मेज़र ध्यान चंद स्मृति सम्मान - 2025
लोग ग़लत साबित होने पर भी माफ़ी नहीं माँगते है बल्कि आपको ग़लत साबित करने में अपनी पूरी ताक़त लगा देते है ! लेकिन जब लोग अपने आप को सही साबित करने में नाकाम होते अपनी ही नजरो में गिर कुंठा ग्रस्त हो अपने केरियर स्वास्थ के प्रति लापरवाह हो कामयाब होने का ढोंग करते है ! जिंदगी तबाह कर लेते है !दिल की गहराइयों में उतर कुछ जख्म ऐसे भी होते जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है ! जो पूरी ताक़त से बल्कि आपको ग़लत साबित करने में अपनी पूरी ताक़त लगाते ,कुछ सपने हमें जगाते है ।कुछ सचेत कर जाते है उम्मीदों से जीना हमें सिखाते है । उम्मीद के सिक्के बाज़ार में मिलते नही कर्म इंसानियत की सीख से सिक्के जमाते है मानस मन की पहचान उम्मीदों से जगाते है ऐसे ही सपने सच्चाई का रास्ता दिखा जगाते।बदलते मौसम का तेवर देख अंदाज़ा लगाना मुश्किल है ।कुछ सपने हमें जगाते है और नर के साथ नारी खड़ी या नारायण खड़े हैं विचलित कर जाते है !जो ग़लत साबित होने पर भी माफ़ी नहीं माँगते है ।ये अनबूझी मानसिकता की ऐसी पहली हैं ।जिसे समाज अख़बारों में लिपटा बेशर्मी अंधा बन अनदेखा बन पढ़ता रहा है। कल का राष्ट्रनिर्माता नीद के आग़ोश में एक नये विकसित भारत के सपने देख़ । वही जो सच्चाई सेआगे बढ़ । आज कर्म अर्थ से बोझिल आँखें नीद को तरसती है ।वही ये कल का सरताज कर्म को ही जीवन मान आगे बढ़ जायेगा ।कर्म योद्धा कलायेगा! साधना का ये तप सूर्य की गर्मी ताप से निखर सोने से कुंदन बन जायेगा ।प्रेम और तपस्या का फल है झुलस कर ही हस्ती बनाता एक नयेयुग का निर्माण एक ईंट एक ईंट रख बुलंद इमारत बनाता है !पेपर की रंगिनियो में उड़ा जाये ।घर की सजावट में मज़हब की दिवारें ना हो । आसमा के टुकड़े में दिवारों की सजावट ना हों ।कर्म की बुनी चादर माँ का निर्मल आँचल हो । जिसकी पवित्रता पर दुनिया टिकी हो ।माँ को भी , साथ मेरे साथ सुकून से सपने देख
भूख प्यास को दूर भगा जाये ।
चैन की नीद आ जाये ।
देख़ व्याकुल मन से ना रहा गया और मैंने गुस्ताखी की माफ़ी चाहूँगी !मनोभाव उतार दिये ।
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
लोग गलत साबित होने पर भी माफी नहीं मांगते. ये तो अब सारी दुनिया की आदत बन गई है. माफी मांगने का मतलब है उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली. लेकिन ऐसा होता नहीं है और आगे भी नहीं होगा. लोग सामने वाले को ही गलत साबित करने में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं. ये सिलसिला हर जगह हर क्षेत्र में है. एक दिन सुबह एक आदमी मेरे लगाए कनेर के फूल पेड़ से फूल तोड़ रहा था. डाल एक दम नीचे लटका दिया था. मेरे मना करने पर चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगा डाल टूटा है, डाल टूटा है....... उल्टा हमसे झगड़ा करने लगा. अपशब्द भी बोलने लगा. जब एक आदमी और आया तब भागना शुरू किया. जो डाल उसने लटकाया था वो टेढ़ा हो कर नीचे चला आया, ऊपर की तरफ जाता ही नहीं. ये बात उसने कहा ही नहीं कि हाँ गलती हो गई. मुझे ही गलत ठहराने लगा कि आप का गाछ नहीं है ये सरकारी गाछ है. गलती करने वाला जोर-जोर से चिल्लाने लगता है कि लोग समझेंगे कि उसकी गलती नहीं है. महाभारत में भी दुर्योधन कर्ण अपनी गलती कभी नहीं माने. इसलिए वे तो चलता रहेगा. जिस दिन लोग अपनी गलती पर माफी मांगने लगेगें उस दिन से ये दुनिया अच्छे लोगों से परिपूर्ण हो जाएगी.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
सबसे बड़ी सच्चाई है कि हर इंसान दोहरा चरित्र जीता है वह अपनी गलती को जानकर भी मानता नहीं है। माफी मांगने में बेइज्जती महसूस करता है। यही नहीं गलती इंगित करने वाले को झूठा और गलत साबित करने के लिये साम दाम दंड भेद हर तरीके अपनाता है। आसान नहीं होता अपनी गलती स्वीकार करना। इंसान गलतियों का पुतला है। सच्चे मायने में वही इंसान इंसान कहलाने के योग्य है जो अपनी गलतियों से सबक ले कर आगे चले। कम से कम अपने मन से अपनी गलती स्वीकार करे। झूठे अहम् के साथ न जिये बल्कि सच्ची सच्चाई का स्वागत करेह
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
मानव जीवन अजीब है, हमेशा दो राहो पर चलता है, सच और झूठ के साये में जीवन यापन करता चला आ रहा है, सामने कुछ पीछे कुछ है, देखा जा सकता है, हम कह सकते है कौन अपना कौन पराया। आदतन बन चुके है, जैसे कोर्ट कचहरी में होता, सच को झूठ और झूठ को सच? अपनी गलतियां स्वीकार करना पसंद नहीं करते और हमें गलत साबित करने के लिए ऐरी चोटी लगा देते है। विशेष भूमिका वकीलों की रहती है। प्राय: यह पसंग परिवार, समसामयिक, राजनीति में देखने को मिलता है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
मानव जाति का स्वभाव कहें या व्यवहार! ऐसा ही होता है। वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करता। चूंकि उसके स्वभाव में अहंकार, स्वाभिमान, अपने आपको सही ठहराने की जिद्द एवं झूठी अकड़ होती है। यदि वह गलत साबित होता है और माफी मांगता है(हार मानता है) तो उसके अहंकार को ठेस पहूंचती है। बहुत ऐसे होते हैं जिसे अपनी गलती पर माफी मांगना यानी अपने स्वाभिमान पर धब्बा लगना समझते हैं अतः दूसरों पर अपनी अकड़,धौंस दिखा उसे गलत साबित करना चाहते हैं। इसमें ऐसे लोग भी होते हैं जो तर्क-वितर्क से ऐसा वातारण खड़ा कर देते हैं मानों वे गलत नहीं है।हम क्यों झूकें सामने वाले को माफी मांगनी चाहिए। बड़प्पन इसी में है कि कोई एक चाहे गलत ना भी हो फिर भी मान लेता है तो दूसरा अपने आप नरम पड़ झुक जाता है और वह मन ही मन शर्मिंदा हो समझ जाता है कि मैं जीतकर भी हार गया।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन सरल,सहज और सरस है, परंतु हरेक जगह कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जो उपद्रव, जिद्दी या अहंकारी होते हैं जो अपने क्रियाकलापों से, अपनी गतिविधियों से कुछ न कुछ ऐसा कुछ करते रहते हैं जिससे माहौल अशांत हो जाता है। ऐसे लोगों को न अपनी गलती समझ में आती है और न ही उन्हें इसका पछतावा होता है। चिंताजनक तो यह है कि कुछ लोग ऐसे गलत लोगों के समर्थन में बचाव करने भी आ जाते हैं और फिर अपनी गलत बात को सही करने में पूरी ताकत लगा देते हैं। इसके बाद भी यदि ऐसे लोग गलत साबित भी हो जाते हैं तब भी ये माफी नहीं मांगते हैं, बल्कि फिर कोई दूसरे अवसर की प्रतीक्षा और प्रयास में लग जाते हैं। हमारे संस्कारों में यह पक्ष बेहद दुखद और चिंताजनक है। हम सबका यह दायित्व है कि ऐसे विकारों को दूर करने का सामाजिक और सामूहिकरूप से समर्पित भाव से प्रयास करें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
क्योंकि वे अपने को अहंकार रूपी जाल में फंसा देखकर ही खुश होना चाहते है। इसीलिए अपनी गलती छुपाने के लिए वे दूसरों को ग़लत ठहराने में अपनी पूरी ताक़त झोंक देते हैं। जहाँ सच्चाई दब जाती है और रिश्ते टूटकर बिखर जाते हैं। आपसी प्रेम भाव खत्म हो जाता है। जबकि असली साहस अपनी गलती मानने में होता है, न कि दूसरों को ग़लत साबित करने में अपनी सारी ताकत लगाने में। यह हर प्राणी को समझना होगा!
- नूतन गर्ग
दिल्ली
दोष पराये देख के चलत हसंत हसंत आपना याद न आविये जिनका आदि न अन्त, यह दोहा यही प्रस्तुत करता है कि हम दुसरों की गलतियों को देख कर बहुत खुश होते हैं लेकिन अपनी गलतियों को कभी उजागर नहीं करते जो अनगिनत होती हैं, चलिए आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि हमें अपनी गलतियों को मानना चाहिए या गलत होने पर माफी माँग लेनी चाहिए या दुसरों को गलत साबित करने पर ही जोर लगाना चाहिए ताकि अपनी गलतियां छुपाई जा सकें, मेरा मानना है कि दुसरों को दोष देने के बजाय अपनी गलतियों को सुधारना ज्यादा बेहतर है, क्योंकि इससे आपने आप में सुधार आता है, समय की बचत होती है और गली मौहल्लै में शांति बनी रहती है, आत्म जागरुकता में सुधार आता है, और अपनी कमियों को दूर करने का मौका मिलता है जबकि दुसरों के दोष निकालने से दुसरों का सुधार हो सकता लेकिन अपने अवगुणों में बढ़ोतरी होती है जिससेे इंसान तरक्की नहीं कर सकता और गलती पे गलती करता रहता है, और दुसरों के दोष देने के नाकारात्मक परिणाम मिलते हैं, रिश्तों में खटास आती है और आस पड़ोस के लोग नाराज ही दिखते हैं मनुष्य अपने आप को अकेला महसूस करता है, आपसी भाईचारा ,विश्वास खत्म हो जाता है, इसके अतिरिक्त गलतियों को स्वीकार करना एक समझदारी का कदम है, क्योंकि इससे, भावनात्मक, व्यक्तिगत विकास और रिश्तों को बढ़ावा मिलता है, इससे सम्मान और आत्मविश्वास भी बढ़ता है, अन्त में यही कहुँगा कि इंसान गलतियों का पुतला है लेकिन उनको सुधार लाना एक खुदाई सिफ्त है अगर गलती हो भी जाए तो उसको स्वीकार कर लेना चाहिए यहाँ तक हो सके माफी माँगने से भी परहेज नहीं करना चाहिए ताकि रिश्तों में दरार न आने पाए इसके साथ साथ झूठी बहस से बचने का प्रयास करना चाहिए और दुसरों को गलत ठहराने से पहले अपनी गलती को स्वीकार करना ही उचित होता है, क्योंकि ज्यादा लोग अपने दोष छुपाने की खातिर दुसरों को दोषी ठहराते हैं जिससे अपने दोष बढ़ते हैं और दुसरों की नजरों में इंसान गिर जाता है और अपनी इज्जत व आबरू खो देता है, इसलिए जब हम एक उँगली दुसरे के दोष दिखाते हुए उठाते हैं तो चार उँगलियाँ हमारी तरफ इशारा करती हैं यही इशारा करती हैं कि आपनी गलतियों को तो देखो तभी कहा है, बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोए, ज्यों देखा मन अपना मुझसे बुरा न कोय, कहने का भाव गलती तो हर इंसान करता है लेकिन जो अपनी गलती को स्वीकार कर लेता है वोही तरक्की करता है और इंसानियत को हासिल कर लेता है, इसलिए गलत साबित होने पर हमें अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए न कि दुसरों के दोष निकालने चाहिए।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
आजकल झूठ का बोलबाला है !!लोग गलत साबित होने के पश्चात भीअपनी गलती नहीं मानते , माफी मांगना तो दूर की बात है !! गलत होने पर भी , न शर्मिंदा होते हैं , न पछताते हैं !! अपनी बात मनवाते हैं व खुद की निर्दोष कहते हैं , बेशर्मों की तरह , चाहे उनकी गलती साबित हो चुकी हो !! ऐसे लोग ....जिसकी लाठी , उसकी भैंस ...कहावत को चरितार्थ करते हैं व अपनी संपूर्ण सत्ता , ताकत , लगा देते हैं स्वयं को सही साबित करने के लिए !! कुछ समय तक इनका राज होता है पर ये भी सच है कि सत्य उस दमकते हीरे की तरह है , जो स्वयं प्रकाशित होकर साबित हो जाता है , बेशक इसमें समय लगे !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जी ऐसा मेरे साथ भी हुआ है कि कुछ लोग गलत साबित होकर भी माफ़ी मांगने के बजाय उल्टा मुझ पर ही दोष मढ़ने लगे और मेरे खिलाफ तमाम तरह का त्रियाचरित्र करने लगे । ये चीज बचपन से स्कूल पीरियड की छोटी छोटी लड़ाइयों से लेकर बुढ़ापे की अवस्था तक ,घर से लेकर बाहर तक , ऑफिस ,कार्य क्षेत्र ,हाट बाजार , राजनीतिक अखाड़ो से लेकर अंतर्देशीय विषयों तक हर जगह देखने को मिलती रही है कि अपनी गलती न मानकर दूसरे को दोषी साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया जाता है ।चाहे वह पारिवारिक न्यायालय का पति पत्नी का विवाद हो या घरेलू सास बहू के झगड़े , स्कूली बच्चों के झगड़े , कालेज के विवाद ,विभागीय साथियों पर छीटाकशी ,अधिकारियों की कर्मचारियों पर दोषारोपण या कर्मचारियों पर दोष डालना ,अपनी गलती को दरकिनार कर देना ,अक्सर होता रहता है । अक्सर देखा गया है लोग अपनी गलती स्वीकार करने से कतराते हैं डरते हैं। खुद को गलत स्वीकार करना बड़ी हिम्मत का काम है लेकिन अगर इंसान खुद की गलती को एक भूल मानकर स्वीकार कर ले तो उसे आत्मबल मिलने लगेगा धीरे धीरे खुद को माफ़ करने की ताकत भी आ जायेगी बजाय उसके कि जिसने आपकी गलती साबित की उसे दुश्मन मानने लगे । स्वयं को गलत मान लेना मानसिक परिपक्वता की निशानी है ।खुद को गलत तो डाकू बाल्मीकि ने माना नतीजन वह महर्षि बाल्मीकि बने । ऐसे ही डाकू अंगुलिमाल जिन्होंने गलती को स्वीकार कर उसी काया में नया जीवन जिया क्योंकि उन्होंने सबसे पहले गलती मानकर फिर स्वयं को क्षमा करके विश्व मे हृदय परिवर्तन का अतुलनीय कीर्तिमान स्थापित किया । पर ये भी सच्चाई है कि ऐसे लोग विरले होते हैं जो अपनी गलती को दिल से स्वीकार कर लें । ऐसा ही होना चाहिए जिससे विश्व मे नैतिकता बढ़ती रहे । पर सच मे ऐसा बहुत ही कम होता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " गलत पर प्रश्न चिन्ह नहीं होना चाहिए। यही बात दूसरे के लिए पीड़ादायक हो सकती है। जब की ग़लत का सूधार होना आवश्यक हो जाता है। कभी - कभी ग़लत होने का भ्रम हो सकता है। जिस का समाधान स्वयं को करना होता है। परन्तु गलत तो ग़लत है।
यह बिल्कुल गलत है।अपनी गलती साबित होने पर लोग माफी नहीं मांगते,जबकि गलती होने पर माफ़ी मांगना चाहिए।दूसरे को गलत साबित करने में लोग पूरी ताकत लगा देते हैं। सच्चाई यह है कि हमें गलती होने पर माफ़ी मांग लेना चाहिए।गलती स्वीकार लेने से कोई छोटा नहीं होता।इससे आगे बढ़ने के रास्ते प्रशस्त होते हैं।
ReplyDelete_ दुर्गेश मोहन
बिहटा, पटना (बिहार)
(WhatsApp से साभार)
कुछ लोग ढीठ होते हैं। खुद की ग़लती को दूसरे पर थोपना चाहते हैं। इसके लिए वो झूठ पर झूठ बोलते जाते हैं। कभी कभी तो हद भी पार कर देते हैं।
ReplyDeleteलेकिन सच छुपाने के लिए इंसान कितना भी ग़लत बोले , सच लोगों के सामने आकर ही रहता है।
- प्रेम लता सिंह
पटना - बिहार
(WhatsApp से साभार)