चंद्रसिंह बिरकाली स्मृति सम्मान - 2025

     जिंदगी जीना आसान नहीं होता है। बल्कि एक कला माना जाता है । फिर भी जिंदगी को कर्म से अलग नहीं किया जा सकता है। भाग्य का सीधा संबंध कर्म से होता है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। अब आयें विचारों को देखते हैं :-
       अपनी जिंदगी अपने शौक से जीनी चाहिए , पर वक्त और हालात को मद्देनजर रखते हुए हमें शौक, पसंद  , इच्छा , चाहत , सबको दरकिनार करते हुए , जीना पड़ता है , शौक मारने पड़ते हैं कर्तव्यवेदी पर !! शौक से जिंदगी जीनी सीखनी चाहिए क्योंकि मन मैं दबाए हुए अरमानों को भी पूरा करना चाहिए !! कर्मफल तो कर्मों के अनुसार मिलता ही है ,पर अक्सर शौक की राह मैं जिंदगी का कर्तव्य व जिम्मेदारी , आ जाते है !!

       - नंदिता बाली 

    सोलन - हिमाचल प्रदेश

      अपनी जिंदगी अपने शौक से जीना सीखें क्योंकि यह मनुष्य जीवन फिर से दुबारा मिलने वाला नहीं है, अगर मिलेगा भी तो आपको पता नहीं चलेगा कि पहले आप क्या थे आगे आप क्या होंगे. इसलिए इस जीवन को भरपूर आनंद के साथ जियें. अपने हर शौक को पूरा करें जो आप कर सकते हैं. बाकी जो होने वाला होगा वहीं होगा. कर्म का फल तो हमेशा रहता ही है और रहेगा ही. उसकी चिंता न करते हुये बिंदास जीवन जियें.  एक दिन ये जिन्दगी तो खत्म होनी ही है फिर काहे का झगड़ा झंझट काहे का तेरा मेरा, किसके लिए बचत. सबका अपना अपना कर्म है. आप किसी के लिए कुछ नहीं कर सकते. आप सिर्फ एक माध्यम है. इसलिए अपना जीवन बेझिझक खुलकर अपना शौक पूरा करते हुए जीना सीखें. हाँ बस इतना ध्यान रखें अपना शौक पूरा करते हुए किसी का दिल नहीं दुखायें. बाकी सब ठीक है. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - प. बंगाल 

       जहाँ कुछ लोग अपने शौक को ताक पर रख बस काम में ही उलझे रहते हैं वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने शौक के लिये किसी को हानि पहुँचाने तक से नहीं चुकते, इस चक्कर में कभी कभी खुद का भी नुकसान कर बैठते हैं। हमें दोनों ही गलत स्थितियों से बचकर सही कर्मों की राह पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

     - दर्शना जैन 

  खंडवा - मध्यप्रदेश 


        मानव के रूप में जीवन ना जाने कितनी योनियों में जन्म लेने के बाद बहुत मुश्किल से केवल एक बार ही मिलता है। इसलिए अपने मानव जीवन को सार्थक करते हुए अपने सभी कर्तव्यों, जिम्मेदारियों को भली-भाँति निभाते हुए अपने मन के कामों को करने के लिए भी समय निकालना और उन्हें करना चाहिए। मानसिक भोजन मिलता रहे तो मन खुश रहता है और तब हम जो भी करते हैं उसके परिणाम अच्छे ही मिलते हैं।इसलिए अपने शौक को सदा जीवित रखें।

  - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

      देहरादून - उत्तराखण्ड

       अपनी जिंदगी अपनी होती है। इस पर पूरा अधिकार स्वयं का होता है। मानसिक या शारीरिक सुख हो या कष्ट वह भी स्वत: को ही मिलता है। अत: अपनी जिंदगी को अपने लिए, अपनी तरह जीना सीखना और गुजारना आना श्रेयस्कर है। इसके लिए जो भी संघर्ष करना पड़े वह कर्म और भाग्य के मेल का है। यह तो हुई अधिकार की बात। लेकिन अधिकार के साथ, कर्तव्य भी जुड़े होते हैं। जिनका शुचिता से निर्वहन की जिम्मेदारी भी करना आवश्यक है। अपने शौक को पूरा करने के लिए औरों के अधिकारों का हनन एवं अपने कर्तव्यों का पालन न करना अनुचित और अन्याय होगा।  समझदारी और इंसानियत यही होगी कि अपने अधिकार और कर्तव्य को बराबर रखें। इसके लिए यदि कर्तव्य को पहले प्राथमिकता देंगे तो देखना अपने शौक में जो जीना होगा वह अनुपम होगा। अति आनंददायक होगा।

        - नरेन्द्र श्रीवास्तव

     गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       यह कहावत सत्य है कि परिश्रम का फल मीठा होता है।अपनी जिंदगी हमें शौक से जीना चाहिए।शौक तभी पूरे होते हैं,जब मैं कर्म सही करता हूं।कर्म और भाग्य सफल परिश्रम से होता है।किसी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए परिश्रम आवश्यक है। मैं जितना परिश्रम करूंगा,कर्म अच्छा बनता जाएगा। हमें शौक से जीवन जीना हो तो अच्छे कर्म भी करना चाहिए।

          - दुर्गेश मोहन

          पटना -बिहार

     कथन शत प्रतिशत सटीक है । लेकिन अपनी जिंदगी अपनी होती है ,क्या इंसान ने अपने शौक से जीना सीखा है ।  शायद जवाब पचास प्रतिशत हाँ में हो। जिस इंसान ने अपने शौक से जीना सीख लिया तो उसे न तो अवसाद , तनाव , चिंता घेर सकती है । उसके पास तो सत्यम् शिवम्  सुन्दरम्म का जादूई खजाना मिल जाएगा। आनंद ही आनंद का उजाला उसके चेहरे की आभामंडल पर चमकेगा।  उसे बुराई , ईर्ष्या , द्वेष , नफरत नकारात्मक भाव नहीं घेरेगा । शौक अपने आप को व्यस्त रखने की कला है । उसका रचनात्मक कार्य व्यष्टि से समिष्टि तक विस्तार ले सकेगा।  लोगों अपने शौक से ही इस तरह से जी पाते हैं। इसमें   चुनौती भी बड़ी है । इंसान को मानसिक , शारीरिक  मनोवैज्ञानिक , संवेगात्मक सुख -दुख को सहना पड़ता है । इंसान को जिंदगी में  खुद के शौक के साथ जीने का अधिकार है , लेकिन उसके साथ उसका कतर्व्य , फर्ज भी बँधा है।  उसको अपने फर्ज को भी निभाना होगा न कि फर्ज से भागना होगा। नहीं तो परिवार में लड़ाई , झगड़े , क्लेश की भी स्थिति भी हो सकती है। यही उसका स्पीड ब्रेकर होगा। इंसान को अपने शौक जिंदा रखने के लिए जिम्मेदारी भी निभानी  होगी। उसे स्वार्थी नहीं बनना होगा।

मुझे बचपन में लिखने , गाने , नचाने , पेंटिंग , वक्तृत्व आदि का शौक था । सब सीखा शादी के पहले तक सब कुछ किया । शादी हो गयी । जिम्मेदारी सामने खड़ी । शौक छोड़ा और हँसते हँसते कर्तव्य  पूरे किये। अब बेटियों की शादी हो गयी । नोकरी से सेवानिवृत्त हूँ। अब वक्त ही वक्त मेरे पास है । सारे शौक को पुनः जीवित किया । सब कुछ मैं सकारात्मक , रचनात्मक , सर्जनात्मक प्रेरणादायक कार्य करने में जुटी हूँ। मुझे आत्मसंतुष्टि होती है। मेरा आत्मविश्वास , मेहनत श्रम , लगन , दृढ़ निश्चय, हौसला  से सारे शौक , सपना ईश पूरे करा देते हैं । जो सोचा वह ही किया और उसे पाया। शौक तो सफलता की नई इबारत भी गढ़ता है। हाइबन में भाव व्यक्त करती हूँ

हाइबन प्रकृति के 

 कार्तिक माह में गुलाबी  ठंड सुबह के समय मुम्बई में होती है, लेकिन धुंध ,  कोहरे की चादर   आसमान ओढ़े रहता है ।  मुझे हरियाली से बेहद लगाव है । छत पर मैंने बड़े - बड़े  लम्बे चौड़े  सीमेंट के गमलों में क्यारियाँ बनाई हैं   इनमें मैंने तरह -तरह के  फलदार पेड़  अमरूद , पपीते और तरबूज , खरबूज , ककड़ी , खीरे , अरबी , हल्दी , कद्दू , लोकी की बेल  लगाई है और  औषधियों वाली जैसे तुल्सीब, एरोवेरा , लेमनग्रास , पत्थरचट्टा , कढ़ीपत्ता , गिलोय आदि एक तो वे  फल , सब्जीआदि देते हैं और परिस्थितितन्त्र पलता है ,रंग- बिरंगे फूल -  पत्ते इस लगते हैं जैसे रंगोली हो ।

प्रातः की बेला

धुंध से भरा व्योम 

तम से भरा।। 


छत पे फैली

बेलों में कद्दू , लोकी 

सुंदर लगें। - डॉ मंजु गुप्ता

 इन ख़ूबसूरत पेड़ - पौधों पे  तरह - तरह के  कीट - पतंगे , कौआ , चिड़िया , कबूतर , कोयल , गिलहरी आदि आ के अपनी मनमोहक अदाओं , अपनी - अपनी बोलियों में  मीठे स्वर में प्रेमालाप करके अपनी खुराक फूलों का पराग चूस्ते , पत्तियाँ , बीज , लेमनग्रास को खा कर पेट भर चुपचाप चले जाना ।  लेकर कुछ नीले अनन्त आसमान पर अपनी विजयी हौंसले की उड़ान भर मेरे घर के पास बने गुरुद्वारे , मंदिर , मस्जिद पर बैठ के भाईचारा , सर्वधर्म समभाव , सद्भाव , मैत्री , प्रेम का अनबोली में संदेश देते हैं ।

हाइबन  में प्रकृति की ओस बूँद

हरियाली आँखों को मनोहारी तो लगती है , आंखों को ठंडक भी देती है और ऑक्सिजन से भरी हवा स्वास्थ्य को  आयु को बढ़ाती है ।  परिवेश में फैले वायु प्रदूषण को भी दूर करते हैं । वृक्ष से मेरा आत्मीय रिश्ता है ,वे मेरे मित्र , परिवार के भाई - बहन , माता , - पिता भी हैं । वे मेरा फल ,  ओषधियाँ देकर हमारा पालन भी करते हैं । उपहार में पौध भी देती हूँ । फूल -फल लगने पर सोहर गाकर हरीरा बनाकर नामकरण संस्कार भी करती हूँ। हर सुबह मैं इन हरे - भरे पौधों को सींचने जाती हूँ तो उनके पत्तों पर ओस गिरी होती है । कोई पत्ता गिला होता है और अरबी , हल्दी के पत्तों  पर सफेद चमकती बूँदें  मोती - सी  बनी मेरे मन को मोह लेती है ।   तब ये

हाइबन जन्मता है-

ओस की बूँदें

 पत्तो पे मोती बनी

  छत बाग पे । 

 यही शौक की संपदा ने  पर्यावरण संरक्षण कर रहा है ,14 किताबें लिख दी। यश मान सम्मान दे दिया । शौक से जिंदगी को जिंदगी मिलती है। साँसें बढ़ती हैं । आशा उम्मीद का दामन जमीन से अंबर को छू लेता है। इतिहास भी गढ़ जाता है।

     - डॉ मंजु गुप्ता

    मुंबई - महाराष्ट्र 

     हमेशा अपने जीवन को स्वतन्त्र रुप से जीना चाहिए।  जिससे किसी को अपनी  निजी-सार्वजनिक तौर तरीकों से संभवत: दूर रखते हुए, दीर्घकालिक संग दृष्टी बनाए रखते सफलता अर्जित कर लीजिए।  अन्यथा कर्म का खेल दृष्टी बनाए हुए केन्द्रित है। कई अपना जीवन आलोचना में व्यतीत करते जीते है, जिससे उनका या किसी का भला नहीं हो पाता, मात्र समय व्यतीत कर  समय पास कर रहे है,ऐसे ही व्यक्ति साथ कर्म फल देता है!

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

        बालाघाट - मध्यप्रदेश

      सभी मनुष्य का अपनी जिंदगी अपनी शौक और रुचियों के अनुसार ही जीना बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम अपने शौक और रुचियों के अनुसार जीते हैं, तो हम अपने जीवन में संतुष्टि और खुशी प्राप्त कर सकते हैं।परन्तु कर्म का फल भी एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो हमें अपने कार्यों के परिणामों के लिए जिम्मेदार बनाता है। हमें अपने कर्मों के अनुसार फल मिलता है, और यह हमारे जीवन को आकार देता है। अपनी जिंदगी अपनी शौक और रुचियों के अनुसार जीने से हम अपने जीवन में सफलता और संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं, और कर्म का फल हमें अपने कार्यों के परिणामों के लिए जिम्मेदार बनाता है। आज हम अपने धर्म के अनुसार कर्तव्य करते हैं जैसे माँ का धर्म है बच्चों का लालन पालन, शिक्षक का धर्म है नैतिक मूल्यों के संग ज्ञानार्जन करा कर जीवन यापन के योग्य बनाना। परन्तु सामाजिक ,पारिवारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए खुद को भूल जाते हैं, सभी की खुशी में अपनी खुशी मानकर संतुष्ट हो जाते हैं। 

           - रंजना हरित 

       बिजनौर - उतर प्रदेश 

      जिंदगी के कुछ हसीन पल यूंही गुजर जाते हैं, रह जाती हैं यादें और इंसान बिछुड़ जाते हैं। आईये आज जिंदगी के सफर की और रूख करते हैं कि वास्तव में जिंदगी जो  जीवन का एक अनमोल उपहार है  और इसका आनंद लेना हरेक का सपना होता है क्योंकि हरेक को आजादी है अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का, क्योंकि सभी ने अपने अपने शौक पाल ऱखे होते हैं जिससे इंसान को संतुष्टि मिल सके लेकिन ऐसा बहुत कम हो पाता है जिसका तर्क सीधा सीधा इंसान के कर्मों पर जाता है तो आईये आज जिंदगी के सफर की बात करते हैं कि  हमें अपनी जिंदगी अपने शौक से जीना आनी चाहिए या इसमें कर्मों का भी कुछ खेल होता है, मेरा मानना है कि सही मायने में हमारे कर्म ही हमारी जिंदगी को सही या गलत रास्ते से ले जा सकते हैं या ज्यूं कह लेते हैं कि जिंदगी  में उतार चढ़ाव हमारे कर्मों पर निर्भर करते हैं क्योंकि एक गलत कदम हमारी आजादी को छीन सकता है जिससे हम  अपने शौक अपने अरमान और खुशी के पल नरक में डाल सकते हैं,  देखा जाए कर्म एक ऐसा शब्द है जो हमारी जिन्दगी के हर पहलू को गहराई से छूता है क्योंकि जिन्दगी में जो भी घटनाएं  और परिस्थितियां हमारे सामने आती हैं वो कहीं न कहीं हमारे कर्मों का परिणाम होता है  खैर आजकल की भागदौड़ में ज्यादातर लोग   कर्म के महत्व को भूल जाते हैं लेकिन सत्य तो यही कहता है जैसा  बोओगे  बैसा ही काटोगे या पाओगे, इसलिए अपने शौक कायम रखने के लिए  हमें अपने कर्मों की तरफ भी ध्यान देना होगा और हरेक पल का हिसाब रख कर चलना होगा कि मेरे एक कदम का क्या असर होने वाला है तभी हम जिंदगी का भरपूर आनंद ले सकते हैं और अपने शौक पूरे कर सकते हैं, इस बात को मत भूलना चाहिए की मनुष्य को अपना जीवन एक यात्रा की तरह जीना चाहिए यानि हर पल को महसूस करते हुए और हर अनुभव से सीखते हुए इसके साथ साथ जीओ और जीने दो के मूल मंत्र को जपते हुए अपने हर कार्य को  आगे बढ़ाते हुए मंजिल को छूने का प्रयास करना चाहिए ताकि वर्तमान में हमें अपने अतीत का पछतावा न करना पड़े और हम वर्तमान का पूरा लुत्फ़ ले सकें  क्योंकि हमारा अतीत भी कभी हमारा वर्तमान था, इसलिए शुरू से ही हमें अपने कर्मों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है, इसलिए कर्म ऐसे करो कि हमारी जिंदगी के पल   गमों के दौर में भी हँसी खुशी से निकल जाँए हमें कहीं सर न झुकाना पड़े, जैसे हमराज के गाने के शब्दों को बड़े जोर शोर से गुनगुनाया है, न मुहँ छुपा के जियो न सर झुका के जियो, गमों का दौर भी अगर आये तो मुस्करा के जियो, यह तभी संभव हो सकता है जब हमारे कर्म सही होंगे कहने का भाव हमें हर काम ऐसा करना होगा जो हमें खुशी दे लेकिन मर्यादा में रहकर किया हुआ कार्य अंत तक खुशी देता है क्योंकि मनुष्य के पास बुद्धि है, बल है, सोचने की शक्ति तक है जो शायद  अन्य प्राणी में  नहीं है, यह गुण ईश्वर नें सिर्फ मनुष्य को दिए हैं इसलिए जिंदगी के हर लम्हे का लुत्फ़ उठाने के लिए हमें सतर्क रहना चाहिए कि अनजाने में भी हमारे कार्य या कर्म में कोई गलती न हो तभी जा कर हम  अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जिंदगी का मजा लेते हुए गुजार सकते हैं, हाँ  कुछ लोग सिर्फ अपने लिए ही जीना चाहते हैं उनको दुसरों के दुख तकलीफ या हक बगैरा नहीं दिखते लेकिन उनको उनके कर्म के मुताबिक समय आने पर हिसाब देना पड़ता है  और यह अटूट सत्य है कि अपने किये हुए शुभ और अशुभ कर्मों का फल  अवश्य ही करने वाले को भोगना पड़ेगा, अन्त में यही कहुँगा कि हमें वर्तमान में जीना आना चाहिए ताकि हम जिंदगी के हर पल का आनंद ले सकें  नहीं तो जिंदगी को समझना इतना आसान नहीं तभी तो कहा है, लम्हों की खुली किताब है जिन्दगी, ख्यालों और साँसों का हिसाब है जिन्दगी, कुछ जरूरतें पूरी, कुछ ख्वाहिशें अधूरी, इन्हीं सवालों का जवाब है जिंदगी। 

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

  जम्मू - जम्मू व कश्मीर

      प्रत्येक जीव को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का पूर्ण अधिकार है,और वह जीता भी है। कहते हैं ना "जिंदगी जीने का नाम है" चाहे हंस कर जिओ अथवा दुखी होकर...  जीवन में कुछ पाने  के लिए  हम संघर्ष करते हैं और सच्ची लगन, ईमानदारी के साथ कर्म करते है तो कर्म का फल अवश्य मिलता है। यहाँ  हमारी मेहनत मीठे फल को जन्म देती है जो हमारा कर्म है।  जिंदगी एशो-आराम से जीना है तो परिश्रम कर हमारे रक्त को स्वेद बना बहाना होगा। पिता, दादा से मिला एश्वर्य अनुचित रूप से विलास में खर्च करना, अपने धन-शक्ति का अहंकार आना, इन सबसे उसे क्षणिक सुख तो प्राप्त होता है किंतु इसके परिणाम का फल उसे आगे अवश्य मिलता है। जैसे:- रावण के पराजय का मुख्य कारण अहंकार ही था । उसे अपनी शक्ति का अहंकार था।उसके जैसा कोई शक्तिशाली नहीं है ।अपने अहंकार के साथ वह जीता है किंतु यही अहंकार आगे उसके कर्म का फल बन सामने आता है और उसके विनाश का कारण बनता है। यदि हम निराशावादी हैं तो हम कुछ नहीं करते और जिंदगी में हमें दुख के अलावा कुछ नहीं मिलता किंतु आशावादी कभी बैठता नहीं सकारात्मकता लिए मंजिल तक पहूंचने के लिए संघर्ष करता रहता है। यही संघर्ष का पेड़ आगे जाकर फलों से लद जाता है और कर्म का फल कहलाता है।चूंकि "आशावादी ही जीवन का सर्वोदय है" हमें जिंदगी अवश्य अपने शौक से जीने का अधिकार है पर आगे अपनी भलाई किस्में हैं,   किये कर्म का आगे परिणाम क्या होगा यह अवश्य सोचें चूंकि किये गये कर्म का स्वाद तो आगे चखना ही है...

   - चंद्रिका व्यास 

    मुंबई - महाराष्ट्र 

        बहुत बढ़िया लिखा है आपने अपनी जिंदगी अपने शौक से जीना चाहिए। क्या हम हमारी तिजोरी की चाबी दूसरों को देते हैं क्या? नहीं कोई भी नहीं देता। ठीक उसी प्रकार हम अपने जीवन में अपनी जिंदगी को अपने शौक से जीना सीख जाएंगे उस दिन से जिंदगी का सही आनंद ले पाएंगे। हर व्यक्ति का अपना शोक होता है, और वह व्यक्ति अपने तरीके से जीता है किंतु कभी-कभी आसपास का वातावरण प्रभावित करता है किंतु परंतु ना सोचते हुए अपना शोक पूरा करता है वह जिंदगी का आनंद ले लेता है। जब व्यक्ति अपने शौक से जीता है तो उसे भले बुरे का भान भी पूरा रहता है।कर्म का खेल वह तो विधान द्वारा निश्चित है वह भुगतना ही पड़ता है चाहे जितना अच्छा काम करें हमारे किए हुए पूर्व भव व वर्तमान के  पुण्य- पाप  का लेखा जोखा ऊपर वाले के ही हाथ में है।अंत में मैं यही लिखूंगा की शोक पूरा करना चाहिए, कर्म का बंध न हो इसका भी ध्यान रखना चाहिए।

          - रविंद्र जैन रूपम

           कुक्षी - मध्यप्रदेश 

     अपनी जिंदगी अपने शौक से जीने के फेर में हम कई बार गलत और सही का भेद नहीं कर पाते हैं और दिशा भ्रम का शिकार हो कर गलत मार्ग पर चलने लगते हैं तब हम स्वयं को दोषी मानते हुए प्राप्त कष्टों को कर्मफल कह कर स्वयं को ही संतुष्ट कर लेते हैं जो उचित नहीं है।जब हम अपने शौक को पूरा करने से पहले उचित अनुचित का भेद करते हुए अपने कर्तव्य का चयन प्राथमिकता के आधार पर करते हैं तब प्राप्त होने वाला परिणाम भी संतोषजनक होता है।कई बार अच्छा करने के फेर में बुरा हो जाता है तब उसे भाग्य का प्रारब्ध कहा जाता है।इसलिए हमे खुद को दुखी करने से अच्छा है कि हम अपने सकारात्मक सृजनपूर्ण शौक को पूरा करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करें बाकी कर्मो का खेल सामने खड़ा है।

 - पी एस खरे "आकाश "

 पीलीभीत - उत्तर प्रदेश 

" मेरी दृष्टि में" जिंदगी को आनंद से जीना चाहिए। बाकि कर्म का खेल होता है। आधुनिक समय में कर्म का महत्व से अनजान होते जा रहे हैं। जिस से लोगों को दु:खों का सामना करना पड़ता है। यही जिंदगी का मूल मंत्र है। 

       - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संपादन व संचालन)


Comments

  1. बिलकुल सही है, अपनी जिंदगी अपने शौक से, अपने तरीके से ही जीनी चाहिए. दुनिया तो हमारी जीत में भी खुश नहीं होती और हमारी हार में भी साथ नहीं देती. शौक जिंदा हैं तो जीवन खुशगवार है, वरना कर्म की मार तो है ही!
    लीला तिवानी
    नई दिल्ली
    (WhatsApp से साभार)

    ReplyDelete
  2. कुछ लोग जमाने की परवाह करते हुए ऐसे जीते हैं कि जिंदगी भर घुट घुट कर रह जाते हैं और एक दिन वो इसी घुटन को ओढ कर दुनिया से रुखसत हो जाते हैं। बताओ जरा ये भी कोई जीना हुआ।
    आप की बात उचित है कि जीवन ऐसे जियो की अपने शौक भी पूरे हों जिम्मेवारियां भी।
    - सुरेन्द्र मिन्हास
    बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
    (WhatsApp ग्रुप से साभार)

    ReplyDelete
  3. जिंदगी जीना आसान नहीं एक कला है, सही कहा आपने बीजेंद्र जी। डॉ भारती जी को सम्मानित होने पर बहुत-बहुत बधाई शुभकामनाएं 💐😊🙏

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी