आचार्य चतुरसेन शास्त्री स्मृति सम्मान -2025

       भ्रम से कुछ भी हो सकता है। कम से कम रिश्तों में खटास अवश्य पैदा कर देता है। भ्रम से किसी को कोई लाभ नहीं होता है। सिर्फ जलनशीलत का परिणाम होता है। जो रिश्तों को तोड़ता है। जैमिनी अकादमी ने ऐसा कुछ परिचर्चा का विषय रखा है। अब आयें विचारों को देखते हैं : - 
       प्रेम, नाराजी,भ्रम, विश्वास ऐसे कुछ भाव हैं जो सामान्यत: हमारे संबंधों में उतार-चढ़ाव के रूप में आते-जाते रहते हैं। जीवन में पक्ष-विपक्ष का खेल चलता-रहता है। सुख-दुख, अच्छा-बुरा, लगाव-अलगाव, निकटता-दूरी,संदेह-निसंदेह आदि...आदि। हमारे मन-मस्तिष्क में क्या चल रहा होता है, कोई दूसरा नहीं जान सकता। न ही दूसरे के मन-मस्तिष्क में क्या चल रहा है, हम जान सकते हैं। यह ईश्वर की अनुपम व्यवस्था है,चमत्कार है, सौगात है। हम हों या कोई दूसरा, केवल अनुमान ही लगा सकते हैं और इसी अनुमान से हम अपना निर्णय लेकर एक धारणा बना लेते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि हमारा यह निर्णय, एक तरफा है, काल्पनिक है जो गलत भी हो सकता है, अनुचित भी हो सकता है और अन्याय भी कर सकता है और भूल या भ्रमवश ऐसा ही हुआ तो रिश्ते में दरार, कड़वाहट आना स्वभाविक है। इसलिए कहा जाता है कि छोटी-छोटी बातों को, सुनी-सुनाई बातों को अनदेखा और अनसुना करना चाहिए। जब भी मन भ्रमित हो उसे लेकर संबंधित व्यक्ति से विमर्श कर उसकी वास्तविकता को जानना उचित होगा। तात्कालिक वस्तुस्थिति,मन: स्थिति और परिस्थिति को भी समझना आवश्यक और महत्वपूर्ण होगा। न्यायसंगत होगा। समझदारी होगी।  यानी कि सार यही हुआ कि भ्रमित रिश्तों को तोड़ता है। इसके विपरीत जब हम अपने रिश्ते में प्रेम रखते हैं तो विश्वास भी समाहित हो जाता है।  जो कभी भ्रम की ओर नहीं ले जाता बल्कि मजबूती से जोड़े रहता है। इसलिए जीवन में प्रेम को प्राथमिकता दी गई है।      

   - नरेन्द्र श्रीवास्तव

  गाडरवारा‌ - मध्यप्रदेश 

रहिमन धागा प्रेम का ना तोड़ो चटकाय ।
जोड़े से फिर न जुड़े जुड़े गांठ पड़ि जाय ।
जी हाँ भ्रम रिश्तों को तोड़ता है प्रेम सभी को जोड़ता है अतः इस बात से ये सिद्ध होता है कि रिश्तों मे सबसे बड़ी पूँजी है विश्वास ,विश्वास के अभाव में व्यक्ति शंकालु बन जाता है और यही शक  खूबसूरत रिश्तों का दुश्मन है ।परन्तु यह बहुत दुःखद बात है कि आजकल  अपने संस्कारी देश पर भी पाश्चात्य देशों के ग्रहण का असर दिखने लगा है ,जो धीरे धीरे  रिश्तों का वजूद मिटाने पर तुला हुआ है । लोग स्वाभिमान और अहम के नाम पर जिद्दी हो जाते है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष ,और रिश्तों का परिपालन करने के बजाय दमन करने लगते हैं ,जो एक स्वस्थ मानसिकता का परिचायक  कदापि नही हो सकता ।रिश्तों को बचाने के लिए ,रिश्तों को निभाने के लिए  आपसी समझ ,सूझबूझ और थोड़ी सहनशीलता तो लानी ही होगी  ।ज्यादा लालच व स्वार्थी प्रवत्ति भी रिश्तों के अस्तित्व को अपनी चपेट में ले रही है । कोई भी रिश्ता प्रेम और विश्वास इन दो पहियों पर चलता है ,एक भी पहिया डगमगाया तो रिश्ते का पतन तय है । रिश्ता ऐसा हो कि शब्दों की जरूरत ना पड़े ,,,,,। विश्वास  की लम्बी बागडोर में सारे रिश्ते पिरोए होते हैं, अगर विश्वास रूपी  धागा टूट जाए तो रिश्ते बिखरने में देर नहीं लगती। इसी सिलसिले में मेरी एक नज़्म है ,,, संबंध की संजीदगी में, मासूमियत ही नूर लाती। होशियारी की अधिकता , ख़ाक़ में रिश्ते मिलाती । अगर रिश्ते को सहेज कर रखना है तो अपना विश्वास सुदृढ़ बनाएं। आज के दौर में दो तरह के रिश्तो की धारा बह रही है एक असंतुष्ट दूसरी अशांत ।कहीं संसाधनों को जुटाने में रिश्ते दाँव पर लग रहे हैं तो कहीं विश्वास के अभाव में रिश्तो की बलि चढ़ रही है ।जब रिश्तो में आपस में कोई बातचीत नहीं होती तो समझो रिश्तो के मध्य कोई अनदेखी दीवार खड़ी है और यहीं से प्रेम के कम होने और भरोसे के डिगने का काम शुरू होता है ,क्योंकि रिश्तो को सदैव प्रेम से अभिसिंचित करना चाहिए । रिश्तो का गाम्भीर्य  और माधुर्य  का आकलन भावों को देखकर भी महसूस किया जा सकता है। बस नजर पारखी होनी चाहिए। रामचरितमानस में राम सीता का दांपत्य ऐसा ही था न शब्द थे ना कोई बात ,बस भाव से ही एक दूसरे को समझ जाते थे । वनवास में जब राम सीता और लक्ष्मण को केवट ने गंगा के पार उतारा तो राम के पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था  वे इधर उधर देख रहे थे । तुलसीदासजी ने लिखा है पिय हिय की सिया जान निहारी। मनि मुदरी मन मुदित उतारी । अर्थात सीता ने बिना राम के कहे उनके हाव भाव देखकर समझ लिया कि केवट को देने के लिए वे इधर उधर देख रहे हैं और सीताजी ने अपनी उंगली से अंगूठी उतार कर दे दी । रिश्तो में  प्रेम ऐसा हो कि शब्दों के बगैर भी बात हो जाए ,,,,वही रिश्ता सफल है और सुखी भी।

 रिश्ते हमारी संपत्ति हैं और जिम्मेदारी भी।

 रिश्ते  कमाने पड़ते हैं  ,,,निभाने पड़ते हैं।

 विश्वास और प्रेम के जरिए  अर्जित किये जाते हैं रिश्ते ,,,,। इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी चाहिए । जो इसका मूल्य समझ जाए वह संसार को समझ जाएगा । कर्तव्य और हमारे बीच की एक डोर से परिवार और रिश्ते भी होते हैं ,,,परमात्मा ने हमें इन को सहेजने की जिम्मेदारी दी है । हर आदमी इसी बोझ से झुका होता है और यही आवश्यक भी है। कमजोर आदमी तो टूटकर रिश्तो की मर्यादा ही भूल जाता है। परंतु रिश्ते जिस विश्वास की डोर में थे वह माला इसीलिए टूट जाती है रिश्तो में  जब तक विश्वास होता है तभी तक जीवित रहते हैं ।विश्वास  खत्म रिश्ता खत्म ।रिश्ते जब व्यावसायिक हो जाते है तो टूटते देर नही लगती । अतःरिश्तो की डोर भी परमात्मा के हाथों में सौपनी चाहिए। रिश्तों  के प्रति अपनी जिम्मेदारी के भाव को गंभीरता से समझना चाहिए । रिश्तो में सुख और आनंद की प्राप्ति  तभी होती है जब दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी निभाते हैं ,,,,तथा प्रेम के धागे में विश्वास के मोती पिरो कर माला को धारण करते हैं तब रिश्तों की डोर कोई नही तोड़  ही नही सकता । रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय ,,,,,।

      - सुषमा दीक्षित शुक्ला

        लखनऊ - उत्तर प्रदेश 

     भ्रम रिश्तों को तोड़ता है प्रेम सभी को जोड़ता है।मानव जीवन इन दोनों के दौर से गुजर ता है।भ्रम मानव को भ्रमित कर देता है। जिससे मानव पथ और सोच दोनों से भटक जाता है। इस कारण रिश्ते बिगड़ने लगते हैं। आपसी द्ववेश अधिक बढ़ता जाता है और हम टुकड़ों में बट जाते हैं। वहीं पर प्रेम इन सब से परे हटकर आपसी रिश्तों को प्रगाढ़ बनाए रखने में सहायक होता है।प्रेम एक-दूसरे को जोड़ने का काम करता है। इसलिए भ्रम रिश्तों को तोड़ता है और प्रेम सभी को जोड़ता है यह सच है।

   - विनोद कुमार सीताराम दुबे

             मुंबई -महाराष्ट्र 

       भ्रम या गलतफहमी , रिश्तों को चूर चूर कर देते हैं !! भ्रम से वशीभूत होकर लोग हर कीमती रिश्तों को भूलकर , केवल शक की निगाहों से देखते हैं !! उनपर भी भ्रम के चलते , शक करते हैं , जिन्होने अनगिनत एहसान किए होते हैं , मदद की होती है !!इस कदर हावी हो जाता है भ्रम की रिश्ते टूट जाते हैं !! प्रेम एक ऐसी अनुभूति है जो रिश्तों को जोड़ती है !! छोटी छोटी गलतियों को माफ कर , आगे बढ़ने मैं सहायक होती है !! इंसान गलतियों का पुतला है , व प्रेम इन मामूली गलतियों को नजर अंदाज कर , आगे जीने मैं सहायक होती है !! भ्रम की दुनियां से निकलकर , सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करके ही जिंदगी जी जा सकती है !!

      - नंदिता बाली

   सोलन - हिमाचल प्रदेश

       प्रेम गली अति सांकरी ता  में दो न समाहिं,जब मैं था तब  हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि, इस दोहे से साफ प्रकट हो रहा है कि  प्रेम ही रिश्तों को जोड़ने का कार्य करता है लेकिन भ्रम या अंहकार रिश्तों को तोड़ कर रख देता है जिस प्रकार अगर  इंसान में मैं ही सब कुछ हुँ का अंहकार हो तो वो भगवान  से लगन नहीं लगा सकता लेकिन जब मनुष्य अपना सब कुछ उस भगवान के हवाले कर देता है तो उसमें अंहकार तनिक भर भी नहीं रहता क्योंकि प्रेम में इतने ताकत होती है जिसमें भ्रम, अंहकार और विश्वास एक  साथ नहीं रह सकते, कहने का भाव किसी भी जुड़ाव में प्रेम का बहुत हाथ होता है, चाहे रिश्तों का जुड़ाव हो या  भगवान भक्त का जुड़ना हो लेकिन अगर मनुष्य के मन में भ्रम या अंहकार आ जाए तो कोई भी रिश्ता जुड़ नहीं सकता, तो आईये  आज इसी विषय पर बात करते हैं कि क्या भ्रम रिश्तों को तोड़ता है और प्रेम  रिश्तों को जोड़ता है, इस विषय में मेरा विचार है कि भ्रम निश्चित रूप से रिश्तों को तोड़ने का कार्य करता है क्योंकि भ्रम से गलतफहमी पैदा होती है और संचार में  बाधा डलने लगती है, जिससे भावनात्मक दूरी पैदा होती है जिसके कारण रिश्ते कमजोर होने लगते हैं और टूटने के कगार पर चले जाते हैं, आखिरकार अलगाव, निराशा और असंतोष में आकर नजदीक के रिश्ते भी चकनाचूर हो जाते हैं कहनेे का भाव भ्रम रिश्तों को बिखेर कर रख देता है, जबकि प्रेम से अजनबी भी अपने बन जाते हैं अगर रिश्तों को मजबूत बनाना है तो इसके लिए हमें प्रेम की भाषा को अपनाना होगा, अपनापन, ईमानदारी और सच्चाई के नियमों को ताक में रखकर हम अपने संबधों को गहरा कर सकते हैं लेकिन आजकल स्वार्थ, अविश्वास और संदेह के घेरे में आकर  लोग  रिश्तों को तार तार कर रहे हैं, अक्सर देखा गया जब हम किसी के काम आते  रहते हैं  तो तब तक रिश्तों में गर्माहट बनी रहती है लेकिन ज्यों ही स्वार्थ पूरा होने लगता है तो वोही रिश्ते दूरियाँ बना लेते हैं लेकिन सच्चा रिश्ता वोही होता है जो निस्वार्थ की बुनियाद पर टिका रहे, देखा जाए स्नेह,  सच्ची लगन तथा संवेदनशीलता से ही हमारे रिश्तों की यात्रा कायम रहती है लेकिन आज के ज्यादातर लोग स्वार्थ के आगे अन्धे होकर रिश्तों की अनदेखी कर रहे हैं जिससे माँ बेटे , पति पत्नी , पिता पुत्र और भाई भाई तक के रिश्तों में भी दरार आना शुरू हो चुकी है जिससे घर घर की एकता भाईचारा खत्म होने के कगार पर है जो एक इन्सानियत के नाम पर भी धब्बा है, हमें   आत्मचिंतन करने की जरूरत है ताकि हमारा भाईचारा कायम रहे इसके लिए हमें अपनी जरूरतों और इच्छाओं को समझना महत्वपूर्ण है ताकि हर व्यक्ति अपनी खुशी के लिए खुद जिम्मेदार हो सके न कि दुसरों पर निर्भर रहकर बेवजह भ्रमित होकर अविश्वास को जन्म दें जिससे रिश्तों की नींव हिलने लगे, अन्त में यही कहुँगा कि हम सभी को आदर प्रेम की भाषा को अपना कर एकजुट होकर हरेक के कार्य को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि एकजुटता बनी रहे न कि भ्रम में आकर किसी कि सुनी सुनाई बातों में आकर अपने संबंधों व रिश्तों के प्रति भ्रमित हो कर उनमें दरार डालने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि प्रेम ही सभी रिश्तों को जोड़ने का प्रयास करता है और किसी के प्रति भ्रम रखने से रिश्ते टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं, यही कहुँगा, अपनी तीखी बातों से मत तोड़ किसी का दिल तू प्यारे, यह दिल वो मंदिर है जिसमें अपनों का आना जाना लगा रहता है। 

   - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

       जम्मू - जम्मू व कश्मीर

     अनुभव में है कि ‘एक समय में एक स्थान पर एक ही चीज/सामान/वस्तु रह सकता है’  अत: प्रेम है तो भ्रम नहीं होगा और भ्रम है तो प्रेम नहीं होगा-जब जिस चीज की उपस्थिति होगी तब वैसी अनुभूति होगी : कमजोर मन में भ्रम की स्थिति पैदा होती है : अगर मजबूत मन है तो भ्रम को स्थान मिलेगा ही नहीं : अगर प्रेम है तो नकारात्मकता आ ही नहीं सकता और एक बार भ्रम हो गया तो सकारात्मकता आ ही नहीं सकता। जब सकारात्मकता नहीं होगा तो बातें व्यंग्य की होगी जो रिश्तों के डोर को कमजोर करेगी और कमजोर डोर का टूट जाना स्वाभाविक हो जाएगा- अनेक कहानियाँ हैं ऐसी जिनमें भ्रम की स्थिति में हत्या किए जाने का वर्णन मिलता है : और सारांश निकलता है तब पछताए क्या होए जब चिड़िया चुग गई खेत ।

     - विभा रानी श्रीवास्तव 

         पटना - बिहार 

     भ्रमात्मक, प्रेमात्मक, भावनात्मक तीन ऐसे पहलु है, जहाँ पल में तोला, पल में मासा हो जाता है। कौन सी किस समय घटना घटित हो जाए कह ही नहीं सकते, किस का स्वभाव कैसा है। मन इंद्रियों को जानने की मशीन आ जाए तो क्या बात है, उसी आधार पर जीवन यापन होने लगेगा, सब मशीन आ चुकी है, यही मशीन रह गई है। हम भावना में बहते चले जाते है, सामने वाले की मन इंद्रियों को पहचान नहीं पाते, फिर सिलसिला प्रारंभ होता है भ्रम का जो रिश्तों-नातों को पल भर में तोड़कर रख देती है। आंखों में इतनी शक्ति है, जो सामने वालों को प्रेम करने पर मजबूर कर देती है। वाक शक्ति हमारी मन इंद्रियों को जगाती है, प्रेरित करती है किस से कैसा संवाद और संबंध चिरस्थाई स्थापित करें।

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

        बालाघाट- मध्यप्रदेश

     दिल के सतरंगी एहसास ये कहते है रिश्ते दिल से जुड़े रहते है इन्हें तोड़ने की खपा ना करना , भ्रम नजरों का धोखा समझ नजर अंदाज़ कर देना अपने तो अपने होते है कद्र इंसान की कर दुआ सलाम गिले शिकवे दूर कर नीम की कड़वाहट शहद की मिठास में बदल रिश्तों की कड़ियों को मजबूत बनाते है सच जान चाह को चाहना करीब आने की ललक ख्वाहिश बनाये रखते है , मशहूर होने की ललक नहीं संतोष संतुष्टि की अनुभूति से करीब आने की चाहत रखते हैं अच्छे को अच्छा जानो बुरे को बुरा की सोच से वंचित रखते कहते है प्रेम सभी को जोड़ कर रखता है   जिसकी जितनी जरूरत थी उसने उतना ही पहचाना है जीवन की हर ख़ुशियों को साथ निभाते है परिजन आत्मियजन जिनकी ख़ुशियों में चाहत के ख़ुशरंग भरना आदत है साथ बच्चों का निभा खिल खिल जाते हैंआज को हम खुल कर जी लेते है कल मुसाफ़िर होंगे अनजान डगर के राहगीरों को मंज़िल का पता जाते है मुस्कानो से ख़ामोशियों को नज़रअन्दाज़ करते हैं जीना इसी का नाम है एक नई राह एक खोज मे निकल जाते हैं अंतिम पड़ाव का नशा जोश तजुर्बा है समय साथ दे या ना दे चलने तैयार नसीहत दे मंज़िल क़रीब ला दम लेते है मुसाफ़िर कश्ती किनारा ढुढ रही है !पतवार नही अब इन्तज़ार है ख़ामोश लबों को चैन की नींद सुला नये कल में समाहित हो जाए  !   मुसाफ़िर फिर कल का पता पूछते हैं सुनी गालियाँ अनजान नगर को अपना बना लेते हैं हौसला अफ़्जाई उम्मीद से जीने की इल्म सिखाते ये रिश्ते हैं ख़ामोशियों को मुस्कानो में बदल जाते है फिरएक नई राह एक खोज में निकल जाते हैं अंतिम पड़ाव का ऐसा नशा जोश तजुर्बा है की समय साथ दे या दे चलने को संग नसीहतों को देते मंज़िल के क़रीब राह दिखाते जाते है भ्रम रीते रिश्तों को जोड़ सभी के दिलों में अलख जगा प्रेम से सभी को जोड़ता है 

   - अनिता शरद झा

     रायपुर - छत्तीसगढ़ 

 चर्चा परिचर्चा  का विषय विचारोत्तेजक  व समसामयिक है। भ्रम और प्रेम दोनों ही रिश्तों को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण तत्व हैं।प्रेम .....प्रेम नाम की चीज तो कलियुग में अब रही ही नहीं   ..प्रेम का स्थान स्वार्थ ने ले लिया है ।  हर कोई रिश्ता जैसे स्वार्थ पर ही टिका हो,

 जैसे काम निकल गया , 

फिर पहचानते  ही नहीं । 

हर रिश्ते में  भ्रम की स्थिति दिखाई देती है समाज में देखने को मिल रहा है  कि आजकल शादी करने वाले बच्चे भी डर रहे हैं प्रेम विवाह हो या अरेंज मैरिज  -दोनों स्थिति में  भ्रम ही चरम सीमा पर है  किसी को किसी पर विश्वास नाम मात्र को भी नहीं ,और उसका नतीजा एक वर्ष के अंदर -अंदर या 15-20  साल के बाद भी परिवार का टूटना दिखाई दे रहा है। जब जिस परिवार में जब बच्चों से ही प्रेम नहीं  उस समाज मे उस परिवार के बच्चे क्या जानेगे?....निस्वार्थ प्रेम ।   प्रेम तो जैसे गायब सा ही हो गया है। हर रिश्ते में बस लालच की गंध प्रतीत होती है । प्रेम के बिना रिश्तो में दूरी खाई के समान बढ़ती जा रही है। भ्रम अक्सर रिश्तों में दूरी, अलगाव और तनाव का कारण बन सकता है, जबकि प्रेम रिश्तों में जुड़ाव, समझ और सामंजस्य का कारण बनता है। प्रेम हमें एक दूसरे के करीब लाता है, जबकि भ्रम हमें अलग कर देता है। प्रेम की शक्ति रिश्तों को मजबूत Rkhna में मदद करती है, जबकि  आजकल भ्रम की शक्ति रिश्तों को तोड़ने में मदद कर सकती है। इसलिए, रिश्तों में बातचीत के संग प्रेम को बढ़ावा  देकरऔर भ्रम को पनपने ही नहीं देना चाहिए। 

      - रंजना हरित

 बिजनौर - उत्तर प्रदेश    

.            यह शत प्रतिशत सच है कि प्रेम से रिश्ते जुड़ते हैं और भ्रम जिसे हम शंका , अविश्वास भी कहते हैं से रिश्ते टूटते हैं। एक बात यह भी सच है जहाँ प्रेम है वहीं  भ्रम भी पलता है। यह बात पति-पत्नी के रिश्ते में अधिक दिखती है। पति अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करता है पत्नी भी पूर्ण समर्पण का भाव लिए अपने हर कर्तव्य निभाती है।पति उसे उसकी कमजोरी समझ  उसके प्रेम पर, उसके हर कार्यकलाप पर अपना एकाधिकार समझता है।पत्नी के किसी पर पुरूष से बात करने पर भी वह शंका करता है। कोई पत्नी की सुंदरता, उसके अच्छे व्यवहार की तारीफ करें तो शंका। इसी तरह छोटी छोटी बात पर शंका के बीज पनपने लगते हैं जो वृक्ष का रूप धारण कर लेता है एवं रिश्तों में दरार पड़ जाती है। वहीं प्रेम की कोमल कोंपलें टहनी से लिपट अपने को समेट लेती है। प्रेम और भ्रम में यही फर्क है कि प्रेम की जड़ें इतनी मजबूत होती हैं ,बेझिझक पूर्ण विश्वास के साथ नई डाली का स्वागत करती है ।यानी प्रेम का विस्तार होता है किंतु भ्रम के वृक्ष की जड़ें अंदर ही अंदर सड़ती जाती है। और एक दिन  मर जाता है। यानी शंका का बीज एक बार हममें पनपा तो उसके कदम निष्प्राण होने की कगार में होते हैं। यही कारण है भ्रम रिश्तों को तोड़ता है और प्रेम सभी को जोड़ता है।

        - चंद्रिका व्यास 

         मुंबई - महाराष्ट्र 

" मेरी दृष्टि में " प्रेम से अच्छी कोई स्थिति नहीं हो सकती है। इसलिए सभी को प्रेम से रहना चाहिए। जो समाज की अच्छी स्थिति बन सकें। परन्तु ऐसी सोच वालों की संख्या कम होती जा रही है। यह स्थिति संतोषजनक नहीं कहीं जा सकती है।

        - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संपादन व संचालन)

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