यह जानते हुए भी मानव दुष्कर्म निर्भय हो करते जा रहा विकृतियाँ बढ़ते जा रही है ! इंसान की परवरिश वातावरण उसकी भाग्य रेखाओं आकार से सन्मार्ग की ओर प्रेरित कर्न मार्ग रेखाओं को छोटी बड़ी करती है ! जबकि कर्मक्षेत्र दुनिया में मानस उस रेखा के नीचे बड़ी रेखा खिच अस्तित्व से सहअस्तित्व जगा विकसित भारत बनाने जुट विश्व में कामयाबी हासिल करना चाहते है ! अंत काल में रावण ने कहा- मैं ज्ञान से अज्ञान विदयाचरित्र अभिमानी , और राम तुम सुचारित्र सदचरित्र सम्मान करना जानते सज्ञानी थे ! अपने छोटे भाई लक्ष्मण को गुरु की शिक्षा मुझसे दिलवाई ! रावण की सोच इंसान दुनिया मेरी मुठ्ठी में होगी भाग्य लेकर आया था ! जबकि राम सत्कर्म से दुनिया में जीते रहोगे ! मृत्यु सइयाँ में इंसान अंतिम सासें लेते सही कहता रावण है ! गुरु की शिक्षा सत्य ज्ञान है साहित्य समाज ज्ञान जग कल्याण है
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
आईये आज का रूख मनुष्य के जन्म और मृत्यु की तरफ ले चलते हैं ,कि मनुष्य जब पैदा होता है तो अपने साथ क्या लेकर आता है और जब इस संसार से विदा हो जाता है तो अपने साथ क्या लेकर जाता है, मेरा मानना है कि इंसान इस दुनिया में भाग्य लेकर आता है और कर्मों की गठरी बांध कर चला जाता है, तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर जाता है,मेरे ख्याल में यह कथन हमें जीवन के उदेश्य को समझने और अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है कि हमें अपने जीवन को सार्थक बनाने और अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि हमारा भविष्य उज्ज्वल हो, यह भी सत्य है कि भाग्य हमारे जन्म से जुड़ा होता है और हमारे जीवन के मार्ग को निधारित करता है और कर्म हमारे द्वारा किए गए कर्मों का परिणाम होता है, यह कथन सत्य है कि हमारे कर्म ही हमारा भाग्य तय करते हैं और इन्हीं से हम वर्तमान और भविष्य को बदलते हैं क्योंकि कर्म हमारा अधिकार है और उसका फल व्यर्थ नहीं जाता,हर व्यक्ति पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार भाग्य लेकर आता है और वर्तमान के कर्मों के अनुसार भविष्य का निर्माण करता है इसलिए कर्म ही भाग्य का निर्माण करते हैं और मनुष्य अपने किए हुए कर्मों का प्रभाव ही अपने साथ लेकर जाता है, जब हम मनुष्य के जन्म में आते हैं वो हमारा भाग्य है और वोही भाग्य हमें कर्म करने का अवसर देता है हम मनुष्य जन्म में कैसे कर्म करते हैं और क्या छोड़ कर और क्या लेकर जायेंगे यह हमारे कर्म तय करते हैं,यह भी सत्य है कि बिना भाग्य कर्म करने का अवसर नहीं मिलता इसलिए मनुष्य जन्म में पैदा होना हमारा भाग्य है और मनुष्य जन्म को संबारना हमारे कर्म हैं कहने का भाव कर्म और भाग्य एक दुसरे पर निर्भर हैं,भाग्य हमें अवसर देता है और अवसरों का लाभ हम अपने कर्मों से उठाते हैं अन्त में यही कहुंगा कि इंसान केवल शरीर ,प्राण और भाग्य लेकर आता है तथा धन,नाते रिश्ते यहीं छोड़कर अपने साथ सिर्फ कर्मों की गठरी बांधकर ले जाता है जिसके अनुसार उसे सुख , दुख का एहसास आने वाले जन्मों में भुगतना पड़ता है,और हमारे पास जो भी परिस्थितियां और अवसर आते हैं वह सभी भाग्य की देन हैं जिन्हें कर्मों से ही प्राप्त किया जा सकता है और हमारा भाग्य कर्मों से ही बनता और बिगड़ता है,कहने का भाव भाग्य के मूल में कर्म ही रहता है,इसलिए मनुष्य जन्म मिलना हमारा भाग्य है और अच्छे कर्म करते हुए इस दुनिया से चले जाना सबसे बड़ा खजाना है जो हमारे आने वाले जन्मों की पुन्जी है, जो हमारे साथ जायेंगे।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
यह सच है ,हम अक्सर कहते हैं अपना अपना भाग्य है। सभी अपना भाग्य लेकर आते हैं किंतु, सत्य तो यही है मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है। जितने भी महापुरुष हुए हैं उन्होंने अपने कर्म से प्रमाणित कर दिया है कि, "मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।" जिस व्यक्ति को अपने कर्म पर भरोसा होता है वहीं उद्घोष करता है...
'लोग कहते हैं बदलता है जमाना अक्सर,
हम वो हैं जो जमाने को बदल देते हैं।' इसके विपरीत आलसी व्यक्ति भाग्य की दुहाई देता रहता है। मैथलीशरण गुप्त ने भी कहा है... "प्रभु ने तुमको कर दान किये, सब वांछित वस्तु विधान किये, तुम प्राप्त करो उनको ना कहो
फिर है किसका यह दोष कहो।
हाँ, कभी कभी कठिन परिश्रम के बाद भी फल नहीं मिलता तब हम भाग्य के अनुभव के तर्क वितर्क में भाग्य को ही प्रबल मानते हैं और उसका खंडन नहीं कर पाते किंतु मनुष्य को अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास तो करते रहना चाहिए चाहे कितना भी संघर्ष करना पडे़। कहने का तात्पर्य यही है मनुष्य दुनिया में अपना भाग्य तो लेकर आता है किंतु अपने कर्म से भाग्य स्वयं बनाता है ।और वही कर्म वह दुनिया से लेकर जाता है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
" इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है, जबकि कर्म दुनिया से लेकर जाता है " यह एक ऐसा चक्र है जो निरंतर जन्म- जन्मांतर चलता रहता है। इस जन्म में हमारे द्वारा किए गए कर्म के अनुसार भाग्य का स्वरूप तय होता है और अगले जन्म की स्थिति को निर्धारित कर, फिर अगले जन्म में कर्म करने का अवसर देता है। यानी हमारा जन्म पिछले जन्म में किए गए कर्म के आधार पर भाग्य के रूप में प्रतिफल है। सार यही कि कर्म करने से भाग्य बनता है और भाग्य के अनुसार जन्म का स्वरूप तय होकर पुन: कर्म करने का अवसर मिलता है। इसलिये हमें अपने दैनिक जीवन में कर्म पर विशेष ध्यान रखना चाहिए और सदैव अच्छे कर्म करना चाहिए ताकि हमारे कर्म, हमारे भाग्य को सौभाग्य की सौगात से हमारे आने वाला कल और अगले जन्म को संवारने में सहायक सिद्ध हो।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आपका कथन बहुत गहरा और दार्शनिक है। “इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है जबकि कर्म दुनिया से लेकर जाता है।” मनुष्य का जन्म किन परिस्थितियों में होता है—धन, परिवार, परिवेश, अवसर—यह उसके हाथ में नहीं होता। इसे ही लोग भाग्य कहते हैं। कोई अमीर घर में जन्म लेता है, कोई गरीब में। कोई स्वस्थ पैदा होता है, कोई बीमारियों के साथ। यानी जीवन की शुरुआत हम अपने भाग्य के साथ करते हैं, लेकिन जीवन जीने का तरीका, आचरण, परिश्रम, और व्यवहार—यह सब मनुष्य के कर्म पर निर्भर है। हम अपने कर्मों से ही अपनी पहचान बनाते हैं। अच्छे कर्म हमें स्मरणीय बनाते हैं, बुरे कर्म हमें लांछित करते हैं।जब इंसान इस दुनिया से चला जाता है, तो न उसका धन, न उसका पद, न उसका भाग्य उसके साथ जाता है। पीछे केवल उसके कर्म रह जाते हैं—उसकी अच्छाई, उसका योगदान, उसके शब्द और उसके किए हुए कार्य। यही कर्म आने वाली पीढ़ियाँ याद रखती हैं और यही मनुष्य की असली पूँजी बन जाते हैं।संक्षेप में यह कथन जीवन का बहुत बड़ा सत्य है। भाग्य से हम दुनिया में प्रवेश करते हैं, लेकिन कर्म ही हमारी पहचान है, जो हमें विदा होने के बाद भी जीवित रखती है। इसलिए हमें भाग्य की बजाय कर्म पर भरोसा करना चाहिए।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कहा जाता है इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है. और ये सत्य भी है क्योंकि एक ही माँ के गर्भ से उत्पन्न बच्चों का अलग-अलग भाग्य होता है. कोई अच्छा पद पर कार्यरत होता है तो कोई बेकार रहता है. कोई गरीब हो जाता है तो कोई पैसे वाला हो जाता है. लेकिन उसके बाद से जो जैसा कर्म करता है अगले जन्म में उसका वैसे भाग्य बनता है. लेकिन इस बात में कितनी सत्यता है यह कोई नहीं जानता है. सब अपने मन से अपने-अपने ढंग से व्याख्या करते रहते हैं. क्योंकि अभी इस जन्म के कर्मों का फल लोग इसी जन्म में भुगत लेते हैं. फिर भी कभी-कभी लगता है य़ह सत्य है कि इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है और कर्म लेकर दुनिया से जाता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
कर्म और करम दो भिन्न शब्द है। करम अर्थात भाग्य और कर्म अर्थात हम जो करते हैं। प्रायः देखा जाता है कि बेध्यानी में अनेकों बार हम इनका प्रयोग एक ही अर्थ में कर लेते हैं। आज के कोटेशन के संदर्भ में मैं कहना चाहती हूँ कि सचमुच इंसान दुनियां में भाग्य लेकर आता है और अपने कर्म के अनुसार जाता है। "जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" बिलकुल इसी तरह के भाव लेर जो जैसा सोचता है वैसा करता है। तब भीतर मन में कर्म या करम का अंदाजा नहीं होता सिर्फ जीवन अपनी गति से अपनी लय पर चलता रहता है। इसीलिए मेरा मानना है कि कर्म करते रहें और जीवन जीते रहें - - ईश्वर सदैव आपके साथ हैं
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
जैसा कर्म करेंगे वैसा फल मिलता है। इंसान दुनियां में भाग्य लेकर आता है, जबकि कर्म दुनियां से लेकर जाता है। विश्वास और विश्वासघात, भाग्य और कर्म को बदल देता है। इंसान का जन्म पूर्व कर्म के आधार पर ही जन्म होता है। जैसे-जैसे अवस्था बढ़ती है, वैसे-वैसे भाग्य भी साथ-साथ देता जाता है, लेकिन हम भाग्य के भरोसे जीवन भी जी नहीं सकते, जो भाग्य में लिखा था, उसके विपरीत भी कार्य हो जा है। भाग्य हमारे मुंह में जल नहीं डाल सकता, उसके लिए कर्म करना पड़ता है, भाग्य के पीछे कर्म छिपा रहता है, वही कर्म हम लेकर जाते है, फिर हमारे जाने के पश्चात भाग्य और कर्मों पर चर्चा होती है।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
किसी भी कुल में जन्म लेना यह हमारा निर्णय नहीं होता अपितु यह ईश्वर का आदेश होता है कि तुम्हें इस कुल में जन्म लेना होगा और इस तरह का जीवन व्यतीत करना होगा।यह हमारे पिछले जन्म के कर्म होते हैं जो हमारे भाग्य को लिख देते हैं।हम अपने भाग्य के साथ इस धरती पर जन्म लेते हैं।अब हमारे इस जन्म के अपने कर्म हैं जो हम संग लेकर जाएंगे और उसी आधार पर हमारे भाग्य का फैसला होगा। भाग्य लेकर बैठना या अपने भाग्य को कोसना, बुद्धिमानी नहीं। क्योंकि अभी तक जो भाग्य में आया वो पूर्व जन्म व पिछले कर्मों पर ही आधारित था। निश्चित है आगे भी हमारे कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति है और आगे का भाग्य लिखा जाएगा।यह धरती हमारी कर्मभूमि है और इसका पूरा लेखा-जोखा ईश्वर के पास होता है, ईश्वर हमें उसके अनुरूप फल देते हैं। हमारे अपना कर्म ही हमारा अपना भाग्यविधाता है।
- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'
वाराणसी - उत्तर प्रदेश
इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है,लेकिन वह कर्म से दुनिया में नाम कमाता है।भाग्य से कर्म बड़ा होता है।भाग्य अस्थाई होता है,अपितु कर्म स्थाई।मनुष्य को सदैव कर्म करना चाहिए,भाग्य पर ही आश्रित नहीं रहना चाहिए।हम जितना अच्छा कर्म करेंगे,उतना ही आगे बढ़ेंगे।इसलिए हमें हमेशा अच्छे कार्य करना चाहिए।यह तभी संभव होगा, जब हम परिश्रमी,लगनशील और संघर्षशील बनेंगे।हमें हमेशा परिश्रम करना चाहिए।कहा भी गया है कि परिश्रम का फल मीठा होता है।जो मनुष्य परिश्रम करता है,वह अवश्य सफ़ल होता है।अतः हमें परिश्रम करना चाहिए।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
दुनिया में आना भाग्य लेकर होता है, लेकिन जाना कर्म लेकर होता है. जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान. यह केवल गीता का ज्ञान ही नहीं है, हमारा अपना अनुभव भी है. पिछले अच्छे कर्मों के कारण सौभाग्य से मानुष-जन्म मिला है, अब जैसे कर्म करके जाएंगे, वैसी ही योनि मिलेगी, ऐसा केवल वेद-पुराण ही नहीं, हर धर्म के धर्म-ग्रंथ कहते हैं और अच्छे-नैतिक कर्म करने की प्रेरणा देते हैं. रावण इसका जीता-जागता उदाहरण है. अच्छे कर्मों से पंडित बना, लेकिन कुकर्मों के कारण बेमौत मारा गया और आज तक जलाया जा रहा है. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
उक्त दार्शनिक विचार जीवन का मूल सत्य है। मनुष्य जब इस संसार में आता है तो उसके पास भाग्य की थाती होती है, जिसे हम जन्मसिद्ध मान सकते हैं। किंतु जीवन की यात्रा केवल भाग्य के भरोसे नहीं चलती, बल्कि उसे दिशा और ऊँचाई हमारे कर्म ही देते हैं।भाग्य हमें अवसर दे सकता है, किन्तु उन अवसरों को सार्थक बनाने का सामर्थ्य केवल कर्म में ही निहित है। जब मनुष्य इस संसार से विदा लेता है तो साथ केवल उसके कर्म ही जाते हैं—यही कर्म उसकी यादें बनकर समाज में जीवित रहते हैं और यही कर्म तय करते हैं कि वह इतिहास में आदरणीय कहलाएगा या भुला दिया जाएगा। अतः कहा जा सकता है कि भाग्य हमें जन्म देता है, लेकिन कर्म हमें अमरत्व प्रदान करता है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
ये ही तो भारतीय मनीषियों ग्रंथों और संतों ने समझाया है कि इंसान दुनिया में अपना भाग्य लेकर आता है,जबकि कर्म दुनिया से लेकर जाता है। कर्मफल का सिद्धांत के संबंध में हमारे यहां कहा गया है - अवश्यमेव भोक्तव्यं शुभाशुभ कर्म फलम्।यह तो अकाट्य है और इसी कारण पूर्व कर्मों की वजह से मनुष्य भाग्य को लेकर आता है।उसी के अनुसार जन्म प्राप्त करता है।अब यह आगे का भाग्य उसके कर्मों पर आधारित है कि वह उसे सुधार ले या यूं ही इस जन्म को बिता दे। हमारा दायित्व बनता है कि हम अच्छे कर्म करते हुए अपने उज्ज्वल और सुखद भाग्य का निर्माण करें।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
"इंसान दुनिया में भाग्य लेकर आता है लेकिन दुनिया से कर्म लेकर जाता है" इस बात में जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलुओं - भाग्य और कर्म -
ReplyDelete- *भाग्य*: अक्सर इसे पूर्वनिर्धारित या नियति के रूप में देखा जाता है। यह वो परिस्थितियाँ, अवसर या चुनौतियाँ हो सकती हैं जो हमारे जन्म के साथ या जीवन के किसी बिंदु पर हमारे सामने आती हैं।
- भाग्य को कई लोग पूर्वजन्म के कर्मों, ग्रहों की स्थिति, या अन्य अलौकिक कारकों से जोड़ते हैं।
- लेकिन भाग्य की अवधारणा व्यक्ति-दर-व्यक्ति अलग हो सकती है और इसे हर कोई अलग तरीके से देखता है।
- *कर्म*: हमारे द्वारा किए गए कार्य, विचार, और निर्णय। कर्म हमारे आचरण, व्यवहार और कार्यों का परिणाम होता है।
- हमारे कर्म हमारे भविष्य को आकार देते हैं।
- अच्छे कर्म सकारात्मक परिणाम ला सकते हैं, जबकि नकारात्मक कर्म विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं।
"दुनिया से कर्म लेकर जाता है" का अर्थ
- जब कहा जाता है कि इंसान दुनिया से कर्म लेकर जाता है, इसका मतलब है कि हमारे जीवनकाल में किए गए कर्म ही हमारे साथ जाते हैं।
- *कर्म हमारे साथ जाते हैं*: हमारे अच्छे या बुरे कर्म हमारे जीवन के बाद भी हमारे साथ एक तरह से जुड़े रहते हैं, चाहे वो हमारे परिवार, समाज पर प्रभाव के रूप में हो या हमारे आत्मिक/आध्यात्मिक प्रभाव के रूप में।
- यह कहती है कि हमारे कार्य ही हमारी असली विरासत होते हैं।
- दुनिया में हमारे कर्म ही वो चीज हैं जो हमारे जाने के बाद भी किसी न किसी रूप में रह जाते हैं।
. *कर्म की स्थायी छाप*: हमारे कर्म हमारे संबंधों, समाज और स्वयं पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।
2. *आध्यात्मिक दृष्टिकोण*: कई आध्यात्मिक परंपराओं में माना जाता है कि कर्म अगले जन्म या आत्मा की यात्रा को प्रभावित करते हैं।
*भाग्य और कर्म का संतुलन*: जबकि भाग्य कुछ परिस्थितियाँ दे सकता है, हमारे कर्म ही तय करते हैं कि हम उन परिस्थितियों का कैसे उपयोग करते हैं।
- यह हमें हमारे कार्यों के प्रति सजग रहने के लिए प्रेरित करता है।
- अच्छे कर्म करने से हम अपने जीवन और दूसरों के जीवन में सकारात्मकता ला सकते हैं।
- यह हमें हमारे जीवन को सार्थक बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।
- कहते हैं कि "अर्थी के पीछे भीड़ को देखकर पता चलता है कि यह मरने करने वाला व्यक्ति कैसा था। "
- रंजना हरित बिजनौर
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