तोता मिर्च खाता है फिर भी मीठा बोलता है लेकिन इंसान मीठा खाकर भी कड़वा बोलता है क्योंकि वह स्वार्थी होता है. तोता मिर्च खाकर भी मीठा बोलता है क्योंकि वह अपना मीठा बोलने का स्वभाव का त्याग नहीं करता है जबकि इंसान अपनी सुविधानुसार अपने वचन को बोल को परिवर्तित करता रहता है. तोता छल प्रपंच इत्यादि नहीं जानता है जबकि मनुष्य इन गुणों से भरपूर होता है.महाभारत में भीष्मपितामह बोले कि दुष्ट का अन्न खाने से बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी. ये सिर्फ इंसानों में ही होती है. जानवरों या पशु पक्षियों में नहीं. जैसे पानी गर्म होने पर भी आग को बुझा देती है वैसे ही तोता मिर्ची खाने के बाद भी मीठा बोलता है. मिर्ची खाने से शरीर गर्म हो जाता है उस वक़्त इंसान मीठा बोल ही नहीं सकता. कड़वा ही बोलेगा. लेकिन तोता कड़वा बोलना जानता ही नहीं है इसलिए वो चाहकर भी कड़वा नहीं बोल पता है.इंसान अपनी सुविधानुसार कड़वा या मीठा बोलता है. ये तोते की प्रकृति है जो मिर्च खाकर भी मीठा बोलता है जबकि इंसान दोनों खाता है मीठा भी तीखा भी इसलिए वह दोनों बोलता है लेकिन तोता नहीं. वह मिर्च को भी मीठे में बदल देता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद
कलकत्ता - प. बंगाल
खानपान से जुबान के लहजे का संबंध इतना गहरा नहीं है, जितना हम समझ लेते हैं। जन्म, रूप-रंग और स्वभाव ईश्वर की देन होते हैं। कोयल और कौआ दोनों काले होते हैं, मगर दोनों की आवाज में फर्क होता है। इसी तरह दो सगे भाई या दो सगी बहन के स्वभाव में, उनकी बोली में अंतर होता है। अत: यह कहना एकदम सच नहीं कहा जा सकता कि तोता मिर्च खाता है फिर भी मीठा बोलता है क्योंकि तोता आम, अमरूद आदि अनेक फल भी खाता है। इसी तरह कड़वा बोलने वाला इंसान भी मीठा, नमकीन आदि सभी प्रकार का खाना खाता है। सार यह कि खानपान कैसा भी हो, हमें अपनी बोली यानी वार्तालाप की भाषा सदैव मधुर ही रखना चाहिए। कोई बार मीठी बोली की वजह से बिगड़े काम भी बन जाते हैं अंर कड़वी बोली से बने काम बिगड़ भी जाते हैं। बोली से हमारे संस्कार और हमारे बौद्धिक स्तर का भी पता चलता है। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
बिलकुल सही बात है। दरअसल इंसान के" मुंह में राम बगल में छुरी" वाली बात होती है। चेहरा , समय और व्यक्ति देखकर हीं इंसान बोलता है। इसीलिए बहुत बार कड़वा और कटु बोल देता है। जबकि जानवर निष्पक्ष और मुंह देखी बातें कभी नहीं बोलता वह अपनी फितरत मुताबिक हीं सब करता है। इंसान दोहरी नीति वाला व्यक्तित्व रखता है अधिकांशत:।इसीलिए स्वभावत: तोता अपना प्रिय भोजन मिर्च खा कर भी मीठा बोलता और इंसान मीठा खाकर भी कड़वे बोल बोल हीं जाता है।जानवर आदमी से ज्यादा वफादार हैं यह भी कहा जाता है। - डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
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तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, वशीकरण यह मंत्र है, परिहरू बचन कठोर" तुलसीदास जी का यह दोहा मीठे बोलों की सच्चाई प्रकट करते हुए बता रहा है कि, मीठी बोली हमेशा सुख देती है, और दुश्मन को भी काबू कर सकती है जबकि परिहार करने बाले बोल हमेशा दुख देते हैं, और जीवन को दुखी करके इंसान को कठोर बना देते हैं, तो आईये आज का रूख इंसान और पक्षी की और करते हैं, कि इंसान और पंक्षी की जुबान में कितना अन्तर होता है जबकि इंसान अच्छी से अच्छी चीज खा कर भी मीठी वाणी नहीं बोलता जबकि तोता कड़बी चीज खा कर भी मीठी जुबान रखता है, कहने का भाव तोते को मिर्ची भी कड़वा नहीं कर सकती, और तोता प्रकृति से बहुत कुछ सीखता है, उडारों में रहकर भी झगड़ा नहीं करता यहाँ तक कि इंसान परिस्थितियों के मुताबिक बदलता रहता है, उसके मन में लोभ, मोह, क्रोध अंहकार हर पल चलता रहता है और उसे उलझाए रखता है जिससे मनुष्य के मन में क्रोध की ज्वाला भटकती रहती है, और मिठास, मीठा खाने के बावजूद भी कौसों दूर चली जाती है, यह सत्य है गुण हों या अवगुण समय के साथ साथ विकसित होते रहते हैं, ऐसा नहीं कि हर इंसान कड़वा बोलता है क्योंकि प्रत्येक इंसान में अलग अलग गुण होते हैं, और वोही गुण उसकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाते हैं, जैसे विनम्रता, दुसरों पर दया करना, ईमानदारी व सच्चाई एक अच्छे इंसान के गुण हैं, इसलिए अगर इंसान दया, सहानुभूति, करूणा, विचारशीलता धैर्य उदारता आदि को अपना ले तो इंसान से बढिया व्यवहार किसी का नहीं हो सकता, मगर जैसे संस्कार मिलते हैं वैसा ही इंसान हो जाता है, संगत की रंगत चढ़ ही जाती है, जिससे इंसान मीठा चाह कर भी मीठा नहीं बोल सकता जबकि तोते जैसे पक्षी, परिंदे अच्छे वातावरण में रहते हैं और बिना लोभ लालच एक दुसरे के साथ उडारी भरते हुए प्रकृति का लुत्फ लेते हैं, और हमेशा मीठी वाणी रखते हुए बिना किसी लोभ लालच अपनों के साथ चहचहाते हुए आनंद लेते हैं, उन्हें प्रकृति से आनंद लेना आता है और मनुष्य प्रकृति को उजाड़ने में लगा रहता है क्योंकि उसकी खुदगर्जी, लालसा, अंहकार उसे आराम नहीं करने देती और उसमें चिड़चिड़ापन ही समाया रहता है जिससे वो चाह कर भी मीठा नहीं बोल सकता, परिवार के साथ , मिलजुल कर नहीं बैठ सकता यह इंसान कि फितरत है, जबकि तोते जैसे परिंदे, पक्षी, यहाँ जी चाहे अपने मन के मुताबिक उडारी भरते हुए खाते पीते हुए आनंद को महसूस करते हैं उनके मन में कोई उलझन नहीं होती किसी के प्रति दुख, दुश्मनी लोभ मोह नहीं होता और अपनी मौज मस्ती में जीते जागते सोते हैं और मीठी भाषा का उपयोग करते हैं, अन्त में यही कहुँगा कि खान पान से स्वभाव या बातचीत पर इतना असर नहीं पड़ता जितना रहन, सहन, व प्रकृति से सीखने का असर होता है, इंसान, इंसान से क्रोध, लोभ, अंहकार, मोह, लालच के जाल मे फंसकर अपने आपको उलझा बैठा है और इन चीजों की इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती और उसे क्रोधित करती रहती है जिससे उसके स्वभाव में क्रोध की ज्वाला भड़कती रहती है और वो मीठे व्यवहार से वंचित रह जाता है, - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
भारतीय संस्कृति में मानववाद का अत्यधिक महत्व है। जो द्विभाषीय प्रयोग करता रहता है। सामने कुछ और पीछे कुछ। यह एक उसका स्वभाव प्रकृति है, जिसे हम झुठला नहीं सकते है। हमें ऐसा महसूस होगा कि हमारे ही तरफ से मीठा-मीठा बोल रहा है, जब उसका मतलब निकल गया तो कब धौका दे, दें। दूसरी ओर तोता जरुर पक्षी है, एक बार जब घर संसार की रीति-रिवाज व्यवस्था देख-सुन ले, रात-दिन उसका नाम बोलने लगता है। यह सच है तोता मिर्च खाकर भी मिठा बोलता है.....? - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
तोता मिर्च खाता है फिर भी मीठा बोलता है ! ये कहावतों को चरितार्थ करते है !ये इंसानी सोच फ़ितरत होती है जब उसे पाल कर रखते है !अहसास करते है ! उसकी आवाज़ खानपान रख रखाव हरियाली से परे इन खाद्य पदार्थ के प्रति आकर्षित होती होते पक्षीयों को प्रकृति ने बनाया ही ऐसा है !”तपात गुरु भई तपत गुरु बोल मिट्ठु तपत गुरु “सिखाया जाता है जिस घर में रहता है उसी नाम से राम राम कह पुकारता सुबह उठता है !इसके ढेरों उदाहरण है पर तोता मिर्ची और अमरूद आम खा पालतू पक्षी को जैसा सिखाया जाता है वैसा बोलता है मिर्ची खा कर स्वर तीखा नहीं होता !तीखी उसकी स्वर साधना होती है पर कोयल की तरह मीठी होती है दो पैर वाले पक्षी ज़्यादा ज्ञानी समझदार साझेदारी से होते है तोता जब पालतू होता उसका नाम करण होता है गले में उसके लाल धारी होती है उसे पालन के उद्देश्य से घर लाते है वह धीरे धीरे घर बाहर मिलने जुलने वाले सभी के प्रति आकर्षित हो सभी को अलग अलग नामो भाषा बोली से नाम पुकार अपना संदिग्ध बना लेता अलग अलगा नामों से पलट कर पुकारता है ! राम राम कहता है ! इंसान संसार की सबसे सुंदर रचना प्रकृति ने बुद्धिमान इसीलिए इंसान मीठा खाता है पर कड़ुआ बोलता है “अतिविनियम धूर्तलक्ष्णम “ कहते है समय के अनुसार हो या विपरीत अपने स्वभाव गुण दोष रूप समय काल स्वर आवाज बदल लेता है कहते है जैसा खाओगे वैसा बोलेंगे जो जितना मीठा खाता है उतना ही मीठा बोलता है ! यह कहावत चरितार्थ है !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
तोता मिर्च खाता है फिर भी मीठा बोलता है
यह पंक्ति एक प्रतीक है सहजता, सुसंस्कृति और प्रकृति की निर्दोषता का।तोता, जो तीखी मिर्च जैसी वस्तु खाता है, फिर भी उसकी वाणी मधुर होती है।यह दर्शाता है कि बाहरी परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी तीखी या कठिन क्यों न हों, कोई प्राणी अपनी स्वाभाविक मधुरता को बनाए रख सकता है।
इंसान मीठा खा कर भी कड़वा बोलता है
यह पंक्ति मानव व्यवहार पर व्यंग्य करती है।जहाँ तोता विपरीत परिस्थितियों में भी मधुर रहता है, वहीं इंसान मीठा खाकर भी कटु बोलता है — यानी सकारात्मकता के बीच भी नकारात्मकता पैदा करता है।यह मनुष्य की आंतरिक विषाक्तता, अहंकार, और संवेदनहीनता को दर्शाता है।
- डॉ. अशोक जाटव व्याख्याता
भोपाल - मध्यप्रदेश
कडवा बोल कुछ लोग बोल तो देते हैं।पर सुनने वाले को अच्छा नहीं लगता।कड़वा बोलना अक्सर लोगों को पसंद नहीं आता, लेकिन इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:- भावनात्मक स्थिति :
जब लोग गुस्से, दर्द या निराशा में होते हैं, तो वे कड़वे शब्द बोल सकते हैं।
संवाद की कमी :
कभी-कभी लोग अपनी बात कहने के लिए सही शब्द नहीं चुन पाते और कड़वे शब्दों का उपयोग करते हैं।
प्रभाव डालने के लिए :
कुछ लोग कड़वे शब्दों का उपयोग करके दूसरों पर प्रभाव डालने या अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं।
व्यक्तिगत आदत :
कुछ लोगों के लिए कड़वा बोलना एक आदत हो सकती है, जो उनके व्यक्तित्व का हिस्सा होती है।
यह उचित है? या नहीं? यह स्थिति पर निर्भर करता है। कड़वे शब्दों का उपयोग करने से पहले यह सोचना महत्वपूर्ण है कि इससे दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सहानुभूति और समझदारी से बात करने से अक्सर बेहतर परिणाम मिलते हैं।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कड़वा बोलने के पीछे कोई ना कोई उद्देश्य अवश्य होता है । जिस के कारण से कड़वा बोला जाता है । जब उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसे भयानक संयंत्र रचें जाते हैं तो ऐसा भाषा का इस्तेमाल होता है। कड़वा बोलने के और भी कारण हो सकते हैं।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संपादन व संचालन)
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