डॉ. शिवमंगल सिंह ' सुमन ' स्मृति सम्मान - 2025
दोस्त दो प्रकार के होते हैं- एक दोस्त ,वह होता है जो अपने मित्र को उत्कृष्ट रास्ता की ओर ले जाता है और दूसरा दोस्त ,वह होता है जो अपने मित्र को गर्त में ले जाता है।दोस्ती पहचान कर करनी चाहिए। चाय की दुकान या कॉफी हाउस में ढेर सारे मित्र बन जाएंगे ,लेकिन सच्चा दोस्त वही होता है जब आप किसी रिश्तेदार की लाश जलाते हो उस वक्त घाट पर खड़ा होता है या आप जेल में हो ,उस वक्त संकट घड़ी में आपसे मिलता हो।
- डॉ.सुधांशु कुमार चक्रवर्ती
हाजीपुर - बिहार
दोस्त आजकल दुश्मन की लाइन में खड़े मिल जाते हैं ! आजकल दोस्त तब तक दोस्त होते हैं , जब तक मतलब होता है ....मतलब निकलने के बाद पहचानते तक नहीं !आजकल के दोस्त मौका परस्त होते हैं , जो निज स्वार्थ हेतु दुश्मन के खेमें में पहुंच जाते हैं ! फर्क इतना है कि कोई खुल कर बेशर्मी से खिलाफत करते हैं , व कोई चोरी छिपे !असली दोस्त वो होता है जो दोस्ती निभाए व दोस्ती की खातिर , दोस्त के हर मुश्किल समय मैं साथ दे!! असली दोस्ती बहुत कम मिलती है देखने को !
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
दोस्ती एक अटूट रिश्ता है, जो अजर-अमर होता है। नाराजी हो सकती है, मगर नफरत कभी नहीं। क्योंकि दोस्ती प्रेम से शुरू होती है।यह भी अपने-आप में चमत्कार और विशेष है कि सभी रिश्ते पारिवारिक और निर्धारित होते हैं, परंतु दोस्ती का रिश्ता ही अलग होता है। दोस्ती की यही तो विशेषता है कि वह न कभी दुश्मन की लाइन में खड़ा होगा और न कभी नुकसान पहुंचाएगा। कभी-कभी ऐसा हो जेता है कि किसी बात को लेकर अनबन हो जाती है। परंतु इसके बावजूद भी वह जरूरत पर एवं मुश्किल आने पर सदैव सहयोग के लिए तत्पर रहेगा। साथ निभाएगा। दोस्ती की मिसाल इसलिए ही दी जाती हैं। कुछ विशेष तो है इस रिश्ते में जो अन्य में नहीं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
"दोस्ती"जीवन के सबसे विश्वसनीय और संवेदनशील रिश्तों में से एक है। लेकिन इस रिश्ते की असली परीक्षा तब होती है जब हालात कठिन हो जाते हैं और आपसी मतभेद सामने आते हैं। ऐसे में जो व्यक्ति पीठ पीछे वार करता है या दुश्मन की पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है, वह कभी सच्चा मित्र नहीं हो सकता। सच्चा दोस्त भले ही किसी बात पर असहमति रखे, दोस्ती समाप्त भी हो जाए, फिर भी वह विरोध की मर्यादा नहीं लांघता। मित्रता का अर्थ सिर्फ साथ हँसने या समय बिताने तक सीमित नहीं होता, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी गरिमा बनाए रखने से होता है। अगर रिश्ता समाप्त हो जाए तो भी एक सच्चा मित्र आपके सम्मान की रक्षा करता है और आपके खिलाफ खड़ा नहीं होता। जो सामने होकर भी पीठ पीछे चुप रहता है, वही सच्चे मित्र की निशानी है।इसलिए, असली दोस्ती का मतलब है कि चाहे कितना भी अलगाव हो पर दोस्त के प्रति वफ़ादारी रहे। वैसे आजकल कलयुग मे सच्चे दोस्त का मिलना बहुत मुश्किल है फिर भी जीवन कोई ना कोई एक ऐसा दोस्त होता ही है जिस पर हम एतवार कर सकते हैं।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे -ऐसे अनेक गीत दोस्ती पर मिल जाएंगे। वास्तव में दोस्ती शब्द ही ऐसा है जिसमें समाया है विश्वास, भरोसा और समर्पण। खुशी हो या ग़म, दोस्त हमेशा साथ खड़े मिलते है। अनबन होने पर भी सच्चा दोस्त कभी अहित ना कर सकता है ना सोच सकता है। आवश्यकता है बस सच्चा दोस्त पहचानने की। कुछ लोग नकली दोस्ती करके दगा भी कर जाते हैं।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
सच्चा दोस्त वह होता है जो हमें हमसे बेहतर जानता हो, जो हमारी हमसे पहचान कराए, जिसे हम पर हमसे ज्यादा विश्वास हो, जो हर राह में हमारे साथ खड़ा हो, राह गर कठिन हो तो उसपर चलने की हिम्मत दे। ऐसे दोस्त का दुश्मनी की राह पर जाना क्या, जाने की सोचना भी नामुमकिन है। वह तो हमारी राह में आये मुसीबतों, तकलीफों, दु:ख-दर्दों रूपी दुश्मनों के सामने हमारी ढाल बनकर खड़े रहने का माद्दा रखता है। हम भले ही अपनी नासमझी, नादानी, गलतफहमी के चलते उससे दोस्ती तोड़ने का ख्याल मन में ले आये लेकिन वह दोस्त ऐसे विचार से अपना मन कभी मैला नहीं होने देगा।- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
"सुदामा ने श्री कृष्ण जी से पूछा कि दोस्ती का मतलब क्या होता है, कृष्ण जी ने हँस कर कहा, यहाँ मतलब होता है बहाँ दोस्ती कहाँ होती है", कितना गहरा अर्थ है, अगर ध्यान से सोच कर अमल किया जाए तो ऐसा लगता है कि दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता ही नहीं होता लेकिन बात उस समय चुभती है जब दोस्ती के साथ असली दोस्त लिखा जाता है, कहने का भाव नकली दोस्त कौन होता है, जब नकली अर्थ को जोड़ा जाए तो दोस्त शब्द जु़ड़ ही नहीं सकता खैर आजकल कलयुग में हर बात संभव हो सकती है लेकिन मेरे ख्याल में दोस्ती, दो लोगों के बीच स्नेहपूर्ण और विश्वास के जुड़ने को कहा जाता है, अगर असली को भी जोड़ लिया जाए तो भी दोस्ती का मुल्य कम नहीं आँका जा सकता तो आईऐ बात करते हैं कि असली दोस्त कभी दुश्मन की लाइन में खड़ा होता है, चाहे दोस्ती टूट चुकी हो, मेरा मानना है कि अगर दोस्ती है तो टूटना न मुमकिन है और अगर असली दोस्ती है तो टूटने तक नौबत नहीं आती क्योंकि दोस्त को मरते दम तक यकीन होता है कि दोस्त है मनाने जरूर आयेगा या आयेगी क्योंकि दोस्ती का मतलब ही एक मजबूत , भरोसेमंद और स्थायी रिश्ता होता है जो आपसी प्रेम, सम्मान, भाईचारे के समर्थन के बंधन में हमेशा हमेशा के लिए बँधा रहता है, जैसे, द्रौपदी कृष्ण जी का बंधन, मीरा कृष्ण जी का रिश्ता, अर्जुन कृष्ण जी का रिश्ता, कर्ण, दुर्योधन का रिश्ता या ऱाधा कृष्ण जी के बंधन की बात करें, कृष्ण जी, सुदामा की बात की जाए तो सुनने को या पड़ने को यही मिला की दोस्ती के रिश्ते हर पल हर घड़ी गमी खुशी में साथ निभाते दिखाई दिए, चाहे द्रौपदी चीर हरण की बात हो, सुदामा कि दरिद्रता की बात हो दोस्ती में उँच नीच अपना पराया कभी टिक ही नहीं सकता , हाँ अगर मन मुटाब हो भी जाए तो अच्छे दोस्त कभी नहीं रूठते और आखिरकार फिर से समझौता कर लेते हैं जिससे साबित होता है कि जिगरी दोस्त कभी दुश्मन की लाइन में खड़े नहीं दिखते, हाँ सामने जरूर दिखेंगे कि कब मेरी जरूरत दोस्त को पड़े और मैं मदद कर सकूँ बशर्ते दोनों एक दुसरे की झलक के प्यासे हों क्योंकि दोस्त ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं आत्मविश्वास बढ़ाते हैं, ईमानदारी और बिना शर्त प्यार देते हैं, यह मत भूलें कि दोस्ती में विश्वास, समर्थन और आपसी समझ कूट कूट कर भरी होती है इसलिए असली दोस्त या सच्चा मित्र अपने दोस्त का विश्वासघात कभी नहीं कर सकता भले ही कितना मुश्किल समय हो वो कभी भी स्वार्थी नहीं हो सकता इसलिए कि दोस्त एक दुसरे कि भावनाओं का सम्मान करते हैं और एक दुसरे के प्रति सहानुभूति रखते हैं और एक दुसरे की गलतियों को माफ करने के लिए तैयार रहते हैं, अन्त में यही कहुँगा कि एक सच्चा दोस्त नाकारात्मक भावनाओं से दूर रहता है और दोस्त को नाकारात्मका से बचाने की कोशिश करता है, दोस्ती एक सकारात्मक और सहायक रिश्ता है जबकि दुश्मनी एक नाकारात्मक और विनाशकारी रिश्ता है इसलिए एक सच्चा दोस्त कभी भी दुश्मन की लाइन में खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि वो अपने दोस्त के प्रति वफादार और समर्पित होता है, सत्य है कृष्ण, सुदामा मित्रता देखे न हालात, चरण आँसूओं से धुल गए, देखे बस जज्बात।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
असली दोस्त कभी दुश्मन की लाइन में खड़ा नहीं होता है। दोस्त यानी समान रुचियाँ, विश्वास, ईमानदारी, आपसी सम्मान पर आधारित एक घनिष्ठ रिश्ता में बँधें जो एक-दूसरे की परवाह करते हैं और एक-दूसरे का साथ देते हैं के रिश्ते में किसी वजह से दरार आ भी गई तो दोस्ती बेसक टूट जाएँ फिर भी सामने खड़ा नजर आता है। दो दोस्त अलग होकर रहेंगे भी तो एक जैसे ही। अगर एक जैसे नहीं रह गए तो उनमें कभी दोस्ती का रिश्ता रहा ही नहीं था। कोई एक गलतफहमी में जी रहा था और कोई एक मुखौटा ओढ़े शैतान बनकर
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
एक कहावत चरित्रार्थ है, दोस्त से बढ़कर दोस्ती नहीं और जब एक समय आता है, दुश्मन भी नहीं। श्रीकृष्ण और अर्जुन की दोस्ती, रिश्तेदारी, श्रीकृष्ण और सुदामा का यथार्थवादी झलकता है। साथ ही दुर्योधन और कर्ण की दोस्ती का इतिहास साक्षी है। दोस्ती पर फिल्मांकन हुआ दोस्ती-दुश्मनी चित्रांकन। जरुरी नहीं केवल पुरुष-पुरुष में ही दोस्ती देखी हो, परंतु पुरुष-महिला में भी दोस्ती-दुश्मनी का प्रत्यक्ष उदाहरण भी मिलता है। दोस्त-दोस्त में शंका का भाव भी आया है। कभी-कभी देखने में आता है, दुश्मनी होने उपरान्त भी अतुत बंधन होता है, दोस्ती का.....?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
असली दोस्त कभी दुश्मन के लाइन में नहीं खड़ा होता है परंतु समय आने पर सारी लकीर की धार बन दोस्ती की लाइन बढ़ाता है उसके आगे या पीछे कोई लाइन बड़ी या छोटी नहीं करता दोस्ती की प्रगाढ़ता की लाइन को चमकते चमकाना जानता है दोस्ती छीनी हथौड़ी है की तरह मूर्ति को आकार दे प्रतिस्पर्धा की ढोड़ में शामिल तो होता है पर ख्याति दोस्त को ही दिला सुकून पाता है जिसका दिल ऊपर से नारियल की तरह कठोर अंदर से मलाई की तरह मीठा होता है ! दोस्ती जीवन के हर लाइन पर होती है पर विश्वास भरोसे की एक ही लाइन होती दोस्ती बेशक टूट जाए फिर भी सामने खड़ा नजर आता है हो गया विश्वास ।तेरी नगरी में आ सफ़र जीवन हम गुलजार करते है तुझे तेरी मंजिल पकड़ा हम कामयाब होंगे ,मेरे घर के हर रास्ते तेरे नाम करता हूँ तू जल्दी आ मेरे दोस्त घर मैं इनायत तेरी दिन रात करता हूँ !रखे तोहफ़े इस दिल में छुपा के ये दोस्ती मैं तेरे नाम करता हूँ !शंकाओं का निराकरण लाभ हानि स्वार्थ रहित होकर करता है सच्चा दोस्त अपनी दोस्ती क़ायम रहता भला ही सोचता हूँ ।दोस्ती बेसक टूट जाए फिर भी सामने खड़ा नजर आता हूँ ।कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कब कोई कहाँ क्या सोचता है अच्छे विचार रखता उसे लाइन की परवाह नहीं करता हर लाइन पर तेरा ही नाम लिखता हूँ ! गर तेरा साथ है तो तेरी हाथों की लकीरों पर भरोसा कर तूफ़ानों से जंग लड़ साहिल नौका पकड़ तेरे दर किनारा चाहता हूँ ! ये लेख दोस्ती के नाम कर जीवन मुक्त हो जाना चाहता हूँ! दोस्त कभी दुश्मन के लाइन में नहीं खड़ी होती है ! जब खुलती आँखे सामने खड़े नजर आती है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
ये बात सत्य है कि असली दोस्त कभी दुश्मन की लाईन में खड़ा नहीं होता है. मग़र कभी कभी ऐसा भी हो जाता है. आजकल लोग स्वार्थी हो गए हैं. सच्चा दोस्त मिलना मुश्किल हो गया है. स्वार्थ जबतक पूरा होता है तबतक दोस्ती निभाता है. ज्यों स्वार्थ पूरा हुआ दोस्ती भी खत्म हो जाती है. आजकल की दोस्ती स्वार्थ के नीव पर ही बनतीं है. कुछ दोस्त ऐसे भी हैं जो दोस्ती टूटने के बाद भी दुश्मन नहीं बनते हैं. भले दोस्त के साथ खड़े न हो पर उसका कोई नुकसान नहीं करते या नुकसान जे बारे में सोचते भी नहीं. मेरा एक दोस्त था जिसे एक व्यक्ति ने कुछ उल्टा पलटा समझा कर विभेद डाल दिया. लेकिन हम दोनों कभी किसी का नुकसान नहीं किया. एक दूसरे के विरुद्ध कभी कुछ नहीं किया. दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना था. वो दूर चला गया है, एक बार मिलने की सोच रहा हूँ. वो दोस्ती ही क्या जो दूसरों के बहकावे में आ के टूट जाय. जिस दोस्ती में त्याग होता है वह ज्यादा दिन तक चलती है. वैसे तो महाभारत में दुर्योधन और कर्ण की दोस्ती की मिशाल दी जाती थी जो अंत तक निभाई गई. लेकिन वो एहसान के बदले दोस्ती थी. जिसमें समर्पण और बलिदान था. सुग्रीव और राम की दोस्ती भी समझौते वाली थी,दोनों का अपना- अपना मतलब था. इस तरह की दोस्ती खूब निभ जाती है. भारत और रूस की दोस्ती भी अटूट थी और है.आगे भी रहेगी. चाहे अमेरिका कितना भी डोर काटने की चेष्टा करे. दोनों कभी एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकते हैं. बीच में अमेरिका दोस्त हुआ था लेकिन उसका अपना मतलब था, मतलब सिद्ध दोस्ती खत्म. अपना स्वार्थ हावी. इस तरह से हम कह सकते हैं कि असली दोस्त दुश्मन की लाइन में खड़ा नहीं हो सकता है. बेशक दोस्ती टूट जाय.
- दिनेश चंद्र प्रसाद ' अकेला '
कलकत्ता - पं. बंगाल
"मेरी दृष्टि में" दोस्त की परिभाषा अनेंक हो सकती है परन्तु सच्चाई से वास्ता करवाता हूं । शायद मैं उस समय सातवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल से आ रहा था। रास्ते में मेरा साथी पूनम ( वास्तव में ये लकड़ा है) काफी जख्मी होने के कारण गिरा पड़ा था। उसे उठा कर पास के डाक्टर के पास ले गया। मेरी जेब में सिर्फ पचास पैसे ही थे । डाक्टर ने पचास पैसे में ही इलाज कर दिया। मैं उस पूनम को उसके घर छोड़कर अपने घर चला गया। अगले दिन पूनम के पिता स्कूल में आकर प्रिंसिपल से मिले। मुझे क्लास रूम से बुलवाया। पूनम ने मेरे ऊपर आरोप लगा दिया। इसी ने मेरा सिर फोड़ा है।
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