आचार्य क्षितिमोहन सेन स्मृति सम्मान - 2025

        जैसा जिस का खाना होता है वैसी उस की वाणी होती है। यह प्राकृतिक का नियम होता है। जिस से जीवन व्यतीत होता है। जीवन समय - समय पर विभिन्न समस्या का समाधान करता है। यही जीवनधारा वाणी का परिणाम है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। अब आयें विचारों में से कुछ विचार पेश करते हैं :- 
      जैसी संगत वैसी रंगत और जैसा‌अन्न वैसा‌ मन अक्सर सुनने को मिलता  तो आईये आज इसी पर चर्चा करते हैं कि जैसा खाना वैसी वाणी और जैसी दोस्ती वैसा कर्म    सत्य पर आधारित कहावतें हैं मेरे ख्याल में  यह दोनों कहावतें एक दम फिट बैठती हैं और सच्चाई पर आधारित हैं क्योंकि हम जैसा भोजन करते हैं उससे ही हमारा मन और स्वभाव प्रभावित होते हैं कहने का मतलब शुद्ध और सात्विक भोजन से वाणी पावित्र होती है तथा शांत रहती है अगर क्रूरता से भोजन बना हो और तामसिक भी हो तो अवश्य मन  में  क्रूरता आऐगी ,इसके साथ  संगत की रंगत भी जरूर सर पर चढ़ कर बोलती‌‌‌  है कहने का मतलब  बुरी संगत का असर बुरा और अच्छी व सच्ची संगत का अच्छा प्रभाव पड़ता है ,यह सत्य है कि खाने और संगति का असर व्यक्ति के जीवन व्यवहार और मानसिक स्थिति पर अवश्य पड़ता है अच्छी संगत व्यक्ति के‌ चरित्र और आदतों को सुधारती है जबकि बुरी संगत नकारात्मक और गलत व्यवहार को बढ़ावा देती है,अन्त में यही कहुंगा की  अन्न का और संगत का प्रभाव हमारे जीवन पर गहरा असर छाप जाते हैं  इसलिए इन दोनों को  सोच समझ कर अपनाना चाहिए ताकि हम अच्छा खांए और अच्छी सोच रखें और अच्छे दोस्त बनांए ताकि हमारा व्यवहार अच्छा हो हमारे चालचलन अच्छे रहें और हमारी आदतें हमारी सेहत पर आंच न आने दें , जिस के कर्म व वाणी अच्छी है और जिसका खानपान और चालचलन अच्छा है वोही  एक अच्छा इंसान कहलाने का हकदार है।

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

     जैसा खाना वैसी वाणी ,सादा जीवन उच्च विचार की तरह अनावश्यक बातों में मन नहीं लगाते ! जो वाणी की मधुरता से शहद घोल जन मानस के दिलों में बस जाते हैं !वैसा ही समय मौसम के अनुकूल स्वास्थ वर्धक पौष्टिक खाना खाते हैं, तो वाणी स्वस्थ और शुद्ध होगी ! उदर के रास्ते से मन वाणी सुमधुर विचार ख़ान पान से मन को जीत मित्रता का एहसास अनुभव से होता है ! हीरा - मोती का अडिग विश्वास ,सीधा सरल स्वभाव हीरा का उग्र क्रोधित होते हुये भी मोती का साथ नही छोड़ता ।विपदाओं का सामना मिलकर डट कर करने तैयार रहता  ! “वसुद्धेव कुटुंब “भारतीयता वाणी की पहचान है दिलों में रहने घर नही ढूँढते । खाने में रोटी नहीं गिनतें ।‌ समय की पहचान वाणी की मधुरता से कर्म ऐसा करते है कोई जब राह ना पाए पग पग दीप जलाए तेरी दोस्ती मेरा प्यार गीत सुना ,मूक बधिर अपंगता कर्म से आँक दोस्ती की मिसाल बन जाते है जिन्हे दुनिया जय वीरू की तरह कर्म आज भी याद करती है ! खाना चाहे जैसा भी हो भूख शांत कर अपने कर्म सदा ही अच्छे कार्य  में लगा वाणी की मधुरता से इतिहास बना जाते है ! 

- अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

          कहा गया है " जैसा खाओ के अन्न, वैसा होगा मन। " अर्थात हम जो खाना खाते हैं वह हमारे तन को ही नहीं, बल्कि हमारे मन को भी प्रभावित करता है। इसलिए हमें अपने खान-पान पर भी ध्यान रखना चाहिए ताकि हमारे तन के साथ-साथ, हमारे मन और वाणी के लिए भी लाभदायक हो सके। इस संदर्भ में खान-पान से आशय सिर्फ खाने के मीनू से ही नहीं है। भोजन कहाँ, किसके यहाँ, किस स्थिति- परिस्थिति में आदि से भी है। ये सभी कारक महत्वपूर्ण होते हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन में संगत भी महत्वपूर्ण कारक होता है। कहते हैं , हमारी संगत ही हमारा स्वभाव और चरित्र बता देती है कि हम किस प्रकार से अपना जीवनयापन कर रहे हैं यानी हमारी संगत अर्थात हमारी दोस्ती का पूरा-पूरा प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। हमारे कर्म पर पड़ता है।  इसलिए हमारे माता-पिता समय-समय पर हमें बुरी संगत से बचने की हिदायत देते हैं। क्योंकि हम जिनके साथ बैठते-उठते हैं, उनका स्वभाव, उनके कार्य, उनकी बोलचाल,  शनै:-शनै: हमारे आचरण में भी समाहित होती जाती है और फिर एक दिन हम भी उन्हीं जैसे हो जाते हैं यानी हम भी वही करने लगते हैं जो वे करते हैं। सार यही कि जीवन में अच्छे संस्कार और अच्छा चरित्र एवं अच्छा स्वास्थ्य व अच्छी वाणी मधुर व्यवहार बहुत जरूरी होता है। इसके लिए अच्छे मित्र और उत्तम भोजन महत्वपूर्ण कारक होते हैं।

- नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्य प्रदेश 

       यह कहावत—“जैसा खाना वैसी वाणी, जैसी दोस्ती वैसा कर्म”—मानव जीवन के आंतरिक और बाह्य दोनों आयामों को गहराई से जोड़ती है। मनुष्य जो खाता है, वह केवल शरीर को ही नहीं, उसकी भावनाओं, विचारों और वाणी को भी प्रभावित करता है। सात्त्विक भोजन मन को शांत रखता है, जिससे वाणी मधुर और संयमित बनती है; जबकि अत्यधिक उत्तेजक या अव्यवस्थित भोजन मन में अस्थिरता लाकर शब्दों में तेज़ी या कटुता ला सकता है। इसी प्रकार संगति मनुष्य के कर्मों का सीधे-सीधे मार्गदर्शन करती है। अच्छे मित्र सकारात्मकता, प्रेरणा और नैतिकता की ओर ले जाते हैं, जबकि नकारात्मक संगति धीरे-धीरे व्यक्ति के व्यवहार और निर्णयों में अवांछनीय परिवर्तन ला देती है। इस प्रकार आहार और संगति—दोनों ही व्यक्ति की वाणी और कर्म के मूल में छिपी अदृश्य शक्तियाँ हैं। यह सूत्र हमें सजग करता है कि जीवन में हम क्या ग्रहण करते हैं—चाहे वह भोजन हो, विचार हों या मित्रता—क्योंकि वही आगे चलकर हमारा चरित्र, व्यवहार और व्यक्तित्व निर्मित करते हैं। अतः विवेकपूर्ण चयन, मधुर आचरण और सकारात्मक संगति के माध्यम से ही मनुष्य जीवन को संतुलित एवं उन्नत बना सकता है।यह कहावत व्यक्ति को भीतर से देखने और स्वयं को सुधारने का अवसर देती है। हमारे खाने और दोस्तों का चुनाव—हमारी वाणी और कर्म का निर्माण करता है। इसलिए विवेक से चुनना, जागरूकता से जीना और सजगता से बोलना—जीवन की उन्नति का मूल मार्ग है।

- डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

         जैसा खाना,वैसी वाणी।जैसी दोस्ती, वैसा कर्म।। यह बात सही है कहा भी जाता है कि संगत और पंगत का जीवन को दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह योगदान जीवन में स्पष्ट परिलक्षित होता है। प्राचीन ग्रंथों और संतों ने कहा है जैसा खाए अन्न,वैसा बने मन।जैसा पिएं पानी, वैसी होती वाणी। अन्न से मन और बुद्धि प्रभावित होते हैं जो विचारों को गहराई तक प्रभावित करते हैं इन विचारों के अनुरूप ही हमारी दिनचर्या होती है,दोस्त होते हैं और फिर उन दोस्तों के अनुरूप ही हमारे कर्म हो जाते हैं।संगत की रंगत होती है जिसका प्रभाव जीवन पर पड़ता है। इसीलिए जीवन में भोजन की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।भोजन की शुद्धता के साथ साथ उसकी व्यवस्था हेतु लगा धन भी शुद्धाचरण से कमाया होना ही चाहिए।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर - उत्तर प्रदेश 

    जैसा खाना वैसी वाणी। सात्विक भोजन हमें शान्ति, मधुर वाणी और सकारात्मक सोच देता है, जबकि हानिकारक या अशुद्ध भोजन मन में चिड़चिड़ापन और कठोरता ला सकता है। इसीलिए तो बड़े बुजुर्ग कह गए कि हम जैसा भोजन करते हैं, वैसा ही हमारे शरीर और मन पर प्रभाव पड़ता है। वाणी को मधुर रखना हो तो भोजन भी सात्विक करना चाहिए।जैसी दोस्ती वैसा कर्म। हम जिनके साथ रोजमर्रा की जिंदगी में रहते हैं, उनसे ही हम विचार और कर्म गढ़ते रहते हैं। अच्छी मित्रता हमें सही दिशा, प्रेरणा और नेक कामों की ओर ले जाती है, जबकि बुरी संगति से कर्म बिगड़ते हैं और हमारा चरित्र भी प्रभावित होता है। सही मित्र चुनना, जीवन का सबसे बुद्धिमानी भरा फैसला होता है।

 - नूतन गर्ग 

दिल्ली 

      जैसा खाना वैसी वाणी, जैसी दोस्ती वैसा कर्म. बिल्कुल सत्य वचन. इस बात का महाभारत में जिक्र हो चुका है. लेकिन ये सुनी हुई और पढ़ी हुई बात है. अभी हम ये सब साक्षात देख सकते हैं. यदि हम तामसिक भोजन करते हैं तो हमारे विचार तामसिक हो जाते हैं. सात्विक भोजन करते हैं तो विचार सात्विक हो  जाते हैं. अगर कोई शराब पीए रहता है तो उसकी बोली विचार सभी बदल जाते हैं. ठीक उसी तरह जैसी हमारी दोस्ती होती है हमारे विचार और कर्म में भी अन्तर आ जाता है. एक चोर के साथ दोस्ती होगी तो वह चोर सब समय चोरी की ही बात करेगा. एक खिलाड़ी से दोस्ती होगी तो वह खेल की ही बात करेगा. उसी तरह फिल्म वाला फिल्म की ही बात करेगा. दुष्ट से दोस्ती करने पर दुष्टता की ही बात करेगा. जैसे कर्ण दुर्योधन के साथ दोस्ती कर हमेशा गलत करता रहा. मैंने स्वयं सभी लोगों से दोस्ती कर के देखा है कि दोस्त के अनुसार ही कर्म करना पड़ा है. इसलिए ये अकाट्य सत्य है कि जैसा खाना वैसी वाणी और जैसी दोस्ती वैसा कर्म. 

- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

कलकत्ता - प. बंगाल 

        बिल्कुल सत्य है - - - जिस तरह खाना खाकर तृप्ति मिलती है उसी तरह मीठे शब्दों से अमृततुल्य आनंद मिलता है। जीभ उस खाने के आनंद के स्वाद को महसूस कर लेती है लेकिन शब्द कम पड़ जाते हैं--फिर भी आनंदित हदय की वाणी भी मधुर हो जाती है। यही बात दोस्ती अर्थात हमारे आसपास के इंसान - - - दोस्त-भाई के माहौल का असर हमारे ह्दय पर सबसे अधिक पड़ता है। जैसे दोस्तों के साथ रहेंगे उनकी अच्छी बुरी आदतें - - खानपान हम पर असर डालते हैं-- बडे़ बूढ़े कह गये हैं कि--जैसा खायें अन्न वैसा बने मन। तो चलिए अच्छा खायें अच्छा बोलें अच्छे लोगों से दोस्ती रखें--अच्छे कर्म करें।।

- हेमलता मिश्र मानवी

 नागपुर - महाराष्ट्र

     घर संसार में कुटुंबकम का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान रहता है। परिवार की संख्यात्मक मान्य नहीं रहती बल्कि सदस्यों की व्यवहारिकता पर प्रकाश डालता है। दो सदस्य और उनकी वाणी तो ..? अगर दस सदस्य और उनकी वाणी का प्रभाव में ही अंतर समझ में आ जाता याने जैसा खाना वैसी वाणी, जैसी दोस्ती वैसा कर्म। सत्य है, वाणी खराब हो और कितना भी अच्छा बना लो सब बेकार हो जाता । अगर खाना खराब और वाणी अच्छी तो, वही सकुन अच्छे से मिलता है। इसी तरह हमारे कर्म सुदृढ होगे तो दोस्त में करने में मीठा होगी। अगर कर्म बुरी संगत में हो तो अच्छी दोस्त भी बेकार हो जाती है..... । 

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर" 

         बालाघाट - मध्यप्रदेश

      यह बिल्कुल सही है कि आप जैसा खाना खाते हैं वैसी ही वाणी भी बोलेंगे, क्योंकि खाने से ही विचार भी बनते हैं. अच्छा-सात्विक खाना खाएंगे तो विचार भी अच्छे-सात्विक ही होंगे. इसी तरह जैसे दोस्त होंगे वैसे ही कर्म भी होंगे, क्योंकि संगत का असर तो पड़ता-ही-पड़ता है. जैसी संगत वैसी रंगत! 

"काजल की कोठरी में कैसो हूँ सयानो जाए, 

एक लीक काजल की लागिहै पे लागिहै।''

इसलिए खाना सात्विक होना चाहिए और दोस्त अच्छे होने चाहिएं, जो समय पर काम आएं. मैं केवड़ अच्छे समय में ही साथ न दें, बुरे समय में भी कंधे-से-कंधा मिलाकर सहायक बनें. सात्विक भोजन और सात्विक दोस्त जीवन की अमूल्य निधि हैं।

- लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

      मनुष्य वही बनता है, जो वह खाता है, सुनता है, सोचता है और जिनके साथ चलता है। अर्थात सात्त्विक भोजन मन को शांति देता है, संयमित वाणी को जन्म देता है और श्रेष्ठ विचारों को पोषण देता है। ऐसे ही प्रिय मित्रता व्यक्ति को ऊंचाईयों तक ले जाती है—क्योंकि संगत ही संस्कार बनाती है। इसी प्रकार जब वाणी व विचार शुद्ध हों, संगत प्रेरणादायक हो, तब कर्म अपने आप तेजस्वी, न्यायपूर्ण और राष्ट्रहितकारी बन जाते हैं। यही कारण है कि श्रेष्ठ आहार, श्रेष्ठ विचार और श्रेष्ठ संगत—श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण का आधार हैं। वर्तमान समय में जब भ्रम, भ्रष्टाचार और भ्रमित करने वाली शक्तियाँ हर ओर सक्रिय हैं, तब एक सच्चा नागरिक वही है जो अपने कर्म, वाणी और संगत से समाज में अंधकार मिटाते हुए प्रकाश फैलाए। अतः उक्त संदेश यही प्रेरणा देता है कि स्वच्छ मन, स्वच्छ वाणी और स्वच्छ संगत ही एक शक्तिशाली भारत का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

- डॉ. इंदु भूषण बाली

ज्यौड़ियॉं (जम्मू) -जम्मू और कश्मीर

     उचित है हम यह प्रारंभ से जानते हैं "जैसा अन्न वैसा मन।"प्रायः सत्य पंथ पर चलने वालों का जीवन सात्विक होता है और उनकी जीवन-शैली, खान-पान सभी कुछ सात्विकता की ही तरफ होती है।ठीक वैसे ही मनुष्य की अपनी दोस्ती ही उसे बनाती है और उसे बिगाड़ती भी है।यह अपना निर्णय है कि हमें उस दोस्ती को रखना है या नहीं। क्योंकि यही दोस्ती मनुष्य को अच्छे कर्म करवाती है तो बुरे कर्म करवाने से भी पीछे नहीं हटती।।

- वर्तिका अग्रवाल ' वरदा '

वाराणसी - उत्तर प्रदेश 

 " मेरी दृष्टि में " जैसी दोस्ती वैसा कर्म। यह लाइन बहुत कुछ कहती है। परन्तु अमल बहुत कम करते हैं। यह सोच फिर भी अपनी होती है । जो समाज का आईना का काम करतीं हैं। अतः समाज को दिशा प्रदान करतीं हैं। 

               - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संचालन व संपादन)


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