प्रणाम तो हर किसी को किया जा सकता है। बेशक वह चाहने वाला ना भी हो। परन्तु चाहने वालों को प्रणाम अवश्य करना चाहिए। यही बात जलनें वालों की ...........। उनके लिए शुक्रिया कर देना चाहिए। ये भी तो कुछ ना कुछ काम करते हैं। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का विषय है अब आयें विचारों को देखते हैं :- निंदक नियरे रखिये, आँगन कुटि छवाये, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुवाये। अक्सर देखने को मिलता है कि दुनियादारी में दो किस्म के लोग होते हैं, कुछ प्रशंसक होते और कुछ निंदक होते हैं, प्रशंसा करने वालों से हमें खुशी मिलती है जबकि निंदा करने वालों से मन में अशांति व उनकी बात चुभती है, लेकिन दोनों प्रेरणा के स्रोत होते हैं, जैसा कि उपर लिखित दोहे में कहा गया है कि निंदक की बात सुनने से अपने सारे अवगुण दूर हो जाते हैं, जब वो किसी के अवगुणों को उभारते हैं, तो सुनने वाला सतर्क हो जाता है और अपने अवगुण दूर करने की कोशिश करता है, दुसरी तरफ प्रसंसा करने वाला कभी भी अवगुण को नहीं उभारता और सुनने वालों का चहेता बन जाता है, असल में दोनों से लाभ ही होता है इसलिए चाहने व जलने वालों का भी शुक्रिया ही अदा करना चाहिए, यह सत्य है कि जलने वाले नकारात्मका फैलाते हैं, और किसी की सफलता से जलते हैं और ईर्ष्या करते हैं, और नीचा दिखाने के लिए आलोचना करते हैं, हमें उनकी नाकारात्मका को नजरअंदाज करके आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए, दुसरी तरफ चाहने वालों की हमें प्रशंसा करनी चाहिए और उनसे सकारात्मक उर्जा लेकर अपनी बढ़त जारी रखनी चाहिए, कहने का भाव चाहने वाले व जलने वाले दोनों की अपनी अपनी भूमिका होती है, लेकिन ज्ञानी लोग दोनों से सीख लेकर अपने लक्ष्य को कामयाब बनाने में सफल हो जाते हैं इसलिए दोनों का शुक्रिया अदा करना इंसानियत का फर्ज है, लेकिन किसी की उन्नति देख कर जलना नहीं चाहिए उल्टा खुश होकर ही उसकी सराहना करनी चाहिए तभी तो कहा है, जन उन्नति देख न जलें, तजें जलन के भाव, सर्वनाशी हैं सखे, जलन भाव की आग, कहने का मतलब जलने वाला खुद ही जलन की आग से सारा दिन जलता रहता है, उसको तो कोई फायदा नहीं मिलता लेकिन सुनने वाले कि नजरों में उसके प्रति इज्जत कम होने लगती है, लेकिन अच्छे लोग अपने दिल की बात को बाहर न उभारते हुए तरक्की की तरफ बढते जाते हैं और चाहने वालों और न चाहने वालों को दुआ सलाम करते रहते हैं उनको जलने वालों से कोई फर्क नहीं पड़ता उल्टा लाभ मिलता है और अपनी कमियों को पूर्ण करते हुए अपनी मंजिल तह कर लेते हैं। - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
आज मैं जो भी हूँ उसका श्रेय मुझे कम, मेरे चाहने वालों, प्रशंसकों , शुभचिंतकों, अच्छे दोस्तों के साथ-साथ मेरे निंदकों, मेरी टाँग खिंचाई करने आर्थार्त मुझ से जलने, मेरी छिछालेदारी करने वालों, दोनों को अधिक जाता है। मेरे चाहने वालों ने यदि मेरे आत्मविश्वास का प्याला न भरा होता, मुझे अच्छा और अच्छा करने के लिए प्रेरित न किया होता तो मैं आज वहाँ कैसे पहुँच पाती जहाँ मैं आज हूँ । यदि मेरे निंदक, मुझ से जलने वाले अपनी बातों से मुझे चुनौती ना देते रहते, मुझे स्वयं को सिद्ध करने के लिए अवसर न देते तो भी मैं वहाँ कैसे पहुँच सकती थी जहाँ मैं आज हूँ। अपने से जलने वालों को मुँह तोड़ जवाब देने के लिए मैं शब्दों का नहीं अपितु एक्शन का सहारा लेती हूँ । अर्थार्त मैं वह कर के दिखा देती हूँ जो वो कहते है मैं नहीं कर सकती । अपने से जलने वालों से बदला लेने का यही गरिमामय ढंग है मेरा। जब वो मेरी टाँग खिंचाई करना चाहते हैं तो मैं स्वयं को अपने कर्म व सोच से इतना ऊपर उठा लेती हूँ जहाँ मेरी टाँग उनकी पहुँच से दूर हो जाए । इस प्रकार मुझे सब्र सिखाने, एक बेहतर इंसान बनाने में उनकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। आपकी टाँग अमूमन वही खींच सकता है जो आपसे नीचे है। आप से ऊपर वाले टाँग खींचने के लिए जब नीचे झुकेंगे तो पहले नतमस्तक होंगे, पहले आप के पाँव छुएँगे फिर कुछ और। इसीलिए सब चाहने वालों को मेरा प्रणाम ।जलने वालों को भी मेरा शुक्रिया…शुक्रिया. .…शुक्रिया….
- रेनू चौहान
दिल्ली
यहाँ मेरी राय है कि हमारे ऐसे विचार ये दर्शाता है कि आप अपने जीवन में आने वाले सभी व्यक्तियो का धन्यवाद देते हैं। जिन्होने उनका मार्गदर्शन किया। - अपने आलोचकों और नकारात्मक लोगों को भी धन्यवाद देते हैं, शायद इसलिए क्योंकि वे आपको और मजबूत बनाते हैं। आप अपने समर्थकों की सराहना करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं। -आप अपने जलने वालो यानि आलोचकों को महत्वाकांक्षा देकर दिखाते हैं कि आप उनकी राय को महत्व देते हैं और इससे आपको और मजबूत बनाने में मदद मिलती है।और कहा भी गया कि -जीवन में तरक्की करने का मूल मंत्र है कि निंदक नियरे राखिये .... । यानि हमारी कमियाँ को बताने बाला सच्चा दोस्त होता है और हमारी कमियाँ को छिपा कर झूठी प्रंशसा करने वाले दुश्मन। समाजिकता के नाते अच्छे बुरे इंसान की सभी को समझ होती है। - रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वाह क्या बात हैं. ग़ज़ब का विषय है आज का. चाहने वालों को प्रणाम तो सभी करते हैं,दुश्मनों को प्रणाम करो तो कोई बात बने. किनारे खड़ा होकर हर कोई सूखा रह सकता है पानी में उतर कर सूखा रहे तो कोई बात बने.दर्द अपना तो सभी सह लेते हैं, दर्द औरों का सहें तो कोई बात बने. शुक्रिया जलने वालों का जो हमें आगे बढ़ने का कारण बनते हैं. कोई हमसे तभी जलता है जब हम उससे आगे बढ़ते हैं या कोई अच्छा काम करते हैं. तो हमें और ज्यादा आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है. कोई हमसे जलता है इसका मतलब हम तीव्र गति से विकास की तरफ बढ़ रहे हैं. चाहने वालों में बहुत अपने ही होते हैं या वे लोग होते हैं जिन्हें हमसे या हमारे कामों में फायदा नगर आता है. पर जलने वाले ही हमारे लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. क्योंकि जब हम कोई गलत कार्य करेंगे तो वो खुश होंगे और सही करेंगे तो जलेंगे. इसलिए सभी चाहने वालों को प्रणाम जलने वालों को भी शुक्रिया.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
कबीरदास जी निंदक की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि मानव को अपने जीवन में निंदक यानी निंदा करने वाले आलोचक , बुराई करने वाले इंसान को को सदा अपने साथ, अपने समीप रखो। उसे अपने हृदय में बसाएँ । उसकी निंदा वाणी को सहन करते हुए उसकी बात को मानव आत्मसात करो , वह हमारे लिये हमारे विरोध में क्या कह रहा है , वह हमारा गुणावाद नहीं करेगा । क्योंकि हमारे अंदर कमियों का खजाना भरा हुआ है । उसे उजागर करेगा। हम अपनी अंतर की व्यवस्था के दोषों , अवगुणों को देखें । हे ! मूर्ख मानव विचार कर ले , उसे सुन। उसकी वाणी हमारे लिये औषधि का काम करेगी ।अगर हो सके तो उस निंदा करने वाले निंदक के लिये अपने आँगन में एक कुटिया भी बनावा दो। वह निंदक बिना साबुन पानी के हमारी कमियाँ बताकर हमारे स्वभाव को स्वच्छ बना देता है। अर्थात वह हमारी कमियाँ , अवगुण , नाकामियों को बताकर हमारे स्वभाव , गंदी आदतों को बिना साबुन , पानी से धो कर हमारे चरित्र को साफ स्वच्छ , विमल मति कर देगा। हमारे जीवन को अच्छाई का परम् धन मिल जाएगा। वास्तव में हमारे मन को निंदा सुनने की आदत नहीं है। मनुष्य अपने खिलाफ किसी की भी नाकारात्मक बातें सुनने का आदी नहीं है। मनुष्य को निंदक बुरे लगते हैं। उसकी बातें बुरी लगती हैं , आज हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपनी बड़ाई , झूठी प्रशंसा , चापलूसी सुनना पसंद हैं । मनुष्य उसी झूठ को सुनना चाहता है। हमारे व्यवहार में में सहनशीलता नहीं रही है । मनुष्य अपनी निंदा को सुन नहीं पाता है , निंदा को विकृति , बुराई मान के स्वीकार नहीं कर पाता है। जबकि निंदक हमारी बुराई , दुर्गुणों को हमारे सामने हमें बता रहा है , न की पीठ पीछे बता रहा है। कहने का मतलब यही है कि हम निंदक द्वारा बतायी गयी उन कमियों को अपने प्रयासों से सुधारें , आचरण ,सत्य की अग्नि में तपाकर मन की गंदगियों को भस्म करके, बिना साबुन पानी से धोकर मानव चोले के चरित्र को स्वर्ण की तरह शुद्ध , स्वच्छ और उन्नत , अनमोल बनाएँ। निंदक का उदाहरण प्रस्तुत है। संत तुलसीदास जी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे । एक दिन उनकी पत्नी रत्नावली उन्हें बिना बताए अपने मायके चली गयी । तुलसी ने पत्नी को घर में नहीं देख के रात में उससे मिलने उफनती नदी में लाश को फट्टा मान के उस पर बैठ के नदी पार की और रत्नावली के घर में लटके हुए साँप को रस्सी समझ के उसके पास पहुँच गए , तभी तुलसी को पत्नी ने फटकार लगायी । जितना प्रेम तुम मेरे हाड़ माँस से करते हो अगर इतना प्रेम प्रभु राम से किया होता तो तुम्हारा परलोक सुधर जाता। यह बात तुलसी दास जी ने अपने आचरण में उतारी और उन्होंने रामचरित मानस लिख के घर -घर में पहुँच गए।संत तुलसीदासजी लौकिक से अलौकिक हो गए। अतः निंदक को अपने हृदय में बसाएँ। - डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन विचित्र है। सुबह होते ही जागने और रात होने पर सोने तक का जीवन हमारा निश्चितता और अनिश्चितता के बीच गुजरता है। इस बीच हम परिचितों से भी मिलते हैं और अपरिचितों से भी। परिचितों में कोई हमारे प्रशंसक होते हैं और कोई हमसे ईर्ष्या करने वाले भी होते हैं। हमें शैक्षणिक काल में किताबी शिक्षा के अलावा नैतिक शिक्षा का भी ज्ञान दिया जाता है। इसके अलावा हम अपनी रुचि से और अपने संस्कारों से भी अपने व्यवहारिक ज्ञान को बढ़ाते और उनका अनुशरण भी करते हैं। इससे हम में जो जीवन -दर्शन का प्रभाव पड़ता है, हम में जो नैतिक मूल्यों की समझ जाग्रत होती है, वह हमारी चारित्रिक विशेषताओं में आमूलचूल बदलाव करती है। हमारा व्यवहार सौहार्दपूर्ण होता है, मिलनसारिता से ओतप्रोत होता है,सकारात्मकता लिए होता है। ऐसे हम जीवन के संघर्ष को सहजता से लेते हैं। न घबराते हैं, न तिलमिलाते हैं। कोई भी परवाह किए बिना हम अपने काम से काम रखते हैं। सभी चाहने वालों को मेरा प्रणाम। जलने वालों को भी मेरा शुक्रिया। ऐसे कथन, ऐसे ही सद्भाव और मिलनसारिता वालों के आचरण और व्यवहार में समय-समय पर, तीज-त्यौहारों पर, देखने-सुनने मिल जाते हैं और मन को प्रफुल्लित कर देते हैं। जीवन की सार्थकता भी इसमें ही निहित है। - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
चाहने वालों को मेरा प्रणाम क्योंकि वो मुझे चाहते हैं , मेरे शुभचिंतक हैं व मेरी खुशी मैं खुश होते हैं व मेरे दुख मैं दुखी होते हैं ! मेरी सहायता को सदैव तत्पर रहते हैं ! जलने वालों को विशेष शुक्रिया वो धन्यवाद क्योंकि जलन के मारे वे राह मैं कांटे बोते हैं , आलोचना करते हैं सदैव टोकते हैं व बना काम बिगाड़ने की कोशिश करते है! उनका विशेष धन्यवाद या शुक्रिया इसलिए कि उनके इन्हीं गुणों के कारण मुझे निखरने का , और अच्छा बनने का , सीखने का , सुधरने का , और बेहतर करने का मौका मिलता है व सफलता मैं मेरी राह प्रशस्त करने मैं ये सहायक होते हैं !! - नंदिता बाली
सोलन -हिमाचल प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " प्रणाम से लेकर शुक्रिया शब्द का अर्थ सिर्फ अभिवादन होता है। शायद आप सब सहमत होंगे । नहीं तो अपना जवाब या अर्थ बता सकते हैं। फिर भी लोगों की राय को जानना अवश्य चाहिए। चाहें वह जबाब अच्छा है या नहीं। ये बाद की बात है।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संपादन व संचालन)
दोनों में समानता यह है कि दोनों ही याद करते हैं और दोनों ही आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। दोनों का तरीका भले ही अलग-अलग है, इसलिए प्रणाम और शुक्रिया अपनी अपनी जगह पर सही हैं।
ReplyDelete- संजीव दीपक
धामपुर - उत्तर प्रदेश
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
चाहने वालों को तो सादर प्रणाम है ही मुझसे ईर्ष्या रखने वालों को भी मेरा नमन वंदन।क्योंकि उन्होंने मुझे अपनी ईर्ष्या से यह विश्वास दिलाया कि मैं जिस जगह खड़ी हूँ वह जगह उनकी जगह से कुछ ऊपर है यानी कुछ मायनों में मैं उनसे अधिक श्रेष्ठ या भाग्यशाली हूँ।एक तरह से उन्होंने मेरा आत्मविश्वास बढ़ा दिया।
ReplyDelete- मंजू सक्सेना
लखनऊ
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
*सभी*
ReplyDeleteवाह क्या बात है, सभी चाहने वालों को मेरा प्रणाम। जलनें वालों को भी मेरा शुक्रिया।
हम हमेशा ही अपने चाहने वालों को प्रणाम करते आ रहे है, उसका भी भला और हमारा भी भला, लेकिन किसी-किसी को आदतन खुजली रहती है, उनका कितना भी भला कर दिया जाए, वे अपनी जात बता ही देते हैं जिस तरह से नांग और कुत्ते पर भरौसा नहीं किया जा सकता, उसी तरह से मानव प्रवृति है।
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट-मध्यप्रदेश
(WhatsApp से साभार)