डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम स्मृति सम्मान -2025
बहुत ही गहरी और विचारोत्तेजक चर्चा है! "मन विश्वास की बात करता है, डर सोच का परिणाम होता है। यह हमें हमारे विचारों और मानसिकता के महत्व के बारे में बताता है। विश्वास हमारे मन की एक सकारात्मक अवस्था है मन हमारे विचारों और भावनाओं का केंद्र है।डर एक नकारात्मक भावना है जो हमें खतरे या असफलता की संभावना से बचने के लिए प्रेरित करती है। डर हमें अपने लक्ष्यों से दूर कर सकता है। परन्तु हमारी सोच ही तय करती है कि हम डर को अपने ऊपर हावी होने देंगे या नहीं। अगर हमारी सोच नकारात्मक है, तो डर हमारे लिए एक बड़ी बाधा बन सकता है।अगर हम अपने मन को सकारात्मक और विश्वास से भरेंगे, तो हम डर पर काबू पा सकते हैं। सकारात्मक सोच हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है और हमें चुनौतियों का सामना करने की ताकत देती है।अपने आप पर विश्वास करना और अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना बहुत महत्वपूर्ण है। आत्म-विश्वास हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक आत्मबल देता है। विश्वास और सकारात्मक सोच हमें चुनौतियों का सामना करने की ताकत देती है और हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
मानव का मन स्वभावतः सृजनशील, आशावान और दिव्य शक्ति से सम्पन्न होता है। मन जब विश्वास से भरा होता है, तब वह असम्भव को भी सम्भव बना देता है। विश्वास ही वह ऊर्जा है जो व्यक्ति को संघर्ष के अंधकार में भी प्रकाश दिखाती है, जबकि डर उसी मन की नकारात्मक सोच का परिणाम होता है।उल्लेखनीय है कि डर कभी बाहरी परिस्थिति से उत्पन्न नहीं होता, बल्कि हमारी विचार प्रक्रिया से जन्म लेता है। विशेषकर जब सोच संदेह, असुरक्षा और हानि की कल्पनाओं से भर जाती है, तब भय उत्पन्न होता है। इस प्रकार, डर वास्तव में सोच की दुर्बलता है जबकि विश्वास मन की शक्ति है।क्योंकि विश्वास वह दिव्य तत्व है जो न केवल आत्मबल बढ़ाता है बल्कि परिस्थितियों को बदलने की क्षमता भी प्रदान करता है। डर वहीं व्यक्ति को निष्क्रिय, संकोची और आत्मविरोधी बना देता है। इसलिए जीवन का सार यही है कि सोच की बुलंदियों को और बुलंद करो और विश्वास से परिपूर्ण कर दो तो "डर" स्वतः लुप्त हो जाएगा। अतः ध्यान रखें कि डर को मिटाने का उपाय परिस्थिति बदलना नहीं बल्कि सोच को सशक्त बनाना है। अन्ततः इसका निष्कर्ष यह है कि मन का विश्वास मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है, और डर केवल उसी सोच की परछाईं मात्र है जो ईश्वर में, स्वयं में और सत्य में भरोसा नहीं रखती।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियां (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
मन विश्वास की बात करता है कर्मप्रधान जनमानस विश्वास यही हैं जनजागरण आस जगाने मायानगरी में आये हैं डर सोच का परिणाम होता हैं !रामकथा का सार भी यही है ,पुरुषोत्तम जनवाणी में छाई आस हैं माया की नगरी में ज्ञान दीप जलाने आये हैं !विश्वास अपने अपने सत्यकर्मो जमाओं! अविश्वास से बढ़ती है आपसी दूरियाँ मिटाओ मात पिता की सोच सौहर्द सूरत सीरत पाई, विश्वास बढ़ाओं ना किसी से गिला शिकवा ना शिकायत थी । फिर ये आपसी रंजिश अलगाववाद क्यों है !क्या इंसान इस कदर पैसों का मोह ताज है आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो गया है रिश्तों को भूल विलासिता में खो कर गया ।जाग जाओं मय के दंभ को दूर भगाओं रिश्ते जोड़ विश्वास की नींव मजबूत बनाओं !रिश्ते खून की बुलंद इमारत होती है ।जिसकी हर मंजिल प्यार का आशियाना है जिसमें चारों प्रहर की कहानी जुड़ी होती है !विश्वास से भरी आपसी मंजिल दूरियाँ को स्नेह प्यार से बुलंद इमारत खड़ी कर जाओं !ये आपसी स्वाभिमान शीत गृह युद्ध में बदले ! ये अभिमान स्वाभिमान है साथ रहे सब मिलजुल कर अरमानो की नगरी में चाह , मोती बन उजले तनमन से साज सजायें घर घर ,भर में घुम घुम कर सीख सिखायें शांति समभाव की |भूख से व्याकुल, भय से आतंकित हृदयों में, अविश्वास की धधकती ज्वाला हैं दीप जलायें हर आगंन में श्रद्धा के, दूर करो हे कृपा निधान पीड़ा इस भय की, सब खानपान का वैभव हो घर घर में, खुशियाँ विश्वास की लहर पर सवार मेघदूत बन इस भवसागर में बरस जाओं अब अमृत बन कर ।शान्ति का दूत बन सिद्ध करो अचुत्तम केशवं कृष्ण दामोदरम की लीला को भी । शिव वाणी मधुरम, सत्य वाणी मधुरम, वाणी विकास रुपम ,ऐसे ही बस जाओं भारत के मन में अपना विशाल रूप धर कर,कर्मप्रधान जनमानस विश्वास यही हैं कर्मवीर बलवीर केशरीनंदन कलयुग कथा यही हैं ! मन से मन का भेद मिटा दो आशाओं का संचार जगा दो कर्मक्षेत्र में ये पहचान बना दो सेवा के सब अधिकारी बता दो जन मानस में विश्वास जगा दो दुनिया को ख़ुशहाल बना दो ! जीवन के दो आधार कर्म और विश्वास है जिसका सच्चाई से पालन करे । कर्मक्षेत्र में ये पहचान बना दो । सेवा के सब अधिकारी बता दो जन मानस में विश्वास जगा दो । दुनिया को ख़ुशहाल बना दो । डर सोच का परिणाम होता हैं ।तुलसी भरोसे राम के निर्भय हो । ऐसी बाणी बोलिये जन अमृत घुल जाए !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
मन अर्थात हमारी अपनी अंतरात्मा, जो हमें हमेशा सकारात्मक सोच ही देता है लेकिन हमारी पारिवारिक जिम्मेदारियां और स्थितियां हमें डराती रहती हैं।हमारा मन बहुत ही सुन्दर चंचल होता है जो किसी के भी बहकावे में आकर बहुत जल्दी भरोसा कर लेता है।वास्तव में तो होता यह है कि हम केवल सोच सोच कर ही डरते रहते हैं कि ऐसा होगा तो क्या होगा, ऐसा होगा तो क्या होगा। किन्तु अंत में परिणाम सकारात्मक ही होता है।
- संजीव 'दीपक'
धामपुर (बिजनौर) - उत्तर प्रदेश
विश्वास , चाहे किसी पर भी हो , हम मन से करते हैं अर्थात हम केवल उसीपर विश्वास करते हैं , जिसपर भरोसा करने को मन मानता है !! यदि मन कहता है या महसूस करता है कि अमुक व्यक्ति , भरोसे या विश्वास के काबिल नहीं है , तो हम उसपर विश्वास नहीं करते !! सोच सबकी भिन्न भिन्न होती है , इसलिए कोई ज्यादा डरता है , कोई कम डरता है , व कोई निडर भी होता है !! जितने लोग , उतनी सोच , उतनी भिन्नता !! ये अलग बात है कि कई बार हम मन की बात सुनकर, जिनपर विश्वास करते है , बाद मैं चलकर वे धोखेबाज निकलते हैं !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
मन विश्वास की बात करता है और डर सोच का परिणाम होता है। परिचर्चा का विषय बहुत ही रोचक है। जब बुद्धि और विवेक मिलकर कर्म करें तो जो विश्वास उत्पन्न होता है। यह विश्वास ही मन की चंचलता को नियंत्रण में रखकर निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए। कर्म में सफलता प्राप्त करता है। मन बुद्धि और अहंकार मनुष्य के दिव्य सूक्ष्म जीव रूप हैं। जैसे पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और आकाश जीव के स्थूल रूप हैं। मन, बुद्धि के अतिरिक्त जो सुक्ष्म रूप अहंकार है। अहंकार यानि अहं का अर्थ स्वयं और आकार का अर्थ अपना रूप, अहं+आकार । इसी हम के भाव से मनुष्य का स्वभाव बनता है या स्वभाव ही मनुष्य की पहचान देश और दुनिया में अपने कर्मों द्वारा स्थापित करता है। इसके लिए उसके बुद्धि और विवेक मन का रास्ता तय करते हैं। जब तक बुद्धि और विवेक से मनुष्य अपने हर कार्य का निष्पादन करता रहता है। तब तक मन में विश्वास बना रहता है यही विश्वास मन,कर्म वचन की मानसिक स्थिति को परिष्कृत करके ऊंचाइयों तक पहुंचाता हुआ। किसी भी डर को मनुष्य के भीतर प्रवेश नहीं होने देता। उन्हीं मानसिक स्थितियों में कहा जा सकता है कि मन विश्वास की बात करता है। लेकिन जैसे ही उसके भीतर बुद्धि मंद पड़ने लगती है और विवेक हीनता प्रवेश करती है। उसके बाद विश्वास डगमगाने लगता है। मन की इसी स्थिति के परिणाम स्वरूप कोई भी कार्य करते हुए, सही होने या न होने का भय उत्पन्न होता है। कार्य व व्यवहार में नकारात्मकता झलकने लगती है।सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता, आत्मविश्वास के साथ आत्मसम्मान आहत होता है। यही सब मिलकर सोचने-समझने से डर उत्पन्न होने लगता है। उपरोक्त तथ्यात्मक विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि मन विश्वास की बात करता है और डर सोच का परिणाम होता है।
- डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मन विश्वास की बात करता है, डर सोच का परिणाम होता है....यह कथन पूर्णतः सत्य है। मन विश्वास को लेकर चलता है, जो हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है अतः जब हम कोई भी लक्ष्य को पूर्ण करने की सोचते हैं तो हमारा विश्वास,हमारी सोच का केन्द्रबिंदु पूर्णतः लक्ष्य की ओर ही होता है जो अपनी सकारात्मक सोच की वजह से सफलता प्राप्त कर लेता है किंतु वहीं डर हमें नकारात्मकता की ओर ढकेलती है। हमारे काम के पूर्ण होने से ही पहले ही नकारात्मकता को साथ लेकर चलने वाली काल्पनिक सोच अपनी हार मानने को तैयार रहती है। और उसका परिणाम भी लगभग वही होता है। सकारात्मक सोच मन को शांत रखती है और नकारात्मक सोच अशांत। डर हमेशा परिणाम को लेकर उद्वलित रहता है वहीं मन, विश्वास और धैर्य से भरा होता है। सकारात्मक सोच लिए परिणाम को लेकर निश्चिंत रहता है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
मन में है विश्वास पूरा है विश्वास एक दिन होगी शांति चारों ओर हमनें सुना है, मन में विश्वास होने के परिप्रेक्ष्य में सब काम अगले व्यक्ति के ऊपर छोड़ देते है कोई हमें जहर भी दे तो विश्वास की ही बात होती है, पूरा जीवन विश्वास पर ही आधारित तो है ही एक संकल्प रहता है अपने लक्ष्य को पूर्ण करने का जो एक परीक्षा की घडी से प्रारंभ होकर, अन्तत: चलता रहता है, दूसरी ओर दृष्टि डाली जाए तो डर सोच का परिणाम होता है, हमें किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने की अभिलाषा होती है, उसे प्राप्त करने के लिए हम हद तक पहुंच कर ही दम लेते है, किन्तु ज्यादातर सोचने की परिधी में डर स् लगने लगता है जिसके कारण परिणाम अंत में शून्य हो जाता है....
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
मन मनुष्य का सबसे शक्तिशाली तत्व है। वही सृजन करता है, वही विनाश। जब मन में विश्वास होता है, तब वही परिस्थितियाँ भी सरल लगने लगती हैं जो असंभव प्रतीत होती थीं। विश्वास आत्मबल का रूप है — यह हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसके विपरीत डर प्रायः हमारे विचारों का परिणाम होता है। जब सोच नकारात्मक दिशा में जाती है — "अगर ऐसा हो गया तो?", "मैं असफल हुआ तो?" — तब मन में भय उत्पन्न होता है। यह डर बाहर की परिस्थितियों से नहीं, बल्कि भीतर की कल्पनाओं से जन्म लेता है। विश्वास और डर दोनों मन के ही रूप हैं, पर दोनों की दिशा विपरीत है। विश्वास मन को स्थिरता देता है। डर मन को विचलित करता है। अतः यह आवश्यक है कि हम अपनी सोच को नियंत्रित करें, क्योंकि "जैसी सोच, वैसा संसार।" सकारात्मक सोच विश्वास को जन्म देती है, और विश्वास सफलता का द्वार खोलता है। जब मन विश्वास से भरा होता है, तब डर स्वतः मिट जाता है। इसलिए जीवन में परिस्थितियों को नहीं, अपनी सोच को बदलें — क्योंकि डर बाहर नहीं, भीतर की सोच में छिपा होता है।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
देखा जाए मन और विश्वास में गहरा संबंध है क्योंकि मन विश्वास की बात करता है और विश्वास मन को मजबूत करता है और विश्वास तब होता है जब मन किसी बात को बिना प्रमाण के भी सच मान लेता है,यह एक मानसिक स्वीकृति है, इसी तरह डर की बात करें तो डर सोच का परिणाम होता है क्योंकि यह खतरे,नुक्सान या दर्द की आशांका से उतपन्न होता है और यह एक स्वाभाविक मानविय भावना है जो एक संभावित नुकसान से उतपन्न होती है जबकि विश्वास एक विश्वास है तो आईये आज इसी पर चर्चा करते हैं कि मन विश्वास की बात करता है और डर सोच का परिणाम है मेरा मानना है कि मन एक अदृश्य शक्ति है जो हमारे अनुभवों,निर्णयों और भावनाओं को आकार देती है और डर एक प्राकृतिक भावना है जो किसी खतरे से उतपन्न होती है ,अगर मन की बात करें यह एक ऐसी शक्ति है जो हमारे हर अनुभव, निर्णय और संबंध को प्रभावित करती है,यहां हम अपने भीतर के विचारों और भावनाओं से सामना करते हैं,मन ही हमारे विचारों और भावनाओं को उतपन्न करता है और तय करता है कि हम दुनिया को कैसे देख कर विश्वास को जीत सकते हैं लेकिन मन को नियंत्रण में रखने के लिए डर का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि डर हमें संभावित खतरों से बचाने के लिए सुरक्षित प्रतिक्रिया है और डर ऐसी सोच पैदा करता है जिससे मन को रोका जा सकता है और समझ कर मन को मुक्त किया जा सकता है ,अन्त में यही कहुंगा कि मन की बातें और डर की बातें दोनों ही हमारे जीवन में गहरा प्रभाव डालती हैं जबकि मन की बातें हमारे अन्दर से आती हैं और हमारे विचारों और अनुभवों से जुड़ी होती हैं यही हमारे रिश्तों संबधों और जीवन के उदेश्यों के बारे में बताती हैं और मन में विश्वास पैदा करती हैं जबकि डर एक नकारात्मक भावना है लेकिन यह हमें विफलताओं,असफलताओं और नुक्सानों के बारे में बताता है इसलिए हमें अपने मन की बातों को सुनना और डर की बातों को समझना चाहिए ताकि हम अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा सकें।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
मन हमेशा साफ रखना चाहिए।मन में विश्वाश रखना जरूरी होता हैं।खुद पे विश्वास होगा तो ही हम किसी काम को करने की सोचेंगे,प्रयास करेंगे। उद्देश्य हमारा यही होता है हम इसमें सफल होंगे। हमें सफलता हासिल करनी है।मन में विश्वास के गुण को बरकरार रख हम किसी से दोस्ती करते हैं। विश्वास जीतना , विश्वास बनाए रखने में थोड़ा समय लगता है।यह मन जब विश्वास की बात करता है तो हम दोस्त को उसके जरूरत के समय में रूपया उधार देते हैं यह मन में विश्वास रखकर की वह रूपया लौटा देगा। उधेड़-बुन में रहकर मन में डर की स्थिति निर्मित होती है। तब ऐसा प्रतीत होता है कि दोस्त ने विश्वास नहीं जमाया।या फिर हम उस पर विश्वास कर नहीं पाते।डर सोच का परिणाम होता है। कभी-कभी जिंदगी में धोखा खाया हुआ व्यक्ति छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है।कुछ करने के पहले सहम जाता है। अच्छा काम करने,किसी की मदद करते समय भी संशय की स्थिति मन: मस्तिष्क में घर बना लेती है। करें या न करें, दें या न दें यह सोच डर पैदा करता है। नकारात्मक विचार मन में आते हैं। फिर कार्य हम भली-भांति क्रियान्वयन नहीं कर पाते।डर मानव की कमजोरी है। हिम्मत सकारात्मक सोच लाता है।
- डॉ. माधुरी त्रिपाठी
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मन ही तो सब कुछ करता है. सोचता भी वही है और विश्वास भी वही करता है. सोचने और निर्णय करने का काम भी मन का ही है. विचार मन में ही उठता है. चाहे वह डर की हो या निडरता की. सोच तो अच्छा बुरा दोनों हो सकता है. परंतु मन ही निर्णय करता है कि किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं करें. ये बात ठीक है कि सोच का परिणाम ही डर है. अगर हम डर के बारे में सोचेंगे तो डर ही लगेगा. डर के बारे में नहीं सोचेंगे तो डर नहीं लगेगा. लेकिन विश्वास और अविश्वास का निर्णय तो मन ही करेगा.
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
मन का विश्वास सदैव पूजनीय और श्लाघ्य होता है। अतः मन की बातें सदैव मनन योग्य होती है। "मन के हारे हार है मन के जीते जीत "ये अमिट सत्य है - -अन्यथा अमृत वाणी है यह वाक्य युगों युगों से। मन बडा़ चंचल होता है। आसानी से मानता नहीं है - - सहज नहीं है मन को मनाना और मनवा लेना। लेकिन एक बार मन का विश्वास रच जाये तो विश्वास का रंग चिरस्थायी होता है। दूसरी ओर डर होता है जो आसानी से मन को मानने नहीं देता। पंचेन्द्रियाँ मन को डराती है। शंका-कुशंका ह्दय को आंदोलित करती रहती हैं। लेकिन वह इंसान ही क्या जो डर के आगे झुक जाये? डर बेजा सोच का परिणाम होता है। द्रृढ संकल्प ले कर कदम बढाने वालों पर डर हावी नहीं हो पाता। अति सोच मन को प्रभावित करती है। इसलिये डर पर जीत पाने का सरल और सर्वोपरि उपाय है मन को काबू में रखना। विश्वास आध्यात्मिक आधार पर चलता है लेकिन डर दुनियावी सोच पर। अतः जरूरी है कि मन को थामें - - डर की लगाम मन के विश्वास से थामे रहें। आप पायेंगे कि ये परस्परपूरकता आपको जीवन के हर क्षेत्र मे जीत दिलायेगी।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
एक तरफ मन का अटल इरादा विश्वास को जीतता है। वहीं दूसरी तरफ नकारात्मक सोच अंदर डर को जन्म देता है और कुछ भी करने से रोकता है। वास्तव में ,हम सब रणभूमि में ही खड़े हैं।अंदर भी और बाहर भी।अंदर हमारा मन कहता है तुम करो तुम कर लोगे और विश्वास को मजबूत करता है वहीं अपने विश्वास का शत्रु डर विश्वास को रोकता है और तरह तरह के उदाहरण देकर उसे कमजोर बनाता है।
- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " मन का संसार बहुत बड़ा होता है। जिससे अनंत भी कहा जाता है। जिस की कोई सीमा नहीं होती है ऐसी होती है मन की स्थिति। मन से बहुत कुछ पाया भी जा सकता है और खोया भी जाता है यह सब मन को नियंत्रित करने का खेल कहा जाता है यानि कि ध्यान।
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