वासुदेव शरण अग्रवाल स्मृति सम्मान - 2025

        अहंकार पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है । ओशो रजनीश जी कहते हैं कि मैं कुछ हूं असल में ये अहंकार का अर्थ है । बाकि अंहकार बहुत विशाल है। इससे बचना बहुत कठिन यानी असम्भव सा ‌लगता है। फिर भी अहंकार तो अहंकार है । यही कुछ जैमिनी अकादमी ने चर्चा - परिचर्चा का विषय रखा है । आयें विचारों को देखते हैं :- 
        स्वयं में आत्म विश्वास तो होना चाहिए, हौसला भी रखना चाहिए और मंजिल तक पहुँचने के लिए मेहनत भी करना चाहिए। लेकिन इसमें यदि ' मैं ' का भाव जाग्रत होकर अकड़ का प्रदर्शन होने लगे तो वह अहंकार का रूप हो जाता है जो फिर विशेषता न होकर हमारी खामी बन जाता है।हमारे प्रगति के रास्ते में बाधक बन जाता है। अत: कभी भी अपने हुनर को, अपने सामर्थ्य को अहंकार के ताने-बाने में नहीं ढालना चाहिए। जिन्हें अहंकार में हम बौने समझने लगते हैं, असल में हम ऐसा कर बड़ी भूल कर बैठते हैं। वे लोग किसी भी रूप में कमजोर नहीं होते है। बल्कि हमारे अहंकार से उनके आगे बढ़ने के रास्ते और गति पकड़ लेते हैं। तब परिणाम में हम असफल हो जाते हैं। क्योंकि अहंकार भीतर से हमें इतना खोखला करता रहता है, जिसका हमें आभास नहीं हो पाता और फिर यही खोखलापन हमें तहस-नहस कर देता है। हमें पीछे धकेल देता है। हमें तबाह कर देता है। अहंकार से कितने प्रभावी, शक्तिशाली, सर्व गुण सम्पन्न लोगों का पतन हुआ है, इतिहास  ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है।        

      - नरेन्द्र श्रीवास्तव

    गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

     मेरी राय में --- "मैं कुछ हूं" यह अहंकार का एक रूप जब हो सकता है, जब यह अपना बडप्पन और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए उपयोग किया जाता है। लेकिन अगर यही आत्मविश्वास और अपनी क्षमताओं पर गर्व करने के रूप में देखा जाए, तो यह सकारात्मक भी हो सकता है। अहंकार और आत्मविश्वास में बहुत अन्तर होता है। अहंकार और आत्मविश्वास के बीच का अंतर समझना महत्वपूर्ण है । कुछ लोग बस मै  ...मै ...मै... दूसरों के कार्य करने का  भी श्रेय खुद ही लेते रहते हैं और दूसरो को नगण्य कर देते हैं, वे सचमुच अंहकारी होते हैं।और ऐसे व्यक्ति समाज में घंमडी कहलाते हैं अहंकार: दूसरों को नीचा दिखाने और अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए उपयोग किया जाता है।कहते कि अहंकार किसी को भी नही कर ना चाहिए। अंहकार तो रावण का भी नहीं रहा। अंहकार मनुष्य के पतन का कारण होता है। जबकि-आत्मविश्वास: अपनी क्षमताओं पर गर्व करना और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना। इसलिए हमारे लिए आत्मविश्वास बनाम अहंकार के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

         - रंजना हरित 

    बिजनौर - उत्तर प्रदेश 

      " अंहकार में  तीनों गए, धन वैभव और वंश, न मानो तो देख लो, रावण, कौरव और कंस" आज बात अंहकार की करते हैं कि अंहकार क्या कुछ नहीं कर देता, यह सब उपर दी गई स्तरें साफ बतला रही हैं कि तीन बड़ी, बड़ी हस्तियों का उनके कुटुबं सहित कैसे सर्वनाश हो गया, उन्होंने  अपना आप तो खत्म कर ही दिया लेकिन अपने कुटुम्ब, सगे संबंधियों को भी ले डूबे, चाहे रावण  हो या कौरव  या कंस सभी में अंहकार कूट कूट भरा था, इतने बड़े सिहांसन पर विराजमान होते हुए भी अपने कुल की तबाही ही नहीं कि बल्कि  आने वाले युगों, युगों तक कलंकित माने जाते हैं जिससे साफ जाहिर होता है कि जब औसे व्यक्ति से अपनी ताकत नहीं संभाली जाती वो खुद को ही भगवान समझने लगता है और उनका सर्वनाश करने के लिए भी भगवान खुद ही जन्म लेते हैं या अवतार लेते हैं, लेकिन यहाँ तक   कुछ लोग यह समझते हैं कि मैं कुछ हुँ  और इस भावना को कुछ अच्छे कार्य के लिए इस्तेमाल करें तो यह बात अंहकार में नहीं आँकी जाती, क्योंकि हर इंसान के पास कोई न कोई अच्छाई होती है जो उसके अच्छे कार्य के लिए इस्तेमाल करता है, किसी, बे सहारे कि लाठी बनता है, गरीब की मदद करता है या अपनी ताकत या औहदे  का सही प्रयोग करता है तो अंहकारी नहीं होता बल्कि कुछ कर दिखाने के लिए पैदा होता है लेकिन ऐसे मैं हुँ कुछ अच्छा करके दिखा दूँगा बहुत कम लोग होते हैं लेकिन लोगो के दिलों में जगह बना लेते हैं और शदियों तक पूजे जाते हैं जैसे भगवान कृष्ण जी ने अपना विराट रूप दिखाकर बता दिया था और कहा था मैं ही सब कुछ हुँ, उन्होंने आपने आपको अच्छे लोगों के लिए इस्तेमाल किया और बुराई को खत्म करके दिखाया कहने का भाव मैं हूँ जब अंहकार में आ जाता है तो सर्वनाश कर जाता है और मैं हूँ जब अपना मंथन करके  कि मैं एक होनहार हुँ कुछ अच्छा करके दिखा सकता हुँ  इस्तेमाल किया जाता है तो इंसान खुद और अपने खानदान को पूजनीय बना देता है, असल में अंहकार एक ऐसी बुराई है जिससे व्यक्ति को अपनी गलतियां  और दुसरे कि अच्छाईयां नहीं दिखती और वो गलती पे गलती दोहराता जाता है जिससे वो अपने आप को नष्ट करते करते बुद्धि मलीन बन जाता है, कहने का भाव घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है जो मनुष्य का सर्वनाश कर देता है उसके विवेक को  हटा कर बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, अन्त में यही कहुँगा कि मनुष्य को कभी घमंड नहीं करना चाहिए, जब घमंड का भूत सवार हो जाता है तो  यह सोचने समझने की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है जिससे घमंडी को दुसरे मनुष्य भी कीड़े मकोड़े दिखाई देने लगते हैं और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है, जिससे हर कोई उससे घृणा करने लगता है रिश्तों में दरार आने लगती है और अंहकार में ही खत्म हो जाता है,  इसलिए मैं हूँ  लोगों  की मदद करने के लिए अंहकार है और मैं ही मैं हूँ एक अंहकार है, सच कहा है, "बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल, हीरा सुख से न कहे लाख टका मन मोल", कहने का भाव जो हीरा होता है वो दूर से चमकता है और कभी अपने मोल की तुलना नहीं करता और दूर से पहचाना जाता है, इसलिए हमें घमंड या गर्व नहीं करना चाहिए, कबीर जी ने सत्य कहा है, कबीरा गर्व न कीजिये, उँचा देखि आवास, काल परी भुइं लेटना उपर जमती घास। 

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

  जम्मू - जम्मू  व कश्मीर

       मैं कुछ हूँ शब्द ही अंहकार का द्योतक है ! किसी भी व्यक्ति को चाहे सत्ता ,सौंदर्य बोध , धर्म ,भक्ति ,शक्ति, धन का बड़े से बड़े विश्व विजेयता को नष्ट कर देता है । रावण को विद्या विशारद महापंडित कुल वंश श्रेष्ठ रावण उच्चशिक्षित ” ज्ञान का अंहकार” था और राम सुशिक्षित सत्रु सजल् सफ़ल सरल सक्षम होते है ! ऐसे शत्रु बहिष्कार तिरस्कार सम्मान के अधिकारी होते है “अहंकार का ज्ञान “ रावण को था ! “उच्चशिक्षित रावण को मृत्युदंड दे कार्य को टालना चाहता था ।“सुशिक्षित” राम को अहंकार का ज्ञान था !असल में “मैं कुछ हूँ ये अंहकार होता है “ लक्ष्मण को पुरुषोत्तम राम मेरा भाई विश्व विजेता है अंहकार को तोड़ने गुरु भक्ति की शिक्षा रावण से दिलवाई क्योंकि वेद पुराणों का महाज्ञाता भगवान शिव तांडव श्रोत पढ़ सिहासन को हिलाने वाला रावण ही था असली अन्हंकारी था! शिक्षा ज्ञान की अनुपम कुंजी पूँजी थी ! रावण के अंतकाल में राम ने लक्ष्मण को विद्याविशारद रावण के पास भेजा था !  असल में ये अंहकार का अर्थ सीता ने राम को एहसास कराया बिना कुछ कहे ही अपने कर्म त्याग से बताया था है ! माटी में उपजी माटी में समाई थी ।  असल में ये ही अंहकार का अर्थ है ! अंहकारी कभी सिर नहीं झुकता हालातों से समझोता नहीं करता मेरी मुर्गी की एक टांग पर चल जीवन गुजार देता है ! अच्छे बुरे का ज्ञान ही नहीं होता अपने जिद्द के आगे सर्वस्व निछावर कर देता है ! यही अंहकार का अर्थ है! माला फेरत जग गया 
गया ना मन का फेर 
करका मनका डार के मनका मनका फेर 
पोथी पढ़ पंडित भया ना कोय ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय .

 - अनिता शरद झा

  रायपुर - छत्तीसगढ़

     मैं कुछ हूँ ये अहंकार ही है, क्योंकि इस दुनिया में मेरा कुछ नहीं है. फिर भी लोग मैं और मेरा के चक्कर में फंसे रहते हैं कि मैंने ये किया मैंने  वो किया. मैं ये हूँ तो मैं वो हूँ जबकी मैं कुछ भी  नहीं है. अहंकार ही कहलवाता है मैं  मैं, मैं. इस तरह से लगता है कि अहंकार ही मैं है। यह शरीर भी आपका नहीं है तो फिर ये मैं कहाँ से आया. एक तरह से देखा जाय तो शरीर के अंदर जो आत्मा है उसे ही मैं का भान हो जाता है वह मैं मैं करने लगता है जबकि मैं कुछ नहीं एक अहंकार ही है. 

  - दिनेश चंद्र प्रसाद  "दीनेश "

        कलकत्ता - प.बंगाल

            मेरी राय में, मैं कुछ हूं , ये अहंकार नहीं अपितु आत्मविश्वास ,स्वाभिमान का प्रतीक है  ! अहंकार तो वो होता है जब व्यक्ति ये समझने लगता है कि मैं ही सब कुछ हूं , मुझ जैसा कोई नहीं !! अहंकार तब होता है जब व्यक्ति खुद को सर्वश्रेष्ठ व बाकियों को तुच्छ मानने लगता है व ये समझने लगता है कि उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती क्योंकि वह सर्वोत्तम है !! जब व्यक्ति के मन मैं और बेहतर बनने की भावना के बजाय गर्व की भावना आ जाए , वहीं पर अहंकार आता है व अहंकार परिभाषित होता है !!

 - नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

     मानव,पशु-पक्षी आदियों में देखने को मिलता है। अहंकार के अनेकों प्रर्यावाची शब्द है। स्वभाव से लेकर धनवर्षा तक देख लीजिए।  मैं हूँ तो और कोई नहीं? इसी बात से पतन निश्चित होता जाता है। खासकर समसामयिक, रचनात्मक, धार्मिकता, राजनैतिक परिदृश्य भूमिकाओं में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उदाहरण सामने आए है। असल अहंकार का पर्दाफाश होता है, यही शाब्दिक अर्थ में यथार्थवादी हो सकता है।

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

         बालाघाट - मध्यप्रदेश

  " मेरी दृष्टि में " अंहकार में बहुत कुछ हो जाता है। जो किसी भी स्थिति में ठीक नहीं होता है। अहंकार से हमेशा बचना चाहिए। तभी कुछ हासिल किया जाता है। जो कार्य नि:स्वार्थ होगा। शायद वह ही अहंकार से बचा सकें। देखनें में कुछ भी लग सकता है। फिलहाल मेरी स्थिति भी बचने का प्रयास है। 

        - बीजेन्द्र जैमिनी 

      (संचालन व संपादन)



Comments

  1. ‘मैं कुछ हूँ’ यह कहना ‘स्वाभिमान’ है : किसी परेशानी में किसी को कोई भी मदद करने के ध्येय से कह देता है, “मैं हूँ न!”

    लेकिन ‘मैं ही सब कुछ हूँ’ दिखलाना-कहना-समझना अंहकार दर्शाता है जो विनाश के राह पर अग्रसर करता है…!
    - विभा रानी श्रीवास्तव
    पटना - बिहार
    (WhatsApp ग्रुप से साभार)

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