राजीव कपूर स्मृति सम्मान - 2025

      किसी से भी छल करना उचित नहीं होता है। अगर कोई छल करता है तो उसे, उस की सजा अवश्य मिलती है। इस बात का ध्यान सभी को रखना चाहिए। जैमिनी अकादमी ऐसी परिचर्चा की श्रृंखला चला रहा है। अब आयें विचारों को देखते हैं: -
       जब कोई व्यक्ति धोखाघडी़ या ठगी जैसा कोई अपराध करता है तो लोग प्रायः खीजकर चेतावनी के स्वर में यही कहते हैं "जैसा बोओगे वैसा काटोगे"।  व्यवहारिक जीवन में इस उक्ति का अर्थ है कि हम जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल हमें प्राप्त होगा। इन उक्तियों का अर्थ समझकर भी इनका अनुसरण नहीं करते। हमारा विवेक हमें सजग करता है और हमारी आत्मा भी हमें टोकती है फिर भी हम अपने स्वार्थ अपने सपनों को महत्व देते हुए उनकी आवाज को अनसुनी कर  गलत रास्ता पकड़ लेते हैं। आगे चलकर ठोकर मिलने पर  हमारे पास पश्चाताप करने के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रह जाता। यह निश्चित है बुरे कर्म के परिणाम बुरे होंगे और भले कर्म के भले।  कर्म का फल मिलने में समय भले ही लगे पर मिलता अवश्य है। सच्चाई और ईमानदारी से किये काम से मिले फल से हमें सच्चा सुकून मिलता है। सार यही है कर्म का फल लौटकर वापस आता ही है। चाहे अच्छे काम से मिला सुकुन का फल हो या छल से मिला दुख का फल । मानव अवतार जो मिला है उसे हम अपने अच्छे कर्मों से सार्थक करें। 

  - चंद्रिका व्यास 

   मुंबई - महाराष्ट्र 

     रामायण, महाभारत, साम्राज्य, राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, शासन-प्रशासन, परिवार आदि ने देख लीजिए।  उत्थान और पतन तरीके से देख लीजिए। छल-कपट, पल-पल में दिखाई देता है, किसे अपना समझे, किसे पराया! इतिहास साक्षी है, सच-झूठ के साये में जिन्दगी कट रही है, उन्हें इसी में जीवन का मजा आता है। बुरा होता जाए, हम मजा लेते जाए? यह भी सच है, आज हम दूसरे के साथ छल करेंगेॅ, भविष्य में हमारा भी वही हाल होने वाला है, समय रहते सुधर जाईए,  जैसा कर्म करोगें, वैसा ही फल भोगोगें?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

      बालाघाट - मध्यप्रदेश

       छल का परिणाम छल ही होता है !! कुछ लोग कुकृत्य करते समय सोचते हैं कि हमें कोई नहीं देख रहा , किसको पता चलेगा ??षडयंत्र करते हैं , पाप करते हैं , लोगों की राह मैं कांटे बिछाते हैं व इन सब कार्यों से प्रसन्न होते हैं !! ये संतुष्टि व छल का राज क्षणों होता है !! वे भूल जाते हैं कि नीली छतरी वाला , हमारा हर कर्म देख रहा है, व हर अच्छे बुरे कार्य का हिसाब हो रहा है !!एक अदृश्य शक्ति हर कर्म को तोल रही है , व हर पुण्य का फल भी मिलता है और हर किए गए छल का हिसाब भी मिलता है!! एक और रोचक तथ्य वो सच्चाई यह है कि यह फल गुणा करके मिलता है !!न जाने कुदरतवाला कैसे सब प्राणियों का हिसाब रखता है व करता है !! किसी के साथ छल करनेवाले का बहुत बुरा होगा , व किसी की भलाई करने वाले का बहुत भला होगा !!मेरा ये अनुभव है , बाकी आजमा के देख लो !!

     - नंदिता बाली 

   सोलन - हिमाचल प्रदेश

       एक फिल्मी गाना है,जैसा कर्म करोगे, वैसा फल देगा भगवान , ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान* एक सूक्ति भी है, *बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय* ऐसे जो भी प्रेरक कथन होते हैं, वे हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें सजग करते हैं और हमें  समय-समय पर जताते रहते हैं। यह हमारा दायित्व है कि हम इनसे सीख लें,सबब लें और अपने व्यवहार में इन्हें अपनाकर अपने सामाजिक जीवन को बेहतर करें। अफसोस यही होता है कि सभी लोग ऐसे जीवन-मूल्यों से संबंधित इन समझाइशों को नहीं अपनाते और अपने एवं औरों के जीवन को नुकसान पहुंचाने से नहीं झिझकते।  वे यह भूल जाते हैं कि जन्म,मृत्यु और जीवन की व्यवस्था करने वाला ईश्वर है और  जो निष्पक्ष भी है और न्यायी भी। अच्छा-बुरा, सुख-दुख, लाभ-हानि, इनाम-दंड देने वाला सब कुछ का कर्ता-धर्ता ईश्वर ही है। उनके न्याय में देर भले ही हो,अंधेर नहीं हो सकता। यानी हम किसी का भला करेंगे तो हमारा भी भला होगा और छल करेंगे तो बदले में हमें छल ही मिलेगा। भले ही आज नहीं तो कल। यह सुनिश्चित है। अटल है। अत: हमें सदैव सत्कर्म ही करना चाहिए। अपने व्यवहार में निश्छलता रखना चाहिए।

      - नरेन्द्र श्रीवास्तव

      गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       छल करोगे तो छल ही मिलेगा ,भारत माता के सच्चे वीर सपूत , सीना तान सक्षम खड़े सच्चे वीर सिपाही ब्रह्म अस्त्र दिया माता ने जंग जीत ये जाते है देशप्रेम भक्तिभाव के सच्चे वीर सिपाही हैं छल कपट राग द्वेष से वंचित स्वाभिमानी हैं अपनी मातृभूमि के अभिनंदन ये रक्षक है  इंसानियत सीखा कहते है  करोगे तो अपने लिए नही करोगे तो अपने लिए ये कहावते चरितार्थ जो जैसा करता उसे वैसा ही फल आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगा और यदि नियत में ही खोट आ जाए तो क्या कहेंगे ! ये इंसान नहीं ! कोई आतंकवादी ही हो सकता हैं ! जो दरिंदो की भाँति जंगली भेड़ियों की तरह , छल कपट इंसानो की इंसानियत को बदल हैवान बन देश विश्व में छाये हुए हैं ! ना इनका कोई ईमान हैं ! ना मझहब जो फ़ौलादो औलादो में अंतर ही नहीं समझते है ,जिस दिन ये  सही मतलब समझ जाएँगे उस से दिन ही आतंकवाद का ख़ात्मा हो जायेगा ! आज नहीं तो कल सुखद परिणाम मिलेगा !

    - अनिता शरद झा

   रायपुर - छत्तीसगढ़ 

       छल कपट की दूनिया में ईमानदारी बदनाम है हर चीज बिकाऊ है झूठ को रोज प्रणाम है,आईये आज का रूख छल कपट की तरफ ले चलते हैं, कि क्या छल कपट फलता  फूलता है या छल कपट करने वाले को उसका फल उसी रूप में मिलता है जिस रूप में कोई किसी को छलता है, मेरा मानना  है कि करणी का फल जरूर मिलता है, तभी तो कहा है, भलाई कर भला होगा, बुराई कर बुरा होगा कोई देखे या न देखे खुदा तो देखता ही होगा, कहने का भाव  छल करोगे तो छल मिलेगा आज नहीं तो कल मिलेगा,  देखा जाए छल कपट एक ऐसी गतिविधि है जिसमें व्यक्ति दुसरों को धोखा देने या उनको गलत जानकारी देने का प्रयास करता है जिसके परिणामस्वरूप कई नाकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं, जैसे छल कपट करने वालों पर विश्वास कोई नहीं करता और रिश्तों में दरार आने लगती है, ऐसे व्यक्ति को कहीं भी इज्जत नहीं मिलती, और उसकी प्रतिष्ठा कम होने लगती है, लोग ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करते,  और अन्त में उसे अपनी करणी का फल भुगतना पड़ता है, सत्य भी है अगर कोई सोचे मैं धोखाधड़ी करके अपना  अच्छा नाम  बना लूँगा तो यह उसका वहम है, क्योंकि छल, कपट या धोखा दुगुना होकर मिलता है, कबीर दास जी ने सच कहा है, करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय, बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहॉं से खाय, कहने भाव जैसा बोओगे  बैसा काटोगे, या ज्यू कह लो कि जैसी करणी बैसी भरनी, दुसरों से बुरा करने  से अपनी भलाई कभी नहीं हो सकती , हाँ इतना जरूर कह सकता हैं कि छल कपटी थोड़ी देर तक किसी के आगे  अपने अवगुणों को छुपा कर  अच्छाई प्रकट करने में कामयाब हो सकता है लेकिन उसकी बेईमानी, उसका छल कपट हर समय नहीं चल सकता क्योंकि बुराई तो प्रकट हो ही जाती है, कपटी कब तक कपट को छुपाऐगा, जैसे रावण  इतना पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी कपटी ही कहलाया क्योंकि उसने सीता जी को छल करके  हरण किया था उसी छल के कारण उसको कलंकित होना पड़ा कहने का भाव बुराई अच्छाई को कभी न कभी नष्ट करके रख देती है, अन्त में यही  कहुँगा  धोखाधड़ी, छल , कपट, बेईमानी थोड़ी देर ही टिकती है लेकिन इसका प्रभाव बहुत बुरा होता है, खुद तो छल करने वाला बर्बाद तो होता ही लेकिन अपने साथ साथ पूरे कुटुबं को नष्ट कर देता है, जैसे रावण ने खुद को  तबाह तो किया ही लेकिन अपने कुटुबं को भी ले डूबा, इसलिए अगर कोई सोचे की छल कपट करने के  बाद  इंसान दुसरों के दिल जीत सकता है या अपने आप को बड़ा साबित कर सकेगा  और उसकी  हर जगह जय जयकार होगी तो यह उसके मन का  वहम है क्योंकि किसी से बुरा करने वाले का कभी भला नहीं हो सकता उसको उसकी  करणी का फल जरूर मिलता है, इसलिए हमें कभी किसी के साथ छल, धोखा, कपट नहीं करना चाहिए ताकि हमारे और हमारे आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी पर धब्बा न लगे। 

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

    जम्मू - जम्मू व कश्मीर

        भगवदगीता में भगवान कृष्ण ने कहा कि कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। · मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थात जो इंसान जैसे कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा। द्वापर युग में कौरव पांडवों में आपस में महाभारत होता  रहता था। कौरवों की छल , ईर्ष्या , द्वेष आदि विकृत विकारों की मनोवृत्ति  से भरे हुए थे । क्योंकि धृतराष्ट्र राजा ही अंधे होते हुए भी अपने पुत्रों को अन्याय करने में  साथ देते थे। दुर्योधन पूरे पांडवों भाइयों से दुश्मनी का भाव रखता था। एक दिन बचपन में दुर्योधन ने भीम के खाने में जहर मिला दिया, जिस कारण भीम अचेत हो गए और दुर्योधन ने अपने भाई दु:शासन के साथ मिलकर भीम को गंगा में फेंक दिया। लाक्षागृह में  पांडव को मारने के लिए आग लगाना छल की मिसाल है। पूरा महाभारत ग्रन्थ कौरव वंश के छल की गाथा को गाता है। इसलिये कहावत भी है-‌*जो गड्ढा दूसरों के लिये खोदता है वह उसी में गिर जाता है।* कहने का मतलब यही है कि जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा फल मिलेगा। सारा कौरव वंश का नाश हो गया। आज नहीं तो कल मिलेगा। *बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय।* यह कहावत  तो इसी उपरोक्त कथन को दर्शाता है।  बचपन  में इंसान का जैसा परिवेश होता है , संस्कार मिलते वैसा ही उसका चरित्र निर्माण होता है । सनातन संस्कृति के प्रतीक  रघुवंश के राजा राम की महिमा उनके मूल्यों , आदर्शो के कारण अमर है। मूल्य तो शाश्वत हैं जिनसे बड़ा बूढ़ा , बच्चा बड़ा , युवा आदि हर कोई जुड़ सकता है। मूल्यों का पेटेंट नहीं है। त्रेता युग में राजा रावण दुर्गुणी था । रावण के पिता एक ऋषि थे और माँ एक राक्षसी थीं, उसे "ब्रह्मराक्षस" था। साधू वेश बनाकर सीता मैया का अपहरण किया था । छल , बल का इससे बड़ी क्या नजीर हो सकती है। विभीषण को छोड़कर सारा वंश समूल नष्ट हो गया। प्रभु कृष्ण और क्रूर कंस ने अपने माँ बाप को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया । कंस खुद राजा बन गया । अत्याचारी कंस का चरित्र आसुरी प्रवृत्तियों से सराबोर था। जिसके पास जो होता है वही दूसरे को देता है। बिच्छू का काम डंक मारना है। साँप का काम जहर उगलना है। गंगा का काम पापियों के पापों को धोना है। इंसान को अपनी बुराई , छल  की प्रवृत्ति को मिटाकर संस्कारी , दैवीय गुणों में ढालना चाहिए। अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा ईश्वर देता है। "ईश्वर की लाठी में आवाज़ नहीं होती" यह कहावत है जिसका अर्थ है कि ईश्वर के कर्मों या दंड के लिए किसी को पहले से पता नहीं है।  नर  कर्मों (नियमों) के उल्लंघन से मिलने वाला परिणाम बहुत गंभीर होता है।यह कहावत हमें सिखाती है कि हमें कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए और यह जानना चाहिए कि गलत करने वालों को ईश्वर एक दिन ज़रूर सज़ा देता है, भले ही उसमें देर लग जाए। तात्पर्य यही है कि हमारा हृदय शुद्ध ,निर्मल , निश्छल रहे । अहं करने से दूर रहें। तभी हम सद्कर्म में रत रहेंगे। तभी इंसान खुद से खुदा , नर से नारायण , जन से जिन(महावीर) बने।

   - डॉ मंजु गुप्ता

    मुंबई - महाराष्ट्र 

     कहा जाता है कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. ठीक उसी तरह अगर हम किसी के साथ छल करते हैं तो हमारे साथ भी कोई छल करेगा. जैसे काँटा बोने पर पहले कांटा बोने वाले के हाथ में चुभता है. फूल लगाने वाले को खुशबु पहले मिलती है, उसी तरह छल का फल तो छल ही मिलेगा. ऐसा कभी नहीं हो सकता कि हम सबके साथ छल करते रहें और हमारे साथ कोई  छल  न करें. जैसे कोई-कोई वृक्ष जल्दी फल देता है कोई वृक्ष देर से फल देता है. ठीक उसी प्रकार छल करने का फल  तो छल ही मिलेगा. भले आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगा. 

- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - प. बंगाल 

" मेरी दृष्टि में " छल का मतलब धोखा देना होता है।‌बाकि अपनी सफाई में कोई कुछ भी कहता रहें। इस का कोई मतलब नहीं रहता है। जो छल करता है । उसको छल की सजा अवश्य मिलती है। जैसा कर्म वैसा फल 

         - बीजेन्द्र जैमिनी 

       (संचालन व संपादन)


Comments

  1. किसी व्यक्ति को गुमराह करके स्वयं की कार्य सिद्ध करना छल कहलाता है। विधी का विधान यही है कि मानव जैसा करता है
    वही जीवन में लौटता है।झूठ की बुनियाद झूठ ही देती है।वह सही कार्य कर ही नहीं सकता।
    इसलिए उपरोक्त कथन सत्य है।
    कमला अग्रवाल
    गाजियाबाद
    (WhatsApp से साभार)

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  2. यह बिल्कुल सही कहा गया है।यह तो प्रकृति का नियम हीं है। जैसे एक पत्थर भी अगर ऊपर फेंकते हैं, तो वो वापस हम पर हीं आता है। अतः जैसा बोओगे वैसा फल मिलता है ठीक वैसे हीं जैसे जल करोंगे तो छल मिलेगा भले आज नहीं तो कल अवश्य हीं मिलेगा।
    - डॉ. पूनम देवा
    पटना - बिहार
    (WhatsApp से साभार)

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  3. किसी के साथ छल करना महा पाप है।इसका परिणाम कभी न कभी अवश्य बुरा मिलता है। हमें अच्छे कर्म करना चाहिए।जिससे सभी का कल्याण होगा।
    दुर्गेश मोहन
    बिहटा, पटना (बिहार)
    (WhatsApp से साभार)

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