लेखन : व्यंग्य , कहानी, कविता, लघुकथा, यात्रा-वृत्तांत आदि ।
प्रकाशन: -
4 व्यंग्य- संग्रह,
3 कथा-संग्रह,
2 कविता-संग्रह,
2 लघुकथा-संग्रह
पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -
राष्ट्रीय/ अंतराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकओं में विविध विधाओं में 1000 से अधिक रचनाएं।
अनुवाद : -
मराठी, नेपाली, अंगरेजी, कन्नड़, मलयाली, उड़िया, नेमाड़ी भाषा में रचनाओं का अनुवाद प्रकाशित ।
मराठी से हिंदी में 6 पुस्तकें तथा 30 से अधिक कहानियां एवं कुछ लेख, कविताओं का अनुवाद प्रकाशित।
आकाशवाणी : -
आकाशवाणी से 30 मिनट के छह नाटक एवं अनेक कविताएं, वार्ता प्रसारित
प्रमुख सम्मान: -
भारत सरकार द्वारा ‘हिंदीतर-भाषी हिंदी लेखक राष्ट्रीय पुरस्कार’, राष्ट्रीय सहस्राब्दी सम्मान 2000, लघुकथा-संग्रह बोनसाई पर किताब घर दिल्ली द्वारा ‘राष्ट्रीय आर्य स्मृति साहित्य सम्मान 2018,
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा दो कहानी-संग्रहों पर मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार,कविता-संग्रह को संत नामदेव पुरस्कार, मराठी उपन्यास धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे के हिंदी अनुवाद के लिए ‘मामा वरेरकर अनुवाद पुरस्कार’ । महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा डॉ. राममनोहर त्रिपाठी फेलोशिप इत्यादि
पता: 30 गुरुछाया कालोनी, साईंनगर, अमरावती-444607 महाराष्ट्र
1. अनुरोध
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पिछवाड़े की नाली में एक कुत्ता मरा पड़ा था। हमेशा लाइब्रेरी के लिए घर से पत्रिकाएं लेकर जानेवाला अशोक आया तो मैंने उससे कहा, ‘‘यार अशोक, कोई स्वीपर हो तो भेज देना। एक कुत्ता मरा पड़ा है। जितने पैसे कहेगा, मैं दे दूंगा उसे। जल्द निकालना जरूरी है। नहीं तो बास मारने लगेगा।”
“ठीक है, सा’ब।” कहकर अशोक चला गया।
दोपहर करीब बारह बजे मुंह पर कपड़ा लपेटे एक लड़का आया। उसने सौ रुपये लेकर कुत्ता हटाने की बात की तो मैं तुरंत तैयार हो गया। उसने पतलून फोल्ड की और नाली में उतरकर कुत्ता निकाल लिया।
“सा’ब, इसे दूर ले जाकर डालना होगा नहीं तो बास मारेगा।”
“हां, दूर ...उधर रेल्वे लाइन के पार ले जाकर डाल दो।”
“जी, आप पैसे दे दीजिए...।”
मैंने श्रीमती जी को आवाज दी। उसने लड़के को पैसे दे दिये।
लड़के ने कुत्ते को उठाकर साइकिल के कैरियर पर रखा और जाने लगा। इस बीच श्रीमती जी ने मेरे कान में कहा, “यह लड़का कोई और नहीं, वो अशोक ही है।”
“क्या कहती हो!...अशोक यह काम नहीं करेगा।”
“मैंने पैसे देते वक्त उसके हाथ देखे । दोनों हाथों में छह-छह उंगलियां हैं। मैंने अशोक के हाथ देखे हैं। मुंह ढंक के और मेक-अप करके आया है इस कारण आपने नहीं पहचाना।”
लड़का साइकिल पर बैठता कि मैंने उसे आवाज दी, “सुनों, तुम्हारी एक रस्सी यहां छूट गयी है...अशोक!”
“नाम सुनकर लड़का कुछ चौंका। फिर रस्सी उठाने कों बढ़ा ही था कि मैंने उसके कंधे पर हाथ रख दिया। “अशोक ...तुम अशोक ही हो न...!”
उसकी आंखों में आंसू उमड़ आएं। कहने लगा, “सा’ब , मैं ऊंची जात का हूं। यहां पढ़ने के लिए अपने मामा के घर रहता हूं। फीस... किताबों के लिए पैसे चाहिए होते हैं इसलिए ...। किसी से कहना नहीं साहब नहीं तो मेरे मामा मुझे घर से निकाल देंगे...।” और मैं कुछ कहूं इसके पूर्व अशोक निकल गया। ।” ****
2. खतरा
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मोबाइल बजा। घर में पोंछा लगा रही कामवाली बाई ने मोबाइल उठाया और जल्दी-जल्दी चलकर आंगन में गमलों को पानी दे रहे बुजुर्ग से कहा, ‘‘बाबूजी, फोन ...।’’ बुजुर्ग ने अलजाइमर से कांपते हाथ में फोन लेकर नाम पढ़ा। फिर संयत स्वर में बोले, ‘‘हैलो...हैलो...हैलो...आवाज नहीं आ रही है...।’’
उधर से फिर आवाज आयी, ‘‘हैलो...हैलो बाबा..., आप लोग घर में ही हैं कि दीदी के यहां चले गये? बाबा...मैं घर आना चाहता हूं। बाबा...आप लोग घर में हैं क्या बाबा...हैलो...हैलो...बाबा...मैं घर आना चाहता हूं बाबा...!’’ जवाब में बुजुर्ग दोहराते, तिहराते रहे, ‘‘हैलो...हैलो...मैं कुछ भी सुन नहीं पा रहा हूं...बिल्कुल आवाज नहीं आ रही है...हैलोऽऽ...।’’ और बुजुर्ग ने मोबाइल बंद कर दिया।
थोड़ी देर बाद फिर बेल बजी। बुजुर्ग ने नाम पढ़ा और खुद-ब खुद बंद होते तक बेल बजने दी।
‘‘आवाज तो आ रही थी। स्पीकर जो ऑन था! मैंने सुना, अनुराग की ही आवाज थी। वह घर आना चाहता है...पता नहीं, वहां किस हाल में है, हमारा बेटा...! आपने ऐसा क्यों किया?’’ पास में मनी-प्लांट संवारती बुजुर्ग महिला करीब आकर खड़ी हो गयी थी ।
‘‘गौरी…, पंचायत में कल ही फैसला हुआ है कि जब तक ये कोरोना-वायरस समाप्त नहीं हो जाता तब तक बाहर से किसी को गांव में नहीं आने दिया जाएगा।... अपना बेटा जिस शहर में है वहां सबसे ज्यादा केसेस पॉजिटिव निकले हैं। ऐसे में उसका यहां आना पूरे गांव के लिए खतरा साबित हो सकता है!’’
‘‘और उसका वहां बने रहना... ?’’ भर्रायी आवाज में एक प्रश्न गूंज उठा।
बुजुर्ग ने सुना पर कोई जवाब नहीं दिया। फतुही की जेब से रूमाल निकाला और छलक आये आंसुओं को समेटते हुए फिर गमलों की ओर मुड़ गये। ****
3.खानदान
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बेटे श्रीधर की प्ले-स्कूल से फोन आया तो नीरजा घबड़ा गयी। ‘मै’म, आपके बेटे को लगातार वॉमिटिंग हो रही है। वह सुस्त पड़ गया है। हम लोग स्कूल की गाड़ी से उसे पास के सचिंद्रा हॉस्पिटल में लेकर जा रहे हैं। आप जितनी जल्दी हो सके, वहां आ जाइए।’ हेड-मिस्ट्रेस ने कहा और फोन रख दिया।
नीरजा विवाह से पहले एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी। वामनराव के साथ ही बी. ई. किया था उसने। हाइस्कूल से साथ थे दोनों। वामनराव ने विदेश जाकर एम.एस. किया। शायद पी-एच. डी. भी करते । लेकिन कार एक्सिडेंट में पिताजी के निधन के कारण आगे की पढ़ाई के सपने अधूरे छोड़कर घर का कारोबार संभालना पड़ा। ट्रान्सफॉर्मर बनाने का कारखाना, दो पेट्रोल पंप, बीस एकड़ खेती। बारहवी में बाईसवीं मेरिट नीरजा होशियार होने के साथ-साथ सुंदर और सुशील भी थी। वामनराव ने उससे विवाह के लिए ‘मम्मी जी’ की राय जाननी चाही तो उन्होंने साफ इंनकार कर दिया। कारण था,नीरजा की साधारण आर्थिक परिस्थिति। आखिर मम्मी जी को किसी प्रकार समझा-बुझाकर वामनराव ने नीरजा से ही विवाह किया । नीरजा की नौकरी जारी रहने का सवाल ही नहीं था।‘कमा-कमा कर ऐसे कितने कमा लोगी तुम ? बहुत हुआ तो तीस-चालीस हजार ही न! इतने तो हमारे यहां हम मैनेजर को देते हैं!’ मम्मी जी ने कहा था।
नीरजा ने वामनराव को फैक्टरी में फोन किया। वामनराव बोले, “मैं सीधे अस्पताल पहुंचता हूं। ड्राइवर मुझे अस्पताल में छोड़कर तुम्हें लेने आ जाएगा। तुम तैयार रहो।”
शामको श्रीधर को अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। वह मां-पिताजी के साथ घर आ गया। आते ही उसे अपने पास लेकर ‘मम्मी जी’ पूछने लगी, “स्कूल में कुछ खाया था क्या तुमने?’’
“नहीं दादी मां, ...घर में फ्रूट-जैम के साथ ब्रेड का नाश्ता किया था, बस वही...।”
“वह तो तुम रोज ही करते हो। तब आज वॉमिटिंग का कारण क्या है? याद करो, कुछ और खाया होगा, तुमने ...!”
“नहीं दादी मां, ...हांऽऽ... याद आया। आज मम्मी ने ड्राय-फ्रूट्स दिये थे खाने के लिए, बस वह खाये।”
“ड्राय-फ्रूट्स ...!” ‘मम्मी जी’ ने बहू की ओर देखा।
“वो दीपावली में स्टाफ को बांटने के लिए जो गिफ्ट -पैकेट्स लाये थे न, उनमें से कुछ बच गये थे। मैंने कल वो सब खोलकर देखे। जो खराब हो गये थे वे फेंक दिये लेकिन कुछ ड्राय-फ्रूटस अच्छे दिखे तो वो मैंने निकालकर रख लिए। उन्हीं में से आज चिंटू को नाश्ते के बाद दिए थे ।’’
‘‘अरी पगली, मैंने तुम्हें पिछले माह ही कहा था कि जो बचे हैं, उन्हें फेंक दो। अक्टूबर में मंगवाये थे। पता नहीं, उन्होंने कबसे पैक करके रखे होंगे! अब मार्च चल रहा है। वे भी स्टाफ में बांटने के लिए थे! अपने खाने के लिए नहीं...समझी!’’ वामनराव कहने लगे। ‘‘तुम्हारे वो सड़े ड्राय-फ्रूटस् खाकर आज श्रीधर की जान चली जाती तो क्या भाव पड़ता! तुम ऐसा क्यों करती हो, मेरी समझ में नहीं आता...!”
नीरजा वामनराव को कुछ सफाई देती इसके पूर्व ही ‘मम्मीजी’ ने जैसे हथौड़ा चला दिया, “इसीलिए कहा था, केवल थोबड़ा देख लेने से काम नहीं चलता...खानदान भी देखना पड़ता है, रिश्ता जोड़ने के लिए। लेकिन यहां सुनता कौन है...?”
नीरजा के लिए यह उलाहना नया नहीं था। फिर भी आंखों से आंसू बाहर आ ही गये। ****
4. दहशत
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शहर की शानदार होटलों में से एक का हॉल। मद्धिम रोशनी में दो व्यक्तियों ने प्रवेश किया। पल भर ठिठक कर मुआयना किया और कोनेवाली टेबिल संभाल ली। ऑडर लेनेवाली चुस्त-दुरुस्त युवती प्रस्तुत हो गयी। ‘‘एस सर...!’’
‘‘सर, क्या लेंगे...विस्की...या रम?’’ एक व्यक्ति ने युवती को इत्मीनान से घूरने के बाद दूसरे से पूछा।
‘‘रम...।’’
‘‘एक रम ...पूरा बम्पर भिजवा दो। साथ में फ्राइड काजू और कुछ नमकीन वगैराह ...।’’
‘‘सर, दो-पेग से अधिक सर्व करना एलाउड नहीं है...वो भी एकेक करके।’’
‘‘अलाउड नहीं है का क्या मतलब? और यहां कौन देखने आनेवाला है? ...जानती हैं, साहब कौन हैं? अपने गाजीपेठ पुलिस-स्टेशन के इंचार्ज...! दो दिन पहले ही चार्ज लिया है। अभी फैमिली भी शिफ्ट नहीं की है।’’
‘‘जी...मैं कहती हूं, मैनेजर से। तब तक आप कृपया केबिन में बैठ जाइए।तीन नंबर खाली है। बाहर वाइन सर्व करना मना है।’’
कहकर युवती ने मैनेजर से आकर सारी बात बता दी। मैनेजर ने तीन नंबर केबिन में झांक कर उसमें बैठे व्यक्तियों को देखा। फिर खुद ‘रम’ का बम्पर लेने चले गये। लेकिन जाते-जाते युवती से कहा, ‘‘सौदामिनी, तुम आज जल्दी घर चली जाओ। आज तुम्हें जल्दी छुट्टी...। और अर्पिता को भी साथ ले जाओ। उससे कहना काउंटर का अपना चार्ज संतोष को सौंप दे। जाओ, निकल जाओ तुम लोग...!’’ ****
5. उपयोग
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“सुनों न, मेरी इच्छा है, मम्मी को मैं छोटू के पास से यहां ले आऊं,अपने पास ।”
“ले आओ न ! मैं कल अपने मायके चले जाती हूं। आप परसो जाकर ले आओ और रखो अपने साथ अपनी मम्मी को। करेगी बच्चों का भी और आपका भी ।”
“ये क्या बात हुई? तीन साल से रह रही है, छोटू के पास। कुछ दिन यहां अपने पास रह लेगी।”
“ये अचानक मां की ममता क्यों उमड़ पड़ी, जरा मैं भी तो जानूं! घर की शांति से ऊब गये हो कि मेरा आराम से रहना किसी को चुभ रहा है?”
“शांति-अशांति की बात मत करो। मैं ये रोज के जाने-आने के चक्कर से ऊब गया हूं। सुबह उठे कि भाग-दौड़ । स्कूटर से बस-स्टैण्ड जाओ। बस पकड़ो। दो अढ़ाई घंटे लगते है, यहां से वरुड। बस से उतर कर फिर दो अढ़ाई किलोमीटर जाओ, दफ्तर! पैदल जाओ या ऑटो करो। लौटने में रात के नौ बज जाते हैं। बरसात-पानी में दुनियाभर की परेशानी। जाने-आने में पैसा खर्च हो रहा है, सो अलग ।”
“लेकिन इस सबका मम्मी को यहां लाने से क्या संबंध?’’
‘‘तुम जरा शांति से सुनों तो बतलाऊं!’’
“बतलाओ...मैं सब सुनती हूं। लेकिन उनके यहां आने से मेरा सिर दर्द बढ़ेगा, उसका क्या? ‘उमा, तुमने ये ऐसा क्यों किया, वो वैसा क्यों किया?... तुम बिना नहाये चौके में क्यों गई? माहवारी में इधर हाथ क्यों लगाया, उधर क्यों छू लिया...?’ सारे दकियानूसी ख्यालात ! मेरे नाक में दम कर देती है ! अब कहीं थोड़ी सुकून की जिंदगी जी रही हूं तो देखा नहीं जा रहा है आपसे...यही न!”
“तुम मेरी बात समझने की कोशिश तो करो।”
“मैं तो कहती हूं, एकाध पुरानी स्कूटी या वैसा कुछ खरीदकर वहां भी बस-स्टैण्ड पर रख दो...। दो -एक साल में यहां ट्रांसफर हो जाएगी तब बेच देना।”
“नहीं होगी दो-एक साल में ट्रांसफर...। इसीलिए तो कह रहा हूं। मेरा सातवां नंबर है ट्रांसफर-पैनल में और यहां डिविजनल हेड-क्वार्टर में जगह नहीं है। लोग-बाग प्रमोशन पर भी बाहर जाने को तैयार नहीं होते यहां से !... आज झोनल मैनेजर आये थे। उनसे मिला। बताया, बेटी की बारहवीं है इस साल और बेटे की दसवीं। तो कह रहे थे, ये कोई कारण नहीं है। कोई एक्स्प्शनल कारण हो तभी सोचा जा सकता है, आऊट ऑफ टर्न ट्रान्सफर के लिए।”
“एक्स्प्शनल मतलब?”
“मतलब कुछ अलग-सा कारण। घर में किसी की गंभीर बीमारी या बूढ़े मां-बाप की देखभाल आदि । ...मम्मी अस्सी साल की हैं। उन्हें यहां ले आते हैं। फिर उनकी बीमारी और देखभाल का कारण बताकर ट्रांसफर संभव हो पाएगा। पाटिल का तबादला उसी कारण से परतवाड़ा से यहां हो गया। उसे तो बाहर गये अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए थे और लिस्ट में ग्यारहवां नंबर था,उसका। ...मम्मी को हार्ट-अटैक भी आ चुका है। उनके इलाज और देखभाल का सॉलिड रीझन है। उनके अपने पास आते ही मैं आवेदन कर दूंगा।”
“क्या सचमुच उनकी ‘देखभाल’ का कारण लिखने से आपका तबादला यहां हो जाएगा?”
“हां, आजकल सीनियर- सिटिजन की देखभाल को जरा अधिक महत्व दिया जा रहा है और साहब का वीक-प्वाइंट भी है। उनके माता-पिता उन्हीं के साथ रहते हैं । दोनों एट्टी-प्लस हैं और साहब उनकी खूब अच्छे से देखभाल करते हैं।”
“तब तो मम्मी को लेने मैं भी साथ चलूंगी। अकेले आपके कहने से नहीं आएंगी वे । पिछली बार चख-चख हुई तो मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई थी, उन्हें।” *****
6. शिकायत
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‘‘मैडम टीचर, मैं मनीष जो आपके क्लास में है, उसका पिता हूं। मुझे आपसे एक शिकायत है।’’
‘‘हां जी... कहिए, क्या शिकायत है आपकी।’’
‘‘आपने मनीष की कॉपी जांची है।उसमें ग्रामर की मिस्टेक्स् हैं पर आपने सही का टीक- मार्क कर दिया और उसे मार्क्स भी दे दिये हैं।’’
‘‘हो गया होगा, भाईसाहब। पैंतीस कॉपियां जांचनी होती हैं। किसी-किसी में एकाध गलती छूट जाती है... कभी-कभार।”
‘‘कभी-कभार नहीं मैडम। मैंने कई बार देखा है, तब आया हूं । कई बार तो इतनी ‘सिली’ मिस्टेक्स होती हैं कि क्या कहें...! लगता ही नहीं कि बीए,बी-एड पढ़े टीचर्स पढ़ाते होंगे यहां...?’’
‘‘देखिये, आप बहुत ज्यादा बोले जा रहे हैं। हम कितने पढ़े हैं और कैसे पढ़ाते हैं, यह हमारा मैनेजमेंट देखता है। आप कोई नहीं होते यह सब कहने वाले।...एक बात और सुन लीजिये। जो बीए,बी-एड करके यहां ज्वाइन होता हैं न, वह यहां पढ़ाता नहीं है।’’
‘‘क्यों...वह पढ़ाता क्यों नहीं है?’’
‘‘भाईसाहब, बीस-पच्चीस लाख देने होते हैं मैनेजमेंट को तब नौकरी मिलती है। इतने पैसे भी दो और पढ़ाओ भी, यह कौन करें। पढ़ाते हम जरूरतमंद लोग हैं जो उनसे पांच- दस हजार लेकर दिनभर यहां खटते रहते हैं।’’
‘‘अरे, ये हाल है! तब तो मुझे हेडमास्टर साहब से ही मिलना पड़ेगा।’’
‘‘जी हां, जाइए और मिल लीजिये हेडमास्तर से । ...इतना और सुनते जाइये कि वे भी ओरिजनल नही हैं। हमें पांच -छह हजार मिलते हैं तो उन्हें दस हजार मिलते होंगे । जो ओरिजनल हैं, वे अपनी खेती -बाड़ी देखते हैं, व्यवसाय, राजनीति करते हैं...। उनसे मिलना हो तो बस, एक तारीख को आइएगा और जो करनी है, वह शिकायत कीजिएगा।’’ ।” *****
7. मूल्यांकन
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‘‘देखिए, मेरे पास ए, बी, सी, डी- इन चारों ग्रेड्स का कपास रखा है। मैं उससे मिलान करके मूल्यांकन करता हूं। आपका कपास इन में से किसी में भी नहीं बैठता।... अजीब किस्म का है। इस कारण उसे ‘ई’ ग्रेड दे दिया गया है। आपको ‘ई’ ग्रेड के ही दाम मिलेंगे।’’
‘‘आप समझने की कोशिश कीजिए, श्रीमान। मैंने काफी परिश्रम और धन खर्च करके इसे हासिल किया है...। मैं चाहता हूं, इसका सही मूल्यांकन हो।’’
जब परीक्षक और किसान के बीच बात नहीं बनीं तो व्यवस्थापकों ने दूसरी मण्डी के परीक्षक को बुला लिया। दूसरी मण्डी का परीक्षक किसान का कपास देखकर अभिभूत हो गया। बोला, ‘‘यह चायना का ब्लू-कॉटन है, लंबे रेशे वाला। इसे हासिल करने के लिए हमारे यहां खेतों में काफी मशक्कत करनी पड़ती है और खर्च भी बहुत आता है...।’’
‘‘तो क्या कपास खेत में पैदा होता है?’’ पहले वाले परीक्षक ने दूसरे परीक्षक को एक ओर ले जाकर प्रश्न किया।
‘‘तो आप क्या समझ रहे थे?’’
‘‘मैं तो समझ रहा था, चीनी या थर्माकोल की तरह इसके भी कारखाने होंगे!’’ | *****
8. आघात
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“सुनों, तुमने कल जो दूध के पैकेट दिये, उनमें से एक का दूध फट गया। शायद बासी था।”
“जी, हो सकता है, बरतन ठीक से धोया न गया हो या किसी खट्टी चीज हा हाथ लग गया हो। आपने चार पैकेट लिये और चारों ताजा दूध के ही थे।”
“वो सब हम नहीं जानते। एक पैकेट का दूध फट गया। बाईस रुपये का नुकसान हो गया। उसके बारेमें तुम्हारा क्या कहना है, बोलो।”
“आप क्या चाहते हैं?”
“आज एक पैकेट के पैसे नहीं दूंगा।”
“जी, मुझे एक पैकेट पर सिर्फ पचास पैसे मिलते हैं। बाईस रुपये यानी चौआलीस पैकेट की कमाई मारी जाएगी...।”
“इससे मुझे क्या? नहीं तो मैं कल से दूसरे के पास से लेना शुरू करूंगा...बोलो...!”
दूधवाले ने हिसाब लगाया, साल के चौदा-सौ चालीस पैकेट यानी सात-सौ बीस रुपये का ग्राहक छूट जायेगा!
“ठीक है, सेठ जी । आप जैसा चाहते हैं ...।”
सेठ जी ने तीन पैकेट के पैसे देकर चार पैकेट उठा लिये और विजयी मुसकान के साथ अपनी कोठी की ओर मुड़ गये। दूधवाला अभी रुका हुआ था। उसने आंसू पोंछने के लिए जेब से रुमाल निकाल लिया था। ****
9. रिटायर्ड
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“चाचाजी, मुझे दो लाख रुपयों की सख्त जरूरत है। दो-एक साल में लौटा दूंगा।”
“एकदम ऐसी भी क्या जरूरत आन पड़ी, बकाराम ?”
“जरूरत के लिए आपकी बहू अर्थात रोहा, मेरी पत्नी जिम्मेवार है, चाचाजी। मैं तो वास्तु-पूजन करके मकान में शिफ्ट हो जाना चाहता हूं। लेकिन वो कहती है, पूरा काम हुए बिना घर में प्रवेश नहीं करेगी। सब हो गया है। बस, किचन का काम बाकी है। ... मॉड्युलर- किचन चाहिये होता है न , आजकल ! उसी के लिए पैसे कम पड़ गये।”
“लेकिन एकदम मेरा नंबर कैसे लग गया? और भी तो कई लोग हैं तुम्हारे!”
“चाचाजी, जिनसे मांग सकता था, उन रिश्तेदारों से पहले ही ले चुका हूं। मेरे जैसे नौकरीपेशा के लिए मकान बनाना भारी मामला है। एक मित्र से मांगे तो उसने भी हाथ ऊपर कर दिये। कह रहा था, उसने अभी-अभी एक फ़्लैट बुक किया है।”
इस बीच चाय आ गयी। बकाराम चाय पीने लगा। उसके पारिवारिक संबंध है, सिसोदिया(चाचाजी) जी से।उनकी सिफारिश के कारण ही मौजूदा नौकरी मिली थी उनके विभाग में, बकाराम को। रिटायरमेंट के बाद भी बकाराम ने संबंध बनाये रखे थे, सिसोदिया जी से।
“आपकी कार नहीं दिखायी दे रही है?” चाय पीते-पीते बकाराम बोला।
“उसमें कुछ प्रॉब्लेम चल रहा था। ड्राइवर गैरेज में छोड़ आया है। ...चौदह साल हो गये खरीदने को। रिटायरमेंट को दो साल बाकी थे तब खरीदी थी।”
“लेकिन अब भी चल रही है!”
“हां...इमरजंसी के लिए रख छोड़ी है। कहीं जाना हो तो ड्राइवर बुला लेता हूं।... मैंने तो कब का चलाना छोड़ दिया है, तुम जानते ही हो!”
“जी...। वो क्या है कि तीस लाख बैंक से कर्ज मिला था।”- बकाराम फिर अपने मुद्दे पर आ गया। “पंदरह इधर-उधर से जुटाये। ...बस, किचन बन गया कि शिफ्ट हो जाता हूं।... किराया बच जायेगा।”
“हां, वही ठीक ही रहेगा।”
“वो आपके यहां ऊपरी माले पर अब कोई किरायेदार नहीं है क्या? बंद-बंद दिखायी देता है, ऊपर ।”
“हां, ऊपर तीन किरायेदार थे । तीनों से खाली करवा लिया। इधर नीचे स्टेशनरी की दुकान थी । उन्होंने भी चौक में बड़ी -सी दुकान ले ली। यहां जगह कम पड़ रही थी उनको। ...मकान पुराना हो चुका है। ऊपर का पिछला हिस्सा इतना जर्जर हो चुका है कि किसी भी समय गिर सकता है।"
“दो साल बाद फिर इमरजेंसी लोन ले पाऊंगा सोसायटी से । तब सबसे पहले आपके चुका दूंगा।”
“बकाराम, एक किस्सा सुनाता हूं, सुनों।...हमारे गांव से कुछ दूरी पर एक बड़ा पुराना तालाब था। नाम था, ‘बड़ा तालाब।’ था भी बहुत बड़ा। विशाल ! किनारे पहाड़ियां थीं। जंगल था। चारों ओर से बहकर पानी आता था, उसमें। कुछ बड़े नाले भी आकर मिलते थे। पूरे साल लबालब रहता था। गांव की दिशा में लंबी-चौड़ी दीवार बना दी गयी थी ताकि गांव में कभी उसका पानी न घुसे। कई सालों बाद, मैं अभी छह माह पहले गया था गांव। ‘बड़ा तालाब’ के किनारे से गुजरा। पानी देखने का मन हुआ तो उसकी दीवार पर चढ़ गया। तालाब में नाममात्र के लिए पानी था। लगा, विशाल आंगन में किसी ने तश्तरी भरकर रख दी है । ... देखकर रोना आ गया। ...अब न जंगल रहा, न नाले । पत्थर और मुरुम निकालने के कारण पहाड़ियां उजड़ गयीं। तालाब के जल-भराव के सारे सोर्सेस ही बंद हो गये ! लेकिन गांव के लोग हैं कि अब भी उसे ‘बड़ा तालाब’ ही कहते हैं। ...रिटायर्ड व्यक्ति की स्थिति उस ‘बड़ा तालाब’ के समान होती है बकाराम ...।” कहकर सिसोदिया जी बकाराम की ओर हताश नजरों से देखने लगे।
चाय समाप्त हो चुकी थी । बकाराम ने कप एक ओर रख दिया। वह उठा, सिसोदिया जी के पांव छुए और चुपचाप बाहर निकल गया। ****
10. चमत्कार
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बैरागी जी मृत्युशैया पर पड़े थे। अपना अंतिम समय निकट जान उन्होंने अपने सेवक से कहा, ‘जाकर मेरे शिष्यों को बुला लाओ।’
सेवक उठकर बाहर चला गया।
बैरागी जी को मृत्यु शैया पर पड़े-पड़े चालीस साल पहले का ‘घुमक्कड़’ याद आया। घुमक्कड़ कभी-कभार किसी गांव में दो-एक दिन टिक जाता। फिर अगला कोई गांव। एक दिन शाम को वह अपने मुकाम पर लौट रहा था कि उसने देखा, एक स्थान पर भीड़ इकट्ठा है। घुमक्कड़ करीब पहुँचा। एक छात्र रास्ता चलते किसी वाहन की चपेट में आकर बुरी तरह जख्मी हो गया था। इसके पूर्व कि कोई उपचार किया जाए, छात्र की मृत्यु हो गयी। पूरा गांव शोक-संतप्त था। घुमक्कड़ को यह जानकर हैरानी हुई कि गांव में कोई स्कूल नहीं है। बच्चों को पढ़ने के लिए बारह-पंदरह किलोमीटर पैदल चलकर पड़ोस के गांव में जाना पड़ता हैं। स्कूल आते-जाते में अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं।
घुमक्कड़ ने गांव वालों से कहा, ‘आपके गांव में अपना स्कूल होना चाहिए।’
‘स्कूल की इमारत के लिए जमीन कौन देगा?’
‘खरीदेंगे...’
‘खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आएंगे...?’
‘दान...चंदा मांगकर जुटाएंगें।’
‘कौन देगा... और क्यों दें? स्कूल बनवाना सरकार का काम है।’
-‘शिक्षकों को वेतन कहाँ से मिलेगा?’ –अगला प्रश्न।
-‘स्कूल कौन चलायेगा? हम लोग अपनी खेती-बाड़ी, काम-धंधें करें कि स्कूल चलाएँ...!’ –फिर प्रश्न।
घुमक्कड़ ने कहा, ‘इस विषय में, मैं सब जानता हूँ। आप लोग केवल सहयोग करिए। मैं यहीं रहकर सब संभाल लूंगा।’
लेकिन गांव वालों के प्रश्नों का अंत न था।
उसके बावजूद घुमक्कड़ ने स्कूल आरंभ करने के लिए खूब प्रयत्न किये पर, उसे निराशा ही हाथ लगी। आखिर एक दिन वह गांव छोड़कर चला गया।
कुछ वर्षों बाद गांव में एक बैरागी आया। उसने एक पेड़ के नीचे अपना आसन जमा लिया। गांव के लोग उसकी वेष-भूषा देखकर उसकी ओर आकर्षित होने लगे। सुबह-शाम महिला-पुरुषों की भीड़ इकट्ठी होने लगी, बैरागी के इर्द-गिर्द। बैरागी ने एक कुटिया बना ली, अपने लिए।
गांव में नवरात्रि का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता था। बैरागी को इसकी भनक लग गयी। उसने अपनी कुटिया में एक अनुष्ठान आरंभ किया । गांव वालों को अपने अनुष्ठान की जानकारी दे दी। कुटिया में सुबह-शाम भजन-कीर्तन की आवाजें गूँजने लगीं। पास-पड़ोस के गांव के लोग भी बैरागी जी के दर्शन के लिए आने लगे। दर्शनार्थियों का तांता लग गया।
अनुष्ठान संपन्न होने को कुछ ही दिन बाकी थे कि एक चमत्कार हो गया। बैरागी जी की कुटिया में जहाँ तुलसी-चौरा था उसके पड़ोस की जमीन में से तीन फीट ऊँची देवी की मूर्ति ‘प्रगट’ हो गयी। चमत्कार की खबर पास-पड़ोस के गावों में आग की तरह फैल गयी।
बैरागी जी के कुटिया-स्थल पर मेला-सा लग गया। गांव-गांव से लोग दर्शनार्थ आने लगे।
बैरागी जी ने प्रस्ताव रखा, ‘देवी का भव्य-मंदिर बनना चाहिए।’
मंदिर-निर्माण के लिए भक्त-जन दान देने लगे। हजार, पांच हजार, दस हजार, इक्कीस हजार, एक लाख...आभूषण...चांदी...सोना...हीरे...जवाहरात... !
दो साल में भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया।
मंदिर में दान की कोई सीमा न रही। बैरागी जी ने दान में प्राप्त रकम से बड़ी-सी जगह खरीदकर उस पर एक स्कूल का निर्माण करवाया। फिर कॉलेज... इंजीनियरिंग, फॉर्मेसी, बी-एड्...। अच्छी खासी शिक्षण- संस्थाएँ खड़ी हो गयीं।
शिष्य उपस्थित हो चुके थे। बैरागी जी ने शिष्यों से कहा, ‘जरा करीब आ कर बैठ जाओ, वत्स। अधिक जोर से न बोल पाऊँगा।’
शिष्य घेरा बनाकर बैरागी जी के इर्दगिर्द बैठ गये। बैरागी जी बोले, ‘मेरी अंतिम घड़ी निकट है। एक राज की बात बतलाकर अपना बोझ हलका करना चाहता हूँ। ...देवी का कोई चमत्कार नहीं हुआ था। मैंने ही जमीन खोदकर उसमें दो बोरे चने बिछाए और उस पर मूर्ति रख दी थी। रोज जमीन में जल छोड़ता रहा। चने फूलकर मूर्ति ऊपर आ गयी। मैंने इसे चमत्कार के रूप में प्रचारित कर दिया।
उसके बाद मंदिर बनते देर न लगी और उसके बाद स्कूल...कॉलेज...।
पहले गांव में स्कूल बनवाने का सपना जिसने देखा था, वह घुमक्कड़ मैं ही था...।’ ****
11. कर्जदार
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‘‘अधिरथ जी, मैं खुशाल बोल रहा हूं।’’
‘‘जी, बोलिए ...आपका नंबर ‘सेव’ है मेरे पास।’’
‘‘जी, शुक्रिया।... वो मैंने पापाजी के लिए प्लाज्मा डोनर की आवश्यकता के लिए मेसेज डाला था, वैट्स-ऐप पर। तो मैं यह बतलाना चाहता हूं कि प्लाज्मा मिल गया है।’’
‘‘अरे वाह...कौन है डोनर?’’
‘‘एक बुधना रहमकर नामक युवक है...दूसरी मर्तवा डोनेट कर रहा है।’’
‘‘वाह, क्या बात है!’’
बुधना रहमकर ...! ऐसा ही कुछ नाम तो था उस युवक का ...! मेरी एट्टी-प्लस ताईजी कोरोना के उपचार के लिए अडमिट थी, सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल में। अर्थराइटिस के कारण वे वैसे भी चल-फिर नहीं सकती थीं।उस पर कोरोना! अस्पताल में घर के किसी को प्रवेश न था ! हमारी चिंता यह थी क्या वहां ताईजी की देखभाल ठीक से हो पाएगी। चाहते थे, कोई नर्स ही परिचित निकल जाए!
तभी ताईजी के पड़ोस के पेशंट ने एक ‘स्वयंसेवक’ के बारेमें जानकारी दी।
‘‘आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। मैं आपकी ताईजी की खूब अच्छे से देखभाल करूंगा। आप गेट पर जो देंगे, मैं उन तक पहुंचा दूंगा, फोन लगाकर आपसे बात करवा दूंगा। हर प्रकार से देखभाल करूंगा उनकी।आपकी ताईजी अब मेरी ताईजी हैं।’’
‘‘तुम्हें ये लोग यहां भीतर कैसे अलाऊ करते हैं?’’
‘‘जी, मैं उनकी भी तो सहायता करता हूं।’’
‘‘तुम्हें कोरोना से डर नहीं लगता?’’
‘‘जी नहीं। मेरे शरीर पर कवच -कुण्डल हैं। वे मुझे सुरक्षित रखते हैं।’’
‘‘कवच -कुण्डल? ’’ *****
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क्रमांक - 2
जन्म - १६अगस्त ,जबलपुर - मध्यप्रदेश
शिक्षा : पीएचडी
प्रकाशन : -
6 कहानी संग्रह,
संयुक्त उपन्यास,
विदेशी संस्कृति पर शोधात्मक उपन्यास
"राॅबर्ट गिल की पारो"
अन्य : -
पिछले 30 वर्षों से लगातार लेखन ।सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित।
स्त्री विमर्श पर "सखी की बात" स्थाई स्तंभ जो साँध्य दैनिक में 10 वर्ष चला ,चर्चित रहा।
सभी विधाओं पर लेख प्रकाशित।
संपादित कथा, कविता संग्रह आदि प्रकाशित
कई संग्रहों में कहानियाँ संकलित।
20 वर्ष तक अखबारों में फीचर संपादक के पद पर कार्यरत।
दि संडे इंडियन पत्रिका में 21वीं सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में एक नाम।
कथा मध्यप्रदेश के तीसरे खंड में कहानी संकलित।
"बीसवीं सदी की महिला लेखिकाओं " के नौवें खंड में कहानी ।
महिला रचनाकार: अपने आईने में आत्मकथ्य , पुस्तक रुप में प्रकाशित।
संस्था : -
सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय विजय वर्मा की स्मृति में हेमंत फाउंडेशन की स्थापना। ट्रस्ट की संस्थापक/ सचिव। जिसके अंतर्गत 20 वर्षों से विजय वर्मा कथा सम्मान एवं हेमंत स्मृति कविता सम्मान प्रदान करना ।विश्व मैत्री मंच की मीडिया प्रभारी ।
महिला पुलिस तक्रार केंद्र की सम्मानित सदस्य।
सम्मान : -
दो अंतरराष्ट्रीय एवं राज्य पुरस्कारों से सम्मानित।
सोशल एक्टिविस्ट फॉर वुमन एंपावरमेंट ।
यात्रा : -
जंगलों की देश, विदेश की सैर उसी दौरान कुछ मुद्दों पर लेखन, शोध आदि।
चिड़ियों पर विशेष शोध हेतु पक्षी विशेषज्ञ श्री सलीम अली के साथ सुदूर रोमांचक समुद्री यात्राएं।
पता : -
94, A-चंदन नगर, जुलै
सोलापूर 413005 - महाराष्ट्र
1. सती
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नंदू की आई समुद्र किनारे 30-35 औरतों के साथ अपनी मछली का टोकरा भर रही थी। सभी औरतें यहां से मछलियां भरती थीं । फिर मछली बाजार में बेचने चली जाती थीं।
आज नंदू कि आई कह रही थी-" मैं तो सती हूं सती।"
" कैसे सती, सती तो अपने आदमी के साथ जल जावे हैं । " एक ने कहा। "सती का येई मतलब थोड़े ना है ।मैंने उसकी कितनी सेवा की । हगा - मूता समेटा मैंने। उसको बिस्तर पर खाना दिया । फिर मरा तो अपनी चूडी़ बेचकर तेरहवीं की पूजा आदि की। उसकी राख ,हड्डियां समुद्र में सिराने ले गई। जहां हर नदी आकर मिलती है। क्या नहीं किया उसके लिए ।"
तभी बब्बन की आई बोल पड़ी- "काहे की सती ?आदमी बीमार पड़ेगा तो क्या घसीट कर बाहर निकाल देंगे ।अरे ,सब कुछ करेंगे उसके लिए। हर कोई करता है ।और तेरा आदमी मार -मार कर तेरी हड्डियां चूरमा बना देता था। दारू में धुत्त रहता था । गालियां देता था। एक रुपया तो कमाता नहीं था।तू जो कमाती थी तेरे को मार मार कर तेरे रुपए छीनकर दारू पीता था । और तू मेरे पास आकर रोती थी, कि उसका बाप जैसे मेरे लिए महल लिख कर चला गया है । नासपीटा कल का मरता आज मर जाए ।मैं श्राद्ध कर्म कर दूंगी पर यह नहीं चाहिए मुझे । अब तू सती बनती है । अरे सती एक पवित्र शब्द है सुनती देखती नहीं सती का मतलब ?नंदू की आई ,ऐसे आदमी की सती, विधवा तो दूर ,मैं तो उसकी घरवाली कहलाना भी पसंद ना करूं। तू तो सती बनने चली है ।
नंदू की मां आंखें विस्फारित करके उसे देखती रह गई। सच्चाई सुनकर आंखें खुलीं अथवा....... ! ****
2. दुर्घटना
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कोई कहता है तीन लाख मिलेंगे कोई पांच लाख। लेकिन गेंदा जानती है कि जो पचास हजार थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के मिले हैं अभी तो वही काफी हैं। उसने बेटे का दाखिला स्कूल में करवा दिया था । अब सोचती है जब पूरा रुपया मिलेगा तो कमरे की छत पक्की करवा लेगी ।थोड़ा रुपया बेटी रत्ना की शादी के लिए बैंक में रख देगी । और अमीर घरों में काम करने का अपना काम जारी रखेगी।
वैसे भी जग्गा कमाता कहाँ था । कभी-कभी भाजी का ठेला लगा लेता था। और कमाए रुपए पतलून की जेब में छुपा कर रखता और अपनी झुग्गी झोपड़ी के यार दोस्तों के साथ उड़ा देता था। घर का खर्च गेंदा ही चलाती रही है। गेंदा के प्रति उसका व्यवहार ऐसा था मानो उसने यह औरत खरीदी हो। गेंदा का उजला रंग काला पड़ चुका था। जहां पीठ के खुले हिस्से पर जग्गा की मार के निशान स्पष्ट दिखते थे ।
छैः महीने पहले ट्रक ने जग्गा के ठेले को टक्कर मारी थी । मरा था जग्गा । लेकिन पहचान ना हो पाई थी ।ना कोई कागज ,ना कोई निशानी निकली उसके पास से।
रोते हुए गेंदा ने कहा था "हां यही है उसका आदमी। लेकिन कपड़े भी पहचाने नहीं लग रहे थे।लेकिन वह करती भी क्या? ठेला तो जग्गा का ही था।
पुलिस ने कहा था - "पहचान का टेस्ट होना बाकी है। क्या कहते हैं उसे इस टेस्ट को । व सोचने लगी ।
बेटे को स्कूल की ड्रेस पहना कर झुककर जूते के फीते बांध ही रही थी कि तभी एक जोड़ी पैर आकर उसके पास थमे। उसने सिर उठाकर देखा। जग्गा...... वह खुश हुई या टीन की छत उस पर गिरती लगी , वह समझ नहीं पा रही थी। ****
3.समाजसेवा
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वे समाजसेविका थीं।तथा“नारी मुक्ति आंदोलन “की अध्यक्ष ।“नारी जागृति” संस्था की नींवउन्होने ही डाली थी। पिछले दो सालों से वे प्रयत्नशील थीं, कि समाज में फैले भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथा को वे जड़ से उखाड़ फेंकेगी ।वे नारी जागृति संस्था के तहत हर मोहल्ले तथा आसपास के गांवों में जाकर धुआंधार भाषण देतीं। लड़की हो या लड़का भ्रूण हत्या पाप है। लड़की को कुदरत का अभिशाप नहीं बल्कि वरदान मानें। लड़की स्रजन करती है। एक संपूर्ण मानव जाति को जन्म देती है। वह देवी सद्श्य है।
भ्रूण हत्या, हत्या है।क्याआज भी नारी यह अभिशापसहने को विवश है? क्या आज भी नारी पुत्री को जन्म देकर अपराधी की कतार में खड़ी है? नहीं, यह 21वीं सदी की पुकार है ।पुत्र हो, या पुत्री दोनों ही समान हैं। उनके धुआंधार भाषणों की बहुत चर्चा होती। अखबारों की सुर्खियां बनते उनके विचार। ग्रामीण महिलाओं की भी वह मसीहा बनती जा रहीथीं।
।उन्हें याद आता है जब वेइस घर की बहू बनकर आईं थीं। और, शीघ्र ही एक के बाद एक दो लड़कों को जन्म दिया था।उनकी जेठानी जिन्होंने चार लड़कियों को एक पुत्र की आस में जन्म दिया था। वह गर्विता थीं। उनकी घर में इज्जत होती थी। उसघर मेंजिठानीकोसदैव नीची नजर से देखाजाता। जबउनके दूसरे बेटे की दूसरी संतान पैदा होने वाली थी उन्होंने अपनी बहू को सख्त हिदायत दी थी कि भ्रूण परीक्षण करवाना है।हमें दूसरी संतान बेटा ही चाहिए क्योंकि पहली संतान बेटी थी।बहू आश्चर्य से भर उठी थी।
“माजी! आप यह सब कब से मानने लगीं?“वह कड़क कर बोलीं-“कहने और करने में बहुत अंतर है। मेरे बेटे को घर का चिराग चाहिएमैं निपूती बहू को पसंद नहीं करूंगी ।बहू सहम कर रह गई थी। भ्रूण परीक्षण के बाद पता चला कि दूसरी संतान भी लड़की ही है उन्होंने हुक्म दे डाला- भ्रूण हत्या क्या पाप है?जिसका आकार प्रकार नहीं बना उसकी हत्या कैसी? पढी़ लिखी 21वीं सदी की ओर जाती बहू को महसूस हुआ कि वह अचानक नानी दादी के उस सीलन भरे कमरे में ढकेल दी गई है जहां पर लड़की पैदा होते ही दाई गला घोटकर या खाट के पाए के नीचे दबा करमार देती थी। उसे अपनी सास का चेहरा उस दाई जैसा दिखा जिसकी चर्चा अक्सर दादी करती थीं। वह बहुत जोर से चीख उठी और बेहोश हो गई ।जब होश आया तो उसने देखा कि वह अस्पताल के बिस्तर पर है और थर्मस मेंसे चाय उंडेलती उसकी सास अपने आस पास खड़ी महिलाओं के समूह को बता रहीं थीं कि”बहूके गिरने से ऐसा हो गया। ****
4. कुत्तों से सावधान
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कुछ बड़े ही एक बोर्ड पर लिखा था “कुत्तों से सावधान “लेकिन उसे ढूंढने पर भी एक कुत्ता नजर नहीं आया। उसने चुपचाप गेट खोला और अंदर दाखिल हो गई कॉल बेल बजते ही साहब ने स्वयं दरवाजा खोला।
और मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया मानो उसके आने की राह देख रहे थे वे । नौकर ने बहुत ही सलीके से नाजुक से गिलास में पानी दिया और वहीं खड़ा हो गया ।साहब ने उससे ठंडा गर्म क्या लेंगी ?पूछा। और नौकर चला गया ।तब तक साहब ने अपना पहला पैग खत्म कर लिया था ।और दूसरा पैग बनाने के लिए उस सुंदर नक्काशी दार टेबल की ओर बढ़ ग ए ।वह भव्य ड्राइंग रूम की साज-सज्जा को हैरत से देखने लगी ।नौकर ने आकर चमकते नाजुक क्लास में कोई ठंडा पेय रख दिया ।और उस रहस्यमय बंगले में गायब हो गया। साहब उसके पास आकर खड़े हो गए। उसे नौकरी का पक्के तौर पर आश्वासन दिया ।वेतन भी उसके मांगने से सौ रुपए अधिक ही कर दिया। और धीमे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया । उनकी आंखों में लाल डोरे चमक रहे थे वह सहम गई उसके माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाने लगी उसकी चुनरी साहब ने कब खींच दी उसे पता ही नहीं चला ।वे उसे बार-बार आश्वासन दे रहे थे कि नौकरी पक्की है, बोनस भी मिलेगा, भविष्य संवर जाएगा। वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। उस रहस्यमय बंगले में उसे कोई नजर नहीं आया। जो उसकी सहायता करता ।उसकी चीख गले में ही घुट कर रह गई ।वह पूरी ताकत से साहब को धकेलती हुई उठी और चिटकनी खोलकर बाहर भागी बंगले के गेट पर पहुंची तो सामने दिखा “कुत्ते से सावधान “ ****
5.मुक्ति
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पिता ने बीड़ी का आखिरी कश लेना चाहा पर वह बुझ चुकी थी, उन्होंने बहुत लाचारगी से किसना की ओर देखा, बोले –“बड़का कह रहा था कितू सिगरेट पीने लगा है किसना के मन में आया, कह दे” हां पीने लगा हूं ,कमाता नहीं हूं क्या?” पर वह चुप रहा। फिर उसके जी में आया पिता के साथ आज ही वह सब कुछ तय कर लेगा ।बड़े भाई से तो पिताजी कुछ कह नहीं पाते जो सारे ऐब करता है और बीवी के द्वारा मां पिता दोनों को सताता है ।एक वही है जिसे...... पता नहीं पिताजी बड़के के सामने भीगी बिल्ली क्यों बन जाते हैं?
पिताजी बोले-तौल कर शब्द उनके मुंह से निकल रहे थे ।“बेटा तुम समझदार हो जिम्मेदार हो तुम्हारे बड़े भाई से तो कोई आशा ही नहीं है तुम क्यों अपना पैसा यार दोस्तों पर खर्च करते हो ,सब मतलब के हैं।“
उसे लगा अब पिताजी कहेंगे –“तेरी एक जवान बहन बैठी है लेकिन ,अब वह इन झांसों में नहीं आने वाला।“ उसने कहना चाहा –“अब यह रोने धोने का नाटक नहीं चलेगा, बड़के से तो कुछ कहते नहीं ,अपना फर्ज कौन सा तुमसे ही निभाया गया, फिर वही क्यों पिसे?
“ पिताजी मेरा तबादला हो गया है,मैं जा रहा हूं “
पिताजी चौंक पड़े।उन्होंने एक ठंडी सांस भरी ।लगता है दस वर्ष उनकी उम्र और बढ़ गई है।वे लाचारगी से उसकी ओर देखने लगे।वह उठ गया। थोड़ी दूर जाकर जेब से एक सिगरेट निकाली और बहुत ही बेफिक्री से कशभरते हुए एक पत्थर को ठोकर मारी। उसे हैरानी हुई मुक्ति का रास्ता इतना सरल था तो वह अब तक क्यों इतना पिसता रहा। ****
6.पुरस्कार
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आसपास के सभी गांव में अभी तक बिजली नहीं आई थी। शाम से ही गांव अंधकार में डूब जाते थे। दादी ने लालटेन की बत्ती ऊंची की, ताकि उनको दिखाई दे कि वह बटन टांकने का काम सही कर रही हैं अथवा नहीं ।गांवकादर्जीउन्हें कमीज में बटन और ब्लाउज में हुक,तुरपाई आदि का काम दे जाता था। जिससे उनके घर का खर्च चलता तो नहीं था,हाँघिसटता था। एक बार में 6 रोटियां और आसपास से तोड़ी थोड़ी भाजी को भी छोंक देती थीं। चूल्हे के लिए लकड़ी लाने का काम बिट्टू का बाप अर्थात उनका बेटा करता था। बिट्टू की मां ना जाने कौनसी बीमारी में मर गई थी ।तब बिट्टू 2 वर्ष का था। अब वह 10 वर्ष का है।गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ता है स्कूल अब मिडिल क्लास तक है।
बिट्टू ने दादी से पूछा-“ दादी कई बार पूछ चुका हूं, यह जो आले में मेडल रखा है वह किसका है ?किसने जीता था?” दादी नेआह भरी। कहा-“ जब तेरा बापू छोटा था स्कूल जाता था तब स्कूल में एक प्रतियोगिता हुई थी।“मद्दयपाननिषेध”की। तेरे बापू ने एक पोस्टर बनाया था। सरकार की ओर से शिक्षा अधिकारी आए थे ।तेरे बापू को मेडल और पूरे सौ रुपए नगद मिले थे। पूरे गांव में वाहवाही हुई थी।“
“और जब तेरा बापू बड़ा हुआ तो पूरा घर बर्बाद हो गया। बिट्टू !शराब ने तेरे बापू को खोखला कर दिया। तेरी मां बगैर इलाज के इस दुनिया से चली गई। यहां तक कि घर के बर्तन तक भीबिक गए। लेकिन, इसकी शराब की लत नहीं छूटी।“ बिट्टू ने देखा आले में रखा मैडल लालटेन की धीमी होती रोशनी में अंधेरे में डूब रहा था। ****
7.पाजेब
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घर के सामने भीड़ लगी देख कर लखना ठिठक गया। अनजाने भय से उसका शरीर सिहरगया। कहीं अम्मा तो नहीं......लेकिन अम्मा ने उसे देखा तो छाती पीट पीट कर रोने लगी | “अरे लखना ! देख तो यह कलमुही कहां से मुंह काला कर के आई है। पड़ी है कोठरी में । वह तो भला हो सोभा का जिसने सब कुछ बता दिया”।
“अरे कुछ बोलेगी अम्मा, या यूँ ही पहेलियाँ बुझती जाएगी” ?
“अरे! क्या बोलूं! कल तो तू इसे मेले में ले गया था | मैंने कहा था इनता सजधज के न जा, पर न तूने सुनी मेरी बात, न ही इसने | लाल चोतला अपनी बित्ते भर की चुटिया में, जे बड़ी टिकली, चूड़ी और चमकीली साडी | गयी थी बन- ठन कर तो लुटवा लायें अपनी इज्ज़त” |
“क्या कह रही है अम्मा तू” |
“अरे ! सच कह रही हूँ ! ये तो घुसी बैठी है कोठारी में | सोभा बताये थी कि हम दोनों खेत से ज़रा हटकर बेर तोड़ने को गए | तभी दुसरे गाव के छोकरों ने हमें सुनसान में जाते देख लिया | लग गए पीछे | पर काकी हमें का पता था की ऐसा होगा| हम तो हंसी- ठिठोली कर रहे थे | लेकिन उन छोरों ने इसे पकड़ लिया | में खेतों की मेड़- मेड़ होती हुई भागी और चिल्लाती जा रही थी “ लखन की घरवाली को दुसरे गावं के छोरों ने पकड़ लिया | वो सीधे मेरे पास आई” | लखन हक्का- बक्का हो सुन रहा था | तभी भीतर से रोने की आवाज़ आई | अम्मा बोलीं “मुझे तो लगता था कल ही मेले में छोकरों ने ताड़ लिया होगा” |
“मैं भागी गावं के कुछ लोगों को इकठ्ठा किया और खेत की ओर दौड़ी | आगे आगे सोभा थी, जगह बताने को | लेकिन छोरे तो उसकी इज्ज़त लूट कर फरार हो चुके थे”|
घर के सामने कड़ी भीड़ छि छि छि करने लगी | तभी पुलिस आ गयी | किसी ने पुलिस को सुचना दी थी | अम्मा तो धन्य हो उठी कोसों दूर से पुलिस आ गए थीं | अम्मा फिर पुलिस को सारा किस्सा सुनाने लगी |
तब तक लखना अपनी पत्नी के पास कुठरिया में गया | पत्नी अस्त व्यस्त हालत में पड़ी थी | “चल उठ, पुलिस आई है | कहे को मरने गयी थी | बेर खाना, बहुत भूखी थी क्या? जैसे सोभा दौड़ी वैसे तू दौड़कर घर नहीं आ सकती थी ? पर तुझे तो बेर की लालच हो रहीं थी न”? तभी उसकी नज़र पत्नी के पेरों पर गई | “हे इश्वर ! पैर की पाजेब कहाँ है”? पत्नी ने डबडबायी आँखों से पैर की ओर देखा | “अभी कल ही तो भारी- भारी घुंघरू वाली पाजेब मेले से दिलाई थी | साल भर से तू पीछे पड़ी थी | कितनी तो मुश्किल से इतना रूपया इकठ्ठा कर पाया था | “ मैं तो पूरी पाजेब दुहरे घुंघरू वाली लुंगी | अब बता पाजेब कहाँ हैं”?
बाहर आया तो पीछे लुटी पिटी पत्नी खड़ी थी | पुलिस उससे कुछ पूछे इससे पहले वह बोल पड़ा | “सरकार ! कल ही पन्द्रह सौ रुपये की पाजेब दिलाई थी। वे लोग पाजेब भी उतार कर ले गए, हम तो लुट गए सरकार”| ****
8. बारिश
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तारा के छोटे भाई की शादी थी ।ससुराल वालों ने बहुत रोका था बारिश का मौसम है तुम्हारे मायके जाने वाले शहर के रास्ते की नदी उफान पर है। अभी मत जाओ। लेकिन तारा अपने लाड़ले भाई की शादी में कैसे ना जाती। उसका पति केशव तीन वर्षीय बेटा श्याम और नौ वर्षीय बेटी ऊषा उनके साथ वह बस से अपने गांव जाने के लिए बैठी । सारी रात का सफर था । अपने ग्यारह वर्षों के वैवाहिक जीवन में कितनी बार वह अपने मायके गई थी । लेकिन इस बार की खुशी अलग ही थी।
पति ने भी शादी की खरीदी में उसका भरपूर साथ दिया था ।
रात बारिश तेज हो गई थी। पुल पर से पानी बहने लगा था।
ड्राइवर ने बस पानी से बहते पुल पर से निकालनी चाही । सभी ने रोका। लेकिन उसने कहा- "कुछ नहीं होता। मैने कई बार बारिश में पुल पार किया है। " लेकिन बीच पुल पर बस का संतुलन बिगड़ा और बस हाहाकार करती उफनती नदी में जा गिरी ।
दूसरे दिन के अखबार में खबर थी बस में 35 लोग सवार थे। जिनमें पांच लोग ही बचे हैं। एक नौ वर्ष की लड़की को भी बचा लिया गया है।उसकी फोटो भी छपी थी। वह एक पेड़ के नीचे बैठी दिख रही थी। जो भी लड़की को पहचानता है कृपया खबर करें।
छोटा भाई रो उठा था। उसकी लाड़ली दीदी..... बड़े भाई ने फोटो देखी तो उसने उस दुखद माहौल में मां को फोटो दिखाई ।
"तारा की बेटी जीवित है ।मैं उसे लेने जा रहा हूं।"
मां ने बेटे का हाथ पकड़ लिया-" बेटा! एकदम खामोश हो जा तू ।ऊषा को नहीं पहचानता। जानता है ना ,तेरे तीन बेटियां हैं। तेरी आर्थिक दशा खराब है। अब चौथी लड़की को कैसे पालेगा? पढ़ाई, शादी, दान दहेज कहां से लाएगा? जानता है ना दहेज के लिए मैंने इस घर में कितनी प्रताड़ना सही है। आज भी मेरी देह ससुराल वालों की मार से दुखती हैं । भूल जा बेटा..... अनाथालय में पल जाएगी ऊषा। अनाथ समझकर उससे अपेक्षा नहीं होगी ससुराल वालों को । " बेटा कभी मां को कभी ऊषा की फोटो को देखता रहा। कौनसा दर्द ज्यादा गहरा था। माँ ने उसके हाथ से अखबार लेकर फाड़ दिया। ****
9.मृगमरीचिका
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अंग्रेजी शराब की दुकान पर जहां पीछे की ओर एक छोटा सा बार भी बनाया गया था तीन आदमी बैठे शराब पी रहे थे ।वे चार पाँच पैग शराब पी चुके थे ।और इधर-उधर की बातों में मग्न थे ।उन दिनों शहर से दूर ,परिवार से दूर कंपनी में काम करने वाले लोग वहां रहते थे, जहां गैस सिलेंडर का नामोनिशान नहीं था । स्टोव्ह जलाकर मिट्टी के तेल का प्रबंध करना, और फिर स्वयं ही अपना खाना पकाना पड़ता था।
शराब पीकर उमंग में वे तीनों चूर थे। लेकिन, सुबह की चिंता बीच-बीच में उन्हें सता रही थी। उनमें से एक आदमी जो कंपनी में उन दोनों से थोड़ा उच्च पद पर कार्यरत था, उसने उन दोनों से कहा-" क्या वे उसे मिट्टी का तेल दिलवा सकते हैं"।
" मिट्टी का तेल? क्यों नहीं," उनमें से एक ने दूसरे को संबोधित कर कहा-" कल ही आ जाना। कितना चाहिए?"
" जितना दिलवा सकते हो, उतना दिलवा देना"। पहले वाले व्यक्ति ने कहा ।
वह खुश हो गया। क्योंकि मिट्टी का तेल इस इलाके में मिलना अर्थात' नौकरी में इंटरव्यू में पास हो जाने जैसी खुशी है '।
अमां यार! खन्ना के पास बीसियों जाली राशन कार्ड हैं ।वह ब्लैक में तेल बेचता है। तुम पाँच राशन कार्ड का मिट्टी का तेल खरीद लेना। अरे यार! वह कौन सा तुम से अधिक पैसे लेगा ।आज वह तुम्हारे काम आएगा। कल तुम उसके काम आओगे।
वे फिर पीने लगे।
" अब छोड़ो मिट्टी के तेल का टेंशन" उसने पहले आदमी की पीठ पर थपथपाते हुए कहा -" नौ बजे राशन की दुकान के सामने मिल जाना। ओके, कल मिलते हैं ।"
पहला व्यक्ति बेतहाशा खुश- खुश आधी रात को अपने पुराने स्कूटर पर खटर- खटर की आवाज करते घर की ओर जा रहा था ।दूसरे दिन जब नींद खुली तो वह राशन दुकान की ओर भागा। कहीं देर ना हो चुकी हो ।
लंबी कतार में उसने देखा वे दोनों भी पाँच -पाँच लीटर के कैन लिए खडे़ हैं ,और उससे आंखें चुरा रहे हैं। बाद में पता चला कि खन्ना तो कंपनी के मालिक के साले हैं जो विदेश गए हुए हैं।.... ****
10.किन्नर
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पाँच वर्ष की बिंदु को उसकी मां की गोद से उठाकर सेठ जगतरामका छोटा बेटा जिस समूह के नजदीक पहुंचा वह किन्नरों का मोहल्ला था। उन्होंने प्रमुख किन्नर रानी देवी के हाथ में बिंदु को सौंपा और दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए। " रानी देवी, नहीं मान रहे बाबूजी। आप इसे संभाले । मैं इसकी परवरिश के लिए रुपया आपको पहुंचाता रहूंगा।"
रानी देवी मुस्कुरा पड़ीं। इतनी सुंदर बच्ची .....वह भी हिजड़ा ?और इन अमीर सेठ के यहां... वह तो कब से सेठ जगतराम के पीछे पड़ी थीं ।
बाबूजी ने स्पष्ट कह दिया था। बिंदु इस घर में रहेगी तो तुम मेरी सारी जमीन ,जायदाद, रिश्तों से हाथ धो बैठोगे ।
अपने बेटे शशांक को सामने देखकर और होने वाली संतान के लिए वे बिंदु को उसके समूह में पहुंचाने के लिए मजबूर हो गए ।
लेकिन वह समूह कब शहर छोड़कर चला गया उन्हें पता ही नहीं चला । आज शशांक का विवाह था ।सेठ जगत राम भव्य कार में सोने के आभूषणों
से सुसज्जित अपनी पत्नी के साथ बैठे थे।
शशांक घोड़ी चढ़ा था ।शशांक का छोटा भाई मयंक पीछे की कार में था। घोड़ी के आगे एक खूबसूरत लड़की नाच रही थी । जिसकी आंखों में इस कोठी की धुंधली यादें थीं। शशांक का भोला चेहरा भी याद था । यह स्त्री रूपी पुरुष जो सेठ जगत राम दादा की इज्ज़त के खातिर घर से निकाल दी गई थी । वह ठुमक ठुमक कर नाच रही थी। रानी देवी अन्य किन्नरों के साथ खड़ी थी।
नाचते हुए उसने घोड़ी पर चढ़े शशांक के हाथ में एक पर्ची थमाई।" भाई शशांक को बिंदु की बधाई ।"और वह पुनः नाचने में मशगूल हो गई ।शशांक ने आश्चर्य से अपनी बहन को देखा।जिसकी याद उसके भी ज़हन में कहीं न कहीं थी।
भीड़ अश्लील वाक्यों से बिंदु का स्वागत कर रही थी ।****
11 .धुआँ होती जिंदगी
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जिस नए बूढ़े मरीज़ को देखने डोरा अपने व्हील टेबिल के साथ पलंग के नजदीक आई। वह चौंक पड़ी । डेनियल... इतने बरसों बाद भी वह डेनियल को पहचान गई थी।
"ये अपने आप आए हैं अस्पताल में डोरा मैम, इनके परिवार में कोई नहीं है। इन्हें सांस की तकलीफ है । "
साथ खड़ी सोनम ने जो लगभग उनसे आधी उम्र की थी बताया।
डेनियल ने आंखें खोल दीं। आवाज़ पहचानी । जिस आवाज़ के सहारे उसने अब तक की लंबी जिंदगी गुजार दी वही आवाज। डोरा .....
"हां मैं डेनियल "वह खुशी से चीख उठी।
" कहां थीं तुम ? मैंने बरसों तुम्हारे जले हुए घर की धुआँ- धुआँ काली दीवारों पर तुम्हें ढूंढा था डोरा।"
" मैं तुम्हारे लायक नहीं रही थी डेनियल।"
37 वर्ष पुरानी वह भिवंडी शहर की सुबह जब चारों ओर दंगे फैल गए थे। उसी दिन जब वह खूबसूरत जाली वाले सफेद गाऊन और गुलाबी हैट लगाए एक परी की भांति अपने आप को शीशे में निहार रही थी । चर्च में जाने के लिए, आज उनकी शादी थी ।
तभी भागो -भागो का शोर उमड़ा और कितने ही दंगाइयों ने मोहल्ले को आग लगाते हुए उनके घर को भी आग लगा दी। बस कुछ ही देर में उसके मॉम, डैड और बड़े भाई के शव सामने थे। कि कई सारे हाथों ने उसे खींच लिया । वह चीखी। कुछ समझती कि उन्हीं हाथों ने बिना जली दीवाल के पास उसे घसीट लिया और उसका वैडिंग गाऊन, उसका हैट दीवाल के पास फेंक दिया।
इससे पहले बस किसी तरह अपने छोटे भाई को वहां से दौड़कर निकलने के लिए कह पाई थी। भाई काफी छोटा था। वह भयभीत सा दौड़ने लगा। डोरा की दर्दनाक चीख जलते मोहल्ले के धुएँ में घुट गई ।
जब उसे होश आया तो वह अस्पताल में थी ।और फिर उसने नर्स बनने का फैसला लिया।
" डोरा ! मैं हर दिन उस जले हुए घर में जाकर तुम्हें ढूंढता रहता ।तुम्हारी शादी का वह गाऊन जो हम दोनों ने मिलकर खरीदा था। वह मैंने उठा लिया।"
"डेनियल , मैंने तुम्हें नहीं ढूंढा। चाह कर भी तुम्हारे पास जाना उचित नहीं समझा।मै तुम्हारे लाइक नहीं रह गई थी ।"
"ओह डोरा ,मुझसे तो पूछा होता ।तुम मेरे लिए वही डोरा थीं। किसी के साथ वहशी अत्याचार हो तो क्या उसे जीने का हक नहीं।"
डेनियल की सांसे डोरा को अपने सीने में लिपटाए उखड़ चुकी थीं। सोनम दोनों के अनुपम प्रेम की साक्षी थी । डोरा की सांसे बाकी थीं.... सोनम चिल्ला उठी... डॉक्टर !डॉक्टर जल्दी आइए। ****
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क्रमांक - 03
पिताश्री : शंभू दयाल नायक
माताश्री : दमयन्ती नायक
जन्मतिथि : ३० अगस्त १९७५ ( जन्माष्टमी )
प्रकाशित साहित्य :-
लक्ष्य नाट्य संग्रह
समृद्धि नाट्य संग्रह
मनमोहन भारतीय नाट्य संग्रह
नेताजी की पोल नाट्य संग्रह
संत गोस्वामी तुलसीदास नाट्य संग्रह
निष्ठा कहानी संग्रह
दवा और दुआ कहानी संग्रह
रसायन लघुकथा संग्रह
वापसी उपन्यास
जन्नत उपन्यास
व
घुंघरू उपन्यास
रेडियो व टीवी से प्रसारण : -
प्लेबैक रेडियो, पिट्सबर्ग,अमेरिका से लघुकथा प्रसारित
दूरदर्शन से अनेक नाटक प्रसारित
आकाशवाणी से वार्ता, कहानी व लघुकथा प्रसारित
देश के पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन प्रकाशित
सम्मान / पुरस्कार : -
महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी ,मुंबई द्वारा विष्णुदास भावे नाटक पुरस्कार
केंद्रीय हिन्दी निदेशालय नईदिल्ली द्वारा हिन्दी सेवी पुरस्कार
विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा हिन्दी साहित्य प्रेरणा पुरस्कार
विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर, बिहार द्वारा हिन्दी साहित्य रत्न पुरस्कार
आमिर खान के पानी फाउण्डेशन द्वारा जल संरक्षण हेतु पुरस्कार व
देश की अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ : -
विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन नागपुर में संयोजक
*विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के साहित्यिकी कार्यक्रम में सप्ताहिक मंच संचालन
विभिन्न मंचों पर कुशल मंच संचालन
विभिन्न नाटकों की समीक्षा
विभिन्न वाद - विवाद प्रतियोगिता में निर्णायक की भूमिका
इंडियन टेलीफिल्म प्रॉडक्शन मुंबई में सहसचिव
स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन मुंबई का सदस्य
आदिवासी विद्यार्थियों को नि:शुल्क शिक्षा
पौधारोपण में सक्रिय भागीदारी
देश में आयोजित कवि सम्मेलनों में भागीदारी
आमिर खान संचालित पानी फाउण्डेशन मुंबई में सक्रिय भागीदारी
पता : -
७७-ब, श्री हनुमानजी मंदिर के पास,
पानी की टंकी ,खरबी रोड़ ,शक्तिमातानगर, नागपुर ૪૪००२૪ - महाराष्ट्र
1.सौलह एकड़ जमीन
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ठेकेदार जगतेश प्रताप ने सौलह एकड़ जंगल पूरा घूमघूम कर देखा । मनोज को आवाज लगाकर पुकारा -" मनोज . . .।"
मनोज दौड़ा आया अौर बोला - " हाँ सर ।"
जगतेश प्रताप ने हडकाते हुए कहा -" शाम तक पूरा जंगल कट जाना चाहिए मनोज । "
मनोज ने हाथ जोड़ते हुए कहा - "बिल्कुल सर , आप मुझ पर भरोसा रखिये । पूरी आठ मशीनें जंगल काट रही हैं शाम से पहले सारे पेड़ कट जायेंगे ।"
जगतेश प्रताप ने चिंता प्रकट करते हुए कहा - " चिंता की बात यह है कि अधिकतर पेड़ सागौन के हैं अौर कहीं पुलिस को भनक पड़ी तो बिना मतलब का चूना लग जायेगा। "
मनोज ने पेपर निकालते हुए कहा -" सर वैसे भी मेैंने बीस पेड़ों को काटने की अनुमति ले रखी है । अगर कुछ समस्या आती है तो निपट लेंगे।"
जगतेश प्रताप ने हँसते हुए मनोज के काँधे पर हाथ मारते हुए शाबासी दी तो मनोज ने मुस्कुराते हुए कहा - " सर लीजिए , आप तो सिगरेट पीजिए। "
जगतेश प्रताप ने हाथ बढ़ाकर सिगरेट ली अौर सुलगाकर चैन से कस लेने लगे , तभी अचानक पुलिस की गाडी़ आ धमकी। जगतेश प्रताप कुछ कहते इस से पहले मनोज ने कागज दिखते हुए कहा - " सर यह परमीशन है अौर एक लाख शाम तक आपके पास पहुँच जायेगा। "
पुलिस की घिग्घी बंद गई। एक शब्द जबान से नही निकला अौर तो अौर उल्टे पॉव वापस हो गई।
मशीनें अंधाधुंध कटाई कर रही थी तभी अचानक मजदूरों के चीखने चिल्लाने की आवाज आई -बचाअो . . .बचाअो . . . । अौर एक मजदूर जगतेश प्रताप व मनोज की अोर दौड़ा आया काँपते हुए कहा -" मालिक तेंदुआ ने हमला कर दिया । छन्नू को उठा ले गया कुछ करिये मालिक उसकी जान बचाईये , छोटे छोटे बच्चें हैं विचारे के। "
जगतेश प्रताप व मनोज जंगल की अोर दौड़े तो तेंदुआ छन्नू को घसीठते ले जा रहा था।जगतेश ने तुरंत पिस्तौल निकाली अौर तुरंत एक के बाद एक तीन गोलियाँ तेंदुए पर दाग दी । तेंदुआ जमीन पर धराशायी हो गया। लेकिन छन्नू भी साथियों को अलविदा कह चुका था।
मनोज ने घबराते हुए कहा - "मालिक बडा़ हादसा हो गया छन्नू के साथ तेंदुआ की मौत . . . ? "
जगतेश प्रताप ने कहा -" दो मिनिट मनोज।
मोबाइल निकाल कर एक फोन लगाया अौर बात कर मोबाइल रखते हुए कहा - " शाम तक मंत्री महोदय आ रहे है सौलह एकड़ जमीन पर अस्पताल का उद्घाटन करेंगे। ****
2. गुलाब नही कमल
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- यश हररोज बगीचे में लगे गुलाब को तोड़कर ले जाता अौर सोचता आज उसे दे ही दूँगा पर कभी देने की हिम्मत न हुई।आज उसने गुलाब का फूल तोड़ते ही सोचा आज किसी भी हाल में उसे गुलाब का फूल देकर ही रहूँगा ।
यश हिम्मत जुटाकर सुमन के पास आया अौर बोला -" तुम्हें गुलाब पसंद है ।"
सुमन ने यश को एक पल निहारा अौर कहा-" हाँ पसंद तो है लेकिन माँ हररोज तोड़कर पूजा के लिए रख लेती है ।"
यश ने जल्दी से अपना फूल निकाला अौर सुमन के हाथों में थमा दिया । सुमन मुस्काई तभी माँ ने आवाज लगाई -" सुमन . . . । गुलाब के फूल तोड़ लाना । आज तोडना भूल गई।
यश ने कहा -" जाओ , पहले फूल तोड़कर दे आओ।"
सुमन ने कहा-" बस दो मिनिट, मैं अभी आई।" सुमन फूल तोड़ने चली गई तो सुमन की माँ यश के पास आई अौर बोली - जिस गुलाब को तुमने पसंद किया है वो मेरी बेटी नही , मेरे काम बाली बाई की लड़की है। बीस वर्ष पहले इसे मैंने गोद लिया था।
पीछे से आई सुमन के कानों में शब्द पडते ही गुलाब के फूलों की डलिया हाथों से छूट गई। सुमन कुछ कह पाती, इसके पहले यश ने कहा - " जिसे अपनाने में आपको हर्ज़ नही हुआ तो मुझे कैसे ? ये गुलाब नही कमल है कमल।" ****
3.क्वारेंटाइन सेंटर
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सरपंच सुदर्शन ने अपने गॉव से निकल रहे मजदूरों में से एक मजदूर को रोककर पूछा - " कहाँ जा रहे हो भैया ? " मजदूर ने कहा - " अपने गॉव ।"
सुदर्शन ने फिर पूछा - " भैया गॉव का कोई नाम तो होगा ? "
मजदूर ने कहा - " श्यामपुर उत्तरप्रदेश । " सुदर्शन ने पूछा - " अौर आ कहाँ से आ रहे हो ? "
मजदूर ने कहा - " नागपुर महाराष्ट्र से। " सुदर्शन ने कहा - " मालूम है , लॉकडाउन शुरु है ? "
मजदूर ने दीनभाव से कहा - " मालूम है साहब , इसी बात का तो रोना है । पहले लॉकडाउन में ठेकेदार ने फ्री में भोजन खिलाया । अब फिर लॉकडाउन शुरु हो गया । वो भी बेचारा कब तक हम लोगों को खिलायेगा। बिना काम के। कह दिया तुम्हें जाना है तो जाअो वरना अपनी व्यवस्था खुद करो। हम सब सत्तर मजदूरों ने गॉव जाने का निश्चय किया साहब। हम शहर में छोटे - छोटे बच्चों के साथ भूखे मर जाते साहब अौर फफक के रो पड़ा । सुदर्शन ने कहा -" रोअो मत ।
मजदूर ने सिसकियाँ भरते हुए कहा- " साहब , गाँव में लोग राम - राम करते ही पिघल जाते हैं। पाँच - दस किलो अनाज गेहूँ ऐसे ही दे देते हैं। परंतु शहर में लोगों के पैरों पर भी गिर जाअो तब भी जेब से एक रुपए नही निकलता साहब अौर ऊपर से ये लॉकडाउन । "
सुदर्शन ने मजदूर के आँसूअों को देख कर कहा - " मेरे गाँव में ही रूक जाअो , मैं तुम्हारी व्यवस्था करुँगा। जब तक लॉकडाउन है तुम हमारे गाँव को ही अपना गाँव समझो।सब लोगों को रोको।"
मजदूर ने झट आँसू पोंछ कर आवाज लगाते हुए कहा - " अरे भाईलोग रुको , इधर आअो, इधर। "
सब लोग इकट्ठे हो गये । सरपंच सुदर्शन ने गाँव के विद्यालय में क्वारेंटाइन सेंटर बना कर ठहरा दिया। अच्छा भोजन मिलने से मजदूर खुश थे। एक सप्ताह यूंही गुजर गया लेकिन गाँव के कुछ लोग सरपंच सुदर्शन के पास आये अौर बोले - " सरपंच साहब गाँव के चारों किनारे बदबू से भरे पडे़ हैं । आपने ये मजदूरों को ठहराकर अच्छा नही किया। इनकी कुछ व्यवस्था करो वरना इनकी शौच से हम लोग बीमार हो जायेंगे।इन्हें गाँव से निकाल क्यों नही देते? "
सरपंच ने सिर खुजाते हुए कहा - " मैं जल्दी सोच कर व्यवस्था करता हूँ । तुम लोग जाअो । "
गाँव वालों के जाते ही श्रीचरण आ गया सरपंच सुदर्शन ने अपनी समस्या बताई तो श्रीचरण बोला - " सरपंच साहब अगर आप चाह तो मेरी नई बिल्डिंग में क्वारेंटाइन सेंटर बना दीजिए । अभी तो मैंने गृह प्रवेश भी नही किया है। इन मजदूरों से अच्छा क्या गृह प्रवेश होगा। मैंने छह- छह शौचालय बनबाई हैं, कब काम आयेंगी ?"
सरपंच सुदर्शन ने श्रीचरण के काँधें पर हाथ रख कर कहा - " श्रीचरण तूने अपने नये मकान को क्वारेंटाइन सेंटर बनाकर गाँव की लाज रख ली ।"
श्री चरण ने मुस्कुराते हुए कहा - " सरपंच साहब , अगर विपत्ति में कोई चीज काम न आई तो उसका क्या अर्थ ? आप चिंता मत करिये, ये मजदूर हमारे मेहमान हैं। मेहमान तो भगवान होते हैं । मेरा भाग्य है कि भगवान के लिए मेरा घर क्वारेंटाइन सेंटर बनेगा । ****
4.जीवन ही संघर्ष है
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तितली उड़कर फूल पर जा बैठी अौर सुगंध लेकर बोली - " फूल बताअो तो इतनी सुगंध तुम कहाँ से लाये हो ? "
फूल ने मुस्कुराकर कहा - " भूमि ने मुझे जगह दी , मैं अंकुरित हुआ । छोटा सा पौधा बना । फिर मुझे शक्ति दी । भोजन - पानी दिया । सूर्य ने मुझे बडा करने के लिए अपना प्रकाश दिया । मैं बडा़ हुआ तो मेरी सुरक्षा के लिए मुझ में काँटे आ गये।फिर कई दिनों के इंतज़ार के बाद मेरी डाली पर कली आई अौर कली ने धरती ,पानी व सूर्य की गंध को अपने अंदर भरकर मैं फूल बनकर खिला तब जाकर ये सुगंध मैंने पाई है। "
तितली ने पंख फैलाकर कहा - " अच्छा , ये तो बहुत दिनों के परिश्रम से हुआ होगा। "
फूल ने पंखुड़ियाँ खोलते हुए कहा - " हाँ , ये तो है , बहुत बचते बचते फूल बनकर खिल रहा हूँ। लेकिन ये तो बताअो तुम इतनी रंग बिरंगी सुंदर कैसे बनी हो ? "
तितली ने पंख समेटकर कहा - " प्यारे फूल , मैंने भी इतना सुंदर रंग ऐसे ही नही पाया है । मैं पहले अंडा थी , फिर इल्ली बनी । मैंने प्रकृति में रह कर ककून बनाया । ककून में कई दिनों तक रह कर अपने पंख बनाये उनमें रंग डाला। ककून को बड़ी मुश्किल से मैंने तोड़ा तो मेरे पंख खुले अौर मैंने देखा कि मैं रंग बिरंगी हो गई हूँ। "
फूल ने हवा में झुलते हुए कहा - "वाह बहुत सुंदर लेकिन तुम्हें भी बडा़ संघर्ष करना पड़ा , है ना।"
तितली ने फूल की गंध लेते हुए कहा - " हाँ प्यारे फूल , बिना संघर्ष जीवन नही होता । जीवन ही संघर्ष है। ****
5. धन्यवाद
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मोटरसाइकिल में लगे काँच में अपना चेहरा कई मिनटों तक देखती अौर संवर कर पेड़ पर जा बैठती चिड़िया । यह उसका प्रतिदिन का काम हो गया था । अब तो चिडा़ भी दूसरे काँच में रसंवरने आने लगा ।दोनों लगातार काँच में चोंच मारते अौर अपना चेहरा देख खूब फुदकते।
चिड़िया प्रतिदिन की तरह अपने सजने संवरने में व्यस्त थी। तभी छुपकर बैठी बिल्ली ने उस पर पंजा मारा अौर पंजा चिड़िया की पूंछ पर लगते ही वह तुरंत जान बचाकर भाग गई।
पेड़ पर पहुँचते ही चिडा़ को बताते हुए कहा - " अब काँच में संवरने मत जाना ।" चिड़ा ने कहा - " क्यों , क्या हुआ?" चिड़िया ने साँस भरते हुए कहा-" एक शैतान बिल्ली हमारी जान की भूखी है । मैं अभी अभी जान बचाकर भागकर आई हूँ।
चिड़ा नही माना अौर काँच में संवरने पहुँच गया । कुछ देर तक चिड़ा ने काँच में टक टक की आवाज की लेकिन दूर से ताक रही बिल्ली पर जरा भी ध्यान नही गई । छुपके से बिल्ली ने जोर का झपट्टा चिड़ा के गले पर मारा , चिड़ा जमीन पर आ गिरा ।
तुरंत मैं दौड़ा तो बिल्ली भाग गई लेकिन चिड़ा के गले से खून बह रहा था। मैंने तुरंत उठाकर , रुही से उसका खून पोंछा , दवाई लगाई अौर जब पानी पिलाया तो उसके जान में जान आई। थोड़ा पंखों को फडफडाया अौर मुझे भगवान समझ धन्यवाद देकर पेड़ पर जा बैठा। ****
6. परवाह
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मादा कबूतर ने नर कबूतर को पास बुलाकर कान में धीरे से गुंटूर गूं कहा - "मैं प्रीग्नेट हूँ , तुम पिता बनने वाले हो , मैं तुम्हारे बच्चों की माँ।" सुनते ही नर कबूतर के कान में ऐसी आनंद की लहर दौड़ी कि तन-मन खिल उठा । मुस्कुराकर बोला -" फिर तो हमें जल्दी घोंसला बनाना होगा।"
मादा कबूतर ने सिर हिलाकर हामी भरते हुए कहा- " हाँ ।" तब नर कबूतर ने उत्साह से कहा - " तो मैं अभी तिनके चुनकर लाता हूँ। " इतना कहकर नर कबूतर खुशी -खुशी तिनके लेने के लिए उड़ गया। तिनका चोंच में दबाकर हाँफता हुआ लौटा तो मादा कबूतर ने तुरंत चोंच से तिनका अपनी चोंच में ले लिया। नर कबूतर ने स्नेह से कहा - " लो , अपने घोंसले का निर्माण करो। " मादा कबूतर ने तिनका डाली पर डालकर प्यार से कहा - " तुम्हें मेरी कितनी फ्रिक है , आय लव यू।" नर कबूतर ने स्नेह भरी निगाहों से देखा अौर कहा -" लव यू टू।"
नर कबूतर ने एक के बाद एक तिनके चुनकर मादा कबूतर को देता गया अौर मादा कबूतर ने डाली पर तिनके जमा- जमा कर सुंदर घोंसला बना लिया।
कुछ दिनों बाद मादा कबूतर ने चार अण्डों को जन्म दिया तो नर कबूतर की खुशी का ठिकाना न रहा ।मादा कबूतर अपने शरीर से अण्डों को सहला रही थी तो नर कबूतर , मादा कबूतर से चोंच लडाकर स्नेह कर रहा था।
तभी अचानक एक आदमी ने पेड़ काटने के लिए पेड़ पर कुल्हाड़ी मारी तो नर अौर मादा कबूतर जान बचाकर उड़े। थोड़ी ही देर में बड़ा सा पेड़ जमीन पर आ गिरा। नर अौर मादा कबूतर की आँखों के सामने अण्डें जमीन पर गिरते ही टूट गये। घोंसले के तिनके -तिनके बिखर गये। मादा कबूतर अपने अण्डाें का हाल देख कर फूट-फूट कर रोने लगी तो नर कबूतर ने खुद को संभालते हुए मादा कबूतर के आँसू पोंछकर गुंटूर गूं बोला - " चुप हो जा , ये हमारी मजबूरी है , हम प्रकृति से तो लड़ सकते हैं पर मनुष्य से नही । वे खुद अपने बच्चों की भ्रूण हत्या करने से नही चुकते हैं तो हमारी परवाह क्या करेंगे। ****
7.आशीष
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गर्मी से प्राणियों का जीना मुहाल था। दूर दूर तक पीने को पानी नसीब नही हो रहा था ऐसे में एक चिड़िया ने अपने पीने की व्यवस्था सुगमता से कर ली थी। मनुष्य के घर में लगे कुलर के टब से वह आराम से पानी पी कर अपनी प्यास बुझा लेती थी। एक दिन उसने देखा अौर मन ही मन बोली - " अरे ये क्या ? आज तो टब में पानी बहुत कम है। अब केैसे पानी पीयूँ। " सोचा थोड़ा सिर झुका कर पानी पी लेती हूँ। जैसे ही पानी पीने के लिए सिर झुकाया कि चिड़िया पानी के टब में जा गिरी। पानी तो पी लिया लेकिन पंख पानी से भीग गये अब पंख लाख कोशिश करने पर भी नही खुल रहे थे। जैसे तैसे थोड़े बहुत पंख फ़डफाडाये तो वो कुलर में अटक जाते थे । करे तो क्या ? आखिर थक हार कर वह पानी में ही पड़ी रही।
शाम को दिनेश घर आया तो घर का ताला खोल कर तुरंत कुलर चालू कर दिया ।कूलर चालू करते ही पूरे कूलर अौर टब में कंपन शुरू हो गया । चिड़िया कंपन अौर आवाज़ से डर कर फडफडाई तो दिनेश डर गया। उसने लाईट चालू की तो उसका डर चिड़िया को देखते ही खत्म हो गया । उसने चिड़िया को टब से निकाला सोच इसे बाहर की दीवार पर बैठा दूँ परंतु पंख नही खुलने से इसे बिल्ली खा सकती है । अतः उसने उसे घर के सोफे पर बैठा दिया। कुछ गेहूँ के दाने भी डाल दिये। चिड़िया ने लगभग दस बजे तक वहीं दाने खा कर बैठी रही। दिनेश ने बार बार उसे देखा लेकिन वह सोफे पर ही उपस्थित थी। दिनेश ने एक बार रात ढाई बजे उठकर देखा तो सोफे पर दिखाई नही दी । चारों तरफ नजर घुमाकर देखा तो खिड़की के तार पर बैठी नजर आई। दिनेश ने भगवान का आभार माना अौर सो गया। दिनेश ने जब सुबह छह बजे उठकर देखा तब चिड़िया वहाँ से उड़ चुकी थी। दिनेश को चिड़िया के प्राण बचाने का सुखद अनुभव भा रहा था तो मन मस्तिष्क में प्रश्न उठ रहा था कि - " बेजुबान प्राणी इस भीषण गर्मीे में कैसे जीते होंगे।लेकिन में क्या कर सकता हूँ ? "
घर की बाहरी दीवार पर चारों तरफ दिनेश ने छोटे - छोटे डिब्बों में पानी भरकर रख दिया था। जिसमें देखते ही देखते कई पक्षी पानी पीने आ रहे थे अौर प्यास बुझाकर दिनेश को मन से आशीष दे रहे थे। ****
8. न्याय
खेत में घास चर रहे , हिरणों के झुण्ड पर , घात लगाकर तेंदुआ ने एक हिरण पर हमला बोला ही था कि -हिरण ने मामला भांप कर , फुर्ती से दौड़ लगा दी। उसके पीछे तेंदुआ . . . ।
अब हिरण अपनी जान बचने के लिए , लम्बी-लम्बी छलांगें भर रहा था। वहीं भूख मिटाने के लिए तेंदुआ कोई कसर नही छोड़ रहा था।
तेंदुआ ने नजदीक पहुँच कर , जैसे ही पंजा मारा , हिरण धड़ाम से धरासायी हो गया।
वर्मा को देखते- देखते ही हार्ट अटैक आ गया। तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती किया। वर्मा कह रहे थे - वो, बेचारा , हिरण बचा की नही? ? ?
उनका बेटा समझा रहा था - पापा ,जिंदगी बचाने के लिए , भागना ही पड़ता है अौर जो जिंदगी में तेज दौड़ता है वही जीतता है। आप इतनी बात को नही समझ सके।
वर्मा ने टूटते स्वर में कहा - " बेटा , दौड़ना ही है या जीतना ही है तो बराबर वालों के साथ क्यों नही दौड़ते ? कमजोर के साथ दौड़ना , कहाँ का न्याय है ? ****
9. प्राकृतिक
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मनीषा बहुत अधिक डिप्रेशन में थी। आठवॉ महीना चल रहा था। चिंता में माँ से सीधे-सीधे शब्दों में, कह दिया कि - " माँ , मैं बार-बार उल्टियाँ कर के थक गई हूँ। अब ये पल - पल का दर्द सहन नही होता।मैंने मनोज को सिझर के लिए मना लिया है। अब आप उन्हें कोई सलाह मत देना। "
माँ ने बात काटते हुए कहा - " बेटा मेरी बात तो सुनो।"
लता ने बात टालते हुए कहा - " माँ , आपका जमाना अौर था। "
माँ ने बात खत्म करते हुए कहा - " मैं मनोज से सिझर के लिए ही कह दूँगी।"
मनीषा ने डॉक्टर लता को अपना निर्णय सुनाते हुए कहा - " मुझे सिझर ही कराना है।
डॉक्टर लता ने समझाते हुए कहा - " बेटा , तुम्हारी उम्र भी ज्यादा नही है अौर सबकुछ नॉर्मल है । तुम्हारी नॉर्मल डिलेवरी आराम से हो जायेगी अौर फिर पहली डिलीवरी है तुम्हारी , तुम क्यों सिझर कराना चाहती हो ? "
मनीषा ने चेहरा उतारकर कहा -" मैडम , मैं इसे ज्यादा दर्द सहन नही कर सकती। मेरी सास व हसबैंड भी तैयार हैं। फिर आपको क्या दिक्कत है ? "
डॉक्टर लता ने सिर पर हाथ रख कर कहा - " बेटा , मुझे कोई दिक्कत नही , तुम कहोगी तो सिझर कर दूँगी लेकिन मेरा फर्ज हैकि - जब मामला गंभीर होता है तो मैं सिझर की सलाह देती हूँ । वरना नॉर्मल ही करा देती हूँ। फिर मुझे रूपयों से कौन - सा परहेज ?"
मनीषा ने फिर जोर देकर कहा - " कृप्या करके , आप तो सिझर ही कर दीजिए , मैं अब अौर दर्द सहन नही कर सकती।"
डॉक्टर लता ने पुनः समझते हुए कहा - " बेटा , तुमने सेब खाये हैं।"
मनीषा ने कहा - " हाँ , क्यों ?"
डॉक्टर लता ने कहा - " आपने कभी फल तोड़े हैं ?"
मनीषा ने कहा - " हाँ।"
डॉक्टर लता ने कहा- " तो बेटा , जब कच्चा फल,पेड़ से तोड़ हैं तो बड़ी ताकत लगा कर तोड़ना पड़ता है । जिस से पेड़ की डाली टूटने का डर रहता है अौर पेड़ को तब दर्द भी ज्यादा होता है । लेकिन पक्का हुआ फल समय आने पर अपने आप डाली से टूट कर अलग हो जाता है , तब पेड़ को कुछ भी नही होता। फल भी पूर्णतः परिपक्व व मीठा होता है । ये प्राकृतिक है बेटा। अब तुम्हें प्राकृतिक चाहिए या अप्राकृतिक ? "
मनीषा ने डॉक्टर लता के पैर छूते हुए कहा - मुझे प्राकृतिक चाहिए । अब मुझे कोई तकलीफ नही है ।****
10. मानवीय संवेदना
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- दो दिनों से लगातार बारिश रूकने का नाम नही ले रही थी। ग्यारह वर्षीय आकाश को चौक से दो दिनों से कोई भीख नही मिली थी। नंगे बदन , नाम मात्र का एक फटा पेंट पहने हुए था।
तेज बारिश के कारण कुत्ते का पिल्ला भीगता हुआ , चौक के सामने वाले घर के छज्जे के नीचे आया। तभी दौड़ते हुए आकाश भी उसी छज्जे के नीचे खड़ा हो गया।
कुत्ते के पिल्ले ने अपने शरीर को हिला कर बालों का पानी झटका तो आकाश ने भी अपने सिर के बालों का पानी हाथों से झटकाया।
कुत्ते का पिल्ला अपने चारों पैरों को शरीर की अोर सिकुड़कर , एक कोने में बैठ गया । आकाश से नही रहा गया तो उसने कुत्ते के पिल्ले को उठा कर , अपने सीने से लगा लिया। अौर पुचकारते हुए कहा - " तुझे , ठण्डी लग रही है ? "
कुत्ते का पिल्ला सीने से लग कर , चाऊँ - चाऊँ की आवाज कर मानों कह रहा हो - " सच में , मुझे बहुत ठण्ड लग रही है। "
आकाश ने सिर पर हाथ फेर कर , गोद में बिठा कर चिपका लिया । अब कुत्ते के पिल्ले ने चाऊँ-चाऊँ करना बंद कर दिया था।
तेज बारिश से सड़क पानी से भर गई थी। रात को दस बज गये थे।जब पानी सड़क से भर कर , उस घर तक जा पहुँचा गया तो आकाश ने पिल्ले को लेकर सीढ़ी पर जाकर बैठ गया।
ठीक ग्यारह बजे थे। घर का मालिक घर के दरवाजे में ताला लगाने आया तो कुत्ते के साथ आकाश को देख कर गुस्से में बोला - "क्यों बे ,यहाँ क्यों खड़ा है ? क्या चोरी करेगा ? "
आकाश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा - " बारिश के कारण रूक गया था।"
घर मालिक ने चिल्लाते हुए कहा - " अरे ! तुम लोगों को तो बहाना चाहिए । हम लोगों की नींद लगी नही कि - चोरी कर भाग जाअोगे। चल निकल यहाँ से।" अौर जोर का धक्का मारा , आकाश सीढ़ियों से नीचे गिर गया। जैसे ही नीचे गिरा , कुत्ते का पिल्ला भी जमीन पर धडाम से गिरते हुए चाऊँ-चाऊँ कर बाहर निकल गया। बाहर पानी भरा था। कुत्ते का पिल्ला तैरकर , सड़क के दूसरे किनारे जा पहुँचा।
आकाश ने बाहर आकर पानी को देखा तो सड़क पर पानी उसके सिर से ऊँचा बह रहा था। कुत्ते का पिल्ला सड़क के दूसरे किनारे से भौंक भौंक कर , मानों आकाश को बुला रहा हो।लेकिन आकाश को तैरना कहाँ आता था ?
रात भर पानी में खड़ा -खड़ा , कब पानी में गिर गया कि पता ही न चला। पाँच बजे बारिश थम चुकी थी। कुत्ते का पिल्ला आकाश के पास आकर खींच -खींच कर ,जागने के लिए भौंक रहा था।
सुबह-सुबह की सैर करने वाले लोग मोबाईल से फोटो खींच मानवीय संवेदना व्यक्त कर रहे थे। ***
11.पेंशन
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क्या है दादी आपने पेंशन के पचास हजार रुपए बर्थ डे पार्टी करने में खर्च कर दिये। शीला ने गुस्से में कहा तो दादी ने प्रेम से कहा
क्या हुआ बहू रोहन कितना रो रहा था।
तो आप कब तक उसकी जिद्द पूरी करती रहोगी ?
दादी ने मुस्कुराते हुए कहा - अभी छोटा है , आगे सब समझ जायेगा।
आप तो पूरा बिगाड़ लो , मुझे फिर मत कहना। अौर ये रखिये उसके बर्थ डे गिफ्ट के चार हजार रुपए ।
बेटी चार हजार रुपए मायने नही रखते । मायने रखती है खुशी।
रोहन कितना खुश हुआ ? अौर हम लोग भी।
इस बहाने हमारे दूर - दूर के रिश्तेदार भी आकर खुश हुए । बस यही खुशी मुझे चाहिए थी। मैं पेंशन को जोड़ कर क्या करुँगी ****
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क्रमांक - 04
उम्र : 69 वर्ष
संप्रति -----शिक्षिका (सेवा निवृत्त)
रुचि--------साहित्य लेखन और पठन पाठन
प्रकाशित कृतियां : -
1. अभिव्यक्ति साझा काव्य संकलनमें कविता प्रकाशित
2. काव्य करुणा साझा काव्य संग्रह में कविता प्रकाशित
3. भाषा सहोदरी -हिन्दी में कविता प्रकाशित
4. दिल्ली की "जीवन मूल्य संरक्षक न्यूज पत्रिका "में कविता और कहानी प्रकाशित
5. हैदराबाद में डेली हिन्दी मिलाप पेपर में कविता मुक्तक प्रकाशित
6. Georgia ( USA ) राष्ट्रदर्पण पेपर में कहानी , लघुकथा ,लेख ,कविता प्रकाशित
7. नवसारी में साप्ताहिक पूर्णेश्वर टाइम्स में मेरी रचनाएं प्रकाशि
उपलब्धियां : -
1. काव्य करुणा सम्मान उदीप्त प्रकाशन द्वारा
2. अग्निशिखा गौरव रत्न सम्मान अग्निशिखा जनिका काव्यमंच द्वारा
3. महाकवि कालिदास काव्य संध्या प्रतियोगिता में सम्मानित
4. काव्य साधक सम्मान उदीप्त प्रकाशन द्वारा
5. जैमिनी अकादमी द्वारा 25 वी अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में मेरी लघुकथा "स्वाभिमान" को सांत्वना पुरुष्कार प्राप्त
6. साहित्य सफर में मेरी कहानी पुरुष्कृत
पता : -
501 ,महावीर दर्शन सोसायटी
प्लॉट नं 11सी , सेक्टर - 20 , खारघर ,
नवी मुंबई -महाराष्ट्र
1.पिता
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मोहन....पिता की कड़कती आवाज ...सुन मैं तो क्या अच्छे अच्छे कांपते थे !
जी पिताजी ! आज अब तक स्कूल नहीं गये ? दस बज गये हैं..स्कूल ग्यारह बजे की है ना ?
जी पिताजी बस मम्मी ड्रेस आयरन कर रही है पहनकर निकलता हूं !स्कूल बस अभी आ जायेगी... ध्यान करना बस छूट जाने से पैदल ही जाना होगा.. कोई रिक्शा नहीं ..जल्दी करो!
बस छूट जाने से मुझे पैदल ही जाना पड़ा ! पिताजी मुझे हमेशा हर काम में टोका करते थे ! ऐसे मत बैठो , ये मत खाओ ,वहां मत जाओ ,यहां तक मेरी पल पल की खबर रखते ..मैं किसके साथ खेलता हूं ,क्या करता हूं आदि आदि ! एक दिन मां मां कह चिल्लाते हुए मोहन घर में प्रवेश करता है ...क्या बात है मोहन इतना क्यों चिल्ला रहे हो....? तो क्या करूं? पिताजी ने तो आज हद्द कर दी ...मेरे स्कूल पहुंच प्रिंसिपल से बाते कर रहे थे !
मां ने कहा तो क्या हुआ ? जरुर मेरी बुराई कर रहे होंगे ..। बेटा तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते हैं उन्हें तुम्हारी फिक्र है...प्यार से कंधे पर हाथ रख हसते हुए कहती है आखिर तुम्हारे सबसे अच्छे मित्र जो हैं तुम्हारे पिता ....कंधे से हाथ झटकते हुए मोहन ने व्यंग से कहा दोस्त....मां मैं तो उन्हें अपने दुश्मन की लिस्ट में भी नहीं रखना चाहूंगा...जल्लाद हैं जल्लाद
...कहते हुए मोहन गुस्से से घर से निकला ही था सामने से आते बैल ने अपनी सिंग से उठा ऐसा पटका उसका सर फट गया ,एक पैर की हड्डी टूट गई ..वह भाग भी नहीं सकता था ....सामने से आते उसके पिताजी ने यह दृश्य देखा वे बदहवास से भागते हुए जान की परवाह न कर मोहन को बचाने दौड़े ! लोगों ने किसी तरह बैल पर काबू पा लिया था !
मोहन के सिर से खून काफी बह चुका था ...मोहन के पिता उसे अपने कंधे पर बैठा पागलों से दौड़ते हुए घर के पास वाले डाक्टर की क्लीनिक में गए! मोहन के होश आते तक वे एक पैर पर खड़े थे .... पिता सागर है जो नमकीन होने पर भी रवि से तपकर मीठा जल ही देता है !
आज मोहन काफी चिंतित था !अपनी पत्नी से जो मायके गई है फोन पर कह रहा था मेरे बेटे बिट्टू का ध्यान रखना अब उसका बुखार कैसा है ? बस यूंही फोन पर पिता का प्यार जता रहा था तभी...आग आग..बिल्डिंग में आग लग गई की आवाजें आने लगी सभी भागने लगे...अफरातफरी मच गई ! मोहन ने कहा मां तुम सबके साथ निकल जाओ मैं पिताजी को लेकर आता हूं ! मोहन ने कहा पिताजी आपको मैं कुछ नहीं होने दूंगा....उसने अपने लकवा से ग्रस्त बहादुर पिता को जो बुढ़े और कमजोर हो चुके थे किसी तरह अपने मजबूत कंधों पर उठाया....पिता की आंखों में आंसू थे ....वह दृश्य उनके सामने आ गया जब वे खून से लतपथ मोहन को कंधे पर लेकर इसी तरह दौड़ रहे थे ...
मोहन ने जल्दी जल्दी छठे माल की सिढ़ीयां नापते हुये नीचे सुरक्षित स्थान पर पहूंचकर ही श्वांस ली !
आज पिता बन मोहन को अहसास हुआ पिता सेतु होता है ! वह शीतल वृक्ष है जो स्वयं तपता है पर बच्चों को छांव देता है....।
सुबह... मां मैं आपकी बहू और पोते को लेने जा रहा हूं कहते हुए उसके कदम बेटे के प्यार में तेजी से बढ़ने लगे .... ! ****
2. कफन का टूकडा़
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ठंड का कहर अपनी पुरजोश पर था मानो वर्षों से तप्त धरा आज ही बर्फ बन ठंडी हो जाना चाहती हो ! साएं साएं करती ठंडी हवाएं शीला की झोपड़ी में हुए छोटे से तिराण से घुसकर ठण्ड का कहर बरसा रही थी ! शीला अपने दोनों बच्चों को झोपड़ी के अंदर ठण्ड से बचाने की कोशिश कर रही थी !
रात को चार साल का शिवम ठण्ड से कराह रहा था ! उसका पूरा शरीर ठण्ड से कांपते हुए ऐसे हिल रहा था मानों धरती कंप हो रहा हो ! शीला ने अपनी आधी अधूरी साड़ी जो कुछ हद्द तक उसकी जवानी को सेवे हुई थी उतारकर बेटे के उपर डाल उसे अपनी गोद की गर्मी देने की भरसक प्रयास कर रही थी ताकि उसके बदन की ठण्डी कुछ कम हो जाये !
कड़ाके की ठण्ड थी क्या कम होती....तभी चौदह पन्द्रह वर्ष का उसका पुत्र राम जो मां को सांत्वना दे रहा था ....कुछ नहीं होगा शिवम को कहते हुए बाहर की ओर भागता है....शीला आंखों में आंसू लिए शिवम को फिर खुले दरवाजे को देखती रही ....
ठण्ड का कहर बढ़ता जा रहा था ! घाघरा ब्लाउज पहने शिवम को कसकर छाती से लगाये अपनी पूरी गर्मी देने की कोशिश कर रही थी ! ठण्डे पड़े शिवम के शरीर को अपने छाती से चिपकाकर शीला जड़ हो चुकी थी !
पास में मंदिर की घंटियां बज रही थी ! सुबह के पांच बजे दरवाजे पर राम को उज्जवलता संग अपने निर्मल और कोमल बालपन की खुशी लिए हाथों में सफेद लंबे कपड़े के साथ प्रवेश करते देख मां ने शिवम की ओर देखा जो हमेशा के लिए चीर निद्रा में सो चुका था .... ठंड से कांपते मां ने कहा अब इसकी कोई जरूरत नहीं ....तुरंत राम ने कहा ! पर मां मुझे आपकी जरूरत है ....माना ठंडी सांसो को यह गर्मी ना दे पाया पर तुम्हें अपमानित और बेइज्जत होने से तो बचा सकता है !
यह कहते हुए राम ने उस कफन के टुकड़े को मां के उपर डालकर मां को ढांक दिया ....। *****
3. नपुंसक
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भरी दोपहर मे गली के नुक्कड़ से आवाज आ रही थी बचाओ बचाओ ...दूसरी ओर देखो लड़की भागने न पाये....
दरवाजा खोलकर देखा नुक्कड़ पर काफी भीड़ थी! एक लड़की चीख चीखकर मदद की गुहार कर रही थी! तीन चार लड़के उसके पीछे थे! बुत बनकर सभी खड़े थे मानो तमाशा देख रहे हों!
तभी एक किन्नर लड़की के तार तार हु़ए कपड़े पर अपनी चुन्नी ओढा उसके सामने ढाल बन खड़ी हो जाती है!
उन लड़कों में से एक ने कहा बड़ी इज्जत ढाकने वाली आई... यह कहते हुये वहशी जानवर बने उन लड़कों ने किन्नर के कपड़े उतार उसे नग्नावस्था में ला खड़ा किया!
अपने हाथों से अपनी इज्जत ढाकने का असफल प्रयास करते हुए किन्नर ने वहां मुक बघिर बने खड़े लोगों से इज्जत की भीख मांगी!
दूर खड़ी लड़की आंखों में आंसू लिये कहती है किससे कह रही हो?
"जो स्वयं नपुंसक हैं" ****
4.पड़ोसी धर्म
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फोन की घंटी की आवाज सुनते ही बेटी रोमा दौड़कर फोन उठाने जाती है और कहती है जरूर दादी का होगा!
हेलो दादी--
कैसन हो बिटिया?
ठीक हूं दादी!
तुरंत प्रशांत ने फोन लेकर कहा अम्मा घर अच्छा मिल गया है तो कोनो चिंता मत करना !अपन ख्याल रखियो!
केवल पांच माले की बिल्डिंग है प्रत्येक माले पर दो दो फ्लैट है!
जगह काफी बड़ी नहीं थी पार्किंग, पानी थोड़ी बहुत हरियाली सभी तो था और क्या चाहिए बस एक पड़ोसी अच्छा मिल जाए फिर सुख ही सुख है !प्रशांत ने पत्नी को समझाते हुए दूसरे माले पर यह घर किराये से लिया था!
उनके सामने वाले फ्लेट में अनवर भाई अपने छोटे से परिवार पत्नी और पांच वर्षीय बेटे रेहान
के साथ रहते हैं!
दोनों प्रेम भाव से सुख-दुख में एक दूसरे का साथ देते अच्छे पड़ोसी बन गए!
एक दिन प्रशांत का बचपन का मित्र कुछ नाराज सा दिखाई पड़ रहा था जाने किसी से लड़कर आ रहा हो ..आया!
आते ही प्रश्न दाग दिया ---यार तुम्हारा अपने पड़ोसी के साथ कभी कोई मतभेद नहीं होता क्या? यार तुम दोनों का खाना, धर्म, पहरावा सभी तो भिन्न है फिर भी इस भिन्नता के मध्य "एकता" कौन सा "धर्म" लेकर रहती है!
तपाक से प्रशांत ने जवाब दिया-- "पड़ोसी धर्म "
हम सभी इस पापी पेट की ख़ातिर दूर दूर से अपने परिवार और प्रियजनों को छोड़कर अन्य जगह अपना घोषला बना लेते हैं ऐसी स्थिति में यदि छांव देने वाला वृक्ष की तरह कोई पड़ोसी मिल जाता है जो मित्र बन ,पिता की तरह, भाई की तरह सुख दुःख में अपना कंधा देता है वही सच्चा "पड़ोसी धर्म" निभाना होता है!
आपत्ति आने पर दूर होने की वजह से रिश्तेदार बाद में आएंगे प्रथम जो मित्र बन खड़ा "पडो़सी धर्म "
निभा रहा है वही आयेगा! ****
5. सुख
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जमीनदार दीनानाथ अपनी पालकी में बैठ गांव का भ्रमण कर रहे थे ! रस्ते में जो भी व्यक्ति मिलता सिर झुकाकर अभिवादन करता ! तभी हरिया खेत में मजदूरी करता है खुश होते हुए अपनी धुन में बिना अभिवादन किये आगे निकल जाता है !जमींदार अपने आप को अपमानित समझते हुए क्रोधित होते हुए अपने मातहत से हरिया को हवेली में आने को कहा ! सभी गांव वालों में काना फूसी होने लगी , हरिया ने क्या गुस्ताखी की होगी ,जमींदार उसे कैसी सजा फटकारेंगे वगैरह वगैरह .....
सभी गांव वालों के सामने जमींदार ने हरिया से कहा तुझे ऐसा कौन सा खजाना मिल गया था जो तुने मुझे अनदेखा कर सलाम किये बिना निकल गया !तुझे इसकी सजा मालुम नहीं है?--- मालिक मुझे बहुत बडा़ सुख का खजाना मिल गया है....आज मैने मंदिर में एक साहूकार को जो शायद अपनी शारीरिक पीडा़ से पीडि़त होने की वजह से दूसरे पर निर्भर थे ! घर के सभी भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के अंदर गये थे ! वे बाहर चबूतरे पर कड़कती धूप में बैठे थे ! उन्होंने हरिया से पीने को पानी मांगा ! डरते हुये हरिया ने पानी दिया ! व्यक्ति के कपड़े देख हरिया की नजर अपनी फटी धोती पर पडी़ ! तभी उस व्यक्ति ने कहा तुम कितने सुखी हो ! किसी पर निर्भर तो नहीं हो ! धनदौलत होते हुये भी मैं कितना गरीब हूं ....पराश्रित हूं !
हरिया समझ गया ...."पराधिन सपनेहु सुख नाही "मेरे हाथ -पैर मेरा शरीर तो मेरे साथ है !मैं स्वयं करोडो़ की दौलत का मालिक हूं ! हमारी मेहनत किसी की मोहताज और अधीन नहीं है !
हरिया ने जमींदार से कहा आप हमपर आश्रित हैं हम नहीं !हमारी मेहनत का फल आप खाते हैं अतः आप हम पर आश्रित हैं ....गरीब हम नहीं आप हैं
यह कहते हुए निडरता के साथ हरिया के कदम गांव वालों के साथ अपने खेत की ओर बढ़ने लगे...आखिर उसे अनमोल "सुख" का खजाना जो मिल गया था ! ****
6. रेत
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कमली तसले में रेत भर सिर पर तसला उठाती है और सीमेंट रेती मिक्स करने वाली मशीन में डालती है जहां एक लड़का पहले ही खड़ा रहता है जो उसमें पानी डालने का काम कर रहा है !
सूर्य की तपती धूप ... पसीने से तरबतर अपने साड़ी के पल्लू से पसीना पोछती हुई पुनः तसले में रेत लेने जाती है !
दूर दूसरे रेत के ढेर में कमली के बच्चे रेत में अपना घर ढूंढ रहे थे !दोनों रेत में घर बनाते और तोड़ते हस खेल रहे थे ... तभी कमली ने अपने बेटे को आवाज लगाई! भीखू धूप बहुत तेज है... रेत भी गरम हो रही है, मुन्नी को लेकर उते छांव में बैठ! उसे बच्चों की चिंता हो रही थी!
समय रेत की तरह फिसला जा रहा था...!
12:30 बजे खाने का वक्त
कमली ने कपड़े में बंधी रोटी और उबले नमक वाले आलू निकाल भीखू के सामने रखती है और मुन्नी को भी खाने को कहती है .... रोटी का कौर तोड़ते हुए कागज की नाव के जैसे कमली सपनों की नदी में पति की यादों संग बहने लगी !
शंकर एक कंपनी में मालिक का ड्राइवर था! साथ ही फैक्टरी का वॉचमेन भी था.... खाना, रहना और पगार मिल जाती थी ! गुजारा अच्छा चलता था! सुखी जीवन था !
एक दिन मालिक की दुश्मनों से उनकी जान बचाते हुए अपनी वफादारी दिखा शंकर ने अपने प्राण त्याग दिये !
करीबन 15 दिनों के बाद मालिक ने सहानुभूति दर्शाते हुए कुछ मुआवजा मेरे हाथों में देते हुए कहा ! सप्ताह के अंदर तुम्हें यहां से जाना होगा क्योंकि नया वॉचमेन आ गया है !
मालिक की कृतज्ञ हूं जिन्होंने बेगारी का यह काम दिलाया... जहां मजदूरों के रहने के लिए महल के पास ही उनका आशियाना बनाया ! शंकर की यादों में डुबकी लगाने जा रही थी तभी भीखू ने कहा... मां काम का समय हो गया ! हां ! हड़बड़ा कर बाहर निकलते हुये कहती है ये समय भी कैसे रेत की तरह फिसलता है !
भैया मां क्या सोच रही थी ?
भीखू ने कहा सपने देख रही थी! समय होते ही टूट गया!
कैसे भैया ?
अपने बनाये रेत के घर जैसे.....! ****
7. भीड़ में
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अधिक मास (पुरुषोत्तम मास ) में हम सभी महिलाएं रोज मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन कर पंडित जी से प्रवचन सुनते और श्रद्धा जितनी दक्षिणा चढा़वा देतीं !
मंदिर से आते हुए मीना ने कहा अमावस्या को पंडित जी को सीधा देने सुबह जल्दी आ जाऊंगी फिर भीड़ बहुत हो जायेगी! ससुर जी की तबीयत भी ठीक नहीं है ,तुम सब कितने बजे आओगी ? जया ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा भई मै तो लेट आऊंगी! दान में भी तो बहुत कुछ देना है ! बाकी सभी ने भी जया की बात का समर्थन किया ! तभी गुड्डी ने कहा हम सभी मेरी इनोवा में चलेंगे और दान का सामान भी तो बहुत होगा !सभी ने हस्ते हुए हामी भर दी !
मीना जल्दी जल्दी अपना काम निपटाकर पहले ससुर जी के चरण स्पर्ष कर आशीर्वाद लिए और जैसे ही मंदिर के लिए निकलने लगी ससुर जी ने आंखों में आसूं लेते हुए कहा बेटा सदा खुश रहो ! मीना ने पलटकर देखा और कहा क्या बात है पिताजी ? तबीयत तो ठीक है ? साधारण हैसियत थी किंतु उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखती थी ! अपने खर्च में कटौती कर लेती पर ससुर जी की दवा कभी न भूलती !
पिताजी का माथा सहलाते हुये कहा सारा दिन है मैं किसी भी समय चली जाऊंगी !
मंदिर में वह सीधे की थाली लिये खड़ी थी ! गाड़ी से अपना सामान उतारते हुए जया की नजर मीना पर पड़ी अरे मीना!
काफी भीड़ थी !पंडित जी ने दूर से उनके हाथों में बड़े बड़े थैले देख जगह करते हुए पास आकर कहा आप आईये !
मंदिर से बाहर निकलते हुए गुड्डी ने कहा कितने अच्छे दर्शन हुए !
मीना "भीड़ में " अपनी सीधे की थाली लिए सोचने लगी ससुर जी की तबीयत ठीक नहीं है जाने कितनी देर लग जाये !
उसके कदम घर की ओर बढ़ चले यह सोचते हुए किसी गरीब जरुरतमंद को दे दूंगी ... ! ****
8. स्वाभिमान
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विनय ने अपना सारा कारोबार पुत्र अंकित के नाम कर निवृति ले ली थी!
अंकित सारा कारोबार समेटकर अमेरिका अपने परिवार के साथ चला गया!
एक दिन विनय कुछ सामान लेकर , थैला उठाकर, जो शायद उनके ताकत से ज्यादा भारी था, आ रहे थे! तभी पड़ोस का लड़का अनिल गाड़ी रोक कर कहने लगा .....अंकल गाड़ी में आ जाइये ! गाड़ी में अनिल ने कहा अंकल अब आपको आराम करना चाहिये!
विनय ने कहा बेटा जरुरत आदमी को लाचार बना देती है या आत्मबल देती है! रो रोकर....याचना और यातना के साथ जीने से अच्छा है.....संघर्ष कर स्वाभिमान के साथ जीना !
मैं 75 साल का हूं , फिर भी युवानों की तरह काम करता हूं!
लाचारी में आदमी अपनी लायकाती पर चलता है अथवा मनोबल से! दुनिया स्वार्थी है किसे दोष दें!
अंकल आप अपने बेटे के पास चले जाइये!
उसी समय वर्षों बाद उनके पुत्र अंकित का फोन आता है!
पिताजी रुपयों की जरुरत है...
विनय का स्वाभिमान जाग बोल उठा.... 'बेटा मै फिसल गया हूं अभी गिरा नहीं ' !!! ****
9. मां की ममता
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सुधा दूसरों के यहां खाना बना बेटे गिरीश और अपना पेट पालती थी! समय मिलने पर वह घर पर रखी सिलाई मशीन में कपड़े सिलकर भी कुछ पैसे जोड़ लेती थी !
गिरीश 12वीं पास कर पास के शहर में हॉस्टल में रहकर आगे की पढ़ाई कर रहा था ! उसे मां की कमी खल रही थी ... वैसे भी बचपन से बच्चों में मां की ममता की उष्मा गहरी होती है जो पत्थर सी जमी बर्फ को भी पिघला कर अश्रु में ढाल देती है !
एक दिन गिरीश ने मां को पत्र लिखा.... मां आते दो महीने आप मुझे रुपए मत भेजना मैं यहां मैनेज कर लूंगा ! मैं यहां कैंटीन में अच्छे से खाना खा रहा हूं ! मेरी चिंता मत करना !
सुधा ने उसी समय से अपने खाने-पीने के खर्चे में कटौती करने और अधिक मेहनत करने का फैसला ले लिया !
मां की ममता से कुछ नहीं छूपता ! मां ने पत्र पढ़ते भांप लिया.... पत्र लिखते लिखते बेटे की तकलीफ आँसू बन स्याही को फैला गई है....! ****
10 . उदाहरण
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सीमा का ब्याह एक प्रतिष्ठित घराने में हुआ था ! घर क्या था राजनीति का अखाड़ा था और क्यों ना हो ससुर जी की संसद में अपनी सीट थी , जेठ विधान भवन में कार्यरत थे, पति धर्मेश का अपना अलग ही महत्व था !चुनाव के समय भागदौड़ का काम उन्ही का तो था !
राजनीति का खेल खेलने में सभी ने महारथी हासिल की थी !
नयी नयी शादी , बड़ों बड़ों के साथ उठना बैठना ,मान सम्मान सभी तो था! पति का प्यार.... मैं बहुत खुश थी!
धीरे-धीरे घर की बारीकियां बंद खिड़कियों के पर्दे खुलने से स्पष्ट होने लगी ! सास बातों बातों में कहती सीमा कमान को कस कर रखना तुम्हें अपना तीर चलाना होगा ... कहीं ढील ना देना !
मां मैं कुछ समझी नहीं !
बेटा समझने में कहीं देर ना हो जाए !
एक दिन रात ..... मां आप लिविंग रूम में क्यों सो रहे हैं ? बस यूं ही बेटा नींद नहीं आ रही थी तभी .... शराब के नशे में ससुर जी ललना को लिए रूम से बाहर आते दिखे ! जेठ, पति सभी की अपनी आजादी और शौख थे !
आज पुत्र रौशन पूरे दस वर्ष का हो गया! जन्मदिन की पार्टी में बड़े बड़े नेता, अभिनेता उपस्थित थे.... पार्टी जोरों पर थी! तभी किसी ने कहा यार धर्मेश पुत्र तो हूबहू तुम्हारा अक्स है! रौशन ने कहा हां! मैं बड़ा होकर एकदम अपने पिता और दादाजी के जैसे बनूंगा!
पास खड़ी दादी चींखी ..... नहीं फिर एक उदाहरण...
वातावरण में सन्नाटा छा गया... केवल एक शब्द 'फिर एक उदाहरण ' की गूंज दीवारों से टकरा कानों में गूंज रहे थे! ****
11 .वज्रपात
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शीला बहुत ही स्वछंद और बिंदास मिजाज की थी ! कम शब्दों में कहें तो उसे किसी भी तरह का अंकुश पसंद नहीं था ! उसके आस पडो़स वाले अपनी बेटी को उसके साथ रहे पसंद नही करते थे ! शीला यह जानती थी ! शीला का मानना था स्वतंत्र खयाल और आधुनिक तौर तरीके के( मर्यादित कपडे़ पहनती थी )कपडे़ पहनने से कोई लड़की गलत नहीं होती बल्कि अपनी इच्छा को माता पिता द्वारा दबते देख चोरी छिपे आनंद की पूर्ति करते हैं वह गलत है ! कांता और दिनेश की पुत्री अंजना शीला के साथ ही एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं उनका एक बेटा भी है जो अंजना से बडा़ है !अपने आपको संस्कारी कहते हैं !बडा़ गर्व है उन्हें अपने बेटे बेटी पर....उनके अंकुश में जो हैं ! उन्हें तो जो सामने दिखता है वही सही लगता है !
एक दिन कॉलेज के प्रिंसीपल ने अंजना के माता पिता को बुलाया और कहा आज क्लास में अंजना बेहोश हो गई ...अभी प्रिंसीपल ने वाक्य पूरा भी नहीं किया था तुरंत माता पिता ने कहा क्या हुआ मेरी बेटी को ..क्या हुआ ...गभराहट में रोने लगे !सुबह तो ठीक थी अचानक क्या हो गया ...डाक्टर ने देखा क्या?
कुछ सिरीयस तो नहीं है ना प्रश्नों की झड़ी लगा दी ! आखिर उनकी लाडली बेटी थी ! उनके संस्कार में पली उनका अभिमान थी !
प्रिंसीपल ने कहा सिरीयस तो है....आपकी बेटी मां बनने वाली है! एक वज्रपात ....मानो उनके अहंकार पर गिरा जिसके टूकड़ो की गूंज चारों दिशाओं में फैलकर उन्हें जीवन भर सुनाई देती रहेगी ! ****
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क्रमांक - 05
जन्मतिथि: 15 मार्च 1950
जन्मस्थान : पटना ( बिहार)
शिक्षा-- बी,काॅम डी बी एम
संप्रति: -
एयर इंडिया में कार्य करते हुए डिप्टी मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त
प्रकाशित कृतियाँ: -
1) टुकड़ा टुकड़ा सच ( लघुकथा संग्रह 2011)
2) सच का दर्पण ( लघुकथा संग्रह 2017)
3) मेरी सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएं ( लघुकथा संग्रह 2019)
4) चेहरे पर चेहरा ( कहानी संग्रह 2021 ) लोकार्पण को तैयार
सम्पादन कृति : -
शब्द लिखेंगे इतिहास (लघुकथा संकलन का संपादन 2018)
सम्मान: -
एयर इंडिया राजभाषा पुरस्कार, कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार,
पहचान, जैमिनी अकादमी, राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता, एवं कई अन्य प्रतियोगिताओं में लघुकथाएं पुरस्कृत
पता : -
महावीर दर्शन सोसायटी प्लाट नं--11 सी सेक्टर-20, खारघर नवीं मुंबई--410210 महाराष्ट्र
1.अशुभ बहू
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पूनम जब से विधवा हुई तब से पूरे परिवार की उपेक्षाओं का शिकार होने लगी थी।सास उसे अशुभ समझती थी, जेठ एक बोझ एवं ननद एक अभागिन। पति की मौत का सबसे ज्यादा दुख तो पूनम को ही था पर वास्तविकता पे सभी पर्दा डाल रहे थे। सतीश को शराब पीकर मोटरसाइकिल चलाने से कितनी बार रोका था उसने। जिस बात से सदा रोका ,उस पर कभी ध्यान नहीं दिया सतीश ने। शराब पीकर तेज गति से मोटरसाइकिल चलाने से ही हुआ था एक्सीडेंट। अपनी मौत का जिम्मेदार तो वह खुद ही था पर परिवार वाले तो पूनम को ही जिम्मेदार मानते थे।सोचते थे -- अवश्य ही पति - पत्नी में कुछ कहासुनी हुई होगी, कुछ डिमांड कर दी होगी या किसी बात पे उलाहना दिया होगा। विचलित मन से ड्राइविंग करना तो खतरनाक होता ही है।
एक दिन अचानक ही परिवार का पूनम के प्रति व्यवहार बदल गया। अब उसे अशुभ नहीं माना जा रहा था। अकस्मात अपने प्रति परिवार को विनम्र हुआ देख, हैरान थी पूनम।अब उसका बहुत ध्यान भी रखा जा रहा था। पता चला कि सतीश का दस लाख रुपए का बीमा हुआ था। यह बीमा -राशि पूनम को ही मिलने वाली थी।****
2. पत्थरबाज
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जन्नत सी कश्मीर में जहन्नुम सा माहौल। अब सेब थैले में भरकर नहीं बास्केट में भरकर ले जाना पङता क्योंकि थैले में भरा सेब दहशत पैदा कर देता।
बस गिने -चुने नवजवान ही बचे थे।जिन्हें वतन से प्यार था ,वे फौज में चले गये और जिन्हें सिर्फ कश्मीर से प्यार था ,वे आतंकियों के खेमे में पहुंच गये।
करीम मियां ने अपने जमाने में वाकई में कश्मीर में जन्नत का नजारा देखा था।कश्ती में प्रेमी-जोङियों का प्रेमालाप ,डल झील की शर्मिंदगी और बर्फ के ओलों की शरारत। सैलानियों को जब घुमाकर लाता तो लोग काफी तारीफ करते। हर रोज उसे ईदीदी मिलती।
अचानक माहौल बदल गया। ओले की जगह गोले बरसने लगे।सात समंदर पार से आने वाला पर्यटक सही सलामत वापस चला जाता पर कश्मीर का ही निवासी अंधेरी रात में आतंकियों का शिकार हो जाता ।भला हो बङे बेटे हामिद का जो फौज में चला गया। काश ! अनीस भी सही रास्ता पकङ लेता तो करीम मियां को काफी तसल्ली मिल जाती।पर वह तो बहकावे में आकर पत्थरबाज बन गया।
डल झील के करीब बैठा करीम मियां कश्मीर की हरी वादियों की यादों में खोया था तभी दना-दन गोलियां चलने की आवाज़ सुनाई पङी। मुङकर देखा तो एक तरफ से जवान गोलियां चला रहे थे तो दूसरी ओर से जेहादी पत्थर।
चंद मिनटों में सब शांत हो गया। कुछ पत्थरबाज भाग गये और कुछ मारे गये। करीम मियां उस ओर दौड़ पड़े। करीब जाकर देखा तो स्तब्ध रह गया-- सामने अनीस की लाश पङी थी। वह सिर थामकर बैठ गया। बहुत साहस कर जब उठा तो देखा-- सामने हामिद खङा है बंदूक लिए। जवान अपनी गोली के शिकार को देखने आया था। पर यह पत्थरबाज तो उसका ही- - - - । ****
3. अब तस्वीर ही पिता
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जिस गांव में कभी सरकारी गाड़ी नहीं आई थी, कभी किसी मंत्री का दौरा नहीं हुआ था, आज उसी गांव में पूरा हिंदुस्तान उमङ पङा।
विक्रम सिंह कभी इसी गांव से तिरंगा लहराते हुए सेना में भर्ती होने के लिए गया था और भर्ती भी हो गया पर किसे पता था कि शहादत के बाद उसका पार्थिव शरीर इसी तिरंगे में लिपटा कर लाया जायेगा। ज्योंही शहीद विक्रम सिंह के पार्थिव शरीर को धरती मां की गोद में उतारा गया तो शहीद विक्रम सिंह अमर रहे, हिंदुस्तान जिंदाबाद के नारे गूंज उठे। लोंगो के नयनों में नीर, मन में पीर पर चेहरे पे वीर के भाव मौजूद दिखे। पत्नी की आंखों के आंसू को पोछने के लिए करोड़ों हाथ बढें तो आंसू ही सूख गये। पहली बार उसका पति हिंदुस्तान का लाडला लगा। तब हंसी एवं गम के चंद बूंद निकल पङे। वास्तविकता से अनभिज्ञ पांच वर्ष का बालक भीङ देख कर घबरा गया। भीङ में पिता को ढूंढने लगा। उसे पता है कि मां की आंखों में जब भी आंसू बहते हैं तो पिताजी ही पोंछतें है। फिर आज पिताजी किधर है ? और बालक रोने लगा। बेटे को रोता देख मां भी बिलख पङी। तभी अचानक एक जवान ने आगे बढ़कर बच्चे को गोद में ले लिया।
उसने बालक को भीङ से अलग ले जाकर घास जैसी चादर पर बिठा दिया और पैकेट से उसके पिता की तस्वीर निकाल कर पकङा दिया। तब बालक के आंसू थम गये। वह पिताजी की तस्वीर को चूमकर नाच उठा। ****
4. बेशर्मी
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अचानक तेज बारिश होने लगी। लोग बारिश से बचने के लिए एक चाय की टपरी में घुस गये। जगह कम थी फिर भी सब बारिश से बचने के असफल प्रयास कर रहे थे।
थोड़ी देर बाद एक नवयुवती भी आकर खङी हो गई। भींगने की वजह से उसके कपङे बदन से चिपक गये थे। सीने पे दुपट्टा भी नहीं था। सभी की निगाहें उसके भींगे बदन पे रेंगने लगी। नवयुवती तब असहज महसूस करने लगी। अपने दोनों हाथों को दुपट्टा बना कर वक्ष को ढकने का असफल प्रयास की।तब तेज हवा के झोंके से कमर का नग्न भाग कामुक नजरों का शिकार हो गया। बारिश इतनी तेज हो गई कि नवयुवती चाह कर भी जाना नहीं चाही।
एक अधेड़ उम्र की महिला सब की नजरों की हरकतें देख रही थी। लोंगो की कामुक मानसिकता पे बहुत गुस्सा आ रहा था। स्थिति जब असहनीय हो गई तब उस नवयुवती के आगे दीवार बन कर खङी हो गई और आंखें तरेर कर एक-एक को घूरने लगी। पराजित नजरें शर्म से झुक गई . *****
5. धर्म- निर्वाह
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रामखेलावन शिवलिंग पर दूध चढाने के लिए मंदिर पहुंचा। द्वार पर ही एक भिखारिन। उसकी गोद में उसका बच्चा भूख से चिल्ला-चिल्ला कर मां की स्तन पर मुंह मार रहा था। रामखेलावन को उस पर तरस आ गया पर यह तो शिवलिंग पर चढाने वाला दूध है। मन कठोर कर मंदिर में प्रविष्ट हो गया।
किसी पंडित ने कहा था कि लगातार इक्कीस दिनों तक शिवलिंग पर दूध चढाने से उसके सारे कष्ट दूर हो जायेंगे और आज उसका इक्कीसवां दिन ही है। भला किये करायें पर पानी कैसे फेर दे।
वह शिवलिंग पर दूध चढाने लगा तभी नजरों के सामने नजर आया-- एक परेशान भिखारिन की मजबूरी और भूख से बिलखता उसका बच्चा। दूध ढारते-ढारते रामखेलावन रूक गया। वह तेजी से वापस लौट पङा।
भिखारिन अभी भी वही खङी थी पर बच्चा शांत था। शायद अब चिल्लाने की शक्ति नहीं रही किन्तु मां के स्तन पर मुंह मार कर दूध पाने का असफल प्रयास जारी था।रामखेलावन ने तब लोटे में बचा सारा दूध भिखारिन के कटोरे में डाल दिया। भिखारिन विस्तारित नेत्रों से देखने लगी -- लगा एक भक्त का धर्म भ्रष्ट कर दिया पर रामखेलावन ने धर्म का निर्वाह करते हुए कहा-- पिला दो बच्चे को सारा दूध- - यह भगवान का प्रसाद है। "
भिखारिन तब मंदिर के बदले सिर्फ उस इंसान को देखती रही। ****
6. भूख
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कोरोना के कहर से परेशान मजदूर पैदल गांव की ओर चल पड़े। रास्ते में पुलिस के डर से रमुआ भाग खङा हुआ। तभी एक आदमी मिला तो पूछा- " क्यों भाई तुम भाग क्यों रहे हो ?"
-- पुलिस डंडे मार रही है।
-- क्यों ?
-- पैदल गांव जा रहा हूं।
-- गांव क्यों जा रहे हो ?
-- यहां काम - धंधा नहीं है- - - खाने को लाले पङे है।
--- मजदूर हो न ?
-- हां ।
--- तो मजदूरी करोगे- - खाना और खोली सब मिलेगा।
-- काम क्या है ?
-- कब्रें खोदना है।
-- किनके लिए ?
-- कोरोना महामारी से मरे लोगों के लिए।
रमुआ थोड़ी देर सोचता रहा फिर आगे बढ़कर कुदाल उठा लिया। *****
7. ज्ञान
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कश्मीर की घाटी और सरहदी इलाका। दो आतंकी एक घर में घुसे। पंडित जी और उनकी पत्नी घबरा गये। आतंकी ने बंदूक तानते हुए पूछा-- " तुम हिंदू हो या मुस्लिम ?
पंडित जी ने बहुत साहस कर बोला-- " ये दाढ़ी नहीं देख रहे, मैं भी तुम जैसा ही मुसलमान हूं। "
" अगर मुसलमान हो तो कुरान की आयत सुनाओ। " आतंकी ने कहा।
पंडित जी तब पेशोपेश में पङ गये। मन ही मन भगवान को याद कर गीता का श्लोक सुना दिया। आतंकवादी वापस चले गये।
पंडिताईन तब घबराती हुई बोली-- " एक तो आपने इतना बड़ा झूठ बोला, ऊपर से कुरान के आयत के बदले गीता का श्लोक सुना दिया। अगर वो जान से मार देते तो?
पंडित जी ने तब हंसते हुए कहा-- भाग्यवान, अगर उन्हें इतना ही ज्ञान होता तो आतंकवादी क्यों बनते । ****
8. चिनगारी
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फैजल अपने खास मित्र के साथ रंगीन शाम का लुफ्त उठा रहा था। जाम के साथ-साथ जम्हूरियत पे अच्छी चर्चा होती हैं। तभी उसके इलाके के कुछ नवजवान मिलने आये। फैजल ने गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहा-- " अरे! करीम,रहमान, माइकल ,दीनू क्या बात है भाई ? "
सबने एक साथ कहा-- " भाई साहब, ये नागरिकता कानून का मामला कुछ समझ में नहीं आया रहा । "
फैजल ने असलियत बताने के बजाय मौके का फायदा उठाना उचित समझा और बरगलाते हुए कहा-- " यह सरकार एक खास समुदाय के लोगों के साथ नाइंसाफ़ी कर रही है ।"
" मतलब मुसलमानों से ? "
फैजल सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया और उसका सियासती साथीदार ने सुरूर में सिर हिलाकर सहमति जताया।
तब करीम ने गरजते हुए कहा-- " हम मुसलमान हुए तो क्या, ये हमारा भी मुल्क है। अशफाक उल्ला खां, अब्दुल कलाम, अब्दुल हमीद और जाकिर हुसैन का मुल्क है। हम चुप नहीं रह सकते, आग लगा देंगे। "
फैजल ने तब सिगरेट जलाकर लाईटर करीम की ओर बढा दिया। ****
9. पत्थरों के भाव
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पत्थरों की गिनती हो रही थी और उसी के अनुसार पैसे दिये जा रहे थे। वाशिम के थैली में पांच पत्थर अभी भी बचे हुए थे। बशीर ने झट से कह डाला-- " तुम्हें तो बीस पत्थर दिये थे, पांच बच गये तो उसके पैसे कट जायेंगे। "
" नहीं उस्ताद, मैंने तो पूरे बीस पत्थर मारे थे। बाद में पांच चुन कर रख लिए अपने बचाव के लिए। ****
10. एक छुपा हुआ किरदार
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काॅल बेल बजते ही संजय की धङकने बढ गई दरवाजा खोलने पर आशा के अनुरूप सलोनी ही दिखी। संजय मन ही मन प्रसन्न हो गया। काफी दिनों के बाद आज इत्मीनान से सलोनी के साथ समय गुजारने का अवसर मिलेगा। पत्नी जो घर पर नहीं है।
जब से सलोनी ने संजय के बेटे को पढाने की शुरुआत की ,संजय ने ईवनिंग वाॅक बंद कर दिया ।सलोनी उसके बेटे को पढाती और वह नजरें बचाकर सलोनी को निहारता रहता। सलोनी की खूबसूरती, मधुर मुस्कान, शालीनता भरे लफ्ज़ उसे बहुत अच्छे लगते। धीरे-धीरे सलोनी भी अच्छी लगने लगी। उसने ईवनिंग टी का टाइम भी चेंज कर दिया। अब रोहित की पढाई पूरी होने के बाद ही चाय पीता ताकि औपचारिकवश पत्नी सलोनी को भी चाय दे सके। सलोनी के संग चाय पीने का लुत्फ़ ही बढ जाता।
पत्नी पति की मंशा, सलोनी के प्रति बढता उसका आकर्षण और शाम में नियमित मौजूदगी सब चुपचाप बर्दाश्त करती रही क्योंकि उसके बेटे के भविष्य का सवाल था। सिर्फ संजय इन सब से बेखबर अपने नये किरदार पर इतराता रहा।
पति पत्नी के बीच सैंडविच बनी सलोनी भी सब समझ रही थी। लोंगो का उसके प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं रही ।हर घर की यही कहानी थी। भला ऐसे में अपना व्यवसाय क्यों छोड़ दे। वह बहुत ही ईमानदारी एवं सतर्कता से सब संभालती रहती।
जैसे ही रोहित की पढाई पूरी हुई ,संजय ट्रे में चाय एव नाश्ता लेकर हाजिर हो गया। सलोनी तब बोली-- " आज चाय नहीं ले सकती, थोड़ी जल्दी है और आपकी पत्नी भी नहीं है तो अच्छा नहीं लगता। "
" अरे! वह शापिंग करने गई है और आपका ख्याल रखने को कहकर गई है। आप चिंता न करें। आपको देर नहीं होगी, मैं ड्राॅप कर दूंगा। दरअसल रोहित की पढाई एवं प्रगति के बारे मे कुछ बातें करनी है। "
सलोनी तब बेझिझक बोली-- " इसकी पढाई बहुत अच्छी तरह चल रही है। आपकी मौजूदगी में वह विशेष ध्यान देता। दरअसल लोग बच्चों को टयूटर के हवाले कर निश्चित हो जाते हैं। उन्हें चिंता नहीं रहती कि पढाई ठीक चल रही है या नहीं। कहीं उनका शारीरिक शोषण तो नहीं हो रहा ? पर आप एक आदर्श अभिभावक है जो अपने सारे कार्य को दरकिनार कर मौजूद रहते हैं। आप पूर्ण सम्मान के लायक है, एक गुरु की तरह। " इतना कहती हुई सलोनी निकल पङी।
ठंडी चाय की तरह संजय के सारे अरमान ठंडे हो गये। ****
11. संवेदनहीन
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--- सिस्टर, पापा को सांस लेने में तकलीफ हो रही है, जल्दी से एडमिट कर लीजिए।
-- पर बेड खाली नहीं है।
-- कुछ उपाय कीजिए सिस्टर। पोजिटिव होने के बाद उन्हें होम आइसोलेशन में रखा था पर अब तो सांस लेने में तकलीफ हो रही है।
सिस्टर बिना कुछ जवाब दिये चली गई। डाक्टर कहीं भी नजर नहीं आया तभी एक वार्ड बाॅय आया और बोला-- " थोड़ी देर और रूको - - कहीं जाना मत - - दो पेशेंट बहुत ही सीरियस है, एकाध घंटे का मेहमान- - तब बेड मिल जायेगा। " और उसने पांच ऊंगली दिखा कर एक इशारा किया। रिश्वतखोरी की सांकेतिक भाषा।
उसकी बात तो जीतू के समझ में आ गया पर वह निर्णय नहीं कर पाया कि भगवान से प्रार्थना किसके लिए करे-- अपने पिता के लिए या उन सीरियस मरीजों के लिए। असमंजस की स्थिति में संवेदनहीन हो इंतजार करने लगा। ****
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जन्म तिथि : 08/08/1955
शिक्षा : एम ए हिन्दी साहित्य , पी एच डी
पिता का नाम : श्री मोहनलाल जी शुक्ल
पति का नाम : श्री विजय रामदुलारे मिश्र
दो पुत्र :-
हेमंत मिश्रा : मेकेनिकल इंजी
मयूर मिश्रा : आई टी इंजी
स्थाई पता - - अभ्यंकरनगर नागपुर
व्यवसाय-- भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्ति
प्रकाशन विवरण
प्रकाशित पुस्तक/पुस्तकों की संख्या-04
अनुवादित मराठी और अंग्रेजी से हिंदी 03
प्रकाशित पुस्तकें : -
1---और शिला मानवी नहीं बनी
प्रकाशन वर्ष-सितंबर 1999
विधा कहानी
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के प्रकाशन अनुदान से सम्मानित /प्रकाशित।
2 सूखी स्याही
प्रकाशन वर्ष 2019
विधा लघुकथा संग्रह
25 वर्षों तक वायुसेना की हिन्दी पत्रिका किरण की संस्थापिका संपादिका। भारतीय वायुसेना से डिप्टी डायरेक्टर आॅफिशियल लैंग्वेज हिन्दी की वित्तीय संरचना से सेवानिवृत
सम्मान :-
ऑनलाइन प्राप्त सम्मान की संख्या-लगभग 30
प्रत्यक्ष में प्राप्त सम्मान की संख्या-35
अंतर्राष्ट्रीय अग्नि शिखा मंच की नागपुर इकाई अध्यक्ष ।
विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन नागपुर की संयोजन समिति की सदस्य
पता : -
श्री विजयकुमार मिश्र
नूतन भारत स्कूल के पास अभ्यंकरनगर नागपुर 440010 - महाराष्ट्र
1.खानदानी
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ओह ये मरी गर्मी तो जान लिए जा रही है।
उमस भरे उस कमरे में पंखे भी काम नहीं दे रहे थे। बडी़ सी खानदानी हवेली बडे़ बडे़ दामी पर्दों, चिक और ऊंचे रोशनदानों से सुसज्जित थी।
मीनल शहरी रीति रिवाजों में पली बढ़ी लडकी-- ब्याह कर उस बड़ी सी हवेली में आई। वह क्या जाने पर्दे और रोशनदानों की कहानियाँ। पति किसी कार्य से बाहर गांव गए थे। मीनल को उस उमस भरे कमरे में नींद नहीं आ रही थी। सासुजी ससुरजी और दादा ससुरजी अपने-अपने कमरे में आराम से सो रहे थे।उमस और गर्मी से परेशान मीनल ने कमरे में रखा पुराना सोफा बाहर हवेली के सामने बने छोटे से बगीचे में खींच लिया और उस पर लेट गई । ठंडी ठंडी खुशबूदार हवा में कब उसकी आंख लग गयी उसे पता ही नहीं चला।
सुबह सुबह आँख खुली। प्यारी पुरवैया के साथ नींद की खुमारी। मीनल बिलकुल भूल गई थी कि वह अपने खानदानी ससुराल में है।अंगडाई लेते हुए आराम से उठ कर बैठी तो उसने देखा कि कुछ ही दूर पर कुर्सी पर एक धुंधली सी आकृति दिखाई दे रही है।
हड़बडा़ई सी वह उठ कर खडी़ हो गई। देखा कि वे उसके पूजनीय वृद्ध दादा ससुरजी थे जो ना जाने कब से वहाँ बैठे थे। उनके चरणस्पर्श करते हुए मीनल ने पूछा दादाजी आप यहाँ इतनी सुबह?
- - - और उन्होने जो कहा उसे सुनकर मीनल खुद अपने आपमें शर्मिंदगी से भर गई - -" वे कह रहे थे बिटिया जिस घर की अनमोल बहू बेटियाँ खुले आसमान के नीचे बगीचे में बेसुध सो रही हों उस घर के बुजुर्ग को कैसे नींद आ सकेगी। अब खानदान की इज्ज़त की रक्षा की खातिर तुम्हारी चौकीदारी करने के लिए किसी नौकर को भी नहीं कह सकता था मैं। इसलिए मैंने ही यहाँ रात की पहरेदारी सँभाल ली - - कहते कहते वे अपने अर्धपोपले मुख से हँस दिए"--और मीनल उस पर तो घडों पानी पड़ गया था मानो। उनकी बात पर ना कुछ प्रतिक्रिया दे पाई ना कुछ कह पाई-- चुपचाप अपने कमरे में चली आई---- खानदान की आन- बान- शान को सदैव बनाए रखने के दृढ़ संकल्प के साथ। ****
2.अनचीन्हे रिश्ते
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आओ ना--आओ ना ओ बाबूजी देखो तो अभी बहुत जलवे बाकी हैं मेरे पास। डांस करूंगी गाना गाऊंगी हर तरह से खुश करूंगी। आओ ना बाबू। बीस पच्चीस छोटी छोटी कोठरियों के दरवाजे छज्जे या खिड़कियों से उठती आवाजें मुनीश को विचलित कर देतीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह देना चाहता कि मैं कोई बाबू नहीं हूँ। तुम जैसा ही एक मजदूर हूँ। तुम अपना हुनर बेचती हो और मैं दिमाग बेचकर पेट भरने का एक जरिया तलाश करता हूँ।
उस गली के शाॅर्टकट से स्टेशन पर निकलते हुए रोज मुनीश सौ सौ लानते भेजता खुद पर मगर पाँच मिनट के लिए पच्चीस मिनट गँवाना उसे गवारा नहीं था।अतः वह वहीं से जाया करता।
छः महीने पहले ही वह अपने गाँव से इस मँझोले से शहर में आया था। यहां स्टेशन के पास एक कंप्यूटर सेंटर में बैठकर टिकिट निकालना, शहर में घूमने आने वालों को टैक्सी वाहन गाईड दिलवाना , होटल रूम दिलवाना आदि कार्य करता रहता।
अलबत्ता आधी रात के बाद वह बरबस उस मोगरा गली से ही होकर घर जाता। भीनी भीनी महक से महकती वह सुनसान गली उसे किसी मंदिर का सा आभास देती। साथ ही एक कोठरी के सामने रोज खिड़की पर बैठी वह तीन वर्षीय छोटी सी गुड़िया मानों राह देखती बैठी मिलती। उसकी प्यारी मुस्कान और चमकीली आँखें उसे पूरे समय पुकारती रहतीं।
एकबार लगातार तीन चार दिन वह बच्ची नहीं दिखाई दी तो मुनीश की बेचैनी बहुत बढ़ गई और अपना पूरा साहस बटोर कर उसने द्वार खटका दिया। द्वार सहज ही खुल गया। भीतर के टिमटिमाते बल्ब में देखा कि एक अत्यंत क्षीणकाया मटमैले बिस्तर पर बेहोश सी पड़ी है और उसके सिरहाने वही बच्ची रो रही है। एक अनजानी करुणा से मुनीश का दिल सिहर गया। बच्ची के प्यार से बँधे उसके फर्ज ने उसे साहस दिया। पुलिस को फोन लगाकर उसने पूरी स्थिति बतायी।पुलिस ने वहां पहुंच कर उस बच्ची की माँ को अस्पताल पहुंचाया और बच्ची को अनाथाश्रम भेजने की कार्रवाई करने लगे। लेकिन मुनीश की करुणा - - - बीच में आ गई और बच्ची को अपनी भानजी बताकर उसने बच्ची को अपने पास रखने की प्रार्थना की। न जाने क्या सोचकर बच्ची की माँ ने भी इस रिश्ते की हामी भर दी और बहन ने भाई को अपनी बच्ची सौंप दी। पुलिस वालों ने भी मानवता की पुकार पर परिस्थितियों की गंभीरता को समझते हुए बच्ची को उसकी तथाकथित नानी और मामा को सौंप दिया कुछ डाक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर करवाके। - - - और करुणा का मूर्तिमंत रूप बने वे अनचीन्हे रिश्ते खुद पर ही गौरवान्वित हो उठे। ****
3.क्या सचमुच बसंत आया था
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चिड़िया अपने घोंसले में बैठी चूज़ों को दाना चुगा रही थी। इतने में ठंडी सी बयार के साथ महमह महकती गंध घोंसले में घुस आई। चिड़िया मदहोश सी उस बसंती बयार में उब-डूब होने लगी। चूजे सीपी सी चोंच खोलकर चिड़िया को तकते रहे लेकिन चिड़िया तो भटक गई थी बसंत की लरजती पुकार पर----घोंसले से बाहर झांका। अनाज के खेत में सुनहरी बाली के साथ फुनगी पर वह दिखा। अहा कितना सुदर्शन कितना खूबसूरत कितने प्यारे रंगों में ढला है उसका वजूद तो पूरा वसंत अपने भीतर समेटे है। चिड़िया सम्मोहित सी उसकी ओर उड़ चली। चूजे मुँह खोले चुग्गे की राह तकते रहे मगर चिरैया तो नव यौवना सी न्यौछावर हुई जा रही थी उस अनजान गंधर्व से चिडे़ की तनी हुई ग्रीवा और पंखों के रंग रूप पर उसकी यही कमजोरी उसे रुसवाई की राहों पर खींच ले गई। घोंसले के परले सिरे पर उदास सा खड़ा उसका चिड़ा-- उसके चूज़ों का जीवनदाता, उस चिड़िया की दीवानी उड़ान को देखता रह गया।सोचता सा कि बसंत तो दिलों को जोड़ने वाला पर्व है फिर उसका घर क्यों टूटा। बसंत ने उसकी चिड़िया को क्यों मोह लिया। कुछ समय बीत गया। लेकिन बसंत तो छलिया है। कब किसी एक का हुआ है भला। बसंत बीतते ना बीतते वह खूबसूरत रंगीला चिड़ा पंख पसारे उड़ गया किसी अनजानी मंजिल की ओर। यायावर था वह, कौनसे पडा़व उसे बाँध पाते! रह गई चिड़िया नये घोंसले में - -नयी दीवारों में कैद नये चूज़ों की जिम्मेदारियों के साथ। ना घर ही मिला ना विसाले सनम।।री चिरैया क्या सचमुच बसंत आया था? कि जज़्बातों का शोर उठा था हर ओर या बसंत की कामयाबी का जोर उठा था हर ओर।। ****
4.बदलाव
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दस वर्षीय रीनी से डैडी ने कहा - - "बेटा ताऊजी को प्रणाम करो" । बड़े नखरे से रीनी ने ताऊजी के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया। ताऊजी ने पीठ पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। रीनी एकदम छिटक कर अलग हो गई- - बोली "ताऊजी बॅड मॅनर्स--गर्ल्स की पीठ पर हाथ नहीं रखते। " ताऊजी सकते में खड़े रह गये। सोचते रह गए मानवीय सांस्कृतिक व्यवहार की परिभाषाओं में आए बदलाव के बारे में - आशीर्वाद के अर्थ के बारे में और आज की दस वर्षीय सोच के बारे में।****
5.उसकी ईदी
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आज की ईद असलम के लिए सचमुच बड़ी मुबारक है। आज ईदी के रूप में उसे भारतीय वायुसेना के शिक्षा निदेशालय की एक यूनिट में एल ए सी के पद पर नियुक्ति और ट्रेनिंग पर जाने का आदेश मिला है। आखिरकार उसने साबित कर दिया कि वो एक सच्चा हिन्दुस्तानी है। बचपन से ही उसे सेना में नौकरी करने का जुनून की हद तक शौक था। बार्डर से कुछ ही दूर सेना कैंप के पास की बस्ती में असलम के पिता की हार्डवेयर की शाप थी। छोटी सी कील से लेकर घर की लौह अलमारी तक वे मंगवा देते थे इसी बिजनेस के चलते उनके अच्छे व्यापारिक संबंध थे! "हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता साहब" यह उनका तकिया कलाम था- - - - और आज असलम की वायुसेना में नियुक्ति ने उनकी ईद यादगार बना दी थी।
पिछले दिनों होली के दौरान असलम ने अपनी जान पर खेलकर स्कूली बच्चों की एक बस को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाया था! उसके सीवी बायोडाटा में ऐसे अनेक प्रसंग शामिल थे और आज ईद की दुआएँ उसके लिए देशसेवा का पैगाम लाई थीं। परंतु किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। कुछ असामाजिक तत्वों ने शाम को मंदिर मस्जिद में सुअर और गाय का मांस फेंक कर दंगों को न्यौता दे दिया था। अपनी सरकारी ईदी बाल सखा मोहन को दिखाने पहुंचा असलम दंगाईयों के बीच घिर गया । मोहन पर पड़ने वाला वार असलम ने खुद पर झेल लिया - - - अल्लाह ने उसे सबाब का वाली बना दिया और हाथ में --ईद का तोहफा रक्षामंत्रालय का नियुक्ति पत्र सिग्नल उसके हाथों में फड़फड़ाता रहा-- फड़फडाती ही रह गयी उसकी चिरसंचित तमन्ना - - उसकी ईदी सेना में नौकरी की। ***
6.किसका सच?
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ना जाने क्या हो गया है छोटे को आजकल । कभी कभी अपने आप में गुम सिर्फ पत्नी से बात करेगा और निकल लेगा। कभी अजीब सी वीरान निगाह से बहन को निहारेगा
ससुराल वासी बडी बहन जो एक पारिवारिक फंक्शन में शामिल होने के लिए मायके आई थी-- अपने आप को बड़ी उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रही थी मगर बात की तह तक नहीं पहुंच पा रही थी।
शाम को माँ बाबूजी के साथ बैठकर हँसती बतियाती सुधा एकाएक चौंक गई छोटू के शब्दों से--पत्नी से कह रहा था पूछ लो बहनजी से घर का कौनसा हिस्सा उनके नाम लिखवाना है। नहीं तो अपनी कहानी की पात्र कामिनी की तरह हंगामे मचा देंगी पिता की प्रापर्टी में हिस्सा लेने के लिए।
मानों साँप सूंघ गया उस खिलखिलाती संध्या में सब को और सोचती रह गयी सुधा--कि मायके के लिए शुभाकांक्षा जिसकी रग रग में बसी है, भाई की सुखी गृहस्थी के लिए पल पल प्रभु से दुआएं मांगती है - - - मगर नारी के हक में बोलने वाली , नारीवादी विचारों की रचनाकार सुधा क्या सचमुच भीतर से इतनी स्वार्थी है? रचनाकार के सृजन को क्यों उसके जीवन की सच्चाई मान लिया जाता है - - साहित्य तो समष्टि के कल्याण के लिए किया गया सृजन होता है उसे क्यों व्यष्टि के लिए अनिवार्य सच मान लिया जाता है। आखिर क्यों? कब तक? *****
7. एक झोंका
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हां हां बोल ले जीजी जितना बोलना है। तू तो माँ है - - दादी है ना। मैं तो ठहरी बंझोटी विधवा मुझे क्या हक है तेरे बेटे तेरे पोते को कुछ कहने का।
नन्हा सा बालक मधुर गौर से दादी माँ और मौसी दादी की बातें सुन रहा था - - - एकाएक दादी माँ से कहा दादी मौसी ने मुझे नहीं मारा मैं मिट्टी में खेल रहा था और गिर गया।
अबोध बालक की संवेदना मौसीदादी के जख्मों को सहला गई। तत्काल उसे छाती से लगा लिया और 62 वर्ष की उम्र की वह वृद्धा 42 वर्षों के कटु वैधव्य और रिश्ते विहीन, संवेदनहीन जीवन की समस्त कटुता के पार नन्हे मधुर के छोटे से झूठ के रूप में अपनी गूंगी ममता का प्रतिदान पाकर फूल सी हल्की हो गई और चल दी अपने कान्हा जी को शयन करवाने। चालीस सालों में पहली बार उस भावहीन चेहरे की कठोरता के पीछे से झांकती मीठी सी संतुष्टि उस परिवार की भी संतुष्टि बन गई।****
8. बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ
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पापा पापा मां ने छोटी गुड़िया को अभी तक दूध नहीं पिलाया। रो रही थीं बस।
मंझली बेटी की बात सुनकर बिष्णुप्रसाद उठ कर पत्नी के पास चल दिए। उन्हें देखकर मंजुला ने आंसु पोंछ लिए और बोली माफ कर दीजिए जी - - तीसरी बार भी मैं आपको बेटा नहीं दे पाई। आपके वंश का चिराग नहीं दे पाई
क्या मालूम ऐसा कैसे हो सकता है जी - - मुझे तो डॉक्टर ने कहा था कि मेरे गर्भ में बेटा पल रहा
है। पर अब यह तीसरी भी आ गई छाती पर मूंग दलने।
मंजुला की बातें सुनकर बिष्णुप्रसाद मंद मंद मुस्कुराते रहे फिर बोले अरे पगली मेरे लिए बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है। मैं तुम्हारे मन को समझ रहा था - - अपनी दुविधा के चलते तुम कोई गलत कदम ना उठालो इसलिए मैंने ही डाॅ से कहा था कि तुम्हें बेटा ही बताए।
चलो कोई बात नहीं हम इस तृतीया को अनाथालय में दे देते हैं या किसी को गोद देते हैं।
बिष्णुप्रसाद की बात सुनकर मंजुला ने आंख भरकर तृतीया की ओर देखा। गोल चांद सी दमकती गुलगोथनी आंखें मूदें सपनों की दुनिया में मुस्करा रही थी।
बोल उठी नहीं जी अब आ ही गई है तो पल भी जाएगी जी। किसी को क्यों दें। और बिष्णुप्रसाद मन ही मन धन्यवाद करने लगे उस क्षण का जब "बेटी बचाओ बेटी पढाओ" अभियान के एक विज्ञापन से प्रेरित होकर उन्होंने मंजुला से झूठ बोलने का विचार बना लिया था और डाॅ से भी कहलवा दिया था--- बिना किसी जांच के ही। उन्होंने देखा कि मंजुला तृतीया को अपने अंक में भरकर अपने आप में मगन सी बोले जा रही थी---मेरी गुड़िया मेरी लाडो - - - तुझे खूब पढाउंगी खूब विद्या दूंगी---तुझे मैं अपने देश की बड़ी अच्छी नागरिक बनाऊंगी ---
और बिष्णुप्रसाद भी खुशबू और खुशी का हाथ थामे चल दिए उन्हें विद्यालय पहुंचाने जहाँ बडे़ बड़े अक्षरों में लिखा था #"बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ"---।। *****
9. बिना शीर्षक का वृद्धाश्रम
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बहू ओ बहू जरा सुन तो बेटा--ये पैरों का दर्द चैन नहीं लेने दे रहा है थोड़ा गरम पानी दे दे सिंकाई करूंगी तो अच्छा लगेगा---कराहती कांखती अम्मा चौथी बार गुहार कर रही थी लेकिन सोफे पर बैठी टीवी देख रही बहू के कानों पर जूं नहीं रेंगी। फोन बंद कर जोर से सास का हाथ पकड कर उसे पीछे वाले दडबेनुमा कमरे में ले जाकर झिलंगी खाट पर बैठा दिया - चीखती हुई बोली" कितनी बार कहा है अपने कमरे में ही रहा करो बाहर ना निकला करो सुनती ही नहीं हो खबरदार जो अब बाहर निकली।मेरी सहेलियों के साथ आकर बैठने की जरूरत नहीं है - -चुपचाप बैठी रहो कमरे में"
रेखा की सहेलियाँ बतिया रहीं थी। टाॅपिक था वे लोग जो अपने वृद्ध मां बाप को वृद्धाश्रम में पहुंचा देते हैं कैसा कलेजा होगा कितने गिरे हुए होते हैं वे लोग आदि। इतने में एक सहेली ने पूछा अरे रेखा तेरी सासु माँ नहीं दिख रहीं हैं कहां हैं? बडे गर्व से रेखा ने बताया कि वे अपने कमरे में आराम कर रहीं हैं, हम उन्हें वक्त बेवक्त परेशान नहीं करते। अपनी मर्ज़ी की मालिक हैं।
एक पल के लिए भी उस कमरे से निकल कर बेटे बहू पोते के साथ बैठने को तरसती हुई--घर की किसी भी बात में हस्तक्षेप न करने की हिदायतों से सहमी--कमरे से बाहर बहू की परमिशन के बिना न आने से बंधी अम्मा अपने घर के भीतर के उस वृद्धाश्रम में बैठी इंतजार कर रही हैं- - जब सबका खाना पीना होने के बाद उसे भी कुछ टुकड़े मिल जाएंगे और अपनी मर्जी की मालकिन नींद उनके साथ साथ उनकी भावुक तमन्नाओं को भी सुला देगी। ****
10.मूर्तिमान करुणा
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लाॅक डाउन के चलते उस बदनाम "लाल गली" का सूनापन बड़ा भयावह लगता।आमने-सामने मिलाकर कुल बीस छोटे-छोटे घरों की वह गली - - हर दरवाजे पर अधमैले से पर्दे के भीतर टिमटिमाते बल्ब की रोशनी उस गली की बेबसी की कहानी बयां करती रहती।
गली के मुहाने पर ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल 59 वर्षीय माँगीलालजी बडे़ भावुक और दुःखी हो जाते वहां रहने वालों की स्थिति पर। सबसे ज्यादा बुरा लगता वहां गली में खेलते सात-आठ बच्चों को देखकर। अधनंगे से पेट पीठ से चिपके कुपोषित चार-पांच लड़के और तीन चार लड़कियाँ। हर पंद्रह बीस मिनट में एक ना एक कोठरी से पुकार आती जिसमें लडकों के नाम के साथ ही एक बड़ी ही वर्जित गाली भी होती। मैल से भरा वह चेहरा आतंकित हो जाता और उस वर्जित शब्द से शर्मिंदा भी। माँगीलालजी उन बच्चों से दूर - दूर से बतियाते रहते। उनकी भोली-भाली बातों, तमन्नाओं और पढ़ने की इच्छा से वे आप्लावित हो जाते---।
- - - और एक दिन पुनर्वास कार्यालय में एक आवेदन ने सबकी आँखे नम कर दीं जब उस बदनाम गली के बच्चों को गोद लेने की इच्छा के साथ उन सबको अपना नाम देने की इच्छा और अपने दस बारह कमरों के पैतृक घर को बच्चों के लिए आश्रम बनाने की मंशा जाहिर की थी निःसंतान माँगीलालजी दंपत्ति ने। समाज के ठेकेदारों की भौंहे तनें इससे पहले ही अनेक समाज सेवी संस्थाओं ने भी सहमति की मोहर लगा दी और मूर्तिमान करुणा का प्रतीक बन गया गाँव और शहर की सीमा पर बसा "नीड़ "!! ****
11. टोकरी में सूरज
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बड़ी आई छोटी औरत कहीं की। भाजी बेचने वाली होकर छोटा मुँह बड़ी बात करती है। कहती है सब्जी-भाजी बेच कर बेटे को बड़ा आदमी बनाएगी। अपनी औकात से बड़ी बात करती है। हुँह।
उस पाॅश कालोनी की सबसे अमीर महिला समझी जाने वाली मिसेज सिंह ने मुँह बिचका कर कहा और ठुमकती हुई अपने बँगले में प्रवेश कर लिया।
उसी समय उनके बेटे ने कालोनी के गेट के पास कार रोकी। उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर सब्जी वाली के पास खड़ी सारी महिलाएँ उससे उदासी का कारण पूछने लगी।
इससे पहले कि वह कुछ बोले सब्जी वाली का बेटा दौड़ता-दौड़ता आया और अपनी माँ के पाँव छू कर उसे खुशी से गोल गोल घुमा दिया - - - माँ मैं नीट की परीक्षा में पास हो गया हूँ। तेरी तपस्या सफल हो गई-- तेरा बेटा डॉ बनेगा माँ।
उसकी बात सुनकर वहाँ खडी सारी महिलाएं मिसेज सिंह के बेटे की उदासी का कारण समझ गयीं--अरे हाँ आशीष सिंह ने भी तो नीट की एक्झाम दी थी--और सचमुच उस सुरमयी शाम में गरीब सब्ची वाली की टोकरी में सूरज उतर आया था। ****
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क्रमांक - 7
जन्मतिथि : 21 दिसम्बर 1953
जन्मस्थान ऋषिकेश - उत्तराखंड
शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड
संप्रति : :सेवा निवृत हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई
कृतियाँ :-
प्रांतपर्वपयोधि (काव्य) ,दीपक ( नैतिक कहानियाँ),सृष्टि (खंडकाव्य),संगम (काव्य) अलबम (नैतिक कहानियाँ) , भारत महान (बालगीत) सार (निबंध), परिवर्तन सामाजिक प्रेरणाप्रद कहानियाँ।
दोहों में : मनुआ हुआ कबीर (923 दोहे )
प्रकाशन :
देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित , जारी हैं ।
उपलब्धियां :
समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माडर्न कॉलेज वाशी द्वारा गुण गौरव सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ , कहानियाँ, आलेख प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार से विद्या वाचस्पति से सम्मानित । नवभारत में प्रकाशन , नवभारत टाइम्स में मेरे मत , बोध कथा आदि प्रकाशित .सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि पाठक सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन , काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान , जैमिनी अकादमी लघुकथा प्रथम पुरस्कार , अग्निशिखा काव्य मंच काव्य सम्मान , मगसम रचना रजत प्रतिभा सम्मान , आशीर्वाद २४ घंटे कवि सम्मेलन काव्य पाठ , के जे . सोमैया मुबई पुरस्कृत , गुरु ब्रह्मा सन्मान , सबरंग कवि रत्न अवार्ड , कोपरेटर नवी मुंबई साहित्यसम्मान , इपीक लीटरी कौंसिल सम्मान , विश्व हिंदी संस्थान कनाडा से विश्व हिन्दी कथा शिल्पी सम्मान और हिंदी उपन्यास रचना सहभागी सम्मान ओंकार प्रतिष्ठान सम्मान , हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुम्बई , सेलिब्रेटिंग आईडिया जूरी पेनल सम्मान , नेपाल आकाशवाणी में मेरा साक्षात्कार , काव्य वाचन , आदि। मुंबई आकाशवाणी से जारी हैं कविता , कहानी , आलेख , मेरा साक्षात्कार आदि प्रसारण।
विशेष :
अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर गोल्डन बुक में प्रूडेंट पब्लिकेशन द्वारा मेरा बायोग्राफी 21 देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ प्रकाशित ।
लाइव कार्यक्रम फेसबुक पर भजन , काव्य , हाइकू , लघुकथा पाठ आदि का जारी ।
पता: -
वाशी, नवी मुंबई - 400703 महाराष्ट्र
1.गोद उठाई की रस्म
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" माँ ! जल्दी से नवजात के लिये ओढ़ना , बिछोना , कपड़े दो । '"
डॉ बेटी विभा ने अपनी माँ से कहा .
"अचानक ऐसा क्यों कह रही हो ?"
" अभी बस में प्रसव वेदना से पीड़िता ने लड़की को जन्म दिया है । विविध जाति , धर्म के लोगों से भरी बस में किसी ने भी उसकी सहायता नहीं की । संजोग से मेरे संग मेरी डॉ सहेली शिल्पा भी उसी बस में थी । अभी उसे नगरपालिका के अस्पताल में भर्ती करा के आयी हूँ । हमारी सहायता से डाक्टरों ने उस गरीब , दलित स्त्री को भर्ती करने में कोई आनाकानी नहीं की । उसके पति ने उसे छोड़ा हुआ है । उसे आर्थिक मदद भी चाहिए । "
" ठीक है , यह लो उसके पहनने के लिए मैक्सी , धोती , नवजात के लिए कम्बल ,चादर , कपड़े और जच्चा के लिए हरीरा , एक हजार का नोट भी और आगे भी उसे जरूरत होगी तो हम उसकी मदद करेंगे ।"
सब समान फटाफट थैले में भर चेहरे पर मानवता की मुस्कान लिए डॉ विभा फुर्ती से अस्पताल में पहुँची और दूसरे की अजनबी नवजात बेटी को अपनत्व की गोद में ले के गोद उठाई की रस्म कर खुशी से झूमने लगी और मानवता की रक्षा हेतु एक बेटी के कंधों ने दूसरी नवजात बेटी की ऊँगली थाम के उसकी माँ के हाथ में पर्स में से एक - एक हजार के दो नोट थमा के फिर मिलने का और आर्थिक मदद देने का वादा कर के दोनों सहेलियाँ फर्ज का आशियाना बन अपने घर चल दी . नवप्रसूता ने अपनी आँखों में गरीब - अमीर , जातिभेद , ऊँच - नीच की लकीर मिटी देख के उन दोनों की इंसानियत की ऊँचाई की चमक को देख रही थी . जो समरसता की गंगा बहा रही थीं ।
ऐसा महसूस कर थी जैसे लक्ष्मी ने लक्ष्मी का स्वागत कर खुशियों ने दिवाली मनायी है ।. ****
2. लाकडाउन की खुशी
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कोरोना काल में लीना अपने माँ के घर जाने की मन ही मन में सोच रही थी , नौवां महीना भी चढ़ गया , डिलीवरी किधर , कैसे होगी ? माँ के घर में तो सब सुख , सुविधाएँ हैं और माँ को तो बच्चे पालने का अनुभव भी है । ट्रेन भी नहीं चल रही है। कैसे माँ के घर जाऊँगी ?
सासु माँ ने कह दिया था , " पहला बच्चा माँ के घर ही होता है । "
पति ललित ने ध्यान मगन अपनी पत्नी लीना के कँधे पर हाथ रख के प्यार से कहा , " अरे लीना ! सरकार ने श्रमिक विशेष ट्रेन प्रवासी मजदूरों के लिए चला दी है । तुम अपनी माँ को फोन कर के कह दो कि आज हम आ रहे हैं ।"
"ठीक है।"
उत्साह के साथ लीना जाने की तैयारी में जुट गयी। ललित सुटकेस लिए लीना के संग मुंबई स्टेशन पर श्रमिक ट्रैन में बैठ गए।
ट्रैन छुक - छुक करते हुए अपनी गति पकड़ते ही स्टेशनों को छोड़ते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ी जा रही थी ।
लीना अपने चेहरे पर खुशी लिए बेसब्री से अपने माँ के घर देवास जाने के लिए स्टेशन गिने जा रही थी । देवास महज तीन स्टेशन की दूरी पर था ।
तभी लीना की असहनीय प्रसव वेदना शुरू हो गयी । कभी दर्द रुकते तो कभी तेज हो जाते थे ।
वहीं डिब्बे में सामने बैठी महिला ने कहा , " इसके दिन पूरे हो गये हैं , बच्चा होने पर ऐसे ही दर्द होते हैं ,
रेलवे प्रशासन से मदद मांगों । "
यह सुन के ललित ने रेलवे प्रशासन के अधिकारी को सारी बात बतायी , तुरंत अधिकारी ने डॉक्टर की टीम ललित की बोगी में भेजी ।
डॉक्टर ने लीना का चेकअप करके रेलवे अधिकारी को रेल रोकने को कहा ।
रेल के रुकते ही पुलिस अधिकारी की मदद लिए रेलवे के कर्मचारियों ने लीना को अस्पताल में भर्ती कराया ।
लीना के दर्द बढ़ते जा रहे थे । डॉक्टर ने उसे ढाढस बंधाया।
चेहरे पर मुस्कान लिए डॉक्टर ने आशीर्वाद देते हुए कहा ," लो यह तुम्हारे वंश की लाली पुत्र रत्न हुआ और बेटे ने लीना को माँ और ललित को पिता बनने के रिश्ते से जोड़ दिया । ललित ! इन दोनों का ध्यान रखना , यह मेरा फोन नम्बर है , जब भी लीना, बच्चे को कोई तकलीफ हो फोन से बताना । "
वरदान बना लाकडाउन ललित और लीना को खुशियाँ लुटा रहा था। ईश बने डॉक्टर ने लीना को पुनर्जन्म दिया और डॉक्टर के नाम पर ही अपने नवजात बेटे का प्रताप नाम रखा । *****
3. सच्ची श्रद्धांजलि
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कोलकता के वृद्धाश्रम के ' बहुउद्देशीय सेवा केंद्र ' द्वारा भेजे गए कोरियर में
" रीमा , बिल फॉर फ्युनरल यूअर मदर " को विस्मृत नेत्रों से पढ़कर इकलौती बेटी रीमा अपनी बूढ़ी माँ की अंतिम क्रिया में न शामिल होने के दुःख से फफक - फफक रो पड़ी . उस की अंतरआत्मा उसे धिक्कार रही थी . तभी पास बैठे उसके पति ने रीमा से रोने का कारण पूछा तो रीमा ने वह बिल दिखाया .
सांत्वना देते हुए पति ने उसका ढाढ़स बंधाया और फिर रीमा से कहा -
" तुम्हारे कहने से ही तो मैं अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ आया था . चलो हम उसे वापस घर ले आते हैं . "
रीमा ने अपने पति को हाँ में गर्दन हिलाकर अपनी सहमती जताई .
रीमा ने मन ही मन में सोचा यही मेरी माँ के लिए मेरा प्रायश्चित और सच्ची श्रद्धांजलि होगी . *****
4. इकोफ्रेंडली थैला
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कनाडा में वर्ल्ड डिजाइनर संस्था से जब मीना विश्वस्तरिय अवार्ड ले रही थी। तभी मंच के संग दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट से उसे बधाई दे रहे थे । जो मीना के उत्साह को बढ़ा रहा था । मोबाइल , कैमरे में मीना की फोटो लोग कैद कर रहे थे । यह सम्मान मीना को स्वदेशी इकोफ़्रेंडली सूती कपड़े के थैला बनाने के हुनर को पहचान दे रहा था ।मीना आत्मविश्वास के जज्बे से आगे बढ़ रही थी । तभी सारे पड़ोसियों , लोगों के व्यंग्य उसकी आँखों के सामने घूमने लगे ।जब पड़ोसिन सुधा ने मेरी सासू माँ से कहा था ।
" अरी सरला ! , तेरी बहू मीना सिर उघाड़े रोज बाहर जाती है ।जिन घरों का हम पानी नहीं पीते हैं । उन घरों में क्या करने जाती है ? "
" हाय दैया तू !, मेरी बहू के पीछे क्यों पड़ी है ? ताने क्यों मारती हो ? तुझे मालूम नहीं है क्या ? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश हित में प्लास्टिकों की थैली पर प्रतिबंध लगाया है । क्योंकि प्लास्टिक के कचरे में काफी वृद्धि हुई है । जिससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या विकराल हो गयी है और न ही इस प्लास्टिक को हम नष्ट कर सकते हैं ।"
" हम्मे , सुना तो है । इतने सालों से भारत की जनता प्लास्टिक की थैलियों , सामानों का उपयोग कर रही है । प्लास्टिक की थैलियाँ तो हल्की होने से अपने पर्स , जेब में रख के सामान आसानी से भर के ले आते हैं । सच में बातों से किसी की आदत को नहीं छुड़ा सकते हैं । "
" सेहत की बहुत अनदेखी कर ली हमने । प्लास्टिक तो मनुष्य , जीव - जंतुओं , समुद्रीय जीव संसार के लिए हानिकारक है । प्लास्टिक प्रदूषण से कई जीवों , समुद्री जीवों की मृत्यु हो गयी है ।अब हमें सावधान होना पड़ेगा । प्लास्टिक की थैलियों में लाया या रखा हुआ सामान हमारे लिये जहर के समान है ।जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और बीमारियों को जन्म देता है । "
" हमें तो न पता है । "
" इसलिए तो बता रही हूँ कि स्वास्थ के प्रति हमने खूब लापरवाही की है । हमें प्लास्टिक की चीजों , थैलियों को उपयोग करने से बचना होगा । मेरी बहू तो उन पिछड़ी बस्तियों में जाकर उन्हें प्लास्टिक की थैलियों को उपयोग में न लाने के लिए जागरूक करती है और इको - फ्रेंडली कपड़े के थैले बनाने का काम सीखा के उन गरीब लोगों , लड़कियों को रोजगार का साधन दे रही है । "
कई सारे माइक से घिरी मीना बड़ी खुश थी । विदेशी धरती पर अखबार , दूरदर्शन , मीडियावालों को अपना इंटरव्यू दे रही थी ।
विदेशियों को अपने स्वदेशी थैले उपहार में दे के उन्हें थैला बनाने की कला सिखाने लगी और स्वदेशी थैले को बढ़ावा दे रही थी । प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले भयावह संकट को मुक्ति दे रही थी । ****
5. इंटरनेट पर मोहब्बत
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द्वापर की राधा जिसके संजोग में श्यामसुंदर लिखा था और इक्कीसवीं सदी की पच्चीस वर्षीय तलाकशुदा , तीन वर्षीय बेटे श्याम की माँ राधा सुसराल , समाज की उपेक्षा , तानों की मार और दुखों के पहाड़ , गम के कांटे लिए नासिक में अपने माँ - पिता की छत्र छाया में आर्थिक कष्ट झेलते हुए बैंक में नौकरी कर जीवन यापन करने लगी और उम्र के पैत्तीसवें पड़ाव पर आ गई थी . एकमात्र जीने का सहारा श्याम दसवीं कक्षा में आ गया था। बेटे और नौकरी की जिम्मेदारियों से चक्की के दो पाटों के बीच पीसने लगी। मनोरंजन के नाम पर फेस बुक पर चैट कर और वैवाहिक डॉट कॉम पर अपने लिए योग्य लड़कों की प्रोफाइल देख लेती थी ,
तभी उसकी नजर कनाडा के चालीस वर्षीय निःसंतान तलाकशुदा व्यापारी कनेडी के बॉयोडेटा पर पड़ी। उससे चैट कर दुःख - सुख बाँटे , दिल की धडक़नों में सिमटी रंगों की फुहार जैसे गालों पर होली का गुलाल लगाते हुए लालम …… लाल ....... सी महसूस कर रहीं थी। दिलों की दूरियाँ नजदीकियों में बदल गयी .बैंक से छुट्टी होने के बाद हर दिन राधा मोबाइल पर श्यामसुन्दर से बात करते हुए समय का पता ही न चलता था . प्यार के इन संबंधों में दोनों में औपचारिक्ता और झिझक की दीवारें ढह गयी थीं . एक दूजे के लिए वे आप से तुम और मैं से हम हो गए थे और इंटरनेट पर मौहब्बत ने शीघ्र ही कनेडी को नासिक में आने के लिए राधा के साथ शादी के बंधन में बंधने के लिए मजबूर किया।
सामाजिक अवेहलना, अकेलापन दूर करने के लिए और सुख - सुकून , सामाजिकता की जिंदगी जीने के लिए माता- पिता की रजामंदी आशीषों के साथ श्याम को बेटा मान के कनेडी ,राधा ने नासिक कोर्ट में शादी कर ली . राधा ने कनेडी को प्यार का नाम श्यामसुंदर रख दिया .
प्यार के सतरंगी रंग दिलों की धडकनों को अपनेपन के रंग में रंग रहे थे और दाम्पत्य जीवन में प्रेम की मिठास को घोल रहे थे . ****
6.गांधी से महात्मा
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" गुरु जी ! यह बताओ गाँधी जी ने बचपन से लेकर जवानी तक और जब दक्षिणा अफ्रीका से भारत मेंं आए तब तक वे खूब बढ़िया कपड़े पहनते थे , जब वे चंपारण बिहार में गए , तो गाँधी जी ने सूट- बूट छोड़ कर धोती क्यों पहनी थी ? गांधी जी ने आजादी की लड़ाई कहाँ से शुरुवात की? "
आठवीं कक्षा के छात्र सुनील ने पूछा।
"सुनो , अँग्रेजी सत्ता किसानों पर अत्याचार करती थी और उन्हें नील की खेती करने के लिए मजबूर करती थी, तो किसान और महिलाएँ गाँधी जी को अपनी पीड़ा बताने के लिए इकट्ठा हुए। गाँधी जी ने देखा कि इन लोगों ने गंदे कपड़े पहने हुए हैं ,तो अपनी पत्नी कस्तूरबा से कहा कि इन औरतों को साफ कपड़े पहनने के लिए कहो ।
कस्तूरबा जब उन औरतों के पास गई तो पता लगा उन के पास एक ही मैली धोती है ,जो पहनी हुई है और जिसे स्नान करने के बाद धो नहीं सकती है ।
यह बात बा ने गांधी जी को बताई ,तो गांधी जी ने अपना चोगा उतार कर बा को उस औरत को देने के लिए कहा और उसके बाद गाँधी जी ने ताउम्र घुटनों जितनी लंबी धोती पहनी। यही से गांधी जी ने गुलाम भारत की आज़ादी और महात्मा बनने की शुरुवात की ।"
अब तुम बताओ सुनील, यह घटना क्या दर्शाती है ?
"हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए और निःस्वार्थ सेवा ही सच्ची सेवा है।
पलभर की भी पराधीनता नरक से भी बढ़कर है । "
" बहुत बढ़िया , हमारे हृदय में अहिंसा , दया , प्रेम , सहयोग , मैत्री और त्याग आदि की भावना होनी चाहिए । इन नैतिक मूल्यों से बाल , जन , वृद्ध , बड़े हर कोई जुड़ सकता है। ब्रिटिश सत्ता से आज़ादी पाने के लिए सारे भारतवासी बच्चे , बड़े -बूढ़े, युवा , स्त्री -पुरुष संगठित होकर स्वतंत्रता के लिए असहयोग आंदोलन , विदेशी वस्त्रों की होली जलायी थी , नमक पर टैक्स लगने पर गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च किया।
वीरों, अनाम देश - प्रेमियों , देश - भक्तों ने स्वतंत्रता आंदोलन में दी कुर्बानियों से भारत को आजादी मिली ।"
"जी गुरु जी । "
सुनीता तुम बताओ
" हमें मैले कपड़े नहीं पहनने चाहिए, रोज स्नान करना चाहिए और धुले कपड़े पहनने चाहिए ।"
" बिल्कुल सही बच्चो हमें यह भी सीख मिलती है कि
गंदगी बीमारी की खान होती है , जो रोग दे के जान ले लेती है औऱ स्वच्छता हमारे स्वास्थ के लिए औषधी है , इसलिए हमें अपने अंतर - बाहर को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए। स्वच्छता हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए , इसलिए हम सब अपने घर , देश को स्वच्छ बनाएँ । स्वच्छता में ईश्वर का निवास होता है । गांधी जी ने सच , अहिंसा का मार्ग अपनाके जीवन मूल्यों से अपने चरित्र को गढ़ा और उनकी कथनी - करनी में कोई अंतर नहीं था , बिना हथियारों के अहिंसा के बल से उन्होंने हमें आजादी दिलवायी है , इसलिए आज के इंटरनेट की सदी में गांधी जी का जीवन - दर्शन प्रासंगिक हैं । "
" हाँ गुरु जी , गाँधी जी ने लंदन से पढ़ाई की , भारत से ली सादगी, अहिंसा और भोग में त्याग की संस्कृति को अपना के देश को आजादी दिलवायी ।" एक छात्र ने कहा ।
शाबास बच्चों ! राष्ट्र , विश्व के साथ भारत की आजादी के अमृत महोत्सव पर गाँधी जी के साथ सभी स्वतंत्रता सेनानियों का हमारा नमन है ।
सारे बच्चे मिल के बोलो -
जयहिंद , वंदे मातरम् । *****
7. पिता का ब्याज
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" पिता जी , पॉलीहाउस खेती से बेमौसम में उगाए खीरा , शिमला मिर्ची के उत्पाद की बढ़ोत्तरी के लिए " उद्यमी किसान " का राष्ट्रपति जी ने शील्ड , चेक के साथ प्रमाणपत्र दिया है । " मुस्कुराते हुए भोला ने कहा।
" होठों पर मुस्कान और आँखों में खुशी की चमक लिए पिता ने बेटे भोला के कीर्तिमान स्थापित करने के लिए शाबासी दी । हाँ भोला , तुम्हारी सोच की वजह से हमने परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक पॉलीहाउस की खेती के लिए सरकारी योजना के तहत बैंक के लोन से सब्सिडी का लाभ लिया था और सोलर पैनल लगाके जैविक प्रबंधन से आधुनिक कृषि प्रबंधन की कम पानी
की ' ड्रिप सिंचाई ' को सोलर पंप की ऊर्जा का लाभ लेके बिजली की आँख मिचौलीऔर ज्यादा बिल के आने से बचे थे और पौष्टिक गुणवत्ता से भरपूर खीरे , ककड़ी शिमला मिर्ची आदि की खूब सारी पैदावार का रिकार्ड भी मेहनत के पसीने का परिणाम है,तू ही तो मेरा ब्याज है । "
" हाँ पिता जी , बचपन तो मेरा आपके साथ खेतों की मिट्टी में ही गुजरा है। कृषि की बारीकियों को आपसे ही तो सीखा है । जैविक खाद , कृषि प्रशिक्षण का ही नतीजा है कि खेती सोना उगल रही है। आप ही तो हमारे रोजगार की नींव हो ।अरे पिताजी ! वो देखो दूरदर्शन वाले भी मेरी कामयाबी का इंटरव्यू लेने आ गये हैं । अच्छा हुआ पिताजी मेरे साक्षात्कार से और वीडियों , यूट्यूब से हमारे किसान भाइयों को पॉलीहाउस से उपज बढ़ाने की भी प्रेरणा मिलेगी ।" ****
8.उदाहरण
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भिखारिन हेमा अपनी दो बेटियों के साथ ऋषिकेश में गंगा घाट पर बैठकर भीख में हर दिन लगभग 1हजार , दो हजार रुपये मिल जाते थे। इस तरह लाखों रुपये जमा कर बैंक में फिक्स डिपॉजिटिव ले ली थी ।
कोरोना में लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे थे। यह देख के उसका दिल पिघला । उसने अपनी बेटियों की सहायता से ऑक्सीजन भरे सिलिंडर दुकान से खरीद के
ट्रक में रखावाकर अस्पतालों में सप्लाई करने दानदाताओं का उदाहरण बन मानवता की रक्षा करने चल दी।
मुसीबत के वक्त धर्मार्थ का पैसा धर्मार्थ के काम में लगा के उसकी दैवीय मुस्कान मानवता की सेवा में मदद , सहयोग ,मिलजुलकर रहने की संस्कृति दशा रही थी।****
9.अगर वे न होते
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प्रोफेसर डॉक्टर मधु आज प्रधानाचार्या की पदोन्नति का नियुक्ति पत्र ले के घर आयी तो खुशी से फूली न समा रही थी । अतीत की यादों में खो गई।
शादी होने के बाद जब मैं दिल्ली से अपनी प्रोफेसर की नोकरी छोड़कर मुम्बई में अपने ससुराल में आई तब मुझे मुम्बई का नाम अपनी कल्पनाओं की उड़ानों को पंख लगाने के समान लगा लेकिन मेरे अरमानों के पंख कुतर दिए थे ।
मैंने माताश्री से कहा , " मुझे नौकरी करनी है ।"
उन्होंने कहा , " हमारे खानदान में बहू घर -गृहस्थी सँंभालती है , न कि नौकरी करती है ।"
तभी चहक के नन्द बोली , " भाभी , भूल जाओ अपनी डिग्रियों को ।
यहाँ तो सबको दोनों वक्त उतरती गर्म रोटी परोसनी होती है ।"
पिताश्री बोले थे , " बहु , यहाँ मास्टरगिरी नहीं चलेगी ।"
यह सुनकर मेरी आँखों की नमी के बादल बरसने लगे
और सोचने लगी कि केरियर बनाने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की थी तभी पति किशोर ने मुझे धैर्य से कहा ,
" मैं तुम्हारे हर सपने को पूरा कर रहा हूँ ।तुम्हें नौकरी करने क्या जरुरत ? "
धीरे - धीरे मुझ में नौकरी करने की भावना दब गयी । इस बीच इतफाक से किशोर का तबादला वाशी , नवी मुम्बई हो गया तब मैंने किशोर से कहा , " अब मैं शिक्षण कार्य करुँगी ।"
उन्होंने कहा , " मैं तो कम्पनी के कामों से बेंगलोर टूर पर रहता हूँ , बिटिया कनिका अभी छोटी है । तुम अकेली घर की जिम्मेदारी नहीं निभा पाओगी ।"
यह सुनकर मुझे लगा कि मेरे सपनों पर फिर पानी फिर गया ।
मैंने हिम्मत नहीं हारी । कुंठित , हीन भावना मन में भर
गयी थी लेकिन मुझ में आत्मविश्वास जगा । उनकी अनुपस्थिति में पास के कॉलिज में अर्जी दे आयी ।
कुछ दिनों के बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया और मुझे प्रोफेसर नियुक्त कर दिया लेकिन मैने किशोर के डर से प्रधानाध्यापक को न कर दिया ।
अनुभवी , शुभचिंतक प्रधानाध्यापक ने मेरे चेहरे पर पर आते -जाते भावों को पढ़के मुझे प्यार से समझाया ,
'' तुम एम. , बीएड , पीएचडी हो , तुम्हारे में योग्यता है , शिक्षा की पूरी डिग्री है , घर की चार दीवारी से बाहर निकलो , स्वयं अपनी पहचान नाम और अस्तित्व बनाओ । पति की अँगुली पकड़ कब तक चलोगी ? "
उनकी बातों का मुझ पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा और मैंने स्वनिर्णय ले कर नौकरी के लिए हाँ कर दी और कॉलिज में पढ़ाने लगी ।
जब वे टूर से वापस आए तो कनिका ने कहा , पापा - पापा मम्मी तो कॉलिज में पढ़ाने लगी हैं । "
मैं वहीं खड़ी सोच रही थी कि ये हाँ करेंगे या न।
उन्होंने हँसकर हाँ में अपनी सहमती जताई तभी मुझ को लगा कि खुशियाँ स्वाबलंबन के आसमान को छू रही थीं ।
कनिका ने माँ ओ माँ कह के मेरा ध्यान भंग किया और होंठों पर चौड़ी मुस्कान बिखरते हए कहने लगी , " माँ , लो , गरमा गरम चाय ।"
तभी मधु ने दूनी खुशी के साथ अपनी पदोन्नति का नियुक्ति पत्र कनिका और किशोर को दिखाया ।
आँखों में खुशी की चमक लिए किशोर ने मधु को कहा ,
" प्रधानाचार्या के पाँच सुनहरे अक्षरों ने ' नारी सशक्तिकरण ' , बेटी बचाओ - बेटी बढ़ाओ ' की मिसाल
नया सवेरा बन के सामाजिक, पारिवारिक तम को लील रहा था । *****
10. इल्जाम
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हमारी शादी के बाद ससुरालवालों ने खेती के लिए कैसी बंजर जमीन हमें बँटवारे में दे दी . इस बाँझ जमीन में कुछ भी पैदा नहीं होता है . कैसे पेट भरें ? ” चिंतित मालती ने पति मनोज से कहा
" मेरे माँ - पिता पर क्यों इल्जाम लगा रही हो ?"
" हाँ – हाँ , रात – दिन मुझे यही चिंता खाए जा रही है कि कैसे बंजर को उपजाऊ बनाया जाए ? दूसरों के खेतों में मजदूरी करके कब तक हम गृहस्थी की गाड़ी चलाएँगे? “
" ध्यान से सुन , रामदुलारी ने अपने खेत की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए ‘ मृदा स्वास्थ कार्ड ‘ के द्वारा पौषक तत्वों की कमी का पता लगाके संतुलित मात्रा में फर्टिलाइजर डाल के उर्वरक क्षमता को बढ़ाया था । अब उनकी फसल कैसी सुंदर लहलहा रही है ? चलो जी ! हम भी ‘ मृदा स्वास्थ कार्ड योजना ‘ का लाभ लें ।”
“ हाँ जरूर , हम भी इस तकनीकी जाँच से बाँझ को उर्वरक में तब्दील कर दें . “
" नेकी और पूछ -पूछ।"
“ अरे वाह मनोज !' हमने कैसे सुंदर गुलाब , सूरजमुखी , गेंदा चमेली आदि के फूल खिला दिए है ।
“ हाँ , ' हरियाली है तो कल है। इल्जाम से नहीं , सकारात्मक सोच से दुनिया मुठ्ठी में। ' ****
11.पलायन
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अरी मोना , कोरोना भारत में फिर से कैसा तांडव मचा रहा है ? संसार में कोरोना की लहर में भारत दूसरे नम्बर पर आ गया है।पड़ोसिन प्रवीणा ने चिंता जताते हुए कहा।
" हाँ , इसी अज्ञात ख़ौफ़ से पिछले वर्ष के लॉकडाउन की तरह इस वर्ष के मार्च में कई राज्यों में आंशिक लॉकडाउन लगने से प्रावासी मजदूर भी पलायन कर रहे हैं ।"
" दूरदर्शन समाचारों से ही पता लगा है कि मालिकों ने इन्हें काम पर आने के लिए मनहें कर दिया है , घर जाने को कहा है। इनकी रोजी - रोटी के लाले पड़ गए। स्टेशनों पर मजदूरों की भीड़ दिख रही है। कोरोना के नियमों का पालन नहीं हो रहा है।"
"हम्मे , अधिकतर लोग मॉस्क नहीं लगा रहे , सार्वजनिक स्थानों में दो गज की दूरी नहीं रख रहे हैं । इसी लापरवाही ने देश कोरोना संक्रमण की सुनामी को फैलाया है।"
" अगर हर नागरिक जागरूक हो जाए , मॉस्क पहने , कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करेगा , भीड़ नहीं करें तो कोरोना दुम दबाकर भाग जाएगा। मजदूरों का पलायन भी नहीं होगा। जीवन और जीविका दोनों मिलेगी ।"
" हाँ , दवाई भी कड़ाई भी ।" ****
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क्रमांक - 8
जन्म : 07 सितंबर , दमोह (मध्यप्रदेश)
संप्रति- स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित पुस्तकें : -
काव्य संग्रह-अलौकिक 2017
दूसरा काव्य संग्रह -'काव्य धारा' प्रकाशित सितंबर 2020
साझा संकलन-11 (2018-2021)
सम्मान व पुरस्कार : -
कोकण ग्राम विकास मंडल द्वारा 2017
सजल गौरव पुरस्कार 2018 बनारस
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मारीशस 2018
(11वे विश्व हिंदी सम्मेलन राष्ट्रीय प्रचार समिति छत्तीसगढ़ द्वारा)
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान 2018 इजिप्ट
(विश्व मैत्री मंच की ओर से)
अंतर्राष्ट्रीय सम्मान ताशकंद (2019)
विश्व मैत्री मंच द्वारा
जलगांव ,पटियाला, मुंबई, भोपाल , केरल 2018
साहित्य सम्मान प्राप्ति
अन्य संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मान पत्र प्राप्ति।
उपलब्धि : -
फेसबुक पर काव्य अँकुर पेज़ एवं बाल साहित्य एडमिन । खुद के ब्लाग और अन्य ब्लागों पर लेखन । यूट्यूब पर रचनाएं प्रकाशित। अंकशास्त्र और हस्त रेखा ज्ञान। संगीत, नृत्य, पेंटिंग, बागवानी, बेडमिंटन, टेबल टेनिस खेल में रूचि।
प्रकाशित कृतियाँ-100 से अधिक । सभी समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
गुजराती से हिंदी पुस्तकों का अनुवाद।
प्रवास- (इंडोनेशिया) जकार्ता में 2007 से 2015 तक लेखन और सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय।
पता : -
बी-7/103 , साकेत काम्प्लेक्स ठाणे पश्चिम
मुंबई - 400601 महाराष्ट्र
1.स्पर्श
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दरवाजे पर जैसे ही कार की आहट हुई सभी का ध्यान उधर चला गया। पापा, - "देखो रमिया दीदी और जीजा जी आ गए, रामोल ने अपने पिताजी से कहा।"
पिताजी रमिया को गले लगा कर फूट-फूट कर रो पड़े । "बेटा तुम्हारी माँ को कोरोना निगल गया और हम लोग कुछ भी न कर सके ।" रमिया की आँखों से भी अश्रु धारा निकल पड़ी। उसने रोते हुए पूछा,-पिताजी माँ ने मेरे होने वाले बच्चे के लिए जो झबले बनाए हैं वो कहाँ हैं? रामोल ने रमिया को झबले देते हुए कहा,- "माँ अगले महीने का इंतजार बड़ी ही बेसब्री से कर रही थी कि मैं नानी बन जाऊँगी और ये ढेर सारे झबले उन्होंने सिल डाले थे।"
रमिया उन झबलों को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी उसे अपनी माँ का स्पर्श अंतर्मन तक महसूस हुआ । उसने झबलों को अपने गले से लगाया और माँ कह कर फूट-फूट कर रो पड़ी। ममता का नया रूप उसके मन में विस्तार लेने लगा। ****
2. आश्चर्य
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ग्यारह वर्षीय दीपू को पढ़ाई करने के लिए मोबाइल देकर उर्वी अपने काम में लग गई । थोड़ी देर बाद ही दरवाजे पर घंटी बजी। उर्वी ने दरवाजा खोला तो चौंक कर अपने पति से कहा- "आप इतनी जल्दी घर लौट आए आखिर बात क्या है? बैंक जाने के बाद सामान लेने बाजार नहीं गए क्या?"
सुरेश ने कहा- "जैसे ही बैंक में मेरा नंबर आया, मैं अपनी पासबुक और रुपए लेकर काउंटर पर पहुँचा ।मैंने रुपए जमा करने से पहले बेलेंस के बारे में पूछा तो बैंक कर्मचारी ने बताया -"कि अभी थोड़ी देर पहले ही मेरे अकाउंट से बीस हजार रुपए निकल गए हैं।" उस कंप्यूटर की स्क्रीन पर मेरा नाम ही आ रहा था कि मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही किसी वीडियो गेम के लिए पेमेंट किया है। बैंक कर्मचारी की बात सुनकर सुरेश आश्चर्यचकित रह गया । वह फौरन ही घर चला आया। सुरेश ने रुआंसा होकर कहा ।
सुरेश और उर्वी ने दोनों को आश्चर्य से देखा और दीपू के कमरे की ओर भागे । सुरेश का मोबाइल दीपू के पास था। सुरेश ने दीपू से पूछा और उसने हामी में सिर हिला दिया। सुरेश के मुँह से निकला ,"ओह तो यही सच है कि अपराधी और कोई नहीं मेरा बेटा ही है।" उर्वी और सुरेश की आँखों से आँसू बह निकले , पढ़ाई करने के लिए दिए गए मोबाइल ने बेटे को अनजाने ही अपराधी बना दिया था। ****
3. उपकार
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मधु की शादी बड़ी ही धूमधाम से हुई । विदाई का वक्त आ गया उसने अपनी मम्मी - पापा को बड़े ही करुणापूर्ण नेत्रों से निहारा । उसके मम्मी- पापा का रो -रो कर बुरा हाल था । आज उनकी लाडली दूसरे घर जा रही थी ।
मधु भी अपने मम्मी- पापा से लिपट कर रोने लगी । उसके पास आज कोई शब्द नहीं थे । वह एक अमीर घर की बहू बनने जा रही थी । उसे अपने मम्मी -पापा पर गर्व हो रहा था। उसने रुंधे हुए गले से अपने मम्मी -पापा से से कहा-"आप दोनों का बहुत-बहुत *उपकार *है मुझ पर ,आपने एक अनाथ लड़की को सहारा देकर उसकी जिंदगी को संवार दिया ।" उसके नेत्रों से अश्रु धारा बही जा रही थी। तभी उसकी मम्मी ने उसके आँसू को पूछते हुए कहा " बेटी *उपकार* है तेरा हम पर ,जो तूने हम दोनों को माता -पिता बना दिया । तेरे आने से मेरी जिन्दगी को जीने का सहारा मिला ।" आगे मधु की माँ कुछ न कह पाई । माँ और बेटी की अद्भुत विदाई देख कर सभी भावुक हो रहे थे ।*****
4. दीवाली की सफाई
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रेनू ने दिवाली के करीब आते ही घर की साफ-सफाई शुरू कर दी थी । वह हरेक सामान को अच्छे से साफ कर रख रही थी और बीते दिनों में खोती जा रही थी । दुख और हर्ष दोनों उसके चेहरे पर बारी-बारी से उभर रहे थे । तभी उसकी ब्यूटिशियन बेटी आकर कहने लगी -"माँ तुम भी न हर साल यह सब सामान अलमारी से यूँही निकालती हो और फिर वापस उसी में रख देती हो उसे फेंक क्यों नहीं देती? सब सामान कितना पुराना हो गया है और यह अलमारी भी । उसने प्यार से अपनी माँ के कंधे पर हाथ रख कर कहा-माँ आजकल कितने अच्छे-अच्छे सामान आ गए हैं क्यों ना सब पुराना सामान बेचकर नया ले ले ?"
माँ ने हँसकर बड़े प्यार से उससे कहा- "तुम अभी कुछ नहीं समझोगी । यह सामान लेने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है पैसे जुटाए हैं, हर महीने एक-एक सामान खरीदा है । यह सभी सामान मुझे मेरे बीते हुए दिनों की याद दिलाता है । हर सामान में मेरी और तुम्हारे पिताजी की मेहनत की महक आती है। पर माँ "यह संदूक तो फेंक दो ,इस कमरे में अच्छी नहीं लग रही " रेनू की बेटी ने बड़ी मासूमियत से कहा ।
हाँ , मुझे पता है कि तुझे यह सब सामान पसंद नहीं है पर इस संदूक से भी मेरी यादें जुड़ी हुई है । यह वो संदूक है जो हम गाँव से शहर लेकर आए थे इसके अलावा हमारे पास और कोई सामान नहीं था । तुम्हारे पिताजी ने मेहनत करके ऊँचाई हासिल की उन्होंने तुम सब बच्चों को एक अच्छी जिंदगी दी कभी कोई कमी का एहसास नहीं होने दिया। रेनू की आँखों से जल धारा बह निकली । रेनू की पच्चीस वर्षीय बेटी को अपने माँ -पिता पर अभिमान हो रहा था वह भी माँ के साथ सफाई में जुट गई ।****
5. स्वाभिमान
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कोमल रोज की तरह ही आज भी आफिस में अपने काम में व्यस्त थी । काम करते समय उसका ध्यान सिर्फ काम में ही होता था । बाकी सभी उसके साथ काम करने वाले बेपरवाह होकर काम करते थे जब तक उनसे काम की रिपोर्ट न माँगी जाए । अक्सर वे लोग कोमल का मज़ाक उड़ाया करते थे "बड़ी आई काम करने वाली" उन सब की बातों को कोमल हमेशा नजरअंदाज कर दिया करती थी । आज भी जब वो अपने काम में लगी हुई थी तो उसके एक साथी ने मजाक उड़ाते हुए कहा " जो तुम इतना कागजों में उलझी रहती हो कभी हमलोग को भी देख लिया करो “।
कोमल फिर भी अपने काम में ही लगी रही । तभी बाकी के सहकर्मी आकर कोमल की हंसी उड़ाने लगे । कोमल के बॉस अपने कमरे से निकले तो उन्होंने ये सब तमाशा देखा । उन्होंने सभी को डाँट फटकार लगा कर अपने- अपने काम में लग जाने को कहा और कोमल को अपने कमरे में आने के लिए कहा ।
कोमल जब उनके कमरे में गई तो उन्होंने उससे पूछा -"कि ये सब तुम्हारा कितना मजाक उड़ाते हैं और तुम चुपचाप सब कुछ सह लेती हो तुम्हारा स्वीभिमान कहाँ चला गया है ?" तुम ख़ामोश हो कर सब कुछ क्यों सह रही हो?"
कोमल ने बड़ी ही शांति के साथ उत्तर दिया -"*मेरा स्वाभिमान जगा हुआ है इस लिए ही तो कुछ नही कहती । ये लोग रोज बोल -बोल कर थक ही जाएंगे । मुझे जिंदगी में बहुत आगे बढ़ना है मैं नहीं चाहती कि मैं इन सब की बातों में ध्यान देकर अपना वक्त बर्बाद करूँ “। इतना कह कर कोमल कमरे से बाहर चली गईं । कोमल के बॉस उसके स्वाभिमान की झलक देख कर मंद -मंद मुस्कुरा दिए । ****
6. समर्पण
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शीलू की नौकरी को आज पूरे एक साल हो गए थे आज वह बेहद खुश थी । उसने बड़ी कठिनाई से नर्स का कोर्स किया था । एक अस्पताल में वह नर्स का काम कर रही थी । अपनी उम्र के पच्चीस साल उसने अपनी मर्जी से ही बिताए थे । साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी वह अपनी जिद्द के कारण नर्स बनी थी ताकि गाँव से निकलकर शहर में नौकरी कर सके और अपने पैरों पर खड़ी हो सके ।
ऑफिस के बाद जैसे ही शीलू घर आई तो कुछ मेहमान बैठे हुए थे उनमें उसे अपनी माँ भी दिखाई दी । शीलू ने अपनी माँ को आवाज देते हुए कहा-"माँ तुमने बताया नहीं तुम गाँव से आज यहाँ आ रही हो तुम्हें अचानक जबलपुर में क्या काम आ गया?"
शीलू की माँ ने उसे आँखों से चुप रहने का इशारा करते हुए कहा- तेरे लिए शादी के रिश्ते की बात चल रही है ,यह तेरे ससुराल वाले हैं मैंने तुम्हारा रिश्ता गाँव में ही तय कर दिया है । लड़के की अपनी एक छोटी सी किराने की दुकान है । " कितना कह कर शीलू की माँ ने लड़के की फोटो शीलू के हाथ में पकड़ा दी ।
शीलू का चेहरा तमतमा गया फिर भी उसने अपनी आवाज को संयत कर कहा-"माँ मैं इस शादी के लिए तैयार नहीं हूँ और न ही तुम्हारी तरह अपना जीवन इन लोगों को समर्पित कर सकती हूँ । जब समय आएगा तब मैं अपने कार्यों का *समर्पण*अवश्य करुँगी पर अभी नहीं।" लड़के की माँ ने शीलू की बातें सुनकर बड़े ही प्रेम से उसके सिर पर हाथ रखा और कहा- "घबरा मत बेटी , मेरा बेटा भी पढ़ा- लिखा है तुम्हें गाँव आने की जरूरत नहीं पड़ेगी न ही समर्पण करने की, मेरा बेटा शहर आ जाएगा ।" शीलू की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए उसने अपनी होने वाली सास के पैर छू लिए । ****
7. ऑनलाइन पढ़ाई
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नौ वर्षीय शीतल सुबह से रोए जा रही थी । कोरोनावायरस के चलते सभी स्कूल बंद है और घर पर ही रहकर ऑनलाइन पढ़ाई करनी है । पर उसके पास ना मोबाइल है और ना उसके गरीब माता-पिता के पास लैपटॉप । जब से उसे मालूम हुआ है कि अब सभी बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई ही करनी है तभी से वह सोच -सोच कर रोए जा रही थी वह अब पढ़ाई कैसे करेगी?
उसके पिता जगदीश ने शीतल के सिर पर बड़े प्रेम से हाथ रखा और कहा- "तुम चिंता मत करो तुम मेरा मोबाइल लेकर अपनी पढ़ाई कर सकती हो। अभी मेरी सब्जी की बिक्री भी थोड़ी अच्छी हो रही है तो जल्दी ही तुम्हारे लिए मोबाइल भी खरीद देंगे।"
अपने पिताजी की बातें सुनकर शीतल चहक उठी और बोली - "तो मैं अब ऑनलाइन पढ़ाई कर सकती हूँ।"
शीतल का मुस्कुराता चेहरा देखकर जगदीश ने उसके गाल पर प्यार से थपकी दी। जगदीश के चेहरे पर धीरे-धीरे उदासी घिरने लगी उसके सामने बेटी की पढ़ाई ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। ****
8. बदहाली
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नीलू को जैसे ही चार बजे शाम को एक अनजान फोन आया वैसे ही वह ऑफिस का सारा काम छोड़कर घर की ओर भागी । उसने ऑफिस में किसी से कुछ नहीं कहा । सभी की नजरें भागती हुई नीलू पर गई । रीना ने भागती हुई नीलू से पूछा -"कहाँ भागी जा रही हो ऐसे ?" नीलू ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया "घर" ..
नीलू जैसे ही घर पहुँची वह अवाक रह गई उसका बेटा जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका से घर आया था वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और उन दोस्तों के साथ लड़कियाँ भी शराब पीकर सिगरेट का धुआँ उड़ा रही थी। सभी *बदहाली* की अवस्था में थे ।
नीलू को पहले तो कुछ समझ नहीं आया । फिर उसने सभी से अपनी वाणी को नियंत्रित करते हुए कहा-"अब तुम लोग अपने -अपने घर जा सकते हो । शायद मैं ही गलत थी मैंने अपने बेटे पर इतना भरोसा किया।" गला रुँध जाने पर वह और कुछ न कह पाई आँखों से अश्रु धारा निकल पड़ी। ****
9. सहनशीलता
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घड़ी की सुई अपने रफ्तार से आगे बढ़ रही थी । उमा हमेशा की तरह सुबह सभी का टिफिन बना रही थी ।
पति, बहु -बेटे सभी टेबल पर नाश्ता कर रहे थे । उमा के हाथ आज जल्दी नहीं चल पा रहे थे । सभी जल्दी टिफिन बनाने की रट लगा रहे थे- "ऑफिस जाने के लिए देर हो रही है जल्दी टिफिन तैयार करो" और उमा हाँ में जवाब देती हुई काम में लगी हुई थी । तभी एक जोर की आवाज आई सभी उस ओर भागे , देखा उमा बेहोश पड़ी हुई है । जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया ।
डॉ.उमा की देखभाल में जुट गए और कमरे के बाहर सभी इंतजार करने लगे । उमा के पति ने मायूस होकर अपने बेटे- बहू से कहा- "कितनी बार कहा है ज्यादा काम मत किया करो पर तुम्हारी माँ सुनती ही नहीं है।" हालांकि वो हकीकत को बखूबी जानते थे ।
तभी नर्स ने आकर कहा -"आप सभी उमाजी से मिल सकते हैं ।" सभी उमा से मिलने के लिए कमरे में गए वह पलंग पर बेसुध पड़ी थी । डॉक्टर ने उमा के पति से कहा -"उमाजी को पहला हार्ट अटैक आया है उनकी तबीयत का ख्याल रखिएगा ।"
उमा के पति जानते थे कि उमा बहुत ही सहनशील है उसने पूरी जिंदगी सहनशीलता में ही गुजार दी पर अब उसे और नहीं सहन करने दूँगा। उन्होंने अपनी बेटे से कहा "बेटा अब तुम्हारी माँ घर का कोई काम नही करेगी और न ही खाना बनाएगी , रोटी वाली बाई का ही खाना अब तुम लोगों को खाना ही पड़ेगा ।" यह कहते हुए उन्होंने एक लंबी साँस ली । ****
10.बिछड़ते लोग
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सुमेर आज सुबह से ही परेशान सा अपने घर में इधर-उधर चक्कर काट रहा था । इतना बैचैन वो कभी न था जितना आज नज़र आ रहा था । घर वाले भी उसे इधर -उधर चक्कर काटते देख रहे थे पर सभी ख़ामोश और सहमे हुए से थे ।
टीवी पर समाचार आ रहा था कि "देश में कोरोनावायरस से कई व्यक्तियों की जान चली गई है । लोग अपनों से बिछड़ने लगे हैं । सभी अपनी जिंदगी को बचाएँ अपने - अपने घरों में सुरक्षित रहें,कोई घर से बाहर न निकले "। इस समाचार को सुन कर सभी सहम से गए थे और सुमेर अत्यधिक बैचैन हो रहा था । उसकी पत्नी गर्भवती थी और उसका नौवां महीना चल रहा था । बच्चे को जन्म देने की तारीख भी नजदीक आ रही थी । उसके मन में अपनों से बिछड़ने का भय समाने लगा था ।
फोन की घंटी बजते ही सुमेर ने काँपते स्वर से "हलो" कहा । "मैं डॉ. सतीश बोल रहा हूँ दूसरी तरफ से आवाज आई "। मेरी डॉ पत्नी ही आप की पत्नी का हर महीने चेकअप कर रही थी । इस समय वह शहर में मौजूद नहीं है । लॉकडाउन की वजह से उसे हैदराबाद में ही रुक जाना पड़ा । वह कुछ जरूरी काम से हैदराबाद गई थी ।" उन्होंने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा -"आज सुबह ही उसका फोन आया था । आप बिल्कुल भी चिंता न करें । मैं आप की पत्नी का पूरा ध्यान रखूंगा जब भी आप की पत्नी को प्रसव पीड़ा हो , आप मुझे तुरंत फोन करिएगा मैंने यहाँ पर सारी सुविधाएँ उपलब्ध करा ली है । आप निश्चिंत रहें "।
डॉ. सतीश की बातें सुनकर सुमेर खुश हो गया । उसने सभी घर के सदस्यों को बुला कर कहा-" बिछड़ते लोगों का समाचार सुनकर मैं तो घबरा ही गया था पर डॉ. सतीश ने मेरी सारी बैचैनी खत्म कर दी । वाकई डॉ.भगवान का दूसरा रूप है । अब मुझे अपने लोगों से नहीं बिछड़ना पड़ेगा" । सुमेर की बात सुनकर परिवार के लोगों में खुशियाँ लौट आईं । ****
11. विश्वास
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संध्या अपनी बारह वर्षीय बेटी समीरा को लेकर मूक-बधिर दौड़ प्रतियोगिता में पहुँची । वहाँ पर समीरा ने देखा उसकी उम्र के काफी बच्चे इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए आए हैं । समीरा ने इशारे से अपनी माँ से कहा- "मैं इसमें हिस्सा नहीं लूँगी , इतने सारे बच्चों के बीच में हार जाऊँगी।"
माँ ने बड़े प्यार से समीर के सिर पर हाथ फेरा और उसे इशारे में समझाया, "जीतना जरूरी नहीं है बल्कि अपने हौसलों को बुलंद करने के लिए इस प्रतियोगिता में भाग लेना जरूरी है । खुद पर विश्वास होना जरूरी है।"
माँ की बातें समझकर समीरा ने माँ के पैर छुए और प्रतियोगिता के लिए आगे बढ़ गई । उसकी आँखों में विश्वास की चमक दिखाई दे रही थी । ****
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क्रमांक - 9
पिता का नाम : डा.शिव दत्त शुक्ल
माता का नाम : ऋषिकुमारी शुक्ल
पति का नाम : देवेन्द्र पाण्डेय
शिक्षा : बी .ए
व्यवसाय : समाज सेविका और लेखिका
प्रकाशित पुस्तकें -
१)महिलाओं के अधिकार कानून के दायरे में - लेख संग्रह
२) बैचेन हुए हम - काव्य संग्रह
३) लघु आकाश - लघुकथा संग्रह
४) ओस थी बूंद- हाइकु संग्रह
५) एक अकेली औरत - काव्य संग्रह
सम्पादन पुस्तकें : -
१) अग्निशिखा काव्य धारा
२) अग्निशिखा कथा धारा
३) काव्य जीवन चक्र
४) जन्मदाता
५) शब्दाचे शिल्पकार मराठी
६) नवांकुर
पत्र - पत्रिकाओ मे -मंगल दीप , नवभारत टाईम्स , मेरी सहेली , केरियर , आदि
समाज सेवा पिछले तीस वर्षों से
अखिल भारतीय अग्निशिखा के माध्यम से
१) अश्लिलता विरोधी आंदोलन
२) घरेलू हिंसा के विरुध
३) एड्स जनजाग्रति के लिये नुक्कड नाटक पूरे महाराष्ट्र में
४) कुटुम्ब विघटन को रोकना
५) महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम
६) हर साल अग्निशिखा गौरव सम्मान समारोह
७) आदिवासियों के लिये
८) वृक्षा रोपण हर साल
९) डा शिवदत् शुक्ल स्मृति सम्मान समारोह
१०) महिलादिवस पर आदि
संसथाओ से सम्मान -
महिला गौरव
विघावाचस्पति सम्मान - विक्रमशिला विघापीठ से
रत्न ,हिरणी सम्मान , समाज गौरव सम्मान , समाज
भूषण सम्मान , इस तरह से तीन सौ ( 400) से अधिक सम्मान मिले है
पता -
देविका रो हाऊस प्लांट न.७४ सेक्टर -१ कौपरखैरीन् नवी मुम्बई ४००७०९ - महाराष्ट्र
1.चोली दामन
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राजू और गोलु दो दोस्त थे और पड़ोसी भी दोनो हर काम साथ साथ करते हर दम साथ रहते लोग उन्हें देख कहते इनका चोली दामन का साथ है राजू मन किया कुछ फल के झाड़ लगा कर पर्यावरण का काम किया जाये तो राजू ने अपने दरवाज़े के बहार काफ़ी पौधे लगायें फल फ़ुल शो के उसे पौधों से बहुत प्यार हो गया था , , जब वह पौधों को खाद पानी देता गोलु भी उसके पास बैठकर बातें करता रहता , राजु ने आम पेरु चीकू के पेड भी लगाये , पेड धीरे धीरे बड़े होने लगे अब उनकी छाया गोलु के घर भी पड़ने लगी , दोनों दोस्त पेड के नीचे बैठकर सुख -दुख बाटते , काफ़ी समय बीता पेड़ों मे फल आने लगे , अब दोनों झगड़ने लगे मेरा पेड है, मे ही फल लुगा , झगड़ा जब काफ़ी बढ़ गया तो वो संरपंच के पास गये , दोनों का कहना था पेड हमने लगाये है फल हम ही लेंगे , संरपच सोच में पड़ गया फिर एक तरकीब निकाली बोला ऐसा करते है सारे पेड कटवा देते है लकड़ी बेच देंगे न रहेगा बास न बजेगी बाँसुरी , तब राजु बोला संरपच जी आप पेड न कटवायें सारे फल गोलु को दे दे ,
मुझे फल नही चाहियें गोलू मेरा दोस्त है उसे दे दे ...
संरपंच ने हुक्म दिया कि पेड राजु ने लगाये है फलो पर उसका अधिकार है ।क्यो की पेड काटने का दुख राजू को हुआ उसका पेड़ों के साथ चोली दामन का साथ हो गया है ।
पालन -पोषण करने वाला कभी क्षति नही पहुँचाता ।चोली दामन का साथ हो जाता है , क्षति नही पहूचा सकता .. *****
2. चुल्लू भर पानी में डूब मरना
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कमल और रीतेश एक ही क्लास में पढ़ते थे रीतेश बहुत पैसे वाला और घंमडी था कमल साधारण पर होशियार सबकी मददत करने वाला ।
पर दोनों में उच्छी दोस्ती थी साथ में आते साथ में बैठते ।
कमल रीतेश की पढ़ाई में मदद करता था ।
रीतेश को लोगों के पेन चुराने की बुरी आदत थी कई बार पकड़ा गया लज्जित हुआ पर यह आदत छुटी नही ।
आज स्कूल में बच्चों के लिये कुछ मंनोरजन का कार्यक्रम रखा गया था सब आराम से देख रहे के तभी मौक़े का फ़ायदा उठा रीतेश ने कई लोगों के बस्ते से पेन पेन्सिल ग़ायब किया ,
यह हरकत टीचर ज्योति देख रही थी - उन्होंने सब बच्चों को क्लास में आने को कहाँ ।
बच्चे आने के बाद उन्होंने कहा आज मैं आप को एक जादू दिखाती हूँ , जो आपने कहीं नहीं देखा होगा ।
सबसे पहले में सोहन के बस्ते से पेन निकाल कर रीतेश के बेग में डालती हूँ , " छू मंतर काली कंलतर "
अब कमल और सूरज के बस्ते से भी कुछ समान रीतेश के बेग में पहूंचा रही हूँ , और उन्होंने कुछ आंख बंद कर जादुई नाटक कर बोली एक एक जाओ और अपना सामन देखो , मिले तो ले लो
रीतेश की तो " चुल्लू भर पानी में डूब मरने की हालत हो गई , मस्तक पर पसीने की बूँदें नृत्य करने लगी आँखों में शर्मीदगी ने घर बनाया दिल की धड़कनें बेक़ाबू होने लगी और तो और चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी ।
टीचर बडे घ्यान से रीतेश का चेहरा पढ़ रही थी ।
सब बच्चों ने अपना समान रीतेश के बस्ते में पा कर आश्चर्य करने लगे पर कमल सब समझ गया ।
कुछ देर बाद मेडम ने रीतेश को कहाँ मेरे केबिन में आना ।
रीतेश की हालत चुल्लू भर पानी में डूब मरने की थी , हिम्मत ही नहीं हो रही थी टीचर से आँख मिलाने और सामनाकरने की ,
कमल ने हिम्मत दी तब वह डरते डरते टीचर के सामने उपस्थित हुआ ।
टीचर ने कहाँ रीतेश मेरा जादू पंसद आया ...
रीतेश "मुझे माफ़ कर दो , अब यह चोरी नही करुगां , मैं नहीं करना चाहता हूँ , पर हो जाता है ...मैं क्या करु ...टीचर ..?
टीचर समझ गई रीतेश को यह रोग लग गया है इलाज कराना होगा ..
उन्होंने कहा कोई बात नहीं कल अपने पापा को स्कूल में मुझसे मिलने को कहना और घबराओं नहीं यह आदत तुम्हारी ठीक हो जायेगी , मैं तुम्हारी पूरी मदद करुगी ,
जब तुम्हारा मन पेन चुराने का हो तो अपनी उँगली को दांतों के नीचे दबा कर काँटना ध्यान हट जायेगा , मुझसे आ कर बात करते रहना , यह एक मनोरोग है इलाज से ठीक हो जाओगे , घबराना मत मैं पुरी मदद करुगी तुम्हे बहार निकालनें में
सब ठीक हो जायेगा ...
अब जाओ कल पापा को ले आना ...
धन्यवाद टीचर मुरी सहायता करने केलिये ...और रीतेश मन में संकल्प करते हुये अब चोरी नही करुगां केबिन से बहार आ गया । ****
3. डूबते को थाह मिलना
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रात के दो बज रहे थे अचानक फोन बचने लगा मीरा ने फोन उठाया तो उधर से कमली का फोन था रो रो कर कह रही थी मेडम मददत करो मेरी बेटी बहुत तेज बुख़ार में तप रही है मूंह भी नही खोल रही रही मेरे पास पैसे नही है और जगह भी फोन किया पर किसी ने फोन नही उठाया ..
मीरा शांत हो जाओ ठंडे पानी की पट्टी रखो सिर पर और अपने घर का पता भेज दो .. में डाक्टर को लेकर आती हूँ ।
जी मेडम बहुत बहुत उपकार आपका ...लगा रहा है जैसे डूबते को थाह मिल गई है ...चलो ठीक है फोन रखो मुझे डाक्टर को फोन करने दो ...
मीरा ने फोन रखा डाक्टर को फोन किया और पति को जगाना उचित नही समझा एक काग़ज़ पर नोट लिखा की मैं कमलीके घर जा रही हूँ , उसकी बेटी बिमार है ।
मीरा ने गाडी निकाली और डाक्टर के घर पहूची वह भी तैयार थे उनको लेकर पास की वस्ती मेंपहूची .., "डॉ. रुपेश कहने लगे " मीरा तुम्हारा भी जवाब नही आधी रात को इस गंदी बस्ती में मददत को आ गई तुम्हारा दिल बहुत ही सुदंर है ,
मीरा वह तो मैं नही जानती डॉ. रुपेश , परन्तु जो लोग हमारी सेवा करते हमें सुख देते है , उनकी जरुरत पर हम नही साथ देगे तो भगवान को कैसे मूंह दिखायेंगे ...
वह हमसे सवाल तो पूछेगा न और कमली अकेली है , उसका बेटी के अलावा कोई नही है बेटी की बिमारी से घबरा गई है ,
हमें सहायता करनी ही चाहिऐ
तब तक कमली की खोली आ गई , मीरा व डाक्टर को देख कमली उनके पैरो पर गिर कर बहुत अभार व्यक्त करने लगी .
मीरा ने कहा कमली तुम रोना बंद करो और डॉ को अपना काम करने दो ।कमली के अंदर का डर कम हो गया था उसे लगा जैसे डूबनते को थाह मिल गई ...
डॉ ने मरीज़ को देखा और अपने पास से दवाई दी तथा इंजेक्शन लगाया जिससे उसका बुख़ार उतर गया और वह आंखे खोल कर सब को देखने लगी कमली मारे खुशी के मीरा के गले लग कर धन्यवाद कहने लगी ..
डॉ ने कमली को कुछ हिदायत दी और हल्का खाना देने को कहा तथा अपना कार्ड दे कर बोले दो दिन बाद आकर मेरी क्लीनिक में आ कर बिटिया को दिखा जाना ..
फिस की चिंता मत करना क्योंकि मीरा मेडम ने दे दी है
कमली ..आज कल भी आप के जैसे लोग भगवान बन मददत करने आते है , नई ज़िंदगी देते है । मैं सबको फोन कर हार गई थी सबने कहाँ सुबह देखेंगे , पर आप बिना कुछ कहें डॉ साहब को लेकर आ गई आप का यह उपकार कभी नही भूलूँगी ..
मीरा ठीक है मत भूलना पर तुम भी जरुरत पर किसी की मददत करना और दो तीन दिन काम पर मत आना बेटी का ख्याल रखो .
और वह गाडी पर बैँठ कर चली गई , कमली को सब सपना जैसा लग रहा था मीरा मेडम ने कैसे उसडूबते की थाह बन कर आ गई
वह वही खड़ी उनको जाते देख रही थी और दुआयें देती जा रही थी ****
4.डकार जाना
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घर में रिश्तेदारों की भीड़ जमा हो गई हर साल गर्मीयों की छुट्टी में सब रिश्तेदार , नरेश बाबू के घर आते है । सालों से यह सिलसिला चल रहा है ।
बहने , बुआ , मौसी आदि सब आते है बहुत रौनक़ लगी रहती है
नरेश शहर का नामचीन व्यापारी था आलीशान कोठी , हर सुख सुविधा और वैँभव से परिपूर्ण, सब आते महिनो रहते ,
इस बार सब लोग आये मज़े से रहते , एक दिन नरेश की बहन नरेश के पास आई और बोली भाई मेरा बेटा बिज़नेस करना चाहता है आप १० लाख की मददत कर दो दो साल में वापस कर दूँगी नरेश ने कहाँ अरे बहन क्यो नही करुगी जरुर करुगा पर पैसे आधे एक साल बाद देना व आधे दो साल में पूरा दे दे ।
आप बात कर बताओ यदि उसे मंज़ूर है तो मैं दे दूँगा ।
बहन मान गई नरेश ने दस लाख का चेक दे दिया व व काग़ज़ पर क़ायदा लिखना कर साईन ली की दो साल में पूरा वापस देगे ।
एक साल बित बहन आई नही पूछा तो कहा तबियत ठीक नही दूसरा साल भी निकल गया नरेश ने फोन कर पूछा तो कहा दे देगे अभी परेशानी है । काफ़ी समय सेयबहन ने बातचीत भी बंद कर नरेश को समझ मआ गया बहन डकार गई सब पैसा अब नही मिलेगा । लोग रिश्ते भूलाकर पैसो पर नियत ख़राब करते ।
अब मेरी बहन अनाथ हो गई देने की नियत रखती तो में उसे मना कर देता , मेरी बहन है पर जहाँ नियत साफ नही सिर्फ स्वार्थ है वही , मेरे दस लाख ही डकार गई शायद नियत सही रखती तो मैं और मदत कर देता .. ****
5. घड़ों पानी पड़ जाना
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आंफिस में एक दम सन्नाटा था
कम्पनी के डायरेक्टर मनोज कुमार का आज पारा सातवें आसमान में था ।
और हो भी क्यो न अपने हर कर्मचारी का ख्याल रखते है
किसी के कोई तकलीफ़ नही होने देते ।
लाकडाऊन में भी किसी को काम से नही निकाला सब को समय पर सहायता की और आज कम्पनी के अकाऊट मे हेरा फेंरी पकड़ ली । बस दिमाग़ तो ख़राब होना हा था ।
तुरन्त ,शिवनाथ और भाष्कर को बुलाया गया छन बीन में दोनो धोखा धड़ी में पाये गये सबके बीच खड़ा कर बहुत सुनाया गया और कहाँ मनोज कुमार में या तो इस्तीफ़ा दो या शपथ खाओ की अब ऐसा नही करोगे ।
दोनो शर्म के मारे गड़े जा रहे थे
मानो "घड़ों पानी पड़ गया हो "
आफिस के अन्य कर्मचारी खुसुर पूसुर कर रहें थे ।
वो दोनो शर्म से गढ़े जा रहे लगता था सारी इज़्ज़त व मेहनत पर घड़ों पानी पड़ गया -
समझ नही पा रहे थे की इस्तीफ़ा दे या माफी माँगे ...?
तब तक मनोज कुमार ने ऐलान किया हमारे यहाँ दो कर्मचारी बहुत ईमानदार पाये गये है ।
गोविंद और प्रणव दोनो का स्वागत किया जायेगा और प्रोमोशन दिया जायेगा और शिवनाथ , भाष्कर की पोस्टर लगा कर लिखो धोखाधड़ी करने वालो से सावधान ।
अब तो दोनो की स्थिति चुल्लू भर पानी में डूब मरने की हो गई ।
दोनो मनोज कुमार के पैरो में गिर कर माफी माँगने लगे ।
माफ कर दो ग़लती हो गई हम सब वापस कर देगे पैसा धीरे धीरे नौकरी से मत निकालो बच्चे भूखे मर जायेगे ...
मनोज कुमार ने कहाँ मैं कैसे माफ करु इतना धोखा किया है और क्या ग्यारँटी तुम सुधर जाओगे बोलो ..
दोनो ने क़लम खाई और कहाँ डिपार्टमेंट चेंज कर दो जहाँ पैसे का काम न हो हम हर काम करने को तैयार है ।
मनोज कुमार ने कहाँ ठीक है नया काम देते है , और हर महिने तनख़्वाह से पैसा थोड़ा थोड़ा कटेगा ..
ठीक है सब काम पर लग गयेपर शिवनाथ और भाष्कर अभी भी खड़े थे मानो घड़ों पानी पड़ रहा हो उनपर । ****
6. आकाश पाताल एक करना
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भोपाल के हमीदीया अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में कई डा. और कर्मचारी बेड न. १९ , के लिये चर्चा कर रहे थे हाय बेचारी फूल सी बच्ची कैसी तडफ रही है कितनी सुदंर है लगता है ज़्यादा दिन नहीं चल पायेगी । इंसके माँ बाप कैसे सह पायेंगे ,
सुदंर सी बच्ची की मौत .......।
अलका को साँस की बिमारी थी वह साँस लेती तो लगता कोई मशीन चल रही है इतनी आवाज़ होती , कमरे के बहार तक आवाज जाती थी । लगता था मानो आटा पि़सने की मशीन चल रही है । इतनी आवाज़ आती थी निमोनिया बिगड़ गया था । और साँस की बिमारी हो गई थी ।
जूनियर डा. देख कर चले गये थे अब बड़ी "डा.चूक , "देखने आई उन्होंने अलका के पापा को कुछ हिदायत दी और कुछ बातो का ख़्याल रखने को कहाँ ।
और अलका के सर पर प्यार भरा हाथ रख कर चली गई .
अलका डॉ.की बातें समझ तो नहीं पाई थी पर यह अंदेशा लग गया था की वह शायद वह अब बचने वाली नहीं है , यह संसार छोड़ना कर जाना होगा ।
जब अलका के पिता उसका का बुख़ार नाप रहे थे तब अलका ने कहाँ "पिताजी मैं मर जाऊँगी "अब नहीं बचूँगी क्या ...?
आप लोग मुझे गंगा में बहा देगे बच्चो को मरने के बाद बहा दिया जाता है । क्या आप मुझे भी गंगा की गोद में छोड आयेंगे ।
उसके पिता डॉ शिवदत्त बोले नहीं बेटा मैं "आकाश पाताल "एक कर दूँगा पर तुम्हें मरने नहीं दूँगा ।
उन्होंने कुछ बैघ से बात की वह अलका को अपने रिस्क पर घर ले आये . अस्पताल से छुट्टी करा कर ....
और आयुर्वेदिक औषधियों से चिकित्सा शुरु की रात रात भर जाग जाग कर सेवा की सच में
आकाश पाताल एक कर अलका को जीवन दिया वह नन्ही बच्ची कुछ नही समझती थी पर पिता को रात भर परेशान देखती आयुर्वेद की किताब पढते बैघ से बात करते , अन्न देना एक दम बंद कर दिया था । पपीता ही खाने को देते और फल आदि अलका समझ रही थी मैं नही बचूँगी , वह कभी अपने आप रोती
पिता को आकाश पाताल एक करते देखती उनकी फ़िक्र देख और परेशान होती ,
डॉ शिवदत्त शुक्ल जी ने बैघ के साथ बात कर "मुक्ता सूक्ति पिस्टी " मकरंध्वज " शहद के साथ देना शुरु किया , और बारहसिंगा . नील का तेल पसलियों में लगाते ।
अंगूर , पपीता , मोरधन , आदि देना शुरु किया , रात रात भर बुख़ार नापते रोज थर्मामीटर टूटता , रोज नयाआता , कंधे दर्द करने लगते थर्मामीटर को झटक झटक कर कंधे दर्द करने लगते पर बेटी को ठीक करने के लिये शुक्ल जी " आकाश पाताल एक कर रहे थे ।
एक रात अलका को उल्टी हुई भयानक उल्टी उल्टी में कफ की रस्सियाँ बनी निकली ढेर सारी रस्सियाँ कफ की बनी निकलती गई ...
पिता ने कहाँ बेटा अब फिक्र की बात नहीं है दवा काम कर रही है तुम बहुत जल्दी दौड़ने लगोगी ।
अलका को उल्टी के बाद बहुत आराम आया ।
पिता की मेहनत और सेवा ने काम करना शुरु किया ।
सब रिश्तेदार डॉ शिवदत्त की हिम्मत को सलाम करने लगे ।
कहते हम को डर रहे थे , तुम बच्ची को अस्पताल से लाकर अपना इलाज कर रहे थे "मकरंद ध्वज और मुक्ता सूक्ति से कही कुछ बिगड़ न जाये पर आपका शोध और सेवा ने चमत्कार किया । , आज आप के विश्वास की जीत हुई है ।
जो इलाज अस्पताल में नही हो पाया वह आपने शोध कर के किताबे पढ पढ बैघ की सलाह ले अंजाम दिया आप को मानना पड़ेगा ।
डॉ शिवदत्त बोले मेरी बेटी की आंखो में निराशा नही देखना चाहता था उम्मीद और आस कभी नही छोड़ना बाकी सब ऊपर वाले पर छोड कर्म करते रहो वह सफलता अवश्य देगा
बस वही किया फल तो प्रभु ने दिया ।
अलका अब पूरी तरह से ठीक हो जायेगी । अब ख़तरा टल गया है
बस थोड़ी जान आ जाये तो रोज
बग़ीचे में घूमाने ले जाऊ सेहत बनाऊ ...!
अलका पापा मुझे "चूक "बनना है ।
सब हंस पड़े शुक्ल जी ने कहाँ बेटा "चूक "तो नाम है कहो मुझे डाक्टर बनना है ।
अलका है पापा फिर सबको मैं ठीक करुगीं ।
हाँ हाँ जरुर करना अभी तुम पूरीवतरह ठीक हो जाओं
मैं ठीक हो गई हूँ ।
सब रिश्तेदार जाने लगे जाते जाते बोले शुक्ला तुम ही दम था , आकाश पाताल एक कर बेटी को मौत के मूंह से निकाल लाये । ****
7. थोथा चना बाजे घना
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राम दयाल बहुत प्रतिष्ठ व्यक्ति थे , दर्जनों नौकर उनके यहाँ काम करते सबसे बहुत ही स्नेह व प्यार से बात करते थे । पैसे का घंमड छू तक नही गया था
उनके दोस्त काशी नाथ बहुत ही साधारण पारिवारिक जीवन व्यतीत कर रहे थे , जब भी वो राम दयाल के यहाँ आते नौकरों से बदतमीज़ी से बात करते डाँट डपटते रहते , अपना दिखावटी रौब जमाते मानो कही के शहनशांह हो नौकर आपस में बात करते "थोथा चना बाजे घना "और ख़ूब हँसते ...
रामदयाल सब देखते पर दोस्त को कुछ कहते नही जब भी वो आते किसी न किसी बहाने दो चार हज़ार की मददत कर देते
काशी नाथ कहते नही यार सब ठीक है तुम्हारे हाल-चाल लेने आता हू इसकी जरुरत नही है , रामदयाल बडी सहजता से कहते तुमको नही दे रहाँ बच्चो को मीठाई ले जाना मेरी तरफ से ..
नौकर सब देखते समझते और रामदयाल के लिये आदर भाव जाग जाता ।
रामदयाल काशी नाथ की हालत जानते थे तभी बिना कहे मददत करते और कभी जताते नही ।
और काशी नाथ ऐसे दिखाते जैसे यह सारा कारोबार रामदयाल का नही उनका ही है ।
हफ़्ते में एक बार जरुर आते एक बार रामदयाल ने कहा काशी मेरी कम्पनी में मेरा हाथ बँटाओ अकेले अब काम सम्भलता नही जितना कहोगे पगार दूँगा ..
काशी नाथ मुझे जरुरत नही है हाँ यू ही तुम्हारी मददत कर दूँगा ,
पैसे के लिये नही ,
पास ही मैनेजर कुछ काम कर रहा था सुना तो उसके मूंह से निकल गया , थोथा चना बाजे घना " रामदयाल ने सुन लिया ,
मैनेजर को डाँट कर वहाँ से भगाया और कहाँ कभी किसी की परिस्थितियों का मज़ाक़ मत बनाओ कब ऊपर वाले की लाठी चले पता नही अपना काम करते रहो समझे , मैनेजर बहुत शर्मीदा हुआ , और काशी नाथ जो सब देख सुन समझ रहे थे अपने दोस्त की भलमनसाहत गर्वित हो उठे ।
और बोले बता मेरे यार मुझे क्या करना है ।
कल से तेरे यहाँ काम पर आ रहाँ हूँ झूठी शान में अब नहीं जीना ।
तुम्हारे मैनेजर ने सही कहाँ .."थोथा चना बाजे घना " तुम ने बेकार ही डाँट लगाई ,
पर यह अच्छा हुआ मेरी आँख खुल गई जो देना हो देना मैं काम पर आ रहा हूँ , पर दोस्ती नही एक मालिक और एक नौकर की हैसियत से ।
काम के बाद दोस्तों की तरह मिलेंगे , अब चलता हूँ
रामदयाल के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई ...!!****
8. आग पर पानी डालना
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नेहा बहुत सिधी व सरल ह्दय की है लड़की है , उसकी जेठानी कोयल बहुत लड़ाकू व कर्कशा है हमेशा घर में किसी न किसी बात पर झगड़ा लगाती रहती है ।
नेहा चुप चाप आँसू बहा कर रह जाती है उनकी साँस माया देवी दोनो की लडाई में आग में पानी डालने का काम करती है । अक्सर समझा बुझा लडाई ख़त्म कर देती है ।
पर आज तो कोयल ने हद ही कर दी वह अपनी सासू माँ पर ही भड़क गई क्यो की माया देवी ने नेहा को अपने हाथ के कंगन पहना दिये और पहनाती भी क्यो न नेहा रोज उनके पैर दबाती , दवाईयों का ख्याल रखती बहुत सेवा करती , खाने पीने का ख्याल रखती खुश हो कर माया देवी ने अपने हिरे के कंगन नेहा को पहना दिये ।
यह बात कोयल को हज़म न हुई व आग बबूला हो बिफर पड़ी , आवाज़ सुन कर पड़ोस की चाची आई सारा मामला समझ बड़े प्यार से बोली अरी कोयल तुम इस बात पर झगड़ा कर रही हो की माँ ने नेहा को कंगन दे दिये । तुम्हे तो खुश होना चाहिये माँ ने खुश हो कर सारी जायदाद उसके नाम नही की मेरी बहू नेहा जैसी होती तो मैं सब कुछ उसको ही दे देती , मैं तो कहती हू तुम्हे भी अपने कंगन नेहा को दे देना चाहियें वो तुम्हारा व तुम्हारे बच्चो का भी ख्याल रखती है ।
अगर चाहती हो तुम्हे भी माया कुछ उपहार दे तो झगड़ना बंद कर काम करो सबको प्यार दो प्यार पाओ चाची ने आग पर पानी डाल सब सही कर दिया खरी खरी बात सुन कोयल बहुत शर्मीदा हुई व माया देवी से माफी माँगी तथा नेहा को गले लगा बोली तुम छोटी हो कर भी समझदारी से पूरे घर को सम्भाल लिया है मैं हू की सारा दिन पर इल्ज़ाम लगा झगड़ने के बहाने खोजती हूँ सब लोग मुझे माफ कर दो मैं भी नेहा जैसी बनने की कोशीश करुगी तब तक नेहा के ससुर की आवाज़ आई कौन नेहा जैसा बन रहा है , हमें भी बताओ और नेहा बहू एक कप चाय देना बेटा ...
कोयल अभी लाई बाबू जी
अरे वाह आज बडी बहू के हाथ की चाय पी कर तो बहुत मज़ा आयेगा । बरसो हो गये बहू के हाथ की चाय नही पी ...
माँ जी अब मेरा घर स्वर्ग बन जायेगा ।
चाची को नेहा ने थैक्स कहाँ तो कहती है चाची अरी बिटीयां यह थैंक्कू वक्कू हमको नही मालूम तुम को हमसे गले मिलो तभी हमार आशीर्वाद मिली ...
नेहा जी चाची ..जी
तब तक कोयल सबके लिये चाय ले आती है आज चाची ने जो आग पर पानी डाला उसकी वजह से परिवार में ख़ुशियाँ आ गई ****
9.कतरनों का कमाल
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लाकडाऊन की अवधी बढ़ती ही चली गई रेणुका के परिवार की हालत दिनों दिन बिगड़ती जा रही थी , पति की नौकरी छुट गई बच्चे छोटे उसका काम भी छूट गया क्या करें बहुत उलझन बढ रही थी कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे लाकडाऊन में काम भी मिलना मुश्किल तभी उसकी नजर अलमारी में रखे कपड़े पर गई और उसको काम मिल गया उसने उस कपड़े को निकाला जो उसकी सहेली ने जन्मदिवस पर ड्रेस का कपड़ा तोहफ़ा दिया था उसने मशीन निकाली बहुत दिनों से धूल खा रही थी मशीन को उसने पोछा तेल डाल कर सही किया व उस कपड़े से मास्क काँटे तरह तरह की डिजाइन से चून्नी की पाईपीन लगाई रात भर में बहुत से मास्क बन गये सुबह बेटे व पति को बेचने भेजा , दोपहर तक ही सारे मास्क बिक गये दोनो खुशी खुशी घर आये अब रेणुका की वक़्त पर सही निर्णय लेने व मेहनत ने घर की गिरती आर्थिक स्थिति की डूबती नैया को पार लगाने का रास्ता दिखाया ।
वह कुछ पैसे से चावल दाल लेकर सारे पैसे से कपड़ा ख़रीद लाई वह दुकान पर कटपीस थे वह टुकड़े लेती जो उसे बहुत कम पैसो में मिलने लगे , फिर वह टेलर्स के पास से बडी बडी कतरन ले महिलाओ में एक उदाहरण पेश किया की सूझ बूझ से कठीन परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाया जा सकता है ।और अब रेणुका महिलाओं को काम देने लगी , और घरो के बच्चो को बेचने के लिये माल देने लगी , आस पास के सभी लोगो से काम करवाने लगी इस तरह उसकी सुझ बुझ ने एक उदाहरण पेश किया जिससे अन्य महिलाओं को भी अपने लघु उघोग करने के आडीया आने लगे । रेणुका उसके परिवार के साथ कोई और परिवारों की डूबती नैया को पार लगाने का काम शुरु कर दिया । पूरा मोहल्ला रेणुका की सूझ बुझ का उदाहरण पेश करता ।
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10.उमंग
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सुबह के पाँच बज गये थे मालती पंलग पर लेटे लेटे किताब पड़ रही थी , किताब एक लघु उपन्यास था जिसमें वृद्धों की समस्याओं को रेखांकित किया गया था , मन और खिन्नता से भर उठा , मालकी उठने और चाय बनाने के लिये कई बार कोशीश की पर फिर किताब को पँढने से रोक नही पाई ओर पढने लगी ..
अकेले चाय पीने का मन नही करता . घर "साय साय "कर काटने दौड़ता है ।
कई वर्षो से मालती अकेली घर में रह रही है पति राकेश ने वर्षो पहले दूसरी औरत कर ली थी जब पता लगा मालती को तो हंगामा तो नही किया पर मालती ने तलाक़ भी नही लिया और साथ रह भी नही पाई अकेली जीने की आदत डाल ली .
सर्विस थी स्कूल में बच्चो के साथ समय कट जाता था ।
सेवा निवृत्त होने के बाद धीरे धीरे घर काटने दौड़ता ,
सन्नाटा पसरा रहता घर में , काम नही रहता है ज्यादा तो कामवाली भी नही लगाई , अकेले आदमी का क्या काम कुछ भी बनाया खाया ,
लेटे लेटे ख्याल आया क्यो न वृद्धा आश्रम चला जाय बस एक झटके में मालती उठी , चाय बनाई पी कर नहा धोकर तैयार हो दुकान से तेल , शैम्पू , साबुन , बाम ,आदी लेकर स्वीट ओल्डडेज होम पहूंच गई , पूरा दिन सबके साथ बातचीत की जरुरत का सामान दिया और सबको आईसक्रीम मँगा कर खिलाई , शाम को सबसे विदा लेकर व फिर आने का वादा कर घर आ गई ।
घर अब उसे ख़ुशनुमा नजर आ रहा था मन में संगीत बज रहा था "पंक्षी बनू उड़ती फिरु मस्त गगन में "
गा गा कर नाच रही थी घर जो काट खाने दौड रहा था वही अब खुशीयां दे रहा था सारा सन्नाटा ग़ायब मन में दूसरो के लिये जीने व सेवा की भावना जाग्रत हो गई जीने का मक़सद मिल गया , वृद्धा आश्रम में रोज सेवा दूँगी यह ख्याल ने ही उसे जिवंत बना दिया । ****
11. आस्तीन का साँप
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डा राकेश बहुत सहदय व्यक्ति थे हमेशा लोगो की मददत करते नौकरों को बहुत प्यार से बात करते उनका ख्याल रखते थे
आज वह बहुत परेशान बैठे थे बार बार यहाँ वहाँ फोन कर रहे थे
तभी उनका दोस्त नकुल आया और बोला राकेश भाभी को बोल एक कप चाय पीलायें , आज तेरे साथ ही अस्पताल चलूँगा एक दोस्त भर्ती है उसे मिल लूँगा ।
पर ये बता तुम क्यो इतने परेशान
नजर आ रहे हो ।
कुछ नही यार आस्तीन में साँप पालने की आदत है । मुझे साफ साफ बता क्या हुआ ...!
कुछ नही यार एक दिन अस्पताल में एक साथ पति पत्नी दोनो चले गये उनका एक लड़का था बहुत रो रहा था तो मैने सांत्वना दी तो कहता है साहब आप कोई काम दे दो ईमानदारी से काम करुगा ..दया खा कर मैने क्लिनिक व घर मे काम के लिये रख लिया आज सुबह उठा तो वह घर पर नही था । अलमारी खोली तो पैसे जेवर सब ग़ायब फोन बंद आ रहा पुलिस में शिकायत करुगा तो उसकी ज़िंदगी ख़राब हो जायेगी । इस लिये चुप बैठा हूँ , तेरी भाभी पुलिस बुलाने की बात कर रही है ।
" नकुल पागल हो गया है राकेश तू ऐसे आस्तीनों के साँपों को छोड कैसे सकता है , सजा होगी तभी ये सही रहेंगे नही तो कहाँ कहाँ किसको किसको डँसेंगे पता नही ,
नेहा चाय लेकर आयी अंदर से डॉ . की पत्नी को देख नकुल बोला क्यों भाभी सही कह रहा हूँ न मैं ..,
" हाँ हाँ ऐसे आस्तीन के साँप को सजा मिलनी ही चाहिऐ
इतना प्यार से रखा था बेटे के जैसे पर निकला आस्तीन का साँप ...****
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क्रमांक - 10
शिक्षा- एम.एच.एससी. बी.एड.
लेखन :
पिछले कुछ सालों से लेखन में सक्रिय हूँ। लघुकथाएं, कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। समय समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं।
प्रकाशित पुस्तकें : -
एकल संग्रह- मुट्ठी भर क्षितिज ( कहानी संग्रह)
साझा संकलन- सेदोका की सुगंध।
विभाजन त्रासदी की लघुकथाएं में "अपना अपना सच"
डाॅ. रामकुमार घोटड़ जी संपादक
पड़ाव एवं पड़ताल 32 में लघुकथा "मन की बात"
भूख आधारित संकलन - गिरगिट एवं बोध
समसामयिक लघुकथाओं का दस्तावेज- सारथी, गर्म रजाई।
समसामयिक लघुकथाएं- सृजन बिंब प्रकाशन, महिला दिवस एक अभिव्यक्ति एवं जिंदगी जिंदाबाद सभी में लघुकथाएं।
पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -
दैनिक भास्कर मधुरिमा, युग जागरण, इंदौर समाचार, चिकीर्षा ई-पत्रिका, नवभारत साहित्यनामा में लघुकथाएं प्रकाशित होती हैं
सम्मान / पुरस्कार : -
लघुकथा आयोजन २०२० में मेरी लघुकथा "सौधी महक" को प्रथम पुरस्कार मिला। वनिका प्रकाशन ने पुस्तक रुप दिया" आयोजन २०२०, एक समग्र प्रयास"।
Address : _
C_1401, Niharika kankia Spaces
Opposite Lokpuram mandir
Thane (west)400610 Maharashtra
1. तलाश
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सुबह सुबह ही मन कसैला हो गया था राधा का । पति से कहासुनी हो गई और वह आज गुस्से से पांव पटकती पैदल ही काम पर निकल पड़ी ।
एक एक कदम आगे बढाती और उतने ही कदम अतीत में उतरती जाती । सत्रह साल की उमर में सरजू से ब्याह हुआ था उसका ।
गांव का घर , सास-ससुर, जेठ-जिठानी , उनके तीन बच्चों से भरा पूरा परिवार मिला । सरजू ब्याह के एक महीने बाद ही मुंबई वापस चला गया और कह गया कि , " तू चिंता मत करना, अम्मां - बाबू तेरा ध्यान रखेंगे मैं चार महीने में मकान का इंतजाम करके , तेरे को साथ ले जाऊंगा ।"
चार महीने , चार साल में पूरे हुए और जब जब सरजू आता तो दिलासा देता की ," मुंबई में मकान मिलना आसान नहीं है, आटो रिक्शा चलाता हूँ कोई रईस नहीं हूँ ।"
जब मुंबई आई तो तीन साल की गुड़िया और गोद में मुन्ना था ।
छोटे से मकान को राधा ने प्रेम, मेहनत से घर बना दिया । हंसता खेलता, खुशनुमा घर ।
समय के साथ उसने दोनों बच्चों की सही परवरिश की और पास के स्कूल में पढ़ने भेजा । सरजू और बच्चों के जाने के बाद वह खुद पास की सोसायटी में दो घरों का खाना बनाने लगी । बच्चों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए यह जरूरी था ।
कल रात ही जेठजी का फोन आया कि, " अम्मां-बाबू को लेकर जाओ , आखिर तुम्हारे माँ-बाप भी तो हैं । हम कब तक संभालेंगे ।"
कल रात भर राधा और सरजू सोए नहीं । गांव के घर, आस-पड़ोस की आदत थी अम्माँ -बाबू को, यहां छोटे से घर में कैसे रहेंगे ?
राधा को तो गांव में बिताए चार साल भूलते नहीं थे जब जिज्जी उसे बासा खाना दिया करती थी और कहती, " खा ले छोटी , मुझे पचता नहीं और अम्मां को देना नहीं है ।" अम्माँ भी मौन देखती अपनी बड़ी कारबारी बहू का काम , कभी हस्तक्षेप नहीं किया ।
नई साड़ी हमेशा जिज्जी के लिए होती और उनकी उतारन राधा को मिलती , सरजू जो नहीं रहता । आने पर बोलती तो कहता, " अरी..! पगली , घर में ऐसा होता है , मैं तेरे लिए अगली बार साड़ी लाऊंगा ।" साड़ी आई भी और जिज्जी ने खुद पर लिपटाते हुए कहा, " वाह..! मेरी पसंद का रंग है देवर जी ।" अम्माँ तब भी कुछ ना बोली ।
सहसा बिल्डींग के गेट के पास पहुंची , तो उसका ध्यान टूटा और यथार्थ से पैर टकराए ।
भीड़ लगी थी, पता चला कि पहले माले पर जो बूढ़े अंकल आंटी रहते थे वे नहीं रहे । अकेलेपन ने तोड़ दिया और उन्होंने रात को ज्यादा नींद की गोलियां खा ली ।
हतप्रभ दूर खड़ी राधा ने पुलिस की भीड़ देखा और घर की ओर पलट गई । आंटी ने एक बार कुछ कपड़े देते हुए कहा था कि, " मेरी साड़ियां हैं, अब नहीं पहनती , तुम चाहो तो पहन लेना ।"
आज उसने वही पहनी थी ।
बच्चों के बिना वो अकेले थे, और विदेश जाने को तैयार नहीं ।
अम्माँ-बाबू का चेहरा राधा के सामने घूम गया । वह बड़बड़ाने लगी, " नहीं, ना जाने किन हालातों में अपने गांव को छोड़कर उनके पास आना चाहते हैं । कल ही टिकट करवाना पड़ेगा , अम्माँ- बाबू को घर में लाना होगा । यह घर उनका ही तो है ।"
आसपास के ऊँचे ऊंचे मकानों में उसकी नजरें घर तलाश रहीं थीं । *****
2. विनिमय
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कार से उतरते हुए दीपक ने पत्नी को फोन लगाया,"कितने केले लाने हैं?"
उत्तर मिलते तक, आठ साल का सोनू, केलावाले के सामने पहुंच चुका था।
"कैसे दर्जन दिए केले?" दीपक ने केलावाले से पूछा।
"साठ रुपए साहब।" आँखों में उम्मीद चमक रही थी।
"साठ रुपए! बाजार से इतना ज्यादा रेट!" दीपक ने आश्चर्य से पूछा।
"पचास में तो मेरी खरीदी है साहब, त्यौहार आ रहा है, इसी बिक्री पर तो सब की आस है।" कहते हुए उसकी आंखों के सामने अपने बाल-बच्चों के नए कपड़े घूम गए।
"दर्जन पर दस रुपए का मुनाफा, नहीं नहीं, मैं तो पचास ही दूँगा।" दीपक ने स्पष्ट किया।
"पचास तो लागत है, ऊपर से आॅटो का खर्च भी लगता है साहब।" केला वाले ने हिसाब बताया।
मोल-तोल के बाद, पचपन पर बात बन गई और दो दर्जन केले, थैली में डाल कर दीपक कार की ओर बढ़ने लगा।
" पापा, मुझे एक केला चाहिए।" सोनू ने थैली में से केला निकालने के लिए हाथ डाला।
"अरे! क्या कर रहा है? मम्मी ने पूजा के लिए मंगाया है।" उसका हाथ पकड़ कर दीपक ने डांँटा।
मुँह उतार कर जाते सोनू ने पलटकर केला वाले की ओर देखा।
केला वाला, एक केला हाथ में पकड़े हुए, उसे बुला रहा था।
दौड़ कर सोनू ने केला ले लिया," थैंक्यू" कहकर कार की ओर बढ़ने लगा।
अचानक, पलटकर फिर केला वाले के पास गया। अपने पैंट के पाॅकेट से एक चाकलेट निकाल कर, केला वाले के हाथ पर रख दिया।
"थैंक्यू" अब बारी केला वाले की थी।
वस्तु विनिमय के साथ, दिलों के विनिमय का दृश्य दीपक को अचरज से भर गया। उसे अपने हाथ में रखे, पचपन रुपए दर्जन के केले, मनों भारी लगने लगे। ****
3.उजियारा
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आज मनोज सर के घर शाम की ट्यूशन है । विशु को गणित पढ़ाते हैं मनोज सर । उनके पास बहुत से बच्चे आते हैं पढ़ने । उन्होंने कभी किसी बच्चे से फीस तय नहीं किया, तय किया तो सिर्फ समय और पढ़ाई ।
पिछले महीने की फीस विशु को दिया कि , " सर कोई पावती देते हैं क्या ? उन्हें याद रहेगा कि तुमने फीस दी है ।"
" पिताजी, सर औरों से अलग हैं । अगले महीने आप मेरे साथ चलना और उनका हिसाब देख आना ।"
विशु ने ही बताया कि सर घर छोटा है तो कक्षा बाहर खुले में, बिजली के खंभे के नीचे लगाते हैं । बारिश में एक तालपतरी बंध जाती थी और बस.. कक्षा चालू ।
आज एक तारिख है और विशु के साथ उसके पिता ने सर के घर जाने का निश्चय किया ।
" देखूं तो, कैसे शिक्षक हैं ? दो माह पहले फीस देना भूल गए तो उन्होंने कोई तगादा नहीं किया । इसी काल के हैं या कुछ अलग हैं ।"
विशु को अपनी स्कूटर पर बिठाकर चल पड़े ।
सर का छोटा सा घर और घर के बाहर नगरनिगम की खुली जगह में कक्षा शुरू हो रही थी ।
" नमस्ते सर " विशु के पिताजी ने कहा ।
" आप..! आइए ना नमस्ते ।" खुशी से मनोज सर ने सामने बेंच पर बैठने का आग्रह किया ।
" बस .. ऐसे ही आया । सोचा आपसे मिलकर विशु के बारे में जानकारी ले लूँ और फीस भी जमा कर दूँ ।" विशु के पिताजी ने कहा ।
" विशु तो बढ़िया कर रहा है । समझदार बच्चा है । " सर ने बताया ।
" सर ..! आपकी फीस ..! कितनी देनी है ? विशु ने कभी कुछ बोला नहीं , जितना भी मन हो दे दो कहता है ।" थोड़ा झिझकते हुए विशु के पिता ने पूछा ।
" अरे..! आप यह पूछने आएं हैं , विशु तुमने पिताजी को बताया नहीं ।" विशु की ओर देखकर सर ने कहा और एक तरफ इशारा कर दिया ।
एक किनारे पर, सफेद रंग का एक छोटा संदूकनुमा डिब्बा रखा था । एक बच्चा गया और उसमें कुछ नोट डाल दिए ।
" यह फीस जमा करने का डिब्बा है आप उसी में डाल दीजिए । कौन कितना डालता है ना किसी को मालूम ना मुझे ।" सर ने अपनी कक्षा शुरू करने की सूचना दी ।
विशु के पिता ने जेब से निकालकर रुपए डिब्बे में डाले और सामने पढ़ाने में तल्लीन एक बड़े दिल वाले व्यक्तित्व जिनका प्रकाश बच्चों के भविष्य को उज्जवल कर रहा था , उन्हें नमन करते हुए निकल चले ।*****
4. नसीहत
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सुबह से ही चुनमुन गौरैया उदास है । आज के जमाने में, उसे गर्भावस्था में शरण देने वाली घर मालकिन के दुख से वह व्याकुल हो उठी है । घर मालकिन ने , रोशनदान में रहने की जगह दी और अब उसके दोनों अंडों को भी रहने दिया है कि बच्चे होंगे तो बाहर उड़ ही जाएंगे वरना आजकल तो लोग फटकने नहीं देते ।
घर मालकिन ने दुखी मन से खाना बनाया और बच्चों को खिलाया , स्वयं खाया भी नहीं ।
चुनमुन को इतना तो समझ गया था कि मालिक दुनिया में नहीं हैं और बेचारी अकेले ही घर चलाती है ।
ना जाने क्यों, आजकल एक आदमी हमेशा आता जाता रहता था और मालकिन खुश होती थीं ।
बच्चों के लिए भी कुछ कुछ लाता था ।
चुनमुन ने अपने दोस्त कालू कौवे से कहा , " कौन है आदमी ..पता नहीं..! मुझे तो अच्छा नहीं लगता ।"
" अरे..! दोस्त होगा ..! तुम तो बेकार ही शक करती हो ।" कालू बोला और उड़ गया । शाम को चुनमुन ने अपने चिड़ा को भी बताया , " आदमियों के स्वभाव , व्यवहार को भगवान भी नहीं समझ सकते , तू अपना दिमाग क्यों लगाती है? हमारे बच्चों के पंख आने तक हम यहां हैं फिर थोड़े ना इसी घर में रहेंगे ।" नर ने अपनी निर्लिप्तता दिखाई ।
आज मालकिन की स्थिति से चुनमुन को अंदाजा लग गया कि उस बदमाश ने कोई धोखा दिया है । मालकिन सुबह से ही रो रही है ।
" आज दो दिन से चिड़ा आया नहीं कालू ..! पता नहीं ..! रात तेज हवा-तूफान भी था । तुम तो मेरे दोस्त हो, थोड़ा आसपास उड़कर पता करो ना ।" भयभीत चुनमुन बोली । घर मालकिन का दुख, चिड़ा का ना आना और रात की तेज हवाओं से वह घबरा रही थी ।
" वह कहां फिरता है, कहां चुगता है, मुझे कैसे मालूम होगा ? तुम ज्यादा जानती हो ..! ऐसा करो , तुम ढूँढ आओ , मैं बाहर से तुम्हारे अंडों की देखभाल करता हूँ ।" कालू दोस्त की बात चुनमुन को सही लगी ।
अपने जान से प्यारे दोनों अंडों को रोशनदान की बाहरी दीवार की ओर सरकाया, किनारों पर घांस-फूस जमाकर कालू की निगरानी में छोड़ चिड़े की तलाश में निकल गई ।
एक घंटे की दौड़ भाग के बाद भी उसका चिड़ा नहीं मिला तो जल्दी जल्दी पंख फड़फड़ाते वह रोशनदान में जाने लगी । मालकिन को उसी रोशनदान की ओर देखते पाया ।
" उसके अंडे ..! हे भगवान..! कालू ..धूर्त .. दगाबाज ..!" लड़खड़ाती हुई रोशनदान से बाहर देखी तो सामने पेड़ पर बैठा कालू अपनी चोंच साफ करके उड़ रहा था ।
व्यथित चुनमुन ने अपनी घर मालकिन की ओर देखा जिसकी आँखों में उसके लिए सहानुभूति थी ।
दोनों को ही जिंदगी ने पाठ पढ़ाया था ।****
5.अपना आसमान
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आज प्रेमा जी को, उनकी लघुकथा के लिए पुरस्कृत किया गया । पैंसठ साल की महिला, जिनका कक्षा दसवीं के उत्तीर्ण प्रमाणपत्र के अलावा कोई अन्य शैक्षिक योग्यता या प्रमाणपत्र नहीं है ।
उनकी एक एक लघुकथा, पाठकों का मन छू लेती हैं । शब्दों का उपयोग, विषय वस्तु सामान्य जीवन के किसी ना किसी पक्ष से जुड़ी होती है ।
कार्यक्रम के तुरंत बाद, उन्हें घर जाने की जल्दी थी । सामने ही उनके पति बैठे थे । दोनों जब घर वापस आए तो बहू ने आरती उतारी और मुंह मीठा कराया ।
" शारदा..! बेटी इस पुरस्कार पर सिर्फ और सिर्फ तेरा अधिकार है ।" उसके हाथ में पुरस्कार पकड़ाकर अपना श्रीफल और शाॅल भी प्रेमा ने बहू शारदा को ओढ़ा दिया ।
" मम्मी..! ऐसा क्यों..? आप कितनी मेहनत करतीं हैं , यह आपकी मेहनत और अच्छी रचनाओं का कमाल है ।" शारदा ने सास को गले लगाकर बधाई दी ।
" तुमने इस घर में आकर, मेरे इस हुनर को ध्यान से देखा परखा । मुझे पहले पहल लिखने में भी मदद की । " प्रेमा विभोर हो रही थी , " तुमसे पहले कभी किसी ने मुझे प्रोत्साहित नहीं किया बहू ..! ना इन्होंने ना मेरे बेटे ने । तुम्हारा साथ, सहयोग ने मुझे आज मेरी जगह दी है । आज इस उम्र में मुझे अपनी पुस्तक लिखने का विश्वास दिलाया है । " गला भर आया प्रेमा का।
" आपकी अपनी पुस्तक जल्दी ही आएगी मम्मी, परंतु इससे पहले आपकी आँखों की जाँच करवा कर नया चश्मा बनवा लेंगे । अब आप एक बड़ी लेखिका हैं, चेहरे पर सुंदर चश्मा चार चांद लगा देगा ।" शारदा के कहते ही सब ठठाकर हंस पड़े और प्रेमा अपनी पुस्तक की परिकल्पना में गुम हो गई ।****
6. मीठे आँसू
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रसोई में काम करती शैलजा को सुबकने की आवाज आई । काम में व्यस्त शैलजा ने अनसुनी करनी चाही तो आवाज तेज हो गई ।
आवाज की दिशा में कदम बढ़ाती हुई, अपने सोलह वर्षीय बेटे शशांक के कमरे में पहुँची । शशांक तो कोचिंग क्लास में गया है तो उसके कमरे में अपने घर की कामवाली जमुना को सुबकती देखकर शैलजा ने पूछा," क्या हुआ जमुना ? क्यों रो रही हो ? घर में सब ठीक है ना ? " उसके पास बैठती हुई शैलजा ने उसकी पीठ पर हाथ रखा ।
" मुझे माफ कर दो दीदी ..! मैं लालच में आ गई थी । मैंने ही शशांक बच्चे के बैग से कई बार पेन, पेंसिल, रबर और जो दस बीस रुपए रखे रहते थे वो छिपाकर घर ले गई ।" हाथ जोड़ती जमुना ने बताया ।
" अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए मैंने चोरी की दीदी । आप लोग शशांक को डाँटते थे , तब मुझे बहुत खराब लगता था । कल उसका बीस का नोट गुम नहीं हुआ दीदी, मैंने निकाला और आपने उसको लापरवाह कहकर तमाचा जड़ दिया ।" वह रोए जा रही थी और हिचकियों में बोल रही थी ।
" चुप हो जाओ जमुना..! शांत हो पहले ।" शैलजा ने कहा, " हमें अंदाजा तो हो गया था कि तुम अपने बच्चों के लिए ही चीजें और पैसे शशांक के कमरे से लेती हो । तुम जरुरतमंद थी परन्तु कभी हमारे कमरे से चीजें नहीं उठाई । बच्चों के लिए अच्छी पेन, पेंसिल ने तुमको लालच में डाल दिया । तुम्हें खुद अहसास हुआ, यह बहुत बड़ी बात है । ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है । "
शैलजा ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया और बोली, " इस महीने से तुम्हारी पगार सौ रुपए बढ़ा दी है अब हर महीने अपने बच्चों के लिए जरुरत की चीजें खरीद कर ले जाना ।"
जमुना की आँखों से मीठे पानी की धारा बहने लगी । ****
7. छत्रछाया
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राखी की सुबह, घर में थोड़ी चहल-पहल स्वाभाविक होती है, परंतु दो-दो बेटियों के रहने के बावजूद आज नीलू के घर शांति है ।
" क्यों री, आज तैयार नहीं होना ? तुम दोनों ने तो कल मेहंदी भी लगाई, आज तैयार होकर अपनी बुआ की राखी पापा को बाँधकर , गिफ्ट नहीं लेना क्या ?" नीलू ने दोनों बच्चियों से कहा ।
" मम्मी, आज आपने अपनी बचपन की बालभारती की रक्षाबंधन की कहानी जो नहीं बताई ।" नीला और नीमा ने मुस्कुराते हुए कहा ।
एक बार फिर आज नीलू ने, भाई की राह देखती यमुना और घुड़सवार की कहानी दोहरा दी ।
नीला और नीमा , सज धजकर तैयार हो गई और राखी की थाली सजाकर आँगन में आ गईं ।
" आँगन में कहाँ , किसको राखी बांधने चली हो?" नीलू ने आश्चर्य से पूछा ।
" मम्मी, आपने बताया था कि भाई रक्षा करता है , हमेशा साथ देता है । भाई-बहन के प्रेम-स्नेह का त्यौहार है रक्षाबंधन ।" नीला बोली ।
" आज हम दोनों पहली राखी अपने रक्षक, छायादार, शुद्ध हवा देने वाले नीम को बांधेंगे , फिर बुआ की राखी पापा को ।" नीमा ने कहा ।
" अरे..! यह कौन सी रस्म हुई बेटी ?" नीलू ने पूछा ।
" मम्मी, हम दोनों ने बचपन से आँगन में नीम को देखा । इसके नीचे खेले, झूला झूले और बीमार होने पर इसकी पत्तियों को उबालकर नहाए । पूरे समय ठंडी-ठंडी हवा देता है, पूरे परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा करता है , यही तो हमारा भाई हुआ ना मम्मी ।" कहते हुए दोनों ने हाथ से बनी, रेशमी राखी नीम की डाल को बाँध दीं । एक लोटा पानी भी पिलाया ।
आँगन में शीतल मंद बयार चलने लगी मानो नीम इस बंधन पर इठला रहा हो ।****
8. कथनी-करनी
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राजनीतिक दल के जिला प्रभारी ने स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन किया । कई गणमान्य लोगों को बुलाया गया और ध्वजारोहण के बाद उनके भाषण हुए ।
पालक मंत्री ने अपने करकमलों से, मृत सैनिकों के परिवार जनों को पचास - पचास हजार की राशि भेंट की । मंत्री जी ने भाषण दिया, जो बेहद भावपूर्ण था । बोलते हुए उन्होंने कहा , "यदि वे राजनीति में नहीं आते तो देश की सीमा के रक्षक होते । सैनिकों के परिवारों से सबको प्रेरणा लेनी चाहिए ।"
निकलते समय एक समाचार पत्र के संवाददाता ने पूछा , " सर, क्या आप अपने बेटे को सेना में भेजेंगे ? "
एक लंबी मुस्कराहट के साथ मंत्री जी ने हाथ जोड़कर कहा, " भविष्य किसने देखा है पर मेरी तो यही इच्छा है ।"
मंत्री जी के सचिव ने बोला, " सर ..! आप पहले मंत्री हैं जो अपने बेटे को सेना में भेजेंगे । वाह..! गौरव बाबा देश का नाम रोशन करेंगे ।"
कार में बैठकर मंत्री जी ने सचिव को समझाया, " दो महीने बाद मेरा बेटा अमेरिका जा रहा है, अपनी आगे की पढ़ाई करने । तुम इतने सालों से सचिव हो, समझते नहीं कि हम नेताओं का भाषण, काम का एक भाग है । उससे हमारी जिंदगी का कोई सरोकार नहीं । तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी ।" कहते हुए दूर खड़े लोगों को हाथ दिखाते हुए निकल गए ।****
9. ओरिजनल
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"पूरे घर में कागजों का अंबार लगा दिया है आपने, क्या ढूंढ रहे हैं ? " झल्लाते हुए पत्नी ने पूछा ।
" इस माह के अखबार और पत्रिकाओं में प्रकाशित अच्छे लेख और कहानियां ढूंढ रहा हूं ।" पति, जिसने अभी अभी लेखन के क्षेत्र में कदम रखा था, ने उत्तर दिया ।
" अच्छे लेख तो पढ़ने ही चाहिए , प्रेरणा मिलती है ।" पत्नी ने कहा ।
" मुझे प्रेरणा-व्रेरणा नहीं, बस ख्याति चाहिए ।" लेखक पति की आँखें चमक रहीं थीं , " हर बड़ी पत्रिका में मेरे लेख हों, बड़े बड़े सम्मेलनों में मुझे बुलाया जाए , सम्मान पत्र मिलें ।"
" शेखचिल्ली की तरह पड़े रहने से कुछ नहीं होने वाला, अच्छा लेखक बनना है तो अपने दिल की सुनिए , दिमाग से कागज पर कुछ ओरिजनल लिख डालिए ।" कहते हुए पत्नी ने पत्रिकाएं झटककर कलम थमा दी ।
तब से अब तक लेखक 'ओरिजिनल' की तलाश में हैं । ****
10.यात्रा
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मनोहर जी का पूरा परिवार उनके चारों ओर खड़ा था। दोनों बेटे-बहुएँ, बेटी दामाद, नाती पोते, सब उनके अंतिम दर्शन के लिए आए थे। पत्नी लीला, मौन, टकटकी लगाए, अपने जीवन साथी को जी भर देख लेना चाहती थीं।
"पापा के लिए रेशमी धोती और कुर्ता है, वही पहनाकर विदा करेंगे।" बड़ी बहू की आवाज से लीला को पिछली बातें याद आ गईं।
बच्चे छोटे थे और दीपावली पर सबके लिए नए कपड़े, पटाखे ले आए थे मनोहर जी।
"आप क्या पहनेंगे? पिछले चार सालों से रेशमी धोती कुर्ता लेने की सोच रहे हैं, आखिर कब लेंगे?" गुस्से से पूछा था लीला ने।
"मेरे एक धोती-कुर्ता के पैसों में, बच्चों के कपड़े, पटाखे आ जाते हैं। ले लूंगा बाद में कभी।" हमेशा की तरह मुस्कुरा कर उन्होंने उत्तर दिया।
ना जाने कितने त्यौहार आए और गए, परंतु रेशमी धोती कुर्ता की कीमत मनोहर जी को हमेशा बच्चों की जरूरत के सामने पहाड़ लगी।
"बहन जी, अपने पति के साथ थोड़ा सोने का टुकड़ा रखवा दो, अंतिम बिदाई है।" किसी बुजुर्ग ने आवाज दी।
"जी अंकल, पापा के सोने की अंगूठी बनवाई थी, वही रख देंगे साथ।" छोटे बेटे ने जेब से अंगूठी निकाल कर पिता के सिरहाने रख दी।
इसी बेटे के काॅलेज की फीस जमा करने के समय, मनोहर जी ने अपने गले की चैन, अँगूठी और लीला ने हाथों की चूड़ियाँ बेच दी थी।
बेटे की ओर घूरती लीला की नजरें मानो प्रश्न कर रहीं थीं कि, "ये वापसी आज क्यों?"
तैयारी पूरी हुई और लोगों ने मनोहर जी को कंधे पर उठा लिया। सामान लिए क्या, कौन कैसे जा रहा है, संस्कार के बाद सब अपने अपने घर जाएंगें, अगली बार अस्थि के लिए जाना है, इन सब शब्दों के शोर में दो साथियों की मौन बातें कोई ना सुन सका।
लीला ने पति के चरणों पर सिर रखकर कहा था, "काश!! रेशमी धोती कुर्ता और अँगूठी आपने जीते जी पहन लिया होता।" उनकी आवाज रामधुन में दबकर रह गई। ****
11.भूख
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आज सुबह सफाई कर्मी लीला को मालूम पड़ा कि बहत्तर वर्षीया गीता आंटी रात में चल बसीं।उनके अंतिम संस्कार के लिए लोग जमा हुए थे। हाथ में झाड़ू थामें, उनकी अर्थी की ओर टकटकी बांधे खड़ी थी। मुट्ठी भर पंखुड़ी अर्थी पर बरसा कर, लीला उनकी यादों में खो गई।
हमेशा टोकती थीं "ऐ लीला, कैसी झाड़ू लगाती है! सारा कचरा तो सड़क पर दिख रहा है।"
यही जवाब देती "आंटी, लगाती तो हूँ पर पेड़ों से गिरती पत्तियों को तो नहीं रोक सकती ना।" फिर भी उनका कहा रखने को दुबारा बुहार देती थी।
"ये आंटी बड़ी चिड़चिड़ी थी।" लीला की सहकर्मी चंदा ने कहा।
"घर में बहुओं, बेटों और नाती-पोतों के साथ बात नहीं होती। किसी के पास समय नहीं कि इनकी बड़बड़ सुने इसलिए आने जाने वालों, फेरीवालों, साफ सफाई वालों को परेशान करती है।" लीला ने सधे जासूस के समान अपनी राय बताई।
"ऐ लीला! अब क्या यहीं खड़ी रहेगी। दिनभर उस चिड़चिड़ी औरत को बिदाई देगी। रोज तेरे ऊपर गुस्सा करती थी ना, चल अब।" चंदा ने लीला को झकझोर कर कहा।
"नहीं री चंदा! एक वही तो थी जो मुझे नाम से पुकारती थी बाकी सब तो 'बाई' कहतें हैं।"
नम आंखों को पल्लू से पोंछते हुए लीला ने बात पूरी की, "भूखी थी वो, प्रेम की, बातों की इसलिए आने जाने वालों से बातें कर लिया करती थी।"
अर्थी गली के अगले मोड़ से ओझल हो गई और लीला घर के सामने बिखरी पंखुड़ियों को बुहारने लगी।****
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क्रमांक - 11
शिक्षा : बी काम,एनटी टी पीटी टी टीचर टेनिंग
प्रकाशित : -
एकल संग्रह-
काव्यमेध
अद्धभुत भंडार
श्री कांत भंडार
साझा संग्रह-
काव्य प्रवाहिनी
जब कभी याद आए
काव्यांगन
गूँजते गीत
काव्य गंगा
साहित्य एक्स
सम्मान-
गुरु गोविंद सम्मान
राष्ट्र प्रेमी सम्मान
2019 का श्रेष्ठ गौरव सम्मान
2020 का लघुकथा मैराथन सम्मान
यशपाल साहित्य सम्मान 2021
और पिछले 4 वर्षों से लगभग 80 सम्मान
दिल्ली नोएडा व मुंबई के कई समाचार पत्रों में रचनाये प्रकाशित होती रहती हैं।
पता : -
17/202 ग्रीन व्यू अपार्टमेंट अंधेरी वेस्ट मुंबई - महाराष्ट्र
1.बड़ी बहू
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मीना, आदित्य के लिए लड़की देखने जा रही है। मीना के दो बेटे हैं। आदित्य और अक्षय।आदित्य अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान है। लड़की सुंदर सुशील व बीकॉम तक पढ़ी है। मीना को देखते ही लड़की पसंद आ गई और धूमधाम से शादी कर दी ।शादी में ही उसकी एक बहन भी रीना को भा गई जो बीकॉम फाइनल ईयर में है।एक साल बाद अक्षय की भी शादी कर दी गई ।बड़ी बहू बहुत ही सुंदर,सुशील है। मीना कहती बड़ी बहु बड़े भाग क्योंकि आदित्य की शादी से ही आदित्य का बिजनेस बढ़ता चला गया और छोटे बेटे की बहु जो अक्षिता की बहन भी थी वह भी बहुत समझदार थी। ऐसी किस्मत तो मुश्किल से मिलती है। बड़े भाग्य चाहिए ।आदित्य की तरह अक्षिता सास को बहुत चाहती थी ।उसकी हर बात का ख्याल रखती और रीना भी उस पर जान देती । मीना उसकी हर छोटी बड़ी खुशी का ख्याल रखती। कोई भी चीज अक्षिता को चाहिए तो पहले से पहले दिलाते
। अक्षरा मैंके भी जाती तो उदास हो जाती। वहाँ से जल्द ही लौट आती थी।
कुछ लोग कहते हैं :--
बहू को बेटी समझना चाहिए । यह बात रीना पर बिल्कुल ठीक बैठती थी ।वह बहू को अपनी बेटी से ज्यादा प्यार करती थी ।कहते हैं ना :
ताली दोनों हाथ से बजती हैं । *****
2. प्रोफेसर
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कॉलेज के दिन थे।अभी पहला बरस शुरू ही हुआ था।सभी बच्चों में कुछ ज्यादा ही उत्साह और जोश था।लड़के तो लड़कियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एंकरिंग कर रहे थे ।एक महिला प्रोफ़ेसर हमेशा भागती हुई सी आती और हमेशा जल्दबाजी में रहती।उनके बच्चे छोटे थे और कॉलेज के बच्चे उनका दर्द नहीं समझ सकते थे। वह तो अपनी मस्ती में रहते थे। एक आद बार तो जल्दबाजी में उनका ब्लाउज विदाउट मैंचिग पहना गया तो एक आद बार साड़ी उल्टी पहनी गई। एक बार तो बच्चों ने हद ही कर दी जिसमें ज्यादातर लड़के ही थे एक दो लड़की भी उनका साथ दे रही थी। उनके आते ही पहले तो अजीब आवाज़ निकाली फिर उल्टी उल्टी क्या है अजीबो गरीब हरकतें करने लगे। मैडम ने देखा तो उनकी साड़ी का फॉल उल्टा था।लड़कियों ने देखा तो बहुत गुस्सा आया।मैडम चुपचाप क्लास से चली गई और स्टाफ रूम में जाकर बैठ गई।फिर कुछ लड़कियों ने सभी मित्रों को इकटठा किया।आपस में सभी बच्चे बातचीत कर उनसे माफी माँगने गए।उस दिन के बाद सभी बच्चे थोड़ा शांत थे ,सिवाय कुछ नटखट बच्चों के।जोकि बाद तक भी सुधरे नहीं। एक दो बार तो उन्हें सजा भी दी गई और क्लास से सस्पेंड भी किया गया कुछ दिन के लिए। बस ऐसे ही मस्ती पढ़ाई करते करते कैसे तीन बरस बीत गए पता ही न चला। ****
3. दिल जीतना
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ममता शादी हो कर नई दुल्हन आई है ।वह अपने परिवार में सबसे छोटी है।सास बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की है। सास ने कहा जा राकेश अपनी बहन के बायना दे आ। उसका पति बहुत ही जिम्मेदारी से घर का सभी कार्य करता हैं।पता नहीं जेठ क्यों उससे पहले दिन से ही थोडा खींचे -खींचे से रहते हैं। उसे बात -बात में नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।उसकी सास ने कहा जा बेटा खीर बना।जेठ बोले इससे न हो पाएगा ।इसी तरह छोटी-छोटी बातों पर उन्होंने ऐसे ही प्रतिक्रिया की।ससुर पूजा कर रहे थे। बहुत ही शांत और गंभीर प्रवति के व्यक्ति हैं ।जेठानी थोड़े दिन बाद अपने पति से किसी बात पर नाराज होकर ससुराल छोड़ कर चली गई और जेठ सीढ़ियों से गिर गए। ममता ने जेठ की बहुत सेवा की ।सास ने जेठानी को आने के लिए फोन किया तो उसने साफ मना कर दिया मेरे बस की नहीं है।जेठ को ममता की अहमियत पता चली।अब जेठ भी घर के सभी सदस्यों की तरह ममता से अच्छा व्यवहार करने लगे। धीरे-धीरे ममता ने सबका दिल जीत लिया था ।वह खुद कितनी परेशानी में होती,धीरे-धीरे सब का काम करती जाती। दोनों ननद भी उसे बहुत प्यार करती थी ।अब तो मैके भी जल्दी आती रहती जब से ममता आई थी। सास ने समझा-बुझाकर जेठानी को भी वापस बुलाया कहा घर की लक्ष्मी घर में अच्छी लगती है। ममता के बेटी हुई है बड़ी सुंदर और नटखट सी। घर में सभी बहुत खुश हैं कि एक खिलौना आ गया। ****
4. अधजल गगरी छलकत जाए
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मिस्टर शर्मा हमेशा सबसे नर्मता से बात करते व बड़ों को देखते ही उनके पैर छूते। यह उनकी आदत में शामिल था। इसे कुछ लोग उनकी कमजोरी भी समझते । उनके संस्कार ही ऐसे थे।
दूसरी तरफ उनका मित्र दीपक बोलने में बेबाक छोटे -बड़े का कोई लिहाज न था। उसे पैसे का भी बहुत घमंड था ।बारवीं क्लास भी बड़ी मुश्किल से कर पाया ।सामाजिक समारोह हो रहा था जिसमें समाज के बहुत से जाने-माने लोग खड़े हुए बातचीत व हँसी मजाक कर रहे थे। तभी दीपक भी वहाँ आया व शर्मा जी को पैर छूते देख व्यंग्य के रुप में बोलने लगा :-
अब तो तुम्हारी प्रमोशन हो गई ।मैनेजर कब बन रहे हो ।
शर्मा जी तब भी मुस्कुराए और बोले मैनेजर हूँ।दूसरे मित्र ने बताया ये चीफ मैनेजर पहले से हैं। फिर से प्रमोशन होने वाली है। वैसे भी उनका पहनावा और बोलचाल का तरीका बहुत ही सभ्य था। बहुत ही साधारण तरीके से रहते थे ।दीपक देखता रह गया। दीपक सक पकाया और कहने लगा।
बधाई हो! बधाई हो! ****
5. बहादुरी
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आज शोभा और दिव्या अध्यापक कक्ष में मैडम आज मेरा जन्मदिन है ।
धन्यवाद
सारे अध्यापक एक एक टोफी और एक मिठाई ले लेते हैं।
मैडम जी आपकी दुआओं का फल है।
मैडम- मतलब
जो आप ने पिछले महीने कहा था।
मैडम सोचते हुए।
दिव्या- जी बिल्कुल ।
26 जनवरी को राष्ट्रपति द्वारा बहादुर बच्चों को पुरस्कृत किया जा रहा था तो मैडम आप ने कक्षा पाँच के बच्चों को कहा था जो भी बच्चा मार्च के अंत तक बाहदुरी का कोई भी कारनामा करेगा उसका जन्मदिन मेरी तरफ से मनाया जाएगा ।
अध्यापक -तुमने ऐसा क्या किया। दिव्या -सोचते हुए अभी 4 दिन पहले ही हमारी सोसाइटी में नीचे सड़क पर शोर हो रहा था। एक आंटी कह रही थी।
लूट लिया- लूट लिया उनको एक लुटेरा लूट कर भाग रहा था तो दो आदमियों ने उसे धर दबोचा।
लुटेरा झूठ बोल रहा था कि मेरी मांँ बीमार है।
इतने में शोभा नेअपने घर से पुलिस को फोन कर दिया ।
नीचे सोसायटी के बाहर सड़क पर शोर मचा हुआ था कि दो दिन पहले भी यह मेरा पीछा कर रहा था जब मैं बैंक जा रही थी उस दिन कुछ कागजात भूल गई इस कारण पैसे नहीं निकल पाई ।आज जैसे ही मैं बैंक के बाहर आई तो यह मेरे पीछे पीछे आ रहा था ।मैं सतर्क हो गई ।जैसे ही ये मेरा पर्स छीनने लगा मैंने इसे पकड़ लिया और लड़के आ गए।
पुलिस आई और उसे जेल ले गई। मैडम ने कहा-
वाह! बेटा आज जन्मदिन की पार्टी मेरी तरफ से। ****
6. मधुमेह पल
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मधुमेह का अर्थ है सबसे प्यारे। रानी चंचल को गोद में लेकर उछाल रही थी,तभी उसकी सहपाठी कहने लगी, रानी तो अनाथ आश्रम के बच्चों को बिल्कुल अपने बच्चों की तरह लाड प्यार करती है ।एक बार को खाना न मिले तो कोई बात नहीं पर रानी इन बच्चों के बिना बिल्कुल नहीं रह सकती । असलियत भी यही थी।वह अनाथ आश्रम से वापस अपने घर आ रही थी तो थोड़ी हरारत महसूस कर रही थी। जैसे ही रानी घर पहुँची रानी के बुखार हो चुका था।दो दिन से रानी अनाथ आश्रम भी नहीं जा पाई। जिसके कारण वह बहुत ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई थी। रानी को बच्चों की बहुत याद आ रही थी।मजबूरी थी जा भी नहीं सकती थी।रानी एक नेटवर्किंग कंपनी के लिए भी काम करती थी। जिसमें उसे दो घंटे रोज काम करना होता था ।फिर अनाथ आश्रम के बाग में भी वह माली काका को नई तकनीक के बारे में कुछ न कुछ बताती ही रहती और रोजाना उसकी दिनचर्या थी बारह से 4 बजे तक अनाथ आश्रम के बच्चों की सेवा करती ।थोड़ा सा ठीक होते ही बच्चों के पास आ गई और फूट-फूट के ऐसे रो रही थी जैसे कितने दिन की बिछडी हो।
जहाँ एक चपरासी का वेतन भी आठ हजार था।रानी अपने आने जाने का किराया भी अपने पास से लगाती थी।वह बिल्कुल निस्वार्थ निशुल्क सेवा कर रही थी और सब के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई थी ।बड़े बुजुर्गों तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकते थे। ****
7. मानवता
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माँ राजीव को डांट रही थी।
माँ वह 15 रूपये की पाव व 25 रुपए की आधा किलो
कह रहा था ।आपने एक पाँव को बोला था मैं एक पाव सब्जी ले आया और पालक माँ ने कहा।
राज बाहर चला जाता है।
माँ सविता से देखो जिजी इसे तो जरा भी समझ नहीं। यूँ ही लुटकर आ जाता है ।हाँ भाभी,यह है ही सीधा सा।
माँ -होशियार तो बहुत है पर हेरा फेरी नहीं है ,सीधा है ।
अगले दिन स्कूल में दौड़ की प्रतियोगिता हो रही थी जिसमें राजीव ने देखा ,प्रदीप से जाती हुई एक बुजुर्ग को टक्कर लग जाने पर उससे आगे बढ़ गया और उसे उठाया भी नहीं।
राजीव गिरे बुजुर्ग को उठाने के कारण दौड़ में तो पीछे आ गया पर सीसीटीवी में वह अब सब का हीरो बन चुका था।सब कह रहे थे यही है मानवता का प्रथम शिखर जब दुनिया तुम्हारी प्रशंसा करें।
असली जीत वही हैं। ****
8. वियोग
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राजा दशरथ को शिकार का बहुत शौक था । दशरथ सब्द भेदी (आवाज सुनकर) बाण चलाते थे। एक बार राजा दशरथ शिकार करते हुए बहुत आगे निकल गए। अकेले ही जंगल में थके हुए बढे जा रहे थे। बहुत देर हो गई थी ।बड़े जोरों की भूख व प्यास लग रही थी।तभी दूर से कुछ आहट हुई तो सोचा कोई जानवर है और उन्होंने शब्दभेदी बाण चला दिया। पर यह क्या किया ?
कुछ अस्पष्ट आवाज आ रही थी। दूर से पता तो नहीं चल रहा था ।जैसे-जैसे वो आवाज के नजदीक जा रहे थे सब स्पष्ट होता जा रहा था ।आखिर में नदी के पास पहुँचने पर देखा एक पिता तड़प रहा था और उसका जवान बेटा जिस के राजा दशरथ का बाण लग गया था मर गया ।पिता उसके लिए तड़प तड़प के मरने जैसी हालत में था ।उसने राजा दशरथ को देखा ।राजा दशरथ ने कहा : -- गलती हो गई !
गलती हो गई!
मैंने जानके नहीं मारा ।
बुजुर्ग ने श्राप दिया जैसे मैं अपने पुत्र के वियोग में तड़प के मर रहा हूँ वैसे ही तुम भी अपने पुत्र वियोग में तड़प के मरोगे। ****
9. वह रात
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रात के एक बजे घर में ही दुकान पर एक ग्राहक:- जैन साहब दो दूध की बोतल दे दो। सुना है
शाहदरे में भोला नाथ नगर की बहुत प्रसिद्ध दुकान है।
जैन साहब:- अँगड़ाई लेते हुए बाहर आए और कहाँ। दुकान कब की बंद हो चुकी है ,सुबह ले लेना।
ग्राहक ने उल्टा सीधा बोलना शुरु कर दिया ।तूम्हेअँगहाई लग रही है। ग्राहक , तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा है और सामान नहीं दे रहे हो। तुम्हारी तो यह -वह गालियाँ देनी शुरू कर दी। वह व्यक्ति पास में ही किसी बारात में आया हुआ था ।तभी तीन चार बराती और आ गए और उन्होंने भी गालियाँ शुरू कर दी।
ऊपर की मंजिल पर जैन साहब के भाई और पडोस से कई लोग भी उनकी छत पर आ गए। वह झगड़ा काफी बढ़ गया। गाली गलोच से बात मार पिटाई पर आ गई।जैन साहब ने पुलिस को फोन कर दिया।मंजर बहुत भयंकर बन गया था ।जैन साहब के भाई को बारातियों ने घेर लियाऔर मारने लगे ।पुलिस के आते ही सायरन सुन सब एकदम शांत हो गए। कोई अपराधी तो था नहीं। सब बारात में मस्ती में एक दूसरे के साथ भाग आए थे । पुलिस को बुला मामला रफा-दफा हुआ।
जैन साहब के बड़े भाई ने समझाया यार उसे सामान दे देते। कुछ लोग पीकर दूसरों की शादियाँ ऐसे ही खराब करते हैं। इसे ही कहते हैं :-
"मजा किरकिरा करना"। ****
10.आदित्य वार
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डिंपल 55 बसंत देख चुकी है ।आज जिंदगी में हुए अपने सभी फैसलों के लिए वह खुश है। यह सब उसके और उसके पति की सकारात्मक सोच के कारण ही संभव हो सका। डिम्पल चाय पीते हुए जब 18 साल की थी कल्पना में खो गई ,18 साल की उम्र में फिल्मी दुनिया में गई और 1 साल के अंदर अच्छा मकान बना लिया था ।वही रवि से मुलाकात हुई। दो साल बाद माता-पिता की मर्जी से शादी हुई थी । बच्चे अब 7वीं क्लास में आ गए थे। जुड़वा बच्चे स्कूल चले जाते ।ऑनलाइन कविता देखी और लिखना शुरू किया उसकी आवाज अच्छी थी उसकी कई किताबें जल्द ही प्रकाशित हो गई । उसने ख्याति प्राप्त की ।शादी का समय होता जा रहा था । रवि उसे पहले से ज्यादा आकर्षक पाता और उसके गुणों पर मोहित रहता। डिंपल भी मां के रूप में ममता की मूरत थी तो दाम्पत्य जीवन भी सफल था। चाय खत्म हुई और वास्तविकता में आ । दोनों बेटों की शादी हो चुकी है जो साथ रहते हैं। डिंपल नारी के सभी रूपों में गजब थी।****
11. संस्कार
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शोभा के एक बेटा है उसके बाद शारीरिक अक्षमता के कारण उसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता था ।तब उसके रिश्तेदारो व आस पड़ोस की बहुत सी महिलाओं ने उसके ऊपर मानसिक दवाब बनाया।
तुम्हारे एक बेटा ही क्यों है ?
तुमने दूसरा मोका क्यों नहीं लिया?
उधर उसके पति की भी यही हालत थी।लोग उससे तरह-तरह की बातें करते ।जब इसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता तो तुम दूसरी शादी क्यों नहीं करते?
पर राज शोभा को दिल जान से चाहता था।
राज व शोभा दोनो बचपन से ही अपने बेटे में अच्छे संस्कार बो रहे थे। बेटे आदित्य को बचपन से ही सुबह 6:00 बजे उठकर
15 मिनट योगासन करना।
सब के पैर छूना।
तेज आवाज में बात न करना।
अपनी पढ़ाई व क्रिकेट का जुनून था।
अपने क्रिकेट के शौक के अलावा किसी चीज से आदित्य को कोई मतलब न था।उधर उसके भाई बहनों के चार तो किसी के पाँच बच्चे थे। कोई किसी तरह तो कोई किसी तरह बच्चों की पढ़ाई को लेकर या शादी विवाह को ले परेशान था। एक लड़के की चाह में एक भाई के तो चार बेटियाँ हो गई।
आज राज के बेटे का बैंक में मैनेजर पद के लिए बुलावा आने पर दोनों ही बहुत खुश हैं।कहते है न:-
सूरज हमेशा गगन में अकेला चमकता है।****
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वाह, क्या बात है!बन्धुवर, आपने तो कमाल कर दिया है।14मई को रचनाएं भेजीं और 17को संग्रह आ गया।वह भी इतना बड़ा और शानदार! बधाई... बधाई।...और इस नाचीज़ की ज़र्रानवाजी के आभार।
ReplyDelete- भगवान वैद्य ' प्रखर '
अमरावती - महाराष्ट्र
( WhatsApp से साभार )
नमस्कार बिजेंद्र जी 🙏
ReplyDeleteआपके कार्य कौशलता को मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती ! आपके अथक प्रयास और आपको सैल्यूट करती हूं! छिपे हुए हीरो को खोज उन्हें तराशने से लेकर पहचान देने तक का आपने जो प्रयास किया है वह सराहनीय है!
साहित्य के प्रति आपका जुड़ाव एवं प्रेम जो है सदा बना रहे एवं सच्चे जौहरी बन साहित्य के
सफर में साहित्यकारों के साथ सोपान चढ़ते रहें.... आपकी किर्ती सदा उज्जवलता लिए रौशनी बिखेरता रवि किरण की तरह चारों दिशाओं में फैले !
🙏🙏
चंद्रिका व्यास
खारघर नवी मुंबई
( WhatsApp से साभार )