लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ स्मृति सम्मान - 2025
छोटी-छोटी खुशियों को जीना सीखा नहीं और बड़ी खुशियों की प्रतीक्षा करते रह गये… कुछ ऐसा ही जीवन आज हर मनुष्य का हो गया है। जीवन की आपाधापी में लोग हँसना तक भूल गये हैं। हर समय तनाव ओढ़े असमय बीमारियों का शिकार बनते जा रहे हैं। क्या लाभ ऐसी खोखली सम्पन्नता का जो हमारी खुशियों को ही ग्रहण लगाती जाये। खुशियाँ अपने अंदर हैं बस आवश्यकता है अपने अंतर्मन में झाँकने की, भागदौड़ से भरे इस जीवन में से छोटी-छोटी खुशियाँ ढूँढ कर उन्हें भरपूर जीने की, किसी को खुशियाँ देने की…देखिये जीवन कितना सुंदर दिखाई देगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जीवन का कटु सत्य यही है कि प्रसन्नता किसी पेड़ पर नहीं लगतीं और ना ही बाजार में बिकतीं हैं कि उन्हें खरीदा जा सके, बल्कि अपने जीवन के व्यस्त क्षणों अर्थात आपाधापी में ऐसे क्षण हमें स्वयं चुराने पड़ते हैं। उक्त पंक्तियां जीवन का अत्यंत गूढ़ सत्य प्रकट करती हैं। इसमें व्यक्ति को यह संदेश मिलता है कि सच्ची खुशी बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि भीतर की मानसिक अवस्था से उत्पन्न होती है। यह पंक्ति सामान्य शब्दों में असाधारण विचार प्रस्तुत करती है कि हमें जीवन के संघर्षों और व्यस्तताओं के बीच भी ऐसे क्षण तलाशने होते हैं, जो आत्मिक शांति और संतोष दें। यह विचार मनुष्य को आत्मावलोकन की प्रेरणा देता है। इसमें न तो भौतिकता की झलक है और न ही निराशा का अंधकार, बल्कि यह बताता है कि खुशी की खेती भीतर की भूमि पर होती है, बाहर के खेतों में नहीं। आपकी यह पंक्ति लोगों को सिखाती है कि सुख कोई तैयार वस्तु नहीं, बल्कि वह एक संवेदना है जिसे हर कोई अपने भीतर गढ़ सकता है। साहित्यिक दृष्टि से यह कथन सरल होते हुए भी दार्शनिक ऊंचाई रखता है। इसमें जीवन का वह यथार्थ झलकता है, जिसे समझ लेने के बाद व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों से ऊपर उठकर स्वयं में आनन्द खोजने लगता है। सत्य कहें तो मन ही मंदिर होता है जहां से जो आध्यात्मिक खुशी मिलती वही वास्तविक प्रसन्नता होती है
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
सच कहा है किसी ने ,कि न खुशियां पेड़ में लगती हैं न बाजार में बिकती है खुशियां चुरानी पड़ती हैं जीवन की आपाधापी से ।जी हां जीना इसी का नाम है । दोस्तों ज़िंदगी को जी भर के जीना चाहिए नकारत्मकता को मार फेंकना चाहिए जिंदगी का खुल कर स्वागत करना चाहिए । जी हाँ यह वाकई बहुत जरूरी है कि हमें खुद से भी प्यार करना चाहिए ।इस दिल को खुशियों के अवसर ढूंढ लेने की कुछ तो इजाजत देनी ही चाहिए क्योंकि जीना इसी का नाम है । यूँ तो जीवन एक ऐसा रंग मंच है जहां किरदार को खुद पता नहीं होता कि अगला दृश्य क्या होगा ।मगर बदलते दौर में दिल हंसने हंसाने के अवसर तलाश लेता है अपने गम भुलाने के लिए ,और ऐसा करना जरूरी भी है । खुशी देने वाले भले ही हमेशा अपने नहीं होते मगर जिनके जरिए खुशियां मिले दिल उन्हें खोना नहीं चाहता है। खुशियां जरूरी नहीं कि इंसानो से ही मिल जाए ,खुशियां तो प्रकृति से ,फूल पौधों से ,बेजुबान जानवरों से भी मिल जाती हैं । अब किसको कहां खुशियां मिलती हैं यह तो व्यक्ति व्यक्ति की भावनाओं पर निर्भर करता है। जिंदगी में जब खुशियों का मौका मिले ,उनका स्वाद मिठाई की तरह चखना चाहिए उनको तहे दिल से स्वीकार करना चाहिए, स्वागत करना चाहिए। बस किसी को दुःख देकर कभी खुशी नही मिल पाती इंसान स्वयं आत्मग्लानि से कुढ़ता रहता है ।दूसरों के दुःख बाँट कर जरूर खुशी मिल जाती है । जितने भी त्यौहार समाज ने बनाये उनका मुख्य उद्देश्य खुशियों के अवसर का आनन्द लेना ही होता है ।चाहे वह किसी भी प्रकार के पर्व हों । इससे तनाव मुक्ति होती है ,और इंसान इसी बहाने तम्माम व्यस्तताओं के बाबजूद खुशियों को जी लेता है ।अतः ख़ुश रहने के लिए स्वयम से प्यार करना आवश्यक है । हर पल मुस्कुराते रहो जिंदगी बड़ी खास है ।।यह जिंदगी क्या सुख या दुख बड़ी आस है ।।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जीवन में ऊहापोह इतनी है कि दुख,चिंता और क्लेश तो बहुत है, परंतु खुशियाँ जैसे गुम हो गईं हैं। हालात ऐसे हैं कि चुटकुले सुनकर सिर्फ मुस्कुरा के रह जाते हैं। दिल से हँसी निकलती ही नहीं है। असल में हमारे चारों ओर का माहौल का व्यवसायीकरण हो गया है। हम हर चीज में, हर काम में,हर सहयोग में, दाम चाहने की कोशिश करने लगे हैं। इस लालच में हम रिश्ते निभाना तो भूले ही हैं नैतिकता को भी भूल गए हैं। कभी-कभी तो यह लालच इतनी कठोर हो जाती है कि छल और लूट भी शामिल कर लेते हैं। कभी हमारे साथ छल हो जाता है, कभी हम छल कर देते हैं। कुलमिलाकर लूट मची हुई है और सबके चेहरे पर तिलमिलाहट छायी हुई सी दिखाई देती है। इन विषम मन: स्थिति और परिस्थितयों के बीच कोई विशेष अवसर आने पर, उसके बहाने अपनों के साथ कोई कार्यक्रम का आयोजन कर सब तनाव भूलकर हँसी-खुशी में कुछ समय बिता लेते हैं। सार यही कि जीवन की आपाधापी में खुशियों से भरे लम्हे चुराने पड़ते हैं। सामान्य रूप में खुशियां मिलना अब सहज और सरल नहीं रहा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
खुशियों स्वयं की अनुभूति , खुशियाँ ना पेड़ में लगती है !ना बाजार में बिकती है ! जिसका हर कोई लेनदार देनदार होता है ! और ना क़ीमत होती बेहिसाब खर्च करने की ताक़त है जो मन को स्वस्थ प्रसन्न दीर्घायु बनाए रखती है।जीवन में किसी ने स्नेह प्यार बांट खुशियों पाई लुटाई ।किसी ने ग़म बांट जीवन में ख़ुशियाँ लाई! सबका एक ही मतलब सहजता सरलता सुकून जीवन के आपा धापी में । ना कोई छोटा ना बड़ा हर लम्हे को खुशियों से गुज़ारने की आदत सोच बनानी पड़ती है !जब तक आप हैं आप है मन के इजहार उजागर कर खुशियों के साथ बदलाव ला स्वयं को आगे आना है पल दो पल का साथ खुशियाँ की कहानी हुनर गढ़ जाना है ! हौसलों को बुलंद रख उड़ान बाक़ी है जब जंग है तब तक हार जीत है ! ऐसे में बिना किसी नोक झोक आपाधापी के मुंह में शहद की मिठास वाणी की मधूरता माथे पर ठंडकता का एहसास खुशियाँ के लम्हे ही चुराने पड़ते है ! जीवन में खुशियाँ जल तरंग की तरह होती है जिसके बिना जीवन निरर्थक है !
- अनिता शरद झा
रायपुर -छत्तीसगढ़
ये सच है कि खुशियाँ न तो बाजार में बिकती है ना पड़े पर लगती है. जीवन के आपाधापी में ऐसे लम्हे चुराने पड़ते हैं. खुशियों का आना या मिलना मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ी बात होती है. खुशियों का माहौल स्वयं को बनाना पड़ता है.आप खुश रहना चाहते हैं पर ये समाज आपको खुश रहने देगा तब न. दूसरे की खुशी बहुत लोगों से देखी नहीं जाती है. उसमें बाधा देने के लिए लोग तरह-तरह का व्यवधान पैदा करते रहते हैं. इसलिए ये सत्य लगता है कि जीवन के आपाधापी में aise लम्हें चुराने पड़ते हैं.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
बिकती यदि खुशी सरे बाजार , तो जहां का हर इंसान खुश होता !! जिंदगी की भागदौड़ में, संघर्ष है , जीत है , हार है , सफलता है , विफलता है , व निरंतर समस्याएं हैं ! एक उलझन को सुलझाओ , तो दूसरी तैयार हो जाती है ! आम व्यक्ति को समय ही नहीं मिलता , खुश होने के लिए , खुशी मानने के लिए ! व्यक्ति सोचता है कि इस समस्या से निपट लूं , फिर सोचूंगा अपने बारे में , या अपनी खुशी के बारे में! समस्याओं का अंत नहीं होता अंतिम समय तक , व व्यक्ति इसी ऊहापोह मैं जिंदगी गुजार देता है !! ऐसे लम्हों को तो खोजना पड़ता है !! छोटी छोटी बातों में खुशी ढूंढनी पड़ती है , उन लम्हों को उसी समय , उसी खान जीना पड़ता है !!
आओ जिंदगी के कुछ क्षण ,
हंस के गुजार लें !!
परेशानियों और चिंताओं से ,
इन्हें उधार लें !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सच कहा खुशियां ना पेड़ पर लगती है ना बाजार में मिलती हैं । अगर पेड़ पर लगती या बाजार में मिलती हैं तो जो अमीर लोग हैं वह सबसे खुश होते। जो अमीर देश हैं वह सबसे खुशहाल देश होते। वास्तव में खुशी के पल हमें चुराने पड़ते हैं और इस मामले में हम भारतीयों का कोई मुकाबला नहीं है। बस की भीड़ में खड़े होने की जगह मिल जाए तो हम खुश हो जाते हैं । किसी की शादी का बैंड बजाता हुआ देखकर हम खुश हो जाते हैं और तो और किसी की भी खुशी में लड्डू और मिठाई मांग कर खाने में हम संकोच नहीं करते बहुत ही सहजता से कह देते हैं अरे भाई इस खुशी में तो मिठाई होनी ही चाहिए। वास्तव में जीवन की आपाधापी में इतना व्यस्त हो गए हैं हम कि खुशी दूर होती जा रही है। आपस में बातचीत करने और एक दूसरे का हाल जानना पूछने का भी समय नहीं है अब। ऐसे समय में खुशियों के लम्हें मिलने को चुराना कहना भी बुरा नहीं लगता, खुशी देता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
विषय बहुत ही दयामयी और कारुणीक है। यह हकीकत है और हम सभी जानते हैं कि खुशियां ना तो पेड़ पर लगती है ना तो बाजार में बिकती हैं... खुशी तो हमारे पास ही होती है जो हमें दिखाई नहीं देती किंतु उसे हम महसूस कर सकते हैं। आज के भाग दौड़ वाली जिंदगी में किसे समय है किंतु उसमें से भी हम खुशी चुरा ही लेते हैं... रिश्ते, परिवार से हमें ढ़ेरों खुशियां मिलती है। आदमी कितना भी थका हारा घर पर आता है,अपने बच्चे की किलकारी, उसकी तोतली बोली सुन वह सब भूल जाता है। उसकी हर थकान दूर हो जाती है। अपने बच्चे के साथ उसे जो खुशी मिलती है वह उसे बाहर ढूंढने पर भी नहीं मिलती। कहते हैं ना..... जीवन की इस आपाधापी में खुशी दरवाजे पर दस्तक देती है तो हमें इंतजार नहीं करना चाहिए तुरंत लपक लेना चाहिए। खुशी हर क्षण हमारे साथ होती है बस उसे लुटने का बहाना आना चाहिए। स्वान्त: सुखाय के लिए हम कुछ भी करते हैं जैसे लेखन करना! इसका मतलब लेखक सारे दिन की भागदौड़ में भी अपनी खुशी के लिए कुछ समय निकाल ही लेता है जो उसकी अपनी होती है उसे कहीं से लेनी नहीं पड़ती। इंसान गरीब हो या अमीर अपने हिसाब से जीवन में खुशियां पा ही लेता है बस तरीके अलग होते हैं ... कोई कम में भी खुश रहता है और कोई अधिक में भी नहीं... !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
कभी खुशी कभी गम की परिधि में बितते पल, दोनों जिन्दगी के लिए है, खुशियां ना पड़े पर लगती हैं ना बाज़ार में बिकती हैं, जीवन के आपाधापी में ऐसे लम्हे चुराने पढ़ते हैं, तभी जीवन का मौल समझ में आता है। यह सच है, खुशियां लाने के वह माहौल तैयार करना पड़ता है, तभी जाकर जीवन का महत्व समझ आता है। किसी के चेहरे मुस्कान नाम की कोई चीज नहीं रहती है, किसी के पास तो किसी को देखते ही अपार आनंद की अनुभूति होती है, चेहरे पर मुस्कान की झलक, आगे वाले को पल भर में मोहित कर देता है, खुशियां लाने बताना नहीं पड़ता है, यह एक प्राकृतिक सौंदर्य होता है। नव जात शिशुओं को देख लीजिए, उनके चेहरे पर हंसी- मुस्कान देखने को मिलती है, हम इसे कहते है, जो वास्तविक कहते है याने छटी हंसा रही है। हम इन खुशियां हेतु पिकनिक आदि की सैर सपाते के लिए आते जाते है। जीवन की भागा दौड़ में इस तरह व्यतीत करना ही पड़ता है। इससे मनोवैज्ञानिक प्रक्रियागत अपनापन होता है, मन में हल्कापन....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
ख़ुशियाँ न पेड़ पर लगती हैं, न बाज़ार में बिकती हैं ।और ना ही हमारे रिश्तेदार अथवा प्रियजन हमें उपहार अथवा दान में दे सकते हैं । ख़ुश होना अथवा खुश रहना हमारे अंदर की बात है । ख़ुश रहना हमारी आदत, हमारी फ़ितरत अथवा प्रकृति का हिस्सा है । कुछ लोग आदतन तुनक मिज़ाज होते हैं । बात-बात पर रूठना, दूसरों की गलती निकलते रहना, उन्हें नीचा दिखाना व हर समय बेकार की प्रतिस्पर्धा में रहना उनकी आदत में शुमार होता है जबकि कुछ लोगों को हँसना, बोलना मिलनसार होना अच्छा लगता है । यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार से जीना चाहते हैं । खुशियों के लम्हों को ज़िन्दगी की कठिनाइयों के बीच में से बीनना होता है न कि परिस्थितियों के विवश होकर खुशियों के लम्हों का इंतज़ार करना होता है।जो कि हो सकता है कभी भी न आयें। और हम दुख और शिकायतों का गट्ठर ताउम्र सिर पर लिए हुए ही मर जायें।
- रेनू चौहान
नई दिल्ली
आईये आज खुशी के पल ढूंढते हैं क्योंकि खुशी जिंदगी के उन पलों का नाम है जिन्हें हम खोना नहीं चाहते लेकिन खो देते हैं अक्सर यह पल मेहमान की तरह आते हैं जब हम उन का स्वागत नहीं करते तो यही पल अजनवी की तरह गुजर जाते हैं,ऐसा क्यों होता है क्या हम खुशियों के पल खरीद नहीं सकते, या खुशी के पलों को कहीं से ला नहीं सकते तो आईये आज इसी पर चर्चा करते हैं कि खुशियां न पेड़ पर लगती हैं न बाजार में बिकती हैं लेकिन इनके लिए कुछ लम्हें चुराने पड़ते हैं,मेरे ख्याल में जीवन की आपाधापी में खुशियों के पल खोजने के लिए समय की गति को समझते हुए खुद को समझने और परखने की जरूरत होती है क्योंकि यह पल तब मिलते हैं जब हम अपनी अंतरआत्मा की आबाज सुनते हैं तथा जीवन की भाग दौड़ से संतुष्टि और संतोष पाते हैं देखा जाए संतुष्टि और संतोष की भावना से ही सकारात्मक और आशावादी विचार बनते हैं,इसके साथ साथ मन की शांति,प्रकृति की सुंदरता,कला संस्कृति ,आत्म विकास तथा दान सेवा के भावों से हमें खुशियां व सेहत की तन्दरूस्ती मिलती है,हमें इन स्रोतों को पहचानने और और आनंद लेने का प्रयास करना चाहिए, यहां तक बात है बाजारों या पेड़ों से खुशियां मिलने की तो अगर ऐसा होता तो हर साहूकार खुश होता न पेड़ हमारे होते न बाजार सब के सब अमीरों के पास ही होते लेकिन खुशियां तो मन के अमीरों के पास मिलती हैं,मेरा मानना है कि खुशी एक आंतरिक अनुभव है जो हमारे विचारों,भावनाओं और संबंधों को सकारात्मक बनाने से हासिल हो सकता है,पेड़ों पर तो फल फूल लगते हैं लेकिन हां हम प्रकृति का आनंद लेते हुए खुशियों के पल ले सकते हैं,खुशियां तो एक अनमोल उपहार है इन्हें खरीदा नहीं जा सकता यह हमें जीवन के साथ मुफ्त मे मिलती हैं जो हमारे अंदर की भावना में समाई होती हैं,अब हम अपने मन की भावना को कैसे रखते हैं हम पर निर्भर है,दुसरों के प्रति हमारे क्या विचार हैं और अपमे कर्मों को हम कैसे निभाते हैं अपनी इच्छाओं को कैसेे रखते हैं,यही तो खुशीयों के स्रोत हैं,देखा जाए हम सभी खुश रहने के उदेश्य से जीते हैं लेकिन खुश रह नहीं पाते क्योंकि हमारे जीवन की खुशी हमारे विचार की गुणवत्ता पर निर्भर करती है खुशी मुख्य रूप से हमारे विचारों,दृष्टिकोण और मन की शांति का प्रतीक है यही नहीं खुशी का ९०प्रतिशत भाग हमारी आंतरिक सोच और भावनाओं पर निर्भर करता है,अन्त में यही कहुंगा कि खुशियां हमें अपने भीतर से मिलती हैं जब हम बर्तमान में जीते हैं,मजबूत रिश्ते बनाते हैं,सेहतमन्द रहते हैं और दुसरों की खुशियों में शामिल होते हैं,यह केवल भौतिक में नहीं मिल सकती बल्कि हमें अपनी जीवनशैली में अच्छी आदतें अपनाने से मिल सकती हैं इनके लिए साकारत्मक सोच,नियमित व्यायाम, प्रयाप्त नींद तथा छोटे छोटे पलों और अनुभवों के आनंद में लिप्त रहना पड़ता हैं, खुशियां वो चीज हैं जो दूनिया के किसी भी बाजार में नहीं मिलती इसलिए हमें जिंदगी के हर पल को आनंद व खुशी से गुजारना चाहिए तभी तो कहा है,उम्र दराज-ए-मांग के लाई थी चार दिन,दो आरजु में कट गए दो इंतजार में।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
आज का युग सुविधा और उपभोक्तावाद का युग है।हर वस्तु का मूल्य तय है — पर भावनाओं की कोई कीमत नहीं। लोग मानो भूल गए हैं कि खुशी खरीदी नहीं जाती, महसूस की जाती है।खुशियाँ किसी शॉपिंग मॉल में नहीं,बल्कि माँ की मुस्कान, मित्र के ठहाके,या बरसात की पहली बूँद में छिपी होती हैं। ये पल हमें बाज़ार से नहीं मिलते, बल्कि रिश्तों, संवेदनाओं और आत्म-संतोष से उपजते हैं। “जीवन की आपाधापी में ऐसे लम्हे चुराने पड़ते हैं” यह आधी पंक्ति आधुनिक जीवन की सच्चाई कह देती है। हम इतनी तेज़ रफ़्तार में दौड़ रहे हैं कि खुशियों के पल “चुराने” पड़ते हैं, “कमाने” नहीं। दरअसल, यह चुराना अपराध नहीं — आत्मरक्षा है! हम अपने भीतर के जीवंत मनुष्य को सफलता की दौड़ में खोने नहीं देना चाहते। इसलिए जब कोई व्यक्ति कहता है —“आज बस चाय की प्याली में धूप घोलकर बैठा हूँ,” तो वह जीवन की थकान से एक क्षण का साक्षात्कार कर रहा होता है। यह पंक्ति एक सशक्त संदेश देती है — “खुशी का कोई बाज़ार नहीं होता,उसे पाने के लिए बस दिल खुला और समय थोड़ा चाहिए।” खुशियाँ हमेशा “खोजने” वालों को नहीं,अपितु महसूस करने वालों को मिलती हैं।
- डाॅ.छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
खुशियां बाजार में नहीं मिलती है।आप अपने कार्यों से,व्यवहारों से किसी के दिल को जीत सकते हैं।हम जैसा कर्म करते हैं,ईश्वर उसके फल वैसे ही देते हैं। हमें हमेशा अच्छे कार्य करना चाहिए।इंसान द्वारा किया अच्छा कार्य लाभकारी होता है।जिंदगी के भागम भाग की स्थिति में भी हमें खुशियों के लम्हे चुराने पड़ते हैं।जीवन में बहुत सारे कार्य हैं,लोगों में व्यस्तता है, लेकिन इसी आपाधापी में कुछ क्षण निकालकर अपनों के बीच शेयर करना चाहिए।जिससे संतुष्टि मिलती है।खुशियां प्राप्त होती है।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
खुशियाँ बाजार में नहीं बिकती--कितनी सही सटीक और मर्मस्पर्शी बात। खुशियाँ तो ढूंढनी पड़ती हैं हर जगह से हर क्षेत्र में हर क्षण में। यादों की राख के ढेर में छिपी मिलती हैं खुशियाँ। आज के दौड़ते क्षणों में मिल जाती हैं खुशियाँ बशर्ते कि आपकी दृष्टि सकारात्मक हो। दृष्टि मे नकारात्मकता आपको खुश नहीं होने देतीं। संतह्दयी सिर्फ एक झोली लटकाये - - कल की चिंता से निःस्पृह गाते बजाते खुश रह लेते हैं तो हम जैसे गृहस्थ भरे भंडार और जमीन जायदाद के जोड-घटाव के साथ दुख सुख के पडा़व गिनते रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि अपनी दृष्टि और सोच को विस्तार दें। खुशियों के पल छिन चुरालें रोज की व्यस्तता और व्यवस्था में भी। मित्रों रिश्तेदारों से बतियायें - - अपनी रुचि के कार्य करें - - आप पायेंगे कि सुभद्राकुमारी चौहान की पंक्तियां आपको कितना आनंद देती हैं - - - "चिंतारहित खेलना खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता बचपन का अतुलित आनंद" बच्चों की तरह निर्मल मना बन जायें कभी-कभी और आनंद के लम्हे चुरा लें - - खुशियाँ आपके दमकते चेहरे पर होंगी और चेतना आपके हृदय में!
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
जीवन की आपाधापी में खुशियां मिलते-मिलते खो जाती हैं, क्योंकि खुशियों को समेटने के लिए ही हमारे पास समय नहीं होता है! खुशी तो जर्रे-जर्रे में समाहित है, देखने के लिए नजर चाहिए और नजरिया चाहिए और चाहिएं कुछ लम्हे, भले ही वो लम्हे चुराने ही क्यों न पड़ें! खुशी जैसी कोई खुराक नहीं, खुशी ना पेड़ पर लगती है न बाजार में बिकती है, बस जीवन की आपाधापी में कुछ लम्हे चुरा कर जुटानी पड़ती है.
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
" मेरी दृष्टि में " खुशियां कब और कहां मिलती हैं । किसी को कुछ नहीं मालूम होता है । फिर भी खुशियां सभी को चाहिए। जिस के लिए बड़ी से बड़ी क़ीमत देने को तैयार रहते हैं। फिर भी खुशियां नसीब वालों को मिलती हैं। बाकी ये सिर्फ कर्मों का खेल है।
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