सुनी सुनाई बात पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। कभी कभी ऑंखों देखीं बातें भी झूठी होती देखी गई है। यह जिंदगी में बहुत बार महसूस किया होगा । परन्तु सत्य से भागने से कोई लाभ नहीं होता है बल्कि नुकसान के सिवाय कुछ नहीं होता है। यही जिंदगी में सिखना पड़ता है। जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा श्रृंखला की देन है जो ऐसे विषय को उठाया जाता है।अब आयें विचारों को देखते हैं : - 21वीं सदी के दौर में मनुष्य ने या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि हमने अपने चहुंमुखी विकास में आशातीत सफलता अर्जित की है और निरंतर अग्रसर भी हैं। पहले जिस काम के पूरा होने में हफ्तों लगते थे, वही काम अब मिनटों में हो जाते हैं और तो और पहले जो काम असंभव प्रतीत होते थे, वे संभव ही नहीं साकार हो गए हैं। हमारे सुख-साधनों में कल्पनातीत उपलब्धियाँ, हमें आनंदित और गर्वित कर रहीं हैं। लेकिन इस सकारात्मक पक्ष के साथ-साथ, हमारा जो दूसरा पक्ष है वह कष्टप्रद और निराशाजनक है। शर्मिदगी और झकझोरने वाला है। वह है, हमारा एक-दूसरे के प्रति खत्म होता भरोसा। हम इस समृद्धि के दौर में भरोसे के नाम पर कंगाल हो गए हैं। स्वार्थ और स्वांतः सुखाय की चाहत में हम सहृदयता में संकीर्ण तो हुए ही हैं, नैतिकताविहीन भी होते जा रहे हैं। जबकि यह सच है कि हम सभी को जीवनयापन के लिए पारस्परिक प्रेम और सहयोग की नितांत आवश्यकता होती है और जो भरोसे से बंधी होती है। परंतु हम अपने निजी स्वार्थ के लिए कोई भी बात या घटना को अपने अनुकूल तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर देते हैं। जो हुआ उसे छिपा जाते हैं। जो नहीं हुआ, उसे बता देते हैं। ऐसे में सच्चाई ओझल हो जाती है और झूठ का बोलबाला हो जाता है। जिससे जो परिणाम निकलता है वह न्यायोचित नहीं होता। व्यवहारिक जीवन में भी हम कई बार सुनी-सुनाई बात पर भरोसा कर लेते हैं और आवेश में अपना अहित कर बैठते हैं। असल में सुनी-सुनाई बात आँख बंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। उचित यही होगा कि पहले हम अंसल सुनी-सुनाई बात की तह तक जावें। वास्तविकता को जानें तब यथोचित निर्णय लेवें। आजकल तो सुनी-सुनाई बात की तो छोड़ो , आँखों देखी बात पर भी भरोसा करने के पहले अच्छी तरह जाँच-परख कर लेनी चाहिए। लोग इतने होशियार हो गए हैं कि झूठ को इस तरीके से प्रस्तुत करते हैं कि हम भरोसा कर लेते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं। संक्षिप्त में हम यह कह सकते हैं कि आज हमरा जो संघर्ष बढ़ा और कड़ा हुआ है वह हमारे इसी भरोसे के टूट जाने की वजह से ही हंआ है। लोगों की इसी चालाकी की वजह से ही हुआ है।यानी हमारे संबंधों में, हमारे व्यवसाय में, हमारे वार्तालाप में,हमारे सहयोग में, हमारे प्रेम में, हमारे वचनों में जो छद्म मीठापन घुलकर भरोसे को चोट पहुंचा रहा है वह भयावह है। भरोसे को लेकर हम इस तरह चोटिल हैं कि जैसे हमारा रोम-रोम कह रहा है और रो-रोकर जता रहा है कि सुनी सुनाई बात पर कभी भरोसा मत करो
आँखों देखी बात पर भी भरोसा सोच समझ कर करें। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये मेरा अनुभव कहता है कि सुनी सुनाई बात पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि सुनी सुनाई बात किसी व्यक्ति द्वारा कही जाती है और हम सुनते हैं !! इस प्रक्रिया में कहने वाला तथ्यों को तोड़ मरोड़कर , अपने निजी दृष्टिकोण को मिलाकर , सुनाता है !! ये बात सत्य से बहुत दूर चली जाती है व गलतफहमी पैदा करती है !! आंखों देखा अधिकतर सत्य होता है , पर कई परिस्थितियों मैं आंखों देखा भी सत्य नहीं होता !! ऐसी परिस्थिति मैं व्यक्ति को स्वयं के विवेक से परिस्थिति का जायजा लेकर निर्णय करना होता है कि क्या सही है और क्या गलत !!स्वयं की बुद्धि व समझ से ऐसी परिस्थिति से निपटा जा सकता है !! - नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
"दिलदारी का ढोंग रचाकर जाल विछाँए बातों का, जीते जी का रिश्ता कह कर सुख ढूंढे कुछ रातों का, इस गाने की पंक्तियों में से कुछ ढोंगी लोगों के विषय में कुछ बातें कही गई हैं, जिनसे साफ प्रकट होता है कि कुछ आँखों देखी बातें भी गलत साबित हो सकती हैं तो कानों सुनी बातों पर क्या भरोसा करना तो आईये आज इस तथ्य को प्रकट करते हैं कि क्या हमें सुनी सुनाई बात पर भरोसा करना चाहिए या आँखों देखी बात पर, मेरा मानना है कि सुनी सुनाई बात पर भरोसा बहुत सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि सुनाने वाला व्यक्ति वो बात कभी नहीं सुनायेगा यहाँ वो खुद गलत है या था इसलिए किसी से सुनी बात पर भरोसा करने से पहले सोच समझ कर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि लोग अक्सर अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश करते हैं और दुसरे को ही गलत ठहराने की कोशिश करते हैं जिससे भरोसेमंद रिश्तों की नींव को ही हिला दिया जाता है और गहरे से गहरे रिश्ते टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं, यह सत्य है कि भ्रम, षड्यंत्र और झूठी अवधारणा का हर जगह बोलबाला है इसलिए सभी सुनी सुनाई और आँखों देखी बातें भी सच्ची नहीं हो सकती, इसमें कोई दो राय नहीं है कि हर चमकती वस्तु सोना नहीं हो सकती क्योंकि कई बार हम ढोंगी लोगों को साधू, महात्माओं के वेश में देख कर उनकी अंतरआत्मा को पहचान नहीं पाते और धोखे में आ जाते हैं उनका असली और नकली रूप नहीं पहचान सकते हमारी आँखें भी धोखा खा जाती हैं, इसी तरह से आजकल के फैशन के दौर में असली और नकली चेहरा पहचान पाना न मुमकिन है तो ऐसे में आँखो देखी बात पर भी सोच समझ कर भरोसा करना चाहिए क्योंकि कुछ लोग अच्छे होने का दिखावा करते हैं हकीकत में सिर्फ छलावा होता है इसलिए बिना परख किए किसी की सुनी सुनाई बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए इसके साथ साथ कुछ लोग देखने में संत धार्मिक एंव दयावान दिखते हैं लेकिन सच में ऐसे नहीं होते उनमें से कुछ लोग खतरनाक भी हो सकते हैं, क्योंकि जानकारी आँखों और कानों द्वारा मस्तिष्क में जाती है लेकिन कानों से सुना हुआ और आँखों से देखा हुआ भी कभी कभी झूठ हो सकता है कईबार हमारी इन्द्रियाँ भी धोखा खा सकती हैं और हमारी व्याख्या भी गलत हो सकती है, अक्सर अँधेरे में हम रस्सी को भी साँप कह देते हैं लेकिन रोशनी में वो तो रस्सी होती है इसी तरह से मदारी वाला हमारी आँखों के सामने ही कई दृश्य ऐसे दिखाता है जो ऐसे होते नहीं हैं कहने का भाव कानों से सुनी सुनाई बात और आँखों से देखी गई हर बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता हाँ इतना जरूर कहुँगा कि आँखों देखी बात कानों से सुनी बात से ज्यादा विश्वास भरी होती है लेकिन दोनों में ही सच्चाई की गारंटी नहीं होती इसलिए दोनों मे परख करना अति आवश्यक है, अन्त में यही कहुँगा कि सुनी सुनाई बात और आँखों से देखी बात दोनों पर भरोसा सोच समझ और परख करके किया जाए तो सोने पे सुहागे का काम होगा और रिश्तों की डोर मजबूत रहेगी नहीं तो आजकल के झमेलों और गलतफहमीयों ने कई घरों व रिश्तों में दरारें डाल दी हैं। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
"
सुनी-सुनाई बात पर कभी भी आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि अफवाहें अक्सर सच का मुखौटा पहनकर भ्रम फैलाती हैं। यहां तक कि जो कुछ आंखों से देखा गया हो, उस पर भी बिना तर्क और विवेक के भरोसा करना मूर्खता हो सकती है, क्योंकि दृष्टि सीमित होती है लेकिन सत्य व्यापक होता है। हर दृश्य का एक दृष्टिकोण होता है — और वह पूर्ण सत्य नहीं होता।"प्रमाण (तथ्यात्मक उदाहरण): -
1. महाभारत से प्रमाण:-
द्रौपदी चीरहरण की सभा में भीष्म पितामह सहित अनेक महापुरुष उपस्थित थे, उन्होंने आंखों से यह दृश्य देखा, परंतु सत्य को समझ पाने में असमर्थ रहे — कारण था "धर्म क्या है, यह स्पष्ट न हो पाना।" यह दिखाता है कि केवल दृश्य सत्य नहीं होता, उसका मूल्यांकन आवश्यक होता है।
2. समाजशास्त्र का सिद्धांत:-
"Confirmation Bias" नामक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति वही देखता है जो वह देखना चाहता है, यानी आंखों से देखा गया दृश्य भी पूर्वग्रहित हो सकता है। इसीलिए सोच-समझकर और तर्क के आधार पर ही किसी पर विश्वास करना उचित है।
"विश्वास करना अच्छा है, परंतु बिना जांचे-परखे किसी भी बात को सच मान लेना स्वयं को धोखा देना है। विवेक, प्रमाण और अनुभव के आधार पर ही किसी तथ्य को स्वीकार करना ही बुद्धिमानी है।"
- रमा बहेड
हैदराबाद - तेलंगाना
आज-कल सुनी सुनाई बातों पर भरोसा करना एक दम बेकार है. लोग अफवाह फैलाने के लिए मन गढ़न्त बातेँ करते रहते हैं. सुनी सुनाई बात एक दम असत्य होती है, कभी-कभी ही, वह भी 1 प्रतिशत ही सही निकलती है. क्योंकि सुनी हुई बात जो भी बोलता है वह अपनी-अपनी तरफ से कुछ न कुछ जोड़ ही देता है. इसलिए ही कहावत बना है कि "एक हाथ की ककड़ी नौ हाथ का बीज." तो किसी ने पूछा यह कैसे एक हाथ की ककड़ी में नौ हाथ का बीज कैसे आ जाएगा. तो वह बोला बढ़ते-बढ़ते. जिसने भी बात अगले को कहा उसने अपनी तरफ से कुछ न कुछ मिलाया, इसलिए हो गया. इसलिए सुनी सुनाई बात पर विश्वास नहीं ही करना चाहिए. उसी तरह आँखों देखी बात पर भी सोच समझ कर ही विश्वास करना चाहिए. आजकल यूट्यूब फेश बुक पर बहुत सारी बातेँ देखने को मिलती हैं जोकि सारी की सारी लगभग झूठ ही होती है. लाईक और शेयर के लिए लोग उल्टी बाते लिख कर लोगों को भ्रम में डाल रहे हैं. टीवी पर भी टीआरपी बढ़ाने के लिए बहुत चीज़ गलत बोला जा रहा है. AI से न जाने क्या-क्या बना के दिखा रहे हैं. मैंने तो टीवी देखना ही बंद कर दिया है. TV , यूट्यूब और facebook देखना अपना क़ीमती समय बर्बाद करना है. क्योंकि इसमे 90 % गलत और झूठ होता है. इन पर सोच समझ कर ही भरोसा करना चाहिए.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - पर. बंगाल
आपके विचार पर हमारी बाते सुनी सुनाई बात पर कभी भरोसा मत करो ! बुरा देखन मैं चला मुझसे बुरा ना कोए ! किसी भी स्तिथि को आँकने के लिए आप अपने आप को उस जगह में रख कर सोचे आपका मन जो कहता है आँखे बंद भरोसा कर विश्वास के साथ आगे बढ़िए एक झूठे इंसान को भी ईमानदार चौकीदार की जरूरत होती है !हाँथों की लकीरों पर भरोसा हो जाए पत्थर भी कोहिनर बन चमक उठती हैं ईदी दीवाली सिर्फ़ पैसों वालों की नहीं होती हैं तक़दीर इंसानियत में बस इंसानो की होती हैं आँखों देखी बातों पर भी भरोसा सोच समझ करो ! बहुत सही कहा आपने पर क्या पता ?किसी इंसान को कोई मजबूरी हो सच पूछा जाए तो इंसान के लिए भूख से बड़ी मजदूरी हो ही नहीं सकती ! इंसान जो कार्य करता बजबुर हो कर ही गलत काम करता हैं । श्रम करने में हार नहीं मानता पर जब इंसान की महत्वकांक्षाए शौहरत मिलती है ।आधुनिकता के परिवेश विलासितापूर्ण व्यवहार जीवन जीने के तरीक़े में बदलाव करता है और मद में चूर हो सही ग़लत की परिभाषा भूल जाता है और जब आँखे खुलती पानी सर से ऊपर उठ जाता है फिर जीवन का क्रम है गोल घेरे में रह बदलाव ला खुशियाँ तलाश लेता है आँखो देखी कानो सुनी बातों पर ना बुद्धि ज्ञान से सच्चाई की ओर अग्रसर होता हैं - अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
कथन सत्यता को समेटे हुए , सुनी सुनाई बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि कोई बात जब मुँह से निकलती है तो आग की की तरह समाज में फैल जाती है । उसका कथन भी जितना मुँह उतनी बात अलग -अलग बदले हुए कथन हो जाते हैं । अंत में अफवाह के रूप में गलत रूप में समाज में परोसते हैं ,जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिये सुनी सुनाई बात पर विश्वास नहीं करो । 21वीं सदी के दौर में स्वार्थी मनुष्य झूठ के सहारे ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं । गीत भी है हे राम चन्द्र कह गये सिया से ….राजा और प्रजा दोनों में
होगी निसदिन खिंचा तानी, खिंचा तानी
कदम कदम पर करेंगे दोनों
अपनी अपनी मनमानी, मनमानी
जिसके हाथ में होगी लाठी
भैंस वही ले जायेगा
हंस चुगेगा दाना दुनका
हंस चुगेगा दाना दुनका
कौवा मोती खायेगा
हे राम चन्द्र कह गये सिया से ….
सुनो सिया कलियुग में
काल धन और काले मन होंगे।
आज जो परिणाम मिलता है वह सही नहीं होता। हाथ कंगन को आरसी क्या , हमारे जीवन में इंसानको सुनी-सुनाई बात पर विश्वास हो जाता हैं। जो उसका शारीरिक मानसिक पतन करने लगता है। अतः हमें सुनी-सुनाई बात पर आँख मूँद कर भरोसा नहीं करना चाहिए।सुनी-सुनाई बात पर हमें उसकी जड़ तक जाना जरूरी है । कीआजकल तो सुनी-सुनाई बात की तो छोड़ो ,कलयुग में जहां सत्य असत्य, न्याय अन्याय में बदल जाता है । आज समाज का यही टैग बन गया है । इस बात को ऐसे समझे दो दुकान आमने सामने थी । एक दुकान का मालिक अपना सामान सत्य बोल के समान बेच रहा था , दूसरा दुकानदार झूठ बोलकर सामान बेच रहा था, इस दुकान का सामान दो घण्टे में बिक गया , सच बोलने का सामान रात तक बिका ही नहीं । समाज की विचारधारा ही बदल गयी झूठ पर भरोसा करता है। हमारे संस्कार मूल्यविहीन हो गए हैं।धर्म की राह को भूल गए। मैं अहम को बढ़ावा मिल रहा है। छल कपट , छद्म से जीवन नकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र प्रेम , मानवता से जुड़ें । तभी दिल से दिल में भरोसा होगा।
- डॉ.मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन में बहुत बार ऐसे अवसर आते हैं जब हम किसी की सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करके अपना सबसे बड़ा नुकसान कर लेते हैं। रिश्तों पर ऐसा बहुत बार होता है और हम रिश्ते भी तोड़ देते हैं। इसी को कान का कच्चा होना कहते हैं। किसी की कहीं, किसी से सुनी बात पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि कई बार अपनी आँखों से देखा हुआ भी गलत समझ लिया जाता है। ऐसी स्थिति में केवल और केवल अपने विवेक से लिए हुए निर्णय ही सही होते हैं और यही करना भी चाहिए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
सुनी-सुनाई बात पर कभी भरोसा नहीं करना चाहिए। आँखें भी अक्सर वो दिखा देती हैं जो हमारा मन या इच्छा देखना चाहती है । आँखों को भी भ्रम हो सकता है, अतः किसी भी बात पर आँखे बंद करके विश्वास न करें। विशेष रूप से सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी के बारें में कोई धारणा तो बिल्कुल न बनाएं। किसी के बारे में ग़लत टिप्पणी करने से उसके आधे पाप के भागीदार बन जाते हैं हम। आँखें भी धोखा खाती हैं अथवा उन्हें धोखा खिलाया जा सकता है।अफ़वाहों और अनचाही कथनों पर तो बिलकुल भी विश्वास नहीं करना चाहिए। यदि किसी बात से आप का सीधा संबंध है तो उस बात का विश्लेषण अवश्य करें, उसके सत्यापन की पुष्टि करें तभी उस पर विश्वास करें । एक बार एक व्यक्ति चाणक्य के पास कोई बात कहने आया।चाणक्य ने उससे पूछा, जो बात तुम कहना चाहते हो क्या उसके सत्यापन की पुष्टि हो चुकी है यदि नहीं तो मुझे मत बतलाए, दूसरा क्या उस बात के बताने में आपका या मेरा कोई भला होगा यदि नहीं तो ऐसी बात कहने-सुनने का क्या औचित्य है। अतः सोच-समझ कर भरोसा करें व अपनी प्रतिक्रिया दें । - रेनू चौहान
दिल्ली
" मेरी दृष्टि में " बहुत सी बातों को समझना असम्भव होता है। सच्चाई क्या है। फिर भी सत्य जानना अवश्य होता है। पर सत्य को कैसे समझें। यही आज की परिचर्चा का विषय है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संपादन व संचालन)
कई बार आंखों देखी बात पर भी भरोसा करने का निर्णय गलत हो जाता है, तो केवल सुनी-सुनाई बात पर कैसे भरोसा किया जाना उचित है! इसलिए भरोसा कीजिए, लेकिन सोच-समझकर.
ReplyDelete- लीला तिवानी
नई दिल्ली
(WhatsApp से साभार)
कभी कभी सामने देखा हुआ भी गलत फहमी पैदा कर देता है। तो सुनी सुनाई बातें तो कर ही देंगी।
ReplyDelete- डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया
ग्वालियर - मध्यप्रदेश
(WhatsApp से साभार)