क्या अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम होता है ?

जहां अहंकार होता है । वहाँ प्रेम सम्भव नहीं है । अहंकार जीवन की प्रतिष्ठा पर कलंक लगा देता है । यहीं सच्चाई है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अहंकार आदमी की कमजोरी है और यही अहंकार उसके जीवन का केंद्र बिंदु होता है इसी अहंकार पर ही उसका सारा जीवन निर्मित होता है ! मनुष्य मौत से नहीं डरता  जिस अहंकार को वह जीवन भर पालता है उस अहंकार को खो देने का डर होता है वह वह नष्ट ना हो जाए आदमी के बिंदु पर आकर कमजोर हो जाता है कुछ भी पाने की दौड़ अहंकार की दौड़ होती है यदि यदि हम मैं को छोड़ दे तो प्रेम की अनुभूति हो सकती है किंतु अहंकार के आते ही प्रेम की कोई जगह नहीं होती ! मैं...मैने दान किया मैने सत्यनारायण की पूजा की वगैरह वगैरह... मीरा ने सब कृष्ण पर छोड़ दिया था ...अपने किये कार्य पर भी उसे कृष्ण ही करते हैं कहती थी यानी अहंकार नही था सो वृक्ष में प्रेम के ही फल थे वर्ना अहंकार के वृक्ष में तो दुख ,पीडा़ और चिंताओं के अलावा कोई फल नहीं लगते हैं !
         - चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
     अंहकार प्रेम का घोतक हैं, जिसमें अंहकार आ गया, उसकी धीरे-धीरे विनाश की लीलाओं का प्रारंभ हो ही जाता हैं। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उदाहरण परिदृश्यों में देखने को मिल रहा हैं, जिसमें त्याग, बलिदान, नम्रता न हो उसका जीना कोई जीना नहीं रह जाता? जिसके परिपेक्ष्य में अंहकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम हो जाता हैं। इसलिए कहा जाता हैं, कि अंहकार मनुष्य के सभी वर्गों को नहीं करना चाहिए, लेकिन अंहकार के बिना कोई भी किसी भी तरह का कार्य भी नहीं हो सकता हैं। अंहकार मानवओं के अतिरिक्त  जानवरों में भी देखा जाता हैं, जिसे नकारा भी नहीं जा सकता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
हे मानव!तू किसी भी परिस्थिति में घमंड मत कर क्योंकि यह बहुरुपिया संसार हर घड़ी हजारों रंग बदलता है l ऐसे में अहंकार किस बात का,इस रंग बदलती दुनियाँ में यदि व्यक्ति अहंकार में आकंठ डूबा है तो निश्चित ही वह भाव और प्रेम विहीन व्यक्ति है l
   मैं और प्रेम का संबंध न कभी था और न कभी होगा या यूँ कहे कि है l मैं प्रेम की ही अनुपस्थिति का प्रमाण है l कबीरा ने कहा -
   तन का बैरी कोई नहीं
          जे मन में
          शीतल होय
     तू अहंकार को डारी दे
       प्रेम करे सब कोय... l
यदि आप अपनी प्रतिष्ठा और घमंड को दूर कर देंगें तो सारा संसार आपको प्रेम करेगा l
"मन के गमलों में जो नागफनियाँ         लगी
रात रानी उनमें लगा दीजिये l "
  आज हमारे अहम की नागफनी फैलती जा रही है l व्यक्तित्व की सीमाओं पर l इस नागफनी की बाड में प्रेम रूपी शिशु सिसक रहा है l प्रश्न है घमंड क्या है?
"जो हम है उसे अस्वीकार करना और जो हम नहीं हैं उसे स्वीकार करना ही अहंकार है l "
      चलते चलते ------
"जिन दहकती नजरों से सहम जाया करते थे लोग
अक्सर उन्हीं नजरों को प्रेमाँचल में बरसते देखा है l "
     - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
         यह सत्य है कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम होता है। परंतु रावण को कौन से प्यार की कमीं थी? उन्हें किस वस्तु का अभाव था? वह हर प्रकार से सक्षम और सम्पन्न राजा थे। इसके अलावा वह महा पंडित भी थे और महादेव के अनन्य भक्त थे। परंतु अहंकार के कारण विश्व में बदनाम हैं।
        देखने में आता है कि वर्तमान में मानव जाति चारों ओर दुखी है। परंतु अपने-आपको कृत्रिम चेहरों में छुपा रखा है। जबकि जिन्हें यह समाज दुखी मान रहा है वही लोग थोड़े बहुत वास्तविक प्रसन्न हैं। 
         जबकि उनके पास मानव तो क्या पशु-पक्षी भी दिखाई नहीं देते अर्थात मानव तो छोड़िए उन्हें पशु-पक्षियों का प्यार भी नसीब नहीं होता। सच्चाईयां इससे भी कहीं आगे निकलकर ब्यान यह करती हैं कि उन्हें दो वक्त का खाना भी प्राप्त नहीं होता। फिर भी वह अत्यंत प्रसन्न होते हैं। जबकि वह प्रेम से सम्पूर्ण वंचित हैं और उनमें अहंकार नाम का कोई भी चिन्ह नहीं है। वह सफल जीवन का आनंद ही नहीं उठा रहे बल्कि सर्वश्रेष्ठ जीवन को भोग भी रहे हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अहंकार किसी भी व्यक्ति के मन का अस्तित्वहीन विचार है, जिसका कोई सार नहीं है  । यह एक आत्मज्ञान रहित भाव है जो अंधकार के समान है, केवल ज्ञान के प्रकाश से ही इसे दूर किया जा सकता है । 
मनुष्य में अहंकार का भाव कैसे पैदा होता है इसके भी कई कारण है।  आर्थिक, सामाजिक ,पारिवारिक रूप से श्रेष्ठ व्यक्ति के मन में भी अहंकारी भाव पैदा हो सकते हैं । अपने आप को सर्वश्रेष्ठ ,सक्षम ,बलिष्ठ, धनवान, समझदार, ज्ञानवान मानना अहंकारी भाव है। 
 अहंकार अंधकार की भांति है और प्रेम ज्ञान की भांति । अहंकार और प्रेम एक साथ नहीं हो सकते । प्रेम की अनुपस्थिति ही अहंकार का भाव पैदा करती है।
 हमारे मन में जब "मैं "का स्वर प्रबल हो जाता है तो प्रेम का भाव रहता ही नहीं है क्योंकि "मैं "का और प्रेम का कोई संबंध नहीं हो सकता इसलिए यह अहंकार प्रेम की ही अनुपस्थिति है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जिस व्यक्ति के मन में जीव मात्र के लिये प्रेम नहीं होता वो इन्सान कहलाने के योग्य ही नहीं ।
प्रेम विहीन व्यक्ति अहंकारी और क्रूर हो जाता है ।प्रेम ही सब समस्याओं को हल करने की चाबी के समान है । प्रेम में निमग्न व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं सकता । वो जीवमात्र के प्रति दया और करुणा से युक्त रहते हुए सब का कल्याण चाहने वाला होता है । दूसरी तरफ अहंकारी व्यक्ति के मन में दया के लिये कोई स्थान नहीं होता ।
अता प्रेम के अभाव में व्यक्ति अहंकारी हो ही जाता है ।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
नहीं, यह कोई जरूरी नहीं है कि प्रेम की अनुपस्थिति में ही अहंकार उत्पन्न हो। किसी किसी व्यक्ति का अभिमानी स्वभाव होता है वह अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। उसे लगता है कि वह जो कुछ भी करता है वही ठीक है और उस से बड़ा कोई नहीं। अहम की यह भावना उसके अंदर घमंड या अहंकार पैदा कर देती है। प्रेम अपनी जगह है, अहंकार अपनी जगह। मानवीय स्वभाव के यह  दो अलग किस्म के गुण हैं। अहंकारी व्यक्ति भी प्रेम करता है किंतु अपने अहम को प्राथमिकता देता है जबकि प्रेमी अपने अहम को भूलकर केवल प्रेम को ही प्रधानता देता। 
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
अहंकार और प्रेम एक जगह रह ही नहीं सकता है। प्रेम की अनुपस्थिति का कारण ही अहंकार है। जहाँ प्रेम होगा वहाँ अहंकार पर भी नहीं मार सकता है। इसीलिए कहा जाता है भगवान हो या मनुष्य यदि किसी को पाना है तो उसे हम प्रेम से ही पा सकते हैं। अहंकार मनुष्य को पतन की तरफ ले जाता है जबकि प्रेम से व्यक्ति भगवान को पा लेता है। महाभारत में इस बात का जबरदस्त उदाहरण है। अहंकारी दुर्योधन भगवान की सेवा से उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से बंचित हो जाता है। भगवान उसके मेवा मिष्ठान्न को त्याग प्रेम में पगे विदुरजी के घर साग भात का आनंद लेते हैं। प्रेम के बश में आकर केला के छिलके खा लेते हैं। इस बात से साफ-साफ प्रमाणित होता है कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का ही परिणाम होता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
      अहंकार और प्रेम एक साथ नहीं हो सकते।अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम ही होता है। दूसरे शब्दों में अहंकार को अंधकार कह सकते हैं। जब मनुष्य अहंकार रूपी अंधकार में डूबा होता है तो उस की नजरें हमेशा दूसरों की बुराइयाँ खोजने पर टिकी रहती हैं। प्रेम उस से कोसों दूर होता है। प्रेम तब खुश होता है जब वह कुछ दे पाता है। अहंकार तब खुश होता है जब वह किसी से कुछ ले पाता है। 
          घृणा, द्वेष, क्रोध और प्रतिशोध  अहंकारी के पास होते हैं। क्षमा, दया,प्रेम और धैर्य से वह वंचित होता है। जब मनुष्य के अंदर प्रेम का दीपक जलने लगता है तो उस में अंहकार भी धीरे-धीरे विलुप्त होने लगता है। 
 - कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है-

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।7.4।।

अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।7.5।।
अर्थात
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार भी- इस प्रकार ये आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है। यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है, मेरी जीवरूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान॥7.4
यह कथन सिद्ध करता है कि-
अहंकार जीवन पर्यंत (शरीर में रहते हुए) कभी समाप्त नहीं होता। यह मन,बुद्धि की तरह अनिवार्य तत्व है। इसे प्रेम की अनुपस्थिति नहीं मानना चाहिए। प्रेम में सहायक तत्व है यह तो। हां जब मोह और आसक्ति को प्रेम समझने की भूल की जाएं तो कुछ भी समझा जा सकता है।
अहंकार में प्रेम होता ही है। इसकी अनुपस्थिति के बिना प्रेम है ही नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
प्रेम में मन का समर्पण करना होता है ।
जब तक इंसान अहंकार में पड़ा रहता है तब तक उसे कुछ प्राप्त नहीं होता, या यूं कहें कि अहंकारी के अंदर प्रेम नहीं रह जाता। उसका विवेक भी नष्ट हो जाता है।
 दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अहंकार का अर्थ होता है अपनी सत्ता को महसूस करना।
 अहंकार नकारात्मक तब हो जाता है जब नकारात्मक दिशा में चला जाए, जिसे हम घमंड कहते हैं ।और यह मिथ्या अहंकार तब पैदा होता है जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं अपने को श्रेष्ठ साबित करते हैं ।
जबकि यह सत्य है कि प्रकृति में कोई भी चीज एक दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है ।
प्रकृति में सब का अपना महत्व है, एक छोटे से तिनके का भी और पत्थर के टुकड़े का भी।
 मनुष्य में अहंकार आने के कई कारण हो सकते हैं धन ,रूप, ज्ञान और कई गुण जो कि सामान्य लोगों से अधिकता होने पर मनुष्य में अहंकार आ जाता है ।
अहंकार आने का  स्वाभाविक कारण सफलता होती है।
 बहुत से लोग उसी सफलता को श्रेष्ठ मानकर औरों को तुच्छ  समझते हैं ।
अहंकार एक  नकारात्मक मनोभाव है ,जो इंसान को क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन भविष्य में  यह आपसे आपके खूबसूरत रिश्ते छीन लेता है।
अहंकार  आने का मुख्य कारण ये है , मैं ,मुझसे ,मेरे द्वारा ,आदि है।
 अगर हम सोचे कि सब ईश्वर द्वारा ही है तो हममें से ,मैं , यानि अहंकार निकल जाएगा और तब हम प्रेममय में हो जाएंगे  सम्पूर्ण विश्व को प्रेम की दृष्टि से देखेंगे।
तब हम  स्वयं को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझेंगे ।
हम कह सकते हैं कि अहंकार में प्रेम की अनुपस्थिति हो जाती है। या  यूँ कहें कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति के परिणाम स्वरुप होता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मनुष्य के अंदर सद् और असद् दो बृतिया    होती है। सद् का अर्थ अच्छा और असद् का अर्थ है जो अच्छा ना हो यानी बुरा। अहंकार मनुष्य की बुरी वृति है। अहंकारी मनुष्य को अच्छे बुरे का विवेक नहीं होता है। अपने घमंड में चूर रहता है और अपना भला बुरा भी भूल जाता है।अंहकारी मनुष्य को अपनी गलती का एहसास तब होता है जब *चिड़िया चुन जाती है जब खेत* यानी उस की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है।अहंकार का परिणाम बहुत बुरा होता है इसके कारण बड़े बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी मुंह की खानी पड़ती है। *रावण* जैसा महा ज्ञानी अपने अहंकार के कारण अपने कुल  परिवार के साथ नष्ट हो गया।
लेखक का विचार:-- इसलिए मनुष्य को अहंकार का मार्ग त्यागकर प्रेम और सद्गुण का मार्ग अपनाना चाहिए। 
किसी भी स्थिति में घमंड मत करें क्योंकि यह बहरूपिया संसार है हर घड़ी हजारों रंग बदलता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
क्या अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम होता है
अहंकार या प्रेम दोनों मन की अवस्था है एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक प्रेम से सब कुछ जीता जा सकता है और अहंकार में अपना सब कुछ दांव पर लग जाता है अर्थात हार जाते हैं दोनों की अवस्था देखकर यह स्पष्ट होता है की प्रेम की अनुपस्थिति ही अहंकार है अहंकार से क्रोध ईर्ष्या चिंता लालच पैदा होगा और प्रेम से सिर्फ समर्पण अर्पण त्याग और खुशियां मिलेंगी ज्वलंत उदाहरण अहंकार का रावण को माना गया है ज्ञानी महा ज्ञानी होने के बावजूद भी प्रेम का अभाव होने के कारण एक दिन रावण बंद हो गया जबकि श्री राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया रावण बहुत महा ज्ञानी हैं उनसे हमें शिक्षा लेना हमारा सौभाग्य होगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जहाँ प्रेम है वहाँ अहंकार हो ही नहीं सकता। प्रेम का अर्थ ही अहंकार को त्यागकर समर्पण भावों से स्वयं को परिपूर्ण करना। जिसके अन्दर अहंकार होता है उसमें प्रेम की उपस्थिति नहीं होती। अहंकारी प्रेम के नाम पर बस दिखावा ही कर सकता है क्योंकि प्रेम मनुष्य को विनम्रता और सहृदयता प्रदान करता है परन्तु अहंकारी इन गुणों से दूर होता है इसलिए यदि किसी मनुष्य के अन्तर्मन में प्रेम भाव नहीं हैं तो उसके अहंकारी होने के मार्ग खुल जाते हैं।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम होता है।
इसलिए मनुष्य को अपने मन में सदैव यह भाव रखने चाहिएं कि...... 
"बावलापन दे या हृदय में, पागलपन भर दे। 
हृदय में बसूँ सभी के, प्रभु! कुछ ऐसा कर दे।। 
मन रहे नर्म, मस्तिष्क में भाव रहे समर्पण के। 
प्रेम राग कहे मन सदा, अहंकार से दूर कर दे।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है। वह अपने घमंड में चूर रहता है और अपना भला बुरा भी भूल जाता है। अहंकारी मनुष्य को अपनी गलती का एहसास तब होता है जब उसकी की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है। ऑडी कार का परिणाम बुरा होता है।इसलिए मनुष्य को अंधकार का मार्ग त्याग कर प्रेम और सद्गुण का मार्ग अपनाना चाहिए। अहंकार प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम होता है ऐसी बात नहीं है। मनुष्य के अंदर सद और असद दो वृतिया होती है। शब्द का अर्थ है अच्छा और असद का अर्थ है जो अच्छा ना हो यानी बुरा। अहंकार मनुष्य की बुरी वृति है।अहंकारी मनुष्य को अच्छे और बुरे का विवेक नहीं होता वह अपने घमंड में ही चूर रहता है और अपना भला बुरा भी भूल जाता है। मनुष्य का अवतार उसे पतन की ओर ले जाता है इसलिए मनुष्य को अनकार का त्याग करना चाहिए। अहंकारी मनुष्य का धार्मिक होना भी बेकार है। एंकर का परिणाम सदा बुरा ही होता है। हमारा सबसे बड़ा दुश्मन अहंकार और घमंड है।सबसे खतरनाक बुद्धिमता का आकार है क्योंकि यह अब परिपक्व सुविकसित मन में पाया जाता है।हम अपने उच्च शिक्षा योगिता और विचार चिंता के कारण अपने को दूसरों से सिर्फ समझने लगते हैं। मन में इस भाव से उत्पन्न होते ही दूसरों को यह समझने का भाव उठ खड़ा होता है। अपने लोगों को इस प्रकार कहते हुए सुना होगा इसका असर मेरे असर से नीचा है।कुछ अंकारी लोग किस प्रकार के भाव को दया कह कर पुकारते हैं। इस प्रकार का अधिकार आधुनिक जीवन का अभिशाप बन गया है।इसे अंकारी व्यक्ति को कौन नहीं जानता जो अपने प्रति असीम उत्साह और उन लोगों के प्रति जो उनके विचारों से सहमत नहीं है ज्यादा खिलाते हैं अंधकार के कितने ही रूप हमें प्रतिदिन अपनी आंखों से देखने को मिलते हैं अंकारी व्यक्ति दूसरों को समाज व राष्ट्र को आगे नहीं बढ़ने देता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
अहंकार होने के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें से एक है प्रेम की अनुपस्थिति। किन्हीं विशिष्ट उपलब्धियों को हासिल करने के बाद यदि हृदय में प्रेम की अनुपस्थिति होगी तो उस समय की अभिव्यक्ति अहंकार से पूर्ण होगी। प्रेम ही अहंकार को समाप्त कर सकता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
अहंकार का प्रवाह बड़ा ही अवरोधक व उन्मादी होता है। अहंकार  से पीड़ित बुध्दि  हमेशा कुटिल एवम कलुषित  होती है। उसकी सोच में कभी भी लोकहित की व्यापकता   व विशालता नहीं होती। अहंकार सर्वहित सोच से बहुत दूर होता है। स्वार्थ और क्षुद्रता सदैव इसके सच्चे मित्र होते हैं।
 सृष्टि का सृजन, रचनात्मकता से कोसों दूर अहंकार  के सामने प्रेम बहुतायत अनुपस्थित  ही रहता है। अहंकारी यदि  प्रेम करता है तो वह दिखावा व स्वार्थ से भरपूर, प्रेम की करुणा और सहानुभूति की स्निग्धता से  रहित होता है। अहंकार आसुरी प्रवृत्तियों का  जन्मदाता है जहां जीव के साथ-साथ प्रकृति के प्रति उसका विध्वंसक रवैया देखने को ही मिलता है।  वास्तविक शुद्ध प्रेम तो ऐसा है जिसके वशीभूत होकर संसार की सृष्टि हुई। जगत के कल्याण से ओतप्रोत प्रकृति के कण-कण में प्रेम का माधुर्य तो सर्वत्र बिखरा पड़ा है ।जैसे श्री कृष्ण के बांसुरी प्रेम से ही तो वृंदावन पावन धाम बन गया।
          अज्ञानता से उपजे अहंकार में तो प्रेम मात्र भौतिक दिखावा या छलावा ही है---यथा मधु- कैटभ,  रावण ।
   - डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
"सब कुछ जीता जा सकता है संस्कार से, 
जीता हुआ भी हारा जा सकता है अंहकार से"। 
सचमुच अंहकार बहुत बुरी आदत है, यह जिस व्यक्ति  में भी होता है उसका नाश अवश्य ही होता है, 
यही नहीं मन की तमाम परेशानियों की वजह हमारा अंहकार ही है, 
 देखा जाए अंहकारी व्यक्ति का अंहकार ज्ञान निरथर्क होता है क्योंकी जब भी वह अपने ज्ञान का उपयोग करता है तो  किसी न किसी को हानि ही पहुंचाता है। 
आज तक जिन जिन को भी अंहकार हुआ है उसका मूल कारण  धन की अधिकता होना व धन का सही जगह पर सही तरीके से इस्तेमाल करना वअपनी ताकत का गल्त इस्तेमाल करना व  पूर्वजों  का  बना  बनााया धन  राज्य पाठ मिल जाना  व  प्रजा के साथ प्रेम भाव न होना इत्यादी आता है, 
तो आईये इसी बात पर चर्चा करतो हैं  कि क्या अंहकार प्रेम की अनुपस्थति का परिणाम होता है? 
मेरा मानना है कि यहां प्रेम होता है वहां अंहकार कभी भी नहीं टिक सकता अंहकारी मनुष्य प्रेम से नहीं अपनी ताकत से सब कुछ कर दिखाना चाहता है तो वोही ताकत उसे एक दिन बर्बाद कर देती है, 
देखा जाए अंहकार हमारी अध्यातिमक शक्ति को कुंठित करता है इसलिए इंसान को अपने अन्दर नमन भाव लाना चाहिए जिससे हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सके, लेकिन इंसानों में संवेदनशीलता खत्म होने का कारण अंहकार ही है। 
देखा जाए अंहकार में वोही फंसते हैं जिन्हें प्रेम करना नहीं आता यह सच है यहां प्रेम हो वहां अंहकार नहीं आता, 
कृष्ण भगवान जी ने  दुर्योधन के मेवे इसलिए त्यागे थे कि   दुर्योधन मेंअंहकार था और विदुर का साग रोटी इसलिए खाई  थी कि उसके पास अटूट प्रेम था, 
इसी तरह रावण में  अंहकार और बभीषण में प्रेम था  और रावण ने अंहकार में ही अपने कुल को नष्ट कर डाला कहने का  मतलब अंहकार प्रेम की अनुपस्थति का ही परिणाम है, 
अन्त मैं यही कहुंगा की  वोही इंसान उत्तम है जिसमें अंहकार शेषमात्र भी नहीं है किन्तु कई लोग हर चीज में घमंड दिखाते हैं और अपने अन्दर के ज्ञान को पल भर में नष्ट कर देते हैं वो भी अंहकार  के कारण, 
सोचा जाए जिस प्रकार निंबू के रस की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है उसी प्रकार मनुष्य का अंहकार भी अच्छे से अच्छे संबध को पल भर में बर्बाद कर देता है इसलिए हमें प्रेम भाव के साथ एक दुसरे के साथ रहना चाहिए और अपने पास जो कुछ भी हो उसका तनिक भी घमंड नहीं करना चाहिए, 
सच कहा है, 
जरूरत से ज्यादा घंमड होना, 
इंसान के मन में अंहकार पैदा कर देता है अत:हमें अंहकार से बचना चाहिए। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अहंकार लोगों में पाया जाने वाला ऐसा दुर्गुण है जो उसकी सारी अच्छाइयों को धूमिल कर देता है  । 
       अहंकारी होने के कई कारण होते हैं जिनमें सबसे प्रमुख है-पैसा  । अधिकतर पैसे वालों को अहंकार में डूबे हुए देखा गया है  । 
       इसके अलावा सहज में मिली सफलता, प्रसिद्धि, पद-प्रतिष्ठा, सुख-सुविधाओं का अंबार, सुन्दरता आदि के कारण भी लोग अहंकारी हो जाते हैं तथा अपने सामने सभी को तुच्छ समझने लगते हैं  । 
        कभी-कभी तो अहंकार उन पर इतना हावी हो जाता है कि संवेदनाओं, रिश्तों आदि को भी ताक पर रख देते हैं  । 
       कभी-कभी प्रेम की अति से भी अहंकार आ जाता है परन्तु प्रेम की अनुपस्थिति का परिणाम अहंकार नहीं होता बल्कि इसकी अनुपस्थिति उसे  हताश, निराश एवं एकाकी होने का अहसास अवश्य कराती है  ।
                -  बसन्ती पंवार 
             जोधपुर - राजस्थान 
जी नही ! अहंकार मनुष्य में अनुवांशिक होता है ये खाली मनुष्य में नही इस ब्रह्मांड के प्रत्येक अवयव में व्याप्त होता है / ये मनुष्य की मृत्यू के उपरांत उसकी जीवात्मा के साथ प्रभूलोक को चला जाता है / अहंकार के कारण ही पुनर्जन्म होता है / इसको समझने का सामर्थ्य लेकिन सिर्फ मनुष्य में ही होता है अन्य किसी जीव्धारी में नही // हां यदि मनुष्य इस तथ्य को समझ ले और अहंकार का त्याग कर अपना जीवन जी ले तो उसको मोक्ष प्राप्त होता है व वो आवागमन के झंझट से मुक्त प्रभु धाम में आनंदित रेहता है - स्रष्टी के काल चक्र अनुसार - कोई 9 अरब जीवत्माये मेरी गिनती में आ चुकी है इस से अधिक आने की सम्भावना नही है - ये समय अर्थात वर्तमान समय इस कलयुग का समाप्ति काल है उसके उपरांत सतयुग आने वाला है - लेकिन इस युग के चयन के लिये जीव को अहंकार का समूळ त्याग करना होगा अन्यथा हरि इच्छा ऑं ऑं औ ----- इन शब्दो को टंकन करते समय मै भी अहंकार से भर हुआ हुं
- अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " अहंकार से प्रेम कम होने लगता है । इस सत्य को बहुत कम जानते हैं । अहंकार का मतलब नफरत होता है । जो इस की जानकारी रखते हैं । वह अहंकार से बचने का प्रयास अवश्य करते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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