अब्बुरी छाया देवी स्मृति सम्मान - 2025

     ऑंसूओ का संबंध भावनाओं से जुड़ा है। जिस का धर्म से कोई संबंध नहीं है। बल्कि कर्म का परिणाम है। फिर भी कहते हैं कि ऑंसू बहुत कुछ कहते हैं। बाकि तो ऑंसूओ के विभिन्न कारण हो सकते हैं। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। अब आयें विचारों में से कुछ विचारों को पेश करते हैं :-
         तासीर किसी भी दर्द की मीठी नहीं होती गालिब वजह यही की आंसू भी नमकीन होते हैं, आईये आज  चन्द किस्से आंसूओं पर कह देते हैं कि आंसू वास्तव में ‌क्या हैं अगर सत्यता की तरफ चलें तोआंसूओं के  खारे  पानी में वह आग होती है जो दिल पर, जमी बर्फ को पिघला देती है जिसके वाद इंसान अपने आपको हल्का और तरोताजा महसूस करता है,इसके अतिरिक्‍त भी आंसू बहुत कुछ कह जाते हैं क्योंकि इनका कोई धर्म नहीं होता बल्कि कई कर्म दिखला कर बह जाते हैं तो आईये आज की चर्चा इसी बिषय पर करते हैं कि आंसूओं का कोई धर्म नहीं होता सिर्फ कर्म होता है, मेरा मानना है कि आंसू इंसानी जज्बातों का वो हिस्सा हैं जो गमी,खुशी,मिलन बिछुडन को दिखलाते हुए छलक जाते हैं अगर आंसूओं के कर्म की बात करें तो इनके कर्म जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं,यह हमें भावनात्मक मुक्ति दिलाते हैं,दुसरों से‌ सहानुभूति   प्राप्त करने में मदद करते हैं तथा हमारी भावनात्मक ‌स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं तथा मन की व्यथा‌  बताने में कामयाब होते हैं,कहने का भाव आंसूओं के कर्म हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं तथा यह हमें भावनात्मक मुक्ति,सहानुभूति और आत्म विचार प्रदान करते हैं मगर यह अटूट सत्य है कि आंसूओं का कोई  धर्म नहीं होता,क्योंकि यह दुख में भी रूलाते हैं और सुख में भी  खुशी‌ं में भी इनका  आना स्वाभाविक होता है,साथ में इनका धर्म इसलिए नहीं होता क्योंकि आंसू एक प्रकृतिक और मानवता पूर्ण प्रकिया है जो किसी धर्म या जाति से परे होती है,यह हमारी भावनाओं के‌ साथ बहते हैं और भावनाएं हर इंसान में पाई जाती हैं,यह दर्द और पीडा की एक प्रक्रिया है जो किसी भी संस्कृति से परे है, अन्त में यही कहुंगा कि आंसू मन का दर्पण होते हैं जो न कहने पर भी बहुत कुछ कह जाते हैं चाहे तकिए को मुँह पर रख कर निकलें या घर के कोने में बैठकर ,अकेले  में रोएं या भीड में ये तो दुखडा व्यां कर ही देते हैं,इनका मनोभाव से सीधा संबंध है इसलिए इनका कोई धर्म नहीं होता बल्कि अपने कर्म दिखा जाते हैं,तभी‌‌ तो कहा है,दो घड़ी दर्द ने  आंखों में नहीं टिकने दिया, हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आंसू‌।

- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

      आँसू मनुष्य की सबसे सच्ची भाषा हैं। वे जाति, धर्म, वर्ग, रंग या भाषा नहीं देखते। किसी का दुख या आनंद जब हृदय से फूटता है, तो वह आँसुओं के रूप में प्रकट होता है। चाहे वह किसी हिंदू का शोक हो, किसी मुस्लिम का दर्द, किसी ईसाई की प्रार्थना या किसी बौद्ध का करुणाभाव — आँसू सबके एक समान हैं।इसलिए कहा जा सकता है कि आँसुओं का कोई धर्म नहीं होता, वे केवल मानवता की भाषा बोलते हैं। आँसू कर्म का परिणाम हैं — सुख का, दुःख का, या किसी गहन अनुभव का। जब कोई अपने कर्मों के फलस्वरूप दुखी या प्रसन्न होता है, तब आँसू बहते हैं। ये आँसू किसी धार्मिक पहचान से नहीं, बल्कि व्यक्ति के कर्मफल से उत्पन्न होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि आँसुओं में धर्म नहीं, कर्म होता है। जब किसी प्राकृतिक आपदा, युद्ध, या सामाजिक त्रासदी में लोग रोते हैं — तब कोई यह नहीं पूछता कि किस धर्म का व्यक्ति रो रहा है। उस क्षण सभी आँसू एकाकार हो जाते हैं। यह हमें बताता है कि दर्द इंसान का होता है, धर्म का नहीं। ईश्वर के समक्ष बहाए गए आँसू भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। भक्त जब ईश्वर से मिलन या विरह में रोता है, तो उसके आँसू धर्म की सीमाएँ लांघकर आत्मा की शुद्धता बन जाते हैं। यहाँ कर्म का अर्थ भक्ति-कर्म से है — मन की पवित्रता और आत्मसमर्पण।आँसू मनुष्य को जोड़ते हैं, विभाजित नहीं करते। वे बताते हैं कि सबका हृदय एक जैसा है — संवेदनशील, कोमल और कर्मप्रधान। धर्म बाँटता है, आँसू जोड़ते हैं। धर्म पूछता है ‘तू कौन है’, आँसू कहते हैं ‘मैं भी तेरा ही दुःख हूँ’।

- डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर - राजस्थान

      जिस तरह से खून का कोई धर्म नहीं होता है ठीक उसी तरह आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता है. हाँ लेकिन आंसुओं का कर्म होता है कि वह दुःख से निकल रहा है कि सुख से निकल रहा है. क्योंकि आँसू दुःख और सुख दोनों में निकलते हैं. मनुष्य का जैसा दुःख होता है आँसू उसी तरह से निकलता है. खुशी किस तरह की है आँसू भी उसी तरह के निकलते हैं. 

 - दिनेश चन्द्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - पं. बंगाल 

      सत्यवचन ... आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता !! आंसू तब निकलते हैं जब कोई व्यक्ति बहुत दुखी होता है , वो अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं के पाता , व हृदय से दुखी होता है !! दुख की कारण व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करते हैं !! दुखी होकर आंसू सबके निकलते है , हिंदू के भी , मुसलमान के भी , व ईसाई के भी !! दुख व  आंसू का कोई धर्म , जात , पात नहीं होती!! आंसुओं  का कारण भिन्न हो सकता है , पर आंसू व्यक्ति के व्यक्तिगत कर्म के कारण आते हैं !! व्यक्तिगत कर्म धर्म नहीं देखते , हालात के अनुसार किए जाते हैं !! कर्मों के परिणामस्वरूप आंसू आते हैं, वो इनमें धर्म की कोई भूमिका नहीं होती !! 

    - नंदिता बाली 

सोलन - हिमाचल प्रदेश

      कवि मन दिल की अंतर्मन भावनाओं  और सामाजिक जीवन की नाड़ी को बखूबी समझता भी है और महसूस भी करता है। शब्दों के रूप में यही भाव जीवन के मर्म को पाठकों और श्रोताओं तक संप्रेषित करने का दायित्व बखूबी निभाते हैं। हमारी हिंदी फिल्मों में गीत लिखने वाले कई कवियों ने, इतने सारगर्भित,शिक्षाप्रद,प्रेरक और अपने शब्द संदेशों से किसी का जीवन बदलने वाले बोल लिखें हैं कि उनसे प्रभावित हुए बिना शायद ही कोई रहा हो। 1963 में फिल्म हमराही के गीत जिसके लेखक स्व. श्री हसरत जयपुरी थे। इस गीत के शब्द आज की परिचर्चा के विषय के बारे में जानकर गुनगुनाने लगा "ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं- 2, मैं रोऊं तो रो दें आंसू, मैं हंस दूं तो हंस दें आंसू, ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं - 2" । "आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता, सिर्फ आंसुओं में कर्म होता है"। यह बात सत्य है कि आंसू खुशी के भी छलकते हैं तथा ग़म और दुःख में तो रो देते हैं। मनुष्य स्वभाव  से बहुत ही नाजुक और भावुक होता है। जीवन की परिस्थितियों हीं, उसे  कठोर और हठी बनाती हैं। इन परिस्थितियों के कारण ही मनुष्य के कर्मों की नियति बदल जाती है। जब मनुष्य जन्म लेता है, तो उसका कोई धर्म नहीं होता। भगवान ने उसे इन्सान पैदा किया होता है। जन्म किसके घर में लिया, किस धर्म, जाति, वर्ग, गरीब या अमीर ? उसकी परवरिश, संस्कार, सामाजिक और मानवीय मूल्य ही उसे अच्छा और बुरा बनाते हैं। जीवन पथ पर संघर्षों के मध्य यदि वो विचलित होकर रो देता है। तो उसके वो आंसू किसी मनुष्य विशेष के न होकर मानवता के आंसू होते हैं। याद पथभ्रष्ट होकर कोई कुकर्मों के द्वारा दंडित या प्रताड़ित होता है और उससे उसके आंसू फूटते हैं तो वो आंसू उसके कर्मों का परिणाम होता है। इसलिए कह सकते हैं कि "आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता है, सिर्फ आंसुओं में कर्म होता है"।

  -  डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर

बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश

         आँसूओं का उद्गम अन्तर्मन से है। कोई भी बात या घटना जब  ह्रदय के गहराई को छूती है तो अंतर्मन को झकझोर देती है और फिर उसकी अभिव्यकि आँसूओं के रूप में आँखों से बह निकलती है। बहुत अधिक खुशी या बहुत अधिक पीड़ा का प्रतिरूप आँसू होते हैं। मनुष्य हों या प्राणी यहाँ तक कि माना तो यह भी गया है कि पेड़-पौधों से भी आँसू निकलते हैं। आँसू खुशी के हों या पीड़ा के रोम-रोम से पल्लवित होते हैं यानी पूरा शरीर जब किसी बात या घटना से सिहर उठता है तब। आँसूओं खुशी के हों या दुख के उनमें किसी सपने का संघर्ष निहित होता है। जब वह सपना साकार होता है तो खुशी के आँसू होते हैं और जब  वह टूटता है तो दुख के होते हैं यानी आँसूओं में कर्म निहित होता है। आँसूओं के कारक भले ही अलग हों परंतु उनका रूप सदैव एक ही होता है। उसमें कोई भेद नहीं होता। न ही कोई धर्म। इन सब के अलावा आँसूओं का प्रतिफल भी होता है। जो इन आँसूओं को देने वाले के लिए होता है। यानी जिनकी वजह से खुशी के आँसू निकलते हैं, उनके लिए दुआएं और जिनकी वजह से पीड़ा के आँसू निकलते हैं, उनके लिए बद्दुआ भी निकलती है। इसके अलावा आँसू विवशता के भी होते हैं और घड़ियाली भी। सार यह कि यह कहना उचित है कि आँसूओं का धर्म नहीं होता है।सिर्फ आँसूओं में कर्म होता है।

-  नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

         भावनाएं विचारों के माध्यम से मस्तिष्क का पहुँच चेतन हो अवचेतन मन ख़ुशी हो या ग़म चेतना जागृत करते है !मनके उद्गार के साथ अश्रु रूप में प्रवाहित होते है ! इस तरह आसुओं का धर्म कई प्रकार के जैसे दिखावटी आसूँ मगरमच्छ आँसू होता है  ! ठहाके लगाते हँसते हुए आँखों से पानी बहा आसूँ ख़ुशियों से सराबोर करते भावनाओं में विजयी होते ! फिर वही बाते सोच के अनुसार मन बदल लेते है ! किसी बात से किसी को बुरा ना लगे सरिक हो रोने का प्रयास करते है ! बहन की बिदाई हो रही थी सारा पतिवार रो रहा था पर वो महसूस हुआ सब कहने लगे कैसी निर्लज्य है कहती अब घर का सब कुछ अब मेरा है दीदी तो ससुराल चली गई मैं क्यों  आसूँ बहाऊँ मुझे तो रोना ही नहीं आ रहा! भैया आ मैं तुझे चिकोटी काटता हूँ ! छूटकी रोने लगी ! बहन से बहुत प्यार करती थी अबउसे अकेले पढ़ना होगा !इसलिए रो रही है  भावनाओं का इजहार आँसू हमारी भावनाओं को व्यक्त करने का एक तरीका है।तनावमुक्ति आँसू तनाव और दबाव को कम करने में मदद करते हैं।: आँसू दूसरों को हमारी भावनाओं को समझने और सहानुभूति दिखाने का अवसर प्रदान करते हैं। दिल की बात ज़ुबाँ पर लाना होगा ।कड़वा सच तो पीना होगाईमान धरम की क्या ? बात करे ?मानवता का धर्म निभाना होगा कड़वा सच तो पीना होगा !ज़ाहिर होकर जीना होगा !झूठी मायानगरी झूठे हालात है   मुस्कानो से आगे बढ़ाना होगा !लगे घाव ममता चंदन लेप लगाना होगा ! काया मायानगरी इंसानियत दिखाना होगा ! क्या ले कर आये हो क्या लेकर जाएँगे राह प्रेम भरी मुस्कानों की दिखानी होगी । दिल की बात ज़ुबाँ पर लाना होगा लगे घाव चेहरों पर मुस्कान लाना होगा

कड़वा सच तो पीना होगा

ज़ाहिर होकर जीना होगा

दिलों में लगे घाव चेहरों पर 

मुस्कान लाना होगा!

 - अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

           आँसुओं का कोई धर्म नहीं होता - - बहुत ही सही सटीक समर्पित समर्थनीय बात। आँसू तो संवेदनशील इंसान की पहचान होते हैं। पत्थर कभी पिघलते देखा है--नहीं ना? क्योंकि पत्थर में दिल नहीं होता - - दर्द  नहीं होता--प्रकृति ने "आँसुओं की सौगात ह्दय के साथ" सिर्फ इंसानों को सौंपी है।निर्मोह इंसान का स्वभाव होता है लेकिन निर्मोही भी कभी-कभी आँसुओं से भीग जाते हैं क्योंकि उनके कर्म का प्रतिफल उन्हें नहीं मिल पाता। ऐसी स्थिति में कर्मशील निर्मोही भी आँसुओं में धुलकर निर्मल हो जाता है। मानव ह्दय की अभेद्य गहराईयों में छिपा होता है आँसुओं का झरना। कर्म के पार भी - -! एक दुनियां होती है मन की दुनिया। मन की दुनियां ही इंसान को इंसान बनाती है। अकर्मण्यता पत्थर बना देती है। भरोसा है कि"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "बस इसी कर्मशील अस्तित्व पर दुनियां सदैव टिकी है - - टिकी थी और टिकी रहेगी--आमीन।

- हेमलता मिश्र मानवी 

   नागपुर - महाराष्ट्र 

           आसुओं का कोई धर्म नहीं होता बस  एक भाव होता है। दुख भरी भावनाओं को इज़हार करने का एक माध्यम है। यह दुख अपना अथवा किसी और का भी हो सकता हूँ। यदि हम केवल अपने ही दुख से ग्रस्त नहीं हैं दूसरों की दुख तक़लीफ़ को समझ रहे हैं , उसे भी उतनी ही शिद्दत से महसूस कर रहे है तो यह एक नेक कर्म है।आँसु वैश्विक हैं। किसी जाति, धर्म ज़ात -पात, रंग, चमड़ी अथवा लिंग से इसे बाँटा नहीं जा सकता। हाँ, दुख कौन कितना महसूस करता है और कितना प्रभावित होता है यह व्यक्तिगत संवेदनशीलता है। दुख को बताना नहीं, बाँटना नहीं व दबा कर रखना मानसिक परेशानियों का कारण बन सकता है। इसलिए यदि  आँसू आ रहे हों तो उन्हें आने दीजिए, बहने दीजिए। यह भी मत कहिए दूसरों  से या स्वयं से कि अरे! तुम तो लड़के हो, पुरुष हो तुम्हें रोना  शोभा नहीं देता। क्या पुरुष अथवा लड़के संवेदनशील नहीं हो सकते?  ख़ुशी में भी आँसू निकल आते हैं । आँसू  हमारी भावनाओं को समझने, समझाने, दूसरों  तक पहुँचाने में मदद करते हैं।

- रेनू चौहान

    दिल्ली 

       सच में आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता। आंसू तो सभी के बहते हैं। सिर्फ मानव के ही नहीं, पशु- पक्षी, जानवर के भी आंसू बहते हुए देखे जा सकते हैं। जब भी किसी को कोई दुःख दर्द होता है, कोई अपना याद आ जाए, कई बार प्रार्थना करते हुए भी आंसू बहने लगते हैं, पूजा घर में जब भगवान का शुक्र अदा करते हैं, अभाव में भी आंसू बहने लगते हैं, बहुत ज्यादा प्रसन्नता में जब किसी को गले लगाते हैं अथवा अस्पताल में बीमार पड़ने पर कोई अपना पास आ जाए तब भी आंसू बहते हैं, आंसू का कोई धर्म- कोई भाषा नहीं होती। आंसू तो स्वत: ही बहते हैं। आंसू बहाने पर सामने वाला तुरंत हमारे मन की जान लेता है। कोई भी कर्म करते हुए जब हम बहुत थक जाते हैं तब भी चारपाई पर लेटते ही आंसू बहने लगते हैं। जब हम रो रो कर थक जाते हैं तब भी स्वयं से कहते हैं कि उठ, काम कर। आंसू बहाने के बाद मन हल्का होता है, और ज्यादा काम करने को मन करता है। एक बात और जब हम अपने से बड़ों के पास आंसू बहाते हैं, किसी कारणवश अपनों से बड़ों के पास हमारे आंसू बहने लगते हैं तब बड़ों का मन पिघल जाता है और वह हमें अपने मन से ढेरों आशीर्वाद देते हैं, शाबाश देते हैं, तब भी हमारा हौंसला बढ़ता है, हम और ज्यादा काम करते हैं‌। आपने सही कहा आदरणीय, आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता आंसुओं में कर्म होता है।

 - डॉ. संतोष गर्ग 'तोष'

  पंचकूला - हरियाणा 

     किसी भी व्यक्ति के आँसू किसी भी धर्म, जाति अथवा किसी समुदाय के नहीं होते। यह तो मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है। व्यक्ति के आँसूओं की अभिव्यक्ति गरीब अमीर सभी के भावनाओं से व्यक्त होती है। यह सामान्य प्रक्रिया है जो सुख और दुख दोनों समय आँखों से आँसू बन छलक पड़ते हैं। धर्म तो हमारे विश्वास एवं सिद्धांतों पर जीवन जीने का नैतिक नियम है, जिसमें हम सत्य ,अहिंसा और न्याय को लेकर चलते हैं वहीं , कर्म इच्छा, प्रयास और भाग्य को लेकर चलने का नाम है।  दूसरों की सेवा करते हैं , दूसरों के प्रति दया-भाव रखते हैं , किसी का बुरा नहीं चाहते ऐसे कर्म हमें सकारात्मक फल देते हैं  जबकि बुरे कर्म दुख का कारण बनते हैं। हमारे कर्म ही हमारी पहचान है ना कि धार्मिक पहचान।

- चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र

     आंसुओं का कोई धर्म नहीं होता अर्थात् आंसू बहाने से हमें धर्म नहीं मिलते। सिर्फ़ आंसुओं में कर्म  होते हैं अर्थात् जब इसके जरूरत होते हैं,ये अपने कर्म दिखाने लगते हैं।ये दुःख की घड़ी में बहने लगते हैं।जो दुःख के सूचक हैं।जब_जब मनुष्य की जिंदगी में कष्ट,मुसीबत आदि आते हैं,अश्रु धार बहने लगते हैं।ऐसी बात नहीं है कि सुख में आंसू नहीं बहते,उस समय भी बहते,लेकिन परिस्थितियों में अंतर रहता है।

  - दुर्गेश मोहन 

    पटना - बिहार

      आंसू तो बस आंसू होते हैं, उनका कोई धर्म नहीं होता. वे धर्म-जाति-रंग से निर्लिप्त होते हैं. आंसुओं का बस कर्म ही होता है. अच्छे कर्म के आंसू खुशी का प्रतीक होते हैं, बुरे कर्म के आंसू ग़म की गवाही देते हैं. कुछ आंसू पश्चाताप होते हैं तो कुछ मगरमच्छी, कुछ आंसू दिल साफ करते हैं और आंखें भी, कुछ दिल का घात. कभी आंसुओं से कीजिए मुलाकात,बताएंगे अपनी बात, अपनी औकात, क्योंकि आंसुओं में सिर्फ कर्म होता है.

 - लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

" मेरी दृष्टि में " ऑंसू अपने आप में बहुत कुछ कहते हैं। सिर्फ़ समझने की आवश्यकता होती है। ऑंसू बिना कारण कभी नहीं आते हैं। यह कुछ ना कुछ अवश्य कहते हैं ।इन को समझने की आवश्यकता होती है। 

              - बीजेन्द्र जैमिनी 

           (संचालन व संपादन)

Comments

  1. बहुत बहुत बधाई आदरणीय शुभकामनाएं 🙏💐😊

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