सुदर्शन की स्मृति में लघुकथा उत्सव

           भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा सुदर्शन ' प. बद्रीनाथ भट्ट ' की स्मृति में " लघुकथा उत्सव " का आयोजन रखा गया है । अभी तक जगदीश कश्यप , उर्मिला कौल , पारस दासोत , डॉ. सुरेन्द्र मंथन , सुगनचंद मुक्तेश , रावी , कालीचरण प्रेमी , विष्णु प्रभाकर , हरिशंकर परसाई , रामधारी सिंह दिनकर , आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री , युगल जी , विक्रम सोनी , डॉ. सतीश दुबे , पृथ्वीराज अरोड़ा , योगेन्द्र मौदगिल , सुरेश शर्मा , लोकनायक जयप्रकाश नारायण , डॉ स्वर्ण किरण आदि की स्मृति पर ऑनलाइन " लघुकथा उत्सव " का आयोजन कर चुके हैं ।


              सुदर्शन ' प. बद्रीनाथ भट्ट ' 


        सुदर्शन का असली नाम प. बद्रीनाथ भट्ट है। इनका जन्म सियालकोट में 1895 में हुआ था। प्रेमचन्द के समान वह भी ऊर्दू से हिन्दी में आये थे। इन की भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है।इनका दृष्टिकोण सुधारवादी और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी है ।
उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है।  छोटूराम जी ने  सुदर्शन जी को जाट गजट का सम्पादक बनाया था। केवल इसलिये कि ये पक्के आर्यसमाजी थे । एक गोरे पादरी के साथ टक्कर लेने से गोरा शाही सुदर्शन जी से चिढ़ गई। चौ. छोटूराम, चौ. लालचन्द से आर्यसमाजी सपादक को हटाने का दबाव बनाया। चौ. छोटूराम अड़ गये। सरकार की यह बात नहीं मानी। यह घटना प्रथम विश्व युद्ध के दिनों की है। सुदर्शन जी 1916-1917 में रोहतक ( हरियाणा ) में कार्यरत थे।। "हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और 1920 में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। ' झरोखे ' इन की लघुकथाओं का संग्रह है । इनके लगभग 14 कहानी संग्र प्रकाशित हुए है । जिन में रामकुटिया , पुष्पलता , परिवर्तन , फूलवती , सुदर्शन सुमन , कल्प मंजरी , अँगूठी का मुकदमा आदि प्रमुख कहनी संग्रह है । इनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी।
इन्होंने  साहित्य-सृजन के अतिरिक्त  अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं। सोहराब मोदी की सिकंदर (1941) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन 1935 में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। ये  1950 में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। ये 1945 में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्य  थे। फिल्म धूप-छाँव (1935 ) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर, बाबा मन की आँखें खोल आदि उन्ही के लिखे हुए हैं। सुदर्शन जी महान लेखक थे । इन का देहावसान 16 दिसंबर 1967 को मुंबई में हुआ था ।

          विषय अनुकूल लघुकथाओं को सम्मानित किया जा रहा है : -


                           दहेज़ 


माँ !माँ !की आवाज़ आयी ।माँ थोड़ा रुकी।फिर से आवाज़ गूंजी ।माँ नरेश से दीदी की शादी क्यों नहीं करती ?

माँ ने ख़ुशबू को बोला !शांत रहो !उनको दहेज की लालच है ।रहते हैं पड़ोस में ।लेकिन हर दिन नरेश की शादी का लिस्ट बनाते हैं ।

       ख़ुशबू !ने फिर कहा !माँ!नरेश बहुत अच्छा इंसान है ।माँ !सीमा की शादी की बात बढ़ाओ ।

ज़िद के आगे !पिता ने अपनी इज़्ज़त ताक पर रख दिया ,और बेटी के लिए अपने मित्र के घर गए।

     नरेश से रिस्ता मांगने पिता चले ।नरेश की माँ का कहना माना जाता है ।पूरी कमाई हाथ में क्या मिलता ।लालच बढ़ता गया ।अब तो आदत बन गई ।दूसरे का पैसा भी अपने पॉकेट में ही अच्छा लगता है ।

नरेश की माता जी के बात सुन पिता वापस आकर दुखी हो गए।

   सोचने लगे ।बच्चों को पढ़ाया लिखाया ।पैसे तो ख़त्म हो गये।बेटे की तरह ही मैंने भी मान सम्मान दिया है ।

पीछे से सीमा (बड़ी बेटी)आयी।उसने पिता से कहा ।अगर आपने लड़कों की तरह पाला है तो इस दहेज़ के चक्कर में न रहे ।

  मैं लड़कों से भी अच्छा करके दिखाऊँगी।

    कुछ दिन बाद !नरेश अपनी नौकरी में था ।सीमा सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा पास कर समाज में स्थान बना ली।

लड़के वाले के तांते लग गए ।पिता आश्चर्य से देख रहे हैं ।अरे ..अरे ..अरे …ये क्या ……


- सुधा पाण्डेय 

   पटना - बिहार

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                         बेटियां


 वह चार बहनों में सबसे छोटी थी!

 जो भी घर में आता पिता से सहानुभूति जताता... 

चार बेटियां!! 

अरे रे! 

दहेज देते देते ही बूढ़ा  हो जाएगा बेचारा... चिता को आग देने वाला भी कोई नहीं! 

उस क्षण बेटियों को बेटा कहने वाले पिता का चेहरा भी मायूसी से भर उठता! 

बड़ी बहन रुऑसी हो उठती! 

मंझली बहनें गुस्से में बड़बड़ाती और उसकी आंखों में निश्चय की लाली उतर आती! 

समय ने करवट ली! बड़ी दोनों  बहनें विश्वविधालय मे प्रवक्ता चयनित हुईं और मंझली डॉक्टर बनी, और वो बनी- जिला कलेक्टर.. 

माता-पिता अब 'कलेक्टर भवन' में रहते हैं! 

अब जो भी घर मे आता है, कहता है- 'काश हमारी भी होतीं ऐसी बेटियां'!


- अंजू अग्रवाल 'लखनवी'

अजमेर - राजस्थान

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                     बदलती हवा 


            सुबह से घर में एक उथल-पुथल भरा खुशियों का माहौल बना हुआ था। आज लावण्या जी के पोते के लिए लड़की देखने जो जाना था।

            “ अरे परिधि! सब तैयार हो गए या कोई बाकी है?”…..विस्मित ने घड़ी बाँधते हुए पूछा।

          “ हाँ हाँ..सब तैयार हैं। रोली और पापा जी तो सबसे पहले तैयार होकर बैठे हैं। बस मम्मी जी आ जाएँ ऊपर से तो निकलते हैं “…कहते हुए परिधि उन्हें बुलाने चली।

           “ उसका वहाँ क्या काम है? हम सब काफी हैं….पापा जी की रौबीली आवाज गूँजी।

              “ वहाँ मेरा ही तो काम है और मैं जाऊँगी। चलो फटाफट निकलें अब।”

              आज लावण्या जी अपने अतीत की कड़वी स्मृतियों के दंश को जीती हुई बेहद परेशान थी। शिक्षित न होने और दहेज….इनके कारण  उनके सास-ससुर और पति ने सदा उन्हें अपमानित किया था। आज वे एक संकल्प लेकर चली थी। जो अपने बेटे के समय नहीं कर पाई वह पोते के समय करने के लिए कटिबद्ध थीं।

              वहाँ पहुँच कर सारी बातें होने के बाद लावण्या जी ने बहुत धीर-गंभीर स्वर में कहा….” सारी बातें ठीक हैं पर मुझे दहेज चाहिए और वह भी होने वाली पोता बहू से। आप लोगों को मान्य हो तो मैं कहूँ।”

                “ मैं तैयार हूँ दादी माँ! आप कहिए।”

       लावण्या जी पूर्ति बिटिया का हाथ अपने हाथ में लेकर बोली….तुझे दहेज देने के रूप में आज मुझे दो वचन देने होंगे। पहला तू मेरे गाँव में एक विद्यालय खोलेगी ताकि गाँव की बेटियाँ ही नहीं उनकी माएँ भी शिक्षित हो सकें और दूसरा मेरी बहू परिधि की तरह तू भी समय आने पर ऐसा ही दहेज देगी और लेगी। लेकिन मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है। अपने पोते की ओर से मैं भी तुझे दहेज देने के रूप में दो वचन देती हूँ। जीवन में जो भी निर्णय लेना होगा वह तुम दोनों की सहमति से ही होगा और यह तुम्हारे साथ सदा कदम मिला कर चलेगा।” 

            लावण्या जी के पति आज उनका यह यह क्रांतिकारी रूप देख कर निशब्द थे।


- डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई

देहरादून - उत्तराखंड

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                           योग्य


अब रुपये बचा कर रखो हमें रजनी की शादी में दहेज भी तो देने होंगे। 

नहीं- रजनी की माँ।

 हम रजनी को इतना काबिल बनाएंगे की  -- वो अपने कमाई से  जमाई  का सहारा  जीवन   संगिनी होगी। 

वो कैसे?

अरे!  जो रुपये तुमने जमा किए दहेज के  लिए,

 उसी रुपये से हम रजनी को डॉक्टर की  पढ़ाई करा देते हैं,  जो  सही होगा।  

 मेरी बेटी अति कुशाग्र बुद्धी  वाली है।

आज रजनी एक सफल डॉक्टर बन कर एक  अस्पताल में anaethesist के पद पर कार्यरत थी। बिना उसके कोई शल्य चिकित्सा पद्धति संबंधित कार्य नहीं हो  सकता था। 

उसके जैसी योग्य डॉक्टर के लिए स्वंय डॉक्टर राकेश उसे अपनी जीवन संगिनी बनाने के लिए रजनी के पिता से बात करने उसके घर पहुंच गए। 

आज मानो रजनी के पापा की मन की मुराद पूरी हो गई। 

खुशी से रजनी की माँ--

 जल्दी डॉक्टर राकेश का मुँह मीठा कराओ।

आज " बेटी का दहेज" उसे इस योग्य बना कर मैंने चुकता कर दिया। 

क्यों-- बेटा राकेश तुम्हारा क्या विचार है?

बिल्कुल -पापा अब हम दोनों पति पत्नी,  जल्द ही अपना खुद  का नर्सिंग होम खोलने के लिए मिलकर मेहनत करेंगे। 

चारों के खुशी की हंसी वातावरण को मधुर बना रही थी।

- डॉ पूनम देवा 

  पटना - बिहार

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                   वचन रूपी दहेज़


बारात आ गयी......बारात आ गयी.....सहेलियाँ शोर मचाती हुई दुल्हन स्नेहलता के कमरे में आकर चुहल करने लगीं। जैसे-जैसे निशा भोर की ओर प्रस्थान कर रही थी, वैसे ही स्नेहलता और राजीव के विवाह के माँगलिक कार्यक्रम भी सम्पन्न होते जा रहे थे।

सातवाँ फेरा पूर्ण होते ही पंडित जी ने घोषणा की.... "अब आप दोनों पति-पत्नी हो गये हैं।" उपस्थित मेहमानों के साथ-साथ घूँघट में छिपे स्नेहलता के मुख पर भी मुस्कान आ गयी।

एकाएक दूल्हे राजीव के गम्भीर स्वर ने सबका अपना ध्यान खींचा.... "मुझे अपने सास-श्वसुर से एक दहेज और चाहिए।" सुनते ही स्नेहलता और उसके माता-पिता के साथ-साथ सबकी आँखों में एक प्रश्नचिह्न आकर खड़ा हो गया। फेरों के बाद दहेज की बात.....यह तो सर्वथा गलत है। चहुँ ओर कानाफूसी होने लगी और सब राजीव को देखने लगे।

उसके सास-श्वसुर ने कहा," बेटा! तुम यह क्या कह रहे हो? हमने अपनी सामर्थ्य के अनुसार अपनी दहेज में बहुत कुछ दे दिया है। अब क्या शेष रह गया ह? और वह भी फेरों के बाद! 

राजीव ने बड़े आदर के साथ उनको देखते हुए कहा...... मम्मी-पापा! आप निश्चिंत रहें, मैं कोई भौतिक सामान की इच्छा नहीं रखता हूँ।

मुझे तो आपसे दहेज में एक वचन चाहिए।

स्नेहलता के माता-पिता ने प्रशनसूचक दृष्टि उस पर केन्द्रित कर दी।

राजीव ने कहा....."मम्मी-पापा, हम दोनों अपने जीवन की नयी पारी शुरू करने जा रहे हैं। हम दोनों बुद्धि-विवेक के साथ अपनी गृहस्थी को चलाएंगे। मैं आपकी पुत्री यानि अपनी पत्नी के सुख-दुख में पूरा साथ देने के वचन दे चुका हूँ और इन वचनों को मन-वचन-कर्म से निभाऊँगा। 

आपकी बेटी को ससुराल में कोई परेशानी तो नहीँ है, यह जानने का अधिकार आपको सदैव रहेगा। 

परन्तु "आपको, अग्नि को साक्षी मानते हुए, मुझे यह वचन देना होगा कि आप अपनी बेटी-दामाद के जीवन में आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप नहीं करेंगे।" मुझे आपसे बस यही दहेज और चाहिए।

स्नेहलता के माता-पिता के मुख पर संतोषजनक मुस्कान आयी। उन्होंने दामाद की आँखों में देखते हुए 'वचन रूपी दहेज' देकर अपनी बेटी-दामाद को गले लगा लिया।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'

देहरादून - उत्तराखंड

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                          शादी


घर मे बड़ी चहल पहल थी, सुबह नई बहू का घर मे प्रवेश हुआ था । बहुत थक गई थी, तो कुछ हितैषी लोगो ने उसे कहा," बहुरिया, यहीं कमर सीधी कर लो।" और वो सो गई 

थोड़ी देर में उस कमरे में बहुत सी रिश्ते की सास और नंदे आकर गप्प मारने लगी । देखो हमारा इतना पढ़ा लिखा बाबू जिसको पेट्रोल पंप तक दहेज में मिल रहा था, उसको तो शादी में कोनो बड़ा दहेज नही मिला । छुटपुट आवाज़ें डॉक्टर बहू के कान में पहुँच रही थी, उसने रेलवे अफसर से लव मैरिज की थी । बहुत दुखी हो गयी कि आज भी समाज मे योग्यता से दहेज क्यों बाज़ी मार लेता है  ??


- भगवती सक्सेना गौड़

   बैंगलोर - कर्नाटक

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                          दहेज़ 


शोर गुल करते बच्चों ने अचानक गुरुजी के कक्षा में प्रवेश करते ही अदब से नमस्कार कर गुरुजी की आज्ञा पाते ही अपना स्थान ग्रहण किया !

 गुरुजी ने कहा ! कल मैने दहेज के बारे में बताया था! 

दहेज लेना और दहेज देना गुनाह है! शादी में लड़के वालों की तरफ से दहेज की मांग हो तो कडी़ कारवाही होनी चाहिए! 

उसी समय गुरूजी का फोन आया ! सामने से आवाज आ रही थी "रौशन लाल जी कृपया मुझे थोड़ा  समय दें मैं आपको बाकी की रकम महीने दो महीने में दे दूंगा ! आपकी बहू संगीता को मैं भेज रहा हूं "!

यह सुनते ही गुरूजी (रौशनलाल जी) के तेवर ही बदल गये... " नहीं नहीं दहेज की रकम पूरी मिलने के बाद...  अपनी बेटी को भेजना! आखिर सुख भी तो वही भोगेगी "!

फोन स्पीकर में था.... "काटो तो खून नहीं"

झेंप मिटाते हुए गुरूजी ने कहा ...... " हाँ तो बच्चों मैं क्या कह रहा था".....?

गुरूजी की दोहरी बातें सुन बच्चे अवाक थे......! 


                   -  चंद्रिका व्यास 

                  मुंबई - महाराष्ट्र

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                   दहेज़ नहीं लेना है


-- "बधाई हो वर्मा जी! सुना है बेटे की शादी पक्की हो गई।"

-- "धन्यवाद मिश्रा जी! सही सुना आपने। बहुत अच्छे लोग मिले हैं हमें। होने वाली बहू भी सुंदर, सुशील और खूब पढ़ी लिखी है।"

-- "हाँ-हाँ क्यों नहीं, आपका बेटा भी तो क्लास वन आफिसर है। ऊपर से देखने में भी एकदम राजकुमार, तो राजकुमारी तो मिलनी ही थी। दहेज भी तो झोली भर-भरकर मिला होगा।"

-- "नहीं-नहीं! कैसी बातें करते हैं? हम आज के जमाने के लोग हैं। दहेज का तो नाम भी नहीं लेना है। मेरा बेटा इन कुरीतियों के सख्त खिलाफ है।"

-- "ओह, फिर तो शादी के सारे खर्चे का भार आपके अपने पाकेट पर ही आ गया..."

-- "अरे वाह!! बेटे की शादी में मैं क्यों खर्च करूँगा? मैंने तो कह दिया है उन्हें कि बारातियों के स्वागत और शादी-रिशेप्शन सभी का खर्चा उनके जिम्मे ही है। बस, हमें दहेज नहीं लेना है..."

- रूणा रश्मि 'दीप्त'

   राँची - झारखंड

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                        समाज


"हां जी, तो फिर पक्का मान लें हम यह रिश्ता।

लेकिन,एक शंका है आपको बुरा न लगे तो कह दूं।"

"हां जी,कहिए,जरुर कहिए।मन में कुछ मत रखिएगा।"

"इतना होनहार, काबिल आफिसर बेटा,और आप दहेज में कुछ नहीं मांग रहे,शक होता है मन में कहीं कुछ......।"

"बस,यही शक तो मुख्य कारण बन गया है,दहेज प्रथा के जारी रखने का। आप जैसे लोग ही जब समाज में ऐसी मानसिकता रखेंगे तो फिर बिना दहेज मांगे शादियां कैसी होगीं?"

"कह तो सही रहे हैं आप, लेकिन बिना दहेज

बिटिया विदा करुंगा तो समाज क्या कहेगा?"

"ठीक है भाई साहब,आप जैसा ठीक समझें, कीजिएगा।"


- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर -  उत्तर प्रदेश

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                          प्रतिशोध


आज मीना की लड़की की शादी एक अच्छे घराने में होने जा रही थी पुरानी बात को याद करते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पंरतु इस बात सुकून भी मिलता है तत्कालीन फैसला उसकी जिन्दगी में प्यारा ही प्यार लेकर आया था और वह आज सुख का जीवन बसर कर रही है। पच्चीस साल पहले का वह मंजर मीना भुलाये नहीं भुलता है।

मीना की सगाई को हुए चार पांच साल हो गये थे परन्तु अभी तक शादी नहीं हो पा रही थी क्योंकि उसका मंगेतर शादी के लिए टाल मटोल कर रहा था। जब मीना की सगाई हुई थी तो उसकी मां व भाई अन्य रिश्तेदार बड़े खुश हुए थे। सभी रिश्तेदारों को नहीं मालूम था कि किस प्रकार के युवक से मीना का रिश्ता जोड़ दिया है। इन्होंने सिर्फ नौकरी देखी थी। युवक भानू सरकारी नौकर था बात करने का तरीका बड़ा ही विनम्र और शालीन था पंरतु लालची नंबर वन था। लोग हैरान थे कैसे इतने गरीब परिवार से नाता जोड़ लिया है तथा विना किसी मांग से भानू का यह गणित उनकी समझ से परे था। उसने बड़ी दूर की कौड़ी सोची थी क्योंकि मीना के दोनों भाई कुछ समय बाद सरकारी नौकर हो गये थे और मीना इनकी इकलौती बहन थी।मीना दसवीं पढती थी शादी तय होने वाली थी। कुछ ही दिनों बाद मीना का दसवीं का परिणाम आया था जिसमें कम्पार्टमेंट आयी थी। मीना के भाइयों ने भानू से शादी की बात की तो भानू ने कहा क्या जल्दी पड़ है मीमीना दसवीं कर ले शादी कर लेंगे। मीना ने दसवीं भी पास कर ली। भाईयों ने मीना की शादी की बात कही तो भानू ने वही बात दोहराई मीना को ड्राफ्टमैन की ट्रेनिंग के लिए भेज दो उसके बाद शादी कर लूंगा।

लोकलाज के लिए मीना के भाईयों ने उसे ट्रेनिंग के लिए भेज दिया। समय गाड़ी की तेज रफ्तार भागा मीना ने ट्रेनिंग पूरी की। भानू शादी के लिए मान गया। विवाह की तैयारी पूरी हो गई। भानू बारात लेकर पंहुच गया।

लग्न मंडप में फेरे लेते समय भानू ने चंद फेरे लेने के बाद मीना के घरवालों से टेलीविज़न की मांग की तो मीना के अंदर बर्षों से दबी प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी। 

उसने भानू से शादी करने के लिए सारे समाज के सामने इंकार कर दिया और कहा कि ऐसे लालची आदमी से शादी नहीं करुँगी जो अब ऐसी मांग कर रहा है बाद में न जाने क्या क्या मांग करेगा। 

भाई जी इसको यहां से निकाल दो। तो वहां होनहार व समाज सेवक मुकेश मीना के विचारों से प्रभावित हुआ। मुकेश ने मीना से शादी करने की इच्छा व्यक्त की तो मीना व उसके घरवाले मान गये। ठीक है हमें ऐसे ही युवक की जरुरत है। उसने बिना दहेज व साधारण रीति रिवाज से शादी की भानू हाथ मलता रह गया। 

- हीरा सिंह कौशल 

मंडी -  हिमाचल प्रदेश

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                  समझो दिवाकर


दिवाकर ने अपने परिचित मधुसूदन सिन्हा के लड़के के लिए एक रिश्ता बताया और आज जब वे लड़की देखकर आये, तो लड़के, लड़के की बहन और उसके जीजा को लड़की और उसके परिवार के लोग काफ़ी पसंद आये परंतु सिन्हा साहब ने इंकार कर दिया l

" जब सब ठीक है तो मना करने का कारण?"

दिवाकर ने पूछा l

" मुझे नहीं लगता कि ये लोग शादी ठीक से कर पायेंगे l"

मिस्टर सिन्हा ने कहा l

" मतलब!!"

" मतलब, लोग काफ़ी पुराने ख़यालात के हैं l मुझे नहीं लगता कि ये लोग वेंकट हॉल बुक करेंगे या डीजे लगायेंगे l और तुम तो जानते ही हो कि बारात में हमारे ज्यादातर लोग पढ़े - लिखे होंगे I"

" वो कोई बड़ी बात नहीं है, यह बात की जा सकती है l"

" अरे नहीं, तुम समझ नहीं रहे हो l ये लोग शादी ठीक से नहीं कर पायेंगे l"

सिन्हा साहब ने फिर वही बात दोहराई l

" सिन्हा साहब! मैं फिर कहूँगा कि लोग ग़रीब जरूर हैं पर लड़के - लड़की का जोड़ सोलह आना ठीक है l लड़की पढ़ी - लिखी, संस्कारवान है और परिवार भी अच्छा है, फिर सबसे बड़ी बात तुषार को भी तो लड़की पसंद आ गई है l मेरी मानो तो यह रिश्ता हाथ से मत जाने दीजिए l"

"तुम्हारी अक्ल को आज क्या हुआ है दिवाकर! अरे भाई, शादी में और भी बहुत कुछ देखना पड़ता है l जब कह रहा हूँ कि ये लोग शादी 'ठीक' से नहीं कर पायेंगे तो समझ काहे नहीं रहे हो, कुछ तो पर्दे की बात भी समझो l"

सिन्हा साहब ने 'ठीक' शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा l

"ओह!!! अब मैं समझा कि 'शादी ठीक से नहीं कर पायेंगे' का असल अर्थ क्या है l"

"ही ही ही!!! समझते हो पर थोड़ा देर से, चिंता न करें अनुभव की बात है आते - आते ही समझ में आएगी, लो चाय पियो l"

दिवाकर इस आदमी से पहली बार मिल रहा था l


- नेतराम भारती

गाज़ियाबाद - उत्तर प्रदेश

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                           दहेज़ 


निर्मला ने अपने बेटे समीर की शादी बहुत धूमधाम से की। शादी के बाद मुँहदिखाई की रस्म में  समस्त पड़ोसियों को आमंत्रित किया गया। 

"निर्मला, तेरी बहू तो बहुत सुंदर है। बिलकुल चांद का टुकड़ा। ऐसा लगता है, हाथ लगाते ही मैली हो जाएगी, निर्मला की प्रिय सखी रमा ने चुटकी लेते हुए कहा"।

"रमा, बिलकुल सही कहा तुमने। और देखो तो इसके नैन-नक्श भी कितने सुंदर हैं, एक और पड़ोसन ने भी प्रशंसा से निर्मला की बहू को निहारते हुए कहा"।

"आखिर बहू किसकी है"? निर्मला ने गर्व से भरकर कहा। 

"सुना है, तेरी बहू अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। तब तो वह अपने साथ बहुत सारा दहेज भी लाई होगी! क्या- क्या लाई है"?  रामू की माँ ने पूछा।

रामू की मां एक तेजतर्रार महिला थी। उसकी कम लोगों से ही बनती थी।

"मेरी बहू अपने साथ संस्कारों की अपार दौलत लाई है, जिसके सामने कुबेर का ख़ज़ाना भी कम है"।

निर्मला की यह बात सुनकर रामू की माँ उसकी तरफ हैरानी से देखने लगी। 

"ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो, रामू की अम्मा। मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। संसार में संस्कारों के दहेज से बढ़कर कुछ भी नहीं है"। 

"बिलकुल सही कहा आपने"। सभी ने  निर्मला की हाँ में हाँ मिलाई। बहू का मुखमंडल भी सास की यह बात सुनकर खुशी और गर्व से दमक उठा। 

- अर्चना कोहली

नोएडा - उत्तर प्रदेश

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                         कमी


राखी वापस मायके आ गई पूरे मोहल्ले में खुसर पुसर हो रही थी ।

" अरे! बताओ.. दीवान साहब ने कितनी अच्छी शादी की थी.. लोग भी भले लग रहे थे.. पता नहीं क्या हुआ," रामेश्वर गुप्ता शर्मा जी से मुखातिब होते हुए बोले।

"आजकल का रवैया कुछ समझ नहीं आता ..शादी भी लॉटरी जैसी हो गई है..," खींसे निपोरते हुए शर्मा जी बोले ।

"कितना दान दहेज दिया था दीवान साहब ने.. शादी का इंतजाम और लेन-देन..कई दिन तक चर्चा का विषय रहा था,"गुप्ता जी चेहरे पर हाथ फेरते हुए बोले ।

" अरे ! जब संपन्न लोगों के यह हाल हैं तो हम मध्यमवर्गीयों का तो भगवान मालिक..," शर्मा जी ने अपनी बात जोड़ी ।

" हुआ क्या होगा.. यह तो पता चलता.. पर पूछे कौन," यादव जी ने कहा।

अचानक किसी कार्य से दीवान साहब घर के बाहर आए ।

"अरे, आप लोग सब इकट्ठे यहाँ.. क्या हुआ.. कुछ खास बात..," दीवान साहब ने पूछा ।

"नहीं.. नहीं.. कुछ खास नहीं.. बस गुप्ता जी सामने दिख गए तो दुआ सलाम हो गई ,"शर्मा जी झेंपते हुए बोले ।

"दीवान साहब ..बिटिया आयी है.. सब कुशल मंगल.. वह कामवाली कह रही थी.. हमेशा के लिए आ गई," यादव जी धीरे से बोले ।

" हाँ ..सही कह रही है वह... बिटिया अब यहीं रहेगी..," दीवान साहब ने मध्यम स्वर में जवाब दिया ।

" भाई साहब आपने तो बहुत अच्छी शादी की थी.. खूब दिया लिया था ..ससुराल वालों को क्या कमी रह गई," गुप्ता जी बोले ।

"भाई ..सही कह रहे हो.. जो दे सकता था वह सब कुछ दिया ..पर अच्छी किस्मत देना किसी माँ-बाप के हाथ में नहीं होता..," दीवान साहब छलछलाई आँखों को पोछते हुए वहाँ से चले गए ।

- सीमा वर्णिका 

कानपुर - उत्तर प्रदेश

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                  सोने का मंगलसूत्र


          दर्जनों लड़कियों को देखकर छांट देने के बाद, जब दिनेश को  माधवी भा  गई, तब माधुरी के बाबूजी ने दिनेश को साफ-साफ कह सुनाया -

  " बेटे ! मेरी बेटी तुम्हें पसंद आई, उसे ही दहेज समझो l दहेज के तौर पर  पांच -सात लाख रुपये और  हजारों रुपए के सामान नहीं दे पाऊंगा मैं ! "

" आप भी कैसी बातें करते हैं ? मैं लेखक - पत्रकार हूं । मैं दहेज के खिलाफ शुरू से ही आवाज उठाता आया हूं l  आप अपनी इच्छा से जो कुछ भी देंगे, मुझे स्वीकार होगा  । "

"   वाह बेटा वाह !  धन्य है तुम्हारे संस्कार ! तुम्हारे जैसे आदर्श विचार वाले लड़के आज के कलयुग में मिलते ही कहां है ? तो... मैं शादी पक्की समझूं  ? "

"  क्यों नहीं ? किंतु आप तो जानते ही हैं कि मेरे पिताजी मेरी शादी में एक पैसा भी खर्च नहीं कर सकते ! और मेरी शादी भी  धूमधाम से करना चाहते हैं l अब बैंड बाजे, झारबती, रिश्ते-पार्टी यानि  सब मिलाकर दो -तीन लाख रुपये तो खर्च पर ही जाएंगे न ? "

"  लेकिन मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा ? फिर आदर्श विवाह तो कोर्ट या मंदिर में भी किया जा सकता है बेटा ! पार्टी देने की बात है, तो उतना भार संभाल लूंगा मैं l 

.....। - थोड़ा रुक कर वह आगे बोला -

"  फिर आपके पास पैसे तो होंगे ही न ? आपने क्या यह सोचकर पैसे जमा नहीं किए हैं कि कोई मुफ्त में आपकी बेटी से शादी कर लेगा ! "

"  नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है ! अगर दहेज देना ही पड़े, तो लड़की के बाप को, अपना मकान जमीन भी गिरवी रखनी पड़ती है l आपकी इतनी ही जिद है तो मैं अपने बेटे के सामने हाथ पसार कर किसी प्रकार एक लाख रुपये नगद और बाराती के  खाने पीने का  इंतजाम कर लूंगा l इससे अधिक  पैसे का इंतजाम नहीं होगा मुझसे ! "

"  माफ कीजिएगा मैं अपने लिए दहेज की मोटी रकम नहीं ले रहा तो कम से कम आपको इतना तो करना ही पड़ेगा l..... और हां ! आपकी बेटी के गले में सिर्फ मंगलसूत्र नहीं होना चाहिये l मंगलसूत्र के रूप में सोने का हार होना चाहिए, वह भी वजनदार और असली सोने का....! " 


- सिद्धेश्वर 

 पटना -  बिहार

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                  दहेज़ की लॉटरी


"हमें कुछ नहीं चाहिए बस लडक़ी को एक साड़ी में विदा कर देना। हमारा बेटा तो इंजीनियर है ,  छः फुट लंबा है । उसे लंबी लड़की ही चाहिए । " लड़के के चाचा ने लड़की वालों की माँ से कहा ।

" ठीक है, आपकी कोई मांग नहीं है तो हम अपनी रानी को अभी दिखा देते हैं ।"

"लाडो रानी  तैयार होकर मेहमानों के लिए चाय , नाश्ता तो  ले आ। " माँ ने बेटी को कहा ।

"जी अम्मा  ।" बेटी ने माँ को कहा।

ड्रॉइंग में रानी सबके लिए चाय समोसे ले के आयी । सबको चाय देकर वह भी चाय पीने लगी।

"रानी तुम्हारी लम्बाई कितनी है , क्या करती हो ? ",चाचा ने पूछा

"पाँच फुट हूँ , रिलाइंस में इंजीनियर हूँ।"

ठीक , औपचारिक बातों में  चाय  भी समाप्त हो गयी।

बर्तन लिए रानी ड्रॉइंग रूम के बाहर बरामदे में  बात सुनने के लिए खड़ी हो गयी  ।

माँ ने चाचा से कहा , "रानी कैसी लगी ?"

"लम्बाई तो कम है , लड़के के साथ मैच नहीं करेगी।"

" हमने तो आपको बायोडेटा में लम्बाई भी  लिखी थी।

फिर अब यह कैसा सवाल उठा रहे हों ?"

"  बहन जी , हमने बेटे की पढ़ाई में अपनी जेब से ज्यादा खर्च किया है , फिर आपकी रानी तो ठिगनी है । अगर आप दहेज  में फ्लैट देंगे तो ही हम अपने बेटे की शादी करेंगे।"

माँ यह सुनकर अवाक हो के कहने लगी , "हमारी बेटी भी तो इंजिनियर है । हमने भी तो उसकी पढ़ाई में खरचा किया है। "

यह वार्तालाप सुनकर रानी ड्राइंगरूम में आके कहने लगी , " आप जैसे ही दहेज लोभी  बेटे की बोली लगाते हैं ।  मुझे  ऐसे भीखमंगों से शादी नहीं करनी है । अपने बेटे का चेक कहीं और केस कराना।  मैं तो भारत की आत्मनिर्भर सशक्त नारी हूँ, मुझे कंपनी छः महीने में  दस लाख का पैकेज देती है । आपकी लॉटरी यहाँ पर नहीं खुलेगी ।   आप जा सकते हैं, टाटा , बाय -बाय।"

   ।"

- डॉ. मंजु गुप्ता

    मुंबई - महाराष्ट्र

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                          दहेज़


          “क्या माँ इतनी सारी साड़ियाँ रखी हुई है और आप हैं कि वही पुरानी तीन चार साड़ियों को पहनती रहती हो …ये देखो ये सिल्क की साड़ी इसमें तो कीड़ा लग गया है…”छोटे से छेद दिखाती हुई रिया ने रीता को कहा।

“मुझे पता है ,यह सब आप मेरी शादी के लिए जोड़ रहीं हैं ,ना।इनमें से मैं एक भी नहीं ले जाऊँगी ना पहनूँगी देख लेना।”

“अरे!अभी से जोड़ कर रख रही हूँ ताक़ि एक साथ ज़्यादा भार न पड़ जाए।”

माँ ,मैं तब तक शादी नहीं करूँगी जब तक नौकरी न कर लूँ और कान खोल कर सुन लो शादी मैं अपनी पसंद से करूँगी और सारा ख़र्चा हम दोनों मिल कर करेंगे।इसलिए मेरे लिए दहेज़ जोड़ना बंद करो।

         रिया को विदा हुए चार घंटे हो गए थे।रीता सोच रही थी फ़ोन करके हाल चाल ले लूँ…अरे !अभी तो नेग चार हो रहे होंगे व्यस्त होगी।अपने दिल को क़ाबू में रख एक तू ही नहीं है जो बेटी की शादी की हो।मन ही मन रीता सोच रही थी।सोचते -सोचते आँख लग गई।तभी फ़ोन की घंटी से हड़बड़ा कर उठी।फ़ोन देखा तो शेखर (दामाद)का फ़ोन था…”कुछ देर बात कर बोले लीजिए मेरी माँ बात करेंगी।”

रीता का दिल धड़कने लगा न जाने क्या सुनाएगी।

रीता जी ने बिना हाल चाल पुछे घबराहट में बोलना शुरू कर दिया देखिए बहन जी ,कोई कमी या गलती हुई हो तो माफ़ कर दीजिए…।

“अरे!रीता जी क्या बात कर रही हैं।रिया दहेज़ से कहीं ज़्यादा है हमारे लिए,जिसे अब यह माँ सहेज कर रखेगी आप निश्चित हो जाइए।”लीजिए रिया  से बात कीजिए।”


- सविता गुप्ता

  राँची - झारखंड

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                  भटकना बेहतर


कितने ही सालों से भटकती उस रूह ने देखा कि लगभग नौ-दस साल की बच्ची की एक रूह पेड़ के पीछे छिपकर सिसक रही है। उस छोटी सी रूह को यूं रोते देख वह चौंकी और उसके पास जाकर पूछा, "क्यूँ रो रही हो?"

वह छोटी रूह सुबकते हुए बोली, "कोई मेरी बात नहीं सुन पा रहा है… मुझे देख भी नहीं पा रहा। कल से ममा-पापा दोनों बहुत रो रहे हैं… मैं उन्हें चुप भी नहीं करवा पा रही।"

वह रूह समझ गयी कि इस बच्ची की मृत्यु हाल ही में हुई है। उसने उस छोटी रूह से प्यार से कहा, "वे अब तुम्हारी आवाज़ नहीं सुन पाएंगे ना ही देख पाएंगे। तुम्हारा शरीर अब खत्म हो गया है।"

"मतलब मैं मर गयी हूँ!" छोटी रूह आश्चर्य से बोली।

"हाँ। अब तुम्हारा दूसरा जन्म होगा।"

"कब होगा?" छोटी रूह ने उत्सुकता से पूछा।

"पता नहीं...जब ईश्वर चाहेगा तब।"

"आपका…  दूसरा जन्म कब..." तब तक छोटी रूह समझ गयी थी कि वह जिससे बात कर रही है वो भी एक रूह ही है।

"नहीं!! मैं नहीं होने दूंगी अपना कोई जन्म।" सुनते ही रूह उसकी बात काटते हुए तीव्र स्वर में बोली।

"क्यूँ?" छोटी रूह ने डर और आश्चर्यमिश्रित स्वर में पूछा।

"मुझे दहेज के दानवों ने जला दिया था। अब कोई जन्म नहीं लूंगी, रूह ही रहूंगी क्यूंकि रूहों को कोई जला नहीं सकता।" वह रूह अपनी मौत के बारे में कहते हुए सिहर गयी थी।

"फिर मैं भी कभी जन्म नहीं लूँगी।"

"क्यूँ?"

छोटी रूह ने भी सिहरते हुए कहा,

"क्यूंकि रूहों के साथ कोई बलात्कार भी नहीं कर सकता।"


- डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी

    उदयपुर - राजस्थान

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                          दहेज़


 'पांच सितारा होटल में लड़की देखने को बुलाया है । इतने पैसे वाले लोग, एक पैसा दहेज नहीं चाहिए। केवल लड़की अच्छी नौकरी पेशा हो।' अंजना की माँ के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। अंजना को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। शादी ब्याह हमेशा समान हैसियत वालों में करनी चाहिए। लेकिन माँ इस सुनहरे अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी। वह उसे सोचने समझने का अवसर दिए बिना ही लड़कों वालों वाले से मिलाने होटल ले आई। उनसे बेहतर आर्थिक संपन्न होने की वजह से उनकी गर्दन तनी हुई थी, साथ ही एक पैसा दहेज नहीं लेने वाली बात पर तो उनकी गर्दन गर्दन कुछ ज्यादा ही तन गयी थी।

  " हम एक पैसा नहीं ले रहे हैं । लेकिन आपको बारातियों का स्वागत हमारे स्तर का करना होगा। हमारे अधिकतर मेहमान ऊंचे ऊंचे पदों पर हैं तथा बहुत सारे मेहमान तो विदेशों से भी आएंगे।"....लड़के के पिता उसके पिता से कह रहे थें ।

 " आपको किसी प्रकार का शिकायत का मौका हम नहीं देंगे ।"......उसके पिता ने हाथ जोड़कर कहा ।

   "हमारे घर की कोई भी बहू 1 किलो सोने से कम के गहने के साथ नहीं आई है । अतः आपको अपनी बेटी को इतने गहने और एक डायमंड का सेट भी देना होगा । अपने होने वाले दमाद को आप अंगूठी ,चेन तो देंगे ही। कपड़ों में कम से कम दो सूट अवश्य दिजियेगा । इतना ख्याल रखिएगा कि सब ब्रांडेड होना होना चाहिए । अन्यथा मेरा बेटा उसे हाथ भी नहीं लगाएगा। हमारे रिश्तेदारों को भी आप जो कपड़े देंगे , वह सब ब्रांडेड ही होने चाहिए । नहीं तो हमारी बड़ी बदनामी हो जाएगी ।".....लड़के के पिता बोल रहे थे।

    दहेजलोभियों के बदले स्वरूप को देख वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी। लड़की देखने दिखाने का कार्य भी हो रहा था और साथ में सभी लोग पांच सितारा होटल के व्यंजनों का भी लुफ्त उठा रहे थे। केवल उसके माता-पिता के खिले चेहरे मुरझाते जा रहे थे , यह बात उससे छुपी हुई न थी। अंत में बैरा खाने-पीने का बिल लेकर आया तो लड़के के पिता ने हंसते हुए बिल को उसके पिता को थमाते हुए कहा,"अब तो हम सब रिश्तेदार हो गए। आपकी बेटी की शादी इतने अच्छे घर में और इतने अच्छे लड़के के साथ तय होने की खुशी में यह तो आपको ही पेमेंट करना चाहिए।"

  " अभी हम रिश्तेदार नहीं हुए हैं । इस शादी के लिए अभी मैंने मंजूरी नहीं दी है ।"......अंजना ने बिल अपने पिता के हाथों से लेकर वापस उन्हें देते हुए कहा ,"आप जैसे लोगों की वजह से आज भी हमारे देश में दहेज प्रथा का अंत नहीं हो रहा है। केवल इसका स्वरूप बदल रहा है।"... अंजना की बात सुनकर सभी स्तब्ध रह गए।


            - रंजना वर्मा उन्मुक्त 

               रांची - झारखंड

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                   सामान के पूर्ति


नीता बहुत परेशान थी उसके पिता के पास नोटों से भरी हुई बैग कहां से आया ,जब से रुपए से भरे हुए बैग को देखी है उसके हृदय के अंदर आंधी चल रही है,क्यूंकि उसके पिता रोहित सहाय एक ईमानदार इंजीनियर हैं,अभी टेंडर खुल रहे हैं क्या किसी के टेंडर पास करने के लिए पिता रिश्वत लिए है या अगले महीने मेरी शादी में दहेज की रकम पूरी करने के लिए दहेज रिश्वत लिए है।

"पापा भी अजीब है नीता मन ही मन बुदबुदाती है....दादी की पोते की चाह पूरे करने के लिए मां ने चार बेटियों को जन्म दिया,ये कैसी विडंबना है पढ़े लिखे लोग होकर भी बेटे और बेटी में फर्क करते हैं .... मैं खुद स्कूल में पढ़ाती हूं पर पापा को मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले इंजीनियर के लिए पच्चीस लाख रुपए देने पड़ रहे क्यूंकि मैं एवरेज रंग रूप की हूं आखिर बदसूरत बेटी को खपाने के लिए दहेज रूपी रिश्वत देना जरुरी है खुद को कमजोर समझने लगती है नीता ,तभी लैंड लाइन की फोन बज उठती है उसका कनेक्शन नीता के कमरे से भी जुड़ा हुआ था और अपने पिता और होने वाले भावी ससुर की बात सुनकर दंग रह जाती है, और मन ही मन निर्णय लेती है और कमरे से निकल कर अपने पिता के कमरे में जाती है।

"नीता के पिता बेटी को अपने कमरे में देख कर चौंक पड़ते हैं, और प्यार से बेटी से पूछते हैं___' क्या बात है बेटा आज स्कूल नहीं जाना है पर नीता की नजर में काले बैग पर थी और अपने पिता से कहती है

"पापा इस बैग में क्या है?"

"कुछ नहीं बेटा सहमते हुए नीता के पिता कहते हैं" 'बेटी अगले महीने तेरी शादी है टेंशन ना ले खुश रह '

नीता रोते हुए कहती है 'जिस ईमानदार पिता को बेटी की शादी की दहेज के सामान के पूर्ति के लिए रिश्वत लेना पड़े वो बेटी कैसे खुश रह सकती है पापा रुंधे हुए स्वर में कहती है...जिसके पिता की चेहरे पर ईमानदारी का नूर टपकता था उसके झुके सिर को कोई भी बेटी देख नहीं सकती ....पापा रुपए क्लाइंट को लौटा दें और आपने मेरे शादी के लिए जो पच्चीस लाख रुपए रिश्वत ली है वो क्लाइंट को लौटा दें, पिता का सिर झुक जाता है '

पिता नीता को उठाकर अपने  हृदय से लगा लेते हैं और कहते है'मुझे तुम पर गर्व है बेटा और तुमने मुझे पाप करने से रोक लिया प्राउड है तुम पर , बाप बेटी दोनों एक दूसरे को देखते रहते हैं.....! 

- संजू शरण 

   पटना - बिहार

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                        मुखौटा 


"इतनी सारी मिठाइयां और फल क्यों लेकर आए।"

"अरे, आज विक्रम सिंह जी शादी की रूपरेखा तैयार करने आने वाले हैं बताया तो था।"

"हमारी बिट्टो के तो भाग्य ही खुल गए, अच्छा वर और घर मिल गया।"

"सही कह रही हो सुधा।"

"कहीं कुछ मांग- वांग तो नहीं करेंगे।"

"नहीं विक्रम सिंह कट्टर दहेज विरोधी हैं चार साल पहले उन्होंने अपनी बिटिया की शादी बिना दहेज दिये की थी समाज में कई शादियां दहेज विहीन कराई हैं।"

"देखो वे आ गये।"

"आइए, नमस्कार,बैठिए ।"

"मेरे पास समय कम हैं तो हम रूपरेखा बना लें,वैसे तो आप अपनी बेटी को देना चाहते हैं दीजिए,मुझे कुछ नहीं चाहिए हम चाहते हैं एक फ्लैट पूना में होना चाहिए आपकी बेटी के लिए।

आप भी नहीं चाहेंगे किराए से रहे।"

"जी।"

"और हाँ उसकी जरूरत और खुशी के लिए फर्नीचर वगैरह वहीं दिला दीजिए।"

"भाईसाब ये मिठाई तो लीजिये।"

"देखिए मेरा एक ही बेटा है शादी किसी अच्छी होटल में हो। उसके दोस्तों और रिश्तेदारों के लिये इस गर्मी में ए सी रूम ही बुक कराये।"

"हाँ हाँ जैसा आप कहें।"

"एक बात और बरातियों की बिदाई में चाँदी के सिक्के ठीक रहेगें,भाई हम तो दहेज विरोधी हैं हमें कुछ नहीं चाहिए।"

- मधु जैन 

  जबलपुर - मध्यप्रदेश

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                  दोषी...कौन...??


आज चार दिन से काम वाली का पता नहीं था।मैं बड़बड़ाती हुई घर के कामों में उलझी हुई थी तभी वह आती हुई दिखाई दी।

"क्या रमा.., क्या हो जाता है तुम लोगों को। चार दिन के बाद आज सूरत दिखाई दी है। अरे...रे... अब रो क्यों रही है? क्या हुआ..?"

"भाभी... वो.. लड़की..."

"अरे. कुछ कहेगी भी। क्या हुआ लड़की को..?"

"भाभी, लड़की की सगाई छूट गई है। लड़के ने आकर शादी से इन्कार कर दिया है।"

"क्यों... क्या हुआ? तब तो बड़ी खुशी खुशी बता रही थी बड़े घर का लड़का है।उसने खुद आकर शादी की बात की है। लड़की का बड़ा लाड करता है। मोबाईल खरीद कर दिया है।सारे दिन फोन करता है।अपने साथ घुमाने भी ले जाता है। गाड़ी है... बाड़ी है...। अब क्या हो गया?"

"कह गया है तुम्हारी लड़की फोन पर किससे किससे बात करती है, किस किस के साथ घूमने जाती है मैं ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता।"

"अरे.. ऐसे कैसे नहीं करेगा शादी? कोई मजाक है क्या? शादी ब्याह यूँही नहीं तोड़े जाते। उसके घर वालों से बात की?"

"गई थी न भाभी। पहले तो पचास हजार देने की बात थी। मैंने तो अपनी सारी जमा पूंजी और गाँव गली से मांग कर किसी तरह लड़की को बिदा करने का मन बनाया था।"

"तो अब...।"

"अब लड़के वाले कह रहे हैं लाख रूपये दे दो तो लड़की ब्याह लेंगे। अब मैं लाख रूपये कहां से लाऊँ..?"

"छोड़ो भी..। अच्छा हुआ ऐसे लालची लोगों से सम्बन्ध नहीं हुआ। वरना जीवन भर तुम लोगों को और लड़की का जीना दूभर कर देते। अब दूसरा सम्बन्ध देखकर लड़की ब्याह देना।"

तभी रमा ने जोर से रोते हुए मेरे पैर पकड़ लिए 

"भाभी दोष तो मेरी लड़की का है। शादी के पहले क्यूँ इतनी छूट दी...। मेरी बेटी पेट से है.... लड़के का क्या...."

"....."

- कनक हरलालका

    धूबरी - असम

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                         फैसला


           एक खासे लंबे लव अफ़ेयर के बाद विवाह का निश्चय करने वाले डाक्टर सुहास और डाक्टर चकोरी की सगाई का समारोह चल रहा था। पंडितजी दोनों को पूजा पर बैठने के लिए बुला ही रहे थे, कि वर के पिता ने वधू के पिता से कहा, “समधीजी, आज मिलनी में हमारे पक्ष के रिश्तेदारों को एक एक सोने की गिन्नी देने का इंतजाम तो कर रखा है न? उस दिन मैंने आपसे इस बात का ज़िक्र भी किया था।”

             जवाब में चकोरी के पिता ने उनकी इस मांग पर सकुचाते, हकलाते बड़े ही कातर स्वरों में कहा, “आपने स्पष्ट तो मुझसे यह नहीं कहा। मैंने आपसे पहले ही कह दिया था, मैं एक ईमानदार सरकारी अफ़सर हूँ। बिटिया को दहेज में ऊंचे आदर्शों, संस्कारों और जीवनमूल्यों के भरपूर दहेज के अतिरिक्त कुछ और नहीं दे पाऊँगा।” 

           समधी का यह जवाब सुनकर सुहास के पिता की भूकुटी तन गई, और क्रुद्ध हो वह बोले, “हमारे जैसे ऊंचे, खानदानी लोगों से रिश्ता जोड़ना है, तो तनिक अंटी तो ढीली करनी ही पड़ेगी, वरना मेरे हीरे से बेटे को रिश्तों की कमी नहीं।”

             उधर पिता को बेहद दीन भाव से भावी श्वसुर के सामने हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते देख चकोरी को किसी गड़बडी का आभास हुआ, और वह दौड़ कर पिता के पास आ गयी। श्वसुर की मांग सुन कर वह क्षण भर को जड़वत खड़ी रह गई। फिर उल्टे पाँव सुहास की तरफ बढ़ गई, इस यकीन के साथ कि वह इस गतिरोध का निश्चय ही कोई तोड़ दे देगा। उसने उसे सब कुछ बता दिया। 

“अरे यार, क्या तूफ़ान आ गया, गिन्नियाँ देने की ही तो कह रहे हैं, कोई हवाईजहाज तो नहीं मांग रहे। चलो चलो, बड़ों को ही इन बातों से निपटने दो। आखिर अपने बच्चों की शादी में हर माँ बाप के कुछ अरमान होते हैं।”

सुहास के मुंह से यह सुन चकोरी के पांव तले से जैसे जमीन खिसक गई। उसके साथ बिताए हुए मधुर पल एक एक कर उसके मानस पटल पर जीवंत होने लगे। उससे अलग होने की कल्पना मात्र से ही वह असीम वेदना से थरथरा उठी, कि दूसरे ही क्षण उसके लौजीकल सेंस ने उसे चेताया, ‘जो लड़का विवाह से पहले ही तेरा साथ देने से मुकर रहा है, वह विवाह के बाद कितना तेरा साथ देगा,’ और बस एक पल लगा उसे निर्णायक फैसला लेने में।

 वह बोल पड़ी, “डाक्टर सुहास, मेरे पापा का भी अरमान था, कुछ भी हो जाए, वह अपना दामाद दहेज के बाजार में मोलभाव कर कतई नहीं खरीदेंगे, और मेरा भी यही विचार है। तो डाक्टर साहब, गुडबाइ, अपनी बोली कहीं और लगवाइएगा।”

 

- रेणु गुप्ता

   जयपुर - राजस्थान

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                         दहेज़

 

 अपनी मेहनत और लगन के बल पर प्रिया एक प्रशासनिक अधिकारी  तो बन गयी, किंतु शादी के बाद      घर और ऑफिस में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश में उलझ-सी जाती। उसकी शादी हुई तो बिना दहेज के थी, परंतु ससुराल वालों की अपेक्षाएँ भी उसे दहेज से जरा भी कम नहीं लगतीं! शादी के वक्त मम्मी-पापा की बातें याद आतीं तो विचलित हो उठती… 

         '' मम्मी देखो मेरी मेहनत रंग लाई और मेरा प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चयन हो गया... पापा का सपना जिसे मैंने अपना सपना बना लिया था... आज पूरा हो गया...।"

  '' मैं जानता था मेरी बेटी जरूर पास होगी, मुझे तुम पर बहुत गर्व है बेटी। ''

'' पर प्रिया के पापा आप यह तो सोचिए कि अब हमें अपनी उच्च शिक्षित बेटी के लिए योग्य वर की भी तलाश करनी होगी। फिर बेटी कितनी भी उच्च शिक्षित हो, दहेज तो देना ही पड़ेगा। "

'' चिंता न करो प्रिया की माँ... मैंने अपनी बेटी के लिए योग्य वर की तलाश कर ली है... सुमित जो एक बहुत बड़ी कंपनी का मालिक है और उसका परिवार भी अच्छा है... दहेज की कोई माँग नहीं! सबसे बड़ी बात अपनी प्रिया को भी पसंद है।"

      कुछ दिनों तक एक दूसरे को जांचने परखने के बाद दोनों तरफ की रजामंदी से प्रिया और सुमित की शादी बहुत अच्छे से संपन्न हो गयी। विदाई के समय प्रिया की सास ने रोती हुई प्रिया की मम्मी को आश्वस्त किया था कि वे लोग उसे बेटी की तरह रखेंगे।

   परंतु हकीकत में ऐसा कहाँ हो पाता है। चाहे बहू उच्च शिक्षित कामकाजी हो या साधारण घरेलू... अपेक्षा यही होती है कि उसके लिए पहली प्राथमिकता घर और घर के सदस्य हों... सबसे पहले उठे... सबके बाद सोये... पति और बाकी सदस्यों को खिलाने के बाद खाए... पति के ऑफिस आने से पहले वो घर वापस आ जाए भले ही कितनी भी महत्वपूर्ण मीटिंग ही क्यों न हो... घर की आवश्यकताएं पूरी करने के बाद ही मीटिंग में उपस्थित हो।

   उस दिन प्रिया को अपनी सास और उनकी सहेली की बातें सुनकर कुछ उम्मीद बँधी… 

'' बहुत खुशकिस्मत हो कि तुम्हारी बहू इतनी उच्च शिक्षित और ऊंचे पद पर कार्यरत है... अब तो खुश हो न? "

" क्या खाक खुश रहूँगी… पढ़ी-लिखी बहू आ रही है, यह सोच कर एक पैसा भी दहेज में नहीं लिया, पर उसके पास किसी चीज के लिए समय कहाँ है।सबकुछ तो नौकरों के भरोसे है...।''

'' लेकिन तुम तो शादी से पहले ही जानती थी कि वह कैरियर माइंड की लड़की है... तब तो बड़ी खुश थी कि आजकल की कौन लड़की काम करती है...। ''

'' फिर भी बहू का फर्ज़ तो निभाना चाहिए ना..। ''

'' पर तुम तो उसे बेटी बना कर लाई थी। दरअसल लोग अपने को खुले विचार वाला तो खूब दिखाते हैं, पर खुले विचार वाले बन नहीं पाते। बहू से उम्मीदें तो काफी रखते हैं, पर उसकी परिस्थितियों को जानकर भी समझना नहीं चाहते।

    बेटे और बहू दोनों बाहर काम करते हैं, पर अपेक्षाएं सिर्फ़ बहू से कि ऑफिस से आकर तुरंत रसोई में घुसे... जरा सोचो, क्या यह सही है?

   सिर्फ दहेज न लेना ही बदलाव की निशानी नहीं है अगर तुम सचमुच खुले विचारों की हो तो बहू को खुले मन से अपनाओ। उसे बेटी मत बनाओ... बहू के रूप में ही उचित सम्मान दो...। दफ़्तर से थकी हारी आने के बाद घर में भी प्यार और शांति न मिले तो रिश्तों में खटास आते देर नहीं लगेगी...। "

                       - गीता चौबे

                       रांची झारखंड

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                         दहेज़


आज सुबह से बहुत व्यस्त नजर आ रही थी क्योंकि  नौ दिन  कन्या भोजन भी करना करवाना था।

एक बालिका विद्यालय में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था ।

सुबह से घर में फोटोग्राफरों को बुलाया  था ।

 बेटी रोशनी  ने 12वीं  की परीक्षा टॉप किया था ,और आगे पढ़ना  चाहती थीं।

  कल्याणी देवी ने बेटे राहुल जिसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था उसको उसे मैनेजमेंट कोटा से एमबीए कर रही

थी।

कल्याणी देवी ने अपने नौकर को डांटते हुए कहा- "जल्दी से नौ कन्याएं लेकर आओ।"

   कन्याओं को भोजन के लिए बैठाया और प्लेट मैं चना ,पूरी, हलवा परोसा। माथे पर चुन्नी बांधी गई ।टीका लगाया गया । कल्याणी देवी ने फोटोग्राफर से कहा" मेरी फोटो अच्छे से खींचना मेरा चेहरा स्पष्ट दिखना चाहिए मैं पैर छूने का बस नाटक कर रही हूं  और कल अखबार के मुख्य पृष्ठ पर मेरी यही फोटो होनी चाहिए।"

फिर कल्याणी देवी नौकर से कहा " तुम घर पर यह सब संभाल लो अब  मैं स्कूल में जाकर वृक्षारोपण के कार्यक्रम में जाती हूं।" फोटोग्राफर अनिल से कहा कि देखो मेरी वहां पर फोटो अच्छे से खींचना  वह फोटो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर आनी चाहिए।

अनिल ने कहा जी मैडम ऐसा ही होगा।

कल्याणी देवी अच्छे से तैयार होकर स्कूल गई और वहां पर स्कूल के प्रिंसिपल को डांटते हुए कहा " यह गड्ढा और पेड़ पहले से तैयार रखना चाहिए ना मैं बस इसे देख कर फोटो खिंचा लेती अब जल्दी करो।"

एक लगाए हुए पेड़ के पास जाकर फोटो खींच आने लगी और उन्होंने कहा कि इसकी फोटो ले लो मैंने यह पेड़ लगाया है ।

इसके बाद वह मंच पर जाकर बेटियों को लेकर उनका भाषण शुरू हुआ।

सभागृह खचाखच भरा था ।वहां पर बहुत सारी लड़कियां और उनके माता-पिता उपस्थित थे। कल्याणी देवी का भाषण शुरू हुआ बेटियों को पढ़ाना चाहिए ।आज बेटियां किसी से कम नहीं है। उन्हें जो भी पढ़ना है मैं उनकी हर संभव मदद करने के लिए तैयार हूं।   उसके लिए मेरे दरवाजे खुले हैं। आप आप कभी भी मेरे घर आ सकते हैं ।मैं उन बालिकाओं के लिए ₹50,000 स्कूल को दान देती हूं। जो बालिकाएं  आगे पढ़ना चाहते हैं ,उनको उनकी योग्यता के अनुरूप छात्रवृत्ति भी दी जाए।

इस छात्रवृत्ति के कारण लड़कियां जो चाहे उस क्षेत्र में पढ़कर अपना नाम बना सकती हैं।

सभागृह में जोर-जोर से ताली बजने लगी और कल्याणी देवी की जय हो कल्याणी देवी आप महान हैं ।आप बालिकाओं के बारे में कितना सोचती हैं ।सभी लोग कहने लगे यह महिला कितनी उदार है। हम सबका कितना दुख दर्द समझती है ।यही महिलाओं की रक्षक है, यह सब सुनकर कल्याणी देवी फूली नहीं समा रही थी। घर बड़ी खुशी - खुशी आई और उन्होंने अपने भाषण की तारीफ दूसरे दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर देखा कि उन्हीं की तारीफों से पूरा अखबार भरा था। उन्होंने अपनी बेटी से कहा -आज तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं बहुत ही खानदानी लोग हैं। मुंबई के माने हुए उद्योगपति हैं। वहां पर तुम्हारा रिश्ता तुम्हारे पापा ने तय कर दिया है, जो पैसा तुम्हारी शिक्षा में खर्च करेंगे उसी में तुम्हें दहेज देखकर  विदा कर देंगे।

रोशनी उन्हें टकटकी लगाए अपनी मां को और अखबार को देखती ही रह गई.....।

- उमा मिश्रा प्रीति 

जबलपुर - मध्य प्रदेश

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               दहेज़ एक अभिशाप


रीता यौवन को प्राप्त हो रही थी। पिता बाके लाल को उसके लिए एक अच्छे वर की खोज की चिंता सता रही थी। माता रमा देवी का साया बचपन में ही उसके सर से उठ गया था और पिता ही उसकी माता भी थी। पिता जी ने बड़े ही लाड़ प्यार से उसे पाला था। उसकी छोटी से छोटी जरुरत को हर संभव पूरा करने की कोशिश की थी। 

जवान हो चुकी रीता के लिए वर्तमान समय में एक अच्छा वर खोजना उतना ही मुश्किल था जितना की 6 बॉल पर 6 छक्के मारना। ऐसा मुश्किल इसलिए भी था क्योंकि बदलती संस्कृति ने सब पर अपना आघात किया हुआ है और इस बदलते हुए परिवेश से कुछ ही अछूते रहे हैं। 

जैसा कि हर पिता चाहता है कि उसकी बेटी एक अच्छे परिवार में जाए और उसे उसकी ससुराल में मायके से ज्यादा सुख प्राप्त हो किंतु अभिशाप रुपी दहेज प्रथा उसके इन सपनों पर पानी फेर देती हैं। दहेज के लोभी अपने बेटे की शादी करने के स्थान पर उसकी बोली लगाते हैं और मनमाना दहेज न मिलने पर अपनी बहु को प्रताड़ित करते हैं।

बस ये ही सोचकर बाके लाल परेशान हो उठे किंतु उनके परम मित्र अवध लाल ने उनकी इस समस्या का समाधान आसानी से कर दिया। उन्होंने रीता की शादी शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार राम लाल के यहां तय करा दी।

उनका बेटा मीठा लाल बिल्कुल वैसा ही था, जैसे बाके लाल ने सोचा था। नाम के अनुरुप एकदम मीठा, सौम्य और मधुर व्यवहार वाला। रीता की शादी का दिन आ गया और पिता ने बिना दहेज की मांग के भी अपने कलेजे के टुकड़े को अपनी सामर्थ्य अनुसार देकर विदा किया। आज बाके लाल बहुत खुश थे आखिर उनकी बिटिया एक अच्छे परिवार में जो चली गई थी।

- विभोर अग्रवाल

धामपुर - उत्तर प्रदेश

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                   दहेज़ का तराजू

 

      प्रभाती सूर्य की सुनहरी किरणें घर में रोशनी फैला रही थी। चिड़ियों की चहचहाहट से वातावरण गुलजार था।

    ममता दीदी के घर में उदासी थी जो रौनक कुछ साल पहले रहती थी उसे याद कर उस में खोई रहतीं।

     आज उनका बेटा रोहित बहू रितिका साथ रहते हुए भी पराए सा व्यवहार करते। रितिका पढ़ी-लिखी हाजिर जवाब तो थी ही संवेदनहीन भी हो गई थी।

      इस बदले व्यवहार की वजह ममता दीदी का रूखा व्यवहार था। नाम के विपरीत ममता दीदी के स्वार्थी स्वभाव ने अपने बेटे को दहेज के तराजू में तोल दिया था।

      मेडिकल पढ़ाई का खर्च और वर्तमान आमदनी सब की भरपाई रितिका के पिताजी योग्य दामाद पाने के लिए दहेज के रूप में अदा किए थे। कर्ज में डूब कर बेटी को संपन्न परिवार में भेज दिए पर उनकी कमर टूट चुकी थी। 

      दूसरे छोटे बच्चों को उचित शिक्षा भी नहीं दे पा रहे थे --उसी चिंता और तनाव में समय से पहले ही अचानक हृदय गति रुक जाने से दुनिया छोड़ गए।

       पापा का अचानक जाने का गम और घर की स्थिति को भापकर रितिका का व्यवहार भी परिवर्तित हो गया। उसका मुख्य वजह सासु मां का लालचीपन था।

        हंसता-खिलखिलाता मायका वीरान हो गया जिसकी वजह से मायके वीरान हो गया---- वह ससुराल में खुशी कैसे दे?

         ममता दीदी ने बेटे को तराजू पर तौलकर बहु तो लायीं पर हंसती-मुस्कुराती घर की लक्ष्मी को खो दी।


- सुनीता रानी राठौर

 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश

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Comments

  1. विभूति स्मरण व लघुकथा लेखन,सम्मान एक से बढ़कर एक, सभी को बधाई और शुभकामनाएं
    शशांक मिश्र भारती शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश।

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