विजयदेव नारायण साही स्मृति सम्मान - 2025

       जो ठोकरें खाते हैं। उन्हें पता होता है कि कमी कहां रह गई है। उस कमी का सुधार करते हैं। इस तरह की‌‌ प्रतिक्रिया से सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है। ठोकरों के बाद सुधार की प्रतिक्रिया से सफलता का द्वार खुलता है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का विषय है। अब आयें विचारों को देखते हैं :-
      ऐसा होना जरूरी नहीं कि ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हो,और बाकी बस संघर्ष करते रहे जाएं। इतिहास रचना हमारे प्रारब्ध और वर्तमान कर्म पर निर्भर करता है। यहां ठोकरें खाने से आशय लक्षित मार्ग में आने वाली बाधाओं और अवरोधों से है। जो हमारी सहज गति को बाधित करते हैं। ये अवरोध एक स्पीड ब्रेकर का काम करते हैं, जहां रफ्तार धीमी करनी ही पड़ती है।यदि गति तेज रही तो फिर गाड़ी पलटने यानी दुर्घटना का खतरा बन जाता है। बस बिना रुके अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने वाले इतिहास रचते हैं।अब रही बात बाकी की और उनके संघर्षों की तो इस विश्व में कौन ऐसा है जिसे संघर्ष न करना पड़ता हो। इससे तो सभी को दो चार होना पड़ता ही है।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

    धामपुर - उत्तर प्रदेश 

          ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हैं, बाकी सब इधर-उधर संघर्ष करते हैं। यह मात्र एक वाक्य नहीं है बल्कि मेरे जीवन का गूढ़ सत्य है। क्योंकि मैं स्वयं इस सच्चाई का जीवंत उदाहरण और भुक्तभोगी भी हूॅं। उल्लेखनीय है कि मेरे विभाग के कतिपय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने अपने कुकर्मों को छुपाने के लिए मुझे हर संभव तरीके से प्रताड़ित किया। उन्होंने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ने का प्रयास किया। यहां तक कि उन्होंने मुझे पीटा, पागलखाने भेजा, लेह लद्दाख जैसे ऊंचे और दुर्गम स्थान पर तैनात किया, बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण किया गया, और जब मैं राष्ट्रभक्ति के निर्धारित लक्ष्य से टस से मस नहीं हुआ, तो उन लोगों ने मुझ पर देशविरोधी गतिविधियों का झूठा आरोप तक लगा दिया। लेकिन सत्य की शक्ति के आगे सब मिथ्या सिद्ध हुआ। बार बार पागलखानों में भेजकर भी वे न तो मुझे पागल सिद्ध कर पाए और न ही देशद्रोही ठहरा सके। आज वही विभाग अपने ही आरोपों से लिखित रूप में पलट चुका है। यह मेरे लिए केवल व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और संवैधानिक अधिकारों की विजयश्री है। मेरे संघर्ष ने यह प्रमाणित कर दिया है कि झूठ और अन्याय चाहे कितनी भी ऊँची दीवार खड़ी कर दें, सत्य अंततः विजयी होता है। आज जो इतिहास लिखा जा रहा है, वह मेरे जैसे संघर्षशील व्यक्ति की कलम और आत्मबल से लिखा जा रहा है। देखने में यह भी आया है कि मेरे बहुत से चाहने वाले मुझे  "जय हिन्द" और "सम्माननीयों" शब्दों से जानते हैं। क्योंकि मैं निरन्तर "सम्माननीयों जय हिन्द" लिखता आ रहा हूॅं। बताना चाहता हूॅं कि यह "जय" मेरे राष्ट्र की है जिसमें मेरा सत्य ही "सत्यमेव जयते" सिद्ध हो रहा है और मेरा 63 वर्षीय अडिग विश्वास राष्ट्र को सम्मानित कर रहा है जो मेरे आलेखों में ही नहीं बल्कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय की जम्मू शाखा में प्रमाणित भी हो रहा है। 

- डॉ. इंदु भूषण बाली

ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर

         इस वाक्य का तात्पर्य है -जो व्यक्ति जीवन में असफलताओं, कठिनाइयों या ठोकरों से नहीं डरते,बल्कि उनसे सीखकर आगे बढ़ते हैं, वही अंततः इतिहास रचते हैं, अर्थात् बड़ी उपलब्धि प्राप्त करते हैं। जबकि जो लोग केवल कठिनाइयों से बचते रहते हैं,या बिना अनुभव के बस संघर्ष करते हुए दिशा खो देते हैं, वे कोई विशेष पहचान नहीं बना पाते। “ठोकरें” यहाँ प्रतीक हैं - गलतियों, असफलताओं, तिरस्कार, अपमान या कठिन जीवन परिस्थितियों का। ये ठोकरें ही व्यक्ति को मजबूत, समझदार और परिपक्व बनाती हैं। इन्हीं के सहारे मनुष्य अपने भीतर की क्षमता पहचानता है। इसलिए “ठोकरें खाना” यहाँ नकारात्मक नहीं, बल्कि विकास की प्रक्रिया मानी गई है। असफलता से डरना नहीं चाहिए। हर गिरना, सफलता की सीढ़ी बन सकता है। जो निरंतर प्रयास करते हैं, वही इतिहास में अमर होते हैं। जैसे- महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम, ए. पी. जे., या लेखक-वैज्ञानिक - कई बार असफल हुए, ठोकरें खाईं, पर हार नहीं मानी। इसलिए वे इतिहास रचने वाले बने।

- डाॅ. छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

          हाँ ये बात सत्य है कि जो ठोकर खाते हैं वहीं इतिहास रचते हैं. इतिहास रचने का उदाहरण हम इतिहास से ले सकते हैं. महात्मा गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका में ठोकर खाई और us ठोकर से इतना दर्द पैदा हुआ कि उन्होंने इतिहास रच दिया. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने ठोकर खाई और इतिहास रच दिया. ऐसे बहुत सारे इतिहास में लोग मिल जायेगे जो ठोकर खाने के बाद इतिहास रचे हैं. नदी की धारा में ठोकर खाने वाले पत्थर भी ठोकर खाते-खाते सुन्दर आकृति ले शोभनीय और पूजनीय बन जाते हैं. रास्ते में ठोकर खाने वाले कई पत्थर भी हथौड़े से ठोकर खाकर पूजनीय बन जाते हैं. आदमियों की भी हालत वहीं है कुछ इतिहास रच देते हैं कुछ ठोकर कहते रह जाते हैं. 

- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "

   कलकत्ता - पं. बंगाल 

इसमें मैं एक छोटा सा संशोधन करना चाहूंगी कि ठोकर खानेवाले  , व ठोकरों से सीख लेने वाले , ही इतिहास रचते हैं !! कई लोग बार बार ठोकर खाकर भी , न सीखते हैं , न स्वयं मैं सुधार लाते हैं , व न उन्हें सफलता मिलती है , और वे संघर्षरत ही रहते हैं !! ठोकरें हमें सिखाने के लिए ही लगती हैं , ताकि हम स्वयं के प्रयासों से सीखें , व स्वयं के यत्नों में सुधार लाएं !!  ठोकरें हमें सही राह दिखाती हैं , हमारा मार्ग प्रशस्त करती हैं , व हमें कामयाबी हासिल करने में, व इतिहास रचने में सहायक होती हैं !! 

 - नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

     जीवन में ठोंकरे खाने का अति महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जो पल-पल में ठोकरें खाने वाले ही वही इतिहास रचते है। वह तपा हुआ होता है, सर्व काम करने की किसी भी क्षेत्र में काम करने की जिज्ञासा रहती है, उसे हर कार्य हल्कापन लगता है। बाकि तो सब इधर-उधर संघर्ष करते रहते है, उन्हें किसी भी काम को करने में जिज्ञासा नहीं लगती आराम से जीवन यापन करने में दिलचस्पी लगी रहती है, जिसके परिप्रेक्ष्य में हमेशा असफल होते रहता है। जिस तरह नवजात शिशु किस तरह से परिश्रम करती हुए बार-बार खड़ा होता और अंतत: चलना सिखता है। यही क्रम हमेशा चलते रहता है.... 

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

            बालाघाट-मध्यप्रदेश

         जिंदगी संघर्ष का दूसरा नाम है. जीने के लिए येन-केन-प्रकारेण संघर्ष तो सबको करना ही पड़ता है! यह सच है कि ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हैं, बाकी सब इधर उधर संघर्ष करते हैं. असल में ठोकरें खाने वाले ठोकरें खाते-खाते इतने अनुभवी हो जाते हैं कि, वे कोई-न-कोई राह ढूंढ ही लेते हैं. धैर्य धारण करना तो सीख ही जाते हैं, इस दौरान वे कुछ ऐसा भी कर जाते हैं कि वह इतिहास बन जाता है, बाकी सब इधर-उधर संघर्ष करते ही रह जाते हैं.

 - लीला तिवानी

  सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

     ठोकर सिखाती है , पढ़ाती है। दर्द सहना, जमाने की परवाह न करना कि कोई हमारे बारे क्या बात कर रहा है। इन फालतू बातों के लिए उनके पास समय नहीं होता। ठोकरें खाने वाले सदा अपने लक्ष्य को अर्जुन की भांति केवल मछली नहीं उसकी आंख पर नजरें गड़ाए रहते हैं। उनकी जुबां पर शिकायत कभी नहीं होती । वो बोलते कम हैं, ठोकरों से सीख कर जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर अग्रसर होते रहते हैं। उन्हें तो अनवरत आगे बढ़ने का रास्ता सरल बनाना होता है । भले ही उसमें कितनी भी बाधाएं, ठोकरें क्यों न हों। ऐसे ही लोग इतिहास रचते हैं। लाखों सफल लोगों की जीवनियां ठोकरों से ही इतिहास में स्थान बना पाई हैं। महात्मा गांधी को दक्षिणी अफ्रीका में ट्रेन में धक्के मार कर बाहर न निकाला होता, लाल बहादुर शास्त्री गंगा की लहरों से डरे होते तो ये साधारण व्यक्ति असाधारण न बनते। जो लोग विपरीत परिस्थितियों से घबरा कर हथियार डाल देते हैं। वो दुनिया की भीड़ में खो जाते हैं। मैं समझता हूं कि वास्तव में वो जीवन, जीवन नहीं होता। जिसमें ठोकरें यानि चुनौतियां और कठिनाइयां न हों। इन्हीं से तप-रढ़ कर जो लोग निकलते हैं।वही इतिहास रचते हैं बाकि आपने जो कहा इधर-उधर संघर्ष करते रहते हैं।

- डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर 

बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश

      ठोकर खाने वाले इतिहास रचते है ! तभी तो कहते है इंसान ठोकर खा कर सुधरता है ! जमी आसमाँ वहीं के वही रहते है इंसान संघर्ष करता है संघर्ष और असफलता के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करता है।ठोकर खाने सीखने अवसर अनुभवों से सीखते हैं।दृढ़ संकल्पित हो इतिहास रचते हमारे वास्तु विज्ञान विविध विषयों के विशेषज्ञ है कहलाते इतिहास रचते है योंकि वे अपने अनुभवों से सीखते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत चुनौतियों का सामना करते लक्ष्य प्राप्त कर कहते हैं।जीवन संघर्षों में जीत तुम्हारी है हाथ बढ़ा कर आगे बढ़ जाना है अभिलाषाओं के महल बनाना दोष, ना देना मंज़िल राह दिखायेगी !जीवन संघर्षों की यही कहानी है 

ईश्वर छवि सत्य आइना तुम हो 

मन अभिलाषा के हीरे मोती हों 

इस जीवन के तुम उजियारे हो 

कल तुम्ही कर्णधार बनोगे!

मातृ पितृ मन अभिलाषाओं के 

कल के तुम सरताज बनोगे 

सागर ज्ञान मोती बन नभ सितारों में छा जाओं  विकास का अवसर मिलते जीवन सुधार जाओगे ! बाकी सब इधर उधर की बाते सलाहकार बन चौकीदार बने रह जाएँगे! 

 - अनिता शरद झा 

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

      यह कहना और मानना शत-प्रतिशत सही है कि ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हैं क्योंकि ठोकरें खा- खाकर के अपने-आप को इतना मजबूत कर लेते हैं कि फिर उन्हें कोई मुसीबत कठिन नहीं लगती। उन्हें हर मुसीबत से सामना और  निपटना  आने लगता है। इससे वे अपने उद्देश्य तक पहुंचने में न केवल सफल होते हैं बल्कि कुछ विशेष कर इतिहास रच देते हैं। सच पूछा जाए तो असल परीक्षा इन्हीं ठोकरों में छिपी होती है जो डर गया वो समझो मर गया और जो डट गया वो जी भी गया और जीत भी गया।इसके विपरीत जो इन ठोकरों से घबराकर हार मान लेते हैं उनमें फिर भटकाव आ जाता है और फिर वे इधर-उधर संघर्ष ही करते रहते हैं। अत: सार यही कि कभी भी ठोकरों से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें कामयाबी का माध्यम मानकर उत्साह और लगन के साथ अपने उद्देश्य में डटे रहना चाहिए। कहा भी गया है  :-  

जितने कष्ट कंटकों में है। जिनका जीवन सुमन खिला। गौरवपूर्ण गंध उन्हें उतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला।।

  - नरेन्द्र श्रीवास्तव

 गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

      कहते हैं कर्म ही पूजा है। जीवन में कर्म करना अत्यंत आवश्यक है चाहे वो शारीरिक हो या मानसिक।कर्मवीर बनकर हर इंसान सफलता अर्जित करना चाहता है। कर्म पथ पर इंसान को ठोकरें भी खानी पड़ती है।जो ठोकरें खाता है,वह कमरकसकर परिश्रम करता कामयाबी के शिखर को छू लेता है। अपनी लगन, दृढ़संकल्प से लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है।नये कीर्तिमान स्थापित करता है। इतिहास रचता है।मान- सम्मान प्राप्त करता। मशहूर हो जाता है।क्योंकि आसानी से , बिना परिश्रम के पाया सौगात मायने नहीं रखता।उसकी अहमियत पता नहीं चलता। संघर्ष, ठोकरें खाकर ही सफलता मायने रखता है।जिस तरह सुनार सोने को आग में तपाता पीटता ठोकता, छैनी, औजार का प्रयोग करता तब फिर लोगों कुंदन बनकर तैयार होता है। कुछ इधर - उधर संघर्ष करते हैं, मंजिल पाने के लिए जद्दोजहद करते हैं। पसीना बहाते हैं,तरकीब ढूंढते हैं, दूसरों से सहायता मांगते हैं, संसाधनों की जुगाड़ में लगे रहते हैं। दर- दर भटकते फिरते हैं तब भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।मन मसोस कर रह जाते हैं। निराशा हाथ लगती है।मन हताशा से भर जाता है। संघर्ष का फल निष्फल साबित होता है।

- डॉ. माधुरी त्रिपाठी 

  रायगढ़ - छत्तीसगढ़

       जो इंसान बार_बार कोशिश करता है,संघर्ष करता है।वह एक दिन अवश्य मंज़िल को पा लेता है।संघर्ष के क्रम में ठोकर खाकर भी प्रयासरत रहता है।एक दिन उस मनुष्य की जीत सुनिश्चित होती है।यहां ठोकर खाने का तात्पर्य संकट से लड़ना है।जो इंसान जितना अधिक संघर्ष करता,ठोकर खाने से नहीं घबराता ,वह एक दिन जरूर सफल होकर नाम करता है।ठोकर अथवा मुसीबत से हमें नहीं घबराना चाहिए।जो मनुष्य ठोकर खाते, वे अवश्य मंज़िल को पाते।बिल्कुल सही कहा गया है ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हैं।बाकी सब इधर_उधर संघर्ष करते हैं।अगर हमें इतिहास रचना हो तो ठोकरें खाने से नहीं डरना चाहिए।

-  दुर्गेश मोहन 

  पटना -बिहार

        यह सच है कि ठोकर खाने वाले ही इतिहास रचते हैं चूंकि ठोकरों से ही तो अनुभव का खजाना मिलता है। जरूरी नहीं  कि आदमी को हमेशा सफलता ही मिले। ठोकर खाने का भी अपना ही आनंद होता है, जो अनूठा और अविस्मरण होता है। उनके खट्टे-मीठे संस्मरणों की बहुमूल्य निधि सदा हमारे साथ रहती है जो बाद में आने वाली कठिनाई के समय जीवन को सच्चा रास्ता दिखाती है। ठोकर खाने वाले कभी हार नहीं मानते, अपने अनुभव से, संघर्ष से जीवन में इतिहास रचते हैं। नामुमकिन काम भी चुटकी में हल कर लेते हैं। किंतु जिनको काम का तजुर्बा, अनुभव नहीं होता वे कितनी भी मेहनत करें ,संघर्ष करें जरूरी नहीं वह सफल हो, या जरूरी नहीं कि वह असफल हो। उसे उसके काम का दोनों परिस्थितियों का अनुभव होता है चाहे वह सफल हो या असफल। जीवन की राह में ठोकरें तो लगेंगी ही और भविष्य के लिए कोई न कोई सीख अवश्य मिलेगी किंतु बदकिस्मत हैं वो जो ठोकर खाए बिना मंजिल तक पहुंच जाते हैं, क्योंकि उनके हाथ अनुभव से खाली ही रह जाते हैं। जीवन में ठोकर खाकर मिलने वाला अनुभव का खजाना ही इतिहास रचता हैं।

- चंद्रिका व्यास 

   मुंबई - महाराष्ट्र 

      अगर इतिहास ‌के पन्नों को पलट कर देखें तो उनसे यही‌ सीख मिलती है कि बिना संघर्ष किए इतिहास नहीं रचे जाते क्योंकि जीवन एक‌ संघर्ष है,और हर संघर्ष व्यक्ति को मजबूत बनाता है तथा असफलताओं से हमेशा सीख मिलती है ,जो  व्यक्ति ठोकरें खा कर भी हार नहीं मानता बल्कि उनसे सीख लेकर‌ गलतियों का‌ सुधार करता है  क्योंकि असफलतांए और संघर्ष ही व्यक्ति को मजबूत बनाते हैंऔर इतिहास बनाने के लिए प्रेरित करते हैं  तो आईये आज का रूख इ‌स चर्चा की तरफ ले चलते हैं कि  ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते हैं बाकि सब इधर उधर संघर्ष करते हैं, मेरा मानना है कि ठोकरें खाने वाले ही इतिहास रचते‌‌ आए हैं और रचते रहेंगें क्योंकि  दृढ़ निश्चय वाले और साहसी लोग ठोकर खा कर मजबूत बनते हैं और इतिहास रचते हैं मगर कमज़ोर लोग तो ठोकर खा कर  बिखर जाते हैं,देखा जाए जीवन एक संघर्ष है और हरेक संघर्ष व्यक्ति को मजबूत बनाता है,साहस देता है जिससे खुद का‌ विश्नास  अनुभव व सहनशक्ति  मानसिक रूप से मजबूत बनती है तथा दुसरों के प्रति सहानुभूति सिखाती है और इतिहास बनाने के लिए प्रेरित ‌करती है,ऐसे लोग अंधेरों में भी  रोशनी देखते हैं और अपनी सोच अलग रखते हैं और वोही लोग  इतिहास रचने में कामयाब होते हैं,लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सफल होने का सपना तो देखते हैं मगर बिना कष्ट झेले हुए बिना ठोकर खाये लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सकता क्योंकि जब तक व्यक्ति किसी मुश्किल, परेशानी या ठोकर का‌ सामना नहीं करता तब तक उसे अपनी गलतियों या‌ कमजोरियों का एहसास नहीं होता और वो व्यक्ति अपनी कमियों को दूर नहीं कर पाता और सफलता को ग्रहण नहीं कर सकता,असल में स्वयं ठोकर खा कर ही सीख मिलती है क्योंकि जब तक  खुद को तकलीफ न हो तब तक दर्द का एहसास नहीं होता और जो कुछ भी ठोकर खा‌ कर सीखा जाता है  वोही अनुभव बन जाता है आखिरकार यही कहुंगा कि इतिहास रचने वाले व्यक्ति वोही होते हैं जो ठोकर खा‌ कर बिखरते नहीं बल्कि ‌संभलते‌ हैं और अपनी ऊर्जा को आगे बढाने की‌ तरफ ले जाते हैं बैसे भी बिना लक्ष्य और सही‌ दिशा बगैर किया गया प्रयास व्यर्थ होता है और मनचाही ‌सफलता नहीं देता जैसे हवा में तीर चलाने से निशाना सही जगह नहीं लगता मगर दिशाहीन हो जाता है और बर्बादी ‌का‌ कारण बनता है ,इसमें कोई शक‌ नहीं की ठोकरें इंसान को विनम्र बनाती हैं,अनुभव देती हैं, आत्मविश्वास, साहस और सहनशक्ति से परिपूर्ण करती हैं जिनके द्वारा ‌ व्यक्ति महानता हासिल ‌करते हुए इतिहास रचता‌ है,तभी तो कहा है ठोकर भी जरूरी है जिंदगी में क्योंकि ठोकर लगने के बाद इंसान संभल कर चलना सीखता है।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

  जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

       सत्य है कि ठोकर ही इंसान को आगे बढ़ने का हौसला देती है। ठोकर खाने वाला दो मानसिक स्थितियों से गुजरता है। या तो निराशा उस पर हावी हो जाती है या वह दुगने जोश से आगे बढता है। भीतर की निराशा या नया जोश उसके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। ऐसी स्थिति में कुछ अनोखा करने की अभिलाषा इंसान को प्रेरित करती है और वह अपनी लीक से हटकर कुछ अलग अनीखा अनमोल कार्य में अपना दाय निभाता है और उसकी मानसिक ताकत उसे ऊँचाईयों पर ले जाती है।कभी-कभी इसके विपरीत परिस्थितियों में संघर्षों में हताशा की स्थिति में इंसान अपना आत्मसम्मान और आत्मविश्वास खोकर हतोत्साहित हो जाते हैं। उन्हे उनके संघर्ष का उचित प्रतिफल नहीं मिलता। तक़दीर के सामने कोई तदबीर काम नहीं आती। दिशाहीन संघर्ष उन्हें निराशा की गहरी खाइयों में खींच ले जाते हैं। जरूरत इस बात की होती है कि इंसान हर स्थिति में अपनी स्थितप्रज्ञस्ता कायम रखे। आशा निराशा लाभ हानि से दूर एक सामान्य व्यवहार से जीवन जीने की कोशिश करें। बुद्धि बल को मजबूती से थामें। आप पायेंगे कि संघर्ष में भी रस मिलेगा और निराशा में आशा का आशीष मिलेगा 

- हेमलता मिश्र मानवी 

    नागपुर - महाराष्ट्र 

" मेरी दृष्टि में " संघर्ष जिंदगी का अहम हिस्सा है। जो जीवन को चलता है। संघर्ष के बिना सफलता बहुत दूर की बात है । फिर संघर्ष का अपना महत्व होता है। जो समझता है। वह संघर्ष से घबराता नहीं है। वह सफलता प्राप्त कर के ही रहता है। 

               - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संचालन व संपादन)

Comments

  1. ठोकर खाने के बाद ही व्यक्ति सम्हलता है। कदम फूंक फूंक कर आगे बढ़ता है। औरों को भी सिखाता है कि देखो इस बात या कार्य से कोई दुर्घटना हो सकती है समय रहते सम्हल जाओ। इस प्रकार से वो व्यक्ति आगे जाकर एक नया इतिहास रचा डालता है 🙏🏿🙏🏿
    -श्रीमती राजकुमारी रैकवार राज
    जबलपुर म प्रदेश
    ( WhatsApp ग्रुप से साभार)

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  2. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय बीजेंद्र जी, डॉक्टर अनिल जी को भी सम्मानित होने पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐💐😊

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