राजा लक्ष्मण सिंह स्मृति सम्मान - 2025

      नाम की पहचान ही सब कुछ है। कुछ पहचान राष्ट्रीय स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर होती है । कुछ पहचान युगों युग बन जाती है। यही पहचान ही अन्तिम पहचान बन जाती है। जैसे भगवान शिव, श्री कृष्ण , कबीर, मीरा , सूरदास जैसे अनेक पहचान देखने को मिलती हैं। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है । अब आयें विचारों में से कुछ विचार पेश करते हैं :-
        कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। छोड़ो बेकार की बातों को, यूं बीत ना जाए रैना। कुछ तो लोग कहेंगे।। जिस किसी कवि ने यह पंक्तियां लिखी होंगी।इन पंक्तियों में जीवन जीने का एक बहुत बड़ा संदेश दिया है। या यूं कहें कि जीवन का पूरा सार इन्हीं पंक्तियों में निहित है। आज की परिचर्चा का विषय "मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहां तक है, तू बदनाम कर तेरी औकात जहां तक है"। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में इन दोनों विषयों का भाव दुनियादारी के सभी रसों से ओत-प्रोत है। हर व्यक्ति जीवन के पथ पर संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता रहता है। आगे बढ़ते हुए इस पथ पर कई प्रकार के उतार- चढ़ाव बाधाएं किसी न किसी रूप में पेश आती रहती है। इन बाधाओं में अपने पराए व्यक्ति विशेष की अहम भूमिका रहती है। या भूमिका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखने को मिलती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सकारात्मक सकारात्मक नगण्य ही देखने को मिलती है परंतु नकारात्मक हर कहीं देखने को मिलती है। इसे निभाने वाले कोई और नहीं अधिकांश अपने ही होते हैं। यह अपने भीतर और बाह्य रूप में आपकी सारी परिस्थितियों से परिचित होते हैं। जब आप उनके अनुरूप नहीं चलते या कहीं उनके इशारों पर नहीं नाचते तो यही लोग आपकी जड़ें काटने में देरी नहीं लगाते। यह लोग किस स्तर तक नीचे उतर आएं। इस बात का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। ऐसे लोगों से निपटने के लिए आपको भी आंतरिक और बाह्य रूप से कठोर होना आवश्यक होता है। तभी आप अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपका पथ भ्रष्ट होकर नीचे गिरना तय होता है। ऐसी हरकतें आपके अपने वह करते हैं। जिनके बारे कभी आपने सोचा भी ना हो। यह दुनियां अवसरवादी, आत्मकेंद्रित ही नहीं अपितु स्वार्थी भी है। फिर आपको कहना पड़ता है कि "मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहां तक है। तू बदनाम कर तेरी औकात जहां तक है।।

 - डॉ.रवीन्द्र कुमार ठाकुर

बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश

         बहुत गहरा अर्थ लिए यह सुंदर कवितानुमा पंक्तिया हैं। कहते हैं ना कि बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ। इससे भी गहरा अर्थ है कि आपको चुनौती दी जाती है कि जहाँ तक आपकी औक़ात है आप हमें बदनाम कर सकते हैं। परंतु हमारे नाम की यश-कीर्ति जिस तरह से और जहाँ तक फैली हुई है आपकी बदनाम करने की फ़ितरत भी उसे धूमिल नहीं कर सकती । यह है चरित्र की दृढ़ता व आत्मविश्वास की पहचान। इस प्रकार का आत्मविश्वास तभी हो सकता है जब हमने  सही मायनों में परोपकार वह अच्छे कर्मों द्वारा दृढ़ चरित्र स्थापित किया हुआ है, जिसकी सुगन्ध दूर-दूर तक  फैली हुई है जिसे कोई मानवीय शक्ति बदल नहीं सकती।

- रेनू चौहान 

नई दिल्ली

        कहते हैं " जो डर गया, वो मर गया। " ऐसे ही यह भी कहा जाता है " जिंदगी जिंदादिली का नाम है। मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं।" आशय यह कि जो दिल में सच्चाई, हौसला और हिम्मत रखते हैं। वे कभी भी ओछी हरकतों की परवाह नहीं करते। परवाह उनकी भी नहीं करते जो उकसाने, डराने, धमकाने या नीचा दिखाने की धमकी देने का काम करते हैं। सच पूछा जाए तो सच्चाई और ईमानदारी ऐसे मूल्यवान रत्न हैं , ये रत्न जिनके भी पास होते हैं, वे स्वत: ही मूल्यवान हो जाते हैं। इनमें निर्भीकता और आत्मबल इतना समा जाता है कि फिर कोई लाख कोशिश कर ले, इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता। ऐसे साहसी, ईमानदार और सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले ही, यह कह सकने का दुस्साहस कर सकते हैं कि " मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहां तक है। तू बदनाम कर तेरी औकात जहां तक है।। "

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

          मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहाँ तक है मानव की पहचान उसके व्यक्तित्व कृत्य से उसकी पहचान होती हैं ! पर व्यक्ति की कर्म भावना हुनर राजनीति सामाजिक धार्मिक व्यवसायिक किसी भी क्षेत्र आवश्यकता से धन अर्जित कर लेता है उसका सही ढंग सदुपयोग नहीं करता  व्यक्ति  अभिमान से चूर हो जाता है ! तब कहता है! तू बदनाम कर तेरी औक़ात जहाँ तक है मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहाँ तक है ! और जो सच्चा बुद्धिजीवी परिपक्व उदार सहन शील होता है व्यक्ति होता है उसे नाम की आवश्यकता नहीं होती वो कहता है नाम में क्या रखा है रचनाकार की पहचान रचना से होती है फिर तू बदनाम कर तेरी औक़ात जहाँ तक है 

- अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

     विशिष्ठ महत्व है नामकरण का, जहां विभिन्न प्रकार के नाम को देख लीजिए, परन्तु मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहां तक है, तू बदनाम कर तेरी औकात जहां तक है, यह सच है  आमतौर पर नाम के पीछे भागते है, अपने क्रियाकलापों को सर्वोपरि मानते है, एक नाम के पीछे रहस्य पूछा होता है, उसे ही आधार बिन्दू मानते हुए कर्म किए जाते है, जिसके परिप्रेक्ष्य में कई नाम पीछे रह जाते है, वे सामने आना नहीं चाहते बस चरण वन्दना में मस्त रह जाते है, जब अपने नामों की पहचान बनाने की सोचते है, तब तक समय निकल जाता है। फिर उसके नाम को बदनाम करने की सोचते है, फिर उनकी औकात का पता चलता है......?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

      बालाघाट - मध्यप्रदेश

     जो भी अच्छे कार्य करता है , सज्जन होता है , वह अपने कार्य पूरी निष्ठा से , लगन से , करता है !!  जिन्होने लोगों को बदनाम करने का ठेका लिया है , वे निरंतर बुरे कर्म करते रहते हैं , व अपनी पहचान बनानेवाले , अपने कार्य को , पूरी निष्ठा से पूरा करते हैं  !! बदनाम करने वाले , बदनाम करते रहेंगे , व अपने निज कर्मों से अपनी राह प्रशस्त करनेवाले , अपनी मेहनत से अपना गंतव्य प्राप्त कर लेते हैं !! 

 - नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

ये पंक्तियां उस सच्चे मन का बयान है जिसको जमाना नाहक ही बदनाम करने में जी जान से जुटा है। रचनाकार ने ऐसे ही मन को इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है।इन पंक्तियों के संदर्भ में आज हम न भूत की बात करेंगे,न भविष्य की।हम तो वर्तमान की बात करेंगे औरमात्र एक उदहारण देंगे,भारत के यशस्वी और ओजस्वी माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का। कितने ही विषयों पर अनर्गल प्रचार कर उनको बदनाम करने की साजिशें होती रहती है, कभी जाति पर, कभी धर्म पर,कभी सम्प्रदाय पर,कभी नोटबंदी पर,कभी वोट ....पर। निरंतर खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करने वाले तब मुंह की खाते है,जब उनके आका मोदी जी की प्रशंसा करते हैं और गर्मजोशी से स्वागत करते हैं।तब उपरोल्लेखित पंक्तियों की सार्थकता स्वत: प्रमाणित हो जाती है। यानि पब्लिक सब जानती है झूठे बदनाम करने की चाल कभी सफल नहीं होती।नेक और सही कार्यों की महक दूर तक पहचान दिलाती हैं।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

धामपुर - उत्तर प्रदेश 

यह पंक्ति आत्मसम्मान का सशक्त उद्घोष है। यह बताती है कि सच्चा व्यक्ति अपनी पहचान के लिए दूसरों की राय या प्रसिद्धि पर निर्भर नहीं रहता । इन पंक्तियों में आत्मसम्मान, आत्मबल और अवमानना के प्रति दृढ़ प्रतिकार का भाव निहित है। जिसका तात्पर्य है कि "मेरे नाम की पहचान जानने की तुझे आवश्यकता नहीं। तेरी नीयत यदि मुझे बदनाम करने की है, तो कर ले । तेरी औकात जितनी है, उतना ही कर पाएगा।" यह वाक्य न केवल स्वाभिमान का प्रतीक है, बल्कि यह साहसिक चुनौती भी देता है। कवि को अपनी प्रतिष्ठा पर भरोसा है, वह जानता है कि उसकी साख किसी और की जुबान से नहीं, उसके कर्मों से तय होती है। यह पंक्ति अहंकार और सम्मान के बीच की रेखा पर चलती है। यह व्यक्ति के उस आत्मबल की घोषणा है जहाँ वह कहता है , “मेरे अस्तित्व की पहचान किसी की स्वीकृति से नहीं घटती-बढ़ती।” कभी-कभी समाज में या प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में लोग दूसरों को गिराकर स्वयं ऊपर उठने की चेष्टा करते हैं। ऐसे में यह पंक्ति आत्मगौरव की ढाल बनकर खड़ी होती है।यह संदेश देती है कि —जो व्यक्ति सच्चा होता है, उसकी पहचान दूसरों की निंदा से मिट नहीं सकती। और जो निंदक होते हैं,उनकी नकारात्मकता उनकी अपनी “औकात” तक सीमित होती है। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि — दूसरों की आलोचना से घबराने की नहीं, अपने कर्म पर विश्वास रखने की आवश्यकता है।इसमें कटाक्ष, व्यंग्य और स्वाभिमान का सुंदर संगम है। यह पंक्ति आज के समय में विशेष प्रासंगिक है — जहाँ सोशल मीडिया या सार्वजनिक जीवन में लोग दूसरों को गिराने में लगे रहते हैं, वहाँ यह पंक्ति आत्मबल की दीवार खड़ी करती है। यह कहती है —  “मेरे चरित्र की पहचान अफवाहों से नहीं, मेरे आचरण से होगी।” “औकात” शब्द यहाँ नकारात्मक होते हुए भी न्यायपूर्ण आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया है।यह पंक्ति आत्मसम्मान का घोषणापत्र है। यह उन सबको समर्पित कही जा सकती है जो अपनी सच्चाई के बल पर खड़े हैं और जिन्हें समाज या व्यक्ति विशेष द्वारा झूठे आरोपों से गिराने का प्रयास किया जाता है। "तेरे फेंके पत्थर भी मेरे शिलालेख बने, मैं वही नाम हूँ जो बदनाम होकर भी अमर रहे।"

- डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

नाम हो गया है अब मेरा इतना, तू कर ले चाहे बदनाम जितना.किसी का किसी से झगड़ा हो गया तो वह बोला तुझे हर जगह मैं बदनाम कर दूँगा. तुम कहीं के लायक नहीं रह जाओगे. तो उसने कहा -"तेरी जितनी औकात है सब लगा ले तुम मुझे बदनाम नहीं कर पाओगे.जहां-जहाँ  मेरे नाम की पहचान है तू वहां तक पहुंच ही नही सकता. तू मुझे बदनाम करते-करते थक जाएगा लेकिन मुझे बदनाम नहीं कर पाएगा." कहने का तात्पर्य यह है कि जो नामी व्यक्ति हैं उन्हें बदनाम कर के भी नहीं किया जा सकता है. उनका नाम इतना फैला होता है कि  कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है कि वह आदमी बदनाम करने लायक है भी कि नहीं. जिस तरह कहा जाता है हाथी चले बाजार कुत्ता भूके । हजार. उससे हाथी को कोई फर्क़ नहीं पड़ता. उसी तरह नामी आदमी को बदनाम नहीं किया जा सकता. उससे खुद अपनी ही बदनामी होती है. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

   कलकत्ता - पं. बंगाल 

        इस बात को कहने की नौबत तब आती है जब दो लोग, दो पार्टी अथवा दो विरोधी आपस में एक दूसरे की बढ़ती यानी मान-सम्मान, उन्नति, वैभव, नहीं देख पाते तब एक पक्ष द्वारा कहने में आता है कि 'मैं तुझे देख लूंगा'। एक प्रकार से धमकी, जिसमें कुछ भी हो सकता है। वह पूरी तरह से बदनाम हो सकता है। उसकी इज्जत, उसकी जान, मान सम्मान,वैभव किसी पर भी वार हो सकता है। वहीं दूसरा नि:संकोच कहता है 'उखाड़ ले तुझे जो उखाड़ना है'। यानी उसे स्वयं पर पूर्ण विश्वास होता है। उसने अपनी पहचान, अपना मान-सम्मान अपने अच्छे व्यवहार, संस्कार एवं अपने कार्य से बनाया है। उसका कर्म, सद्भाव, मृदुलता, ईमानदारी एवं लोगों का उसपर विश्वास इतना पुख्ता है कि सामने वाला कितनी भी 'एड़ी चोटी का जोर लगा लें'  बदनाम करने की ,सफल नहीं होगा। जीवन में कुशल व्यवहार, ईमानदारी, कर्म और अपने सद्भाव से अपनी पहचान बनाता है फिर चाहे कोई लाख कोशिश करें... उसकी पहचान में उसका विश्वास साथ होता है।एक कहावत है... "हवा से डाली कितनी भी हिलती रहे, जड़ मजबूत होना चाहिए"।

- चंद्रिका व्यास 

मुंबई - महाराष्ट्र 

        यह पंक्ति आत्मविश्वास, स्वाभिमान और निर्भीकता की प्रतीक है। इसमें यह स्पष्ट संदेश छिपा है कि व्यक्ति को अपनी पहचान के लिए दूसरों से प्रमाणपत्र नहीं चाहिए, बल्कि उसके कर्म, विचार और सच्चाई स्वयं उसकी पहचान बन जाते हैं। जो व्यक्ति सच्चाई के मार्ग पर चलता है, उसके विरोधी चाहे जितना भी उसे बदनाम करने का प्रयास करें, वे केवल अपनी औकात और सोच की सीमा तक ही ऐसा कर सकते हैं।यह पंक्ति यह भी सिखाती है कि जीवन में दूसरों के झूठे आरोप या आलोचनाएं हमें विचलित नहीं कर सकते। जो व्यक्ति न्याय, सच्चाई और सत्यनिष्ठा से प्रेरित होता है, उसके विरुद्ध बोला गया हर झूठ अंततः उसी पर भारी पड़ता है जिसने बोला होता है। बिल्कुल उसी प्रकार जैसे मुझे देशद्रोही और पागल कहने वालों की दुर्दशा आरम्भ से लेकर अब तक हो रही है और मेरे विरोधी न्यायालय में मेरी विद्वता और राष्ट्रभक्ति के आगे ठहर नहीं पा रहे हैं। अतः भले ही विरोधी हमें कुछ दशकों तक परेशान कर लें, लेकिन ऐसे चुनौतीपूर्ण शब्द ही अन्ततः हमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने कार्यों से ही अपनी पहचान स्थापित करें, और हर प्रकार की नकारात्मकता के बावजूद अपने उद्देश्यों पर दृढ़ रहें। यह विचार समाज में सकारात्मकता, साहस, सच्चाई और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रोत्साहित करता है। 

 - डॉ. इंदु भूषण बाली 

 ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर

    दुनिया में दो प्रकार के लोग होते हैं एक तो किसी की उन्नति देखकर प्रसन्न होते हैं, दूसरे ईर्ष्या करते हैं। देखिए! जो लोग दिन रात परिश्रम करते हैं, संघर्षों की भट्टी में तपते हैं, उनके परिश्रम का फल तो उनको मिलता ही है। कई- कई वर्षों बाद जब वह सफल होते हैं तो कुदरत का नियम है उनका नाम भी फैलता है। उनकी एक बहुत दूर-दूर तक पहचान भी बनती है। उनकी सफलता का श्रेय उन्हें मिलता ही मिलता है। इसके दूसरी और ऐसे लोग भी होते हैं जो सोचते हैं कि सफलता शॉर्टकट तरीके से मिल जाएगी लेकिन आसपास का सारा वातावरण उस बात से अनभिज्ञ नहीं होता, वे सब कुछ जानते होते हैं। नकली क्या है असली क्या है। असफल लोग अक्सर ख्याति प्राप्त महानुभावों की कमियां निकालने पर तुले रहते हैं और उनको जब भी अवसर मिलता है वह उनके नाम को बदनाम करने में कोई कमी नहीं छोड़ते क्योंकि उनकी औकात ही इतनी होती है। लोहा भले ही पारस की कितनी भी बदनामी कर ले, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता। पारस पारस रहेगा और लोहा लोहा रहेगा।

- डॉ. संतोष गर्ग ' तोष '

पंचकूला - हरियाणा 

      मैंने परिश्रम और संघर्ष से अपनी पहचान बनाया है।मेरे नाम का डंका बजता है।मुझे लोग आदर करते हैं, लेकिन तुम मुझे बदनाम करना चाहते हो तो चाहे कितनी शक्ति या औकात लगा ले असंभव है। हमें अच्छे कर्म कर नेक इंसान बनना है।तुम लाख प्रयत्न कर लो, तुम मुझे बदनाम नहीं कर पाओगे।जहां परिश्रम है,वहां सफलता है।जहां लोग बदनाम करना चाहते,सारी दौलत न्योछावर कर देते, लेकिन दूसरे को बदनाम नहीं कर सकते।

   - दुर्गेश मोहन

     पटना - बिहार

      कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगों का‌ काम है कहना, देखा जाए व्यक्ति की पहचान उसके चरित्र गुणों और कर्मों से होती है न केवल नाम से  व्यक्ति के काम ही उसकी असली पहचान बनाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो उनके कर्मों  ,कामों से पहचान होते हुए जलन महसूस करते हैं  खुद कुछ नहीं करते और  किसी‌ को आगे बढ़ते देख के जलते हैं और अपने आप को महान बनाते हुए दुसरे को जलील करने की कोशिश करते हैं जिससे अच्छे व्यक्ति को कोई फर्क नहीं पड़ता और वो अपने कार्य को सच्ची‌ लगन से आगे बढाता चलता जाता है तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि मत पूछ मेरे नाम की पहचान कहां तक है  तू बदनाम कर तेरी औकात यहां तक है,मेरा मानना है कि सच्चे इंसान की पहचान उसके दिल की अच्छाई सच्चाई और ईमानदारी  से होती है न की नाम से उनके काम की खुशबू खुद व खुद सुगंधित होती है किसी के बदनाम करने से अच्छाई नहीं छिप सकती  क्योंकि बदनाम करने वाले के कारनामे भी सभी जानते हैं और उनकी पहुँच चन्द अपने जैसे लोगों तक ही कायम रहती है,महत्वपूर्ण लोग टिप्पणियों और विरोध का‌ सामना करते करते ही आगे बढ़ते रहते हैं लेकिन कुछ लोग यही समझते हैं कि  सारे काम उनके  इशारों पर चलें लेकिन अच्छे व्यक्ति अपनी प्रतिष्ठा या पहचान की ,चिंता नहीं करते न किसी‌ की निंदा की परवाह करते हैं,  किसी के विरोध ‌ या आलोचना के बावजूद अपना काम  करते रहते हैं और महत्वहीन विरोध उन्हें उनके लक्ष्य से  विचलित नहीं  कर सकता जब तक उनका संकल्प दृढ़ होता है चाहे विरोधी जितना मर्जी भी बदनाम क्यों न करें क्योंकि कुत्ते भौंकते हैं और कारवां चलते हैं नकारात्मक बातों का  अच्छे इंसान पर कोई असर नहीं  होता और न ही नकारात्मक लोगों के विचार उन्हें बदनाम कर सकते हैं  क्योंकि काम करने वालों के लिए उनका नाम महत्वपूर्ण नहीं होता उनका चरित्र और व्यक्तित्व  ही उनकी पहचान होती हैं तथा उनके कर्म ही उनकी असली पहचान कराते हैं चाहे कोई कितना भी बदनाम कर ले लेकिन उनकी पहचान नश ,नश तक लोगों की गहराईयों को छूती चली जाती है,अन्त में यही कहुंगा कि मनुष्य की असली पहचान उसके कर्म हैं न की नाम, हमें अपने कर्मों पर गर्व महसूस होना चाहिए न कि लोगों की अनसुनी बातों पर।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

" मेरी दृष्टि में " पहचान भी बदनाम होती है। कुछ लोग सिर्फ बदनाम का कार्य करते हैं। शायद इन्हें आत्म संतुष्टि मिलती होगी ।  यही कार्य वह जिंदगी भर करते रहते हैं। इन से लोगों की तरक्की देखीं नहीं जातीं हैं। इन जैसों की संख्या बहुत बड़ी है। 

               - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संचालन व संपादन)




Comments



  1. स्वाभिमानी को अपने आत्मसम्मान पर अटल विश्वास होता है, इसलिए वह आलोचकों से घबराता नहीं, बल्कि उनको चुनौती देता है कि- देखें तुझमें कितना दम है? स्वाभिमान और आत्मसम्मान जीवन के अनमोल गुण हैं.
    स्वरचित और मौलिक
    - लीला तिवानी
    सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
    ( WhatsApp से साभार)

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