सभी नियम हर जगह लागूं नहीं होते हैं। यह जीवन के क्षेत्र में देखा जा सकता है । जैसा चर्चा परिचर्चा के शीर्षक में दिखाया गया है । जैमिनी अकादमी की श्रृंखला में देख सकते हैं कि जीवन सरल भी है और कठिन भी बहुत अधिक है। यही जीवन की सच्चाई है। बाकि आयें विचारों को देखते हैं :- किसी भी चीज़ को चमकाने के लिए उससे तेज चीज़ की जरूरत होती है. ये बात सत्य है कि हीरे से हीरे को चमकाया जा सकता है लेकिन कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं किया जा सकता है. कीचड़ को साफ करने के लिए तेज धार से पानी डालना पड़ेगा तब कीचड़ साफ होगा. हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है यानी एक अच्छाई को उससे बेहतर अच्छाई कर के उसे धूमिल किया जा सकता है. लेकिन उसी तरह एक बुराई को दूसरे बुराई से दूर नहीं किया जा सकता है. उसके लिए अच्छाई की ही जरूरत पड़ती है. कीचड़ को कीचड़ से साफ करने में कीचड़ और गहरा होता जाएगा. मगर साफ नहीं होगा. लेकिन पहले का तराशा हुआ हीरा बिना तराशे हीरे को तराश सकता है. इसलिए वह मूल्यवान कहलाता है जबकि कीचड़ का कोई मूल्य नहीं होता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
जीवन का सत्य यही है कि अच्छाई की पहचान और निखार अच्छाई से ही संभव है। जैसे हीरे की चमक को बढ़ाने के लिए दूसरा हीरा आवश्यक होता है, उसी प्रकार श्रेष्ठ गुणों का निर्माण भी श्रेष्ठ संगति और उत्तम विचारों से होता है। इसके विपरीत, कीचड़ का अस्तित्व केवल गंदगी फैलाना है; उससे किसी को शुद्ध या पवित्र नहीं किया जा सकता। मनुष्य का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही है। यदि वह अच्छे मित्रों, उच्च विचारों और सकारात्मक वातावरण में रहता है तो उसका चरित्र और जीवन दोनों ही निखरते हैं। एक योग्य गुरु शिष्य को ज्ञान और संस्कार देकर तराश देता है, जैसे जौहरी हीरे की अनगढ़ सतह को काटकर उसकी आभा बढ़ा देता है। यही कारण है कि संगति का महत्व भारतीय संस्कृति में बार–बार रेखांकित किया गया है। इसके विपरीत, यदि व्यक्ति बुरी संगति में पड़ जाए तो उसका जीवन कीचड़ की तरह मैला हो जाता है। कीचड़ में जितनी भी कोशिश की जाए, उससे सफाई या सुगंध पैदा नहीं हो सकती। बुरी आदतें और गलत सोच केवल नकारात्मकता फैलाती हैं। यही कारण है कि संत कबीर ने भी कहा है — "संगत करिये साधु की, हानिकारक एक भी दोष नहीं;
संगत करिये दुष्ट की, गुण भी न टिके वहाँ कोई।"
यह कहावत हमें सिखाती है कि हमें जीवन में हमेशा ऐसे व्यक्तियों के निकट रहना चाहिए जो हमें प्रेरणा दें, हमारे भीतर छिपे हुए हीरे को उजागर करें। बुरे विचारों, आलस्य और नकारात्मक प्रवृत्तियों से दूर रहना ही आत्म-विकास का पहला कदम है। मानव का उत्थान सद्गुणों और श्रेष्ठ संगति से ही संभव है। जैसे हीरा हीरे को तराश कर चमकदार बनाता है, वैसे ही श्रेष्ठ मनुष्य श्रेष्ठता को जन्म देता है। लेकिन कीचड़ से स्वच्छता की उम्मीद करना व्यर्थ है, क्योंकि वह स्वयं ही गंदगी का प्रतीक होता है।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
"हीरा जन्म अनमोल रे, इसे मिट्टी में न रोल रे, अब जो मिला है फिर न मिलेगा, कभी नहीं कभी नहीं" इस भजन की कुछ पंक्तियाँ मनुष्य को अपने जीवन के महत्व को समझने और सतर्क रहने के लिए उतेजित कर रही हैं, मनुष्य जीवन की तुलना एक हीरे की तरह रोशन व चमक देने वाली होना चाहिए न कि मिट्टी या कीचड़ की भाँति, जब एकबार दलदल में फंस जाए तो बाहर निकलना असंभव हो, तो आईए आज का रूख, मनुष्य के जीवन की तरफ ले चलते हैं कि क्या मनुष्य ने अपने आप को सही पहचान पाया है या नहीं क्या वो जानता है कि हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है और कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होता, मेरा मानना है कि हीरे जैसी चमक पाने के लिए इंसान को अपने मन के हीरे को यानि आत्मा को शुद्ध करना होगा और इसे शुद्ध करने के लिए एक दुसरे हीरे की जरूरत होगी यानि शुद्ध आत्मा की जिससे रगड़ने से यह और चमकने लगेगा कहने का भाव, एक अच्छी संगत ही इंसान जैसे रूपी हीरे को तराश सकती है, और बुरी संगत उसे कीचड़ में फंसा कर दलदल में धकेल सकती है जिससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, कहने का भाव हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है, यानि अच्छी संगत से अच्छी रंगत चढ़ती है और बुरी संगत हीरे जैसे इंसान को मलीन बना देती है जैसे कीचड़ के पास से गुजरने कीचड़ चिपट ही जाता है उसी प्रकार हमारा अनमोल जीवन जब कुसंगति के दलदल में फंस जाता है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और मनुष्य का यह अनमोल हीरे जैसा जीवन अपनी शुद्ध आत्मा को कीचड़ की भाँति मलीन करके दुर्गन्ध छोड़ने लगता है उसकी आत्मा अशुद्ध होने लगती है और तन, मन की चमक धुंधली होने लगती है जिससे उज्जवल जीवन अंधकारमय में डूब जाता है, सच कहा है, संगति सुमति पावही, परे कुमति के धंध, राखो मेलि कपूर में हींग न होय सुगंध, कहने का भाव बुरी संगत में रहने से अच्छी बुद्धि नहीं आती जैसे हींग को चाहे जितने दिन भी कपूर के साथ रखो हींग अपनी सुगंध नहीं बदलती, इसलिए आज के विचार में इसी बात को समझाया गया है कि, हीरे से हीरा तराशा जा सकता है मगर कीचड़ से कीचड साफ नहीं होता, हमें यह मत भूलना चाहिए कि हमें पहले ही हीरे जैसा जन्म मिला है, इंसान जब जन्म लेता है, उसके मन में तनिक भी मैल नहीं होती लेकिन ज्यों ज्यों वो बड़ा होने लगता है उसे संगत की रंगत घेरने लगती है, लोभ, मोह, झूठ फरेब के लालच में फंस कर अपनी हीरे जैसी आत्मा को कीचड़ की भांति मैला कर देता है, अगर वोही इंसान अच्छे गुण हासिल करे, अच्छे विचार रखे अच्छी संगत में बैठे उसकी चमक हर तरफ हीरे की तरह ऱोशनी बिखेर सकती है, बशर्ते मनुष्य अपनी आत्मा को जौहरी की तरह खुद तराशे, देखने में, soul और soil में एक ही शब्द का अंतर है लेकिन(आत्मा और मिट्टी) अर्थ में बहुत बड़ा अन्तर है इसलिए कीचड़ यानि मिट्टी में रहकर अपने जीवन को गंदा मत करो, अपनी हीरे जैसी आत्मा को कीचड़ मत बनाओ इसे अच्छे विचारों के साथ अच्छी आत्माओं के साथ रगड़ कर हीरे जैसी चमक दो जिसकी रोशनी दुसरों को भी रोशन करे, अन्त में यही कहुँगा हीरा मानवीय गुणों का प्रतीक है, और हमें अपने जीवन को मुल्यवान बनाने के लिए हीरे जैसी चमक देनी होगी अपनी संगत से रंगत लानी होगी न की कुसंगति में डल कर कीचड़ की भाँति दुसरों को भी गंदगी में धकेलना होगा, इसलिए हे मनुष्य अपने हीरे जैसे जीवन को तराशने की कोशिश कर न कि बुरे विचारों में फंस कर अपने जीवन को कीचड़ की तरह दुर्गन्ध व गंदगी को फैलाने वाली गन्दगी की तरह अपनी महक बदबू में तब्दील कर, तभी तो कहा है, रात गंवाई सोई कर, दिवस गवायो खाय, हीरा जन्म अनमोल था कौडी बदले जाये। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
हीरे की चमक तभी निखरती है जब उसे कोई कुशल जौहरी तराशता है — जो स्वयं भी उसी मूल्य और गुण को समझता है। उसी प्रकार, किसी व्यक्ति को सुधारने, संवारने या प्रेरित करने वाला भी ऐसा होना चाहिए जिसमें स्वयं उत्कृष्टता, चरित्र और दृष्टि हो। कीचड़ में गिरा व्यक्ति यदि किसी दूसरे गिरे हुए व्यक्ति से सहारा चाहता है, तो दोनों और अधिक धँस सकते हैं। जिस प्रकार कीचड़ से कीचड़ नहीं धोया जा सकता, वैसे ही बुराई से बुराई का अंत नहीं किया जा सकता। सत्य यह है कि—
सुधार, प्रकाश और विकास के लिए सदैव एक श्रेष्ठ, स्वच्छ और उन्नत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। नकारात्मकता को सकारात्मकता ही मिटा सकती है, अंधकार को प्रकाश ही हर सकता है।
इसलिए —
किसी को ऊँचा उठाने के लिए स्वयं ऊँचाई पर होना आवश्यक है। हीरे को हीरो से ही तराशा जा सकता है।
- रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
ईश्वर की महिमा भी विचित्र है और व्यवस्थाएं भी। सामंजस्य के माध्यम भी अनुपम है। सब कुछ ईश्वर का दिया हुआ है किंतु निर्वहन मनुष्य के हाथ में है। हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है। लेकिन कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होता। ऐसा होना भी ईश्वरीय व्यवस्था का एक रूप है। हाँ, इस प्रक्रिया को दृष्टांत के रूप में व्यवहारिक ज्ञान और समझाइश के लिए उपयोग में लिया जा सकता है और लिया भी जाता है। जो उचित भी है और आवश्यक भी है। हमारी यह बौद्धिक विशेषता है कि हमें उदाहरणों से कोई बात और उसमें छिपा आशय, अपेक्षाकृत जल्दी और सहजता से समझ में आ जाती है और रुचिकर भी लगती है। हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है।लेकिन कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होता। इस कहावत में मर्म निहित है, उसका भाव यही है कि सद्गुण से गुणों को सद्गुण के रूप में बनाया जा सकता है, लेकिन जो स्वयं गंदला है, वह दूसरे को सद्गुणी नहीं बना सकता। इसलिए सदैव सद्गुणी की संगत करना चाहिए, ताकि हम भी चरित्रवान बन सकें। इसके विपरीत यदि हम अवगुण वालों की संगत में रहेंगे तो हम सद्गुणी तो बन ही नहीं सकते। हाँ, उनके जैसे अवगुणी अवश्य बन जाएंगे। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है ! हीरे को हीरे से तराश कर ही नगीनों की पहचान अपने आप व्यक्ति समाज साहित्य ,अर्थ ,नीति सद्व्यवहार आकर्षित गुण धर्म कर्तव्य से सजीव बना सर्वोच्चता को प्राप्त करने प्रयास रत रहता है अच्छे जौहरी की जिसकी चमक जीवन पर्यंत भी बरकरार होती है जैसे पेड़ पौधे जंगल ,उपवन प्रकृति की हरियाली में अपनी सुंदरता खुशबू स्वाद रंग रूप से आकर्षित करते है ! वैसे ही राजनीति में बापू गांधी की पहचान इतिहास ताजमहल की विरासत साहित्य में मुंशी प्रेमचंद हरिवंश राय बच्चन रचनाकार की रचना ही उसकी अपनी पहचान होती है शब्दों के मोतियों को तराश हीरे की चमक हीरे से तराश कर बरकरार रख ,शब्दों के मोती और सुगंधित पुष्प भी माला में पीरों कर व्यक्ति ,ईश्वर का साथ नहीं छोड़ते आखरी दम तक हीरे हीरे को तरास सानिग्ध चाहता है ! लेकिन कीचड़ से कीचड़ साफ़ नही होता है । कहते है कीचड़ चाहे कितनी गंदगी फैलाए पर कमल तो कीचड़ में खिल ईश्वर का और हमारे खाद्य पदार्थों में कीचड़ खाद का काम कर कीचड़ सानिग्ध बनाए रखते हैं ! इंसानी स्वभाव के अनुरूप कीचड़ के गुण दोष ईश्वर जौहरी की तरह तराशते है ! कहते है जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलता है ! हीरे की परख जौहरी ही जानता सही कहती दुनिया कीचड़ से कीचड़ साफ़ नहीं होता ! रिश्तों की परख कर मन के मैंल धो इंसानियत बचाए । जीवन का हर पल अनमोल हीरा है परवरिश संबंध सामंजस्य कर नवयुग नव निर्माण के प्रणेता कहलाते हीरे से हीरे की परख को तरासते है ! - अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
यह एक सत्य और सटीक कथन है जो हमें यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि हमें अपने जीवन में उच्च कोटि के व्यक्तियों से ही शिक्षा या राय लेनी चाहिए निम्न कोटि के व्यक्ति से नहीं। यानि उच्च कोटि के सज्जनों की संगति की कोशिश करनी चाहिए । निम्न कोटि के रिश्तेदार या व्यक्तियों से अच्छी शिक्षा या राय की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए । वे विश्वास योग्य नहीं होते। उच्च कोटि के व्यक्ति सही राय देकर समस्या का उचित समाधान करते हैं जबकि निम्न कोटि के व्यक्ति समस्या को उलझा ही सकते हैं *: ★हीरा★★ एक मूल्यवान और उच्च गुणवत्ता वाला पदार्थ है, और जब हम हीरे से हीरे को तराशते हैं, तो हम उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम की अपेक्षा कर सकते है।
★★कीचड़★: हीरे की तुलना में कीचड़ एक निम्न गुणवत्ता वाला पदार्थ है, और जब हम कीचड़ से कुछ बनाने की कोशिश करते हैं, तो परिणाम अक्सर निम्न गुणवत्ता वाला होता है।यह कथन हमें यह समझने में मदद करता है कि:- *उच्च गुणवत्ता वाले संसाधनों* का उपयोग करके ही हम अपने जीवन की*उत्कृष्टता और गुणवत्ता* को बनाए रखने में सफल हो सकते हैं।
मेरी राय में
यह एक महत्वपूर्ण सबक है। जो हमें अपने जीवन में गुणवत्ता और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर सकता है। हम स्वयं भी मूल्यवान हीरे के गुण को आत्मसात करे न कि कीचड़ के गुण को। क्योंकि हीरा एक मूल्यवान वस्तु है जिसकी कद्र जौहरी ही कर सकता है हीरे से हीरा ही तराशकर सुन्दर सुन्दर आभूषण बनाए जाते हैं। जबकि कीचड़ से कीचड़ मूर्ख व्यक्ति भी साफ नहीं करता।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
रोला में कहती हूँ इस प्रसंग हेतु लक्ष्मी रूप प्रतीक , वास धन का है होता ।
कीच रहे नजदीक , नहीं सुंदरता खोता ।
रहे मोह निर्लिप्त , कमल जग को सिखलाता।
रहे गन्द में लिप्त , बुराई दूर भगाता । -डॉ . मंजु गुप्ता
शिक्षा का उद्देश्य है संस्कार करना .जो एक प्रेरक दिशा निर्देश की प्रक्रिया है . जिससे जन्मजात दोषों को मुक्त कर देते हैं . संस्कार की प्रक्रिया हम सजीव - निर्जीव दोनों में कर सकते हैं । खान से निकला हीरा में गंदगी लगी रहती है। लेकिन हीरे को तराश कर बहुमूल्य बना देते हैं । हीरे से हीरे को तराश सकते हैं उसी तरह शिक्षा , संस्कार धर्म साधना के द्वारा अवगुणी इंसान को शिक्षित कर सुनहरा भविष्य गढ़ सकते हैं । इंसान के दिल में सद्गुण , अवगुणों का वास होता है । अवगुणी इंसान में शरीर के सात चक्र सुप्तावस्था में होते हैं। उन सातों स्टेशन के बटन बंद होते हैं । जिससे उनमें कीचड़ जैसी गन्दगी , विकारों की बदबू जैसे मोह माया ईर्ष्या , द्वेष , लोभ , क्रोध झूठ , हिंसा आदि की प्रवृत्ति अपना घर बना लेती हैं । दुर्गुणी दुष्कर्मीमें यही बटन चार्ज रहते हैं जैसे साँप का काम विष ही उगलना होता है। कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं होता है यही मर्म है । अगर यह अवगुणी गन्दगी अगर अच्छे सत्संग , सद्गुणी , सज्जन की संगत में रहे तो कुप्रवत्तियों को बदल सकते हैं । इसके लिए गौतम बुद्ध और डाकू अंगुलिमाल मिसाल है। प्रह्लाद राक्षस कुल में जन्मा , बुराइयों , गन्दगी, कलुषता के परिवेश में रहकर खुद को कमल की तरह पावन पवित्र , सांसारिक मोह से , दाग से मुक्त होकर बुराइयों से दूर रहकर सनातन पुराण , धर्म ग्रंथ की मिसाल बना है।
- डॉ.मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
फूलों में और फूल मिलायें तो सुगंध बढ़ती है पर कीचड़ में और कीचड़ मिलायें तो दुर्गंध बढ़ेगी..इसी तरह एक अच्छा इंसान दूसरे अच्छे इंसान को अपने गुण, व्यवहार और बातों से और बेहतर बना सकता है पर बुरे की संगत में बुरा तो और बुराई समेट कर बदतर हो जाता है।संगत का असर बहुत बड़ा होता है।प्रेम से बुरा इंसान भी अच्छा हो जाता है नफ़रत से अच्छा इंसान भी बुरा बन सकता है।प्रेम से प्रेम बढ़ता है नफ़रत से नफ़रत। - मंजू सक्सेना
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " परिस्थितियां अलग - अलग होने के कारण समाधान एक नहीं हो सकता है। जैसी परिस्थिति वैसा समाधान होता है। बाकी भ्रम के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। वैसे भी जीवन भी एक भ्रम है। किस समय क्या हो जाएं। किसी को कुछ नहीं पता होता है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
व्यक्ति हो या पशु जिसे कीचड़ और बुरे कामों में लिप्त रहने की आदत pad चुकी है उसे हीरे की तरह तराशना दुनिया का सबसे असंभव कार्य है है। पत्थर को हीरे के रूप में तराशने की प्रक्रिया कितनी जटिल है सब जानते है। व्यक्ति भी संघर्षों की अग्नि में तप कर सोने की तरह निखरता है। तो जो तपा वही निखरा है।
ReplyDeleteडा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड
(WhatsApp से साभार)
*हीरे*
ReplyDeleteजीवन एक मझधार है, उतार-चढ़ाव केन्द्र बिन्दू है। हम चाहते है, हमेशा अपने लक्ष्य की ओर अग्रेषित होते रहे। इसी तरह हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है, परन्तु कीचड़ को कीचड़ से साफ नहीं किया जा सकता, कटुसत्य है।
सोना चांदी, हीरे मोती जवाहर, चम्पावत जरुर है, उसी प्रकार मानव प्रकृति है, कीचड़ में रहना पसंद नहीं करता है।
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट-मध्यप्रदेश
(WhatsApp से साभार)