डॉ. विक्रम साराभाई स्मृति सम्मान - 2025

     इंसान को भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। हिम्मत से दुनियां का मुकाबला किया जा सकता है। और दुनिया से बहुत कुछ सिखा जा सकता है। दुनियां में ही सब कुछ है। परन्तु पहचाना अपना कर्म है। यही कुछ विषय जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का है। जिस पर चर्चा करते हुए , आयें विषय पर विचार करते हैं :-
।     इंसान की सोच में जब तक भाव नहीं आयेंगे ,इंसान दुनिया को देखता है ख़ुद नही रोता जब तक भाव प्रबल नहीं होते और कहता है मैं रोता नहीं हूँ ! इंसान दुख के भाव सबंधित व्यक्ति के क्रिया कलाप स्वभाव कौन किसके कितना नजदीक अंतरंगता बनाए रखता हैं ये सारी चीजे व्यवहार में आती है !और इंसान रोता है फिर बदला प्रारूप वातावरण देखता सोचता है भावनाओं पर सोच नियत्रण का विषय साहस पैदा करना है ! बढ़ते हुए युवा होते बच्चे आए दिन दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को देखते है !उनमे नकारात्मक भाव डर समा जाता है , वो पढ़ने कैरियर आगे बढ़ने वाहक चलाने ,परीक्षा फेल घबराते रोने लगते और गिल्ट इस कदर हावी हो गलत कदम उठा लेते है ।उन्हें समझाना होगा जीवन रोने जीने खुश रहने का हिस्सा है !तुम्हें तो जीवन में आगे बढ़ना है अपने लक्ष्य को पाना है । जीवंत लोगों के साथ साहस और बुद्धिमता से ध्यानपूर्वक अपना जीवन जीना है दुनिया ने बहुत कुछ दिया है सोच सकरात्मक होनी चाहिए 
दिव्यांग हमे सिखाते है -
मन की आँखों सुगंध आवाज से पहचान बताते है दुनिया ने बहुत कुछ दिया है !जिन्हें बोलना नही आतावो चुप ही रहते है आँखें बोलती है दर्द ए दिल जुबा चुप है ,जीवन संघर्षों की यही कहानी है कोई पाप है, तो सिर्फ वो ,अपने आपको या ,दूसरों को कमजोर मानना है।शब्द सृष्टि की रचना में अद्भुत सृंगार है कोरे कागज में उकेर अपनी पहचान बताती है ।जो जितना समझ गढ़ ले ।  लोग बदलते हैं पहचान बदलती हैं लिबास ऐनक बदलते हैं तन और मन बदलते हैं सोच की निखार से मन की पहचान होती हैं प्रकृति विश्वास की अमूल्य धरोहर है ।वृक्षों फूलों फलों से लदा सुन्दर जीवन दिव्य देव्य शक्ति की पहचान दुनियाने हमें बहुत कुछ दिया है शुक्रगुजार है 

       - अनिता शरद झा 

       रायपुर - छत्तीसगढ़

         मैं रोता नहीं हूँ सिर्फ दुनिया देखता हूं. सही में रोना नहीं चाहिए. रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं.दुनिया को देखकर ही संतोष करना चाहिए. दुनिया ने बहुत कुछ दिया है उसे सहेज कर रखने से जीवन पार लग जायेगा.  दुनिया में एक से एक गरीब और पैसे वाले हैं. उन्हें देख ईश्वर का शुक्रिया अदा करना चाहिए जो उनसे ज्यादा हमें दिए हैं. जितना दिए हैं उससे हमारा काम चल जाता है उनका कैसे चलता होगा जिनका हमसे कम है. पैसे वालों को देखकर भी हमें कम का रोना नहीं रोना है कि मुझे कम क्यों मिला. उसे ज्यादा मिला तो आपके किस काम का. इसलिए रोना नहीं चाहिए. बस दुनिया को देखते जाइए और अपना काम करते रहिए. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

       कलकत्ता - प. बंगाल 

          जब व्यक्ति खुश होता है तो विभिन्न तरीकों से खुशी प्रकट करता है , व रोने की बारी तब आती है जब वह दुखी होता है !! मैं रोने के बजाय दुनियां को समझती हूं , जानने का प्रयास करती हूं व परिस्थिति को संभालने का प्रयास करती हूं ! ऐसा इसलिए कि अब भली भांति समझ आ गया है कि दुनियां झूठों , फ़रेबियों , जालसाजों , से भरी है जो आस्तीन के सांप हैं , व बगल मैं छुरी वो मन मैं राम राम बोलते हैं!! इनके लिए रोने व्यर्थ है , व इनसे निपटने के उपाय ढूंढना आवश्यक है , जिससे आत्मसम्मान भी बना रहे और स्वाभिमान को भी ढेस न पहुंचे !!

      - नंदिता बाली 

    सोलन - हिमाचल प्रदेश

         अपने-आप से ऐसा कहलवा लेना कि   ' मैं रोता नहीं  हूं सिर्फ दुनिया देखता हूं, दुनिया ने बहुत कुछ दिया है। ' जीवन के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसका आशय यही कि जीवन की बारीकियों को समझ लेना। जीवन-मर्म को समझ लेना। जीवन-दर्शन को समझ लेना। मैं रोता नहीं हूं यानी अपने दुख और संघर्ष को लेकर अपने भाग्य को दोष नहीं देता। न घबराता हूं बल्कि हौसला और हिम्मत के साथ विषम परिस्थितियों से डटकर मुकाबला करते हुए, हल निकालकर जीवन को सही दिशा की ओर ले जाता हूं। अपनी गलती या असफलता के लिए   दुनिया यानी औरों पर भी दोष नहीं मढ़ता, बल्कि सकारात्मक सोच रखते हुए उन के प्रति आभार जताता हूं। आशय यह भी निकलता है कि गुणी हो जाना। धैर्यवान और साहसी हो जाना। संतोषी हो जाना।जीवन का उद्देश्य भी यही है कि बिना लोभ,मोह, स्वार्थ, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा के जीवनयापन करना ही उत्तम जीवन है और जिन्हें ऐसाआ गया, वह ही सफल जीवन है।

        - नरेन्द्र श्रीवास्तव

         गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       किसी ने कुछ सही कहा या ग़लत,  मैं किसी भी बात पर रोता नहीं, मुँह बनाता नहीं, बुरा मनाता नहीं। क्यों कि जो भी जिसने कहा वो उसकी अपनी सोच,  अपना व्यक्तिगत विचार था। हाँ उस पर मनन  करता हूँ ।यदि उससे कुछ सीखा जा सकता है तो अच्छी बात है । परंतु यदि उसने अपनी आदत के अनुसार कुछ भी कह दिया तो बुरा मानने की बजाय बात को वहीं छोड़ कर आगे बढ जाता हूँ। तटस्थ भाव से दुनिया देखने का मज़ा ही और है। हाँ, यह अवश्य सोचता हूँ कि इस व्यक्ति की मनोस्थिति कैसी रही होगी जो उसने इस प्रकार की बात की। आवश्यक नहीं की हर बात को दिल से लगाया जाए, उस पर समय व ऊर्जा बरबाद की जाए अथवा उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए।  इसमें कोई राय नहीं कि दुनिया ने बहुत कुछ दिया है, बहुत  कुछ सिखाया है। हम आज जो भी है वह दुनिया से अपने आदान प्रदान,  अपने अनुभवों के आधार पर ही हैं। इसलिए मैं किसी बात पर रोता नहीं सिर्फ़ दुनिया देखता हूँ और यक़ीनन दुनिया ने बहुत कुछ दिया है।

       - रेनू चौहान

          दिल्ली 

         "तासीर किसी भी दर्द की मीठी नहीं होती, गालिब वजह यह  है कि  आँसू भी नमकीन होते हैं" आज का रूख दुख दर्द की और  ले चलते हैं कि क्या कोई इंसान है जिसे दुख दर्द नहीं होता या ज्यूं कह  लेते हैं कि दुख दर्द हरेक के जीवन में आते हैं, कुछ लोग उनको बाँटने की कोशिश करते हैं, कुछ रोने, धोने में समय व्यतीत करते हैं और कुछ चुनौतियां समझ कर उन्हें हल करने का प्रयास करते हैं, यह भी सत्य है कि जिसको हम अपना दुखड़ा रो धो कर सुनाते हैं हो सकता है वो हम से भी दुखी हो, क्या वो हमारा हल कर सकता है, क्या रोना किसी समस्या का हल है, या दूनिया को देख कर, उनसे सीख लेकर आगे बढ़ने में भलाई है, मेरा मानना है कि दुख, सुख सिक्के दो पहलु हैं कभी दुख आता है और कभी सुख, इनका राग दूनिया के आगे गाने से कोई हल नहीं निकल सकता , हाँ  दूनिया को देख कर  चुनौतियों का सामना  करने से जो सीख मिलती है उससे हम विकसित हो सकते हैं, देखा जाए रोना सिर्फ भावनाओं और उदासी से जुड़ा होता है, और खुशी, गमी , क्रोध या अन्य भावनाओं से रोना आ जाता है लेकिन रोना ही समस्याओं का हल नहीं, क्योंकि जीवन में कई बार ऐसी मुसीबतें घेर लेती हैं जो हमें दुखी करती हैं लेकिन अगर हम उन समस्याओं को किसी के आगे रोने से अलग दृष्टिकोण से हल करने की कोशिश करें तो हमें  दूनिया दारी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, कौन हमारा साथ दे रहा है या देगा, कौन सुन कर हमारे दुख को बढ़ावा ही देना चाहता है अनेक सारी बातों का पता चलता है, यानि दूनिया से सीख मिलती है और वोही सीख हमें चुनौतियों का सामना करने के लिए  आगे की तरफ बढ़ाने का प्रयास करती है जिससे हमें  एहसास होता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, हर स्थिति अस्थायी है, सिर्फ दूनिया को देखने परखने का तरीका आना चाहिए और समस्याओं को चुनौतियों में बदलने का ढंग आना चाहिए फिर हमें किसी के आगे हाथ फैलाने या दुख दर्द सुनाने या रोने की जरूरत नहीं है, यह भी सत्य है कि दूनिया ने हमें बहुत कुछ दिया है, जिसमें जीवन का अनुभव, सुख, दुख के किस्से, नए रास्ते ढूँढने की प्रेरणा और आगे बढ़ने का मौका, कहने का भाव ठोकरों से सीख मिलती है जिससे नए रास्ते उभर कर आते हैं नई मंजिलें तय होती हैं और अनगिनत सपने हल हो सकते हैं बशर्ते हम  अपने दुखों या मुसीबतों का रोना धोना बंद करें, दूनिया को देखें, जाँचें परखें और उनसे सीख ले कर चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी समस्याओं का हल करें और सुखमय जीवन व्यतीत करें क्योंकि जब तक हम खुद प्रयास और अनुभव का ज्ञान हासिल नहीं कर लेते  हमें  कुछ भी हासिल नहीं हो सकता तभी तो कहा है, तेरा कोई साथ न दे तो, तू खुद से प्रीत जोड़ ले, बिछौना धरती को करके अरे आकाश  ओढ़ ले, है कौन सा इंसान जिसने दुख न झेला चल अकेला चल अकेला, कहने का भाव दुखों का समाधान करना ही हल है, रोना नहीं और दूनिया को देख कर उससे सीख लेना सबसे बड़ी चुन्नौती है। 

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

   जम्मू - जम्मू व कश्मीर

       मैं किसी भी व्यक्ति का एकांत में या लोगों के सामने रोना अपनी कमजोरी को अपने उपर हावी होना मानती हूँ। यह सही है कि हृदय में पीड़ा का एहसास दिलाने वाले भाव आंसुओं के माध्यम से प्रकट होते हैं। लेकिन वही हृदय मुझे हिम्मत, उत्साह और परिस्थितियों से लड़ने की सीख देता है। मैं रोने के बजाय दुनियाँ के भावों को समझने, उन पर प्रतिक्रिया देने के बारे ज्यादा अच्छा मानती हूँ। यह संसार सुख दुःख दोनों का घर है। व्यक्ति इसका सबसे बड़ा माध्यम है उसका हृदय अपने कर्मों और दूसरों के  क्रियाकलापों से कभी आनंदित, आहृलादित और कभी दुखी होता है। इन सब से हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। अतः समयानुसार दुनिया को समझना और प्रतिक्रिया देना आवश्यक है। हमें रोना नहीं है बल्कि दुनिया को भलीभाँति समझना है,इसी से हमें सुख दुःख की प्रतीति होती है। जीवन जीने की शिक्षा देती है। 

 ‌       - शीला सिंह

 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

   " मेरी दृष्टि में " रोने से कुछ नहीं होता है। बल्कि समस्या बढ़ जाती है। सिर्फ दुनियां ही सब-कुछ सिखती है। दुनियां से सिख कर , सभी समस्या का समाधान किया जा सकता है। फिर भी समाधान करने के लिए निष्पक्ष होना आवश्यक है।

       - बीजेन्द्र जैमिनी 

    (संपादन व संचालन)

Comments

  1. यहांँ रोने से बचना मतलब केवल आपकी भावनात्मक मजबूती नहीं बल्कि आपके भीतर की शांति और मजबूती की आवाज भी है।' दुनिया ने मुझको बहुत कुछ दिया'-यह दिखाता है कि आप अपनी यात्राओं से सीखे अनुभवों की कद्र करते हैं। आपने संवेदनशीलता से अपने प्राप्त अनुभव को आत्मसात किया है।
    - रमा बहेड
    हैदराबाद - तेलंगाना
    (WhatsApp ग्रुप से साभार)

    ReplyDelete
  2. दुनिया लेन-देन का कारोबार है- कहा जाता है जो *”जैसा कर्म करेगा वैसा फल पायेगा”* लेकिन कभी-कभी ऐसा होता नहीं है। कहा तो यह भी जाता है *”होम करते हाथ जलता है*” हम नेकी का ध्येय रखकर कुछ काम करते हैं फल में तिरस्कार भी मिल जाता है। गलतफहमी हल्की दरार को गहरी खाई में बदल देती है। ऐसे हालात में सिर्फ दुनिया को देखने का काम करना ही श्रेष्यकर होता है। अपनी मुस्कान बचाए रखना हर हाल में उचित होता है।
    - विभा रानी श्रीवास्तव
    पटना ‌- बिहार
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार)

    ReplyDelete
  3. "मैं रोता नहीं हूँ, सिर्फ दुनिया देखता हूँ। दुनिया ने मुझे बहुत कुछ दिया है" यह एक अद्भुत विचार धारा है जो दर्शाता है कि आप आने वाली हर विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने के पश्चात फिर से तैयार हो जाते है ।
    देख बहु विघ्न बाधा,
    वीर घबरातें नहीं
    ुरह भरोसे भाग्य के
    दुख भोग पछताते नहीं।


    जीवन के अनुभवों को स्वीकार करते हैं और उनसे सीखते हैं
    - जीवन में आई हर परिस्थिति को एक अवसर के रूप में वरण करते हैं हर पल ...,हर परिस्थिति .,...जीवन का सपना साकार कर सकते हैं।जिस से हर किसी को बहुत कुछ सीख मिल सकती है।
    ऐसे विचार- -दुख ,अवसाद और मृत्यु से परे .....अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं और जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखते हैं।
    (दुसरे ओर . रोने व झिकने वाले इंसान कुएँ के मेढ़क के समान रह जाते हैं )
    यह दृष्टिकोण जीवन में आगे बढ़ने और नई चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है। दुनिया को एक अवसर के रूप में देखकर नित नये लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
    रंजना हरित बिजनौर

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी