हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान - 2025

     मैं सिर्फ इंसान हूं। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं। परन्तु यह बात जरुरी नहीं है। मैं सब को पसंद आ जाऊं। यही कुछ परिचर्चा का विषय रखा गया है। जैमिनी अकादमी की चर्चा श्रृंखला से उत्पन्न विषय जीवन के क्षेत्र से लिये जातें हैं। चर्चा विषय के अनुकूल आयें विचारों को पेश करते हैं : -

      हाँ ! दोस्तों मैं इंसान हूँ, एक हाड़ मांस का पुतला. मैं पैसा नहीं हूँ जो सबको पसंद आ जाऊँ. पैसा सबको पसंद आता है, इंसान नहीं. क्योंकि इंसान के बिना काम चल जाएगा लेकिन पैसे के बिना नहीं.  पैसा फटा पुराना भी रहे तो उसकी क़ीमत कम नहीं होती. लेकिन इंसान अगर फटा पुराना हो तो उसकी क़ीमत कम हो  जाती है. वैसे इंसान की क़ीमत कमनी नहीं चाहिए लेकिन लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं कि जिस इंसान से कोई फायदा नहीं दिखता उस इंसान से लोग मुँह मोड़ लेते हैं. उनका स्वार्थ पूरा नहीं होता तो बात करना बंद कर देते हैं. वैसे बहुत जगहों पर पैसा भी काम नहीं आता है. इंसान ही काम आता है. फिर भी लोग नहीं समझते हैं. मैं खुद भुक्तभोगी हूँ जब मुझसे काम निकालना था तो रात दिन फोन करता था एक शख्स. जब काम हो गया तो मुझसे बात करना तो दूर अब फोन भी नहीं उठाता है. पहले मैं उसका पसंदीदा था अब नहीं हूँ. क्योंकि उसे हरदम किसी न किसी बहाने पैसे चाहिए. ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो पैसे के चलते आपको पसंद करेंगे. नहीं तो नहीं.  इंसान ईश्वर के बनाये हुए हैं. उसने जैसा बनाया सबको अच्छा ही बनाया.इंसान को उसके रूप से नहीं बल्कि उसके गुण से पसंद और नापसंद होनी चाहिए. पैसा इंसान का बनाया हुआ है जो आज है कल नहीं. दोस्तों इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं इंसान हूँ पैसा नहीं जो सबकों पसंद आऊँ. 

 ‌- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

   कलकत्ता - प. बंगाल 

     मैं सबको पसंद नहीं आ सकती क्योंकि मुझमें कुछ ऐसे गुण निहित हैं जो सबको पसंद नहीं आ सकते !! मैं ईमानदार हूं इसलिए बेईमानों , भ्रष्टाचारियों को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती ! मैं स्पष्टवकता हूं इसलिए बातों को घुमा फिराकर करनेवालों को पसंद नहीं आ सकती !! मैं मेहनती हूं इसलिए कामचोरों को पसंद नहीं आती !! मैं अपने काम से काम रखती हूं , यहां वहां की बातें , चुगलियां नहीं करती इसलिए इस प्रकार के लोग भी मुझे पसंद नहीं करते !!मैं दूसरों के काम में दखल देना पसंद नहीं करती इसलिए इस प्रकार के लोग मुझे पसंद नहीं करते !!मैं तो यह कहना चाहती हूं कि अपने किरदार को किसी को प्रसन्न करने के लिए न बदलो , आप जैसे हैं , वैसे ही रहो , चाहे कोई आपको पसंद करे या नापसंद !!

     - नंदिता बाली 

  सोलन - हिमाचल प्रदेश

     यह बात सही है कि एक व्यक्ति सभी को पसंद नहीं आ सकता। इसकी मूल वजह यह है कि सभी के स्वभाव और विचार अलग-अलग होते हैं। किसी  में  कोई अच्छाई होती है तो कोई बुराई भी होती है। ऐसा हरेक में होता है। ऐसे में किसे,  कौन विचार अथवा स्वभाव वाला पसंद आ जाए या न आए, कहा नहीं जा सकता और इसमें कोई बंधन भी नहीं। दिल मिले की प्रीत है। हाँ,  इतना जरूर है कि हरेक, किसी न किसी का खास जरूर होता है। किसी को कोई बहुत पसंद करता है और कोई बिल्कुल भी नहीं। जहाँ तक पैसों वाली बात है तो यह मानकर चलें कि पैसा और दोस्त में बहुत अंतर होता है। पैसों में पसंद - नापसंद का सवाल ही नहीं उठता। यह जरूरत की चीज है। इसलिए इसे सभी पसंद करते हैं।  दूसरा यह कि इंसान में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से स्वार्थ भी छिपा होता है। परिस्थितियाँ भी निहित होती हैं। अत: अपने-आप को यह समझाना या अपने विषय में औरों को यह जतलाना  कि *मैं इंसान हूं पैसा नहीं जो सब को पसंद आ जाऊ* साहस और स्पष्टवादिता तो है ही,  उचित और सही भी है।     

    - नरेन्द्र श्रीवास्तव

  गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

    जी हाँ एक इंसान ही हैं जिसका हर किसी को खुश करना या पसंद आना असंभव है। परंतु पैसा एक ऐसी चीज है जो हर एक को पसंद आ जाता है पैसे को कोई कीचड़ में से भी उठा लेता है और पैसे से ही कोई व्यक्ति गलत से गलत काम और रिश्वत देकर अच्छे से अच्छा काम भी कर सकता है क्योंकि पैसा एक ऐसी चीज है जो जिसमें सोचने समझने की शक्ति ,भावनाओं जैसी कोई बात नहीं होती।पैसा अच्छे -बुरे दोनों के पास रहकर उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ होता है । कहावत भी है कि फलाने का खोटा सिक्का भी चल गया।  परन्तु मनुष्यों की अलग-अलग आदत पसंद, विचार और व्यक्तित्व होते हैं, और हर कोई आपकी तरह नहीं सोच सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य अपने आप को खुश रखें और अपने मूल्यों और सिद्धांतों के अनुसार जीने की कोशिश करें। अगर कुछ लोग आपको पसंद नहीं करते हैं, तो यह आपकी योग्यता या मूल्य को नहीं दर्शाता है। बल्कि उन कुछ लोगों की सोच को दर्शाता है अपने आप को स्वीकार करना और अपने आप पर गर्व करना बहुत महत्वपूर्ण है।

          - रंजना हरित 

       बिजनौर - उत्तर प्रदेश 

     आज वर्तमान परिदृश्य में सबसे बड़ा पैसा ही हो गया है। अगर आपके पास पैसा है, तो इज्जत है, नहीं तो कोई पूछने वाला कोई नहीं है। सबसे बड़ा उदाहरण  राजनीति परिवेश में देखने को मिल रहा है, परिवार जनों के बैंक खाते में पैसा पहुंच रहा है, अगर जिस दिन बैंक में भेजना बन्द कर देयेंगे तो सत्ता गई। दहेज प्रथा, विकास कार्य, मन चाहा स्थानांतरण, पदोन्नति, चुनाव में टिकट वितरण, फिर मंत्री, स्कूल में प्रवेश, खान-पान रीती-रिवाज, पहले खाने के बाद पैसे देते थे, अब खाने के पहले कूपन लो, कई बार खा-पीकर खिसके होता था। आदि-आदि में देख लीजिए। अब तो हाथ/जेब से पैसा गया, अब पे-फोन देख लीजिए।  याने मैं इंसान हूँ पैसा नहीं जो सब को पसंद आ जाऊं यथार्थ यही कहता है....?

-‌ आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

       बालाघाट - मध्यप्रदेश

       किसी का, किसी ख़ास को ही पसन्द आने का कारण होता है या यूँ कहें आधार होता। कहा ही गया है,  ’जिसका जैसा चरित्र होगा, उसका वैसा मित्र होगा’! चापलूसी पसन्द करने वालों को खरी-खरी बोलने वाले पसन्द नहीं आ सकते। आज के साहित्य समाज में ही देख लिया जाए तो अनेक मठाधीश हैं जो अपना कुनबा बना रखा है और विधाओं को रसातल में पहुँचाने में जुटे हुए हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को ईमानदार व्यक्ति पसन्द नहीं आ सकता है! कान के कच्चे व्यक्ति को चुग़ली करने वाले व्यक्ति पसन्द आते हैं!  स्वार्थी व्यक्ति को निस्वार्थ व्यक्ति पागल नज़र आता है। अहंकारी (उसे पता ही नहीं होता कि उसे किसी बात का अंहकार है) को सरल-सहज व्यक्ति मूर्ख लगता है।  पूर्वाग्रह में लिप्त व्यक्ति को सही कार्य करने वाला व्यक्ति भी ग़लत लग जाता है-भला कैसे पसन्द आए- अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं

    - विभा रानी श्रीवास्तव 

           पटना - बिहार 

     इज्जत पैसे की होती है,  आदमी की नहीं, अगर कोई पूछता है कि आप क्या करते हो तो समझ लेना वो यह जानना चाहता है कि  उसको  आपको कितनी इज्जत देनी चाहिए, देखा जाए आजकल इंसान  को इंसान पसंद कम आता है या ज्यों कह लें कि इंसान की इज्जत उसकी हैसियत देख कर की जाती है, उसके गुण देख कर कम अगर एक गरीब पढ़ा लिखा, ईमानदार, सच्चा , सुथरा इंसान  और एक अमीर यानि धन दौलत व झूठा फरेबी  इंसान के साथ गुजर रहा हो लोग ज्यादा पसंद धन दौलत और तेज छवि वाले इंसान को करेंगे क्योंकि आजकल के जमाने में पैसे की कदर  इंसान से ज्यादा आँकी जाती है, सच भी है जिसके पास गाड़ी बंगला, रहन सहन अच्छा है उससे लोगों को हजारों  फायदे मिल सकते हैं लेकिन जिसके पास असली दौलत है, यानि जिसके पास  इंसानियत के गुण हैं उसके गुणों की कदर कम आँकी जाती है क्योंकि उसका लिमिटेड दायरा होता है, बातचीत साफ सुथरी होती है छल कपट नहीं होता लेकिन बुद्धि तेज होती है जो सभी को पसंद नहीं आती, जो अपने असुलों  में जीता है, और दुसरों की भलाई के लिए  कार्य करता है  उसकी टीका टिप्पणी सभी करते हैं, लेकिन पैसे वाले को कोई नहीं पूछता जो चाहे करे, इसका मुख्य कारण है कि पैसे से भौतिक सुख सुविधाएं मिलती है और,समाज में प्रतिष्ठा मिलती  है, जीवन आरामदायक बनता है इसी कारण लोग पैसे के पीछे भागते हैं, अन्त में यही कहुँगा कि इंसान  और पैसा दोनों की अपनी अपनी  जरूरत है लेकिन लम्वे  समय की  खुशी और संतोष के लिए इंसान की जरूरत ज्यादा है इसलिए हमें इंसान को  ही महत्व देना चाहिए न कि पैसे को सच कहा है, इंसान से हो इंसान का भाईचारा यही इल्जाम हमारा, इंसान ही इंसान के काम आता है इसलिए हे बन्दे इंसान को पहचान, यही कहुँगा,  समझेगा यहाँ आदमी को कौन आदमी, बँदा यहाँ खुदा को खुदा मानता नहीं, लेकिन हम इंसान हैं हमें इंसान की कदर करना आनी चाहिए, क्योंकि संभल संभल के चलो एहतियात से पहनो बड़े नसीब से मिलता है आदमी का लिबास। 

     - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

       जम्मू - जम्मू व कश्मीर

      हर इंसान की अपनी- अपनी आदतें होती हैं, कुछ कमियां होती हैं और कुछ खूबियां होती हैं जो कभी भी एक दूसरे से मेल नहीं खाती। हर घर में, परिवार में, समाज में, राष्ट्र में व्यक्ति चाहता है कि जैसा मैं हूं, दूसरे भी वैसा ही करें। जैसा मेरा स्वभाव है दूसरे का वैसा ही हो, तो ऐसा नामुमकिन है। बस इसी कारण से अक्सर लोग एक दूसरे को पसंद नहीं करते, भले ही रिश्ते निभाते हैं पर मजबूरी के कारण क्योंकि हर व्यक्ति एक दूसरे का पूरक होता है। बस ऐसे में बस सिर्फ एक पैसा है जो सबको पसंद आता है भले ही चंद व्यक्तित्व, व्यक्ति के सिर्फ व्यवहार और इन्सानियत को देखते हैं, पैसे को नहीं फिर भी दुनिया में पैसा सबसे बड़ी चीज़ है। पैसे से हर काम निकलवाया जा सकता है। पैसे से कुछ भी खरीदा जा सकता है। भीतर की बातें सभी लोग समझते हैं। लोग लक्ष्मी को ज्यादा, नारायण को कम पूजते हैं। इसीलिए जिनके पास पैसा होता है उनसे सभी दोस्ती करने को तत्पर रहते हैं। लोगों का भ्रम होता है कि पैसे वाले लोग हमारे काम आएंगे। जब कि जरूरतमंद व्यक्ति आपके कभी ना कभी अवश्य काम आ जाएगा लेकिन पैसे वाला आपके काम नहीं आएगा। वे सिर्फ दिखावे के दोस्त होते हैं आपका कभी काम नहीं करते।सही कहा आपने आदरणीय, मैं इंसान हूं पैसा नहीं जो सबको पसंद आ जाऊं।

   - डॉ. संतोष गर्ग ' तोष '

   पंचकूला - हरियाणा 

    आपने लिखा है कि मैं इंसान हूं अर्थात् वैसे ही आपके दुश्मन ज्यादा होंगे क्योंकि मनुष्य में और इंसान में कुछ बुनियादी फर्क होते हैं। इसीलिए इंसान को पसंद करने वालों की संख्या कम ही होती है। अब रही बात पैसे की, तो पैसे को भगवान नंबर 2 यूं ही नहीं कहा जाता है। भगवान के आशीर्वाद के बाद यदि कोई चीज काम आती है तो वह पैसा है।सब पूछते हैं आप कैसे हैं ❓
जब तक आपकी जेब में पैसे हैं।

       - संजीव दीपक 

     धामपुर - उत्तर प्रदेश 

     दोस्तों में सबसे महत्वपूर्ण विश्वास सच्चाई मानवता प्रमुख है जिसे पैसे से आँका नहीं जाता व्यवहार आचरण परख जरूरी जिसके पास ये सारी चीजे उपलब्ध होती है वो इंसान कहता है मैं पैसा नहीं । सबकी पसंद बनने में न्याय की तराज़ू में तौल अमानवीय गुणों का नाश मानवीय गुणों का संचार होना चाहिए तभी इंसान कहता है मैं पैसा नहीं सबकी पसंद बन जाऊँ सबके सुख दुख का ख्याल रख उसके और अपने व्यक्तित्व में निखार लाऊँ । बदलते समय ख़ान पान परिवेश विलासिता मानवीयता का ध्यान रख निर्णय हमेशा स्वाद बुद्धि परख के अनुसार होनी चाहिए ! इंसान अपनी बात इंसानियत से  जीत निर्णय कर आगे बढ़ने की है 

‌  - अनिता शरद झा

 रायपुर - छत्तीसगढ़ 

 " मेरी दृष्टि में " पैसा सभी को पसंद आता है। परन्तु इंसान के साथ ऐसा नहीं होता है। यही परिचर्चा का विषय अवश्य हैं जो जीवन की व्याख्या करता है। फिर भी इंसान की सोच पर निर्भर करता है। वह किस को किस तरह लेता है। 

        ‌  - बीजेन्द्र जैमिनी 

       (संपादन व संचालन)


Comments

  1. आज के आर्थिक दौर में पैसों की काफ़ी अहमियत बढ़ गई है। इंसान पैसों के आगे रिश्तों को भूलते जा रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए।पैसा अधिक लोगों को पसंद है।इंसान सभी को पसंद नहीं है। सच्चाई यह है कि इंसान सर्वश्रेष्ठ होता है।इनके गुण एवं कीर्ति पूजनीय होते हैं।
    _दुर्गेश मोहन
    बिहटा, पटना (बिहार)
    (WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  2. आपने बहुत अच्छा विषय चुना आदरणीय, सचमुच पैसे वाले को हर कोई पसंद करता है इंसानियत को नहीं। बहुत-बहुत बधाई आदरणीय दिनेश जी को सम्मानित होने पर। शुभकामनाएं 🙏😊

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी