राजस्थान के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक ,: बीजेन्द्र जैमिनी

राजस्थान का इतिहास अपनी पहचान के लिए जाना जाता है । जिसे वीरों की धरती पुकारा जाता है । जिसके कण - कण में राजपूतों की पहचान कायम है । यही पहचान हिन्दुस्तान की शान है । जो लोक साहित्य में देखा जा सकता है । 
   भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा " एक लेखक की ग्यारह लघुकथा श्रृंखला " के अन्तर्गत " राजस्थान के प्रमुख लघुकथाकार " ई - लघुकथा संकलन का सम्पादन किया है । जिसमें ग्यारह लघुकथाकारों को शामिल किया है । प्रत्येक की ग्यारह लघुकथाओं को स्थान दिया है । इस तरह से एक सौ इक्कीस लघुकथाओं के साथ ग्यारह परिचय शामिल हुये हैं । जो राजस्थान की पहचान से भरपूर हैं । जो अलग संस्कृति के साथ विशेष भाषा शैली के साथ जोडता है । यहीं कुछ राजस्थान की लघुकथाओं में देखने को मिलता है ।
   " एक लेखक की ग्यारह लघुकथा श्रृंखला " के अन्तर्गत , अब तक निम्न ई - लघुकथा संकलन तैयार कर के पेश किये जा चुके हैं : -
   1. मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार
   2. हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार
   3. हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार
   4. मुम्बई की प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार
   5. महाराष्ट्र के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार
   6. दिल्ली के प्रमुख लघुकथाकार
   7. भोपाल के प्रमुख लघुकथाकार
                  आदि ई - लघुकथा संकलन का सम्पादन हुआ है । आगे की , इस श्रृंखला की योजना , अभी गर्भ में हैं । फिलहाल इस श्रृंखला में 80 से अधिक लघुकथाकारों ने भाग ले चुके हैं । और भी शामिल होने की उम्मीद , दिनों दिन बढती जा रही है । यहीं लघुकथा साहित्य की सफलता है । पाठक व लेखकों से उम्मीद करते हैं कि अपनी सार्थक विचारों से अवश्य अवगत करवायेंगे ।

क्रमांक - 01

जन्म : 11 जुलाई 1953 , अलीगढ़ - उत्तर प्रदेश
शिक्षा : एम. कॉम , पत्रकारिता में उपाधि

प्रकाशित पुस्तकें : -

लघुकथा संग्रह : मेरी सौ लघुकथाएं
सम्पादित लघुकथा संकलन : पड़ाव और पड़ताल ( आठ भाग )

उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, सेज गगन में चांद की, आखेट महल, अकाब, जल तू जलाल तू, राय साहब की चौथी बेटी, ज़बाने यार मनतुर्की।

कहानी संग्रह: अंत्यास्त, थोड़ी देर और ठहर, ख़ाली हाथ वाली अम्मा, सत्ताघर की कंदराएं, प्रोटोकॉल।

आत्मकथा (तीन खंड): इज्तिरार, लेडी ऑन द मून, तेरे शहर के मेरे लोग।

सम्प्राप्ति : पूर्व प्रोफ़ेसर(पत्रकारिता व जनसंचार) एवं निदेशक, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर (राजस्थान)

पता : बी -301 , मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी, 447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर-302004 - राजस्थान


1.नया दौर
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द्रोणाचार्य राउंड पर थे। उन्होंने देखा कि उनके कार्यालय से फ़ोन कर- कर के विद्यार्थियों को गुरुकुल में अध्ययन के लिए बुलाया जा रहा है।
उन्होंने निजी सहायक से पूछा - ये सब किसलिए?
उत्तर मिला - सर, विद्यार्थी घर में बैठे ऑनलाइन शिक्षा लेे रहे हैं। हम उन्हें आमंत्रण दे दें ताकि गुरुकुल खुलते ही अच्छे छात्र हमारे यहां प्रवेश लेे लें।
द्रोणाचार्य ने कहा - नहीं, इससे तो ये संदेश जाता है कि हमारे पास विद्यार्थी नहीं हैं। तुम छात्रों से कहो कि सीटें भर जाने के कारण अब प्रवेश बंद हो गए हैं।
- लेकिन इससे तो यहां कोई नहीं आएगा, हमें भारी नुक़सान होगा। सहायक ने कहा।
गुरु प्रवर बोले- तुम नादान हो, इससे हमें दोहरा लाभ होगा। छात्र ये सोचेंगे कि हमारा स्तर इतना उच्च है कि उन जैसे श्रेष्ठ विद्यार्थियों का नम्बर भी नहीं आया। दूसरी ओर एकलव्य की तरह वे स्वयं पढ़ लेंगे और हमें दक्षिणा में अपने अंगूठे भी देंगे।
- किन्तु सर, तब हम यहां क्या करेंगे? सहायक ने जिज्ञासा प्रकट की।
- और भी काम हैं पढ़ाने के सिवा... गुरुदेव मन ही मन सोच रहे थे और सहायक मुंह ताक रहा था।***

2.सत्ता और लोक
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एक बूढ़ा सड़क के किनारे बैठा ज़ोर ज़ोर से रो रहा था।
आते जाते लोग कौतूहल से उधर देखते थे। कुछ लोग इतने उम्रदराज इंसान को इस तरह रोते देख पिघल भी जाते थे,और रुक कर पूछते - बाबा क्या हुआ?
लोगों की संवेदना देख बूढ़ा बोला - ज़िन्दगी केवल एक बार मिलती है, मुझे भी मिली,पर मैं इस ज़िन्दगी में कुछ भी नहीं कर पाया।
कह कर वह फ़िर दहाड़ें मारने लगा।
लोग हैरान रह गए। एक युवक ने धीरे से उससे पूछा - पर तुम ज़िन्दगी में ऐसा क्या करना चाहते थे जो तुमने नहीं किया?
बूढ़ा आंखें पौंछते हुए बोला - न मैंने कभी ढंग का खाया, न ढंग का पहना, न कहीं घूमा फिरा... कहते कहते उसकी हिचकियां फ़िर बंध गईं।
लोग चले गए।
कुछ देर बाद वहां एक आदमी आया और एक ढकी हुई थाली रखते हुए बोला - लो बाबा, इसमें थोड़ा सा गरम खाना है, खालो।
वह आदमी पलटा ही था कि एक युवक वहां आया और एक पोटली बूढ़े के सामने रखते हुए बोला - देखो, इसमें एक नया कुर्ता पायजामा है,तुम इसे पहन लेना।
बूढ़ा हैरत से अपनी फटी पुरानी लंगोटी को देख ही रहा था कि एक नवयुवक ने साइकिल से उतरते हुए अपनी साइकिल वहां खड़ी की, और बोला - लो बाबा,तुम्हें जहां कहीं भी घूमना फिरना हो, ये साइकिल ले जाना।
बूढ़ा गदगद हो कर देख ही रहा था कि तभी एक वैन तेज़ी से आकर वहां रुकी जिसमें से एक वर्दीधारी गार्ड उतरा।
भीड़ देख कर वह बोला - हटो हटो,एक आदमी भाग कर इस तरफ आ गया है, हम उसे ढूंढने अाए हैं। किसी ने देखा है उसे?
वह पूछते पूछते रुक गया और अचानक बूढ़े को पहचान कर उसे लगभग घसीटते हुए गाड़ी में बैठाने लगा।
लोग हैरानी से देखने लगे।
एक युवक ने आगे बढ़ कर बूढ़े की पूरी राम कहानी गार्ड को सुना डाली और वे तीनों लोग गर्व से सामने आकर खड़े हो गए जिन्होंने बूढ़े की मदद की थी और उसे सामान दिया था।
गार्ड ने कुछ रुक कर सिर खुजाया और सहसा बूढ़े को हाथ पकड़ कर उतारता हुआ उन तीनों से बोला - चलो,आप तीनों इस गाड़ी में बैठो।
कुछ हिचकिचाते हुए तीनों गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर के साथ गार्ड भी बैठ गया और बूढ़े को वहीं छोड़ कर गाड़ी घूम कर चल पड़ी।
उड़ती धूल के बीच से भी बाहर खड़े लोगों की भीड़  ने गाड़ी पर लिखा नाम पढ़ लिया। वो शहर के नामी पागलखाने की गाड़ी थी, जो शहर में घूम घूम कर पागलों को पकड़ कर भर्ती करती थी। ****

3.एक सवाल
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चार बुज़ुर्ग लोग एक बगीचे में टहलते बातें करते,एक दूसरे की कहते सुनते चले जा रहे थे। उनका ध्यान बंटा तब,जब एक किशोर वय के बच्चे ने उन्हें नमस्कार किया।
चारों ने ही जवाब तो दे दिया पर वे उसे पहचाने नहीं थे। सभी ने ये सोचकर उसके अभिवादन का प्रत्युत्तर दे दिया, कि वह उनमें से किसी का परिचित होगा।
लड़का रुका और बोला - मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।पर मेरा आग्रह है कि आप सब मुझे एक एक मिनट का समय अलग अलग दें, ताकि मैं आपके मौलिक जवाब अलग अलग ही जान सकूं।
वे सहर्ष तैयार हो गए।
लड़के ने उन्हें बारी बारी से एक ओर ले जा कर सवाल किया, आप इस दुनिया में क्यों अाए हैं?
सभी उम्र दराज थे,पर ऐसा किसी ने भी कभी सोचा न था। साथ ही, बच्चे को कोई सारगर्भित जवाब देने की इच्छा भी थी।
पहले ने कहा - मुझे ईश्वर ने भेजा है।
दूसरा बोला - माता पिता की इच्छा के कारण मेरा जन्म हुआ।
तीसरे का उत्तर था - अपने देश की सेवा करने को मैंने जन्म लिया।
चौथा कहने लगा- मेरे भाग्य में जीवन सुख था।
बच्चे ने सभी को धन्यवाद दिया और जाने लगा।
लेकिन उन चारों ने ही महसूस किया कि बच्चा उनकी बात से ख़ुश नहीं है,क्योंकि वह कुछ परेशान सा दिख रहा था।
वे बोले- बेटा,तुम ये तो बताओ, कि ये गूढ़ प्रश्न तुमने क्यों किया,और अब तुम इतने दुःखी से क्यों हो?
बच्चा बोला- मुझे तो अपने होमवर्क में इस प्रश्न का उत्तर लिखना था,पर पार्क बंद होने का समय हो गया, अब चौकीदार ताला लगा कर चला गया होगा।आप सबको ऊंची दीवार कूद कर वापस जाना होगा।
वे चारों हड़बड़ा कर दरवाज़े की ओर दौड़े। पीछे से बच्चे की आवाज़ आई- अंकल, संभल कर जाना, बाहर मेरा कुत्ता शेरू होगा। ****


 4. लाभ
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 एक शहर था । शहर में दो तालाब थे, एक बीचों बीच स्थित था और दूसरा नगर के एक बाहरी किनारे पर। दोनों ही वर्षा पर अवलंबित थे। कभी लबालब भर जाते, कभी रीते रह जाते।
एक दिन शहर के शासक के पास एक व्यक्ति मिलने पहुंचा। वह शासक से बोला - यदि आप शहर में दो की जगह एक ही सरोवर रहने दें तो सबको लाभ ही लाभ हो जाएगा।
- वो कैसे? शासक ने पूछा।
उस व्यक्ति ने समझाया- दोनों तालाब उथले और कम भरे हुए रहने से जल्दी सूख जाते हैं। आप एक तालाब से मिट्टी लेकर दूसरे को समतल करा दें। गहरा होने पर तालाब में खूब पानी भरेगा। दूसरी जगह समतल होने पर वहां प्लॉट्स बनाइए, लाभ ही लाभ। मिट्टी खोद कर दूसरी जगह ले जाने पर मजदूरों- ठेकेदारों को लाभ। पानी को पाइप लाइन से ले जाने पर इंजीनियर से लेकर लेबर तक को लाभ। रोज़गार के प्रचुर साधन होने से चारों तरफ ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
काम आरंभ हो गया। सचमुच शहर में विकास की हलचल और राजकोष में धन की आमद दिखाई देने लगी।
शहर के कवि उन्नति का गान करने लगे, बुद्धिजीवी वाह वाह करने लगे!
लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि कविगण सत्ता को न सराहें,ये पतन और चाटुकारिता की निशानी है।
कवि तत्काल सतर्क हो गए, उन्होंने तुरंत ख़िलाफत का मोर्चा संभाल लिया। वे अब गहरे हुए तालाब के बोझ पर कविता लिखते... समतल हुए तालाब के विलोप पर ग़ज़ल गाते... मिट्टी ढोते श्रमिक के पसीने पर छंद कहते...धनी होते जा रहे इंजीनियर और ठेकेदारों की अमानुषिकता पर गीत रचते...शासक की क्रूरता पर मुक्तक सुनाते... क्रांति से दुनिया बदल डालने का आह्वान करते! ****

5.हमला
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जंगल में चोरी छिपे लकड़ी काटने गया एक आदमी रास्ता भटक गया। काफ़ी कोशिशें कीं, किन्तु उसे राह नहीं मिली। मजबूरन उसे कुछ दिन जंगल में ही काटने पड़े।
खाने को जंगली फल मिल जाते थे, पीने को झरनों का पानी, काम कोई था नहीं, अतः वह दिन भर इधर उधर भटकता।
एक दिन एक पेड़ के तने से पीठ टिकाए बैठा वह आराम से सामने टीले पर उछल कूद करते चूहों को देख रहा था कि अचानक उसे कुछ सूझा।वह कुछ दूरी पर घास खा रहे खरगोशों के पास पहुंचा और उनसे बोला - तुम्हें पता है वो सामने वाला टीला वर्षों पूर्व तुम्हारे पूर्वजों का था। एक रात चूहों ने उस पर हमला करके धोखे से तुम्हारे पूर्वजों को भगा दिया और उस पर कब्ज़ा कर लिया।
खरगोश सोच में पड़ गए।एक खरगोश ने कहा- क्या फ़र्क पड़ता है,अब हम यहां आ गए।
आदमी बोला- ऐसे ही चलता रहा तो वे तुम्हें यहां से भी खदेड़ देंगे।और तब तुम्हारे पास दर दर भटकने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा।
- तो हम क्या करें? एक भयभीत खरगोश ने कहा।
- करना क्या है,तुम उनसे ज़्यादा ताकतवर हो, उन्हें वहां से भगा दो और अपनी जगह वापस लो। आदमी ने सलाह दी।
खरगोशों ने उसी रात हमले की योजना बना डाली।
उधर शाम ढले आदमी चूहों के पास गया और बोला- मैंने आज खरगोशों की बातें छिप कर सुनी हैं,वे तुम्हें यहां से मार भगाने की योजना बना रहे हैं।
- मगर क्यों? हमने उनका क्या बिगाड़ा है? एक चूहा बोला।
- मैं क्या जानूं,मगर मैंने तुम्हें सचेत कर दिया है।तुम पहले ही उन पर हमला कर दो,चाहो तो मेरे ठिकाने से थोड़ी आग लेलो, मैं तो खाना पका ही चुका हूं।उनकी बस्ती में घास ही घास है, ज़रा सी आग से लपटें उठने लगेंगी।कह कर आदमी नदी किनारे टहलने चला गया।
रात को चूहों और खरगोशों के चीखने चिल्लाने के बीच जंगल में भयानक आग लगी,जिसकी लपटें दूर दूर तक दिखाई दीं।
संयोग से आग के उजाले में आदमी को अपना रास्ता दिखाई दे गया।वह अपने गांव लौट गया।मगर वहां जाकर उसने देखा कि उसके घरवालों ने उसके गुम हो जाने की रपट लिखा दी थी।अब उसके दिखाई देते ही सैकड़ों कैमरे उसके पीछे लग गए और उसकी तस्वीरें धड़ाधड़ अखबारों में छपने लगीं।वह देखते देखते लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया।
तभी देश में आम चुनाव की घोषणा हो गई और अनुभवी आला कमान ने तय किया कि लोकप्रिय चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा। ****

 6.पैरों पर खड़े श्रमिक
     
एक बार सुदूर गांव के एक दुरूह से खेत पर एक वृद्ध औरत काम कर रही थी।
वह सुबह जब खेत पर आई थी तो उसने भिनसारे ही अपने चौदह साल के लड़के को यह कह कर घर से प्रस्थान किया कि वह जल्दी जा रही है क्योंकि खेत पर बहुत काम है।
लड़के ने उसके चले जाने के बाद नहा- धोकर चूल्हे पर रोटी बनाई और एक कपड़े की पोटली में चार मोटी रोटी अपने लिए तथा दो रोटी अपनी मां के लिए लेकर वह खेत की ओर चल पड़ा।
जब वह खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी मां ने धूप में पसीना बहाते हुए गोबर के उन सब उपलों के ढेर को उठा कर किनारे के बबूल के पेड़ के नीचे जमा कर दिया है जिन्हें वह कल उसी पेड़ के नीचे से उठा कर खाद के रूप में पूरे खेत में फ़ैला कर गया था। उसे मां पर क्रोध आया जिसने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
वह बाल्टी उठा कर पीने का पानी भर लाने के लिए पास के कुएं पर चला गया।
कुएं की जगत पर उसने कपड़े की एक पोटली टंगी देखी जिसमें सुबह - सुबह सूर्योदय से भी पहले उठ कर मां द्वारा बनाई गई रोटियां थीं।
मां ने उससे पूछा कि क्या वह उन रोटियों को खा आया है,जो मां ने सुबह उसके लिए बना कर रसोई के छींके पर टांग दी थीं?
लड़के के पास किसी गाबदू की तरह मां को देखे जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उसने दोबारा रोटी बना कर मां की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
एक दूसरे से नाराज़ होकर शब्दों के मितव्ययी मां - बेटा अब एक साथ बैठ कर प्याज़ और रोटी खा रहे थे।***

7.घेराव 
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उनकी उम्र अट्ठासी को पार कर रही थी। दैनिक कार्यों के अलावा बिस्तर पर ही रहते। थोड़ी लिखा -पढ़ी और देखभाल के लिए डॉक्टर बेटे ने उनके लिए एक सहायक रख छोड़ा था जो सुबह शाम अा जाता।
वे खाना खाकर लेटे ही थे कि सहायक लड़के ने कहा- बाउजी !
- क्या है ? वे बोले। आवाज़ में अब भी दमखम था।
- फ़ोन आया था... लड़के ने कहा।
- फ़ोन तो दिनभर बजता ही रहता है, उठा के रख दिया कर चोंगा, माथा भिन्ना जाता है। वे बुदबुदाए।
- जी, वो वर्माजी का था। लड़के ने किसी अपराधी की तरह कहा।
- उसे और काम ही क्या है, दिनभर फ़ोन पर ही टंगा रहता है। उन्होंने उपेक्षा से पैर फैलाए।
- जी वो कह रहे थे कि वो आपका सम्मान करेंगे अपने कार्यक्रम में... लड़के ने जैसे डरते हुए कहा।
- क्या !!! मेरा सम्मान? उनके चेहरे पर से जैसे कोई लहर गुज़र गई। वे उठकर अधलेटे से हो गए।
-जी वो शाम को आयेंगे। लड़का अब कुछ संतुष्ट सा बोला।
- पूछ - पूछ, ये भी बेचारा अच्छे कामों में लगा ही रहता है। वो भूल - भाल जाएगा। तू फ़ोन कर उसे। ऐसा कर, उसे खाने पे बुला ले शाम को! वे चहके।
-जी,कह कर लड़का फ़ोन मिलाने लगा।
-सुन, रबड़ी - जलेबी तू बाज़ार से ले आना, पूड़ी - कचौड़ी ये बना लेगी घर में, कहदे उससे जाकर। वे जैसे किसी तैयारी में व्यस्त हो गए।
-जी, कह दूंगा माताजी से...
- अरे अभी कह दे जाकर, वरना वो चार बजे से ही खिचड़ी बना कर बैठ जाएगी टीवी के सामने। उन्होंने अधीर होकर कहा।
लड़का जाने लगा। पीछे से फ़िर उनकी आवाज़ आई- सुन, उसे शॉल तू दिलवा देना, खादी भंडार से, वरना वो कटले से उठा लाएगा सस्ता सा।
लड़के ने मानो उन्हें घूर कर देखा। वे सकपका गए, बोले- अरे वो कंजूस है न थोड़ा !
लड़का जाने लगा। तभी पीछे से वे फ़िर बोले- सुन, फ़ोटो है मेरी !
-क्यों ? लड़का जाते - जाते रुक गया।
-अरे अख़बार में देनी पड़ेगी न, खबर के साथ...
जी, ढूंढ लूंगा, लड़का लापरवाही से बोला।
- देख ले, अब तेरी ज़िम्मेदारी है उसे घेरने की ! उन्होंने मानो बॉल लड़के के पाले में फेंकते हुए कहा। *****

8.निष्कर्ष
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एक बड़े नेता ने अपने राज्य में शराब बंदी करवाने से पूर्व लोगों की राय जानने की इच्छा जाहिर की, कि आखिर लोग शराब क्यों पीते हैं।
उन्होंने कुछ शोधकर्ताओं को इस काम के लिए भेजा । वो  एक मयखाने में जाकर वहां बैठे लोगों से ये सवाल पूछने लगे कि आप शराब क्यों पीते हैं?
सवाल एक था,पर जवाब अलग अलग मिले-
एक ने कहा,शराब पीकर मैं वही हो जाता हूं जो मैं वास्तव में हूं।
दूसरा बोला- शराब पीकर मुझे लगता है कि मैं बदल गया।
तीसरे ने बताया- शराब मुझे उसकी याद दिलाती है,जो मैंने खो दिया।
चौथे का उत्तर था,शराब उसे भुला देती है जो अब मेरा नहीं है।
पांचवे ने कहा- शराब मेरा नशा उतार देती है।
छठा कहने लगा- शराब से मेरी थकान उतर जाती है।
सातवें ने उत्तर दिया कि शराब पीकर मुझे लगता है,जैसे गालिब, मीर, खैयाम, बच्चन सब मेरी ही बात कर रहे हैं।
जब शोधकर्ताओं ने जाकर नेताजी को सब बताया तो उन्होंने अपने दफ़्तर पहुंच कर दो कागज़ों पर हस्ताक्षर किए - एक राज्य में शराब बंदी लागू करने का आदेश था, दूसरे में उन नए आवेदकों के नाम थे जिन्हें शराब के ठेके दिए गए थे। ****

9. वास्तविकता
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दो बच्चे एक पेड़ के नीचे पड़े मिट्टी के ढेर में खेल रहे थे। कभी वे कोई घर जैसी इमारत बना लेते तो कभी उसे तोड़कर मिट्टी की गाड़ी बना लेते। जल्दी ही दोनों ऊब गए। पर शाम का धुंधलका अभी हुआ नहीं था,इसलिए इतनी जल्दी वे घर लौटने को भी तैयार नहीं थे दोनों।
तभी उधर से एक बूढ़ा फ़कीर आ निकला। वह बेहद अशक्त और कृशकाय था। उससे ठीक से चला भी न जाता था। बच्चे बहुत ध्यान से उसे देखने लगे। बच्चों को प्यार से देखता हुआ वो उस ओर ही आने लगा। 
बच्चे पहले तो कौतूहल से देखते रहे किन्तु कुछ नज़दीक आने पर उन्होंने देखा कि फ़कीर की शक्ल खासी डरावनी है। बच्चे कुछ भयभीत हुए,पर इतने जर्जर बूढ़े से खौफ खाने की कोई वजह नहीं थी।
बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उनके पास ही आ बैठा। उसका दम भी कुछ फूलता सा लगता था। सांस तेज़ी से चल रही थी।
उसे अपनी तुलना में बिल्कुल निरीह पाकर बच्चों का हौसला बढ़ा।एक बच्चा बोला- बाबा, आप बहुत थके से लगते हो,हम आपके लिए कुछ खाने पीने का सामान लाएं?
बाबा ने उत्तर दिया- बेटा मुझे ज़िन्दगी में जो भी खाना पीना था वो मैं खा चुका,अब तो तुम मुझ पर एक उपकार कर दो,जिस मिट्टी के ढेर में तुम खेल रहे हो, उसी में मेरी एक मूरत बना दो।
- क्यों बाबा, उससे क्या होगा? बच्चों ने उत्सुकता से पूछा।
- बेटा जब मैं दुनिया में नहीं रहूंगा तो इधर से गुजरता हुआ कोई टीवी वाला मेरी तस्वीर खींच लेगा,और जब वो फोटो टीवी पर दिखा देगा तो मेरे सभी जानने वालों को कम से कम ये तो पता चलेगा कि मैं अब इस दुनिया में नहीं रहा।
- ठीक है बाबा, कह कर एक बच्चा किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह मिट्टी से बाबा का बुत बनाने में जुट गया।
दूसरा बच्चा भी उसकी नकल करता हुआ मूरत बनाने लगा।
बाबा ने आश्चर्य मिश्रित खुशी से कहा - ओह,तुम भी बना रहे हो, तो मेरे दो दो बुत!
- नहीं बाबा, मैं तो एक खूबसूरत लड़की की मूर्ति बना रहा हूं। दूसरा बच्चा बोला।
- क्यों? बाबा हैरान था।
- इसे आपकी मूर्ति के पास रख देंगे। बच्चा बोला।
- मगर किसलिए? बाबा बोला।
- अरे,तभी तो कोई कैमरे वाला आपकी तरफ़ देखेगा, नहीं तो कौन ध्यान देगा ! बच्चे ने लापरवाही से कहा।***

10 . लोग पत्थर फेंकते हैं 
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एक नन्हे से पिल्ले ने,जिसने अभी कुछ महीने पहले ही दुनिया देखी थी,अपनी माँ से जाकर कहा-"लोग पत्थर फेंकते हैं". 
कुतिया क्रोध से तमतमा गई. बोली- उन्हें मेरे सामने आने दे, तेज़ दांतों से काट कर पैर चीर कर रख दूँगी. तू वहां मत जा, यहीं खेल. वे होते ही शरारती हैं. 
पिल्ला अचम्भे से बोला- ओह माँ, तुम कैसे सोचती हो? मैं तो गली के नुक्कड़ पर घूमने गया था. वहां मजदूर लड़के ट्रक से पत्थर खाली कर रहे हैं. वे पत्थर उठा-उठा कर नीचे सड़क पर फेंकते हैं. मैं तो खड़ा-खड़ा उनका पसीना देख रहा था. अब हमारी सड़क भी पक्की बन जाएगी. 
कुतिया ने इधर-उधर देखा और झुक कर पैर से कान खुजाने लगी. ****

11. दो रुपए का बाट 
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घर पास ही था,मधु प्रणव से बोली- चल रिक्शा कर लेते हैं,खड़ा भी है सामने!
- इतनी सी दूर के पंद्रह रुपए? मधु ने उलाहने के स्वर में कहा। - बारह देंगे...कहते कहते उसके जवाब का इंतजार किए बगैर अब दोनों रिक्शा में सवार थे।
लालबत्ती पर भारी ट्रैफिक में फंसा रिक्शा रुका, तो प्रणव ने कहा- हे भगवान, ऐसे तूफानी ट्रैफिक में रिक्शा चलाते ही क्यों हैं लोग?
उसकी बात का जवाब मधु की जगह खुद रिक्शावाले ने दिया, बोला - सरकार ने रोज़गार मुहैया कराने के नाम पर दिया है, आप लोग समझते हैं कि सरकार आरक्षण देकर हमें अफ़सर ही बनाती है...
हरीबत्ती होते ही कान फोड़ू भौंपुओं में उसकी आवाज़ दब कर रह गई।
मधु ने उतरते ही अपना पर्स टटोला और दस का सिक्का पकड़ाते हुए बोली - अब दो रुपया छुट्टा कहां होगा, रख लो यही।
रिक्शा वाला एकाएक गरम हुआ। बोल पड़ा - छुट्टा मैं देता हूं, निकालो क्या है, बीस, पचास, सौ ...? 
- बाप रे ! देखे इन लोगों के तेवर? सरकार और मुफ्त बांट - बांट कर इन्हें सिर चढ़ा रही है। देखो कितनी बदतमीजी से बोल रहा है। छह हज़ार की तो साड़ी पहन रखी है मैंने, ज़रा भी लिहाज़ नहीं है...
प्रणव ने मन में कहा छह हज़ार की साड़ी पर उसके दो रुपए का बाट रखा है न, इसलिए लहरा नहीं पाई।
रिक्शा वाला पचास रुपए का छुट्टा गिन कर दे रहा था। ****
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क्रमांक - 02

जन्म तिथि:- 4 मार्च 1951
शिक्षा : एम. एस. सी ( जूलोजी ) , बी. एड .
विधा :  कविता , लघुकथा , कहानी , हाइकु  लेखन इत्यादि
सम्प्रति  : स्वतंत्र लेखन

उद्देश्य : समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं विसंगतियों को अपने लेखन से दूर करने का एक छोटा सा प्रयास ।

विदेश यात्रा :-अमेरिका , इंग्लैंड , पेरिस , आस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड , नीदरलैंड  आदि

पुस्तकें :-

1 धूप के रंग -कविता संग्रह(2014)
2  छोटी सी आशा - लघुकथा संग्रह (2015)
3   सुरमई उजाला -काव्य संग्रह (2018 )
4  चाहत का आकाश -कविता संग्रह  (2020)
5  शीशे की दीवार -कहानी संग्रह   (2021)
6  पिघलता मन-  कविता संग्रह, 
7  क्षितिज के उजाले -लघुकथा संग्रह (अमेजन किंडल पर )
8  केरल सरकार द्वारा मेरी बाल कहानी 'बिखरते सपने' मलयालम में अनुवादित होकर बाल कहानी संग्रह में प्रकाशित । (2018)
             
प्रसारण : -    
      
जयपुर आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारण
             
पुरस्कार एवं  सम्मान:-

- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जयपुर 2015में कविता’आक्रोश’पुरस्कृत                                                  

  - कुमुद टिक्कु लघुकथा प्रतियोगिता  2015 में लघुकथा ’वसीयत’पुरस्कृत    
- म ग स म द्वारा वर्ष 2015 में  लाल बहादुर शास्त्री पुरस्कार
  - अखिल भारतीय साहित्य परिषद जयपुर 2016 में लघुकथा ’गृह प्रवेश’
    - जगमग दीप ज्योति द्वारा वर्ष 2016 में अ .भा.साहित्यकार सम्मान
- कुमुद टिक्कु कहानी प्रतियोगिता वर्ष 2016 में कहानी ’आखरी फैसला’ पुरस्कृत
-  शब्द निष्ठा द्वारा कविता के लिये वर्ष 2016 में पुरस्कार
- अ.भा. राष्ट्र समर्पण द्वारा 2017 में बाल कहानी ’अंधेरे कोनों के उजाले " पुरस्कृत
- शब्द निष्ठा लघुकथा प्रतियोगिता वर्ष 2017 में ’बाबूजी का श्राद्ध’ पुरस्कृत
-  कुमुद टिक्कु कहानी प्रतियोगिता वर्ष 2017 में कहानी ’सोने का कड़ा ’ पुरस्कृत
-  आचार्य महाप्रज्ञ कविता संग्रह में कविता प्रकाशित एवं (ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड)से सम्मानित  ।
           
  पता : 140 , न्यु कालोनी , वाल स्ट्रीट होटल के पास,
एम.आई.रोड., पाँच बत्ती ,  जयपुर - राजस्थान 302001


 1. अन्तर्द्वन्द
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           कालेज के दिनों में राजेश एक होनहार विद्यार्थी था । उसने बी.ए.की डिग्री भी अच्छे नम्बरों से हासिल कर ली थी । घर की आर्थिक स्थिती कमजोर होने के कारण गत दो वर्षों से वह अपनी पढ़ाई जारी ना करके लगातार नौकरी के लिये कनिष्ट लिपिकों में भर्ती के लिये आवेदन पत्र भर कर प्रतियोगिता परिक्षा में बैठ रहा था । परन्तु एक ओर जहाँ हजारों परिक्षार्थी इस परिक्षा में प्रतियोगी थे, वहीं सामान्य वर्ग के उपलब्ध पद भी आरक्षित पदों की तुलना में सीमित ही थे । यही कारण था कि परिक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने पर भी उसका चयन अभी तक नहीं हो सका था ।
             इस बार भी होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में यद्धपि उसने मेहनत कर के अच्छी तैय्यारी कर ली थी परन्तु भर्ती के लिये उपलब्ध पद आरक्षित पदों के कारण सीमित थे । यही राजेश के लिये मायूसी का कारण था । इन्ही दिनों शहर में आरक्षण विरोधी समर्थकों की गतिविधियाँ भी पूरे जोर पर थीं । उसके लिये नित्य जुलूस आदि भी निकाले जा रहे थे । ऐसा ही एक जुलूस जब राजेश के घर के सामने से निकल रहा था तब वह सोचने पर मजबूर हो गया कि यह परीक्षा दे या जुलूस में शामिल होकर आमरण अनशन पर बैठ जाये ? ****
                
2.शराब बन्दी
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      श्री सुमेर सिंह जी राजस्थान में अपने ही गाँव के सरपंच चुने गये । उन्होंने अपनी पैठ बनाने के लिये तथा गाँवों के विकास हेतु रात दिन बहुत कार्य किया । गाँव के लोगों में शिक्षा एवं साफ-सफाई के प्रति जागरुकता पैदा करने हेतु कई अभियान चलाये गये । ग्राम वासियों के चेहरों पर संतुष्टि का भाव साफ झलक रहा था ।
       इधर गाँव की महिलाएं गाँव के लोगों की शराब की लत से बहुत परेशान थीं , सो वे सभी एकत्रित होकर पंचायत में अपनी समस्या लेकर पहुँचीं । सुमेर सिंह जी ने ध्यान पूर्वक उनकी समस्या सुनकर , उन्हें पूर्ण रूप से आश्वस्त किया ।उन्होंने शराब बन्दी को लेकर एक मुहिम चलाई ।आस-पास के सभी गाँव तथा ढ़ाणियों के लोगों को एकत्रित कर बहुत दिनों तक प्रभावशाली भाषण दिये और उन्हें पाबन्द भी किया ।
       देशी शराब के ठेके भी बन्द करवा दिये गये । इस प्रकार समझाइश का असर  गाँव वालों पर काफ़ी हद तक  दिखाई दिया । ग्रामीण महिलाओं ने प्रसन्न होकर सुमेर सिंह जी को धन्यवाद ज्ञापित किया । सुमेर सिंह जी ने  चैन की साँस ली ।
       फिर उन्होंने अपने सेवक सत्य प्रकाश को बुलाकर कहा,"भाई सत्तू ! हूं तो गाँव मा भाषण देतो देतो घणों थाक ग्यो । शराब बन्दी रे खातिर गाँव का लोगाँ ने समझाता समझाता म्हारो तो जीव निकल ग्यो ।अठे तो इब मिलसी कोनी,तू शहर जार दारू की बोतलां लेर आ । देख जँवाई सा भी आरिया है । आपां आज पार्टी करश्याँ ।"
सेवक तुरन्त जीप लेकर शहर की ओर चल दिया ।  ****   
                                            
3.वसीयत
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          आलोक नाथ जी रिटायर होने के बाद अपने कमरे तक ही सीमित होकर रह गये थे । रिटायरमेंट पर जो थोड़ा बहुत  पैसा मिला था ,वह घर की मरम्मत में और बेटी की शादी में खत्म हो गया । पता नहीं क्यों अपने ही घर में वे बेगाने से हो गये  । उन्हें महसूस होने लगा था कि वे अब अपने बेटे बहुओं पर बोझ हो गये थे । वे चाहते थे कि उनकी वजह से घर में कोई झगड़ा ना हो,सभी शान्ति पूर्वक रहें ।
          उम्र के इस पड़ाव पर अब नौकरी भी नहीं रही और शरीर भी थकने लगा था । ऐसे में पत्नी भी बिमारी की वजह से उनका साथ छोड़ कर चल बसीं ।अब ये अकेलापन उन्हें निरीह बना रहा था । उन्हें लगता था वे अब ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहेंगे । एक दिन अपने कमरे में बैठे हुए वे कुछ लिख रहे थे । तभी बड़े बेटे ने पूछा,"पिता जी आप यह क्या लिख रहे हैं?"
       उन्होंने कहा,"मैं अपने बेटे - पोतों के लिये वसीयत लिख रहा हूँ।"
       बेटे ने मज़ाक बनाते हुए कहा ," पिता जी आपके पास है ही क्या , जो आप वसीयत लिख रहे हैं ?"
             उन्होंने एक लम्बी साँस भरी और गर्व से कहने लगे," सच कहा बेटा ! धन दौलत,जमीन जायदाद ना सही ,फ़िर भी मेरे पास देने को एक बहुत कीमती पोटली है जिसमें  जिन्दगी भर की कमाई हुई ईमानदारी,सच बोलने की हिम्मत,कर्तव्य परायणता है, जिसे मैने आज भी सम्भाल कर रखा है । वही संस्कार के रूप में अपने बेटे और पोतों में बराबर -बराबर बाँट देना चाहता हूँ ।"
            यह कहते हुए उनका दिल भर आया था । ****
                                  
4. मानवता
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         मृदुला की शादी की तैय्यारियाँ चल रहीं थीं । उसी सिलसिले में खरीददारी के लिये अक्सर ही उसे माँ और चाची के साथ बाजार जाना होता था । उन्हें आते-आते शाम तो कभी कभी रात भी हो जाया करती थी ।
         एक दिन वे लोग संध्या समय बाजार से लौट रहे थे । तभी पाँच बत्ती के चौराहे पर अचानक उनके सामने ही एक दुर्घटना घटी । एक तरफ से तेजी से आते हुए एक छोटे ट्रक ने दूसरी तरफ से एक स्कूटी पर आ रही एक लड़की को टक्कर मार दी । लड़की करीब उन्नीस-बीस की होगी, उछलकर दूर जा गिरी । हेलमेट होने की वजह से सिर तो बच गया परन्तु उसे बहुत चोट लगी थी । वह उठ नहीं पा रही थी । लगता था,पाँव में फ़्रेक्चर हो गया था । वह दर्द से कराह रही थी । उसे तुरन्त चिकित्सा सहायता की आवश्यकता थी । उसके चारों तरफ भीड़ जमा हो गई थी । कोई उसकी सहयता के लिये आगे नहीं आ रहा था ।
        मृदुला का मन विचलित हो रहा था । वह उसकी सहायता के लिये आगे बढ़ने लगी तो चाची ने तुरन्त उसका हाथ कसकर पकड़ लिया ।
  कहने लगी, " क्या कर रही हो मुन्नी ? तुम्हारी शादी होने वाली है , बेकार ही चक्कर में नहीं पड़ना हमें । तुम्हारे ससुराल वाले क्या कहेंगे ? जल्दी चलो यहाँ से । "
        वह अनमनी सी घर तो चली गई परन्तु उसका अन्तर्मन उसे धिक्कार रहा था । दूसरे ही क्षण वह अपना स्कूटर उठाकर पाँचबत्ती चौराहे की तरफ चल दी । यही सोचकर कि अभी देर नहीं हुई । *****

5. बाबूजी का श्राद्ध        
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         श्राद्ध पक्ष चल रहे थे । घर में बाबूजी का ग्यारस का श्राद्ध निकालना था । दो चार दिन पहिले ही पंडित जी को न्योता दे दिया था । उस दिन सुबह जब याद दिलाने के लिये उन्हें फोन किया तो, वे कहने लगे,"क्या करूँ मुझे तो बिल्कुल समय नहीं है , दूसरी जगह से भी न्योता है,पहिले वहाँ जाऊँगा । फिर वहीं से आफिस चला जाऊँगा । आपके यहाँ तो शाम को ही आ पाऊँगा " ।
      क्या करते ? आजकल पंडित मिलते कहाँ हैं ? सो मानना पड़ा ।
       फिर थोड़ी देर में उन्ही का फोन आया बोले,"एक बात और कहनी थी आपसे, खाने का इन्तजाम टेबिल-कुर्सी पर ही कीजियेगा,मैं नीचे बैठ कर खाना नहीं खाता हूँ और दक्षिणा में कम से कम सौ रुपये के साथ पाँच वस्त्र भी मंगवा लीजियेगा । यदि आपको मंजूर हो तो मुझे आफ़िस में ही फोन करके बता देना । "
        हम सभी का सिर चकरा गया । ये पंडित जी आ रहे थे या कोई अफसर ? सभी सोच में पड़ गये कि क्या करें ? श्राद्ध का खाना तो हम सुबह ही खिलाना चाह रहे थे । क्योंकि , माँ का कहना था ," जब तक श्राद्ध निकाल कर पंडित जी को भोजन ना करा दें घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता है ,ऐसी परम्परा है "।
        थोड़ी देर में देखा कि घर के द्वार पर एक दीन-हीन बूढ़ा आदमी निढ़ाल अवस्था में बैठा था और बुद बुदा रहा था-"मैं बहुत भूखा हूँ--,कई दिनों से ठीक से खाना भी नसीब नहीं हुआ है --,कुछ खाने को देदो ।"
       उस पर बड़ी दया आ गयी । उसे घर के अहाते में बैठा कर आग्रह पूर्वक खाना खिलाया । वह भरपेट खाना खाकर और पानी पीकर ,ढ़ेर सारी आशीष देता हुआ चला गया । उस दिन लगा आज बाबूजी का श्राद्ध ठीक से सम्पन्न हुआ । ****
                                                               
6.परित्यक्ता
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          जब से माही के पति ने उसे तलाक दिया है,सामने वाले वर्मा जी बड़े मेहरबान हो गये हैं । कभी उसके बेटे शंटू के लिये चाकलेट लाते हैं,कभी फोन करके खैरियत पूछते  हैं । आते-जाते बात करने की कोशिश करते रहते हैं । उसे यह सब अच्छा नहीं लगता । अकेले में बेटे की परवरिश करना उसके लिये मुश्किल होता जा रहा था । ऐसे में उसे कभी शंटू के पापा पर गुस्सा आता तो कभी खुद पर रोष हो आता । उसका कहना था कि वह तो अपनी गृहस्थी में इतनी व्यस्त थी कि समझ ही ना सकी कब उसके पति उससे इतने उदासीन हो गये ? ना जाने उस सहकर्मी मोहिनी में ,ऐसा क्या नज़र आया जो उन्होने पलटकर उनकी ओर एक बार भी नहीं देखा और उन्हें छोड़ कर चले गये ।
           उसे पुरुष जाति से ही नफ़रत सी होने लगी थी । वह सोचती रहती कि ये पुरुष भी अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी स्त्रियों पर ललचाई नज़र क्यों रखते हैं । वह समझ नही पा रही थी कि क्या करे ? बस इन्तज़ार था कि शंटू कब बड़ा होगा और उसका सहारा बनेगा ? परन्तु मन में एक डर भी था कि बड़ा होकर यह बच्चा भी तो एक पुरुष ही बनेगा । तब---?
              परन्तु वह घबराई नही ,उसने मन में दृढ़ संकल्प लिया कि वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार देगी और उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं आने देगी । ****
                                   
7. कैसी बदनामी
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   "यशोदा बाई आज काम पर देर से कैसे आई ?"रमा ने पूछा ।
वह बहुत दुखी लग रही थी । वहीं दरवाजे पर बैठ गई और भरे गले से बताने लगी ,"आपसे क्या छुपा है मेम साब ? आपतो सब जानते ही हो,कैसे मैने घर-घर झाडू-पोचा और बरतन करके अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया ? पढ़ाया लिखाया । कितनी परेशानियों का सामना किया । कैसे बच्चों की शादियाँ भी करीं ?"
        बैचेन होकर रमा ने फिर पूछा,"अब हुआ क्या ,ये तो बता ?"
       "मेरी बड़ी लड़की के साथ धोखा हो गया ,मेम साब ।"
       रमा ने उसे ढ़ाँढ़स बँधाते हुए कहा,"अब रोना बंद कर और विस्तार से बता क्या हुआ "?
      "हमें तो कहा था ,लड़का पढ़ा-लिखा है और नौकरी भी करता है । परन्तु अब जाकर पता चला कि वो पढ़ा-लिखा भी नहीं है और कोई नौकरी भी नहीं करता है ।यूँ ही शहर में आवारा गर्दी करता फिरता है ।"
       उत्सुकतावश रमा ने पूछा,"तूने क्या सोचा,क्या करेगी?"
      वह बोली ,"मैने अपने समाज में बात की थी । उनसे मदद की भी गुहार लगाई थी । पर मेम साब कोई कुछ नहीं बोला ।कहते हैं कि अब तो शादी कर दी ,कुछ नहीं हो सकता । लड़का पढ़ा नहीं तो क्या हुआ ? उसे तो ससुराल में ही जीवन बिताना होगा ।"
     "मेम साब मेरा तो खून खौल गया । ऐसे घर में अपनी बेटी को कैसे छोड़ दूँ ।वो तो मेरी बेटी को मारता भी है । कभी जान से ही मार दिया तो ?"
    "  मैं उनमें से नहीं हूँ जो बदनामी के डर से बेटी को तलाक नहीं दिलाऊँ। उस समाज से तो मुझे मेरी बेटी ज्यादा प्यारी है । पढ़ी-लिखी है खुद कमा कर खा लेगी ।" ****
                                                            
8.कौन पागल है ?
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     वो जलन्धर जाने वाली बस थी, सवारियों से खचाखच भरी हुई । बैठे हुये लोगों पर खड़े हुए लोगों के बोझ इस कदर थे कि वे नज़र ही नहीं आ रहे थे । उन खड़े हुए लोगों के बीच में एक बूढा आदमी भी था । वह बहुत ही कमजोर, झुर्रियों भरा चेहरा लिये लोगों के बीच में धँसा हुवा खड़ा था ।
   जमाने भर का आक्रोश और कुंठायें उसके चेहरे से साफ झलक रहे थे । चढते उतरते लोगों के रेले उसे ढकेलते-पेलते चले जा रहे थे । वह कभी दर्द से कराह उठता था तो कभी कहने लगता था ,"ऐ जमाना ! खाते ते पड़ गया है जी ।"
सारे कहते ,"हाँ जी ।"
"मैं कहँदा हूँ,जे अँग्रेज ताँ चले गये ताँ झोड़ गये अपणी अँग्रेजियत । ओई सबनूँ ले डूबी है ।"
सारे कहते ,"हाँ जी ।"
"ऐ पढ़े लिखे लोग जो हो गये हैं,सीटन तें बैठन वाले,सानूँ कहँदे हैं,  ये तो बुद्धू  है बुद्धू ।"
बस में बैठे सभी लोग हँसते रहे,उसका मजाक बनाते रहे और उसे पागल करार देते रहे । थोड़ी देर में वह मन के गुस्से को भुला कर गाने लगा ।
"मुझको यारों माफ करना मैं नशे में हूँ ।"
जब किसी का पाँव उस पर पड़ जाता तो वो तिलमिला उठता था । कहता," मैं ताँ बीमार हूँ जी,मैनूँ नां रोंदो ।"
उसे वाकई में ज़्वर था । किसी ने कहा ,"बेचारा समय का सताया हुवा है । कभी इन्ही रोड़वेज की बसों पर ड्राइवर था । रोज हजारों सवारियों को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचाता था। आज उसे ही बस में बैठने की जगह नहीं मिलती ।"
इस बार जब बस रुकी तो वह सबको दुआऐं देता हुआ उतर गया।
"सब रहो खुश, अब हम ताँ चलते हैं जी ।" उसकी आवाज का दर्द बड़ी देर तक झकझोरता रहा,जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया, कौन पागल है,वह या यह जमाना ? ****
                             
9. समझौता
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          मेरे एक सहकर्मी थे,मि.चौधरी । वे आदतन दादागिरि और नेतागिरि से बाज़ नहीं आते थे । आफ़िस में कुछ काम-वाम तो करते नहीं थे और बैठे-बैठे अपनी मूंछों पर ताव दिया करते थे । एक दिन उनके ही एक साथी रमेश जी ने उनके पास जाकर धीमे से  कहा," चौधरी जी मूछों पर इतने ताव ना दिया करो "।
  वे चौंक कर बोले ," क्यों भला? क्यों ना दूँ?"
   " अरे भाई ! समझा करो । तुम्हारा इसमें ही भला है कि इनको नीची कर लो । बड़ी समझदारी की बात कह रहा हूँ । ज़माना नहीं रहा । कल को किसी ने शिकायत कर दी तो...?"
    " तू भी क्या बात करता है ? मेरी मूछें तो यों ही रहेंगी । रही ज़माने की बात,तो ज़माना तो अपनी मुठ्ठी में है । कोई अपना कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
    रमेश जी ने उन्हें बहुत समझाया परन्तु सब व्यर्थ साबित हुआ । सभी जानते थे कि उनकी शिकायतें ऊपर बास तक पहुँच चुकीं थीं ।
    कुछ ही दिनों बाद मि.चौधरी के स्थानान्तरण के आदेश आ गये । फिर तो वे बहुत गिड़गिड़ाये । बहुत कोशिश की, पर एक ना चली। आखिर उन्हें जाना ही पड़ा ।
   काफी समय बाद जब एक दिन रमेश जी उनसे बाज़ार में टकरा गये तो कहने लगे," यार आजकल तो तुम ईद का चाँद  हो गये हो । दिखाई भी नहीं देते ।"
    वे निराश स्वर में बोले,"तुम ठीक कहते थे । तुम्हारी बात मान ली होती तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता ।"
    जब उनके चेहरे की तरफ देखा तो उनकी मूंछों का अंदाज बदला हुआ था । ****
                                            
10.  निर्णय
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       सीमा अपने परिवेश में माता-पिता के कुंठित विचारों से बहुत दुखी थी। वे उसकी शिक्षा बीच में ही रोक कर शादी कर देना चाह्ते थे क्योंकि उनके समाज में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था।परन्तु वह क्या करे? उसे तो अपनी शिक्षा पूरी करनी थी।कई तरह के विचार उसके मन में उथल-पुथल मचा रहे थे। जिसकी वजह से वह कक्षा में ध्यान नहीं दे पा रही थी ।
     सामाजिक ज्ञान की शिक्षिका उसे दो तीन दिन से देख रही थी।आखिर उन्होंने पूछ ही लिया। सारी बात सुनने के बाद उन्होंने सीमा को समझाया,"तुम्ही को निर्णय लेना है । तुम स्त्री हो इस बात से घबरा कर पीछे नहीं हटना ।"
    परेशानी में उसने पूछा," तो आप ही बताईये मैं क्या करुँ?"
तब पुनः उन्होंने कहा ," चिन्तन और मनन से खुद को पहिचानो। तुम स्वयं क्या चाहती हो ?"
    "किसी के दबाव में आकर खुद को पराधीन ना बनाओ। जिस तरह से पुरुष वर्ग आज भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र है और अपने निर्णय स्वयं लेता है उसी तरह से स्त्री को भी चाहिये कि वह शिक्षित होकर अपना जीवन यापन करे। सिर झुका कर नहीं, सिर ऊँचा करके जीना सीखे ।"
            सीमा भय मुक्त हो गई थी । उसने अपना निर्णय ले लिया था । दूसरे दिन विद्यालय जाते समय उसके चेहरे पर एक अनोखी विश्वास की चमक थी । ****
                     
11. सुहाग का सुख
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               दिन भर अथक परिश्रम के बाद गीता जब थक कर रात को अपने घर लौटती थी, घर पर सुख और शान्ति नहीं बल्कि उसे रोज एक नई मुसीबत का सामना करने के लिये खुद को तैय्यार करना पड़ता था ।
सबके घरों में झाडू कपड़े बरतन साफ करके उसने अपना घर बनाया था।
      एक दिन सुबह वह घबराई हुई आई और कहने लगी,"रात झोंपड़पट्टी में आग लग गई। कई घर जल कर राख हो गये। कई लोगों ने तो जितना सामान बचा सकते थे बचा लिया  परन्तु मैं अकेली क्या करती? देखते ही देखते सब जल कर राख हो गया।"
              मैने पूछा," तेरा पति कहाँ था?"
             वो बोली ,"मेम साब सामान की मुझको चिन्ता नहीं है, पर मेरा पति नहीं मिल रहा है क्या करुँ? मुझे बहुत चिन्ता हो रही है।"
             सभी जानते थे,वो रोज दारु पीता था। मेरा दिल वितृष्णा से भर गया। मैने गुस्से में कहा," पी कर पड़ा होगा कहीं ? तू उसकी चिन्ता कर रही है,जो तेरी जरा भी परवाह नहीं करता। तुझे खाना, कपड़ा नहीं देता बल्कि तुझसे तेरी कमाई के पैसे छीन कर दारु पी जाता है। तुझे मारता है। घर के सुख के नाम पर उसने  तुझे कुछ नहीं दिया, यहाँ तक कि ऐसी विकट परिस्थिती में भी मदद करने नहीं आया। उसी पति से वियोग का गम सता रहा है तुझे।"
      वो आँखों में आँसू भरे  उसी तरह मुझे देखती रही। उसकी भरी हुई माँग और माथे की बिंदिया जैसे कह रही हो,"आखिर तो वो मेरा पति है।" ****
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क्रमांक - 03

जन्म:- 5 फरवरी, 1953 (बसन्त पंचमी), बीकानेर 
माता-पिता:- स्व. श्रीमती रूकमा देवी , स्व. श्री राणालाल 
शिक्षा:- एम. ए. (राजस्थानी भाषा), बी. एड.

व्यवसाय:-
"निरामय जीवन’’ एवं ’’केन्द भारती’’ मासिक पत्रिका जोधपुर के प्रकाशन विभाग कार्यालय में निःशुल्क कार्यरत, रिटायर्ड वरिष्ठ अध्यापिका 

जुड़ाव:- 
महिलाओं की साहित्यिक संस्था ’’सम्भावना’’ की सचिव, ’’खुसदिलान-ए-जोधपुर’’, ’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’, ’‘लॅायंस क्लब जोधपुर’’ की सक्रिय सदस्य । 

प्रकाशन:- 
1’‘सौगन‘’, 2 ’’ऐड़ौ क्यूं ?’’ (दो राजस्थानी उपन्यास), एक हिन्दी कविता संग्रह ’’कब आया बसंत’’ । 
राजस्थानी कहानी संग्रह ’‘नुवाै सूरज‘’ ।
 एक राजस्थानी कविता संग्रह-’‘जोवूं एक विस्वास’’
हिन्दी व्यंग्य संग्रह ’नाक का सवाल’, ( अंग्रेजी में अनुवाद भी )
हिन्दी काव्य संग्रह ’’नन्हे अहसास’’ प्रकाशित । दो बाल साहित्य की पुस्तकें-राजस्थानी में एक-‘‘खुश परी’’ कहानी संग्रह एवं एक कविता संग्रह, हिन्दी उपन्यास ’प्यार की तलाश में प्यार’ 

पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -
        राजस्थानी और हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लेख, लघुकथा, संस्मरण, पुस्तक 
समीक्षा आदि का लगातार प्रकाशन । 

आकाशवाणी/ दूरदर्शन : -
        आकाशवाणी जोधपुर, जयपुर दूरदर्शन से वार्ता, कहानी, कविता आदि का प्रसारण ।     
 राजस्थानी भाषा के ’’आखर’’ कार्य क्रम में भागीदारी (जयपुर) 

विशेषः-
राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार । 
 यू ट्यूब पर ’’मैं बसंत’’ नाम से चेनल 

पुरस्कार और सम्मान:
1. ‘राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर’ से ’’सौगन‘’, राजस्थानी उपन्यास पर 
’‘सावर दैया पैली पोथी पुरस्कार’’ -1998 
2. पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, शिलांग मेघालय की तरफ से ’‘डा. महाराजा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान
’’-2011 
3. तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी चैन्नई और तमिलनाडु बहुभाषी लेखिका संघ चैन्नई की तरफ से 
‘‘साहित्यसेवी सम्मान’’-2011 
4. ’आकाश गंगा चेरीटेबल ट्ष्ट’ लूणकरणसर, बीकानेर से सम्मान-2011 
 5.’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’ जोधपुर से ’‘बेस्ट स्टोरी राइटर’’ सम्मान -2011 
 6. ’‘जगमग दीपज्योति ‘मासिक पत्रिका अलवर की तरफ से ’’श्रीमती नवनीत गांधी स्मृति’’ 
 सम्मान-2013 
 7. बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, जोधपुर से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोज्य कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2014 
 8. ’मरूगुलशन’ त्रैमासिक पत्रिका के 75 वें अंक के लोकार्पण समारोह में सम्मान-2014 
 9. लाॅयनेस क्लब जोधपुर द्वारा कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2015 
 10. ‘सर्जनात्मक संतुष्टी संस्थान ’द्वारा प्रो. प्रेम शंकर श्रीवास्तव स्मृति पर आयोज्य कार्य क्रम में मरूगुलश में प्रकाशित ’’नारी संवेदना’’ रचना पर ’’गुणवंती सम्मान’’-2015 
 11. न्यू ऋतभरा साहित्य मंच कुम्हारी, जिला दुर्ग -छ. ग. द्वारा न्यू ऋतंभरा मुंशी प्रेमचंद एवं साहित्य 
 अलंकरण-2015 
 12. महिमा प्रकाशन -छ.ग. द्वारा ’’त्रिवेणी साहित्य सम्मान’’-2015 
 13. ‘डाॅ.नृसिंह राजपुरोहित राजस्थानी साहित्य प्र तिभा पुरस्कार’’-2016 
 14. बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी, फतेहाबाद (आगरा) उ. प्र. द्वारा ’‘श्रेष्ठ साहित्य साधिका सम्मान-2017 
 15. ’’वीर दुर्गा दास राठौड सम्मान’’ (रजत पदक )-2017 
 16. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता अजमेर)-2017 
 17. ’’दिव्यतूलिका साहित्यायन’’ सम्मान-2017 (ग्वालियर, मध्य प्रदेष) 
 18. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय व्यंग्य प्रतियोगिता अजमेर)-2018 
 19. ’’महादेवी वर्मा सम्मान’’(साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान, हल्दीघाटी नाथद्वारा)-2018 
 20. ’’पत्र लेखन सम्मान’’(डाॅ. सूरज सिंह नेगी, सनातन प्रकाशन, जयपुर)-2019
 21. साहित्य क्षेत्र में सतत् सराहनीय योगदान हेत कुं ’’मधेशवाद के प्रणेता गजेन्द्ररायण सिंह सम्मान’’ 
 (नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन, काठमांडौ रौतहट, नेपाल)-2019 
 22. ’’मत प्रेरणा सम्मान’’-2019 (निखिल पब्लिशर्स, आगरा, उत्तर प्रदेश) 
 23. राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़  (बीकानेर) द्वारा ’’पं.मुखराम सिखवाल स्मृति राजस्थानी साहित्य सृजन पुरस्कार’’ (14 सितम्बर 2019) 
 24. स्टोरी मिरर द्वारा ’’लिटरेरी केप्टिन’’ सम्मान-2019 
 25. ’’अखिल भारतीय माॅ की पाती बेटी के नाम’’ प्रतियोगिता-2019, सम्मान (जिला प्रसाशन एवं महिला अधिकारिता, बून्दी द्वारा) 
 26. अखिल हिन्दी साहित्य सभा (अहिसास) नासिक (महाराष्ट्र) द्वारा पुस्तक-’’नाक का सवाल’’ पर ’’साहित्य श्री’’ सम्मान-2019 
 27. ’’क्ररान्तिधरा अन्तर्राष्ट्रीय  साहित्य साधक सम्मान’’ (क्रान्तिधरा मेरठ, साहित्यिक महाकुंभ  -2019 में ) 
 28. ’’आध्यात्मिक काव्यभूषण’’ की मानद उपाधि (भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल 
(हरियाणा) तथा कलमपुत्र काव्य कला मंच मेरठ उ. प्र. (भारत) द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में आयोजित 
कार्य क्रम में । 
 29. ’’अग्निशिखा गौरव रत्न’’ सम्मान (साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, अखिल 
भारतीय अग्निशिखा मंच मुम्बई द्वारा ) - 2019 
 30. ’’मैना देवी पाण्डया स्मृति राजस्थानी लेखिका पुरस्कार-2019 (नेम प्रकाशन, नागौर, डेह) -
 31. "चौपाल साहित्य रत्न सम्मान "- दौसा ( राजस्थान )-2020
 32. " नव सृजन कला प्रवीर्ण अवार्ड " छत्रपति प्रशिक्षण संस्थान, कानपुर  ( उ. प्र. ) द्वारा-2020
 33. "शब्द तरंग सम्मान " वसई ( महाराष्ट्र )  2020
 34. " शब्द निष्ठा ( श्रेष्ठ समीक्षक )सम्मान "-2020
 35. "मनांजली साहित्य सम्मान "- चंडीगढ़  2020
 36. जैमिनी अकादमी पानीपत ( हरियाणा ) अटल रत्न, कोरोना योद्धा, तिरंगा, शिक्षक उत्थान, गोस्वामी तुलसीदास, 101 साहित्यकार,विवेकानंद, भारत गौरव, सम्मान-2020-21
 37. " विशिष्ट साहित्यकार सम्मान " - अदबी उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2021
 38. "भामाशाह सम्मान " लायन्स क्लब इंटरनेशनल-2021
39.  " लोक साहित्य रत्न सम्मान " इंदौर - मध्यप्रदेश
40.  " हिन्दी साहित्य मनीषी " मानद उपाधि- साहित्य मंडल नाथद्वारा  से-2021
 
 पता : -
 ’विष्णु’, 90, महावीरपुरम,  चैपासनी फनवर्ल्ड पीछे,
 जोधपुर -342008 राजस्थान
 1.पालक 
    *****
       
       दो लड़के हम उम्र थे, यही कोई बारह-तेरह वर्ष के रहे होंगे। वे सुबह अंधेरे- अंधेरे दो घंटे के किराये की साइकिल लाते और घर-घर अखबार पहुंचाते। नौ बजे तक वे सब्जी बेचने चले आते। दस बजे तक वे सब्जी बेचते उसके बाद वे शाम को सब्जी बेचते दिखाई देते। इस बीच शायद वे किसी के यहां काम पर जाते होंगे।
पालक वे बहुत ही ताजा लाते इसलिए हाथोंहाथ बिक जाता। बच्चे बड़े प्यारे और हंसमुख थे। एक दिन हमने उन्हें बातों ही बातों में हंसते-हंसते पूछ लिया-
" बेटा, तुम्हारे पालक कहां है ?"
उनमें से एक ने बड़ी मासूमियत से जो जवाब दिया वो भीतर तक मन को छू गया। उसने कहा-
"आंटी, पालक होते तो हम पालक क्यों बेचते ?" ****   

2.चीरहरण 
    *******

        धनसुखी देवी ने अपने बेटे का विवाह खूब दान-दहेज लेकर धूमधाम से किया । आज के रिसेप्शन भोज में एक बड़ा सा बेग उसके हाथ में था जो उनके नाम के अनुरूप धनसुख में वृद्धि होने के कारण भरता जा रहा था । देने वाले उसे घेरकर खड़े थे । पति महोदय सीधे - साधे थे अतः वे उसके पास खड़े खींसे निपोर रहे थे।
        धनसुखी की एक सखी भीड़ छंटने के इंतज़ार में एक ओर खड़ी थी ताकि बथाई के साथ वह भी सगुन का लिफाफा दे सके । अचानक धनसुखी की नज़र उस पर पड़ी तो--
" अरे ! द्रोपदी तुम, इतनी दूर क्यों खड़ी हो, आओ.. आओ.. पर मैं कहे देती हूं पांच सौ से ज्यादा किसी से भी नहीं लिया है तो तुमसे भी नहीं लूंगी।"
" अरे नहीं धनसुखी, बस सगुनरूपी है । " ये कहते हुए उसने अपना लिफाफा उसे थमा दिया, जिसे धनसुखी ने सबके सामने खोल डाला और जल्दी से उसमें रखा सौ का नोट निकाल कर सबके सामने लहरा दिया और बोली--
" हां हां सौ तो चलेंगे पर मैं पांच सौ से ज्यादा तो हरगिज़ नहीं लेती ।"
वह द्रोपदी, महाभारत की द्रोपदी तो नहीं थी पर वह निर्वस्त्र हो गई उसका चीरहरण हो गया था। ****
              
3. होली के रंग 
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 "अरे यह क्या कर दिया 15000 रुपयों की नई साड़ी पर रंग डाल दिया, थोड़ी तो शर्म करो पर तुम निठल्ले क्या शर्म करोगे, 200 रुपयों की साड़ी लाने की तो औकात ही नहीं है तुम्हारी..........।" 
 पार्वती देवी अपने इकलौते घर जमाई पर त्योरियां चढ़ाकर अनाप-शनाप बोलते जा रही थी ।
         कविता और रवि एक दूसरे को देख रहे थे । भरी-भरी आंखें लिए कविता अपने कमरे में चली गई और रवि..........रवि ससुराल की देहरी से बाहर निकल गया ।
         आज होली है, उस होली को बीते 10 वर्ष हो चुके थे । कविता का जीवन रंगहीन हो गया था । उसकी मां अपनी बेटी की हालत देखकर बहुत पछता रही थी मगर रवि जो गया तो लौट कर नहीं आया । बहुत तलाशा मगर नहीं मिला ।
         कविता ने रवि की भाव भरी कविताएं सुनकर उससे, अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध शादी कर ली थी । इकलौती संतान होने के कारण रवि को घर जमाई बनना पड़ा ।
         होली तो एक बार जलकर राख हो जाती है मगर कविता हर पल जलती रही है ।
         आज फिर होली है । अचानक बाहर से किसी ने बेल बजाई बाहर जाकर देखा तो एक भारी-भरकम कार्टून लिए कुरियर वाला खड़ा था ।
         आश्चर्य के साथ हस्ताक्षर कर उसने उस कार्टून को लिया खुलते ही आश्चर्य मिश्रित खुशी से वह उछल पड़ी । मां ........मां......... देखो रवि......। हां, उसमें साड़ियां थीं जो कोई भी 25000 से कम की ना थी, साथ में एक पत्र भी जिसमें बस इतना ही लिखा था- 
 'जो सबसे ज्यादा पसंद आई हो, वह साड़ी पहन कर तैयार रहो ।'
          कुछ ही देर में एक चमचमाती गाड़ी आकार रुकी,  रवि उतरा........उसके सर्वेंट नें रंगों से भरी बोतलें निकाली । रवि ने देखा कि कविता दौड़ती हुई आ रही है और उसके पीछे, उसके माता-पिता भी.........। उसने एक के बाद एक, सभी रंगों से कविता को रंग दिया ।
          25000 की साड़ी खराब हो चुकी थी ।  *****                                              
4. संक्रमण 
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         बसु ने सोचा-अभी हमें दूर-दूर रह कर कोरना को हराना है तो क्यों ना हम मानसिक निकटता बना लें........ इससे संक्रमित हो जाएं । ऐसा करने से दिलों की दूरियां कम हो जाएंगी....... .आपसी सद्भाव............ सौहार्द........स्नेह अधिक से अधिक फैलेगा जिससे हमारे जीवन का एकाकीपन.........तनाव........ परायापन........ तेरे मेरे की भावनाएं.......... ईर्ष्या-द्वेष............ क्रोध कामनाएं आदि सभी दूर हो जाएंगी........धरती पर स्वर्ग उतर आएगा । 
         मगर बसु की कोशिश नाकाम रही, मानसिक निकटता का संक्रमण नहीं फैला । ****

5. तुच्छ
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        मानव ने चलते-चलते  रेत को ठोकर मारी तो वह उड़ कर उसके सिर पर चढ़ गई । मानव तिलमिला उठा और बोला- 
"तेरी इतनी औकात कि..........।" 
"क्या तुम अपना अपमान सहन कर सकते हो ?"
"नहीं, हरगिज़ नहीं  ।" 
"तो फिर मैं क्यों करूं ? माना कि मैं रेत हूं जिसे तुम तुच्छ समझते हो मगर तुम्हारा पालन-पोषण मैं ही करती हूं और अंत में भी तुम्हें मेरी ही गोद मिलती है । मेरा भी कोई स्वाभिमान है । तुम मेरा अपमान करोगे तो मैं भी खामोश नहीं रहूंगी और कुछ नहीं तो उड़ कर तुम्हारे सिर पर तो चढ़ ही जाऊंगी ।"
        रेत की बात सुनकर अब मानव अपने आप को तुच्छ समझने लगा, उसकी सारी हेकड़ी जाती रही ।   ****
                  
6. शर्म नहीं आती
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             एक खाद्य इंस्पेक्टर ने फल मंडी का निरीक्षण करने का सोचा, वे हाथ में डंडा ले, बड़ी- बड़ी मूछों को ताव दे, मंडी पहुंचे । 
             गर्मी का मौसम था, आम खरबूजे खूब आ रहे थे । वे एक ठेले के पास रुके, जहां एक सीधा- साधा आदमी कुछ आम खरबूजे बेच रहा था, उसे देख वह बोले-
 "तुम अपने स्वार्थ के कारण सड़े-गले बेचकर बीमारी फैला रहे हो शर्म नहीं आती तुम्हें ? 
 " मगर साहब, इनमें से तो कोई सड़ा-गला नहीं है  ।" 
 " दिखता नहीं, सभी में कुछ न कुछ ...... ।" 
 " पर साहब, ये तो ऊपर से ......।" 
 "क्या कहा ? मुझसे जबान लड़ाता है, अभी देखता हूं तुझे ।" यह कहकर जोर से डंडा फटकारा ।
 "नहीं साहब गलती हो गई माफ करना, आप कहते हैं तो सभी  फेंक कर आता हूं ।" 
 "यहां  फेंकेगा ? पर्यावरण खराब करेगा ? तू ऐसा कर, सभी मेरी गाड़ी में रख दे, मैं यहां से बहुत दूर गड्ढा खुदवा कर डलवा दूंगा ।"
           शाम के वक्त खाद्य इंस्पेक्टर जी के घर पर उन सड़े-गले आम खरबूजा की जोरदार पार्टी चल रही थी । ****
                            
7. शिकारी 
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              पिता का खांस-खांसकर बुरा हाल हो गया, भी दवाई खत्म हो गई, अब.......अब क्या करूं ? वह सोच-सोच कर परेशान हो रही थी । ऐसे तो रात कैसे कटेगी । फिर घर में दो ही तो थे । लोगों के घरों में काम करके वह दाल रोटी और अपने बीमार पिता की दवाई का जुगाड़ करती थी । 
             अंधेरा घिर आया था मगर वह निकल पड़ी दवाई लेने । आशंकाओं से घिरी हुई चल रही थी कि उसे लगा कुछ कदम उसका पीछा कर रहे हैं, उसे पीछे वालों की फब्तियां भी सुनाई पड़ रही थी । अब क्या होगा ? शिकारी पीछे बहुत करीब .........एकाएक उसके दिमाग में कुछ आया और वह तुरंत पीछे मुड़ी, वे तीन थे जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहे थे, वे उसे सामने देख कर रुक गए । वह लड़की बोली-
"तुम सब इतनी तकलीफ क्यों करते हो, मैं ही तुम्हारे पास आ जाती हूं ।"
           उसके इतना बोलने पर एक बारगी तो वे सकपका गये । लड़की आगे बोली-
 "और तो कोई बात नहीं, बस मैं कोरोना पॉजिटिव हूं पर कोई बात नहीं, फर्क तो तुम्हें ही पड़ेगा ना ।"
          उसने यह कह कर अपने कदम उनकी ओर आगे बढ़ाएं मगर यह क्या ? वे तीनों तो नौ दो ग्यारह हो गए.........। 
          लड़की ने आसमान की ओर देखा, हाथ जोड़े और अपनी राह चल दी । ****
                             
 8. सेवा   
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"ठीक है मां, मैं चलता हूं आप अपना ध्यान रखना कल मुंबई पहुंच जाऊंगा और परसों वापस तुम्हारी बहू और बच्चों को लेकर रवाना हो जाऊंगा ।"
         रमेश जो मुंबई की एक कंपनी में काम करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था । मां की तबीयत ठीक ना होने के कारण वह उन्हें लेने आया था मगर मां की वहां चलने की इच्छा नहीं हो रही थी तो उसने यह फैसला किया कि पत्नी और बच्चों को कुछ समय के लिए यहां छोड़ देगा मगर लॉक डाउन हो गया, सभी सेवाएं बंद हो गई । 
         अब........अब क्या होगा क्योंकि वह अपनी मां का इकलौता बेटा था पिता थे नहीं । मां पैतृक घर में ही रहती थीं लेकिन उन्हें बीपी, शुगर, हार्ट आदि कई बीमारियों ने घेर रखा था । 
         उसने अपने मित्रों, रिश्तेदारों से बात की, सभी ने अपनी असमर्थता जता दी ।
          दिन में कई बार वीडियो कॉल से बात करता । पड़ोस में समीम चाची रहती थी मगर खानपान की विवशता के चलते, ज्यादा आना जाना नहीं था । एक दिन उनका फोन आया-
" बेटा तू कहे तो मैं नहा धोकर राधा भाभी (तुम्हारी मां) को संभाल लूं, सूखा सामान तो मैंने उन्हें दे दिया है मगर बीपी के चलते उनसे रोटी सेकी नहीं जाती ।"        सुनकर रमेश भावुक हो गया और कहने लगा - 
"चाची आपने तो मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया, आप घर पर जाएं , मैं अभी मां से बात करता हूं ।"     रमेश को बहुत सुकून मिला । 
           चाची नहा-धोकर, साड़ी पहन कर माँ की सेवा में लग गई ।
          इधर उसके फ्लैट का पड़ोसी राजस्थान में फंसा हुआ था जो सिर्फ मां बेटे थे । एक दिन रात को 2:00 बजे उसका घबराए हुए फोन आया - 
"प्लीज रमेश, मेरी मां को बचा लो ।"
"क्या......क्या  हुआ हुआ है उन्हें  ?"
"शायद हार्टअटेक, प्लीज जल्दी जाओ, दरवाजा अंदर से बंद नहीं है ।"
          सुनकर पति-पत्नी दोनों दौड़ पड़े, एंबुलेंस को फोन किया और बच्चों को समझा कर वे उनके साथ अस्पताल पहुंच गए । तुरंत उपचार होने से उनकी जान बच गई । 3 दिन बाद जब घर लौट कर आए तो रमेश श्यामा मौसी को अपने ही फ्लैट में ले आया ।         
          उसे लगा इस बहाने से ही सही, मां की सेवा तो कर सका । ****
                         
9.मात्रा 
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            एक हिंदी की अध्यापिका बच्चों को मात्राएं सुधारने हेतु ब्लैक बोर्ड पर कुछ शब्द लिखवा रही थीं, एक बच्चे से लिखवाया-'अमीर', उसने सही लिख दिया ।
"अब बेटा, 'गरीब' लिखो ।" लड़के ने लिखा 'गरिब' ।    
           अध्यापिका के पढ़ाने का अंदाज कुछ अलग था वह बोली-   
"बेटा,आज के जमाने में तुम यदि 'अमीर' की मात्रा छोटी कर देते तो तुम्हारा क्या जाता ? किंतु बेचारे गरीब के पास बीच की एक मात्र ही तो बड़ी है, उसे भी तुमने तो छोटी कर दी । बेचारे गरीब पर मात्रा की तो दया करनी थी ।"
       लड़का भी चतुर था उसने जवाब दिया- 
 "मैडम, आजकल के अफसर तो सबसे ज्यादा गरीब का ही खाते हैं, अमीरों पर तो उनका बस चलता नहीं और फिर मैंने तो सिर्फ उसकी मात्रा ही तो छोटी की है ।" ****
                        
10. जाने में ही भलाई है 
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        पढ़ी लिखी बहू अपनी अंगूठा छाप सास को समझा रही थी- 
 "आपको क्या पता मजदूरों से कैसे काम करवाया जाता है ? आपके सामने ही ससुर जी, हजम ना होने पर भी खाते जाते हैं, बीमारी बढ़ रही है, इनके मेडिकल बिल का भुगतान कौन करेगा ? अपना तो भट्टा ही बैठ जाएगा । यह काम-धाम तो कुछ करते नहीं है बस टिकट की रट लगा रखी है । पिछली बार वृंदावन गए थे अब वैष्णो देवी जाने की रट लगा रखी है । कल कह रहे थे-कपड़े पुराने हो गए हैं, नए सिलवा दो, पुरानी कंबल में जरा सा छेद है, कहते हैं- नई मंगवा दो । इस प्रकार की फिजूलखर्ची से तो बैलेंस शीट, बजट आदि सब बिगड़ जाएगा । 
           जब यह जिंदगी से रिटायर होंगे कफन, काठी आदि कहां से लाएंगे ?" सासु जी ने कहा- 
 "बेटी, मेरे माता-पिता ने तो यह ज्ञान मुझे दिया नहीं, गृहस्थी भगवान का मंदिर होती है, इससे ज्यादा कुछ समझाया नहीं । अब तू पढ़ी-लिखी घर में आई है, मैं तो इतना ही सोचती हूं कि अब तो जाने में ही भलाई है ।" ****
                         
 11.उदाहरण 
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         चारों ओर कोरोना का तांडव........सभी ओर हाहाकार........मरीज इतने कि पांव रखने की भी जगह नहीं । 
         श्याम जी की किस्मत अच्छी थी कि उन्हें 3 दिन पूर्व बेड मिल गया था । वे लेटे- लेटे इस विनाश को रोकने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि अचानक उन्हें एक दर्द भरी गिड़गिड़ाहट सुनाई दी ।  ऐसा करुण दर्द कि पत्थर भी पिघल जाए । सुनकर श्याम जी अपने को रोक नहीं पाए और बाहर आ गए उन्होंने देखा कि एक नवविवाहिता अपने पति के लिए बेड की गुहार लगा रही है और डॉक्टर कह रहे हैं कि हम मजबूर हैं । एक भी बेड खाली नहीं है, सभी पर बुजुर्ग हैं । 
         श्याम जी ने तुरंत कुछ निर्णय लिया और बोले- 
 "मैं अपनी स्वेच्छा से अपना बेड, इस बिटिया के पति के लिए छोड़ रहा हूं । डॉक्टर साहब, आप इन्हें संभालिए ।" 
 "मगर अंकल आप........?" लड़की ने कहा । 
 "बेटी, मैं तो वृक्ष का पका हुआ पत्ता हूं कभी भी गिर सकता हूं मगर तुम्हें तो अभी पल्लवित-पुष्पित होना है, फिर मैं तो अपना जीवन भी जी चुका हूं ।"
          यह कह कर उन्होंने घर जाने की अनुमति ली और चल दिए । 
          लड़की ने उनके पांव छूने चाहे तो उन्होंने दूर से आशीर्वाद दे दिया । 
          वे तो चले गए मगर पीछे कईयों के लिए एक उदाहरण छोड़ गए । ****
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क्रमांक : - 04
पिता : ओमप्रकाश वैद
जन्मतिथि : 07 अगस्त 1955
जन्मस्थान : दिल्ली
शिक्षा : एम.ए..हिंदी , अग्रेंजी , बी.एड. , पी एच डी हिंदी
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन

पुस्तकें : -

1. आंकाक्षा की ओर   काव्य संग्रह
2.मनोवैज्ञानिक उपन्यासों मे असामान्य पात्र।  शोध प्रबंध
3. टचस्क्रीन ओर अन्य लघुकथाएं  संग्रह( एकल )
4. नदी खिलखिलायी.. हाइकु संग्रह ..एकल 

साझा संग्रह : -

1. खिडकियों में टंगे हुऐ लोग । लघुकथा संग्रंह सांझा ।
2 किस को पुकारू। कन्या भ्रूण हत्या पर लघुकथा संग्रह
3 एक सौ इककीस लघुकथाए सह लेखन
4 शब्दों की अदालत  अंतरराष्ट्रीय काव्य संग्रह
5. परदे के पीछे की बे खौफ आवाजे अंतराष्ट्रीय काव्य संग्रंह
6 अविरल धाराकाव्य संग्रंह
7.सहोदरी सोपान काव्य एवं लघुकथा संग्रंह
8.दीप देहरी पर।  लघुकथा संग्रह।
9. वर्जिन साहित्य लघुकथा मंजुषा ,2
10. अविराम कविता खंड  1 कविताऐ
11.  समकालीन हिंदी कविता खंड 2 कविताऐ
12. प्रतिमान मे नवयुग कथा पंजाबी मे अनुदित
13. काव्य रत्नावली संकलन
14.  समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाए.
15.दास्तानें किन्नर.... लघुकथा संग्रह
16. सहोदरी कहानी संग्रह 2
17. संरचना में लघुकथा।
18. समय की दस्तक लघुकथा संकलन
19. मशाल काव्य संग्रह. परिवर्तन साहित्यिक मंच ।
20. सपनों से हकीकत तक काव्य संकलन    पटियाला
21. अग्नि शिखा काव्य धारा संकलन  2019
22.. चमकते कलमकार भाग दो. साझा संग्रह कविता में सहभागिता ।
23  . दलित विमर्श की लघुकथाएं ..

सम्मान : -

कथादेश 2017 अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता मे पाँचवा स्थान।
 विश्व हिंदी संस्थान कनाडा की ओर से , कविता आमंत्रण  मे कविता  बेटियाँ को प्रशस्ति पत्र।
उदीप्त प्रकाशन द्वारा  लघुकथा श्री एवं  काव्य भूषण सम्मान।
हरियाणा स्वर्ण जयंती उत्सव 2017 हिंदी साहित्य सेवा सम्मान
काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2017
भाषा सहोदरी   2016/2017  लघुकथा एवं कविता के लिए प्रशस्ति पत्र।
कलम की आवाज ऐरावत  आन लाईन विराट कवि सम्मेलन मे  सम्मान पत्र।
काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान 2018
साहित्य सरोज लघुकथा प्रतियोगिता2018 लघुकथा चक्की को तृतीय स्थान।
इंदौर की शुभसंकल्प संस्था की ओर से कहानी प्रतियोगिता में तृतीय स्थान।
जैमिनी अकादमी द्वारा अखिल भारतीय हिंदी लघुकथा- 24 में प्रतियोगिता  प्रथम पुरस्कार।
अमृत धारा साहित्य महोत्सव 2018
अमृतादित्य साहित्य गौरव।
शब्द शक्ति साहित्यिक संस्था गुरूग्राम(  पिता) विषय पर श्रेष्ठ कविता  सम्मान पत्र। 2019
इंड़िया बेस्टीज अवार्ड 2019  जयपुर (,शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में)
 नारी अभिव्यक्ति मंच पहचान  हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता 2019 माँ शकुंतला कपूर स्मृति सम्मान  श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार।
अग्नि शिखा साहित्य ग़रव सम्मान2019
साहित्योदय ,साहित्य कला,संगम द्वारा ...साहित्योदय शक्ति सम्मान 2020.
  समर्पण फाउड़ेशन जोधपुर महिला दिवस 2020 आलेख प्रतियोगिता विषय (सशक्त नारी सशक्त समाज) द्वितीय पुरस्कार।।
मगसम संस्था द्वारा रचना धर्मिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखन
गणतंत्र  साहित्य गौरव सम्मान.।।
 प्रखर गूँज प्रकाशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 रत्नावली सम्मान।
 मीरा भाषा सम्मान ..लघुकथा विधा...  2020
रक्त फाउड़ेशन कोष आलेख ..प्रथम स्थान 2020

पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -

 नवल पत्रिका. कथा बिंब, कथादेश, मधुमती, साहित्य समीर दस्तक, सृजन कुंज, दृष्टि, प्रतिमान. आधुनिक साहित्यिक ,सुसंभाव्य पत्रिका ,सृजन महोत्सव  मगसम मे लघुकथाए एवं कविताएँ
ई पत्रिकाएं : -हस्ताक्षर वेब, साहित्य सुधा ,परिवर्तन ई पत्रिका ,शब्दार्थ पत्रिका, नारी अस्मिता पत्रिका मे लघुकथाए एवं कविताएं।

पता : - 
17/653 , चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड
जोधपुर 342008 राजस्थान
   1.आडी जाऊँगी
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    अमर रमेश पटेल ,उम्र पचपन,कपड़ा व्यापारी, मूल निवासी पाली,हाल निवासी मुम्बई अपने दो बच्चों एवं पत्नी के साथ तीन बेडरूम  वाले फ्लैट
मे तकरीबन बीस-बाईस सालों से रह रहा है।
अमर के पिता रमेश ग्रामीण परिवेश मे पले बडे,युवावस्था मे मुम्बई आकर कपडे का व्यापार 
आरंभ किया ।मेहनत, लगन, ईमानदारी से अच्छा नाम कमाया।अपनी बेटी राखी का उच्च शिक्षा के बाद विवाह किया।
               पुत्र अमर के लिए पाली शहर की सुघड,सुशिक्षित, सुंदर कंचन  को जीवन का हमसफर  बना दिया।कंचन नये दौर के तौर तरीक़े 
   को अपनाने मे  हिचकती नहीं थी पर अति आधुनिकता एवं दिखावटीपन से नफरत करती थी।  दोनों की गृहस्थी चल पडी। इसी बीच घर मे दो नये मेहमान आए और दो वरद हस्त देवलोक गमन हुए।
             अमर अब कंचन को मुम्बई के नवीनतम
तौर तरीके अपनाने के लिए बाध्य करने लगा।वह मित्रों की अतिआधुनिक पत्नियों को देखकर ,स्वयं के  दाम्पत्य जीवन को हीन मानने लगा। यदि वह कंचन को जबरदस्ती क्लब,पब,या पार्टी मे ले जाता तो वह.असहज महसूस करती, अमर के मित्र उसे
उकसाते कि व्यापार का बादशाह पर  संगिनी
मेल की नही। कंचन और अमर की गृहस्थी  डगमगाने लगी।अब अमर उसे विभिन्न प्रकार से प्रताडित करता,गावडी ग्वार, बेमेल कहकर मनोबल गिराता ,पर वो तो मुसकुराते हुए  बच्चों का जीवन सवारती रही।
      . एकदिन अमर ने अपना फैसला सुना दिया कि मै तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। जितना धन चाहिए लो और जाओ ।पर कंचन एक ही बात कहती सीधी आई हूँ आडी जाऊँगी।  इसी बात को दोहराती। शने शने  अमर बाहर की दुनिया और कंचन भीतर की दुनिया मे अगरबत्ती की तरह सुलगती रही। 
              एक अलसुबह हृदयाघात से कंचन ने चिर निद्रा पाई। पूरा परिवार, समाज, मित्रगण, बच्चे शोकमगन थे। दोपहर को कंचन की बूढी माँ ने गाँव से आकर दहाड़े मारते हुए कहा"  हाय रे मेरी बेटी,कर दिखाया तूने सीधी आई थी और आडी जा रही है। 
         अमर को यह सुनकर काठ मार गया। कंचन का "आडी जाऊँगी "का मतलब अब समझ आया, पर बहुत देर से।****
             
2.पद चिन्ह
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  ..प्रसिद्ध ,धनाढ्य ,समाज सेवी,मिस्टर सहगल के हाथों मे फोन का रिसीवर था और चेहरे पर मुर्दनी थी।अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था। पुलिस अधिकारी की बातें पिघले सीसे की तरह कानो मे बह रही थी।" मान्यवर, अपने पुत्र सौम्य को थाने से आकर ले जाइये।मात्र आपकी प्रतिष्ठा मे दाग न लगे  इसीलिए आपके पुत्र को अन्य लडको से अलग रखा है। सौम्य ग्यारह बारह साल का ,सातवी कक्षा का छात्र था।जिसे कभी अभावों की आँच भी पिता ने आने नही दी थी।आज विधालय समय मे उच्च कक्षा के छात्रों के साथ बगीचे मे बियर पार्टी
मनाते हुए पकड़ा गया। बाल अपराध कानून के तहत उसे दंडित ना करके ,मुक्त किया गया क्योंकि वह धनाढय सहगल का पुत्र था।
          चमचमाती कार मे बैठते ही मासूम निसंकोच बोला, पापा पुलिस अंकल गंदे हैं।मै तो आप के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहा था। आप ही परसों शाम शर्मा अंकल के साथ घर मे 
पार्टी कर रहे थे,हाथ मे गिलास था,जब मै पास से निकला तो आप ने अंकल से कहा शर्मा देखना मेरा बेटा मुझ से दो कदम आगे जाएगा। तभी मुझे गर्व होगा.।यह करेगा मेरा नाम रोशन।
मैने तो बारहवी मे पहला घूंट लिया था।पर  आज के बच्चे आगे जाएंगे, बहुत आगे, हर क्षेत्र मे।
                मैंने सोचा पढाई मे तो मै अव्वल हूँ ही आपके चेहरे पर एकस्ट्रा मुस्कान लाने के लिए यह सब किया।आप ही तो मेरे आदर्श हैं।आप को  प्राउडफील  करवाने के लिए ही पार्टी दी।
           माफ करना, पापा, मैं तो बच्चा हूँ ना! नादान हूँ ना!पता नही था की पार्टी  घर मे देनी चाहिए बगीचे मे नही। घर पर तो पुलिस अंकल  भी आते हैं। आगे से ध्यान रखूंगा। सहगल साहब, निरूत्तर हो कर अपने ही भीतर झाकनें से डरने लगे।क्या कहे उसे और कैसे । ****
        
3.वाईब्रेशन मोड
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   अपर्णा ने बडे प्यार से रोमेश को पूछा कि पिछले कई महीनों से आपके व्यवहार मे अनोखा परिवर्तन देख रही हूँ जब नयी नौकरी  लगी थी तब तो आप खूब खुश थे ,फिर अब अजीब सा व्यवहार  क्यों कर रहे हो।कल मैंने आप की पसंद का खाना बनाया, साडी आप के पसंद की,यूँ कहें कि घर की सजावट से लेकर खुशबू तक आपके मनरूप, पर आप प्रतिक्रिया हीन थे।
   अपर्णा ने प्रेमल शब्दों मे रोमेश से उसकी दुविधा जाननी चाही।दोनों युवा थे स्वप्निल समय था पर माहौल भावशून्य।रोमेश ने कुछ पल नजरे यहाँ वहाँ दौडाई। अपर्णा को गुस्सा आ गया उसनें जोर से झकझोर दिया।सुनते हो। वह ऐसे हिल्ला जैसे वाईब्रेशन मोड पर रखा मोबाईल कंपन करता है।
       रोमेश झटके से उठा और बोला सब ठीक है, सब ठीक है जान। पर लगता है जीवन भी वाईब्रेशन मोड पर चला गया है जहाँ आवाजें नहीं सिर्फ झटके, ही एहसास जगाते है ।****
    
 4.भूल सुधार
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   शर्मा जी अपने एरिया के प्रमुख थे,उन्हें प्रतिदिन इस बात का लेखा जोखा रखना पडता था कि किस एरिया मे कितने आक्सीजन सिलेंडरो का वितरण कब,कहाँ,कैसे करना है।आज भी रोज की तरह  एक हाथ मे चाय का कप,दूसरे मे कलम लेकर काम कर रहे थे।अचानक दरवाजे पर धडाधड की ध्वनि हुई।शर्मा जी बौखलाए कौन मूर्ख है जिसे घंटी नही दिख रही। अ़दर से चिल्लाए    ,   भ ई दरवाजा खुला है आ जाओ पर कोई उत्तर नही,आवाजें और तेज। गुस्से से बाहर आए तो दृश्य देखकर पैरों तले की जमीन खिसक गई।
            सामने एक पीपल का पेड़ खडा था।हाथ जोड कर बोला कृपया मुझे प्रतिदिन दो आक्सीजन सिलेंडर दे सकते हैं क्या?शर्मा जी ने अपने आप को चूयँटी काटी ,जो वृक्ष स्वयं चौबीसों घंटे सब जीवों को आक्सीजन देता है वह माँग रहा है। पेड ने कहा मैं आक्सीजन देता हूँ ,नहीं पहले देता था क्योंकि लोगों ने मुझे इस काबिल भी नही छोडा। मैं अपने साथ सबूत लाया हूँ।
          पीपल के  शाखा रूपी हाथों पर सूखे फूलों की मालाऐ, अगरबत्ती की डंडिया, अधजली रूई की बतियाँ, टूटे दीपक, फटे कैलेंडर, पुरानी ईश्वर की मूर्तियां, बचा खुचा प्रसाद था।सबसे अजीब सी गंध आ रही थी।शर्मा जी की नजरे झुक गई। पीपल बोला ,दिवाली से पहले तो मैं कचरा पात्र से बदतर बन जाता हूँ।
मेरे चबूतरे पर इतना प्लास्टिक का सामान है कि साँस लेना दूभर हो गया है।
          आज दाता याचक बन दरवाजे पर खडा है।शर्मा जी ने क्षमा माँगी और वचन दिया कि हम सब  इस भूल को सुधारेंगे। प्रकृति केअकूत  आक्सीजन भंडार को एवं देवतुल्य पीपल को स्वच्छ रखेंगे। संपूर्ण मानवजाति की ओर से पुनः क्षमा याचना की।****

5.मजबूत
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शामजी अपनी पत्नी माला के साथ ठेकेदार के बताए पते पर पहुँच गया। ठेकेदार ने उन्हें हमेशा की तरह पत्थर तोड़ना, रेत छानना और रात को सामान की जिम्मेदारी का काम सौंपा। यह काम कम से कम छः महिने चलने वाला था।सबसे पहले दोनों ने अन्य मजदूरों से परिचय किया। फिर  ठेकेदार से  टिन की चादरें लेकर ,प्लास्टिक की शीट और बाँस खपच्चियों से घर तैयार किया। शामजी ने पत्थरों का चूल्हा बनाया और माला ने चाय  बनाई । दोनों दसियों जगह ऐसा ही अस्थाई घर बना कर लोगों के स्थाई घर बनाते थे ।
             जहाँ शेष मजदूर  गरीबी, बदकिस्मती, परेशानियों की बातें कर के खुद भी दुखी होते और ओरों को भी करते थे वहीं दोनों पत्थर तोड़ते हुए कभी- कभी आपस में आँख मटका भी कर लेते तब पसीने से तरबतर चेहरे पर अलग ही नूर आ जाता। शामजी तो सूरज से  बातें करता "चल तेरी मेरी पकड़म पकड़ाई। काम खत्म होते ही औरतें गप्पे मारती हुँई खाना पकाती। अधिक तर  मर्द  देसी दारु पी कर हंगामा करते, वहीं शामजी और माला आज के अभाव और कल की आवशकताओं की लिस्ट बनाते- बिगाड़ते। 
     हाँ अपने घर की आस तो थी पर हाथों पर विश्वास भी था। 
रात को छोटे घर में दरी बिछा कर लेटते हुए कई बार पहले जो मकान बनाए और उनमें रहने का अनुभव याद कर के खुश होते।
दोनों मजाक करते कि शहर के कई कोनों में हमारा घर है।उन दोनों की खुशी इसी बात में थी कि मकानमालिक के पहले तो मजदूर ही रहते हैं।शाम जी जानते थे कि मंहगाई के इस दौर में जीना सब के लिए कठिन है वह उन मित्रों को  भी समझाता जो नशे पते में पैसे खराब करते थे कि मेहनत को गटर में क्यों बहाते हो।
       ठेकेदार भी उसे मजदूर शामजी नहीं मजबूत शामजी  कहता था।****
    
6.परिंदों का घर
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    मालती ने जी कडा कर के अपने बेटे सक्षम को प्रतियोगी परीक्षा पूर्व तैयारी के लिए कोटा भेज ही दिया, पर नौकरी की व्यस्तता के कारण पहली बार उसके साथ ना जा सकी.।आज एक साथ तीन छुट्टियाँ पडने पर  ,अकेले ही अचानक पहुँच कर सक्ष्म को आंनद एवं स्वयं को विश्वास दिलाना चाह रही थी कि सब ठीक है।दिल और दिमाग मे सदा कशमकश चलती थी कि अकेले ,घर से दूर ,अनजान लोगो के बीच कैसे रहता होगा।अनेक अच्छी बुरी घटनाएं कभी कभी मन को हताश करती पर विश्वास की डोर उम्मीद  को जिंदा रखती।
            दोपहर के तीन बजे थे, छात्रों का आराम करने का समय।मालती ने धडकते दिल से मेन गेट खोला, नीचे के हिस्से मे मकान मालिक एवं ऊपर दो कमरो मे छात्र। सीढियां चढते एक तस्वीर आँखों के सामने   थी,बिखरा कमरा,उल्टे सीधे पडे कपडे, जूते,, पलंग पर पानी की खाली बोतलें, कुछ नमकीन के खाली रैपर व सब के बीच बच्चे बतियाते या मोबाईल के साथ। जैसे ही दरवाजे पर थपकी देने लगी, दरवाजे पर लिखे शब्दों ने मंत्रमुग्ध कर दिया। परिंदों का घर।
              धीरे से धक्का देते ही दरवाजा खुला, चारों ओर शांति, पलंगों पर करीने से बिछी चादरें, अलमारी बंद,  हाँ मेज पर कुछ किताबें खुली पडी थीं जो दर्शा रही थीं कि कार्य प्रगति पर है।एक छात्र चाय बना रहा था,शेष तीन फर्श पर अधलेटे किसी सवाल का हल निकाल रहे थे। सक्षम मुडा,माँ को देख कर चीखा और गले लग गया। शेष तीनों ने सामान संभाला, पानी पिलाया व चाय भी ले आए। मालती हतप्रभ, समझ गई ,सुरक्षा चक्र से निकल, परिस्थितियों , काल व आवश्यकता ने परिंदों को बहुत कुछ सीखा दिया। मालती ने सब को प्यार किया। सब ने एक साथ कहा, सब ठीक है ना, पर आप लोगों के लिए अविश्सनीय
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7.चिड़िया उड़
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    करोना महामारी के चलते पूरा परिवार ही घर के अंदर   कई दिनों से   एक तरह से स्वेच्छा से बंद था। सब एक दूसरे का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते । मिल जुल कर काम और फिर कभी -कभी पुराने खेल ।दादाजी भी खेल में बराबर टक्कर देते थे ।
     आज दादाजी ने कहा कि राज बेटा 'आज तेरे पापा के पसंद वाला चिड़िया उड़ खेलते हैं।बचपन में यह हमेशा जीतता था।  बच्चों ने पूछा ," वही ना जिस में गल्त पक्षी उड़ाने पर मार खानी पड़ती है वो भी स्टाईल से । हथेलियों को जोड़ कर ऊपर नमक -मिर्च ,हल्दी बु्रकने का मंत्र और दे चाँटा। पर होशियार खिलाड़ी बच जाता है ।चतुराई का खेल है ।
   तो फर्श पर राज , टीना, दादाजी और पापा बैठ गये । चिडिया,  उड़. कबूतर उड़. हाथी उड़ चल रहा था। बीच -बीच में गल्त  जवाब पर ठहाका गूँजता। फिर वही चाँटा प्रक्रिया ।अचानक पापा ने कहा मैं बोलूँगा। सब ध्यान से सुनना,दादाजी ने कहा, अब आया चैंपियन।चिड़िया उड़, कबूतर उड़,  बकरी उड़, जि़दगी उड़, पर सब की ऊँगलियाँ नीचे थीं पर पापा की ऊपर ।
       दादाजी ने कहा ,"रमेश बेटा यह क्या ?" रमेश ने गीली आवाज में कहा पर पिताजी जि़दगी तो उड़नी ही  चाहिए। मैं उड़ाऊगा चाहे कितने ही चाँटे खाने पड़े । सब ने एक साथ  दादाजी ने को देखा और अपनी -अपनी उँगलियाँ हस कर उठा दी। सच है जि़दगी की उड़ान कौन सकता है।*****
      
8. दोलो गुरू
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किन्नर समाज आज शोकमग्न है क्योंकि दोलो गुरू (मीना बाई)कई दिनों से अस्वस्थ थीं और आज तो डाक्टर ने भी जवाब दे दिया है।नये पुराने सभी चेले उनके कमरे में एकत्र होकर भजन गा रहें हैं। पर दोलो गुरू बिस्तर पर संतुष्ट, शांत ,मुग्ध अवस्था में लेटी थीं।उनके चेहरे पर बीच बीच में मधुर मुस्कान आ जा रही थी क्योंकि वह खुश हैं .,संतुष्ट है इस नयी किन्नर पीढ़ी की दृढता ,व आत्मविश्वास देखकर। उन्हें आज भी याद है ,जब वह समाज से तिरस्कृत घर -घर बधाई देने व ताली बजा कर नाचने व कभी- कभी तंगी में माँग कर खाने के लिए मजबूर हो जाती थी तब अत्यंत  शर्मनाक व अपमानित महसूस करती थी । ऐसे में एक शिक्षिका के घर में बधाई मांगने जब वह गई तो जीवन में अनोखा परिवर्तन आया।
             उस शिक्षिका ने कपड़ें, मिठाई, व रूपयों के साथ उसे साक्षरता अभियान का एक बस्ता दिया,जिसमें पढ़ने लिखने की साम्रगी थी व सिर पर हाथ रख कर दृढ़ता से आँखों में देखा।फिर दृढ़ पर आत्मिय आवाज में कहा,"इसे खोलना, पढ़ना, समझना तब देखना ,जिंदगी में बधाई दोगी नहीं लोगी ।यह आवाज भीतर तक उतरी, तब से परिश्रम से खुद पढ़ी अपने चेलों को भी गंडा बाँधते हुए एक ही गुरू मंत्र देती।"समाज में अपना नाम  अब बधाई देने नहीं लेने के लिए आगे लाना है"
               शुरुआत में सब ने दोलो ,दोलो कह कर खूब चिडाया,अपमानित किया ,पर मीना बाई ने हार नही मानी ।शिक्षा व गृह उधोग  में  सब को पारंगत किया। अनेकों को नारकीय जीवन से बचाया और वह कब मीना बाई से दोलो गुरू बनी पता ही ना चला। ****
    
9.ट्राई -ट्राई फिर से
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    कर्मचारियों के आंदोलन विभिन्न चरणों से गुजरता रहा। अपनी मागों के लिए संघर्ष हड़ताल, संसद भवन तक कूच आदि कई योजनाएं क्रियान्वित हुईं।पर सरकार के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी।.निजी स्कूल के अध्यापक,अध्यापिकाएं,कर्मचारीगण नय जोश इक्ठ्ठा कर के मैदान में ड़टे थे।पर उनका आंदोलन पुरजोर असर नहीं पा रहा था। कम वेतन, कम हिम्मत, कम सहायता ज्यादा काम और ज्यादा दबाव उनकी नियति थी। सरकार और विभाग मौखिक आशवासन देकर अपना उल्लू तो सीधा कर लेते पर शेष वादे नीतियों के बवंड़र में उलझा देते। आज निर्णयाक आंदोलन था। थके -हारे चेहरे और निम्न स्तरीय विश्वास पर नेता उत्साह लाने की कोशिश कर रहे थे।पर वे  भीतर स्वयं जानते थे कि आज यदि कुछ सकरात्मक नहीं हुआ तो सब खत्म हो जाएगा।फिर से शून्य से प्रारंभ करना होगा। बुद्धिजीवी जब हार मान लेते हैं तो फिर मुश्किल हो जाती है ।
     एक समूह में युवा बैठे थे।कुछ ज्यादा ही निरूत्साहित हो रहे थे।धीरे-धीरे उनकी ठंड़ी भावनाएं सभी में फैलने लगी ।किसी ने कहा  यारों लगता है आज भी सब टाँय-टाँय फिस्स होने वाला है। उसी समूह के पीछे वृद्ध अध्यापकों का दल बैठा था। उम्र के इस पड़ाव पर भी हौसला जवान था।  खड़े होकर बोले , "अरे भाईयों जोर से बोलो ट्राई -ट्राई फिर"। एकदम ठहाका गूंजा और माहौल बदल गया। सभी एक दूसरे का हाथ थामें  सधे कदमों और नये उत्साह से, नये नारे के साथ निकल पड़े"    ट्राई -ट्राई फिर से । ****

 10.माँ बोली
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  मूल सिंह ने जैसे ही पर्यटन बस में पैर रखा।सभी विदेशी एक साथ अलग लहजे में बोले,नामस्ते, खामा घानी। सुनते ही मूलसिंह का मुँह खुला का खुला रह गया। कहाँ वो जर्मनी और अँग्रेजी के भारी -भारी शब्द याद कर के आया था कि प्रभाव पड़ेगा पर यहाँ तो नजारा ही और था। केसरिया साफे, दुप्पटे  पहन हिन्दी बोलने की ललक ने उसे अचंभित कर दिया। जयपुर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी आरंभ करने से पहले उसने अँग्रेजी में कहा, मैं आप को अँग्रेजी और हिन्दी दोनों में सारी बातें बताऊँगा।
पर सब से वरिष्ठ अँग्रेज बोला , पहले  आप का माँ बोली हिन्डी  फिर हमारा भाषा।  उस  पूरे दिन मूल सिंह से अधिक उत्सुकता से हिन्दी बोलते, बीच -बीच में छाछ, मिर्ची बड़े और जलेबी खाते- खाते कब शाम हो गयी और गुलाबी नगरी में सारे फिरंगी केसरी हो गये पता ही नहीं चला। आज फिर से मूल सिंह ने अपने हिन्दी अध्यापक की सिखाई कविताएं और लोकोक्तियों को सरल तरीके से बातों बातों में सब को सुनाई और एक बार  फिर हीरो बना गया। हिन्दी की शिक्षा ने गौरव दिलवाया।****
 
11.परत
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जालपा गाँव के एक जाति विशेष के लोगों में अनोखा उत्साह नजर आ रहा था। कारण भी बड़ा था। उनके गाँव का पहला सरकारी उच्च अधिकारी किशनलाल था और उस के पोते का विवाह शहर में शानोशौकत से होने वाला था और  सभी उसके साक्षी बनने के लिए तैयार बैठे थे। रोज शाम चौपाल पर इसी बात की चर्चा कि किशनलाल की बहू चाहे बामन है पर बेटा और पोता तो अपना खून है देखना न्यौता जरूर आएगा। 
          शादी के मात्र सप्ताह भर पहले किशन बड़ी सी कार में सपरिवार आया।  गाँव के बडे बुजुर्गों को घर पर आमंत्रित कर आदर भाव से कहा कि थान पर आशीर्वाद लेने व आप सब को पोते से मिलाने लाया हूँ । एक और बात शादी के बाद पूरे गाँव को यहीं पर शानदार भोज दूंगा। तब आप लोग पतोहू को भी आशीष दे देना। फिर खोखली हंसी हसते हुए बोले.,,,",पतोहू भी तो एकबार अपने लोग देखे। 
      सब हतप्रभ, मौन,अनमने से एकदूसरे को देख रहे थे। क्या यह हमारा ही किशनवा है जो सुसभ्य भाषा में यह कह रहा है कि आप लोगों से दूरी ही ,आज की व भविष्य की जरूरत है। परतों के नीचे एक और जनजाति पनपने लगी है। शिक्षा ,ज्ञान, पद भी आँखों पर  यदि जाले बढ़ाती है फिर नैया कैसे पार लगेगी ? ****
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क्रमांक - 05
जन्म तिथि : 20 अप्रैल1975
 पिता : स्व.पुरूषोत्तम दास
माता :  सुदर्शना अरोड़ा
पति : जगदीश वधवा
शिक्षा : डबल एम. ए. बीएड , एन ई टी 

सम्प्रति : संगीत की अध्यापिका 

साहित्य  उपलब्धियाँ :- 

   "साँझ के द्विप " सांझा कहानी संग्रह म
   "दिल कहता है " सांझा संकलन 
  "हम भारत की बेटी" साँझा संकलन 
 " पावन माटी देश की साँझा संकलन 
  "जसवंत सिंह रावत" सांझा काव्य संकलन

पता : कमला काॅलोनी .नगर परिषद के सामने वाली गली.बीकानेर - राजस्थान
1. जीवन साथी और वेलेंटाइन डे
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जैसे ही अख़बार पर नज़र पड़ी ,तो पता चला, आज वैलेंटाइन डे है!
सहसा मेरी सहेली श्र्द्धा मुझे याद आ गई ,जो खो गई थी इसी डे में कहीं,
बात कॉलेज के दिनों की है ।हम दोनों गहरी सहेलियां थी ।
अचानक श्र्द्धा ने बताया, उसे अपने ‌पडोस में रह रहे लड़के से प्रेम हो गया है जो बाहर से आया है।
मैंने उससे  कहा भी ,की तुम पहले लड़के की पूरी जानकारी ले लो ,
" प्यार तो अंधा होता है" उसने यह कहकर बात टाल दी , हर साल वेलेन्टाइन का दिन दोनों मिलकर खुशी से मनाते  और श्रृद्धा तो इस दिन को
अपने जीवन का सबसे खास दिन मानती थी, इस तरह तैयारी करती थी कि और कोई त्योहार हो ही ना !
हमारी कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म हो गई और मैं शहर से दूर मेरे मामा के घर ,कुछ समय रहने चली गई । लगभग वर्ष भर रही और जैसे ही लौटी मैंने अपनी सहेली को मिलने कि इच्छा से फोन किया ।
परन्तु  दिल  दहला देने वाली खबर मिली। 
 श्र्द्धा इस दुनिया ‌में नहीं रही ! मैंने आव देखा ना ताव और ना किसी से मिली, सीधे उसके घर पहुंच गई ।
श्र्द्धा के घर वालों की हालत देख कर जमीन ही खिसक गई ।
आंटी तो जैसे बुत ही बन गई थी।
हिम्मत कर भैया से पूछा तो पता चला कि जिस लड़के से श्र्द्धा प्यार करती थी ; उसी से जब शादी कि बात ‌कि तो उसने यह कहकर मना‌ कर दिया कि तुम मेरी वैलेंटाइन डे हो और मैं तुमसे प्यार भी करता हूं पर जीवन साथी के लिए मुझे अलग तरह कि लड़की चाहिए बस जैसे ही लौटी आकर कमरे मैं झूल गई पंखे से ।
भैया के उस प्रशन नें
सोचने को मजबूर कर दिया कि वैलेंटाइन डे सिर्फ प्रेमियों का दिन है  जीवनसाथी और प्रेमी अलग-अलग होते हैं क्या ? ****

2. खुद पर भरोसा
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अमित पिछले दो वर्षो से नौकरी की तलाश में मारा- मारा फिर रहा था । प्रतिदिन सुबह निकलता ,इंटरव्यूज देता परन्तु साझं तक जवाब नाकारात्मक ही आता। 
अमित के पिता जी ने उसे समझाते हुए कहा की वह कोई छोटा-मोटा अपना व्यापार कर ले।
और समझाया कि - 
"अमित यहाँ योग्यता पर भी वजन चाहिए जो  तुम देना पाप समझते हो"
अमित गुस्से में बोला।
"नहीं दूंगा रिश्वत ,मैं अपनी काबिलियत पर ही हासिल करूंगा अपना मुकाम, अगर हम जैसे पढ़े-लिखे नौजवान ही भष्टाचार को बढ़ावा देगें तो देश से भष्टाचार को बाहर कौन करेगा"
"परन्तु अमित बेटा ,मैं जानता हूँ  हमने ही संस्कार दिए हैं तुम्हें ,सच और सही के मार्ग पर चलने के,
परन्तु वर्तमान में  कहीं भी संस्कार और सभ्यता दिखाई नहीं देती, एकबार नौकरी हासिल कर लो फिर चलना  सच और ईमानदारी की राह पर, कौन रोकता है,  तुम्हें "
आज अमित सुबह जल्दी उठकर बाहर टहलने चला गया पर मस्तिष्क में पिताजी की बातें ही गूंज रही थी और वह यह भी जानता था की पिताजी उसे परेशान नहीं देख पा रहे हैं इसलिए ऐसा कह रहें हैं अमित अशांत था इसलिए 
अमित कुछ ही देर में घर लौट आया और पिताजी का आशीर्वाद लेकर घर से निकल पड़ा। 
शहर से दूरी पर पड़ी अपनी जमीन को सींच कर उस पर  खेतीबाड़ी करने लगा और उससे समय निकाल कर नौकरी की तलाश भी। 
आज अख़बार में अमित की इन्टरव्यू छपा है ।
की अलग- अलग तकनीक का प्रयोग कर, कम समय में अच्छी फसलें किस प्रकार ऊगाई जाती हैं ।
और तो और बड़े -बड़े किसान भी अमित से सलाह लेने आते हैं ।
आज हर कम्पनी अमित को अपनी कम्पनी में अच्छे ओहदे पर रखने को तैयार है। ।परन्तु अमित ने अपने बलबूते पर अपनी कम्पनी खोली और योग्यता के आधार पर उन सबको नौकरी दे रहा है  जिन्हें आवश्यकता है।
आज पिताजी अपने बेटे की तारीफ़ करते नहीं थकते।
कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता,
आपकी मेहनत,लगन,सच्चाई, जोश और जुनून तय करता है। आपके काम का स्थान और आपकी पहचान ।
मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है ।ईश्वर नें हमें जीवन दिया है । उस जीवन को खुशहाल बनाना है या मायूसियों भरा ।यह हमारे हाथों मे है। ****
 
3. मिलन की चाह
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एक धनवान व्यक्ति  जिसका नाम धनपाल था । 
उसे हमेशा ईश्वर को देखने की चाह रहती थी,
इसलिए वह हमेशा धन,वस्त्र, खान-पान की वस्तुएं गरीब लोगों को दान किया करता था और उसके बदले में उनसे यही कहता था की वह सब भगवान के आगे उसकी प्रशंसा करें और भगवान से प्रार्थना करें की भगवान धनपाल अर्थात हमारे  अन्नदाता को दर्शन दें। 
यह सब कार्य करके धनपाल थक चुका था। परन्तु उसे ईश्वर के दर्शन ना हुए।
उसे भरोसा था की उसे ईश्वर जरूर मिलेंगे। एक दिन रात में धनपाल नें अपनी पत्नी से कहा की वह जंगलो में जाकर भगवान को ढूँढ़ना चाहता है । पत्नी ने मना भी किया परन्तु धनपाल की लगन व खुद पर भरोसा सच्चा था। वह अलसुबह खाने की वस्तुएँ और कुछ धन लेकर पत्नी को अलविदा कहकर निकल पड़ा। बहुत समय बीत गया परन्तु ईश्वर उसे अभी भी ना मिले।
घूमते-घूमते जंगलों से वह एक शहर में पहुंच गया ।
अब तक खाने की वस्तुएं सभी खत्म हो चुकी थी।
केवल धन ही बचा था।
 चलते-चलते , वह अचानक कुछ शोर सुनकर रूक गया। 
"मुझे मर जाने दो पिता जी , मैं आप पर बोझ हूँ, आप मेरी शादी हेतु कहाँ से लाएंगे इतना धन हमारे पास तो खाने को भी धन नहीं है"
धनपाल से रहा ना गया उसने दरवाज़ा खटखटाया और अपना सारा धन उन्हें देकर कहा की वह भी भगवान से उसकी प्रशंसा करें और धनपाल को दर्शन देंने हेतु कहें। 
इस प्रकार धनपाल का धन भी न रहा। 
धनपाल भूख से तड़प रहा था। ना पास में  पैसा था और ना ही खाना बचा था उस पर शहर की निर्दयता। 
घनघोर काली रात।  भूख का मारा   धनपाल एक मन्दिर में जा पहुंचा  भगवान की मूर्ति देखते ही मूर्ती से लिपटकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
"भगवान कब मिलोगे मुझसे 
आप ही तो कहते हो ,गरीबो में भगवान है तो मैनै अपना सारा धन उन्हें दे दिया तुम तब भी ना आए !
सबसे कहलवाया तुम तब भी ना आए ! आज भूख से मर रहा हूँ,
आपको मिलने हेतु कहाँ से कहाँ आ गया हूँ ,कब मिलोगे मुझसे ? "
धनपाल लगातार रो -रोकर भगवान को पुकार रहा था।
जैसे ही उसके आँसुओं ने भगवान के चरणों को छुआ भगवान प्रकट हो गए और धनपाल को हृदय से लगा लिया और बोले।
"धनपाल तुमने सब किया सबके हाथों संदेश भी भिजवाए परन्तु प्रेम से खुद ना पुकारा आज जो पुकारा तो देखो मैं चला आया"
धनपाल  ईश्वर के चरणों में गिर पड़ा। ।
खुद पर भरोसा और सच्ची लगन असंभव को भी संभव बना देती है। ****

4.विधवा दौलत
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दौलत राम की पत्नी को विधवा का लिबास पहनाकर बहुओं ने जैसे कफन ओढ़ा दिया हो ।
जहाँ हर तीज-त्यौहार पर सासु माँ की उपस्थिति को  गर्व समझा जाता था वहीं ससुर जी की मृत्यु के पश्चात सासु माँ की उपस्थिति को अप-शकुन माना जाने लगा । रूखी-सूखी  
खाने को देना  , मैली- कचेली साड़ी पहनने को  देना ,नंगे पावँ चलने को मज़बूर करना आदि सभी मर्यादाओं का उल्लंघन किया जा रहा था । 
परन्तु बच्चों के अनुसार 
प्राचीन सभ्यताओं व परम्पराओं का निर्वाह हो रहा था।
बड़ा बेटा व बहु बैंक में कार्यरत  थे,छोटा बेटा व बहु शिक्षक थे ।
चारों अपने ज्ञान को बख़ूबी व्यवहार में ला रहे थे  और ज़रा भी शर्मिदा नहीं  थे।
दौलत राम की दौलत में कमी नहीं थी पर हाँ शायद वह भी  संस्कारों की अपेक्षा दौलत को प्रेम करते होंगे तभी तो उनका नाम दौलत राम रख दिया गया था और वही शिक्षा ,दौलत राम जी नें अपने बच्चों को दी थी कि "दौलत है ,तो सब कुछ है"
परन्तु बच्चों नें इस वाक्य के नाकारात्मक अर्थ को ही आत्मसात किया ,
तो अब पत्नी दुःख भी करे तो किसका करे।
एक रात दौलत राम की पत्नी अपने कमरे से बाहर निकली तो देखा चारों बच्चे कुछ फुसफुसा रहे थे  ।
वह निःसंकोच उनके पास आई ,परन्तु चारों नें उनके चेहरे  को देखना जैसे पाप समझा और मुँह फेर कर चले गए।
 उन्हें बहुत बुरा लगा । वह रोते-रोते कहने लगी की 
"मैं अपनी मर्जी से विधवा नहीं हुई हूँ ,माँ हूँ तुम सबकी और एक बात बताओ मुझे ? माँ तो कभी विधवा नहीं होती ना माँ तो माँ ही रहती है "
और रोते-कलपते वहाँ से चली जाती है।
अगले दिन सुबह दौलत राम की पत्नी जब बच्चों को अलविदा कहने को बच्चों के पास आई तो चारों आश्चर्य चकित रह गए। 
बड़ी बहु ने बड़े भद्दे तरीक़े से सवाल किया 
"मांजी कहां जा रही हो सामान लेकर ! कौन रखेगा आप जैसी को ,मांजी आप स्वीकार क्यों नहीं कर लेती की आप विधवा और मनहूस हो चुकी हो,यह नियम भगवान ने बनाएं हैं हमने नहीं, अब बाकी की जिंदगी घर के कोने में छिपकर ही जीना होगा"
मांजी ने बड़े प्यार से जवाब दिया 
"हाँ बेटा सही कहती हो, मैं भी उसी कोने में जा रही हूँ जो कोना तुम जैसे लायक बच्चों नें मुझ जैसी विधवाओं के लिए शान से बनवाया है "विधवाश्रम" 
इस पर छोटा बेटा दिखावटी अंदाज़ में बोला
"माँ मैं तो तुम्हारा लाडला हूँ ना ,तुमने हमेशा मेरी इच्छा पूरी की है अब मैं भी तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा माँ ,मैं छोड़कर आऊँगा तुम्हें 
परन्तु माँ तुम तो जानती हो आजकल हाथ ज़रा तंग है और अब हमें भी अपना -अलग घर बनाना है ,क्योंकि यह घर तो बाबू जी ने बड़े भैया के नाम कर रखा है,माँ ,बाबू जी की जायदाद के काग़ज होगें ना वह तो दे दो"
माँ ने इस बार बहुत खूबसूरत जवाब दिया ।
"बेटा तुम सही कहते हो तुम्हारे पिताजी की ही गलती की सज़ा है जो मैं जा रही हूँ, नहीं तो शायद तुम लोग जाते अब मैं वही गलती नहीं दोहराऊँगी, मैं यह वसीयत  उन माँओं को दूँगी जो विधवा हैं क्योंकि हमारे साथ हमारी वसीयत भी विधवा हो जाती है और मनहूस हो जाती है और ऐसी वसीयत ऐसी महिलाओं के ही काम आ सकती है और वह चुपचाप वहाँ से चली जाती हैं। ****

5. श्राद्ध या श्रद्धा
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सुरेश मेरा नया ही दोस्त बना था  ।
उसका तबादला मेरे शहर में हुआ था और वह मुझे हर बार अपने घर बुलाता ,परन्तु मैं समय के अभाव के कारण कभी जा ही नहीं पाया।
आज सुरेश के पिता जी का श्राद्ध था और मैं सुरेश के घर न्योते पर था। सुरेश के घर पकवान तो बहुत सारे बने थे ।
मैं प्रसाद खाने के पश्चात ज्यों ही रसोई घर में झूठे बर्तन रखने गया तो मैने देखा बर्तन वाली बाई बहुत बूढ़ी थी ; और वह थोड़ी थोड़ी देर में बैठ जाती ।
मुझसे रहा ना गया ,मैंने बाहर आते - आते  सुरेश से कहा  "सुरेश एक बात कहुं ,बुरा ना मानो तो तुम काम वाली बाई को बदल लो ,बहुत बूढ़ी हैं  उनकी मदद हम दोनों यूं ही कर देंगे अब तो तुम्हारा प्रमोशन भी हो गया घर भी शानदार बनवा लिया इस नए शहर में !
सुरेश ने मेरी बात को स्वीकार कर , बड़ी आसानी से हाँ कर दी। 
इतने में एक बालक आया और वह सुरेश को लिपट कर बोला
"पापा दादी कहां है ? दिपू की दादी मेरी दादी का पूछ रही है"
"अरे छोड़ो मुझे ‌"
सुरेश चिल्ला कर बोला " "अन्दर जाकर देखो तुम्हारी दादी रसोई में बर्तन साफ कर रही है"
अनायास सुरेश के मुख से निकल गया ।
मैं एकटक उसे देख रहा था 
सुरेश सकपकाते हुए बोला
और बताओ श्याम सब पकवान कैसे बने थे तुम्हारी भाभी ने बनाए थे वो ज़रा पास में ही बहन के घर गई है नहीं तो मिलवाता ।
"स्वाद तो बहुत था श्राद्ध मेें परन्तु श्रद्धा की कमी थी"
और मैं वहां से निकल गया । ****
    
6. एक चपाती
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"माँ आज एक चपाती और थोड़ी सब्जी टिफिन में अधिक डाल देना, भूख लगती है "दिपू ने बाथरूम से नहाते हुए कहा और माँ ने वैसा ही किया परन्तु यह क्या दिपू उसी दिन से विद्यालय से आधा घंटा देरी से आने लगा, माँ को चिंता हुई  माँ ने विद्यालय फोन किया तो पता चला कि दिपू विद्यालय से तोे सही वक्त पर  निकल जाता है। 
माँ को चिंता होने लगी कि दिपू विद्यालय के बाद कहां जाता है। 
माँ आज विद्यालय 
छुट्टी होने से थोड़ी देर पहले ही पहुंच गई और अपनी गाड़ी से स्कूल बस का पीछा किया यह क्या!
माँ अपनी गाड़ी से उतरकर दीपू के पास पहुंची ।
"दिपू यहां झोपड़ियों के पास क्या कर रहे हो, और इन थैलियों में क्या है" माँ चिल्लाई
दिपू माँ को देख डर गया और घबराते हुए बोला। 
" माँ , माँ इन थैलियों में वह एक चपाती व थोड़ी अधिक सब्जी है जो कक्षा के सभी पचास छात्र ' छात्राएं लाते हैं और इस तरह इनकी भूख शांत हो जाती है।
 माँ  यहां के बच्चे गली किनारे डस्टबिन से खाने को
ढूंढ रहे होते हैं,  मुझे दुःख होता है।
रश्मी की आंखों में आँसू थे। ****

7. फूलदान
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एक कुटिया में गुरु, शिष्य रहते थे । गुरूजी के पास एक पीतल का फूलदान था । जिसे गुरु प्रतिदिन प्रातः काल मांजते थे । शिष्य यह रोज देखता था । एक दिन शिष्य से रहा ना गया और गुरूजी से बोला 
"गुरुजी आप इस फूलदान को रोज़ क्यूं मांजते हैैं ‌,हफ्ते में एक दिन मांज लिया करो" गुरूजी ने शिष्य की बात पर मुस्कराते हुए हाँ कह दी ।
आज उस फूलदान को साफ किए हफ्ता हो गया था और उसकी चमक फीकी पड़ चुकी थी। गुरूजी ने शिष्य से कहा फूलदान मांज लाओ। 
शिष्य ने पूरे तन व मन का जोर लगा दिया परन्तु फूलदान पर पहली सी चमक ना आई शिष्य गुरूजी के पास गया और फूलदान दिखाया अब गुरूजी फिर मुस्कुराए शिष्य ने कहा "गुरूजी मैं मुसीबत में हूं और आप हँस रहे हो"
गुरूजी ने हंसते हुए शिष्य को पास बिठाया और समझाया देखो पुत्र जिस तरह पितल को रोज़ चमकाने से उसकी चमक कम नहीं होती उसी प्रकार हमारा शरीर है इसकी चमक भी बनाए रखने हेतु ,योग, व्यायाम आदि जरूरी है वरना हम भी फूलदान की तरह फीके पड़ जाएगे शारीरिक रोगो के शिकार हो जाएगेे और रोगी शरीर का मन भी रोगी हो जाता है । क्रोध, तनाव,खीज आदि भंयकर रोग मन को घेर लेते हैं।
शिष्य गुरूजी के चरणों में गिर पड़ा और वादा किया कि अब रोज योग,व्यायाम करेेगा व अन्य को भी योग का महत्व बताएगा। ****
    
8. अनोखा कन्या पूजन
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रेखा का विवाह तय हो गया था । मात्र दो महीने बचे थे शादी को ।अचरज की बात तो यह थी कि रेखा के माता-पिता ने ही लड़का देखकर तय किया था। रेखा को बस इतना  मालूम था कि वह एक शिक्षक है ।
आज रेखा ने अपनी माँ से लड़के से मिलने की इच्छा जताई और कहा कि जैसा कन्यापूजन मैं मायके में करती हूँ वैसा ही ससुराल में करना चाहती हूँ बस इतना जानना चाहती हूँ कि वह सहमत हैं या नहीं।
माँ ने भी हाँ कर दी
शाम को माँ ने लड़के को घर पर ही बुलवा लिया।
प्रतीक समयानुसार घर पर आ गया।
रेखा और प्रतीक को कमरे में अकेला छोड़ दिया गया।
प्रतीक ने रेखा से मन की बात कहने को कहा।
रेखा ने भी बिना हिचकिचाए बोलना प्रारम्भ कर दिया
"आपके घर हर नवरात्रि पर्व पर कन्यापूजन होता होगा"
 प्रतीक ने गर्दन हिलाकर  हाँ कह‌ दी
"किसे देवी रूप में बुलाते हैं"
"हमारे परिवार में ही नौ दस कन्याएं हो जाती है माँ हर बार उन्हीं को बुलाती है, बाहर की कोई कन्या नहीं आती"
"यही बात मुझे आपसे करनी थी , विवाह पश्चात लड़ाई का कारण ना बन जाए "
प्रतीक हतप्रभ निगाहों से देखा सोच रहा  था कि यह क्या कारण है लड़ाई का।
रेखा ने कहा--
"प्रतीक जी में वर्ष में दो बार कन्यापूजन पर उन गरीब कन्याओं को भोजन कपड़े आदि घर बुलाकर सम्मान‌ से देती हूँ जो झुग्गी झोपड़ी या गन्दी बस्ती में रहते हैं या जो भीख मांग कर अपनी क्षुधा शांत करते हैं हो सकता है आपके घर उन गरीब बच्चों को आना मनाही हो तभी मैंने पहले पूछ लिया हाँ मैं यह नहीं कहती कि मैं महान हूँ पर हाँ अगर हमें कुछ भी देने का दिल करे तो हमें उनको देना चाहिए जो जरूरत मंद हो ना कि उन्हें जो पहले से ही सम्पन्न हो"
प्रतीक ने लम्बी सांस ली और बोला
रेखा मुझे गर्व होगा यदि तुम मेरी दुल्हन बनने को हाँ कह  दो। ****

9. भगवान का काम
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सूरज आज जल्दी उठा , क्योंकि आज उसका जन्मदिवस था।
माँ ने रात को ही कह दिया था कि कल सुबह जल्दी उठकर, नहा धोकर, मंन्दिर जाएंगे सही आठ बजे , सुरज व उसके माता-पिता अपनी कार में बैठ मंन्दिर को निकल पड़े ,रास्ते में माँ ने सुरज को एक लिफाफा दिया जिसमें पाँच सौ रूपए डाल दिए और कहा मंन्दिर में भगवान के चरणों में रख देना ,तीनों मंन्दिर पहुँचे। भगवान के आगे पूजा , अर्चना  कर मन्दिर से बाहर निकल आए अचानक सुरज ने कहा , माँ , मैं अभी आता हूँ और कहकर एक औरत के आगे जाकर रूक गया  जो  बहुत जीर्ण-शीर्ण अवस्था में थी और गोद में बहुत छोटा सा बालक लिए सड़क किनारे बैठी थी वह बालक भूख से जोर - जोर से रो रहा था
 सुरज के माता - पिता उसे देख रहे थे । 
सुरज उन दोनों को अपनी कार के पास लेकर आया और अन्दर बैठने को कहा और जेब से लिफाफा निकालते हुए पिता जी के आगे बढ़ाते हुए कहा ,     "पिताजी यह लोग भूखे हैं ,आप इन्हें खाने का सामान दिलवा दिजिए ना " माँ  ने सुरज को अपनी ओर खींच कर गुस्से भरी निगाहों से पूछा।
"सुरज यह सब क्या है ? यह पैसे तो भगवान जी के थे ना "
सुरज बड़ी मासूमियत से बोला
" माँ आप ही तो कहती हो ना ,  कि हम सबको भोजन, कपड़े, घर,पैसा सब भगवान देता है ।जब भगवान जी के पास इतना कुछ है , तो भगवान और पैसों का क्या करेंगे ! और हाँ , मुझे लगता है , कि भगवान , आज इन्हें इनके हिस्से का भोजन देना  भूल गए हैं , सो मैं भगवान जी का ही तो काम कर रहा हूँ " 
यह सुनकर माता-पिता की आंखों में गर्व के आँसू थे और उन्होंने वही किया जो सुरज ने कहा और उस औरत से पूछा कि वह क्या - क्या‌ काम कर सकती है‌ ?
औरत ने बताया वह पढ़ी- लिखी नहीं है परन्तु झाड़ू पोछा, बर्तन आदि काम कर लेगी।
सुरज की माता जी ने आस पडोस से पूछकर उसे काम पर लगवा दिया। ‌आज सुरज बहुत खुश था। ****

10. किन्नर 
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 बेटे की इच्छा में रमेश जी की चार बिटिया  जन्म ले चुकी थी । परन्तु बेटे की माँग बरकरार थी । रानी घर में सबसे छोटी बेटी थी , जो मात्र चार वर्ष की , और बड़ी बेटी दस वर्ष की ,सुशीला फिर से माँ बनने वाली थी ।
और रमेश जी दिन-रात इसी चिन्ता रहते थे कि कहीं इस बार भी फिर से बेटी ना आ जाए ।
गरीबी भी पल्लु से हर घड़ी बंधी रहती थी।
आखिर इन्तजार की घड़ियां समाप्त हुई सुशीला जी अस्पताल में दर्द से लड़ रहीं हैं। 
"देखिए कुदरत का करिश्मा ,
"बेटे का सपना  किसी की बेटी से बुना 
 फिर भी बेटी के जन्म पर सन्नाटा चारगुना "
खैर!  यह मुद्दा शायद कभी ना पूरा होने वाला ही है।
 इन्तजार की घड़ियां समाप्त हुई डॉक्टर जी बाहर आई ,परन्तु उनके लटके हुए चेहरे नें रमेश जी के होश उड़ा दिए रमेश जी लड़खड़ाते बैंच से उठे और डॉक्टर के नजदीक आकर धीरे से बोले।
क्या हुआ है लड़की ? 
"नहीं "
यह सुनते ही रमेश जी ने खुशी से सारे अस्पताल को सर पर उठा लिया
"लड़का हुआ है मुझे ! अब मेरे वंश का भी आगे तक नाम जाएगा "
"सुनिए रमेश जी, मेरी पूरी बात तो सुनिए "
डॉक्टर मेम फिर धीमे स्वर में बोली 
"अरे क्या हुआ  आपकी आवाज को ! इतना धीरे -धीरे क्यूँ बोल रहीं हैं आप , जच्चा-बच्चा तो ठीक हैं ना "
एकबार फिर रमेश जी ने घबरा कर पूछा
डॉक्टर मेंम ने इस पर भी शांतिपूर्वक जवाब दिया।
"हाँ"
 "तो क्या बात है मेंम, मुझे घबराहट हो रही है, कृपया बताईए मैं अपनी खुशी क्यूँ ना मनाऊँ "
रमेश जी ने फिर घबराते  
-घबराते प्रश्न छोड़ा
इस वाक्या के लगभग एक घंटे बाद रमेश जी को होश आया।
डॉक्टर मेंम ने उन्हें पानी पीलाते हुए तसल्ली दी ।
" रमेश जी इस तरह तो आप अपनी तबीयत बिगाड़ लेंगे, इस तरह के बच्चों के लिए समाज में अलग स्थान बने होते हैं ,आप इसे वहाँ छोड़ आईएगा "
"शिक्षा स्वयं शिक्षा पर आँसू बहा रही है
ऊँचे-ऊँचे पदो की खातिर रिसती जा रही  है "
रमेश जी गुस्से में पलगं से ऊठे ,बेटियों को साथ ले पत्नी को सहारा लगाते घर की ओर चल  दिए। 
वह नन्हीं जान माता-पिता को टुकुर- टुकुर देख रही थी ,और शायद अपने किन्नर होने का दोष पूछ रही थी
"अरे रमेश जी अपनी सन्तान को छोड़कर कहाँ जा रहें हैं आप "
"फेंक दिजिए किसी नाले या गटर में यह वहीं के लायक है"
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11. रात का खाना
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"मां आज मैं इनका रात का  खाना बनाकर ही नहीं रखूंगी "
मैंने गुस्से में अपनी सासु मां से कह दिया
"नहीं बहु, तेरे पति की बचपन से आदत है कि
गुस्से में रात को खाना खाए बिना सो तो जाता है परन्तु भूखा सो भी नहीं पाता है। जब सब सो जाते हैं तो चुपके से रसोई में जाकर खा लेता है"
सासु मां ने कहा
"यही तो बात है मां मैं भी वही करती हूं तो आदत सुधरती ही नहीं एक दिन खाना ही नहीं मिलेगा तो सुधर जाएंगे आज तो रात का  खाना इनके लिए   बनेगा ही नहीं बस।
अचानक रात को जाग खुली तो ये गायब थे धीरे से बाहर आई तो देखकर आँखों में आंसू और चेहरे पर शर्मिंदगी थी।
मेरे पति सासु मां के हाथों से उनके हिस्से का खाना खा रहे थे।। ****
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क्रमांक - 06

जन्म तारीख- 13 जुलाई1959
जन्म स्थान- सीहोर - मध्यप्रदेश
पति का नाम- दिलीप कुमार गुप्ता
पिता का नाम- गोपीवल्लभ नेमा
माता का नाम- त्रिवेणी नेमा
शिक्षा- एम.एस-सी.(रसायन शास्त्र),एम.एड.

व्यवसाय-  26 वर्षों तक विभिन्न केंद्रीय विद्यालयों में अध्यापन कार्य ,केन्द्रीय वि. लेक्चरर (रसायन शास्त्र)
2013 में ऐच्छिक सेवानिवृत्ति

प्रकाशित पुस्तकें:-
1. बाल काव्य-संग्रह- ‘आओ बच्चों याद करें’
2. काव्य संग्रह-  ‛प्रेरणा’
3. पर्यावरण कविताऐं-  ‛धरोहर’
4. क्षणिकाओं का संग्रह- ‘क्या यही सच है?’
5. कहानी संग्रह- ‘अपराजिता’
6. लेख संग्रह- ‘बच्चों को सशक्त बनाएं’ ।
7. लघुकथा संग्रह- ‛दुर्गा'

विशेष : -
1991 से 2002 तक आकाशवाणी बाँसवाड़ा(राज)से ‛वातायन' कार्यक्रम में 25 कहानियों का प्रसारण।
अतिथि सम्पादक: 2007 में जगमग दीपज्योति,अलवर के जून-जुलाई बाल-विशेषांक की अतिथि संपादक

पता : -
म. न. 14, प्रकाशपुंज, श्रीमाधव विला कॉलोनी,
मयूर  नगर , मेन गेट के सामने, गाँव-लोधा,
बाँसवाड़ा - 327001राजस्थान

1- जवान तुझे सलाम
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प्रतिमा का विवाह सेना में तैनात जवान मृत्युंजय से हुआ। शादी के बाद वे हनीमून पर गए और कई धार्मिक स्थलों पर भी दर्शन करने गए। विवाह के 5 महीने व्यतीत हुए तभी  मृत्युंजय की  तैनाती  कश्मीर के पुंछ जिले में हुई। कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास अग्रिम ठिकानों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलाबारी की गई जिसमें भारतीय सेना की तरफ से गोलाबारी का करारा जवाब देते हुए मृत्युंजय शहीद हो गये। एक रक्षा प्रवक्ता ने बताया कि “मृत्युंजय बहादुर और ईमानदार जवान थे। राष्ट्र उनके सर्वोच्च बलिदान और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए उनका ऋणी रहेगा।” मृत्युंजय का शव जब उनके गांव में पहुँचा तो सड़क के दोनों और 3 किलोमीटर तक जनता मृत्युंजय को अश्रुपूरित विदाई देने के लिए फूल मालायें लेकर उमड़ पड़ी थी। मृत्युंजय का शव उनके घर पहुँचा तो प्रतिमा रो पड़ी। उसने अपने को संयत किया और सास-ससुर को संभाला। वे अपने इकलौते बेटे की मौत से टूट चुके थे। प्रतिमा के ससुर ने बताया कि “प्रतिभा गर्भवती है।” यह सुनकर सभी के रोंगटे खड़े हो गए थे। प्रतिमा मृत्युंजय के दाह संस्कार के समय वहाँ खड़ी थी। वह अग्नि की उठती हुई लपटों को देखकर मन ही मन संकल्प कर रही थी कि वह होने वाले बच्चे को भी सेना में भर्ती करेगी। वह धीरे-धीरे बोल रही थी “मृत्युंजय तुम शहीद हुये देश की खातिर, तुम अमर हो गये हो।  मेरी कोख में पल रहा बच्चा लड़का हो या लड़की  उस रुप में तुम्ही पैदा होगे, तुम्हें मेरा सलाम और तुम्हारे होने वाले बच्चे का भी सलाम।” ****

2- भेंट
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श्याम गांव से लौटा तो पके हुए दशहरी आम की पेटी लेकर बॉस के घर पहुंचा । बॉस ने मुँह बिदकाते हुए कहा “आम ही तो हैं बहुत खाए सारी गर्मी । ले जाओ इन्हें ।”
श्याम आम की पेटी लेकर खिन्न मन से  लौट रहा था और सोच रहा था कि आमों की एक पेटी उसने बाजार में नहीं जाने दी क्योंकि वह बॉस को आम खिलाना चाहता था । तभी उसका ध्यान एक कोढ़ी की दर्द और कराहती आवाज के कारण बंटा जो छोटी सी लकड़ी की गाड़ी को अपने हाथों से धकेलते हुए उसकी तरफ आ रहा था । श्याम ने आम की पेटी खोली और सारे आम  उसकी गाड़ी में रख दिये । उसके दोनों हाथ ऊपर उठे जिनमें उंगलियां नहीं थी ,आँखें चमक उठीं , म्लान चेहरे पर खुशी झलक उठी । श्याम खुश था उसकी शिथिलता और खिन्नता काफूर हो चुकी थी । उसके कदम तेजी से घर की ओर बढ़ने लगे थे ।
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3- प्यार 
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दिग्विजय के पिता प्रतिष्ठित उद्योगपति थे। दिग्विजय वैभव में पला बढ़ा था। उसका विवाह हो चुका था। पिता की मृत्यु के बाद से पिता का कारोबार वही संभाल रहा था। गर्मी की छुट्टियां शुरु हो गईं थीं। बच्चे बाहर घूमने का प्रोग्राम बना चुके थे । बच्चों के कारण दिग्विजय ने बड़ा  कॉन्ट्रेक्ट छोड़ दिया था। पत्नी ने कारण  पूछा तो दिग्विजय ने कहा कि "माता-पिता का बच्चों की खुशियों में साथ होना जरूरी है। मेरे पिता ने पैसा तो बहुत कमाया पर प्यार के दो बोल सुनने के लिए हम तरस गए। हम जब ₹10 मांगते तो सौ का नोट हवा में लहरा देते शायद उनके प्यार की परिभाषा इतनी ही थी।" बच्चे भी बातें सुन रहे थे, वे पापा को अपलक निहारते  हुये कह रहे थे "यू आर रियली ग्रेट पापा।" ****

4- प्रतीक्षा
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श्याम सुंदर का जन्मदिन उनके पडौसी बड़े उत्साह से मना रहे थे। फिर भी उनकी आंखें  दरवाजे पर लगीं थीं। शायद उनका बेटा  आ जाए पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। सब लोग जा चुके थे। वह दरवाजे बंद कर अपने कमरे में पहुंच गए थे। वे थकान महसूस कर रहे थे इसलिये लेट गए। सोचते- सोचते  वे अतीत की स्मृतियों में खो गए थे। उनकी पत्नी का निधन 5 वर्ष पहले हो गया था। ईशान उनका इकलौता बेटा था। उन्होंने बेटे के विवाह के सपने संजोए थे कि बहू आ जाने के बाद उनका जीवन व्यवस्थित हो जाएगा। विवाह हो जाने के बाद  ईशान प्रिया को दिल्ली ले आया था। तीन माह बीत जाने के बाद ईशान प्रिया के कहने पर  पिता को दिल्ली ले आया था। जब वह ईशान के घर पहुंचे तो बड़े खुश थे पर दो-तीन दिन में ही हकीकत से वाकिफ हो गये थे। प्रिया ईशान का ध्यान नहीं रखती थी वह सुबह 8:00 बजे घर से निकल जाता था और रात के 8:00 बजे घर आता था। उसके कपड़े गंदे और पसीने से भरे होते थे। श्यामसुंदर को  लगा कि प्रिया का व्यवहार ईशान और उसके प्रति ठीक नहीं है। प्रिया अपने ससुर से घर का काम करवाने लगी, उन्हें बाजार सामान भी लाने के लिये भेजने लगी और कहने लगी "बैठे-बैठे रोटियां तोड़ते रहते हो ,काम करोगे तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।" वे अपना काम भी स्वयं ही करते थे। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। एक दिन ईशान ने कहा-" मैं बाऊजी को कुछ समय के लिये गांव छोड़ आता हूं।" इस पर प्रिया ने कहा- "यहां का काम कौन करेगा? नौकर भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।" ये बातें श्यामसुन्दर ने सुन लीं थीं। वे उसी रात  बिना किसी को बताये अपने गांव के लिये निकल पड़े थे।
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5- अभिशप्त
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सदानंद जी हीरे के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। उनकी पत्नी सुमन का स्वास्थ्य बिगड़ा तो उन्हें अस्पताल ले गए। चेकअप में सुमन कोरोना पॉजिटिव निकलीं। अस्पताल में एडमिट रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। अस्पताल से डॉक्टर का फोन आया कि, “सदानंद जी आपकी पत्नी सुमन की मृत्यु हो गई है।” सदानंद जी ने सुना तो सन्न रह गए। वे निढ़ाल हो गये और उनका शरीर काँपने लगा। उन्होंने पूरी कोशिश की, कि पत्नी का शव उन्हें मिल जाये पर ऐसा नहीं हो सका। उन्हें याद आया कि सुमन अक्सर कहा करती थीं कि, “अगर मैं पहले मरूं तो तुलसी और गंगाजल मेरे मुँह में डालना, शादी का जोड़ा पहनाना और सोलह श्रृंगार भी तुम ही अपने हाथों से करना।”
सदानंद करुण विलाप करते हुये कहे जा रहे थे, “सुमन मैं कितना अभागा हूं? कितना अभिशप्त हूं कि मैं तुम्हारा पति होते हुये भी तुम्हारी अंतिम इच्छा पूरी नही कर सका। मुझे माफ कर दो। सुमन मुझे माफ कर दो।" ****

6- विधाता की कैसी यह लीला?
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विवाह के मंडप में फेरे  चल रहे थे तभी दूल्हे के पिता ने लड़की वालों से केश मांग लिया था नाराज होकर लड़की वालों ने बारातियों की पिटाई कर दी और एक ट्रक में भरकर उन्हें जंगल में छोड़ दिया। बारातियों ने जैसे-तैसे जंगल में रात काटी और पैदल चलकर मुख्य सड़क पर आकर एक गाड़ी ली और अपनी पहचान के दूसरे शहर पहुंचे। दूल्हे के पिता समाज के अध्यक्ष से मिले और अपनी आपबीती सुनाई और बोले “हमें एक लड़की बहू के रूप में चाहिए, हमारी इज्जत का सवाल है। बिना बहू के बारात हम अपने शहर कैसे ले जाएं? ”समाज के अध्यक्ष श्री रामप्रसाद जी लड़के के पिता व लड़के को लेकर लड़की के घर पहुंचे और लड़की के पिता से बोले “आप की लड़की विवाह के योग्य है, आपके सामने लड़का और उसके पिता हैं आप बात कर लें।” लड़की के पिता बोले “अभी तो हम सुबह की चाय पी कर उठे हैं। हमारी हेसियत कहां कि हम आज के आज शादी कर दें?” रामप्रसाद जी बोले “आप लड़का पसंद कर लो, शादी का खर्च हम उठाएंगे।” लड़के के पिता भी बोले “आप तो बस लड़की को एक साड़ी में विदा कर दो। 2:00 बजे हम शादी के फेरे करवाने पहुंच जाएंगे।” रामप्रसाद जी ने समाज के अन्य व्यापारियों से संपर्क किया, मंडप बनवाया बारातियों के खाने की व्यवस्था करवाई और बैंड बाजे की व्यवस्था करवाई। मंडप में लड़के और लड़की ने सात फेरे लिए। लड़की की विदाई हो गई। विधाता की कैसी यह लीला थी? कि अच्छी भली शादी हो रही थी वह तो टूट गई और जिस घर में शादी कराने के लिए फूटी कोड़ी भी नही थी उस घर की लड़की की शादी हो गई। यह शादी संपूर्ण समाज में ही नहीं वरन पूरे शहर में कई महीनों तक चर्चा का विषय बनी रही। ****

7- राजी 
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आंधी और तूफान के साथ हुई बारिश के समय वह कच्ची बस्ती में ही थी। जब वह घर आ रही थी तो रमाबाई के कच्चे मकान की दीवार उस पर गिर गई थी। उसका पैर दब गया था। कच्ची बस्ती के लोग उसे अस्पताल ले गए थे। उसके एक हाथ और एक पैर में फ्रैक्चर था। रमाबाई अस्पताल पहुँची और राजी से क्षमा माँगने लगी। राजी ने कहा  “रमाबाई  मैं तुम्हें इतनी आसानी से माफ नहीं करूंगी,तुम्हारी सजा अभी बाकी है तुम अपने मकान में अकेली हो और मैं भी अकेले ही रहती हूँ। तुम मेरे घर आकर रहो और मेरे काम में मेरी सहायता करो।" राजी,रमा के साथ घर आ गई थी। उसने बैठे-बैठे इशारों से रमा को काम करने का तरीका समझा दिया था।
वह बिस्तर पर  लेट गयी थी और अतीत की स्मृतियों में खो गई थी। वह किन्नर थी पर उसके माता-पिता ने उसका मनोबल सदैव बढ़ाया। उसे पढ़ाया लिखाया। वह अपने माता पिता की एकमात्र संतान थी। उसके पिता उससे अक्सर कहते  “समाज तुम्हें नहीं अपनाता कोई बात नहीं तुम समाज को अपना लो।"  बस इसी वाक्य को राजी ने अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। माता-पिता कार दुर्घटना में चल बसे थे। अब वही उस मकान की मालिक थी। मकान का एक हिस्सा उसने किराए पर दे दिया था और शेष हिस्से में कंप्यूटर लेब चलाती थी। बहुत से विद्यार्थी  कम्प्यूटर सीखने आते थे। उसने समाज सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। कच्ची बस्ती में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र पर भी वह पढ़ाने जाती थी। बस्ती की लड़कियों को इकट्ठा कर उनका मनोबल बढ़ाती उन्हें स्कूल जाने की प्रेरणा देती। कोरोना का कहर टूटा, लॉकडाउन हुआ तो उसने कच्ची बस्ती में जाकर राशन बांटा,मास्क बांटे और लोगों को साफ-सफाई के तौर-तरीके सिखाए। तभी 'दीदी -दीदी' बोलते हुये रमाबाई ने उसके कमरे में प्रवेश किया। उसकी विचार तंद्रा टूटी। राजी ने पूछा  “क्या बात है रमाबाई ?"  रमाबाई बोली  “कोई टीवी चैनल से  आये हैं आपका इंटरव्यू लेने।आप समाज सेवा करती हो इसलिए।"राजी ने कहा "उन्हें अंदर बुलाओ।" ****

8- ट्रेनिंग
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कॉलोनी में एक नया सब्जी वाला आने लगा था। उसका नाम नारायण था। वह अपाहिज था । लॉकडाउन काल में घर बैठे ताजी सब्जियां मिल जातीं।सभी लोग उसी से सब्जियां ले लेते। यह क्रम चलता रहा उसके साथ उसकी पत्नी भी आती थी। वह उसे सब्जी बेचना  और तोलना  सिखाता था। एक दिन जेठ की तपती दुपहरी में उसने पानी पीने के लिए मांगा। मैंने उसे पानी दिया उसने धन्यवाद दिया और बताया कि उसे कैंसर है और डॉक्टर ने उसे बताया है कि वह 6 महीने का ही मेहमान है। वह उसकी बीवी को सब्जी बेचना सिखा रहा है ताकि उसकी मृत्यु के बाद वह सब्जी बेचकर पेट भर सके।उसकी जोश भरी  बातों से नहीं लगता था कि वह 6 महीने का मेहमान है क्योंकि उसे उसकी पत्नी को सब्जी बेचने की ट्रेनिंग जो देनी थी। ****

9-मां के प्यार से भी ऊंचा ?
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मोबाइल की रिंग बजी, विमला ने देखा जतिन का फोन है । जतिन  बोला “ मां आप कल 10:00 बजे एयरपोर्ट पहुंच जाना मैं यू. एस. ए. जा रहा हूं ।” विमला अपनी बात कह पाती उससे पहले ही जतिन ने मोबाइल बंद कर दिया। वह अक्सर जतिन से कहा करती “बेटा जिंदगी में कितनी ही ऊँचाई क्यों न छू लो पर मां के दिल की गहराई में न उतरे तो व्यर्थ हैं ऊँचाईंयां ।”  विमला सोच रही थी कि काश जतिन ने दोपहर में सूचना दी होती तो उसके घर जाकर उसे बधाई दे आती । फिर सोचने लगी कि उसे तैयारी भी तो करनी थी ।इसलिए उसने नहीं बताया होगा । विमला ने घड़ी की तरफ नजरें फैलायीं रात के ग्यारह बज रहे थे । अतएव दिसंबर की ठंड में उसने नींद लेना ही बेहतर समझा । विमला दूसरे दिन सवेरे 10:00 बजे एयरपोर्ट पर अटेंडेंट के साथ उपस्थिति थी । उसने देखा जतिन कार में  बहू के साथ आया  है ।  जतिन मां के पास आकर बोला “हाय मॉम” बड़ी कठिनता से झुकने का प्रयास करते हुए अचानक सीधा खड़ा हो गया । विमला का हाथ आशीर्वाद के लिए उठा पर मौन के साथ । थोड़ी देर बाद जतिन आसमान में उड़ रहा था। एरोप्लेन के ओझल होने तक  वह  उसे अपलक निहारती रही ।विमला की अटेंडेंट ने कहा “ मां जी अब चलें ?बेटे के दूर जाने का बहुत दुख है ना आपको?”विमला अपनी आंखों की तरलता को सप्रयास छुपाते हुए बोली “पास रहकर ही वह इतना दूर हो गया है तो दूर जाने के बाद क्या आस करुं?” बहू की तरफ देख उसके पास जाकर बोली- “लीना जब भी तुम मेरे घर आना चाहो आ सकती हो मैं हूं तुम्हारे साथ।" लीना सास की बात सुनकर द्रवित हो गयी थी और सास के पैरों में झुकते हुये बोली-“मां मुझे आज एहसास हुआ कि ,मां के प्यार से ऊंचा इस जहां में कुछ भी नही है।"इतना सुनते ही विमला ने उसे सीने से लगा लिया था। ****

10. देशभक्ति
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पाकिस्तानी बॉर्डर के पास आतंकी हमले में एक जवान बुरी तरह जख्मी हो गया था। मूर्छित अवस्था में पड़ा हुआ जवान बीच-बीच में  कराह  भी रहा था। तभी एक विदेशी नस्ल का बाज वहां मंडराते हुआ आया और जवान पर टूट पड़ा। उसे अपनी चोंच एवं पंजों से नोंचने लगा। दृश्य इतना भयावह था कि बाज जैसे जवान की आंखें फोड़ उसका सारा मांस नोच लेगा। हमारे देश के पक्षियों ने इस दृश्य को देखा तो वे संकट की घड़ी से जवान को बचाने के लिए जोर-जोर से शोर करते हुए अन्य पक्षियों को बुलाने लगे। देखते-देखते वहां पक्षियों का समूह आ गया, उन्होंने उस बाज को घेरकर  कर मूर्छित कर दिया था।  सभी पक्षियों ने जवान के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया था। तभी आर्मी के कुछ जवान वहां आ गए थे। जवानों ने देखा कि पक्षियों का समूह जवान की सुरक्षा में तैनात है एवं एक विदेशी नस्ल का  बाज  मूर्छित पड़ा हुआ है। उनके रोंगटे खड़े हो गए थे प्रकृति का अद्भुत नजारा देखकर। वे सारी स्थिति समझ गए थे। उन्होंने सभी पक्षियों को सलामी दी क्योंकि उन्होंने एक जवान को मरने से बचा लिया था। ****

11-आउटडेटेड
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मैं ड्राइंग रुम में बैठा, दबी सी आवाज में बेटे और उसकी मां का वार्तालाप सुन रहा था। बेटा बोला “तुम और पापा मेरे  नये मकान में आना चाहते हो तो सारा सामान बेंच दो क्योंकि यह आउटडेटेड हो गया है।" मां सोच में पड़ गई थी कि क्या यही उनका बेटा है जिसे एक महीने पहले मकान की किश्त पूरी करने के लियेे अपनी गाढ़ी कमाई  दी है। बेटा बोला “माँ मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा।” बेटा बोलते-बोलते ड्राइंग रूम से गुजर रहा था तो भी मुझसे बगैर आंखें मिलाये धड़ाधड़ सीढ़ियां उतर गया। मैं अंदर पहुंचा तो देखा पत्नी की आंखों से  अश्रु की अविरल धारा बह रही थी। मैंने पूछा “क्या हुआ ?” पत्नी बोली “आपका बेटा जिस सामान को  उपयोग में लाकर पला-बढ़ा उसको हीे आउटडेटेड बोल रहा है। फिर जब हम सामान बेचकर उसके घर रहने जाएंगे तो हमको भी आउटडेटेड  बोलेगा और बिना सामान के हम लौटेंगे कहां ?” पत्नी का यह प्रश्न त्रिशूल की तरह मेरी छाती में धंसता जा रहा था ।****
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क्रमांक - 07 

जन्म : 6 अक्टूबर 1950 , बांँसवाड़ा -राजस्थान
शिक्षा : बी. एससी., एम ए (अर्थशास्त्र ,हिंदी ) , CAIIB
संप्रति : पूर्व बैंक अधिकारी SBBJ .BANK, वर्तमान में स्वतंत्र लेखन

प्रकाशित कृतियाँ : -
सुनो पार्थ ( काव्य संग्रह )
अपना अपना आकाश ( कहानी संग्रह )
कामाख्या और अन्य कहानियाँ ( कहानी संग्रह )
टापरा व अन्य कहानियाँ  ( कहानी संग्रह )  
पीर परबत-सी (उपन्यास)
फुलवारी (बाल कहानियाँ)
तूणीर के तीर (व्यंग्य संग्रह)

सम्मान एवं पुरस्कार : -
- साप्ताहिक हिंदुस्तान काव्य पुरस्कार - 1984 दिल्ली
- साहित्य गुंजन सम्मान  - इंदौर
-  साहित्य समर्था श्रेष्ठ कथा के अन्तर्गत सम्मान -जयपुर
- शब्द निष्ठा लघुकथा अजमेर धनपती देवी सम्मान
- समवेत कथा सम्मान - सुल्तान पुर
-  राजस्थान पत्रिका सृजन सम्मान.
- साहित्य कला एवं संस्कृति रत्नाकर सम्मान हल्दीघाटी
- सलिला साहित्य रत्न सम्मान सलूम्बर
- विधुजा सृजन सम्मान बाँसवाड़ा

विशेष : -
संपादन - शेष यात्राएं (काव्य कृति)
प्रसारण - दूरदर्शन जयपुर, आकाशवाणी -उदयपुर एवं बाँसवाड़ा. से समय समय पर

संपर्क - 1- ए -39  , हाउसिंग बोर्ड़ कालोनी ,
             बाँसवाड़ा , राजस्थान - 327001

1. पैसा पेड़ पर नहीं लगता है
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गुरू द्रोण आष्चर्य चकित रह गये । देख रहे है अर्जुन पेड पर चढ़ गया हैं। अरे वत्स वहा पेड़ पर क्या रहे हो ?
जी गुरूजी उस चिडिया को खोज रहा हूँ । जिसकी आँख मुझे फोडनी हैं। निषानेबाजी का यह रोज रोज का झंझट अब मुझसे नहीं होता हैं मुझे एकलव्य का डर लगता है वह हर रात मुझे स्वप्न मंे दिखायी देता है। एक बार ’वो’ चिडिया पकड में आ जाये बस
गुरू द्रोण का माथा ठनका - अरे वत्स मेरी बात सुन मुझ पर भरोसा कर मैने विदेष से पी॰एच॰डी॰ की है कोई झख नही मारी हैं।
पहली बात - एकलव्य का डर मन से निकाल दे। उसको धर्नुविद्या की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका हैं। तुम युवराज हो युवराज की तरह सोचों आत्मविष्वास मजबूत रखो ।  आज का युवराज ही कल का राजा होता है।
उतरो वस्त पेड से नीचे उतरो, जिस चिडिया को तुम यहाँ खोज रहे हो वह कब की फूर्र हो गयी । वह सात समन्दर पार विदेषी बैंक के लाॅकर में पडी है ।   वहाँ एकलव्य की सात पुष्ते भी पर नहीं मार सकती है ।
अर्जुन जब पेड से उतर गये तब गुरू द्रोण ने उनके कान में कहा - ’’ पैसा पेड पर नहीं लगता । ’’ ****

2. कुर्सी
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देष का नक्क्षा उनकी टेबल पर पड़ा है, वो लगभग ऊंघते हुए कुर्सी पर बैठे है। तभी उन्हें लगा कुर्सी में कुछ आवाज आ रही है। ध्यान से देखने पर पता लगा कि यह वही कुर्सी जिस पर बैठकर सदियों से शासाकों ने अच्छे बुरे निर्णय लिये है।
कुर्सी बोली - धन्य है राजा दषरथ को जिन्होने सिर में एक बाल सफेद दिखायी देते ही मुझे छोडकर सन्यास लेने का फैसला लिया पर श्रीमान् आपके बालों में चांदी की खेती पक गई है। न आपके आँख से बराबर दिखायी देता है न कानों से सुनायी देता है न बोलने की शक्ति बची हैं । शरीर जीर्ण शीर्ण हो चुका है फिर भीे मेरे प्रति आपका मोह मेरी समझ से परे है।
वे खमोष रहे तो कुर्सी फिर फुसफुसाई कुछ तो लिहाज करो एक राजा भरत हुए जिन्होने कुर्सी को ठोकर मार दी, सत्ता से कोसों दूर रहे । अरे वानप्रस्थ आश्रम का कुछ तो अर्थ समझो जिसके बाद देख तमाषा लकडी का होता है।
आगे लकड़ी पीेछे लकड़ी 
तब उन्होने फुसफुसाते हुए कहा - राजा दषरथ को तो अपी संतान को ही सत्ता हस्तान्तण की सुविधा थी । राजा भरत तो असंवैधानिक सत्ता केन्द्र थे । उन लोगों को सत्ता के लिये किसी से वोट की भीख नहीं मांगनी पड़ी थी । आगे लकड़ी पीछे लकड़ी तो बाद की बात है, हाथ में लकड़ी काम की है।
और कुर्सी ने देखा उन पर बैठे महाषय का चेहरा एक दम खिल गया । सिर के सारे बाल काले हो गये और राजा यथाति की तरह उनका यौवन लौट आया। ****                                         

3.पन्द्रह अगस्त: छब्बीस जनवरी
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स्कूली छात्रों को एक प्रष्न पत्र में पूछा गया पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के बारे में क्या जानते है तथा कैसे मनाये जाते है और कैसे मनाना चाहेगे।
एक बच्चे का उत्तर इस प्रकार था। पन्द्रह अगस्त के दिन देष आजाद हुआ, 26 जनवरी को देष प्रजातंत्र की लोअर के॰जी॰ मे भर्ती हुआ। 15 अगस्त बड़ा भाई है 26 जनवरी छोटी बहन है। 15 अगस्त पुर्लीग है, 26 जनवरी स्त्री लींग है। दोनो ही त्यौहार पर मास्टर परेड़ करवाते है, बच्चे परेड़ करते है अफर और मंत्री सलामी लेते है झंणा फहराते है। बाबु छुट्टी मनाते है। दोनो ही त्यौहार पर केला/समोसा/कचोरी का प्रसाद वितरण किया जाता है। 15 अगस्त वर्षा ऋतु का तथा 26 जनवरी शीत काल का त्यौहार है। दोनो त्यौहार अभी परेड़ कर मनाता हूँ। बड़ा होकर दूसरो की परेड़ लेना पसन्द करूंगा। ****

4. ठहाके गिरफ्त में
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समने न्न्यंबकेष्वर का नेसर्गिक सौन्र्दय से आच्छादित पहाड़ कहीं दृष्य कही अदृष्य सर्पाकार सीढियां और वातावरण में चार चाँद लगाता सीढ़ियाँ चढ़ता एक हनीमुन पेयर चूडियो की खनक और झरनो की निष्चल हंसी बिखेरता एक दूरसे की कमर मे हाथ ड़ाले दुनिया जहान से बेखबर पर्वत की ऊँचाई पर अग्रसर हो रहा था।
तभी बुढ़ापे की दहलीज पर दस्तकें देते फटी धोती और कुर्ता पहने पांवो मे पुराना चमरोधा जूता पहने ड़ोली वाले दो बूढे दाल भात मे मूसलचंद की तरह प्रकट हुए।
साब ! मेम साब थक जायेगी ड़ोली कर लीजिये अभी गोरखनाथ की गुफा और गोदावरी बहुत ऊँचाई पर है।
युवक ने पीछे मुड़कर झिड़का - अरे बूढे ! मेेम साब के थकने की चिन्ता तुझे क्यों है ? जा रास्ते लग।
अपनी नवोढ़ा से मुखातिब होकर कहता है - देखो डार्लिग पर्यटन स्थलो की सुंदरता की सुंदरता की इन लोगो ने एसी तेसी करके रख दी है।
और डार्लिग ने पारदर्षी गोगल्स मे आँखे नचाकर पति की बात का समर्थन किया।
तभी बूढ़े फिर आ टपके - बाबूजी डोली के अस्सी रूपये ले लेगे बैठ लाइये।
अभी नीचे तो सौ बता रहा था आ गया न अब रास्ते पर।
युवक - डार्लिग तुम थक रही हो तो ड़ोली कर ले।
नहीं अभी नही थोड़ा और चढते है अभी और कम करेगा।
और पत्नी की इस समझदारी पर पतिने फिर ठहाका लगाया।
डोली वाले गिडगिडाते रहे और रेट काम करते रहे। अन्ततः बूढो ने प्रस्ताव किया चालीस रूपये दे देना हमारे बच्चों का लिहाज तो करो तीन दिन से कोई ग्राहक नही मिल रहा । आप बैठेगे तो रात को चावल पकेगा।
केमलांगी पत्नी के मुख मंडल पर छलकते स्वेद कण देखकर पति ने यह रेट स्वीकार कर ली।
हाँफते कांपते बूढ़े और दीन दुनिया से बेखबर ड़ोली मे हनीमुन पेयर *****

5. टिकट
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राजस्थान रोड़वेज की बस सवारियों से खचाखच भी थी। कहीं तील धरने की जगह नहीं थी। सामान्यतया होता यह है कि घाघ किस्म के कन्डक्टर अपडाउन करने वालों के तथा कम दूरी की सवारियों के टिकट बहुत कम काटते हैं। किराया राषि में रियायत के कारण दोनों पक्षों की मौन स्वीकृति होती है। ऐसी सवारियों और कन्डक्टर के बीच एक अलग प्रकार का अपनापन होता है।
इन्हीं अपडाउनर्स के बीच बैठे एक बा साहब अस्सी की उमर के बार बार कमजोर कंधे उचका कर टिकट मांग रहे थे। कन्डक्टर उनसे रूपये लेकर आगे बढ़ गया था।
अपडाउनर्स कन्डक्टर की पैरवी करते हुए बुजुर्ग को समझा रहे थे - बा साहब शांति रखीए। टिकट कहाँ भागा जा रहा है। भीड़ कितनी है । शांति रखीए।
सिद्धान्तवादी बा साहब को टिकट के बगैर चैन नहीं था। आखिर खिसक - खिसक कर कन्डक्टर तक पहुँच गये ।
लाओ भाई मेरा टिकट । सुना है आजकल टिकट के साथ दुर्घटना बीमा हो जाता है।
कंडक्टर ने कहाँ - ऐसा होने पर सबसे पहले तो जेबंे साफ होती है । टिकट कहाँ मिलेगा। ****

6.पहचान पत्र
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शहर की सीमा से सटा एक खूंख्वार अपराधी जाति का एक गाँव, जहाँ बचपन से ही बच्चों को चोर उचक्का, डकैत बनने की षिक्षा दी जाती थी। गाँव के आधे आदमी हर वक्त जेल में होते समाजवाद इतना उच्च कोटी का कि गाँव में बच रहे पुरूष चोरी उठाई गीरी से पूरे गाँव का भरण पोषण करते।
बिल्ली के भाग्य से छिका टूटा। गाँव वालांे की जमीने रीको ने अधिग्रहित कर ली पूरे गाँव का मुआवजा लगभग दस करोड़ के ऊपर। शहर की सारी बैंकों के मुँह में डिपोजीट के लिये लार टपकने लगी।
प्रभुलाल भी एक बैंक के मैनेजर थे। उनके फोन की घंटी धनधना उठी। बड़े साहब ने फटकार लगाई - अरे सोये हो क्या वहाँ फलाँ गाँव में रूपयों की बरसात हो रही है। बैंक में बैठे बैठे क्या मक्खियाँ मार रहे हो।
सर वो कुख्यात अपराधियों का गाँव है उन लोगों के पास जंगली और षिकारी कुत्ते हैं।
हाँ तो तुम्ही को खा जायेंगे क्या ? दुसरी बैंक कैसे जा रही है। प्रभुजी ने यस सर कहकर फोन रख दिया । एक कद्दावर गार्ड को मोटर साईकल पर पीछे बिठाकर कुत्तों से बचते बचाते एक ठीक ठाक से घर में प्रवेष कर गये।
घर का मुखिया दारू गटक रहा था। देखो भाई हम बैंक वाले हैं आप लोगांे के खाते खोलने आये है।
हाँ तो खोल दो।
मैनेजर साहब - आप लोगों के आधार कार्ड, वोटर आईडी, राषन कार्ड उपलब्ध करादे फोटो हम खिचवा लेगे।
मुखिया - आप लोग गलत जगह आ गये ये यहाँ कुछ नहीं मिलेगा। आप लोग शहर की कोतवाली में चले जाओ हमारे फोटो भी वहीं मिल जायेगे। ****

7. असर
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’’वो’’ एक आला दर्ज के अफसर है। उनका बेटा एक ऊँचे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता है। बेटे को बड़ा आदमी बनाने के उन्होने पक्के प्रबंध कर रखे हैं। अपने व्यस्त कार्यक्रमों मे से यदा - कदा समय निकाल कर अपने बेटे से पढ़ाई - लिखाई के विषय में बात कर लिया करते हैं। एक बार जब किसी मेहमान ने उनके बेटे को ’’ बढ़े होकर क्या बनोगंे ’’ जैसा सवाल पूछ लिया और बेटे ने ’’ ओटो चलाने वाला ’’ जैसा जवाब दिया तो उन्होंने अपने बेटे को बुरी तरह से डांटा था।
उसके बाद जब भी कोई मेहमान ऐसा सवाल पूछता उनका बेटा सहम कर रटा रटाया जवाब ’’ बड़ा प्रषासनिक अधिकारी ’’ बनूँगा कह देता । अक्सर उनका बेटा उदास और सहमा - सहमा रहता और उन्हें जब भी समय मिलता वे राजा शुद्धोधन की तरह अपने पुत्र सिद्धार्थ की उदासी के कारण खोजते रहते।
आज इन्हंे अपने व्यस्त जीवन में फिर कारण खोजने का समय मिल गया बेटे से अंग्रेजी कविताएं सुनी और उसका बस्ता चैक करने लगे। काॅपियों और किताबों पर चढ़े कवर देखकर वे बेहद नाराज हुए, कवर चढ़ाने वाले नौकर को बुरी तरह से डाँटा यह क्या एक भी तो कवर सही नहीं है । नौकर को हांक लगाकर अपने कमरे से विदेषी रंग बिरंगी पत्रिका का पुलिन्दा मंगवाया। गुस्से और रोष में भरे ’’ वो ’’ किताबों को अनावृत्त कर रहे थे । उन रद्दी अखबारों की काली छाया से जिन पर अकाल, बाढ़, भूखमरी जैसे बहिपात समाचार छपे थे नौकर उन पर चिकने गत्ते रंग - बिरंगे पहाड, नदियों और झरनों के गत्ते चढ़ा रहा था। अचानक एक किताब का गत्ता देखकर वो गुस्से में हाँफने लगे और कवर उतार कर कागज के फरखच्चे उड़ा दिये। रद्दी अखबार में स्कूल की छत गिर जाने से मरने वाले बच्चों का समाचार छपा था। ****

8.योग्य वर
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रामलखनजी एवं उनकी पत्नी को वयस्क होती जा रही बेटी की शादी की चिन्ता सता रही है। एक ही बेटी बडे लाड़ प्यार से पाला है पर एक न एक दिन तो उसको पराये घर तो जाना ही पड़ेगा।
नाते रिष्तेदारों का दबाव भी बढ़ रहा था। आखिर कितने दिन घर पर रखोगे योग्य लड़का देखकर शादी कराओ।
वो पलट कर जवाब देते - मेरी लड़की लाखों में एक है।
योग्य लड़का तो बताओं।
एक रिष्तेदार ने बताया - देखों अमूक लड़का अपने कस्बे मंे ही है। सरकारी नौकरी में भी है। बेटी यही रहेगी तुम्हारे दूसरी संतान तो है नहीं, अतः तुम्हारा भी ध्यान रखेगी।
रामलखनजी माथे पर हाथ फेरते रहे - सो तो ठीक है पर लड़का सयुंक्त परिवार मे रहता है। ना बाबा ना - मेरी बेटी इतने बड़े झमेले की रोटियाँ नही बना सकती।
इसी तरह प्रस्ताव आते रहे । वो कोई न कोई कारण बताकर अस्वीकार करते रहे। हर बार बेटी जब भी प्रस्तावक आता दुसरे कमरे की ओट से वार्तालाप सुनती ।
आज रविवार है और रामलखनजी चाय की चुस्की के साथ वैवाहिक विज्ञापन ध्यान से पढ़ रहे थे। तभी उनका बचपन का मित्र श्याम आ गया।
अरे यह क्या अभी तक तेरी खोज पूरी नहीं हुई।
रामलखन - अरे श्यामू कोई योग्य लड़का तो मिले।
श्याम - यार देख मेेरे ध्यान में एक लड़का है, पर उसमे कुछ परेषानियाँ है। लड़का अच्छा भला स्मार्ट है पर हाई फाई पेकेज पर सात समंदर पर एक मल्टीनेषनल कम्पनी में न्युयार्क मे नौकरी करता है।
फिर तेरी बेटी के तो ’ मंगल ’ भी है कुडंली मैच हो न हो।
रामलखनजी के चेहरे पर एक नई चमक और उत्साह आ गया। पत्नी को आवाज लगाई जरा सुनो तो, खुष - खबरी । श्याम ने कहा - पर तेरी एक ही बेटी बहुत दूर चली जायेगी।
रामलखनजी ने चाय के कप से कप टकराया - ’ चियर्स ’ छोड पोगापंथी की बाते । यकायक उनकी बेटी आकर कंधे से झूल गयी । ’’हाउ स्वीट पापा यू आर।’’ ****

9. ग्राहक सेवा
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आज बैंक की शाखा में प्रधान कार्यालय से बड़े बड़े पोस्टरों एवं बैनरों के बंडल आये है । पन्द्रह दिन तक उत्कृष्ट ग्राहक सेवा पखवाडा मनाने के आदेष है।
बड़े मेनेजर साहब ने सारे स्टाँफ की मीटिंग ली कर्मचारियों को चाय बिस्कीट के साथ ग्राहक सेवा की आवष्यकता एवं उपादेयता पर सविस्तार समझाया।
ग्राहकों की आवाजाही रोजमर्रा की तरह प्रांरभ हो गयी। बडे़ मैनेजर साहब ने अपने केबिन के पर्दे खोल दिये ताकि अंदर ही बैठे कर ग्राहक सेवा का मूल्यांकन कर सके।
सभी कर्मचारी अपने काउन्टरों पर बैठ गये। कोई चाय की चुस्की ले रहा है, कोई काम करता हुआ पास वाले स्टूल पर बैठे से बतिया रहा है। किसी के कन्धे और कान के बीच मोबाईल है जिस पर चहक - चहक कर हैलो हाय कर रहा है।
एब खुबसूरत महिला का प्रवेष होता है जो इन्द्र की किसी अप्सरा से कम नहीं है। काउन्टरों पर खुसुर - पुसुर होती है । अपने काउन्टर के सामने खड़े ग्राहकांे को छोडकर कमोबेष सभी कर्मचारी जलेबी रेस  की तरह आगे बढ़कर दाँतों के विज्ञापन वाली मुस्कहराट के साथ उसका स्वागत करतेे है - मेम, मै आई हेल्प यू।
प्रत्युत्तर में वो भी अपनी मुस्कान के अनार दाने बिखेरती हुई अपने काम बताती जाती है। आनन - फानन में कर्मचारी इधर - उधर भागकर उसके सारे काम कर देते हैं। एक अच्छे सोफे पर बिठाकर उसकों काफी मान मनुहार के साथ अच्छी काकरी में काॅफी  पिलायी जाती है।
थेंक्स कहती हुई वो सुझाव बाक्स में एक पर्ची ड़ालकर चल देती है।
भीतर बैठे मैनेजर साहब ने यह दृष्य अभी पूरा देखा ही था कि किसी काउन्टर पर झगड़ने की आवाज सुनते हैं।
उन्होंने देखा एक बुजुर्ग जिनको चलने मे भी काफी परेषानी हो रही हैं, लगातार इस काउन्टर से उस काउन्टर पर धक्के खा रहे हैं काम उनका कोई कर नही रहा है। परेषान होकर वो मेनेजर साहब के चैम्बर में प्रवेष कर जाते हंै।
अरे साहब हमारे नाम का पखवाडा मना रहे हो कम से कम इस अवधि मंे तो हमारे काम निपटाओ। कोई बाबू ठीक से जवाब नही दे रहा और बोल रहे है वो उटपटाग तो कोई पत्थर की मूर्ति की तरह बैठे हैं।
बड़े मैनेजर साहब उनको ’ सारी ’ बोलकर कुर्सी पर बिठाते हैं। ठंडा पानी मंगवाकर पिलाते है। स्वंय बाहर जाकर उनके काम अपने हाथ से कर सम्मानपूर्वक बुर्जुग को विदा करते हैं।
शाम को फिर एक मीटिंग लेकर स्टाफ को फटकारते है। वरिष्ठ नागरिकांे के प्रति आप लोग का रवैया ठीक नही एक न एक दिन हम सभी को बुढ़ा होना है।
स्टाफ मे जो नेता किस्म के थे वो प्रतिवाद करते हैं। वरिष्ठ नागरिक के आखिर कौन से सिंग लगे है।
अरे साहब वो आदमी पक्का खडूस और चिम्मड़ है। घरवाली को मरे दस साल हो गये, बेटा बहू गाँठते नही । रोज उठकर एक - एक एन्ट्री के लिये बैंक वालो का भेजा चाटता रहता है।
अरे उसकी पूरी डिपाजीट यहाँ पड़ी है।
पड़ी है तो सर बैंक ब्याज भी तो दे रहा है। यूं कहते हुए नेता नुमा स्टाफ ने चपरासी को आवाज लगाई -
अरे हकरा राम वो सुझाव पेटी में खोल के ला क्या पड़ा है। मैनेजर साहब को पढ़ा वह खुबसूरत महिला लिख के गयी थी।
एक्सीलेन्ट कस्टमर सर्विस, नाइस विहेवियर, हर्टियष्ट थेक्स टू आल स्टाफ।
मेनेजर साहब ने पूछा पर वो किस काम से आयी थी उसका खाता नम्बर लिखवा दो बड़े साहब के आने पर कस्टमर मीट मे उसे भी बुलायेंगे।
अरे सर वो तो ढ़ेर सारे फटे नोट बदलवाने तथा रेजगारी लेने आई थी। अपने यहाँ तो उसका कोई खाता नही है। आप तो नये आये हो सर - उस बूढ़े को भूलकर भी मत बुलाना उसके दिमाग का एक स्क्रू ढ़ीला है।
मेनेजर साहब ने माथे पर अपना हाथ रख लिया स्टाफ खुद की ही पीठ थपथपाता हुआ केबीन से बाहर निकल गया। ****

10. नरक
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आज एक महान लेखक का देहावसान हो गया। देष के साहित्यिक समाज में शोक की लहर छा गयी। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारांे से सम्मानित लेखक महोदय के सम्मान में देष के बड़े - बड़े शहरांे में शोकसभाएँ आयोजित की गयी। दिल्ली चूंकि देष की राजधानी है अतः वहाँ बड़ी शोकसभा आयोजीत की गयी।
पहली बार किसी बड़े आयोजन में बतौर अध्यक्ष वो नही थे । मंच के पास एक कुर्सी पर उनकी तस्वीर थी, पास में एक दीपक जल रहा था। ढेर सारी फुल मालाएँ चढ़ी हुयी थी।
मंच पर अन्य महान लेखक अथवा महानता की कतार में खड़े अन्य साहित्यकार आसीन थे।
श्रोताओ में अप्रसिद्ध, नये लेखक, संवेदनशील पाठक आदि मौजुद थे।
सभी वक्ताओं ने दिवंगत लेखक के झुझारू व्यक्तित्त्व का उल्लेख किया । किसी ने स्त्री विमर्ष पर उनके विचारों का प्रभाव रेखांकित किया । किस तरह वो जीवन भर धारा के विरूद्ध जाबांज तैराक की तरह तैरते रहे। कुछ लोगों ने मिड़िया को कोसा, जिसने उनकी मृत्यु को शोक खबरों में केवल नीचे चलने वाली लाइन मे स्थान दिया गया। कुछ वक्ताओं ने बताया कि केवल उनके छू लेने भर से किसी नये लेखक की कृति महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय हो जाती थी। कुल मिलाकर उनके लेखन की भूरी - भूरी प्रषंसा वक्ताओं ने उन्हें आम आदमी का महत्वपूर्ण चेहरा, शोषित पिछडं़े लोगांे तथा पीड़ित लोगांे की लड़ाई का सेनापति बताया। कुछ वक्ताआंे ने शोधार्थियो को उन पर शोध तथा प्रकाषकों को ग्रन्थावली छापने की आवष्कता बतायी।
अन्त मे दो मिनट का मौन प्रारम्भ हुआ।
उधर यमराज के दूत उनको नरक की तरफ धकेलने लगे । आदत के मुताबिक उन्होंने विरोध किया।
यमराज के सामने जब प्रस्तुत किया तब उन्होंने पूछा मुझे किस कृत्य के अपराध मे नरक मे भेजा जा रहा है। भू लोक के तमाम लोग मुझे स्र्वगवासी कर रहे है।
यमराज ने कहा - आपने जिन लोगों पर लिखा उनके नरक का अच्छा और प्रभावी चित्रण किया। किन्तु सारे नरक भोगने के बाद जब धरती पर जाओगें तुम्हारा लेखन भोगे हुए यथार्थ के कारण धारदार तथा प्रभावी हो जायेगा । देखे और भोगे यथार्थ का अन्तर आपको नोबल पुरस्कार दिलायेगा। दूतो नें उनको नरक मे धकेल दिया। ****

11. अस्पताल का कमरा
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वो चार बिस्तरों वाला अस्पताल का कमरा था । उसमे भर्ती मरीज एक - दो दिन के अंतराल पर लगभग साथ ही भर्ती हुए थे ।
मरीजों को तो भर्ती होते वक्त विषेष सुध बुध नही थी । उनकी बीमारियों का इलाज लम्बा चलने वाला था । तय है उन्हे एक लम्बा समय अस्पताल में गुजारना था ।
उनके साथ आये तथा अस्पताल मे साथ रहने वाले मित्र एवं रिष्तेदार एक दूसरे को देखकर नाक भों सिकोढ रहे थे । इसका कारण था सभी एक दूसरे के लिये विधर्मी थे ।
कोई मोहनलाल तो कोई अब्बदुल तो कोई सतबंत सिंह सरदार तो कोई जैन अंकल थे । हर एक का अपना - अपना धर्म, अपने - अपने ईष्वर तथा अपना - अपना खान - पान एवं परहेज था ।
मरीज के साथ एक रिष्तेदार को तो उसकी देख भाल के लिये  कमरे मंे जगह मिल जाती थी । शेष रिष्तेदार एवं मित्र जो बाहर बरामदे में ड़ेरा डालते आपस मे पहचानने लगे । समय के साथ दुःख बीमारी एवं दैनिक आवष्यकताओं के कारण मन मे जमी हुई बर्फ पिघलने लगी ।
सभी के मन मे एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव जाग रहा था । भावना सम्मान के अन्तर्गत सतबंत के रिष्तोदारो को सतश्री अकाल, मोहनलाल जी को जयश्री कृष्ण तथा अब्दुल्ला को सलाम कहने मे या जय जिनेन्द्र कहने मे संकोच के स्थान पर प्रसन्नता का अनुभव होता था । यह भाई चारा इतना परबान चढ़ा की कभी किसी का रिष्तेदार विलम्ब से आता तो शेष लोग संभाल लेते । दूध, चाय, दवाई, फल जो भी आवष्यकता होती पूरी कर देते ।
एक मरीज जो गुर्दों का रोगी था खून की आवष्यता पडी उसकी पत्नी चिन्ता मे थी, इतने बोतल खून की व्यवस्था कैसे करूँ ?
दूसरे सभी मरीजो के रिष्तेदार आगे आये
- आंटी क्यों चिन्ता करती हो हम सभी तैयार है सभी खून का रंग तो लाल ही होता है । ग्रुप अलग - अलग हो सकता है ।
मोहनलालजी का आॅपरेषन है तो रिष्तेदार चादर चढ़ाने के रूपये दे रहे है । अब्दुल भाई का लकवा ठीक नही हो रहा है वो किसी माताजी के स्थानक पर जाने की इच्छा प्रकट कर रहे है।
यकायक छोटी कहासुनी को लेकर शहर मे बड़े दंगे भड़क गये जो विकराल रूप लेने लगे । अस्पताल में दंगो मे घायल लोगो का ताँता लग गया ।
नेट, मोबाइल, एस.एम.एस सभी जगह से अफवाहंे फैल रही थी । अखबारों की सुखर््िायाँ खून से लथपथ थी । अस्पताल मे चल रहे टी.वी. के चैनल आग मे घी ड़ालने की प्रतिस्र्पधा मे टी.आर.पी. बढ़ा रहे थे ।
कमरे मे मरीज व उनके रिष्तेदारों के प्रति एक दूसरे का गहरा आषवस्ति भाव था ।  वह आपस मे लगातार एक दूसरे की कुषल क्षेम पूछ रहे थे, सलामती की दुआ मांग रहे थे ।
जब शहर मे अनिष्चित कालीन र्कफ्यू लग गया मौन का सन्नाटा पसर गया ।
अस्पताल के कमरे मे सब अपने - अपने ईष्वर को याद कर रहे थे उनके अलग - अलग ईष्वर थे पर प्रार्थना एक थी ।
हे ! ऊपर वाले तू जल्दी हमारे शहर को अस्पताल के कमरे मे तब्दील कर दे । ***
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क्रमांक - 08
जन्म स्थान - मधुबनी (बिहार)

लेखन : -
2014 से गद्य एवं पद्य में हिंदी व मैथिली में लेखन

सम्पादन : -
डेढ़ वर्ष तक H for Hindi के संपादक

एकल पुस्तक -
1)  चौंक क्यों गए (लघुकथा संग्रह)।
2) एकल ई बुक - बेवफा हो तुम

ब्लॉग- दो
सांझा संकलन  - 23

सम्मान  -- 15
फेसबुक और वाट्सएप पर भी कई सम्मान प्राप्त हुए हैं ।

पत्र - पत्रिकाएं : -
अक्सर पत्रिकाओं एवं अखबारों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है । अभी तक 350 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है ।

पता : -
मकान नं. बी / 9 , के टी पी एस , थर्मल कालोनी , साकातपुरा , कोटा - राजस्थान - 324008

1. धूल हटते ही
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दो साल बाद घर आये थे रवि कांत पत्नी  शीला भी साथ थी । घर के लोग  अनमने से उससे मिल रहे थे । मिल क्या रहे थे अनदेखा करने की कोशिश कर रहे थे । शीला अपने कमरे में गई । सभी सामानों के ऊपर धूल-मिट्टी भरा हुआ था, जिससे उसका रंग भी समझ में नहीं आ रहा था । पूरा कमरा जाले,  धूल-मिट्टी से भरा हुआ और  बिस्तर पर ही झाड़ू, कुर्सी-टेबल,तगारी आदि रखा हुआ था, मानो सोने का कमरा न हो कबारखाना हो ।  शीला मन ही मन--"पच्चीस वर्ष हो गए ।  शादी करके इस घर में आये हुए । जब से आयी, कभी किसी को पराया नहीं समझी । लेकिन यहाँ के लोगों में मेरे लिए कभी अपनापन नहीं देखी । दूर रहने की वजह से ससुराल आना तो  साल में एक बार ही होता रहा, पर मैं अपने कमरे या सामानों को सबको उपयोग करने के लिए छोड़ती रही । कभी किसी को रोका नहीं क्योंकि सब मेरे लिए अपने थे । सबने उपयोग तो किया किन्तु पराये की तरह । खैर ..... ।"--एक लम्बी सांस ली । 
रवि कांत आंगन में एक कुर्सी पर बैठ गए । तभी रवि कांत के बचपन के मित्र ( देवेन्द्र ) आंगन में प्रवेश किया । बीस साल बाद मिले थे दोनों दोस्त, क्योंकि दोनों नौकरी बहुत दूर-दूर  करते थे । एक घर आते तो दूसरे नहीं । इस बार  संयोग से मुलाक़ात हो गयी । दोनों गले मिले एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछी ।  बैठकर बातें करने लगे । 
देवेन्द्र--"कहो कहीं मकान वगैरह लिया या नहीं  ?"
रवि कांत--"नहीं लिया है । पैसे कहाँ बचते हैं ।"
तभी घर के एक कमरे से आवाज आयी ।--"भविष्य के लिए बचाते तब बचते न ।"
ये आवाज रवि कांत की भाभी की थी ।
रवि कांत स्तब्ध हो गए और अतीत में खो गए--"नौकरी लगने के बाद से ही हमेशा जो भी पैसे बचते अपने बड़े भईया को भेज देते थे । बचते क्या थे,  खुद और अपने परिवार कष्ट में रह कर भी उन्हें भेज देते थे, क्योंकि भैया की चिट्ठी जो आ जाती थी कि कभी  छत बनवाना है, तो कभी दीवार टूट रही है, तो कभी किसी की शादी है तो,  किसी का मुण्डन । हमारे लिए तो सब अपने थे । हमने तो हमेशा सबकी मदद की है, बिना किसी से कोई अपेक्षा किये । शीला मुझे आगाह करती रही कि पैसे  भेजो मगर अपने  भविष्य के लिए भी कुछ  बचाया करो । तुम अपने भविष्य के लिए  नहीं बचाकर बहुत बड़ी गलती कर रहे हो ।  पर मैं था कि ...।  किन्तु ये उम्मीद नहीं थी कि मेरे अपनेपन के बदले मुझे ही नीचा दिखाने की कोशिश की जाएगी । मुझे मालूम है सभी भाईयों ने कहीं मकान, फ्लैट, प्लाॅट ले लिया है मगर सब मुझसे छिपाते हैं ।" 
दोस्त ने हिलाकर कहा--"अच्छा अभी मैं चलता हूँ । फिर शाम को मिलते हैं ।"
रवि कांत ने जबरदस्ती हंसने की कोशिश की । फिर उठकर अपने कमरे में गए जहाँ शीला कमरे की सफाई में व्यस्त थी ।
रवि कांत--"शीला तुम बिल्कुल सही थी । तुम्हारा ये कहना कि तुम अपने भविष्य के लिए जो कुछ नहीं  बचा रहे हो, तो देख  लेना जब सबके काम निकल जाएंगें तब  यही लोग तुम्हें  'मूर्ख' कहेंगे ।"
शीला ने एक नजर सामानों को देखा और हांफते हुए बुदबुदायी-- "चलो, अब कमरे से धूल हटते ही सामानों का रंग साफ-साफ दिखाई देने लगा।" ****

2.छोटे कदम
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--"रवि! तैयार हो गए क्या ? चलो दुकान खोलने का समय हो रहा है । जल्दी करो ।" बनवारी जी पैर जूता में डालते हुए कह रहे थे ।
-"......." कोई आवाज नहीं ।
बनवारी जी के दो पुत्र हैं । एक गांव के ही सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं । दूसरा पुत्र किसी तरह बी.ए. कर चुका है और वह चाहता है कि शहर में बड़ी दुकान खोले । जबकि बनवारी जी चाहते हैं कि कुछ दिन उनके साथ दुकान पर बैठे और दुकानदारी के तौर-तरीके पहले सीख ले । किन्तु रवि को गांव के इस दुकान पर बैठना भी अपमानजनक लगता था । 
आंगन में बैठी आनंदी देवी ( बनवारी जी की पत्नी ) अपने दस महीने के पोते को चलाने की कोशिश कर रही थी । बच्चा खटिया पकड़-पकड़ कर चलने लगा । 
--"दादी माँ! देखिए बाबू कितना छोटा-छोटा कदम बढ़ा रहा है ।" वहीं खेलती हुई छः वर्ष की उनकी पोती बोली ।
--"अरे हाँ रे गुड़िया ! बड़े-बड़े कदम बढ़ाने के लिए इसी तरह पहले छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते हैं ।" आनंदी देवी रवि की तरफ देखते हुए बोली । 
रवि जो मुंह लटकाये हुए कुर्सी पर बैठा था । ये सुनकर, बही-खाते का थैला उठाकर बनवारी जी के पीछे-पीछे चल दिया । *****

3. खतरा 
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 दो साल के बच्चे के सिर से माता पिता का साया उठ गया था । कहते हैं कि मौसी माँ समान होती है।उस बच्चे की परवरिश भी मौसी बड़े लाड़ प्यार से करने लगी। अक्सर बच्चा दोस्तों से लड़ाई- झगड़ा करता ।छोटी -मोटी चीजें भी किसी की उठा ले आता । मौसी उसे नजर अंदाज कर देती थी। बच्चा जैसे जैसे बड़ा हुआ उसकी छोटी -छोटी गलती गुनाहों में परिवर्तित होने लगा।
 गुण्डागर्दी चोरी डकैती में जेल जाना आम बात हो गयी । हद तो तब हो गयी जब उसने सरेआम एक की हत्या कर दी। पुलिस उसे पकड़ कर ले गई।
 मुकदमा चला और फिर उसे फांसी की सजा हो गई। फांसी से पहले उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने अपनी मौसी के कान में कुछ कहने की इच्छा जाहिर की।
उसकी मौसी रोती बिलखती पहुँची और कहा "कहो मेरे लाल क्या कहना है?" जैसे ही मौसी ने कान उसके पास ले गई उसने उसके कान काट खाया । 
मौसी जोर से चीखी और पूछी कि "ऐसा क्यों किया तूने ?" 
"बचपन में जब मैं लड़ाई- झगड़ा या आम -अमरूद की चोरी करता था। उस समय यदि तुमने मुझे कान पकड़ कर मारा होता तो आज तुम इस तरह रोती नहीं होती और मुझे फांसी नहीं होती।" बिना रुके कहता गया वह । ******

4. बचत
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सुरेश ने बेटी के बारे सोचते-सोचते विनय का डोर बेल बजा दिया ।
"अरे सुरेश तुम ? सुबह-सुबह ? कैसे ? सब खैरियत तो है ?" दरवाजा खोलते ही विनय ने कई सवाल पूछ बैठा ।
"यार विनय ! मुझे कुछ रुपये चाहिए । बेटी बीमार है । उसे डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा ।"
"ओह !"
"मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं । खाता पूरा खाली है ।"
"कितना चाहिए ? वैसे ऐसे कैसे पूरा खाली कर दिया खाता ?"
"तुम तो जानते हो कि मैं हमेशा घर भैया-भाभी को  पैसे भेजता हूँ । कल ही सारे पैसे घर भेज दिया । मुझे लगा अब 28 तारीख हो  गयी  है  । दो दिन बाद सेलरी आ ही जाएगी । पर मुझे क्या मालूम था कि इस तरह अचानक जरूरत आ जाएगी । रात से ही बेटी को बुखार है । पांच हजार रुपए चाहिए । क्या पता टेस्ट वगैरह में कितना खर्च होगा ?"चिंतित आवाज में सुरेश  ने कहा ।
"ठीक है, मैं देखता हूँ ।"
विनय रुपये लाकर सुरेश को देते हुए--"वैसे दस साल हो गए नौकरी करते हुए तुम्हें । तुम भविष्य के लिए कुछ जमा भी करते हो या नहीं ?"
"नहीं । पैसे बचते कहां हैं ? हर काम लोन लेकर करना पड़ता है ।"
"कितना भी कम मिलता हो, पर भविष्य के लिए  तो बचाना जरूरी है । जरूरत तो कभी भी आ जाती है ।"-- विनय कहता जा रहा था--"देखो सुरेश ! मेरी बातों का बुरा मत मानना, लेकिन जब तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो कल खाता से सारे पैसे घर क्यों भेज दिया  ? पास में कुछ तो रखना चाहिए । क्या इसके लिए भाभी जी कुछ नहीं कहती हैं तुमको  ?"
"कहती हैं, पर मैं ही अनसुनी कर देता हूँ और भैया-भाभी को कहूँ तो वे लोग इसे बहाना समझते हैं ।"
"पर अभी .. ......?"
"सच, तुम सही कह रहे हो । आज मुझे ये अहसास हो रहा है।"
सुरेश अपना मोबाइल निकाल कर एक एजेंट को फोन किया "देवेंद्र जी आप मुझे जो बचत के कुछ प्लान के बारे बता रहे थे ।  विस्तार से मुझे उसकी जानकारी चाहिए । इसलिए आप कल  आ जाइएगा ।" *****

5. आवाज 
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पवन कोचिंग से रूम में आकर मोबाइल देखा तो पापा का 14 मिस काल । वो समझ गया कि कोचिंग से मेरे टेस्ट के रिजल्ट का मैसेज पापा को मिल गया होगा और वो इसीलिए फोन मिला रहे होंगे । पवन खुद ही पाँच - छ: दिन से अपने टेस्ट को लेकर ही परेशान है । पवन मन ही मन --" आखिर मैं क्या करूँ मैं इतनी तैयारी के साथ टेस्ट देता हूँ फिर भी बैच ऊपर नहीं आता वही तीसरे चौथे बैच में रहता हूँ । एक साल हो गए । अब फिर फी जमा कराना होगा । फिर से लोन लेना होगा पापा को । उनलोगों ने मुझसे बहुत उम्मीदें लगा रखी है और मेरा क्या होगा मुझे खुद मालूम नहीं । "
उसी समय फिर फोन आ गया ----" हैलो , पवन ये क्या हो रहा है ? इस बार तो तुम्हारी रैंक और पीछे चली गई । तुम किसी गलत संगति में तो नहीं पर गए हो ? तुम्हें मैं अकेला कमरा इसीलिए दिला रखा हूँ, जिससे तुम्हें पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो । फिर भी तुम ...?" एक सांस में बोलते जा रहे थे पवन के पापा ---" हाँ तो इस तरह चुप क्यों हो गए । अच्छा चलो ये बताओ कि फी जमा करने की अंतिम तारीख क्या है ? मकान मालिक से कोई परेशानी तो नहीं है ? " 
पवन --" नहीं कोई परेशानी नहीं है । फी जमा करने की अंतिम तारीख मैं कल पता करके बता दुंगा । "
" अच्छा लो मम्मी से बात करो "
" हैलो पवन फोन जल्दी उठा लिया कर बेटा, चिंता हो जाती है । "--पवन की माँ बोली ।
पवन --" जी ठीक है । अच्छा मैं अभी फोन रखता हूँ । ".....कहकर पवन फोन रख दिया ।
पवन सोचने लगा --" अब फी नहीं जमा करूँगा , मगर पापा को क्या कहूं ? मैं उनकी उम्मीद को पूरा नहीं कर पाऊंगा ऐसा लगता है । फिर मैं ..??
 कम से कम मझ पर पैसे तो नहीं खर्च होंगे "
इसी कश्मकश में पवन बैठा रहा खाना खाने भी नहीं गया ।
पंखा देखा और उसमें फंदा लगाकर नीचे स्टूल रख दिया और स्टूल पर चढ़कर फंदा गले में डाल ही रहा था कि --मकान मालकिन आंटी की आवाज सुनाई दी वो अपने बेटे से कह रही थी -- "बेटा गोलू खाना खा लो फिर कहीं जाना " । 
पवन के आँखों के सामने अपनी माँ की तस्वीर आ गई, जो हमेशा कहती है 'तू मेरा संसार है  ।'
फिर सोचा --"मेरे जाने के बाद मम्मी क्या करेगी ?"
आँखें भर आयी और गले से फंदा निकालकर --" नहीं !!! "--
कहकर स्टूल से नीचे उतर गया ।
ऊपर मकान मालिक की टीवी में गाना बज रहा था-"हिम्मत न हार, ओ राही चल चला चल ...।" ****

6. गुब्बारा 
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मिस्टर एंड मिसेज शुक्ला माल से निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगे । मिस्टर शुक्ला थोड़ी तेजी से आगे बढ़ गए । मिसेज शुक्ला कुछ पीछे थी । तभी सामने से ...........
" ऐ माई जी ले लो गुब्बारा " --एक चार-पाँच साल का छोटा सा बच्चा आगे - आगे चलते हुए कहे जा रहा था।
" हमें नहीं लेना बच्चे । गुब्बारा लेकर मैं क्या करूँगी ? " --मिसेज शुक्ला ने कहा ।
बच्चा --" ले लो दस रुपए का ही है । ".........
" नहीं लेना भई "---कहकर मिसेज शुक्ला चलने लगी ।
वो बच्चा एकदम से सामने आकर ---" अरे ले लो न मुझे बहुत भूख लगी है । "
उसकी आवाज में ऐसी मासूमियत थी कि मिसेज शुक्ला रुक गई और कहा ---" ठीक है दे दो, दे दो। "
दो गुब्बारा लिया मिसेज शुक्ला ने और उसे 20 रुपये दे दिए ।
मिस्टर शुक्ला गुब्बारा देखकर ---" ये क्या करोगी ? क्यों लिया ये ? अपने बच्चे अब छोटे तो नहीं हैं । ".....
मिसेज शुक्ला --" वो बच्चा भूखा था इसलिए बेच रहा था । ".
" पैसे दे देती । गुब्बारे लेने की क्या जरूरत थी । "---मिस्टर शुक्ला ने कहा ।............
मिसेज शुक्ला --- " अजी ! यही गलती हमलोग करते हैं । वो बच्चा भीख नहीं मांग रहा था । कुछ बेचकर अपना पेट भरने की कोशिश कर रहा है । उससे गुब्बारा न लेकर यूं ही पैसा देकर क्या हम उसे अकर्मण्यता की राह पर चलने का बढ़ावा नहीं देंगे ? " ****

7. भूख और बादाम 
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"अरे मुनिया चल । यहाँ क्यों खड़ी है ?"--झुनकी बोली ।
मुनिया --"सेठ कुछ बांट रहा है । शायद कोई खुशी की बात होगी ।"
दुकान के सामने हथेली फैलाये मुनिया भी खड़ी धी ।
एक मुट्ठी बादाम उसकी हधेली में सेठ ने रख दिया ।
झुनकी ने भी मांग लिया ।
झुनकी मुँह बनाती हुई ( मुनिया से ) --"अरे हट इससे क्या पेट भरेगा अपना ।"
मुनिया--"पेट क्यों नहीं भरेगा ? चल मेरे साथ ।"
बादाम लेकर मुनिया आगे चलने लगी और एक होटल के पास आकर --"ऐ काका जी, ये बादाम लेलो और इसके बदले में रोटी सब्जी दे दो ।" ****

8.खुशी के आंसू 
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दरवाजे की घंटी की आवाज सुनकर रोमा--"कान्ता ( कामवाली ) जरा देखना कौन आया है।"
कान्ता थरथराते हुए--"बीबी जी पुलिससssss ।"
कान्ता की आवाज सुनकर रोमा भागती हुई आयी और देखकर ठिठकर खड़ी रह गयी  ।
रोमा के मन में कई उथल-पुथल होने लगा ।
 ससुराल में सास ननद जेठानी सभी के ताने कानों में गूंजने लगी ।--"बेटी ही तो है और ऐसा प्यार लुटाती है जैसे बेटा हो । कभी-कभी ये भी मजाक कर ही लेते थे ।"
"मम्मा !!! यूँ ही देखती रहोगी  ? क्या मुझे लगे  नहीं लगाओगी ?"--काव्या रोमा के गले से लिपटती हुई --"ओ ! मेरी मम्मा !!!!!"
रोमा कुछ कह नहीं पा रही थी बस बेटी काव्या को इस वर्दी में पहली बार देखकर खुशी से आँखों से आंसू बहते जा रहे थे। *****

9. मन की शुद्धि 
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छंगानी जी पूजा-पाठ और हवन वगैरह बहुत किया करते हैं । अपने घर ही नहीं आस-पड़ोस और सार्वजनिक तौर पर भी बढचढकर हिस्सा लेते हैं । पेसे से इंजीनियर हैं । सादगी में ही रहते हैं उनकी पत्नी और बच्चे भी उसी संस्कार   को पालन करते हैं । जहाँ भी जाते पूजा-पाठ के साथ-साथ कुछ प्रवचन भी देना उनके स्वभाव में है । जैसे- सादगीपूर्ण जीवन जीना चाहिए, भजन कीर्तन करने से मन का विकार दूर होता है वगैरह-वगैरह ......।
इसीप्रकार एक घर में पूजा हो रही थी छंगानी जी ही सर्वेसर्वा थे । यानी पूजा वही करवा रहे थे । महिला पुरुष सभी वहां मौजूद थे । 
अब छंगानी जी का प्रवचन शुरू हो गया ।
"देखो! सादगी ही सच्चा संस्कार है ।"
सभी ने सहमति जताई "हूं !!!!.....।
"अब महिलाएं दुनिया भर का श्रृंगार करती हैं । इतना करने की क्या आवश्यकता है ?" महिलाओं की ओर नजर घुमाते हुए छंगानी जी बोले ।
महिलाएं थोड़ी झेंप सी गईं ।
बीच-बीच में मंत्र उच्चारण और तिलक चंदन भी देवी देवताओं को अर्पण किया जा रहा था ।
"अब देवी जी को रोली,कुमकुम चढ़ाईये ।"
चढायी गयी ।
"अब माता जी को सभी श्रृंगार की सामग्री और  चुनरी चढ़ाएं ।"
तभी वहां बैठी एक 13 वर्ष की बच्ची ने कहा "अंकल जी ! सभी महिलाओं को आप देवी कहते हैं । है न ?"
"हाँ बेटा! सभी महिलाएं देवी समान हैं और आप भी ।" छंगानी जी ने हामी भरते हुए जवाब दिया ।
"अंकल जी ! यदि देवी माँ को श्रृंगार की सामग्री पसंद है तो महिलाओं को इससे दूर रहने की क्या आवश्यकता है ?" बच्ची की बात सुनते ही छंगानी जी बगलें झांकने लगे । 
ये सुनते ही महिलाओं की आंखों में हर्ष की चमक आ गई । बच्ची ने सबकी आंखें जो खोल दी थी ।  बच्ची की बातों का समर्थन करते हुए महिलाएं आपस में खुसर-फुसर करने लगीं ।
एक ने "पाखंडी है । केवल औरतों पर नजर घुमाता रहता है ।"
दूसरे ने-"और नहीं तो क्या ? भजन-कीर्तन से अपने मन का विकार तो दूर किया नहीं दूसरे को प्रवचन देता है । ढोंगी कहीं का !!!! ।"
तीसरी ने-"वही तो !!! .... । मन यदि शुद्ध हो तो विकार प्रवेश ही नहीं करेगा ।" *****

10. मनमीत
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"रमा आज चाय में इतनी देर क्यों लगाई ? मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ ।"- सुबोध बाबू ने  बिस्तर पर से ही आवाज लगाई ।
"अभी लाई ।"--कहते हुए रमा पहुंची और "आज आप बालकनी में नहीं बैठे ?"
"नहीं ।" 
"क्यों ?" रमा चाय पकड़ाते हुए ।
"बस यूँ ही । पर तुम चाय लाने में क्यों देरी कर दी ? तबीयत खराब है क्या  ? या किसी बात की तकलीफ है ?"
"नहीं तो  ।"
"कोई बात तो है, पर तुम मुझे क्यों बताओगी ।
आखिर मैं कौन होता हूँ ? मैं समझ गया हूँ कि तुम किसको बताती हो । कल मैं मिल चुका उससे । क्यों रमा मैं इतना पराया ......... ?" नाराज और दुखी होते हुए बोले सुबोध बाबू ।
"हाँ अब ये भी मुझपर....... ! देखिए जी सुबह-सुबह इस तरह दीमाग मत खराब कीजिए ।"
"और कल से मेरा है उसका क्या ?"
"क्या हुआ ? क्या किया मैंने ? आपको तो मुझमें बस........।"
"मुझे अफसोस  है कि मैं तुम्हारा हमसफर तो हूँ किन्तु अपनी व्यस्तता और क्रोधी स्वभाव की वजह से इतने सालों बाद भी  तुम्हारा मीत नहीं बन पाया । जिसके कारण तुमने किसी को अपना मनमीत बना लिया है । काश  .......  ।" सुबोध बाबू अपराध बोध सी आवाज में "ये लो तुम्हारा मनमीत तुम्हारी डायरी ।"
रमा के आंसू उस डायरी पर भोर की किरण की तरह चमक रहा था । ****

11. टिकट
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रमा के मोबाइल पर दो-तीन बार रिंग आ चुका था। पर वो सुन नहीं पायी । रात के खाने से निवृत्त होकर जब आराम से बैठी तो मोबाइल में  कई मिस काॅल । खोलकर देखा तो अनिल का था । 
तुरंत रमा ने अनिल को फोन लगाया--"हेलो बेटा ! तुमने फोन किया था ?"
अनिल--"हाँ माँ पूछ रहा था कि दीपावली पर आपलोग मुम्बई आ रहे हैं या नहीं ?"
"तुम लोग ही यहाँ आ जाते तो अच्छा रहता ।"
"माँ! हम क्या कर सकते हैं । बताया तो था कहीं भी रिजर्वेशन नहीं मिल पाया । फ्लाईट की वहां सुविधा है नहीं । मैं भी क्या करूँ ?"
रमा सोचने लगी हाँ बेटा याद है कहा था कि 'स्लीपर क्लास में केवल सीट खाली है बहू और बच्चों को परेशानी होगी ।' 
फिर मैंने कहा था कि 'यहाँ से भी तो यही हाल होगा बेटा तो हमलोग भी कैसे आ पाएंगे बोल ?' तो तुमने कहा कि 'क्या माँ आप भी ? आप और बाबूजी तो पहले स्लीपर क्लास से ही  सफर किया करते थे ?' मुझे याद है बेटा। सच में तुम्हें काबिल बनाने के लिए हमने तो इधर ध्यान ही नहीं दिया ।
तभी राजेंद्र जी जो टिकट बुक कर करा रहे थे उन्होंने कहा--"रमा ! टिकट बुक हो गया ।"
अनिल--"हेलो माँ क्या हुआ ? आप कुछ बोल नहीं रही हैं ?"
रमा--"अरे नहीं, वो तेरे बाबूजी कुछ कह रहे थे , वही सुनने लगी ।"
"अच्छा ।"
"खैर कोई बात नहीं बेटा । तेरे बाबूजी ने दीपावली के दो दिन के बाद सिंगापुर का टिकट बुक कराया है । वहां से वापसी में मुम्बई होते हुए आऊंगी ।" ****
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क्रमांक - 09
जन्मतिथि-20 जुलाई 1983
शिक्षा- एम.ए, बी.एड 
जीविकोपार्जन- शिक्षण 
लेखन विधा- लघुकथा, कविता 

साझा संकलन : -
समकालीन प्रेम-विषयक लघुकथाएँ' लघुकथा संकलन में लघुकथा प्रकाशन, 
 ई-संकलनों में लघुकथा एवं कविताओं का प्रकाशन 

सम्मान:- 
भारतीय लघुकथा विकास मंच, 
अखिल भारतीय प्रसंग, 
स्टोरी मिरर, 
पेपरविफ, 
साहित्य अर्पण आदि से विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों हेतु सम्मान पत्र प्राप्त

पता:- गंगापुर सिटी, जिला-सवाईमाधोपुर - राजस्थान
1. वृद्धाश्रम 
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रास्ते भर 'कहाँ जा रहे है?' की रट लगाए मनोहर जी ने जब कार वृद्धाश्रम पर रूकती देखी तो पट्टिका पर नाम पढ़ते ही पच्चीस वर्ष पहले का दृश्य उनकी आँखों के सामने घूम गया|
"बेटा, मैं वहाँ एडजस्ट नहीं हो पाऊंगा| मैं यहीं किसी कोने में पड़ा रहूंगा| मत भेजो मुझे वृद्धाश्रम|" उसके पिताजी उसके सामने गिड़गिड़ा रहे थे|
"देखिए पिताजी, आपकी और अर्चना की बिल्कुल नहीं बनती है| और मैं रोज-रोज के आपके झगड़े देखूँ या अपना काम|" उसने अपना फैसला सुना दिया था|
रास्ते भर पिता-पुत्र की कर्तव्यपरायणता की जद्दोजहद में वह विजयी हो गया था और पिता को वृद्धाश्रम के हवाले कर चैन की बंसी बजाई थी|
बेटे की आवाज़ ने मनोहर को यादों के भंवर से बाहर खींचा, "पिताजी, बाहर आइए| आज से..."
इससे पहले कि बेटे का वाक्य पूरा होता वह गिड़गिड़ाते हुए बोल पड़ा, "बेटा, मुझसे कोई भूल हुई क्या? जो तुम मुझे..."
"भूल...कैसी भूल पिताजी? आप क्या कह रहे है? मैं कुछ समझा नहीं?" बेटे ने आश्चर्य से उससे पूछा|
"तू... तू मुझे यहाँ छोड़ने आया है न?" उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से अपने बेटे की ओर देखा|
"छोड़ने! आप भी न जाने क्या-क्या सोचते रहते है? आपने ही तो कल बताया था कि आज दादाजी की पुण्यतिथि पर आप कुछ दान-पुण्य करना चाहते है, भूल गए आप?" यह कहता हुआ बेटा कार से सामान के थैले उतारने लगा|
"मुझे माफ करना पिताजी!" आँखों की कोर पर आये आँसू पौंछते हुए मनोहर मन ही मन पुकार उठा| ****

2. कीमत 
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उसने अपना झोला उठाया और जैसे ही कार्यालय से बाहर निकलने लगा पीछे से आवाज आई, "पत्रकार महोदय! अभी भी कहता हूँ, कुछ नहीं मिलने वाला तुम्हें ये न्यू्‍ज छापकर। जो गए, वो वापस लौटकर नहीं आने वाले। अपनी जेब भरो और पहले की तरह मस्त रहो।"
"ओह्...हो! कितना दे सकते हो?" वह पलटा और मुस्कुराकर बोला।
"अब आये न लाइन पर! बोलो कितना चाहिए?" एक कुटिल मुस्कान के साथ चीफ़ इंजीनियर वर्मा बोला।
उसकी बात सुनकर पत्रकार के कानों में उसके पत्रकारिता के गॉडफादर की बात गूंज उठी,"देख बंधु! ये जो जॉब है न जॉब नहीं है, बहती गंगा है। जब तक बिल्ली बन कर रहेगा, मलाई चाटने को मिलती रहेगी और समय देख कर शेर बन जाओ। समझ गए...!"
तभी चीफ़ इंजीनियर की आवाज ने उसे झिंझोड़ा, "अरे! अब क्या शर्माना, बता भी दो अपनी कीमत?"
"पाँच.."
"देखा मिश्रा! मैं नहीं कहता था कि इस शहर में शेर केवल चिड़ियाघर में होते हैं, हकीकत में नहीं। ये लो पूरे पाँच लाख।" वर्मा ने पत्रकार को पाँच लाख पकड़ाते हुए कहा।
"मैंने कहा... घटना में संलिप्त पाँच दोषियों के लिए फांसी की सजा। आदमखोरों की जगह सिर्फ पिंजरे में होती हैं और शेर, शेर ही होता है चाहे जंगल में हो या चिड़ियाघर में।"  दहाड़ता हुआ पत्रकार कार्यालय से बाहर निकल गया।****

3. सुपारी 
    *****

"क्या कहते हो मिश्रा? किसको मिलेगा 'बेस्ट कवरेज' का पत्रकारिता पुरस्कार?" पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में बैठे रमेश धर्माधिकारी ने पास बैठे कुणाल मिश्रा से पूछा।
"ये जो बगल में घगेश्वर बैठा है न, मुझे तो यही पक्का दावेदार लगता है।" धीमे से मिश्रा फुसफुसाया।
" हाँ यार! साले ने क्या स्टिंग ऑपरेशन किया मुख्यमंत्री का! कुर्सी ही छिन गयी।"
"पर यार! एक बात तो है, कहीं तो दाल में कुछ काला है। मैं रहा हूँ मुख्यमंत्री जी के साथ लंबे समय तक। वो एकदम पाक साफ व्यक्ति है। पर अचानक से ये... "
धर्माधिकारी अपनी बात पूरी कर पाता उससे पहले ही मंच से घगेश्वर का नाम 'बेस्ट कवरेज' के पुरस्कार के लिए अनाउंस हुआ।
विपक्षी पार्टी के नेता, जो आज मुख्यातिथि की कुर्सी संभाले हुए थे, से घगेश्वर जी ने दंत पंक्तियाँ चमकाते हुए पुरस्कार लिया और आकर अपनी कुर्सी की ओर बढ़े। 
"बधाई हो घगेश्वर जी!" धर्माधिकारी ने व्यंग्य मिश्रित खुशी दिखाई। 
"शुक्रिया।" 
"जरा सुनिए! वो सुपारी कितने की ली थी?"
यह सुन घगेश्वर के चेहरे पर हवाईयां उड़ गई।  ****

4. मेरे पतझड़
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अरी बन्तो! कहाँ मर गई? ये आँगन तेरा बाप बुहारेगा| कितने पत्ते बिखरे पड़े हैं!
"आ रही हूँ.... आग लगे इस मुए पतझड़ को; सारे दिन पत्ते बुहारूँ या घर का दूसरा काम-काज देखूं और ऊपर से ये बुढऊ.... सारा दिन चें चें... पें पें|" बन्तो बड़बड़ायी|
"कर लें जितनी बड़बड़ करनी है कर लें..एक दिन जब मैं चला जाऊंगा तो ये पतझड़ ही याद आएगा|",रग्घू बोला|
और एक दिन... एक्सीडेंट में रग्घू चल बसा| 
"ओ बुढ़ऊ कहाँ चला गया मुझे छोड़कर.... "
बन्तो दहाडे़ मारकर रो रही थी कि पड़ोस की संतो चाची ने आ झकझोरा, "ओ काकी! क्यों दहाडे़ मार रही है? काका को गुजरे एक अरसा हो गया|"
"हाँ री, सो तो है| पर ये पतझड़ जब भी आता है, मेरे बुढ़ऊ की याद ला देता है.. कम से कम इस बहाने वो मुझसे बोलता तो था|",बन्तो बोली |
"सही है काकी, जीवन में जब अपनों का साथ न हो तो बसंत भी पतझड़ और जब अपने साथ हो तो पतझड़ भी बसंत लगता है|" ****

5. बूमरैंग
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"क्या अखबार में मुँह घुसाए बैठे हो? जरा काम पर भी ध्यान दो।" कढ़ाई में गर्म होते तेल में पकोड़े का घोल डालते हुए सावित्री ने कहा।
"अरे! देखो न सुव्वू! कैसा जमाना आ गया है, दिन-दहाड़े चार गुंडों ने अकेली लड़की के साथ... हे ईश्वर!"
"ओ! दो दिन पुराना अखबार है वो। और रोज़ाना का बखेड़ा है यह। इसको लेकर बैठे न तो हो गया धंधा चौपट। लाओ, यह अखबार मुझे दो, पकोड़े बांधने है।"
"ताई! बीस रुपए के पकोड़े देना।" ठेले पर आया मवाली सा दिखने वाला वह लड़का बोला और इसी बीच उसकी नज़र सामने से आ रही एक लड़की पर पड़ी तो उसके मुँह से निकला,"  क्या रापचिक 'माल' है!"
उसके 'माल' कहते ही पकोड़े बाँधने में व्यस्त सावित्री का हाथ एकबारगी रुका, लेकिन वह फिर व्यस्त हो गयी। क्यूँकि यह शब्द तो वो रोज़ सुनती थी। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र पास आती लड़की पर पड़ी; एक चम्मच गर्म तेल मवाली की ओर उछालते हुए वह चिल्ला उठी, "ओ हरामी! कुतरया! मेरी बेटी है यह। और आज के बाद यहाँ दिखा न तो इसी बेसन में लपेट कर इसी कड़ाई में तल दूँगी तुझे। फूट यहाँ से।"
" और तुम क्या घूर-घूर के देख रहे हो मुझे। आँखें अखबार से हटाने के लिए कहा था, पर तुम्हें तो बेटी को छेड़ने वाले भी नहीं दिखाई दे रहें। अरे! आँखें नहीं तो कम से कम कान तो खुले रखो।" पति को अवाक् खड़ा छोड़ वह फिर से पकोड़े तलने में व्यस्त हो गयी। ****

6. वसीयत
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"पापा! ये आपने कैसी वसीयत लिखी है? मुझे धर्मसंकट में डाल दिया।" विभोर ने रोते हुए मन ही मन कहा। 
"अरे! इतना क्या सोच रहा है, देहदान कर और करोड़ों रुपये की संपत्ति अपनी मुट्ठी में। वैसे भी तेरे दम पर तू कभी इतनी दौलत नहीं कमा सकता।" विभोर के दिमाग ने सलाह दी। 
" ऐसा सोचना भी मत। दुनिया क्या बोलेगी, इकलौता बेटा और पैसे की खातिर बाप का अंतिम संस्कार भी नहीं होने दिया।" इस बार दिल से आवाज आई। 
" दुनिया का क्या है? यह तुम्‍हारे पिताजी की अंतिम इच्छा है, वसीयत में लिखा है। ज़्यादा भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। सोच लो! नहीं तो पूरी दौलत हॉस्पिटल ट्रस्ट के नाम।" दिमाग ने टोका।
" विभोर! जो भी निर्णय करना है, जल्दी करो। अगर एक बार बॉडी खराब होना शुरू हो गई तो फिर ये हमारे किसी काम की नहीं।" विभोर के पिता के डॉo मित्र, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने देहदान का संकल्प लिया था, ने कहा।
" मैंने निर्णय ले लिया है अंकल। पापा की अंतिम इच्छा का सम्मान होगा और यह संपत्ति भी ट्रस्ट के नाम। मैं केवल इसका दस प्रतिशत लूँगा वो भी उधार। ऐसा हो सकता है न वकील साहब।" विभोर ने आँसू पोंछते हुए कहा।
दिल और दिमाग दोनों उसके निर्णय पर अचंभित थे। ****

7. मास्टर चाभी
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उन दिनों उसकी शराफ़त के चर्चे पूरे गाँव में थे और होते क्यों नहीं सिवाय इसके, उसके पास कुछ था भी नहीं।
एक दिन उसकी किस्मत खुली और धीरे-धीरे उसने अपनी इस मास्टर चाभी से धन-दौलत, शौहरत, रुतबा और भी न जाने कितने ताले खोल दिए।
आज उसके पास नेता, अभिनेता, उद्योगपति और भी बहुत सारी चाभियाँ थी जो दुनिया के बहुत सारे ताले खोल सकती थी। सिवाय.... मास्टर चाभी के। ****

8. धर्म 
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"भों-भों, भों-भों।" अपनी गली से किसी दूसरी गली के कुत्ते को निकलते देख एक छोटा कुत्ता भोंका तो एक बुजुर्ग कुत्ते ने उसे डांटा, "चुप कर! अपने ही समाज के सदस्यों पर ऐसे नहीं भोंका करते।"
"क्यों, क्यों नहीं भोंक सकते? जब वो लोग भोंक सकते हैं तो हम क्यों नहीं भोंक सकते? यह अपनी गली का तो नहीं है न?" यह कहते हुए छोटे कुत्ते ने अपने पंजे से उसी दिन का एक अखबार जिसके मुख्य पृष्ठ पर धर्म-जाति आधारित एक लंबी बहस छपी हुई थी और लात-घूंसे चलाते हुए एक सनसनीखेज चित्र था, उस बुजुर्ग कुत्ते के आगे कर दिया।
"क्योंकि हम कुत्ते हैं और हमारा कोई धर्म नहीं होता। और वो...?" कहकर बुजुर्ग कुत्ता चुप हो गया। ****

9. बलि
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"अरे! मुझसे नहीं होगा|" साकेत ने चीखते हुए कहा|
"तुमसे नहीं होता तो मैं जाती हूँ और ये लो चूडियाँ... पहनो और आराम से घर में बैठो|" सीमा ने गुस्से से कहा|
"पर तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती, वो भी तो किसी का बच्चा होगा न?" दिल भर आया साकेत का|
"मुझे नहीं समझना कुछ भी| जब दुनिया मुझे बांझ कहती है न तो जो मेरे दिल पर गुजरती है उसे तुम क्या जानोगे? मर्द हो न!" जिद भरे स्वर में बोली सीमा|
"तो फिर ठीक है, जैसा तुम उचित समझो|" लाचारी से साकेत ने कहा और घर से निकल गया|
गली के नुक्कड़ पर पहुँच आस-पास देखा, पड़ोसी का बच्चा दिखा| उसे पास बुलाकर कहा, "बेटा! टॉफी खाओगे|"
"हाँ, अंकल|" बच्चे ने मासूमियत से कहा|
साकेत उसे बाइक पर बैठाकर चल दिया और सीधे रेलवे स्टेशन के पीछे वाले रास्ते पर रूका|
"अंकल, हम कहाँ जा रहे है?" पटरियों के बीच साकेत की उंगली थामे बच्चे ने पूछा|
"बस यहीं कुछ दूर तक घूमकर वापस आते है|" उलझे मन से उसने जबाब दिया|
"हे ईश्वर! यह कैसी दुविधा है| अपने घर का सूरज पाने के लिए किसी दूसरे के घर का चिराग बुझा दूँ| उफ्... नहीं!" डूबते सूरज को देख मन ही मन आत्मा पुकार उठी उसकी|
दूसरे ही पल वह अपने घर के दरवाजे पर था और बच्चा अपने घर|
"आ गए तुम| मैं जानती थी, आप मुझे निराश नहीं करोगे|" गले से लिपटते हुए बोली सीमा|
"चलो मेरे साथ|" हाथ पकड़कर बोला साकेत और उसके मना करने के बावजूद उसे पड़ोसी के घर ले गया|
"देखो इसे, ये एक माँ है|" बच्चे को चूमती पड़ोसिन की ओर इशारा किया साकेत ने|
"भाईसाहब! बताना तो चाहिए था कि बच्चा आपके साथ गया है|" पड़ोसिन ने सुबकते हुए साकेत से कहा|
"मुझे माफ कीजिए भाभीजी| कुछ देर के लिए भटक गया था| बच्चे नहीं है न, सो भूल गया था कि बिछुड़ने का दर्द क्या होता है?" पत्नी की ओर गीली आँखों से देखा उसने|
सीमा ने भी दोनों हाथ जोड़ दिए मानो कह रही हो, "मुझे माफ कर दो|" ****

10. अबोला
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पाँच दिनों से चल रहे अबोले को खत्म करने की मंशा लिए पत्नी ने पति को शाम की चाय थमाई|
चाय का पहला घूंट भरते ही पति चिल्लाया, "अरे! यह क्या है? क्या पूरे महीने भर की चीनी इसमें घोल दी?" 
और अचानक उसे याद आया कि वह छोटी सी अनबन के कारण पाँच दिन से चल रहे अबोले को खत्म कर शर्त हार चुका था जो उसने जोश ही जोश में कह दिया था कि, "देख लेना, तुम ही नाक रगड़ती मेरे पास आओगी और मुझसे बात करोगी|"
और पत्नी ने कहा था, "मैं... कभी नहीं|"
तभी पत्नी मुस्कुराई और बोली, "जी जनाब! वो क्या है न रिश्तों के खारेपन को खत्म करने के लिए कम मिठास से काम नहीं चला करता| और हाँ, आप शर्त हार चुके है|"
तभी पति ने कहा, "तुम्हारा स्टाइल बिल्कुल माँ की तरह है| वो भी पिताजी को ऐसे ही मनाया करती थी|"
"जी, मुझे यह करने के लिए माँ जी ने ही कहा था|" यह कहते हुए उसकी नज़र पति से मिली तो दोनों खिलखिला उठे| ****

11. बरगद
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"अरे! नहीं मिल रही है नौकरी तो क्या करूँ मैं? कौनसे कम प्रयास किए हैं? बस अब बहुत हुआ... बाबूजी की रोज़ की लताड़ मुझसे नहीं सुनी जाती।" बड़बड़ाते हुए समीर ने अपने कदम समुद्र की ओर बढ़ा दिए।
"और तेरे मरने से उनके दु:ख कम हो जाएंगे, यही सोचता है न तू। तो आ जा।" समुद्र ने अपने हाथ उसकी ओर पसार दिए। 
"अरे, उनके हो न हो मेरे तो हो ही जाएंगे। और वैसे भी सबसे ज्यादा दुःखी तो वो मेरी वजह से ही रहते है न।" समीर ने चिल्लाते हुए कहा। 
"तो फिर आ जा और मेरी इन लहरों में मिलकर अपने दिल के तूफान को शांत कर लें पर तेरे जाने के बाद तेरे बूढ़े बाप पर क्या गुजरेगी? एक बार उसके बारे में भी सोच लेना।" समुद्र ने फिर उसके दिल को झिंझोड़ा।
" ह...हूं उन्हें क्या फर्क पड़ेगा वो तो बरगद के पेड़ की तरह स्वार्थी है। जो आश्रय तो देता है किन्तु अपनी छत्र-छाया में किसी दूसरे पौधे को पनपने नहीं देता। तभी तो बाबूजी ने मुझे धंधा शुरू करने के लिए पैसे देने से इंकार कर दिया।"
"हाँ, किया होगा क्योंकि बरगद कभी नहीं चाहेगा कि वटवृक्ष की सामर्थ्य रखने वाला पौधा बेल की भाँति आगे बढ़े।" यह कहते हुए समुद्र की लहरें शांत होने लगी। 
यह बात सुन समीर के दिल का तूफान समुद्र की लहरों की भाँति शांत हो चला था। ****
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क्रमांक - 10

जन्म - 15 फरवरी 2002 , बिजवाड़ चौहान , अलवर - राजस्थान
माता – मन्जू शर्मा
पिता – कृष्ण कुमार शर्मा
शिक्षा – स्नातक वर्ष में अध्ययनरत
विधा – कहानी,कविता,लघुकथा,आलेख आदि

प्रकाशित रचनाएँ – 
“शब्द-सरोकार”, “शुभ तारिका”, “जगमगदीप ज्योति”, “लघुकथा कलश”, “हरियाणा प्रदीप” “अनुभव पत्रिका”, “रचनाकार”, “मातृभारती”, “प्रतिलिपि” में प्रकाशित रचनाएँ।

पुरस्कार –
शुभ तारिका से प्राप्त “श्रद्धा पुरस्कार”।
“माई वीडियो स्टोरी कॉन्पिटिशन” में पुरस्कृत रचना।
“मोरल स्टोरी स्पर्धा” में पुरस्कृत रचना।

लेखन उद्देश्य –
लिखने का उद्देश्य केवल मन को आनंदित करना नहीं है। बल्कि लिखने का ध्येय तो समाज में कुछ ऐसे नव परिवर्तन करने का है, जो लोगों के दिल और दिमाग को अंदर तक प्रभावित करें। अगर मेरे द्वारा लिखी हुई रचनाओं से समाज में अंशतः भी परिवर्तन संभव हो सके, तो मैं अपनी साहित्यिक सेवा को सफल समझ सकूँगी। मेरी तो असीम कृपालु मां शारदे से यही प्रार्थना है कि वह हर साहित्यकार की कलम को इतनी ताकत प्रदान करें कि समाज में नव परिवर्तन के लिए एवं किसी भी बुराई को समाप्त करने के लिए कोई हथियार उठाने की आवश्यकता ना पड़े। वह स्वतः ही कलम की ताकत से नष्ट हो जाए। अगर ऐसा सम्भव हो सके तो हर रचनाकार अपने जीवन को धन्य मान सकेगा।

पता : नेहा शर्मा D/O श्री कृष्ण कुमार शर्मा , वीपीओ बिजवाड़ चौहान , जिला अलवर - राजस्थान - 301401

1. घर आई लक्ष्मी
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"बधाई हो माजी लड़की हुई है" दरवाजे के पास ही बैठी हुई शैला से नर्स आकर कहती है। 
"क्या फिर से लड़की ?"
 यह कहते हुए शैला के लफ्ज उसके गले में ही अटक जाते हैं। वह रूआसी-सी होकर नर्स की तरफ देखती है। मुस्कुराती हुई नर्स का चेहरा शैला के हृदय को चूर-चूर कर रहा था। मानो वह भी शैला के घर दूसरी पोती के जन्म पर उसे नकली हंसी दिखा कर उसके भाग्य पर चुटकी ले रही हो। 
तभी शैला का बेटा नमन अपनी बड़ी बेटी के साथ वहां आता है। माँ का उतरा हुआ चेहरा देखकर नमन को आभास हो जाता है कि फिर से उनके घर बेटी ही हुई है। माँ- बेटे एक साथ बैठे हुए अपनी किस्मत पर तरस कर रहे थे। तभी उन्हें कमरे के अंदर से जोर-जोर की हंसी की आवाज सुनाई देती है। शैला और नमन दोनों कमरे की तरफ झांकते हैं और देखते हैं कि उनकी बड़ी बेटी डॉक्टर और नर्स को चॉकलेट बांट रही हैं।
 शैला - "अरे लड़की तू ये क्या कर रही है और तू यह मिठाई क्यों बाँट रही है? हमारे घर बेटी हुई है बेटा नहीं। और लड़कियों के पैदा होने पर ज्यादा खुशियां नहीं मनाया करते हैं।"
 यह कहते हुए शैला अपनी पोती की हाथ से चॉकलेट की थैली छीन लेती है। छोटी पोती उदास होकर कभी अपनी माँ को तो कभी अपनी दादी को देखती है। 
अपनी भोली- सी आवाज में कहती है- "पापा ये बेटियों के जन्म पर मिठाईयाँ क्यों नहीं बाँटी  जाती है। क्या वे इंसान नहीं। दादी इतनी क्यों उदास है कि उनके घर दूसरी लड़की आई है। पापा जब मेरा जन्म हुआ था क्या तब भी दादी इतनी ही उदास हुई थी। पापा लोग लड़कियों के जन्म पर ही दुखी क्यों होते हैं।"
बेटी के इन सभी सवालों ने नमन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि "आखिर वे अपनी ही संतान की जन्म पर इतना क्यों दुखी हो रहे हैं। क्योंकि वह संतान बेटा नहीं बेटी है इसीलिए। जब वे ही अपनी संतान के जन्म पर इस तरह दुखी होकर बैठ जाएंगे तो लोगों को तो पूरा हक होगा उनका मजाक बनाने का और आज के वक्त में तो लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कमजोर नहीं है या फिर कहे तो लड़कियां कभी कमजोर थी ही नहीं बस उनके पास मौका नहीं था या हम जैसे लोगों ने उन्हें  मौका मिलने ही नहीं दिया।यह लड़कियां हमारे परिवार का भविष्य हैं और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उन्हें एक उज्जवल भविष्य देख कर इनके पंखों को उड़ने का मौका दूं।"
 यह सोचते हुए नमन अपनी नवजात बेटी को गोद में उठाकर देर तक निहारता है और पास ही में खड़ी शैला अपने हाथ में रखी चॉकलेट की थैली से चॉकलेट निकालकर सभी का मुँह मीठा करवाती हुई अपनी पोती को गले से लगा लेती है। और एक बार फिर से पूरे कमरे में हँसी की लहर दौड़ जाती है। ****

2. असली खुशी
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कुम्हार के कठोर परिश्रम से बनकर तैयार हुआ मटका अपने वास्तविक रूप में आने के बाद खुशी से फूला नहीं समा रहा था। सुंदर आकार लिए हुए मटके को कुम्हार अपने कंधे पर रखकर बाजार की तरफ बढ़ता है।
कुम्हार के कंधे पर बैठा हुआ मटका प्रफुल्लित मन से सोच रहा था कि "शायद इस बार तो उसे कोई अपना खरीददार मिल ही जाएगा। क्योंकि पिछली बार वह पूरे दो महीने तक ऐसे ही रखा हुआ था और अंत में कुम्हार ने गुस्से में आकर उसे जमीन पर दे मारा। जिससे उसके छोटे-छोटे  टुकड़े उसी गीली मिट्टी में जा मिले जिससे वह बना था।"
कुम्हार ने मटके को चबूतरे पर रख दिया और अब मटका हर राहगीर को आशान्वित दृष्टि से देख रहा था कि शायद आज तो कोई उसे खरीदेगा।
तभी मटके को पीछे से एक जोरदार हंसी की आवाज सुनाई देती है। मटका धीरे से पीछे की ओर घूमता है। पीछे रेफ्रीजिरेटर की एक लंबी कतार थी, जो मटके को इतनी भीड़ में बिल्कुल अकेला पाकर उसकी खिल्ली उड़ा रही थी। 
तभी बीच में से एक रेफ्रिजरेटर अपनी घुनघुनाती हुई आवाज में कहने लगा- "अरे मटके तुम यहां बैठे हुए अपने खरीददारों की राह देख कर क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो। शायद तुम्हें मालूम नहीं है कि अब लोगों को तुम्हारी जरूरत नहीं है। बल्कि लोग तो हम हजारों रुपए वाले रेफ्रीजिरेटरों को खरीदकर ले जाते हैं। और तुम्हारा पानी अब लोगों को इतनी शीतलता प्रदान नहीं करता है। जितना कि हम रेफ्रिजरेटरों का  कोल्ड पानी।"
तभी मटका अपनी मीठी आवाज में कहता है कि - "लेकिन रेफ्रीजिरेटर भाई तुम शायद भूल रहे हो। जब तुम्हारा वजूद भी इस दुनिया में नहीं था। तब मेरा ही पानी पहले के लोगों को शीतलता प्रदान कर राहत पहुंचाता था।"
इसी बीच आखिरी में खड़ा हुआ एक रेफ्रीजिरेटर अपनी तनतनाती हुई 
आवाज मैं कहता है कि-  "रे मटके  अब जमाना बदल गया है। अब  पहले वाले लोग नहीं है यहां, जो तुझे अपने घर खरीदकर ले जायेंगे। आज की युवा पीढ़ी की तो एकमात्र पसंद हम रेफ्रीजिरेटर हैं। अधिकतर बच्चे तो जानते भी नहीं है कि सच में क्या अभी तेरा वजूद है।"
यह कहते हुए पुनः सारे रेफ्रिजरेटर खिलखिलाकर हंस देते हैं।
तभी एक छोटा- सा बच्चा कुम्हार से आकर मटके के दाम पूछता हुआ मटके को थोड़ा घुमा- फिरा कर देखता है। अपनी जेब में से एक मैला- सा पचास रूपयेे का नोट निकालकर कुम्हार को देेता है। और मटके को अपने कंधे पर रखकर आगे बढ़ता है।
कंधे पर बैठा हुआ मटका जोर से बोलता है -"देखो रेफ्रीजिरेटरों गरीबों के घर की शान तो आज भी मैं ही हूं।और मेरा शीतल जल केवल मन को शांति ही नहीं देेता है। बल्कि मेरी मिट्टी में मौजूद कई तत्व लोगों को बीमारी से लड़ने की ताकत भी प्रदान करते हैं।"
यह कहते हुए मटका जोर से हंसता है और रेफ्रीजिरेटर की लंबी कतारों का सिर नीचे झुक जाता है। ****

3 . विचारों की हेरा - फेरी
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प्रिया सिमरन से कहती है कि -"अरे सिमरन आज श्रावण का पहला सोमवार है। इसीलिए आज हम कॉलेज जाते हुए रास्ते में गौरी शंकर के मंदिर होते हुए चलेंगे।"
सिमरन- "हां बिल्कुल चलेंगे।"
सिमरन और प्रिया दोनों बस से उतरकर पहले मंदिर जाती हैं। प्रिया भगवान के पूजा की सारी सामग्री अपने साथ ही लाई थी। वह भगवान की पूरी विधि- विधान से पूजा करती है और पूजा समाप्त होने के बाद पुजारी को भेंट स्वरूप एक सौ एक रुपये देती है।
सिमरन- "वाह प्रिया। लगता है आज तो शिवजी को पूरी तरह खुश करने का मन है तुम्हारा।"
प्रिया- "अरे नहीं सिमरन मैंने सुना है कि यह मंदिर अपने यहां आने वाली सारी दक्षिणा से गरीब बच्चों की मदद करता है। तो मैंने सोचा क्यों ना मैं भी इस नेक काम में अपनी भागीदारी दूं। वैसे भी भगवान भी तो यही चाहते हैं कि हम किसी गरीब बेसहारा की मदद करें।"
सिमरन -"क्या बात है प्रिया आज तो तुम्हें सैल्यूट करने का मन कर रहा है।"
प्रिया -"बस-बस अब चलो कॉलेज के लिए देर हो रही है।
मंदिर से बाहर निकलते हुए एक गरीब बच्चा जो भूख से बदहवास- सा लग रहा था प्रिया से आकर कहता है कि -"दीदी बहुत भूख लगी है। कुछ पैसे दे दीजिए। मैंने कल से कुछ नहीं खाया है।"
बच्चे की यह सब बातें सुनकर प्रिया झल्ला जाती है और गुस्से से कहती है कि- "बस इन लोगों को सुबह-सुबह कुछ और काम नहीं मिला, जो आगे हाथ फैलाकर। पैसे क्या पेड़ पर लगते है। जो माँगने चले आते हो।कमाकर क्यों नहीं खाते हो।
सिमरन प्रिया की यह सब बातें सुनकर अवाक रह जाती है। सिमरन कभी प्रिया को तो कभी बच्चे को विचित्रता से  देखते हुए मंदिर के अंदर वाली और मंदिर के बाहर वाली प्रिया के विचारों की हेरा-फेरी के बारे में सोचने लग जाती है। ****

4. मनीआर्डर
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सामने चबूतरे पर बैठे हुए वसंत काका के पास रघु दौड़ता हुआ आता है और उनके घुटने के सहारे बैठा हुआ अपनी हाँफती हुई आवाज से मैं कहता है कि- "अरे काका यह देख क्या है?" और यह कहता हुआ अपनी जेब में से एक लिफाफा निकालकर वसंत काका के हाथ में रख देता है।
बसंत काका लिफाफे को थोड़ा घुमा- फिरा कर देखते हुए रघु से पूँछ ही बैठते हैं - "क्यों रे रघु क्या शहर से मेरे बेटे ने पैसे भेजे हैं।"
रघु थोड़ा मुस्कुराता हुआ बोल पड़ता है- "हां काका बिल्कुल सही पहचाना आपने। शहर से आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है। भेजता भी क्यों ना कब से आप इसका इंतजार कर रहे थे।"
वसंत काका खिलखिलाकर बोल पड़ते हैं- "देख रघु बेटा मैं ना कहता था तुझसे कि मेरे बेटे ने तो मेरे लिए कब के पैसे भेज दिए होंगे। लेकिन शहर इतना दूर है कि इसे यहां पहुंचने में थोड़ा वक्त लग गया होगा। मैं अभी अंदर जाकर तेरी काकी को यह बताता हूँ। वह सुनेगी तो खुश हो जाएगी।"
यह कहकर बसंत काका अपनी छड़ी के सहारे धीरे- धीरे अंदर की ओर चल पड़ते हैं। और रघु डाकिया काका के चेहरे पर खुशी देखकर अपने आप को धन्य महसूस करता है। क्योंकि बसंत काका की मदद करकर बेटे का फर्ज तो आखिर रघु ने ही अदा किया था। ****

5. जल की गरिमा
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आज प्रधानाचार्य श्री राम स्वरूप चतुर्वेदी जी अपनी पोस्टिंग के बाद पहली बार भरतपुर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आए। प्रार्थना सभा के बाद प्रधानाचार्य जी टहलते हुए विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था व साफ-सफाई का निरीक्षण करने लगे। निरीक्षण करते वक्त सहसा प्रधानाचार्य जी की नजर कोने में लगे हुए उस बिना टोंटी के नल पर गई ।जिसमें से पानी व्यर्थ बह रहा था। और विद्यालय के विद्यार्थी उस बहते हुए जल को अनदेखा करते हुए सिर्फ पानी पीते और चले जाते। तभी प्रधानाचार्य जी ने नल पर पानी पी रहे उस बच्चे को इशारे से अपने पास बुलाया। और पूछा बेटा क्या इस नल को बंद करने के लिए कोई टोंटी नहीं है?
बच्चे ने जवाब दिया - नहीं गुरुजी।यह तो हमेशा ऐसे ही बहता रहता है ।बच्चा यह बोलकर अपनी कक्षा की तरफ चला गया।
तभी प्रधानाचार्य जी ने चपरासी को बुलाया और नल बंद करने के लिए टोंटी लाने का आदेश दिया। और साथ में यह भी कहा कि सभी बच्चों को छुट्टी के बाद विद्यालय परिसर में एकत्रित हो जाएँ । छुट्टी के बाद सभी बच्चे एक दूसरे से कानाफूसी करते हुए विद्यालय परिसर में एकत्रित हो गए। सभी शिक्षक सोच रहे थे कि प्रधानाचार्य जी ऐसा क्या कहेंगे जो सभी बच्चों को एक साथ इकट्ठा कर लिया है। तभी प्रधानाचार्य जी ने कहा कि आज मैंने विद्यालय का निरीक्षण करते वक्त कोने में लगे हुए उस व्यर्थ बहते हुए पानी के नल को देखा। जिस पर हमारे शिक्षक, बच्चों किसी का ध्यान नहीं था।
उन्होंने पास ही में खड़े उन शिक्षक महोदय से कहा कि- आज आप बच्चों को कक्षा में जल ही जीवन है पढ़ा रहे थे ना। लेकिन आपके विद्यालय में आपका जीवन रूपी जल ऐसे ही नाली में बहा जा रहा था। हमें सिर्फ किताबों में लिखी हुई बातों को पढ़ना व बच्चों को पढ़ाना नहीं है। बल्कि उसे अपने वास्तविक जीवन में चरितार्थ भी करना है।हमें जल की महत्ता को समझना है व दूसरों को भी जल की एक एक बूंद बचाने के लिए प्रेरित करना है। आज हम सभी यह संकल्प लेते हैं कि हम ना ही व्यर्थ पानी बहाएंगे और ना ही व्यर्थ पानी बहने देंगे ।बच्चों व शिक्षकों की इस गूंजती हुई आवाज से प्रधानाचार्य जी को यह संतोष हो गया कि आज इन सभी को जल ही जीवन है का पाठ लगता है सच्चे अर्थों में समझ आ गया है। ****

6. दोहरी मानसिकता
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बाबूलाल और मदन दोनों ऑफिस में बैठे हुए बातें कर रहे थे।
मदन ने बाबूलाल से पूछा-- क्यों बाबूलाल कल ऑफिस क्यों नहीं आए?
बाबूलाल-- दरअसल कल मैं बेटी रोशनी के रिश्ते के लिए गया था।
मदन-- फिर क्या हुआ बात बनी क्या
बाबूलाल-- बात क्या बननी थी मदन। जहाँ जाते हैं वहाँ सब बस एक ही बात शुरू करते हैं।
दहेज में क्या ••••••••••?
और तुम्हें तो पता है मैंने अपनी बेटी रोशनी की पढ़ाई में कितने पैसे खर्च किए हैं। और अब तो उसकी अच्छी नौकरी भी है। लेकिन लोगों की सोच भी ना अभी तक वहीं अटकी है। मैंने तो तय कर लिया है कि मैं अपनी बेटी की शादी मैं बिल्कुल दहेज नहीं दूंगा।
मदन -- हां बिल्कुल सही सोचा है तुमने बाबूलाल। खैर छोड़ो वैसे भी तुम्हारी बेटी रोशनी बहुत अच्छी है। उसे तो अच्छा लड़का मिल ही जायेगा। लेकिन तुम्हारा बेटा उसकी भी तो रिश्ते की बात चली थी कुछ दिन पहले ।
बाबूलाल -- हां चली तो थी। लेकिन लड़की वाले कुछ भी देने के लिए मान ही नहीं रहे थे। मैंने अपने बेटे की पढ़ाई में इतने पैसे खर्च किए हैं, तो मैं एकदम सिंपल शादी कैसे कर सकता हूँ ।इसीलिए मैंने मना कर दिया।
मदन -- बाबूलाल की दोहरी मानसिकता पर मन ही मुस्करा दिया। ****

7. आज की सोच
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महक ने स्कूल से आकर अपना बैग मेज़ पर रखा और दौडती हुई माँ के पास रसोईघर में गयी।माँ रसोई में कुछ विशेष व्यंजन बना रही थी।महक के पूछने पर माँ ने बताया कि आज रात को गाँव से शान्ति बुआजी आ रही हैं।यह सुनकर महक बहुत ख़ुश हुई ,क्योंकि उसे अपनी बुआ से अत्यधिक लगाव था। रात को क़रीब 8.30 बजे बुआजी रेलवे स्टेशन से ऑटो पकड़कर घर आई।पापा ने उनका बैग उठाया और उन्हे अंदर लेकर गये।माँ ने उनके पैर छुए।महक को देखकर बुआजी ने उसे गले लगा लिया और कहने लगी पिछली बार आए थे, तो बहुत छोटी थी ,लेकिन अब बहुत समझदार हो गयी हैं।दादाजी ने उन्हे बिठाया और कुछ समय बाद पूछा कि -क्यो शान्ति आज अचानक यहाँ आने का मन कैसे बनाया।अभी चार दिन पहले पूछा था, तो तुमने मुझसे कहा था कि खेत पर बहुत काम हैं।
शान्ति ने कहा कि -खेत पर तो काम हैं।लेकिन पिंकी अब बड़ी हो गयी हैं।इसीलिए उसकी शादी भी तो करनी हैं।
दादाजी ने कहा कि -ये क्या कह रही हो शान्ति? अभी तो वह सिर्फ़ सोलह साल की हैं।और पढ़ने में भी होशियार हैं।हमेशा क्लास मे अव्वल आती है।
शान्ति ने कहा कि -यह बात तो ठीक हैं।लेकिन लड़कियों को पढ़ -लिखकर भी करना, तो घर का ही काम हैं।फ़िर ज़्यादा पढ़ा -लिखाकर पैसे ख़र्च करने से क्या फ़ायदा।उसकी पढ़ाई से बचे हुए पैसों को उसकी शादी में ख़र्च कर देगे।
पास में बैठी हुई महक दादाजी और बुआजी की बात बड़ी गौर से सुन रही थी।कुछ देर शांत रहने के बाद महक ने बुआजी से कहा कि -बुआजी पढ़ने का उद्देश्य केवल नौकरी करना नहीं हैं। बल्कि पढ़ाई का उद्देश्य तो व्यक्ति के मानस का विकास करना हैं।अगर आप मानती हैं कि -शिक्षा का उद्देश्य नौकरी ग्रहण करना हैं ,तो इसके भी कई उदाहरण आपको हमारे समाज में देखने को मिल जायेगे।क्योंकि आज लड़कियाँ डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी तथा वकील बनकर हर जगह अपना पैर जमा रही हैं।और रही बात पिंकी दीदी की तो वे महज सोलह साल की हैं और अगर आप उनका विवाह करती है, तो वह विवाह एक बालविवाह की श्रेणी में आएगा ,जो हमारे देश में कानूनी अपराध हैं।बुआजी यह तो इक्कीसवीं सदी चल रही हैं। और आप इस समय ऐसी दकियानुसी सोच रखेगी तो आज की युवा पीढ़ी आपको कचरे के ढेर की तरह फेंक देगी।यह कहकर महक अपने कमरे में चली गयी।
महक की बात सुनकर सभी परिवार वाले अवाक रह गये।वे सभी सोचने लगे की इतनी छोटी -सी लड़की भी क्या इतनी बड़ी बात सोच सकती हैं।शान्ति बुआ को महक की बात समझ आ गयी और उन्होनें महक को अंदर जाकर गले से लगा लिया। ****

8. देवदूत
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तेज बारिश के कारण सामने दिखने वाली वह ऊँची चट्टान नीचे बसी कच्ची बस्ती पर धड़ाम से आ गिरी। शांति से अपने दिनचर्या में लगे हुए ग्रामीणों में अचानक से अफरा- तफरी मच गई और देखते ही देखते वह सुंदर- सा दिखने वाला ग्रामीण इलाका किसी मलबे में तब्दील हो गया। फौरन सेना के जवान वहाँ आते हैं और लोगों के रेस्क्यू में जुट जाते हैं। अपनी जान की परवाह किए बिना वे लोगों की जान बचाते है और आधे से ज्यादा लोगों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाते है।
तभी एक चोटिल महिला सेना के एक जवान के माथे को सहलाते हुए बोल पड़ती हैं -"बेटे तुम हमारे लिए भगवान के भेजे देवदूत से कम नहीं हो। तुमने अपनी जान पर खेलकर हम सबकी जान बचाई है। वास्तव में बेटे मनुष्य होने का सच्चा धर्म तो आप निभा रहे हो, जो केवल अपने लिए ही नहीं जी रहे हैं बल्कि निस्वार्थ भाव से अपने देश व देशवासियों के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते हैं। देश को फक्र है तुम्हारे जैसे वीर जवानों पर।"
यह कहते हुए वृद्धा अपने काँपते हुए हाथों से सेना के वीर जवान को सैल्यूट करती हैं। और सेना का जवान मुस्कुराते हुए चल पड़ता है। ****

9. एक कदम
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जग्गू जेब से माचिस निकालकर अपनी सिगरेट को सुलगाता है और दो घूंट मारते हुए सिगरेट अपने दोस्त मुरली की तरफ बढ़ाते हुए कहता है कि -"ये ले मुरली तू भी मार ले दो-चार घूंट। मन एकदम ही तरोताजा हो जाएगा।"
मुरली- "न, न नहीं जग्गू। मैं नहीं पीता हूं।ये सिगरेट- विगरेट।"
जग्गू अपना हाथ पीछे खींचते हुए कहता है कि- "ठीक है भई। तुझे नहीं पीनी है, तो ना सही पर हम तो पिएंगे।"
और यह कहते हुए फिर से सिगरेट के घूंट भरने लगता है।
तभी जग्गू की छोटी- सी बेटी उसके पास आती है और कहती है कि- "पापा देखो ना मेरी पेंसिल बिल्कुल टूट गई है और मेरे पास तो कोई ड्राइंग कलर भी नहीं है। मुझे जल्दी से दिला कर लाओ ना।"
छोटी- सी बच्ची अपने पिता का हाथ खींचती हुई दुकान की ओर इशारा करती है।
लेकिन तभी जग्गू झल्ला जाता है और छोटी बच्ची के हाथ को जोर का झटका मारते हुए कहता हैं कि -"पेन दिला दो, पेंसिल दिला दो। तुम्हारा तो यह रोज का ही काम हो गया है। अभी 10 दिन पहले ही तो दिलाई दिलाया था यह सब। जाओ मेरे पास पैसे नहीं है।"
इसी बीच जग्गू अपनी जेब में हाथ डालकर एक नई सिगरेट निकालता है और उसे सुलगाते हुए पुनः घूँट भरने लगता है।
पास ही में बैठा मुरली कभी जग्गू को तो कभी उसकी सुलगती हुई सिगरेट को आश्चर्य भरी नजरों से देखता हुआ बोल पड़ता है- "जग्गू जरा यह तो बता तेरी यह सिगरेट कितने की है?"
जग्गू अपने मुंह से धुँआ बाहर छोड़ते हुए कहता है कि -"यह सिगरेट, यह तो बस दस रुपये की।"
तभी मुरली अपनी फिकी- सी हँसी हंसता हुआ कहता है - "वाह रे जग्गू तुझे यह दस रुपये का सिगरेट सिर्फ बस लगता है, जिसे तू दिन में न जाने कितनी बार खरीदता है और इसे पीकर अपने शरीर को अनगिनत रोगों के जाल में फसाता जा रहा है। वही तुझे तेरी बेटी के पेन पेंसिल, जो तेरी बेटी के भविष्य को आगे चलकर उज्जवल बनाएंगे। उनके लिए तेरे पास पैसे भी नहीं है। अरे देख जग्गू ये सिगरेट का पैकेट जिसपर साफ- साफ लिखा हुआ है कि ये जानलेवा हैं।फिर भी तू रोज शौक से इसे खरीदता हैं।अगर तू इस सिगरेट से बचे हुए पैसों से अपने बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करेगा तो केवल तू ही सुखी नहीं होगा बल्कि अपने बच्चों की नजरों में तेरा सम्मान व प्यार भी दोगुना हो जाएगा।अभी भी समय हैं जग्गू बदल जा।"
यह कहते हुए मुरली सिगरेट का पैकेट जग्गू के हाथ में थमा देता है।
जग्गू पैकेट पर बने हुए जानलेवा के मार्क को देखता हुआ सिगरेट के पैकेट को जोर से फेंकता हैं और बेटी को गोद में उठाकर दूकान की तरफ बढ़ चलता हैं।****

10. हमारा कश्मीर
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रिपोर्टर सामने बेंच पर बैठे हुई नवयुवक से जाकर पूछता है- "श्रीमान आप कश्मीर से धारा 370 हटने पर क्या कुछ कहना चाहेंगे?"
नवयुवक रिपोर्टर पर एक नजर डालते हुए बोल पड़ता है- "मेरा कश्मीर कितने वर्षों तक अपने परिवार से अलग रहा। परिवार से अलग हुए हिस्से को कितने दुख और तकलीफें झेलनी पड़ती है उसे  हम कश्मीर वासियों से बेहतर और कौन जान सकता है। धारा 370 के कारण अपने ही देश से अलग- थलग पड़ा कश्मीर अपने ही देश की सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने जैसी अवैध हरकतों को झेलता रहा। लेकिन अब धारा 370 हट जाने के कारण कश्मीर अपने देश रुपी परिवार से जुड़ कर संगठित और मजबूत हो गया है।अब कश्मीर हर विपदा का सामना अच्छे से करने में समर्थ है।"
यह कहते हुए नवयुवक की आंखों में तेज झर- झर झरनें लगता है। ****

11. नहीं कोई भेद
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एक समूह में इकट्ठा हुए सभी भाषा परिवार पंजाबी, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, मराठी अपनी भाषा की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए बहस किए जा रहे थे। कोई भी भाषा अपने आपको दूसरी भाषा के महत्व से कम नहीं आंकना चाह रही थी। सभी अपनी भाषाई उच्चता स्थापित करने के लिए बहस कर रही थी कि अचानक उन सभी के कानों में एक तीव्र स्वर प्रवेश करता है। सभी भाषाओं की नजरें एकदम से उन विभिन्न भाषी लोगों पर जाकर टिक जाती है। वे सभी लोग बड़े- ही सहजता से अपनी भाषा में एक- दूसरे से वार्तालाप कर रहे थे। कभी बंगाली, तेलुगु बोलने की कोशिश करता तो कभी पंजाबी, गुजराती बोलने की कोशिश करता। सभी भाषाएँ यह दृश्य देखकर आश्चर्य से एक- दूसरे की तरफ देखती है।
तभी पीछे से कोई अपनी धीमे से स्वर में बोलता है- "देखा बहनों यहाँ कोई एक दूसरे से छोटा नहीं है सभी एक समान है। जितना महत्व पंजाबी का है उतना ही महत्व बंगाली का भी है। सभी लोग एक दूसरे के रंग में रंगे हुए है, तो किसी की भी श्रेष्ठता का प्रश्न तो उठता ही नहीं है। जब ये लोग ही किसी भाषा को बोलते वक्त किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते तो हम क्यों?"
यह सुनकर सभी भाषाएं एक- दूसरे के गले लग जाती हैं और मातृभाषा हिंदी पास खड़ी मुस्कुराती है। ****
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क्रमांक - 11

शिक्षा: एम.ए . हिन्दी, एमएड ,  पीएचडी
प्रेरणा: मात-पिता-गुरु-मित्र और परिवार
सम्प्रति : प्रधानाचार्य , शिक्षा विभाग,  राजस्थान

विधा : गीत,  कविता, लेख और  लघुकथा

रूचि:
1) लेखन
2) चित्रकारी
3) नृत्य-संगीत

सम्मान: -

1) राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान,  राजस्थान सरकार,  सत्र -2017
2) प्रशस्ति पत्र : उत्कृष्ट शिक्षक  एवं सराहनीय जन-सेवा पर शिक्षा विभाग,  राजस्थान सरकार सत्र -2017
3) प्रशंसा पत्र: आदर्श  विद्यालय में संस्थाप्रधान  के  कार्यो का श्रेष्ठ संपादन एवं सराहनीय सेवा पर शासन  सचिव,  स्कूल शिक्षा  एवं  भाषा  विभाग,  राजस्थान  सरकार, सत्र -2017
4) अनेक ब्लॉक स्तरीय सम्मान,  शिक्षा  विभाग,  अजमेर, राजस्थान
5)  विभिन्न साहित्यिक  सम्मान

विशेष : -
1) साहिल वृद्धाश्रम अजमेर,  अपना घर वृद्धाश्रम अजमेर में  सेवा कार्य
2) बालिका  शिक्षा प्रसार
3) बेटी  बचाओ अभियान
4) अंध्विश्वास दूर  भगाओ
5) घूँघट प्रथा उन्मूलन
6) राष्ट्रीय कार्यक्रम- "एक पेड़ सात ज़िन्दगी" अभियान
7)   200+ घरों में विशेष हस्त लिखित पाती द्वारा जागृति संदेश।
8) स्वयं 151 वृक्ष लगा कर जन जन को संरक्षण का उत्तरदायित्व सौंपा गया|
9) शिक्षा में नवाचार का प्रयोग
10) भामाशाह को प्रेरित कर विद्यालय में विकास कार्य
11) जिलाध्यक्ष: अजमेर  महिला  प्रकोष्ठ
12) रेडियो प्रसारित कार्यक्रम : शिक्षक दिवस, 2019 को  आकाशवाणी केंद्र जोधपुर द्वारा वार्ता प्रसारण
13) लेखनी उद्देश्य : सामाजिक  समरसता एवं आत्म सम्मान के साथ  निर्भीक लेखक

प्रकाशन: -
1) भरतपुर हिंदी साहित्य समिति से डुगडुगी में समय समय पर लेख प्रकाशित
2) माँ की पाती, बेटी के नाम पुस्तक में पाती का प्रकाशन
3) शिविरा प्रत्रिका और विभिन्न समाचार पत्रों में समय समय पर रचना प्रकाशन

पता : -
528/22 बालूपुरा रोड,आदर्श नगर,
देवनारायण गली नंबर -8 , अजमेर - 305001 राजस्थान

1.बाजरे की रोटी

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कल्पना ने उच्च शिक्षण हेतु अरुण को अमेरिका भेजा, वहीं उसकी नौकरी लग गयी l वहीं उसने कैटरीना से शादी कर ली और उसके दो बच्चे हुए जो वहीं पले और बढे l कभी कभी वहबच्चों के साथ गाँव भी आता थाl
   इस बार लॉकडाउन के कारण सभी हवाई यात्राएँ केंसिल हो गयी l इस परिस्थिति में वह परिवार के साथ ही रहा l उसके बच्चों को पिजा, बर्गर आदि पसंद थे, गाँव में ये सब कहाँ? उनकी दादी ने पूछा, ये क्या कह रहे हैं? बालक दादी के पास गये और मोबाईल पर खाका खींचा जिसे देख, दादी ने कहा, बस l अगले दिन चूल्हे पर सिकी बाजरे की रोटी, उस पर खूब सारा मक्खन लगा, प्याज़, टमाटर आदि से सजा और गुड़, खांड के साथ पेश किया, बड़े चाव से बालकों ने खाया और दादी के गले में गलबहियां डाल झूलने लगे l ****

2. पड़ोसी
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रामचंद्र और उसकी बीबी छोटी छोटी बातों पर मोहल्ले में झगड़ते थे,फलस्वरूप कोई भी उनके पास फटकता भी नहीं था l यही आदत उनके दोनों बच्चों में अा गयी l
एक बार रामचंद्र बहुत बीमार हुआ l उसकी बीबी परेशान, कैसे क्या करूँ...?ओटो ले उसे हॉस्पिटल ले गई l गेट पर ही उसका पड़ोसी नारायण मिला l उसे बेदहवास घबराया देख बोल उठा, भाभी जी क्या बात है, घबराई हुई क्यों हो, उसे देखते ही उसकी रुलाई फूट पड़ी l नारायण ने उसे ढाढ़स बँधाया और उसकी मदद की l उस दिन का दिन और आज का दिन,रामचंद्र अब किसी से झगड़ा नहीं करता l ****
            
3.माँ
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रूचि ने सदा माँ को घर और स्कूल के कार्यो को बखूबी संभालते देखा है l कैसे जल्दी उठकर घर के सारे कार्य पूर्ण कर स्कूल जाती और स्कूल से आते ही घर के कार्यो में पुनः जुट जातीl
रूचि को गुस्सा आता,माँ हमसे बात नहीं करती, उनके पास हमारे लिए समय नहीं l मेरी सहेलियों की मम्मी कितनी अच्छी हैं उन्हें पीजा, बर्गर, सेंडवीच आदि तरह तरह की चीजें टिफिन में बनाकर देती हैं और उसकी माँ प्रतिदिन परांठा- सब्जी ही देती
है l
अब रूचि बड़ी हो गयी l उसका भी अपना परिवार है l वह भी माँ की तरह अपना घर का कार्य निपटाकर ऑफिस संभालती है l आज उसे अहसास हुआ कि माँ ये सब कैसे मैनेज़ करती थी l
बिना कुछ कहे सुने सबकी ख़ुशी का ध्यान रखना और ऊपर से हमारे नखरे भी हँसते हँसते पूरे करती l आज मातृ दिवस पर माँ की याद से उसकी आँखों में आँसू छलछला आये l माँ, तुम कितनी अच्छी हो l ****
          
4.खेत
   ***

रतन लाल बड़े शहर में गार्ड की नौकरी करता था l कोरोना काल में नौकरी छूट गई l जैसे तैसे अपने गाँव पहुंचा l जमा पूंजी उसकी खर्च होती गई l इसी उधेड़ बुन में वह अपने खेत पर पहुंचा l
उसकी नज़र एक गिलहरी पर गई l वह खेत में से एक एक दाना अपने बच्चों को खिला रही थी l जिसे देख उसके मन में विचार
कोंधा, क्यों न मैं भी इस खाली खेत का उपयोग अपने बच्चों के लिए करूँ l बस, फिर क्या था, वह बाज़ार में बीज की दुकान पर गया और नकद की फ़सल के बीज ले आया l खेत में छोटी छोटी क्यारी बना कर, उसमें उसने गोबर की खाद के साथ बीज डाल दिये l आठ से दस दिन में बीज अंकुरित हो गये l धीरे धीरे वह बढ़ने लगे l
इन्हें देख उसके मुख पर संतोष का भाव छाने लगा l टमाटर, मिर्ची, भिंडी, बेंगन लोकी, काशीफल, पालक, धनिया, आदि
को शहर की ओर  जाने वाली सड़क पर बेचने लगा l धीरे धीरे उसके घर में समृद्धि आने लगी l
    जिस खेत से मुँह मोड़ वह चला गया था आज वही उसका सबसे बड़ा सहारा था l ****
   
5. उदाहरण
    ********

राकेश के पापा की आदत थी कि जो काम उन्हें दूसरों से करवाना होता था तो स्वयं उस कार्य को प्रारम्भ करने लगते l तब परिवार के सदस्य उनके हाथ से कार्य लेकर खुद करने लगते l
एक बार की बात है कि रसोई के सिंक में चार पानी के गिलास झूँठे पड़े थे l वे रसोई में पानी पीने गये, सिंक में झूँठे गिलास देखते ही स्वयं साफ करने लगते l
इसी प्रकार घर से थोड़ी दूर पर सड़क पर एक बड़ा पत्थर पड़ा था जो काफी समय से राह में बाधा उत्पन्न कर रहा था, किसी ने भी उसे हटाने का प्रयास नहीं किया l
    एक दिन उनके पोते ने देखा बाबा गेंतीं लेकर उसको ढलकाने की कोशिश कर रहें हैं फिर क्या था पोता और बाल वानर सेना के साथ नौजवान राहगीर साथ में जुट गये और कुछ ही मिनटों में वह पत्थर जो राह की बाधा था सड़क से हट चुका था l सबके चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी l
उनकी यह आदत  परिवार में परम्परा या संस्कार के रूप में( काम तुरंत करने का )उदाहरण आज भी नज़र आता है l
****
    
6. स्वच्छता
    *******

सोमेश अपने मम्मी डैडी और छोटे भाई मोनू के साथ गुजरात भ्रमण पर निकला l रास्ते में दर्शनीय स्थल देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे l गुजरात की चौड़ी -चौड़ी स्वच्छ सडकें देख मन खुश हो रहा था l एकाएक मोनू ने वेपर्स खाये हुए रेपर्स और फल के छिलके फेंकने के लिए जैसे ही विंडो खोला l सोमेश ने कहा, मोनू भाई तुमको ये साफ सड़कें अच्छी नहीं लग रहीं l जहाँ कचरा पात्र मिलेगा वहीं रुक कर डाल देंगें l यदि हम ही शुरुआत नहीं करेंगे तो देश कैसे स्वच्छ रहेगा l आने वाली जेनरेशन का ध्यान स्वच्छता पर कैसे जायेगा l ये देश भी अपना घर है l ***
        
7. विरहाग्नि
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सीमा और राजू की शादी को तीन महीने हुए कि राजू को जीविकोपार्जन हेतु बाहर जाना पड़ा l सीमा परिवार में ख़ुशी ख़ुशी काम करने के बाद भी अपनेआप को अकेली महसूस करती l रात को नींद नहीं आ रही थी, वह चाँद से बतिया रही थी और उसकी आँख से झर झर पानी बहने लगा l
  ए चाँद, तुम मन ही मन मेरी दशा देख क्यों इतरा रहे हो l मुझे लगता है इस संसार ने तुम्हारे विषय में झूँठ ही कहा है कि तुम शीतलता देते हो पर सच्चाई कुछ और ही है l तुम मुझ जैसी कितनी विरहा की तड़पन पर मुस्करा रहे हो तुमने कितनों के जग जीवन में आग लगाई है l मत इतराओ मन में और उसे नींद आ गई l ****

8. शिक्षा और स्वाभिमान
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संगीता के पिता मजदूर हैं l वह चार भाई -बहन हैं l किसी तरह से दो जून की रोटी मिल जाती है लेकिन मजदूर पिता रतन पढ़ाई की अहमियत को भली -भाँति समझते हैं l स्वाभिमान के साथ कड़ी मेहनत करके हर बच्चे को शिक्षा दिला रहे हैं l सभी भाई -बहन पढ़ाई में होशियार हैं l शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल आने पर शिक्षा बोर्ड द्वारा लेपटॉप प्राप्त कर चुके हैं l संगीता उनकी बड़ी बहन है l वह पैरों पर खड़े होकर पापा का हाथ बटांना चाहती है l उसका प्राइवेट बी एड कॉलेज में दाखिला हो गया है l वह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ पढ़ाई में जुटी है l
         परीक्षा का समय नजदीक आया l संगीता की तीस हजार रूपये फीस बकाया थी l कॉलेज वालों ने सख्त हिदायत दी कि कल तक यदि बकाया राशि नहीं जमा कराई गई तो बच्ची को प्रवेश कार्ड नहीं दिया जायेगा l उनके ह्रदय पर चोट पहुँची l बेचारे उसके पिता, जहाँ से बच्ची ने स्कूली शिक्षा प्राप्त की वहाँ की प्रधानाचार्य के पास कुछ विश्वास के साथ  गये l हाथ जोड़ विनती करी -मैडम जी, बच्ची का साल बिगड़ जायेगा l भविष्य अंधकारमय हो जायेगा, आँखों में आँसू भर लाये, उनका कंठ अवरुद्ध होने लगा l
      प्रधानाचार्य को समझते देर न लगी l जहाँ सरकार बालिकाओं को शिक्षित कर रही है वहाँ ऐसी दयनीय स्थिति देख उन्होंने कहा -आप चिंता न करें, आपकी बेटी होनहार है l जैसी आपकी बेटी, वैसी मेरी बेटी l मैं व्यवस्था करती हूँ l तत्काल उन्होंने अपने पति को बैंक भेजकर तीस हजार रूपये निकलवाए और हाथ जोड़कर कहा -आप कॉलेज की बकाया राशि जमा कराये और प्रवेश -पत्र
लेकर बच्ची को परीक्षा में बैठाये l रूपये वापस लौटाने की जल्दी नहीं है l
जब संगीता के पिताजी कॉलेज में फीस जमा कराने पहुँचे तो वहाँ के बाबू ने पूछा -आपने इतनी जल्दी व्यवस्था कैसे की? किससे लेकर आये हो? जब उन्हें यह सब ज्ञात हुआ और स्थिति से प्राचार्या को अवगत कराया तो उन्होंने मानवता के नाम पर अपने अहंकार को टूटते देखा और क्षमा याचना की l
संगीता ने अपने पिताजी से आत्मविश्वास से कहा -पापा, मैं आपके स्वाभिमान को टूटने नहीं दूँगी l दोनों के नयन छलक उठे l ****

9. कोरोना महामारी और मानवता
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चारों ओर दहकती चितायें, लाशों का नंबर,एक के बाद एक l शांति से अंतिम संस्कार करता हुआ एक प्राणी शंभू अपने कर्तव्य को करता हुआ, रात -दिन श्मशान में खड़ा है l
शंभू के माता- पिता बचपन में ही उसे छोड़ चले गये l अकेला वह अनगिनत लाशों का, जिनका कोई नहीं है,अंतिम क्रिया कर्म कर चुका है l
आज कोरोना महामारी में जब अपने भी साथ छोड़ कर चल दिये वह प्रभु से सभी के स्वास्थ्य की मंगल कामना करता हुआ, डटा हैl भूख प्यास की चिंता नहीं है l उस जीवट इंसान को देख मन सिर झुकाने को हो गया l उसके जज़्बे को सलाम l ****
      
10. रक्त- दान
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   गुड्डी का विवाह मध्यमवर्गीय परिवार में तय हुआ l विवाह से पूर्व ही  कुवंर साहब का जन्म दिन आया तो उसके मम्मी पापा जन्म दिवस पर उपहार लेकर बधाई देने गुड्डी की ससुराल पहुँचे l वहाँ पहुँचने पर ज्ञात हुआ कि कुंवर साहब घर पर नहीं हैं,खैर.. l इंतजार किया l
जब कुंवर साहब आये ढेरों बधाई दी और पता चला कि वह अपने प्रत्येक जन्म दिन पर रक्त दान किया करते हैं l गुड्डी के मम्मी पापा का सीना गर्व से भर गया l
जब गुड्डी को घर आकर बताया तो वह भी बहुत प्रसन्न हुई कि जिनसे उसका विवाह होने जा रहा है,उसका जीवन साथी कितने बड़े व्यक्तित्व का धनी हैं l वह फूली न समाई l
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11.  ममता का सागर
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दामोदर लाल दिल्ली रेलवे में सर्विस करते हैं l उनकी पत्नी ब्यूटी पार्लर चलाती है l उनके दो बेटे और एक लड़की है l
  एक दिन जब वह रेलवे क्रोसिंग से गुजर रहे थे कि कहीं से उन्हें नवजात शिशु के रोने की आवाज़ सुनाई दी l वह उस दिशा की ओर उन्मुख हो चले l वहाँ जाकर कचरे के ढेर पर एक नवजात बालिका को देखा l उनका दिल पसीजा और उसे गोदी में उठाकर घर ले आये l घर आ,सारी कथा कह सुनाई l
उनकी पत्नी सरोज ने उसे बहुत ही प्यार से उठाया और कहा, ये मेरी बेटी रिया है l तीनों भाई -बहनों ने भी कभी उसे अपने से अलग नहीं समझा l धीरे -धीरे रिया बड़ी होने लगी l लेकिन किसी ने भी उसे यह अहसास नहीं होने दिया कि वह कचरे के ढेर पर मिली l
जब भी चर्चा होती, उनके दो बेटे और दो बेटी हैं, कहकर की जाती l सरोज की तो वह आँखों का तारा थी l धीरे धीरे रिया ने ब्यूटी पार्लर का काम सीख लिया और मम्मी के कार्य में हाथ बंटाने लगी l आज उसकी शादी हो गई,वह अपने पैरों पर खड़ी है और सुखी जीवन व्यतीत कर रही है l
    एक बच्ची का जीवन संवर गया l ****
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जन्म : 03 जून 1965

शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
महाराष्ट्र के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
- बुजुर्ग ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. स्तभ : इनसे मिलिए ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकाशित )
     स्तभ : मेरी दृष्टि में ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकशित )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
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