प्रशंसा और निंदा में बहुत बड़ा अन्तर होते हुए भी कोई विशेष अंतर नहीं है। जिस को समझना हर किसी के बस की बात नहीं है। समझने के लिए संयम की आवश्यकता होती है। जो समझ गया वहीं इसी दुनिया में कामयाब है। जैमिनी अकादमी द्वारा चर्चा परिचर्चा का विषय भी ऐसा कुछ रखा गया है। अब आयें विचारों को देखते हैं :- निंदा करने वाले व्यक्ति बुरे लगते है किंतु , कबीर जी ने कहा है...निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। निंदा को अपने निकट रखना चाहिए वह पानी और साबुन के बिना हमारे स्वभाव को निर्मल बना सकता है। यदि कोई हमारी निंदा द्वारा हमारी आलोचना करता है तो हमें ठंण्डे दिमाग से सोचना चाहिए कि वास्तव में हममें कौन सी बुराई है। यदि शांतिपूर्वक सोचने के बाद स्वयं में कोई बुराई दिख जाए तो हमें निंदक का कृतज्ञ होना चाहिए चूंकि उसने दर्पण की भांति हमारा दुर्गुण दिखाकर हमें सुधरने का मौका दिया है। मानव का एक स्वभाव होता है कि वह अपने दोष कम और दूसरे के दोष अधिक देखता है। हमें उसके सद्गुण भी देखना चाहिए यदि हम ऐसा नहीं कर सकते तो वह निंदक हमसे अच्छा है जो स्वयं कटु बनकर भी हमारी भीतर की गंदगी को दूर कर हमारे चरित्र को निर्मल बनाना चाहता है। मनुष्य की यह दुर्बलता है कि अपनी निंदा सुन उसे क्रोध आना स्वाभाविक है फिर भी हमें निंदक के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। प्रशंसा किसे अच्छी नहीं लगती। हमारी प्रशंसा करने वाले हमें प्रेरित कर हमारे प्रेरक बनते हैं। उनकी प्रशंसा से हमें प्रेरणा मिलती है। लेकिन हमारे जीवन में प्रशंसा और निंदा दोनों मिलते हैं। दोनों अलग अलग तरीके से अपना स्थान लेते हैं। यदि प्रशंसा हमें प्रेरणा देती है तो निंदा हमारी गलतियों को सुधारने का मौका।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
कहा गया है निंदक नियरे रखिए आँगन कुटी छवाय बिन पानी बिन साबुन बिना निर्मल करे स्वभाव. ये बात सत्य है कि कोई प्रशंसा करता है तो और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है. और कोई निंदा करता है हम सतर्क हो जाते हैं कि हमें यह काम नहीं करना है नहीं तो लोग निंदा करेंगे. जैसे कविता सुनाने में तालियां मिलती हैं तो और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है. कोई निंदा करता है तो हम सावधान हो जाते हैं कि आगे से हम से कोई गलती न हो. प्रशंसा को केवल प्रेरणा तक ही लेना चाहिए. प्रशंसा पाकर बहकना नहीं चाहिये. और निंदा पाकर घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपने में सुधार लाना चाहिए.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
प्रशंसा और निंदा..दोनों का जीवन में बहुत सार्थक और सकारात्मक महत्व है बशर्ते हम उसे सकारात्मक रूप में ग्रहण करें। प्रशंसा कई बार चापलूसी का रूप लेकर भी की जाती है जो व्यक्ति की आत्मविश्लेषण की शक्ति को कुंद कर देती है। तब अहंकार पनपने लगता है। जबकि निंदा कुछ समय के लिए व्यक्ति को थोड़ा अस्तव्यस्त और तनाव में अवश्य लाती है पर सोचने को विवश भी करती है कि हमारी निंदा आखिर क्यों की गई? स्वयं के परिष्कार की प्रक्रिया यहीं से आरंभ होती है। कबीर ने तो कहा है कि “निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।।” तो मेरे विचार से प्रशंसा और निंदा को सदैव तटस्थ रूप से ही लेना चाहिए और उसके अनुसार अपना आत्मविश्लेषण करते हुए । स्वयं का परिष्कार अनवरत करते रहना चाहिए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जीवन का अभिन्न अंग चाटुकारिता है, जहाँ विभिन्न रुपों में प्रशंसा की जाती साथ ही निंदा दोनों ही परिदृश्य में विशेष भूमिका होती है। जब यह कार्य नहीं कर पाये, उनका खाना हजम तक नहीं होता, हम कह सकते है, उन्हें विरासत में संरक्षण प्राप्त हुआ है, उनकी भाषा शैली,अपनापन मन भावन होता है और हम सहज रुप में उनके व्यवहारिकता से इतने प्रभावित हो जाते है, समझ ही नहीं पाते। अंत में उनके अवगुणों का पता चलता है। यह भी कटु सत्य है प्रशंसा प्रेरणा देती है, जबकि निंदा सावधान करती है। यह एक क्रमबद्धानुसार जीवन में चलता रहता है, जैसा कि प्रकृतिक परिवर्तन शील है, मानववादी एक कठपुतली बन कर रह गया है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट-मध्यप्रदेश
निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय
बिन पानी बिन सूप के निर्मल करे सुभाय।।
सच है निंदा करने वाले हों तो इंसान अपने आप को माँजता है--अन्यथा इस ब्रह्मांड में इंसान ऐसा जीव है जिसे अहंकार और घमण्ड बहुत जल्दी छू जाता है। हम इंसानों ने निंदा को सकारात्मक सोच से देखना चाहिये और निंदा से सावधान होकर अपने स्तर पर स्वयं में परिवर्तन लाना चाहिए - - सभी हम सामाजिक प्राणी होने का दावा कर पायेंगे और एक सर्वज्ञ सामान्य नागरिक का दर्जा पा सकेंगे। ध्यान रखना है कि निंदा से डरें नहीं और प्रशंसा से उडे़ नहीं - - पैर हदैव जमीन से जुड़े रहें।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
जीवनयापन के साथ-साथ हम बचे समय में अपने शौक और रुचि के अनुसार कुछ अलग कार्य भी करते हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि हम सभी में कुछ न कुछ विशेषता होती है, वह स्वभावगत भी हो सकती है, चारित्रिक भी अथवा कलात्मक भी। जिसको लेकर हमारी अपने-आप एक पहचान बन जाती है।यह तो हुआ सकारात्मक पक्ष। इसी के संदर्भ में एक और पक्ष समानान्तर होता है वह है हमारा नकारात्मक पक्ष। जिसमें हमारी कमियों, खामियों या स्वभावगत दोषों का भी आकलन किया जाता है। इस स्थिति हमें लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन पक्ष बन जाते हैं। पहले वे जो हमारे नकारात्मक पक्ष को अनदेखा करते हुए हमारे सकारात्मक पक्ष यानी हमारी विशेषताओं के प्रशंसक होते हैं। दूसरे वो जो हमारे सकारात्मक पक्ष को अनदेखा करते हुए हमारे नकारात्मक पक्ष यानी हमारी कमियों,खामियों और दोषों को लेकर हमारी निंदा करने वाले होते हैं। ऐसे लोगों में हमारे विरोधी या हमसे ईर्ष्या करने वाले भी होते हैं और तीसरे वे होते हैं जो निष्पक्ष किस्म के होते हैं। यानी हमारी विशेषताएं हों या कमी अथवा खामी दोनों से सहमति रखने वाले, स्पष्टवादी किस्म के होते हैं। इन तीनों स्थिति में हमारी यह समझदारी होनी चाहिए कि हम भावातिरेक में न आवेशित हों और न विचलित। न प्रशंसा सुनकर अहंकार आने दें और न निंदा सुनकर क्रोध या लज्जित हों। क्योंकि एक ओर हमारी प्रशंसा हमें प्रेरणा देती है, हमें उत्साहित करती है हमारा मनोबल बढ़ाती है।वहीं दूसरी ओर हमारी निंदा हमें सजग और सावधान करती है। यानी देखा जावे तो निंदा भी हमें प्रेरणा ही देती है। वह हमारी कमियों, खामियों और दोषों को उजागर कर, हमें उन्हें दूर करने का अवसर प्रदान करती है। अत: हमें चाहिए कि हम हर स्थिति में सजग और उत्साही रहते हुए अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित भाव से, पूरी तन्मयता से, निर्विघ्न और निर्भीकता से डटे रहें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
प्रशंसा अच्छी होती है क्योंकि इससे व्यक्ति को अपने प्रशंसनीय कार्य हेतु संतुष्टि मिलती है व हिम्मत मिलती है !!मेरी राय में निंदा हमें सावधान भी करती है व और अच्छा करने की प्रेरणा भी देती है !! प्रशंसा से प्रसन्नता भी मिलती है व प्रेरणा भी पर निंदा भी प्रेरित करती है और अच्छा प्रदर्शन करने की !! कई लोग प्रशंसा से इतने फूले नहीं समाते कि वे बेहतर करने के बजाय वहीं रुक जाते हैं !निंदा को यदि स्वस्थ दृष्टिकोण से ग्रहण किया जाए तो यह भी बेहतर करने की प्रेरणा देती है !!निंदा की एक नकारात्मक पहलू यह है कि इसके कारण व्यक्ति को हताश , निराश होकर कार्य छोड़ना नहीं चाहिए अपितु सकारात्मक सोच अपनाते हुए, और अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयत्न करना चाहिए !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
निंदक नियरे ऱखिये, आंगन कुटी सवाय, बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाय, देखा जाए प्रशंसा और निंदा दोनों ही हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं जबकि निंदा हमें सतर्क रहने व कमियों को दूर करने के लिए प्रेरित करती है और प्रशंसा हमें खुशी , आनंद तथा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, दोनों का उपयोग हमें अपना जीवन सुधारने की प्रेरणा देता है, यही नहीं प्रशंसा से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, और सकारात्मक उर्जा मिलती है, और निंदा से सिखने का अवसर, गलतीयों को सुधारने का मौका और आगे बढ़ने का अवसर मिलता है, गलतियों की सीख से हमअपनी बातचीत, कार्य और रहन सहन को सुधार में लाने का प्रयत्न करते हैं, इसलिए दोनों ही हमारे लिए उपयोगी हैं और हमें दोनों के लिए संतुलित दृष्टिकोण रखना चाहिए क्योंकि दोनों हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं, इसलिए प्रशंसा को स्वीकार करना चाहिए और निंदा को साकारात्मक रूप से लेना चाहिए, ताकि हम अपना सुधार करके निंदा करने वालों की नजरों में अच्छे दिखने लगें, आखिरकार यही कहुँगा कि हमें अपने कर्म पूरी लगन व निष्ठा भाव से करने चाहिए कोई चाहे निंदा करे या प्रशंसा हमें दोनों को सुन कर अपने आपमें सुधार ला सकते हैं ताकि हमारा जीवन सुंदर, सुखमय और उज्जवल बन सके, तुलसीदास जी ने सच कहा है, तुलसी इस संसार में भांति, भांति के लोग, सबसे हंस मिल बोलिये, नदी नाव संजोग, कहने का भाव निंदा करने वाले और प्रशंसा करने वाले हमारे लिए दोनों लाभदायक हैं इसलिए हमें दोनों की बातचीत को ध्यानपूर्वक और लगन से सुन कर संज्ञान लेने की जरूरत है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
राजस्थान के युवा सैनिक को कारगिल युद्ध के दौरान वीरता का पुरस्कार पा प्रशंसा मिली !वंही दूसरे सैनिक मोर्चे से मुंह चुराकर अपने गांव लौट आया। घर वालों ने जब देखा तो वे सन्न रह गए। उन्हें बहुत खराब लगा, कितने अपमान की बात थी कि बेटा युद्ध से मुंह चुराकर घर आ गया है । जो भी देखेगा निंदा करेगा। अपमान लगेगा उन्होंने यह सोच कर घर के लोगों ने उसे एक अंधेरी कोठरी में रख दिया। वही भोजन पहुंचा दिया जाता। मुंह अंधेरे उठकर वह शौच क्रिया से निवृत्त होकर अपने कमरे में चला जाता था। कुछ दिन गुजरे, युद्ध भी समाप्त नहीं हुआ था ! 1 दिन उसे अंधेरे में एक सर्प ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई। शर्म की बात तो यह थी कि घर के लोग उसके अंतिम क्रिया के लिए गांव के लोगों को बता भी नहीं सकते थे। निंदा सावधान करती हैं वह बहुत शर्मिंदा थे । दिन भर लाश रखी रही। रात के अंधेरे में वे उसे नदी में बहा कर चले आए । उसकी तेरहवीं भी नहीं की गई। वही सैनिक अगर युद्ध में मारा जाता तो कितना सम्मान मिलता ।तिरंगे में लिपट लिपट कर उसका शव लाया जाता । उसे सलामी दी जाती। वीरता पुरस्कार भी मिलता । बहुत सा धन भी मिलता । किसी को नौकरी भी मिलती। वह एक भूल के कारण सब से वंचित रह गया।सैनिक बन जाना ही काफी नहीं है। सैनिक बनकर अपने फर्ज को निभाना बहुत बड़ी बात है उसी सम्मान से प्रेरणा मिलती है ! इंसान को कभी अपने कर्म क्षेत्र में निंदा प्रशंसा का पात्र नहीं बनना चाहिए क्योंकि परिस्थितियाँ कब किसे किस मॉड पर ला खड़ी करती किसी को पता नहीं चलता है आधुनिक सभ्यता संस्कृति की होड़ में अपने माता पिता को सामाजिक गतिविधियों रिश्तेदारों के बीच निंदा रस में डूबे ख़ुद भी आनंद लेता !तब उसे ये महसूस नही होता कल के दिन माता पिता भाई बहनों को ये महसूस होगा मैने स्वार्थ के वशीभूत इन सबकी ज़रूरतों को पूरा करते !अपनी सारी जमा पूँजी इन पर निछावर करता हूँ पाश्चात्य संस्कृति में ढल नौकरी छूटने के डर से अपनी सहपाठी मित्र लिली के साथ लिविंग रिलेशन में रहते वहाँ की नाग़रिकता ले ली है । जब भी इंडिया आता शादी की बातें मम्मी पापा करते तो कहता - आप ने इतना पढ़ाया !की सारी जमा पूँजी ख़ाली हो गई ! पहले पापा एडवांस फ़ण्ड अपनी क़ाबिलियत से जमा करूँगा ! फिर शादी के विषय सोचना , इस चक्रर में उम्र बढ़ती गई ! अपनी बहन की शादी के लिए फ़ण्ड इकट्ठा करना है! आख़िर मेरा भी कोई अस्तित्व हैं। जब भी इंडिया आता ! अपने रिश्तेदारों मेरा परिचय विदेशी गिफ़्ट के साथ कराते गर्व महसूस करते ! विदेश के सामानो को झूठी शान शौक़त अहमियत बताकर मेरे ओहदे तारीफ़ के पुल बांधते ! इस बार इंडिया लौट कर मम्मी से अपनी शादी का प्रस्ताव तो स्वीकार किया ! पर अपने दुल्हन अपनी पसंद की लेकर आया ! और कहा -मेरी नौकरी ख़तरे में थी ! इंडिया वापस भेजा जा रहा था ! सो मैंने लिली से शादी कर वहाँ की नागरिकता स्वीकार कर ली ! अपनी नौकरी बचाई ! लिली मेरे ही आफिस में काम करती हैं ! आप लोग हिंदू रीति रिवाजों से शादी की तैयारी शुरू कर दीजिये !लिली के माता पिता के साथ इंडिया आए है ! देव के मम्मी पापा सारी जानकारी पा कर देख कर कोई उपाय ना बचा था ? उन्होंने अपने अस्तित्व को बचाने सब स्वीकार किया ! शादी की तैयारी में जुट गये ! अब तक जो बेटे देव की तारीफ़ करते समाज के सामने जो दूसरों को हँसते निंदा रस में डूबे रहते थे ! सम्मोहन के प्रति अपना अस्तित्व स्वाभिमान कैसे बचाएँगे ! कोई प्रशंसा करे या निंदा दोनों ही अच्छे होते है क्योंकि प्रशंसा प्रेरणा देती है जबकि निंदा सावधान करती हैं
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
" मेरी दृष्टि में " प्रशंसा मीठा ज़हर होता है । जो इस से बच गया या समझ गया। वहीं इस दुनियां में कामयाब है। जो नहीं समझ वह दुनिया में हाय तौबा करता फिरता है। जीवन को समझने के लिए बहुत कुछ सिखना पड़ता है। जो जीवन की सच्चाई से अवगत करवाता है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संपादन व संचालन)
प्रशंसा हमें ऊपर उठाकर ऊँचाई पर ले जाती है,निंदा हमें गलती से बचाती है।
ReplyDeleteप्रेरणा बेहतर काम कराती है तो आलोचना से कमजोरियों का पता चलता है जिससे सुधार होता है।💐💐🙏🙏
डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
(WhatsApp से साभार)