चंद्रसिंह बिरकाली स्मृति सम्मान - 2025
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अपनी जिंदगी अपने शौक से जीना सीखें क्योंकि यह मनुष्य जीवन फिर से दुबारा मिलने वाला नहीं है, अगर मिलेगा भी तो आपको पता नहीं चलेगा कि पहले आप क्या थे आगे आप क्या होंगे. इसलिए इस जीवन को भरपूर आनंद के साथ जियें. अपने हर शौक को पूरा करें जो आप कर सकते हैं. बाकी जो होने वाला होगा वहीं होगा. कर्म का फल तो हमेशा रहता ही है और रहेगा ही. उसकी चिंता न करते हुये बिंदास जीवन जियें. एक दिन ये जिन्दगी तो खत्म होनी ही है फिर काहे का झगड़ा झंझट काहे का तेरा मेरा, किसके लिए बचत. सबका अपना अपना कर्म है. आप किसी के लिए कुछ नहीं कर सकते. आप सिर्फ एक माध्यम है. इसलिए अपना जीवन बेझिझक खुलकर अपना शौक पूरा करते हुए जीना सीखें. हाँ बस इतना ध्यान रखें अपना शौक पूरा करते हुए किसी का दिल नहीं दुखायें. बाकी सब ठीक है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
- दुर्गेश मोहन
पटना -बिहार
कथन शत प्रतिशत सटीक है । लेकिन अपनी जिंदगी अपनी होती है ,क्या इंसान ने अपने शौक से जीना सीखा है । शायद जवाब पचास प्रतिशत हाँ में हो। जिस इंसान ने अपने शौक से जीना सीख लिया तो उसे न तो अवसाद , तनाव , चिंता घेर सकती है । उसके पास तो सत्यम् शिवम् सुन्दरम्म का जादूई खजाना मिल जाएगा। आनंद ही आनंद का उजाला उसके चेहरे की आभामंडल पर चमकेगा। उसे बुराई , ईर्ष्या , द्वेष , नफरत नकारात्मक भाव नहीं घेरेगा । शौक अपने आप को व्यस्त रखने की कला है । उसका रचनात्मक कार्य व्यष्टि से समिष्टि तक विस्तार ले सकेगा। लोगों अपने शौक से ही इस तरह से जी पाते हैं। इसमें चुनौती भी बड़ी है । इंसान को मानसिक , शारीरिक मनोवैज्ञानिक , संवेगात्मक सुख -दुख को सहना पड़ता है । इंसान को जिंदगी में खुद के शौक के साथ जीने का अधिकार है , लेकिन उसके साथ उसका कतर्व्य , फर्ज भी बँधा है। उसको अपने फर्ज को भी निभाना होगा न कि फर्ज से भागना होगा। नहीं तो परिवार में लड़ाई , झगड़े , क्लेश की भी स्थिति भी हो सकती है। यही उसका स्पीड ब्रेकर होगा। इंसान को अपने शौक जिंदा रखने के लिए जिम्मेदारी भी निभानी होगी। उसे स्वार्थी नहीं बनना होगा।
मुझे बचपन में लिखने , गाने , नचाने , पेंटिंग , वक्तृत्व आदि का शौक था । सब सीखा शादी के पहले तक सब कुछ किया । शादी हो गयी । जिम्मेदारी सामने खड़ी । शौक छोड़ा और हँसते हँसते कर्तव्य पूरे किये। अब बेटियों की शादी हो गयी । नोकरी से सेवानिवृत्त हूँ। अब वक्त ही वक्त मेरे पास है । सारे शौक को पुनः जीवित किया । सब कुछ मैं सकारात्मक , रचनात्मक , सर्जनात्मक प्रेरणादायक कार्य करने में जुटी हूँ। मुझे आत्मसंतुष्टि होती है। मेरा आत्मविश्वास , मेहनत श्रम , लगन , दृढ़ निश्चय, हौसला से सारे शौक , सपना ईश पूरे करा देते हैं । जो सोचा वह ही किया और उसे पाया। शौक तो सफलता की नई इबारत भी गढ़ता है। हाइबन में भाव व्यक्त करती हूँ
हाइबन प्रकृति के
कार्तिक माह में गुलाबी ठंड सुबह के समय मुम्बई में होती है, लेकिन धुंध , कोहरे की चादर आसमान ओढ़े रहता है । मुझे हरियाली से बेहद लगाव है । छत पर मैंने बड़े - बड़े लम्बे चौड़े सीमेंट के गमलों में क्यारियाँ बनाई हैं इनमें मैंने तरह -तरह के फलदार पेड़ अमरूद , पपीते और तरबूज , खरबूज , ककड़ी , खीरे , अरबी , हल्दी , कद्दू , लोकी की बेल लगाई है और औषधियों वाली जैसे तुल्सीब, एरोवेरा , लेमनग्रास , पत्थरचट्टा , कढ़ीपत्ता , गिलोय आदि एक तो वे फल , सब्जीआदि देते हैं और परिस्थितितन्त्र पलता है ,रंग- बिरंगे फूल - पत्ते इस लगते हैं जैसे रंगोली हो ।
प्रातः की बेला
धुंध से भरा व्योम
तम से भरा।।
छत पे फैली
बेलों में कद्दू , लोकी
सुंदर लगें। - डॉ मंजु गुप्ता
इन ख़ूबसूरत पेड़ - पौधों पे तरह - तरह के कीट - पतंगे , कौआ , चिड़िया , कबूतर , कोयल , गिलहरी आदि आ के अपनी मनमोहक अदाओं , अपनी - अपनी बोलियों में मीठे स्वर में प्रेमालाप करके अपनी खुराक फूलों का पराग चूस्ते , पत्तियाँ , बीज , लेमनग्रास को खा कर पेट भर चुपचाप चले जाना । लेकर कुछ नीले अनन्त आसमान पर अपनी विजयी हौंसले की उड़ान भर मेरे घर के पास बने गुरुद्वारे , मंदिर , मस्जिद पर बैठ के भाईचारा , सर्वधर्म समभाव , सद्भाव , मैत्री , प्रेम का अनबोली में संदेश देते हैं ।
हाइबन में प्रकृति की ओस बूँद
हरियाली आँखों को मनोहारी तो लगती है , आंखों को ठंडक भी देती है और ऑक्सिजन से भरी हवा स्वास्थ्य को आयु को बढ़ाती है । परिवेश में फैले वायु प्रदूषण को भी दूर करते हैं । वृक्ष से मेरा आत्मीय रिश्ता है ,वे मेरे मित्र , परिवार के भाई - बहन , माता , - पिता भी हैं । वे मेरा फल , ओषधियाँ देकर हमारा पालन भी करते हैं । उपहार में पौध भी देती हूँ । फूल -फल लगने पर सोहर गाकर हरीरा बनाकर नामकरण संस्कार भी करती हूँ। हर सुबह मैं इन हरे - भरे पौधों को सींचने जाती हूँ तो उनके पत्तों पर ओस गिरी होती है । कोई पत्ता गिला होता है और अरबी , हल्दी के पत्तों पर सफेद चमकती बूँदें मोती - सी बनी मेरे मन को मोह लेती है । तब ये
हाइबन जन्मता है-
ओस की बूँदें
पत्तो पे मोती बनी
छत बाग पे ।
यही शौक की संपदा ने पर्यावरण संरक्षण कर रहा है ,14 किताबें लिख दी। यश मान सम्मान दे दिया । शौक से जिंदगी को जिंदगी मिलती है। साँसें बढ़ती हैं । आशा उम्मीद का दामन जमीन से अंबर को छू लेता है। इतिहास भी गढ़ जाता है।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
हमेशा अपने जीवन को स्वतन्त्र रुप से जीना चाहिए। जिससे किसी को अपनी निजी-सार्वजनिक तौर तरीकों से संभवत: दूर रखते हुए, दीर्घकालिक संग दृष्टी बनाए रखते सफलता अर्जित कर लीजिए। अन्यथा कर्म का खेल दृष्टी बनाए हुए केन्द्रित है। कई अपना जीवन आलोचना में व्यतीत करते जीते है, जिससे उनका या किसी का भला नहीं हो पाता, मात्र समय व्यतीत कर समय पास कर रहे है,ऐसे ही व्यक्ति साथ कर्म फल देता है!
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
- रंजना हरित
बिजनौर - उतर प्रदेश
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
प्रत्येक जीव को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का पूर्ण अधिकार है,और वह जीता भी है। कहते हैं ना "जिंदगी जीने का नाम है" चाहे हंस कर जिओ अथवा दुखी होकर... जीवन में कुछ पाने के लिए हम संघर्ष करते हैं और सच्ची लगन, ईमानदारी के साथ कर्म करते है तो कर्म का फल अवश्य मिलता है। यहाँ हमारी मेहनत मीठे फल को जन्म देती है जो हमारा कर्म है। जिंदगी एशो-आराम से जीना है तो परिश्रम कर हमारे रक्त को स्वेद बना बहाना होगा। पिता, दादा से मिला एश्वर्य अनुचित रूप से विलास में खर्च करना, अपने धन-शक्ति का अहंकार आना, इन सबसे उसे क्षणिक सुख तो प्राप्त होता है किंतु इसके परिणाम का फल उसे आगे अवश्य मिलता है। जैसे:- रावण के पराजय का मुख्य कारण अहंकार ही था । उसे अपनी शक्ति का अहंकार था।उसके जैसा कोई शक्तिशाली नहीं है ।अपने अहंकार के साथ वह जीता है किंतु यही अहंकार आगे उसके कर्म का फल बन सामने आता है और उसके विनाश का कारण बनता है। यदि हम निराशावादी हैं तो हम कुछ नहीं करते और जिंदगी में हमें दुख के अलावा कुछ नहीं मिलता किंतु आशावादी कभी बैठता नहीं सकारात्मकता लिए मंजिल तक पहूंचने के लिए संघर्ष करता रहता है। यही संघर्ष का पेड़ आगे जाकर फलों से लद जाता है और कर्म का फल कहलाता है।चूंकि "आशावादी ही जीवन का सर्वोदय है" हमें जिंदगी अवश्य अपने शौक से जीने का अधिकार है पर आगे अपनी भलाई किस्में हैं, किये कर्म का आगे परिणाम क्या होगा यह अवश्य सोचें चूंकि किये गये कर्म का स्वाद तो आगे चखना ही है...- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
बहुत बढ़िया लिखा है आपने अपनी जिंदगी अपने शौक से जीना चाहिए। क्या हम हमारी तिजोरी की चाबी दूसरों को देते हैं क्या? नहीं कोई भी नहीं देता। ठीक उसी प्रकार हम अपने जीवन में अपनी जिंदगी को अपने शौक से जीना सीख जाएंगे उस दिन से जिंदगी का सही आनंद ले पाएंगे। हर व्यक्ति का अपना शोक होता है, और वह व्यक्ति अपने तरीके से जीता है किंतु कभी-कभी आसपास का वातावरण प्रभावित करता है किंतु परंतु ना सोचते हुए अपना शोक पूरा करता है वह जिंदगी का आनंद ले लेता है। जब व्यक्ति अपने शौक से जीता है तो उसे भले बुरे का भान भी पूरा रहता है।कर्म का खेल वह तो विधान द्वारा निश्चित है वह भुगतना ही पड़ता है चाहे जितना अच्छा काम करें हमारे किए हुए पूर्व भव व वर्तमान के पुण्य- पाप का लेखा जोखा ऊपर वाले के ही हाथ में है।अंत में मैं यही लिखूंगा की शोक पूरा करना चाहिए, कर्म का बंध न हो इसका भी ध्यान रखना चाहिए।- रविंद्र जैन रूपम
कुक्षी - मध्यप्रदेश
- पी एस खरे "आकाश "
पीलीभीत - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में" जिंदगी को आनंद से जीना चाहिए। बाकि कर्म का खेल होता है। आधुनिक समय में कर्म का महत्व से अनजान होते जा रहे हैं। जिस से लोगों को दु:खों का सामना करना पड़ता है। यही जिंदगी का मूल मंत्र है।
बिलकुल सही है, अपनी जिंदगी अपने शौक से, अपने तरीके से ही जीनी चाहिए. दुनिया तो हमारी जीत में भी खुश नहीं होती और हमारी हार में भी साथ नहीं देती. शौक जिंदा हैं तो जीवन खुशगवार है, वरना कर्म की मार तो है ही!
ReplyDeleteलीला तिवानी
नई दिल्ली
(WhatsApp से साभार)
कुछ लोग जमाने की परवाह करते हुए ऐसे जीते हैं कि जिंदगी भर घुट घुट कर रह जाते हैं और एक दिन वो इसी घुटन को ओढ कर दुनिया से रुखसत हो जाते हैं। बताओ जरा ये भी कोई जीना हुआ।
ReplyDeleteआप की बात उचित है कि जीवन ऐसे जियो की अपने शौक भी पूरे हों जिम्मेवारियां भी।
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
जिंदगी जीना आसान नहीं एक कला है, सही कहा आपने बीजेंद्र जी। डॉ भारती जी को सम्मानित होने पर बहुत-बहुत बधाई शुभकामनाएं 💐😊🙏
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