहनशीलता आदि अंतर्निहित गुणों की धात्री नारी अपनी लघु सी सूक्ष्म अभिव्यक्ति में भी एक ईमानदार और सच्चाई भरी प्रस्तुति की अनुभूति करवाती है 
        विद्या की देवी सरस्वती ने नारी को वरदान दिया है-- अपनी अमानत को सँभालने सँवारने और संवर्धित करने का-- अतः साहित्याकाश में ही नहीं - --लघुकथाओं के लघु वितान में भी लघुकथा कार नारी मात्र की उपयोगिता निर्विवाद है। नयी पीढ़ी को-- दिशाहीन समाज को दिशा-निर्देश जो नारी लघुकथाकार दे रही हैं वह समाज के अधिक निकट है। महिला लघुकथाकारों के नाम उल्लेख करना पटल की शब्द सीमा के मद्देनजर उपयुक्त नहीं होगा तथापि स्त्री पुरुष समस्त रचनाधर्मियों को नमन ।
- हेमलता मिश्र " मानवी "
नागपुर - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहां तक की यह प्रश्न है कि लघु कथा साहित्य में महिला लघुकथा कारों की क्या उपयोगिता है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा लघु कथा साहित्य में महिला लगा लघुकथा कारों की बहुत उपयोगिता है जहां तक संवेदनशीलता का प्रश्न है तो दैनिक जीवन में घटित होने वाली बहुत सी घटनाओं और समाज में घटित होने वाली बहुत सी घटनाओं पर महिला लघुकथा कारों की भी पैनी दृष्टि रहती है और वह उन सभी घटनाओं को संवेदनशीलता के साथ जब महसूस करती है तो एक बहुत ही प्रभावी और अच्छी लघु कथा का जन्म होता है जब भी उसे अपनी संवेदनशीलता के साथ कागज पर उकेरती है तो वह और भी प्रभावी बन जाती है लघुकथा कारों का इस प्रकार हिन्दी लघुकथा साहित्य में बहुत अहम योगदान है और पिछला जो समय गुजरा है लघु कथा के क्षेत्र में महिला लघुकथा कारों ने लघु कथा साहित्य को सशक्त बनाने में एक अहम भूमिका अदा की है इससे इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि मेरा व्यक्तिगत रुप से मानना है कि संवेदनशीलता जितनी अधिक होगी उतनी ही लघु कथा भी अधिक प्रभावी और असरकारक होगी और महिलायें निसन्देह पुरुषों से कहीं अधिक संवेदन शील होती है...... ! 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
समय कितना भी बदल जाए पर महिलाओं पर अभी भी लोगों की कुदृष्टि बनी हुई है।वे तरह तरह से प्रताड़ित की जा रही हैं।जो महिलाएँ जागरूक हो गयी हैं वे लघु कथा के माध्यम से अपनी रचनाओं के द्वारा ऐसी नारियों की करुण व्यथा समाज के सामने प्रस्तुत कर रही हैं।अपनी रचनाओं के द्वारा दबी, सहमी नारियों को जागरूक होने का यथासंभव प्रयास कर रही हैं।नारी ही नारी की व्यथा समझ सकती है और उसका माध्यम है लघु कथा जो आजकल काफी विस्तृत है।
- इन्दिरा तिवारी
रायपुर-छत्तीसगढ़
"दूनिया की पहचान है औरत, 
हर घर की जान है औरत, 
बेटी बहम, मां पत्नी बनकर 
घर घर की शान है औरत"। 
महिला दिवस हर साल आठ मार्च को मनाया जाता है यह दिवस महिला के योगदान समाज मे क्या है क्या रहा है उसके विषय में याद दिलाता है, 
देखा जाए महिलाओं की हम सभी के जीवन में भूमिका होती है, 
महिलाओं के महत्व को शव्दों में व्यान नहीं किया जा सकता, 
महिला ही समाज को चलाती है और यह समाज का अभिन्न अंग है, 
तो आईये आज इस बात पर चर्चा करते है् कि  हिन्दी लघुकथा  के सहित्य में महिलाओं की क्या भूमिका  रही है? 
मेरा मानना है की हिन्दी सहित्य और लेखन में आजादी सेे पहले और अब तक हमेशा  लघुकथा के सहित्य में अव्वल दर्जे पर रही हैं हिन्दी लेखन और सहित्य में महिलाएं अपना स्थान बनाये हुए हैं
देखा जाए १९१८में हिन्दी को  राष्टृभाषा का सम्मान देने की बात गांधी ने की थी तब से अब तक यदि हम हिन्दी लेखक महिलाओं की बात करें जिन में
उषा देवी, सरोजनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुमद्राकुमारी चौहान आदि ने  हिन्दी लघुकथाएं लिखीं व अपना नाम रौशन किया, 
तब से लेकर अब तक भारत नारी सदैव समानता की अधिकारी रही है
आजादी के वाद सहित्य और लेखन में महिलाओं के स्वर  और लेखन में बदलाव दिखने लगा नारी जाति इस विषय में ज्यादा उभर कर बाहर आने लगी, 
जिनमें मन्नु भंडारी, उषा पि्रचन्द्र, चन्द्रकिरण आदि का लेखन उदारहण हैं, 
 नए परिवेश में महिला सहित्य ने एक नये स्वर को जन्म दिया जिनमें अमृत प्रीतम, शिवानी, कृष्णा, सोबती आदि के लेखक ने नारी मुल्यों को नये सिरे से गढ़ा और पहचान दी, 
आखिरकार यही कहुंगा महिलाओं का योगदान हिन्दी लघुकथा सहित्य में भी उत्तम रहा है और रहेगा क्योंकी एक महिला समाज का अभिन्न अंग है जिसके बिना पकृति अपनी सुदंरता खो देगी इसलिए महिला हमेशा पूजनिय रही है और रहेगी इसने हर क्षेत्र में अपने आप को वढ़ावा ही दिया है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सबसे पहले तो मैं यह मानती हूँ कि हर रचना अपने-आप में इतनी परिपूर्ण होनी चाहिये कि पढ़ने के बाद ही, विभोर हुए पाठक के अंदर उसके रचनाकार का नाम जानने की उत्सुकता जागृत हो न कि स्त्री-पुरूष के खाँचे में विभाजित रचयिता का नाम पढ़ कर कोई पहले से ही अंदाज लगा ले कि अब उसे किस तरह की सामग्री मिलने वाली है।
आजकल लघुकथा कलमकारों की बाढ़ आई हुई है पर मौलिकता का उतना ही अभाव है। चंद नामों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोग विषय का दोहराव ही करते नजर आते हैं। इसके अलावा महिला लघुकथाकारों पर घर-गृहस्थी के दायरों से बाहर न निकल पाने के आरोप भी लगते रहते हैं। इस सिलसिले में मुझे लगता है कि विषय कहीं से भी उठे, उसमें संवेदनाओं के, दर्द के तारों को छेड़ने की ताकत जरूर होनी चाहिये। लेखन में एक धार, एक पैनापन, बचे हुए समय का सदुपयोग कर, लेखिका बन जाने मात्र से नहीं आएगा वरन हरेक विषय को कलम बद्ध करने से पहले सोंचने, गुनने और उनकी पाठकों के लिये क्या उपयोगिता होगी, यह तय करने से आएगा। अध्ययन की आदत भी अच्छे-बुरे साहित्य को परखने की दृष्टि को विकसित करने में बहुत  सहायक होती है। 
स्वयं को साहित्यकार कहते ही हमारे ऊपर इस विधा को और समृद्ध करने की जिम्मेदारी आ जाती है तो इसके लिये हमें थोड़ा और गंभीर होना होगा और ऐसी रचनाओं का सृजन करना होगा कि फिर कोई हमारी उपस्थिति, हमारी उपयोगिता पर किसी तरह का प्रश्न चिन्ह खड़ा न कर सके।
- श्रुत कीर्ति अग्रवाल 
पटना - बिहार
आज विश्व महिला दिवस है। आज हर तरफ महिलाओं के अधिकार  की बात हो रही है। उन्हें हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार देने की बात हो रही है। जब हर क्षेत्र में अधिकार की बात हो रही है तो फिर लघुकथा क्षेत्र में भी उनकी उपयोगिता आवश्यक है। जिस तरह अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की आवश्यकता है तो फिर इस क्षेत्र में क्यों नहीं। जब महिला जीवन का आधा अंग होती है तो आधे अंग के बारे में अच्छी तरह से जानकारी तो वही दे सकती है। महिलाओं का दर्द उनकी व्यथा ,उनकी करुणा का वर्णन  एक महिला लघुकथार ही बेहतर ढंग से कर सकती है। पुरूष लघुकथारों के बनिस्पत। इस दृष्टिकोण से लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथारों की भूमिका उपयोगी है।और हमेशा उपयोगी रहेगी। जब साहित्य के हर विधा में महिला लेखिका अपना परचम लहरा रही हैं तो हिन्दी लघुकथा में क्यों नहीं। साथ ही साथ महिला लघुकथारों से आशा की जाती है कि वो बेहतर से बेहतर लघुकथा समाज को दें जिससे उनकी उपयोगिता सही मायने में परिपूर्ण हो।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
लघुकथाएं की नायिका महिलाएं कहलाती है वर्तमान समय में महिलाएं भोग्या नहीं है बल्कि एक सशक्त लिखनी है वह भी अपनी भावनाओं को कर्मों के माध्यम से लघु कथा उपन्यास कविता गजल इत्यादि में योगदान दे रहे हैं उनके पास जो अनुभव है उन अनुभवों को लेखनी के माध्यम से पटल पर प्रस्तुत कर रहे हैं यह भारत का विकास का एक दृश्य है अब महिलाएं आश्रिता नहीं हैं आत्म निर्भर है उन्हें धोखा नहीं दिया जा सकता अगर धोखा खाते हैं तो अपने आग में दूसरे को भी जला देती है इसलिए महिलाएं सशक्त है आत्म निर्भर है सृष्टि निर्माता है संयोजिका है ममता की मूर्ति हैं समस्या समाधान के जरिया है महिलाओं की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
लेखन एक संवेदनशील कला है। हृदय के उद्गारों को  सीमित शब्दों में एक कथा का रूप देना लघुकथा कारों की गहन सोच-विचार और ग्रहणशीलता को बखूबी दर्शाता है। आज के डिजिटल समय में जब किसी के पास किसी काम के लिए समयाभाव है ऐसे में बड़ी-बड़ी कहानियों की जगह लघुकथाएं लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित कर रही हैं।महिलाए अधिक संवेदनशील होने के साथ-साथ समाज में, घर-परिवार में घटित होने वाली घटनाओं को क़रीब से देखती-समझती हैं और उसे अपनी लेखनी में सहजता से उतार पाती हैं। अत्यधिक सामाजिक कुरीतियों और रूढ़िवादी समाज की उदासीनता और उलाहनों को भी झेलती हुई भी जीवन में अपनी मेहनत से अपने सपनों को पूरा करने का हौसला रखती है।जिन बातों पर बात करना पहले अपराध माना जाता रहा अब महिला रचनाकार उन बातों को भी अपनी लेखनी के माध्यम से बखूबी और निडरता से रखने लगी हैं जिससे पाठक ऐसी कथाओं में अपने को वर्णित महसूस करते हैं ।और ये सर्वविदित है कि अगर नारी मन या नारी संबंधित विषयों पर एक पुरुष कितना भी लिख ले वो नारी मन की गहराइयों को नापने में असमर्थ रहता है।ऐसे विषयों पर महिला साहित्यकार  नारी मन के समस्त भावनाओं को को कागज़ पर उतार देती हैं।ऐसी महिला लघुकथा कारों की कथाएं पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ जाती है  जिससे समाज  में घर-परिवार में एक साकारात्मक बदलाव आता है।मेरा मत है कि महिला का उत्थान समाज का उत्थान है और लघुकथाओं के विकास में  सशक्त महिला लघुकथा कारों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है एक बेहतर समाज के निर्माण में।
- संगीता राय
 पंचकुला - हरियाणा
हिंदी लघु कथा साहित्य में आज महिलाएं हर क्षेत्र में है साहित्य हो या कोई भी क्षेत्र हिंदी लघु कथा साहित्य क्षेत्र में भी महिला लघुकथा कारों की उपयोगिता नितांत आवश्यक है महिलाएं समाज के घर के परिवार के हर पहलुओं को यथार्थ रूप में समझ सकती हैं कई ऐसी बातें हैं जो समाज में जागरूकता लाने के लिए महिला ही महिला को अपनी बातों से अत्यधिक प्रभावित करती है और महिलाएं जागरूक होती है एक अच्छ संदेश जाता है समाज में जागरूकता फैलती है महिला लघु कथाकार कम शब्दों में अपनी उन सभी बातों को महिलाओं की अंतर वेदना को महिलाओं के अंदर दबे विचारों को‌ कथानक के रुप में सोच को शब्दों के माध्यम से बहुत सुंदर प्रस्तुति करण दे सकती है।
आज के बदलते परिपेक्ष्य में बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
वर्तमान समय में लगभग हर लेखक लघुकथा विधा में अपनी लेखनी आजमा रहा है।
"कम शब्दों में बड़ी बात कह देना" शायद इसी विशेषता से आकृष्ट होकर महिलाएं भी इस विधा में काफ़ी रूचि ले रही हैं।
तीखे चूभते व्यंग्य से परिपूर्ण रचना के माध्यम से महिलाओं को अपने आस-पास हो रही कई संवेदनशील घटनाओं पर विचार व्यक्त करने का मौका मिल जाता है जो साधारणतः सुगमता से प्राप्त नहीं होता, यही वज़ह है कि आज लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों की बाढ़ सी आ गयी है।
अब बात आती है कि हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता क्या है तो कहा जा सकता है कि पुरूषों की तुलना में महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं, वे समाज में और अपने आस-पास घट रही घटनाओं को भावनात्मक रूप से ज्यादा बेहतर ढंग से व्यक्त कर सकती है। यदि किसी महिला लघुकथाकार की लेखनी यकीनन सशक्त है तो वो अपनी रचना के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का कार्य भी बखूबी निभा सकती है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम ऐसी कई महिला लघुकथाकारों की रचनाओं को देख सकते हैं जो पाठकों के मन-मस्तिष्क को आंदोलित करने में पूर्णतः सक्षम है।
आदरणीया कांता रॉय जी, शकुन्तला किरण जी, अनघा जोगलेकर जी, पुष्पा कुमारी जी जैसी अनेकों महिला लघुकथाकारों ने लघुकथा विधा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया है तथा इस विधा को नयी दिशा प्रदान की है।
इन सभी महिला लघुकथाकारों की रचनाओं में रोचकता के साथ-साथ पाठकों को उनमें छुपा ऐसा गूढ़ संदेश प्राप्त हो जाता है, जिस विषय में सामान्यतः हर किसी लेखक का ध्यान नहीं जाता।
यहाँ इस संदर्भ में कांता रॉय जी की लघुकथा- अस्तित्व की यात्रा का उल्लेख किया जा सकता है।
स्त्री मन और उसकी भावनाओं का मार्मिक चित्रण, एक स्त्री ही ही अधिक कुशलता के साथ कर सकती है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा भविष्य में यह भूमिका तथा उपयोगिता और भी पल्लवित होगी।
- सुषमा सिंह चुण्डावत
उदयपुर - राजस्थान
महिला लघुकथाकार सतत् गतिशील हैं,यह संतोष का विषय है।उन्होंने विविध विषयक लघुकथाएं सृजित कर लघुकथा साहित्य को नि:संदेह समृद्ध किया है।यह यथार्थ है कि कुछ महिला लघुकथाकार वास्तव में काफी पैनापन रखती हैं,यद्यपि हर महिला लघुकथाकार सदा सार्थक लिखती हो,यह कदापि नहीं है।उन्होंने नारी-मुक्ति पर लिखने में काफी कुछ पूर्वाग्रहयुक्त भी लिखा है,पर उन्होंने अपनी लघुकथाओं से समाज को नव चेतना भी प्रदान की है,इससे किंचित भी इनकार नहीं किया जा सकता।
      - प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
         मंडला - मध्यप्रदेश
लघुकथा पूरे जीवन की गाथा न होकर जीवन की कुछ विसंगतियों को चिन्हित करके उस पर अपना दृष्टिकोण स्थापित करने की विधा है। चिंतक प्रवृत्ति व्यक्ति के अंदर ही निहित होती है। यह गुण ज्यादातर महिलाओं में देखने को मिलता है। 
महिलाएं ही हैं जो लघुकथाओं के माध्यम से पूरे जीवन की असहज अवस्थाओं को अपने कलम के माध्यम से दुनिया तक सही मायने में पहुंचा पा रहीं हैं। पूरे दिन रसोई में खड़े रहकर, भूखे पेट रहकर सबका पेट भरकर, कभी मां, कभी बेटी, कभी बहन और सभी रूपों में शांत रहकर परिवार की एकता को अच्छे से बनाए रखतीं हैं। इसमें कामकाजी महिलाओं का तो और भी बुरा हाल है।
हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिलाएं ही हैं जो आज़ अपना वर्चस्व लहराने में सफल रहीं हैं। महिलाओं की लघुकथाएं भले ही आस-पास के माहौल के रंग में रंगी हों। परंतु उनमें एक पृश्न हमेशा छिपा होता है और वे समाज के ठेकेदारों से उसका जवाब भी चाहतीं हैं। जो आज़कल सभी को दिखाई दे रहा है। पहले से काफी बदलाव मानसिक सोच में आ गया है। और वह दिन दूर नहीं जब छोटी मानसिकता वाले लोगों पर महिलाओं के विचार हिचकोले मारने लगेंगे।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगी कि हिंदी लघुकथा साहित्य में महिलाएं लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता बहुत बढ़ गई है। छोटी से छोटी समस्या को उजागर करने भी महिला लघुकथाकार अब आगे आने लगीं हैं। जिसकी आज़ के समय में बहुत ज़रूरत है।
महिला लघुकथाकारों को हार्दिक बधाई न‌ई सोच हेतु।
- नूतन गर्ग 
दिल्ली
स्त्री ,जो घर परिवार की धुरी होती है।विभिन्न रुपों में स्वयं को अभिव्यक्त करती है। एक बेटी के रुप में जन्म लेकर विभिन्न पायदानों पर चढ़ती अपनी भावनाओं को सहेजना सीख जाती है। 
वर्तमान समय में एकल परिवारों के चलते अब वह अपनी पीड़ा किसी से बाँट नहीं सकती। 
सोशल मीडिया ने उसे एक मंच दिया अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने के लिये और वह अपनी कुंठा ,संत्रास ,अकेलापन ,संबंधों में दूरियाँ और विभिन्न  समस्यायों को.लघुकथा में ढाल कर स्वयं को हल्का कर ऊर्जस्वित हो पुनः जिजीविषा प्राप्त करती है। 
बदलते दौर में कुंठित मन की अभिव्यक्ति  का माध्यम इस से बेहतर कुछ नहीं। सुदढ़ परिवार की नींव का स्वयं तनाव मुक्त होना आवश्यक है साथ ही समस्या समाधान भी मिल जाते हैं लेखन के माध्यम से। अतः महिला लघुकथाकारों के मानसिक स्वास्थ्य का सही रहना परिवार व समाज  को तनाव.से बचाये रखने में उपयोगी है ।
- मनोरमा जैन  पाखी
भिंड - मध्यप्रदेश
व्यर्थ के शब्द एवं कथा कलेवर में अनावश्यक विस्तार से दूरी बनाना तथा धारदार चिंतन का बड़े करीने से जीवन की किसी घटना को सहज रोचकता के साथ प्रस्तुत करना मेरी दृष्टि  में लघु कथा है।
   आज के क्षणवादी तीव्र प्रखर जीवन की महत्ता में लघु कथा की उपयोगिता आवश्यक प्रतीत होती है। सवाल है महिला लघुकथा कारों की इसमें क्या भूमिका है। साहित्यिक परिदृश्य में नारी को मूल में रखकर जो चिंतन था। अब महिला सशक्तिकरण के दौर में निर्णायक की भूमिका ले चुका है ।पुरुषों की अपेक्षा महिला लघुकथाकार जीवन के हर क्षेत्र में सहभागी होने के कारण जीवन के सभी पहलुओं पर लघुकथा लिख रही हैं ।नारी को भोग्या रूप से हटकर उसे लेखन में भी सृजनात्मक विकास की धुरी से आंका जा सकता है। आज समाज, परिवार के दायरों से ऊपर उठकर संबंधों व रिश्तोके सच को भी उजागर करने में महिला लेखनी पीछे नहीं है जो कभी नारी को मौन रहने के इतिहास से जुड़ा था।
         तेजी से प्रभावित मानव जीवन में लेखिकाओं ने नारी जीवन के बदलते परिवेश में परिवर्तित मूल्यों को जहां स्वीकारा है। उसे कलम से डायरी, पत्र-पत्रिकाओं तक लिख डालने में उसे कोई गुरेज नहीं आता।            
             लघुकथा लेखिकाओं का लेखन विशिष्ट स्थान इसलिए भी पा रहा है क्योंकि वह जीवन के सभी क्षेत्रों परिवार, समाज, राजनीति में बखूबी भूमिका निभा रही हैं। फिर साहित्य तो समाज का दर्पण होता है और कथा साहित्य में लेखिकाओं का महत्व पूर्ण वर्ग सम्माननीय भी रहा है। यथार्थता का बाना पहन कर जो लेखन हो रहा है वह महत्वपूर्ण एवं बहुत ही उपयोगी है। लेखिकाएं  जीवन की बारीकियों को नजरअंदाज नहीं करतीं बल्कि उचितताओं से उजागर भी कर देती हैं।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
      हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता वही है जो उनकी सृष्टि की संरचना में है और सम्पूर्ण संसारिक संस्कृति का आधार हैं।
      उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार प्रकृति ऋतुओं में रंग भर देती है। उसी प्रकार महिलाएं न मात्र लघुकथाओं में बल्कि जीवन रूपी लघुकथा, कथा और उपन्यास में विभिन्न सुंदर रंग भरने में सक्षम हैं। धरती के स्वर्ग और नरक की लघुकथा संग्रह में भी महिला की भूमिका व योगदान सर्वाधिक और सर्वश्रेष्ठ माना गया है। 
      इसलिए विश्व महिला दिवस पर नारी शक्ति को लघुकथा क्रान्ति की भांति 'कन्या भ्रूण हत्या' की घिनौनी संस्कृति के प्रति जागरूक और सशक्त होने का प्रण लेना चाहिए। चूंकि उक्त बुराई में भी महिला अग्रणी भूमिका निभाती हैं। जिस पर पूर्ण ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विराम लगाना अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा महिला और पुरुष का पारंपरिक संतुलन बिगड़ जाएगा और लघुकथा की भांति प्रजनन रूपी ग्रंथ भी सिकुड़कर लघु रूप धारण कर लेगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सही मायने में देखें तो हिन्दी लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता बहुत है । महिलाएँ घर -बाहर तारतम्य बैठाये हर कार्य सहजता से कर रही हैं ।
इस दौरान बहुत नज़दीक से उन्हें समाज में फैले विसंगतियों का कुरूप चेहरा दिखता है । वर्तमान समय में समाज को बचाने व लोगों को अगाह करने का माध्यम लघुकथा है ।अपने  सुक्ष्म व पारदर्शी नज़रों से महिलाएँ इसे समाज के समक्ष लाने का बीड़ा उठा रहीं हैं । अत: लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाओं की उपयोगिता बहुत ही खास है ।
   - प्रतिभा सिंह 
राँची - झारखंड 
हरेक स्त्री प्रत्येक प्राणी और जीव की कर्मभूमि को बहुत नजदीक से देखती और महसूस करती है । वह संवेदना और सपनों दोनों में जीती है । उसके अंदर दर्द और आत्मियता एक ही स्थान रखते हैं । अतः हृदय से महसूस कर वह जिन शब्दों को ,लघुकथा के अंदर बाँधती है । वे  कभी बुराईयों पर हथौड़ों की तरह चोट करते हैं  और कभी अच्छाई को  नदी सदृश्य बहने का रास्ता बनाते हैं ।
जन्मदात्री को एक नये वातावरण को जन्म देने की चाहत होती है ।
आजकी महिला लघुकथाकार समाज को दर्पण दिखाने में सक्षम है । यही कारण है कि समाज के हर क्षेत्र को उजागर करके  वह अपनी लेखनी से लोगों को जागृत कर रही है । 
                          - कमला अग्रवाल 
                   गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
लघुकथा से आशय लघु और कथा के बीच एक रिक्त स्थान होता है l हिंदी साहित्य में यह एक नवीनतम विधा है, जिसकी संकेतत्मकता, बेधकता और अति कल्पना आदि विशेषताएं हैं l इनका आदि, मध्य और अंत नहीं होता है l
महिला साहित्यकार लघुकथा साहित्य सृजन में उपयोगिता की दृष्टि से मील का पत्थर है क्योंकि-
 1. महिला लघु साहित्यकार दो परिवारों को जोड़ने की एवं सामाजिक ताने बाने में समरसता की जन्म दाता, पोषण और सुरभित करने वाली इकाई है जो राष्ट्रीय एकता तक इस मुहीम को ले जा सकती है l
2. मानवीय समानता -लैंगिक विदरूपता के दावानल से समाज को उबारने वाली शक्ति है l महिला कथाकार एक कलमकार के रूप में जब डूब कर लिखती है तो भ्रूण हत्या,, दहेज प्रथा, व अन्य सामाजिक बुराइयों के प्रति सामाजिक संचेतना लाने में सक्षम है l
3. साहित्य का आधार ही जीवन है l दया, प्रेम, स्नेह, बन्धुत्व आदि भावों का सृजन, रक्षण, हस्तांतरण का दायित्व, निर्वहन महिला साहित्यकार भलीभांति करने में सक्षम होती है l विदरूप मानसिकता के शिकार पुरुष वर्ग ने नारी शक्ति पर तेजाब डाला है l
आज तक किसी महिला ने घृणित कार्य नहीं किया है l
4. महिला साहित्यकार भावनात्मक स्तर पर व्यक्ति और समाज को संस्कारित करती है और उसका युग चेतना से साक्षात्कार कराती है l
5. मानव को मानव से जोड़ने की कड़ी है वह l संवेदना और संवेदनविहीन साहित्य समाज को प्रभावित नहीं कर सकता है l नारी शक्ति का संवेदन पक्ष प्रबल होने से लघु कथा सृजन अमूल्य होता है l
मेरे दृष्टिकोण में महान साहित्य वही होगा जिसमें अनिभूति की तीव्रता और भावना का प्राब्लय होता है l इस कसौटी पर महिला लघु कथा साहित्यकार खरी उतरती है l अंत में महिला लघुकथा साहित्यकार को सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की रचनाकार कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l
             चलते चलते ----
महिला अत्याचारों ने आज सशक्तिकरण की आवश्यकता का प्रतिपादन किया l जिस देश में राम से पहले सीता, कृष्ण से पहले राधा है l "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" वाली भूमि पर सशक्तिकरण बड़ा ही विचारणीय प्रश्न है?
श्यामनारायण पाण्डेय की पंक्तियाँ मंच को समर्पित जो आज नारी हृदय पर दस्तक दे रही है -
थक गया यदि तू समर से
तो रक्षा का भार मुझे दे दे l
मैं रणचंडी सी बन जाऊँ
अपनी तलवार मुझे दे दे ll
अपनी तलवार मुझे दे दे..
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह अपनी बात कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक आकर्षक ढंग से कहे ! जीवन जितना तीव्रतर और सघन होते जा रहा है उतने ही टूकड़ो में बंटते जा रहा है और निश्चित रुप  से जीवन के लघुतम टूकड़े ही अपने अहसासों के तहत लघुकथा को जन्म देते हैं और इस बात को एक स्त्री ही सत्य कर सकती है कि लघुकथा को जन्म देने में महिलाओं की उपयोगिता सर्वश्रेष्ठ रही है ...!
लघुकथा में स्पष्टता और अनुभूति  इतनी घनीभूत होती है कि इसकी तीव्रता हमें बिजली के तार की भांति झटका दे जाती है ,हमारी चेतना को झकझोर देती है और यह अनुभूति महिलाएं ही अपनी आप बीती ,प्रताणना ,दया ,ममता करुणा, घर की चारदिवारी में अपने अधिकारों को तड़पति महिला , परित्यक्ता ,मर्यादा के नाम पर शोषण से आक्रांतिक 
महिला की अनुभूति ही इतनी तीव्र होती है कि वह कम से कम शब्दों में अपनी लेखनी से गागर में सागर भर देती है ! 
मानाकि संसार स्त्री पुरुष दोनों से चलता है !दोनों पूरक हैं किंतु स्त्री सहज ,सरल ,सौम्य होकर भी पुरुष से अधिक शक्तिशाली होते हुए भी मर्यादा में रहती हुई अपमानित होती है ! जब स्त्री की अंतर्आत्मा बोलती है तो ह्रदय चीर देती है !  लघुकथा में कथन मजबूत होना चाहिए जो उनकी लघुकथा में पूर्ण दृष्टिगोचर होता है ! 
प्रश्न यही है की महिला लघुकथाकारों की भूमिका की उपयोगिता क्या है तो मैं यही कहूंगी महिला सशक्तिकरण का जो यह दिन हम देख रहे हैं वह महिलाओ  की अपनी देन है ! कम शब्दों में , अपनी बात को चारदिवारी में रहकर भी उजागर करना ,अपनी क्षमताओं के बल पर आगे बढ़ना है !
 - चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
आज के समय में महिलाएं बढ़ चढ़कर लघुकथा लिखने में आगे आ रही है। दैनिक अनुभव और घटनाक्रम के अनुसार लघुकथा लिखने के लिए जनसाधारण के जीवन से विषय उपलब्ध हो जाता है जिसको वे लघु कथा के माध्यम से प्रेषित कर पाती हैं। किसी घटना विशेष को या वृत्तांत को संक्षिप्त रूप में कम समय में अभिव्यक्त करने का लघुकथा एक अच्छा माध्यम है जिसका महिला साहित्यकार लोग  सदुपयोग कर लेती हैं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर -मध्य प्रदेश
जैसा कि विषय है लघु कथाकार के रूप में महिला कथाकार की उपयोगिता।वर्तमान में ये बात सबके सामने इमानदारी से साबित हो रही है कि एक महिला रचनाकार की रचनाएं सामान्य व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर ज्यादा अच्छा प्रभाव छोड़ती हैं ।वो जीवन के किसी भी गंभीर विषय पर भी उस दर्द को महसूस कर ज्यादा जीवंतता के साथ लिखती हैं। चाहे वह रूप माँ बहन बेटी पत्नी या किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो। किसी व्यवसाय के क्षेत्र से आई हुई महिला लेखिका कदम कदम पर आई समाज व व्यवसाय के क्षेत्र की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उस विषय पर ज्यादा न्याय कर पाती है। पिछले कुछ समय से महिला लेखिकाओं का इस क्षेत्र में आना समाज के लिए प्रेरणा स्रोत साबित हो रहा है।
- अलका जैन आनंदी
मुम्बई - महाराष्ट्र
महिला लघुकथाकार  की भूमिका इसलिए विशेष है क्योंकि महिलाओं को अपनी भावनाओं  को कहानी के माध्यम से व्यक्त करने का सशक्त माध्यम लेखन के  रूप में मिल जाता है ।जिससे वे अपनी कल्पनाशीलता व अपने विचार अपनी सोच को कथा के जरिये समाज के सम्मुख व्यक्त कर सकती हैं ।अतः ये भी महिलाओं को जागरूक करने एवं उनके साथ न्याय दिलाने  समरूपता  लिंगभेद से मुक्ति का बहुत ही सशक्त  माध्यम है  ।
जो महिलाओं के लिए हितकर है और सम्मानजनक भी ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश


" मेरी दृष्टि में " महिलाएं लघुकथाकार अपनी समस्या व समाधान के लिए समय - समय पर अपनी लघुकथा में स्थान देती देती रहतीं हैं । जिससे लघुकथा साहित्य समृद्ध होता है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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